लेखिका-निधि अमित पांडे
डाक्टर ने कहा, ‘उन्हें खून चढ़ाना पड़ेगा. उन के घर के लोग किधर हैं? वे अब तक आए क्यों नहीं? आप उन के घर के सभी सदस्यों को जल्दी बुला लीजिए ताकि उन के खून से हम पेशेंट के खून की जांच कर सकें. अगर समय पर उन को खून नहीं चढ़ाया गया तो उन का बचना बहुत मुश्किल है क्योंकि हम हर मुमकिन कोशिश कर चुके हैं. बाहर ब्लडबैंक में उन के ग्रुप का खून नहीं मिल रहा है. आप जल्दी करिए, देर नहीं होनी चाहिए.’
ममता ने कहा, ‘मेमसाब तो शहर के बाहर हैं, उन को आने में शाम होगी. आप मुझे बताइए, साहब का ब्लडग्रुप क्या है?’
डाक्टर ने ममता को साहिल का ब्लडग्रुप बताया तो ममता सिर पर हाथ रख बैठ गई और खुद को कोसने लगी कि समय की कितनी मारी है वह. ममता खुद को बहुत मजबूर महसूस कर रही थी. थोड़ी देर चुप रहने के बाद ममता ने अस्पताल के फ़ोन से राधा को फोन लगा कर कहा कि वह मेमसाब को फोन कर के सिर्फ इतना बता दे कि साहब का ऐक्सिडैंट हो गया है और लौट कर सीधे अस्पताल आने को बोलना. फिर वह डाक्टर के कमरे की तरफ बढ़ गई.
डाक्टर साहब के पास जा कर वह बोली कि मेमसाब को आने में समय लगेगा, जब तक कोई और वयवस्था नहीं होती, उस के खून की जांच कर लें.
ममता का खून साहिल के खून से मैच हो जाएगा, यह ममता जानती थी. उस ने अपना खून दे कर पूजा मेमसाब के सुहाग को तो बचा लिया था पर किस को पता था कि वह अपनी जान खतरे में डाल चुकी है.
रात के 9:00 बज चुके थे. पूजा अस्पताल पहुंची, तो देखा ड्राइवर बाहर ही बैंच पर बैठा था.
उस ने पहले ड्राइवर से पूछा कि रमेश, तुम ठीक हो न?
‘जी मेमसाब, मैं ठीक हूं. और साहब भी अब खतरे से बाहर हैं.’
इतना सुनते ही पूजा ने सुकून की सांस ली और जैसे ही आगे जाने लगी, रमेश ने कहा, ‘पर मेमसाब, ममता दीदी…’ ममता का नाम सुन कर पूजा वापस आई और रमेश को चिल्लाती हुई बोली, ‘क्या हुआ ममता को, रमेश? बोलो, क्या हुआ ममता को?’
रमेश ने कहा, ‘ममता दीदी की हालत नाजुक है मेमसाब. साहब के सिर पर चोट लगने की वजह से उन का बहुत खून बह गया था और डाक्टर साहब के बहुत कोशिश करने पर भी साहब का ब्लडग्रुप ब्लड बैंक में नहीं मिला. ममता दीदी का खून साहब के खून से मिल गया था. इसलिए ममता दीदी ने अपना खून दे कर साहब की जान बचा ली.’
यह सब सुन कर पूजा के पैर के नीचे से जमीन सरक गई थी और वह सोचने लगी कि अब वह राधा को क्या मुंह दिखाएगी.
पूजा भागती हुई डाक्टर के पास गई और बोली, ‘मैं साहिल की पत्नी हूं.’
डाक्टर साहब बोले, ‘चिंता मत करिए, अब वे ठीक हैं, थोड़ी देर में उन को रूम में शिफ्ट करेंगे, तब आप मिल सकती हैं.’
‘ममता कैसी है?’
डाक्टर ने कहा, ‘खून देने के कुछ घंटे बाद वे बेहोश हो कर गिर पड़ी थीं.
उस के बाद हम ने उन के कुछ टैस्ट किए, जिन की रिपोर्ट्स अच्छी नहीं हैं. अभी कुछ कह नहीं सकते. उन का इलाज चल रहा है. तब तक आप पेपरवर्क पूरा कर दीजिए. और हां, आप की मेड ने यहां आने के बाद 25 हज़ार रुपए जमा करवाए थे. उस की रसीद काउंटर से ले
लीजिए.’
पूजा के मन में जाने कितने सवाल एकसाथ घूम रहे थे. सबकुछ जानने के बाद भी ममता ने ऐसा क्यों? क्यों अपनी जान ख़तरे में डाल दी? राधा के बारे में नहीं सोचा? वे 25 हज़ार रुपए उस की 4 साल की जमा पूंजी होगी. अपनी संस्था के जरिए मैं ने न जाने कितनी ही औरतों का जीवन सुधारा और संवारा है पर अपने ही घर में अपनी नजरों के सामने रहने वाली ममता के लिए मैं ने क्या किया? अपने स्वार्थ के लिए अपनी जिम्मेदारियों का बोझ उस पर डाल दिया. उस के स्वास्थ्य के बारे में नहीं सोचा मैं ने. इन सब सवालों ने पूजा को आत्मग्लानि से भर दिया था.
2 वर्षों पहले की घटना पूजा के सामने आज वर्तमान बन कर खड़ी थी. अचानक एक दिन ममता काम करतेकरते बेहोश हो गई थी. पूजा ने घर पर डाक्टर को बुलाया तो डाक्टर ने ममता को देख कर पूछा था कि इन्होंने हाल ही में रक्त दान किया है क्या?
पूजा ने कहा, ‘पता नहीं डाक्टर साहब, मेरे से तो कोई जिक्र नहीं किया इस ने.’
डाक्टर ने कहा, ‘ऐसा ही लग रहा है इन की हालत देख कर. इन के शरीर में खून की कमी है.
मैं दवाई और टौनिक लिख देता हूं. इन को समय पर लेने के लिए बोलिए. खानेपीने का खयाल रखना भी जरूरी है. और एक बात, आगे से कभी भी ये रक्त दान न करें. इन की जान को भी खतरा हो सकता है.’ यह बोल कर डाक्टर साहब चले गए थे.
पूजा ने रमेश को भेज कर ममता के लिए दवाई, टौनिक और कुछ फल मंगवा लिए थे.
पूरे एक घंटे बाद ममता जब होश में आई तो पूजा मेमसाब ने दूध से भरा गिलास उस के हाथ में थमाते हुए पूछा था, ‘तूने रक्त दान किया है? राधा को पता है यह बात?’
ममता डरतीडरती बोली, ‘नहीं मेमसाब, राधा को नहीं पता है. उसे पता भी नहीं लगने देना. वह ऐसे ही बहुत चिंता करती है मेरी.’
पूजा चिल्लाती हुई ममता से बोली, ‘तुझे पता भी है कि तू बेहोश हो गई थी. क्या जरूरत थी खून देने की?’
ममता ने कहा, ‘पड़ोस में 10 दस साल की बच्ची छत से गिर गई थी. उसे खून की जरूरत थी मेमसाब. आसपड़ोस के सभी लोग खून की जांच करवाने के लिए जा रहे थे ताकि उस बच्ची को खून दे सकें. किसी का खून बच्ची के खून से नहीं मिला. पर मेरा खून मिल गया. उस की मां मेरे सामने आ कर मिन्नतें करने लगी, मैं कैसे उसे मना करती.’
‘वह सब ठीक है ममता,’ पूजा ने कहा, ‘किसी की मदद करने में कोई बुराई नहीं है. पर अगर तुझे कुछ हो जाता तो… डाक्टर ने बोला है कि दोबारा तूने ऐसा कुछ भी किया तो तू अपनी जान ख़तरे में डाल देगी. राधा का क्या होगा, सोचा है,’ पूजा बोली थी.
आप के रहते मुझे मुझे राधा की चिंता नहीं है मेमसाब,’ ममता बोली, ऐसे भी मैं ने राधा को सिर्फ जन्म दिया है व उसे बड़ा किया है पर उस से जुड़ी हर जिम्मेदारी को तो आप ने ही…’
ममता को बीच में ही रोकती हुई पूजा बोली, ‘मैं कुछ सुनना नहीं चाहती, तुझे वचन देना होगा मुझे कि तू आज के बाद किसी को रक्त दान नहीं करेगी.’
ममता ने कहा, ‘ठीक है मेमसाब, मैं वचन देती हूं.’
पूजा को क्या पता था कि ममता उस को दिया हुआ वचन एक दिन उस के ही सुहाग को बचाने के लिए तोड़ देगी.
“मैडम, मैडम,” नर्स की आवाज सुन पूजा अतीत से वर्तमान में लौट आई थी.
