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त्रासदी, अज्ञानता और लालच की कॉकटेल बनी साइकिल गर्ल ज्योति पासवान

वह प्रवासी मजदूरों की त्रासदी का जिंदा रूपक है. सालों नहीं बल्कि दशकों बाद भी जब साल 2020 के देशव्यापी कोरोना लॉकडाउन का जिक्र छिड़ेगा, तो आंखों में उस 15 वर्षीय दुबली, पतली लड़की की तस्वीर घूम जायेगी, जो अपने बीमार पिता को साइकिल के कैरियर में बिठाकर हरियाणा के गुरुग्राम से 1200 किलोमीटर दूर बिहार के दरंभगा जिले में स्थित अपने गांव सिरहुल्ली लायी. जी हां, हम आज पूरी दुनिया में मशहूर हो चुकी साइकिल गर्ल ज्योति पासवान की ही बात कर रहे हैं.

हम सब जानते हैं कि ज्योति को ऐसा क्यों करना पड़ता था, 25 मार्च 2020 से घोषित लॉकडाउन का पहला चरण खत्म हो चुका था, दूसरा भी खत्म होने की तरफ बढ़ रहा था, लेकिन देशभर के शहरों में बिलबिलाते प्रवासी मजदूरों की समस्याओं का दूर दूर तक कोई निदान नजर नहीं आ रहा था. हालांकि तब तक विशेष श्रमिक रेलगाड़िया शुरु हो चुकी थीं, लेकिन उनमें जगह मिलना आसान नहीं था. बसें अब भी बंद थीं और लोगों को सख्ती से घरों में रहने के आदेश थे. लेकिन देश के करोड़ों प्रवासी मजदूरों की तरह ज्योति पासवान और उसके पिता के सामने भी भूखों मरने की स्थिति थी.

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ज्योति के पिता मोहन पासवान गुड़गांव में ई-रिक्शा चलाते थे और लॉकडाउन घोषित होने के कुछ ही दिन पहले उनका एक्सीडेंट हो गया था. उन्हें काफी ज्यादा चोट आयी थी. इस हालात में उनकी देखरेख के लिए ही एक महीना पहले ही ज्योति बिहार से अपने पापा के पास आयी थी और वे दोनो गुड़गांव में एक झोपड़पट्टी में रह रहे थे. लाॅकडाउन जब आशंका के मुताबिक आगे बढ़ने लगा तो बाप बेटी बहुत घबराये, लेकिन घर वापस जाने का कोई जरिया नहीं था. तभी ज्योति ने कुछ मजदूरों को साइकिल के जरिये घर जाने की योजना बनाते सुना.

ज्योति को भी यह आइडिया क्लिक कर गया. पिता भी तमाम न-नुकुर के बाद राजी हो गये, तो ज्योति ने अपने पास के एक हजार रुपये में एक पुरानी साइकिल खरीदी, लेकिन साइकिल मालिक को तुरंत सिर्फ 500 रुपये ही दिये, 500 रुपये कोरोना के बाद वापस आने पर देने का वायदा किया. 10 मई 2020 की रात 10 बजे अंततः यह डर और दहशत से भरा लंबा और त्रासद सफर शुरु हुआ. 20-20, 25-25 किलोमीटर तक चलने के बाद थोड़ी देर आराम करके फिर से चल देने वाले इस सफर में कई जगहों पर कुछ लोगों ने बाप-बेटी को कुछ खाने पीने को दिया और कई बार घंटों दोनो को भूखों भी रहना पड़ा. बहरहाल सफर के अनगिनत कष्टों और मई के भयानक लू के थपेड़ों के बीच छह दिन, छह रात चलकर 16 मई 2020 को ज्योति अपने गांव सिरहुल्ली में दाखिल हुई.

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तब तक ज्योति को कोई नहीं जानता था. दैनिक भास्कर के स्थानीय पत्रकार अलिंद्र ठाकुर ने ज्योति के साहस और जीवटता की कहानी अपने अखबार में छापी और भास्कर से उठाकर इसे एक न्यूज एजेंसी ने फ्लैश कर दिया, इससे देखते ही देखते ज्योति एक कहानी बन गई. हैरान कर देने वाले अंचभे की कहानी. फिर क्या था, न सिर्फ गांव के तमाम बड़े लोग, जो सवर्ण होने के नाते दलित बस्तियों में घुसना भी पसंद नहीं करते, वे ज्योति के घर पहुंचकर और भीड़ में लाइन से लगकर उसके हौसले की तारीफ की, उसे गांव की शान बताया और जो हो सकता था, मोबाइल कैमरे की फ्लैश लाइट के बीच वह आर्थिक मदद भी की.

यह सिलसिला सिर्फ गांव या आसपास के गांवों तक सीमित नहीं रहा. तमाम राजनेताओं ने भी इस खबर के सुनते ही रातोंरात ज्योति के घर के दौरे का कार्यक्रम बना लिया. नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल सदस्य, राजद के तेजस्वी यादव और लोजपा के चिराग पासवान उनसे मिलने पहुंचे, उन्हें खाने पीने के तमाम तोहफों के साथ सबने एकमुश्त रकम भी दी. देखते ही देखते ज्योति पासवान का गांव कुछ सालों पहले आयी फिल्म ‘पीपली लाइव’ में तब्दील हो गया. ज्योति से मिलने और उसकी शान में कसीदे काढ़ने इतने लोग आये कि उनकी गिनती, रजिस्टर में दर्ज करके भी करना मुश्किल था.

बहरहाल रातोंरात चमत्कार की तरह किस्मत बदलने के इस खेल में ज्योति से पत्रकार और लघु फिल्म बनाने वाले विनोद कापड़ी मिले, उन्होंने एक डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाने के लिए ज्योति पासवान और उसके घर वालों से कॉन्ट्रैक्ट साइन किये. 2,51,000 रुपये में बात हुई और एक लिखित अनुबंध करने के साथ ही विनोद कापड़ी की कंपनी भगीरथी फिल्म ने ज्योति के एकाउंट में 51,000 रुपये ट्रांसफर कर दिये. लेकिन नई नई सेलिब्रिटी बनने के बाद ज्योति की जिंदगी में जो तेज रफ्तारी और चकाचैंध आयी, उससे वो कुछ समझ ही नहीं पाये कि उन्हें क्या करना चाहिए, क्या नहीं?

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कुछ दिन बाद यानी 26 जून को गोवा के फिल्मकार साइनी कृष्ण और सजीथ, ज्योति और उसके परिवार से मिलने आये, उन्होंने भी साइकिल गर्ल ज्योति पासवान पर फिल्म बनाना चाहा और इसके लिए ज्योति के पिता मोहन पासवान को न केवल 51,000 रुपये एडवांस भी दिये बल्कि उनसे कॉन्ट्रैक्ट में साइन भी कराया. लेकिन अब यही कॉन्ट्रैक्ट साइन उनके लिए जी का जंजाल बन गया है. उनकी अज्ञानता और लालच न सिर्फ ज्योति और उसके परिवार का सिरदर्द हो गया है बल्कि उसकी आगे बढ़ रही सपनीली कहानी पर ब्रेक भी लगा दिया है. दरअसल जब विनोद कापड़ी को पता चला कि मोहन पासवान ने एक गोवा के फिल्मकार से भी अनुबंध कर लिया है तो उन्होंने उस गोवन फिल्मकार को कानूनी नोटिस भेज दिया कि ज्योति पासवान पर फिल्म बनाने का राइट उनके पास है.

अब मामले की गंभीरता समझकर मोहन पासवान ने थाने में जाकर गोवन फिल्मकार के विरूद्ध एफआईआर दर्ज करायी है, जिसमें कहा गया है कि साइनी कृष्ण और सजीथ ने उनके भोलेपन का और अंग्रेजी न जानने का फायदा उठाकर अनुबंध में दस्तखत करा लिये हैं. एफआईआर के मुताबिक मोहन पासवान का कहना है कि अब जब हम उनके द्वारा दिये गये एडवांस पैसे को वापस करने के लिए साइनी कृष्ण को बार बार फोन और व्हटसएप में जरिये संपर्क करने की कोशिश कर रहे हैं तो ये लोग कोई जवाब न देकर उनके परिवार के सभी सदस्यों को मानसिक यातना दे रहे हैं. मामला कानूनी पेंच में फंस गया है, जिस वजह से होने वाली फिल्म की शूटिंग भी नहीं शुरु हुई. हालांकि इस कहानी में सहानुभूति के सारे तथ्य ज्योति और उसके पिता की तरफ हैं, फिर भी हकीकत इतनी सपाट नहीं होती. कहीं न कहीं यह कहानी पासवान परिवार की ही बुनी हुई है, जो त्रासदी को भुनाने की है.

प्यार है नाम तुम्हारा-भाग 2: स्नेहा कि मां के साथ क्या हुआ था?

लेखक- डा. जया आनंद

‘स्नेहा, छोले तो बहुत टैस्टी हैं, आंटी ने बनाए होंगे,’ नेहा खातेखाते बो ‘नहीं, मैं ने बनाए हैं,” स्नेहा कुछ गंभीर हो गई थी. ‘तुम ने! यार स्नेहा, यू आर  ग्रेट कुक. वैसे आंटी कहां हैं?’ नेहा ने पूछा. ‘मम्मी…’ स्नेहा की बात अधूरी रह गई. पीछे वाले कमरे से सांवली, साधारण सी बिखरे बालों के साथ एक महिला वहां आ गई. नेहा कुछ आश्चर्य से उन्हें देखने लगी. फिर ‘मेरी मम्मी’ कह स्नेहा ने उस महिला का परिचय कराया.

