मां कहती रहीं, ‘‘मैं कर दूंगी, तू फालतू की मेहनत क्यों कर रही है. इस कमरे में अकेला लव थोड़े ही सोता है, मैं भी तो सोती हूं.’’
मगर वर्षा के हाथ नहीं रुके, वह लव के सारे काम खुद ही निबटाती रही.
दोपहर ढलते ही अचानक ड्राइवर वर्षा व भरत को लेने आ पहुंचा तो सब को आश्चर्य हुआ. मां ने टोक दिया, ‘‘अभी 2 दिन कहां पूरे हुए हैं?’’
ड्राइवर बोला, ‘‘मुझे साहब ने दोनों को तुरंत लाने को कहा है. साहब भरत को बहुत प्यार करते हैं. भरत के बिना एक दिन भी नहीं रह सकते. इस के अलावा सब लोगों को एक शादी पर भी जाना है.’’
बेटी पराए घर की अमानत ठहरी सो मां भी कहां रोक सकती थीं. वह वर्षा की विदाई की तैयारी करने लगीं, पर सुधीर का न आना सब को खल रहा था.
पिताजी आर्द्र स्वर में कह उठे, ‘‘हम चाहे कितने भी गरीब सही पर दामाद का स्वागत करने में तो समर्थ हैं ही. विवाह के बाद दामाद एक बार भी हमारे घर नहीं आए.’’
‘‘मां, तुम लोग भी तो दिल्ली आया करो, आनाजाना तो दोनों तरफ से होता है.’’
‘‘ठीक है, हम भी आएंगे,’’ मां आंचल से आंखें पोंछती हुई बोलीं.
वर्षा ने भरत की नजर बचा कर 500 रुपए का एक नोट भाभी को थमा दिया और बोली, ‘‘भाभी, लव का इलाज अच्छी तरह से कराती रहना.’’
भाभी ने लपक कर नोट को अपने ब्लाउज में खोंस लिया और मुसकरा कर बोलीं, ‘‘लव की चिंता मत करो, दीदी, वह हमारा भी तो बेटा है.’’
आखिर में वर्षा ऊपर जा कर लव से मिल कर भारी मन से ससुराल के लिए विदा हुई. कार आंखों से ओझल होने तक घर के सभी लोग सड़क पर खड़े रहे.
वर्षा रास्ते भर सोचती रही कि उस ने साल भर तक मेरठ न आ कर लव के साथ सचमुच बहुत अन्याय किया है. अपनी जिम्मेदारियां दूसरों के गले मढ़ने से क्या लाभ, लव की देखभाल उसे खुद ही करनी चाहिए.
वह इस बारे में सुधीर से बात करने के लिए अपना मन तैयार करने लगी. सुधीर को न तो दौलत का अभाव है न वह कंजूस है. वह थोड़ी नानुकुर के बाद उस की बात अवश्य मान लेगा व लव को अपना लेगा. फिर तो कोई समस्या ही नहीं रहेगी.
सुधीर घर में बैठा उन दोनों की प्रतीक्षा कर रहा था. भरत कार से उतर कर पिता की तरफ दौड़ पड़ा. सुधीर ने उसे गोद में उठा लिया, ‘‘मेरा राजा बेटा आ गया.’’
‘‘हां, देखो पिताजी, मैं क्या लाया हूं?’’ भरत, ननिहाल में मिले खिलौने दिखाने लगा. मांजी ने चाय बना कर सब को प्याले थमा दिए. सब पीने बैठ गए.
मांजी व सुधीर भरत से मेरठ की बातें पूछने लगे, ‘‘तुम्हारे नानानानी, मामामामी सब कुशल तो हैं न?’’
भरत उत्साहित हो कर छोटीछोटी बातें भी बताने लगा, फिर एकाएक कह उठा, ‘‘वहां बहुत गंदा एक लड़का भी देखा. उस के दांत भी बहुत गंदे थे. उस ने ब्रश भी नहीं किया था.’’
‘‘बहू, यह किस के बारे में कह रहा है?’’ मांजी पूछ बैठीं तो वर्षा को लव के बारे में सबकुछ बताना पड़ा.
सुधीर सबकुछ सुनता रहा, पर उस ने एक शब्द भी लव के बारे में नहीं कहा. वर्षा को उस की यह चुप्पी नागवार गुजरी. वह उस से कुछ कहना ही चाहती थी कि मांजी ने टोक दिया, ‘‘बहू, बातें फिर कभी हो जाएंगी, इस वक्त शादी में चलने की तैयारी करो, नहीं तो देरी हो जाएगी.’’
मांजी के मायके में किसी रिश्तेदार की शादी थी. वर्षा ने भरत को तैयार किया, फिर खुद भी तैयार होने लगी. रास्ते भर खामोश रही पर वर्षा भी इतनी जल्दी हार मानने वाली नहीं थी, वह सुधीर से बात करने के पक्के मनसूबे बना चुकी थी.
आखिर एक दिन वर्षा को मौका मिल ही गया. मांजी भरत को ले कर पड़ोस में गई हुई थीं. वर्षा ने बात शुरू कर दी, ‘‘लव को भैयाभाभी के आश्रित बना कर अधिक दिनों तक वहां नहीं रखा जा सकता.’’
‘‘फिर वह कहां जाएगा?’’
‘‘उसे हम अपने साथ ही रख लें, तभी उचित रहेगा.’’
‘‘यह कैसे हो सकता है?’’ कहते हुए सुधीर के चेहरे पर कठोरता छा गई, ‘‘मैं ने तुम से शादी ही इस शर्त पर की थी कि…’’
‘‘मेरी बात समझने की कोशिश करो. जिस प्रकार भरत मेरा बेटा है उसी प्रकार लव भी तुम्हारा बेटा है. फिर उसे साथ रखने में कैसी आपत्ति,’’ वर्षा ने उस की बात काटते हुए कहा.
‘‘मैं तुम्हारे लव को अपना बेटा कैसे मान सकता हूं? सपोज करो, मैं ने उसे बेटा मान भी लिया तो भी क्या मैं उसे घर में रखने की इजाजत दे दूंगा? क्या मेरा भरत, लव को अपना सकेगा? मां अपना सकेंगी?’’
यह सुन कर वर्षा चुप बैठी सोचती रही.
सुधीर उसे समझाने के अंदाज में फिर बोला, ‘‘अपनी भावुकता पर नियंत्रण रखो वर्षा, लव को भूल जाने में ही तुम्हारी भलाई है. उसे उस के हाल पर ही छोड़ दो.’’
‘‘मैं मां हूं, सुधीर,’’ वर्षा सिसक पड़ी, ‘‘अपनी संतान को तिलतिल कर मरते हुए कैसे देख सकती हूं? लव अब पहले से आधा भी नहीं रह गया. वह न ढंग से खा पाता है न पढ़ पाता है. भैयाभाभी के साथ और अधिक रह लिया तो उस का भविष्य खराब हो जाएगा.’’