नर्स ने कहा, “आप के पति को होश आ गया है.”
पूजा भागते हुए साहिल के कमरे में गई और उस से लिपट कर रोने लगी. आंसुओं के सैलाब को रोकना अब उस के लिए मुमकिन नहीं था.
साहिल ने उस को संभालते हुए कहा, “मै ठीक हूं पूजा. कुछ नहीं हुआ है मुझे.”
थोडी देर बाद पूजा को एहसास हुआ कि साहिल को ममता के बारे में कैसे पता होगा. खुद को शांत करती हुई पूजा बोली, “तुम्हें पता है, ममता ने अपना खून दे कर तुम्हें एक नई जिंदगी दी है. आज और अपनी जान खतरे में डाल दी उस ने.”
साहिल ने आश्चर्य से कहा, “ममता ने…?”
उस ने हम दोनों को जिंदगीभर के लिए अपना ऋणी बना दिया है साहिल.”
साहिल ने पूजा से कहा, “ममता को कुछ नहीं होना चाहिए पूजा, हम राधा का सामना कैसे करेंगे?”
साहिल और पूजा बात कर ही रहे थे कि नर्स ने पूजा को बाहर बुला कर कहा, “ममता की हालत बिगड़ती ही जा रही है, जल्दी चलिए.”
पूजा बदहवास सी ममता के कमरे की तरफ भागी. डाक्टर साहब उसे इंजैक्शन लगाने की तैयारी कर रहे थे.
पूजा को देख कर ममता ने धीरे से अपना हाथ उठाया, तो पूजा ने जल्दी से उस का हाथ थाम कर अपने माथे से लगाते हुए कहा, “यह तूने क्या कर दिया ममता? राधा के बारे में तो सोचा होता.”
ममता ने धीरे से कहा, “रिशतों को अपने खून से सींचना आप से ही सीखा है मेमसाब. राधा को सिर्फ इस लायक बना देना कि वह अकेले खुद को संभाल सके, अपनी जिंदगी जी सके.” इतना कह कर ममता ने हमेशा के लिए खामोशी की चादर ओढ़ ली थी.
दुनिया छोड़ कर ममता को गए पूरे 3 वर्ष हो चुके थे. ममता के घर की छत पर अब ‘ममता ब्लड बैंक’ का बोर्ड लग चुका था. साहिल और पूजा ने सारी जरूरी कागजी कार्रवाई कर के राधा को अपनी बेटी के रूप में गोद ले लिया था.
आज सुबह से ही घर में बहुत रौनक़ थी. रसोईघर से स्वादिष्ठ व्यंजनों की ख़ुशबू आ रही थी. “पूजा, मैं एयरपोर्ट के लिए निकल रहा हूं,” साहिल ने पूजा को आवाज देते हुए सूचित किया था.
मां जी ने ज़िद कर के अपनी आरामकुरसी बाहर बरामदे में ही रखवा ली थी और जा कर बैठ गई थीं उस पर.
पूजा ममता की फोटो के सामने दीया जलाती हुई बुदबुदा रही थी, ‘खुश तो है न तू, आज पूरे 3 साल बाद राधा वापस आ रही है वह भी इस शहर की कलैक्टर बन कर. तू तो चली गई अपना ‘वचन’ तोड़ कर लेकिन देख तेरे ‘वचन’ की लाज रख ली मैं ने.’
“पूजा पूजा, राधा बिटिया आ गई,” मां जी ने चिल्लाते हुए कहा, तो पूजा आरती की थाली ले कर दौड़ पड़ी.
लेखिका-निधि अमित पांडे
सुबह के 6 बजने को आए थे. ममता हड़बड़ी में बिस्तर से उठते समय गिरने ही वाली थी कि राधा ने उसे संभाल लिया था.
“क्या करती रहती हो मां, किस बात कि इतनी जल्दी रहती है तुम्हें?” गुस्सा होती हुई राधा बोली.
ममता ने जवाब दिया, “आज काम पर जल्दी जाना है, बेटा.”
मांबेटी की छोटी सी दुनिया थी. उन का एकदूसरे के लिए प्यार सीमा परे था. अकसर राधा मां के उठने से पहले ही उठ जाती थी और बिना कोई आवाज किए चुपचाप अपनी पढ़ाई करने के लिए बैठ जाती थी. मां दिनभर काम कर के थक जाती है. उन की नींद खराब न हो, इस बात का राधा पूरा ख़याल रखती थी.
मां को आज काम पर जल्दी जाना है, यह जान कर उस ने अपनी किताबें समेट कर रख दी थीं और गैस पर चाय चढ़ा नाश्ते की तैयारी करने लगी.
ममता नहा कर आई, तो देखा, राधा हाथ में चायनाश्ता लिए खड़ी उस का इंतजार कर थी. उस की तरफ देखती हुई ममता बोली, “जाने कौन से अच्छे कामों का फल मुझे मिला है कि तूने मेरी कोख से जन्म लिया. तेरे जैसी औलाद सब के घरों मैं पैदा नहीं होती.”
मां के कंधों पर झूलती हुई राधा बोली, “हां, हां, अब जल्दी नाश्ता खा लो, ठंडा हो जाएगा.” यह कह कर वह फिर पढ़ाई करने बैठ गई.
नाश्ता खत्म कर के ममता जल्दी में बाहर निकलतेनिकलते राधा से बोली, “मैं चलती हूं बेटा, मुझे देर हो रही है. पूजा मेमसाब ने 8 बजे तक आने को कहा था. तू बिना खाए स्कूल न जाना और सुन, शक्कर के डब्बे के नीचे 20स रुपए रख दिए हैं, स्कूल में कुछ खाने के लिए.”
यह सुन कर राधा दौड़ती हुए आई और मां से लिपट कर बोली, “तुम कैसे मेरे मन की बात जान जाती हो मां, आज मेरा समोसा खाने का बड़ा मन था.”
ममता ने उस के सिर पर हाथ फेरते हुए उस का माथा चूम लिया था और मुसकराती हुई बोली, “चल, अब जाने दे मुझे.”
ममता तेज रफ्तार से बंगले की तरफ अपने क़दम बढ़ाने लगी और सोचने लगी, 15 वर्ष की आयु में ही राधा कितनी समझदार हो गई है. इतने सालों में एक भी दिन ऐसा नहीं था जब राधा ने बिना कुछ खाए उसे घर से निकलने दिया हो. कहने को तो वह उस की मां थी पर कई अवसर ऐसे आते थे कि राधा ममता की मां बन जाती थी.
अकसर ऐसा ही होता है. बेटियां बड़ी हो कर कब हमारी जिंदगी में हमारी मां की भूमिका निभाने लगती हैं, हमें पता नहीं चलता.
ममता जैसे ही बंगले के अंदर दाखिल हुई, पूजा बोली, “अच्छा हुआ तू आ गई.
मैं निकल ही रही थी, मुझे देर हो रही है. और सुन, मां को मैं ने नाश्ता करवा दिया है, दवाई भी दे दी है. साहब उठें, तो उन से पूछ कर नाश्ता बना देना उन के लिए. मैं शाम होने के पहले आ जाऊंगी.”
“जी मेमसाब,” ममता बोली.
पिछले 4 वर्षों से वह पूजा के घर पर काम कर रही थी. पूजा गरीब और असहाय औरतों के लिए एक संस्था चलाती थी. संस्था के काम से उसे अकसर शहर से बाहर जाना पड़ता था. उस के घर में उस की सास और पति साहिल थे. शादी के 15 वर्षों बाद भी उन के कोई औलाद नहीं थी. पूजा की सास सरला देवी मधुमेह की रोगी थीं. उन को समय पर दवाई, पानी, खाना देना सब जिम्मेदारी ममता बखूबी निभाती थी. ममता के कारण पूजा खुद को हर फिक्र से आजाद पाती
थी.
ममता का पति शिवा उन के घर का ड्राइवर हुआ करता था. 4 साल पहले एक दुर्घटना में उस की मृत्यु हो गई थी. शिवा को बचाने के लिए पूजा मेमसाब ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी. पर कहते हैं न, समय का लिखा कोई नहीं टाल सकता. जब शिवा जीवित था तब कुछ खास अवसरों पर ममता और राधा को ले कर बंगले पर आता था. पूजा के बहुत आग्रह करने के बाद ही वह ऐसा करता था.
पूजा राधा को बहुत लाड़ करती थी और हर बार बहुत से तोहफों से उस की झोली भर देती थी.
शिवा हमेशा बोलता था, ‘पूजा मेमसाब, आप इस की आदत बिगाड रही हो.’