नेहा सोच में पड़ गई. स्नेहा तो कितनी सुंदर और उस की मम्मी साधारण सी, बिखरे बाल, दांत भी कुछ टूटे हुए… यह कैसे? कई सारे सवालों से नेहा घिर गई थी. स्नेहा की मम्मी कुछ अलग सी मुसकान के साथ अंदर चली गई.

‘नेहा, तुम्हें आश्चर्य हो रहा होगा न. मेरी मम्मी ऐसी… दरअसल, मम्मी पहले बहुत अच्छी दिखती थीं लेकिन जब मेरा भाई किडनैप हुआ तब से मम्मी की हालत ऐसी हो गई. भाई तो वापस मिला लेकिन मम्मी तब तक मैंटल पेशेंट हो चुकी थीं,’ स्नेहा धीरेधीरे बोल रही थी.

‘उफ्फ़…’ नेहा ने एक लंबी सांस भरी. कितना दुख है जीवन में. मां होते हुए भी मां का प्यारदुलार न मिले. स्नेहा तो अपनी मां से कोई ज़िद भी न कर पाती होगी. नेहा का मन भरा जा रहा था.

“चलो नेहा, मैं तुम्हें अपना स्कूल दिखाती हूं.  हमारा स्कूल कोएजुकेशन था, एक से एक स्मार्ट लड़के पढ़ते थे. अब तो हम गर्ल्स कालेज में आ गए,’ स्नेहा ने शायद नेहा के माथे पर पड़ी सलवटों को देख लिया था और वह माहौल को कुछ हलका करना चाहती थी.

‘स्नेहा, तुम भी न,” नेहा ने यह कह कर हंसी तो स्नेहा भी खिलखिला पड़ी थी.नेहा उस अलबम की हर फोटो को बड़े  गौर से देख रही थी. वेलकम पार्टी, टीचर्स डे, फेयरवैल, ऐनुअल फंक्शन… हर फोटो में नेहा और स्नेहा छाई हुई थीं. दिन हंसतेगाते, पाकीज़ा जूस सैंटर का जूस पीते हुए बीत  रहे थे. पर दिन हमेशा एक से नहीं रहते. ग्रेजुएशन के फाइनल ईयर के आख़िरी दिनों में स्नेहा कालेज में लगातार गैरहाजिर हो रही थी. नेहा चिंतित थी, क्या हुआ, क्यों नहीं आ रही है स्नेहा? पता चला, स्नेहा बहुत दिनों से हौस्पिटल में एडमिट है. स्नेहा को क्या हो गया, नेहा परेशान हो उठी.

नेहा हौस्पिटल पहुंची जहां स्नेहा एडमिट थी. स्नेहा का चेहरा स्याह पड़ चुका था, आंखें गड्ढे में चली गई थीं, चेहरा फीकाफीका सा लग रहा था, देह जैसे हड्डी का ढांचा. नेहा को स्नेहा का वह पहले वाला दमकता सौंदर्य याद आ गया. और अब…

‘आओ नेहा,’ एक कमज़ोर सी आवाज़ और फीकी मुसकान के साथ स्नेहा बोली. नेहा उस के पास रखे स्टूल पर बैठ गई. नेहा ने स्नेहा का हाथ पकड़ते हुए पूछा, ‘क्या  हो गया स्नेहा? किसी को कुछ बताया भी नहीं, अकेलेअकेले ही सारे दुख़ झेलती रही?’

नहीं, नहीं नेहा, कुछ पता ही नहीं चला. पहले फीवर और हलकी कमज़ोरी थी, फीवर की दवा ले लेती थी, पर घर का काम भी रहता था और वीकनैस बढ़ने लगी.  और एक दिन खून की बहुत सारी उलटियां हुईं. मेरे पापा तो बहुत घबरा गए. यहां हौस्पिटल में एडमिट करा दिया,’ स्नेहा धीरेधीरे सारी बातें नेहा को बताती जा रही थी.

‘और तुम्हारी मम्मी?’ नेहा ने तुरंत ही पूछा.‘मम्मी को तो कुछ पता ही नहीं चलता. वे तो…’ बोलतेबोलते स्नेहा रुक गई और एक गहरी सांस अंदर खींच कर रह गई.

‘पर खून की उलटियां क्यों हुईं तुम्हें?’ नेहा अगले प्रश्न के साथ तैयार थी. ‘दरअसल, मुझे सीवियर  ट्यूबरकुलोसिस है. पूरे लंग्स में इन्फैक्शन है. थोड़ा मुझ से दूर ही रहो,’ स्नेहा पहले तो कुछ गंभीर थी, फिर हंस दी.

‘पर स्नेहा, तुम्हारा इलाज तो सही हो रहा है न, यहां के डाक्टर्स अच्छे हैं न? नेहा ने चिंतित स्वर में पूछा.  स्नेहा के चेहरे पर शरारत टपक गई, बोली, ‘अरे यार नेहा, डाक्टर्स तो अच्छे हैं, एक नहीं दोदो अच्छे हैं, एक सीनियर डाक्टर और एक जूनियर डाक्टर. सीनियर वाला न, मेरे गढ़वाल का ही है. पर, सूरत जूनियर वाले की ज़्यादा अच्छी है.’  ‘स्नेहा, तुम नहीं सुधरोगी, इतनी बीमार हो, फिर भी…’ नेहा हंसते हुए उस का गाल सहलाते हुए बोली.

नेहा, तो क्या रोती रहूं हर समय. अब तुम ने ही पूछा कि डाक्टर्स कैसे हैं तो मैं ने बताया,’ स्नेहा हलके गुस्से से बोली. इतने में एक साधारण नयननक्श  का सांवला डाक्टर आया, उसे एग्जामिन किया और पूछा, ‘स्नेहा जी, अब वौमिटिंग बंद हुई, फीलिंग बेटर नाउ?’

‘हां डाक्टर,’ स्नेहा ने धीमे से जवाब दिया. पीछे एक हैंडसम सा जूनियर डाक्टर साथ था. उस ने स्नेहा को कुछ दवाएं दी और मुसकराते हुए चला गया. ‘देखा स्नेहा, दोनों डाक्टर अच्छे हैं न,’ स्नेहा चहक कर बोली. नेहा प्यार से स्नेहा को सहलाने लगी और बोली, ‘स्नेहा, जल्दी से ठीक हो जाओ, परीक्षाएं पास आ रही हैं, मैं तुम्हें नोट्स दे दूंगी, ओके.’

स्नेहा ने भी नेहा का दूसरा हाथ अपने हाथों से कस के पकड़ लिया और अंसुओं की दो बूंदें उस की आंखों से ढ़ुलक गईं. नेहा अपनी आंखों को छलकने से बचाने के लिए तेज़ आवाज़ में बोली, ‘माय डियर, गेट वैल सून.’ नेहा भीगी पलकों के साथ वहां से चली आई.

परीक्षाएं पास आ गई थीं. स्नेहा की तबीयत पूरी तरह ठीक नहीं हो पाई थी. वह फाइनल एग्ज़ाम नहीं दे सकी. स्नेहा हौस्पिटल से डिस्चार्ज हो कर अपनी दादी के साथ पहाड़ चली गई. इधर नेहा आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली चली गई. वहीं होस्टल ले कर पोस्टग्रेजुएशन करने लगी और साथ में सिविल सर्विसेज़  की भी तैयारी कर रही थी. उसे बिलकुल भी फुरसत न मिलती. मोबाइल उन दिनों था नहीं जो हर समय दोस्तों से वह बात कर सके.

लखनऊ घर बात करने के लिए हफ्ते में एक बार होस्टल के पीसीओ  जा पाती  थी. नेहा स्नेहा को याद करती, पर बात नहीं हो पाती. ‘पता नहीं स्नेहा कैसी होगी, उस की तबीयत… उस की मां का क्या हाल होगा…’ एक लंबी सांस खींच कर नेहा किताब खोल कर पढ़ने बैठ जाती.

स्नेहा से मिले हुए नेहा को 10-11 महीने हो रहे थे. नेहा दिल्ली से  छुट्टियों में अपने घर आई हुई थी. कहते हैं, किसी को शिद्दत से याद करो तो वह मिल ही जाता है. उस दिन भी ऐसा ही कुछ हुआ. स्नेहा ने नेहा को अचानक ही फ़ोन लगा दिया था.

अब नेहा दूसरे दिन स्नेहा के फ़ोन का इंतज़ार कर रही थी और साथ ही चिंतित भी थी क्योंकि स्नेहा ने हौस्पिटल जाने की बात कह कर फ़ोन काट दिया था. कुछ देर बाद फ़ोन की घंटी बजी. नेहा ने पहली घंटी बजते ही रिसीवर  उठा लिया.

“हैलो, स्नेहा?” “हां नेहा, मैं स्नेहा बोल रही हूं.”

प्यार है नाम तुम्हारा

प्यार है नाम तुम्हारा-भाग 3: स्नेहा कि मां के साथ क्या हुआ था?

लेखक- डा. जया आनंद

“स्नेहा, कल तुम ने हौस्पिटल जाने की बात कह कर फ़ोन काट दिया था. क्या तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं हुई?” नेहा ने कुछ घबराते हुए पूछा. “नेहा, मुझे कल जाना था हौस्पिटल डाक्टर से मिलने.”

