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आज कालोनी के पार्क में उन से भेंट हो गई. उन्होंने अपना परिचय दिया और दिनेश ने अपना. उन का नाम हरपाल सिंह था. वे पुलिस में डीएसपी थे और दिनेश कालेज में प्रोफैसर.

वे दोनों इधरउधर की बात करते हुए आगे बढ़ रहे थे कि तभी सामने से आते एक शख्स को देख कर हरपाल सिंह रुक गए. दिनेश को भी रुकना पड़ा.

हरपाल सिंह ने उस आदमी के पैर छुए. उस आदमी ने उन्हें गले से लगा लिया.

हरपाल सिंह ने दिनेश से कहा,‘‘मैं आप का परिचय करवाता हूं. ये हैं रामप्रसाद मिश्रा. बहुत ही नेक, ईमानदार और सज्जन इनसान हैं. ऐसे आदमी आज के जमाने में मिलना मुश्किल हैं.

‘‘ये मेरे गुरु हैं. ये मेरे साथ काम कर चुके हैं. इन्होंने अपनी जिंदगी ईमानदारी से जी है. रिश्वत का एक पैसा भी नहीं लिया. चाहते तो लाखोंकरोड़ों रुपए कमा सकते थे.’’

अपनी तारीफ सुन कर रामप्रसाद मिश्रा ने हाथ जोड़ लिए. वे गर्व से चौड़े नहीं हो रहे थे, बल्कि लज्जा से सिकुड़ रहे थे.

दिनेश ने देखा कि उन के पैरों में साधारण सी चप्पल और पैंटशर्ट भी सस्ते किस्म की थीं.

हरपाल सिंह काफी देर तक उन की तारीफ करते रहे और दिनेश सुनता रहा. उसे खुशी हुई कि आज के जमाने में भी ऐसे लोग हैं.

कुछ समय बाद रामप्रसाद मिश्रा ने कहा, ‘‘अच्छा, अब मैं चलता हूं.’’

उन के जाने के बाद दिनेश ने पूछा, ‘‘क्या काम करते हैं ये सज्जन?’’

‘‘एक समय इंस्पैक्टर थे. उस समय मैं सबइंस्पैक्टर था. इन के मातहत काम किया था मैं ने. लेकिन ऐसा बेवकूफ आदमी मैं ने आज तक नहीं देखा. चाहता तो आज बहुत बड़ा पुलिस अफसर होता लेकिन अपनी ईमानदारी के चलते इस ने एक पैसा न खाया और न किसी को खाने दिया.’’

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