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सर्दी में गन्ने की खेती

 लेखक-राकेश सिंह सेंगर, आलोक कुमार सिंह

विषम परिस्थितियां भी गन्ना की फसल को बहुत अधिक प्रभावित नहीं कर पाती हैं. इन्हीं विशेष कारणों से गन्ना की खेती अपनेआप में सुरक्षित व लाभ देने वाली है.गन्ना फसल उत्पादन कीप्रमुख समस्याएंअनुशंसित जातियों का उपयोग न करना व पुरानी जातियों पर निर्भर रहना. रोगरोधी उपयुक्त किस्मों की उन्नत बीजों की अनुपलब्धता. बीजोत्पादन कार्यक्रम का अभाव. बीज उपचार न करने से बीजजनित व रोगों कीड़ों का प्रकोप अधिक और एकीकृत पौध संरक्षण उपायों को न अपनाना. कतार से कतार कम दूरी व अंतरर्वतीय फसलें न लेने से प्रति हेक्टेयर है. उपज व आय में कमी.

पोषक तत्त्वों का संतुलित और एकीकृत प्रबंधन न किया जाना. साथ ही, उचित जल निकासी व सिंचाई प्रबंधन का अभाव. उचित जड़ प्रबंधन का अभाव. गन्ना फसल के लिए उपयोगी कृषि यंत्रों का अभाव, जिस के कारण श्रम लागत अधिक होना वगैरह.गन्ना फसल ही क्यों चुनें?गन्ना एक प्रमुख बहुवर्षीय फसल है. अच्छे प्रबंधन से साल दर साल 1,50,000 रुपए प्रति हेक्टेयर से अधिक मुनाफा कमाया जा सकता?है. प्रचलित फसल चक्रों जैसे मक्कागेहूं या धानगेहूं, सोयाबीनगेहूं की तुलना में अधिक लाभ प्राप्त होता है यह निम्नतम जोखिम भरी फसल है, जिस पर रोग व कीट ग्रस्त व विपरीत परिस्थितियों का अपेक्षाकृत कम असर होता है. गन्ना के साथ अंतरर्वतीय फसल लगा कर 3-4 माह में ही प्रारंभिक लागत हासिल की जा सकती है.

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गन्ने की किसी भी अन्य फसल से प्रतिस्पर्धा नहीं है. सालभर उपलब्ध साधनों व मजदूरों का सदुपयोग होता है. उपयुक्त भूमि, मौसम औरखेत की तैयारीउपयुक्त भूमि : गन्ने की खेती मध्यम से भारी काली मिट्टी में की जा सकती है. दोमट भूमि, जिस में सिंचाई की उचित व्यवस्था व जल निकास का अच्छा इंतजाम हो और पीएच मान 6.5 से 7.5 के बीच हो, गन्ने के लिए सर्वोत्तम होती है. उपयुक्त मौसम होने पर गन्ने की बोआई वर्ष में 2 बार की जा सकती है.शरदकालीन बोआई : इस में अक्तूबरनवंबर माह में फसल की बोआई करते हैं और फसल 10-14 माह में तैयार होती है. बसंतकालीन बोआई : इस में फरवरी से मार्च माह तक फसल की बोआई करते हैं. इस में फसल 10 से 12 माह में तैयार होती है. नोट : शरदकालीन गन्ना, बसंत में बोए गए गन्ने से 25-30 फीसदी व ग्रीष्मकालीन गन्ने से 30-40 फीसदी अधिक पैदावार देता है.खेत की तैयारीग्रीष्मकाल में 15 अप्रैल से 15 मई के पहले खेत की एक गहरी जुताई करें.

इस के बाद 2 से 3 बार देशी हल या कल्टीवेटर से जुताई कर के व रोटावेटर व पाटा चला कर खेत को भुरभुरा, समतल व खरपतवाररहित कर लें. रिजर की मदद से 3 फुट से 4.5 फुट की दूरी में 20-25 सैंटीमीटर गहरी कूंड़े बनाएं. सही किस्म के बीज का चयन व तैयारी :  गन्ने के सारे रोगों की जड़ अस्वस्थ बीज का उपयोग ही हैं. गन्ने की फसल उगाने के लिए पूरा तना न बो कर इस के 2 या 3 आंख के टुकड़े काट कर उपयोग में लाएं. गन्ने के ऊपरी भाग का अंकुरण 100 फीसदी, बीच  में 40 फीसदी और निचले भाग में केवल  19 फीसदी ही होता है. 2 आंख वाला टुकड़ा सर्वोत्तम रहता है.गन्ना बीज का चुनाव करतेसमय सावधानियां * उन्नत जाति के स्वस्थ, निरोग, शुद्ध बीज का ही चयन करें.* गन्ना बीज की उम्र लगभग 8 माह  या कम हो, तो अंकुरण अच्छा होता है.

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बीज ऐसे खेत से लें, जिस में रोग व कीट  का प्रकोप न हो और जिस में खादपानी समुचित मात्रा में दिया जाता रहा हो.* जहां तक हो, नरम, गरम हवा उपचारित (54 सैंटीग्रेड व 85 फीसदी आर्द्रता पर 4 घंटे) या टिश्यू कल्चर से उत्पादित बीज का ही चयन करें.* हर 4-5 साल बाद बीज बदल दें, क्योंकि समय के साथ रोग व कीट ग्रस्तता में वृद्धि होती जाती है.* बीज काटने के बाद कम से कम समय में बोनी कर दें.गन्ने की उन्नत जातियांको. 05011 (कर्ण-9), को. से. 11453, को. षा. 12232, को. षा. 08276, यू. पी. 05125, को. 0238 (कर्ण-4), को. 0118 (कर्ण-2), को. से. 98231, को. शा. 08279, को. शा. 07250, को. शा. 8432, को. शा. 96269 (शाहजहां), को. शा. 96275 (स्वीटी). ये प्रजातियां उत्तर प्रदेश के लिए सिफारिश की गई हैं.

गन्ना बोआई का समयअक्तूबरनवंबर ही क्यों चुनें* फसल में अग्रवेधक कीट का प्रकोप नहीं होता.* फसल वृद्धि के लिए अधिक समय मिलने के साथ ही अंतरर्वतीय फसलों की भरपूर संभावना.* अंकुरण अच्छा होने से बीज कम लगता है व कल्ले अधिक फूटते हैं.* अच्छी बढ़वार के कारण खरपतवार कम होते हैं.* सिंचाई जल की कमी की दशा में देर से बोई गई फसल की तुलना में नुकसान कम होता है.* फसल के जल्दी पकाव पर आने से कारखाने जल्दी पिराई शुरू कर सकते हैं.* जड़ फसल भी काफी अच्छी होती है.* बीज की मात्रा-75-80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर. 2 आंख वाले टुकड़े लगेंगे.बीजोपचारबीजजनित रोग व कीट नियंत्रण के लिए कार्बंडाजिम 2 ग्राम लिटर पानी व क्लोरोपायरीफास 5 मिलीलिटर प्रति लिटर की दर से घोल बना कर आवश्यक बीज का 15 से 20 मिनट तक उपचार करें.खाद और उर्वरकफसल पकने की अवधि लंबी होने कारण खाद व उर्वरक की आवश्यकता भी अधिक होती है, इसलिए खेती की अंतिम जुताई से पहले 20 टन सड़ी गोबर या कंपोस्ट खाद खेत में समान रूप से मिलानी चाहिए.

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इस के अलावा 180 किलोग्राम नाइट्रोजन (323 किलोग्राम यूरिया), 80 किलोग्राम फास्फोरस (123 किलोग्राम डीएपी) व 60 किलोग्राम पोटाश (100 किलोग्राम म्यूरेट औफ पोटाश) प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए. फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा बोआई के समय प्रयोग करें और नाइट्रोजन की मात्रा को इस तरह प्रयोग करें :शरदकालीन गन्नाशरदकालीन गन्ने में नाइट्रोजन की कुल मात्रा को 4 समान भागों में बांट कर बोनी के क्रमश: 30, 90, 120 व 150 दिनों में प्रयोग करें.बसंतकालीन गन्नाबसंतकालीन गन्ने में नाइट्रोजन की कुल मात्रा को 3 समान भागों में बांट कर बोनी क्रमश: 30, 90 व 120 दिन में प्रयोग करें.नाइट्रोजन उर्वरक के साथ नीमखली के चूर्ण में मिला कर प्रयोग करने में नाइट्रोजन उर्वरक की उपयोगिता बढ़ती है. साथ ही, दीमक से भी सुरक्षा मिलती है. 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट व 50 किलोग्राम फेरस सल्फेट 3 साल के अंतराल में जिंक व आयरन सूक्षम तत्त्व की पूर्ति के लिए आधार खाद के रूप में बोआई के समय उपयोग करें.कुछ खास सुझावमृदा परीक्षण के आधार पर ही आवश्यक तत्त्वों की आपूर्ति करें. स्फुर तत्त्व की पूर्ति सगिल सु.फा.फे. उर्वरक के द्वारा करने पर 12 फीसदी गंधक तत्त्व (60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) अपनेआप उपलब्ध हो जाता है.

जैव उर्वरकों की अनुशंसित मात्रा को  150 किलोग्राम वर्मी कंपोस्ट या गोबर खाद के साथ मिश्रित कर 1-2 दिन नम कर बोआई से पहले कूंड़ों में या पहली मिट्टी चढ़ाने के पहले उपयोग करें. जैव उर्वरकों के उपयोग से  20 फीसदी नाइट्रोजन व 25 फीसदी स्फुर तत्त्व की आपूर्ति होने के कारण रासायनिक उर्वरकों के उपयोग में उस के मुताबिक कटौती करें. जैविक खादों की अनुशंसित मात्रा उपयोग करने पर नाइट्रोजन की 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रासायनिक तत्त्व के रूप में कटौती करें.जल प्रबंधनसिंचाई व जल निकास गरमी के दिनों में भारी मिट्टी वाले खेतों में 8-10 दिन के अंतर पर व ठंड के दिनों में 15 दिनों के अंतर से करें. हलकी मिट्टी वाले खेतों में 5-7 दिनों के अंतर से गरमी के दिनों में व 10 दिन के अंतर से ठंड के दिनों में सिंचाई करनी चाहिए. सिंचाई की मात्रा कम करने के लिए गरेड़ों में गन्ने की सूखी पत्तियों की पलवार की  10-15 सैंटीमीटर तह बिछाएं. गरमी में पानी की मात्रा कम होने पर एक गरेड़ छोड़ कर सिंचाई दे कर फसल बचाएं.     कम पानी उपलब्ध होने पर ड्रिप (टपक विधि) से सिंचाई करने से भी 60 फीसदी पानी की बचत होती है. गरमी में सिंचाई करने से भी 60 फीसदी पानी की बचत होती है. गरमी के मौसम मैं जब फसल 5-6 महीने तक की होती है, स्प्रिंकलर (फव्वारा) विधि से सिंचाई कर के 40 फीसदी पानी की बचत की जा सकती है. वर्षा के मौसम में खेत में उचित जल निकास का प्रबंध रखें. खेत में पानी के जमाव होने से गन्ने की बढ़वार व रस की गुणवत्ता प्रभावित होती है.खाली स्थानों की पूर्तिकभीकभी पंक्तियों में कई जगहों पर बीज अंकुरित नहीं हो पाता है, इस बात को ध्यान में रखते हुए खेत में गन्ने की बोआई के साथसाथ अलग से सिंचाई स्रोत के नजदीक एक नर्सरी तैयार कर लें. इस में बहुत ही कम अंतराल पर एक आंख के टुकड़ों की बोआई करें.

