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इन आसान उपायों से करें जीभ की सफाई

आमतौर पर मुंह की सफाई का मतलब हम दांतों की सफाई समझते हैं. इस चक्कर में हम जीभ की सफाई का महत्व नजरअंदाज कर देते हैं. जीभ की सफाई कई कारणों से अहम होती है. सफाई के मामले में जीभ सबसे ज्यादा उपेक्षित अंग है. अक्सर लोग इसकी सफाई का ख्याल नहीं रखते. जिसके कारण आपको कई तरह की बीमारियां हो सकती है. जीभ की सफाई ना करने से आपकी सांस भी बदबूदार हो जाती है. ऐसे में जरूरी है कि आप अपनी जीभ की नियमित सफाई करें. इस खबर में हम आपको जीभ की सफाई के कुछ तरीके बताएंगे.

दही

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दही प्रो-बायोटिक होता है. यह जीभ पर जमा फंगस, सफेद परत और गंदगी को खत्म कर देता है.

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हल्दी

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हल्दी पाउडर में थोड़ा सा नींबू का रस मिला लें, अब इस पेस्ट से जीभ पर रगड़ लें. कुछ देर में गुनगुने पानी से कुल्ला कर लें.

माउथवाश

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खाना खाने के बाद खाने के कुछ अंश जीभ पर रह जाते हैं. इस लिए जरूरी है कि खाने के बाद माउथवाश किया जाए. इससे मुंह की गंदगी निकल जाएंगी. साथ ही आप फ्रेश महसूस करेंगी.

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नमक

जीभ की सफाई के लिए नमक काफी अच्छा तत्व माना जाता है. ये एक प्राकृतिक स्क्रब की तरह काम करता है. थोड़ा सा नमक जीभ पर छिड़क लें, फिर ब्रश के पिछले हिस्से से  हल्का दबाव डाल कर जीभ की सफाई करें. इसके बाद कुल्ला कर लें. आपको इसका असर जल्दी ही दिखेगा.

बेकिंग सोडा

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बेकिंग सोडा भी एक प्रभावशाली स्क्रब होता है. इसमें नींबू की कुछ बूंदे मिलाएं, अब इस पेस्ट को जीभ पर उंगली से लगाएं और थोड़ी देर रखने के बाद कुल्ला करें. इससे जीभ पर जमी सफेद परत व गंदगी आसानी से निकल जाएगी.

सुन्दर दिखने के लिए हेल्दी होना जरूरी है

चाहे गृहणी हो या कामकाजी महिला, कौलेज गोइंग गर्ल हो या साठ साल की दादी अम्मा, सुन्दर तो हर औरत दिखना चाहती है. आज से दस-पन्द्रह साल पहले तक ब्यूटी पार्लरों पर जहां जवां लड़कियों का कब्जा हुआ करता था और चालीस साल से ज्यादा उम्र की महिलाओं को यदाकदा ही वहां देखा जाता था, वहीं आज चालीस से लेकर सत्तर वर्ष तक की महिलाएं भी ब्यूटी पार्लर में पेडीक्योर, मेनिक्योर, हेयर कलर, फेशियल, मसाज करवाती खूब नजर आती हैं. हाल के वर्षों में सौन्दर्य के प्रति भारतीय महिलाओं में काफी जागरुकता आयी है. यह जागरुकता महानगरों से लेकर छोटे कस्बों तक में और धनाड्य से लेकर लो-इनकम कैटेगरी तक की महिलाओं में दिखायी दे रही है. अब कुछ खास मौकों पर ही खूबसूरत दिखने की बजाये महिलाएं हर वक्त खूबसूरत दिखना चाहती हैं. वहीं यह बात भी गौर करने वाली है कि आज की महिला के लिए खूबसूरत दिखने का मतलब सिर्फ खास मौकों के लिए तैयार होना और चेहरे पर मेकअप कर लेना भर नहीं है, बल्कि अब सुन्दरता के दायरे में ग्लोइंग स्किन, चमकदार बाल, अच्छा मेकअप, ड्रेस, फ्रेगरेंस, फुटवियर, हेयर कलर सब कुछ समाहित है. यानी आज की महिला पूर्णरूप से सुन्दर दिखना चाहती है – नख से शिख तक सुन्दर.

पूर्ण सुन्दरता किसी स्त्री को तभी हासिल हो सकती है जब वह हेल्दी हो. हेल्दी होने का यह मतलब हरगिज नहीं है कि आप मोटी या हट्टी कट्टी हों, बल्कि हेल्दी होने का मतलब है कि आपका बौडी फिगर संतुलित हो, आप में काम करने की स्ट्रेंथ हो, आपको कमजोरी महसूस न होती हो और आप जल्दी-जल्दी बीमार न पड़ती हों. आमतौर पर देखा जाता है कि महिलाएं पतला होने के लिए काफी मशक्कत करती हैं. वे जिम जाती हैं, डायटीशियन के पास जाती हैं, योगा करती हैं, जौगिंग करती हैं, मगर इसके साथ वे अपने खानपान पर ध्यान नहीं देतीं या हेल्दी फूड नहीं खातीं. ऐसी हालत में वे पतली तो जरूर हो जाती हैं मगर न तो हेल्दी होती हैं और न ही सुन्दर दिखती हैं.

दुबली-पतली राशि ने दोस्त की इंगेजमेंट पार्टी में जाने के लिए पार्लर से बहुत अच्छा मेकअप करवाया. पार्टी में शुरू के एक घंटे तक तो वह सबको बड़ी सुन्दर दिखी, मगर जैसे जैसे समय बीतता गया और गर्मी बढ़ी, वैसे वैसे उसके चेहरे पर चढ़ी मेकअप की परतें उतरने लगीं. दो घंटे में ही उसकी आंखों के नीचे काले घेरे भी नजर आने लगे. वहीं शालिनी बहुत हल्के मेकअप में पार्टी में पहुंची थी. पार्टी में पूरे वक्त वह चहकती रही, डांस फ्लोर पर डांस करती रही, मगर उसका चेहरा जैसे पहले शाइन कर रहा था वैसा ही पार्टी के अंत तक बना रहा. वजह यह थी कि वह अन्दर से हेल्दी थी. अगर आप अन्दर से स्वस्थ हैं तो उसका बहुत ही पौजिटिव असर आपके चेहरे, बालों, आंखों पर तो दिखता ही है, आपका एनर्जी लेवल भी काफी हाई रहता है और मेकअप भी आपके चेहरे पर टिका रहता है. हेल्दी होना आपकी पूर्ण खूबसूरती से जुड़ा है. अगर आप हेल्दी हैं तो आपकी स्किन ग्लो करेगी, बालों में चमक रहेगी, नेल्स सुन्दर होंगे और मेकअप पूरे टाइम बना रहेगा.