“वही तो मैं पूछ रही हूं स्नेहा. डाक्टर से मिलने तुम्हें क्यों जाना था”? नेहा लगभग झुंझला कर  बोली.”नेहा, जब तुम मुझ से मिलने हौस्पिटल आई थीं, तो याद है तुम्हें 2 डाक्टर्स मुझे एग्ज़ामिन करने आए थे.”

“हांहां, याद है मुझे. एक तो तुम्हारे पहाड़ के थे और दूसरे एक जूनियर डाक्टर थे.””हां, पहाड़ वाले डाक्टर स्वप्निल जोशी. उन्होंने मुझे बुलाया था,” स्नेहा बताने लगी, “नेहा, तुम्हें याद है न, मेरी तबीयत कितनी खराब थी, खून की उलटियां हो रही थीं, मेरा चेहरा कैसा स्याह पड़ चुका था. मम्मी की हालत तो तुम जानती ही हो. जब मुझे हौस्पिटल में एडमिट कराया तो मेरी हालत बहुत खराब थी. ऐसे में डा. स्वप्निल ने ही मुझे एग्ज़ामिन किया. उन की ही दवाओं से मेरी उलटियां रुकीं. थोड़ी तबीयत हलकी हुई. अब जब भी डा. स्वप्निल मेरा चैकअप करने आते, मुझे आदतन हंसी आ जाती. तुम्हें तो पता है, मुझ से ज़्यादा देर सीरियस नहीं रहा जाता. उस दिन भी डा. स्वप्निल को देख मैं यों ही हंस पड़ी. डा. ने पूछा, “हैलो स्नेहा, फीलिंग बेटर नाऊ?”

“या डाक्टर,” मैं ने मुसकराते हुए उत्तर दिया. “पूरा आराम कीजिए स्नेहा आप और मेडिसिन्स टाइम से लीजिए पूरे 6 महीने का कोर्स है.”जी डाक्टर,” मैं फिर मुसकरा उठी. डा. स्वप्निल भी मुसकरा पड़े.

एक दिन मैं ने शीशे में में अपना चेहरा गौर से देखा तो मैं खुद घबरा गई. आंखें धंसी, चेहरा पीला, सारी रंगत चली गई थी. बस. नहीं कुछ गया था तो वह थी मेरी हंसी.  मम्मी की चिंता, पापा की चिंता, दादी भी बूढ़ी हो चली हैं…कैसे क्या होगा? और मेरी भी तबीयत…भाई भी छोटा है… क्या ज़रूरत थी कुदरत को मुझे इस तरह बीमार करने की. बहुत गुस्सा आता मुझे. पर इन सब के बीच ज़िंदगी से नफ़रत नहीं कर  पाती. कुछ भी अच्छा एहसास होता, तो बरबस ही होंठों पर मुसकान आ जाती. सो, डा. स्वप्निल का एहसास भी कुछ अच्छा सा था. डा. स्वप्निल से मैं धीरेधीरे खुलने लगी. उन्हें अपने घर के बारे में, मम्मी के विषय में बताया. डा. स्वप्निल गंभीरता से मेरी बातें सुनते. मुझे भी उन से बातें करना अच्छा लगता. उस दिन 25 अगस्त को मेरा बर्थडे था. डा.

स्वप्निल मुझे चैक करने आए तो स्टेथोस्कोप के साथ उन के हाथों में लाल गुलाब के फूलों का बुके भी था. उन्होंने बुके पकड़ाते हुए कहा, “हैप्पी बर्थडे स्नेहा.” “पर आप को कैसे पता चला?” मैं ने चौंकते हुए पूछा.

“ह्म्म्म्म, स्नेहा, वह दरअसल, मैं ने तुम्हारी फ़ाइल देखी थी. उस में बर्थडे की एंट्री थी. वहीं से पता चला,” डा. स्वप्निल मुसकराते हुए बोले”अच्छा, तो डाक्टर साहब मरीज़ की सारी अनोट्मी देखते हैं,” मैं ने भवें तिरछी कर हंसते हुए कहा.

डा. स्वप्निल कुछ औकवर्ड फील करने लगे, फिर कुछ सीरियस हो कर मेरी ओर मुखातिब हुए, “स्नेहा, आज तुम्हारा बर्थडे है, उपहार तो मुझे देना चाहिए. पर एक उपहार मैं तुम से मांगना चाहता हूं.”  “क्या, क्या?” मैं ने हैरानी और आशंका से प्रश्न किया.डा. स्वप्निल बिना एक पल की देरी किए हुए कह उठे, “स्नेहा, मुझ से शादी करोगी?”

मैं आश्चर्य में पड़ गई. समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या कहूं. मेरे कानों से ऐसा लगा मानो गरम हवा निकल रही हो. दिल बैठा जा रहा था. सुन्न सी हालत हो गई थी मेरी.

मैं ने लड़खड़ाती ज़बान से कहा, “पर डाक्टर, मेरी बीमारी…मेरी मां की हालत… आप कैसे…” आवाज़ मानो घुट कर गले में ही अटक गई.

डा. स्वप्निल ने मेरा हाथ पकड़ लिया और कहने लगे, “स्नेहा, तुम्हारी बीमारी ठीक हो जाएगी, मुझ पर विश्वास करो. मैं तुम्हारे घर की स्थिति को जानता हूं. ये सब जानते हुए भी मुझे तुम्हारा ही हाथ थामना है. पता है क्यों, क्योंकि तुम से मिल कर मेरी दवाओं, इंजैक्शन, औपरेशन से भारी रूखी ज़िंदगी में मुसकराहट आ जाती है. मेरी सीरियसनैस में चंचलता आ जाती है. तुम से मिल कर ज़िंदगी से प्यार होने लगता है. मेरा ख़ालीपन भरने लगता है. बोलो स्नेहा, मेरा साथ तुम्हें पसंद है.”

डा. स्वप्निल इतना कह कर नम आंखों से मुझे देखने लगे. मेरी पलकें अनायास ही झुक गईं. डा. स्वप्निल की बातों में,  उन के हाथों के स्पर्श में भरोसे की खुशबू को मैं ने खूब महसूस किया  और…”

“और, फिर क्या हुआ?” नेहा ने उछलते हुए पूछा. “फिर क्या हुआ?? हुआ यह कि इस संडे को मेरी एंग़ेज़मैंट है डा. स्वप्निल के साथ और उस दिन मुझे उन्होंने रिंग पसंद करवाने के लिए हौस्पिटल बुलाया था. तुम्हें ज़रूर आना है, ” स्नेहा बोलते हुए अपनी स्वाभाविक हंसी के साथ हंस पड़ी.

नेहा  बड़ी गर्मजोशी  से बोली,  “ओह स्नेहा, तुम ने अपनी हंसी में डाक्टर को फंसा ही लिया. सच, मैं बहुत खुश हूं तुम्हारे लिए. वैसे, डाक्टर साहब ने ठीक ही कहा कि तुम से मिल कर वीरान ज़िंदगी में बहार आ जाती है, बोरिंग ज़िंदगी रंगीन लगने लगती है और ज़िंदगी से प्यार होने लगता है. आख़िर प्यार है नाम तुम्हारा, स्नेहा डियर.”

“और तुम्हारा भी,” स्नेहा खनकती आवाज़ में बोल  पड़ी. दोनों सहेलियां एकदूसरे को फोन पर ही मनभर कर महसूस करती हुईं ज़ोर से खिलखिला पड़ीं.

प्यार है नाम तुम्हारा -भाग 1: स्नेहा कि मां के साथ क्या हुआ था ,जिससे वह अलग दिखने लगी थी?

लेखक- डा. जया आनंद

“हैलो, कौन?” “पहचानो…””कौन है?””अरे यार, भुला दिया हमें?” और एक खिलखिलाती हुई हंसी फोन पर सुनाई पड़ी. “अरे स्नेहा, तुम, इतने दिनों बाद, कैसी हो?” नेहा  पहचान कर खुशी ज़ाहिर करते हुए बोली.

“नेहा, यार, तुम तो मेरी पक्की सहेली हो, तुम से कैसे दूर रह सकती थी. ऐसे भी दोस्ती निभाने में हम तो नंबर वन हैं. बहुत सारी बातें करनी है मुझे तुम से. अच्छा, मेरा फोन नंबर लिख लो. अभी मुझे हौस्पिटल जाना है, कल बात करते है,” और स्नेहा ने फ़ोन रख दिया.

“हौस्पिटल…” बात अधूरी रह गई.  नेहा कुछ चिंतित हो उठी, ‘आख़िर, उसे हौस्पिटल क्यों जाना था…’ नेहा बुदबुदा रही थी.

नेहा के मन में स्नेहा की स्मृतियां चलचित्र की तरह तैर गईं… कालेज में फौर्म भरने की लाइन में नेहा खड़ी थी लाल रंग के पोल्का डौट का सूट पहने और उसी लाइन मे स्नेहा काले रंग के पोल्का डौट का सूट पहने खड़ी थी. उन दिनों पोल्का डौट का फैशन चल रहा था.

“गम है किसी के पास,” स्नेहा ज़ोर से बोली. स्नेहा को फौर्म पर फोटो चिपकानी थी.”हां है, देती हूं,” नेहा ने मुसकराते हुए गम की छोटी सी शीशी स्नेहा को थमा दी. बदले में स्नेहा ने मुसकान बिखेर दी.