शिवा की मृत्यु के बाद पूजा ने ही ममता से जोर दे कर कहा था, ‘बंगले पर आ जा राधा को ले कर, मुझे एक हैल्पर (सहायक) की जरूरत है और तुझे भी आर्थिक मदद हो जाएगी. राधा को भी तो पढ़ानालिखाना है, बड़ा करना है.’
पति की मृत्यु के बाद ममता को यह ही चिंता खा रही थी कि अब वह अपना और राधा का भरणपोषण कैसे करेगी. यह सोच कर उस ने पूजा के प्रस्ताव को झट से सहमति दे दी थी पर उस ने बंगले पर आ कर रहने की बात से इनकार कर दिया था. उस ने तय किया था कि वह अपने घर से रोज आनाजाना करेगी. अपना घर छोड़ कर कहीं नहीं जाएगी. आखिर उस घर से पति शिवा की यादें जुड़ी थीं.
सौजन्या-सत्यकथा
30दिसंबर, 2020 सुबह के यही कोई साढ़े 7 बजे का समय था. कर्नाटक के शहर बेलगाम स्थित सिविल अस्पताल के बाल चिकित्सा विभाग की महिला सिक्युरिटी गार्ड सुधारानी वसप्पा हडपद अपनी सहयोगी गायत्री चिदानंद कलगढ के साथ अपनी नाइट ड्यूटी खत्म कर अस्पताल से बाहर निकली थी. तभी उन की नजर बाल चिकित्सा विभाग के पीछे एक मोटरसाइकिल की सीट पर बैठे इरन्ना बाबू जगजंपी के ऊपर पड़ी, जो सुधारानी वसप्पा हडपद की तरफ देख रहा था. वह इरन्ना बाबू जगजंपी को जानती थी.
उसे देख कर सुधारानी के कदम एक क्षण के लिए थम से गए. लेकिन दूसरे पल कुछ सोचते हुए सुधारानी ने अपनी सहयोगी गायत्री चिदानंद से कहा, ‘‘बहन, तुम आगे चलो, मेरी जानपहचान का एक युवक मुझ से मिलने के लिए आया है, मैं उस से मिल कर आती हूं.’’
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‘‘ठीक है, मगर जल्दी आना.’’ कह कर गायत्री चिदानंद आगे बढ़ गई और सुधारानी इरन्ना बाबू जगजंपी की तरफ चली गई. इरन्ना बाबू सुधारानी वसप्पा को अपनी तरफ आते देख थोड़ा मुसकराया और बोला, ‘‘अहो भाग्य मेरे कि तुम मुझे भूली नहीं हो. अस्पताल के कामों में इतनी बिजी हो कि तुम्हारे पास मेरा फोन तक उठाने का समय नहीं है. आखिर मुझ से ऐसी क्या गलती हो गई. जरा हम भी तो जानें.’’ कह कर वह कुटिलता से मुसकराया.
‘‘बोलो, क्या बात है और तुम यहां क्यों आए? मेरे पास समय नहीं है. मुझे जल्दी घर जाना है.’’ सुधारानी ने कहा. ‘‘ठीक है, चली जाना. लेकिन यह तो बता दो कि तुम मुझ से शादी कब करोगी?’’ इरन्ना बाबू ने सुधारानी से सीधा सवाल किया.
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‘‘शादी के बारे में मैं ने अभी तक सोचा नहीं.’’ सुधारानी ने सीधा जवाब दिया. ‘‘तो कब सोचोगी?’’ इरन्ना बाबू ने कड़क शब्दों में पूछा. ‘‘देखो, जब तक मेरा पति से तलाक नहीं हो जाता और गुजारेभत्ते का कोर्ट से फैसला नहीं हो जाता. तब तक हमें ऐसा कोई काम नहीं करना है कि सब गड़बड़ हो जाए.’’ सुधारानी ने समझाया.
‘‘तब तक हम क्या करेंगे?’’ इरन्ना ने गुस्से में कहा. ‘‘इंतजार करेंगे और क्या?’’ सुधारानी ने सिर झुका कर जवाब दिया. ‘‘यह सच है या फिर तुम्हारा कोई बहाना? तुम सीधेसीधे यह क्यों नहीं कहती कि अब तुम्हें मेरी जरूरत नहीं है. तुम्हें कोई और मिल गया है.’’ इरन्ना बाबू ने आगबबूला होते हुए कहा.
‘‘तुम्हें जो समझना है, समझ लो.’’ सुधारानी बुझे मन से बोली. ‘‘हां, अब तो तुम यही कहोगी न, मैं ने तुम्हारे लिए क्याक्या नहीं किया. तुम्हारी आर्थिक मदद में मेरे डेढ़दो लाख रुपए खर्च हो गए. उस का क्या?’’
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‘‘कोई अहसान नहीं किया. जितना तुम ने मुझ पर खर्च किया, उस से कहीं ज्यादा तुम ने मेरा इस्तेमाल किया है.’’ कहते हुए सुधारानी वसप्पा का चेहरा लाल हो गया, ‘‘बस, अब मैं चलती हूं.’’ कह कर सुधारानी वसप्पा अपने घर जाने के लिए पलट गई.
इरन्ना बाबू को जब लगा कि सुधारानी उस की बातों को तवज्जो नहीं दे रही है तो वह गुस्से में आपा खो बैठा. तब उस ने वही किया जो वह सोच कर आया था कि अगर सुधा ने उस से शादी की बात नहीं मानी तो वह उस से हमेशा के लिए अपनी दोस्ती खत्म कर लेगा.और उस ने वही किया. उस का धैर्य टूट गया था. उस ने बिना कुछ सोचेविचारे अपने थैले में छिपा कर लाए कोयते को बाहर निकाला और सुधारानी वसप्पा पर हमला कर दिया.
कोयते के प्रहार से उस शांत वातावरण में सुधारानी की एक दर्दनाक चीख गूंज उठी. वह जमीन पर छटपटाने लगी. सुधारानी वसप्पा की यह चीख जब कुछ दूर खड़ी उस की सहेली गायत्री के कानों में पड़ी तो वह सुधारानी की मदद के लिए दौड़ पड़ी.
सुधारानी जमीन पर पड़ी अपने बचाव की कोशिश कर रही थी और इरन्ना बाबू पागलों की तरह उस पर हमला कर रहा था. यह सब देख गायत्री कलमठ जब सुधारानी को बचाने के लिए उस की तरफ बढ़ी तो इरन्ना बाबू ने उसे भी कोयता दिखाते हुए धमकी दी कि अगर वह आगे आई तो उस की भी यही हालत करेगा. इरन्ना का पागलपन देख कर गायत्री बुरी तरह डर कर दूर खड़ी रही.
उस खूनी दरिंदे के जाने के बाद गायत्री कलमठ को होश आया तो वह अपनी सहेली सुधारानी की मदद के लिए भाग कर सिक्युरिटी गार्ड चेतन राजेंद्र के पास गई और उन्हें सारी बातें बताईं. उन्होंने इस मामले की खबर पहले सुधारानी वसप्पा के परिवार वालों और फिर स्थानीय पुलिस के साथ पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी.
इस के बाद तुरंत अस्पताल के कुछ लोगों के साथ घटनास्थल पर पहुंचे और सुधारानी वसप्पा को उठा कर अस्पताल लाए लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी. बुरी तरह घायल सुधारानी वसप्पा को डाक्टरों के अथक प्रयासों के बाद भी बचाया नहीं जा सका.
कलेजा कंपा देने वाली यह मार्मिक घटना बेलगाम के एपीएमसी पुलिस थाने के इलाके में घटी थी. घटना की जानकारी पाते ही थानाप्रभारी जावेद मुशापुरी हरकत में आ गए. उन्होंने बिना देर किए मामले की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दी और
अपने सहायकों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.
घटनास्थल पर एक कांस्टेबल तैनात कर थानाप्रभारी अभी सिविल अस्पताल के डाक्टरों से बातचीत और सुधारानी वसप्पा के शव का निरीक्षण कर ही रहे थे कि जानकारी पा कर सुधारानी वसप्पा के घर वाले रोतेचिल्लाते अस्पताल आ गए. थानाप्रभारी ने उन्हें किसी तरह सांत्वना दे कर शांत किया.
सुबहसुबह घटी इस घटना की खबर जैसे ही शहर में फैली, सनसनी फैल गई. घटना की जानकारी पाते ही बेलगाम शहर के डीसीपी चंद्रशेखर नीलगार, एसीपी सदाशिव कट्टीमणि के साथ मौकाएवारदात पर पहुंच गए. उन के साथ फोटोग्राफर और फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट की टीम भी आ गई थी.
डाक्टरों ने बताया कि सुधारानी के शरीर पर 8-10 गहरे घाव हैं, जिन्हें देख कर ऐसा लगता है कि हत्यारा सुधारानी से काफी नाराज था.