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खेत में बोआई के एक माह बाद खाली स्थानों पर नर्सरी में तैयार पौधों को सावधानीपूर्वक निकाल कर रोपाई कर दें.खरपतवार प्रबंधन अंधी गुड़ाई : गन्ने का अंकुरण देर से होने के कारण कभीकभी खरपतवारों का अंकुरण गन्ने से पहले हो जाता है, जिस के नियंत्रण के लिए एक गुड़ाई करना जरूरी होता है, जिसे अंधी गुड़ाई कहते हैं.निराईगुड़ाई : आमतौर पर हर सिंचाई के बाद एक गुड़ाई जरूरी होगी. इस बात का खास ध्यान रखें कि ब्यांत अवस्था (90-100 दिन) तक निराईगुड़ाई का काम पूरा हो जाए.मिट्टी चढ़ाना : वर्षा शुरू होने तक फसल पर मिट्टी चढ़ाने का काम पूरा कर लें (120 व 150 दिन).रासायनिक नियंत्रणबोआई के बाद अंकुरण से पहले खरपतवारों के नियंत्रण के लिए एट्राजीन  2.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से  600 लिटर पानी में घोल बना कर बोआई के एक सप्ताह के अंदर खेत में समान रूप से छिड़क दें.खड़ी फसल में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के लिए 2-4-डी सोडियम साल्ट 2.8 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से  600 लिटर पानी का घोल बना कर बोआई के 45 दिन बाद छिड़काव करें. खड़ी फसल में चौड़ीसंकरी मिश्रित खरपतवार के लिए 2-4-डी सोडियम साल्ट 2.8 किलोग्राम, मेटीब्यूजन  1 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 600 लिटर पानी का घोल बना कर बोआई के 45 दिन बाद छिड़काव करें. इन के उपयोग में खेत में नमी जरूरी है.अंतरर्वती खेतीगन्ने की फसल की बढ़वार शुरू के 2-3 माह तक धीमी गति से होती है.

गन्ने की 2 कतारों के बीच का स्थान काफी समय तक खाली रह जाता है. इस बात को ध्यान में रखते हुए यदि कम अवधि के फसलों के अंतरर्वती खेती के रूप में उगाया जाए, तो निश्चित रूप से गन्ने के फसल के साथसाथ प्रति इकाई अतिरिक्त आमदनी प्राप्त हो सकती है. इस के लिए निम्न फसलें अंतरर्वती खेती के रूप में उगाई जा सकती?हैं :शरदकालीन खेती : गन्ना+आलू  (1:2), गन्ना+प्याज (1:2), गन्ना+मटर  (1:1), गन्ना+धनिया (1:2), गन्ना+चना  (1:2), गन्ना+गेहूं (1:2). बसंतकालीन खेती : गन्ना+मूंग  (1:1), गन्ना+उड़द (1:1), गन्ना+धनिया (1:3), गन्ना+मेथी (1:3).गन्ने को गिरने से बचाने के उपाय* गन्ना की कतारों की दिशा पूर्वपश्चिम रखें.* गन्ने की उथली बोनी न करें.* गन्ने की कतारों की दोनों तरफ 15 से 30 सैंटीमीटर मिट्टी 2 बार जब पौधा 1.5 से 2 मीटर का हो. 120 दिन बाद हो और इस से अधिक बढ़वार होने पर चढ़ाएं (150 दिन बाद).* गन्ने की बंधाई करें. इस में तनों को एकसाथ मिला कर पत्तियों के सहारे बांध दें. यह काम 2 बार तक करें.* पहली बंधाई अगस्त में और दूसरी बंधाई इस के एक माह बाद जब पौधा 2 से 2.5 मीटर का हो जाए.* बंधाई का काम इस प्रकार करें कि हरी पत्तियों का समूह एक जगह एकत्र न हो, वरना प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रभावित होगी.गन्ने की कटाईफसल की कटाई उस समय करें, जब गन्ने में सुक्रोज की मात्रा सब से अधिक हो, क्योंकि यह अवस्था थोड़े समय के लिए होती है और जैसे ही तापमान बढ़ता है, सुक्रोज का ग्लूकोज में बदलाव शुरू हो जाता है और ऐसे गन्ने से शक्कर व गुड़ की मात्रा कम मिलती है. कटाई पूर्व पकाव सर्वे करें. इस के लिए रिफ्लैक्टो मीटर का उपयोग करें. यदि माप 18 या इस के ऊपर है, तो गन्ना पकने होने का संकेत है.

गन्ने की कटाई गन्ने की सतह से करें.गन्ना उत्पादन में उन्नत वैज्ञानिक तकनीकों का उपयोग कर के तकरीबन 1,000 से 1,500 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक गन्ना हासिल किया जा सकता है.जड़ फसल से भरपूर पैदावारजड़ फसल पर भी बीजू फसल की तरह ही ध्यान दें और बताए गए कम लागत वाले उपाय उपनाएं, तो जड़ से भरपूर पैदावार ले सकते हैं. समय पर गन्ने की कटाई : मुख्य फसल को समय पर (नवंबर महीने में) काटने से पेड़ी की अधिक उपज ली जा सकती है. जड़ फसल 2 बार से अधिक न लें. गन्ने की कटाई सतह जाति के लगा कर सिचाई करें. मुख्य फसल के लिए अनुशंसा के अनुसार उर्वरक दें.सूखी पत्ती बिछाएं : कटाई के बाद सूखी पत्तियों को खेत में जलाने के बजाय कूंड़ों के मध्य बिछाने से उर्वराशक्ति में वृद्धि होती है. उक्त सूखी पत्तियां बिछाने के बाद 1.5 फीसदी क्लोरोपायरीफास दवा छिड़कें.पौध संरक्षण अपनाएंकटे हुए ठूंठ पर कार्बंडाजिम 550 ग्राम मात्रा 250 लिटर पानी में घोल कर झारे की सहायता से ठेंठों के कटे हुए भाग पर छिड़कें.जड़ के लिए उपयुक्त जातियाजड़ की अधिक पैदावार लेने के लिए उन्नत जातियां जैसे को. 7318, को. 86032, को. जे. एन. 86-141, को. जे. एन.  86-600, को. जे. एन. 86-572, को. 94008 और को. 99004 का चुनाव करें.अधिक उपज प्राप्त करनेके लिए प्रमुख बिंदुगन्ना फसल के लिए 8 माह की उम्र का गन्ना बीज बोएं.

शरदकालीन गन्ना (अक्तूबरनवंबर) की ही बोआई करें. गन्ना की बोआई कतार से कतार 120-150 सैंमी के दूरी पर गीली कूंड़ पद्धति से करें. बीजोपचार (फफूंदनाशक-कार्बंडाजिम 2 ग्राम प्रति लिटर और कीटनाशक क्लोरोपायरीफास 5 मिलीलिटर प्रति हेक्टेयर 15-20 मिनट तक डुबा कर) बोआई करें. जड़ प्रबंधन के तहत ठूंठ जमीन की सतह से काटना, गरेड़ तोड़ना, फफूंदनाशक व कीटनाशक से ठूंठ का उपचार, गेप फिलिंग, संतुलित उर्वरक (एनपीके-300:85:60) का उपयोग करें. गन्ने की फसल के कतारों के मध्य कम समय में तैयार होन वाली फसलों चना, मटर, धनिया, आलू, प्याज आदि फसलें लें. खरपतवार नियंत्रण के लिए एट्राजीन 1.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर सक्रिय तत्त्व की दर से बोआई के 3 से 5 दिन के अंदर और 2-4-डी 750 ग्राम हेक्टेयर सक्रिय तत्त्व 35 दिन के अंदर छिड़काव करें.गन्ना क्षेत्र विस्तार के लिए गन्ना उत्पादक किसानों के समूहों को शुगर केन हारवेस्टर, पावर बडचिपर व अन्य उन्नत कृषि यंत्रों को राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत 40 फीसदी अनुदान उपलब्ध कराया जाना चाहिए.

निर्णय -भाग 3 : ताऊजी के व्यवहार में पूर्वा को कैसे महसूस हुआ बदलाव

अब जब ताऊजी उस की शादी की कोशिश करने लगे हैं और ताईजी भी उस से उस के मनपसंद लड़के के बारे में पूछ रही हैं तो उस के लिए प्यार की मीठीमीठी घंटियां बजने लगीं. शशांक जैसा जीवनसाथी ही तो उसे अपने लिए चाहिए पर उस ने तो इन दिनों उस से इस संबंध में कोई बात ही नहीं की. उस का मन तरंगित हो उठा…

मगर क्षण भर में ही उसे अपने सपने टूटते से लगे, क्योंकि शशांक एसटी कोटे से था. पापा और ताऊजी दोनों को ही अपने ब्राह्मणत्व का बड़ा गुमान था. इस विषय को ले कर वे पक्के रूढि़वादी थे. कई दिनों तक वह अनिर्णय की स्थिति में रही.

अब वह करे तो क्या करे? मांपापा की आंखों में तैरती खुशियों की चमक, ममतामयी ताईजी का पलपल प्यार से गले लगा कर कहना कि मेरी लाडो को दुनियाजहां की सारी खुशियां मिलें. परंतु ताऊजी उसे संदिग्ध लगते थे. वे फोन पर फुसफुसाते हुए न जाने किस गुणाभाग में लगे रहते थे.

पूर्वा को दूरदूर तक कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था. वह ताऊजी की फुसफुसाहटों पर अपने कान लगाए रहती. उसे पूरा विश्वास था कि ताऊजी उस की शादी फिक्स करवाने के एवज में अवश्य कोई लंबा हाथ मार रहे होंगे. वह चुपके से उन के कागज टटोलती, उन का फोन चैक करती कि कोई एसएमएस उसे पढ़ने को मिल जाए, परंतु वह अपने शक को सच में परिवर्तित करने में सफल नहीं हो पा रही थी.

पूर्वा को ऐसा महसूस हो रहा था कि जैसे किसी दलदल में धंसती जा रही है जहां से निकलना कठिन है. वह इसी उलझन में थी. तभी उसे ऐसा अनुभव हुआ कि शशांक ने उस की हथेलियों को पकड़ लिया है और उसे दलदल से बाहर निकाल लिया है. वह उस के साथ भागती जा रही है.

वह चौंक कर अपने चारों ओर देखने लगी, क्योंकि वह अब भी अपनी हथेलियों में उस के हाथों के स्पर्श को महसूस कर रही थी. उस ने शरमाते हुए अपनी हथेलियों को स्वयं ही चूम लिया जैसे वे अपनी नहीं वरन शशांक की हों. उस का दिल जोरजोर से धड़क रहा था. शशांक जैसे उस के रोमरोम में समाया हो. अब वह उस के बिना एक पल भी नहीं रह सकती थी.

उस के मन की ऊहापोह एवं अनिर्णय की स्थिति समाप्त हो चुकी थी. वह ताऊजी के लिए अपने भावी जीवन की बलि नहीं चढ़ा सकती. उस ने तुरंत शशांक को फोन मिला कर पूछा, ‘‘मुझ से शादी करोगे?’’

शशांक खुशी से उछल पड़ा, ‘‘डियर, इस दिन का तो मैं कब से इंतजार कर रहा था. बताओ मैं कब आऊं?’’

उस का दिल बल्लियों उछल रहा था.

ताऊजी के रुद्र रूप को सोच आज पूर्वा मुसकरा उठी थी. अंतत: वह ताऊजी के जाल से आजाद होने जा रही थी. अब उस के मन में न ताऊजी का डर था और न ही मम्मीपापा का.

वह ममतामयी ताईजी की शुक्रगुजार थी. उन्होंने सदा उस का साथ दिया.

पूर्वा के सिर से बड़ा बोझ उतर चुका था. वह तय कर चुकी थी कि वह अपने निर्णय पर अडिग रहेगी. इस घुटन भरी जिंदगी से आजाद हो कर खुली हवा में सांस लेगी. वह मंदमंद म

Crime Story: 18 दिन की दुल्हन का जाल

लेखक- जगदीश प्रसाद शर्मा ‘देशप्रेमी’  

सौजन्य- सत्यकथा

अहसान मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला शामली के कैराना का रहने वाला था. वह कामधंधे के सिलसिले में काफी साल पहले हरिद्वार के कस्बा झबरेड़ा के मोहल्ला नूरबस्ती आ कर रहने लगा था.

6 नवंबर, 2020 को सुबह के करीब 6 बज रहे थे. अहसान अपने बीवीबच्चों के साथ गहरी नींद सोया था. तभी अचानक घर के बाहर मोहल्ले वालों के शोरशराबे की आवाजों से उस की आंखें खुल गईं. इन्हीं आवाजों में उसे अपने साले शाहनवाज की बीवी मुसकान के रोनेचिल्लाने की आवाज सुनाई दी.

अहसान को मुसकान के रोने की आवाज कुछ अजीब लगी, क्योंकि शाहनवाज व मुसकान उस के बगल वाले कमरे में ही रहते थे तथा 18 दिन पहले ही उन का निकाह हुआ था.