फौर्म जमा कर बाहर निकलते हुए स्नेहा चपल मुसकान के साथ नेहा की ओर मुखातिब हुई, “थैंक्यू सो मच, फौर्म से मेरी फोटो निकल गई थी, मैं तो घबरा गई थी कि क्या होगा अब…”

“थैंक्यू कैसा, चलो आओ, उधर सीढ़ियों पर थोड़ी देर बैठते हैं,” नेहा बीच में ही बोल पड़ी.नेहा, स्नेहा दोनों वहां अकेली थीं. दोनों को, शायद, इसीलिए एकदूसरे का साथ मिल गया था.”अच्छा, तुम्हारा नाम क्या है?”

“स्नेहा ढोले.”“और तुम्हारा?””नेहा खरे. अरे वाह, हम दोनों के नाम कितने मिलते हैं… और हमारी ड्रैसेस भी,” नेहा आश्चर्यमिश्रित खुशी के साथ बोली, वैसे, ढोले…क्या?”

“हम गढ़वाल के हैं,” स्नेहा ने उत्तर दिया.नेहा गौर से स्नेहा को निहार रही थी. बड़ीबड़ी आंखें, तीखी नाक, गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होंठ, दमकता हुआ रंग मतलब सुंदरता के पैमाने पर तराशा हुआ चेहरा थी स्नेहा और पहाड़ी निश्च्छलता से सराबोर उस का व्यक्तित्व.

“क्या हुआ?”, स्नेहा ने टोका.”न…न…नहीं, बस, ऐसे ही,” नेहा मुसकरा कर रह गई.”तुम कितने भाईबहन हो? स्नेहा ने पूछा.”एक भाईबहन.”“हम भी एक भाईबहन हैं. कितना कुछ मिलता है हम में  न,” स्नेहा ज़ोर से खिलखिलाते हुए बोल पड़ी.

“हां, सच में,” नेहा भी आश्चर्य से भर गई थी.”तो आज से हम दोनों दोस्त हुए,” दोनों ने एकसाथ हाथ पकड़ कर हंसते हुए कहा था.

लखनऊ अमीनाबाद कालेज से निकल कर दोनों ने पाकीज़ा जूस सैंटर पर ताज़ाताज़ा मौसमी का जूस पिया. दोनों को ही मौसमी का जूस बहुत पसंद था और इस तरह शुरू हुई दोनों की दोस्ती.

लोग कहते हैं, दोस्त हम चुनते हैं. पर नेहा का मानना है कि दोस्ती भी हो जाती है जैसे उस दिन स्नेहा से उस की दोस्ती हो गई थी.

नेहा स्नेहा की यादों को एक सिरे से समेट रही थी. उस ने पुराने अलबम निकाले. एक फोटो थी एनसीसी कैंप की, जिस में वह खुद और स्नेहा पैरासीलिंग कर रही थीं. नेहा को कैंप की याद आई…’यार, वह लड़का कितना हैंडसम है. बस, एक नज़र देख ले,’ स्नेहा ने चुहलबाज़ी करते नेहा से कहा था.

‘क्या स्नेहा, हर समय लड़कों को देखती रहती हो,’ नेहा गंभीरता ओढ़ कर बोली थी.‘अरे यार, एनसीसी में हमारे कैंप लड़कों से अलग हो जाते हैं, तो नैनसुख तो ले ही सकते हैं न,” स्नेहा बोलतेबोलते ज़ोर से हंस पड़ी थी.

नेहा और स्नेहा दोनों  ने ही ग्रेजुएशन में एनसीसी ली थी और पहली बार दोनों घर से दूर कैंप गई थीं. साथसाथ खाना, साथसाथ रहना, साथसाथ परेड करना…लगभग सारे काम साथ. उन की दोस्ती गहरी होती जा रही थी.

‘कितने गंदे पैर ले कर  आई हो,’  स्नेहा ने डांटते हुए कहा था.‘अरे यार, आज मेरी सफाई की ड्यूटी थी, सो पैर में कीचड़ लग गया,” नेहा ने गुस्साते हुए कहा था.‘ह्म्म्म्मम, कैंप की सफाई कर खुद को गंदा कर लिया,’ स्नेहा बड़बड़ाती जा रही थी.

स्नेहा तुरंत उठी और एक तौलिया ले कर नेहा का पैर बड़ी ही तन्मयता के साथ साफ करने लगी. नेहा स्नेहा का यह रूप देख कर हैरान थी. स्नेहा को उस का पैर साफ करने में तनिक भी संकोच नहीं हुआ. एक मातृवत भाव के साथ वह यह सब कर रही थी. कहां से आई उस के अंदर यह भावना, शायद उस की परिस्थितियां…, नेहा सोच में मे पड़ गई थी.

एक दिन पाकीज़ा जूस सैंटर पर जूस पीतेपीते नेहा ने कहा, ‘स्नेहा, आज चलो मेरे घर, मेरे मांपापा से मिलो.’ स्नेहा उस दिन नेहा के घर गई. उसे नेहा के यहां बहुत अच्छा लगा. ‘कितने अच्छे हैं तुम्हारे मांपापा और तुम्हारी प्यारी सी दादी. मां ने कितने अच्छे पकौड़े बनाए,’ स्नेहा बिना रुके बोले जा रही थी, अचानक मुसकराई, ‘और तुम्हारा भाई भी बहुत अच्छा है.’ शरारत के साथ आंखें मटकाते अपने चिरपरिचित अंदाज़ में स्नेहा बोली थी.

स्नेहा के इस अंदाज़ को नेहा बखूबी समझ चुकी थी, वह भी हंस पड़ी.‘अब मुझे भी अपने घर ले चलो,’ नेहा ने स्नेहा से कहा. ‘मेरे घर…,’ स्नेहा कुछ हिचकिचा गई‘ले चल स्नेहा, तुम्हारा घर तो सीतापुर रोड पर खेतखलिहानों के पास है, बहुत मज़ा आएगा.”‘ह्म्म्म्म, अच्छा, कल चलना,’ स्नेहा  का स्वर कुछ धीमा पड़ गया था.

‘कितनी सुंदर जगह है तुम्हारा घर, हरेभरे खेतों के बीच,’ नेहा, स्नेहा का घर देख कर खुशी से झूमी जा रही थी. स्नेहा का घर कच्चे रास्तों से गुज़रता था. घर पहुंचते ही स्नेहा ने अपनी दादीमां से मिलवाया, ये हैं मेरी सब से प्यारी दादी तुम्हारी दादी की तरह. और दादी, यह है मेरी पक्की वाली दोस्त नेहा.” स्नेहा ने फिर गरमागरम छोलेचावल खिलाए.

कोरोना से डरने की ज़रूरत है

सिविल हॉस्पिटल लखनऊ में टेस्टिंग डिपार्टमेंट में कार्यरत राजकमल उदास स्वरों में कहते हैं, ‘कोरोना ने मेरे हट्टे कट्टे दोस्त को तीन दिन में निगल लिया. वो मेरे साथ कोविड टीम का हिस्सा था. जिम जानेवाला, स्पोर्ट का शौक़ीन, सेहत के प्रति सतर्क और हमेशा हंसमुख दिखने वाले मेरे दोस्त ने कोरोना टेस्ट टीम का हिस्सा बन कर कितने ही लोगों में जीने की उम्मीद जगाई और खुद तीन दिन में सबकी उम्मीदें ख़त्म करके चला गया. पता ही नहीं चला कि कब कोरोना ने उसके फेफड़ों में पहुंच कर उसके श्वसन तंत्र को बुरी तरह जकड़ लिया. एक दिन तेज़ बुखार, दूसरे दिन खांसी और तीसरे दिन सांस में दिक्कत के साथ उसकी इहलीला ख़त्म हो गयी.’

कोरोना वायरस इंसान के रेस्पिरेटरी सिस्टम में दाखिल होकर उसके फेफड़ों को तबाह कर देता है और उसे मौत की दहलीज तक ले जाता है. कोविड-19 हमारे फेफड़ों का क्या हाल करता है, इसका एक डरावना उदाहरण कर्नाटक में देखने को मिला है. यहां 62 साल के एक मरीज के कोरोना संक्रमित होने के बाद फेफड़े किसी ‘लैदर की बॉल’ की तरह सख्त हो चुके थे.

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फेफड़ों का इतना बुरा हाल होने के बाद मरीज की मौत हो गयी. हैरान करने वाली बात ये है कि मरीज की मौत के 18 घंटे बाद भी उसकी नाक और गले में वायरस एक्टिव था. यानी संक्रमित व्यक्ति की मौत के बाद भी शव के संपर्क में आने से दूसरे लोग बीमार पड़ सकते थे.

ऑक्सफोर्ड मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर दिनेश राव का कहना है कि इस मरीज के फेफड़े कोरोना के कारण किसी लैदर की बॉल जैसे सख्त हो चुके थे. फेफड़ों में हवा भरने वाला हिस्सा खराब हो चुका था और कोशिकाओं में खून के थक्के बन चुके थे. शव की जांच से कोविड-19 की प्रोग्रेशन को समझने में भी मदद मिली है.

रिपोर्ट के मुताबिक, डॉ. राव ने शव की नाक, मुंह-गला, फेफड़ों के सरफेस, रेस्पिरेटरी पैसेज और चेहरे व गले की स्किन से पांच तरह के स्वैब सैम्पल लिए थे. RTPCR टेस्ट से पता चला कि गले और नाक वाला सैम्पल कोरोना वायरस के लिए पॉजिटिव था. इसका मतलब हुआ कि कोरोना मरीज का शव दूसरे लोगों को संक्रमित कर सकता है. हालांकि स्किन से लिए गए सैम्पल की रिपोर्ट नेगिटिव आयी.

