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Crime Story: मौत का सौदागर

सौजन्या-  सत्यकथा
 
25नंवबर, 2020 को देव दिवाली का त्यौहार होने के कारण एक ओर जहां रतलाम के लोग अपने आंगन में गन्ने से बने मंडप तले शालिग्राम और तुलसी का विवाह उत्सव मना रहे थेवहीं दूसरी ओर शहर भर के बच्चे दीवाली की बची आतिशबाजी खत्म करने में लगे थे. चारों तरफ धूमधड़ाके का माहौल था.

  लेकिन इस से अलग औद्योगिक थाना इलाके में कब्रिस्तान के पास बसे राजीव नगर में युवक बेवजह ही सड़क पर यहां से वहां चक्कर लगाते हुए कालोनी के एक तिमंजिला मकान पर नजर लगाए हुए थे.

यह मकान गोविंद सेन का था. लगभग 50 वर्षीय गोविंद सेन का स्टेशन रोड पर अपना सैलून था. उन का रिश्ता ऐसे परिवार से रहा जिस के पास काफी पुश्तैनी संपत्ति थी. पारिवारिक बंटवारे में मिली बड़ी संपत्ति के कारण उन्होंने राजीव नगर में यह आलीशान मकान बनवा लिया था.

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इस की पहली मंजिल पर वह स्वयं 45 वर्षीय पत्नी शारदा और 21 साल की बेटी दिव्या के साथ रहते थे. जबकि बाकी मंजिलों पर किराएदार रहते थे. उन की एक बड़ी बेटी भी थीजिस की शादी हो चुकी थी.

इस परिवार के बारे में आसपास के लोग जितना जानते थेउस के हिसाब से गोविंद सिंह की पत्नी घर पर अवैध शराब बेचने का काम करती थी. जबकि उन की बेटी को खुले विचारों वाली माना जाता था. लोगों का मानना था कि दिव्या एक ऐसी लड़की है जो जवानी में ही दुनिया जीत लेना चाहती थी. उस की कई युवकों से दोस्ती की बात भी लोगों ने देखीसुनी थी.

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पिता के सैलून चले जाने के बाद वह दिन भर घर में अकेली रहती थी. मां शारदा और बेटी दिव्या से मिलने आने वालों की कतार लगी रहती थी. मोहल्ले वाले यह सब देख कर कानाफूसी करने के बाद हमें क्या करना’ कह कर अनदेखी करते देते थे.

25 नवंबर की रात जब चारों ओर देव दिवाली की धूम मची हुई थी. राजीव नगर की इस गली मे घूम रहे युवक कोई साढे़ बजे के आसपास गोविंद के घर के सामने से गुजरे और सीढ़ी चढ़ कर ऊपर चले गए. सामने के मकान से देख रहे युवक ने जानबूझ कर इस बात पर खास ध्यान नहीं दिया. जबकि उन का चौथा साथी गोविंद के घर जाने के बजाय कुछ दूरी पर जा कर खड़ा हो गया.

रात कोई सवा बजे थकाहारा गोविंद दूध की थैली लिए घर लौटा. गोविंद सीढि़यां चढ़ कर ऊपर पहुंच गया. इस के कुछ देर बाद वे तीनों युवक उन के घर से निकल कर नीचे आ गए.

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जिस पड़ोसी ने उन्हें ऊपर जाते देखा थासंयोग से उस ने तीनों को वापस उतरते भी देखा तो यह सोच कर उस के चेहरे पर मुसकराहट तैर गई कि घर लौटने पर उन युवकों को अपने घर में मौजूद देख कर गोविंद सेन की मन:स्थिति क्या रही होगी.

तीनों युवकों ने नीचे खड़ी दिव्या की एक्टिवा स्कूटी में चाबी लगाने की कोशिश कीलेकिन संभवत: वे गलत चाबी ले आए थे. इसलिए उन में से एक वापस ऊपर जा कर दूसरी चाबी ले आयाजिस के बाद वे दिव्या की एक्टिवा पर बैठ कर चले गए.

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26 नवंबर की सुबह के बजे रतलाम में रोज की तरह सड़कों पर आवाजाही शुरू हो गई थी. लेकिन गोविंद सेन के घर में अभी भी सन्नाटा पसरा हुआ था. कुछ देर में उन के मकान में किराए पर रहने वाली युवती ज्वालिका अपने कमरे से बाहर निकल कर दिव्या के घर की तरफ गई.

दिव्या की हमउम्र ज्वालिका एक प्राइवेट अस्पताल में नौकरी करती थी. गोविंद की बेटी भी एक निजी कालेज से बीएससी की पढ़ाई के साथ नर्सिंग का कोर्स कर रही थी. महामारी के कारण आजकल क्लासेस बंद थींइसलिए वह अपनी बड़ी बहन की कंपनी में नौकरी करने लगी थी.

ज्वालिका और दिव्या एक ही एक्टिवा इस्तेमाल करती थीं. जब जिस को जरूरत होतीवही एक्टिवा ले जाती. लेकिन इस की चाबी हमेशा गोविंद के घर में रहती थी. सो काम पर जाने के लिए एक्टिवा की चाबी लेने के लिए ज्वालिका जैसे ही गोविंद के घर में दाखिल हुईचीखते हुए वापस बाहर आ गई.

उस की चीख सुन कर दूसरे किराएदार भी बाहर आ गए. उन्हें पता चला कि गोविंद के घर के अंदर गोविंदउस की पत्नी और बेटी की लाशें पड़ी हैं. घबराए लोगों ने यह खबर नगर थाना टीआई रेवल सिंह बरडे को दे दी.

 

कुछ ही देर में वह अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए और मामले की गंभीरता को देखते हुए इस तिहरे हत्याकांड की खबर तुरंत एसपी गौरव तिवारी को दी.

कुछ ही देर में एसपी गौरव तिवारी एएसपी सुनील पाटीदारएफएसएल अधिकारी अतुल मित्तल एवं एसपी के निर्देश पर माणकचौक के थानाप्रभारी अयूब खान भी मौके पर पहुंच गए.

तिहरे हत्याकांड की खबर पूरे रतलाम में फैल गईजिस से मौके पर जमा भारी भीड़ जमा हो गई. मौकाएवारदात की जांच में एसपी गौरव तिवारी ने पाया कि शारदा का शव बिस्तर पर पड़ा थाजिस के सिर में गोली लगी थी. उन की बेटी दिव्या की लाश किचन के बाहर दरवाजे पर पड़ी थी. दिव्या के हाथ में आटा लगा हुआ था और आधे मांडे हुए आटे की परात किचन में पड़ी हुई थी.

इस से साफ हुआ कि पहले बिस्तर पर लेटी हुई शारदा की हत्या हुई होगी. गोली की आवाज सुन कर दिव्या बाहर आई होगी तो हत्यारों ने उसे भी गोली मार दी होगी. गोविंद की लाश दरवाजे के पास पड़ी थीइस का मतलब उस की हत्या सब से बाद में हुई थी. उन के पैरों में जूते थे और हाथ में दूध की थैली.

 

पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्यारे हत्या करने के बाद भागना चाहते होंगेलेकिन भागते समय ही गोविंद घर लौट आएजिस से उन की भी हत्या कर दी गई होगी. पड़ोसियों ने गोविंद को बजे घर आते देखा था. उस के बाद लोगों को घर से बाहर जाते देखा. इस से यह साफ हो गया कि शारदा और दिव्या की हत्या बजे के पहले की गई होगी. जबकि गोविंद की हत्या बजे हुई होगी. पुलिस ने जांच शुरू की तो गोविंद सेन के परिवार के बारे में जो जानकरी निकल कर सामने आईउस से पुलिस को शक हुआ कि हत्याएं प्रेम प्रसंग या अवैध संबंध को ले कर की गई होंगी.

लेकिन गोविंद के एक रिश्तेदार ने इस बात को पूरी तरह गलत करार देते हुए बताया कि गोविंद ने कुछ ही समय पहले 30 लाख रुपए में गांव की अपनी जमीन बेची थी.

दूसरा घटना के दिन ही शारदा और दिव्या ने डेढ़ लाख रुपए की ज्वैलरी की खरीदारी की थीजो घर में नहीं मिली. इस कारण पुलिस लूट के एंगल से भी जांच करने में जुट गई. चूंकि मौके पर संघर्ष के निशान नहीं थे और हत्यारे गोविंद की बेटी की एक्टिवा भी साथ ले गए थे. इस से यह साफ हो गया कि वे जो भी रहे होंगेपरिवार के परिचित रहे होंगे और उन्हें गाड़ी की चाबी रखने की जगह भी मालूम थी.

हत्यारों ने वारदात का दिन देव दिवाली का सोचसमझ कर चुना. इसलिए आतिशबाजी के शोर में किसी ने भी पड़ोस में चलने वाली गोलियों की आवाज पर ध्यान नहीं दिया था.

मामला गंभीर था इसलिए आईजी राकेश गुप्ता ने मौके का निरीक्षण करने के बाद हत्यारों की गिरफ्तारी पर 30 हजार रुपए के ईनाम की घोषणा कर दी.

वहीं एसीपी गौरव तिवारी ने 10 थानों के टीआई और लगभग 60 पुलिसकर्मियों की एक टीम गठित कर दीजिस की कमान  थानाप्रभारी अयूब खान को सौंपी गई. इस टीम ने इलाके के पूरे सीसीटीवी कैमरे खंगालेइस के अलावा घटना के समय राजीव नगर में स्थित मोबाइल टावर के क्षेत्र में सक्रिय 70 हजार से अधिक फोन नंबरों की जांच शुरू की.