वरिष्ठ अधिकारियों ने सुधारानी वसप्पा के शव और घटनास्थल का निरीक्षण कर थानाप्रभारी को कुछ आवश्यक निर्देश दिए और अपने औफिस लौट गए.
वरिष्ठ अधिकारियों के जाने के बाद थानाप्रभारी जावेद मुशापुरी अस्पताल और घटनास्थल की सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद थाने लौट आए और हमलावर के खिलाफ शिकायत दर्ज कर मामले की जांच शुरू कर दी.
आरोपी इरन्ना बाबू जगजंपी की तलाश में पुलिस जांच टीम को अधिक माथापच्ची नहीं करनी पड़ी. अस्पताल के पीछे लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज में उस की मोटरसाइकिल का नंबर, खून से लथपथ कोयता उस के अपराध की कहानी बता रहे थे.
इस के पहले कि बेलगाम शहर में सिविल अस्पताल महिला सुरक्षा गार्ड मर्डर का मामला तूल पकड़ता, जांच टीम उस की मोटरसाइकिल नंबर और सुधारानी के परिवार वालों के बयानों पर आरोपी इरन्ना तक पहुंचने में कामयाब हो गई. पुलिस ने उस के घर पर छापा मार कर उसे हिरासत में ले लिया.
पुलिस कस्टडी में आरोपी इरन्ना अपने ऊपर लगे आरोपों से खुद को अनभिज्ञ बता रहा था. उस का कहना था कि वह सुधारानी को प्यार करता था और उस से शादी करना चाहता था
जबकि सुधारानी के परिवार वालों का कहना था कि इरन्ना उसे प्यार के नाम पर धोखा दे रहा था. उस से शादी का वादा कर उस का सिर्फ शोषण कर रहा था.
यह बात सुधारानी वसप्पा जान चुकी थी, इसलिए उस ने उस से दूरी बना ली थी, जो इरन्ना को बरदाश्त नहीं हुई. इसी वजह से वह सुधा से नाराज था और उस की हत्या कर दी.
उन के इन आरोपों में कितनी सच्चाई थी, यह पुलिस जांच का विषय था. जिस की तह में जाने के लिए पुलिस टीम ने जब दोनों के संबंधों को अच्छी तरह से खंगाला तो सुधारानी वसप्पा हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, उस की पृष्ठभूमि कुछ इस प्रकार थी—
24 वर्षीय इरन्ना बाबू जगजंपी बेलगांव के आश्रम, जनता प्लाट तालुका बैलहोंगल का रहने वाला था. उस के पिता एक प्राइवेट कंपनी में काम करते थे. परिवार मध्यमवर्गीय था. गांव में भी थोड़ीबहुत काश्तकारी होने के कारण समाज में उन की काफी इज्जत थी.
इरन्ना बाबू महत्त्वाकांक्षी युवक था, जिस के सपने तो ऊंचे थे लेकिन वह उन्हें बिना मेहनत के पूरे करना चाहता था. परिवार का प्यारा बेटा होने के कारण वह स्वभाव से जिद्दी था. परिवार वाले चाहते थे कि वह पढ़लिख कर योग्य बने. यही कारण था कि परिवार उस की पढ़ाई पर दिल खोल कर खर्च करता था. गांव की पढ़ाई खत्म कर जब वह कालेज में गया तो उन्होंने उसे कालेज आनेजाने के लिए मोटरसाइकिल भी खरीद कर दे दी.
वह पढ़ाईलिखाई कम, दोस्तों के साथ मोटरसाइकिल पर मटरगश्ती अधिक किया करता था. किसी तरह 12वीं पास कर वह नौकरी की तलाश में लग गया था. लेकिन कोई डिग्री न होने के कारण उसे कोई ढंग की नौकरी नहीं मिली. ऐसे में जब वह एक दिन मंदिर में गया तो वहां उस की नजर सुधारानी से टकरा गई, जिस का वह दीवाना हो गया. दोनों एक ही तालुका के रहने वाले थे.
सन 2018 में उडुपी के उलवी श्रीकृष्ण मंदिर में दोनों जब मिले तो दोनों में परिचय हो गया था. दोनों वहां के और कई मंदिरों में साथसाथ घूमेफिरे और वहां के माहौल को इंजौय किया. घर लौटते समय दोनों ने एकदूसरे का फोन नंबर ले लिया, जिस से उन के बीच बातों का सिलसिला शुरू हो गया, जिस से वह एकदूसरे के काफी करीब आ गए. फिर दोनों की गहरी दोस्ती हो गई.
27 वर्षीय सुधारानी वसप्पा हडपद जितनी सुंदर थी उतनी ही चंचल और विनम्र स्वभाव की. पिता बेलगाम के गांव मूगबासव, तालुका बैलहोंगल के एक गरीब मजदूर थे.
उन की आर्थिक स्थिति काफी कमजोर थी. परिवार दूसरों के घरों में काम कर के अपना जीवनयापन करता था. सुधारानी ने गांव के स्कूल के अलावा कालेज का मुंह नहीं देखा था, इसलिए वह भी अपने परिवार के साथ मेहनतमजदूरी करती थी.
सन 2012 में 17 साल की उम्र में वह बेलगाम कितूर निवासी वसप्पा हडपद की पत्नी बन कर अपनी ससुराल आ गई थी. शादी के 2 साल बाद ही वह एक बच्चे की मां बन गई थी. उन का 2 साल का दांपत्य जीवन कैसे बीत गया, इस का उन्हें अहसास ही नहीं हुआ था.
जहां वह अपने आप को दुनिया में सब से खुशनसीब मान रही थी, वहीं वक्त उस की खुशनसीबी को डंसने की ताक में बैठा था और मौका पाते ही उसे डंस भी लिया. एक दिन उस के बच्चे की अचानक तबीयत बिगड़ी और
उस की मृत्यु हो गई. उस के पति और ससुराल वालों ने इस का जिम्मेदार सुधारानी को माना.
इस के बाद तो सुधारानी के साथ ससुराल वालों ने अपना व्यवहार बदल दिया. आए दिन उसे तरहतरह की तकलीफ देना आम बात हो गई. यहां तक तो ठीक था, सुधारानी उन के हर तरह के जुल्मों को सहती रही.
हद तो तब हो गई जब उस के ससुराल वालों ने उसे एक दिन जिंदा जलाने की कोशिश की जिस से वह किसी तरह बच कर अपने मायके भाग आई और फिर ससुराल न जाने की कसम खाई. यह बात सन 2015 के मार्च
की है.
भाग कर वह मायके जरूर आ गई थी लेकिन मायके की स्थिति से वह अनभिज्ञ नहीं थी. इसलिए वह अपने मायके वालों पर किसी तरह का बोझ नहीं बनना चाहती थी. वह मायके आते ही नौकरी के लिए हाथपांव मारने लगी. इस के लिए वह कई जगह गई. उसी दौरान उस के जीवन में वसप्पा बाबू जगजंपी आया था.
दोस्ती का यह सिलसिला जब मजबूत हुआ तो दोनों के दिलों में एकदूसरे के प्रति प्रेम का अंकुर फूटा और दोनों एकदूसरे के काफी करीब आ गए थे. अब उन्हें जब भी मौका मिलता, वह बेलगाम के माल, रेस्टोरेंट में जा कर खातेपीते और मौजमस्ती करते.
वसप्पा सुधारानी का पूरा खर्च तो उठाता ही था, मौकेबेमौके वह उस के मायके वालों की भी मदद करता था. इरन्ना बाबू के अहसानों और शादी के वादों के नीचे दबी सुधारानी ने उसे अपना तनमन सब सौंप दिया था. इरन्ना बाबू उसे अपनी पत्नी की तरह इस्तेमाल करता था. यह सिलसिला लगभग ढाईतीन साल तक चलता रहा.
एक तरफ सुधारानी वसप्पा जहां इरन्ना बाबू के साथ मौजमस्ती कर रही थी, वहीं दूसरी तरफ वह नौकरी के लिए भी अपनी जानपहचान वालों से बात कर रही थी. ऐसे में उस के एक जानने वाले की मदद से उसे सिविल अस्पताल के बाल चिकित्सा विभाग में सिक्युरिटी गार्ड की नौकरी मिल गई. उस की 12 घंटों की ड्यूटी थी जो रात और दिन की शिफ्टों में बंटी हुई थी.
सिविल अस्पताल में नौकरी पाने के बाद सुधारानी व्यस्त हो गई थी. साथसाथ उस का रहनसहन भी बदल गया था. अस्पताल में उस की जानपहचान का दायरा भी बढ़ गया था. जिस के कारण उस का इरन्ना से मिलनाजुलना काफी हद तक कम हो गया था.