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कोरोना से मरने वाले इस मरीज के शव की जांच परिवार की सहमति से ही की गई है. जब मरीज की मौत हुई तो उसके परिवार वाले या तो होम आइसोलेशन में चले गए या क्वारनटीन हो गए. वे डेड बॉडी के लिए दावा भी नहीं कर सकते थे.

डॉ राव ने कहा कि शव की जांच के बाद तैयार हुई मेरी यह रिपोर्ट अमेरिका और ब्रिटेन में दर्ज हुई रिपोर्ट्स से काफी अलग है. इसका मतलब हो सकता है कि भारत में देखे जाने वाले कोरोना वायरस की नस्ल दूसरे देशों से अलग है.

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भारत में ठण्ड और त्यौहार का मौसम शुरू होते ही लोग कोरोना के प्रति लापरवाह हो रहे हैं. जबकि ठण्ड, कोहरा और प्रदूषण कोरोना को और मजबूती दे रहा है. दिल्ली में ठण्ड बढ़ने के साथ ही कोरोना केसेस बढ़ने लगे हैं. बहुतेरे लोग अस्पतालों के लम्बे चौड़े खर्चों, डॉक्टरों की लापरवाही और घर सील किये जाने के डर के चलते बुखार खांसी होने पर ना तो कोई कोरोना टेस्ट करवा रहे हैं और ना ही डॉक्टर के पास जा रहे हैं. वे घर में ही अलग कमरे में रह कर बुखार के लिए पैरासिटामोल दवा का सेवन कर रहे हैं. साथ ही खांसी के लिए गर्म पानी का भंपारा ले रहे हैं. ऐसे में उनको कोरोना है या फ्लू इसका पता ही नहीं चल रहा है. घर के अन्य लोग जो उनके कांटेक्ट में हैं उनका बाहर के लोगों के बीच भी उठना बैठना है. जिसके चलते कोरोना को बढ़ने का अवसर मिल रहा है. कोरोना संक्रमित लोग हमारे आसपास घूम रहे हैं और हमें पता ही नहीं है. वायरस हर इंसान की इम्युनिटी पावर को देख कर हमला कर रहा है, किसी को कम तो किसी को बहुत ज़्यादा नुक्सान पहुंचा रहा है. इसलिए लॉक डाउन भले खुल गया हो, ऑफिस जाना शुरू हो गया हो, मेट्रो, ट्रेन, बसों ने रफ़्तार पकड़नी शुरू कर दी हो मगर ठण्ड के मौसम में कोरोना को लेकर हमें और ज़्यादा सतर्कता और सावधानी बरतने की ज़रूरत है.

अपनी दुधारू गाय खुद तैयार कीजिए-भाग ८

लेखक- डा. संजीव कुमार वर्मा, प्रधान वैज्ञानिक (पशु पोषण)
इस से पहले अंक में आप ने पढ़ा था : आप की गाय के गर्भकाल के 8 महीने पूरे हो चुके हैं. 9वां महीना बड़े ध्यान से निकालना पड़ता है. आप को अब गाय को दुहना बंद कर देना होता है और गाय के खानपान पर खास ध्यान देना होता है. गाय को किसी भी तरह का तनाव नहीं होना चाहिए और उसे दूसरे पशुओं से अलग कर देना चाहिए. अब पढि़ए आगे…

आप की गाय ने अभीअभी बच्चा दिया है. प्रसव के समय वह बहुत तनाव में थी. बच्चा देख कर अब वह कुछ रिलैक्स है. उस को थोड़ा नौर्मल होने दीजिए. उस के बाद वह अपने बच्चे को चाटचाट कर साफ करेगी. यह उस के अंदर कुदरती मातृत्व भाव है. बच्चे को चाटने की इस क्रिया के दौरान ही बच्चे और मां के बीच एक रिश्ता बनेगा, जो आने वाले दुग्धकाल के लिए भी बेहतर साबित होगा.वैसे, आजकल व्यावसायिक डेरी फार्मों में बच्चे को जन्म के साथ ही मां से अलग कर देते हैं. यहां तक कि खीस भी उन को कटोरे में ले कर पिलाते हैं. खैर, दोनों तरीकों के अपनेअपने फायदे और नुकसान हैं.इस समय गाय को हलका गरम पानी पीने के लिए दीजिए, मगर ध्यान रहे कि पानी बहुत ज्यादा गरम न हो. इस समय गाय को भूख भी उतनी नहीं लगेगी, जितनी उसे लगनी चाहिए. इस समय उसे ऊर्जा की बहुत जरूरत होती है और प्रोटीन की भी. मगर भूख कम लगने के चलते वह उतना ज्यादा नहीं खा पाती, इसलिए ब्याने के तुरंत बाद उसे कुछ ऐसा खाने को देना चाहिए, जो उसे तुरंत ऊर्जा दें.

प्रसव के तनाव से गुजरने के बाद गाय को हलकी, पचने वाली और हलकी दस्तावर खाने की चीज देनी चाहिए जैसे चावल, गेहूं, मोटे अनाज को मिला कर बनाए गए दलिया को उबाल कर उस में गुड़, सरसों का तेल, थोड़ी मेथी, काला जीरा, अदरक और हींग वगैरह मिला कर जितनी मात्रा वह आसानी से खा सके, उतनी देनी चाहिए.
इस के अलावा मुलायम हरा चारा और पीने के लिए साफ हलका गरम पानी दिया जाना चाहिए. साथ ही, कम से कम 100 ग्राम अच्छी क्वालिटी का विटामिन मिनरल मिक्सचर भी दिया जाना चाहिए.
यह खास इंतजाम कम से कम 2 से 3 दिन जारी रहना चाहिए. चौथे दिन से गाय अपने रूटीन चारे, भूसे और रातिब मिश्रण पर आ जाएगी. उस के बाद दूध की मात्रा के हिसाब से उस का भरणपोषण जारी रखना चाहिए. जैसेजैसे दूध की मात्रा बढ़ेगी, उस को दिए जाने वाले चारे भूसे और रातिब की मात्रा भी बढ़ती चली जाएगी. आने वाले 60 दिनों में उस का दूध उत्पादन हर दिन बढ़ेगा और तकरीबन 50 से
60 दिन में अपने उच्चतम हाई लैवल को हासिल कर लेगा. उस के बाद कुछ दिन उसी लैवल पर रहेगा और फिर थोड़ा घटना शुरू होगा.
ब्याने के चौथे दिन से खानपान का इंतजाम वैसा ही रहेगा, जैसा हम पहले ही बता चुके हैं.

आप की गाय बच्चा दे चुकी है. गाय ने बच्चे को चाट कर साफ भी कर दिया है. बच्चे को साफ करने में कुछ मदद आप ने भी की है. जन्म के पहले 4 घंटों के अंदर आप ने बच्चे को खीस भी पिलवा दिया है. मगर गाय ने जेर अभी तक नहीं डाली है.

यहां ध्यान देने वाली बात यह बात है कि गाय ने जेर गिराई हो या न गिराई हो, आप को बच्चे को दूध तुरंत ही पिलवा देना है. जेर गिरने का इंतजार नहीं करना है.
अगर आप की गाय सेहतमंद है और गर्भावस्था के दौरान उस की खिलाईपिलाई भरपूर हुई है और प्रसव सामान्य हुआ है, तो आमतौर पर जेर 5 से 6 घंटे के अंदर डाल दी जाती है.
अगर 12 से 24 घंटों के बाद भी जेर न डाली जाए, तो इसे जेर का रुक जाना या रिटैंशन औफ प्लेसैंटा कहते हैं. मगर अभी भी घबराने की कोई बात नहीं है. इस समय कुछ आयुर्वेदिक दवाओं को देने से जेर आसानी से बाहर आ जाती है.

तमाम कोशिशों के करने के बाद भी अगर ब्याने के 36 घंटे बाद तक भी गाय जेर न डाले, तो उस की सफाई करवाना जरूरी हो जाता है.जेर की सफाई बहुत ही ध्यान से करने वाला काम है, इसलिए इस काम के लिए आप को किसी पशुचिकित्सक से ही संपर्क करना चाहिए, जो सारी सावधानियों को अपनाते हुए इस काम को पूरी करेगा. अगर इस समय लापरवाही हुई तो समझो कि आप ने उस गाय को प्रजनन संबंधी रोगों के कुचक्र में फंसवा दिया है.

गाय ब्याने के बाद एक काम तो आप को करना है कि उसे पांत पका कर देनी है. आप की स्थानीय भाषा में इस का कुछ दूसरा नाम भी हो सकता है. इसे बनाने के लिए चावल, गेहूं, मोटे अनाज को मिला कर बनाए गए दलिया को पानी, गुड़, सरसों के तेल, मेथी, काला जीरा, सोंठ पाउडर (सूखा अदरक पाउडर) और हींग के साथ पकाया जाता है. इस की जितनी मात्रा गाय आसानी से खा सके, उतनी देनी होती है.
इस के अलावा उसे मुलायम हरा चारा और पीने के लिए साफ हलका गरम पानी दिया जाना चाहिए. साथ ही, कम से कम 100 ग्राम अच्छी क्वालिटी का विटामिन मिनरल मिक्सचर भी दिया जाना चाहिए. इसे देने से गाय को जेर गिराने में मदद मिलेगी.