दिव्या को एक बोल्ड लड़की के रूप में जाना जाता था. उस की कई लड़कों से दोस्ती थी. कुछ दिन पहले उस ने एक अलबम मैनूं छोड़ के…’ में काम किया था. इस अलबम में भी उस की एक दुर्घटना में मौत हो जाती है. पुलिस ने उस के साथ काम करने वाले युवक अभिजीत बैरागी से भी पूछताछ की लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.

 

घटना वाले दिन से ले कर चंद रोज पहले तक दिव्या ने जिन युवकों से फोन पर बात की थीउन सभी से पुलिस ने पूछताछ की. गोविंद सेन की एक्टिवा देवनारायण नगर में लावारिस खड़ी मिली. तब पुलिस ने वहां भी चारों ओर लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज जमा कर हत्यारों का पता लगाने की कोशिश शुरू की.

जिस में दोनों जगहों के फुटेज से संदिग्ध युवकों की पहचान कर ली गईजिन्हें घटना से पहले इलाके में पैदल घूमते देखा गया था. और बाद में वही युवक दिव्या की एक्टिवा पर जाते हुए सीसीटीवी कैमरे में कैद हुए.

जाहिर है हर बड़ी घटना के आरोपी भले ही कितनी भी दूर क्यों न भाग जाएंवे घटना वाले शहर में पुलिस क्या कर रही है. इस बात की जानकारी जरूर रखते हैंयह बात एसपी गौरव तिवारी जानते थे. इसलिए उन्होंने जानबूझ कर जांच के दौरान मिले महत्त्वपूर्ण सुराग को मीडिया के सामने नहीं रखा था.

दरअसलजब पुलिस सीसीटीवी के माध्यम से हत्यारों के भागने के रूट का पीछा कर रही थी तभी देवनारायण नगर में आ कर दोनों संदिग्धों ने दिव्या की एक्टिवा छोड़ दी थी. वहां पहले से एक युवक स्कूटर ले कर खड़ा थाजिसे ले कर वे वहां से चले गए. जबकि स्कूटर वाला युवक पैदल ही वहां से गया था.

इस से एसपी को शक था कि तीसरा युवक स्थानीय हो सकता हैजो आसपास ही रहता होगा. बात सही थीवह अनुराग परमार उर्फ बौबी थाजो विनोबा नगर में रहता था.

इंदौर से बीटेक करने के बाद भी उस के पास कोई काम नहीं था. वह इस घटना में शामिल था और पुलिस की गतिविधियों पर नजर रखे हुए था. इसलिए जब उसे पता चला कि पुलिस को उस का कोई फुटेज नहीं मिला तो वह लापरवाही से घर से बाहर घूमने लगा.

जिस के चलते नजर गड़ा कर बैठी पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर पूछताछ की. उस से मिली जानकारी के दिन बाद ही पुलिस ने दाहोद (गुजरात) से लाला देवल निवासी खरेड़ी गोहदा और वहीं से रेलवे कालोनी रतलाम निवासी गोलू उर्फ गौरव को गिरफ्तार कर लिया. उन से पता चला कि पूरी घटना का मास्टरमांइड दिलीप देवले हैजो खरेड़ी गोहद का रहने वाला है.

यही नहीं पूछताछ में यह भी साफ हो गया कि जून 20 में दिलीप देवल ने ही अपने ताऊ के बेटे सुनीत उर्फ सुमीत चौहान निवासी गांधीनगररतलाम और हिम्मत सिंह देवल निवासी देवनारायण के साथ मिल कर डा. प्रेमकुंवर की हत्या की थी. जिस से पुलिस ने सुनीत और हिम्मत को भी गिरफ्तार कर लिया.

इन से पता चला कि तीनों हत्याएं लूट के इरादे से की गई थीं. दिलीप के बारे में पता चला कि वह रतलाम में ही छिप कर बैठा है. पुलिस को यह भी पता चला कि वह मिडटाउन कालोनी में किराए के मकान में रह रहा है. और पुलिस तथा सीसीटीवी कैमरे से बचने के लिए पीछे की तरफ टूटी बाउंड्री से आताजाता है.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने पीछे की तरफ खाचरौद रोड पर उसे घेरने की योजना बनाईजिस के चलते दिसंबर, 2020 को वह पुलिस को दिख गया. पुलिस टीम ने उसे ललकारा तो दिलीप ने पुलिस पर गोलियां चलानी शुरू कर दींजवाबी काररवाई में पुलिस ने भी गोलियां चलाईं.

कुछ ही देर में मास्टरमाइंड दिलीप मारा गया. इस प्रकार असंभव से लगने वाले तिहरे हत्याकांड के सभी आरोपियों को पुलिस ने महज दिन में सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. इस में टीम प्रभारी अयूब खान और एसआई सहित पुलिसकर्मी भी घायल हुए.

लौकडाउन में घर में सैलून चलाना महंगा पड़ा गोविंद को

 

गोविंद सेन पिछले 22 साल से स्टेशन रोड पर सैलून चलाते थे. लौकडाउन के दौरान वह चोरीछिपे अपने घर बुला कर लोगों की कटिंग करते रहे. दिलीप भी उन से कटिंग करवाने घर जाया करता था. जहां उस ने गोविंद की अमीरी देख कर उन्हें शिकार बनाने की योजना बनाई थी.

दिलीप के साथियों ने बताया कि शारदा और दिव्या की हत्या करने की योजना तो वे पहले से ही बना कर आए थे. लेकिन अंतिम समय में गोविंद भी अपनी दुकान से लौट कर आ गए थे. इसलिए उन की भी हत्या करनी पड़ी. आरोपियों ने बताया कि उस के घर से उन्हें 30 लाख रुपए मिलने की उम्मीद थी. लेकिन उन्हें केवल 20 हजार नकद और कुछ जेवर ही मिले थे.

दिलीप अपने कारनामों का कोई सबूत नहीं छोड़ना चाहता था. इसलिए लूट के दौरान सामने वाले की सीधे हत्या कर देता था.

दिलीप अब तक एक ही तरीके से हत्याएं कर चुका थाइसलिए पुलिस उसे साइकोकिलर मानती थी. दिलीप के साथियों का कहना था कि पुलिस से बचने के लिए हत्या तो करनी ही पड़ेगी मर्डर इज मस्ट.

बस कंडक्टर: बस में बैठी बूढ़ी अम्मा किस बात से निराश हो गई

मैं नागपुर से छिंदवाड़ा होते हुए पिपरिया आने वाली महाराष्ट्र परिवहन निगम की सरकारी बस में बैठा था. मेरे साथ मेरा छोटा भाई था, जिस के इलाज के सिलसिले में हम लोग नागपुर से लौट रहे थे. बस पूरे 5 घंटे लेट थी. बस तकरीबन पूरी खाली थी. मैं, मेरा भाई, कंडक्टर और मुश्किल से 4-5 मुसाफिर और रहे होंगे. नागपुर से चल कर 10 बजे रात में हम लोग छिंदवाड़ा पहुंचे. छिंदवाड़ा स्टौप पर बस 5 मिनट के लिए रुकी.

बस में सभी कुछकुछ महाराष्ट्रियन टच लिए हुए थे. ड्राइवर और कंडक्टर एकदूसरे से मराठी में बात कर रहे थे. कंडक्टर ने अपनी ड्रैस पहनी हुई थी. कंडक्टर के पास पंच मशीन थी जिस से वह टिकटों पर छेद कर रहा था. यह पंच मशीन एक प्रकार का सिग्नल भी थी कि बस को कब रोकना और कब चलाना है. पूरी बस में पीछे से आगे तक कहीं से भी वह इस लोहे की मशीन को बस के पाइप या कहीं भी जोर से ठोंक देता तो ड्राइवर बस रोक देता था. हमारा सफर बहुत ज्यादा लंबा था और मेरा भाई बीमार होने की वजह से सो रहा था, इस कारण मैं हर चीज का बारीकी से मुआयना कर रहा था.

बस छिंदवाड़ा से चली ही थी कि कंडक्टर ने अपनी पंच मशीन ठोंकी. चौराहे से एक होमगार्ड बस में चढ़ा. मैं आंखें बंद कर के सोचने लगा कि अगले महीने होने वाली राज्य की सिविल सेवा परीक्षा के साक्षात्कार की तैयारी किस तरह करनी है. मैं एमए पूर्वार्द्ध का विद्यार्थी था और मेरा एकमात्र लक्ष्य सिविल सेवा की परीक्षा उत्तीर्ण करना था. मैं ने प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा अच्छी तरह से पास कर ली थी. अब मेरा साक्षात्कार होने वाला था. अपनी तैयारी के प्रति मैं आश्वस्त था और मुझे विश्वास था कि मेरा चयन किसी न किसी पद के लिए हो जाएगा.

इसी बीच कंडक्टर और होमगार्ड के बीच हो रही बहस ने मेरा ध्यान खींचा. होमगार्ड कह रहा था, ‘‘मैं वारंट ले कर गया था, इसलिए मैं टिकट नहीं लूंगा.’’

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कंडक्टर ने कहा, ‘‘आप वारंट ले कर भले ही गए हों लेकिन उस का भी किराया आप को बाद में विभाग से मिल जाएगा, टिकट तो आप को लेना ही पड़ेगा.’’

‘‘एक आदमी के टिकट से क्या फर्क पड़ता है? जानता नहीं मैं पुलिसवाला हूं,’’ होमगार्ड कंडक्टर को डराना चाहता था.

कंडक्टर बोला, ‘‘आप कोई भी हों, टिकट तो आप को लेना ही पड़ेगा.’’

कंडक्टर को किसी तरह झुकता न देख वह होमगार्ड उसे डराने लगा और उलटीसीधी बातें कहने लगा जैसे ‘गाड़ी का नंबर मुझे नोट करवाओ, बस का चैसिस नंबर लिखवाओ, गाड़ी के कागज पूरे हैं या नहीं, कल तेरी गाड़ी थाने में खड़ी न करवाई तो कहना, मुझे तू जानता नहीं है, अब इस रूट पर तू बस नहीं चला पाएगा,’ वगैरहवगैरह.

होमगार्ड का व्यवहार बहुत गलत था. कंडक्टर ने टिकट मांग कर गलत नहीं किया था. बस छिंदवाड़ा शहर को छोड़ अब सुनसान इलाके में आ गई थी. मैं पीछे बैठा सब सुन रहा था, सोच रहा था कि इस मामले में कुछ बोला जाए या नहीं. दिमाग कह रहा था कि ऐसे फालतू पचड़ों में पड़ने से चुपचाप बैठे रहना बेहतर है, वहीं दिल कह रहा था कि सचाई के लिए लड़ रहे इस कंडक्टर का साथ देना चाहिए.

अब उन के बीच की बहस अपने चरम पर पहुंच चुकी थी. होमगार्ड न जाने क्याक्या कह रहा था. बस का ड्राइवर बोला, ‘‘जाने दे न, विजय, काय को बहस करता है, थोड़ी दूर की तो बात है,’’ विजय शायद यह सुन ही नहीं रहा था, वह तो अपने कर्तव्य को पूरा करने पर अडिग था. मैं ने देखा, रोड पर दूर सामने की तरफ हलकी रोशनी दिखाई दे रही थी, शायद कोई ढाबा था. कंडक्टर ने भी उस ढाबे को देख लिया था. वह निश्चयात्मक स्वर में होमगार्ड से बोला, ‘‘मैं आखिरी बार पूछ रहा हूं आप टिकट लेंगे या नहीं?’’

होमगार्ड बोला, ‘‘नहीं.’’

कंडक्टर ने पंच मशीन लोहे के पाइप पर मारी. ‘टनटन’ की जोरदार आवाज हुई और बस रुक गई. कंडक्टर बोला, ‘‘उतरिए, आप नौकरी में हैं इसलिए ढाबे पर छोड़ रहा हूं. दूसरा कोई होता तो जंगल में उतारता.’’

होमगार्ड के पास जवाब नहीं था, वह उतर गया.

बस फिर चल पड़ी थी. मैं कंडक्टर की हिम्मत से प्रभावित था. कोई पौने ग्यारह बजे के लगभग बस एक गांव में रुकी. एक अम्मा बस में चढ़ी थीं, तारतार होती साड़ी, फटा सा सफेद गंदा झोला, बिखरे से सफेद बाल और लाठी के सहारे खड़ी उस की देह यह बताने के लिए काफी थी कि उस की माली हालत अच्छी नहीं थी. कंडक्टर के पूछने पर उस ने नजदीक के किसी गांव का नाम बताया, जहां वह जाना चाहती थी. कंडक्टर ने कहा, ‘‘15 रुपए निकालिए.’’

बूढ़ी अम्मा थोड़ा सा निराश हो गईं क्योंकि उन के पास सिर्फ 12 रुपए थे.

कंडक्टर कहने लगा, ‘‘अम्मा, ऐसा कैसे चलेगा? मैं टिकट बना रहा हूं, 15 रुपए मतलब 15 रुपए.’’

मैं सारी बातें सुन रहा था. मैं ने सोचा, अम्मा का किराया मैं दे दूंगा. इस बीच अम्मा ने अपनी मजबूरी और गरीबी बताई. जाहिर था कि वह सच बोल रही थी.

कंडक्टर बोला, ‘‘आज तो मैं तुम्हारे टिकट का 3 रुपए कम कर देता हूं लेकिन आगे से बस में बैठना तो पूरे 15 रुपए ले कर, समझीं?’’

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मैं कंडक्टर की ओर ही देख रहा था. उस ने मुझे देखा और मुसकरा दिया. एक ढाबे पर बस रुकी. वहां मैं ने कंडक्टर से बातचीत की. और उस के कार्यव्यवहार की प्रशंसा की. मैं उस से बहुत प्रभावित था. उस ने अपने बारे में बताया कि उस का नाम विजय है और वह 2 साल से कंडक्टरी कर रहा है. जो भी बस में बैठेगा वह टिकट ले कर ही बैठेगा, बिना टिकट किसी को यात्रा नहीं कराना है. घर में एक बूढ़ी मां है और वह है, 2 लोगों का गुजारा कंडक्टरी की नौकरी में चल जाता है.

मैं ने उस से कहा कि हमेशा ऐसे ही रहना और साथ में यह भी कि न जाने दोबारा जिंदगी में कब मुलाकात हो.

रात करीब 2 बजे हम पिपरिया बस स्टैंड पहुंचे. एकदूसरे से हाथ मिला कर अपनेअपने रास्तों पर रवाना हो गए.

इस घटना के 1 महीने के बाद मेरा इंदौर में इंटरव्यू हुआ जो बहुत अच्छा रहा. मेरा चयन डीएसपी के लिए हो गया. हालांकि आज मैं डिप्टी कलैक्टर के पद पर हूं लेकिन उस वाकये को भूला नहीं हूं और शायद जिंदगीभर भूल नहीं पाऊंगा. आज भी ड्यूटी पर हर वक्त यह कोशिश करता हूं कि मैं डिप्टी कलैक्टर रहते हुए उस कंडक्टर की हिम्मत और गरीबों के प्रति उस के हृदय में बसी ममता को अपने जज्बातों में उतार कर ड्यूटी कर सकूं. कंडक्टर विजय, मैं इस देश के तुम जैसे सच्चे सिपाहियों को सैल्यूट करता हूं.

इस विधि से बनाएं चीज डोसा सभी को आएगा पसंद

दक्षिण भारत में अगर सबसे ज्यादा कुछ मशहूर है तो वह है डोसा, दाल और चावल के खमीर उठने से बनाया गया डोसे को लोग सबसे ज्यादा पसंद करते हैं. इसे सांभर और कई प्रकार के चटनी के साथ परोसा जाता है.

अगर आपको भी मन हो रहा है डोसा खाने का तो आप भी अपने घर पर ट्राई कर सकते हैं. इसे बनाना बेहद ही आसान है.

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समाग्री

डोसे का घोल

तेल डोसा बनाने के लिए

नमक स्वादनुसार

चीज घीसने के लिए

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विधि

सबसे पहले डोसे के घोल में स्वादनुसार नमक मिलाएं, और अच्छे से फेंट लें, इसके बाद नॉन स्टीक तवे को आंच पर गरम करें, उसके बाद डोसे के घोल को अच्छे से मिलाकर उस पर डालें, लेकिन इससे पहले ध्यान रखें कि तवा गरम होते ही उस पर पानी डालकर सूखे कपड़े से पोछ लें,

अब जब डोसा एक तरफ से हो जाए तो उसे आहिस्ता- आहिस्ता किनारे से छुडाएं, और अब उसपर घिसा हुआ चीज मिलाएं, अब डोसे में घिसा हुआ चीज मिलाएं.

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जब चीज फैलना शुरू हो जाएगा तो आहिस्ता से चीज वाले साइड को अच्छे से पलट दें, अब चीज को अपने साइड में रखकर एक साइड से अच्छे से पका लें, अब आपका चीज डौसा अच्छे से तैयार है. इसे आप चटनी के साथ परोस सकते हैं. आप चाहे तो नारियल की चटनी का भी इस्तेमाल कर सकती हैं.

इस डोसा को खाने से बच्चों को प्रोटीन और विटामिन दोनों मिल जाता है.

 

हृदय परिवर्तन -भाग 3 : वसुंधरा अपार्टमैंट में सरिता की चर्चा क्यों हो रही थी

उस की दुखभरी गाथा सुन कर सरिता और विनय की पलकें भीग गईं. बहुत सोच कर सरिता ने पति से कहा, ‘‘क्यों न हम मिनी को अपने साथ ले चलें. हमारा भी तो वहां कोई नहीं है. एक बेटा है जो परिवार सहित दूसरे देश में बस गया है. शायद नियति ने हमें इसी कार्य के लिए यहां भेजा हो.’’ जवाब में विनय कुछ देर चुप रहे, फिर बोले, ‘‘पूछ लो इस लड़की से हमारे साथ चलती है तो चले. इसे भी आसरा मिल जाएगा और हमें भी इस का सहारा.’’

विनय का इतना कहना था कि वह व्यक्ति उन के पैरों से लिपट गया, ‘‘ले जाइए, बाबूजी, बड़ी अच्छी लड़की है. आप दोनों की बड़ी सेवा करेगी. जायदाद बेच कर इस का हिस्सा मैं आप को भेज दूंगा. कहीं कोई सुपात्र मिले, तो इस का ब्याह कर दीजिएगा.’’

‘‘नहींनहीं, कुछ भेजने की आवश्यकता नहीं है. हमारे पास सभी कुछ है. हम इसे ही ले जा कर खुश हो लेंगे.’’ अपने घर का पता और उस व्यक्ति का पता लेते हुए सरिता और विनय लौट आए.

उन के घर पहुंचते ही वसुंधरा अपार्टमैंट में हलचल सी मच गई.

मिनी के लिए सभी की आंखों में उभर आए प्रश्नों को देख कर सरिता खुद को रोक न सकीं, बोलीं, ‘‘हम मथुरा से मिनी को लाए हैं प्यारी सी बेटी के रूप में.’’

कुछ न कहने पर भी सभी समझ ही गए. सब ने मिनी को प्यार से क्या निहारा, कि उसी पल से वह उन की चहेती बन गई.

अब मिनी को समय कहां था कि अपने गुजरे समय को याद कर के आंसू बहाए. पूरी बिल्डिंग की वह दुलारी बन गई थी. किसी की बेटी, तो किसी की ननद. बड़ों की बहन तो छोटों की दीदी. किसी के घर मिनी पकौड़े बना रही है तो कहीं भाजी. किसी का बटन टांक रही है तो किसी के बच्चे को थामे घूम रही है.

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हर उम्र की दहलीज पर मिनी ने अपने निस्वार्थ प्रेम का मायाजाल फैला रखा था. जिसे देखो वह मिनी को पुकारे जा रहा था. बच्चों की तो जान उस में बसती थी.

शाम होते ही सभी बच्चे उसे छत पर ले जाते. वहां कभी वह बौलिंग कर रही होती तो कभी अपांयर बन कर फैसला दे रही होती. मजाल कि कोई उस की अवमानना कर जाए. नियति की कैसी माया थी कि किसी घर की दुत्कारी, कहीं और की दुलारी बन गई थी. कल तक जिस का कोई नहीं था, आज इतने सारे उस के अपने थे.

उषा ने सरिता की सहमति से सब से प्रसिद्ध ब्यूटीपार्लर काया में मिनी को काम सीखने के लिए भेजा. मात्र 4 महीने में ही वह इतनी काबिल हो गई कि एक जानेमाने ब्यूटीपार्लर वालों ने उसे अपने यहां काम पर रख लेना चाहा. पर सरिता ने मना कर दिया यह कहते हुए कि हुनर सीख लिया, यही बहुत है. कमी क्या है कि मिनी पार्लर में नौकरी करेगी.

उस दिन मिनी सरिता के पैरों पर सिर रख कर बोली, ‘‘अम्मा, अगर उस दिन आप नहीं मिली होतीं तो कह नहीं सकती कि मेरा क्या हाल हुआ होता. या तो मैं मर गई होती या मेरे शरीर को नोच रहे होते लोग,’’ कहते हुए मिनी बहुत दिनों के बाद फूटफूट रो पड़ी.

उस के सिर को सहलाते हुए सरिता ने बड़े लाड़दुलार से कहा, ‘‘अरे, कैसे नहीं मिलती मैं. तुझे लाने के लिए ही तो जैसे मैं वहां गई थी. नहीं जाती तो इतना प्यार करने वाली बेटी कहां से मिलती मुझे. यहां तो तू ही हमारे लिए सबकुछ है.’’

सरिता के हृदय परिवर्तन पर पूरी बिल्ंिडग हैरान थी और खुश थी. प्यार के इस लहराते समंदर को इतने दिनों तक पता नहीं उन्होंने कहां छिपा कर रखा था. इधर मिनी के ब्यूटीपार्लर के अनुभव से बिल्ंिडग की सारी महिलाएं लाभान्वित हो रही थीं. किसी की भौंहें बन रही हैं तो किसी की गरदन की मसाज हो रही है. किसी के बाल स्टैप्स में काटे जा रहे हैं तो कोई फेशियल करवा रहा था, वह भी मुफ्त. किसी ने देने की जबरदस्ती की तो मिनी की आंखें छलक उठीं. अब भला किस की शामत आईर् थी कि मिनी की आंखों में आंसू छलका सके. इस बात से सरिता भी नाराज हो गईं.

प्यार से सने बोल में वे गर्जना कर उठीं, ‘‘मिनी मेरी ही नहीं, आप सभी की बहनबेटी है. क्यों उसे पैसे दे रही हैं. ऐसा कर आप सभी ने उसे अपने से दूर कर दिया है. हुनर सीखा भी इसलिए है कि आप सभी को सजाधजा सके.’’

‘‘नहींनहीं सरिता, इस से मिनी कोई दूसरी थोड़े हो जाएगी. हम सब उसे पुरस्कृत करना चाहते थे. माफ कीजिएगा, अगर बुरा लगा हो तो.’’ उषा की बातों से सरिता के होंठों पर मुसकान छिटक आई. कभीकभी मिनी अपने सारे तजरबे को सरिताजी पर ही आजमा लिया करती थी. वे दिल से तो प्रसन्न होती थीं, पर बाहर से गुस्सा दिखाती थीं.

दिन खुशी से गुजर रहे थे. इतना प्यार और सम्मान पा कर मिनी खिल गई थी. सुंदर तो थी ही. मिनी को आए 2 साल हो चुके थे. सरिता और विनय के साथ पूरी बिल्डिंग की अब यही इच्छा थी कि मिनी का ब्याह किसी सुपात्र से हो जाए.

यह भी संयोग रहा कि नीतू की भाभी की मृत्यु प्रसव के दौरान हो गई. नवजात बच्चे के साथ उस की मां बड़ी परेशान थीं. उस की मां की यही इच्छा थी कि उस के भाई की शादी जल्द से जल्द हो जाए ताकि इस उम्र में बच्चे की देखभाल करने से छुटकारा मिले.

नीतू के जेहन में अचानक मिनी का भोलाभाला रूप नाच उठा. मिनी से बढ़ कर कोई उस के भाई के बच्चे को प्यार नहीं दे सकेगा. तत्काल वह उषा के पास गई और सारी बातें उन्हें बताते हुए राय मांगी. उषा भी सहमत हो गईं. सरिता को मनाने के लिए दोनों उन के पास पहुंचीं.

सारी बातों को सुन कर सरिता ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि पहले की बात और थी. शादी होते ही एक बच्चे की देखभाल करने की जिम्मेदारी मिनी के नाजुक कंधे पर आ जाए, इस में मेरी जरा सी भी रजामंदी नहीं है. जब मैं ही तैयार नहीं, तो उस के बाबूजी और भैया कभी राजी नहीं होंगे. उसी दिन समीर कह रहा था, ‘‘लेनदेन की चिंता मत करना. बस, ऐसा घर ढूंढ़ना जहां मिनी सुखी रहे.’’

उषा ने दुनियादारी की बताते हुए कहा, ‘‘मिनी के प्यार में आप इस सचाई को भूल चुकी हैं कि मिनी अनाथ और विधवा है. उस के लिए नीतू के भाई से अच्छा रिश्ता शायद ही मिले.’’ कहते हुए वे दोनों बुझे मन से लौट गईं.

परंतु दूसरे दिन ही सरिताजी ने इस रिश्ते की स्वीकृति पर अपनी रजामंदी की मुहर लगा दी, क्योंकि उषा की बातों ने उन की आंखें खोल दी थीं. फिर मिनी को भी कोई एतराज नहीं था सिवा इस के कि उस के जाने के बाद उन दोनों की देखभाल उस की तरह कौन करेगा.

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मिनी की शादी की धूम पूरी बिल्डिंग में मची हुईर् थी. तैयारियां जोरों पर थीं. आखिर सब की चहेती मिनी की शादी थी. सरिता ने मिनी की ससुराल में भी शादी का निमंत्रणपत्र भेज दिया था. पर अच्छा ही हुआ कि वहां से कोई नहीं आया. वे नहीं चाहती थीं कि बीते दिनों की दुखद यादों को ले कर मिनी के नए जीवन की शुरुआत हो.

बच्चे, युवा, बूढ़े सभी उत्साहित थे. बरात आई, शहनाइयां बजीं, आंसूभरी आंखों से सरिता और विनय ने सारे रस्मरिवाजों को निभाया. सभी ने जी खोल कर मिनी को उपहार दिए. समीर ने अपने मम्मीपापा के साथ मिनी, उस के होने वाले पति और बच्चे को गरमी में अमेरिका घूमने के लिए बुलाया. बस, पासपोर्ट और वीजा के मिलते ही टिकट भेज देने का आश्वासन दिया था.

जितना मिला, उस के लिए मिनी का आंचल छोटा पड़ गया था. उस की आंखें विदाई तक बरसती ही रहीं. सब के प्यारदुलार को समेट, सब को रुलाते हुए मिनी अपने जीवनसाभी की बांहें थाम नए जीवन की डगर की ओर चल पड़ी. उस की विदाई पर सभी बिलख रहे थे पर खुशी के आंसुओं के साथ. अपने पीछे मिनी पूरी बिल्ंिडग में एक सन्नाटा और उदासी छोड़ गई थी.

उस की दुखभरी गाथा सुन कर सरिता और विनय की पलकें भीग गईं. बहुत सोच कर सरिता ने पति से कहा, ‘‘क्यों न हम मिनी को अपने साथ ले चलें. हमारा भी तो वहां कोई नहीं है. एक बेटा है जो परिवार सहित दूसरे देश में बस गया है. शायद नियति ने हमें इसी कार्य के लिए यहां भेजा हो.’’ जवाब में विनय कुछ देर चुप रहे, फिर बोले, ‘‘पूछ लो इस लड़की से हमारे साथ चलती है तो चले. इसे भी आसरा मिल जाएगा और हमें भी इस का सहारा.’’

विनय का इतना कहना था कि वह व्यक्ति उन के पैरों से लिपट गया, ‘‘ले जाइए, बाबूजी, बड़ी अच्छी लड़की है. आप दोनों की बड़ी सेवा करेगी. जायदाद बेच कर इस का हिस्सा मैं आप को भेज दूंगा. कहीं कोई सुपात्र मिले, तो इस का ब्याह कर दीजिएगा.’’

‘‘नहींनहीं, कुछ भेजने की आवश्यकता नहीं है. हमारे पास सभी कुछ है. हम इसे ही ले जा कर खुश हो लेंगे.’’ अपने घर का पता और उस व्यक्ति का पता लेते हुए सरिता और विनय लौट आए.

उन के घर पहुंचते ही वसुंधरा अपार्टमैंट में हलचल सी मच गई.

मिनी के लिए सभी की आंखों में उभर आए प्रश्नों को देख कर सरिता खुद को रोक न सकीं, बोलीं, ‘‘हम मथुरा से मिनी को लाए हैं प्यारी सी बेटी के रूप में.’’

कुछ न कहने पर भी सभी समझ ही गए. सब ने मिनी को प्यार से क्या निहारा, कि उसी पल से वह उन की चहेती बन गई.

अब मिनी को समय कहां था कि अपने गुजरे समय को याद कर के आंसू बहाए. पूरी बिल्डिंग की वह दुलारी बन गई थी. किसी की बेटी, तो किसी की ननद. बड़ों की बहन तो छोटों की दीदी. किसी के घर मिनी पकौड़े बना रही है तो कहीं भाजी. किसी का बटन टांक रही है तो किसी के बच्चे को थामे घूम रही है.

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हर उम्र की दहलीज पर मिनी ने अपने निस्वार्थ प्रेम का मायाजाल फैला रखा था. जिसे देखो वह मिनी को पुकारे जा रहा था. बच्चों की तो जान उस में बसती थी.

शाम होते ही सभी बच्चे उसे छत पर ले जाते. वहां कभी वह बौलिंग कर रही होती तो कभी अपांयर बन कर फैसला दे रही होती. मजाल कि कोई उस की अवमानना कर जाए. नियति की कैसी माया थी कि किसी घर की दुत्कारी, कहीं और की दुलारी बन गई थी. कल तक जिस का कोई नहीं था, आज इतने सारे उस के अपने थे.

उषा ने सरिता की सहमति से सब से प्रसिद्ध ब्यूटीपार्लर काया में मिनी को काम सीखने के लिए भेजा. मात्र 4 महीने में ही वह इतनी काबिल हो गई कि एक जानेमाने ब्यूटीपार्लर वालों ने उसे अपने यहां काम पर रख लेना चाहा. पर सरिता ने मना कर दिया यह कहते हुए कि हुनर सीख लिया, यही बहुत है. कमी क्या है कि मिनी पार्लर में नौकरी करेगी.

उस दिन मिनी सरिता के पैरों पर सिर रख कर बोली, ‘‘अम्मा, अगर उस दिन आप नहीं मिली होतीं तो कह नहीं सकती कि मेरा क्या हाल हुआ होता. या तो मैं मर गई होती या मेरे शरीर को नोच रहे होते लोग,’’ कहते हुए मिनी बहुत दिनों के बाद फूटफूट रो पड़ी.

उस के सिर को सहलाते हुए सरिता ने बड़े लाड़दुलार से कहा, ‘‘अरे, कैसे नहीं मिलती मैं. तुझे लाने के लिए ही तो जैसे मैं वहां गई थी. नहीं जाती तो इतना प्यार करने वाली बेटी कहां से मिलती मुझे. यहां तो तू ही हमारे लिए सबकुछ है.’’

सरिता के हृदय परिवर्तन पर पूरी बिल्ंिडग हैरान थी और खुश थी. प्यार के इस लहराते समंदर को इतने दिनों तक पता नहीं उन्होंने कहां छिपा कर रखा था. इधर मिनी के ब्यूटीपार्लर के अनुभव से बिल्ंिडग की सारी महिलाएं लाभान्वित हो रही थीं. किसी की भौंहें बन रही हैं तो किसी की गरदन की मसाज हो रही है. किसी के बाल स्टैप्स में काटे जा रहे हैं तो कोई फेशियल करवा रहा था, वह भी मुफ्त. किसी ने देने की जबरदस्ती की तो मिनी की आंखें छलक उठीं. अब भला किस की शामत आईर् थी कि मिनी की आंखों में आंसू छलका सके. इस बात से सरिता भी नाराज हो गईं.

प्यार से सने बोल में वे गर्जना कर उठीं, ‘‘मिनी मेरी ही नहीं, आप सभी की बहनबेटी है. क्यों उसे पैसे दे रही हैं. ऐसा कर आप सभी ने उसे अपने से दूर कर दिया है. हुनर सीखा भी इसलिए है कि आप सभी को सजाधजा सके.’’

‘‘नहींनहीं सरिता, इस से मिनी कोई दूसरी थोड़े हो जाएगी. हम सब उसे पुरस्कृत करना चाहते थे. माफ कीजिएगा, अगर बुरा लगा हो तो.’’ उषा की बातों से सरिता के होंठों पर मुसकान छिटक आई. कभीकभी मिनी अपने सारे तजरबे को सरिताजी पर ही आजमा लिया करती थी. वे दिल से तो प्रसन्न होती थीं, पर बाहर से गुस्सा दिखाती थीं.

दिन खुशी से गुजर रहे थे. इतना प्यार और सम्मान पा कर मिनी खिल गई थी. सुंदर तो थी ही. मिनी को आए 2 साल हो चुके थे. सरिता और विनय के साथ पूरी बिल्डिंग की अब यही इच्छा थी कि मिनी का ब्याह किसी सुपात्र से हो जाए.

यह भी संयोग रहा कि नीतू की भाभी की मृत्यु प्रसव के दौरान हो गई. नवजात बच्चे के साथ उस की मां बड़ी परेशान थीं. उस की मां की यही इच्छा थी कि उस के भाई की शादी जल्द से जल्द हो जाए ताकि इस उम्र में बच्चे की देखभाल करने से छुटकारा मिले.

नीतू के जेहन में अचानक मिनी का भोलाभाला रूप नाच उठा. मिनी से बढ़ कर कोई उस के भाई के बच्चे को प्यार नहीं दे सकेगा. तत्काल वह उषा के पास गई और सारी बातें उन्हें बताते हुए राय मांगी. उषा भी सहमत हो गईं. सरिता को मनाने के लिए दोनों उन के पास पहुंचीं.

सारी बातों को सुन कर सरिता ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि पहले की बात और थी. शादी होते ही एक बच्चे की देखभाल करने की जिम्मेदारी मिनी के नाजुक कंधे पर आ जाए, इस में मेरी जरा सी भी रजामंदी नहीं है. जब मैं ही तैयार नहीं, तो उस के बाबूजी और भैया कभी राजी नहीं होंगे. उसी दिन समीर कह रहा था, ‘‘लेनदेन की चिंता मत करना. बस, ऐसा घर ढूंढ़ना जहां मिनी सुखी रहे.’’

उषा ने दुनियादारी की बताते हुए कहा, ‘‘मिनी के प्यार में आप इस सचाई को भूल चुकी हैं कि मिनी अनाथ और विधवा है. उस के लिए नीतू के भाई से अच्छा रिश्ता शायद ही मिले.’’ कहते हुए वे दोनों बुझे मन से लौट गईं.

परंतु दूसरे दिन ही सरिताजी ने इस रिश्ते की स्वीकृति पर अपनी रजामंदी की मुहर लगा दी, क्योंकि उषा की बातों ने उन की आंखें खोल दी थीं. फिर मिनी को भी कोई एतराज नहीं था सिवा इस के कि उस के जाने के बाद उन दोनों की देखभाल उस की तरह कौन करेगा.

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मिनी की शादी की धूम पूरी बिल्डिंग में मची हुईर् थी. तैयारियां जोरों पर थीं. आखिर सब की चहेती मिनी की शादी थी. सरिता ने मिनी की ससुराल में भी शादी का निमंत्रणपत्र भेज दिया था. पर अच्छा ही हुआ कि वहां से कोई नहीं आया. वे नहीं चाहती थीं कि बीते दिनों की दुखद यादों को ले कर मिनी के नए जीवन की शुरुआत हो.

बच्चे, युवा, बूढ़े सभी उत्साहित थे. बरात आई, शहनाइयां बजीं, आंसूभरी आंखों से सरिता और विनय ने सारे रस्मरिवाजों को निभाया. सभी ने जी खोल कर मिनी को उपहार दिए. समीर ने अपने मम्मीपापा के साथ मिनी, उस के होने वाले पति और बच्चे को गरमी में अमेरिका घूमने के लिए बुलाया. बस, पासपोर्ट और वीजा के मिलते ही टिकट भेज देने का आश्वासन दिया था.

जितना मिला, उस के लिए मिनी का आंचल छोटा पड़ गया था. उस की आंखें विदाई तक बरसती ही रहीं. सब के प्यारदुलार को समेट, सब को रुलाते हुए मिनी अपने जीवनसाभी की बांहें थाम नए जीवन की डगर की ओर चल पड़ी. उस की विदाई पर सभी बिलख रहे थे पर खुशी के आंसुओं के साथ. अपने पीछे मिनी पूरी बिल्ंिडग में एक सन्नाटा और उदासी छोड़ गई थी.

हृदय परिवर्तन -भाग 2 : वसुंधरा अपार्टमैंट में सरिता की चर्चा क्यों हो रही थी

सभी ने मिल कर उन्हें नर्सिंगहोम पहुंचाया. डाक्टरों ने तत्काल उन्हें आईसीयू में भरती किया. दिल का दौरा पड़ा था. हालत बहुत गंभीर थी. हालत सुधरने तक सभी वहीं बैठे रहे. इधर रोतीबिलखती सरिता को महिलाओं ने गले लगा कर संभाले रखा. इलाज का लंबा खर्च आया था, जिसे बिल्डिंग के सारे लोगों ने सहर्ष वहन किया. बाद में सभी को उन की रकम लौटा दी गई पर निस्वार्थ सेवा को कैसे लौटाया जा सकता था. सब से बड़ी बात यह थी कि बिल्डिंग में होली का त्योहार नहीं मनाया गया. बच्चे निरुत्साहित थे पर कोई शिकायत नहीं थी. समय की नजाकत को सभी समझ रहे थे.

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4 दिनों बाद अमेरिका से उन का बेटा समीर जब तक आया, तब तक विनय खतरे से बाहर थे. समीर ने सारे बिल्डिंग वालों को दिल से धन्यवाद दिया. बेटे के आने के बाद भी बिल्डिंग के पुरुषवर्ग अपनी ड्यूटी निभाते रहे. घर में सरिता को महिलाओं ने संभाले रखा. सरिता में जबरदस्त बदलाव आया था. सारी महिलाओं और बच्चों पर अपना प्यार लुटा रही थीं. इस प्यार के असर और डाक्टरों की कोशिश से 2 हफ्ते बाद ही विनय स्वस्थ हो कर घर आ गए.

होली के दिन बिल्डिंग में भले ही रंग नहीं गिरा हो, पर सब का दिल खुशियों के फुहार में भीग उठा था. सरिता और विनय में आए बदलाव ने पूरी बिल्डिंग में प्यार का छलकता सागर प्रवाहित कर दिया था जिस में सभी बहे जा रहे थे. अमेरिका लौट जाने से पहले समीर की इच्छा थी कि वह पिता का दिल्ली में अच्छी तरह से चैकअप करवा दे. बिल्डिंग के सभी लोगों को समीर का विचार बहुत ही भाया. सभी की राय से विनय और सरिता दिल्ली चले गए.

विनय को हार्ट में ही समस्या थी. ऐसे वे स्वस्थ थे. समीर तो वहीं से अमेरिका लौट गया. विनय और सरिता की बहुत इच्छा थी कि वे मथुरा और वृंदावन घूमते हुए लौटें. दिल्ली में रहने वाले रिश्तेदारों ने वहां जाने की व्यवस्था कर दी. टैक्सी से वे दोनों मथुरा गए.

एक दिन वे वृंदावन के एक रास्ते से गुजर रहे थे, तो उन्होंने देखा कि एक युवती किसी पुरुष का पैर पकड़ कर रोए जा रही थी. वह प्रौढ़ व्यक्ति पैर छुड़ाने की चेष्टा कर रहा था. भीड़ तो इकट्ठी हो गई थी लेकिन किसी ने भी कारण जानने की कोशिश नहीं की. ऐसी घटनाएं वहां के लिए आम बात थीं. सारी दुखियारी औरतों को उन के रिश्तेदार मथुरा की गलियों में भीख मांगने के लिए छोड़ जाते हैं, जो वेश्यावृत्ति में धकेल दी जाती हैं.

सरिता और विनय ने उस प्रौढ़ व्यक्ति से युवती को ऐसे छोड़ने का कारण पूछा तो वह सकपकाया, फिर उन्हें भीड़ से बाहर ले जा कर उन की जिज्ञासा को कुछ इस प्रकार से शांत किया, ‘‘महाशय, यह मिनी है, मेरे छोटे भाई की विधवा. सालभर पहले इस की शादी मेरे छोटे भाई से हुई थी. 2 महीने हुए मेरे भाई को किसी ट्रक वाले ने कुचल कर मार डाला. जब तक मेरी मां जीवित रहीं, सबकुछ ठीक चलता रहा. पर जवान बेटे की मौत वे ज्यादा दिन झेल नही सकीं. एक रात सोईं तो सोईं ही रह गईं. उन की मृत्यु के साथ ही मेरे घर की शांति चली गई.

‘‘मेरी पत्नी मिनी को देख नहीं पाती. मेरे साथ इस निर्दोष का नाम जोड़ कर उस ने पूरे महल्ले में बदनाम कर दिया है. इस का इस दुनिया में कोई नहीं है. मांबाप की मृत्यु बचपन में ही किसी दुर्घटना में हो गई थी. नानी ने इसे पालपोस कर किसी तरह इस की शादी की. अब वे भी नहीं रहीं. मामामामी ने इसे रखने से इनकार कर दिया है.

‘‘अपनी शक्की, जाहिल पत्नी के खिलाफ जा कर इसे घर में रखता हूं तो महाशय, वह न इसे जीने देगी न मुझे. वैसी जिंदगी से अच्छा है मैं जहर खा कर मर जाऊं. मिनी ने ही यहां आने की इच्छा प्रकट की थी. अब मैं इसे छोड़ कर जा रहा हूं, तो यह जाने नहीं दे रही है.’’ इतना कह कर वह व्यक्ति तड़प कर रोने लगा, फिर बोला, ‘‘मैं जानता हूं कि यहां सभी इसे नोच कर खा जाएंगे, पर मैं करूं भी तो क्या करूं. कोई राह भी नहीं दिख रही. अपने घर की इज्जत को सरेआम छोड़े जा रहा हूं.’’

भूल जाइए नौन वेज, शाकाहार में है खूब प्रोटीन

ज्यादातर लोगों को लगता है कि मांसाहार आहारों की तुलना में शाकाहार में ज्यादा पोषक तत्वों वाले आहारों का विकल्प नहीं है. लोगों को लगता है कि पोषक तत्वों में आपूर्ति के लिए शाकाहार में विकसल्प नहीं होते. खासतौर पर प्रोटीन की आपूर्ति के लिए हमें लगता है केवल मांसाहार ही विकल्प है. जबकि लोगों की ये धारणा पूरी तरह से गलत है. प्रोटीन शरीर के हर अंग के लिए जरुरी पोषक तत्व है। केवल मांसाहारी खाद्य पदार्थों से ही नहीं, बल्कि कई शाकाहारी भोज्य पदार्थ भी प्रोटीन की आपूर्ति के लिए फायदेमंद हैं. इस खबर में हम आपको ऐसे ही आहारों के बारे में बताएंगे.

पालक

पालक प्रोटीन का प्रमुख स्रोत होता है. एक कप पालक में एक अंडे जितना प्रोटीन मिलता है. इसके अलावा अंडे में कैलोरी भी होती है. पालक का सेवन भाप में पका कर भी किया जा सकता है.

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चिया के बीज

100 ग्राम चिया के बीज में 17 ग्राम प्रोटीन होता है. इसके सेवन से शरीर में प्रोटीन की कमी नहीं होती, साथ में लंबे समय तक भूख भी नहीं लगती.

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बींस

बींस को आप पास्ता, सूप या सलाद, किसी भी तरह से खा सकते हैं. एक कप बींस में करीब 20 ग्राम प्रोटीन होती हैं. डायबिटीज की शिकायत में भी ये काफी लाभकारी होता है.

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नट्स

नट्स, हमारे लिए प्रोटीन के प्रमुख स्रोत होते हैं. बादाम, अखरोट, काजू आदि में प्रोटीन की मात्रा अत्यधिक होती है. पको बता दें कि 1/4 कप नट्स से 7-9 ग्राम प्रोटीन मिलता है.

पंजाब में युवा- भाजपा नहीं, मुद्दों के साथ

लेखक- रोहित और शाहनवाज 

भारत की डेमोक्रेसी को डेमोक्रेसी बनाए रखने के लिए सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रिया देश में चुनाव व्यवस्था है. चाहे वह लोकसभा का चुनाव हो, चाहे विधानसभा का हो या फिर म्युंसिपैलिटी के लोकल चुनाव हो. चुनाव की हर प्रक्रिया अपने आप में बहुत अहम भूमिका निभाती है देश की अस्मिता को बचाने के लिए. और इस महत्वपूर्ण अस्मिता को बनाए रखने के भारत में सबसे महत्वपूर्ण स्थान देश के युवाओं का होता है.

ऐसे ही होशियारपुर के नगर निगम चुनावों में युवाओं की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही है. किसान आंदोलन तो अपनी जगह ठीक है लेकिन पंजाब के कई ऐसे मुद्दे जो स्थानीय स्तर पर युवाओं को परेशान करते हैं उनके बारे में जानकारी के लिए हमने होशियारपुर के युवाओं से बात करने का प्रयास किया.

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ऐसे ही होशियारपुर के एक युवा 22 वर्षीय गुरविंदर सिंह से हमने बात की. गुरविंदर होशियारपुर के गोकुल नगर में रहते हैं और सोनालिका, जो कि एक ट्रैक्टर बनाने वाली कंपनी है, में काम करते हैं. गुरविंदर इस कंपनी में रिसर्च एंड डेवलपमेंट की पोस्ट पर काम करते हैं. गुरविंदर का मानना है कि भाजपा हिंदूवाद के रास्ते पर आगे चलकर लोगों को बस लड़वाने का ही काम कर रही है और देश को हिंदू राष्ट्र बनाना चाहती है.

गुरविंदर ने होशियारपुर नगर निगम निकायों में भाजपा के हारने के कारण गिनवाते हुए कहा, “अच्छे दिनों का नाम लेकर भाजपा केंद्र में सत्ता में आई थी लेकिन उसके बाद आपको पता ही है पेट्रोल और डीजल के दाम आसमान छू रहे हैं लेकिन उसके ऊपर कोई बात करने को राजी नहीं है. नगर निगम के इन चुनावों ने हमें भाजपा को एक जवाब देने का मौका मिला था और पंजाब की शहरी जनता ने भाजपा को हराकर उनके के मुंह पर करारा तमाचा मारने का काम किया है. भाजपा या लोकल चुनाव सिर्फ मोदी के नाम पर लड़ रही थी और हमने भी मोदी के काम को देख कर भी वोट दे दिया.”

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गुरविंदर आगे कहते हैं, “हम यह नहीं कहते कि कांग्रेस या फिर कोई दूसरी पार्टी अच्छी है लेकिन कम से कम हमें इस बात को मानना ही चाहिए कि कांग्रेस के रीजीम में देश की जीडीपी बढ़ते क्रम में थी. लेकिन जब से भाजपा केंद्र में सत्ता में आई है तब से इस देश की जीडीपी लगातार घटते क्रम में ही गई है. कोरोना की इस विपरीत घड़ी में देश की जीडीपी को संभालने का काम सिर्फ देश के किसानों ने ही किया है. लेकिन केंद्र सरकार ने कृषि कानूनों को लाकर देश के किसानों की पीठ पर खंजर भोंकने का काम किया है.”

सरकार के जगह जगह मूर्ति बनाने को लेकर गुरविंदर सिंह बड़े ही खफा है। वह कहते हैं “जगह-जगह मूर्तियां बनाकर सरकार सिर्फ लोगों का और टैक्सपेयर्स का पैसा बर्बाद करने का काम कर रही है. सरकार कहती है कि अगर हम बड़ी-बड़ी मूर्तियां बनाएंगे तो विदेशी भारत में उन्हें देखने के लिए आएंगे और व्यापार बढ़ेगा लेकिन वहीं अगर उन्होंने स्कूल बनाए होते, कॉलेज बनाए होते, हॉस्पिटल का निर्माण किया होता तो न सिर्फ देश में रोजगार बढ़ता बल्कि देश और मजबूत होता. मूर्तियां बनाकर कौन सा लोग मूर्तियों को देख देख कर अपना पेट भर लेंगे.”

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“इस चुनाव के जो भी नतीजे रहे उसे हम बस मोदी जी को यही बताना चाहते हैं कि वह जो काम कर रहे हैं वह बस खुद के लिए खड्डा खोदने का काम कर रहे हैं. और इसकी शुरुआत पंजाब से हो चुकी है. मुझे पूरा भरोसा है कि अभी तो सिर्फ पंजाब के निकाय चुनाव में ही भाजपा हारी है धीरे धीरे कहीं ऐसे ना दिन आ जाए कि पूरे देश से भाजपा का अस्तित्व ही खत्म हो जाए.” उनका मानना है कि पंजाब के युवाओं की भाजपा से मोह खत्म हो गया है, अब बस कुछ भक्त ही उन्हें यहां से ढो रहे हैं.

होशियारपुर में युवाओं की अच्छी खासी आबादी है. युवाओं की यह आबादी पढ़ने वाली है किंतु होशियारपुर में कॉलेज ना होने के चलते इन्हें यहां से जालंधर चंडीगढ़ इत्यादि जगह पर जाना पड़ता है. यहां बेरोजगारी का भी मसला बहुत अधिक है. अधिकतर युवा यहां से पढ़ाई कर काम के सिलसिले में दूसरी जगह पर जाते हैं या जो रुकते भी है वह यहां छोटा-मोटा अपना धंधा खोल कर काम चला रहे हैं जो फिलहाल अभी इस समय बुरी तरह से पिट रहा है.

ऐसे ही होशियारपुर से मोगा की तरफ जाते वक्त जालंधर की बस में हमें  दलजीत सिंह मिले. दलजीत अपने तीन दोस्तों के साथ बस में ट्रेवल कर जालंधर जा रहे थे। दलजीत और उनके सभी दोस्त जालंधर में नर्सिंग का कोर्स कर रहे हैं. जब हमने दलजीत से निकाय चुनाव और स्थानीय युवाओं की समस्याओं को लेकर बात की तो उन्होंने बताया की देश में चलती समस्याओं को लेकर, किसानों के प्रदर्शन को लेकर और बेरोजगारी के मुद्दे पर उनको इतना गुस्सा आया कि उन्होंने इस बार जानबूझकर वोट ही नहीं डाला.

वह कहते हैं “मेरा वोटर आईडी कार्ड 2019 में ही बन चुका था. इस बार यह मेरा पहला मौका था जब मैं किसी चुनाव में हिस्सेदारी लेता. लेकिन जो देश में अभी चल रहा है उसको देखते हुए मैंने वोट ना डालना ही ज्यादा बेहतर समझा. मुझे किसी पार्टी पर भी कोई भरोसा नहीं है. मुझे लगता है कि अगर कांग्रेस सत्ता में आती है तो भी कोई बदलाव नहीं आने वाला.”

स्थानीय समस्याओं के संबंध में बात करते हुए दलजीत ने बताया “हमारे यहां स्कूल और कॉलेजों की बहुत कमी है लोग यहां से दूर दूर अपनी पढ़ाई के लिए या फिर कोई सीखने जाते हैं. अब हमें ही देख लीजिए हमें यहां से नर्सिंग का कोर्स करने के लिए हमें जालंधर जाना पड़ता है. रोज का ₹100 सिर्फ बस का भाड़ा देना पड़ता है. रोजगार है नहीं और पैसे खर्च और हो जाते हैं. हम मौका मिलेगा तो हम भी विदेश चले जाएंगे ताकि वहां जाकर काम कर सके.”

‘वे टू पंजाब’- बर्बादी की कगार पर होटल इंडस्ट्री

लेखक- रोहित और शाहनवाज 

पंजाब में हुए एमसी चुनाव ने देश के बाकी राज्यों के लिए कुछ मिसाल छोड़ी है. यह मिसाल उस महंगाई, बेरोजगारी, खराब होती अर्थव्यवस्था और आम लोगों के मुद्दों को सरकार द्वारा नकारने के खिलाफ था जो यहां के शहरी लोगों ने भाजपा के खिलाफ मैंडेट देकर साबित किया. इस मैंडेट को कांग्रेस के भारी समर्थन के तौर पर समझना फिलहाल जल्दबाजी होगी. लेकिन यह तय है की यहां शुद्ध तरीके से भाजपा व उसके पूर्व सहयोग में रहे दल के खिलाफ था. कृषि कानूनों के भवर के अतिरिक्त यह उस बिगड़ती अर्थव्यवस्था के खिलाफ भी था जो पिछले 7 सालों की भाजपा की नकमियाबीयों का नतीजा था.

पढ़े-लिखे युवा आज घरों में खाली बैठने को मजबूर है. जिन की दुकानें व छोटे-मोटे व्यापार है, वह किसी तरह से अपना समय काट रहे हैं. यहां शहरों में नौकरियों का भारी अकाल है. युवा यहां से दूसरे बड़े महानगरों की ओर बढ़ रहे हैं लेकिन वहां से भी उन्हें निराशा हाथ लग रही है. शहरों के बाजार एकदम ठंडे पड़े हैं. जो चहल पहल पहले हुआ करती थी वह अब नहीं रही.

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मोगा के जिस गेस्ट हाउस में हम रुके थे वह चेंबर रोड पर स्थित शहीदी पार्क के ठीक अगली वाली 9 नंबर की गली के दाएं हाथ पर था. गेस्ट हाउस के मालिक का कहना था कि “अब होटल लाइन बहुत ही ठंडे पड़ गए हैं. पहले जो रौनक हुआ करती थी अब वह नहीं रह गई है. बिल्कुल ही फीकी पड़ गई है.”

उन्होंने जिस कमरे में हमारे ठहरने का बंदोबस्त किया था वह फर्निश्ड कमरा था. कमरे की चारों दीवारों पर सिल्वर और येलो वॉलपेपर की अच्छी सजावट थी. एक टीवी था और कमरे की एक दीवार में एक बड़ी सी खिड़की थी जिसके ऊपर एक छोटा एसी भी फिट था.

जिस रूम में हम ठहरे थे उस में अटैच बाथरूम की भी व्यवस्था थी और रूम से बाहर निकलने के बाद वहां एक बड़ी सी कॉमन यूज़ बालकनी भी थी. लेकिन गेस्ट हाउस के प्राइम एरिया में होने के बावजूद भी लगभग पूरा गेस्ट हाउस खाली ही पड़ा था.

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जब हमने इसकी वजह पूछी तो गेस्ट हाउस के मालिक का कहना था, “भाई जिस कमरे में आपको ठहराया जा रहा है वह आमतौर पर 1200 से 1500 की रेंज में है. लेकिन आजकल धंधा इतना मंदा चल रहा है कि यहां कस्टमर के साथ भाव तोल वाली स्थिति आ चुकी है. वैसे ही कस्टमर काफी कम आ रहे हैं जो आते हैं अगर वह बारगेन करते हैं तो हम भी मजबूर होते हैं उन्हें उन्हीं के रेंज में कमरा देने के लिए.”

“लॉक डाउन के बाद से तो होटल इंडस्ट्री का पूरा ही भट्टा बैठ गया है. हम अगर अपने कमरों का दाम कम नहीं करेंगे तो ग्राहक यहां रुकेंगे ही नहीं. यहां इस रोड पर पहले से ही 4 होटल और भी मौजूद है. इस होटल में पहले डबल स्टाफ हुआ करता था. अब बहुत से लोगों को हमें निकालना पड़ा. स्थिति यह है मैं और मेरे पिताजी को यहां सारा काम मैनेज करना पड़ रहा है. यह सिर्फ हमारे अकेले होटल की बात नहीं है बल्कि हर जगह पर यही हाल है इतने लोग जो होटल इंडस्ट्री में काम कर रहे थे वह सारे बेरोजगार हो गए हैं.”

गेस्ट हाउस में रुकने का प्रबंध कर के हम मोगा शहर टहलने निकल पड़े. जिस रास्ते हम निकल रहे थे वह मेन मार्केट में था. और उसके इर्द-गिर्द जितनी भी छोटी-छोटी गलियां निकल रही थी वह भी छोटी-छोटी ट्रूप मार्केट थी. यह ठीक उसी प्रकार लग रहा था जैसे छोटी-छोटी नेहरों का संगम एक बड़ी नदी में समा रहा हो.

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मोगा के मेन बाजार में वुडलैंड, लिवाइस, रेड चीफ, लेंसकार्ट, एडीडास, प्यूमा जैसी कई बड़ी कंपनियों के ब्रांड वहां मौजूद थे. हमने वहां पर एक लोकल दुकानदार से रेजिडेंशियल एरिया के बारे में पूछा. तो उन्होंने कहा की “आपको अमीर इलाके में जाना है या फिर गरीब इलाके में?”

दरअसल मेन मार्केट के दाएं तरफ पोश एरिया था. वही मेन मार्केट के बाई तरफ गरीब इलाका था जहां पर लोग किराए के कमरों में रहते थे या फिर छोटे-मोटे अपने मकान में रह रहे थे. हमने बाई तरफ जाने का फैसला किया.

सीधे-सीधे कच्ची पतली गली से चलते हुए हमें पता चला कि जिस इलाके से हम गुजर रहे हैं वह महिला रिजर्व सीट थी और इस पर भाजपा के एकमात्र पार्षद ने जीत हासिल की थी. बता दें कि पूरे मोगा में यह वही एकमात्र वार्ड है जिस पर भाजपा ने जीत हासिल की है. हमने उनसे फोन साधने की कोशिश की तो पता चला कि पार्षद अपने पति के साथ आउट ऑफ टाऊन हैं.

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खैर आसपास के लोगों से जो जानकारी मिली वह यह है की इस से पहले इसी जगह से वर्तमान पार्षद के ससुर भाजपा की सीट से जीते थे. यहां मोहल्ले में उनका उठना बैठना और बातचीत अच्छी थी तो लोगों ने पूर्व पार्षद के व्यवहार को देखते हुए इस बार उनकी बहू को पार्षद बना दिया. वहां लोगों का कहना था कि पार्षद चाहे जो भी बने काम तो पूर्व पार्षद को ही करना है.

‘वे टू पंजाब’- मोगा में इंडिपेंडेंट कैंडिडेट्स की धाक

लेखक- रोहित और शाहनवाज 

मोगा पंजाब के उन 8 म्युनिसिपल कारपोरेशन में से एक मात्र निकाय है जहां कांग्रेस बहुमत सीटों के आंकड़ों को नहीं छू पाई है. कांग्रेस को यहां से कुल 20 सीटें ही प्राप्त हुई जबकि बहुमत के लिए 26 वार्ड्स में जीत हासिल करनी जरुरी है. दिलचस्प यह कि मोगा में इंडिपेंडेंट पार्षदों की संख्या पहले से भले ही कम हुई हो किन्तु इस बार भी इंडिपेंडेंट कैंडिडेट्स की इस निकाय चुनाव में धाक रही और वह 10 वार्ड्स में जीत हासिल करने में सफल रहे. यह इंडिपेंडेंट पार्षद मेयर का चयन करने कराने में अहम भूमिका निभाने वाले हैं.

इसी को ले कर हम मोगा के 46 नंबर वार्ड से जीते 65 वर्षीय इंडिपेंडेंट पार्षद सुरिंदर सिंह गोगा से मिलने पहुंचे. सुरिंदर सिंह गोगा, कच्चा जीरा रोड, मिशन स्कूल काम्प्लेक्स के नजदीक पट्टी वाली गली के इलाके से जीते हैं. हमें सुरिंदर सिंह गोगा जहां मिले वह उन की कोयले की दूकान थी जिस का नाम उन्होंने पूरण सिंह डिपो के नाम से रखा था. यह दूकान मोगा बस अड्डे से तकरीबन आधा किलोमीटर दूर बीडीओ ऑफिस के नजदीक था.

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गली कूचों से गुजरते हुए और लोगों से पूछ-पाछ कर हम उन की दूकान पर पहुंचे. यह दूकान जिस जगह पर थी वह इलाका मिडिल क्लास लोगों के रेजिडेंशियल एरिए के अन्दर था. तकरीबन 200 गज की उन की यह दूकान लकड़ी और कोयले से सनी पड़ी थी. इस के एक चौथाई हिस्से पर सुरिंदर गोगा ने एक ऑफिस बनाया हुआ था जिस में लगातार लोगों की आवाजाही चल रही थी. वहीँ एक छोटा सा कमरा वहां काम कर रहे मजदूरों के लिए रखा गया था. कुछ लोग वहां पर लकड़ी व कोयला खरीदने आ रहे थे, वहीँ बधाई देने वालों का ताता लगा हुआ था. शायद इसीलिए ही दूकान के भीतर 8-9 कुर्सियां दूकान के आँगन में और चाय के गिलासों का ढेर नल के नीचे रखे हुए थे.

तकरीबन 15-20 मिनट इंतज़ार करने के बाद सुरिंदर गोगा अपना काम निपटा कर हम से मुखातिब हुए. लगभग 5.10 की हाईट, सांवला रंग, चेहरे पर घनी ग्रेइश दाढ़ी, काली पग बांधे, सादे कपड़ों में गोगा कुर्सी पर बैठे और हम से बात करने लगे. उन का मानना था जो अपने इलाके के लिए काम करता है उसे लोग जिताते जरूर हैं.

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जब हम ने उन से पूछा की यहां निर्दलीय उम्मीदवारों की शुरू से इतनी धाक कैसे हैं तो वह कहते हैं, “हमें कांग्रेस का भीतर से समर्थन था. यहां के एमएलए अन्दरखाते हमारे साथ थे. इस के अलावा जो लोग शुरुआत से यहां काम करते रहे हैं, लोग उन पर अपना भरोसा जताते हैं और उन्हें वोट देते हैं. हमारे यहां किसी पार्टी को वोट नहीं मिलता. काम को वोट मिलता है. मैं खुद यहां तीसरी बार पार्षद बना हूं. एक बार 2005 में, फिर 10 में फिर अब 21 में.

इसी के चलते हम ने उन से यह सवाल पूछा कि पिछली बार कांग्रेस को पुरे मोगा में सिर्फ 1 वार्ड में जीत हांसिल हुई थी लेकिन इस बार ऐसा क्या हुआ की वह सब से ज्यादा वार्ड जीत गई, तो इस पर सुरिंदर सिंह ने कहा, “पिछली बार उन की हवा खराब थी. उस समय भारतीय जनता पार्टी का जोर था. लेकिन जीतने के बाद मोदी ने काम चंगा नी कित्ता (अच्छे नहीं किए). इस बार सब लोग मोदी के खिलाफ हो गए. हमारे लोग दिल्ली में ठंड से मर गए, लेकिन उसे कोई फर्क नहीं पड़ा. यहां तक कि देश के लोग एक तरफ हो गए और मोदी दूसरी तरफ.

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वे आगे कहते हैं, “पेट्रोल कितना महंगा हो गया, डीजल कितना महंगा हो गया, गैस कितनी महंगी हो गई. यह सारे पंगे पाए मोदी ने (यह सब मोदी ने किया है). देश में लोग भूखे मर रहे हैं, गरीब आदमी बर्बाद हो गया है. युवाओं के पास कोई काम नहीं है. भाजपा अकाली पंजाब में गिरी तो कांग्रेस उठ खड़ी हुई.”

सुरिंदर सिंह गोगा अपनी बात आगे बढ़ा ही रहे थे कि एक ग्राहक उन के पास कोयला लेने आया, तो उन्होंने तकरीबन 10 मिनट का ब्रेक लिया और फिर जैसे ही काम निपटाया वह फिर से हम से बात करने लगे. हम ने उन से पूछा की आप इंडिपेंडेंट तो लड़ रहे हैं लेकिन आपको किस पार्टी का काम पसंद आ रहा है. उन्होंने जवाब दिया, “यहां कांग्रेस को समर्थन पब्लिक से भी है और जितने सभी इंडिपेंडेंट कैंडिडेट जीते हैं उन्हें ही समर्थन दे रहे हैं. कांग्रेस पार्टी ने हमारा साथ दिया है.”

हमने उन से पूछा की यदि आप ही जीतने वाले थे इस वार्ड में कांग्रेस ने अपना कैंडिडेट क्यों खड़ा किया. तो उन्होंने बताया, “मैं चाह रहा था कि मुझे कांग्रेस से टिकट मिल जाए. लेकिन कांग्रेस ने मुझे टिकट नहीं दिया. जब की वह यह जानती थी कि इस जगह से मेरी उम्मेदवारी मजबूत है. मसला यह है कि भीतरखाने इनकी आपसी टसल है. इस जिले से जो टिकट बांटता है वह पहले अपने लोगों को टिकट देता है.

“कांग्रेस से मुझे टिकट ही नही मिलती. केंद्र के बड़े लोगों से सिफारिश कर लोग अपने लिए टिकट ले लेते हैं लेकिन हमारी पहुंच इतनी ऊपर नहीं है की हमें कांग्रेस का नगर निगम का ही टिकट मिल जाए.”

वे कहते हैं, “यहां के मेयर चुने जाने के लिए हम सभी इंडिपेंडेंट कांग्रेस को समर्थन देंगे. हमारा कोई लालच नहीं है. मेरा काम लोगों की सेवा करना है. अगर में यहाँ किसी लालच में आऊंगा, पैसे खाऊंगा तो पुरे इलाके में बदनामी होगी, घर वालों को लोगों से ताने सुनने को मिलेंगे, आखिर हमें रहना तो यहीं है.

“यहां कांग्रेस के प्रधान को हमने पूरी ताकत दी हुई है. वह चाहे किसे भी मेयर के लिए चुनें, लेकिन हमारे यहां के सारे काम होने चाहिए. मेरी सभी इंडिपेंडेंट पार्षदों से बात लगातार हो रही है. हम परसों एक साथ चंडीगढ़ गए. वहां हमारी मुलाक़ात कांग्रेस के प्रधान सुनील जाखड से हुई. उन्होंने कहा की आप सब हमारे साथ रहो हम साथ में मिल कर काम करेंगे.”

सुरिंदर सिंह ने बताया की उन्हें अपने इलाके से 535 वोट्स मिले थे. उन के मुकाबले जो कांग्रेस के उम्मीदवार खड़े थे उन्हें 330 वोट्स मिले थे. 205 वोट्स के मार्जिन से उन्होंने इस वार्ड में जीत हासिल की है.

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