नवंबर महीने का समय गेहूं की बोआई का एकदम सही समय है. बोआई से पहले खेत की मिट्टी की जांच कराएं और जांच के बाद ही उर्वरकों की मात्रा तय करें. अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद खेत में डालें. बोआई के लिए अपने इलाके की आबोहवा के अनुसार किस्मों का चुनाव करें. बीजों को फफूंदीनाशक दवा से उपचारित करने के बाद ही बोएं. उर्वरकों के लिए प्रति हेक्टेयर 150 किलोग्रमा नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस व 40 किलोग्राम पोटाश का इस्तेमाल करें. फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा व नाइट्रोजन की आधी से दोतिहाई मात्रा बोआई के समय खेत में डालें.

*      गेहूं की तरह ही जौ की बोआई का काम 25 नवंबर तक पूरा कर लें. पछेती फसल की बोआई 31 दिसंबर तक की जा सकती है.

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सिंचित इलाकों के लिए आजाद, कैलाश, विजया, करन 795, अंबर, एचडी 2009, डब्ल्यूएच 157, डब्ल्यूएच 283, डब्ल्यूएच 147, डब्ल्यूएच 542 और एचडी 2329 हरियाणा में और पीवीडब्ल्यू 343, पीवीडब्ल्यू 274, डब्ल्यूएच 542, पीवीडब्ल्यू 154, पीवीडब्ल्यू 233, पीवीडब्ल्यू 34, पंजाब में 1 से 25 नवंबर के बीच सिंचित जमीन में लगाई जा सकती है. कठिया (ड्यूरम) गेहूं की बीजाई नवंबर के पहले हफ्ते तक कर दें.

देर से बोआई के लिए आरडी 118, डीएल 88, केदार वगैरह का इस्तेमाल कर सकते हैं. बीज प्रमाणित जगह से ही लें और अपने क्षेत्र के हिसाब से रोगरोधक किस्म लगाएं.

दीमक वाली जमीनों के 40 किलोग्राम बीज को 60 मिलीलीटर क्लोरोपाइरीफास 20 ईसी से उपचारित करें और छाया में सुखा कर बोएं. इस से नाइट्रोजन की कमी पूरी हो जाती है. अच्छी पैदावार के लिए बीजाई बीज उर्वरक ड्रिल से करें और लाइनों में 8 इंच का फासला रखें. पछेती बीजाई में फासला कम कर के 7 इंच कर दें.

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धानगेहूं फसलचक्र वाले क्षेत्रों में जीरो टिल मशीन से बोआई करने से खर्च भी कम आता है और पैदावार भी ज्यादा मिलती?है. इस से खेत में नमी बची रहती?है और बारानी क्षेत्रों में ज्यादा फायदा मिलता?है.

*      सरसों की फसल से घने पौधे निकाल कर चारे में इस्तेमाल करें. पौधे से पौधे की दूरी 15 सेंटीमीटर रखें. नाइट्रोजन की बची मात्रा बोआई के 25-30 दिनों बाद पहली सिंचाई पर छिटकवां तरीके से दें. झुलसा व सफेद गेरुई बीमारी की रोकथाम के लिए जिंक मैगनीज कार्बामेंट 75 फीसदी वाली दवा की 2 किलोग्राम मात्रा जरूरत के मुताबिक पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

साग के लिए लगाई सरसों पर दवा का इस्तेमाल कम से कम करें और छिड़काव के 15 दिनों बाद ही काटें. चेपा लगने पर 250 मिलीलीटर मैलाथियान 50 ईसी को 250 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें. दूसरा छिड़काव 10 दिनों बाद करें. नवंबर में बीमारियों की रोकथाम के लिए 600 ग्राम मैंकोजेब (डाइथेन एम 45) का 15 दिनों के अंतर पर 3-4 बार छिड़काव करें.

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* गन्ने में 25 दिनों के अंतर पर सिंचाई करते रहें. अगेती व मध्यम पकने वाली किस्में कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं. इन की कटाई की योजना गन्ना मिल की जरूरत के हिसाब से बनाएं. कटाई से पहले खेत में पानी न लगाएं.

* चारे के लिए जई नवंबर महीने में भी लगा सकते?हैं. अक्तूबर में बोई फसल में यूरिया पहली सिंचाई पर नवंबर में डालें. अधिक कटाई वाली फसल में 60 दिनों बाद पहली कटाई कर के सिंचाई करें और यूरिया डाल दें. अक्तूबर में बोई बरसीम व रिजका की पहली कटाई 60 दिनों बाद करें. इस के बाद 30 दिनों के अंतर पर कटाइयां कर सकते हैं.

* मसाला फसल धनिया हर जमीन में नवंबर के पहले हफ्ते तक बोई जा सकती है. इस के लिए स्थानीय किस्म के 8 से 10 किलोग्राम बीजों को हलके से मसल कर तोड़ दें, हर हिस्सा एक पूरा बीज होता?है. इस के बाद 20 ग्राम थिराम से उपचारित कर के 1 फुट दूर लाइनों में बोएं. नवंबर के आखिर में हलकी गुड़ाई कर के खरपतवार निकाल दें और सिंचाई करें.

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* सौंफ हलकी दोमट मिट्टी में अच्छी तरह उगाई जा सकती है और नवंबर के पहले हफ्ते में बोई जा सकती है. बीजाई पर यूरिया व सिंगल सुपर फास्फेट डालें और बाकी फूल आने पर. खरपतवार नियंत्रण के लिए 1-2 बार गुड़ाई जरूर करें.

* सोया भी नवंबर के पहले हफ्ते तक लगा सकते?हैं. स्थानीय किस्म के 2 किलोग्राम बीज को 18 इंच दूर लाइनों में 2 ईंच गहरा बोएं.

* मेथी 2 ईंच गहराई में नवंबर के पहले हफ्ते तक बोएं. बीजाई पर 10 किलोग्राम यूरिया और आधा बोरा सिंगल सुपर फास्फेट डालें. खरपतवार नियंत्रण और सिंचाई समय से करें. चेपा नियंत्रण के लिए 250 मिलीलीटर मेलाथियान 50 ईसी 100 लीटर पानी में?घोल कर छिड़कें. जीरे की बीजाई पूरे नवंबर में हो सकती?है. उन्नत किस्मों में आरएस 1, एमसी 43, गुजरात जीरा 1, आरजेड 19 व आरजेड 209 हैं. इसे सिर्फ आधा इंच गहरा बोएं.

* पहले रोपी हुई फूलगोभी व पत्तागोभी में यूरिया डाल कर निराईगुड़ाई व पौधों पर मिट्टी चढ़ाएं. हलकी सिंचाई 10-15 दिनों बाद करते रहें. कीड़ों से बचाव करें.

* टमाटर की अगस्त में रोपी हुई फसल में फल आ रहे?होंगे हर 10 दिन बाद हलकी सिंचाई करते रहें. फल छेदक व अन्य कीटों से बचाव के लिए 0.1 फीसदी मैलाथियान हर 15 दिनों पर फल तोड़ने के बाद छिड़कें.

* जनवरीफरवरी में टमाटर रोपाई के लिए नवंबर में नर्सरी बोई जा सकती है.

* जुलाई में रोपी बैगन की फसल पर लगे फलों पर यदि फलछेदक का हमला हो तो टमाटर की तरह बचाव करें. यदि पाले से बचाव हो सके तो बैगन की रोपाई नवंबर में भी हो सकती है.

* नीबू, माल्टा, मौसमी व किन्नू के फलों के पकने का समय आ रहा?है. फलों को ध्यान से तोडें व चयन कर के डब्बा भराई करें. ध्यान रहे कि इस से पौधों को नुकसान न होने पाए. बेर के 1 साल वाले पौधों को 250 ग्राम और 2 व 3 साल वाले पौधों को 500 ग्राम व 1 किलोग्राम यूरिया दे कर गुड़ाई करें.

*      अरहर की फसल की 75 फीसदी फलियां पक चुकी हों, तो फसल की कटाई करें. देर से पकने वाली किस्मों पर फली छेदक कीट का हमला होने पर जरूरत के मुताबिक कीटनाशक का खड़ी फसल पर छिड़काव करें.

*      आलू की फसल में सिंचाई की जरूरत हो, तो सिंचाई करें. बोआई किए हुए 35-40 दिन पूरे हो गए हों, तो खड़ी फसल में प्रति हेक्टेयर 50 किलोग्राम यूरिया डालें. सिंचाई के बाद गूलों पर मिट्टी चढ़ाएं.

*      चने की बोआई का काम 15 नवंबर तक पूरा करें. बोआई के लिए अच्छी किस्मों जैसे पूसा 256, के 850, पंत जी 114, केडब्ल्यूआर 108, काबुली चने की पूसा 267 व एल 550 वगैरह का इस्तेमाल करें. छोटे व मध्यम आकार के दाने वाली किस्मों के 60 से 80 किलोग्राम व बड़े दाने वाली किस्मों के 80 से 100 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर बोआई के लिए इस्तेमाल करें.

*      मटर, मसूर की बोआई पिछले महीने नहीं की है, तो यह काम 15 नवंबर तक पूरा

कर लें. 1 हेक्टेयर खेत की बोआई के लिए

मटर के 80 से 125 किलोग्राम बीज व मसूर

के लिए 30-40 किलोग्राम बीज इस्तेमाल

करें. पिछले महीने बोई गई फसल में सिंचाई करें. निराईगुड़ाई कर के खरपतवारों को

काबू में करें. फसल पर तना छेदक या पत्ती सुरंग कीट का हमला दिखाई दे, तो उस की रोकथाम करें.

*      आम के बागों को मिलीबग कीट से बचाने के लिए पेड़ों के तनों के चारों तरफ पौलीथिन की 30 सेंटीमीटर चौड़ी पट्टी बांध दें और इस के सिरों पर ग्रीस लगाएं. पेड़ के थालों व तनों पर फौलीडाल पाउडर का बुरकाव करें. बीमार टहनियों को काट कर जला दें.

* लहसुन की फसल में निराईगुड़ाई का काम करें. खड़ी फसल में 50 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें.

*      सब्जी के खेतों की निराईगुड़ाई करें व खरपतवार न पनपने दें. बीमारी व कीट का हमला दिखाई दे, तो कृषि वैज्ञानिकों से पूछ कर कारगर दवा का इस्तेमाल करें.

* नवंबर में फूलों के खिलने का समय है. उन में सिंचाई व गुड़ाई जरूर करते रहें.

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