Download App

5 टिप्स: घर पर ऐसे रखें कलर्ड बालों का ख्याल

आजकल लोग फैशनेबल दिखने के लिए कई तरह की चीजें अपनाते हैं, जिनमें सबसे पहले नाम बालों का आता है. लोग बालों की रिबांडिंग, स्मूदनिंग और ब्लीचिंग या कलर करवाते है, लेकिन वह कलर या ब्लीचिंग ज्यादा दिनों तक नही चलता और वह बालों को खराब करना शुरू कर देता है. जिसकी वजह से आपके बालों के साथ-साथ लुक भी खराब हो जाता है. और इसीलिए आज हम आपको ब्लीच या कलर किए हुए बालों की केयर कैसे करें यह बताएंगे.

1. नो-हीट स्टाइलिंग तकनीक का करें इस्तेमाल

जैसा कि कोई है जो लोग अपने बालों को लगभग रोजाना स्ट्रेट करते हैं, उनके बाल जल्दी डैमेज हो जाते हैं. इसलिए कोशिश करें हर रोज स्ट्रेटनिंग मशीन का इस्तेमाल करने की बजाय ड्राई प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करें, जिससे आपके बालों को कोई नुकसान न पहुंचे.

निखरी त्‍वचा पाने के 4 बेहतरीन टिप्स

2. बालों को कम वौश करें.

ड्रायर का इस्तेमाल करें लेकिन कम करें, जैसे कि आप अगर रोजाना नहाते हैं तो बालों को रोजाना नही धोएं. क्योंकि जितना आप बालों को कम धोएंगी उतना ही आप ड्रायर का कम इस्तेमाल करेंगी. साथ ही बालों पर नरिशमेंट के लिए औयल जरूर लगाएं.

3. हेयर ट्रीटमेंट का करें इस्तेमाल

हेयर ट्रीटमेंट से आपके बालों को केयर मिलता हैं, जो डैमेज बालों को नरिशमेंट के साथ-साथ एक शाइन भी देता है. इससे आपके बाल बिना ब्लीचिंग के भी सुंदर दिखते हैं. जैसे आर्गन औयल भी बालों को नरिशमेंट देने का काम करता है.

निखरी त्‍वचा पाने के 4 बेहतरीन टिप्स

4. हेयर की शाइन लाएं वापस

बालों को ब्लीच करने से शाइन उड़ जाती है, इसलिए बालों की शाइन वापस लाने के लिए रोजाना सुबह अपने बालों एक अच्छा हेयर स्प्रे लगाएं, जो बालों की शाइनिंग वापस ला सके.

  1. 5. अपने हेयर को करें टोन

जब तक आपके बाल नेचुरली कूल एंड टोंड न हों, तब तक बालों को टोन करें. बालों की टोनिंग चाहें तो आप अपने स्टाइलिस्ट से करा सकती हैं, वरना घर पर भी आप अपने बालों की टोनिंग कर सकती हैं. लेकिन सावधान रहें अगर आपके पास बालों की टोनिंग करने के लिए सही शैम्पू नही है तो घर पर बालों की टोनिंग करने से बचें.

घर है या जेल

नईनवेली पत्नी उर्मि को पा कर मोहन बहुत खुश था. हो भी क्यों न, आखिर हूर की परी जो मिली थी उसे. सच में गजब का नूर था उर्मि में. अगर उसे बेशकीमती पोशाक और लकदक गहने पहना दिए जाते तो वह किसी रानीमहारानी से कम न लगती. लेकिन बेचारी गरीब मांबाप की बेटी जो ठहरी, तो कहां से उसे यह सब मिलता भला, पर सपने उस के भी बहुत ऊंचेऊंचे थे.

अब सपने तो कोई भी देख सकता है न. तो बेचारी वह भी ऊंचेऊंचे सपना देखती थी कि उस का राजकुमार भी सफेद छोड़े पर चढ़ कर उसे ब्याहने आएगा और उसे दुनियाभर की खुशियों से नहला देगा.

लेकिन जब उर्मि ने अपने दूल्हे के रूप में मोहन को देखा तो उस का मन बुझाबुझा सा हो गया क्योंकि मोहन उस के सपनों के राजकुमार से कहीं भी मैच नहीं बैठ रहा था. खैर, चल पड़ी वह अपने पति मोहन के साथ जहां वह उसे ले गया.

‘‘जब शादी हो ही गई है तो अब अपनी जिम्मेदारी भी संभालना सीखो…’’ पिता का यह हुक्म मान कर मोहन उर्मि को ले कर शहर आ गया और काम की तलाश करने लगा.

लेकिन मोहन को कहीं भी कोई ढंग का काम नहीं मिल पा रहा था. दिहाड़ी पर मजदूरी कर के वह किसी तरह कुछ पैसे कमा लेता, मगर उतने से क्या होगा और दोस्त के घर भी वह कितने दिन ठहरता भला?

आखिर मोहन को काम न मिलता देख उस दोस्त ने सलाह दी कि क्यों न वह बड़ी सब्जी मंडी से सब्जियां ला कर बेचे. इस से उस की अच्छी कमाई हो जाएगी और रोज काम न मिलने की फिक्र भी नहीं रहेगी.

किसी तरह जोड़ेजुटाए पैसों से मोहन बड़ी सब्जी मंडी जा कर सब्जियां खरीद लाया और उन्हें लोकल बाजार में जा कर बेचने लगा.

अब मोहन का रोज का यही काम था. अंधेरे मुंह सुबहसवेरे उठ कर वह बड़ी सब्जी मंडी चला जाता और वहां से थोक भाव में खूब सारी फलसब्जियां खरीद कर उन्हें लोकल बाजार में जा कर बेचता.

अब मोहन की कमाई इतनी होने लगी थी कि पतिपत्नी के लिए अच्छे से दालरोटी जुट जाती थी. बेचारा मोहन, जब फलसब्जियां बेच कर थकाहारा घर आता तो उस के माथे पर पसीने का मुकुट और सीने में धड़कनों का जंगल होता, लेकिन फिर भी वह अपनी खूबसूरत पत्नी का मुखड़ा देख कर अपनी सारी थकान भूल जाता.

लेकिन उस की उर्मि जाने उस से क्या चाहती थी. वह कभी खुश ही नहीं रहती थी.

नहीं, वैसे तो वह खुश रहती थी, पर मोहन को देखते ही ठुनकने लगती थी कि उसे क्याक्या कमी है.

बेचारा मोहन हर तरह से कोशिश करता कि उर्मि को खुश रखे, पर उस की मांगें रोजाना बढ़ती ही जाती थीं.

मोहन मेहनत के चार पैसे इसलिए ज्यादा कमाना चाहता था ताकि उर्मि को ज्यादा से ज्यादा खुश रख सके, मगर उर्मि को इस बात की जरा भी परवाह नहीं थी. वह तो अपने ही पड़ोस के एक बांके नौजवान धीरुआ के साथ नैनमटक्का कर रही थी.

तेलफुलेल, चूड़ी, बिंदी वगैरह बेचने वाला धीरुआ पर उस का दिल आ गया था. जब भी वह उसे देखती, उसे कुछकुछ होने लगता.

सोचती, काश, धीरुआ उस का पति होता तो कितना मजा आता. पता नहीं, क्यों उस के मांबाप ने उस से 10 सालसे भी ज्यादा बड़े मोहन के साथ उसे ब्याह दिया?

उधर धीरुआ भी जब उर्मि को देखता तो देखता रह जाता. उस के गठीले बदन के उभार को देख कर उस के मुंह से लार टपकने लगती. उसे लगता, कैसे वह उसे अपने ताकतवर हाथों में समेट ले और फिर कभी छोड़े ही न. और वैसे भी वह अभी तक कुंआरा था.

जब भी उर्मि उस की दुकान पर आती, धीरुआ उसे ही निहारते रहता. यह बात उर्मि भी समझ रही थी इसलिए तो बहाना बना कर वह उस की दुकान पर अकसर जाती रहती थी.

धीरुआ अपने मोबाइल फोन में उर्मि को बढि़याबढि़या प्यार वाले गाने सुनाता और वीडियो भी दिखाता. प्यार वाले गाने सुन कर वह ऐसे मंत्रमुग्ध हो जाती कि पूछो मत. वह खुद को उस गाने की हीरोइन ही समझने लगती और धीरुआ को हीरो.

एक दिन उर्मि ने ठुनकते हुए मोहन से मोबाइल फोन की मांग कर दी. हैसियत तो नहीं थी बेचारे की, लेकिन फिर भी एक सस्ता सा मोबाइल, जिस से सिर्फ बात हो सकती थी, उर्मि के लिए खरीद लाया.

मोबाइल फोन देख कर उर्मि बहुत खुश तो नहीं हुई, पर लगा चलो बात तो होगी न इस से. अब उस का जब भी मन करता, धीरुआ को फोन लगा देती और खूब बातें करती. पर अपने पति मोहन से कभी सीधे मुंह बात नहीं करती थी.

न जाने क्यों उर्मि बातबात पर मोहन पर चढ़ जाती और बेचारा मोहन भी उस के गुस्से को शरबत समझ कर चुपचाप हंसतेहंसते पी जाता.

सोचता, उम्र कम है इसलिए समझ भी थोड़ी कम है. मगर उसे तो मोहन जरा भी भाता ही नहीं था. उस का दिल तो अपने आशिक धीरुआ के दिल से जा कर अटक गया था.

किसी तरह हिचकोले खाते हुए मोहन और उर्मि की गृहस्थी चल रही थी. लेकिन कहते हैं न, वक्त कब करवट ले, कह नहीं सकते. अचानक एक दिन लोगों में हड़कंप देख कर मोहन चौंक गया. देखा तो सब अपनेअपने सामान समेट कर भागने लगे हैं.

‘‘अरे, क्या हुआ भाई?’’ मोहन ने पास में अपनी सब्जियां समेट रहे सब्जी वाले से पूछा.

‘‘अरे, क्या हुआ क्या, तुम भी अपना सामान जल्दी से उठा कर भागो. तुम देख नहीं रहे कब्जा हटाने के लिए नगर प्रशासन का दस्ता आया हुआ है,’’ उस सब्जी वाले ने कहा.

‘‘नगर प्रशासन का दस्ता… पर वह क्यों भाई?’’ मोहन ने उस सब्जी वाले से हैरानी से पूछा.

‘‘क्योंकि यहां सब्जियां बेचना गैरकानूनी है,’’ झुंझलाते हुए उस सब्जी वाले ने कहा.

‘‘गैरकानूनी… पर यहां शहर के बीचोंबीच कुछ लोगों ने जो मौल और होटल बना रखे हैं, वे भी आधे से ज्यादा सरकारी जमीन पर हैं तो उन्हें ये प्रशासन वाले क्यों कुछ नहीं कहते? क्या इन लोगों पर कभी कोई कार्यवाही नहीं होती? हम गरीब ही मिले हैं इन्हें सताने को?’’ मोहन ने गुस्से से कहा.

‘‘अरे भाई, वे अमीर लोग हैं. पैसा और पहुंच बहुत है उन की. फिर उन के खिलाफ क्यों कोई कार्यवाही होने लगी? चल, मैं तो चला, तू भी निकल ले जल्दी से,’’ कह कर वह सब्जी वाला चलता बना.

मोहन भी खुद में भुनभुनाते हुए अपनी सब्जियां समेटने लगा, लेकिन तभी किसी की कड़क आवाज से वह कांप उठा और उस के हाथ थरथर कांपने लगे.

‘‘क्यों बे, अब तुझे क्या अलग से न्योता देता… हां, बोल?’’ कह कर उस में से एक ने उस की टोकरी में ऐसी लात मारी कि वह लुढ़कती हुई दूर चली गई. सारे टमाटर सड़क पर छितरा गए.

तभी एक दूसरा अफसर उस की तरफ बढ़ा ही था कि मोहन हाथ जोड़ कर विनती करते हुए कहने लगा, ‘‘साहब, मैं अभी उठाए लेता हूं सारी सब्जियां, दया माईबाप दया…’’

लेकिन मोहन की बातों को अनसुना कर एक बड़े अफसर ने कड़क आवाज में कहा, ‘‘इन का तो यह रोज का नाटक है. जब तक इन्हें सबक नहीं सिखाओगे, समझेंगे नहीं,’’ कह कर उस ने उस की बचीखुची सब्जियां भी फेंक दीं.

बेचारा मोहन उन सब के सामने गिड़गिड़ाता रह गया. वह अपने आंसू पोंछते हुए जो भी सब्जियां बची थीं, ले कर घर चला गया, पर वहां भी उर्मि की जहरीली बातों ने उसे मार डाला.

‘‘तो क्या करूं… बोल न? क्या गरीब होना मेरी गलती है या वहां जा कर सब्जियां बेच कर मैं ने कोई गुनाह कर दिया, बोलो?’’ मोहन रोंआसी आवाज में बोला.

‘‘वह सब मुझे नहीं पता… तुम चोरी करो, डकैती करो, जेब काटो चाहे जो भी करो मुझे तो बस पैसे चाहिए घर चलाने के लिए,’’ जख्म पर महरम लगाने के बदले उर्मि अपनी बातों से उसे और जख्म देने लगी.