अपने काम के अलावा सुधारानी ने एक दोस्त की मदद से अपने पति वसप्पा हडपद से तलाक और गुजारेभत्ते का कोर्ट में मामला भी दायर कर दिया था. जिस से वह काफी व्यस्त हो गई थी.
इसी दौरान सुधारानी को यह भी शक हो गया कि उस के प्रेमी इरन्ना बाबू के कई और लड़कियों से संबंध हैं. इस के बाद इरन्ना के प्रति सुधारानी का नजरिया बदल गया था, जिस से वह उस से मिलने और शादी करने के लिए टालमटोल करने लगी थी. उसे महसूस होने लगा था कि इरन्ना उस का इस्तेमाल कर रहा है.
इस से नाराज इरन्ना ने सुधारानी वसप्पा हडपंद के प्रति एक क्रूर फैसला लिया और उसे अंजाम तक पहुंचा दिया.
विस्तृत पूछताछ के बाद थनाप्रभारी जावेद मुशापुरी ने इरन्ना बाबू को भादंवि की धारा 302 के तहत गिरफ्तार कर बेलगांव मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश कर जेल भेज दिया.
लेखिका-निधि अमित पांडे
पूजा ने भी ममता पर इस बात के लिए दबाव नहीं डाला था. पूजा के पति साहिल एक कंपनी में बड़े पद पर काम करते थे. उन्हें भी काम के सिलसिले में अकसर शहर से बाहर जानाआना पड़ता था. ऐसे में पूजा के पूरे घर की जिम्मेदारी ममता के कंधों पर थी. ममता को अपने घर वापस जाने में शाम हो जाती थी. तब तक राधा स्कूल से आ कर घर के सारे काम निबटा देती थी ताकि मां को बंगले पर से लौट के आने के बाद कुछ करना न पड़े और वह आराम कर सके.
ममता के घर वापस आने के बाद शाम की चाय दोनो मांबेटी साथ में पीती थीं.
समय का चक्र घूमता जा रहा था. राधा युवावस्था में प्रवेश कर चुकी थी. पूजा मेमसाब के सहयोग से शहर के एक अच्छे कालेज मैं उस का दाखिला हो गया था. राधा पढ़ाई में बहुत होनहार थी. इसलिए पूजा ने ममता को आश्वासन दिया था कि राधा जितना पढ़ना चाहे, उसे पढ़ने देना. कालेज की फीस या और किसी भी बात की चिंता करने की उसे जरूरत नहीं है. वह सब देख लेगी. अचानक से ममता खुद को एक बड़ी चिंता से मुक्त होता हुआ महसूस कर रही थी.
पूजा मेमसाब के लिए उस के दिल में इज्जत और बढ़ गई थी. पति की मृत्यु के बाद उस के सगेसंबंधियों ने उस का साथ नहीं दिया था. यहां तक कि उस के मायके वालों ने भी उस से मुंह फेर लिया था. पूजा मेमसाब न होतीं तो वह राधा की परवरिश कैसे करती. यह सब सोच कर प्रकृति का शुक्रिया अदा करते हुए विचार कर रही थी कि पूजा मेमसाब
का कर्ज कैसे उतार पायेगी वह.
पूजा और साहिल के काम पर चले जाने के बाद ममता मां जी को उन के कमरे से बाहर हौल में ले आती थी और अपने रोज के काम करती रहती थी. एक दिन दोपहर के 3 बज रहे थे. ममता मां जी के पास बैठ कर सब्जी काट रही थी. अचानक दरवाजे की घंटी बजी तो ममता
यह सोचते हुए उठी कि अभी इस समय कौन आया होगा? पूजा मेमसाब तो शहर के बाहर गई हैं, रात होगी आने को, बोल
के गई थीं.
ममता ने दरवाजा खोला, तो देखा, साहब का ड्राइवर रमेश खड़ा था. उस के सिर से खून बह रहा था. ममता के मुंह से चीख निकल गई. ड्राइवर बोला, ‘ममता दीदी, हमारी गाड़ी का ऐक्सिडैंट हो गया है, साहब को बहुत चोट आई है. मैं उन्हें अस्पताल में भरती करवा कर आया हूं. मेमसाब कहां हैं, जल्दी बुलाओ, मैं तब तक दूसरी गाड़ी निकालता हूं मेमसाब को अस्पताल ले जाने के लिए.’
ममता ने कहा, ‘दूसरी गाड़ी ले कर पूजा मेमसाब शहर के बाहर गई हैं. उन्हें लौटने में समय लगेगा.’
रमेश बोला, ‘अब क्या करें ममता दीदी, अस्पताल में तो पैसे भी जमा करने बोल रहे हैं.’
ममता को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. मेमसाब को फ़ोन करने का कोई मतलब नहीं हैं. वे कितनी भी जल्दी करेंगी तो भी शाम होने के पहले वापस नहीं आ
पाएंगी.
उधर मां जी बारबार चिल्ला रही थीं उसे, ‘क्या हो गया, मुझे कुछ बताएगी कि नहीं? कौन आया है?’
ममता ने उन को नजरअंदाज कर दिया था. पहले अस्पताल पहुंचना जरूरी है, उस ने सोचा.
वह झट से फोन के पास गई और राधा को फोन लगा कर बोली, ‘बेटा, जल्दी बगंले पर आ जा और सुन, आटे के डब्बे के अंदर एक सफेद रंग की थैली रखी है, वह बहुत संभाल कर लेती आना.’
फ़ोन रख कर ममता मां जी के पास आ कर उन को समझाती हुई बोली, ‘मैं कुछ काम से बाहर जा रही हूं, राधा आ रही है. मेरे वापस आते तक आप के पास रहेगी.’
‘पर, तू जा कहां रही है? कौन आया है? चिल्लाई क्यों थी? कुछ तो बता.’
ममता बोली, ‘आने के बाद बताती हूं सब. अभी मुझे जाना है. इतने में राधा आ चुकी थी, बोली, ‘क्या हो गया मां? तुम ने अचानक मुझे बुलाया, सब ठीक तो है?’
ममता उस का हाथ पकड़ कर उसे बाहर ले गई और उसे सारी बात समझा दी और उस से वह सफेद थैली ले ली.
राधा बोली, ‘तुम यहां की चिंता मत करो मां. जल्दी जाओ. साहब अकेले हैं अस्पताल में.’
ममता जातेजाते वापस आई और राधा को छाती से लगाती हुई बोली, ‘बेटा, घबराना मत.’ और ममता रमेश के साथ अस्पताल के लिए निकल गई.
अस्पताल पहुंचते ही ममता डाक्टर साहब का कमरा ढूंढने लगी. एक नर्स से उस ने साहिल का नाम ले कर पूछा कि वे कौन से कमरे में हैं.
नर्स ने कहा, ‘वे आईसीयू में हैं. वहां जाने की अनुमति किसी को भी नहीं है.’
ममता डाक्टर साहब के पास गई और बोली, ‘डाक्टर साहब मेरे साहब अब कैसे हैं? ठीक तो हो जाएंगे न? डरने की कोई बात तो नहीं है न?’
उत्तर प्रदेश की विधानसभा की दीवार पर चढ़ कर किसान आन्दोलन का समर्थन कर रहे समाजवादी पार्टी के विधायकों को देखकर लग रहा था जैसे पंजाब के निकाय चुनाव में उनकी पार्टी जीती हो. इस बात का जवाब देते विधायक अम्बरीश सिंह ‘पुष्कर’ कहते है ‘पंजाब में भाजपा की हार ने यह बता दिया है कि उसे हराया जा सकता है. इससे विपक्ष की लडाई को बल मिलता है. पूरे प्रदेश के किसान भाजपा को सबक सिखाने के लिये अवसर की तलाश में है.’ अम्बरीश सिंह ‘पुष्कर’ ऐसे विधायक है जो 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा के खिलाफ माहौल के बाद भी जीतने में सफल रहे थे.
पंजाब के निकाय चुनाव के फैसले ने राजनीतिक दलों को नई ताकत दी है. उनके अंदर आत्मविश्वास भर दिया है. यह माना जा रहा था कि किसान आन्दोलन के साथ राजनीतिक दलों के जुड़ने से किसानो की ताकत कमजोर होगी. केन्द्र सरकार को किसान आन्दोलन को खत्म करना सरल हो जायेगा. ऐसे में किसानों ने अपने आन्दोलन में राजनीतिक दलों को जुडने नहीं दिया. मंच के नीचे बैठे राजनीतिक दल भी नहीं समझ पा रहे थे कि किसान आन्दोलन में वह कैसे जुडे ? किसान आन्दोलन के बीच पूरे हुये पंजाब के निकाय चुनावों के फैसलों ने बता दिया कि किसान आन्दोलन का राजनीतिक प्रभाव पड़ेगा. किसान आंदोलन में सबसे मुखर रही कांग्रेस को पंजाब में सबसे अधिक लाभ मिला.
