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मोटा मुनाफा देने वाली मछलियां

मछलीपालन से अच्छीखासी कमाई होती है, पर मछलियों की कुछ ऐसी किस्में हैं, जो उत्पादकों को कम खर्च में मोटी कमाई देती हैं. देश के सभी राज्यों की सरकारें मछलीपालन को बढ़ावा देने की कवायद में लगी हुई हैं और इस के लिए उत्पादकों को काफी मदद भी दी जा रही है. मछली उत्पादकों को यह जानना और समझना पड़ेगा कि किस किस्म की मछली की बाजार में ज्यादा मांग है. इस से उत्पाद को खपाने के लिए खास मशक्कत नहीं करनी पड़ती है और बेहतर मुनाफा भी मिल जाता है. पंगेसियस मछली का उत्पादन कर के किसान अपनी कमाई को कई गुना बढ़ा सकते हैं. कृषि वैज्ञानिक वीएन सिंह बताते हैं कि मीठे पानी में पंगेसियस मछली का वजन काफी तेजी से बढ़ता है और यह 8 महीने में ही डेढ़ किलोग्राम की हो जाती है. यह मछली भारतीय मछली की तुलना में 5 गुना ज्यादा तेजी से बढ़ती है. 1 हेक्टेयर क्षेत्र में पंगेसियस मछली के उत्पादन में 5 लाख रुपए का खर्च आता है. इस में 60 हजार रुपए मछली के बीजों पर और 4 लाख, 40 हजार रुपए मछली के भोजन पर खर्च आता है.

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पंगेसियस मछलीपालन के लिए मत्स्यकी विकास बोर्ड हैदराबाद की ओर से 2 लाख रुपए, राज्य योजना से 50 हजार रुपए और मार्जिन मनी के रूप में बैंकों से ढाई लाख रुपए मछलीपालकों को दिए जाते हैं. बिहार के मत्स्य संसाधन मंत्री बैद्यनाथ साहनी ने बताया कि मछली उत्पादकों को विदेशी मछली पंगेसियस के उत्पादन के लिए 5 करोड़ रुपए की सब्सिडी दी जाएगी. राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत मछली उत्पादन के लिए पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग के जरीए 875 किसानों को सब्सिडी की रकम दी जाएगी. विभाग मछलीपालकों को 1 हेक्टेयर क्षेत्र में 1000 किलोग्राम के बजाय 2500 किलोग्राम मछली उत्पादन के लिए जागरूक कर रहा है. पिछले साल पंगेसियस मछली के उत्पादन के लिए 168 किसानों को सब्सिडी दी गई थी. उन किसानों ने 126 हेक्टेयर में पंगेसियस मछली का पालन किया था और 1117 मीट्रिक टन मछली की पैदावार हुई थी. झींगा मछली का जलजमाव वाले इलाकों में अच्छाखासा उत्पादन हो सकता?है. उत्तर बिहार के पूर्णियां, कटिहार, सहरसा, अररिया, मधेपुरा और किशनगंज जिलों के जलजमाव वाले इलाकों में झींगापालन योजना शुरू की गई?है. बिहार में झींगा के माइक्रो ब्रेकियम रोजाबर्गी और माइक्रो विलियम मालकम सोनी वेराइटी का काफी बढि़या उत्पादन हो सकता?है. गौरतलब?है बिहार में हर साल 30 से 50 टन झींगा मछली की खपत होती है और इस की कीमत 500 से 700 रुपए प्रति किलोग्राम?है. 1 हेक्टेयर क्षेत्र में झींगापालन करने में 2 लाख, 80 हजार रुपए तक की लागत आती है.

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तालाब में?झींगा का बीज डालने के तुरंत बाद मत्स्य निदेशालय में अनुदान के लिए आवेदन करने पर 1 लाख, 40 हजार रुपए सभी झींगापालकों को मदद के तौर पर दिए जाते हैं. इतना ही नहीं, झींगापालन की विधिवत ट्रेनिंग लेने के लिए चुने गए किसानों को दूसरे राज्यों में भेजा जाता है. इस के अलावा मीठे पानी वाले इलाकों के किसानों को भी इस योजना का फायदा दिया जाएगा. सूबे में झींगापालन की भरपूर संभावना है. पटना के मीठापुर मत्स्य अनुसंधान केंद्र में झींगा पर किए गए अनुसंधान को मिली कामयाबी के बाद इसे पूरे राज्य में शुरू करने की योजना पर काम शुरू किया गया है.

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जयंती रोहू की नई किस्म से मछलीपालकों की आमदनी में कई गुना ज्यादा का इजाफा हो सकता है. केंद्रीय मीठा जल मत्स्य अनुसंधान संस्थान की ताजा रिसर्च में इस का परीक्षण कामयाब रहा है. परीक्षण में पाया गया?है कि साधारण रोहू मछली के मुकाबले उस की नई किस्म जयंती रोहू काफी तेजी से बढ़ती है. सामान्य रोहू की तुलना में इस का वजन डेढ़ गुना ज्यादा होता है. राज्य सरकार किसानों को इस नई किस्म की मछली के बीज मुहैया कराएगी. इस मछली का रंग सुनहरा होता है और स्वाद सामान्य रोहू से काफी अच्छा होता है. मत्स्य विभाग के निदेशक निशात अहमद ने बताया कि राज्य के सभी इलाकों के तालाबों में जयंती रोहू का उत्पादन किया जा सकता है. साधारण रोहू के मुकाबले इस का वजन बहुत तेजी से बढ़ता है. इस साल सभी 112 हैचरी और मछलीपालकों को इस के बीज दिए जाएंगे. इस के साथ ही आमूर कौर्प और महाशीर मछली की नई किस्में विकसित करने का काम भी चल रहा है. देश में मछली मौजूदगी का राष्ट्रीय औसत 8.54 किलोग्राम प्रति व्यक्ति है, जबकि बिहार में यह आंकड़ा 7.7 किलोग्राम ही?है. फिलहाल 1 लाख 50 हजार टन मछलयां दूसरे राज्यों से मंगाई जाती?हैं. साल 2015-16 में राज्य में 4 लाख 70 हजार टन मछली का उत्पादन हुआ था, जबकि खपत 6 लाख टन हुई थी.

स्कूलों का चुनाव, नाम नहीं फीस और जेब देख कर

तालाबंदी ने मानो कई तरह के सबक सिखाए हैं. स्कूल का चुनाव नाम देख कर नहीं जेब और फीस देख कर करना चाहिए. निजी कंपनियों ने बडे़ पैमाने पर अपने कर्मचारियों को विश्वव्यापी आपदा में बिना सहारे के छोड़ दिया. ऐसे पैरेंट्स बच्चों की पढ़ाई को ले कर तनाव से गुजर रहे हैं. महंगी शिक्षा के बाद भी उस के प्रतिफल में नौकरियां नहीं हैं, जिस से बेरोजगारों को निजी कंपनियों में बकरे की तरह हलाल होना पड़ता है. ऐसे में महंगी शिक्षा का कोई औचित्य समझ से परे है.

लखनऊ के आशियाना इलाके में प्रवीण विश्वकर्मा रहते हैं. प्रवीण ने ओला टैक्सी चलाने के लिए बैंक से कर्ज लिया था. उस के 2 बच्चे सैंट मैरी स्कूल में पढ़ते हैं. दोनों बच्चों की फीस प्रतिमाह 4,800 रुपए देनी पड़ती थी. लौकडाउन के दौरान बिजनैस बंद हो गया. टैक्सी के लिए लिया बैंक का कर्ज भारी पड़ने लगा. बच्चों की फीस माफी के लिए प्रवीण ने सरकार से ले कर स्कूल तक सब से फरियाद कर ली. इस के बाद भी कहीं कोई राहत नहीं मिली.

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रुचि खंड, लखनऊ के रहने वाले गायत्री श्रीवास्तव का बेटा एलपीएस स्कूल में कक्षा 7वीं में पढ़ता है. 2,500 रुपए महीने उस की फीस जाती है. लौकडाउन में वेतन से 30 प्रतिशत की कटौती होने लगी. ऐसे में उस के लिए बच्चे की फीस देना संभव नहीं हो रहा था. अब वह बच्चे को सरकारी स्कूल में पढ़ाने के लिए प्रयास कर रहा है. परेशानी की बात यह है कि बडे़ स्कूल से बच्चा अब छोटे स्कूल में पढ़ना नहीं चाहता है.