अब क्या करता बेचारा, पैसे तो थे नहीं जो फिर से कोई धंधा शुरू करता. कहीं सचमुच में उर्मि उसे छोड़ कर भाग न जाए, इस वजह से मोहन ने गलत रास्ता अख्तियार कर लिया.

अब सब्जियां बेचने के बजाय लोगों की जेबें काटने लगा और छोटीमोटी चोरियां भी करने लगा.

शुरूशुरू में तो मोहन को बहुत बुरा लगता था ये सब काम करने में, लेकिन फिर धीरेधीरे उसे भी यह सब करने में मजा आने लगा.

घर में सामानपैसा आते रहने से उर्मि भी अब खुश रहने लगी थी. उस के ठाठ देख आसपड़ोस की औरतें जल मरतीं और उर्मि उन्हें देख और इतराती. लेकिन उन के पास यह सुख भी ज्यादा दिनों तक टिका न रह सका.

एक दिन मोहन चोरी करते हुए पुलिस के हत्थे चढ़ गया और उसे जेल भेज दिया.

मोहन के जेल जाने से उर्मि को कोई खास फर्क नहीं पड़ा, बल्कि उस की तो और मौज हो गई. अब वह खुल कर धीरुआ के साथ आंखें चार करने लगी.

धीरुआ उसे जबतब अपने घर ले जाता और दोनों खूब मस्ती करते. अपनी मोटरसाइकिल पर वह उर्मि को खूब घूमाताफिराता, सिनेमा दिखाता. जब लोग कुछ कहते तो उर्मि उन्हें दोटूक जवाब दे कर चुप कर देती.

इधर बिना गुनाह साबित हुए ही मोहन महीनों तक जेल में पड़ा सड़ता रहा, क्योंकि कोई उस की जमानत कराने नहीं आया इसलिए. जब जान लिया उर्मि ने कि अब मोहन नहीं आने वाला, तो एक दिन वह धीरुआ के साथ भाग गई.

बिना गुनाह साबित हुए ही महीनों जेल में गुजारने की बात जब एक कैदी दोस्त ने सुनी तो उसे मोहन पर दया आ गई. छूटते ही उस कैदी दोस्त ने मोहन की जमानत तो करवा दी, लेकिन महीनों जेल में पड़े रहने से वह बहुत कमजोर हो गया. जब पत्नी के बारे में जाना तो उस का दिल और टूट गया. लगा जिस के लिए उस ने इतना सबकुछ सहा, वही उस का साथ छोड़ गई.

अब मोहन बीमार और बेसहारा हो गया था. न तो अब वह कोई काम करने लायक रहा और न ही चोरीजेबकतरी के ही लायक रह गया. कोई कुछ दे जाता तो खा लेता, वरना भूखे पेट ही सो जाता. उसे लग रहा था कि उस के लिए तो जेल भी वैसी ही थी जैसा घर.

जानिए गर्म पानी पीने के 6 फायदे

जीने के लिए खाने से कहीं ज्यादा जरूरी है पानी. जानकारों का मानना है कि अच्छी सेहत के लिए 8 से 10 ग्लास पानी जरूरी है. पर क्या आपको पता है कि गर्म पानी पीने से सेहत को कई तरह के फायदे पहुंचते हैं. शरीर की कई बीमारियों में गर्म पानी पीना काफी लाभकारी होता है. इस खबर में हम आपको गर्म पानी पीने के फायदे बताएंगे.

बढ़ती उम्र थम जाए

चेहरे की झुर्रियों में गर्म पानी का सेवन काफी फायदेमंद होता है. अगर आप अपनी झुर्रियों के निजात पाना चाहती हैं तो आज ही से गर्म पानी पीना शुरू कर दें. कुछ ही हफ्तों में स्किन में कसाव आने लगेगा और स्किन चमकदार भी हो जाएगी.

ये भी पढ़ें : गर्मी में रहना है सुपर कूल तो इन 6 चीजों का करें सेवन

 बौडी करे डिटौक्‍स

गर्म पानी पीने से बौडी डिटौक्स होती है. आम भाषा में समझें तो शरीर की सारी अशुद्धियां निकल जाती हैं. गर्म पानी पीने से शरीर का तापमान बढ़ने लग जाता है, जिससे पसीना आता है और इसके माध्यम से शरीर की अशुद्धियां दूर हो जाती हैं.

ये भी पढ़ें : कम हो रहे स्पर्म काउंट को ऐसे बढ़ाएं

पेट की परेशानी रहे दूर

पाचन क्रिया के लिए गर्म पानी का सेवन लाभकारी होता है. खाने के बाद गर्म पानी पीने की आदत डाल लें. इससे खाना जल्दी पच जाएगा, पेट हल्का रहेगा और साथ में गैस की समस्या से भी राहत मिलेगी.

इन आसान उपायों से ठीक करें पेट की परेशानियां

चमकदार होते हैं बाल

बालों के लिए भी गर्म पानी का सेवन काफी फायदेमंद होता है. इससे बाल चमकदार होते हैं. बालों के ग्रोथ के लिए भी गर्म पानी काफी असरदार होती है.

बालों का ख्याल रखने में मदद करेंगी ये आसान टिप्स

जोड़ों का दर्द करें दूर

जोड़ों के दर्द में गर्म पानी काफी असरदार होता है. आपको बता दें कि हमारी मांसपेशियों का 80 फीसदी भाग पानी से बना हुआ है. गर्म पानी पीने से मांसपेशियों के एठन में राहत मिलती है.

जोड़ों के दर्द के लिए बेहद जरूरी है ये टिप्स

कम होता है वजन

वजन कम करने में गर्म पानी बेहद कारगर उपाय है. गर्म पानी में नींबू और शहद मिला कर लगातार तीन महीने तक पिएं. खाना खाने के बाद रोज एक ग्लास पानी पीना आपके लिए फायदेमंद होगा.

मेनका के बिगड़े सुर

अमेठी में राहुल गांधी को हराने के लिये भाजपा ने जो जाल बिछाया उसके तहत गांधी परिवार की ही मेनका और वरुण की सीटों में आपसी फेरबदल कर मेनका को सुल्तानपुर संसदीय सीट से टिकट दिया गया. जिससे गांधी परिवार पर मेनका के हमले राहुल को चुनाव हरा सकें. मेनका ने अपने शुरुआती चुनाव प्रचार में ही विवादस्पद बयान देकर अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने का काम किया है. यह भी देखना दिलचस्प होगा कि मेनका और स्मृति ईरानी के बीच से राहुल गांधी अमेठी जितने में किस तरह से सफल होते हैं.

‘हम खुले दिल के साथ आये हैं. लेकिन जब आप मुस्लिम भाजपा को वोट नहीं करते हैं तो हमारा दिल टूटता है. मैं चुनाव जीत रही हूं, पर यह जीत मुस्लिमों के बिना अच्छी नहीं लगेगी. इससे दिल खट्टा हो जाता है. फिर जब काम के लिये मुसलमान आता है तो मैं सोचती हूं कि रहने दो क्या फर्क पड़ता है’, मेनका के इस बयान ने उनकी समझदारी पर सवाल उठा दिये हैं. मेनका के बयान पर चुनाव आयोग जो भी संज्ञान ले, पर जनता में इस बयान को लेकर तीखी प्रतिक्रिया है. इस बयान से मेनका की इमेज को नुकसान हुआ है.


मेनका गांधी समझदार हैं. पुरानी राजनैतिक समझ रखती हैं. इसके बाद भी सुल्तानपुर में अपने चुनाव प्रचार में मुस्लिमों को लेकर जो बयान दिया उससे उनको लाभ की जगह नुकसान होने की संभावना अधिक है. मेनका गांधी के इस बयान की रिकार्डिंग वायरल होने के बाद चुनाव आयोग ने मेनका गांधी से जवाब मांगा है. मीडिया को जवाब देते मेनका गांधी ने कहा है ‘उनके बयान को सही से समझा नहीं गया उन्होंने किसी को धमकाया नहीं है.’ कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला कहते हैं ‘मोदी सरकार की मंत्री ने जिस तरह की बात कही है, उनके खिलाफ मुकदमा होना चाहिये.’

इमरजेंसी में था प्रमुख रोल

मेनका संजय गांधी का जन्म 26 अगस्त 1956 को हुआ था. नरेंद्र मोदी की सरकार में महिला और बाल विकास मंत्री हैं. वह एक पशु अधिकार कार्यकर्ता, पर्यावरणविद, और भारतीय राजनीतिज्ञ संजय गांधी की विधवा भी हैं. वह चार सरकारों में मंत्री रही हैं. मेनका ने कानून और पशु अधिकारों पर कई किताबें लिखी हैं. मेनका का जन्म दिल्ली में एक सिख परिवार में हुआ था. उनके पिता भारतीय सेना के अधिकारी कर्नल तरलोचन सिंह आनंद थे और उनकी मां अम्तेश्वर आनंद थीं. संजय गांधी से मेनका की मुलाकात एक पार्टी में हुई. जानपहचान रिश्तों में बदल गई. मेनका ने 23 सितंबर 1974 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय से शादी की.

इमरजेंसी में संजय के राजनीति में उदय को देखा और मेनका को उनके दौरों में लगभग हर बार उनके साथ देखा गया. संजय गांधी के हर अभियान में मेनका उनके साथ रह कर उनकी मदद करती थी. यह अक्सर कहा जाता है कि आपातकाल के दौरान संजय गांधी का अपनी मां पर पूर्ण नियंत्रण था. सरकार की शक्ति प्रधानमंत्री कार्यालय के बजाय संजय गांधी के हाथों में थी. इमरजेंसी के फैसलों में मेनका का पति संजय गांधी को पूरा समर्थन मिलता था. वह इमरजेंसी के हर फैसले में पति के साथ रहती थी. संजय जब भी बाहर होते मेनका साथ जाती थी.

गांधी परिवार से दूरी

मेनका गांधी ने 1977 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी की बुरी हार के बाद पार्टी के प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 1980 में वरुण गांधी का जन्म हुआ. मेनका सिर्फ तेईस साल की थी और उसका बेटा सिर्फ 100 दिन का था जब उसके पति संजय की एक विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. इंदिरा गांधी के साथ मेनका का रिश्ता संजय की मौत के बाद धीरे-धीरे बिखरने लगा. तब मेनका ने अकबर अहमद डम्पी के साथ राष्ट्रीय संजय मंच की स्थापना की. इसके बाद मेनका गांधी की राजनैतिक विचारधरा बदलती रही. मेनका गांधी ने लोकसभा चुनाव के लिए 1984 के आम चुनाव के लिए उत्तर प्रदेश से अमेठी निर्वाचन क्षेत्रा का चुनाव लड़ा. यहां वह अपने ही परिवार के राजीव गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ी पर राजीव गांधी से वह चुनाव हार गई.

परिवार के खिलाफ लड़ी चुनाव

1988 में मेनका गांधी वीपी  सिंह के जनता दल में शामिल हो गईं और महासचिव बनी. नवंबर 1989 में मेनका गांधी ने अपना पहला चुनाव जीता. वीपी सिंह सरकार में पर्यावरण मंत्री राज्य मंत्री बनी. मेनका ने 1992 में संगठन पीपुल फौर एनिमल्स शुरू किया. यह भारत में पशु अधिकारों एवं कल्याण के लिए सबसे बड़ा संगठन है. मेनका गांधी अंतर्राष्ट्रीय पशु बचाव की संरक्षक भी हैं. राजनीति में उनका प्रयोग हमेशा विरोधी दलों ने गांधी परिवार के खिलाफ किया. वीपी सिंह से लेकर नरेन्द्र मोदी तक यह सिलसिला चलता रहा. भाजपा की अटल सरकार और बाद में मोदी सरकार में वह मंत्री रही.

मेनका गांधी ने उत्तर प्रदेश की पीलीभीत लोकसभा सीट से अपना चुनाव लड़ा. सिख बाहुल्य सीट पर मेनका को जीत मिलती रही. 2014 के लोकसभा चुनाव में मेनका गांधी के साथ भाजपा ने उनके बेटे वरुण गांधी को सुल्तानपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ाया था. मोदी लहर में वरुण गांधी सुल्तानपुर से सासंद तो बन गये पर सुल्तानपुर से लगी अमेठी लोकसभा सीट पर उनका असर भाजपा की मदद नहीं कर सका और कांग्रेस नेता राहुल गांधी वहां से सांसद बनने में सफल रहे. भाजपा ने राहुल गांधी को चुनाव में मात देने के लिये ही वरुण गांधी को सुल्तानपुर और अभिनेत्री स्मृति ईरानी को अमेठी लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतारा था. इसके बाद भी राहुल गांधी एक लाख से अधिक वोट से चुनाव जीत गये थे.

राहुल को घेरने आई सुल्तानपुर

2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने वरुण गांधी और उनकी मां मेनका गांधी के चुनाव क्षेत्र को आपस में बदल दिया है. भाजपा ने मेनका गांधी को वरुण की संसदीय सीट सुल्तानुपर से टिकट दिया और मेनका गांधी की संसदीय सीट पीलीभीत से वरुण गांधी को टिकट दिया है. मां-बेटे की सीटों में फेरबदल करके भाजपा अमेठी में कांग्रेस नेता राहुल गांधी को हराना चाहती है. भाजपा के चुनावी चाणक्य को लगता है कि गांधी परिवार के खिलाफ वरुण गांधी से प्रभावी बयानबाजी और भावुक अपील मेनका गांधी कर सकती हैं.

