हद है भाई भतीजावाद की. बेचारे द्रोणाचार्य, धनुर्विद्या में पारंगत, उन्हें शकुनी, जिस की उन के आगे कोई औकात नहीं, के चलते अपने रूल बदलने पड़े. अब आप ही बताएं, आज के शिक्षातंत्र में शकुनी जैसे तथाकथित धुरंधर बैठे हैं. किस में दम है सुधार करने का...

द्रोणाचार्य ने अपने 105 शिष्यों की निशानेबाजी की परीक्षा ली थी जिस में उन को पंछी की आंख को निशाना बनाना था. केवल अर्जुन पास हुआ, बाकी फेल हो गए. महाभारतकार अर्थात व्यास ने आगे की कथा द्रोण के प्रति अपनी मैत्री के कारण नहीं बताई. हुआ यह कि कौरवों के फेल होने की खबर द्रोणाचार्य के किसी स्टाफ ने महाराज धृतराष्ट्र को दे दी. उन्होंने शकुनी साहब के साथ विचारविमर्श किया और द्रोणाचार्य को तलब किया. गुप्तकक्ष में मंत्रणा की गई.

महाराज के पीए शकुनी ने कहा, ‘लुक मिस्टर द्रोण, वी नो दैट, आप के द्वारा ली गई पंछी परीक्षा में केवल अर्जुन पास हुआ. यानी कि 104 स्टुडैंट्स फेल हो गए? आप राज्य से ग्रांट लेते हैं. आप का विद्यालय राज्य की मदद से चलता है. आप से सौ प्रतिशत रिजल्ट देने के लिए कहा गया. आप ने राज्य से मिली आर्थिक मदद का गलत इस्तेमाल किया है. हम ने आप को परशुराम के शिष्य होने के नाते रखा था. आप के हवाले 105 राजकुमार कर दिए और आप ने केवल एक बच्चे को ही उचित शिक्षा दी.’

‘लेकिन सर, मैं ने शिक्षा देने में कोई लापरवाही नहीं की. नियमित रूप से सैद्धांतिक और व्यावहारिक विषयों के प्रशिक्षण बालकों को दिए गए. यह धनुष विद्या की परीक्षा थी. इस में अर्जुन अद्वितीय है. वह संसार का सब से बड़ा धनुर्धारी होगा. गदा में भीम और दुर्योधन भी बड़े योद्धा हैं. नकुल और सहदेव तलवारबाजी में...’

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