अगर 12 से 24 घंटों के अंदर भी जेर नहीं डाली जाती है, तो उसे कोई भी यूटराइन टौनिक देना है जैसे यूटरोटोन या फिर यूटरोलीन या कोई भी ऐसा यूटराइन टौनिक, जो लोकल लैवल पर मिलता हो. इस की 100 से 125 मिलीलिटर दवा दिन में 2 बार देनी है, 4 से 5 दिन तक. जेर तो पहले ही गिर जाएगी, मगर फिर भी इस दवा को देते रहना है. इन सभी यूटराइन टौनिकों में कुछ जड़ीबूटियों के साथ कुछ मिनरल भी होते हैं जो जेर गिरने में मददगार होते हैं.

36 घंटों के बाद भी जेर न गिरे, तो पशुचिकित्सक से संपर्क कीजिए.
आप की गाय ने बच्चा भी दे दिया. बच्चा सेहतमंद भी है. आप ने उसे समय से खीस भी पिलवा दिया. मगर आप की गाय ने जेर 12 से 24 घंटे बीत जाने पर भी नहीं डाली थी. सोचने की बात यह है कि ऐसे हालात आए ही क्यों?जेर रुकने की कई वजहें हो सकती हैं, जैसे :
* गाय की उम्र ज्यादा होने पर यह समस्या आ सकती है.
* गाय की सेहत अच्छी न होने पर ऐसा हो सकता है.
* गाय अगर ब्रूसेलोसिस बीमारी से पीडि़त है, तो जेर रुक सकती है.
* गाय को कोई अंदरूनी इंफैक्शन है, तो भी ऐसा हो सकता है.
* गर्भाशय की मांसपेशियां अगर ठीक से काम नहीं कर रही हैं, तो भी यह समस्या आ सकती है.
अब चर्चा करते हैं कि यह समस्या आई ही क्यों? क्या इसे रोका जा सकता था?
यह समस्या आई है गर्भावस्था के दौरान गाय के पोषण पर ध्यान न देने के चलते.
गर्भावस्था के दौरान गाय को संतुलित पोषण मुहैया करवाने पर यह समस्या आने की संभावना बहुत कम हो जाती है. संतुलित पोषण से मतलब है पूरी मात्रा में हरा चारा, भूसा और रातिब मिश्रण.
गर्भावस्था का 7वां, 8वां और 9वां महीना बहुत अहम होता है. इस दौरान संतुलित पोषण, पीने के लिए साफ पानी और साफसुथरा पशु बाड़ा होने पर जेर रुकने की समस्या बहुत कम हो जाती है.वे पोषक तत्त्व, जिन की कमी से जेर रुकने की समस्या बढ़ जाती है.
ऊर्जा : गर्भावस्था के दौरान गाय के खानपान में ऊर्जा की मात्रा कम होने पर यह समस्या आएगी, इसलिए आखिरी 4 हफ्ते में राशन में ऊर्जा की मात्रा बढ़ानी होगी. ऊर्जा की मात्रा बढ़ाने के लिए गाय को अतिरिक्त अनाज और अतिरिक्त गुड़ दिया जा सकता है.
प्रोटीन : गर्भावस्था के दौरान अगर गाय के आहार में प्रोटीन की कमी होगी, तो यह समस्या ज्यादा आएगी, इसलिए 6 महीने के बाद गाय का खास ध्यान रखना है.
कैल्शियम और फास्फोरस :गर्भावस्था के दौरान गाय के राशन में कैल्शियम और फास्फोरस की कमी होने पर भी यह समस्या पैदा होगी.
विटामिन डी : गर्भावस्था के दौरान गाय को धूप न मिलने या अंधेरे कमरे में ही बांधे रखने से भी विटामिन डी की कमी हो जाएगी. इस के चलते कैल्शियम का सही इस्तेमाल नहीं हो पाएगा और नतीजा होगा जेर रुकने की समस्या.
विटामिन ई : गर्भावस्था के दौरान गाय के राशन में विटामिन ई की कमी होने पर भी यह समस्या आएगी.
सेलेनियम : गर्भावस्था के दौरान सेलेनियम की कमी होने पर भी जेर रुकने की समस्या पैदा होगी.
विटामिन ए : गर्भावस्था के दौरान विटामिन ए की कमी होने पर भी जेर रुक सकती है.
इन सभी पोषक तत्त्वों को सप्लाई करने का सब से बेहतरीन जरीया है हरा चारा, इसलिए गर्भावस्था के दौरान गाय को हरा चारा जरूर दें. इस के अलावा रातिब मिश्रण बनाते समय उस में 2 फीसदी विटामिन खनिज मिश्रण मिलाने पर बताए गए सभी खनिज और विटामिनों की कमी नहीं रहेगी.

प्रोत्साहन की मोहताज अंतर्भाषीय शादियाँ

70 – 80 के दशक के मशहूर अमेरिकी मनोविज्ञानी और लेखक जेम्स सी . डॉबसन के इस विचार को समझना उतना ही मुश्किल या आसान है जितना कि प्यार को समझना होता है . कोई इसकी गहराई या उंचाई नहीं नाप सकता यहाँ तक कि वे भी जो प्यार में पड़े होते हैं . ताजा और चर्चित उदाहरण सुप्रीम कोर्ट के नामी और वरिष्ठ अधिवक्ता 65 वर्षीय हरीश साल्वे का है जिन्होंने लन्दन की 56 वर्षीय आर्टिस्ट केरोलिन ब्रासर्ड से एक चर्च में 28 अक्तूबर को शादी कर ली यह घोषणा उन्होंने अपने फैसले के पहले 26 अक्तूबर को ही कर दी थी  . दोनों की ही  यह दूसरी शादी है .

यह शादी नैतिकता और संस्कृति के ठेकेदारों को कई वजहों के चलते इतनी नहीं चुभ रही कि वे सार्वजानिक रूप से या फिर आदत के मुताबिक सोशल मीडिया पर साजिशाना मुहिम चलाकर हरीश साल्वे को बेइज्जत करें बाबजूद यह जानने के कि हरीश साल्वे ने अंग्रेजी भाषी केरोलिन और उनके प्यार के लिए ईसाई धर्म अपना लिया है  . इस पर भी नीम चढ़े करेले सी बात यह कि उनके पिता पूर्व केन्द्रीय मंत्री और बीसीसीआई के अध्यक्ष रह चुके  एनकेपी साल्वे का नाम अपने दौर के दिग्गज कांग्रेसी नेताओं में शुमार किया जाता था . ठेकेदारों की नाक भों इस पर  भी नहीं चढ़ी कि उन्होंने कुछ दिन पहले ही अपनी पत्नी मीनाक्षी को तलाक दिया है और उनकी दो बेटियां भी हैं . देश के पूर्व सालिस्टर रह चुके इस कानूनविद ने कई अहम् और चर्चित मुक़दमे लड़ें हैं कई नामी कम्पनियों के अलावा उनके मुवक्किलों की लिस्ट में  मुकेश अंबानी रतन टाटा और अभिनेता दिलीप कुमार व  सलमान खान तक के नाम शामिल हैं .

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वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की अधेड़ उम्र में ही दूसरी शादी पर उनकी जमकर खिल्ली उड़ाने बाली भगवा गेंग  हरीश साल्वे की दूसरी बेमेल शादी पर खामोश इसलिए है कि वे पिछले पांच साल से आरएसएस और भाजपा के हर सही और गलत से सहमत होने लगे हैं .एक न्यूज़ चेनल जो गोदी मीडिया की रेंकिंग में जरुर टॉप पर है के गला फाडू एक एंकर का मुकदमा लड़ते हरीश साल्वे ने अपने पिता के कांग्रेसी संस्कारों का श्राद्ध करते कहा था कि कांग्रेस के इशारे पर उसे और चेनल की एडिटोरियल टीम को परेशान किया जा रहा है और अभिनेता सुशांत सिंह के आत्महत्या मामले की भी सीबीआई जाँच होना चाहिए . प्रेस की स्वंत्रता और मुंबई पुलिस की भूमिका पर भी उन्होंने सवाल उठाये थे लेकिन अहम् बात हरीश साल्वे जैसे बुद्धजीवी तार्किक और अभिजात्य लोगों का उन लोगों के सामने दंडवत होते जाना है जिनका घोषित एजेंडा ही जन्म से लेकर मृत्यु तक धर्म और जाति की विभिन्नता को बढ़ाते रहना है .

धर्म , जाति , सरहद , अमीरी गरीबी , भाषा रंग रूप और दूसरे तमाम नैतिक ,सामाजिक और सांस्कृतिक पैमानों से परे देखें तो हरीश साल्वे ने कोई गुनाह नही किया है बल्कि अपने दिल की बात सुनी है . यानी बकौल जेम्स सी डॉबसन वे अब केरोलिन के बिना रह पाने में खुद को असमर्थ पा  रहे हैं  . भाषा या संवाद इस मामले में कोई बडी समस्या नहीं है .  केरोलिन भले ही हिंदी न बोल पाती हों पर हरीश की फर्राटेदार अंग्रेजी किसी सबूत की मोहताज नहीं .

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भाषा कोई अडंगा भी नहीं –

हम एक ऐसे देश में रहते हैं जहाँ अंतर्धर्मीय अंतर्भाषीय और अंतरजातीय शादियों पर लठ चल जाना आम बात है फिर ऐसी शादियों को कोई किसी भी तरह की मान्यता देगा यह सोचना ही बेमानी है . जाहिर है कोई इन्हें प्रोत्साहन नहीं देना चाहता क्योंकि इनसे धर्म और पंडों की दुकान खतरे में पड़ती है . इसके बाद भी ऐसी शादियाँ होती हैं लेकिन प्रोत्साहन के अभाव में उम्मीद के मुताबिक नहीं होतीं .

