कभी कभी जिंदगी हमें ऐसे दोराहे पर लाकर खड़ा कर देती है कि हम स्वयं तय नहीं कर पाते कि हमें क्या करना चाहिए. मान लीजिए कि आप शादीशुदा है और आप को किसी दूसरे शख्स से बहुत गहरा प्रेम हो जाता है. ऐसे में यह फैसला करना बहुत कठिन होगा कि जिस से शादी हुई है पर प्यार नहीं है, उसे चुने या फिर जिस से प्यार है पर शादी नहीं हुई, उसे.

कभी भी हो सकता है प्यार

माना आप किसी के कौंटेक्ट में आती हैं. हो सकता है वह औफिस में आप के साथ हो, पड़ोसी हो, किसी इवेंट में मिला हो या पति/पत्नी का फ्रेंड हो. यानी आप की अक्सर उस से मुलाकात हो जाती है. धीरे धीरे आप को महसूस होता है कि आप उस के साथ वे बातें भी शेयर कर सकती है जिन्हें दूसरों से नहीं कर पाती. आप दोनों एकदूसरे की कंपनी पसंद करने लगते हैं. घंटों बिना थके एकदूसरे से बातें करते हैं और फिर वह आप को आकर्षक लगने लगता है. धीरे धीरे आप उस से अपने दिल के राज शेयर करने लगती है. अपना डर ,अपनी ख्वाहिशें और विचार बांटने लगती है. आप को ऐसा लगने लगता है जैसे उस की तरह से किसी ने आप को नहीं समझा हो या उस के साथ आप बेहद सुरक्षित महसूस करती हैं. आप दोनों के बीच की अंडरस्टैंडिंग मजबूत होती जाती है. आप उस के साथ इमोशनली जुड़ने लगती है. उस के लिए एहसास जागने लगते हैं. आप को लगता है काश यह शख्स विवाह से पहले मिल गया होता.

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