गरीबों और किसानों की आंखों में आंसू दे रही प्याज़, दलालों और बिचोलियों को मौज करा रही है ये प्याज. देश में कोरोनाकाल में ही नहीं उपभोक्ताओं पर तो हमेशा ही किसी न किसी वस्तु की महंगाई की मार पड़ती ही रहती है, कभी दाल महंगी, तो कभी सब्जियां. पर आलूप्याज पर बारबार महंगाई बढ़ना उपभोक्ताओं को काफी भारी पड़ता है. क्योंकि दोनों ही चीजें ऐसी हैं, जिन की ख़पत दूसरी सब्जियों और दालों से भी अधिक है.
 दोनों के बगैर ही रसोई अधूरी है या यूं कहें कि अधिकतर सब्जियां इन के बिना नहीं पकाई जा सकतीं. यहां तक कि इन दोनों के बगैर आधे लोग तो खाना भी नहीं खाते.इस समय दिल्ली समेत कई शहरों में प्याज क़रीब 100 रुपए किलो और आलू लगभग 50 रुपए किलो के भाव बिक रहे हैं. एक दौर था जब प्याज के महंगे होने पर दिल्ली में मुख्यमंत्री साहिबसिंह वर्मा की सरकार धराशाई हो गई थी. वहीं, 2014 में महंगाई के चलते कांग्रेस भी सत्ता गंवा बैठी थी. वैसे अब शायद सरकार पर इस का उतना असर नहीं होता, क्योंकि पूर्ण बहुमत की सरकार है, तो सरकार यानी सभी नेता मंत्री महंगाई की चिंता छोड़ चुके है.
सोचनीय सवाल हैं कि आखिर हर मुसीबत में किसान, मजदूर और उपभोक्ता ही क्यों पिसता है? अगर आलू और प्याज की बात करें, तो ये दोनों जरूरी सब्जियां उपभोक्ता को सेब और दूसरे फलों तक से कहीं ज्यादा महंगी पड़ रही हैं, जब कि मज़े की बात देखिए कि किसान को इस का ठीक से भाव तक नहीं मिल पा रहा है. पश्चिम उत्तरप्रदेश के मथुरा जिले के आलू के किसान सतपाल से बात की, तो उन्होंने बताया कि कोल्ड स्टोर से उन का आलू साढ़े 12 से 13 रुपए किलो जा रहा है. वहीं एक किसान ने बताया कि प्याज अब कहीं जा कर 20-22 रुपये किलो बिक रहा है.
  आप दामों का अंतर देखिए कि जो आलू किसान से साढ़े 12-13 रुपए किलो खरीदा जा रहा है, जिस में उसे कोल्ड स्टोर का पैसा भी देना है. यानी उसे अब भी आलू का ठीकठीक भाव 8 से 9 रुपए ही मिल पा रहा है, वही आलू बाजार में आतेआते सीधे 50 रुपए किलो बिक रहा है.यही प्याज का हाल है. प्याज के किसान धनसिंह से बातचीत करने पर उस ने बताया, " मेरे खेत में उगी बड़ी वाली अरबी शहर में 60 से 80 रुपए किलो बिक रही है. लेकिन हमारे पल्ले कुछ नहीं पड़ रहा है.
 "अरबी की खेती काफी महंगी पड़ती है, तीन से चार महीने का समय उसे पैदा करने में लगता है. इस के बाद उन्हें इस की खुदाई के लिए मजदूर लगाने पड़ते हैं, जो कि काफी महंगे पड़ते हैं. फिर उसे थोक बाजार में ले जाने के लिए अलग खर्च करना पड़ता है."कुल मिलाकर करीब 8-10 रुपए प्रति किलो का खर्चा बैठता है, जिस में अपनी मेहनत नहीं जोड़ी गई है. अब यह अरबी थोक बाजार में 14-15 रुपये किलो बिक रही है. यानी हमें 6-7 रुपए किलो तब बचता है, जब हम लगातार 3-4 महीने जीतोड़ मेहनत करते हैं और अपना लाखों का खेत घेर कर रखते हैं, वहीं बाजार में बैठा व्यापारी खाली तराजू पकड़ कर इधर से उधर घुमा देता है और एकदो दिन के अंदर ही करीब 20-25 रुपए का मुनाफा कमा लेता है, तो हम से तो अच्छा वही है."