ऐसे में अगर मेनका ने सही से गांधी परिवार को कठघरे में खड़ा कर परिवार की इमेज को नुकसान पहुंचा दिया तो राहुल गांधी को अमेठी में हारना सरल हो जायेगा. राहुल मेनका और स्मृति ईरानी के बीच फंसकर चुनाव हार जाएंगे. मेनका ने जिस तरह से सुल्तानपुर में वोट के लिये मुस्लिम समुदाय को लेकर टिप्पणी की है उससे वह परेशानी में घिर गई हैं. अपने ऐसे भाषण से वह राहुल का नुकसान कर पाये ना कर पाये पर अपना नुकसान जरूर कर सकती हैं.

डरती है भाजपा कन्हैया से

बिहार के बेगूसराय में 9 मार्च को कन्हैया ने पर्चा दाखिल किया तो उन के पीछे उमड़ी बेतहाशा भीड़ ने पटना से ले कर दिल्ली तक को चौंका दिया. चौंकाया ही नहीं बल्कि भयभीत कर दिया. बौलीवुड से ले कर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के कई छात्र नेता बेगूसराय में कन्हैया की रैली में नजर आ रहे थे. रैली में जिग्नेश मेवाणी, गुरमेहर, स्वरा भास्कर, शबाना आजमी, जावेद अख्तर, शेहला राशिद जैसे पोपुलर चेहरे मौजूद थे. जिधर देखो उधर ही भीड़ लाल झंडों के साथ नजर आ रही थी.

कन्हैया बेगूसराय लोकसभा सीट से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार हैं और भाजपा के गिरिराज सिंह उन के सामने हैं.

गिरिराज सिंह बेगूसराय से मौजूदा सांसद हैं. माथे पर तिलक और जुबान पर हिंदुत्व का जाप करने वाले गिरिराज सिंह का बड़बोलापन सुर्खियों में रहा है. इन दोनों नेताओं के बीच दिलचस्प मुकाबला देखने को मिल रहा है.

दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे कन्हैया कुमार फरवरी 2016 से उस वक्त से सुर्खियों हैं जब उन पर कश्मीर की कथित आजादी के नारे लगाने के आरोप चस्पा हुए थे और बाद में देशद्रोह के आरोप में जेल भेज दिया गया था. हालांकि बाद में उन की जमानत हो गई थी.

कन्हैया तब से केंद्र सत्ता की ताकत से टक्कर ले रहे हैं. भाजपा और संघ के विचारों को लगातार चुनौती दे रहे हैं. सत्ता भी उन ने घबरार्ई हुई है इसलिए झूठों की सेना को यह चेहरा रास नहीं आ रहा है. वह कट्टरपंथियों के लिए किरकिरी बने हुए हैं.

ये भी पढ़ें : पूर्वांचल में मोदी मैजिक के बजाय निरहुआ इफेक्ट का सहारा

कन्हैया के खौफ से केंद्र सरकार पिछले दो ढाई साल से उन्हें हर मोर्चे पर घेरने की कोशिशें करती दिखाई दे रही है. भाजपा उन्हें हर संभव रोकने के षड्यंत्र में जुटी दिखार्ई दी है. कन्हैया को देशद्रोही साबित करने की पूरी कोशिशें की जा रही हैं.

गिरिराज सिंह ही नहीं, दिल्ली से भी उन्हें घेरने और रोकने के पूरे प्रयास किए गए. जेएनयू में देश विरोधी नारे लगाए जाने के मामले में कन्हैया कुमार समेत अन्य के खिलाफ बिना दिल्ली सरकार से मंजूरी लिए चार्जशीट दाखिल करने पर दिल्ली पुलिस को अदालत की फटकार सुननी पड़ी. केंद्र के अधीन दिल्ली पुलिस ने आननफानन में कन्हैया के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल कर दिए थे.

अदालत को कहना पड़ा कि इस मामले में पुलिस इतनी जल्दबाजी क्यों कर रही है. कोर्ट ने कहा कि जब तक दिल्ली सरकार चार्जशीट दायर करने की मंजूरी नहीं देती, तब  तक हम इस पर संज्ञान नहीं लेंगे.

दिल्ली पुलिस केंद्र सरकार के अधीन है इसलिए विपक्ष का आरोप है कि कन्हैया को जानबूझ कर रोकने की कोशिश की जा रही है ताकि वह चुनाव न लड़ पाए और जैसेतैसे अयोग्य घोषित किया जा सके.

दरअसल 9 फरवरी 2016 को जेएनयू कैंपस में अफजल गुरु और मकबूल भट्ट के फांसी के विरोध में आयोजित कार्यक्रम के दौरान कथित देश विरोधी नारे लगाने के मामले में पुलिस ने पटियाला हाउस कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की थी. पुलिस ने उस वक्त दिल्ली के वसंत कुंज थाने में कन्हैया कुमार, उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य के खिलाफ मामला दर्ज कर उन्हें गिरफ्ïतार किया था. बाद में सभी आरोपियों को दिल्ली हाईकोर्ट ने सशर्त जमानत दे दी थी.

देशद्रोह के मामले में सीआरपीसी की धारा 196 के तहत जब तक सरकार मंजूरी नहीं दे देती तक तक कोर्ट चार्जशीट पर संज्ञान नहीं सकता.

गिरिराज सिंह अपने प्रतिद्वंद्वी कन्हैया को नीचा दिखाने और अपने कट्टर हिंदूवादी विचारों को जाहिर करने से बाज नहीं आ रहे हैं. वह अपनी सभाओं में प्रतिद्वंद्वी कन्हैया को घेरने की कोशिश कर रहे हैं. कन्हैया को देशद्रोही, पाकिस्तान समर्थक, हिंदूद्रोही जैैसी अनगिनत बातें कह कर मतदाताओं का समर्थन हासिल करने का प्रयास कर रहे हैं.

हालांकि कन्हैया के सामने आने से गिरिराज खुद घिर गए हैं. एक तो अपने विचारों को ले कर, दूसरा, पार्टी के भीतर ही अपने विरोध से.

गिरिराज सिंह का उन की पार्टी के भीतर ही विरोध खुल कर सामने आ रहा है. शुरू में लोगों ने उन की उम्मीदवारी का ही विरोध किया था.

why bjp afraid of kanhaiya

कन्हैया को वो ताकतें रोकने के षड्यंत्र रच रही है जो अमानवीय धर्म की पक्षधर है और लोकतंत्र की जगह देश को पौराणिक परंपराओं, नियमकायदों के आधार पर चलाना चाहती है. पुराणों के ऐसे नियम जो ऊंचनीच, भेदभाव आधारित हैं. ये ताकतें धर्म का राज स्थापित करना चाहती है.

कन्हैया की राह में इसलिए कांटे बोए जा रहे हैं क्योंकि वह भाजपा और संघ की अलोकतांत्रिक विचारधारा का विरोध करते हैं. जाति, धर्म के पैराकारों को ललकारते हैं. वह अपने चुनाव प्रचार में जाति, धर्म के आधार पर वोट नहीं करने की अपील करते हैं. वह कहते हैं कि देश में एक खास तरह की विचारधारा थोपने की कोशिश की जा रही है.

कन्हैया के भाषण लोगों को आकर्षित करते हैं. यह उन की वैचारिक पहचान है. जब वह बोलते हैं तो लोग सांस थाम लेते हैं. तर्क और तथ्यों से अपनी बात कहते हैं और विरोधी का मुंह बंद करा देते हैं. राजनीतिक तौर पर परिपक्व कन्हैया को देश की राजनीति और सामाजिक समझ गहरी है. उन्होंने सड़ीगली सामाजिक व्यवस्था देखी ही नहीं, स्वयं झेली हैं.

ये भी पढ़ें : राष्ट्रवाद पर भारी पड़ती जाति

कन्हैया के सवालों पर भाजपा घबराती है. भाजपा को डर इसलिए है क्योंकि कन्हैया राजनीति के परंपरागत ढांचे में हस्तक्षेप कर रहे हैं. वह सदियों पुरानी जमीजमाई ब्राह्ïमणवादी ताकतों की बेखौफ हो कर पोल खोल रहे हैं.

कन्हैया वे मुद्दे उठाते हैं जिन से देश की जनता चिंतित हैं. संवैधानिक मूल्यों और भारतीय संविधान के लिए खतरा, बेरोजगारी, धर्मांधता, जातीय भेदभाव, असमानता, अमीरीगरीबी, मौब लिंचिंग, अभिव्यक्ति की आजादी, किसानों की आत्महत्या. इन मुद्दों से भाजपा और कांग्रेस को भी परहेज है इसलिए यह युवा नेता इन के लिए खतरा हैं.

कन्हैया कुमार जिस जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में पढे हैं वह शुरू से ही वामपंथी विचारों का गढ रहा है. यहां आजादी के नारे का मतलब तमाम पुरातनपंथी, सामंतवादी और दमनकारी व्यवस्थाओं से आजादी है. जेएनयू में छात्रों के बीच रातरात भर कैंपस के ढाबों में राजनीतिक, सामाजिक बहसों का दौर चलता रहा है.

केंद्र में भाजपा की सरकार आने के बाद राजनीतिक, सामाजिक विमर्श और बहसों के ऐसे केंद्रों को नेस्तनाबूद करने की कोशिशें शुरू हो गईं. बदले में गोरक्षा, वंदेमातरम, राममंदिर निर्माण, झूठे राष्टवाद, देशभक्ति जैसी दुकानों को खुल कर प्रोत्साहन दिया जाने लगा. धर्म के नाम पर नफरत का कारोबार परवान चढाने वालों को अवतार, उद्घारक, मसीहा घोषित कर दिया गया.

ये भी पढ़ें : भाजपा की कमजोर कड़ी होंगी अनुप्रिया पटेल

यानी देश को आगे के बजाय सैंकड़ों साल पीछे की ओर ले जाने वाली व्यवस्था को लागू करने करने के प्रयास होने लगे. कन्हैया कुमार ने ऐसी व्यवस्था और उस के पैरोकारों को चुनौती देनी शुरू कर दी.

कन्हैया के खिलाफ नकारात्मक प्रचार की आंधी चलाई गई. मानो वह कोई बहुत बड़ा अपराधी है. वह झूठे राष्टवादियों से कहीं अधिक सच्चा और पक्का देशभक्त हैं. उन में देशभक्ति का दिखावा नहीं है.

असल में जब शासक विचारों से डरने लगे, उदार लोकतांत्रिक विचारकों पर हमलावर हो जाए तो इस का अर्र्थ है वे भयभीत हैं. हर नागरिक को अपने विचारों के अनुसार राजनीतिक गतिविधियां करने की आजादी है और सामान्य रूप से अपनी बात को कहने की स्वतंत्रता है, यह सब कुछ हमें संविधान, लोकतंत्र और उन से उपजी संस्थाओं से मिलता है पर ‘वसुधैव कुटुंबकम का मंत्र जपने वाले लोग अपने ही देश के नागरिकों को मौलिक अधिकारों के हनन और अपने पुरातनपंथी विचार थोपने पर आमादा है. कन्हैया जैसे नेता उन की काट है.

आलू  वड़ा

‘‘बाबू, तुम इस बार दरभंगा आओगे तो हम तुम्हें आलू वड़ा खिलाएंगे,’’ छोटी मामी की यह बात दीपक के दिल को छू गई.

पटना से बीएससी की पढ़ाई पूरी होते ही दीपक की पोस्टिंग भारतीय स्टेट बैंक की सकरी ब्रांच में कर दी गई. मातापिता का लाड़ला और 2 बहनों का एकलौता भाई दीपक पढ़ने में तेज था. जब मां ने मामा के घर दरभंगा में रहने की बात की तो वह मान गया.

इधर मामा के घर त्योहार का सा माहौल था. बड़े मामा की 3 बेटियां थीं, मझले मामा की 2 बेटियां जबकि छोटे मामा के कोई औलाद नहीं थी.

18-19 साल की उम्र में दीपक बैंक में क्लर्क बन गया तो मामा की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. वहीं दूसरी ओर दीपक की छोटी मामी, जिन की शादी को महज 4-5 साल हुए थे, की गोद सूनी थी.

छोटे मामा प्राइवेट नौकरी करते थे. वे सुबह नहाधो कर 8 बजे निकलते और शाम के 6-7 बजे तक लौटते. वे बड़ी मुश्किल से घर का खर्च चला पाते थे. ऐसी सूरत में जब दीपक की सकरी ब्रांच में नौकरी लगी तो सब खुशी से भर उठे.

‘‘बाबू को तुम्हारे पास भेज रहे हैं. कमरा दिलवा देना,’’ दीपक की मां ने अपने छोटे भाई से गुजारिश की थी.

‘‘कमरे की क्या जरूरत है दीदी, मेरे घर में 2 कमरे हैं. वह यहीं रह लेगा,’’ भाई के इस जवाब में बहन बोलीं, ‘‘ठीक है, इसी बहाने दोनों वक्त घर का बना खाना खा लेगा और तुम्हारी निगरानी में भी रहेगा.’’

दोनों भाईबहनों की बातें सुन कर दीपक खुश हो गया.

मां का दिया सामान और जरूरत की चीजें ले कर दोपहर 3 बजे का चला दीपक शाम 8 बजे तक मामा के यहां पहुंच गया.