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आने वाले एक साल में 5 राज्यों पंजाब, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, असम और पाडूंचेरी में विधानसभा चुनाव होने जा रहे है. इनमें से पंजाब, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और असम में किसान आन्दोलन का प्रभाव पड़ने का आंकलन किया जा रहा है. पश्चिम बंगाल और असम में भाजपा वोट के धार्मिक धुव्रीकरण का प्रयास कर रही है. जिससे किसानों का प्रभाव कम से कम पड़ सके. पंजाब और उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में किसान आन्दोलन का प्रभाव सबसे अधिक पड़ेगा. उनमें भी उत्तर प्रदेश के अगर जाट लैंड में भाजपा को सबसे अधिक खतरा दिख रहा है. किसानों की एकजुटता परेशानी का सबसे बडडा सबब बन रही है.
मंहगाई और किसान आन्दोलन बना मुददा:
पंजाब के परिणाम कांग्रेस को उर्जा दे गये उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी को भी यह समझ गया कि किसानों के साथ खड़े होने से उत्तर प्रदेश में अपनी खोई जमीन को फिर से हासिल किया जा सकता है. समाजवादी पार्टी विधायकों की संख्या और जनाधार के आधार पर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस से बेहतर है. समाजवादी पार्टी के विधायक अम्बरीश सिंह ‘पुष्कर’ कहते है ‘हमने गांवों में किसानों के साथ संपर्क बनाये रखा है. पंजाब में जिस तरह से भाजपा को हार का सामना करना पडा उससे साफ हो गया कि किसान गुस्से में है. वह भाजपा को सबक सिखाने के मूड में है. यह भी तय हो गया कि किसानों को राममंदिर और धर्म के सहारे भाजपा जोड़ कर नहीं रख सकती. पेट्रोल डीजल के बढ़ते दाम, मंहगाई को बढ़ा रहे है. बेरोजगारी चरम पर है. सबसे अधिक किसानों का जिस तरह से अपमान हुआ वह भूलने वाली बातें नहीं है. केन्द्र सरकार ने किसानों को सड़क पर घेरने के लिये जो कीलें गाड़ी वह किसानों के दिल पर गड़ी है.’
18 फरवरी को उत्तर प्रदेश में विधानसभा का सत्र शुरू हुआ. विधानसभा पर सपा-कांग्रेस के विधायक हंगामा और धरना प्रदर्शन ना कर सके इसके लिये योगी सरकार ने विधानसभा को छावनी में बदल दिया. पूरे विधानसभा भवन को पुलिस के द्वारा घेर दिया गया. विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रामगोबिन्द चौधरी ने कहा बताया कि ‘योगी सरकार अपने जनविरोधी कार्यो पर पर्दा डालने के लिये मीडिया को भी विधानसभा की प्रेस गैलरी में बैठने की अनुमति नहीं दी. यह लोकतंत्र के चौथ स्तंभ पर हमला है.’ सपा और कांग्रेस के विधायक टैक्टरों पर गन्ना लेकर विधानसभा के अंदर जाना चाहते थे पर पुलिस ने विधानसभा के बाहर ही गेट नम्बर -1 पर रोक दिया. यहां पर सपा विधायको ने विधानसभा की बाउंड्री चढ़ कर नारे लगाने का काम किया. प्ले कार्ड लहराया. पुलिस विधायको पर भले ही हमला करने से डर गई पर टैक्टर चालको की पिटाई कर दी. टैक्टरों का चालान भी कर दिया.
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विधानसभा घेराव को रोकने के लिये विशेष पुलिस बल:
विधायको के प्रदर्शन से निपटने के लिये योगी सरकार ने एक नई पुलिस व्यवस्था को आनन फानन में तैयार कर लिया. इसका नाम यूपी एसएसएफ यानि उत्तर प्रदेश विशेष सुरक्षा बल रखा गया है. इसको सीआईएसएफ की तर्ज पर बनाया गया है. इस दिशा में योगी सरकार पहले से तैयारी कर रही थी. इसकी एक साथ 5 बटालियन को बनाने की योजना थी. विधानसभा सत्र में विपक्षी दलों के विरोध प्रदर्शन को देखते हुये केवल एक बटालियन का ही गठन कर लिया गया. अभी यूपी एसएसएफ की नियमावली भी नहीं बनी है और कैबिनेट ने इसको पास भी नहीं किया है. इसके लिये 100 करोड़ का बजट रखा गया है. इसका काम अति संवेदनशील स्थानों की रक्षा करने का है.
पंजाब के फैसले से घबराया जाट लैंड:
पंजाब के 7 नगर निगम को कांग्रेस ने जीत कर अपना दबदबा साबित किया. यह मोगा, होशियारपुर, कपूरथला, बठिंडा, पठानकोट, बटाला और अबोहर शामिल है. यहां कांग्रेस की जीत को भी मीडिया में उतनी जगह नहीं मिली जितनी हैदराबाद नगर निगम को लेकर होहल्ला मचा था. सोशल मीडिया पर भाजपा की आईटी सेल ने निकाय चुनाव को नकार दिया. यह मैसेज वायरल किये गये कि पंजाब में भाजपा कभी नहीं मजबूत थी ऐसे में वह कमजोर हो गई यह थ्योरी गलत है. उपर से भाजपा में सब षंात था पर अंदरखाने भाजपा इन चुनाव परिणामों को लेकर बेहद गंभीर थी. शाह-नड्डा की जोडी ने पंजाब की जगह पष्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट नेताओं की क्लास लेनी शुरू कर दी.
भाजपा की चिंता का कारण यह है कि पश्चिम उत्तर प्रदेश की जाट बेल्ट है. राजस्थान, हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश की जाट बेल्ट में 40 लोकसभा की सीटे आती है. जिन पर किसान आन्दोलन का प्रभाव तय माना जा रहा है. गांवगांव खाप पंचायते और महापंचायतें एकजुट हो रही है. यह केन्द्र सरकार की किसान विरोधी नीतियों से गुस्से में है. शाह-नड्डा की जोडी ने केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर और उत्तर प्रदेश के कृषि राज्य मंत्री संजीव बालियान के साथा चर्चा करके अपनी चिंता व्यक्त की. पष्चिम उत्तर प्रदेष में 20 साल से पत्रकारिता कर रहे रवि सिंह ने बताया कि ‘भाजपा के स्थानीय नेताओं ने अपने हाई कमान को बताया है कि अगर राकेश टिकैत की अगुवाई वाला किसान आन्दोलन चलता रहा तो उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों पर इसका असर पडेगा. उत्तर प्रदेश में 2022 के फरवरी माह में विधानसभा के चुनाव है. चुनावी साल में किसान का हाल बेहाल होने से किसान भाजपा के पक्ष में नहीं होगा.’
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भीम आर्मी को नई पहचान:
भाजपा के लिये सबसे खतरे की बात यह है कि पश्चिम उत्तर प्रदेश में चैधरी अजीत सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल और चन्द्रशेखर रावण की भीम आर्मी का प्रभाव बढ़ता जा रहा. लोकदल नेता जयंत चैधरी की सभाओं में भीड़ बढ़ गई है. भीम आर्मी के नेता चन्द्रशेखर रावण को टाइम पत्रिका के 100 उभरते लोगों में जगह मिली है. उत्तर प्रदेश और केन्द्र में भाजपा की सरकार होने और पश्चिम उत्तर प्रदेश में किसी भी भाजपा नेता को प्रभाव न बनने से पार्टी की पकड़ ढीली पड़ रही है. भाजपा ने कुछ सालों में जाट बिरादरी में जो जनाधार बढ़ाया था वह खत्म होता दिख रहा है. भाजपा में स्थानीय नेताओं की अपनी इमेज इस कारण भी नहीं बन रही क्योकि सभी शाह-मोदी और योगी के प्रभाव में दबाये जा रहे है. उनको अपने फैसले नहीं करने दिये जा रहे. भाजपा के लोकल नेता मानते है कि किसान आन्दोलन पश्चिम उत्तर प्रदेश पर अपना असर डालेगा.
लेखक- रोहित और शाहनवाज
पंजाब के निकाय चुनाव के रिजल्ट आते ही हमने उस जगह को पॉइंट बनाया जहां भाजपा का प्रदर्शन पहले मजबूत रहा है. उसी इलाके में से एक होशियारपुर जगह है जहां भाजपा और अकाली दल बेहतर प्रदर्शन करती आई हैं. दिल्ली के कश्मीरी गेट से हमने पंजाब के होशियारपुर के लिए बस पकड़ी. करीब 7 घंटे का लंबा सफर, उबड़ खाबड़ हाईवे पर हिचकोले खाते हम आखिरकार सुबह 7:00 बजे होशियारपुर बस अड्डे जो कि भगवान वाल्मीकि इंटर स्टेट के नाम से मशहूर है पहुंच गए.
होशियारपुर के जिस इलाके में हम पहुंचे वह मॉडल टाउन में आता है. बस अड्डे से बाहर निकलते ही एक बड़ा सा चौक पड़ता है. चौक पर संविधान हाथ में लिए करीब साढ़े 5 फीट की अंबेडकर की मूर्ति स्थित है. यह मूर्ति वहां कब लगी यह कहना मुश्किल है किंतु 5-6 पुलिस की तैनाती और कुछ कुछ देर में हो रही पेट्रोलिंग यह जरूर बता रही थी कि इस इलाके में कुछ हलचल जरूर होती रहती है और यह इलाका सुरक्षा के लिहाज से जरूरी है.
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चौक पर चलते ट्रैक्टर इस बात की गवाही दे रहे थे कि पंजाब के शहरों में भी कृषि कानूनों का इंपैक्ट जरूर है. किसान अपनी समस्याओं को लेकर शहरों तक भी जा रहे हैं. सड़कों पर चलते ट्रैक्टरों और जीपों में लगे किसानी झंडे इसी बात की तस्दीक दे रहे थे. जो दिलचस्प बात देखने में आई वह यह कि जो भाजपा के बैनर और पोस्टर बाकी राज्यों में चौकों की शान बना करते हैं यहां यह पूरी तरह नदारद थे. शायद भाजपा खुद पंजाब में अपने हौसले पहले ही बुरी तरह गंवा चुकी है.
होशियारपुर इलाका हिमाचल के उना से सटा हुआ है. यहां से हिमाचल लगभग 20 या 25 किलोमीटर की दूरी पर है. और एक अच्छी खासी संख्या हिमांचल से आने वाले लोगों की है.
हम चाय पीने के लिए चाय की टपरी पर गए तो वहां पहले से मौजूद दो लोग आपस में बात कर रहे थे. यह बातें आधी राजनैतिक और आधी व्यक्तिगत महसूस हो रही थी. उनमें से एक 62 वर्षीय सोहनलाल थे जो सन 81 में हिमाचल के उना इलाके से होशियारपुर आ बसे थे. और यहां वेल्डिंग का काम करने लगे थे. वैसे इससे पहले भी वह दिल्ली के नजफगढ़ और राजस्थान के जयपुर में कुछ वर्ष काम चुके थे. उनका मानना है कि होशियारपुर भी हिमाचल का ही हिस्सा रहा है और यह वापस हिमाचल में चले जाना चाहिए.
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खैर हम इस विवाद में नहीं कूदे और हमने उनसे मसखरे अंदाज में पूछ बैठे कि, “आप तो किसान नहीं लगते, आप शहरी हैं, आपने भाजपा को क्यों नहीं जिताया?”
उन्होंने गिलास में थोड़ी सी बची चाय रोड पर फेंक दी और गिलास टेबल पर रख कर हमें अपने साथ चलने का इशारा किया.
दरअसल चौक से दाई तरफ 50 मीटर की दूरी पर उन्होंने एक गैराज की दुकान किराए पर ली हुई है जिसका नाम ‘मोटर वर्कशॉप’ है. हम गैराज के अंदर घुसे तो सोहनलाल हमें सीधा वेल्डिंग के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले ऑक्सीजन सिलेंडर की तरफ ले गए. उन्होंने कहा “यह सिलेंडर पहले सवा ₹200 का था अब यह बढ़कर ₹500 का हो गया है.”
सोहनलाल ले हाथ का इशारा करते हुए खाली पड़ी लोहे की टंकी की ओर इशारा किया जिसके बगल में कार्बाइड के कुछ ढेले पड़े थे. उनकी तरफ इशारा कर कहते हैं कि “यह कार्बाइड का पत्थर पहले ₹80 किलो आया करता था अब यही कार्बाइड का पत्थर ₹140 किलो आता है.”
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बता दे कि यह ऑक्सीजन सिलेंडर वह चीज है जो किसी कलपुर्जे के टूटने पर उसे जोड़ने के काम आता है या फिर किसी चीज को बारीकी से काटने के काम आता है. वही कार्बाइड का पत्थर गैस बनाने के काम आता है. यह दोनों चीजें वेल्डिंग के काम के लिए बहुत जरूरी होती है.
सोहनलाल कहते हैं, “लोहे की सीट जो गाड़ियों पर लगती है वह पहले ₹64 प्रति किलो थी अब वह ₹100 प्रति किलो हो चुकी है.
जब हमने उनसे यह पूछा कि उन्होंने निकाय चुनाव में किसको वोट दिया तो वह बताते हैं कि “हमें नाम किसी का नहीं मालूम और मसला इस बार कैंडिडेट का था ही नहीं. लेकिन इतना पता था कि भाजपा को नहीं देना है और कमल को हराना है.” सोहनलाल भाजपा की दोगली राजनीति से भी निराश है. वह बताते हैं “इन्हें तो हारना ही था. सरकार में आने से पहले यही भाजपा गैस पेट्रोल के दाम बढ़ने पर सड़कों पर आ जाया करती थी. चक्का जाम कर दिया करती थी. जुलूस निकाला करती थी. लेकिन अब इन्हीं की सरकार में इन सब चीजों के दाम आसमान छूने लगे हैं और यह इस पर बात करने की वजह लोगों को बस यहां वहां उलझाने का काम करती है.”
शहनाज गिल ने सिद्धार्थ शुक्ला के लिए अपना प्यार स्वीकार कर लिया है. शहनाज के इस हरकत से साफ हो जा रहा है कि इसके दिल में सिद्धार्थ शुक्ला के लिए कुछ तो है. अब इनके तस्वीर को देखने के बाद फैंस सोशल मीडिया पर लगातार चर्चा कर रहे हैं कि ये दोनों रिलेशनशिप में हैं.
हालांकि शहनाज गिल और सिद्धार्थ शुक्ला अपने रिश्ते पर अभी तक खुलकर बोलते नजर नहीं आ रहे हैं. शहनाज गिल ने इशारों में साफ कह दिया है कि वह अब सिद्धार्थ शुक्ला कि हो चुकी हैं. हालांकि फैंस को उस दिन का इंतजार है जिस दिन शहनाज और सिद्धार्थ कुछ कहेंगे अपने रिश्ते को लेकर.
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कुछ दिनों पहले शहनाज गिल को एयरपोर्ट पर देखा गया था, जहां वह ब्लैक कलर के ट्राउजर में नजर आ रही थी. लेकिन जब उनके हाथ में मोबाइल फोन देखा गया तो पाया गया कि उनके कवर पर शहनजा और सिद्धार्थ की फोटो लगी थी. जिसे देखने के बाद यह साफ हो गया था कि शहनाज गिल सिद्धार्थ शुक्ला के साथ रिलेशन में हैं.
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अब यह वीडियो खूब वारल हो रहा है जिसमें शहनाज को देखकर फैंस कह रहे हैं कि शहनाज अपने प्यार का इजहार सिद्धार्थ के साथ गुपचुप तरीके से कर रही हैं. वह अपने और सिद्धार्थ के रिश्ते के बारे में खुलकर नहीं बताना चाहती हैं.
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वैसे फैंस सिद्धार्थ और शहनाज की जोड़ी को खूब पसंद करते हैं. दोनों को सिडनाज का नाम मिल चुका है. दोनों साथ में कई म्यूजिक वीडियो में भी काम कर चुके हैं. दोनों की जोड़ी को लोग बिग बॉस सीजन 13 से पसंद करना शुरू किए थें. जिसके बाद से लेकर अब तक उन्हें फैंस से लगातार प्यार मिल रहा हैं. दोनों अपने प्यार का इजहार अपने फैंस के सामने कब करेंगे इसका अभी तक किसी को पता नहीं हैं. देखते हैं ये रिश्ता आगे अपना नाम दे पाता है या नहीं.
बिग बॉस 14 का फिनाला बहुत ज्यादा नजदीक है. इस रविवार को फाइनल हो जाएगा कि कौन बनेगा बिग बॉस 14 का विनर. किसके हाथ जाएगी ट्रॉफी. बात करें फाइनलिस्ट कि तो राहुल वैद्य, निक्की तम्बोली, राखी सावंत और रुबीना दिलाइक फाइनल में पहुंच चुके हैं.
