उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के घोरावल कोतवाली क्षेत्र अन्तर्गत आने वाली ग्राम पंचायत मूर्तिया का उम्भा गांव एक दु:स्वप्न है, जहां 17 जुलाई 2019 को नब्बे बीघा जमीन पर जबरन कब्जे के लिए भयंकर नरसंहार हुआ और गोंड आदिवासियों को सरेआम गोलियों से भून दिया गया. दस आदिवासियों की मौके पर ही मौत हो गयी, जिसमें तीन औरतें भी शामिल हैं, जबकि कई घायल अभी भी अस्पताल में जीवन-मृत्यु के बीच झूल रहे हैं. आदिवासियों द्वारा जोती जा रही जमीन कब्जाने के लिए इस भयानक घटना को ग्राम प्रधान यज्ञवत गुर्जर और उसके साथियों ने अंजाम दिया था.

दलितों, आदिवासियों से जमीनें छीने जाने का क्रम पूरे देश में जारी है. उनके जीने के साधन छीन कर उन्हें सड़कों पर लावारिस फेंक देने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. कहीं उन्हें माओवादी कह कर मारा जा रहा है, कहीं नक्सली कह कर. सदियों से दलित अपने हक के लिए लड़ रहे हैं और सदियों से उनका उत्पीड़न हो रहा है. उन्हें सरेआम मारा-पीटा जा रहा है, जलील किया जा रहा है, उनकी औरतों से, बच्चियों से बलात्कार हो रहे हैं. गरीबी हटाने के नाम पर गरीब हटाओ की नापाक कोशिश देश के एक छोर से दूसरे छोर तक जारी है और गहरे दुख व आश्चर्य की बात है कि देश के तथाकथित दलित नेताओं के मुख से इस तरह के नरसंहारों पर एक लफ़्ज नहीं निकलता है! न ऐसी घटनाओं पर उनका क्रोध और क्षोभ उजागर होता है. न वे एकजुट होते हैं और न किसी तरह की जांच और न्याय की मांग उठाते हैं. इन्तहा ये कि वे पीड़ितों के आंसू पोछने के लिए, उन्हें सांत्वना देने के लिए भी नहीं जाते.

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