‘‘यहां से बस, टैक्सी, ट्रेन सारी सुविधाएं हैं. मुश्किल से एक घंटा लगता है. कल सुबह चल कर तुम्हारी जौइनिंग करवा देंगे,’’ छोटे मामा खुशी से चहकते हुए बोले.

‘‘आप का काम…’’ दीपक ने अटकते हुए पूछा.

‘‘अरे, एक दिन छुट्टी कर लेते हैं. सकरी बाजार देख लेंगे,’’ छोटे मामा दीपक की समस्या का समाधान करते हुए बोल उठे.

2-3 दिन में सबकुछ सामान्य हो गया. सुबह साढ़े 8 बजे घर छोड़ता तो दीपक की मामी हलका नाश्ता करा कर उसे टिफिन दे देतीं. वह शाम के 7 बजे तक लौट आता था.

उस दिन रविवार था. दीपक की छुट्टी थी. पर मामा रोज की तरह काम पर गए हुए थे. सुबह का निकला दीपक दोपहर 11 बजे घर लौटा था. मामी खाना बना चुकी थीं और दीपक के आने का इंतजार कर रही थीं.

‘‘आओ लाला, जल्दी खाना खा लो. फेरे बाद में लेना,’’ मामी के कहने में भी मजाक था.

‘‘बस, अभी आया,’’ कहता हुआ दीपक कपड़े बदल कर और हाथपैर धो कर तौलिया तलाशने लगा.

‘‘तुम्हारे सारे गंदे कपड़े धो कर सूखने के लिए डाल दिए हैं,’’ मामी खाना परोसते हुए बोलीं.

दीपक बैठा ही था कि उस की मामी पर निगाह गई. वह चौंक गया. साड़ी और ब्लाउज में मामी का पूरा जिस्म झांक रहा था, खासकर दोनों उभार.

मामी ने बजाय शरमाने के चोट कर दी, ‘‘क्यों रे, क्या देख रहा है? देखना है तो ठीक से देख न.’’

अब दीपक को अजीब सा महसूस होने लगा. उस ने किसी तरह खाना खाया और बाहर निकल गया. उसे मामी का बरताव समझ में नहीं आ रहा था.

उस दिन दीपक देर रात घर आया और खाना खा कर सो गया.

अगली सुबह उठा तो मामा उसे बीमार बता रहे थे, ‘‘शायद बुखार है, सुस्त दिख रहा है.’’

‘‘रात बाहर गया था न, थक गया होगा,’’ यह मामी की आवाज थी.

‘आखिर माजरा क्या है? मामी क्यों इस तरह का बरताव कर रही हैं,’ दीपक जितना सोचता उतना उलझ रहा था.

रात खाना खाने के बाद दीपक बिस्तर पर लेटा तो मामी ने आवाज दी. वह उठ कर गया तो चौंक गया. मामी पेटीकोट पहने नहा रही थीं.

‘‘उस दिन चोरीछिपे देख रहा था. अब आ, देख ले,’’ कहते हुए दोनों हाथों से पकड़ उसे अपने सामने कर दिया.

‘‘अरे मामी, क्या कर रही हो आप,’’ कहते हुए दीपक ने बाहर भागना चाहा मगर मामी ने उसे नीचे गिरा दिया.

थोड़ी ही देर में मामीभांजे का रिश्ता तारतार हो गया. दीपक उस दिन पहली बार किसी औरत के पास आया था. वह शर्मिंदा था मगर मामी ने एक झटके में इस संकट को दूर कर दिया, ‘‘देख बाबू, मुझे बच्चा चाहिए और तेरे मामा नहीं दे सकते. तू मुझे दे सकता है.’’

‘‘मगर ऐसा करना गलत होगा,’’ दीपक बोला.

‘‘मुझे खानदान चलाने के लिए औलाद चाहिए, तेरे मामा तो बस रोटीकपड़ा, मकान देते हैं. इस के अलावा भी कुछ चाहिए, वह तुम दोगे,’’ इतना कह कर मामी ने दीपक को बाहर भेज दिया.

उस के बाद से तो जब भी मौका मिलता मामी दीपक से काम चला लेतीं. या यों कहें कि उस का इस्तेमाल करतीं. मामा चुप थे या जानबूझ कर अनजान थे, कहा नहीं जा सकता, मगर हालात ने उन्हें एक बेटी का पिता बना दिया.

इस दौरान दीपक ने अपना तबादला पटना के पास करा लिया. पटना में रहने पर घर से आनाजाना होता था. छोटे मामा के यहां जाने में उसे नफरत सी हो रही थी. दूसरी ओर मामी एकदम सामान्य थीं पहले की तरह हंसमुख और बिंदास.

एक दिन दीपक की मां को मामी ने फोन किया. मामी ने जब दीपक के बारे में पूछा तो मां ने झट से उसे फोन पकड़ा दिया.

‘‘हां मामी प्रणाम. कैसी हो?’’ दीपक ने पूछा तो वे बोलीं, ‘‘मुझे भूल गए क्या लाला?’’

‘‘छोटी ठीक है?’’ दीपक ने पूछा तो मामी बोलीं, ‘‘बिलकुल ठीक है वह. अब की बार आओगे तो उसे भी देख लेना. अब की बार तुम्हें आलू वड़ा खिलाएंगे. तुम्हें खूब पसंद है न.’’

दीपक ने ‘हां’ कहते हुए फोन काट दिया. इधर दीपक की मां जब छोटी मामी का बखान कर रही थीं तो वह मामी को याद कर रहा था जिन्होंने उस का आलू वड़ा की तरह इस्तेमाल किया, और फिर कचरे की तरह कूड़ेदान में फेंक दिया.

औरत का यह रूप उसे अंदर ही अंदर कचोट रहा था.

‘मामी को बच्चा चाहिए था तो गोद ले सकती थीं या सरोगेट… मगर इस तरह…’ इस से आगे वह सोच न सका.

मां चाय ले कर आईं तो वह चाय पीने लगा. मगर उस का ध्यान मामी के घिनौने काम पर था. उसे चाय का स्वाद कसैला लग रहा था.

सुसाइड- फांसी का फंदा बन जाते हैं सामाजिक बंधन

सुसाइड-आखिर क्यों जीना नहीं चाहती नई पीढ़ी

आगे पढ़े

आत्महत्या व्यक्ति के जीवन में दर्द, तनाव और अवसाद के चरम पर पहुंचने का सूचक है. आत्महत्याओं के कारण और तरीके भले अलग-अलग हों, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि जब परिवार, समाज और देश की व्यवस्था से सहारे की हर उम्मीद खत्म हो जाती है, तभी कोई व्यक्ति इस आखिरी रास्ते को चुनता है। तो क्या विकास की चकाचौंध और आगे बढ़ने की अंधी प्रतिस्पर्धा के बीच हमारे परिवार, समाज और शासन में नयी पीढ़ी को सहारा देने की शक्ति क्षीण हो रही है? क्या यह सच नहीं है कि हमारी सामाजिक मान्यताएं, सामाजिक स्तर, सामाजिक अपेक्षाएं हमारे जीवन को ऐसे बंधन में जकड़े हुए हैं, जो कभी-कभी फांसी का फंदा बन जाता है?

रितु के मामा के बेटे ने डौक्टरी का एन्ट्रेंस इग्जाम पास कर लिया था। रितु पर उसकी मां का जबरदस्त प्रेशर था कि उसे भी डौक्टर ही बनना है. उन्होंने रितु की पढ़ाई-ट्यूशन पर खूब पैसा लगाया, मगर दो साल की कोशिशों के बाद भी रितु सीपीएमटी की परीक्षा उत्तीर्ण नहीं कर पायी और उसने आत्महत्या कर ली. क्या जीवन इतना सस्ता है कि एक परीक्षा में नाकाम होने पर समाप्त कर दिया जाए? महज बीस साल की रितु ने अपने घर, बाजार और कौलेज के अलावा इतनी बड़ी और खूबसूरत दुनिया का कोई भी कोना अभी तक नहीं देखा था। उसके जीवन पर उसकी मां की, परिवार की, सामाजिक स्टेटस की अपेक्षाएं इतनी हावी हो गयीं कि उसने अपना जीवन ही खत्म कर लिया. यह कहानी सिर्फ रितु की नहीं, बल्कि इस देश के उन तमाम नौजवानों की है, जो किसी एक परीक्षा में फेल होने पर अपने समस्त जीवन को ही फेल समझ लेते हैं और फांसी का फंदा गले में डाल लेते हैं.

भारत में आज मध्यवर्ग तेजी से बढ़ रहा है. यह वर्ग अपनी हर छोटी-बड़ी जरूरत को पूरी करने की आकांक्षा पाले रहता है। इस वर्ग में बच्चों को लेकर मां-बाप की आकांक्षाएं बढ़ रही हैं. दरअसल मध्यवर्गीय मां-बाप अपने बच्चों के जरिये ही अपनी आकांक्षाएं पूरी करना चाहते हैं. इसलिए वे अपने बच्चों पर अच्छी पढ़ाई के लिए दबाव बनाने लगते हैं। कई मां-बाप तो ऐसे हैं, जो अपने बच्चों के लिए ऐसी नौकरी चाहते हैं, जिसमें खूब पैसे हों, यह देखे बिना कि उसकी पढ़ाई का दबाव बच्चा बर्दाश्त कर पाएगा या नहीं. बच्चों पर अनावश्यक दबाव बनाने का खामियाजा यह होता है कि कभी-कभी बच्चे अवसाद का शिकार हो जाते हैं और आत्महत्या जैसा खतरनाक कदम उठा लेते हैं.

बच्चे ही नहीं, बड़े और घर-गृहस्थी वाले लोग भी सामाजिक दबाव में आत्महत्या का रास्ता अपना लेते हैं. रेहान की पत्नी को शिकायत थी कि उसके परिवार का स्टेटस रेहान के बड़े भाई के परिवार के स्टेटस से मेल नहीं खाता था. उसको अपने जेठ-जेठानी के घर जाने में शर्मिंदगी महसूस होती थी. लिहाजा वह रेहान पर दबाव बनाती थी कि वह ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाये. ज्यादा कमाई के चक्कर में रेहान रिश्वतखोरी में फंसता चला गया और एक दिन पुलिस के हाथों रंगेहाथों पकड़े जाने के बाद उसने मारे शर्मिंदगी के आत्महत्या कर ली.  अपने सामाजिक स्तर को लेकर जिस तरह आज का युवा परेशान है, वह उसको लगातार अवसाद और निराशा की ओर ढकेल रही है. बड़ी गाड़ी, बड़ा फ्लैट, सुख-सुविधा का हर सामान, नौकर-चाकर जैसे सपने आंखों में लेकर युवा इसको हासिल करने की जद्दोजहद में जीवन के असली सुख से लगातार दूर होते जा रहे हैं.  कभी देखा है पश्चिमी देशों के युवा सैलानियों को? वह अपना सबकुछ बेच कर जरूरत का थोड़ा सा सामान कंधे पर लिये, साधारण सूती कपड़े पहने दुनिया भर की सैर पर निकल पड़ते हैं। क्यों? क्योंकि वह 60-70 साल की छोटी सी जीवन-अवधि में इस दुनिया का ज्यादा से ज्यादा देख लेना चाहते हैं.  वे इस बात में विश्वास करते हैं कि जीवन सिर्फ एक बार ही मिलता है, इसलिए वे कुएं के मेढ़क नहीं बनना चाहते.  उनके लिए जीवन कोई एक परीक्षा पास कर लेना, या अपना सामाजिक स्तर ऊपर उठाना भर नहीं है. वह संकीर्ण दायरों से निकल कर जीवन की असली सुन्दरता देखने-जानने में रमे हैं.

दिल्ली के किशनगढ़ की आरती नाम की 19 साल की लड़की ने सड़क पर अपने साथ हो रही लगातार छेड़छाड़ से विचलित होकर (शायद खुद से घिन महसूस करके!) आत्महत्या कर ली.  उसके दिमाग में शायद बचपन से यह बिठाया गया था कि उसके साथ किसी प्रकार की शारीरिक छेड़छाड़ या भद्दा मजाक अगर होता है तो उसकी जिम्मेदार वह स्वयं है। उसे विश्वास था कि अगर वह अपनी परेशानी किसी से शेयर करेगी तो उसको ही और ज्यादा प्रताड़ित और अपमानित होना पड़ेगा. शायद आरती अपनी परेशानी के साथ अकेली पड़ गयी. यही वजहें थीं कि उसने इस परेशानी से मुक्त होने के लिए आत्महत्या को सुगम रास्ता समझा.

हमारी शिक्षा और सामाजिक मान्यताओं ने हमें इतना गुमराह कर रखा है कि हमें सही और गलत रास्ता ही दिखायी नहीं देता. हम छोटे-छोटे दायरों में बांध दिये गये हैं और उससे बाहर निकलने के लिए हम प्रश्न खड़ा करने से डरते हैं. हम विरोध से डरते हैं. एक गोत्र में विवाह को वर्जित मानना, अन्तरधर्मीय विवाह को मान्यता न होना, दलित-सवर्ण विवाह की अनुमति न होना जैसी बातों ने हमारे समाज के युवाओं को इतना हताश कर दिया है कि वे लगातार आत्महत्या की ओर अग्रसर हैं. आये-दिन देश के किसी न किसी कोने से यह खबर आ रही है कि अमुक प्रेमी ने प्रेम में असफल होकर आत्महत्या कर ली. क्या विदेशी समाज में ऐसी खबरें सुनने को मिलती हैं? नहीं, फिर हम क्यों हमारे युवाओं की जान के दुश्मन बने हुए हैं? और हमारे युवा भी क्यों इन सामाजिक मान्यताओं का विरोध करने के बजाये आत्महत्या जैसा पलायनकारी और कायरता का मार्ग पकड़ रहे हैं?