दरअसल यह एक किसान धनसिंह की कहानी या उन का दर्द नहीं है, बल्कि यह पूरे देश के किसानों की यही कहानी है और उन का यही दर्द है.प्याज के किसानों की हालत देखे. अभी एक साल ही बीता होगा, यही प्याज महाराष्ट्र में 50 पैसे किलो नहीं खरीदी जा रही थी. आज जब किसानों के पास से लगभग सारी प्याज खरीद ली गई, तब वही प्याज 100 रुपए किलो किस की शह पर बेची जा रही है. सोचने वाली बात यह है कि यह प्याज जो आज इतनी महंगी है, उसे किस ने और कहां स्टोर किया हुआ है? इस पर सरकार ध्यान क्यों नहीं दे रही? क्या दलाल और जमाखोर सरकार की आंखों में इसी तरह धूल झोंक कर उपभोक्ताओं और किसानों दोनों को लूटते रहेंगे?
 जानकारी के मुताबिक, कई जमाखोर पैसा कमाने के चक्कर में इतनी सब्जियां सड़ा देते हैं, जिन से देश के उन लोगों को भी दोनो समय की सब्जियां मिल सकती हैं, जिन्हें सालोंसाल सब्जियां देखने को नहीं मिलतीं. दबी जबान में लोगों का कहना है कि प्याज को महंगा बेचने के लिए भी इसी तरह इस साल सड़ाया गया है.सूत्रों की मानें, तो करीब एक लाख टन के बफर स्टोरेज में एक चौथाई यानी 25 हजार टन प्याज नमी की कमी के कारण सड़ गया है. नाफेड के सूत्रो का कहना है कि प्याज को करीब साढ़े तीन महीने तक ही रखा जा सकता है, इस के बाद वह सड़ने लगता है.
 आप ने देखा भी होगा कि आज आप जब बाजार से प्याज खरीद कर लाते हैं, तो उस में कई प्याज अंदर से सड़े हुए निकलते हैं. नाफेड यही कह रहा है कि उसे प्याज खरीदे हुए करीब 6-7 महीने हो चुके हैं. नाफेड बाजार में अब तक करीब 43 हजार टन प्याज उतार चुका है. नाफेड का कहना है कि नवंबर के आखिरी सप्ताह तक बाजार में वह करीब 22 हजार टन प्याज और उतारेगा. आप को बता दें कि नाफेड केंद्र सरकार के अंतर्गत काम करने वाली संस्था है, जो कि खाद्यान्न को सुरक्षित रखने के लिए बनाई गई है. हैरत होती है कि जब यह बात कही जा रही है कि प्याज इतना ज्यादा समय बफर स्टोरेज में नहीं रह सकता, तो फिर सरकार किस समय का इंतजार करती रही, जो अभी तक प्याज वहां सड़ रहा है.
  बहरहाल अगर निजी जमाखोरों की बात करें, तो ख़बरें तो यहां तक हैं कि जमाखोरों ने करीब 30 फीसदी प्याज बजाय बाजार में उतारने के जानबूझ कर सड़ा दिया, क्योंकि बाजार में कम और सप्लाई से दाम अधिक मिलते हैं. क्या सरकार को ऐसे लोगों को सजा नहीं देनी चाहिए, जो अपनी जेबें भरने के लिए खाद्यान को सड़ा देते हैं ?आज जब भुखमरी के मामले में हमारा देश पाकिस्तान और बांग्लादेश से भी पिछड़ गया है, तब तो यह अपराध और भी संगीन माना जाना चाहिए ? नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकॉनोमिक रिसर्च (एनसीएईआर) के शोध के अनुसार, पिछले सालों की भारत में पिछले डेढ़ दशक के दौरान प्याज का उपभोग करीब 35 फीसदी बढ़ा है.
ऐसे में प्याज और दूसरी सब्जियों को सड़ाने वाली सभी संस्थाओं और सभी जमाखोरों पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए, ताकि जनता को सहूलियत मिल सके और सरकार को इस बात की बदनामी न उठानी पड़े कि सरकार महंगाई बढ़ा रही है.इस के साथ ही किसानों को हर खाद्यान्न के मुनासिब दाम मिलने चाहिए. बीच के दलालों की आय उतनी ही होनी चाहिए, जितनी ज्यादा से ज्यादा एक अधिकारी की तनख्वाह. इस से उपभोक्ताओं तक सही दाम में चीजें पहुंचेंगी और किसानों के पास से उपभोक्ता तक पहुंचतेपहुंचते कोई भी सब्जी चार से पांच गुना महंगी भी नहीं होगी. इस मशक्कत से काफ़ी हद तक उपभोक्ता खुश और किसान खुशहाल होगा.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...