स्वतंत्रता के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में छोटी -छोटी रियासतों को भारतीय संघ में शामिल किया गया. उस समय जम्मू-कश्मीर रियायत के महाराज हरि सिंह थे जो किसी भी पक्ष में जाने को तैयार नहीं थे(मतलब न भारत के साथ और न ही पाकिस्तान के साथ) किन्तु कश्मीर की भौगोलिक स्थिति ऐसी नही थी कि वो एक स्वतन्त्र देश बन कर रह सके.
इसके अलावा ये एक मात्र रियासत थी जहां के राजा हिन्दू थे और अधिकांश प्रजा मुस्लिम थी जिसका की रूझान पाकिस्तान की तरफ था. महाराज हरि सिंह कुछ निर्णय ले पाते कि उससे पहले ही उन पर पाकिस्तान समर्थित कबिलाईयों ने हमला कर दिया. महाराजा का मरता क्या न करता वाला हाल हो चुका था . मन मार कर उन्होने भारत में विलय का प्रस्ताव रखा….
तब इतना समय नहीं था या कह लो कि राजनैतिक इच्छा शक्ति की कमी के कारण “गोपाल स्वामी आयंगर” ने संघीय संविधान सभा में “धारा 306 ए” जो कि बाद में “धारा 370 “बनी का प्रारूप पेश किया.
इस तरह से राजनैतिक इच्छाशक्ति की कमी की वजह से जम्मू कश्मीर को अन्य राज्यों से अलग अधिकार मिल गए. जम्मू कश्मीर के भारत में विलय के बाद वहां “मुख्यमंत्री” की बजाय “प्रधानमंत्री” और “राज्यपाल” की जगह “सदर-ए-रियासत” होता था.
“जवाहर लाल ने शेख अब्दुल्ला” को वहां का “प्रधानमंत्री” बना दिया यह सिलसिला “1965” तक चला. फिर धारा 370 में बदलाव किया गया उसके बाद वहां पर भी अन्य भारतीय राज्यों की तरह राज्यपाल और मुख्यमंत्री होने लगे.
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अब लगे हाथ ये भी जान लेते है कि क्या अधिकार उन्हें मिलें:-
- भारत के अन्य राज्यों के लोग जम्मू कश्मीर में जमीन जायदाद नही खरीद सकते जबकि जम्मू कश्मीर के निवासी पूरे भारत में जहां चाहे जमीन-जायदाद खरीद सकते हैं.
- वितीय आपातकाल लगाने वाली धारा 360 भी जम्मू कश्मीर में लागू नहीं होती.
- जम्मू कश्मीर का अपना अलग झंडा है. वहाँ पर भारतीय तिरंगे को जलाने पर किसी सजा का प्रावधान नहीं है .
- भारतीय संसद जम्मू कश्मीर में रक्षा,विदेश,वित्त और संचार के अलावा और कोई अन्य कानुन नही बना सकती .
- धारा 356 लागू नही,राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्खास्त करने का अधिकार नही…इसे ऐसे समझा जा सकता है कि “21 जुन 2018 को भाजपा पीडीपी” गठबंधन टूटने के बाद राज्य में राज्यपाल शासन लगा दिया गया..
देश के अन्य सभी राज्यों में राष्ट्रपति शासन की व्यवस्था है जबकि जम्मू कश्मीर कें संविधान में राज्यपाल शासन का प्रावधान है. यह छह माह के लिए लगाया जाता है. यदि स्थिति बहाल नहीं होती तो इस व्यवस्था की मियाद को बढ़ाया जा सकता है .
ये एकमात्र ऐसा राज्य है जिसके पास अपना संविधान और अधिनियम है .
- कश्मीर की कोई लड़की किसी दुसरे राज्य के व्यक्ति से शादी करती है तो उसकी जम्मू कश्मीर राज्य की नागरिकता छिन जाएगी.
- धारा 370 के अंतर्गत जो सबसे अजीब बात है वो है अगर कोई पाकिस्तानी नागरिक किसी कश्मीरी युवती से विवाह कर ले तो उसे भारतीय नागरिकता मिल जाती है जबकि वहां की युवती जब भारतीय गणराज्य के किसी युवक से शादी करती है तो उसके सारे अधिकार छिन जाते हैं.
- रिसासत में पांच वर्ष के शासन की जगह छह वर्ष का शासन होता है.
अब आते हैं धारा 35a पर
क्या है धारा 35a:-
वर्ष 1956 में यानि के कश्मीर के भारत में विलय होने के पश्चात तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा धारा 370 को थोड़ा सा परिवर्तित किया गया और कश्मीर प्रशासन को विशिष्ट नागरिक चयन का अधिकार दिया गया, इस धारा के अंतर्गत कश्मीर सरकार यह तय कर सकती है कि कौन कश्मीरी नागरिक है और कौन नहीं.
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इसको एक उदाहरण द्वारा समझाने की कोशिश करती हूं.
कश्मीर में भारत के अन्य हिस्सों से वाल्मीकि समाज को लाकर बसाया गया था.., जैसे कि उस समय वो लोग अपना सफाई का कार्य कर रहे थे उन्हें अन्य राज्यों से लाकर कश्मीर में वही काम करने के लिए बसा दिया गया .अब तो इस घटना की चार पीढ़िया बीत चुकी है मगर वह वाल्मीकि समाज आज भी वहां प्रवासी भारतीय कहलाता है उन्हें वहां के विधान सभा एव पंचायत चुनावो मे हिस्सा लेने का भी अधिकार नहीं है.. अर्थात इस समुदाय के लोग देश के प्रधानमंत्री पद तक जा सकते हैं मगर कश्मीर के किसी गाँव के प्रधान नहीं बन सकते .साथ साथ इस समुदाय के बच्चे चाहे कितने भी होशियार क्यों न हो कश्मीर के किसी भी सरकारी शिक्षण संस्थान मे पढ़ भी नहीं सकते .
पुलवामा हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है. राष्ट्रीय नेतृत्व से धारा 370 और 35ए को खत्म करने की अपेक्षा की जा रही है…
इससे कश्मीर में शांति व्यवस्था की अस्थाई समस्या उत्पन्न होगी.
लेकिन इससे स्थायी समाधान का एक रास्ता खुलेगा. नीतियां राष्ट्रहित की वाहक होती है किंतु हमारी ढुलमुल नीतियों के कारण धारा 370 के संशोधन और सम्पूर्ण कश्मीर के एकीकरण के नीतिगत फैसले से ही समाप्त होगा .