कितना करुण है कि जिनका जीवन अभी पूरा खुला-खिला भी नहीं, वे जीने से मुंह मोड़ रहे हैं! एक औस्ट्रेलियाई लेखक पीटर मायर ने इस विषय पर कुछ साल पहले ही एक किताब लिखी थी. उस किताब में मायर ने इस बात को रेखांकित किया था कि भारतीय युवाओं में आत्महत्या बढ़ रही है और हम लोग इस आंकड़े पर ध्यान ही नहीं दे रहे हैं. भारत में किसानों की आत्महत्या पर खूब चर्चा होती है, होनी भी चाहिए, लेकिन युवाओं की आत्महत्या पर कुछ नहीं होता, जबकि युवाओं की बड़ी संख्या इसका शिकार हो रही है.

वर्चस्व का मोह

नीना और राजन का गंभीरता से किसी मसले पर सलाहमशवरा करना ठीक वैसा ही हैरान कर देने वाला था जैसे हवा में दीपक का जलना. मगर आज दोनों बातचीत में इतने तल्लीन थे कि उन्हें देव के आने का पता भी नहीं चला.

‘‘इतना सन्नाटा क्यों है भई?’’

दोनों ने सिर उठा कर देखा. दोनों की ही आंखों में परेशानी के साथसाथ मायूसी भी थी.

‘‘खैरियत तो है न?’’ देव ने फिर पूछा.

‘‘हां भैया, घर में तो सब ठीक ही है…’’

‘‘तो फिर गड़बड़ कहां है?’’ देव ने राजन की बात काटी.

‘‘सोनिया की जिंदगी में भैया,’’ नीना बोली, ‘‘और वह भी बिना वजह… समझ नहीं आ रहा कैसे उस की मदद करें.’’

सोनिया नीना की खास सहेली थी और उस की ओर राजन का झुकाव भी देव की पैनी नजरों से छिपा नहीं था.

‘‘पूरी बात बताओ,’’ देव ने आराम से बैठते हुए कहा, ‘‘हो सकता है मैं कुछ मदद कर सकूं.’’

राजन फड़क उठा…

‘‘सुन नीना, पहले तो सब ठीक ही था, जीजी का इनकार आलोक के दादाजी की हत्या के बाद ही शुरू हुआ है न… तो भैया ठहरे हत्या विशेषज्ञ, जरूर यह मसला भी सुलझा देंगे.’’

नीना ने चिढ़ कर राजन की ओर देखा, ‘‘हत्या से सोनिया बेचारी का क्या लेनादेना? खैर, फिर भी भैया आप सोनिया के लिए कुछ न कुछ सुझाव तो दे ही सकते हैं,’’ नीना बोली, ‘‘आप जानते ही हैं कि सोनिया ने भी राजन के साथ ही आईआईएम अहमदाबाद की प्रवेश परीक्षा दी है और उसे भरोसा है कि वह सफल हो जाएगी. मगर उस के घर वाले चाहते हैं कि परीक्षा का नतीजा आने से पहले ही वह शादी कर ले, फिर अगर उस की ससुराल वाले चाहें तो वह पढ़ाई जारी रख सकती है… पैसे की बात नहीं है भैया, सोनिया के पापा शादी के बाद भी पढ़ाई का पूरा खर्च उठाने को तैयार हैं.’’

‘‘शादी किस से हो रही है?’’ देव ने पूछा.

‘‘अभी तो सोनिया से कहा है कि उसे कोई पसंद है, तो बता दे. वे लोग उस की भी पढ़ाई का खर्चा उठाने को तैयार हैं और अगर उसे कोई पसंद नहीं है, तो वे ढूंढ़ लेंगे.’’

‘‘यानी किसी भी कीमत पर उन्हें सोनिया की शादी करनी है,’’ देव ने फिर नीना की बात काटी, ‘‘मगर क्यों?’’

नीना ने फिर गहरी सांस ली.

‘‘इस की वजह है सोनिया की जीजी किरण का अजीब व्यवहार. किरण की पड़ोस में रहने वाले आलोक से बचपन से दोस्ती थी और दोनों की सगाई की तारीख भी तय हो चुकी थी. लेकिन अचानक किरण ने शादी करने से मना कर दिया. आलोक से ही नहीं किसी से भी. उस का कहना है कि उसे शादी से इनकार नहीं है पर उसे कुछ समय दिया जाए. घर वालों ने 2 साल से ज्यादा समय दिया, मगर किरण अभी भी और समय चाहती है. घर वाले परेशान हो गए हैं. उन का खयाल है कि उन्होंने किरण को नौकरी करने की छूट दे कर गलती की है और यही गलती वे सोनिया के साथ नहीं दोहराना चाहते.’’

‘‘दूध का जला छाछ तो फूंकेगा ही. किरण के व्यवहार की वजह क्या है?’’ देव ने पूछा.

‘‘यही तो वह नहीं बतातीं. वजह पता चल जाए तो सोनिया सब को समझा तो सकती है कि उस के साथ ऐसा कुछ नहीं है. वह पढ़ाई खत्म होने पर शादी कर लेगी पर फिलहाल आईआईएम की पढ़ाई और शादी एकसाथ करना न तो मुमकिन है और न ही मुनासिब.’’

‘‘यह तो है. वह हत्या वाली बात… तुम क्या कह रहे थे राजन?’’

‘‘किरण और आलोक की सगाई से कुछ रोज पहले आलोक के दादाजी की हत्या हो गई थी. हत्या क्यों और किस ने की यह आज तक पता नहीं चल सका,’’ नीना ने बताया, ‘‘लेकिन इस से किरण के इनकार का क्या ताल्लुक?’’

‘‘हो भी सकता है. किरण और आलोक जानेपहचाने से नाम हैं,’’ देव कुछ सोचते हुए बोला, ‘‘ये लोग सुंदर नगर में पासपास की कोठियों में तो नहीं रहते?’’

‘‘जी हां,’’ नीना बोली, ‘‘आप कैसे जानते हैं?’’

‘‘ये दोनों कालेज में मेरे से 2 साल पीछे थे और मेरे निर्देशन में दोनों ने नाटकों में अभिनय भी किया था. हमारे एक नाटक ‘चोट’ का चयन अखिल भारतीय नाटक प्रतियोगिता में होने पर हम सब दूसरे शहरों में उस के मंचन के लिए भी गए थे और तब हमारी अच्छी दोस्ती हो गई थी. मैं ने एक बार जब आलोक से पूछा था कि किरण के साथ शादीवादी करने का इरादा है तो उस ने बड़ी गंभीरता से हां कहा था.’’

‘‘शादी के लिए इनकार आलोक नहीं किरण कर रही है. हालांकि आलोक ने भी अभी शादी की बात नहीं है. काम की व्यस्तता के कारण 2-3 साल पहले उस ने आईबीएम की एजेंसी ली और मार्केट में पैर जमाने के लिए बहुत भागदौड़ कर रहा था. अब धंधा जम गया है और वह शादी कर सकता है. यह सुन कर किरण के घर वाले बेचैन हो गए हैं. भैया, आप क्या आलोक से मिल कर किरण के इनकार की वजह नहीं पूछ सकते?’’ नीना ने पूछा.

‘‘जब इनकार किरण कर रही है तो आलोक से क्यों, किरण से क्यों नहीं? मुझे किरण से मिलवा सकती हो?’’

‘‘हां, जब भी आप कहें. शादी न करने के सिवा उन्हें और किसी बात से इनकार नहीं है,’’ नीना बोली, ‘‘मेरा मतलब है किसी से मिलनेजुलने से उन्हें कोई परहेज नहीं है. क्यों न मैं कल शाम को सोनिया के घर चली जाऊं और आप मुझे लेने वहां आ जाओ.’’

‘‘ठीक है, मैं औफिस से निकलने से पहले तुम्हें फोन कर दूंगा ताकि तुम किरण से मुलाकात का जुगाड़ भिड़ा सको.’’

अगले दिन जब देव नीना को लेने पहुंचा तो वह किरण और सोनिया के ड्राइंगरूम में बैठी हुई थी.

‘‘अरे सर, आप?’’ किरण चौंकी.

‘‘आप यहां कैसे वकीलनीजी?’’ देव ने भी उसी अंदाज में कहा, फिर नीना और सोनिया की ओर देख कर बोला, ‘‘मेरे एक नाटक में यह वकील की पत्नी बनी थी तब से मैं इसे वकीलनीजी ही बुलाता हूं. चूंकि मैं नाटक का निर्देशक और सीनियर था सो किरण तो मुझे सर कहेगी ही. लेकिन सोनिया, तुम ने कभी जिक्र ही नहीं किया कि तुम्हारी जीजी अखिल भारतीय नाटक प्रतियोगिता जीत चुकी हैं.’’

‘‘नीना ने भी कभी आप के बारे में कहां बताया? इन लड़कियों को किसी और के बारे में बात करने की फुरसत ही नहीं है,’’ किरण बोली, ‘‘सर, मुझे आप से कुछ सलाह लेनी है. कभी थोड़ा समय निकाल सकेंगे मेरे लिए?’’

‘‘कभी क्यों, अभी निकाल सकता हूं बशर्ते आप 1 कप चाय पिला दें,’’ कह देव मुसकराया.

‘‘चाय पिलाए बगैर तो हम ने आप को वैसे भी नहीं जाने देना था भैया,’’ सोनिया बोली, ‘‘मैं चाय भिजवाती हूं. आप इतमीनान से दीदी के कमरे में बैठ कर बातें कीजिए. मांपापा रोटरी कल्ब की मीटिंग में गए हैं, देर से लौटेंगे.’’

‘‘और बताओ वकीलनीजी, अपने मुंशीजी, मेरा मतलब है आलोक कहां है आजकल?’’ देव ने किरण के कमरे में आ कर पूछा.

किरण ने गहरी सांस ली, ‘‘हैं तो यहीं पड़ोस में, लेकिन मुलाकात कम ही होती है…’’

‘‘क्यों? बहुत व्यस्त हो गए हो तुम दोनों या कुछ खटपट हो गई है?’’ देव ने बात काटी.

‘‘इतने व्यस्त भी नहीं हैं और न ही हमारी जानकारी के अनुसार कोई खटपट हुई है. मुझे ही कोई गलतफहमी हो गई है शायद.’’ किरण हिचकिचाते हुए बोली, ‘‘उसी बारे में आप से बात करना चाह रही थी. आप के बारे में अकसर पढ़ती रहती हूं. कई बार आप से मिलना भी चाहा, मगर समझ नहीं आया कैसे मिलूं. सर, मुझे लगता है आलोक ने अपने दादाजी की हत्या की है.’’

देव चौंक पड़ा कि तो यह वजह है शादी न करने की. लेकिन किरण से पूछा, ‘‘शक की वजह?’’

‘‘जिस रात दादाजी की हत्या हुई मुझे लगता है मैं ने आलोक को छत से कूद कर भागते हुए देखा था. लेकिन आलोक का कहना है कि वह उस समय पिछली सड़क पर हो रही अपने दोस्त की शादी के मंडप में था. दादाजी की हत्या की सूचना भी उसे वहीं मिली थी.’’

‘‘लेकिन तुम्हें लगता है कि भागने वाला आलोक ही था?’’

‘‘जी, सर हत्या का कोई मकसद भी सामने नहीं आया. न तो कुछ चोरी हुआ था और न ही दादाजी की किसी से कोई दुश्मनी थी.’’

‘‘हत्या से किसी को व्यक्तिगत लाभ?’’

‘‘सिर्फ आलोक को जो केवल मुझे मालूम है क्योंकि दूसरों की नजरों में तो दादाजी वैसे ही सबकुछ उस के नाम कर चुके थे.’’

‘‘जो तुम्हें मालूम है या जो भी तुम्हारा अंदाजा है, मुझे विस्तार से बताओ किरण. मैं वादा करता हूं मैं जहां तक हो सकेगा तुम्हारी मदद करूंगा?’’

‘‘मां का कहना था कि मुझे प्रवक्ता की नौकरी न करने दी जाए, क्योंकि  फिर मैं अपने दादाजी के फ्रिज और टीवी के शोरूम में बैठने वाले आलोक से शादी करने को मना कर दूंगी. पापा ने उन्हें समझाया कि आलोक खुद ही फ्रिज और टीवी बेचने के बजाय विदेशी कंप्यूटर की एजेंसी लेना चाह रहा है. इसी सिलसिले में कानूनी सलाह लेने उन के पास आया था. उस में कोई कानूनी अड़चन नहीं है. आलोक को बड़ी आसानी से एजेंसी मिल जाएगी और कंप्यूटर विके्रता से शादी करने में उन की लैक्चरार बेटी को कोई एतराज नहीं होगा.