अब टॉप 3 में जानें कि लिए इन 5 सदस्यों में घमासान युद्ध होने वाला है. जिसमें से सिर्फ तीन लोग ही आखिरी फाइनल राउंड में जाएंगे. इस वक्त हर कोई अपने फैंस को सपोर्ट करते नजर आ रहा है.
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अगर बात कि जाए राहुल वैद्य कि तो अभी कुछ लोग उन्हें ही विनर बता रहे हैं. बता दें कि राहुल वैद्य ने बिग बॉस 14 के पहले दिन से ही सुर्खियां बटोरी है. जिस तरह से राहुल वैद्य ने गेम खेला है. वैसे लोग जमकर उनकी तारीफ करते नजर आ रहे हैं.
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फैंस का ये प्यार पाकर राहुल वैद्य खुशी से फूले नहीं समा रहे हैं. राहुल वैद्य अपनी खुशी को रोक नहीं पा रहे हैं तो वहीं कुछ लोगों ने राहुल वैद्य को कबीर सिंह का नाम भी दे दिया है. जैसे उन्होंने अपनी गर्लफ्रेंड को बिग बॉस के घर के अंदर प्रपोज किया था. जिस वजह से उन्हें कुछ लोग कबीर सिंह का टैग दे दिए हैं.
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हालांकि ,अभी भी आप ये दावे के साथ नहीं कह सकते हैं कि इस शो का विनर कौन बनेगा. कुछ फैंस का कहना है कि राहुल लवर के साथ- साथ अच्छे इंसान भी है. लोग उन्हें काफी ज्यादा पसंद करते हैं. कुछ लोगों का कहना है कि कबीर सिंह की इमेज की वजह से राहुल वैद्या रुबीना दिलाइक को हरा देंगे.
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यह बात तो शायद सभी को पता होगा कि राहुल वैद्य रुबीना दिलाइक के सबसे बड़े दुश्मन रह चुके हैं. राहुल वैद्य एक ऐसे इंसान है जिन्होंने रुबीना दिलाइक को सच का आइना दिखाया था.
वहीं राहुल वैद्य कि गर्लफ्रेंड दिशा परमार राहुल वैद्या की जमकर तरीफ करती नजर आ रही हैं इन दिनों. देखते हैं कौन बनेगा शो का विनर.
लेखक- रोहित और शाहनवाज
दिल्ली की सीमाओं पर जहां एक तरफ विभिन्न राज्यों के किसान विवादित कृषि कानूनों के रिपील को लेकर पिछले 85 दिनों से लगातार आंदोलनरत है वहीं इसी बीच पंजाब में निकाय चुनाव हुए जिसका जरूरी शोर मचते मचते तमाम बड़े मीडिया संस्थानों द्वारा दबा दिया गया.
वैसे तो चर्चा हमेशा जीतने वाले पक्ष की गर्म होती है लेकिन इस बार मसला अलग है. जून 2020 में कृषि कानूनों के अध्यादेश आने के बाद से ही पंजाब में भारी उथल-पुथल चल रही है. जिसका संभावित नतीजा निकाय चुनाव में साफ तौर पर माना जा रहा है. भाजपा का सूपड़ा ऐसा साफ हुआ कि जिन इलाकों में वह जीतती भी थी इस बार वह बिल्कुल ही गायब हो चुकी है. मसलन इन निकाय चुनाव में भाजपा और अकाली दल की जो दुर्दशा हुई है वह छुपाए भी नहीं छुप रही.
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पंजाब नगर निगम चुनावों में 14 फरवरी को सात नगर निगम, 109 नगर परिषद और नगर पंचायतों के तहत 2302 वार्डों का चुनाव कराया गया था. इस चुनाव का नतीजा यह रहा कि कांग्रेस सभी 7 नगर निगमों में चुनाव जीत चुकी है, जिस में मुख्य रुप से मोगा, होशियारपुर, कपूरथला, बठिंडा, पठानकोट, बटाला और अबोहर शामिल है. 18 फरवरी को मोहाली नगर निगम के चुनाव के रिजल्ट भी कांग्रेस के पक्ष में रहे. मोहाली में 50 में से 33 सीटें कांग्रेस ने जीती और बाकी 13 सीटें निर्दलीयों के खाते में गई. बता दे कि यह सभी बड़ी-बड़ी म्युंसिपल कॉरपोरेशन है जिसको जीतने का सपना हर राजनीतिक दल करती रहती है.
गौरतलब है कि यह वही मीडिया और सत्ता के लोग हैं जो कुछ दिन पहले हैदराबाद निकाय चुनाव में भाजपा की कुछ सीटें अधिक जीत लेने के बाद खुशी से फूले नहीं समा रहे थे लेकिन अब भाजपा की इतनी बड़ी हार के बाद वहां इतनी शांति पसर चुकी है जैसे कुछ हुआ ही ना हो.
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देखा जाए तो हैदराबाद के निकाय चुनाव में भाजपा के शीर्ष नेता गन से लेकर छोटे-मोटे मंत्री संत्री ने अपना चुनाव में पूरा जोर लगा दिया था और और जय श्री राम का नारा लगाते नहीं थक रहे थे लेकिन मानो पंजाब के इस निकाय चुनाव में वही बड़े-बड़े मंत्री और छोटे-छोटे संत्री को सांप सूंघ गया हो.
जेपी नड्डा से लेकर अमित शाह और बाकी जिम्मेदार भाजपा के नेता अपने इंटरव्यू में हर चुनाव के हार जीत का विश्लेषण करते हैं. लेकिन इतनी बड़ी हार के बाद वह अभी तक जिम्मेदारी लेने के लिए आगे नहीं आ पाए हैं. यहां तक कि वह इस मिली करारी हार की वजह तक नहीं बता पाए हैं. जिस तरह के रिजल्ट सामने आए हैं वह भाजपा की राजनीतिक नीतियां और आर्थिक नीतियों पर बड़े सवालिया निशान मौजूदा समय पर खड़ा करते हैं. क्या इस हार की वजह सिर्फ नए विवादित कृषि कानून है? या फिर क्या इस हार की वजह वह जय श्री राम का नारा है जो पंजाब में नहीं लग पाया? या फिर वह तमाम आर्थिक नीतियां है जिसे झेलने और सहने के लिए पंजाब का व्यापारी, किसान, ठेलेवाला, गरीब, छात्र, मजदूर, महिलाएं, बुजुर्ग अब बिल्कुल भी तैयार नहीं है.
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वजह चाहे जो भी हो यह तभी पता चलेगा जब जमीन पर इन सवालों को लेकर जाया जाए यही कारण है कि हम ग्राउंड जीरो पर उतर कर उन सभी चीजों को खंगालने की कोशिश कर रहे हैं जो मीडिया के कैमरों से और गजजाते माइक से छुप जाते हैं. इसी कड़ी में हम दिल्ली से लगभग 385 किलोमीटर दूर पंजाब के होशियारपुर जिले की तरफ निकले हैं जहां के फिगर भाजपा की राजनीतिक चाहत को सूट तो करते हैं लेकिन इस के परिणाम भाजपा की उम्मीद से कई गुना बुरे निकले.
बता दें कि होशियारपुर वह सीट है जहां से बीजेपी के पूर्व कैबिनेट मंत्री तीक्ष्ण सूद की पत्नी हार गई है. इसके साथ ही यह वही होशियारपुर है जो बीजेपी सांसद तथा केंद्रीय मंत्री सोम प्रकाश का संसदीय क्षेत्र है. एक लिहाज से देखा जाए तो यह भाजपा का एक मजबूत किला रहा है.किंतु यहां भाजपा और उसके पूर्व सहयोगी रहे अकाली दल एक भी सीट हासिल नहीं कर पाई. दिलचस्प बात यह है कि इस नगर निगम होशियारपुर में 2015 में हुए निकाय चुनाव में भाजपा और अकाली दल ने मिलकर 50 में से कुल 27 सीटें जीती थी और कांग्रेस मात्र 17 सीटें ही हासिल कर पाई थी. इस बार कांग्रेस 41 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत में है वही भाजपा और अकाली दल का खाता तक नहीं खुला है.
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होशियारपुर पंजाब की वह जगह है जिसे समझना बहुत जरूरी भी है. देखा जाए तो सन 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की कुल आबादी 1,68,443 है. यहां हिंदुओं की आबादी बहुसंख्यक है जिसका कुल प्रतिशत 75.6% है वही दूसरे नंबर पर सिख समुदाय के लोग हैं जिनका कुल प्रतिशत 21.45% है. वही मुस्लिम 0.78% है. इस चित्र में बीजेपी की यह हार कई बड़े सवालों को खड़ा करती है. यह हार उनकी कोर हिंदूवादी राजनीति पर भी चोट करती है जिसकी राजनीति वह करा करती है.