हेल्थ और ब्यूटी को लेकर आज हर उम्र की महिला कौन्शेस है. आज मेकअप करना भी सिर्फ कुछ खास मौकों की बात नहीं है, बल्कि हर वक्त की जरूरत है. महिलाएं इस बात को समझ रही हैं कि अच्छा और स्वस्थ दिखना हर समय जरूरी है. चाहे आप घर पर हों या औफिस में या कौलेज में. हेल्थ, ब्यूटी और पर्सनल केयर को लेकर जागरुकता दुनिया भर में बढ़ी है और भारत में तो बीते दस सालों में यह ट्रेंड तेजी से प्रसार पा रहा है. भारतीय महिलाएं हेल्थ और ब्यूटी को लेकर पहले से कहीं ज्यादा कौन्शेस हैं. बीते दस सालों में भारतीय महिलाओं में बड़ा बदलाव देखा गया है. अब योगा, मेडिटेशन, पर्सनल हाइजीन और ब्यूटी की तरफ महिलाएं काफी ध्यान दे रही हैं, जो एक अच्छा साइन है. आज से दस साल पहले तक सुबह-सुबह सड़कों पर जौगिंग करने वालों में महिलाओं की संख्या बहुत कम हुआ करती थी. कभी-कभार ही कोई युवती नजर आती थी, मगर आज चौदह साल की बच्ची से लेकर चालीस साल तक की महिला सड़क पर जौगिंग करती नजर आती हैं, पार्क में एक्सर्साइज करती दिख रही हैं, यह भारतीय महिलाओं की हेल्थ और ब्यूटी के लिए बहुत अच्छा साइन है.

योगा, जौगिंग और एक्सर्साइज से जहां बौडी फिट रहती है, वहीं शरीर पर अतिरिक्त चर्बी नहीं चढ़ती, पूरे शरीर में खून का बहाव ठीक होता है, पूरे शरीर को आॅक्सीजन मिलती है और आपके सारे जोड़ लम्बे समय तक काम करते रहते हैं. मगर इसके साथ ही आपको अपने खान-पान पर भी ध्यान देना बहुत जरूरी है. आपने एक्सर्साइज करके खुद को दुबला-पतला कर लिया और खाने पर ध्यान नहीं दिया तो आपकी सारी मेहनत बेकार है क्योंकि हेल्दी खाने के अभाव में आपके शरीर में अनेक रोग पनप सकते हैं जो आपको जल्दी-जल्दी बीमार करेंगे.

सुन्दर दिखना है तो खानपान बदलें

एक्सर्साइज के साथ स्वस्थ खानपान बहुत जरूरी है. अगर आपको सम्पूर्ण सुन्दरता की ख्वाहिश है तो तला-भुना, चाट-पकौड़ी, पीजा, बर्गर, ब्रेड जैसी चीजें अपने खानेपीने की लिस्ट से तुरंत बाहर कर दें. इसके बदले में दिन में खूब सारा पानी, छाछ, सलाद, फल, हरी सब्जियां, सूप, जूस, चपाती, दाल, मक्खन, नारियल पानी और दूध-दही का समावेश अपने फूड चार्ट में कर लें. यह वह चीजें हैं जो आपको अन्दर से ऐसा खूबसूरत और स्वस्थ बनाएंगी जो आपके चेहरे, बालों, आंखों और नाखूनों में परिलक्षित होगी.

आंवला आपकी स्किन के लिए बहुत लाभकारी है. दिन में एक आंवला नमक लगा कर जरूर खायें. दिन में एक या दो बार छाछ, नारियल पानी और जूस जरूर लें. इसके साथ ही प्रत्येक दिन कोई दो फल अवश्य खायें. खीरा, ककड़ी और मूली भी स्किन की सेहत के लिहाज से बहुत जरूरी हैं.

सुबह उठ कर फ्रेश होने के बाद खाली पेट दो ग्लास पानी अवश्य पियें और दिन भर में आठ से दस ग्लास पानी पियें, इससे शरीर में जमे टॉक्सिन्स बाहर निकल जाएंगे.

नाश्ते में ब्रेड खाने की बजाये पांच अनाजों से बनी एक छोटी चपाती, अंडा, अंकुरित दालें, अंकुरित चना और दूध या जूस लें. यह नाश्ता आपको सारा दिन तरोताजा रखेगा. दोपहर और रात के खाने में चपाती, दाल, सब्जी, सलाद, दही जरूर लें. दो खाने के बीच में यदि भूख लगे तो चिप्स या तला-भुना चाट पकौड़ी खाने की बजाये सूप या जूस लें. गन्ने का जूस या गाजर-टमाटर का रस सेहत के लिहाज से बहुत अच्छा है.

दोपहर के खाने के बाद आधा घंटा आंख बंद करके कुर्सी पर सुस्ताना अच्छा होता है. वहीं रात का खाना आठ बजे तक खा लेना चाहिए ताकि खाने और सोने के बीच कम से कम तीन घंटे का अन्तर रहे. खाने के तुरंत बाद बिस्तर पर लेट जाना सेहत के लिए ठीक नहीं है, इससे अपच, गैस, तनाव, हाथ-पैर में ऐंठन और अन्य कई तरह की प्रॉब्लम पैदा हो जाती हैं.

बौडी और हेयर मसाज है जरूरी

बौडी मसाज सुन्दर दिखने के लिए बहुत जरूरी है. मालिश से बदन में ब्लड सर्कुलेशन दुरुस्त होता है, जिससे त्वचा पर चमक बढ़ती है. बौडी मसाज से डेड स्किन उतर जाती है. नई और फ्रेश स्किन के ऊपर आने से ग्लो बढ़ता है. बौडी मसाज से स्किन टाइट होती है और झुर्रियां पैदा नहीं होतीं. हफ्ते में एक दिन सरसों या नारियल के तेल को हल्का गुनगुना करके फुल बौडी मसाज जरूर करें. बेहतर होगा यदि किसी मालिश वाली से यह काम करवाया जाये. इससे बौडी को रेस्ट भी मिलता है और हर तरह का तनाव, दर्द और खिंचाव दूर होता है.

इसी के साथ हफ्ते में एक बार हेयर मसाज भी जरूरी है. करीब एक घंटे हल्के गुनगुने तेल से हेयर मसाज करने के बाद गर्म पानी में तौलिया डुबो कर निचोड़ लें और उसे कुछ देर के लिए अपने बालों को चारों लपेट लें. हेयर मसाज बालों में चमक तो लाता ही है, इससे कमजोर, रूखे और दोमुंहे बालों से भी छुटकारा मिल जाता है और बालों की ग्रोथ बढ़ती है.

नियमित रूप से मेनिक्योर और पैडीक्योर करवाने से हाथों-पैरों की डेड स्किन निकल जाती है, इससे स्किन स्मूद और चमकीली नजर आती है. इसके साथ ही नाखूनों की मालिश और साफ-सफाई नेल्स की ग्रोथ और चमक को दुरुस्त बनाती है, जिसके बिना आपकी खूबसूरती अधूरी है. महीने में एक बार फेशियल भी जरूरी है.

तो अगर आपको पूर्ण रूप से सुन्दर दिखना है और जीवन के अंत तक अपनी सुन्दरता को बरकरार रखना है तो सिर्फ मेकअप से काम नहीं चलेगा. इसके लिए आपका हेल्दी होना आवश्यक है और हेल्थ के अन्तर्गत योगा, जिम, एक्सर्साइज, दौड़, साइक्लिंग, तैराकी के साथ-साथ स्वस्थ खान-पान और बौडी केयर बहुत जरूरी है.

पूर्वांचल में मोदी मैजिक के बजाय निरहुआ इफेक्ट का सहारा

पूर्वांचल के पिछले लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी की इमेज सबसे बडी थी. 2019 के चुनाव में भाजपा इस इलाके में ‘निरहुआ’ जैसे हीरो और ‘निषाद पार्टी’ नये सहयोगी दलों पर ज्यादा भरोसा कर रही है. बेमेल तालमेल से साफ है कि भाजपा में पहले जैसे आत्मविश्वास नहीं है. गोरखपुर उप चुनाव में मिली हार ने भाजपा को हताशा से भर दिया है. ऐसे में क्या ‘निरहुआ’ जैसे नेता ही अकेला रास्ता थे ? पूर्वांचल में भाजपा ‘मोदी मैजिक’ के बजाय ‘निरहुआ इफेक्ट’ और दूसरे सहयोगी दलो के सहारे अपनी चुनावी नैया पार लगाना चाहती है.

उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल हिस्से के 10 जिलों में लोकसभा की 13 सीटें है. 2014 के चुनाव में भाजपा को यहां 12 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. भाजपा के लिये पूर्वांचल सबसे मजबूत गढ माना जाता है. यही की वाराणसी सीट से प्रधनमंत्राी नरेन्द्र मोदी सांसद है. वह 2019 का चुनाव भी यही से लड़ रहे है. पूर्वांचल को लेकर भाजपा भयभीत है. लोकसभा सीट के लिये गोरखपुर में हुई हार से पार्टी के मन में डर बैठ गया है.

यही वजह है कि गोरखपुर उपचुनाव जीतने वाली निषाद पार्टी के प्रवीण निषाद को भाजपा ने अपने साथ कर लिया है. इसके साथ ही साथ पूर्वांचल में ही भाजपा ने अपना दल और सुहेलदेव पार्टी के साथ तालमेल करके चुनाव मैदान में है.

2014 के चुनाव में पूर्वांचल की आजमगढ सीट पर समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव को जीत मिली थी. यही वह सीट थी जिसे भाजपा जीत नहीं पाई थी. इस चुनाव में आजमगढ से सपा नेता अखिलेश यादव मैदान में है. भाजपा ने अपने किसी नेता को टिकट देने के बजाय भोजपुरी फिल्मों के हीरो दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ पर भरोसा जताया है. भाजपा को लगता है कि अखिलेश और ‘निरहुआ’ दोनो यादव है जिसके कारण अखिलेश का यादव वोट आपस में बंट जायेगा. ‘निरहुआ’ अपनी हीरो वाली छवि के कारण दूसरे वर्ग लेने में सपफल होगा इससे वह जीत जायेगा.

पूर्वांचल के लोग कहते हैं ‘यहां के लोगों को भोजपुरी फिल्म, गाने और डांस भले ही बेहद पसंद हो पर वे नेता और अभिनेता के बीच फर्क रखना जानते हैं. इससे पहले गोरखपुर लोकसभा सीट पर योगी आदित्यनाथ को मुकाबला करने समाजवादी पार्टी की तरपफ से हीरो और गायक मनोज तिवारी चुनाव लडे थे. उनको भी यही लग रहा था कि अपने गाने और डांस के बल पर चुनाव जीत जायेगे. पूर्वांचल की जनता मनोज तिवारी को पसंद करती थी पर उसने नेता बनने लायक नहीं समझा था. मनोज तिवारी बाद में सपा छोड भाजपा में चले गये उसके बाद भी उनको पूर्वांचल के बजाये दिल्ली ने ही नेता बनाया.’

जिस दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ पर भाजपा ने दांव लगाया है वह पहले समाजवादी पार्टी के लिये चुनाव प्रचार कर चुका है. सपा नेता अखिलेश यादव ने उसे मुख्यमंत्राी पद पर रहते हुये ‘यश भारती’ सम्मान दिया था. सपा का प्रचार कर चुके ‘निरहुआ’ अब आजमगढ सीट पर सपा प्रमुख अखिलेश यादव का मुकाबला भाजपा के टिकट पर कर रहे है. आजमगढ में ‘निरहुआ’ के क्रेज भले ही है पर उनको सांसद बनने लायक समर्थन नहीं मिल रहा है.

‘निरहुआ’ ऐसे हीरो है जो अपनी डबल मीनिंग वाले गानों के लिये याद किये जाते है. इनके कुछ गाने अश्लीलता के दायरों के पार चले गये है. भाजपा के स्थानीय नेता बताते है कि पूर्वांचल की 2 सीटों पर पार्टी ने अपने युवा कार्यकर्ताओं को पक्का भरोसा दिलाया था कि उनको टिकट मिलेगा. अब यहां वह अपनों से अध्कि बाहरी नेताओं पर भरोसा कर रही है. ऐसे में पार्टी के कार्यकर्ताओं में निराशा है. जिससे वह लोग भाजपा में आये बाहरी लोगों के साथ तालमेल नहीं कर पा रहे है.

भाजपा के कार्यकर्ता भी मानते हैं कि जब यहां मोदी मैजिक चल रहा था तो ‘निरहुआ’ जैसे विवादित लोगों को टिकट देने की क्या जरूरत थी ? जिनकी छवि भारतीय संस्कृति के खिलाफ है. इनके गाये गाने मां बेटी के साथ बैठ कर सुने नहीं जा सकते है.

इक लुटेरे को मददगार न समझे कोई

उसकी बातों को कहीं प्यार न समझे कोई
है खिलाड़ी उसे दिलदार न समझे कोई
लोग पूछें तो बताऊं मैं हकीकत उसकी
इक लुटेरे को मददगार न समझे कोई
मैंने माना कि ज़माने की खबर है मुझको
हां, मगर सुबह का अखबार न समझे कोई
कुव्वत-ए-जंग नहीं है तो हूं खामोश मगर
मुझको दुनिया का तरफदार न समझे कोई
यूं तो बिकता है ज़माने में सभी कुछ लेकिन
जिन्स-ए-बाज़ार मेरा प्यार न समझे कोई

शब्दार्थ
कुव्वत-ए-जंग : लड़ाई की ताक़त
जिन्स-ए-बाज़ार : बाजार में बिकने की चीज़

द ताशकंद फाइल्सः शास्त्री जी की मौत पर सवाल उठाने वाली फिल्म

फिल्म: ताशकंद फाइल्स

निर्देशक: विवेक अग्निहोत्री

कलाकार: मिथुन चक्रवर्ती,पंकज त्रिपाठी,नसीरुद्दीन शाह और श्वेता बसु प्रसाद

रेटिंग: साढ़े 3 स्टार

11 जनवरी 1966 की रात सोवियत संघ के ताशकंद शहर में देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमय परिस्थितियों में हुई मृत्यु पर सवाल उठाने वाली फिल्म है-‘‘द ताशकंद फाइल्स’. जिसे लेखक व निर्देशक विवेक अग्निहोत्री के अब तक के करियर की बेस्ट फिल्म कहा जा सकता है. फिल्मकार ने इतिहास के किसी भी विवादास्पद पहलू को दिखाने की अपनी रचनात्मक आजादी का बाखूबी उपयोग इस फिल्म में किया है.

लेकिन फिल्मकार की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि फिल्म के आखिरी से पहले कृछ तथ्य एकतरफा नजर आते हैं. एक सीन में एक मसले पर हाथ उठाने के लिए कहे जाने पर इतिहासकार आयशा कहती हैं कि कौन सा हाथ लेफ्ट या राइट?

कहानी…

फिल्म ‘‘द ताशकंद फाइल्स’’ की कहानी के केंद्र में एक युवा राजनीतिक पत्रकार रागिनी फुले (श्वेता बसु प्रसाद)हैं. उसे अपने अखबार के लिए स्कूप वाली स्टोरी देनी होती है. जिस दिन उसका जन्मदिन होता है, उसी दिन उसके संपादक उसे दस दिन के अंदर बड़ी स्कूप वाली स्टोरी न देने पर उसे नौकरी से बाहर करने की बात कह देता है. अब रागिनी परेशान है. तभी उसके पास एक अनजान नंबर से फोन आता है,जो कि उससे कुछ सवाल करता है और शास्त्री जी को लेकर भी सवाल करता है. फिर कहता है कि उसके जन्मदिन के उपहार के तौर पर उसके टेबल की दराज में एक लिफाफा है. इस लिफाफे में उसे ढेरी सारी जानकारी मिलती हैं, जिसके आधार पर वह अपने अखबार को स्टोरी देती है कि शास्त्री जी की मौत हार्ट अटैक से नहीं हुई थी और वह इसके लिए जांच कमेटी गठित करने की मांग करती है.

पूरे देश में हंगामा मच जाता है. तब गृहमंत्री पी के आर नटराजन (नसीरूद्दीन शाह) पहले रागिनी फुले से बात करते हैं और फिर एक जांच कमेटी गठित करने का निर्णय लेते हुए विपक्ष के नेता श्याम सुंदर त्रिपाठी (मिथुन चक्रवर्ती) से मिलते हैं तथा उन्हे इस कमेटी का अध्यक्ष बना देते हैं. श्याम सुंदर त्रिपाठी इस जांच कमेटी में अपने साथ रागिनी फुले, समाज सेविका इंदिरा जय सिंह रौय (मंदिरा बेदी), ओंकार कश्यप (राजेश शर्मा), वैज्ञानिक गंगाराम झा (पंकज त्रिपाठी), जस्टिस कूरियन (विश्व मोहन बडोला), पूर्व रा प्रमुख जी के अनंता सुरेश (प्रशांत बेलावड़ी), युवा नेता वीरेंद्र प्रताप सिंह राना (प्रशांत गुप्ता) के साथ-साथ इतिहासकार आयशा  (पल्लवी जोशी) को भी रखते हैं. आयशा ने शास्त्री जी की मौत पर लिखी अपनी किताब में शास्त्री जी की मौत की वजह हार्ट अटैक लिखी है और उन्हे यह मंजूर नही कि कोई उन्हे व उनकी किताब को गलत ठहराए.

ब्लैकबोर्ड वर्सेस व्हाइटबोर्ड : इंटरवल के बाद मूल मुद्दे से भटकी हुई फिल्म..

डायरेक्शन…

फिल्मकार विवेक अग्निहोत्री ने इस बार अपनी फिल्म ‘‘द ताशकंद फाइल्स’’ में अतीत के बहुत ही ज्यादा विवादास्पद मुद्दे को उठाया है. देखते वक्त अहसास होता है कि उन्होने इस राजनीतिक ड्रामा वाली फिल्म के लिए गहन शोधकार्य किया है. बेहतरीन पटकथा व उत्कृष्ट निर्देशन के चलते फिल्म दर्शकों को अंत तक बांधकर रखती है. फिल्म रोमांचक यात्रा है. इंटरवल से पहले कहानी बेवजह खींची गयी लगती है, मगर इंटरवल के बाद जबरदफिल्म स्त नाटकीयता है. विवेक अग्निहोत्री व फिल्म एडीटर की कमजोरी के चलते फिल्म में सुनील शास्त्री, अनिल शास्त्री, कुलदीप नय्यर आदि के इंटरव्यू ठीक से कहानी का हिस्सा नहीं बन पाते.

अभिनय…

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो पत्रकार रागिनी फुले का किरदार निभाने वाली अदाकारा श्वेतता बसु प्रसाद के अभिनय की जितनी तारीफ की जाए, उतनी कम है. एक दो सीन को नजरंदाज कर दें, तो वह पूरी फिल्म में अपनी परफार्मेंस की वजह से हावी रहती है. पंकज त्रिपाठी,पल्लवी जोशी, मंदिरा बेदी, मिथुन चक्रवर्ती ने भी बेहतरीन परफार्मेंस दी है. नसीरूद्दीन शाह के हिस्से कुछ खास करने को रहा नही. कैमरामैन उदयसिंह मोहिते भी बधाई के पात्र हैं. इस फिल्म की कमजोर कड़ी इसका बैकग्राउंड साउंड है.

देखें या नहीं…

कुलमिलाकर अगर आप एक गंभीर मुद्दे पर कोई अच्छी फिल्म देखना चाहते हैं तो एक बार इसे जरूर देख सकते हैं. लेकिन बौलीवुड की टिपिकल मसाला फिल्में देखने वाले दर्शकों के लिए ये फिल्म नहीं है.

नो फादर्स इन कश्मीरः प्यार, धोखा, उम्मीद और क्षमा की मार्मिक कहानी

महिलाएं ही नहीं, अब पुरुष भी खाएं गर्भनिरोधक गोलियां

आपने अभी तक केवल महिलाओं के लिए गर्भनिरोधक गोलियों के बारे में सुना होगा. बाजार में महिलाओं के लिए थोक में गर्भनिरोधक गोलियां बिकती हैं. पर क्या आपको पता है कि अब पुरुषों के लिए भी गर्भनिरोधक गोलियां आ गई हैं. जी हां, हम आपको बताने वाले हैं इस हैरान कर देने वाली खबर के बारे में. अब हमेशा महिलाओं को गर्भनिरोधक गोलियों के खाने की जरूरत नहीं है. अब पुरुष भी इस तरह की गोलियों का सेवन कर सकते हैं.

हाल ही में हुए एक शोध में इस बात का खुलासा हुआ है. शोधकर्ताओं ने ऐसे यौगिक की खोज की है जो शुक्राणु की गतिशीलता पर नियंत्रण रख सकता है. यह निषेचन की क्षमता को कम कर सकता है. इसका अर्थ है कि अब पुरुषों के लिए भी जल्दी ही बाजारों में गर्भनिरोधक गोलियां मिलेंगी, जो आबादी नियंत्रण के लिए कारगर होंगी.

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शोधार्थियों ने इस यौगिक को ईपी055 नाम दिया है. ये शुक्राणु की गतिशीलता को शिथिल कर देता है और इससे हार्मोन पर भी कोई असर नहीं होता है. एक जर्नल में प्रकाशित शोध के मुताबिक इस यौगिक से ‘पुरुष-गोली’ बनाई जा सकती है जो जन्म दर को नियंत्रित करने में कारगर साबित होगा और इसका कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होगा.

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आपको बता दें कि वर्तमान में पुरुषों के लिए कंडोम और नसबंदी के उपाय उपलब्ध हैं. परीक्षण के तौर पर इसका उपयोग नर बंदरों पर किया गया, जिसमें कोई दुष्प्रभाव नहीं पाया गया. उपयोग के 18 दिन बाद सभी लंगूरों में पूरी तरह से सुधार के लक्षण पाए गए.

ऐसे फैमिली को परोसें गरमा-गरम चीज पोटैटो कौर्न बाइट…

गरमी में लोग बाहर का खाना कम पसंद करते हैं, लेकिन अगर घर में भी  हेल्दी और टेस्टी खाना न मिले तो वह बाहर का खाना खाने लगते हैं. जो कि हेल्थ के लिए बिल्कुल ठीक नही होता. इसीलिए आज हम आपको बाहर मिलने वाले चीज पोटैटो कौर्न को घर पर बनाना सिखाएंगे, जिससे आप बाहर का खाना भूल जाएंगे…

सामग्री

3/4 कप स्वीटकौर्न

4 छोटे चम्मच चीज कसा

2 आलू उबले

समर ड्रिंक: लौकी जूस

1-2 हरीमिर्चें

तलने के लिए तेल

2 बड़े चम्मच कौर्नफ्लोर

नमक स्वादानुसार.

घर पर ऐसे बनाएं पनीर की खीर

बनाने का तरीका

मिक्सी में स्वीटकौर्न व हरी मिर्च पीस लें. उबले आलुओं को छील कर इस में चीज, पिसे स्वीटकौर्न और नमक मिलाएं. इसके छोटे-छोटे रोल्स बना कर कौर्नफ्लोर में लगाकर डस्ट करके गरम तेल में सुनहरा होने तक तलें. इसके बाद अपनी फैमिली को चटनी या सौस के साथ गरमा-गरम परोसें.

5 होममेड टिप्स: घर बैठे पाएं सौफ्ट एंड स्ट्रेट हेयर

स्ट्रेट हेयर का स्टाइल कभी खत्म नही होता. बहुत से लोग सिंपल सौफ्ट और स्ट्रेट हेयर के लिए कई तरह की चीजें जैसे रिबौनडिंग और स्ट्रेटनिंग करवाते हैं. हालांकि, अक्सर बालों को स्टाइल करना या स्ट्रेटनिंग करवाना आपके बालों के लिए नुकसानदायक हो सकता है. और इसीलिए आज हम आपको अपने बालों को घर में ही स्ट्रेट करने के नेचुरल टिप्स बताएंगे, जिससे आप बिना बालों को नुकसान पहुंचाए सौफ्ट और स्ट्रेट हेयर पा सकते हैं…

  1. कोकोनट मिल्क और नींबू का रस

कोकोनट मिल्क औऱ नींबू का रस आपके बालों को स्ट्रेट करने में मदद करता है. यह आपके बालों को विटामिन सी को बढ़ाने में मदद करता है.  साथ ही यह आपके बालों को सौफ्ट और स्ट्रेट करने में भी मदद करता है.

गरमी के मौसम में निखरी त्वचा पाने के लिए बेहद फायदेमंद है ये पैक

आपको चाहिए…

1 बड़ा चम्मच नींबू का रस

तैयारी के लिए टाइम

रातभर

लगाने का तरीका

कोकोनट मिल्क और नींबू के रस को अच्छी तरह मिलाकर रातभर ठंडा करें. फिर सुबह अपने हेयर में अच्छी तरह लगाकर लगभग 30 मिनट के लिए छोड़ दें. इसके बाद बालों को ठंडे पानी और बिना हल्के सल्फेट के शैम्पू से धो लें. इसे हफ्ते में एक बार जरूर ट्राई करें.

मेकअप का बेस बनाते समय रखें इन बातों का ध्यान

  1. बालों को स्ट्रेट करने के लिए हौट औयल ट्रीटमेंट

कैस्टर औयल बालों को मजबूत करता है. साथ ही यह आपके बालों को सौफ्ट और हाइड्रेटेड महसूस कराता है, जो बालों को स्ट्रेट करने में मदद करता है.

आपको चाहिए…

1 बड़ा चम्मच कैस्टर औयल

1 बड़ा चम्मच कोकोनट औयल

तैयारी का समय

दो मिनट

लगाने का तरीका

दोनों औयल को मिलाकर एक-दो मिनट के लिए हल्का गर्म करें और औयल को अपने स्कैल्प और बालों पर अच्छी तरह लगाएं. एक बार जब आपके बाल तेल पूरी तरह सोख लें, तो लगभग 15 मिनट के लिए सिर में मालिश करें. और एक्सट्रा 30 मिनट बाद बालों को ठन्डे पानी और माइल्ड सल्फेट फ्री शैम्पू से धो दें. इस टिप को हफ्ते में दो बार अपनाएं.

नींद की गोली का सेवन करने वालों के लिए जरूरी है ये खबर

  1. बालों की स्ट्रेटनिंग के लिए मिल्क स्प्रे

दूध में मौजूद प्रोटीन आपके बालों को जड़ों से मजबूत बनाने में मदद के साथ स्कैल्प को बैलेंस कर करता है, जिससे आपके बाल स्ट्रेट दिखते हैं.

आपको चाहिए…

¼ कप दूध

स्प्रे बोतल

तैयारी का टाइम

दो मिनट

लगाने का तरीका

स्प्रे बोतल में मिल्क डालकर अपने बालों पर छिड़कें. लगभग 30 मिनट के लिए छोड़ दें. और फिर ठंडे पानी से बालों को धो दें. हफते में इसे 1 या 2 बार अपनाएं

  1. स्ट्रेटनिंग के लिए अंडे और औलिव औयल

अंडे में प्रोटीन होता हैं जो आपके बालों को पोषण देने और उन्हें सौफ्ट करने में मदद करता है, जबकि औलिव औयल एक अच्छा हेयर कंडीशनर है.

आपको चाहिए…

2 अंडे

3 बड़े चम्मच औलिव औयल

तैयारी का टाइम

दो मिनट

लगाने का तरीका

दोनों को एक साथ मिलाकर बालों पर लगाएं. और एक घंटे तक तक पेस्ट लगाने के बाद बालों को ठन्डे पानी और माइल्ड सल्फेट-फ्री शैम्पू से धो दें. इसे हफ्ते में एक बार करें.

  1. दूध और शहद

आपके बालों को दूध प्रोटीन का पोषण देने और उन्हें मजबूत बनाने में मदद करता है, वहीं शहद एक एमोलिएंट के रूप में काम करता है जो बालों में नमी को सील करने में मदद करता है.

आपको चाहिए…

¼ कप दूध

2 बड़े चम्मच हनी

तैयारी का टाइम

दो मिनट

लगाने का तरीका

दूध और शहद को अच्छी तरह मिलाकर बालों में लगाएं. लगभग 2 घंटे के लिए इसे छोड़ने के बाद बालों को ठंडे पानी और एक हल्के सल्फेट मुक्त शैम्पू से धो दें. इस हफ्ते में एक बार अपनाएं.

ऐसे उतारे अपना मेकअप

क्या आप जानती हैं, मेकअप उतारने के कुछ खास टिप्स होते हैं. मेकअप उतारने के समय भी कई बातों का आपको ध्यान रखना चाहिए. अगर आप सही तरीके से मेकअप नहीं उतारती हैं तो आपके त्वचा को नुकसान भी पहुंच सकता है.

ऐसे में ये बेहद जरूरी है कि आप सही तरीके से मेकअप उतारें. तो आइए जानते हैं कि मेकअप उतारने की सही तरीका क्या है.

मेकअप उतारने के लिए आप हमेशा कोई ऐसी चीज की ख्वाहिश करती होंगी जिससे मेकअप जल्दी से उतर जाए और चेहरा साफ हो जाए. आई-लाइनर और मसकारा साफ करने के लिए थोड़ा जयादा ध्यान रखना होता है. ऐसे में जरूरी है कि आप जिस भी क्रीम या लोशन का इस्तेमाल कर रही हैं वो सुरक्षित हो और सुरक्षा के लिहाज से बादाम तेल एक बेहतरीन विकल्प है.

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मेकअप उतारने के लिए बादाम तेल का क्यों करें इस्तेमाल

बादाम तेल इस्तेमाल करने की दूसरी सबसे बड़ी वजह ये है कि मेकअप के बाद चेहरे की नमी खो जाती है. ऐसे में बादाम का तेल चेहरे को पोषित करने का काम करता है.

बादाम तेल इस्तेमाल करने की सबसे बड़ी वजह ये है कि इसमें किसी भी प्रकार का केमिकल नहीं होता है. जिससे त्वचा को किसी प्रकार का नुकसान नहीं होता है.

इन दोनों कारणों के अलावा अगर आपको कील-मुंहासों और झांइयों की समस्या है तो भी ये आपके लिए फायदेमंद ही साबित होगा.

ऐसे करें इस्तेमाल

बादाम तेल से मेकअप साफ करना बहुत ही आसान है. सबसे पहले अच्छी मात्रा में बादाम तेल हथेली में लें. उससे अचछी तरह अपने चेहरे की मसाज करें. अपनी आंखों और उसके आस-पास हल्के हाथों से मसाज करें. उसके बाद रूई के बड़े टुकड़े को गुलाब जल में डुबोकर, निचोड़ लें. इसके बाद पूरे चेहरे को अच्छी तरह पोंछ लें.

इन बातों का भी रखें ख्याल

  1. अगर आपने वाटरप्रूफ मसकारा लगाया था तो आंखों की मसाज के लिए कुछ अधि‍क मात्रा में तेल लेकर मसाज करें.
  2. एक बार जब चेहरे से मेकअप हट जाए तो गुनगुने पानी से चेहरा धो लें.

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सुसाइड-आखिर क्यों जीना नहीं चाहती नई पीढ़ी

आयुष्मान भव:… जुग-जुग जियो… दूधों नहाओ, पूतों फलो… जैसे आशीर्वादों से भरे देश में जिन्दगी को ठोकर मार कर मौत की आगोश में सो जाने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. बीते पांच दशक में भारत में आत्महत्या की दर में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है. किसानों की आत्महत्या के बारे में हम लम्बे समय से सुनते आ रहे हैं. कर्ज, भूख, गरीबी, बीमारी से लगातार आत्महत्या कर रहे किसानों का मामला बहुत गम्भीर है. यह चर्चा का वृहद विषय है. जिसके तार सियासत, सियासी नीतियों और वोटबैंक से जुड़े हैं, जिसके चलते देश में किसानों-मजदूरों की आत्महत्याओं का आंकड़ा भयावह है. मगर चिन्ता की बात यह है कि किसानों के बाद देश की पढ़ी-लिखी युवा आबादी भी आत्महत्या की ओर तेजी से बढ़ रही है. भारत एक युवा राष्ट्र है अर्थात यहां युवाओं की आबादी सबसे ज्यादा है, मगर यह विचलित करने वाली बात है, कि इस आबादी का बड़ा हिस्सा निराशा और अवसाद से ग्रस्त है. वह दिशाहीन और लक्ष्यहीन है. खुद को लूजर समझता है. लक्ष्य को हासिल करने के पागलपन में उसके अन्दर संयम, संतुष्टि और सहन करने की ताकत लगातार घट रही है और किसी क्षेत्र में असफल होने पर जीवन से नफरत के भाव बढ़ रहे हैं. शिक्षा, बेरोजगारी, प्रेम, जैसे कई कारण हैं जो युवाओं को आत्महत्या की ओर उकसाते हैं. राष्ट्रीय क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि भारत में आत्महत्या करने वालों में सबसे ज्यादा (40 फीसदी) किशोर और युवा शामिल हैं.

पहलवानी के नाम पर दहशतगर्दी

भारत में युवाओं में ही नहीं, बल्कि अच्छे पदों पर आसीन लोगों में भी आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ रही है. पहले जहां निम्न और मध्यमवर्गीय तबकों में आत्महत्या की दर ज्यादा थी, वहीं हाल में उच्च वर्ग में भी जिन्दगी के प्रति निराशा और अवसाद के चलते आत्महत्या की घटनाओं में तेजी आयी है. उच्च पदों पर आसीन पुलिस अधिकारियों, नेताओं, समाज को दिशा देने वाले संतों तक में जीवन को त्यागने की प्रवृत्ति हाल के दिनों में सामने आयी है. इंदौर के चर्चित संत भय्यूजी महाराज की आत्महत्या की घटना ने तो देश को हिला दिया. एक संत जो दूसरों को जीवन की राह दिखाता हो, वह खुद इतना निराश और अवसादग्रस्त जीवन जी रहा था, इस बात पर यकीन करना मुश्किल है. भय्यूजी ने जीवन से निराश होकर, बदनामी, ब्लैकमेलिंग और कुछ अन्य कारणों से खुद को गोली मार कर अपनी इहलीला समाप्त कर ली, जबकि उनकी इन सारी समस्याओं का समाधान हो सकता था बशर्ते वे आशावादी होते और जीवन को उसके वृहद स्वरूप में समझते. जिन्दगी अनमोल है, मगर इस अनमोल चीज को खो देने की ओर धर्म, समाज और सियासत तीनों ही प्रेरित करती है? कैसे? इस बात को समझना बहुत जरूरी है.

 

सात जन्म का कौन्सेप्ट है खतरनाक

सात जनमों का कौन्सेप्ट एक खतरनाक कौन्सेप्ट है. यह कौन्सेप्ट हिन्दू धर्म में है. वह मानता है कि इन्सान के सात जन्म होते हैं. यह कौन्सेप्ट मानव मन में यह भावना जगाता है कि जो इच्छाएं इस जन्म में पूरी नहीं हुई, वह अगले जन्म में पूरी करेंगे. यह कौन्सेप्ट जीवन के प्रति नकारात्मक प्रवृत्ति भी पैदा करता है. जीवन में किसी क्षेत्र में नाकाम होने पर हिन्दू व्यक्ति निराशा की हालत में यह सोच कर आत्महत्या की ओर प्रवृत्त हो जाता है कि इस जन्म में अमुक चीज नहीं मिली, तो उसे पाने के लिए मैं अगला जन्म लेकर वापस आऊंगा. यह सोच प्रेम में नाकाम प्रेमी जोड़ों में आमतौर पर देखी जाती है. जबकि पाश्चात्य देशों या मुस्लिम देशों के लोग ऐसा नहीं सोचते क्योंकि उनके किसी धर्मग्रन्थ में यह नहीं लिखा है कि उनका कोई अगला जन्म होगा. वह वर्तमान जन्म में ही विश्वास रखते हैं. जो है बस यही एक जीवन है. मुस्लिम या ईसाई धर्म से जुड़े धर्मग्रन्थ अगले जन्म की कोई गारन्टी नहीं देते. उनकी धर्म-पुस्तकों में पुनर्जन्म की कोई बात नहीं लिखी है. लिहाजा वह इसी जीवन में अपनी हर इच्छा को पूरा करना चाहते हैं. वे जीवन को अन्त तक जीना चाहते हैं और दुनिया का हर कोना, हर रहस्य जानने की इच्छा रखते हैं. वह चाहते हैं कि उनका जीवन खूब लम्बा हो, और वह इसे भरपूर तरीके से इन्जॉय करें क्योंकि उनका मानना है कि इस खूबसूरत दुनिया में वे दोबारा कभी नहीं आएंगे. जीवन के किसी क्षेत्र में नाकाम होने पर वह इतने उदासीन नहीं होते कि आत्महत्या कर लें, बल्कि वे अपना रास्ता बदल कर दूसरा लक्ष्य निर्धारित कर लेते हैं और उसको पाने की ओर चल पड़ते हैं. ये न सही, वह सही, वह न सही, कुछ और सही, मगर जिन्दगी भरपूर जीना है. पूरी जीना है. हताशा या निराशा में आत्महत्या का विचार तक उसे नहीं छूता. मगर हिन्दू धर्मग्रन्थों में पुनर्जन्म की अवधारणा है और यही अवधारणा उनके लिए जीवन के मूल्य को कम कर देती है. यही अवधारणा आत्महत्या की ओर प्रेरित करती है. यही अवधारणा हताशा, निराशा, अवसाद से निकलने नहीं देती और मनुष्य यह सोच कर आत्महत्या की ओर प्रेरित हो जाता है कि इस जीवन में कुछ नहीं मिला तो चलो इसे खत्म करो और अब अगले जन्म में सपने पूरे करेंगे. ऐसी अवधारणा में विश्वास रखने वाले इस जीवन को भरपूर जीने की बजाय अगले जन्मों को सुधारने के लिए पूजा-पाठ, व्रत, तप में भी लगा रहता है.

स्मार्ट घड़ी पहन कर परेशान हुए सफाई कर्मचारी

आत्महत्या के आंकड़ों पर गौर करें तो विश्व में ईसाई और मुस्लिम लोगों में आत्महत्या की घटनाएं बेहद कम हैं, क्योंकि वह मानते हैं कि जीवन बस एक बार ही मिलता है और यही वजह है कि वह अपने जीवन से प्रेम करते हैं, उसे किसी हाल में खोना नहीं चाहते, जबकि हिन्दू समाज में आत्महत्या की घटनाएं सबसे ज्यादा हैं. इसका मुख्य कारण है उनके धर्म में निहित पुनर्जन्म का कौन्सेप्ट. हम जीवन भर धार्मिक मान्यताओं को ढोते हुए कुंए के मेढ़क बने रहते हैं और पश्चिमी देशों के लोग पूरी दुनिया की सैर कर डालते हैं, क्योंकि वह मानते हैं कि जीवन एक बार मिला है तो इसी में सबकुछ देख लेना है. जबकि हम हिन्दुस्तानियों के दिमाग में धर्म ने यह बात ठोंक-ठोंक कर बिठा दी है कि इस जन्म में नहीं देखा तो क्या हुआ, अगले जन्म में देख लेंगे. मगर अगला जन्म होगा, इस बात की क्या गारन्टी? क्या सबूत?
यही नहीं, धर्म ने हमें पाप और पुण्य के ऐसे मकड़जाल में फंसा रखा है कि हम जीवन भर छटपटाते रहते हैं. हम यह बात समझना ही नहीं चाहते कि हमारे धार्मिक गुरु हमारे आगे ‘पाप’ की जो परिभाषा रख रहे हैं वह इसी धरती पर, इसी काल में किसी और समाज में, किसी और राष्ट्र में पाप नहीं माना जाता है. उदाहरण के लिए पतिव्रता या पत्नीव्रता होना ही श्रेष्ठ है. शादीशुदा पुरुष या शादीशुदा स्त्री के लिए पर-स्त्री या पर-पुरुष को देखना भी पाप है, ऐसा हमें बचपन से  परिवार द्वारा, धर्म द्वारा, समाज द्वारा सिखाया जाता है, हमारे दिमाग में बिठा दिया जाता है. परन्तु इसी भारत-भूमि पर एक पुरुष का एक से अधिक स्त्रियों के साथ या एक स्त्री का एक से अधिक पुरुषों के साथ संसर्ग को गलत नहीं माना गया है. स्वयं हिन्दू धर्म में ही एक स्त्री एक से अधिक पुरुषों के साथ सम्बन्ध रख सकती थी (द्रौपदी), वहीं एक पुरुष एक से अधिक स्त्रियों के साथ सम्बन्ध रख सकता था (राजा दशरथ). आज भी कई आदिवासी जनजातियों में एक से अधिक सम्बन्ध बनाये जाते हैं और उनके समाज में मान्य हैं. धर्म या समाज से यह सवाल कोई नहीं पूछता कि जब वह तब पाप नहीं था, तो अब पाप कैसे हो गया? वहीं धर्म और समाज इसे पाप की संज्ञा देकर युवाओं को ऐसा अपराधग्रस्त कर देता है कि वह जीवन की खूबसूरती से विमुख होकर, बदनामी के डर से मौत को गले लगा बैठते हैं.

इसी कड़ी में कल आगे पढ़िए- कैसे फांसी का फंदा बन जाते हैं सामाजिक बंधन….

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