‘‘मां ने फिर शंका जताई कि दादाजी अपनी बरसों पुरानी चीजों को छोड़ कर कंप्यूटर बेचने से रहे तो पापा ने बताया कि शोरूम तो दादाजी आलोक के नाम कर ही चुके हैं सो वह उस में कुछ भी बेचे, उन्हें क्या फर्क पड़ेगा. मां तो आश्वस्त हो गईं, लेकिन पापा का सोचना गलत था. दादाजी कंप्यूटर की एजेंसी लेने के एकदम खिलाफ थे. वे कंप्यूटर को फ्रिज या टीवी की तरह रोजमर्रा के काम आने वाली और धड़ल्ले से बिकने वाली चीज मानने को तैयार ही नहीं थे.

‘‘दादाजी ने शोरूम जरूर आलोक के नाम कर दिया था, लेकिन उसे चलाते अभी भी वे खुद ही थे, अपनी मनमरजी से. जिस ग्राहक को जितना चाहा उतनी छूट या किश्तों की सुविधा दे दी, कौन सा मौडल या ब्रैंड लेना बेहतर रहेगा, इस पर वे हरेक ग्राहक के साथ घंटों सलाहमशवरा और बहस किया करते थे. कंप्यूटर की एजेंसी लेने से तो उन की अहमियत ही खत्म हो जाती, जिस के लिए वे बिलकुल तैयार नहीं थे. उन्होंने आलोक से साफ कह दिया कि उन के जीतेजी तो उन के शोरूम में जो आज तक बिकता रहा है वही बिकेगा. कुछ दूसरा बेचने के लिए आलोक को उन की मौत का इंतजार करना होगा.

‘‘आलोक ने मुझे यह बात बताते हुए कहा था कि दादाजी के इस अडि़यल रवैए से मेरा कंप्यूटर विक्रेता बनने का सपना कभी पूरा नहीं होगा. मैं दादाजी का शोरूम संभालने को तैयार ही इस लालच में हुआ था कि आईबीएम की एजेंसी लूंगा वरना पापा और अशोक भैया की तरह मैं भी चार्टर्ड अकाउंटैंट बन कर उन के औफिस में बैठा रहूंगा. वैसे अभी भी मैं फ्रिजटीवी बेच कर तो रोटी कमाने से रहा. जब तक मैं अपने कैरियर का चुनाव न कर लूं किरण, मैं सगाईशादी के चक्कर में नहीं पड़ना चाहता.

‘‘मुझे उस की बात सही लगी और मैं ने उसे भरोसा दिलाया कि मैं किसी तरह सगाई टलवा दूंगी. इस से पहले कि मैं कोई बहाना खोज पाती, आलोक फिर आया. वह बहुत सहज लग रहा था. उस ने कहा कि मुझे परेशान होने की जरूरत नहीं है, सब ठीक हो जाएगा. कुछ रोज बाद हमारे सहपाठी रवि की शादी थी. आलोक उस की बारात में मेरे साथ खूब नाचा. खाने के बाद आलोक ने कहा कि रवि के सभी दोस्त उसे मौरल सपोर्ट देने को बिदाई तक रुक रहे हैं सो वह भी रुकेगा. उस ने मुझे भी ठहरने को कहा, मगर मुझे कुछ कापियां जांचनी थीं सो मैं घर वालों के साथ वापस आ गई.

‘‘आलोक के घर में एक जामुन का पेड़ है, जिस की शाखाओं ने हमारी आधी छत को घेरा हुआ है. मैं तब ऊपर छत वाले कमरे में रहती थी. आलोक और दादाजी का कमरा भी उन की छत पर था. दादाजी के सोने के बाद पेड़ की डाल के सहारे आलोक अकसर मेरे कमरे में आया करता था.’’

‘‘आया करता था यानी अब नहीं आता?’’ देव ने बात काटी.

‘‘क्योंकि दादाजी की हत्या के बाद पापा ने मुझे अकेले ऊपर नहीं रहने दिया. हां, तो मैं बता रही थी कि उस रात पत्तों की आवाज सुन कर मुझे लगा कि आलोक आ गया है. मैं बाहर आई. पत्ते तो हिल रहे थे, लेकिन छत पर कोई नहीं था. मैं ने नीचे से झांक कर देखा तो पेड़ से उतर कोई भागता नजर आया और दादाजी के कमरे से उन के नौकर राजू के चिल्लाने की आवाजें आईं कि देखो दादाजी को क्या हो गया. मैं भाग कर नीचे आई और सब को राजू के चिल्लाने के बारे में बताया. हम लोग आलोक के घर गए. दादाजी के मुंह पर तकिया रख कर किसी ने दम घोंट कर उन की हत्या कर दी थी.

‘‘राजू दादाजी के लिए दूध ले कर ऊपर जा रहा था कि गिलास पर ढक्कन की जगह रखी कटोरी गिर सीढि़यों से झनझनाती हुई नीचे चली गई. शायद उसी की आवाज सुन कर हत्यारा कहीं छिप गया था. सब उस की तलाश करने लगे. मगर मैं ने किसी को नहीं बताया कि मैं ने हत्यारे को पेड़ से उतरते और दीवार फांदते देखा था. क्योंकि मैं ने उस की शक्ल तो नहीं सिर्फ लिबास देखा था.

‘‘वैसा ही रेशमी कुरतापाजामा जैसा आलोक पहने हुए था. पापा ने मेरे छोटे भाई बंटी को फंक्शन हौल से आलोक को लाने भेजा. मेरा खयाल था कि आलोक वहां नहीं होगा, लेकिन बंटी आलोक को ले कर आ गया. गौर से देखने पर भी आलोक के कपड़ों पर पेड़ पर चढ़नेउतरने के निशान नहीं थे. और आलोक भी परिवार के अन्य सदस्यों की तरह ही हैरान था…’’

‘‘फिर तुम्हें यह शक क्यों है कि हत्यारा आलोक ही है?’’ देव ने बीच में पूछा.

‘‘क्योंकि अगले दिन जब पुलिस ने पेड़ के नीचे जूतों के निशान देखे तो वे जोधपुरी जूतियों के थे जिन्हें आलोक उस समय भी पहने हुए था. सही साइज का पता नहीं चल रहा था क्योंकि भागने की वजह से निशान अधूरे थे. आलोक शक के घेरे में आ गया, मगर उस ने अपने बचाव में रवि की शादी की वे तसवीरें दिखाई, जिन में वह उस समय तक रवि के साथ था जब तक बंटी उसे बुलाने नहीं गया था. पुलिस ने भले ही उसे छोड़ दिया हो, लेकिन मुझे लगता है कि वह आलोक ही था. एक तो पेड़ पर से चढ़नेउतरने का रास्ता उसे ही मालूम है, दूसरे दादाजी की मौत से फायदा भी उसे ही हुआ.

‘‘13वीं के तुरंत बाद उस ने एजेंसी लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी. रहा सवाल तसवीर का, तो खाने और फेरों के दरम्यान तो लगातार तसवीरें कहां खिंचती हैं सर? फोटोग्राफर भी उसी दौरान खाना खाते हैं. फंक्शन हौल घर के पीछे ही तो था. दीवार फांद कर आनेजाने और तकिए से मुंह दबा कर किसी बुजुर्ग को मारने में समय ही कितना लगता है?’’

‘‘तुम ने इस बारे में आलोक से बात की?’’

‘‘नहीं सर, आज पहली बार आप को बता रही हूं.’’

‘‘तुम ने अपनी सगाई या शादी कैसे टाली?’’

‘‘दादाजी की मृत्यु के तुरंत बाद तो सवाल ही नहीं उठता था. उस के बाद आलोक भी बहुत व्यस्त हो गया था. घर पर आता तो था, मगर पापा से सलाहमशवरा करने और मैं अपनी तरफ से उस से अकेले मिलने की कोशिश ही नहीं करती थी. साल भर बाद जब मां ने सगाई की जल्दी मचाई तो मैं ने उन से साफ कहा कि मुझे शादी से पहले कुछ समय चाहिए. आलोक के घर वाले भी उस की व्यस्तता के चलते अभी शादी करने की जल्दी में नहीं थे सो मेरे घर वाले भी मान गए.’’

‘‘और आलोक से मिलनाजुलना कैसे कम किया?’’

किरण मुसकराई, ‘‘उसे समझा दिया सर कि हमें ज्यादा मिलतेजुलते देख कर मां शादी जल्दी करवा देंगी. चूंकि आलोक भी धंधा जमने के बाद ही शादी करना चाहता था सो मान गया. वैसे भी उसे फुरसत तो थी नहीं, लेकिन अब जब भी फुरसत मिलती है आ जाता है और मां का शादी वाला राग शुरू हो जाता है. अब आप ही बताइए सर, जिस आदमी पर मैं शक करती हूं उस से शादी करना मुनासिब होगा?’’

‘‘बिलकुल नहीं. मैं कल ही इस केस की फाइल देखता हूं. मुझे दादाजी का नाम और हत्या की तारीख बताओ,’’ देव ने कहा, ‘‘तुम भी अब शादी के लिए मना मत करो. जब तक घर वाले तैयारी करेंगे, तब तक मैं हत्यारे को पकड़ लूंगा. अगर आलोक हुआ तो शादी का सवाल ही नहीं उठता और कोई दूसरा हुआ तो तुम्हारे इनकार करने की, फिर मना कर के घर में सब को परेशान करने की क्या जरूरत है?’’

‘‘जी सर.’’

रास्ते में देव ने नीना को बताया कि उस ने किरण को समझा दिया है और वह शादी के लिए मना नहीं करेगी. सोनिया को फिलहाल परेशान होने की जरूरत नहीं है.

अगले दिन देव ने कमिश्नर साहब को सारी बात बता कर केस की फाइल निकलवा ली. उस में लिखे तथ्यों के मुताबिक सुबूत न के बराबर थे, जिन के आधार पर हत्यारे को पकड़ना भूसे के ढेर में सूई ढूंढ़ने के समान था. लेकिन देव ने कमिश्नर साहब से आग्रह किया कि वे यह केस उस के सुपुर्द कर दें.

आलोक के घर वालों को दोबारा तफ्तीश की बात सुन कर पहले हैरान और फिर खुश होना स्वाभाविक ही था. सब से ज्यादा खुश आलोक लगा.

‘‘मैं अपने को जानबूझ कर व्यस्त रखता हूं सर क्योंकि जहां जरा सी फुरसत मिली, मैं

यही सोचने लगता हूं कि दादाजी की हत्या किस ने की होगी?’’

‘‘और क्यों की होगी?’’ देव ने जोड़ा.

‘‘चोरी के लिए सर दादाजी गले में सोने की मोटी चेन, उंगलियों में हीरेपन्ने की अंगूठियां, सोने की कलाई घड़ी और सोने के बटन वाले कुरते पहनते थे. उन के बटुए में भी हजारों रुपए रहते थे. कमरे में मेरा भी लैपटौप, आईपौड वगैरह पड़े थे, लेकिन इस से पहले कि चोर ये सब समेट सकता, राजू के हाथ से सीढि़यों में कटोरी गिर गई और उस की आवाज से वह डर कर भाग गया,’’ आलोक ने कहा.

‘‘पेड़ से चढ़नेउतरने का रास्ता नए आदमी को तो मालूम नहीं हो सकता?’’

‘‘यही तो परेशानी है सर, हत्या तो किसी जानपहचान वाले ने ही की है. आप को एक बात बतांऊ, पेड़ के नीचे मिले निशान मेरी राजस्थानी जूतियों से मेल खा रहे थे. मैं शक के घेरे में तो आ गया था, लेकिन उसी दिन मेरे एक दोस्त की शादी थी और हर तसवीर और वीडियो के फ्रेम में होने की वजह से मैं बच गया.’’

‘‘मैं वह अलबम और वीडियो देख सकता हूं?’’

‘‘जरूर सर. मैं रवि के घर से अलबम और वीडियो कैसेट ला कर आप को फोन करूंगा,’’ आलोक ने कहा.

कुछ देर बाद आलोक ने देव को फोन किया कि उसे अलबम तो मिल गया है, मगर वीडियो कैसेट बारबार चलाने के कारण इतनी घिस गई है कि देखने में उलझन होती है सो न जाने कहां रख दी है. ढूंढ़ने को कह दिया है.

‘‘ठीक किया. फिलहाल अलबम मेरे औफिस में ला या भिजवा सकते हो?’’

‘‘अभी भेज देता हूं सर और अगर मेरी जरूरत हो तो फोन कर दीजिएगा, मैं फौरन हाजिर हो जाऊंगा.’’

अलबम देखने के बाद देव ने किरण को फोन किया, ‘‘किरण, उस रात तुम ने भागने वाले के कपड़ों का रंग भी देखा था?’’

‘‘नहीं सर, इतनी रोशनी नहीं थी…सिर्फ चमक और कुरते की लंबाई देखी थी.’’

‘‘वैसे उस शादी में आलोक के अलावा और कई लोग सिल्क के कुरतेपाजामों में थे.’’

‘‘हां सर, यह उस समय का खास फैशन था.’’

‘‘तो फिर भागने वाला आलोक ही क्यों, कोई और भी तो हो सकता है?’’

‘‘आलोक इसलिए सर कि एक तो भागने का रास्ता सिर्फ उसे ही मालूम था और दूसरे दादाजी के न रहने से फायदा भी तो उसी को हुआ.’’