गोरखपुर के रहने वाले जीतेंद्र की नौकरी के पैसों से जब 2 बच्चों की स्कूल फीस भारी पड़ने लगी, तो वह अपने जिले गोंडा वापस आ गए. यहां अपने घर में एक दुकान खोल कर काम करना शुरू किया. बच्चे अब गोरखपुर की जगह गोंडा के स्कूल में पढ़ने लगे.

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लखनऊ की पारा कालोनी में रहने वाले वेदप्रकाश के दोनों बच्चों का आरटीई कानून के तहत प्राइवेट स्कूलों में प्रवेश हुआ था. आरटीई कानून यानी राइट टू एजुकेशन के तहत गरीब बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने का खर्च सरकार देती है.

वेदप्रकाश कहते हैं कि 2 साल से बच्चों के बैंक खाते में यह पैसा नहीं आया है. पिछले साल मेहनतमजदूरी कर के बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठा लिया. तालाबंदी में इस साल मजदूरी नहीं मिली, तो अब बच्चों की फीस कैसे जमा हो?

पैरेंट्स अब यह सोचने लगे हैं कि उन को महंगे स्कूल की जगह अपनी जेब के लायक स्कूल की तलाश की जाए. तालाबंदी के बाद ‘भारत अभिभावक संघ’ का आंदोलन बताता है कि तालाबंदी, बेरोजगारी और निजी नौकरियों के जाने का बच्चों की शिक्षा पर बहुत प्रभाव पड़ा है.

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‘राष्ट्रीय राष्ट्रवादी पार्टी’ के अध्यक्ष प्रताप चंद्रा तालाबंदी के बाद से पूरे देश में पैरेंट्स की लड़ाई लड़ रहे हैं. इस के लिए ‘भारत अभिभावक संघ’ बनाया गया. इन की 3 सूत्रीय मांग है. पहली, ‘नो स्कूल नो फीस‘, दूसरी, ‘औनलाइन पढ़ाई तो औनलाइन की फीस तय हो’, तीसरी, ‘शिक्षा नियामक आयोग बने‘.

‘राष्ट्रीय राष्ट्रवादी पार्टी’ और ‘भारत अभिभावक संघ’ ने मिल कर दिल्ली, जयपुर, जबलपुर, भोपाल और लखनऊ सहित देश के तमाम शहरों में अलगअलग तरह से अपना आंदोलन चलाया.

सरकार को जगाने के लिए वह ‘मोदी पूजा‘ कर रहे हैं. ‘भारत अभिभावक संघ’ के अजय सिंह कहते हैं , ‘मोदी की खिलाफत कर के कोई बात नहीं कर सकते, तो उन की पूजा कर के तो अपने मन की बात उन तक पहुंचाने का प्रयास कर ही सकते हैं. भारत अभिभावक संघ की मांग को दबाने के लिए सरकार ने आधीअधूरी तैयारी के बीच 9वीं से 12 वीं कक्षा तक के स्कूलों को खोलने का काम किया है.’

बेरोजगारी में कैसे लाएं फोन और लैपटौप:

तालाबंदी के दौरान स्कूलों की फीस की अपनी परेशानी है. पैरेंट्स की नौकरी जाने से हालात बिगडे. दूसरी तरफ औनलाइन पढ़ाई के लिए एंड्रौयड फोन और लैपटौप का इंतजाम करना पैरेंट्स पर भारी पड़ रहा था. आरटीई के तहत दाखिला पाए बच्चों की हालत और भी खराब है.

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आरटीई ऐक्टिविस्ट अजय पटेल कहते हैं, ‘आरटीई के तहत प्राइवेट स्कूलों में प्रवेश पाए छात्रों में से 40 फीसदी की पढ़ाई बंद हो गई है. प्राइवेट स्कूल औनलाइन पढ़ाई कराने लगे, पर इन बच्चों के पास एंड्रौयड फोन खरीदने तक के पैसे नहीं थे. ऐसे में कैसे पढ़ाई हो?’

यही हाल प्राइमरी स्कूलों के बच्चों के साथ भी हुआ. गांव के कई छात्रों ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और वह अब कामधंधे की तलाश करने लगे. गांवों में 90 फीसदी बच्चों के पास एंड्रौयड फोन नहीं हैं. ऐसे में वे कैसे औनलाइन पढ़ाई कर सकते हैं. यह समझने वाली बात है. साथ ही, इंटरनैट की स्पीड भी गांवदेहात में अलग परेशानी है.

वर्ल्ड इकोनौमी फोरम की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया के हर 5 में से 2 पैरेंट्स अपने बच्चों को औनलाइन पढ़ाई के संसाधन न जुटा पाने के कारण और उन की जानकारी न होने के कारण डिप्रेशन का शिकार हो गए. इन में ज्यादातर प्राइवेट संस्थानों में काम करने वाले थे. 30 फीसदी पैरेंट्स इस कारण परेशान थे, क्योंकि उन के 2 बच्चे एकसाथ ही पढ़ते थे. उन को अलगअलग एंड्रौयड फोन की जरूरत थी. 25 फीसदी पैरेंट्स की आर्थिक हालत बेहद खराब हो गई. वह स्कूल की फीस नहीं भर पाए. उन के लिए एंड्रौयड फोन का इंतजाम करना मुश्किल था. एंड्रौयड फोन के साथ ही साथ इंटरनैट और बिजली का इंतजाम करना अलग समस्या थी.

फीस के मुताबिक नहीं है रोजगार :

स्कूलों में जिस तरह की फीस ली जा रही है, उस के अनुसार रोजगार नहीं है. सरकारी क्षेत्रों में नौकरी में वेतन और सुरक्षा है, तो वहां नौकरियां कम हैं. निजी क्षेत्रों में नौकरियां हैं, तो वहां हर तरह का शोषण है. पैरेंट्स बच्चों को अपना पेट काट कर पढ़ाते हैं. बच्चे पढ़लिख कर या तो बेरोजगार होते हैं या फिर निजी नौकरियों में शोषण का शिकार. इंजीनियरिंग को सब से बेहतर कैरियर माना जाता है. यहां पर ग्रेजुएट करने के बाद ही रोजगार मिल जाता था. यही वजह है कि पिछले कुछ सालों में पूरे देश में इंजीनियरिंग कालेजों की संख्या तेजी से बढ़ी. उत्तर प्रदेश में इंजीनियरिंग कालेजों को देखने का काम डा. एपीजे अब्दुल कलाम टैक्निकल यूनिवर्सिटी यानी एकेटीयू देखती है.

एकेटीयू से जुडे़ पूरे प्रदेश में 756 कालेज हैं, जिन में से 220 इंजीनियरिंग के हैं. 2019-20 के इंजीनियरिंग सत्र में यहां 79 हजार, 693 सीटें थीं, जिन में से 41,155 सीटें ही भर पाई थीं. साल 2020 में इंजीनियरिंग की राज्य प्रवेश परीक्षा एसईई में 1 लाख, 62 हजार छात्रों ने आवेदन किया है, वहीं साल 2019 में 1 लाख, 30 हजार छात्रों ने यह परीक्षा दी थी. परीक्षा में केवल 95 हजार छात्र शामिल हुए थे.

उत्तर प्रदेश के सरकारी इंजीनियरिंग कालेजों में 3 कालेज सब से बेहतर माने जाते हैं. इन में पहला मदन मोहन मालवीय टैक्निकल यूनिवर्सिटी यानी एमएमटीयू, गोरखपुर है. यहां हर साल 900 नए छात्रो का प्रवेश होता है. यह कालेज अपनी प्रवेश परीक्षा अलग से कराता है और एसईई से केवल 10 फीसदी बच्चों का प्रवेश लेता है.

दूसरे नंबर पर कानपुर का हरकोर्ट बटलर टैक्निकल यूनिवर्सिटी यानी एचबीटीयू है. यहां पर एसईई से प्रवेश होेते हैं. यहां पर 600 सीेटों पर प्रवेश होता है. लखनऊ का आईईटी इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट औफ टैक्नोलौजी है. यहां 800 बच्चों को प्रवेश दिया जाता है. बांदा और नोएडा के 2 सरकारी कालेजों को मिला कर देखें, तो केवल 18 सौ नए बच्चों का प्रवेश इन में मिलता है. सरकारी स्कूल में 40 से 50 हजार रुपए सालाना फीस है और 50 से 60 हजार रुपए होस्टल के खर्च होते हैं यानी अगर छात्र को सरकारी इंजीनियरिंग कालेज में प्रवेश मिल जाता है, तो 1 लाख से 1 लाख, 10 हजार के बीच सालाना फीस देनी पड़ती है. कुछ छात्र के और खर्च जोड़ दिए जाएं, तो 1 लाख, 50 हजार रुपए औसतन सरकारी स्कूल में सालाना खर्च होता है.

