पूजा अपनी 6 साल की बेटी मीठी से बहुत परेशान रहती क्योंकि वह घर हो या बाहर ऐसी हरकतें कर देती जिससे पूजा को सब के सामने शर्मिंदा होना पड़ता. फिर उसके पास कहने को यही होता कि ये तो मेरा कहना ही नही मानती क्या करूं? क्या आपको भी अपने बच्चों की हरकतों के लिए शर्मिंदा होना पड़ता है? अगर ऐसा है तो इसमें गलती आपके बच्चे की नहीं बल्कि आपकी है. क्योंकि की एक पेरेंट्स के तौर पर उसे बचपन से ही हर काम में परफेक्ट बनाना आपका ही काम है. सभी पैरेंट्स चाहतें है कि उनका बच्चा और्गनाइज्ड रहे बड़ो का कहना माने उनकी इज्जत करें लेकिन इसे साकार कुछ ही पेरेंट्स कर पाते हैं. आज की बिजी लाइफ में  हर पेरेंट्स के लिए अपने बच्चे को अच्छे संस्कार देने के लिए बहुत कड़ी मेहनत करनी पड़ती है पर समय न होने के कारण ऐसा मुश्किल हो जाता हैं.

परवरिश का दायरा सीमित न हो– बच्चों की देखभाल करना बहुत मुश्किल है इसे किसी सीमित दायरे में नही बांधा जा सकता.  जहां पेरेंट्स के प्यार और समय की कमी उनमे उपेक्षा का अहसास भर देती है वहीं जरूरत से ज्यादा प्रोटेक्शन, प्यार उन्हें जिद्दी भी बना सकता है ऐसे में यह तय करना बहुत मुश्किल होता है कि बच्चों को कितने छूट दी जाए और कहां कड़ा रुख अपनाया जाए क्योंकि पेरेंट्स की थोड़ी सी चूक  बच्चे का रवैया बदल देती है. ऐसे में बच्चे को कैसे और्गेनाइज्ड बनाये ये बात रही है  साथी आल फौर पार्टनर शिप की साइकोलौजिस्ट प्रांजलि मल्होत्रा.

बुनियाद हो खास–  बच्चे  में बचपन से अच्छी आदतें डाले और नियम बनाये क्योंकि बचपन की सही परवरिश ही बच्चे  का भविष्य तय करती है, उम्र का ये ही पड़ाव अच्छी आदतों को सीखने का होता है. बचपन से जैसी शिक्षा आप बच्चे को देंगे वो आगे चल कर वैसा ही बनेगा इसलिए कुछ बुनियादी रूल्स बनाये.
 
मस्त माहौल के साथ बेस्ट रूटीन– घर में बच्चे के सामने पैरेंट्स कभी भी एक दूसरे से ऊंची आवाज में बात न करे न ही झगड़ा करे. घर के माहौल को हैप्पी एक्टिविटीज से खुशनुमा बनाये.  बच्चे का सुबह से शाम तक का एक रूटीन बनाये. सोने, खाने पीने, खेलने का शेड्यूल बनाये ये रूटीन ही उसे और्गनाइज करेंगे.

टाइम टेबल रिव्यू करें – समय-समय पर टाइम टेबल रिव्यू बहुत जरूरी है. सिर्फ नियम बना देना ही ठीक नही होगा बच्चा उस पर कितना अमल कर रहा है ये देखना भी पैरेंट्स का काम है. अगर पिछली बार टाइम टेबल में कुछ कमी आयी है तो उन्हें दूर करने का प्रयास करे इस काम में बच्चे को भी शामिल करेगे तो उसे भी टाइम मैनेजमेंट के महत्व का पता चलेगा.

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सोशल साइट्स से  दूरी– बचपन से ही बच्चों में मोबाइल फोन, इंटरनेट टीवी की आदत न डाले. बहुत से पैरेंट्स अपनी सुविधा के लिए बच्चे को मोबाइल य टीवी देखने को दे देते है जो  उनकी आंखों पर तो बुरा प्रभाव डालता ही है साथ ही इनकी आदतें भी बुरी हो जाती है.

बच्चे को दें वक्त– आज के टाइम में वर्किंग पैरेंट्स के पास बच्चे के लिए टाइम नही होता है लेकिन वर्किंग आवर के बाद जो भी समय है वो बच्चे को दे उसके साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड करे . वीकेंड्स पर बच्चे के लिए खास कार्यक्रम बनाये उस पर पूरा ध्यान दे.

संस्कारो की नींव– घर बच्चे की प्रथम पाठशाला होती है यहां से मिले अच्छे-बुरे संस्कारोऔर आदतो के आधार पर ही उनके भविष्य की नींव पड़ती है. नैतिक मूल्यों से भरे-पूरे संस्कारों में बीता बचपन हो तो वह अनुशासित रहता है.

जिद्द को कहे बाय बाय– अगर बच्चा जिद्दी होता जा रहा है या उसके स्वभाव में चिड़चिड़ापन बढ़ रहा है तो उसे इस बात का एहसास दिलाना जरूरी है कि जिद करके ही वह अपनी हर जायज-नाजायज मांग पूरी नही करवा सकता है.

स्वयं बने उदाहरण–  बच्चे का पहला आदर्श उसके पैरंट्स ही होते है. इसलिए आप जो भी गुण उसमे देखना चाहते है, वह उपदेश देकर नही बल्कि स्वयं  उदाहरण बन कर दे.

स्वस्थ आदतें–  बच्चे के बेहतर स्वास्थ्य के लिए उसे बाहर के बजाय घर के खाने पर ज्यादा ध्यान दे. घर का हेल्दी और  स्वच्छ  खाने की आदत डालें. जंक फूड से दूर रखें.

इन सब बातों का ख्याल रखेंगी तो आप का बच्चा भी बनेगा  और्गेनाइज्ड.

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