किरण के तर्क में दम तो था, लेकिन देव फिलहाल उस से सहमत होने को तैयार नहीं था. उस ने तसवीरों को फिर गौर से देखा. फिर आलोक को फोन कर के बुलाया.

‘‘इन तसवीरों में दूल्हा और तुम्हारे दूसरे सभी दोस्त तो अपने कालेज के साथी ही हैं सिवा एक के जो हर तसवीर में तुम से सट कर खड़ा है,’’ देव ने टिप्पणी की.

‘‘वह मेरा बिजनैस पाटर्नर नकुल है सर. अमेरिका से कंप्यूटर में डिप्लोमा कर के आया है. आप को तो मालूम ही होगा सर, आईबीएम की एजेंसी लेने के लिए कंप्यूटर स्पैशलिस्ट होना अनिवार्य है, इस के अलावा इलैक्ट्रौनिक प्रोडक्ट्स बेचने का अनुभव और एक बड़े एअरकंडीशंड शोरूम का मालिक होना भी. मैं ने और नकुल ने साथ मिल कर ये सब शर्तें पूरी कर के जोनल डिस्ट्रिब्यूटरशिप ली है.’’

‘‘कब से जानते हो नकुल को?’’

‘‘बचपन से सर. हमारे घर में एक बहुत बड़ा जामुन का पेड़ है. हम दोनों अकसर उस पर बैठ कर कुछ बड़ा, कुछ हट कर करने की सोचा करते थे. उस पेड़ की तरह ही विशाल. नकुल तो इसी फिराक में अमेरिका निकल गया. मैं दादाजी के मोह और किरण की मुहब्बत में कहीं नहीं जा सका, मगर नकुल बचपन की दोस्ती और सपने नहीं भूला था. उस ने वापस आ कर मुझ से भी कुछ अलग और बड़ा करवा ही दिया.’’

‘‘आलोक, इस केस को सुलझाने के लिए हो सकता है कि मुझे इन तसवीरों में मौजूद तुम्हारे सभी दोस्तों से पूछताछ करनी पड़े.’’

‘‘आप जब कहेंगे सब को ले आऊंगा सर, लेकिन उस से पहले अगर आप

किरण से पूछताछ करें तो हो सकता है कोई अहम बात पता चल जाए.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘मालूम नहीं सर, मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि किरण को कुछ पता है, क्योंकि दादाजी की हत्या के बाद वह पहले वाली किरण नहीं रही है. हमेशा बुझीबुझी सी रहती है.’’

‘‘दादाजी से खास लगाव था उसे?’’

‘‘वह तो सभी को था सर. उन की शख्सीयत ही ऐसी थी.’’

‘‘दादाजी की हत्या की खबर सुनते ही तुम्हारे साथ कितने दोस्त आए थे?’’

‘‘कोई नहीं सर क्योंकि बंटी से यह सुनते ही कि दादाजी बेहोश हो गए हैं, मैं किसी से कुछ कहे बिना फौरन उस के स्कूटर के पीछे बैठ कर आ गया था.’’

‘‘कोई तुम्हारी तलाश में तुम्हारे पीछेपीछे नहीं आया?’’

‘‘नहीं सर,’’ आलोक ने इनकार में सिर हिलाया, ‘‘मुझे अच्छी तरह याद है कि उस रात तो डाक्टर और पुलिस के अलावा हमारे परिवार के साथ सिर्फ किरण के घर वाले ही थे. सुबह होने पर उन लोगों ने औरों को सूचित किया था.’’

अगली दोपहर को किरण के साथ इंस्पैक्टर देव को अपने शोरूम में देख कर आलोक हैरान रह गया, ‘‘खैरियत तो है सर?’’

‘‘फिलहाल तो है,’’ देव ने लापरवाही से कहा, ‘‘तुम ने कहा था कि किरण से पूछताछ करूं सो बातचीत करने को इसे यहां ले आया हूं. तुम्हारे बिजनैस पार्टनर नहीं है?’’

‘‘हैं सर, अपने कैबिन में.’’

‘‘तो चलो उन्हीं के कैबिन में बैठते हैं,’’ देव ने कहा.

आलोक दोनों को बराबर वाले कैबिन में ले गया. नकुल से देव का परिचय करवाया.

‘‘कहिए क्या मंगवांऊ. ठंडा या गरम?’’ नकुल ने औपचारिकता के बाद पूछा.

‘‘वे सब बाद में, अभी तो बस आलोक के दादाजी की हत्या के बारे में कुछ सवालों के जवाब दे दीजिए,’’ देव ने कहा.

नकुल एकदम बौखला गया, ‘‘उस बारे में भला मैं क्या बता सकता हूं? मुझे तो हत्या की सूचना भी किरण से अगली सुबह मिली थी.’’

‘‘यही तो मैं पूछना चाह रहा हूं नकुल कि जब पूरी शाम आप आलोक के साथ थे तो आप ने इसे बंटी के साथ जाते हुए कैसे नहीं देखा?’’

नकुल सकपका गया, लेकिन आलोक बोला, ‘‘असल में सर उस समय कंगना खेला जा रहा था और सब दोस्त एक घेरे में बैठ कर रवि को उत्साहित करने में लगे हुए थे.’’

‘‘बिलकुल. असल में मैं ने सब को रोका ही रवि को कंगने के खेल में जितवाने के लिए था,’’ नकुल तपाक से बोला.

‘‘मगर आप स्वयं तो उस समय वहां नहीं थे…’’

‘‘क्या बात कर रहे हैं इंस्पैक्टर साहब?’’ नकुल ने उत्तेजित स्वर में देव की बात काटी, ‘‘मैं रवि की बगल में बैठ कर उस की पीठ थपथपा रहा था.’’

‘‘तो फिर आप इस तसवीर में नजर क्यों नहीं आ रहे?’’ देव ने अलबम दिखाया, ‘‘न आप इस तसवीर में हैं और न इस के बाद की तसवीरों में. आप तकलीफ न करिए, मैं ही बता देता हूं कि आप कहां थे?’’

‘‘बाथरूम में था, ज्यादा खानेपीने के बाद जाना ही पड़ता है,’’ नकुल ने चिढ़े स्वर में कहा.

‘‘जी नहीं, उस समय आप दादाजी के कमरे में थे,’’ देव ने शांत स्वर में कहा, ‘‘आप की योजना हो सकती है हत्या कर के फिर मंडप में आने की हो, लेकिन जल्दीजल्दी पेड़ से उतरते हुए आप के कपड़े खराब हो गए थे सो आप ने वापस आना मुनासिब नहीं समझा.’’

‘‘आप जो भी कह रहे हैं उस का कोई सुबूत है आप के पास?’’ नकुल ने चुनौती के स्वर में पूछा.

‘‘अभी लीजिए. जरा पीठ कर के खड़े होने की जहमत उठाएंगे आप और आलोक तुम भी इन के साथ पीठ कर के खड़े हो जाओ,’’

कह देव किरण की ओर मुड़ा, ‘‘इन दोनों को गौर से देखो किरण, प्राय: एक सा ही ढांचा है और अंधेरे में ढीलेढाले कुरते में यह पहचानना मुश्किल था कि पेड़ से कूद कर भागने वाला आलोक था या नकुल.’’

‘‘आप ठीक कहते हैं सर,’’ किरण चिल्लाई, ‘‘मुझे यह खयाल पहले क्यों नहीं आया कि नकुल ने भी आलोक के जैसे ही कपड़े पहने हुए थे और उस के पास तो हत्या करने की आलोक से भी बड़ी वजह थी. उस ने तो आईबीएम की एजेंसी लेने के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया था सर. वह नौकरी छोड़ कर और अपना ग्रीन कार्ड वापस कर के अमेरिका से वापस आया था…’’

आलोक ने किरण के कंधे पकड़ कर उसे झंझोड़ा, ‘‘यह क्या कह रही हो किरण, तुम ने पहले कभी तो बताया नहीं कि तुम ने किसी को भागते हुए देखा था?’’

‘‘कैसे बताती, उसे शक जो था कि भागने वाले तुम हो. इसीलिए बेचारी शादी टाल रही थी और गुमसुम रहती थी. संयोग से मुझ से मुलाकात हो गई और असलियत सामने आ गई… भागने की बेवकूफी मत करना नकुल, मेरे आदमियों ने तुम्हारा शोरूम घेरा हुआ है. मैं नहीं चाहूंगा कि तुम्हारे स्टाफ के सामने तुम्हें हथकड़ी लगा कर ले जाऊं, इसलिए चुपचाप मेरे साथ चलो, क्योंकि उस रात कमरे के दरवाजों, छत की मुंडेर वगैरह पर से पुलिस ने जो उंगलियों के निशान उठाए थे, वे तुम्हारी उंगलियों के निशानों से मिल ही जाएंगे. वैसे किरण ने वजह तो बता ही दी है, फिर भी मैं चाहूंगा कि तुम चलने से पहले आलोक को बता ही दो कि ऐसा तुम ने क्यों किया?’’ देव ने कहा.

‘‘हां नकुल, तूने तो मुझे भरोसा दिया था कि तू लाभ का पूरा ब्योरा दे कर दादाजी को मना लेगा या एक और शोरूम लेने की व्यवस्था कर लेगा, फिर तूने ऐसा क्यों किया?’’ आलोक ने दुखी स्वर में पूछा.

‘‘और करने को था ही क्या? दादाजी कुछ सुनने या अपने शोरूम का सामान छोटे शोरूम में शिफ्ट करने को तैयार ही नहीं थे और बड़ा शोरूम लेने की मेरी हैसियत नहीं थी. तेरे यह बताने पर कि तूने शोरूम अपने नाम करवा लिया है, मैं अपनी बढि़या नौकरी छोड़ और ग्रीन कार्ड वापस कर के यानी अपने भविष्य को दांव पर लगा यहां आया था. दादाजी यह जाननेसमझने के बाद भी कि कंप्यूटर बेचने में बहुत फायदा होगा, अपने वर्चस्व का मोह त्यागने को तैयार ही नहीं थे. उन की इस जिद के कारण मैं हाथ पर हाथ धर कर तो नहीं बैठ सकता था न?’’ नकुल ने कड़वे स्वर में पूछा.

‘‘अच्छा किया नकुल बता दिया, तुम्हारे लिए इतना तो करवा ही दूंगा कि जेल में तुम्हें एक दिन भी हाथ पर हाथ धर कर बैठना न पड़े,’’ देव की बात पर उस बोझिल वातावरण में भी आलोक और किरण मुसकराए बगैर न रह सके.

पुरुषों के लिए घातक धंधेवालियां

देह के धंधे का अहम पहलू ग्राहक होता है. ज्यादातर मामलों में यह साबित हुआ है है कि देह का धंधा केवल इस धंधे में शामिल लड़कियों या औरतों के लिए ही घातक होता है. जबकि हकीकत यह है कि देह का यह धंधा, इस धंधे में शामिल लड़कियों से अधिक ग्राहकों के लिए नुकसानदायक होता है. कुछ पल के मानसिक सुख के बदले ग्राहक को केवल अपना आर्थिक ही नहीं बल्कि सामाजिक नुकसान भी उठाना पड़ता है.

इस के साथसाथ वह अपनी सेहत के साथ भी खिलवाड़ करता है. जिस शारीरिक सुख की कल्पना में वह कालगर्ल या वेश्या के पास जाता है, उस में भी वह ठगा ही महसूस करता है. इस शौक में फंसे लोग बताते हैं कि जब तक वह उन के पास रहते हैं तब तक एक अनजाना सा डर लगा रहता है. पुलिस जब भी ऐसे धंधा करने वालों को पकड़ती है तो सब से खराब हालत ग्राहक की ही होती है.

एक तो ग्राहक पहले ही देहधंधा करने वालों की लूट का शिकार बनता है. उस के बाद अगर पुलिस ने उसे पकड़ लिया तो वह भी कुछ वसूले बिना नहीं छोड़ती. आजकल होटलों में ऐसे धंधे खूब होने लगे हैं. जिस में होटल में कमरा पहले से बुक होता है.

लड़की वहां पहले से होती है. ग्राहक वहां जाता है और 2 से 4 घंटे बिता कर चला आता है. देहधंधा कराने वाले 24 घंटे के लिए बुक कमरे में शिफ्ट के अनुसार 3 ग्राहकों तक का इंतजाम कर लेते हैं.

ऐसे ही एक होटल में जाने वाले ग्राहक ने बताया, ‘‘जब मैं कमरे से निकल कर होटल से बाहर जाने लगा तो होटल के वेटर और मैनेजर ने रोक कर कहा कि असली सेवक तो वही हैं. उन का भी कुछ हक बनता है. उन्होंने मुझ से 500 रुपए टिप के नाम पर ले लिए.’’

यही लोग ऐसे लोगों के बारे में पुलिस को भी बता देते हैं, तब पुलिस भी कुछ न कुछ नजराना ले लेती है. इस तरह ग्राहक कई जगह ठगा जाता है.

पुलिस जब ऐसे किसी रैकेट को पकड़ती है तो समाचारपत्रों में जो फोटो छपती है, उस में लड़कियों के मुंह तो छिपा दिए जाते हैं लेकिन लड़कों के फोटो के साथ ऐसा नहीं किया जाता. इसी तरह खबर में भी लड़कों के वास्तविक नाम छापे जाते हैं, जबकि लड़कियों के नाम बदल दिए जाते हैं.