यह बात किसी को भी सोचने में अटपटी लग सकती है कि गैर धर्म और जाति में शादी की बात तो एक दफा सुनने समझने में आ जाती है लेकिन जो आप की भाषा ही न समझता हो उससे शादी कैसे हो सकती है . इस गुत्थी को समझने से पहले एक बहुत छोटी लेकिन अहम् बात यह समझ लेना जरुरी है कि जो आपकी भाषा ही न समझे वो एक बार आपके धर्म का तो हो सकता है लेकिन जाति का नहीं . कई बार तो जाति और धर्म दोनों का हो यह भी जरुरी नहीं .

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जाहिर है अंतर्भाषीय शादियाँ लव मेरिज ही होती हैं ,  अरेंज तो किसी भी कीमत पर नहीं होतीं . इन्हें प्रोत्साहन देना एक तरह से अंतर्धर्मीय और अंतरजातीय शादियों को बढ़ावा देना होगा . बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी की शादी की बात भी उछली  क्योंकि उनकी पत्नी जेसी जार्ज केरल मूल की हैं और रोमन केथोलिक ईसाई हैं जो शादी के वक्त यानी 1987 में भोजपुरी तो दूर की बात है हिंदी भी नहीं बोल पाती थीं . अब थोडा बहुत बोलने समझने लगी हों तो पता नहीं क्योंकि वे जानबूझकर सार्वजानिक आयोजनों से आमतौर से परहेज ही करती हैं .  शायद इसकी वजह यह भी है कि इससे बड़े पैमाने पर सुशील मोदी की हिंदूवादी छवि पर सवाल उठेंगे.

राजनीति से परे देखें तो जेसी और सुशील की पटरी बढ़िया बैठ रही है उनके दो बेटे भी हैं लेकिन अभी तक राजनीति में कोई नहीं आया है .  तय है राहुल गाँधी के धर्म और सोनिया गाँधी के हिंदी बोलने घटिया छींटाकाशी जो लोग करते हैं उनके विरोधी हिन्दू –  ईसाई इस कपल की संतानों को बख्शते नहीं कि तुम कौन से दूध के धुले हो जो ताने सोनिया राहुल पर कसते रहते हो .

पटना के एक संपन्न मारवाड़ी परिवार के सुशील मोदी की शादी का जिक्र इसलिए भी प्रासंगिक है कि वे छात्र जीवन से ही अखिल भारतीय विद्ध्यार्थी परिषद् और आरएसएस से जुड़े रहे हैं लेकिन जब उन्होंने जेसी से शादी की इच्छा जाहिर की तो परिवार सहित पूरा समाज और भगवा खेमा उनसे नाराज हो गया था और कई दिग्गज संघियों और भाजपाइयों के मनाने पर भी वे नहीं माने थे तो सभी ने एकजुट होते उनकी शादी का बहिष्कार कर दिया था जिससे यह संदेशा न जाए कि भगवा खेमा अंतर्धर्मीय , अंतरजातीय और अन्तरभाषीय शादियों से इत्तफाक रखता है हाँ असहमत रहता है यह जरुर लोगों को समझ आ गया था .

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अस्सी के दशक में बुद्धिजीवी और मुख्यधारा से जुड़ते लोग इस तरह की शादियों का स्वागत कर रहे थे ऐसे में भगवा खेमे ने कोई आदर्श नहीं गढ़ा था .  यह बहिष्कार सुशील मोदी के लिए किसी झटके और सदमे से कम नहीं था इसलिए जिन्दगी भर राम राम करते और भजते रहने बाले इस नेता ने राजनीति से तौबा कर कंप्यूटर की दुकान खोल ली थी लेकिन भाजपा उनकी मोहताज थी इसलिए 1990 के विधानसभा चुनाव में उन्हें टिकिट दिया गया और वे जीते भी . अटल बिहारी बाजपेयी इकलौते बड़े नेता थे जो उनकी शादी में शामिल हुए थे और वक्त की नजाकत भांपते उन्होंने मंडप को ही मंच बनाते इस तरह की शादियों के समर्थन में जोरदार भाषण दे डाला था .

एक दूजे के लिए

सुशील मोदी और जेसी जार्ज ने तमाम विरोधों और बहिष्कारों को झेलते साबित कर दिखाया कि प्यार आख़िरकार प्यार होता है उसे कोई परिवार , समाज , संघ या संगठन रोक नहीं सकता गलत नहीं कहा जाता कि वह धर्म जाति उम्र और भाषा के बंधन स्वीकार नहीं करता . कई मामलों से तो यह भी उजागर होता है कि खासतौर से भाषा कोई बड़ा रोड़ा प्यार के रास्ते में नहीं होती .रोड़ा तो उनके अपने बाले ही होते हैं .  भोपाल के पाश इलाके अरेरा कालोनी  के एक संभ्रांत कायस्थ परिवार के युवा अवनीश को एक नर्स से प्यार हो गया जो उसी इलाके के एक नर्सिंग होम में काम करती थी . यह नर्स कामचलाऊ टूटी फूटी हिंदी बोल पाती थी .

मामला उजागर होने पर अवनीश के घर बालों ने उसे समझाया धर्म , खानपान और भाषा बगैरह की दुहाई दी लेकिन अवनीश नहीं माना तो उसे घर , रिश्तेदारी और समाज से बेदखल करने की धमकी दी .  इस पर भी बात नहीं बनी तो उसकी प्रेमिका को धौंस धपट दी गई और फिर अवनीश के भविष्य की दुहाई देते मिन्नतें की गईं तो वह प्यार की खातिर पिघल उठी और एक दिन फ़िल्मी स्टाइल में अवनीश की जिन्दगी और शहर से हमेशा के लिए चली गई . अवनीश कहता है , मैं केरल में उसके गाँव तक गया लेकिन वह नहीं मिली फिर मैंने उसका 5 साल इंतजार किया लेकिन कोई खोज खबर नहीं मिली तो उसकी आखिरी चिट्ठी की हिदायत के मुताबिक घर बालों की पसंद की लड़की से शादी कर ली .

मम्मी पापा को खूब दहेज़ मिला लेकिन जिस शर्त पर मिला उसकी कीमत मैं शायद जिन्दगी भर किश्तों में चुकाता रहूँगा , अवनीश कहता है शादी को 15  साल हो गए हैं पत्नी से मुझे कोई शिकायत नही , शिकायत है तो अपने मम्मी पापा और नजदीकी रिश्तेदारों से , जिन्दगी भर के गम का इंतजाम अपनों ने ही कर दिया है . जबकि मेरी प्रेमिका मांसाहार छोड़ने भी तैयार थी और हिंदी सीखने भी . अब मुझे समझ आता है कि उसका गुनाह हिंदी न जानना नहीं बल्कि 3 हजार रु महीने की सेलरी बाली मामूली गरीब नर्स होना था अगर वह 30 हजार रु महीने की सेलरी बाली डाक्टर होती तो ये लोग उदारता दिखाते गाजे बाजे के साथ बहू बनाकर घर ले आते .

क्या वाकई भाषा शादी में बहुत बडी समस्या है इस सवाल का जबाब न में ही निकलता और मिलता है क्योंकि प्यार की अपनी अलग भाषा होती है और इसी भाषा को हथियार बनाते परम्परावादी अपनी मनमानी करते युवाओं के दिल और अरमान तोड़ते आए हैं .  इस हकीकत को साल 1981 में निर्देशक के बालाचंदर ने अपनी फिल्म एक दूजे के लिए में निहायत खूबसूरती से उकेरा था .  गोवा में रहने बाले तमिल मूल के युवक वासु को ब्राह्मण परिवार की युवती सपना से प्यार हो जाता है और इतना हो जाता है कि वे एक दूसरे के बगैर रहने की सोच भी नहीं पाते .

लेकिन जब शादी की जिद पर अड़ जाते हैं तो दोनों के घर बाले जो पूरी फिल्म में खानपान , रीति रिवाज और भाषा को लेकर लड़ते रहते हैं उन्हें जुदा करने की साजिश मिलकर रचते हैं  वासु के सामने हिंदी सीखने और सपना से एक साल अलग रहने की शर्त रखी जाती है जिसे मानने के अलावा उसके पास कोई रास्ता नहीं बचता . हेदराबाद में रहते वह हिंदी सीखता है और जब वापस आता है तो सब कुछ लुट पिट चुका होता है और दोनों अगले जन्म में मिलने का वादा करते एक साथ आत्महत्या कर लेते हैं .

बिलाशक फिल्म अच्छी थी जिसमें पहली बार प्यार में भाषा के मुद्दे को इतनी खूबसूरती के साथ उठाया और दिखाया गया था कि इसने बोक्स ऑफिस पर हाहाकार मचा दिया था जबकि तब कोई वासु यानि कमलहासन और सपना की भूमिका निभाने बाली रति अग्निहोत्री जानता भी नहीं था , दर्शकों ने जाना था तो प्यार और सिर्फ प्यार को .  लेकिन इस फिल्म का अंत हताशा भरा था अगर बालाचंदर इन दोनों को परिवार और समाज से जीतते दिखाते तो यह अंतर्भाषीय शादियों को एक बड़ा प्रोत्साहन साबित होता .

यहाँ जीत क्यों –

सपना और वासु अभी भी लोगों के जेहन में हैं तो सिर्फ भाषा के चलते जिसे कम से कम वे तो प्यार में कोई बाधा नहीं मानते थे . अब देश भर से कुछेक मामले ऐसे सामने आने लगे हैं जिनमे एक पक्ष विदेशी होता है और हिंदी नहीं जानता फिर भी उनकी शादी हो जाती है .बीती 22 अक्तूबर को जयपुर के त्रिपोलिया बाजार के एक हार्डवेयर की दुकान में काम करने बाले राकेश कुमार की शादी रूस की एलीना से हुई जो पेशे से प्रोफेसर है .  इसी तरह जयपुर के ही एक और युवक अनिरुद्ध से ब्राजील की इजा डोरा ने शादी की . ये दोनों ही हिंदी नहीं जानतीं लेकिन इसका किसी को कोई मलाल या एतराज नहीं उलटे अनिरुद्ध की बहिन निकेश राठौर कहती हैं कि उसकी भाभी यानी इजा जल्द ही हिंदी सीख लेगी .

बिलाशक इन बंधन और वर्जना मुक्त शादियों का स्वागत किया जाना चाहिए जिनमे एक पक्ष विदेशी होता है ऐसी शादियाँ खासतौर से खजुराहो , जयपुर , आगरा और वाराणसी जैसे विश्व प्रसिद्द पर्यटन स्थलों में होने लगी हैं इनमे धर्म और भाषा आड़े नहीं आते और हर कोई सात समुन्दर पार के दूल्हे और दुल्हन को ख़ुशी ख़ुशी स्वीकार लेता है . कोर्ट से पहले ये शादियाँ वैदिक रीति रिवाजों से होती हैं जिनमे पंडो को खूब दक्षिणा मिलती है .

लेकिन यह उदारता उस वक्त छू हो जाती है जब दोनों में से एक पक्ष अपने ही देश के अलग अलग रीति रिवाजों और अलग भाषा बाला हो . कभी ऐसी शादी सुनने में नहीं आती कि कानपुर के युवक  ने वारंगल की युवती से शादी की या राजस्थान के युवा से चेन्नई की युवती ने शादी की और दुल्हन की ननद ने बताया कि उसकी  दक्षिण भारतीय सांवली भाभी जल्द ही हिंदी सीख लेगी और हम उसे खूब प्यार देंगे . सोचना लाजिमी है कि भोपाल के अविनाश के घर बालों ने यह क्यों नहीं सोचा और कहा .

जिस तरह विदेशियों से शादी गलत न होते हुए भी एक तरह का पूर्वाग्रह है ठीक उसी तरह अपने ही देश के किसी अन्य राज्य जिसकी भाषा अलग हो में शादी न करना भी किसी पूर्वाग्रह से कम नहीं .

दरअसल में भाषा के मामले में भी हम भारतीय धर्म और जाति की तर्ज पर बंटे हुए और संकुचित मानसिकता के शिकार हैं . हिदी भाषी राज्यों में दक्षिणी राज्यों के लोगों को तिरिस्कार पूर्वक अन्ना और डोसा इडली कहा जाता है तो दक्षिणी राज्यों में भी उत्तर भारतीय गंवार , भैये और दूसरे देश के करार दिए जाकर अपमानजनक संबोधनों से नवाजे जाते हैं . यह एक भारी विसंगति है जिसे अंतर्भाषीय शादियों को प्रोत्साहन देकर ही दूर किया जा सकता है . लेकिन यह प्रोत्साहन हरीश साल्वे और सुशील मोदी जैसी हस्तियों को नहीं मिलता तो आम लोगों की विसात क्या .

दरअसल में बहुत तेजी से षड्यंत्रपूर्वक धर्म और जातपात की लकीरों को भगवा गेंग हर स्तर पर गाढ़ा कर रही है .  बिहार चुनाव प्रचार के दौरान जब आरजेडी के तेजस्वी यादव ने कहा था कि लालू राज में गरीब भी बाबू साहबों के सामने सीना चौड़ा करके चलते थे तो नीतीश कुमार और सुशील मोदी ने इसे तुरंत राजपूतों की शान से जोड़ दिया था ठीक ऐसा ही शादियों के मामले में भी वे करते रहते हैं जिससे भेदभाव और बढ़े .

मौजूदा दौर में अपनी भाषा जाति और धर्म में जो अरेंज शादियाँ हो रही हैं उनमें कलह विवाद और पति पत्नी के बीच घुटन ज्यादा है . शादियों का मकसद सिर्फ वंश वृद्धि और परम्पराएँ बनाये रखना और पाखंड ढोते न होकर एक सुखी जीवन ज्यादा होना चाहिए और इसके लिए जरुरी है कि हम 70 के दशक की मशहूर अमेरिकी लेखिका नोबल पुरुस्कार विजेता पर्ल एस बक का यह कोटेशन याद रखें –

एक अच्छा विवाह वह है जो लोगों में परिवर्तन लाने और उन्नति करने का अवसर देता है और वो भी उस तरीके से जिसमें वे अपने प्रेम को व्यक्त कर सकें .  

हिंदुस्तानी भाऊ की मां का निधन, शेयर किया इमोशनल मैसेज

हिंदुस्तानी भाऊ आएं दिन सोशल मीडिया पर अपने ट्रोलिंग वीडियो को लेकर छाए रहते हैं. हाल ही में हिंदुस्तानी भाऊ की मां का निधन हो गया है. लंबे वक्त से वह बीमार चल रही थी. हिंदुस्तानी भाऊ का असली नाम विकास पाठक है.

वो बिग बॉस 13 में कंटटेस्टेंट के रूप में नजर आ चुके हैं. कुछ दिन पहले हिंदुस्ती भाऊ ने अपनी बीमार मां की तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर की थी. जिसमें उन्होंने लोगों से दुआ मांगने की अपील की थी. जिसके बाद फैंस उनकी मां के लिए लगातार दुआएं मांग रहे थें.

 

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अपनी मां के खराब स्वास्थ्य की जानकारी हिंदुस्तानी भाऊ ने खुद दी थी. फोटो में हिन्दुस्तानी भाऊ अपनी मां का माथा चूमते नजर आ रहे थें. फोटो से साफ पता चल रहा था कि उनकी मां की हालत बहुत ज्यादा गंभीर है. उन्होंने फोटो के साथ कैप्शन लिखा था कि प्लीज मेरी मां लिए दुआ करें.

बता दें कि विकास एक यूट्यूबर है वह देश के मुद्दे के साथ- साथ पाकिस्तान को भी खूब लताड़ते हैं. विकास आएं दिन अपनी अभद्र भाषा का प्रयोग करते नजर आते हैं. साथ ही सोशल मीडिया पर गाली देते हुए भी नजर आते हैं.

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कुछ दिन पहले ही एकता कपूर के खिलाफ भी सवाल खड़े किए थें. उन्हें कहा था कि एकता कपूर ने अपनी वेब सीरीज में हिन्दुस्तानी सेना का अपमान किया है. इसके बाद एक वीडियो सामने आया था जिसमें वह एकता कपूर को लेकर अभद्र भाषा का प्रयोग कर रहे थें.

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इसके अलावा भी कई ऐसे वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर शेयर किया है जिसे देखने के बाद लोगों ने हिन्दुस्तानी भाऊ को सपोर्ट किया है. हुन्दुवादी नेता उन्हें सपोर्ट करते नजर आते हैं.

निकिता तोमर केस: कंगना ने निकिता को बताया झांसी की रानी, सरकार से की ब्रेवरी अवार्ड की मांग

कंगना रनौत हर वक्त अपने बेबाक अंदाज के लिए जानी जाती है. आए दिन कुछ न कुछ कंगना ऐसा कह देती हैं. जो सुर्खियों में आ ही जाता है. बीते दिन हरियाणा में हुई निकिता मर्डर पर भी कंगना ने अपना बयान दिया है जो सुर्खियों में आ गया है.

कंगना ने निकिता की तुलना रानीलक्ष्मीबाई और रानी पद्मावती से कर दी है. मंगलवार को कंगना ने दो ट्विट किए औऱ कहा कि निकिता की बहादुरी रानी लक्ष्मीबाई और पद्मावती से कम नहीं है.

आगे कंगाना ने कहा कि जिहादी के ऊपर खून सवार था इसलिए उसने निकिता के साथ ऐसा किया जिहादी चाहता था कि निकिता का धर्म परिवर्नत करके उसे अपने साथ ले जाएं लेकिन निकिता ने अपी नारी होने की पहचान दिखाई. निकिता एक मिसाल पेश करके गई है हर हिंदू महिला के लिए.

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यहीं नहीं कंगना ने अपने अगले ट्विट में सरकार से ब्रेवरी अवार्ड की मांग कर दी. कंगना  ने कहा देवी निकिता ने जो किया वो जौहर से कम नहीं है. मैं भारत सरकार से अपील करती हूं कि देवी  नीरजा की तरह देवी निकिता को भी ब्रेवरी से सुसज्जित किया जाए.

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इसके ट्विट के बार फैंस लगातार कंगना के ट्विट पर रिप्लाई करना शुरू कर दिए जिसके बाजद कुछ ने तो कंगना के सपोर्ट में ट्विट किया तो वहीं कुछ लोगों ने कंगना के खिलाफ जाकर ट्विट किया.

दरअसल, पूरा मामला हरियाणा के वल्लभगढ़ का है जहां निकिता नाम कि लड़की जो बीकॉम फाइनल इयर कि छात्रा थी. उसे दिनदहाडे गोली मारकर हत्या कर दी गई है.

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आरोपी का कहना था कि लड़की की शादी कहीं और हो रही थी और वह लड़की से बहुत ज्यादा प्यार करता था इसलिए उसने ऐसा किया. वहीं लड़की के परिवार वालों ने इसे लव जिहाद का नाम दिया है.

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