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वह जल्दी में कमरे से बाहर निकला तो उस ने मोहल्ले वालों के ‘लाश… लाश’ चिल्लाने की मिलीजुली आवाज सुनी. अहसान तुरंत मौके पर पहुंचा. उस ने देखा कि उस के घर के पास बिजलीघर के बराबर वाले खाली प्लौट में एक लाश पड़ी थी. लाश पौलिथीन से ढकी हुई थी. वहां आसपास खडे़ दरजनों लोग लाश के बारे में तरहतरह की चर्चाएं कर रहे थे.

तभी भीड़ से निकल कर मुसकान अहसान के पास आई और बोली कि कुछ अज्ञात हत्यारों ने शाहनवाज को मार डाला है.  ‘‘शाहनवाज तो रात को घर में ही था?’’ अहसान ने कहा. ‘‘नहीं जीजाजी, वह रात को खाना खा कर 10 बजे चले गए थे.’’ मुसकान बोली.‘वह बाहर किसलिए गया था?’’ अहसान ने पूछा.

‘‘कह कर गए थे कि किसी से मिल कर थोड़ी देर में वापस आ जाएंगे, मगर पूरी रात वापस नहीं आए और मैं सुबह तक जाग कर उन का इंतजार करती रही.’’ मुसकान ने बताया.‘‘तुम ने यह बात रात को ही मुझे क्यों नहीं बताई, मैं उसे कहीं ढूंढता.’’ अहसान बोला

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‘‘मैं ने यह बात इसलिए नहीं बताई थी कि आप दिन भर के थके हुए थे और सो रहे थे. मुझे उम्मीद थी कि थोड़ी देर में वापस लौट आएंगे.’’ मुसकान बोली.इसी दौरान भीड़ में से किसी ने शाहनवाज की लाश मिलने की सूचना झबरेड़ा के थानाप्रभारी रविंद्र कुमार को दे दी. हत्या की सूचना पा कर थानाप्रभारी रविंद्र कुमार अपने साथ एसआई चिंतामणि सकलानी, महेंद्र पुंडीर व हैडकांस्टेबल राजेंद्र को ले कर घटनास्थल की ओर निकल पड़े.

घटनास्थल थाने से मात्र 4 किलोमीटर दूर था, अत: वे 15 मिनट में मौके पर पहुंच गए. उन्होंने वहां मौजूद लोगों से शाहनवाज के बारे में पूछताछ की. उन्होंने मृतक के बहनोई अहसान से भी पूछताछ की.

अहसान ने बताया कि शाहनवाज सहारनपुर के थाना कोतवाली देहात के अंतर्गत मोहल्ला शेखपुरा का रहने वाला था. वह एक ईंट भट्ठे पर नौकरी करता था. पिछली रात 10 बजे खाना खाने के बाद घर से बीवी को यह कह कर निकला था कि वह थोड़ी देर में वापस लौट आएगा. लेकिन रात भर नहीं आया और सुबह यहां उस की लाश मिली.

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अभी रविंद्र कुमार इस हत्या का बाबत अहसान से पूछताछ कर ही रहे थे कि सूचना पा कर सीओ (मंगलौर) अभय प्रताप सिंह व एसपी (देहात) एस.के. सिंह भी मौके पर आ गए.दोनों अधिकारियों ने भी शाहनवाज की लाश का निरीक्षण किया. सीओ अभय प्रताप सिंह को मृतक शाहनवाज के गले पर कुछ ऐसे निशान दिखाई दिए, जिस से लग रहा था कि हत्यारों ने शायद शाहनवाज का कुछ देर तक गला दबाया था. इन अधिकारियों ने अहसान से पूछा कि शाहनवाज से किसी की दुश्मनी या लेनदेन संबंधी कोई विवाद तो नहीं था?

अहसान ने साफ मना करते हुए बताया कि साहब ऐसा कुछ भी नहीं था. शाहनवाज काफी मिलनसार व मेहनत करने वाला युवक था. बस उस में एक कमी थी कि वह कभीकभार शराब जरूर पी लेता था.

मौके की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने उस की लाश पोस्टमार्टम के लिए जे.एन. सिन्हा स्मारक संयुक्त चिकित्सालय रुड़की भेज दी. इस के बाद अज्ञात के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर ली.

इस के बाद एसपी (देहात) एस.के. सिंह ने शाम को शाहनवाज हत्याकांड का परदाफाश करने के लिए थाना झबरेडा में एक मीटिंग बुलाई, जिस में सीओ (मंगलौर) अभय प्रताप सिंह व थानाप्रभारी रविंद्र कुमार शामिल हुए. इस बैठक में शाहनवाज के हत्यारों के बारे में मंथन किया गया.

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सीओ अभय प्रताप सिंह ने थाना झबरेडा के 2 सिपाहियों नूर हसन व नरेश को सादे कपड़ों में शाहनवाज के घर जा कर उस के व उस की बीवी मुसकान के बारे में सुरागरसी करने के निर्देश दिए. थानाप्रभारी रविंद्र कुमार ने भी शाहनवाज व मुसकान के मोबाइल फोन नंबरों की पिछले एक महीने की काल डिटेल्स निकलवा ली थी.

अगले दिन 7 नवंबर, 2020 की सुबह को पुलिस को मुसकान के बारे में काफी जानकारियां प्राप्त हो गईं.पुलिस को पता चला कि मुसकान के पिता शहीद का कई साल पहले इंतकाल हो गया था. मुसकान उन की 9 बेटियों में 8वें नंबर की थी. अहसान की बीवी सायरा शहीद की दूर की रिश्तेदार थी, इसलिए सायरा ने अपने भाई शाहनवाज के लिए शहीद से मुसकान का हाथ मांग लिया था.

गत 18 अक्तूबर, 2020 को कांधला में एक सादे समारोह में शाहनवाज व मुसकान का निकाह हो गया था. निकाह के बाद मुसकान का पारिवारिक जीवन ज्यादा सुखद नहीं रहा. इस का कारण यह था कि शाहनवाज शराबी किस्म का युवक था. शाहनवाज शराब पीने के बाद अकसर मुसकान से मारपीट पर उतारू हो जाता था.

इस के अलावा पुलिस को यह भी जानकारी मिली कि मुसकान अकसर खाड़ी देश में नौकरी करने वाले एक युवक से बात करती थी.

ये जानकारियां मिलने के बाद पुलिस को मुसकान पर शक हो गया. सीओ अभय प्रताप सिंह व थाना प्रभारी रविंद्र कुमार को लगा कि शाहनवाज की हत्या का राज मुसकान ही खोल सकती है. उसे शाहनवाज के हत्यारों के बारे में जरूर कोई न कोई जानकारी रही होगी.

मुसकान ने पुलिस को अभी तक यही बताया था कि शाहनवाज घटना वाले दिन रात को 10 बजे खाना खाने के बाद घर से निकल गया था. जाते वक्त वह थोड़ी देर में लौटने की बात कह कर गया था. लेकिन यह बात पुलिस के गले नहीं उतर रही थी.

सीओ अभय प्रताप सिंह ने मुसकान के बारे में मिली जानकारी से एसएसपी सेंथिल अबुदई कृष्णाराज एस. को अवगत कराया. एसएसपी ने एसपी (देहात) एस.के. सिंह व सीओ अभय प्रताप सिंह को निर्देश दिए कि मुसकान को थाने बुला कर उस से गहन

पूछताछ करें.इस के बाद थानाप्रभारी रविंद्र सिंह ने महिला कांस्टेबल पूजा को मुसकान के घर भेज कर पूछताछ के लिए थाने बुलवा लिया.

एसपी (देहात) एस.के. सिंह व सीओ अभय प्रताप की मौजूदगी में मुसकान से शाहनवाज की हत्या की बाबत पूछताछ शुरू की गई. पूछताछ के दौरान मुसकान आधे घंटे तक पुलिस को बरगलाती रही. जब एसपी एस.के. सिंह ने मुसकान से सख्त लहजे में कहा कि जब रात से तुम्हारा शौहर लापता था, तो तुम ने पास में ही रहने वाले उस के बहनोई और बहन सायरा को क्यों नहीं बताया? हो सकता है वे लोग रात को ही शाहनवाज को ढूंढ लाते और उस की जान बच जाती.

एस.के. सिंह के इस सवाल पर मुसकान खामोश हो गई. इस के बाद सीओ अभय प्रताप सिंह ने सख्त लहजे में मुसकान से कहा कि तेरी चुप्पी बता रही है कि शाहनवाज की हत्या का सच कुछ और है जिसे तू अच्छी तरह से जानती है, मगर पुलिस से छिपा रही है. या तो तू शाहनवाज की हत्या का सच सीधी तरह बता दे, नहीं तो हमें दूसरे तरीके भी आते हैं.

अभय प्रताप सिंह के इस कथन का मुसकान पर गहरा असर हुआ और वह रोने लगी   मुसकान ने पुलिस के सामने अपने शौहर शाहनवाज की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि जब उस का निकाह हुआ था तो वह बड़ी खुश थी और उस ने अपने भविष्य के सतरंगी सपने संजोए थे.

लेकिन जब वह ससुराल झबरेडा आई, तो उस के सपने बिखर गए. यहां आ कर उस ने पाया कि उस का शौहर शाहनवाज एक नंबर का शराबी है. इस के अलावा वह उस के साथ अकसर मारपीट भी करता था.

घटना वाले दिन यानी 5 नवंबर, 2020 को शाहनवाज नशे में धुत हो कर घर आया था. उस के नशे में होने के कारण वह क्रोध से भर गई. शाहनवाज ने घर में आते ही उस के साथ पहले मारपीट की. इस के बाद वह सो गया.

मुसकान ने बताया कि उस वक्त रात के साढ़े 10 बजे थे. उस के ननदोई का परिवार बराबर वाले कमरे में गहरी नींद में सो रहा था. वह अपने शौहर शाहनवाज से पहले से ही परेशान थी.

उस वक्त वह गुस्से से भर गई और गुस्से में आ कर उस ने नशे में बेसुध सो रहे शाहनवाज का गला घोंट दिया. कुछ देर में जब उस की मौत हो गई तो उस ने उस की लाश घसीट कर घर से थोड़ी दूर एक खाली प्लौट में डाल दी. लाश को उस ने एक ठेली पर रखी प्लास्टिक की पौलीथिन से ढक दिया था, जिस से कोई उसे देख न सके. इस के बाद घर आ कर वह सो गई थी.

थानाप्रभारी रविंद्र कुमार ने मुसकान के बयान दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद एसपी (देहात) एस.के. सिंह ने कोतवाली रुड़की में एक प्रैसवार्ता कर के मीडिया के सामने शाहनवाज हत्याकांड का परदाफाश किया.

निकाह के महज 18 दिनों में ही शौहर की हत्या करने वाली बीवी का यह समाचार कई दिनों तक अखबारों व टीवी चैनलों की सुर्खियां बना रहा. 2 दिनों बाद पुलिस को शाहनवाज की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मिल गई.पोस्टमार्टम रिपोर्ट में शाहनवाज की मौत का कारण उस का गला घोंटा जाना बताया गया. पुलिस ने मुसकान को गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

निर्णय -भाग 2 : ताऊजी के व्यवहार में पूर्वा को कैसे महसूस हुआ बदलाव

‘‘हां… हां… मैं सब समझता हूं कि तुम्हारा क्या चल रहा है,’’ उन की निगाहों में शक साफ झलक रहा था.

औफिस से लौटने में पूर्वा को रोज रात के लगभग 8 बज जाते थे. एक दिन औफिस में पार्टी थी. दूसरे साथियों के आग्रह को वह ठुकरा नहीं सकी और लौटने में उसे 10 बजे गए. वह तेजी से दौड़तीभागती घर पहुंची तो ताऊजी ने ही दरवाजा खोला. उन की आंखों में लाल डोरे तैर रहे थे.

आज उन्होंने उस पर सीधा हमला बोला, ‘‘मैं सब कुछ जानसमझ रहा हूं कि औफिस के नाम पर क्या चल रहा है. शरीर के सारे अंग अलगअलग पैसा कमाने के साधन बन गए हैं. लता मंगेशकर अपने गले की बदौलत धनकुबेर बन बैठी हैं तो सलमान खान हो या प्रियंका चोपड़ा अपनी कमर मटका कर धन कमा रहे हैं. मजदूर बोझा उठा कर पैसा कमा रहा है. नाचने वालियां नाच कर और सैक्स वर्कर अपने शरीर से धन कमा रही हैं.

‘‘यह भौतिकवाद का युग है. जिस के पास जितना अधिक धन है, वह उतना ही सामर्थ्यवान है. मैडमजी, आधुनिक बन कर क्या लड़कियां शरीर बेच कर धन नहीं कमा रही हैं… आप को मुझे सफाई देने की जरूरत नहीं है.’’

पूर्वा भाग कर ताईजी के पास पहुंच गई. इस समय ताऊजी की भावभंगिमा डरावनी लग रही थी. ताईजी ने उसे प्यार से समझाया, ‘‘कुछ नहीं बिटिया… आज इन्होंने कुछ ज्यादा चढ़ा ली होगी… तुम्हारी फिक्र में सोए न होंगे इसलिए बकबक करने लगे होंगे. हम लोग भी तो बेटीबहू वाले हैं और फिर तुम भी तो हमारी बिटिया ही हो. ऐसी गंदी बात वे सोचते हैं तो इस का पाप तो उन्हें ही लगेगा… शराब व मुराद बड़ी बुरी चीज है. तुम इन की बातों को दिल पर मत लो.’’

उस रात ताईजी उसे बहुत ममतामयी लगी थीं. उसे इस बात की खुशी थी कि कम से कम ताईजी तो उसे गलत नहीं समझतीं. उस से खाना भी नहीं खाया गया था. उस की आंखों से आंसू बह निकले थे.

ताईजी ने प्यार से उस के आंसू पोंछे थे. वे बोली थीं, ‘‘अपने पापा से कुछ मत कहना, क्योंकि ये दोनों भाई एक से हैं. मेरी तो जिंदगी बीत गई इन के साथ रोते हुए.’’

पूर्वा मन ही मन सोच रही थी कि यदि इन बातों की भनक भी मांपापा को लगी तो नई मुसीबत खड़ी हो जाएगी.

ताईजी की प्यार भरी बातों से उस का मन हलका हो गया था. कुछ ही दिन बीते थे कि सुबहसुबह वह न्यूजपेपर खोल कर उस पर निगाहें टिकाए कमरे में जा रही थी. तभी उधर से ताऊजी चाय का प्याला हाथ में ले कर आ रहे थे. वह उन से हलकी सी टकरा गई और चाय उन के हाथ पर छलक गई. बस फिर क्या था.

वे आपे से बाहर हो उठे, ‘‘तुम अफसर होगी तो अपने दफ्तर की… हमें नहीं सौंप रही अपनी कमाई… 26 साल की होने को आई, शादी नहीं हुई वरना तो अब तक 2 बच्चों की मां होती.

‘‘तमीज तो सीखी ही नहीं है… नीचे देख कर तो चलना ही नहीं सीखा… मेरी बात गांठ बांध लो, यदि यही हाल रहा तो एक दिन तुम जिन ऊंचाइयों का ख्वाब देख रही हो, उन से औंधे मुंह गिरोगी. उस दिन सारा दिमाग ठिकाने आ जाएगा.’’

धीरेधीरे ताऊजी को शायद उस की शक्ल से ही चिढ़ होने लगी थी. रोज सुबह ही शुरू हो जाते. किसी न किसी बात पर बड़बड़ कर उस का मूड खराब कर देते. सुबह वह चाहे जितनी जल्दी बाथरूम जाए वे उसी समय बाहर से खटखटाना शुरू कर देते कि कोई इतनी देर बाथरूम में लगाता है भला?

वह बाजार से कभी सब्जी, कभी फल तो कभी नाश्ता ला कर ताईजी को तो खुश रख पा रही थी, पर ताऊजी बहुत विचित्र थे. उन्हें खुश रखना टेढ़ी खीर था.

जब पूर्वा बहुत परेशान हो गई तो एक दिन फोन पर मां से अपने मन का गुबार निकाल ही दिया, ‘‘मां, लंच और सुबह का नाश्ता में औफिस में खाती हूं. बस एक टाइम रात का खाना खाती हूं. इस के एवज में मैं बराबर घर का सामान लाती रहती हूं. अब मेरी सहनशक्ति जवाब देने लगी है. मेरा यहां रहना अब नामुमकिन होता जा रहा है… अगले महीने मैं कोई पीजी देख कर उस में शिफ्ट हो जाऊंगी.’’

पापा हमेशा मां की बातों पर अपने कान लगाए रहते थे. छोटे घरों की यह मजबूरी होती है कि कोई बात किसी से छिपाना आसान नहीं होता.

वे तुरंत मोबाइल अपने हाथ में ले कर बोले, ‘‘बेटी, यदि पीजी में जा कर रहोगी तो हम दोनों भाइयों के बीच दरार पड़ जाएगी… इसलिए समझदारी से काम लो. जब वे आज भी मुझे कुछ भी बोलने से बाज नहीं आते हैं तो तुम तो मेरी बिटिया हो… उन्हें तो हमेशा चीखनेचिल्लाने और उलटासीधा बोलने की आदत रही है. मैं तेरे हाथ जोड़ता हूं, मान जाओ.’’

बस बात यहीं समाप्त हो गई थी. पूर्वा के चुप रहने के कारण ताऊजी ओछी हरकतों पर उतर आए थे. लाइट जाते ही यदि इनवर्टर से पंखा चल रहा होता तो दौड़ कर आते और पंखा बंद कर देते.

4 बातें अलग से सुनाते, ‘‘मैडमजी, यह औफिस नहीं घर है. यहां दूसरे लोग भी रहते हैं.’’

यदि फ्रिज से पानी की बोतल निकालती तो व्यंग्य से बोलते, ‘‘इस गरीब पर दया कर के यदि एक ठंडी बोतल छोड़ दी जाए, तो बड़ी मेहरबानी होगी.’’

जब कभी वह रात में खाना नहीं खाती तो उसे अगली सुबह बासी रोटियां खानी पड़तीं या फिर ताऊजी की उलटीसीधी बातें सुननी पड़तीं. ताऊजी को सांस फूलने की बीमारी थी. सर्दियों का मौसम आ गया था. उन्हें ठंड बहुत लगती थी. इसलिए वे हफ्तों नहीं नहाते थे.

शरीर में तेल मालिश के बड़े शौकीन थे. धूप में बैठ कर घंटों तेल मालिश करना उन का प्रिय टाइमपास था. जब वे पास से निकलते तो सरसों के तेल की तेज महक से नाक बंद कर लेने का मन करता, परंतु उन के डर से पूर्वा सांस रोक कर रह जाती थी.

एक दिन पूर्वा से बोले, ‘‘अभिमान तो किसी का नहीं रहा है, तुम भला कौन सी चीज हो… दुनिया में जाने कितने अफसर पड़े हैं,

परंतु ऐसा अनर्थ नहीं देखा कि मंदिर में सिर भी न झुकाए?’’

उस ने इशारे से ताईजी से पूछा था तो वे धीरेधीरे बड़बड़ाईं, ‘‘सठिया गए हैं. हर समय दारू के नशे में रहेंगे तो ऐसे ही उलटासीधा बकेंगे. इन की इन्हीं हरकतों के चलते न तो बेटाबहू कभी यहां आना चाहते हैं और न बेटी.

‘‘बिटिया, तुम इन की बातों पर ध्यान मत दिया करो. इन की तरह जोरजोर से घंटा बजाने से ही थोड़े पूजा होती है.’’

रात में जब ताऊजी टीवी बंद कर के अपने कमरे में चले जाते तो वह अपना मनपसंद सीरियल, गाने या फिर पिक्चर लगा लेती. परंतु उसे परेशान करने के लिए वे फिर से लौट कर वहां आ जाते और झट चैनल बदल देते. अनावश्यक घंटों ऊंघते हुए हाथ में रिमोट ले कर चैनल बदलते रहते.

कभी भूलवश टीवी की आवाज अधिक हो जाती तो चीखते हुए हाजिर हो जाते, ‘‘महारानीजी, आज आप सोने देंगी या रात्रिजागरण का कार्यक्रम करवाओगी.

‘‘मैडमजी आप तो जवान हैं. मैं 65 साल का बूढ़ा हूं… अब इतना दमखम तो बचा नहीं कि रात भर जाग सकूं.’’

पूर्वा तुरंत टीवी बंद कर के सोने का अभिनय करती और मन ही मन टीवी से दूर रहने का निश्चय करती. मगर 2-4 दिन बाद उस का मन मचल उठता और रिमोट हाथ में उठा लेती.

वहां रहते हुए लगभग 2 साल हो चुके थे. अपनी कंपनी और सैलरी दोनों से वह खुश थी, परंतु ये ताऊजी तो पूरी तरह से हाथ धो कर उस के पीछे पड़े रहते थे.

कुछ दिनों से ताऊजी अखबार के वैवाहिक विज्ञापनों में निशान लगाने में व्यस्त थे. एक दिन पूर्वा ने उन्हें ताईजी से कहते सुना, ‘‘अब तो इस ने बहुत रुपए जमा कर लिए होंगे. उन्हीं पैसों से इस की शादी कर देंगे.’’

उस ने उन विज्ञापनों को देखा, जिन पर निशान लगे थे. उन में से कोई 40 वर्ष का था तो कोई विधुर. यहां तक कि एक मंदबुद्धि भी था.

अब वह परेशान हो उठी थी कि ताऊजी ने तो हद ही पार कर दी. वह परेशान हो उठी थी. इस समस्या का सामना वह कैसे करे. उस का औफिस में भी मन नहीं लगता था. तभी एक दिन किसी लड़के को उस के औफिस का पता बता कर वहां भेज दिया. उस समय उस की स्थिति बहुत विचित्र हो गई. फ्रैंड्स के बीच उस का खूब मजाक बना. वह बिफर पड़ी थी. घर पहुंचते ही ताईजी से लिपट कर बिलख पड़ी.

जब वह काफी देर रो ली तो उन्होंने उसे तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘देखो बिटिया, तुम्हारे ताऊजी की सब बेवकूफियां हम जानते हैं. तुम अपने औफिस के किसी लड़के को पसंद करती हो तो बताओ, मैं तुम्हारा साथ दूंगी.’’

ताईजी ने प्यार से अपने हाथ से उसे खाना खिलाया था. रात में जब वह लेटी तो उस की नींद उड़ी हुई थी. उसे अपने कालेज के मस्ती भरे दिन याद आ रहे थे. वह बीटैक में फ्रैशर थी. रैगिंग के डर से कांप रही थी. उसे अपने सीनियर को प्रोपोज कर के किस करना था. उस की आंखें बरस पड़ी थीं.

उस के आंसू देख कर एक सीनियर को उस पर दया आ गई. उस ने शालीनतापूर्वक अपनी हथेली उस के सामने रख कर किस करने को कहा. उस दिन वह आसानी से बच गई थी. वह सीनियर शशांक था. उसी दिन से वह उस का दोस्त बन गया. दोनों साथ पढ़ाई करते, कौफी पीते, साथ घूमते. उस की सारी समस्याओं का हल शशांक चुटकियों में कर देता.

धीरेधीरे न जाने कब शुरू हो गया मोबाइल पर कभीन खत्म होने वाला लंबीलंबी बातों का सिलसिला. जिस दिन दोनों एकदूसरे को न देखते या बात न करते सब कुछ अधूराअधूरा लगता. शायद इसी को प्यार कहते हैं, परंतु अभी तो दोनों के सामने अपनाअपना कैरियर था. यह सिलसिला लंबे समय तक चलता रहा था.

शशांक की फाइनल परीक्षा हो चुकी थी. वह बहुत खुश था. उस का कैंपस सलैक्शन भी हो चुका था. बस प्लेसमैंट मिलना था. उस की जाने की तैयारी चल रही थी. वह उदास हो उठी थी. तब उस ने गंभीर हो कर उसे शादी के लिए प्रोपोज कर दिया. बस इसी बात को ले कर वह उस से नाराज हो गई और उस से बातचीत बंद कर दी.

जब जाने का समय आया तो शशांक उस से मिलने आया. उस ने प्रौमिस किया कि दोनों दोस्त बने रहेंगे, उस से अधिक कुछ नहीं. वह सिलसिला आज भी चल रहा था.