पुरुषों के नाम और फोटो छप जाने से समाज में जो बदनामी होती है, उसे कम कर के नहीं देखा जाना चाहिए. यानी देहधंधे में पकड़े जाने पर लड़कियों से ज्यादा नुकसान लड़कों का होता है. अगर गहराई से देखा जाए तो नुकसान और भी हैं.

लगभग 3 महीने पहले लखनऊ पुलिस ने इसी तरह जिस्मफरोशी के धंधे का रैकेट पकड़ा था. गिरफ्तार की गई लड़कियों को तो थाने से ही जमानत दे दी गई थी, लेकिन लड़कों को अदालत तक जाना पड़ा था. गिरफ्तार किए गए रमेश नाम के एक युवक ने अपनी कहानी बताते हुए कहा कि मेरी शादी होने वाली थी.

एक दोस्त ने कहा शादी के पहले कुछ जानकारी बढ़ा लेनी चाहिए. चलो, आज तुम्हें एक ऐसी ही लड़की से मिलवाता हूं जो इस बारे में सारी जानकारी दे देगी. मैं दोस्त के साथ चला गया. वह उस अड्डे पर पहले से ही आताजाता था. उस ने मुझे एक लड़की के हवाले कर दिया.

मैं शरमातेशरमाते उस लड़की से बात कर रहा था. इसी बीच वहां पर पुलिस का छापा पड़ गया. पुलिस ने मुझे भी पकड़ लिया. मैं कहता ही रह गया कि पहली बार आया हूं, पर पुलिस ने मेरी एक बात नहीं मानी. अगले दिन अखबारों में मेरी फोटो छपी. खबर और फोटो से मेरी समाज में बदनामी तो हुई ही साथ ही शादी भी टूट गई.

यह अकेली परेशानी नहीं है. धंधा करने वाली लड़कियों के साथ पकड़े गए एक और युवक दीपक ने अपने बारे में बताया कि मेरी नौकरी में मुझे टूर पर रहना पड़ता था. एक बार मैं इलाहाबाद के एक होटल में रुका हुआ था.

होटल में ही काम करने वाले एक वेटर ने मुझे एक लड़की के बारे में बताया कि यह लड़की बहुत जरूरतमंद है. इस की मां बीमार रहती है. उस के इलाज के लिए यह कभीकभी किसी ग्राहक के पास जाती है. आज इसे 2 हजार रुपए की जरूरत है. अगर आप मदद कर देंगे तो अच्छा रहेगा. बदले में यह एक रात आप की सेवा में रहेगी.

लड़की की मदद की बात सुन कर मेरा दिल भर आया और मैं ने उसे बुला लिया. मैं रात भर उस लड़की और उस की मां के बारे में पूछताछ की. लड़की अपनी दर्दभरी कहानी सुनाती रही.

सुबह होने के पहले ही वह पैसा ले कर चली गई. मैं ने उस का पता लगाया तो जानकारी मिली कि वह एक बदनाम गली की रहने वाली थी. इस के बाद भी पता नहीं क्यों मैं उस लड़की को प्यार करने लगा था. उस से मिलने मैं उस के घर भी जाने लगा. वहां कई लड़कियां मिल कर धंधा करती थीं.

कुछ होटलों के साथ उन का तालमेल था, जहां से मेरे जैसे लोगों को फंसाया जाता था पर मैं इस दलदल से बाहर निकलना ही चाहता था कि पुलिस ने पकड़ लिया. लड़कियों को तो थाने से ही छोड़ दिया गया पर मुझे अदालत से जमानत करानी पड़ी. इस बदनामी के कारण मेरी नौकरी चली गई. घरखानदान की इज्जत गई सो अलग.

कुछ लोग तो इन धंधेवालियों के चक्कर में पड़ कर जीवन भर के लिए रोग ले बैठते हैं. ऐसे ही एक आदमी से हमारी मुलाकात हुई. साधूप्रसाद नाम का वह आदमी नौकरी करने मुंबई गया था. बीवीबच्चों से दूर रहने के कारण उस का मन दूसरी औरत से लग गया. राधा नामक एक औरत उस के करीब आई. दोनों के बीच जल्द ही नजदीकी संबंध बन गए.

राधा दूसरी धंधा करने वाली औरतों से अलग थी. जहां दूसरी औरतें कंडोम लगा कर संबंध बनाने के लिए कहती थीं, वहीं राधा बिना कंडोम के ही संबंध बनाती थी. एक दिन बातबात में मैं ने राधा से इस बारे में पूछा तो वह कुछ बताने के बजाए हंसीमजाक कर के बात को टालने लगी. अभी कुछ समय ही बीता था कि वह बीमार रहने लगी उसे तेज बुखार आने लगा था. मैं ने उस से अस्पताल चलने के लिए कहा तो वह बोली कि कोई फायदा नहीं है. यह बीमारी अब मेरी जान ले कर जाएगी.

मैं ने उस से पूछा कि ऐसी क्या बीमारी है जिस का कोई इलाज नहीं है, तो वह बिना किसी संकोच के बोली, ‘‘एड्स, मुझे एड्स हो गया है.’’

मैं अब भी कुछ नहीं समझ पाया और बोला, ‘‘इस के बाद भी तुम बिना कंडोम के यह धंधा करती हो?’’

वह गहरी सांस ले कर कहने लगी, ‘‘मुझे यह बीमारी एक आदमी ने जबरदस्ती दी थी. मैं उस से बारबार कंडोम लगाने के लिए कहती थी लेकिन वह नहीं माना. जब मुझे यह रोग लगा ही गया, तब से मैं ने भी कंडोम लगाना छोड़ दिया.’’

यह सुन कर मैं चक्कर खा गया और अपने गांव लौट आया. बीवीबच्चों को मारपीट कर मैं ने अपने से दूर कर दिया. फिर गांव के बाहर कुटिया बना कर रहने लगा. किसी को नहीं बताया कि मुझे क्या रोग लगा है. मैं नहीं चाहता था कि मेरी बीवी इस रोग की शिकार बने. इसलिए अपनी करनी खुद ही भुगत रहा हूं. अगर एक धंधे वाली के झांसे में नहीं आया होता तो यह दिन नहीं देखना पड़ता.

समाज लड़कियों के प्रति सहानुभूति का रुख रखता है लेकिन लड़कों को वह अपराधी मान लेता है. उसे लगता है कि देह के इस धंधे के लिए पुरुष ही दोषी होता है. इसलिए लड़कों की परेशानियों पर कोई ध्यान नहीं देता. बदनामी तो हर किसी को मिलती है. चूंकि इस धंधे में काम करने वाली लड़की पहले से ही बदनाम होती है, इसलिए उस की बदनामी के बारे में कोई विचार नहीं किया जाता.

इन के साथ पकड़ा गया लड़का सभ्य समाज का हिस्सा होता है, इसलिए उस की बदनामी ज्यादा मायने रखती है. सामाजिक पहलू के अलावा अगर हम रोगों की बात करें तो पता चलेगा कि पुरुषों को होने वाले ज्यादातर यौन रोग इस तरह के शारीरिक संबंधों के कारण ही होते हैं. थोड़ी सी असावधानी जिंदगी भर के लिए नासूर बन जाती है.

देह का यह धंधा सेहत, जेब और सामाजिक हैसियत तीनों को नुकसान पहुंचाता है. इस के बाद भी लोग अनजान औरत पर पैसा क्यों खर्च करते हैं? इस बारे में अलगअलग बातें सामने आईं.

साधूप्रसाद ने कहा कि वह अपनी पत्नी से दूर रहता था. इसलिए शरीर की इच्छा को दबा नहीं पाया और एक औरत के पास चला गया. उसे यह नहीं पता था कि यह काम इतना खतरनाक साबित होगा.

इस के विपरीत दीपक ने कहा कि वह लड़की की मदद करने के चक्कर में फंस गया था और लड़की से देह संबंध का लालच ही उस का दुश्मन बन गया. जबकि रमेश ने कहा कि वह गलत स्वभाव के दोस्त के चलते देहधंधा करने वाली लड़की के पास जा पहुंचा. अगर उस की सोहबत गलत लोगों की नहीं होती तो शायद यह नहीं होता.

इन सब की बड़ी वजह यौन शिक्षा का अभाव है. अगर सब को यह मालूम हो कि इस तरह के सैक्स संबंधों से कितना नुकसान होगा तो शायद वे इन बातों का खयाल रखेंगे.

बौडी टैनिंग हटाने के लिए अपनाएं ये होममेड टिप्स

लोग घर से बाहर निकलने से पहले अपनी बौडी को ढक कर निकलते हैं, लेकिन कड़कती धूप और गरमी में अक्सर आप टैनिंग का शिकार हो जाते हैं. और फिर टैनिंग कम करने के लिए बाजार से वह तरह-तरह के प्रौडक्ट्स का इस्तेमाल करते हैं. जो उनकी स्किन को और ज्यादा नुकसान पहुंचाता है. इसीलिए आज हम आपको 5 होममेड टिप्स बताएंगे जिससे आपको आसानी से बिना कुछ खर्च किए टैनिंग से छुटकारा मिल जाएगा.

  1. खीरा और नींबू

खीरा और नींबू का फेस मास्क धूप से होने वाले टेन को हटाने का सबसे इफेक्टिव घर के बने फेस मास्क में से एक है. नींबू के रस से स्किन की टोनिंग होती हैं इससे स्किन साफ बनती हैं. नींबू का रस विटामिन C  और साइट्रिक एसिड का सबसे अच्छा सोर्स हैं. विटामिन C में एंटीऔक्सीडेंट होता हैं जिससे चेहरे की झुर्रिया, दाग, धब्बे आदि साफ़ होते हैं.

ऐसे लगाएं…

इस फेस पैक के लिए नींबू के रस में खीरे का रस और गुलाब जल मिलाएं और इसे अपने चेहरे पर लगाकर 20 मिनट रखें. फिर फेस को साफ़ पानी से धोकर पतले टौवेल या कपड़े से चेहरा पोछ लें. साथ ही मास्क आप दिनभर की भागदौड़ के बाद रात में लगायें तो कुछ दिनों में आपके चेहरे का रंग निखर कर सामने आएगा.

  1. बेसन और हल्दी

इस फेस पैक से चेहरे पर निखार के साथ स्क्रबिंग औऱ ब्लीचिंग भी हो जाएगी. हल्दी एक इफेक्टिव औषधि की तरह हैं, जो चेहरे के पिगमेंटेशन और कालापन कम करने में मदद करती है. यह नेचुरल तरीके से चेहरे के डेड सेल्स को ख़त्म करता हैं.

ऐसे लगाएं…

इस पैक के लिए बेसन, हल्दी पाउडर, दूध और गुलाब जल मिलाकर पेस्ट बना कर फेस पर लगाएं. पेस्ट फेस पर सूख जाने पर चेहरे से निकाले और फेस को पानी से धो लें. इससे आप हफ्ते में दो बार लगा सकते हैं.

  1. पपीता और शहद

पपीते में भी असरदार गुण हैं, इसमें पेपिन एंजाइम हैं जो चेहरे के रंग को निखारने के साथ– साथ चेहरे की झुर्रियां कम करता हैं. साथ ही स्किन को पोषण भी देता हैं और इसके पावरफुल गुण स्किन को शाइनी बनाते हैं.

ऐसे बनाएं…

इस पैक के लिए थोड़ा से पपीता और शहद लें और उसे चेहरे पर लगायें. इसे 30 मिनट बाद पानी से धो लें. शहद एक नेचुरल ब्लीचिंग की तरह काम करता हैं, जो चेहरे के लिए लाभकारी हैं.

  1. टमाटर, नींबू और दही

टमाटर चेहरे के दाग-धब्बे हटाने के काम आते हैं. इसमें साइट्रिक एसिड होता हैं जो बेजान स्किन के लिए जरुरी होता हैं. वहीं नींबू के गुण तो हम जानते हैं यह एक ब्लीचिंग एजेंट की तरह काम करता हैं. दही भी चेहरे को साफ़ करता हैं. यह तीनों चेहरे औयली स्किन को ड्राई बनाते हैं जिससे चेहरे पर बैलेंस बना रहता है.

ऐसे बनाएं…

इसे बनाने के लिए टमाटर का गुदा,  दही और नींबू का पेस्ट बनाएं और उसे चेहरे पर लगाकर सूखने तक रखें. फिर ठंडे पानी से धोकर साफ़ कर लें.

  1. आलू और नींबू

आलू को खाने से हमेशा रोका जाता हैं लेकिन इसे चेहरे पर लगाना उतना ही फायदेमंद हैं. डार्क सर्कल,  झुर्रियां और ड्राई स्किन के लिए इसे चेहरे पर लगाने में फायदा होता हैं . आलू में विटामिन, मिनरल्स, प्रोटीन और फाइबर होते हैं जो चेहरे की स्किन को पोषण देते हैं.

ऐसे बनाएं…

इसे बनाने के लिए आलू के रस में नींबू मिलाकर पेस्ट बनाएं और उंगलियों से चेहरे पर 30 से 40 मिनट लगाकर रख कर धो लें. इससे चेहरे की थकावट भी दूर होती है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें