मैं नागपुर से छिंदवाड़ा होते हुए पिपरिया आने वाली महाराष्ट्र परिवहन निगम की सरकारी बस में बैठा था. मेरे साथ मेरा छोटा भाई था, जिस के इलाज के सिलसिले में हम लोग नागपुर से लौट रहे थे. बस पूरे 5 घंटे लेट थी. बस तकरीबन पूरी खाली थी. मैं, मेरा भाई, कंडक्टर और मुश्किल से 4-5 मुसाफिर और रहे होंगे. नागपुर से चल कर 10 बजे रात में हम लोग छिंदवाड़ा पहुंचे. छिंदवाड़ा स्टौप पर बस 5 मिनट के लिए रुकी.

बस में सभी कुछकुछ महाराष्ट्रियन टच लिए हुए थे. ड्राइवर और कंडक्टर एकदूसरे से मराठी में बात कर रहे थे. कंडक्टर ने अपनी ड्रैस पहनी हुई थी. कंडक्टर के पास पंच मशीन थी जिस से वह टिकटों पर छेद कर रहा था. यह पंच मशीन एक प्रकार का सिग्नल भी थी कि बस को कब रोकना और कब चलाना है. पूरी बस में पीछे से आगे तक कहीं से भी वह इस लोहे की मशीन को बस के पाइप या कहीं भी जोर से ठोंक देता तो ड्राइवर बस रोक देता था. हमारा सफर बहुत ज्यादा लंबा था और मेरा भाई बीमार होने की वजह से सो रहा था, इस कारण मैं हर चीज का बारीकी से मुआयना कर रहा था.

बस छिंदवाड़ा से चली ही थी कि कंडक्टर ने अपनी पंच मशीन ठोंकी. चौराहे से एक होमगार्ड बस में चढ़ा. मैं आंखें बंद कर के सोचने लगा कि अगले महीने होने वाली राज्य की सिविल सेवा परीक्षा के साक्षात्कार की तैयारी किस तरह करनी है. मैं एमए पूर्वार्द्ध का विद्यार्थी था और मेरा एकमात्र लक्ष्य सिविल सेवा की परीक्षा उत्तीर्ण करना था. मैं ने प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा अच्छी तरह से पास कर ली थी. अब मेरा साक्षात्कार होने वाला था. अपनी तैयारी के प्रति मैं आश्वस्त था और मुझे विश्वास था कि मेरा चयन किसी न किसी पद के लिए हो जाएगा.

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