शशांक को बैंगलुरु में पोस्टिंग मिली थी. वह गुड़गांव में थी, इसलिए मुलाकातें तो मुश्किल हो गई थीं, पर औनलाइन चैटिंग और फोन पर मस्ती चलती रहती थी.

कोरोनाकाल में बेरोजगारों की फौज

सरकार द्वारा लौकडाउन थोपे जाने की वजह से देशभर में बेरोजगारी बढ़ी है. सैंटर फौर मौनिटरिंग इंडियन इकोनौमी के अनुसार, अप्रैल महीने में देशभर में बेरोजगारी दर 23 फीसदी से ज्यादा थी. लगभग 1.89 करोड़ सैलरीपेड लोगों ने इस बीच अपनी नौकरी गंवाई. इस ने पिछले साल छिपछिपा कर पब्लिश हुए औफिशियल आंकड़े ‘45 साल की सब से अधिक बेरोजगारी’ को भी काफी पीछे छोड़ दिया है.

दफ्तरों के बंद रहने से वहां के कर्मचारी ही नहीं, बल्कि दफ्तरों की इमारत से जुड़े सिक्योरिटी गार्ड, लिफ्टमैन, सफाई कर्मचारियों के साथसाथ दफ्तरों के बाहर मौजूद चाय और दूसरी कई चीजों की दुकानों व उन के कर्मचारियों पर इस का असर पड़ा और अभी भी पड़ रहा है. क्योंकि, अधिकांश कार्यालय अभी भी बंद हैं, जो खुले भी हैं तो वहां आधे या आधे से भी कम लोग आ रहे हैं.

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एक चाय वाला, जो रोजाना औफिस कमर्चारियों को चाय सप्लाई कर दोढाई हजार रुपए कमा लेता था, अब मुश्किल से 500-1,000 रुपए ही कमा पा रहा है.

छोटीछोटी प्राइवेट कंपनियों में काम करने वाले बेरोजगार हो गए युवा आज कुछ भी काम करने के लिए तैयार हैं. अखबार बांटना, कैब चलाना, सब्जी बेचना आदि काम आज का पढ़ालिखा युवा करने को मजबूर है. युवाओं के लिए घर में बैठना भी मुश्किल है. घर वालों की बातें सुनने से अच्छा उसे लगता है बाहर निकल कर कुछ कमाई कर ले.

देश में बेरोजगारी के बढ़ते आंकड़े युवाओं को घोर चिंता में डाल रहे हैं. ये आंकड़े उन के लिए खतरे की घंटी भी हैं, जिन की गूंज बिहार विधानसभा चुनावप्रचार के दौरान दिखी भी. जैसे ही आरजेडी प्रमुख तेजस्वी यादव ने राज्य में 10 लाख नौकरियां देने का एलान किया तो नीतीश कुमार और भगवा खेमा हड़बड़ा उठे. युवाओं का ध्यान बंटाने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बिहारवासियों को मुफ्त कोरोना वैक्सीन देने की बात कही, जिसे किसी ने नोटिस में नहीं लिया, क्योंकि यह राममंदिर निर्माण जैसी फुजूल की बात थी.

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युवाओं की पहली जरूरत उन को रोजगार मिलना है. इस मोरचे पर केंद्र सहित तमाम राज्य सरकारें नाकाम साबित रही हैं. तो, इस का खमियाजा भुगतने को उन सरकारों को तैयार भी रहना चाहिए. हर राज्य में लाखों की संख्या में सरकारी पद खाली पड़े हैं पर उन्हें भरे जाने के लिए कोई उत्सुक नजर नहीं आ रहा. युवाओं का गुस्सा आज नहीं तो कल फटना तय है क्योंकि उन के सपने टूट रहे हैं और वे अपनेआप को फालतू और समाज व परिवार पर बोझ समझते कुंठित हो चले हैं.

कब तक मानेंगे प्यार को गुनाह

दिल्ली के आदर्शनगर इलाके में 18 साल के लड़के राहुल राजपूत की सरेआम पीटपीट कर हत्या कर दी गई. राहुल की अपने साथ पढ़ने वाली एक लड़की से दोस्ती थी. लड़की के घर वालों को यह पसंद नहीं था.

7 अक्तूबर की रात राहुल को कुछ अनजान लोगों ने फोन कर के बाहर बुलाया. वहां उसे जम कर पीटा गया. बाद में अस्पताल में राहुल की मौत हो गई.

ऐसे में सवाल तो उठेगा ही. क्या प्यार करना गुनाह है, वह भी इतना बड़ा कि जिस की सजा मौत है? 2 चाहने वाले यदि अपनी खुशी के लिए एकदूसरे से मिलते हैं, घूमतेफिरते हैं तो क्यों परिवार वालों को इस में सिर्फ बुराई ही नजर आती है?

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जवान होते लड़कीलड़के आज जब हर जगह साथसाथ पढ़ाईलिखाई, नौकरी आदि कर रहे हैं तो उन में एकदूसरे के प्रति आकर्षण का होना स्वाभाविक है और फिर वह प्यार में बदल जाए तो हैरानी की बात नहीं. ऐसी स्थिति में अगर परिवार वाले ही बच्चों की बात नहीं सुनेंगे, उन्हें नहीं समझेंगे तो बाहर वालों की बातों का सामना बच्चे कैसे करेंगे.

एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, अकेले 2018 में 10,773 प्रेमी युगल इसी चक्कर में भागने पर मजबूर हुए. ऐसे मामलों में दुखद यह है कि प्रेम के इन मसलों को समझने की जगह औनर किलिंग की घटनाएं सामने आती हैं. 2015 में 251 औनर किलिंग की घटनाएं सामने आईं.

ऐसे में यदि बच्चों को घर वालों का साथ मिलता है तो वे अपने प्यार को अंजाम तक पहुंचा सकते हैं. गलत राह पर जाने की उन्हें जरूरत ही नहीं पड़ेगी. जब घर वालों से दुरावछिपाव ही नहीं होगा तो गुनाह करने की गुंजाइश कहां रहेगी. आज जरूरत है सोच बदलने की. इस के लिए जरूरी है कि पेरैंट्स अपने बच्चों की इच्छाओं को धर्म और जाति से ज्यादा महत्त्वपूर्ण मानें.

प्यार युवाउम्र की मांग और जरूरत भी है. इसे एक अधिकार के रूप में युवाओं को देना चाहिए. तभी वे तरक्की कर पाएंगे, उन का व्यक्तित्व निखरेगा और वे खुद अपनी जगह बना पाएंगे. प्यार को अपराध की तरह देखना और प्रेमियों को तरहतरह से प्रताडि़त करना व सजाएं देना जरूर उन के प्रति गंभीर अपराध है.

यह अपराध सदियों से हो रहा है. लेकिन, अब वक्त संभलने का है. मात्र कह देने से या चमचमाते कपड़े पहन लेने से आधुनिकता सिद्ध नहीं होती. हां, हमारे भीतर बैठा प्यार का दुश्मन जरूर ढक जाता है जो मौका मिलते ही किसी राहुल की जान लेने से नहीं चूकता. यानी, कुंठा, भड़ास और हिंसा जैसे सैकड़ों नुक्स लोगों की मानसिकता में हैं, जिन्हें बदले बिना समाज व देश को बदलने का सपना देखना बेमानी है. ढाई अक्षर के प्यार शब्द के पाकसाफ जज्बे में ही जिंदगी मुसकरा पाती है.

निर्णय -भाग 1: ताऊजी के व्यवहार में पूर्वा को कैसे महसूस हुआ बदलाव

मदन ने फोन उठाया. ‘‘कैसी तबीयत है तुम्हारी? यदि हम फोन न करें तो तुम से कभी बात भी न हो… पूर्वा की शादी के लिए कोशिश कर रहे हो या उसे ऐसे ही बैठाए रखने का इरादा है?’’ उधर से आवाज आई.

‘‘नहींनहीं, भाई साहब… आप को तो मालूम है कि उस ने बैंक से लोन ले कर पढ़ाई पूरी करी है, तो पहले उसे लोन चुकाना है, इसलिए नौकरी देख रही है.’’

‘‘तो अब तुम बैठ कर बेटी की कमाई पर ऐश करोगे.’’

‘‘अरे नहीं, मैं तो अपाहिज हूं… उस की शादी आप को ही करनी है. कोई लड़का निगाह में हो तो बात चलाइएगा.’’

‘‘ठीक है.’’

मदनजी पत्नी संध्या से बोले, ‘‘भाई साहब को हम लोगों की कितनी फिक्र रहती है.’’

तभी चहकती हुई पूर्वा मां से लिपट कर बोली, ‘‘मां, मेरा कैंपस सलैक्शन हो गया है.’’

‘‘अरे वाह, शाबाश,’’ वे बेटी का माथा चूमते हुए बोलीं, ‘‘तुम्हारी जौब किस कंपनी में लगी है?’’

‘‘विप्रो,’’ कह उस ने पापा के चरणस्पर्श किए.

पापा की आंखें सजल हो उठीं. बोले, ‘‘खूब तरक्की करो, मेरी बेटी… कब और कहां जौइन करना है?’’

‘‘पापा, जौइनिंग लैटर आने के बाद ही पता लगेगा… वैसे मैं ने दिल्ली के लिए लिखा था.’’

‘‘ठीक है, तुम्हारा रहने का प्रबंध ताऊजी के यहां हो जाएगा.’’

‘‘पापा, मैं अपने रहने के विषय में निर्णय नहीं कर सकती?’’

‘‘तुम्हारा दिमाग खराब है क्या?’’

पूर्वा का जौइनिंग लैटर आ गया था. दिल्ली औफिस में जौइन करना था.

दिल्ली का नाम सुनते ही पापा खुश हो उठे. उन्होंने तुरंत ताऊजी को फोन लगा कर सूचना दे दी, ‘‘भाई साहब, पूर्वा की नौकरी दिल्ली में लग गई है. 15 तारीख से जौइन करना है.’’

‘‘यह तो बड़ी खुशी की बात है.’’

‘‘अभी कुछ दिन आप के पास रहेगी, फिर अपने लिए कमरा देख लेगी.’’

‘‘क्यों? क्या वह मेरी बेटी नहीं है? डौली, बिन्नी का कमरा खाली ही तो पड़ा है. हम लोगों का भी मन लग जाएगा.’’

संध्याजी धीरे से बोलीं, ‘‘उन के घर पर रहना ठीक नहीं रहेगा, क्योंकि औफिस के चक्कर में घर के कामों में यह हाथ नहीं बंटा पाएगी, तो भाभीजी को अच्छा नहीं लगेगा.’’

‘‘तुम्हारे दिमाग में तो बस ऊटपटांग बातें ही घूमती रहती हैं. मेरे भाई साहब तो हमेशा तुम्हारी आंखों की किरकिरी रहे हैं. जवान लड़की यहांवहां रहेगी वह तुम्हारे लिए ठीक है, पर भाई साहब के घर ठीक नहीं है. तुम्हें तो कभी यह अच्छा ही नहीं लगता कि हम दोनों भाई आपस में प्रेम से रहें.’’

पूर्वा ने स्थिति को संभालते हुए कहा,

‘‘बस पापा, आप शांत हो जाएं… मैं ताऊजी के घर ही रहूंगी.’’

संध्या मन ही मन सोचने लगीं कि यदि उन के पास पैसा होता तो उस के लिए कोई राजकुमार ढूंढ़ कर उसे डोली में बैठा कर विदा कर देतीं. परंतु मजबूरी जो न करवाए वह थोड़ा है.

वे सोचने लगीं कि बैंक से लोन उठा कर किसी तरह बेटी को इंजीनियरिंग की पढ़ाई करवाई है. इसीलिए शादी से पहले नौकरी कर के लोन चुकाना जरूरी है. दूसरी बात आजकल सभी लोग बताते हैं कि नौकरी करने वाली लड़कियों को अच्छे लड़के जल्दी मिलते हैं, क्योंकि महंगाई के जमाने में एक की कमाई से सारे शौक पूरे नहीं हो सकते. इसलिए अपने सपनों को सच करने के लिए दोनों का कमाऊ होना आवश्यक हो गया है.

आजकल शादियों में खर्च भी अधिक होने लगा है. उस दिन घरघर झाड़ूपोंछा करने वाली माधुरी भी अपनी बेटी की शादी में क्व4 लाख खर्च हो जाने की बात कह रही थी. वह क्व4 लाख खर्च कर सकती है तो वे तो सरकारी स्कूल में टीचर हैं. उन के पास तो कुछ भी नहीं है… जो कुछ कमाया वह पति की बीमारी और बेटी की शिक्षा पर खर्च करती रही हैं.

उन्होंने तो यह शपथ भी ले रखी है कि बेटी की शादी में दहेज नहीं देंगी और बेटे की शादी में लेंगी नहीं.

तभी बेटी की आवाज से उन की तंद्रा भंग हुई, ‘‘मां, यह आप ने इतने बड़े डब्बे में क्या भर दिया है?’’

‘‘तू नहीं समझती, तेरे ताऊजी को लड्डू बहुत पसंद हैं और अचार व मठरियां तेरी ताई के लिए हैं,’’ फिर आंखों में आंसू भर आगे बोलीं, ‘‘देख बेटा, दूसरे के घर में निभाना आसान थोड़े ही होता है. यहां की तरह पटरपटर मत करना… ताऊजी के सामने तो बिलकुल मुंह बंद रखना. ‘‘ताऊजी को तो तुम जानती ही हो.

3-5 कर के उन्होंने 2-4 किताबें छपवा ली हैं, तो अपने को बहुत महान लेखक, ज्ञानी और विद्वान समझने लगे हैं. मेरी बात गांठ बांध ले,

उन से न तो बहस करना और न ही उन्हें कभी जवाब देना.’’ संध्याजी ने भीगी आंखों से बेटी को विदा किया था. जबकि उस के पापा भाई साहब के घर भेज कर बहुत खुश और आश्वस्त थे कि उन की बेटी अपने घर पर रहेगी और वहां उसे कोई परेशानी नहीं होगी.

पूर्वा पहली बार दिल्ली अकेले जा रही थी, इसलिए थोड़ी घबराई हुई थी, मगर स्टेशन पर ताऊजी को देख उस ने राहत की सांस ली. घर पहुंचते ही ताईजी की निगाहें उस से अधिक उस के साथ आए बड़े से डब्बे पर थीं.

ताऊजी के सूने घर में पूर्वा के आने से मानो नवजीवन का संचार हो गया. ताऊजी को उन की ऊलजलूल तुकबंदियों को सुनने के लिए एक श्रोता मिल गया था और ताईजी को उन की किचन के लिए एक पार्टटाइम सहायक.

कुछ दिन तक तो पूर्वा इन सब परिस्थितियों से तालमेल बैठाने का प्रयास करती रही, पर चक्की के 2 पाटों के बीच वह पिसने लगी थी. थकीमांदी औफिस से आती तो दोनों अपनीअपनी जरूरतों के लिए उसे अपने पास चाहते और फिर दोनों के बीच लड़ाई शुरू हो जाती. उस की समझ नहीं आता कि क्या करे?

उस ने मन ही मन हल सोचा कि वह औफिस से देर से आया करेगी. तब तक दोनों अपने टीवी सीरियल में व्यस्त हुआ करेंगे.

मगर ताऊजी बहुत तेज दिमाग थे या कह लो पूरे घाघ. उन्हें यह उस की उद्दंडता लगी थी. वे उस की चतुराई को समझ गए थे. इसलिए उन्होंने विरोधी पार्टी वाले तेवर दिखाने शुरू कर दिए.

अगले ही दिन उसे घुड़कते हुए बोले, ‘‘इतनी देर औफिस में क्या करती रहती हो? समय से लौटा करो. यह कोई होटल थोड़े ही है कि जब मरजी मुंह उठा कर चली आई. वहां दिन भर चहकती रहती होगी और घर में घुसी नहीं कि मुंह लटक जाता है.’’

वह चुप रही थी. इसी तरह से दिन बीतते रहे. 6 महीने पूरे हो गए थे. उस का प्रोबेशन पीरियड समाप्त हो गया था. वह परमानैंट हो गई थी. उसे इंक्रीमैंट भी मिल गया था. वह खुशी के मारे फूली नहीं समा रही थी. वह रास्ते से मिठाई खरीदती लाई.

‘‘ताऊजी, मेरी प्रमोशन हो गई है… लीजिए मिठाई. मुंह मीठा करिए,’’ कह उस ने डब्बा

उन के सामने कर दिया.

‘‘अब कितनी सैलरी हो गई तुम्हारी?’’

‘‘50 हजार.’’

‘‘वाह रे… मैं तो इतना विद्वान लैक्चरर था, परंतु इतनी जल्दी इतनी सैलरी नहीं हुई.’’ ‘‘ताऊजी, अब समय बदल गया है. इंजीनियर को इतनी ही सैलरी मिलती है और फिर आईटी सैक्टर में इंक्रीमैंट जल्दीजल्दी मिलता है.’’

आपको कहीं बीमार न कर दे यह बेमतलब सूचनाओं की बारिश

इसमें कोई दो राय नहीं कि हमारे पास जितनी ज्यादा सूचनाएं होती हैं, हम उतने ही स्मार्ट समझे जाते हैं. लेकिन लोगों की इस कमजोर नस का फायदा उठाते हुए कंटेंट से बेहद गरीब, बड़ी तादाद में ऐसी वेबसाइटें हैं जो उत्तेजनाओं से लबरेज अपने चटपटे शीर्षकों का ऐसा प्रपंच रचती हैं कि आप इनके चंगुल में फंसकर अंत में निराशा से अपना सिर थाम लेते हैं. लोगों के कौतूहल के मनोविज्ञान का ये इस हद तक दोहन में लगी हैं कि इन्हें परवाह नहीं है कि आप इस सबसे बीमार भी हो सकते हैं. फिल्मी सितारों सहित हर क्षेत्र के सेलिब्रिटीज की किसी बहुत मामूली सी जानकारी को भी ये वेबसाइटें दर्शकों का ट्रैफिक अपनी ओर खींचने के लिए, इस कदर तोड़ मरोड़कर और सनसनी का तड़का लगाकार परोसती हैं कि हर बार इस दुष्चक्र में फंसने के बाद लोगों का मन कसैला हो जाता है. उदाहरण के लिए पिछले दिनों करीना कपूर के संबंध में तमाम वेबसाइटों ने एक ऐसी उत्तेजक खबर चलायी जिसे जानकर कोई भी अपना माथा पीट सकता है.
लेकिन खबर तक पहुंचने के पहले जरा देखिये वेबसाइटों ने इसे किस तरह के शीर्षकों से पेश किया.
Û करीना ने खोला अपनी सौतन का वह राज, जिसे सुनकर आप सन्न रह जाएंगे.

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Û सार्वजनिक रूप से करीना ने अपनी सौत का किया पर्दाफाश.
इस जैसे करीब एक दर्जन शीर्षकों को पढ़ने के बाद फिल्मी लोगों की जानकारी रखने वाले लोग शायद ही इस शीर्षक पर क्लिक करने का मोह छोड़ पाये हों. ज्यादातर लोगों को लगा कि जरूर करीना ने अपने पति की पूर्व पत्नी अमृता सिंह के बारे में कुछ ऐसा कहा है, जिसे सुनकर अमृता के प्रशंसक सन्न रह जाएंगे या उन्हें धक्का लगेगा. लेकिन इन शीर्षकों से अपनी साइट खुलवा लेने वाली वेबसाइटों तक जब लोग पहुंचते हैं तो पता चलता है कि करीना ने सिर्फ यह कहा है, ‘मैं अमृता सिंह की एक सीनियर अदाकारा के रूप में इज्जत करती हूं.’ अब भला बताइये इसमें कौन सी ऐसी बात है, जिसे सुनकर आप सन्न रह गये या कि आपको इसमें कुछ पर्दाफाश करने जैसा लगा हो.

लेकिन वेबसाइटों को आपको अपनी खबर तक लाना है तो वे किसी भी बात पर इतना नमक मिर्च लगा देंगे कि भले उसमें सच का कोई रेशा मात्र भी न रह जाए, मगर उन्हें फर्क नहीं पड़ता. उन्हें तो बस आपको अपने आर्थिक फायदे के लिए आकर्षण के चंगुल में फंसाना भर है. यह एक बहुत खतरनाक प्रवृत्ति है, जो हाल के दिनों में लगातार बढ़ती जा रही है. तमाम वेबसाइटों की ऐसी हरकतों में फंसने के बाद यहां तक पहुंचने वाले पाठक न सिर्फ खुद को ठगा सा महसूस करते हैं बल्कि उनमें इस तरह की हरकतों के लिए, मन में गुस्सा और मीडिया के लिए असम्मान का भाव पैदा होता है. मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि अगर आप जल्दी से संयम में रहना नहीं सीखते तो ऐसा बार बार ठगा जाना आपको बीमार कर सकता है.
इस खेल में गुमनाम वेबसाइटों का ही जलवा नहीं है बल्कि कई बहुत जाने माने टीवी चैनलों की वेबसाइटें भी दर्शकों को अपनी ओर खींचने के लिए ऐसा ही उत्तेजनाओं से लबरेज सनसनी का जाल बिछाते हैं. यूरोप में मीडिया वेबसाइटों की ऐसी हरकतें आमतौर पर तीन महीने से पांच साल तक की जेल का कारण बन सकती हैं. लेकिन हिंदुस्तान जैसे देश में इस तरह का कोई कानून नहीं है, जिस कारण भी खूब मनमानी हो रही है. एक बहुत जाना माना और बेहद गंभीर समझा जाने वाला हिंदी टीवी चैनल एनडीटीवी, फेसबुक में दिन रात बेहद सनसनीखेज वीडियो पेश करता है, जो महज 3 से 4 सेकेंड के भी हो सकते हैं. इन्हें वीडियो कहना, वीडियो की कल्पना का अपमान है. ये महज अपनी मेंबरशिप बढ़ाने के लिए फेंका गया जाल भर होते हैं.

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अब चूंकि जब तक वीडियो खोल न लो, तब तक तो यह पता नहीं चलता कि उसमें क्या है? इसलिए बाद में जब शीर्षक से मेल न खाते हुए, पांच दस सेकेंड की विजुअल फोटोग्राफी वाले उस सनसनीखेज वीडियो तक लोग पहुंचते हैं तो उन्हें बहुत गुस्सा आता है. लेकिन अब आप उस गुस्से का करेंगे क्या? क्योंकि जिसे आपको बेवकूफ बनाना था, उसका काम तो हो गया. आपने उसकी पोस्ट को भले पूरा न देखा हो, लेकिन उसे खोलने के लिए क्लिक तो कर ही दिया. इसलिए अपडेट रहने के नाम पर या हर जानकारी जानने की उत्कंठा आजकल बीमार किये जाने का साधन बन चुकी है. सिर्फ फेसबुक में या महज वीडियो के जरिये ही ऐसे उत्तेजक लालच हम तक नहीं पहुंचते बल्कि व्हट्सएप्प की बीप भी हमें दिन रात इसी कारोबार की प्रेरणा से आगाह करने की जिद में लगी रहती है. मसलन अमरीका का कोविड वैक्सीन मेडोर्ना पर लगीं जासूसों की निगाहें. हम अभी लंच का निवाला तोड़ने ही वाले होते हैं कि फेसबुक की रिंग टोन हमें नयी पोस्ट की सूचना देती है और हम निवाले को मुंह मंे लेने के पहले मोबाइल की स्क्रीन पर अपनी नजरें गड़ा देते हैं. रात में नींद बस आ ही रही होती है कि एसएमएस की बीप हमें यह जानने के लिए अलर्ट करती है कि राॅयल चैलेंजर्स बंग्लुरु सेमीफाइनल में हारकर आईपीएल टूर्नामेंट से बाहर हो गयी. अभी सुबह की लालिमा भी नहीं छंटी होती, अभी हमने सही से आंखें भी नहीं खोली होतीं कि हमारे कानों में एक के बाद एक गुडमाॅर्निंंग के मैसेजों का हथौड़ा बजने लगता है.

लब्बोलुआब यह है कि हर पल गैरजरूरी सूचनाओं की जो यह हम पर बारिश हो रही है, वह हमें हर समय सांसत में डाले रहती है. हर कोई हमें अपने बारे में सब कुछ बताने के लिए बैचेन नजर आता है. चाहे शाॅपिंग एप हों, चाहे इंश्योरेंस के प्लान हों, नयी कारों और मोबाइल के नये संस्करणों की जानकारियां हों. तमाम कंपनियां, तमाम लोग नहीं चाहते कि हम इन सबसे अंजान रहें. जानकारी, जानकारी, जानकारी. लगता है हम कुछ चीजों से अगर अंजान रहेंगे तो हम पर मानो पहाड़ टूट जायेगा. मानो हमारी इस अनदेखी से धरती फट जायेगी. हर समय बाजार हमें अपने फायदे की और हमारे मामले में ज्यादा गैरजरूरी जानकारियों की बारिश में सरोबोर किये रहता है, जैसे अगर इन गैरजरूरी सूचनाओं में हम डूबें उतराएंगे नहीं तो हमारे लिए जिंदा रहना मुश्किल हो जायेगा. लगता है ये बाजार को विज्ञापित करने वाली जानकारियां हमें सांस लेने की महंगी जरूरतें हों.

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इतिहास का यह पहला ऐसा दौर है जब हम इफरात की सूचनाओं और बिना मांगी जबरदस्ती परोसी गई जानकारियों से त्रस्त हैं. अगर जल्द ही इसमें कोई पाबंदी नहीं लगती तो यह इंसानी मनोविज्ञान के लिए महामारी बन जायेगी. आखिर हमें बाजार की हर सूचना क्यों जानना चाहिए? क्यों हमें रात में 12 बजे किसी मोबाइल फोन के लांच होने की जानकारी 12 बजे रात को ही दी जानी चाहिए. इसलिए क्योंकि इसमें बाजार को फायदा है और बाजार अपने फायदे के सामने आपकी सेहत की कोई परवाह नहीं करता. अगर आपको अपनी सेहत की परवाह है तो बाजार के विज्ञापनों की सूचनाओं के रूप में इस बारिश से अपने आपको थोड़ा दूर रखिये.

नई हुंडई i20 टेक्नोलॉजी में भी हैं शानदार 

सभी नई कारों में कुछ न कुछ नई टेक्नोलॉजी रहती है. लेकिन नई हुंडई i20 आपको वो सारी टेक्नोलॉजी देती है जिसकी आपको सच में जरुरत होती है. जैसे हुंडई की ब्लूलिंक कनेक्टेड कार इकोसिस्टम, आपको OTA अपडेट के साथ मैप्स अपडेट करने देती है. इसका मतलब है आपके पास हमेशा यह सुनशिचत करने के लिए अपडेटेड मैप होगा कि आप कहां जा रहे हैं.

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इसके साथ ही, नई i20 7 स्पीकर BOSE म्यूजिक सिस्टम के साथ आता है. जो आपकी कार को अंदर से साउंड स्टेज में बदल देता है, जिससे आप कार-पुल कॉन्सर्ट भी कर सकते हैं.
इसके साथ ही स्मार्टफोन चार्जिंग सॉकेट, क्रूज़ कंट्रोल, वायरलेस चार्जिंग, एक सनरूफ और पुश-बटन स्टार्ट नई हुंडई i20 की विशेषताएं है. जो आपकी यात्रा को आसान बनाती है. इस तरह से नई हुंडई i20 #BringsTheRevolution हैं.

‘सिंबल’ से सत्ता पर पकड़ मजबूत करती भाजपा

लेखक- रोहित और शाहनवाज

दिल्ली-हरियाणा के सिंघु बोर्डर पर हम किसान आन्दोलन कवर करने गए थे. आन्दोलन में ‘जय जवान, जय किसान’ के नारों की आवाज वहां तक पहुंच रही थी जहां दूर मीडिया की गाड़ियों के खड़े होने की जगह थी. उत्सुकता बढ़ी तो तेज क़दमों से धरनास्थल पर पैर दोड़ पड़े. वहां पुलिस के लगाए 2 लेयर बैरीकेडो के बीचोंबीच जा कर हम फंस गए. हमें बैरीकेड पार कर के किसानों की तरफ बढ़ना था. लेकिन अन्दर जाने का रास्ता ब्लाक था.

रास्ता खोज ही रहे थे कि तभी एक आवाज सुनाई दी, “भाइयों, रास्ता इधर है. इस रास्ते से आ जाओ.” मुड़े तो देखा कि एक 27 वर्षीय युवा (तेजिंदर सिंह) बैरीकेड के ठीक पीछे कुर्सी पर दिल्ली के तरफ मुह कर के खड़ा था. उस के हाथ में एक सफेद रंग की तख्ती (प्लकार्ड) थी. तख्ती पर लिखा था “गोदी मीडिया गो बेक.” वहीं उस के बगल में खड़े दूसरे आन्दोलनकारी की तख्ती पर कुछ मीडिया चैनलों के नाम के साथ ‘मुर्दाबाद’ के नारे लिखे हुए थे.

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अब यह दिलचस्प था कि किसान आन्दोलन में सरकार की नीतियों के साथसाथ मुख्यधारा की मीडिया की मुखालफत देखने को मिली. हम जानने के लिए उन की तरफ बढ़े, हायहेल्लो की फोरमेलिटी छोड़ कर सीधा प्रश्न पूछ पड़े, ‘इन तख्तियों का क्या मतलब है?’

तेजिंदर ने जवाब दिया, “हम किसानों का यह संघर्ष दो मोर्चों पर है. एक, तीनों कानून वापस करवाने आए हैं. दूसरा, हमारा संघर्ष सरकार के तलवे चाटने वाली गोदी मीडिया के खिलाफ भी है. हम इन के आगे चाहे कितनी भी सफाई दे दें, जो भी सच्चाई रख दें, ये लोग वहीँ दिखाएंगे जो सरकार इन से कहेगी. आज ये दोनों मिल कर हमें खालिस्तानी कह रहे हैं कल को कुछ और भी कह सकते हैं. मीडिया एक बार भी इन कानूनों को ले कर सरकार से सवाल पूछने की हिम्मत नहीं कर सकती.”

तभी दूसरा युवक भी बातों में कूद पड़ा, उस ने तपाक से कहा, “ये (मीडिया) बस आन्दोलन को किसी भी तरह से बदनाम करना चाहते हैं. जो भी आवाज सरकारी नीतियों के खिलाफ उठती है उस आवाज को सब से पहले यही मीडिया विरोध करती है. इस का किसानों पर क्या असर पड़ेगा उन्हें इस से कोई मतलब नहीं. इन्हें तो मोटी मलाई मिल ही जाती है. हम यहां खड़े ही इसीलिए हैं ताकि उन्हें उन की बिकी हुई हकीकत दिखा सकें.”

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आन्दोलन में सरकार के साथसाथ मीडिया को ले कर प्रदर्शनकारियों में असंतोष का यह पहला उदाहरण नहीं था, बल्कि वहां देखने में आया कि किसान इन बातों को ले कर इतना सचेत थे कि अपनी बात रखने से पहले वे यह अच्छी तरह टटोल लेते कि फलां कौन सा चैनल है, रात के प्राइम टाइम में क्या चलाएगा, और हमें इन से कैसे बात करनी है?

मीडिया और सरकार को ले कर किसान प्रदर्शनकारियों का विश्वास पूरी तरह ख़त्म हो चुका है. आन्दोलन के शुरू से इन दोनों के रवैये को किसान समझ चुके थे. इस का कारण यह कि भाजपाई नेता लगातार आन्दोलन पर कोई हड्डी हवा में उछालता तो यह मीडिया लपक कर उस के ऊपर दौड़ पड़ता.

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मीडिया-सत्ता का गठजोड़

जून में विवादित कृषि सम्बंधित अध्यादेश आने के बाद से ही देशभर में किसान तरहतरह से अपने स्तर पर प्रदर्शन कर रहे थे. भारत में दुनिया के सब से सख्त लौकडाउन लगने के कारण इन अध्यादेशों के खिलाफ पंजाब व अन्य राज्यों में लोग अपनी घरों की छत पर इकट्ठे हो कर ही इन कानूनों का विरोध कर रहे थे. समय के साथसाथ लोगों कि छतों और आंगन में होने वाले प्रोटेस्ट सड़कों पर उतर आए. एक समय बाद किसानों ने अपनी यूनियन के साथ इकट्ठे हो कर पंजाब में ‘रेल रोको आन्दोलन’ किया. और जब किसानों की मांग को सरकार ने अनदेखा कर दिया तो किसान अपनी मांग ले कर अभी दिल्ली के बौर्डर पर तैनात हो आए हैं. ये आन्दोलन समय के साथसाथ बड़ा हुआ है और किसान अपनी बात, अपनी मांगे जनता तक पहुंचाने में एक तरह से सफल भी हुए हैं.

लेकिन किसानों के इस आन्दोलन को सरकारी नुमाईन्दों और सत्ता की गोद में बैठी मीडिया, जिसे गोदी मीडिया कहा जाता है, ने बदनाम करने का एक भी मौका हाथ से जाने नहीं दिया. भाजपाई नेता और उस की आईटी सेल जो भी आरोप आन्दोलन के खिलाफ गढ़ते, उसे मुख्यधारा की मीडिया सरकारी भोपू की तरह दिनरात बजबजाती.

भाजपाई नेता और मीडिया द्वारा खालिस्तानी, देशद्रोही, टुकड़ेटुकड़े गैंग, आतंकवादी कनेक्शन, चीन-पाक कनेक्शन इत्यादि शब्दों से आन्दोलन पर कई सवालिया निशान खड़े किए जाते रहे है, यह इसलिए ताकि आमजन को पूरा मसला समझ में आए उस से पहले ही उन्हें भ्रम की दीवार के पीछे धकेल दिया जाए. आन्दोलन के खिलाफ नकारात्मक रिपोर्ट से सनी आज की मीडिया अपना चरित्र साफ़ दिखा चुकी है, जिसे किसान भी समझ रहे हैं.

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यह मीडिया की ही सच्चाई है कि पिछले 3 महीने से लगातार चले आ रहे इस आन्दोलन में- किसानों की मांग क्या है, यह कानून क्या है, आखिर वो मजबूर क्यों हैं, इसे स्पष्ट तौर से समझाने की जगह बस सरकारी आरोपों का भोपू बजाया गया है. सरकार की दमनकारी नीति तो दूर, इस बात को भी बड़े स्मार्ट तरीके से छुपाया गया कि किसान का यह आन्दोलन अदानी-अंबानी और चंद कॉर्पोरेट घरानों के खिलाफ भी है. जिस के पेट्रोलपम्पों, नेटवर्क, माल्स को किसान बायकाट कर रहे हैं.

यह सोचने वाली बात है जब तक किसान अपने प्रदेश में, राज्य स्तर पर प्रदर्शन कर रहे थे, तब तक सरकार इन पर ध्यान देना भी जरुरी नहीं समझ रही थी. लेकिन वही किसान अब जब अपनी मांगों को ले कर दिल्ली आ गए तो उन पर तरहतरह का टैग लगा कर उन के आन्दोलन को बदनाम करने पर उतारू है.

किसानों को दिल्ली के सिंघु बौर्डर पर आए अभी 2 ही दिन हुए थे कि 30 नम्वंबर को बीजेपी के सोशल मीडिया अकाउंट, खासकर ट्विटर और फेसबुक से प्रदर्शन करने आए किसानों पर ‘खालिस्तानी’ होने का टैग लगा दिया. वैसे तो यह सब टैगिंग का काम भाजपा के अंधभक्त पहले से ही कर रहे थे, लेकिन आधिकारिक रूप से भाजपा ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट से ट्वीट कर किसानों के आन्दोलन को ‘खालिस्तानी’ होने कि बात कही.

सिर्फ सोशल मीडिया हैंडल ही नहीं, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर तो यह तक कह गए कि, “अगर ये लोग इंदिरा गांधी को कर सकते हैं तो ये मोदी को क्यों नहीं कर सकते.” इस के साथ ही खट्टर ने इन किसानों के ‘प्रो खालिस्तान और प्रो पाकिस्तान’ होने का भी टैग लगा दिया था.

ठीक उसी दिन उत्तराखंड भाजपा के नेता दुष्यंत कुमार गौतम ने कहा कि, “इन किसानों का इस प्रोटेस्ट से कोई लेना देना नहीं है. इसे आतंकवादियों और राष्ट्र विरोधी ताकतों द्वारा अपहरण कर लिया गया है. प्रोटेस्ट में आए कुछ लोग महंगी कारों और अच्छे कपड़ों में देखे गए, वह किसान नहीं हो सकते.” कुछ इसी तरह का बयान केन्द्रीय मंत्री वीके सिंह ने भी दिया. उन्होंने कहा कि कपड़ों से ये लोग किसान नहीं लगते हैं.

लोगों को गुमराह करने में महारत हासिल करने वाले भाजपा के सोशल मीडिया चीफ अमित मालवीय ने 2 दिसम्बर को इन्टरनेट पर वायरल हो रहे एक विडियो का अधूरा हिस्सा दिखा कर ट्वीट किया कि पुलिस वालों ने किसी किसान पर लाठियों से हमला नहीं किया. जिस के जवाब में किसी राजनैतिक पार्टी ने नहीं बल्कि ट्विटर की कंपनी ने ही उस ट्वीट को ‘मैनीप्युलेटेड मीडिया’ (मीडिया में हेर फेर) का टैग लगा दिया. भारत में ऐसा पहली बार हुआ था जब किसी व्यक्ति के ट्वीट को ट्विटर ने ‘मैनीप्युलेटेड मीडिया’ का टैग दिया हो.

3 दिसम्बर के दिन दिल्ली भाजपा के एमपी मनोज तिवारी ने किसान आन्दोलन को ‘टुकड़े टुकड़े गैंग’ द्वारा संचालित करने का आरोप लगाया. इस आन्दोलन को उन्होंने ‘सुनियोजित साजिश’ करार दिया और कहा कि ये गैंग इस प्रोटेस्ट को शाहीन बाग जैसा बनाना चाहते हैं. कहा कि ये शाहीन बाग 2.0 बनाने की पूरी तैयारी है. 6 दिसम्बर को भाजपा के जनरल सेक्रेटरी बीएल संतोष ने किसान आन्दोलन कर रहे किसान यूनियनों पर ‘दोगला’ होने का आरोप भी लगाया.

किसान आन्दोलन की मांगों का समर्थन कर रहे ऊंचे अवार्ड और पदकों से सम्मानित खिलाड़ियों के अवार्ड वापिस करने को ले कर मध्य प्रदेश भाजपा के नेता कमल पटेल का अजीबोंगरीब बयान भी सामने आया. जिस में उन्होंने कहा, “अवार्ड वापसी करने वाले सभी लोगों ने भारत माता को गाली दी है और देश के टुकड़े करने की कसम खाई है. अवार्ड वापसी करने वाला कोई भी देशभक्त नहीं है.”

9 दिसम्बर को केन्द्रीय मंत्री राओसाहेब दानवे ने यह दावा किया कि इस प्रोटेस्ट के पीछे चीन और पाकिस्तान का हाथ है. उन के अनुसार चीन और पाकिस्तान इस प्रोटेस्ट की फंडिंग कर रहा है. यहां तक कि अगर कोई मुस्लिम व्यक्ति आन्दोन में दिख जाए तो उस का ऐसा एंगल दिखाया जाता मानो वह संदिग्ध हो, उस ने वहां जाकर कोई गुनाह कर दिया हो. ऐसे में सवाल यह बनता है कि देश में क्या कोई मुस्लिम समुदाय से आने वाला व्यक्ति किसान नहीं हो सकता?

इस के बाद 11 दिसम्बर ‘ह्यूमन राइट्स डे’ के दिन सिंघु बॉर्डर पर भारतीय किसान यूनियन (उग्रहन) के किसानों ने देश की जेलों में कैद उन लोगों को रिहा करने की मांग भी उठाई जो सरकार की तीखी आलोचना करते थे और जिन पर अभी तक कोई आरोप सिद्ध नहीं किया जा सका है. जिन में वरवरा राव, शर्जील इमाम, उमर खालिद, फादर स्टेन, सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा और भी कई ऐसे नाम है जिन पर सरकार द्वारा यूएपीए कानून के तहत काफी लम्बे समय से जेल में बंद हैं. और इस लिस्ट में कई नाम ऐसे भी है जो किसानों के अधिकारों को लेकर लम्बे समय से संघर्ष कर रहे थे. और बड़ी अजीब बात यह है कि सरकार इन में से किसी के खिलाफ सबूत नहीं जुटा पाई है.

अब माओवादी और देशद्रोह कनेक्शन..

इन सब आरोपों के बाद सरकार ने इन दिनों आन्दोलन को बदनाम करने के लिए कुछ और आरोपों को इन में शामिल कर दिया है. अब जाहिर सी बात है, ‘खालिस्तान’ की पीपरी, यूपी, बिहार और हरियाणा में बैठे किसान परिवार के समझ के परे था तो सरकार को ऐसे सिंबल की जरुरत थी जो उन के आरोपों को सार्थक कर सके. यही कारण था कि माओवादी, देशद्रोही, टुकड़ेटुकड़े गैंग की हवा फिर से बनाने की पूरी कवायद चल रही है. जिस के लिए सरकार ने “सरकारी सूत्रों” (केन्द्रीय ख़ुफ़िया ब्यूरो) का हवाला देते हुए यह खबर खूब जौरशौर से चलवा दी कि किसानों के इस आन्दोलन को ‘अल्ट्रा लेफ्ट’, ‘प्रो लेफ्ट विंग’, ‘एक्सट्रिमिस्ट एलिमेंट’ और ‘माओवादियों’ ने हाईजैक कर लिया है.

पंजाब के संगरूर जिले से मंजीत सिंह से जब इन आरोपों के बारे में पूछा गया तो वे कहते हैं, “ये सब झूठे आरोप लगा कर सरकार हमारे आन्दोलन को बदनाम करना चाहती है. और इस आग में घी डालने का काम गोदी मीडिया कर रहा है. इस देश को गर्त में ले जाने का काम जितना देश की सरकार ने किया है उस से कहीं बड़ा योगदान हमारी दलाल मीडिया का है. हम सीधेसाधे किसान हैं जो अपने हक मांगने सरकार के पास आए हैं.”

वे आगे कहते हैं, “सरकार इन कानूनों को वापस लेने से डरती है, क्योंकि इस से उन के चंद कॉर्पोरेट दोस्तों के हित जुड़े हुए हैं. यही कारण है कि वे हम पर बदलबदल कर आरोप लगा रहे हैं. खालिस्तानी, आतंकवादी चल नहीं पाया तो माओवादी कहना शुरू कर दिया है. सरकार बौखलाई हुई है, क्योंकि वे नैतिक दबाव में फंस चुके हैं, इस लिए हमारे आन्दोलन को अनैतिक दिखाने की कोशिश कर रही है. यही कारण है वे हम पर झूठे आरोप लगा रही है.”

इसी मसले पर सिंघु बोर्डर पर आए करमजीत ने फोन पर बात करते हुए बताया कि, “अगर सरकार को पता है कि आन्दोलन में खालिस्तानी, आतंकवादी, माओवादी, देशद्रोही वगेरावगेरा हैं तो आए उन्हें गिरफ्तार करे. चुप क्यों बैठे हैं. चुप बैठ कर तो वह अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहे हैं साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़ कर रहे हैं, यानी यह दिखाता है कि बस कीचड उछालना चाहती है.” करमजीत मानते हैं कि भाजपा ने इन 6 सालों में अपने खिलाफ उठने वाली आवाजों को दबाने के लिए कुछ तरह के नए सिंबल गढ़े हैं. या पुराने सिंबल को जौरशौर से इस्तेमाल किया है, जिस में मीडिया के बड़े हिस्से ने उन का साथ दिया है.

सिंबल के इर्दगिर्द राजनीति

किसी भी तरफ की राजनीति में ‘पहचान’, ‘टेग’ व ‘सिंबल’ एक अहम् चीज होती है. फिर चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक. इन ‘सिंबल’ को स्थापित करना किसी भी राजनेता के लिए राजनीतिक विजय के समान होता है. यह वही ‘पहचान’ होते हैं जो राजनेता को राजनीतिक फायदा व नुकसान पहुंचाते हैं, यही कारण है कि सब से पहले राजनेता इन्ही को गढ़ने की कोशिश करता है. आज भाजपा इतनी ताकतवर है कि उस ने अपने विरोधियों के खिलाफ ऐसे कई टैग गढ़ दिए हैं जिस से ने बड़े ही

2014 में जब प्रधानमंत्री मोदी सत्ता में काबिज हो रहे थे, उस से पहले वे खुद के लिए योजनाबद्ध तरीके से हिन्दू हृदय सम्राट, साधूसंत, सन्यासी, फ़कीर, विकासपुरुष, ईमानदार जैसे शब्द स्थापित करवा चुके थे. वहीं उस समय के विपक्षी नेता उम्मीदवार राहुल गांधी के लिए शहजादा, पप्पू, नौसिखिया, मां का लाडला जैसी पहचान घरघर तक पहुंचा चुके थे. जिस से आमजन में प्रधानमंत्री के चेहरे के लिए एक स्पष्टता बनी.

यह इमेज को बनाने और बिगाड़ने का खेल राजनीति की प्रमुख पहचान है. राजनीति में यह सिंबल ना सिर्फ किसी की हस्ती को बनानेडुबाने के काम आते हैं बल्कि सत्ता में बैठे सत्ताधारियों का अपने खिलाफ उठ रहे विरोधों को कुचलने के भी काम आते हैं. मौजूदा समय की बात की जाए तो भाजपा इन सिंबल व अपने प्रचार तंत्र के सहारे कई आंदोलनों का दमन कर चुकी है.

यही कारण था, जुलाई 2015 में दलित छात्र स्कोलर रोहित वेमुला की संस्थागत हत्या के बाद उठ रहे देश में विरोधों को ख़त्म करने के लिए, देश में आंदोलित छात्रों पर सब से पहले हमला किया गया, और उन्हें कथित ‘टुकड़ेटुकड़े गैंग’ सिंबल दिया गया, जो आज तक छात्र आन्दोलन के लिए नासूर बना हुआ है. इस शब्द के बड़े राजनीतिक मायने रहे हैं. इस के जरिए समाज में एक अलग तरह का डिस्कोर्स खड़ा किया गया. देशभक्त बनाम देशद्रोह की बहस छेड़ी गई. बाजार में दाल चावल की बढ़ी कीमतों से परेशान आम व्यक्ति के लिए भी फलाने यूनिवर्सिटी में कुछ नौसिखियों छात्रों द्वारा चली बहस प्राथमिकता बन गई. और पूरा मामला भाजपा के लिए अंधभक्ति फैलाने के नजरिए से मील का पत्थर बन गया.

ठीक इसी तरह की ‘सिंबल’ की राजनीति मोदी सरकार के खिलाफ उठे उन तमाम विरोधों, आपत्तियों और असहमतियों के विरुद्ध भाजपाइयों द्वारा की गई, जहां बुद्धिजीवियों को ‘अर्बन नक्सल’, असहमति में अवार्ड लौटाने वालों को ‘अवार्ड वापसी गैंग’ इत्यादि टेग दिए गए.

इसी कड़ी में सीएए-एनआरसी आन्दोलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने झारखंड के दुमका से आगजनी करने वालों को कपड़ों से पहचानने की सलाह दे दी. वैसे तो यह तय है कि तमाम मीडिया और सरकारी तंत्र ने आज अल्पसंख्यक समुदाय को संदिग्ध की केटेगरी में डाल ही दिया है, फिर चाहे वह ‘मोब लिंचिंग’ के समय से हो, या सीएए-एनआरसी के समय हो, इस समझने के लिए कोरोना काल में तबलीगी जमात से वाले प्रकरण को लिया जा सकता है. लेकिन इस के साथ जो भी सरकार की आंख में किरकिरी पैदा करता है उसे यह सरकार सिंबल के माध्यम से बदनाम करवाती है, जैसे लौकडाउन के समय मजदूरों को कहा जा रहा था कि वे कोरोना वाहक हैं.

आज किसानों के आन्दोलन में भी यही देखने को मिला है, जहां कानूनों पर चर्चा से ज्यादा सरकार और मीडिया नए सिंबल गढ़ने का या तो प्रयास कर रही है, या पुराने सिम्बलों के जरिए आन्दोलन को कटघरे में खड़ा कर रही है. बस इस बीच जो नहीं हो पा रहा वह किसानों को इन कानूनों से होने वाली समस्या और कानूनों के फायदे नुकसान पर सिलसिलेवार चर्चा है.

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