इंजीनियरिंग करने वाले छात्रों को सब से अधिक प्राइवेट स्कूलों में प्रवेश मिलता है. यहां पढ़ाई पर आने वाले खर्च का कोई तय मानक नहीं है. सरकार के दबाव के बाद भी 70 हजार से ले कर 1 लाख, 30 हजार रुपए तक केवल फीस होती है. इस के अलावा 90 हजार से ले कर 1 लाख, 20 हजार रुपए तक होस्टल का खर्च होता है. दोनों को मिला लें, तो 2 लाख से ले कर 2 लाख, 50 हजार रुपए तक का खर्च आता है. इस में 10 हजार रुपए कम से कम प्रति माह बच्चे के अपने खर्च होते हैं. प्राइवेट स्कूल में पढ़ने वाले छात्र पर 3 लाख रुपए सालाना का औसत खर्च आता है.

सरकारी स्कूल का छात्र 4 साल के बाद 6 लाख रुपए खर्च कर के इंजीनियरिंग की डिगरी हासिल करता है और प्राइवेट स्कूल में पढ़ने वाला छात्र 12 लाख रुपए खर्च कर के अपनी डिगरी हासिल करता है.

जब बात प्लेसमैंट की आती है, तो 100 फीसदी प्लेसमैंट का दावा करने वाले प्राइवेट कालेज 8 से 10 हजार से अधिक वेतन की नौकरी नहीं दिला पाते. छात्र अगर अपनी योग्यता के अनुसार नौकरी पाना चाहते हैं, तो सरकारी नौकरी पाने के लिए कोचिंग करते हैं. यहां 60 से 80 हजार साल की फीस और बडे़ शहर में रहनेखाने का खर्च अलग करना पड़ता है.
अगर सरकारी नौकरी मिल गई, तो 60 से 70 हजार का वेतन मिल जाता है. अगर नहीं तो वापस उन को भी 8 से 10 हजार के वेतन में समझौता करना पड़ता है. मल्टीनैशनल कंपनी में भी जौब मिली, तो कुछ फीसदी की बात छोड़ दें, तो 30 से 40 हजार रुपए प्रति माह की नौकरी ही मिलती है.

शिक्षा नियामक आयोग जरूरी :

‘राष्ट्रीय राष्ट्रवादी पार्टी’ के अध्यक्ष प्रताप चंद्रा कहते हैं, ‘स्कूल की फीस और जौब की हालत को देखते हुए उस के अनुसार नीतिगत फैसले लेने के लिए शिक्षा नियामक आयोग की जरूरत है. स्कूलकालेज महंगी फीस वसूल सकें, इस के लिए ही सरकार कोविड 19 के खतरों के बाद भी स्कूल और कालेज खोलना चाहती है.

‘देश की सरकार संसद, विधानसभा, अदालतें खोलने से कतरा रही है. फीस लेने के चक्कर में स्कूल खोलने का काम कर रही है. आकंडे़ बताते हैं कि 3 लाख करोड़ रुपए देश में एक साल में प्राइवेट स्कूलों की फीस से पैसा एकत्र होता है. यह पैसा पैरेंट्स की जेब से जाता है, जिस के बदले उसे कुछ नहीं मिलता. वह यह समझ लेता है कि उस का बच्चा पढ़लिख कर नौकरी के लायक बन गया है. असल में स्कूल एक पढ़ालिखा बेरोजगार तैयार कर रहे हैं.’

प्रताप चंद्रा कहते हैं, ‘शिक्षा एक बड़ा बिजनैस बन गया है. पैरेंट्स अपनी पढ़ाई का 50 फीसदी बच्चों के स्कूल में खर्च करते हैं. फीस के साथ ही साथ बहुत सारे दूसरे खर्च भी इस में जुडे़ हैं.

‘पूरे देश के स्तर पर कोई ऐसी व्यवस्था नहीं है कि शिक्षा में एकरूपता आ सके और उस के अनुसार रोजगार मिल सके. स्कूली क्षेत्रों में रोजगार की बुरी हालत है. यहां कर्मचारियों का शोषण होता है. वेतन बढ़ोतरी का कोई नियम नहीं है. किस कर्मचारी को कितना वेतन मिलेगा, यह मालिक की मरजी पर टिका होता है. 20-22 साल से नौकरी करने वाले की जौब भी एक झटके में जा सकती है. तालाबंदी के दौरान 30 से 50 प्रतिशत तक वेतन कटौती की गई. जिन लोगों को नौकरी से हटाया गया, उन के बकाया पैसे लेने के लिए दौड़ाया जा रहा है. पुराने कर्मचारियो को हटा कर कम पैसे में नए लोगों से काम ले कर पुराने कर्मचारियों को हटाने का प्रयास किया जा रहा है. ऐसे में जरूरी है कि शिक्षा व्यवस्था को देखने के लिए शिक्षा नियामक आयोग बनाया जाए, जिस से पैरेंट्स के साथ ही साथ वहां काम करने वाले कर्मचारियों के हित भी सुरक्षित रह सकें.

बकरे सा हलाल होती बेरोजगारों की फौज :

इंजीनियरिंग, पौलीटैक्निक और आईआईटी कालेजों से साल दर साल बेरोजगारों की फौज कालेजों से बाहर निकलती है. उत्तर प्रदेश के आंकड़े देखें तो पता चलता है कि हर साल पौलिटैक्निक से तकरीबन 1 लाख, 54 हजार छात्र डिप्लोमा लेते हैं. आईटीआई से 2 लाख छात्र निकलते हैं. 1 लाख के करीब इंजीनियरिंग से छात्र निकलते हैं. 4 लाख से ऊपर टैक्निकल छात्र रोजगार की उम्मीद ले कर कालेजों से बाहर आते हैं. इन में से अधिकांश के परिवार पढ़ाई के खर्च से इतना टूट चुके होते हैं कि वे किसी भी वेतन पर काम करने को तैयार हो जाते हैं. प्राइवेट कंपनियां इन को बकरे की तरह हलाल करती हैं. नौकरी के 10-15 साल में जब यह पूरी तरह से हलाल हो जाते हैं, तब उन को नौकरी से बाहर निकाल दिया जाता है क्योंकि उन की जगह कम वेतन पर काम करने वाले बेरोजगार तैयार मिल जाते हैं.

निजी नौकरियों की बात हो या सरकारी नौकरी की, अंगरेजी शिक्षा वालों को अधिक महत्व दिया जाता है. इस कारण ही पैरेंट्स अंगरेजी स्कूलों की फीस की मार सहने को तैयार हो जाते हैं. उत्तर प्रदेश प्रोविंशियल सिविल सर्विस यानी यूपीपीसीएस 2018 के परिणामों को देखें, तो यह बात साफ हो जाती है.

जानकारी के मुताबिक, मुख्य परीक्षा में 1,100 से अधिक विज्ञान के छात्र शामिल हुए. 800 से अधिक ने साक्षात्कार दिया. इन में से ज्यादातर अंगरेजी माध्यम के थे. 976 पदों में चुने गए छात्रों में सब से अधिक संख्या अंगरेजी माध्यम के छात्रों की थी. कुल चुने गए छात्रों में से 600 अंगरेजी माध्यम और हिंदी के केवल 350 छात्र थे. हिंदी और अंगरेजी के बीच यही अंतर निजी स्कूलों में छात्रों को पढ़ने के लिए मजबूर करता है.

कड़वे स्वाद वाला करेला है – कई औषधीय गुणों की खान

करेले का स्वाद भले ही कड़वा हो, लेकिन सेहत के लिहाज से यह बहुत फायदेमंद होता है. विशेषज्ञों का कहना है कि करेला  कुपोषण और कई बीमारियों से बचाव में बेहद कारगर है. करेले में अन्य सब्जी या फल की तुलना में ज्यादा औषधीय गुण पाये जाते हैं.

करेला खुश्क तासीर वाली सब्जी‍ है. यह खाने के बाद आसानी से पच जाता है. करेले में फास्फोरस पाया जाता है जिससे कफ की शिकायत दूर होती है. करेले में प्रोटीन, कैल्शियम, कार्बोहाइड्रेट, फास्फोरस और विटामिन पाया जाता है. आइए हम आपको कडवे करेले के गुणों के बारे में बताते हैं.

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  • कफ की शिकायत होने पर करेले का सेवन करना चाहिए. करेले में फास्फोरस होता है जिसके कारण कफ की शिकायत दूर होती है.
  • करेला हमारी पाचन शक्ति को बढाता है जिसके कारण भूख बढती है. करेले ठंडा होता है, इसलिए यह गर्मी से पैदा हुई बीमारियों के उपचार के‍ लिए फायदेमंद है.
  • दमा होने पर बिना मसाले की छौंकी हुई करेले की सब्जी खाने से फायदा होता है.
  • लकवे के मरीजों के लिए करेला बहुत फायदेमंद होता है. इसलिए लकवे के मरीज को कच्चा करेला खाना चाहिए.
  • उल्टी-दस्त या हैजा होने पर करेले के रस में थोड़ा पानी और काला नमक मिलाकर सेवन करने से तुरंत लाभ मिलता है.
  • लीवर से संबंधित बीमारियों के लिए तो करेला रामबाण औषधि है. जलोदर रोग होने पर आधा कप पानी में 2 चम्मच करेले का रस मिलाकर ठीक होने तक रोजाना तीन-चार बार सेवन करने से फायदा होता है.
  • पीलिया के मरीजों के लिए करेला बहुत फायदेमंद है. पीलिया के मरीजों को पानी में करेला पीसकर खाना चाहिए.
  • डायबिटीज के लिए करेला रामबाण इलाज है. करेला खाने से शुगर का स्तर नियंत्रित रहता है.
  • करेला खून साफ करता है. करेला खाने से हीमोग्लोबिन बढ़ता है.
  • बवासीर होने पर एक चम्मच करेले के रस में आधा चम्मखच शक्कर मिलाकर एक महीने तक प्रयोग करने से बवासीर की शिकायत समाप्त हो जाती है.
  • गठिया रोग होने पर या हाथ-पैर में जलन होने पर करेले के रस से मालिश करना चाहिए. इससे गठिया के रोगी को फायदा होगा.
  • दमा होने पर बिना मसाले की करेले की सब्जी खाना चाहिए. इससे दमा रोग में फायदा होगा.
  • उल्टी, दस्त और हैजा होने पर करेले के रस में थोडा पानी और काला नमक डालकर पीने से फायदा होता है.
  • करेले के रस को नींबू के रस के साथ पानी में मिलाकर पीने से वजन कम किया जा सकता है.

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सवाधानी बरते  : वैसे तो करेला सेहत की दृष्टि से बेहद लाभकारी है. लेकिन जिन्हें अल्सर की समस्या है उन्हें इससे परहेज करना चाहिए. इसके अधिक सेवन से सीने में जलन जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं.

रूपमती- भाग 1 : क्या रूपमती के दर्द को समझने वाला कोई था?

सप्ताहभर की मूसलाधार बारिश के बाद आज बादलों के कतरे नीले आसमान में तैरने लगे थे. कुनकुनी धूप से छत नहा उठी थी. सड़क पर जगहजगह गड्ढे पड़ गए थे और बरसाती पानी से नाले लबालब भर गए थे.

वातावरण में नमी इस कदर थी कि गीले वस्त्र सूखने का नाम न लेते. कमरों के भीतर तक नमी पैठ गई थी. सीलन की अजीब सी गंध बेचैन कर रही थी. ऐसी गंध मुझे नापसंद थी. उपयुक्त समय जान कर मैं ने ढेर सारे कपड़े छत पर फैला दिए. पहाड़ी से ले कर समूचा कसबा चांदी सी चमकदार धूप से नहा उठा था. पेड़पौधों पर कुदरती गहरा हरा रंग चढ़ चुका था.

मुझे ज्ञात नहीं कब हमारे पूर्वज यहां आ कर बस गए. पहाड़ी की तलहटी में बसा यह कसबा लाजवाब है. कसबे से सट कर नदी बहती है. दूसरी तरफ हरेभरे जंगल बरबस नजरें खींच लेते हैं. मेरा बचपन इसी कसबे में बीता. विवाह के बाद अपने पति रामबहादुर के साथ अलग मकान में रहने लगी. कुछ ही दूरी पर मेरा मायका है. मांबाप, भाईबहन सभी हैं. अब हम 3 जने हैं. हम दोनों और हमारा 4 साल का बेटा दीपक. पड़ोसी मुझे धन्नो के नाम से जानते हैं.

मैं ने इतमीनान से सांस ली, फिर चारों तरफ नजर दौड़ाई. ठीक सामने खंडहर की ओर देखा तो एक अजीब सिहरन बदन में कौंध गई. खंडहर के मलबे से झांकते मटमैले पत्थरों से मुझे सहानुभूति सी होने लगी. पत्थर खालिस पत्थर ही नहीं थे बल्कि मूकदृष्टा और राजदार थे एक दर्द भरी कहानी के. मैं जिस की धुरी में प्रत्यक्ष मात्र बन कर रह गई थी. मेरी आंखों के आगे वह कहानी बादल के टुकड़े की तरह फैलती चली गई.

खंडहर में कभी दोमंजिला मकान हुआ करता था. पत्थरों का मकान था लेकिन इस में बाहर से सीमेंट की मोटी तह चढ़ी थी. मकान की सीढि़यां सड़क से सटी थीं और उस का प्लास्टर कई जगहों से नदारद था. पत्थरों से रेत तक भुरभुरा कर उतर गई थी. दीवार के पत्थर बिना मसूड़े के भद्दे दांतों जैसे दिखाई देते थे. ऐसा लगता था कि मकान अब गिरा कि तब गिरा. इस की अघोषित मालकिन रूपमती जीवट की थी. वह सुबहसवेरे अपने दैनिक काम निबटा कर लकड़ी के तख्तों वाले छज्जे पर बैठ जाती. वहीं से आनेजाने वालों पर अपनी नजर गड़ाए रहती. इधर मैं थी और सड़क के उस पार रूपमती. दोनों मकानों के बीच में यदि कोई था तो वह थी 15 फुट चौड़ी पक्की सड़क.

लोग कहा करते कि भरी जवानी में वह सचमुच की रूपमती थी. गोरीचिट्टी, सेब जैसे लाल गाल, मोटीमोटी आंखें, नितंबों तक झूलते हुए बाल और मदमस्त करने वाली चाल. रूपमती को देख कर मनचलों के होश फाख्ता हो जाते. दिनभर तितली बनी फिरती थी वह. तभी तो नदी पार गांव के बिरजू की आंखें जो उस पर अटकीं, शादी के बाद ही हटीं.

बिरजू था तो हट्टाकट्टा लेकिन एक सड़क हादसे में रूपमती को भरपूर जवानी में अकेला छोड़ गया. उस की बसीबसाई दुनिया में भूचाल आ गया. छोटा बच्चा गोद में था. पेट की आग से व्याकुल हो गई थी रूपमती. कमाई का कोई जरिया न था. हार मान कर उस ने जिस्म को भूखे दरिंदों के आगे डाल दिया.

दलदल इतना गहरा कि वह कभी बाहर निकल ही नहीं पाई. मजबूरन वह एक नई रूपमती बन गई. उस के स्वभाव और व्यवहार में निरंतर बदलाव आता चला गया. कितने ही इज्जतदार उस के आगे नतमस्तक हो गए. और तो और, कुछ वरदी वाले भी रूपमती के घर पर हाजिरी देने से नहीं चूकते. मजाल क्या थी कि कसबे में कोई उस से उलझे या आंखें डाल कर बतियाए. वरदी वाले रूपमती की पैरवी में आगे आते. जुर्रत करने वालों को थाने ले जाने में वह कोरकसर न छोड़ती.

रूपमती का लड़का था, मनोहर. दुबलापतला और डरपोक. अबोध अवस्था तक घर में रहा और जब वह समझदार हुआ तो हालात से घबरा गया. प्रताड़ना और अपमान से आहत एक दिन उस ने घर ही छोड़ दिया. रूपमती लोगों के सामने झूठे को ही आंसू बहाती रही. दरअसल, रूपमती यही चाहती थी, खुली आजादी.

रात गहराती और रूपमती सजधज कर छज्जे पर बैठ जाती. ग्राहक आने लगते, एक के बाद एक. वे उस ऊबड़खाबड़, उधड़ी हुई सीढि़यों पर चपलता से चढ़तेउतरते.

दिन में वे लोग कभी इस तरफ नहीं निकलते जिन्हें समाज का डर होता. किसी को रूपमती देख लेती तो उसे झक मार कर बतियाना पड़ता. कौन जाने कब रूपमती दुखती रग पर हाथ रख दे. डर बला ही ऐसी है लेकिन अंधेरे में समाज की किसे परवा? मुझे यह सब देखसुन कर उबकाई सी होने लगती. इस माहौल से ऊब गई थी मैं.

2-3 साल बीते. मनोहर यदाकदा घर आने लगा. जब आता उस दिन रूपमती के घर की सीढि़यां सूनी पड़ी रहतीं. शायद मनोहर ने दुनिया देख ली थी. उस की बातों से रूपमती आपा खो देती और मारपीट पर आमादा हो जाती. मनोहर उसी दिन चला जाता. वह शहर में गुजारे भर का पैसा कमाने लगा था. जाते वक्त कभी कुछ रुपए मां के सिरहाने रख देता. वैसे रूपमती को उस के पैसों की जरूरत नहीं थी. बहुत रुपया कमा चुकी थी वह. ऐसे धंधे में हानि का प्रश्न ही नहीं था.

इस तरह कई वसंत आए, कई गए. लेकिन रूपमती के लिए दिन, महीने, साल घाटे के साबित होने लगे. वह 50 की उम्र पार कर गई थी. धंधे की आंच ठंडी पड़ गई थी. शरीर थुलथुला हो गया था, चेहरे पर झुर्रियां गहरा गई थीं. छोटेबड़े रूपमती को ताई कह कर पुकारने लगे थे. रूपमती को इस में कुछ भी अजीब नहीं लगता. वक्त हालात से साक्षात्कार करा ही देता है.

शायद उसे भी एहसास होने लगा था. समय रहते ही रूपमती ने कमाई का नया जरिया ढूंढ़ लिया. लोग कहने लगे कि उस पर कोई देवी आती है. देवी सच बताती है. मुसीबतों से त्रस्त अंधविश्वासी उस के घर आते. किसी का लड़का बीमार है, किसी पर प्रेत की छाया है तो किसी पर जादूटोना. रूपमती झूमझूम कर देवी को बुलाती और उपाय बताती.

रूपमती- भाग 3 : क्या रूपमती के दर्द को समझने वाला कोई था?

रूपमती को कौन समझाता कि जवानी में फैशन न करें तो कब करें? उसे टोकने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पाता. न औरत न मर्द. औरतें क्या कहतीं जब मर्द चूडि़यां पहन कर बैठ गए थे.
यह खंडहर जब तक आबाद था, रूपमती उस में बरसों रही. मकान दीनदयाल नाम के व्यवसायी का था. वह आज भी मिठाई की दुकान चलाता है. नकली मिठाई के धंधे में पिछले साल सजा भी काट चुका है. उस ने कई बार रूपमती को प्रलोभन दिया कि वह मकान ठीक कर उसे ही देगा लेकिन वह टस से मस नहीं हुई. किराया देना भी कई साल पहले बंद हो गया था. एक तरह से रूपमती का मकान पर कब्जा बरकरार रहा. मकान की हालत दयनीय होती जा रही थी. दीवारें कई जगहों से फूल कर एक ओर झुकने लगी थीं और टिन की छत ने भी भीतर झांकना शुरू कर दिया था. लेकिन रूपमती इन सब से बेफिक्र थी.

इस मकान में जो भी रहा, फलताफूलता रहा. जिस ने इसे बनाया, देखते ही देखते वह धनी हो गया. जब मकान दीनदयाल के नाम हुआ तो उस ने एक अलग कोठी खड़ी कर ली. उस ने यह मकान रूपमती के परिवार को किराए पर दे दिया. रूपमती भी मालामाल हो गई लेकिन यह मकान सेठ की गलफांस बन गया.

सबकुछ होते हुए भी सेठ को हरदम पुलिस का खौफ रहता. जब वह तकाजे के लिए आता, रूपमती उसे खदेड़ देती और गला फाड़फाड़ कर चिल्लाती, ‘‘रांड़ औरत हूं, इसलिए तू धमक जाता है इधर. अरे, देखती हूं कौन मर्द का बच्चा मुझ से मकान खाली करवाता है.’’

खाली समय में रूपमती छज्जे पर बैठ जाती थी. आनेजाने वालों को बैठेबैठे बिना पूछे नसीहतें दे डालती. कुछ लोग उस के गालीपुराण के डर से बतियाते तो कुछ देवी प्रकोप से. कभी उस की खूबसूरती खींचती थी लेकिन धीरेधीरे वह आंखों की किरकिरी बन गई.

रातरात तक रूपमती की किलकारियां, कभी विद्रूप सी हंसी सुनाई देती. रूपमती की किलकारी से दीपू घबरा जाता. रात घिरते ही वह मेरे वक्ष से चिपक कर पूछने लगता, ‘मां, ताई क्यों चिल्लाईं?’

मैं उसे लाड़ से समझाती, ‘बेटा, ताई पर देवी आई है.’

‘देवी ऐसे चिल्लाती है, मम्मी?’ बच्चा जिज्ञासा से पूछता.

मैं भला क्या समझाती? लेकिन मेरा समझदार पति अलग राय रखता. जब नशा टूटने को होता तब वह मुझे समझाता, ‘मूर्ख है तू. ऐसी वाहियात औरत पर ही देवी क्यों आती है? तू तो भली औरत है, तुझ पर क्यों नहीं आती देवी, बोल? अरे धूर्त है धूर्त, एक नंबर की पाखंडी.’

मैं घबरा जाती और कहती, ‘देवी कुपित हो जाएगी, ऐसी बात मुंह से न निकालो. देवी ही तो बुलवाती है उस से.’

रामबहादुर ठठा कर हंस देता और मेरा शरीर पत्ते सा कांप जाता. आंखों में भय के बेतरतीब डोरे फैल जाते. मैं मतिभ्रष्ट पति की ओर से हजारों बार देवी से हाथ जोड़ कर क्षमा मांग चुकी थी. क्या करती, धर्मभीरु स्वभाव की जो थी.

एक दिन पड़ोस की औरतों ने बताया कि कुछ लोग रूपमती को ले कर गुस्से में थे. कोई उसे खदेड़ने की बात कह रहा था तो कोई सामाजिक बहिष्कार करने की. तब मुझे रोज की इस चखचख, शोरशराबे से छुटकारा मिलने की उम्मीद जगी.

वह अमावस की रात थी, घुप अंधेरा था. आधी रात तक रूपमती पर कथित देवी सवार रही. रुकरुक कर चीखनेचिल्लाने की आवाजें बाहर सुनाई दे रही थीं. इतने शोरशराबे में न मैं सो पा रही थी न दीपू, जबकि थकामांदा रामबहादुर खर्राटे ले रहा था.

अगली सुबह मैं ने सुना कि रूपमती लापता है. कई दिनों तक वापस नहीं आई. रूपमती को ले कर लोगों के बीच कानाफूसी होने लगी. फिर एक दिन मैं ने देखा, रूपमती के घर के नीचे लोगों की भीड़ थी. पुलिस आई थी. ताला खोला गया. सामान यथावत था. 2 पलंग, पुराना टैलीविजन, खस्ताहाल फ्रिज, टेबलफैन और एक कोने में सिंदूर पुती देवीदेवताओं की तसवीरें. रसोई के बरतन, स्टोव सभी मौजूद थे. जो नहीं था, वह थी रूपमती. कमरे में मारपीट के चिह्न भी कहीं नजर नहीं आए जिस से लगे कि रूपमती के साथ कुछ बुरा घटित हुआ हो. तहकीकात के बाद पुलिस चली गई. भीड़ भी धीरेधीरे खिसक गई. कुछ दिन रहने के बाद शांता भी उस मकान को छोड़ कर कहीं चली गई.

पुलिस को रूपमती का सुराग न मिला. अफवाहों का बाजार गर्म था. कोई कहता, ‘रूपमती ने साध्वी का रूप धारण कर लिया है.’ कोई कहता, ‘रूपमती ने आत्महत्या कर ली है, किसी ने उस की हत्या कर के लाश नदी में डुबो दी है.’ जितने मुंह उतनी बातें.

रूपमती को गुम हुए 10 महीने बीत गए थे. मनोहर मां को ढूंढ़ता फिरता रहा. एक बार जब वह इधर आया तब मुझ से भी मिला. मां के बारे में पूछा. मैं ने असमर्थता जताई तो वह निराश हो कर चला गया. एक दिन पुलिस थाने से उसे खबर मिली कि उस की मां शहर के सरकारी अस्पताल में बीमार हालत में है. वह दौड़ादौड़ा अस्पताल गया लेकिन वहां हाथ कुछ नहीं आया. खबर पुरानी थी. वह अस्पताल के स्टाफ से मिला. डाक्टरों के आगे गिड़गिड़ाया. तब कहीं जा कर रिपोर्ट निकलवाई गई. फाइलों से पता चला कि उस की मां ‘एड्स’ नामक लाइलाज बीमारी से पीडि़त थी. अंत समय में उस के पास कोई अपना न था. आखिरकार एक दिन वह हाड़मांस का पिंजरा छोड़ गई. उस के बाद लावारिस लाश समझ कर रूपमती की अंत्येष्टि कर दी गई.

रूपमती फिर कभी मकान में नहीं लौटी. दूसरों का भविष्य बताने वाली अपने भविष्य से अनभिज्ञ रही. कसबे वाले चैन की बंसी बजाने लगे थे. कभीकभी मुझे लगता जैसे मैं किसी एकांत जगह में आ गई हूं.

उधर, मनोहर को मां की मौत का दुख था. जिस दिन आया तो मां की बचीखुची धरोहर को कमरे से बाहर निकालते हुए दहाड़ें मारमार कर रोया. उस की आंखें रोरो कर सूज गई थीं.

मां की संवेदनहीनता भले ही मनोहर के साथ रही हो, किंतु कहीं न कहीं रूपमती के हृदय में ममता का स्थान अवश्य ही रहा होगा. मैं सोचती रही.

मनोहर ने फिर कसबे की ओर मुंह नहीं किया. जहां उसे कदमकदम पर संत्रास मिला, दुत्कार मिली, ऐसे स्थान पर जा कर वह अपने जख्मों को क्यों हरा करता?
समय अपनी रफ्तार से आगे दौड़ा. अषाढ़ के महीने में मूसलाधार बरसात हुई. ऐसी बरसात कि मजबूत चट्टानें खिसक गईं, नदी ने मुहाने बदल दिए. और तो और, वह मकान भी ढह गया जिस में कभी रूपमती का बसेरा था.

आज भी मकान के खंडहर को देख कर रूपमती की अभिशप्त कहानी मेरे जेहन में सिहरन पैदा कर देती है. ऐसा प्रतीत होता है मानो रूपमती खंडहर से बाहर आ कर ललकार रही है उस समाज को, विधि के विधान को जिस ने एक औरत को ही इस अपराध का समूचा उत्तरदायी मानते हुए सजाएमौत मुकर्रर की और पुरुष प्रधान समाज को बाइज्जत बरी. तब मेरे हृदय में रूपमती के लिए सहानुभूति और करुणा के भाव उभरने लगे.

Crime Story: अंजाम-ए-साजिश

रेलवे लाइनों के किनारे पड़ी बोरी को लोग आश्चर्य से देख रहे थे. बोरी को देख कर सभी अंदाजा लगा रहे थे कि बोरी में शायद किसी की लाश होगी. मामला संदिग्ध था, इसलिए वहां मौजूद किसी शख्स ने फोन से यह सूचना दिल्ली पुलिस के कंट्रोलरूम को दे दी.

कुछ ही देर में पुलिस कंट्रोलरूम की गाड़ी मौके पर पहुंच गई. पुलिस ने जब बोरी खोली तो उस में एक युवती की लाश निकली. लड़की की लाश देख कर लोग तरहतरह की चर्चाएं करने लगे.

जिस जगह लाश वाली बोरी पड़ी मिली, वह इलाका दक्षिणपूर्वी दिल्ली के थाना सरिता विहार क्षेत्र में आता है. लिहाजा पुलिस कंट्रोलरूम से यह जानकारी सरिता विहार थाने को दे दी गई. सूचना मिलते ही एसएचओ अजब सिंह, इंसपेक्टर सुमन कुमार के साथ मौके पर पहुंच गए.

एसएचओ अजब सिंह ने लाश बोरी से बाहर निकलवाने से पहले क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को मौके पर बुला लिया और आला अधिकारियों को भी इस की जानकारी दे दी. कुछ ही देर में डीसीपी चिन्मय बिस्वाल और एसीपी ढाल सिंह भी वहां पहुंच गए. फोरैंसिक टीम का काम निपट जाने के बाद डीसीपी और एसीपी ने भी लाश का मुआयना किया.

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मृतका की उम्र करीब 24-25 साल थी. वहां मौजूद लोगों में से कोई भी उस की शिनाख्त नहीं कर सका तो यही लगा कि लड़की इस क्षेत्र की नहीं है. पुलिस ने जब उस के कपड़ों की तलाशी ली तो उस के ट्राउजर की जेब से एक नोट मिला. उस नोट पर लिखा था, ‘मेरे साथ अश्लील हरकत हुई और न्यूड वीडियो भी बनाया गया. यह काम आरुष और उस के 2 दोस्तों ने किया है.’

नोट पर एक मोबाइल नंबर भी लिखा था. पुलिस ने नोट जाब्जे में ले कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.पुलिस के सामने पहली समस्या लाश की शिनाख्त की थी. उधर बरामद किए गए नोट पर जो फोन नंबर लिखा था, पुलिस ने उस नंबर पर काल की तो वह उत्तरी दिल्ली के बुराड़ी में रहने वाले आरुष का निकला. नोट पर भी आरुष का नाम लिखा हुआ था.

सरिता विहार एसएचओ अजब सिंह ने आरुष को थाने बुलवा लिया. उन्होंने मृतका का फोटो दिखाते हुए उस से संबंधों के बारे में पूछा तो आरुष ने युवती को पहचानने से इनकार कर दिया. उस ने कहा कि वह उसे जानता तक नहीं है. किसी ने उसे फंसाने के लिए यह साजिश रची है.

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आरुष के हावभाव से भी पुलिस को लग रहा था कि वह बेकसूर है. फिर भी अगली जांच तक उन्होंने उसे थाने में बिठाए रखा. उधर डीसीपी ने जिले के समस्त बीट औफिसरों को युवती की लाश के फोटो देते हुए शिनाख्त कराने की कोशिश करने के निर्देश दे दिए. डीसीपी चिन्मय बिस्वाल की यह कोशिश रंग लाई.

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पता चला कि मरने वाली युवती दक्षिणपूर्वी जिले के अंबेडकर नगर थानाक्षेत्र के दक्षिणपुरी की रहने वाली सुरभि (परिवर्तित नाम) थी. उस के पिता सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते हैं. पुलिस ने सुरभि के घर वालों से बात की. उन्होंने बताया कि नौकरी के लिए किसी का फोन आया था. उस के बाद वह इंटरव्यू के सिलसिले में घर से गई थी.

पुलिस ने सुरभि के घर वालों से उस की हैंडराइटिंग के सैंपल लिए और उस हैंडराइटिंग का मिलान नोट पर लिखी राइटिंग से किया तो दोनों समान पाई गईं. यानी दोनों राइटिंग सुरभि की ही पाई गईं.

पुलिस ने आरुष को थाने में बैठा रखा था. सुरभि के घर वालों से आरुष का सामना कराते हुए उस के बारे में पूछा तो घर वालों ने आरुष को पहचानने से इनकार कर दिया.

नौकरी के लिए फोन किस ने किया था, यह जानने के लिए एसएचओ अजब सिंह ने मृतका के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. उस में एक नंबर ऐसा मिला, जिस से सुरभि के फोन पर कई बार काल की गई थीं और उस से बात भी हुई थी. जांच में वह फोन नंबर संगम विहार के रहने वाले दिनेश नाम के शख्स का निकला. पुलिस काल डिटेल्स के सहारे दिनेश तक पहुंच गई.

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थाने में दिनेश से सुरभि की हत्या के संबंध में सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने कबूल कर लिया कि अपने दोस्तों के साथ मिल कर उस ने पहले सुरभि के साथ सामूहिक बलात्कार किया. इस के बाद उन लोगों ने उस की हत्या कर लाश ठिकाने लगा दी.

उस ने बताया कि वह सुरभि को नहीं जानता था. फिर भी उस ने उस की हत्या एक ऐसी साजिश के तहत की थी, जिस का खामियाजा जेल में बंद एक बदमाश को उठाना पड़े. उस ने सुरभि की हत्या की जो कहानी बताई, वह किसी फिल्मी कहानी की तरह थी—

दिल्ली के भलस्वा क्षेत्र में हुए एक मर्डर के आरोप में धनंजय को जेल जाना पड़ा. जेल में बंटी नाम के एक कैदी से धनंजय का झगड़ा हो गया था. बंटी उत्तरी दिल्ली के बुराड़ी क्षेत्र का रहने वाला था.

बंटी भी एक नामी बदमाश था. दूसरे कैदियों ने दोनों का बीचबचाव करा दिया. दोनों ही बदमाश जिद्दी स्वभाव के थे, लिहाजा किसी न किसी बात को ले कर वे आपस में झगड़ते रहते थे. इस तरह उन के बीच पक्की दुश्मनी हो गई.

उसी दौरान दिनेश झपटमारी के मामले में जेल गया. वहां उस की दोस्ती धीरेंद्र नाम के एक बदमाश से हुई. जेल में ही धीरेंद्र की दुश्मनी बुराड़ी के रहने वाले बंटी से हो गई. धीरेंद्र ने जेल में ही तय कर लिया कि वह बंटी को सबक सिखा कर रहेगा.

करीब 2 महीने पहले दिनेश और धीरेंद्र जमानत पर जेल से बाहर आ गए. जेल से छूटने के बाद दिनेशऔर धीरेंद्र एक कमरे में साथसाथ संगम विहार इलाके में रहने लगे.

उन्होंने बंटी के परिवार आदि के बारे में जानकारी जुटानी शुरू कर दी. उन्हें पता चला कि बंटी के पास 200 वर्गगज का एक प्लौट है. उस प्लौट की देखभाल बंटी का भाई आरुष करता है. कोशिश कर के उन्होंने आरुष का फोन नंबर भी हासिल कर लिया.

इस के बाद दिनेश और धीरेंद्र एक गहरी साजिश का तानाबाना बुनने लगे. उन्होंने सोचा कि बंटी के भाई आरुष को किसी गंभीर केस में फंसा कर जेल भिजवा दिया जाए. उस के जेल जाने के बाद उस के 200 वर्गगज के प्लौट पर कब्जा कर लेंगे. यह फूलप्रूफ प्लान बनाने के बाद वह उसे अंजाम देने की रूपरेखा बनाने लगे.

दिनेश और धीरेंद्र ने इस योजना में अपने दोस्त सौरभ भारद्वाज को भी शामिल कर लिया. पहले से तय योजना के अनुसार दिनेश ने अपनी गर्लफ्रैंड के माध्यम से उस की सहेली सुरभि को नौकरी के बहाने बुलवाया. सुरभि अंबेडकर नगर में रहती थी.

गर्लफ्रैंड ने सुरभि को नौकरी के लिए दिनेश के ही मोबाइल से फोन किया. सुरभि को नौकरी की जरूरत थी, इसलिए सहेली के कहने पर वह 25 फरवरी, 2019 को संगम विहार स्थित एक मकान पर पहुंच गई.

उसी मकान में दिनेश और धीरेंद्र रहते थे. नौकरी मिलने की उम्मीद में सुरभि खुश थी, लेकिन उसे क्या पता था कि उस की सहेली ने विश्वासघात करते हुए उसे बलि का बकरा बनाने के लिए बुलाया है.

सुरभि उस फ्लैट पर पहुंची तो वहां दिनेश, धीरेंद्र और सौरभ भारद्वाज मिले. उन्होंने सुरभि को बंधक बना लिया. इस के बाद उन तीनों युवकों ने सुरभि के साथ गैंपरेप किया. नौकरी की लालसा में आई सुरभि उन के आगे गिड़गिड़ाती रही, लेकिन उन दरिंदों को उस पर जरा भी दया नहीं आई.

चूंकि इन बदमाशों का मकसद जेल में बंद बंटी को सबक सिखाना और उस के भाई आरुष को फंसाना था, इसलिए उन्होंने सुरभि के मोबाइल से आरुष के मोबाइल नंबर पर कई बार फोन किया. लेकिन किन्हीं कारणों से आरुष ने उस की काल रिसीव नहीं की थी.

इस के बाद तीनों बदमाशों ने हथियार के बल पर सुरभि से एक नोट पर ऐसा मैसेज लिखवाया जिस से आरुष झूठे केस में फंस जाए. उस नोट पर इन लोगों ने आरुष का फोन नंबर भी लिखवा दिया था.

फिर वह नोट सुरभि के ट्राउजर की जेब में रख दिया. सुरभि उन के अगले इरादों से अनभिज्ञ थी. वह बारबार खुद को छोड़ देने की बात कहते हुए गिड़गिड़ा रही थी. लेकिन उन लोगों ने कुछ और ही इरादा कर रखा था.

तीनों बदमाशों ने सुरभि की गला घोंट कर हत्या कर दी. बेकसूर सुरभि सहेली की बातों पर विश्वास कर के मारी जा चुकी थी. इस के बाद वे उस की लाश ठिकाने लगाने के बारे में सोचने लगे. उन्होंने उस की लाश एक बोरी में भर दी.

इस के बाद इन लोगों ने अपने परिचित रहीमुद्दीन उर्फ रहीम और चंद्रकेश उर्फ बंटी को बुलाया. दोनों को 4 हजार रुपए का लालच दे कर इन लोगों ने वह बोरी कहीं रेलवे लाइनों के किनारे फेंकने को कहा.

पैसों के लालच में दोनों उस लाश को ठिकाने लगाने के लिए तैयार हो गए तो दिनेश ने 7800 रुपए में एक टैक्सी हायर की.

रात के अंधेरे में उन्होंने वह लाश उस टैक्सी में रखी और रहीमुद्दीन और चंद्रकेश उसे सरिता विहार थाना क्षेत्र में रेलवे लाइनों के किनारे डाल कर अपने घर लौट गए.

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लाश ठिकाने लगाने के बाद साजिशकर्ता इस बात पर खुश थे कि फूलप्रूफ प्लानिंग की वजह से पुलिस उन तक नहीं पहुंच सकेगी, लेकिन दिनेश द्वारा सुरभि को की गई काल ने सभी को पुलिस के चंगुल में पहुंचा दिया. मामले का खुलासा हो जाने के बाद एसएचओ अजब सिंह ने हिरासत में लिए गए आरुष को छोड़ दिया.

दिनेश से की गई पूछताछ के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर उस के अन्य साथियों सौरभ भारद्वाज, चंद्रकेश उर्फ बंटी और रहीमुद्दीन उर्फ रहीम को भी गिरफ्तार कर लिया. पांचवां बदमाश धीरेंद्र पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ सका, वह फरार हो गया था. गिरफ्तार किए गए बदमाशों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

पुलिस को इस मामले में दिनेश की प्रेमिका को भी हिरासत में ले कर पूछताछ करनी चाहिए थी, क्योंकि सुरभि की हत्या की असली जिम्मेदार तो वही थी. उसी ने ही सुरभि को नौकरी के बहाने दिनेश के किराए के कमरे पर बुलाया था.

बहरहाल, दूसरे को फांसने के लिए जाल बिछाने वाला दिनेश खुद अपने बिछाए जाल में फंस गया. पहले वह झपटमारी के आरोप में जेल गया था, जबकि इस बार वह सामूहिक बलात्कार और हत्या के आरोप में जेल गया. पुलिस मामले की जांच कर रही है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

(कहानी सौजन्य- मनोहर कहानियां)

रूपमती- भाग 2: क्या रूपमती के दर्द को समझने वाला कोई था?

रूपमती की बातों पर यकीन करने वाले बहुत होते. औरतमर्द, सभी तबके के. आमदनी अच्छी हो जाती. दिन निकलने से ले कर देर रात तक उस पर कथित देवी सवार रहती. कमरे से धूप, अगरबत्ती की महक उठउठ कर आसपास तक महसूस होती.
उस का व्यवहार भी अब विरोधाभासी हो चला था. कभी कर्कश बैन बोलती, कभी बड़े लाड़ से मुझ से बतियाती. मैं हैरान रह जाती.

कभीकभार रूपमती कसबे से बाहर चली जाती और कुछ दिनों के बाद लौटती. अब लोगों की रूपमती में कोई खास दिलचस्पी नहीं रह गई थी.
एक दिन वह अपने साथ एक तलाकशुदा औरत को ले आई. शांता नाम की यह औरत थी भी बला की सुंदर. नैननक्श इतने कटीले कि बरबस नजरें खींच लें. चालचलन उस का भी ठीक न था. रूपमती को उस के लिए ग्राहक ढूंढ़ने में ज्यादा मशक्कत नहीं हुई. रूपमती के पुराने दिन लौट आए. दोनों की दुकान एक ही छत के नीचे चल पड़ी, अगले भाग में रूपमती और पिछले भाग में शांता. निचले हिस्से में रूपमती ने लोहे का बड़ा सा ताला लगा दिया था.

पलक झपकते ही मेरे जैसे पड़ोसियों के अशांति भरे दिन लौट आए. एक तरफ रूपमती की अजीबोगरीब आवाजें, दूसरी तरफ रात घिरते ही लोगों का देर रात तक आनाजाना और उन की फुसफुसाहटें.

उस दिन रातभर ओस गिरती रही. रूपमती के मकान की छत पर टिन की चादरें पड़ी थीं. सुबह होते ही मकान की छत से ओस बूंदों की शक्ल में नीचे गिरने लगी थी. रूपमती रोज की तरह छज्जे पर आ कर बैठ गई.

मैं भी नहा कर छत पर गई. हवा में ठंडक थी. सूरज पहाड़ी के ऊपर चढ़ आया था. मैं बाल काढ़तेकाढ़ते छत की मुंडेर तक गई. सड़क पर लोग आजा रहे थे. मैं सड़क की ओर घूमी. मेरी नजर सड़क पर जा रहे युवक पर पड़ी और उस युवक का पीछा करने लगी. सामान्य सी बात थी लेकिन रूपमती को तुरुप का पत्ता हाथ लग गया था. रूपमती स्वभाववश मेरी गतिविधियों पर नजर गड़ाए थी. ऐसा सुअवसर भला वह हाथ से क्यों जाने देती. रूपमती बिना विलंब किए बरस पड़ी, ‘ब्याहता हो कर शर्म नहीं आती तुझे, लौंडे को ऐसे क्या घूरघूर कर देख रही है?’

मैं सकपका गई थी. हाथ जहां के तहां रुक गए. मुझे उस का इस तरह टोकना नागवार लगा, सो ऊंचे स्वर में बोली, ‘देखना क्या जुर्म है? अरे आंख मेरी है, जहां जी करे देखूंगी, तुझे क्यों आग लगती है?’

करारा प्रत्युत्तर मिला तो रूपमती एक क्षण के लिए अवाक् रह गई थी. उसी क्षण रूपमती के माथे पर बल पड़ गए. आंखें अंगारे बरसाने लगीं, ‘चकलाघर खोल दे. फिर जो जी में आए कर. मुझे क्या करना.’

‘जरा जबान संभाल कर बोल, पाखंडी. यहां तेरा चकलाघर कम है क्या. तेरी तरह गिरी हुई नहीं हूं मैं, समझी,’ मैं ने अपनी बात कमतर न होने दी.

रूपमती के मर्म में चोट लगी. वह हाथ मटकाते हुए चीखी, ‘हांहां, तू तो बड़ी सती सावित्री है.’

उस समय मेरे जी में आया कि ईंट मार कर रूपमती का सिर फोड़ दूं. फिर यही सोच कर चुप हो गई कि वाहियात औरत के मुंह लगने से क्या लाभ. आसमान पर थूका मुंह पर ही आता है.

मैं ने यह भी सुना था कि रूपमती टोटके करना भी जानती है, न जाने कब क्या उलटासीधा कर दे? हंसतीखेलती गृहस्थी है, कहीं इस चुड़ैल की नजर लग गई तो…मैं चुपचाप हथियार डाल बैठ गई.

रूपमती को कसबे की विभिन्न गतिविधियों के रिकौर्ड रखने में दिलचस्पी थी. इधरउधर ताकाझांकी करना, दूसरों पर कटाक्ष करना और दूसरों को बिना पूछे सीख देना, दिनभर यही करती थी वह. ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’, रूपमती के लिए यह कहावत ठीक थी. रूपमती बहुत समय तक बड़बड़ाती रही. मैं छत पर रह न पाई और खुले बाल ही जीने से उतर गई.

मैं मन ही मन झुंझलाती रही. रामबहादुर बड़ा हठीला था, मेरे लाख कहने पर भी उस ने मकान नहीं बदला. बहुत पीछे पड़ती तो यही कहता, ‘पगला गई है क्या? ठेकेदार भला आदमी है, कभी किराए के लिए तंग नहीं करता. फिर 800 रुपए में 2 कमरे कौन देगा?’

मकान भी पक्का, छत भी पक्की. मकान का मालिक सरकारी ठेकेदार है जो शहर में रहता है. इस मकान में 2 कमरे हैं हमारे पास. पिछले हिस्से में ठेकेदार का गोदाम है जिस में सीमेंट, कुदालें, फावड़े, सब्बल आदि औजार भरे पड़े हैं. रामबहादुर मेहनती होने के साथ ठेकेदार का विश्वासपात्र मुंशी है. मजदूरों को इकट्ठा करना, राशन खरीदना और मजदूरों को काम पर ले जाना उस की ड्यूटी थी.

मैं दिनभर अकेली रहती सिलाईबुनाई का शौक था. पासपड़ोस से सूट सिलने को मिल जाते. कभीकभी मायके चली जाती. वैसे मैं अपने पति की विवशता को भलीभांति समझती थी लेकिन इस औरत से पीछा कैसे छूटे, समझ से परे था. रामबहादुर ठीकठाक कमाता लेकिन उसे नशे की लत भी थी. जब कभी रूपमती दिखाई पड़ जाती तो उसे सांप सूंघ जाता. यह औरत न होती तो यहां सब ठीक था. रूपमती को देखते ही उस के हाड़ के भीतर कंपकंपी होने लगती. सुबह देखो तब, शाम को देखो तब, उस का ही थोबड़ा आंखों के सामने आ जाता.

एक दिन रूपमती ने एक युवती पर ही फब्ती कस दी थी. वह मिनी स्कर्ट और ऊंची एड़ी की सैंडल पहने थी. उसे जाते देख रूपमती ने बुरा सा मुंह बनाया. हाथ के साथ आंखें मटकाते हुए वह ऊपर से ही बोली, ‘हायहाय, क्या अकेले इसी को जवानी चढ़ी है. फैशन देखो तो फिल्म स्टार भी झक मारें.’

करण जौहर को मिली NCB से क्लीन चिट, सितारों की पार्टी में नहीं था ड्रग्स

बॉलीवुड के मशहूर निर्माता और निर्देश करण जौहर के घर पर साल 2019 में पार्टी के दौरान आरोप लगे थें कि पार्टी में ड्रग्स का इस्तेमाल किया गया था. पार्टी का एक वीडियो लिक हुआ था जिसके बाद यह मामला सामने आया था. हालांकि करण जौहर  इस बात पर अपनी सफाई देते हुए  करण जौहर  कहा था कि पार्टी में किसी तरह का ड्रग्स नहीं था.

इस वीडियो को लेकर कई एफआईआर दर्ज कराया गया था. जिसके बाद नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो   वीडियो के जांच के बाद दावा किया है कि इस पार्टी में किसी तरह के ड्रग्स का इस्तेमाल नहीं किया गया था.

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एक रिपोर्ट के अनुसार इस पूरे मामले की जांच के बाद ही करण जौहर के इस मामले पर क्लीन चिट दी गई है. वहीं अधिकारियों  ने  कहा है कि वीडियो में दिखाई दे रही सफेद लाइट ट्यूबलाइट का रिफलेक्श है. फोरेंसिक रिपोर्ट में किसी तरह के ड्रग्स की कोई पुष्टि नहीं कि गई है. और पार्टी में ड्रग्स का सेवन करने वाले फिल्मी सितारों के पास ड्रग्स का कोई सबूत नहीं है.

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जब इस खबर पर एफआईआर दर्ज कराया गया था तब कहा गया था कि पार्टी में मौजूद सभी सितारे ड्रग्स ले रहे थें. हालांकि ऐसा कुछ भी नहीं था. सब मामला गलत बताया गया है.

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इस पार्टी में सिनेमा जगत के कई बड़े कलाकार मौजूद थें. जैसे रणबीर कपूर, आलिया भट्ट, मलाइका अरोड़ा, दीपिका पादुकोण समेत और भी कई सितारे इस पार्टी में मौजूद थें.

फिलहाल करण जौहर अपने अलग- अलग प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे हैं.

 

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