एक लंबे अरसे से खेती के काम में रोगों, कीड़ों व खरपतवारों से निबटने के लिए खतरनाक रासायनिक दवाओं का इस्तेमाल किया जा रहा है. यह जानते हुए भी कि ये दवाएं नुकसानदायक हैं, इन का इस्तेमाल थम नहीं रहा है. आखिर क्या है, इस कहर से बचने का तरीका?

भारत का पूरा रकबा 3287 लाख हेक्टेयर है, जिस के 43 फीसदी हिस्से में खेती होती है. खेती शुरू से आय का खास जरीया रही है. इस में रोजगार पैदा कर के, उद्योगों को बढ़ावा दे कर और खाने की चीजों को देश से बाहर भेज कर विदेशी पैसा कमाया जा सकता है. कैमिकल दवाओं से बढ़ रहे जहर की वजह से लाखों लोग हर साल कैंसर, दमा, एलर्जी, हार्टअटैक, माइग्रेन, हाई ब्लड प्रेशर, मधुमेह जैसी भयानक बीमारियों से मर जाते हैं, वहीं करोड़ों बच्चे विकलांगता व अंधेपन के शिकार हो रहे हैं. ऐसा नहीं है कि जहरीली दवाओं के जानलेवा खतरों से बचा नहीं जा सकता, लेकिन इस के लिए ठोस खेती की नीति बनाया जाना बहुत जरूरी है.

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भारतीय खेती में दवाओं की प्रति इकाई क्षेत्र खपत दूसरे देशों की तुलना में बहुत कम यानी 600 ग्राम प्रति हेक्टेयर है, जबकि ताइवान में 17 किलोग्राम, चीन में 13 किलोग्राम, जापान में 12 किलोग्राम, संयुक्त राज्य अमेरिका में 7 किलोग्राम और फ्रांस में 5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है. भारत में दवाओं के इस्तेमाल संबंधी कोई भी सही दिशानिर्देश नहीं हैं. कोई भी किसान किसी भी पीड़कनाशी का इस्तेमाल कभी भी, कहीं भी और कितनी भी मात्रा में करे, इस पर कोई रोकटोक नहीं?है. खेती में हो रहे दवाओं के अंधाधुंध इस्तेमाल से ये कैमिकल इनसानों और दूसरे जीवों के लिए जानलेवा व घातक साबित हो रहे हैं. खेती में दवाओं का इस्तेमाल खासतौर से कीटों को मारने और खरपतवार नियंत्रण में किया जाता है. भारत में दवाओं की कुल खपत का 67 फीसदी खेती में, 21 फीसदी घरों में और 12 फीसदी कारखानों में इस्तेमाल होता है.

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