बचपन से पढ़ते और सुनते आए हैं कि ‘जल ही जीवन है’ और बीते एकडेढ़ दशक के दौरान जिस तेजी से जल यानी पानी का कारोबार करने वाली कंपनियों की संख्या में इजाफा हुआ है, लगभग उतनी ही तेजी से लोगों में बोतलबंद पानी की मांग भी बढ़ी है. उपभोक्ता बेहिचक 15 से 30 रुपए दे कर विभिन्न कंपनियों की एक लिटर की पानी की बोतल खरीद रहा है.

जहां तक कंपनियों के पानी बेचने और मुनाफा कमाने की बात है तो व्यापारिक नजरिए से इसे गलत नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन समाजसेवा और मानवसेवा के लिए गठित स्वयंसेवी संस्थाएं अगर ऐसा करें यानी पानी बेचें तो इसे आप क्या कहेंगे? शायद यही कि स्वयंसेवी संस्थाओं के लिए जल जीवन नहीं, बल्कि धन है.

देश की सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले शहर कोलकाता में श्री काशी विश्वनाथ सेवा समिति, संजीवनी सेवा ट्रस्ट, भारत रिलीफ सोसाइटी, नागरिक स्वास्थ्य संघ, कुम्हारटोली सेवा समिति, बीबीडी बाग नागरिक फाउंडेशन, साल्टलेक संस्कृति संसद, विधाननगर नागरिक विकास मंच, ईस्ट कोलकाता नागरिक फाउंडेशन और हावड़ा वैलफेयर ट्रस्ट समेत महानगर कोलकाता और हावड़ा व विधाननगर इलाके में दर्जनों ऐसी स्वयंसेवी संस्थाएं हैं जो सेवा के नाम पर खुलेआम पानी बेचने का व्यापार कर रही हैं.

गरमी के दिनों में पेयजल की किल्लत बढ़ने के साथ ही ऐसी संस्थाओं की कमाई भी बढ़ जाती है. एक टैंकर (6 हजार से 12 हजार लिटर)पानी के एवज में संस्थाएं 700 से 7,000 रुपए लेती हैं और इस राशि की रसीद तो संस्थाएं जरूर देती हैं, लेकिन कानूनी झंझट से बचने के लिए उस में पानी बेचने का नहीं, बल्कि डोनेशन का जिक्र रहता है.

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