‘‘मैं इस मामले में कुछ नहीं कर सकता, वर्षा. किसी अन्य को घर में आश्रय दे कर मैं अपने भरत के रास्ते में कांटे नहीं बो सकता,’’ सुधीर ने दोटूक जवाब दे दिया.
वर्षा को चुप्पी लगानी पड़ गई, साथ ही उस के हृदय में बनी सुधीर की छवि भी बिगड़ती चली गई कि कितना महान समझा था उस ने सुधीर को, लेकिन वह तो मात्र पत्थर निकला.
अब दोनों के बीच में अदृश्य दीवार खड़ी हो गई. वर्षा मन ही मन कुढ़ती रहती. उस का मन अब सुधीर से बोलने को भी नहीं होता था. वह उस के प्रश्नों का उत्तर हां या न में दे कर सामने से हट जाती व अपनी तरफ से कोई बात नहीं करती.
भरत भी उस की आंखों में चुभने लगा था. उस का मन विद्रोह कर बैठता, ‘जब सुधीर उस के लव को नहीं स्वीकारता तो वही क्यों भरत को छाती से लगाती रहे? पराए जाए अपने तो नहीं बन सकते, भरत से कौन सा उस का लहू का रिश्ता है? बड़ा हो कर भरत भी उसे आंखें दिखाने लगेगा. फिर वह उसे अपना क्यों समझे?’
दोनों के मध्य पनपता अवरोध मांजी की पैनी निगाहों से नहीं छिप सका. वह बारबार पूछने लगीं, ‘‘बहू, जब से तुम मायके से लौटी हो तुम ने हंसना बंद कर दिया है. यह उदासी तुम्हारे होने वाले बच्चे के लिए अच्छी नहीं.’’
वर्षा खुद को सामान्य दिखाने का प्रयास करती रहती पर मांजी संतुष्ट नहीं हो पाती थीं.
कभी वह कुरेदतीं, ‘‘सुधीर ने कुछ कहा है क्या? वह भी आजकल खामोश रहता है. तुम दोनों में कोई अनबन तो नहीं हो गई?’’
वर्षा ने उन्हें इस डर से सबकुछ नहीं बताया कि मांजी ही कौन सी उस की सगी हैं. जब सुधीर ही उस का दर्द नहीं समझा तो मांजी कैसे समझेंगी.
वह मांजी से भी दूर रह कर अंतर्मुखी बनने लगी. एक सुबह उठ कर मांजी ने घर में ऐलान किया कि वे हरिद्वार गंगा स्नान को जाएंगी. प्रौढ़ावस्था में उन्हें मोहमाया के बंधन तोड़ कर आत्मिक शांति पाने के प्रयास शुरू करने हैं. मांजी का यह कथन सभी को अटपटा लगा क्योंकि वे अब तक धर्म, कर्म तथा पंडेपुजारियों को पाखंड की संज्ञा देती आई थीं पर हरिद्वार जाने पर आपत्ति किसी ने नहीं दिखाई. सुधीर ने भी कह दिया, ‘‘इसी बहाने प्राकृतिक दृश्यों को देख कर तुम्हारा स्वास्थ्य उत्तम हो जाएगा.’’
मांजी कार में बैठ कर अकेली ही हरिद्वार रवाना हो गईं. इस के बाद तो हरिद्वार जाना उन का नियम सा बन गया. वह महीने में 2-4 चक्कर हरिद्वार के लगाने लगीं.
वर्षा यह सोच कर अब और अधिक क्षुब्ध रहने लगी कि कैसे मांबेटे हैं जिन्हें सिर्फ अपने शौैकसिंगार व स्वास्थ्य का ही खयाल है, किसी और की जरा सी भी चिंता नहीं है. कम से कम मांजी को तो लव के बारे में कुछ पूछना चाहिए था, पर मांजी भी स्वार्थी ठहरीं. एक दिन उस ने फिर से मेरठ जाने का निश्चय किया. सुधीर से छिपा कर कुछ रुपए भी पर्स में रख लिए, सोचा कि लव की दवाइयां खरीदने में काम आ जाएंगे.
थोड़ी नानुकुर के बाद सुधीर ने उसे मेरठ जाने की इजाजत दे दी पर ड्राइवर को खूब समझा दिया कि उसे आज ही वर्षा को साथ ले कर लौटना है.
भरत को इस बार सुधीर ने नहीं जाने दिया. बहला दिया कि मां रात तक तो वापस लौट ही आएगी. सुधीर के कठोर व्यवहार से आहत वर्षा, रास्ते भर आंसू पोंछती रही.
मां और भाभी उसे देखते ही स्वागत के लिए लपकीं, लेकिन वर्षा तो अपने लव को हृदय से लगाने को व्याकुल थी, इसलिए घर में घुसते ही उतावलेपन से सीढि़यों की तरफ दौड़ पड़ी. परंतु छत पर पहुंचते ही जैसे उसे काठ मार गया, क्योंकि लव का कमरा खाली था. उस का बिस्तर व कोई सामान भी दिखाई नहीं दे रहा था. वह चकित सी खड़ी सोचती रही, कहां गया लव?
उस के मन में सैकड़ों आशंकाएं तैर उठीं, कहीं लव को कुछ हो तो नहीं गया?
मां व भाभी दोनों, उस के पीछेपीछे सीढि़यां चढ़ कर ऊपर आ पहुंचीं. वर्षा उन की तरफ मुड़ी व बदहवासी में चिल्लाने लगी, ‘‘मां, बताओ मेरे लव को क्या हुआ? वह कहां चला गया? तुम ने मुझे उस के बारे में कभी पत्र में भी कुछ नहीं लिखा. क्या हुआ मेरे बेटे को…’’ वह रो पड़ी.
‘‘दीदी, हमारी भी तो सुनो,’’ भाभी उस के आंसू पोंछने लगीं.
‘‘क्या तुम्हारी सास ने कभी कुछ नहीं बताया?’’
‘‘नहीं, वह क्यों बताएंगी? उन्हें लव से क्या लेनादेना? कहां है लव…’’
‘‘तुम्हारी सास ने उसे उचित देखभाल के लिए अस्पताल में भर्ती करा दिया है. वह कई बार यहां आ चुकी हैं व लव के इलाज पर पानी की तरह पैसा बहा रही हैं.’’
वर्षा घोर आश्चर्य से जकड़ गई कि क्या ऐसा होना संभव है? पर मांजी को लव की बीमारी के बारे में कैसे पता लगा? कहीं उन्होंने छिप कर तो नहीं सुन लिया था?
वह उसी वक्त अस्पताल जाने के लिए उतावली हो उठी, पर मां ने जबरदस्ती उसे एक प्याला चाय पिला दी. फिर उस के साथ सभी लोग अस्पताल पहुंच गए.
लव साफसुथरे वस्त्र पहने स्वच्छ सफेद शैया पर लेटा हुआ था, मां को देखते ही उठने का प्रयास करने लगा. वर्षा ने उसे सहारा दे कर बिठाया व स्नेह से उस का मुंह चूमने लगी, ‘‘मेरा राजा बेटा, ठीक तो है न?’’
वह लव को पहले की अपेक्षा स्वस्थ देख कर संतुष्टि का आभास कर रही थी.
‘‘दादीमां नहीं आईं?’’ लव इधरउधर देख कर पूछ बैठा.
‘‘वह आएंगी, बेटे,’’ वर्षा उसे प्रसन्न देख कर खुशी से गद्गद हुई जा रही थी.
‘‘देखो, दादी मां ने मुझे कितने पैसे दिए हैं, खिलौने व मिठाइयां भी दिलवाई हैं,’’ लव सारा सामान दिखाने लगा.
कुछ वक्त लव के साथ बिता कर वर्षा अस्पताल से मायके लौट आई. फिर दिल्ली लौटी तो आते ही सास के पैर पकड़ कर कृतज्ञता के बोझ से दब कर रो पड़ी, ‘‘मांजी, आप महान हैं, हरिद्वार जाने के बहाने मेरे लव पर प्यार लुटाती रहीं…पराए लहू पर…’’
‘‘लव पराया कहां है, मेरा पोता है. जब तुम हमारी हो गईं तो लव भी तो अपना हुआ,’’ मांजी ने उसे उठा कर छाती से लगा लिया.
‘‘लेकिन सुधीर उस से नफरत करते हैं,’’ कह कर वर्षा चिंतित हो उठी, ‘‘वह सुनेंगे तो नाराज हो उठेंगे.’’
‘‘सुधीर ने लव को घर में रखने से ही तो इनकार किया है, उस का खर्च उठाने से तो नहीं? मैं लव को छात्रावास में रख कर पढ़ाऊंगी, उसे अच्छा इनसान बनाने में कोई कमी नहीं छोडूंगी.’’
वर्षा जानती थी कि सुधीर में मांजी का कोई भी आदेश टालने की हिम्मत नहीं है. उस का मन सुखसंतोष से भर उठा था कि अब उस का लव अनाथ नहीं रहा. उस के सिर पर मांजी की सबल छत्रछाया मौजूद है.
‘‘मां,’’ बड़ी कठिनाई से लव कह सका, जैसे कोई अपराध कर रहा हो. तुम कहां चली गई थीं?’’
‘‘मैं…’’ वर्षा का स्वर गले में ही अटक गया. कैसे कहे कि उस ने पुनर्विवाह कर लिया. आदित्य की यादें मिटाने की खातिर वह सुधीर का दामन थाम चुकी है. फिर लव को वह सब पता भी तो नहीं है. जिस वक्त सुधीर से उस की शादी मंदिर में हुई थी, लव को घर में छिपा कर रखा गया था.
‘‘मां, मेरे लिए नए कपड़े नहीं लातीं?’’ एकाएक लव की आंखों में आकांक्षाओं की चमक तैर उठी.
वर्षा को याद आया, वह लव से यही कह कर घर से निकली थी कि वह उस के लिए नए कपड़े खरीदने बाजार जा रही है, फिर 1 वर्ष पश्चात आज ही लौट कर आई है. वर्षा की पलकें भीग उठीं कि कितनी पुरानी बात याद रखी है लव ने. वह उस के पुराने, घिसेफटे, कपड़े देखती रही, भाभी कहां नए कपड़े दिलवा पाती होंगीं?
‘‘मां, मेरे नए कपड़े दे दो न?’’ लव जिद करने लगा.
वर्षा के मन में आया कि वह भरत के नए कपड़े ला कर लव को पहना दे. नाप ठीक आएगा क्योंकि दोनों हैं भी एक आयु के पर वह ऐसा नहीं कर सकी. मन में डर की लहर सी उठी कि अगर भरत ने कपड़ों की बाबत सुधीर व मांजी को बता दिया तो?
तभी भाभी ने टोका, ‘‘चलो दीदी, पहले भोजन कर लो, बाद में ऊपर आ जाना.’’
वर्षा सीढि़यों की तरफ बढ़ गई. बीच में ही भाभी ने पूछना शुरूकर दिया, ‘‘दीदी, तुम लव के लिए कपड़े, खिलौने वगैरह कुछ ले कर नहीं आईं?’’
वर्षा उत्तर नहीं दे पाई तो भाभी के चेहरे पर रूखापन छा गया. वह कुछ कड़वेपन से कहने लगीं, ‘‘लव है तो तुम्हारी कोख जाया ही, तुम्हें उस का ध्यान रखना चाहिए. सुधीर की आमदनी भी तो कम नहीं है, घर में सभी कुछ मौजूद है. रुपए तुम्हारे हाथ में भी तो रहते होंगे?’’
वर्षा को लगा कि भाभी ने जानबूझ कर उसे इस तरह का पत्र लिखा था, जिस से वह मेरठ आ कर उन्हें कुछ दे जाए. भाभी शुरू की लालची जो ठहरीं, दूसरों पर खर्च करना इन्होंने कहां सीखा है.
मां ने खाना परोस दिया पर वर्षा के मुंह में यह सोच कर निवाला नहीं चल पाया कि बेचारा लव, पेट भर कहां खाता होगा.
मां समझाती रहीं, ‘‘तुम्हें ऐसी स्थिति में खूब खानापीना चाहिए. बच्चा अच्छा पैदा होगा तो सुधीर भी तुम्हें अधिक पसंद करेगा.’’
पिता और भैया भरत को लाड़प्यार करते रहे, भैया उसे स्कूटर पर बिठा कर दुकान पर ले गए. वहां से उसे टाफियां व फल दिलवा कर लाए.
मां और भाभी उस से सुधीर, भरत व ससुराल की ही बातें करती रहीं तो ऊब कर उस ने खुद ही लव की चर्चा छेड़ी, ‘‘लव कैसा पढ़ रहा है? कैसे नंबर आए?’’
‘‘ठीक है, अधिक पढ़ कर भी उसे क्या करना है. थोड़ा बड़ा होगा तो मामा के साथ, उस की दुकान पर काम करने लगेगा,’’ मां बोलीं.
वर्षा सोचने लगी, फिर तो लव पूरे घर के लिए मुफ्त का नौकर बन कर रह जाएगा. सभी लोग उस पर भांतिभांति के हुक्म चलाते रहेंगे.
सब ने भोजन कर लिया तो भाभी बरतन समेटने लगीं, पर लव के भूखे रहने का किसी को आभास तक नहीं रहा. तब वर्षा अपने साथ लाए फल व मिठाई तस्तरी में रख कर लव को देने चली गई.
लव अकेला पड़ा था. वर्षा का मन फिर से भीगने लगा. वह उस के नजदीक बैठ कर प्यार से उसे खिलाने लगी. फिर उठ कर चली तो लव ने उस की साड़ी का पल्लू थाम लिया और बोला, ‘‘कुछ देर और बैठो, मां.’’
वर्षा रुक कर उस के सिर पर हाथ फेरती रही. लव ने सुख का आभास कर के आंखें बंद कर लीं, पर भरत की पुकार पर वर्षा को नीचे आना पड़ा.
अगले दिन सुबह नाश्ते से निबट कर उस ने लव की चारपाई छत पर डाल दी और जाले साफ कर के कमरा रगड़रगड़ कर धोया, अगरबत्तियां जला कर बदबू दूर की फिर उस के मैले वस्त्रों को धो कर चमकाया. तत्पश्चात वह लव की मालिश करने बैठ गई.
तब दुखी हो कर पिता ने उस के पुनर्विवाह की कोशिशें शुरू कर दीं और एक अखबार में वैवाहिक विज्ञापन पढ़ कर सुधीर के घर वालों से पत्र व्यवहार शुरू किया तो सुधीर से उस का रिश्ता पक्का हो गया, पर सुधीर व उस के घर वालों की एक ही शर्त थी कि वे बच्चे को स्वीकार नहीं करेंगे. उन्हें सिर्फ बिना बच्चे की विधवा ही स्वीकार्य थी, जबकि सुधीर भी एक बेटे का बाप था. विधुर था और अपने बेटे की खातिर ही पुनर्विवाह कर रहा था, पर वह उस के बेटे का दर्द नहीं समझ पाया और उसे अस्वीकार कर दिया.
अपने जिगर के टुकड़े को मांबाप की गोद में छोड़ कर वर्षा, सुधीर से ब्याह कर ससुराल आ पहुंची थी, तब से सिर्फ पत्र ही लव की जानकारी पाने का साधन मात्र रह गए थे. पर उन पत्रों में यह भी लिखा होता कि वह अब हमेशा को लव को भूल कर अपने भविष्य को संवारे व सुधीर और भरत को किसी अभाव का आभास न होने दे. भरत को पूरी ममता दे.
मेरठ से आए हुए उसे पूरा वर्ष बीत गया, तब से एक बार भी वह मायके नहीं गई. सुधीर ने ही नहीं जाने दिया. हमेशा यही कहा कि अब मायके से कैसा मोह. घर में किसी वस्तु का अभाव है क्या. लेकिन अभाव तो वर्षा के मन में बसा था, वह एक दिन के लिए भी अपने लव को नहीं भूल पाती थी और अब भाभी के पत्र ने उस के मन की बेचैनी कई गुना बढ़ा दी थी. मन लव को बांहों में लेने और हृदय से लगाने को बेचैन हो उठा था.
सुधीर घर लौटा तो वर्षा खुद को रोक न पाई और कह उठी, ‘‘मैं 2 दिन के वास्ते मेरठ जाना चाहती हूं.’’
सुधीर ने वही रटारटाया उत्तर दे डाला, ‘‘क्या करोगी जा कर, वैसे भी आजकल तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं रहती, तीसरा महीना चल रहा है, वहां आराम कहां मिल पाएगा…’’
‘‘क्यों नहीं मिलेगा? भैयाभाभी क्या मुझे हल में जोतेंगे? मैं वहां पूरे दिन बिस्तर तोड़ने के अलावा और करूंगी भी क्या?’’ वर्षा जैसे विद्रोह पर उतर आई थी.
उस ने सास से भी जिद की, ‘‘बहुत दिन हो गए मुझे मायके वालों को देखे. दिल्ली से मेरठ का रास्ता ही कितना है. सिर्फ 2 घंटे का, फिर भी मैं साल भर से मायके नहीं जा पाई हूं और न कभी उन लोगों ने ही आने का साहस किया. फिर आनाजाना दोनों तरफ से होता है, एक तरफ से नहीं.’’
इस पर सास ने जाने की इजाजत यह कहते हुए दे दी कि इस का मायके आनाजाना भी जरूरी है.
वर्षा अटैची में कपड़े रखने लगी तो भरत भी जिद कर उठा, ‘‘मैं भी तुम्हारे साथ जाऊंगा, मां. तुम्हारे बिना कैसे मन लगेगा?’’
साल भर में ही भरत उस से काफी हिलमिल चुका था और उसे ही अपनी सगी मां समझने लगा था.
भरत को रोतेबिसूरते देख सास ने उसे भी साथ ले जाने को कह दिया, ‘‘क्या हुआ, यह भी कुछ दिन को घूम आएगा. बेचारे को असली ननिहाल तो कभी मिला ही नहीं, सौतेला ही सही.’’
वर्षा ने भरत के कपड़े भी रख लिए. भरत के कपड़ों की अटैची अलग से तैयार हो गई. भले ही 2 दिनों को जाना हो, भरत को कई जोड़ी कपड़ों की आवश्यकता पड़ती थी. वह बारबार कपड़े मैले कर लेता था.
दोनों कार में बैठ कर मेरठ चल पड़े. रास्ते भर भरत उस की गोद में बैठ कर भांतिभांति के प्रश्न पूछता रहा.
वर्षा मायके पहुंच देर तक मां, भाभी के गले से लिपटी रोती रही. भाभी बारबार पूछती रहीं, ‘‘ठीक तो हो, दीदी? सुधीर ने आदित्य का गम भुला दिया या नहीं? सुधीर का व्यवहार तो ठीक है न?’’
वर्षा के मन में अपने लव का गम समाया हुआ था. वह क्या उत्तर देती, जैसेतैसे चाय के घूंट गले से नीचे उतारती रही.
फिर भाभी खुद ही उसे लव के कमरे में ले गईं. नीचे जगह कम होने के कारण लव छत पर बने कमरे में रहता था.
मूंज की ढीली चारपाई पर सिकुड़ी हुई मैली दरी पर अपाहिज बना पड़ा था लव. पहली नजर में वर्षा उसे पहचान नहीं पाई, फिर लिपट कर रोने लगी, ‘‘यह क्या दशा हो गई लव की?’’
लव काला, सूखा, कंकाल जैसा लग रहा था, वह भी मां को कठिनाई से पहचान पाया. फिर आश्चर्य से वर्षा की कीमती साड़ी व आभूषणों को देखता रह गया.
‘‘तू ठीक तो है न, लव?’’ वर्षा ने स्नेह से उस के सिर पर हाथ फिराया, पर लव को उस से बात करते संकोच हो रहा था. वह नए वस्त्र व जूतेमोजे पहने, गोलमटोल भरत को भी घूर रहा था.
‘‘मां, यह कौन है?’’ भरत ने लव को देख कर नाकभौं सिकोड़ते हुए पूछा.
वर्षा कहना चाहती थी कि लव तुम्हारा भाई है, पर यह सोच कर शब्द उस के होंठों तक आतेआते रह गए, क्या भरत लव को भाई के रूप में स्वीकार कर पाएगा? नहीं, फिर लव को भाई बता कर उस के बालमन पर ठेस पहुंचाने से क्या लाभ?
तभी भरत अगला प्रश्न कर बैठा, ‘‘मां, यह कितना गंदा है, जैसे कई दिनों से नहाया ही न हो, चलो यहां से, नीचे चलते हैं.’’
भाभी भरत को बहलाने लगीं, ‘‘दीदी, तुम लव से बातें करो न?’’
वर्षा की निगाहें पूरे कमरे का अवलोकन कर रही थीं. कमरा काफी गंदा था. छतों तथा दीवारों पर मकडि़यों के बड़ेबड़े जाले और धूल की परतें जमी हुई थीं. उसे याद आया कि इस कमरे में तो घर का कबाड़ रखा जाता था.
भाभी जैसे उस के मन के भाव ताड़ गईं सो मजबूरी जताते हुई बोलीं, ‘‘दीदी, क्या करें, घर में कोई नौकर तो है नहीं, मांजी ने ही इस कमरे का सामान निकाल कर इस की सफाई की थी. वही लव की देखभाल करती हैं. मुझे तो रसोई से ही फुरसत नहीं मिल पाती, फिर छोटे बच्चे भी ठहरे…’’
‘‘ठीक कहती हो, भाभी,’’ कहती हुई वर्षा लव के सिरहाने बैठ गई, क्योंकि कमरे में कोई कुरसी नहीं थी और स्टूल पर दवाइयां व पीने का पानी रखा हुआ था.
‘‘लव, मुझे मां कहो न,’’ कहती हुई वर्षा उस के बालों में हाथ फेरने लगी.
लेखक- रोहित और शाहनवाज
पंजाब में हाल ही में हुए निकाय चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के लिए आक्रोश साफ सीधे देखा जा सकता है. पंजाब आकर हम ने कई लोगों से बात की और उन से पूछा की यदि किसान आंदोलन नहीं होता तो क्या यहां पर लोग भाजपा का समर्थन करते? तो कईयों ने हमारे इस सवाल का जवाब ना में ही दिया. यहां लोगों का यही मानना है की यदि किसान आंदोलन नहीं भी होता तो भी वो भाजपा को बढ़ती महंगाई, खत्म होते रोजगार, पेट्रोल डीजल के बढ़ते दामों और गलत आर्थिक नीतियों इत्यादि जैसे गंभीर मुद्दों को ध्यान में रखती और उन का मैनडेट लगभग ऐसा ही होता जैसा अभी दिखाई दे रहा है.
खैर, रात के 8.30 बज रहे थे जब हम मोगा की कच्ची पतली गलियों में घूमते हुए 63 वर्षीय ओमप्रकाश और उन के बेटे धनपत राय (30) के मिट्टी के बर्तनों की दुकान पर पहुंचे. इन की यह दुकान मोगा के मेन मार्किट रोड पर आते हुए वार्ड नंबर 20-21 में पड़ती है, जो की मेन रोड से काफी अंदर की तरफ है. ओमप्रकाश ने इस गली की खासियत के तौर पर बताया की इस गली की शुरूआत में मुहाने के ओपोजीट साइड में फिल्म अभिनेता सोनू सूद का घर है.
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सांवले रंग, चौड़ा कपाल, सफेद बाल, ग्रेइश दाढ़ी, तनी हुई मूछें, एवरेज फिगर के ओमप्रकाश अपने बेटे धनपत राय के संग दुकान में चुपचाप बैठे ग्राहक आने का इंतजार कर रहे थे. इतने में हम उन की दुकान पर पहुंच गए. वैसे तो ओमप्रकाश और उन का परिवार उत्तरप्रदेश के रहने वाले हैं लेकिन लम्बे समय से वह मोगा में ही रहते हैं और अब पंजाब के स्थानीय निवासी हो चुके हैं. उन की दुकान पर वह मिट्टी से बने बर्तन, चूल्हा, घड़े और सजावट के सामन बेचते हैं. पहले परचून की दुकान होने के चलते दुकान में लगे शेल्व्स मिट्टी के सभी बर्तनों की शोभा और बढ़ा रहे थे. दुकान में हर एक सामान बड़ा ही सिस्टमैटिक था.
जब ओमप्रकाश के बेटे धनपत से हम ने पूछा की यहां पर बीजेपी का इतना बूरा हाल क्यों हुआ तो वे बताते हैं, “यह तो नगर निगम के चुनाव थे, यहां जो प्रत्याशी खड़े होते हैं वह इन्ही गली मोहल्लों के होते हैं. निगम के चुनाव में लोग पार्टी चाहे कैसी भी हो कई बार चाल-चलन, बात-व्यवहार और उठने-बैठने के चलते ही जीता देते हैं. लेकिन भाजपा का अगर यह हाल हुआ है तो कुछ तो बात रही ही होगी. मसला यह है की जनता अभी भाजपा के फैसलों से परेशान हैं. मोदी जी जो भी फैसले कर रहे हैं वह बिना सोचे समझे कर रहे हैं.
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वह आगे कहते हैं, “जिस इंसान के पास खाने के लिए पैसा नहीं है वह इन्सान क्या करेगा. एक ध्याड़ीदार जो यहां 200-300 रूपए कमा रहा है उस के लिए अब बहुत मुश्किल हो गया है. ऊपर से जो पिछले साल लौकडाउन लगा उस ने देश की कमर तोड़ दी. मेरे सामने तो एक भी ऐसा मामला नहीं हैं जहां केंद्र सरकार ने गरीब को कोई फायदा पहुंचाया हो. यही कारण भी है की भाजपा से लोग नाराज हैं.”
63 वर्षीय ओमप्रकाश के 2 बेटे हैं जिस में से छोटा बेटा धनपत 30 वर्ष का है. धनपत ने ग्रेजुएशन की पढ़ाई और कंप्यूटर में डिप्लोमा किया हुआ है. किन्तु उस के बावजूद भी वह बेरोजगार हैं. जब उनसे हम ने इस का कारण पूछा तो वह कहते हैं, “सरकार ने रोजगार का कोई अवसर प्रदान नहीं किया. ये बात नहीं है की योजनाएं नहीं है लेकिन उन योजनाओं का इम्पैक्ट जमीन पर होता हुआ दिखाई नहीं देता. बाजार में कुछ काम धंधा ही नहीं होगा तो मेरे जैसा युवा आखिर करेगा ही क्या. मैंने डिग्री ले ली, डिप्लोमा भी लिया हुआ है फिर भी पापा के साथ दुकान पर बैठने को मजबूर हूं. मेरी उम्र 30 साल की है और ऐसा नहीं है की मैं नौकरी नहीं करना चाहता लेकिन नौकरी मिल ही नहीं रही. जहां बात बनती है वहां सैलरी 5-6 हजार रूपए है. क्या उस से गुजारा हो सकता है.”
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यह बोल कर धनपत कुछ देर लिए शांत हो गए, अपनी आखों में लगा चश्मा उतारा, अपना सर नीचे झुका लिया और अचानक से उत्तेज्ती हो कर बोले, “देश में मोदी ने कहा तो था की हर साल 2 करोड़ नौकरियां देंगे लेकिन कहां हैं काम? हम तो अच्छे दिनों का सपना देख रहे थे लेकिन हमें क्या पता था की घर बैठने की नौबत आ जाएगी.”
इस बीच धनपत एनएसएसओ की राष्ट्रीय बेरोजगारी की उस रिपोर्ट को याद करने की कोशिश करने लगे जो 2019 में बिसनेस स्टैण्डर्ड अखबार में लीक हुई थी. वह कहते हैं, “अच्छे दिनों की सरकार से हमने क्या पाया है कोई नहीं जानता. सब हवा हवाई चल रही है. अभी पीछे एक आंकड़ा आया था जिस में भारत 45 साल की सब से ज्यादा बेरोजगारी झेल रहा है. इस में कोई दोराहे नहीं की लौकडाउन के बाद ये आंकड़ा और भी बढ़ गया होगा.”
इतने में उन के पिता ओमप्रकाश खड़े होते हैं और दो कदम अंदर दुकान की ओर जा कर वहां पड़े मटकों की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, “मार्किट ठप्प है. कोई ख़ास रिस्पोंस नहीं है. हम ने यह दुकान खोली ताकि जिंदगी पटरी पर आ सके लेकिन हाल यह है की सुबह 7 बजे से रात के 10 बजे तक दुकान में बैठने के बावजूद हमारी कमाई 500 रूपए तक की है. कभी कभी तो गल्ला खाली भी देखना पड़ जाता है.”
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धनपत ने बताया कि उन की यह दुकान 2016 तक परचून की दुकान हुआ करती थी. लेकिन उन्होंने इसे 2016 में मिट्टी के बर्तन व सामान बेचने वाली दुकान में बदल लिया और अपना जातिगत पेशा अडोप्ट करना ज्यादा बेहतर समझा. धनपत कहते हैं, “यह हमारा जन्मजात पेशेगत काम था हम लोग कुम्हार जाती से बिलोंग करते हैं इसीलिए इस काम को हम ने दुबारा शुरु कर दिया. हालांकि हम अब इन्हें बनाते नहीं हैं.”
इतने में धनपत के पिता ओमप्रकाश ने उन की बात को काटते हुए कहा की, “हम प्रजापति कास्ट से हैं.” ओमप्रकाश इस समय देश में चल रही महंगाई को ले कर काफी परेशान हैं. वह कहते हैं, “महंगाई बहुत है, घर के खर्चे पूरे नहीं हो रहे. पहले ये था की घर का एक आदमी कमाता था और जैसे तैसे काम चल जाया करता था. लेकिन अब तो सारे भी कमा ले फिर भी भुखमरी बनी रहती है. हर एक चीज महँगी हो रही है. पेट्रोल 100 पर आ गया है, सिलिंडर का रेट बढ़ गया है. सब्सिडी खत्म हो गयी है. आम लोगो लिए कुछ नहीं रहा अब.”
इतने में धनपत मुस्कुराते हैं और व्यंग्यात्मक तरीके से सरकार पर कटाक्ष मारते हुए कहते हैं, “मोदी अच्छे दिनों की बात कर रहे थे देखो अच्छे दिन आ गये हैं. देश ‘खुशहाल’ बन गया है. मोदी गरीबी खत्म करने आए थे और अब लग रहा है चुन चुन कर गरीबों को खत्म कर गरीबी खत्म कर ही लेंगे.”
फोटो खींचना किसे पसंद नहीं होता …यहां तक की बहुत बार ऐसा होता है कि कैमरे में कुछ खास चीजें कैप्चर हो जाती हैं…. कुछ फोटॉग्राफर कैमरे में कुछ ऐसा कैद कर लेते हैं जो बहुत ही खास होता है…एक ऐसी ही घटना तब देखने को मिली जब एक वाइल्डलाइफ फोटॉग्राफर यीव्स एडम्स ने अपने कैमरे से दुर्लभ प्रजाति के अलग से दिखने वाले पीले रंग के पेंगुइन की फोटो कैप्चर की…जी हां आप भी सोच रहे होंगे कि आखिरकार पेंगुइन पीले रंग का कैसे….लेकिन सोशल मीडिया पर इस पेंगुइन की फोटो वायरल हो रही है और लोग हैरत में हैं कि आखिर आमतौर पर पेंगुइन तो काले और सफेद रंग के होते हैं फिर ये पिले रंग का पेंगुइन कहां से आया ?
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दरअसल बेल्जियम के रहने वाले यीव्स एडम्स नाम के एक वाइल्डलाइफ फोटॉग्राफर ने दक्षिण जॉर्जिया के एक टूर पर इस पीले रंग के पेंग्विन को देखा…पहले तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ लेकिन फिर वो समझ गए कि ये कुछ अनोखा है… यीव्स ऐडम्स तुरंत उस पेंगुइन की तस्वीर ले ली और उसे उन्होंने सोशल मीडिया पर भी शेयर किया जो वायरल हो रहा है …यीव्स ऐडम्स ने जो तस्वीर ली है उसमें ब्लैक ऐंड वाइट पेंग्विन के पास पीले पंखों वाला पेंग्विन खड़ा दिख रहा है…खबरों के मुताबिक एडम्स अंटार्कटिका और दक्षिण अटलांटिक के बीच दो महीने के फोटोग्राफी एक्सपीडिशन को लीड कर रहे थे…उस टूर के बीच ही उन्हें ये पीले रंग का पेंगुइन दिखा…तस्वीर में यह पीला पेंग्विन आराम से पानी पर तैरता दिखाई दे रहा है.ऐडम्स के मुताबिक लाखों पेंग्विन्स के बीच में सिर्फ यही अकेला ऐसा था जो पीले रंग का था.दक्षिण जॉर्जिया के सैलिसबरी प्लेन में एडम्स का ग्रुप 1.2 लाख पेंग्विन की कॉलोनी को देखने के लिए रुका था.तभी इस अनोखे पीले रंग के पेंगुइन को एडम्स ने देखा और तुरंत बीना वक्त गवाए ही उसकी तस्वीर ली.
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खबरों के मुताबिक ऐडम्स ने कहा कि वह 30 साल से दक्षिण जॉर्जिया जाने का सपना देखते थे, जब से उन्होंने सर डेविड अटनबरो की डॉक्युमेंटरी में इन पेंग्विन्स को देखा था. ऐडम्स का कहना है कि ऐसा कलर शायद LEUCISM से हुआ है… यह एक तरह का म्यूटेशन होता है जिसकी वजह से पंखों में मेलनिन बनता नहीं है…इसकी वजह से सफेद, पीले या कुछ अलग रंग देखे जाते हैं…हालांकि पीले रंग के पेंगुइन देखे जाने की ये घटना पहली बार हुई है.महासागर के बीच एक बड़े से चट्टान पर लाखों पेंगुइन्स को देखना बहुत अद्भुत था.एडम्स ने बताया कि साउथ अटलांटिक आईलैंड के बीच में लगभग एक लाख पक्षी होंगे लेकिन जो सबसे अलग था वो था ये पीले रंग का पेंगुइन जो सिर्फ एक था.इस तरह का अनोखा जीव अगर दिख जाए तो भला कौन ही उसकी तस्वीर नहीं लेना चाहेगा.एक खबर के मुताबिक एडम्स ने बताया कि उन्होंने साल 2019 में ही दिसंबर में इस फोटो को क्लिक किया था, लेकिन वे इसे अब तक पब्लिश … नहीं कर पाए थे…लेकिन अब जब उनके कैमरे से क्लिक हुई ये फोटो उन्होंने शेयर की उसे पब्लिश किया तो दुनियाभर के लोगों का ध्यान इस फोटो ने अपनी ओर खींच लिया.इस पीले रंग के पेंगुइन को देखकर हर कोई हैरत में है. लेकिन ये भी सच है कि ऐसे दुर्लभ प्रजाती के जीव बहुत ही कम देखने को मिलते हैं.
फिल्मों और सीरियल्म में अपने अदा का जादू चला चुकी अंनीता हसनंदानी ने कुछ वक्त पहले ही अपने पहले बेटे को जन्म दिया है. जिसके बाद से उनके घर में खुशियां छाई हुई हैं. अनीता और उनके पति रोहित रेड्डी ने टीवी जगत के बेस्ट कपल में गिने जाते हैं.
अनीता के घर आए नन्हें मेहमान को देखने के लिए सभी फैंस बेसब्री से इंतजार कर रहे थें. जिसे देखते हुए अनीता और रोहित ने अपने बेटे आरव की पहली झलक सोशल मीडिया पर शेयर कि है. जिसमें आरव अपनी मां की गोद में हैं.
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लेकिन बेटे की तस्वीर को सोशल मीडिया पर शेयर करने का इनका अंदाज बेहद ही ज्यादा निराला था. इन्होने जो वीडियो शेयर किया है उसमें अनीता हसनंदानी के पेट पर रोहित रेड्डि माचिस मारते हैं और धुंआ के साथ उनके पेट से बेबी बाहर आ जाता है लेकिन सभी के चेहरे पर धुंआ- धुंआ नजर आ रहा है. जिसे देखते हुए सभी फैंस बेहद ज्यादा खुश हुए और नए मेहमान के लिए शुभकामनाएं दी.
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बता दें कि अनीता हसनंदानी और रोहित रेड्डि ने साल 2013 में शादी के बंधन में बंधे थें, जिसके बाद से लगातार दोनों ने कपल गोल को चैलेंज दिया है. इन्हें जोड़ी को लोग खूब ज्यादा पसंद करते हैं. वहीं कुछ लोगों का कहना है शादी के इतने लंबे वक्त बाद भी इनके प्यार में कभी कोई कमी नहीं आई दोनों साथ में हमेंशा से अच्छे लगते हैं.
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बता दें कि रोहित रेड्डि से पहले अनीता का नाम एजाज खान के साथ भी जुड़ चुका है लेकिन इस विषय पर कभी भी अनीता ने खुलकर बात नहीं कि है.
बीती रात सलमान खान ने रुबीना दिलाइक को बिग बॉस 14 का विनर बना दिया है. इसके साथ ही बिग बॉस सीजन 14 भी समाप्त हो गया है. रुबीना दिलाइक के नाम बिग बॉस 14 का टाइटल आते ही उन्हें शुभकामनाएं मिलनी शुरू हो गई हैं.
वहीं सोशल मीडिया पर फैंस रुबीना दिलाइक के जीत की खुशी मना रहे हैं. वहीं टीवी के कई सितारे लगातार रुबीना दिलाइक को बधाइयां दे रहे हैं. टीवी जगत में खुशी का माहौल छाया हुआ है. सभी लोग इस खुशी के पल को एक साथ एंजॉय कर रहे हैं.
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वहीं सिद्धार्थ शुक्ला ने लिखा है कि रुबीना तुम्हें विनर बनने की बहुत सारी बधाइंयां. तुमने खेल को अच्छे से खेला है. वहीं हिना खान ने लिखा है कि रूबी, रूबी, रूबी आखिर तुम जीत ही गई तुम्हें विनर बनने की ढ़ेंर सारी शुभकामनाएं.
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इसके साथ ही बिग बॉस 14 के मास्टर माइंड विकास गुप्ता ने भी रुबीना दिलाइक को ढ़ेंर सारी शुभकामनाएं दी है. उन्होंने भी रुबीना दिलाइक के तारीफ करते हुए लिखा कि आखिर 20 हफ्ते बाद बिग बॉस 14 का विनर मिल ही गया.
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आगे विकास ने कहा मैं बिग बॉस 14 के सभी टीमों को बधाई देना चाहता हूं, सभी ने अच्छा खेला है लेकिन विनर तो एक ही बनता है.
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वहीं रुबीना दिलाइक के साथ- साथ उनके परिवार के सभी सदस्य भी बहुत ज्यादा खुश हैं. पति अभिनव शुक्ला भी बहुत ज्यादा खुश नजर आ रहे हैं. इसी के साथ रुबीना दिलाइक के चेहरे पर भी आप इस खुशी को साफ देख सकते हैं.
वहीं रुबीना दिलाइक की ऑनसक्रीन सास काम्या पंजाबी ने कहा कि कहा था न जीत जाएगी तुम्हें इस सीजन को जीतने के लिए ढ़ेंर सारी शुभकामनाएं.
वसुंधरा अपार्टमैंट की बात निराली थी. उस में रहने वालों के सांझे के चूल्हे भले ही नहीं थे पर सांझे के दुखसुख अवश्य थे. एकदूसरे की आवश्यकता को पलक झपकते ही बांट लिया करते थे. वहां सभी धर्मों के त्योहार बड़े ही हर्ष से मनाए जाते थे. प्रेमप्यार के सागर के साथ मानमनुहार के कलश भी कहींकहीं छलकते ही रहते थे.
हंसी और खिलखिलाहटों की गूंज पूरे भवन में रहती थी. किसी भी उम्र की दहलीज क्यों न हो, मन की सूनी घाटियों पर अकेलेपन के बादल कभी नहीं मंडराते थे. अतीत के गलियारों से संयुक्त परिवार के परिवर्तित रूप को लाने का प्रयास था, जिस की अनगिनत सहूलियतों से सभी सुखी व सुरक्षित थे.
उसी बिल्ंिडग के एक फ्लैट में नए दंपती सरिता और विनय का आना हुआ. उन का सामान वगैरह कई दिनों से आता रहा. रहने के लिए वे दोनों जिस दिन आए, नियमानुसार बिल्ंिडग की कुछ महिलाएं मदद के लिए गईं.
जब वे वहां पहुंचीं तो किसी बात पर नए दंपती आपस में उलझ रहे थे. फिर भी उन्हीं के फ्लोर पर रहने वाली नीतू ने कहा, ‘‘हैलो, नमस्ते अंकल व आंटी. मैं नीतू, आप के सामने वाले फ्लैट में रहती हूं. आप का घर अभी ठीक नहीं हुआ है. इतनी गरमी में कहां खाने जाइएगा. आज लंच हमारे साथ लें और रात का डिनर इस अंजू के यहां रहा. यह आप के फ्लैट के ठीक ऊपर रहती है,’’ कहते हुए नीतू ने अंजू का परिचय दिया.
अंजू ने खुश होते हुए कहा, ‘‘आंटी, हम दोनों के यहां एक ही बाई काम करती है, उस से कह दूंगी, लगेहाथ आप के यहां भी काम कर देगी.’’
सरिता की बगल के फ्लैट में रहने वाली रश्मि भी अब कैसे चुप रहती, ‘‘भाभीजी, जब तक गैस आदि की व्यवस्था नहीं हो जाती, आप मेरा सिलैंडर ले सकती हैं. फिर भी शाम की चाय मैं दे जाऊंगी.’’
उषाजी पीछे कैसे रहतीं, ‘‘बहनजी, घर ठीक करने में आप चाहें तो मेरी मदद ले सकती हैं. इन सभी के बच्चे अभी छोटे हैं. काम लगा रहता है. जहां तक हो सकेगा, सामान जमाने में मैं आप की मदद कर सकती हूं. बाहर की जानकारी भाईसाहब मेरे पति से ले सकते हैं. उन्हें अग्रवाल साहब से मिल कर बड़ी खुशी होगी. उन का कोई हमउम्र तो मिला.’’
इतनी देर तक सरिता लालपीली हो कर चुप्पी के खून का घूंट पीती रहीं, पर जब महिलाओं की सहृदयता और दिलदरिया का पानी सिर से ऊपर हो गया तो वे खुद को रोक नहीं सकीं, ‘‘आप सब चुप भी रहिएगा कि यों ही बकरबकर बोलते जाइएगा. यह क्या आंटीअंकल कर के हमें संबोधित कर रही हैं. हम क्या इतने बूढ़े दिखाई दे रहे हैं. आगे से मुझे सरिता कहिएगा. बेकार के रिश्ते मैं नहीं जोड़ती. हम अपना सारा इंतजाम कर के आए हैं. दूसरों की मदद की आवश्यकता नहीं है हमें.
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‘‘अब आप सब मेहरबानी कर के जाएं और मुझे काम करने दें. काम करने वाली बाई खुद ही दौड़ी आएगी. वहां भी कालोनी में सब से ज्यादा तनख्वाह मैं ही देती थी.’’ मिसेज अग्रवाल के ऐसे रूखे बोलव्यवहार से सारी महिलाएं बहुत आहत हुईं और लौट गईं.
सारे फ्लैट्स में सरिता ही चर्चा का विषय बनी रहीं. उन की ओर कोई पलट कर भी नहीं देखेगा, सभी ने ऐसा सोच लिया था. उन के फ्लैट में कुछ दिनों तक सामान रखने के कारण उठापटक होती रही. सबकुछ व्यवस्थित होने के बावजूद सामान फेंकने, पटकने की आवाज के साथ उन के तूतूमैंमैं की आवाज घर की दीवारों से टकराने लगी तो सभी को अपनी शांति भंग होती लगी. पर भिड़ के छत्ते में कौन हाथ डाले, सोच कर सभी ने ठीक होने के लिए समय पर छोड़ दिया.
मजाल है कि कोई भी कामवाली उन के यहां 2 महीने से ज्यादा टिकी हो. उन दोनों की अकड़ और घमंड से सब को शिकायत थी, पर नफरत नहीं. हर तीजत्योहार के मिलन में सब उन्हें आमंत्रित करती रहीं पर वे दूर ही रहे. चौबीसों घंटे लड़नेझगड़ने की आदत से शायद मिलने से झिझकते या कतराते हों, यह समझ कर सभी फ्लैटवासी उन से सहानुभूति ही रखते थे.
ऐसी ही ऊहापोह में दिन गुजर रहे थे. मौसम बदलता रहा, पर सरिता और विनय के स्वभाव में जरा भी परिवर्तन नहीं हुआ. उन के चीखनेचिल्लाने, लड़नेझगड़ने की आवाजों ने फ्लैट्स के लोगों की शांति भंग कर के रख दी थी. सभी के साथ उन्हें इंगित कर के बिल्ंिडग में शांति बनाए रखने की गुजारिश महीने में होने वाली मीटिंग में बारबार की गई. पर
उन दोनों के व्यवहार में कोई फर्क नहीं आया.
‘‘आप दोनों क्यों इतना झगड़ते हैं? प्यार से नहीं रह सकते हैं? सुनने में कितना खराब लगता है. फ्लैट्स की दीवारें जुड़ी हुई हैं. यह बिल्ंिडग हमारा परिवार है, कृपया इस की शांति भंग न करें.’’ ऊषाजी के पति का इतना कहना था कि सरिता चोट खाई किसी शेरनी की तरह दहाड़ उठीं. ‘‘हम अपने घर में लड़ेंझगड़ें या मरें, आप को दखलंदाजी करने की कोई जरूरत नहीं है.’’
उन के कटु व्यवहार से एक बार फिर सभी आहत हो गए. सभी का कहना था कि ये मानसिक रूप से बीमार हैं, इन का इलाज प्रेमप्यार से ही हो सकता है.
एक हफ्ते बाद होली आने वाली थी.
सभी एकजुट हो कर उत्साह,
उमंग से तैयारियों में लगे हुए थे. सारा माहौल हर्षमय था कि एक रात सरिता के रोने की आवाज से सारी बिल्डिंग कांप उठी. जो जैसा था वैसे ही उठ कर भागा. दरवाजे की घंटी बजाने पर रोतीचिल्लाती सरिताजी ने दरवाजा खोला. उन के कपड़े खून से सने थे. अंदर का नजारा कुछ ऐसा था कि सभी घबरा गए. विनय बाथरूम में गिरे पड़े थे. माथे से खून जारी था.