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दलितों की बदहाली

सुप्रीम कोर्ट भी किस तरह दलितों को जलील करता है इस के उदाहरण उस के फैसलों में मिल जाएंगे. देशभर में दलितों को बारबार एहसास दिलाया जाता है कि संविधान में उन्हें बहुत सी छूट दी हैं पर यह कृपा है और उस के लिए उन्हें हर समय नाक रगड़ते रहनी पड़ेगी. महाराष्ट्र म्यूनिसिपल टाउनशिप ऐक्ट में यह हुक्म दिया गया है कि अगर दलित या पिछड़ा चुनाव लड़ेगा तो उस को अपनी जाति का सर्टिफिकेट नौमिनेशन के समय या चुने जाने के 6 महीने में देना होगा.

यह अपनेआप में उसी तरह का कानून है जैसा एक जमाने में दलितों को घंटी बांध कर घूमने के लिए बना था ताकि वे ऊंची जातियों को दूर से बता सकें कि वे आ रहे हैं. यह वैसा ही है जैसा केरल की नीची जाति की नाडार औरतों के लिए था कि वे अपने स्तन ढक नहीं सकतीं ताकि पता चल सके कि वे दलित अछूत हैं. दोनों मामलों में इन लोगों से जी भर के काम लिया जा सकता था पर दूरदूर रख कर.

गरीब की ताकत है पढ़ाई

कानून यह भी कहता है कि हर समय अपना जाति प्रमाणपत्र रखो. क्यों? ब्राह्मणों को तो हर समय या कभी भी अपना जाति सर्टिफिकेट नहीं चाहिए होता तो पिछड़े दलित ही क्यों लगाएं? क्यों वे कलेक्टर, तहसीलदार से अपना सर्टिफिकेट बनवाएं? उन्होंने किसी आरक्षित सीट के लिए कह दिया कि वे पिछड़े या दलित हैं तो मान लिया जाए. आज 150 साल की अंगरेजी पढ़ाई, बराबरी के नारों के बावजूद भी क्यों जाति का सवाल उठ रहा है? क्या पढ़ेलिखे विद्वानों के लिए 150 साल का समय कम था कि वे जाति का सवाल ही नहीं मिटा सकते थे? जब हम मुगलों और ब्रिटिशों के राज से छुटकारा पा सकते थे तो क्या दलित पिछड़े के तमगों से नहीं निकल सकते थे?

अस्वच्छ भारत

यहां तो उलट हो रहा है. शंकर देवरे पाटिल के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उस कानून को सही ठहराया है जिस ने यह जबरन कानून थोप रखा है कि आरक्षित सीट पर खड़े होना है तो सर्टिफिकेट लाओ. यह अपमानजनक है. यह दलितों, पिछड़ों को एहसास दिलाने के लिए है कि वे निचले, गंदे, पैरों की धूल हैं. यह बराबरी के सिद्धांत के खिलाफ है.

दलितों और पिछड़ों को जो भी छूट मिले उन्हें बिना किसी प्रमाणपत्र लटकाए मिलनी चाहिए. अगर ऊंची जाति का कोई उस का गलत फायदा उठाए तो उस के लिए सजा हो, दलित पिछड़े के लिए नहीं. वैसे भी ऊंची जाति का कोई दलित पिछड़े को दोस्त तक नहीं बनाता, वह उन की जगह कैसे लेगा? ऊंची जातियों का आतंक इतना है कि नीची जाति वाले तो हर समय चेहरे पर ही वैसे ही अपने सर्टिफिकेट गले में लटकाए फिरते हैं. नरेंद्र मोदी कहते रहें कि हिंदू आतंकवादी नहीं हैं पर लठैतों के सहारे दलितों और पिछड़ों पर जो हिंदू आतंक 150 साल में नई हवा के बावजूद भी बंद नहीं हुआ, वह सुप्रीम कोर्ट की भी मोहर इसी आतंकवाद की वजह से पा जाता है.

गरीबी बनी एजेंडा

कभी भी इन 5 चीजों को ना खाएं खाली पेट, होती हैं गंभीर बीमारियां

स्वस्थ रहने के लिए केवल खाना जरूरी नहीं है. आप क्या और कब खा रहे हैं, इसका सेहत पर काफी असर होता है. सही समय पर सही चीज खाना ही आप अच्छी सेहत का राज है.

कोई भी खाना आपकी टाइमिंग पर काफी निर्भर करता है. सुबह में जो चीज आपके लिए फायदेमंद है, हो सकता है रात में उसे खाने से आपकी सेहत पर नकारात्मक असर पड़े. इस खबर में हम आपको ऐसी ही कुछ चीजों के बारे में बताएंगे, जिनको खाली पेट खाना आपकी सेहत के लिए खतरनाक हो सकता है.

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टमाटर:

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टमाटर हमारी सेहत के लिए कई मायनों में फायदेमंद होता है. विटामिन और एंटीऔक्सिडेंट से भरपूर टमाटर को अगर सही समय पर ना खाया जाए तो ये हमारे लिए हानिकारक हो सकता है. चूंकि ये एसिडिक होता है, इसे खाली पेट खाना काफी नुकसानदायक हो सकता है. अल्सर से पीड़ित लोगों के लिए ये खतरनाक स्थिति हो सकती है.

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कौफी या चाय:

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अक्सर लोगों को बेड टी या कौफी की आदत होती है. जागते ही लोगों को चाय या कौफी चाहिए होती है. पर इसका सेहतच पर काफी बुरा असर पड़ता है. हमारे शरीर को ये काफी नुकसान पहुंचाते हैं. आपको बता दें कि खाली पेट कौफी पीने से शरीर में हाइड्रोक्लोरिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती है और इससे कब्ज व वोमिटिंग की समस्या बढ़ जाती है. इससे पाचनतंत्र पर भी काफी बुरा असर पड़ता है.

पेस्ट्रीज:

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नाश्ते में लोग अक्सर पेस्ट्रीज लेते हैं. ब्रेकफास्ट के लिए ये अच्छा औप्शन है, चूंकि इनमें यीस्ट होता है, खाली पेट लेने से कई तरह की पेट की समस्याएं आ सकती है.

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कार्बोनेटेड ड्रिंक्स:

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आमतौर परकोल्ड ड्रिंक्स या सौफ्ट ड्रिंक्स हमारी सेहत के लिए काफी हानिकारक होते हैं. इन्हें खाली पेट लेना सेहत के लिए और भी खतरनाक हो सकता है. सुबह उठते ही खाली पेट कार्बोनेटेड ड्रिक्स पीने से कैंसर व अन्य हार्ट बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है.

खट्टे फलों से रहें दूर:

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सुबह में खट्टे फलों से दूर रहें. फल जैसे संतरा, अंगूर, नींबू में विटामिन सी, फाइबर और एंटीऔक्सिडेंट के तत्वों से भरपूर होते हैं, पर अगर आप इनका सुबह में खाली पेट सेवन करते हैं तो ये आपके पेट के लिए काफी हानिकारक होते हैं.

क्या इस टीवी एक्ट्रेस ने तलाक के बदले मांगे 2 करोड़ रूपए, जानें पूरा सच

छोटे परदे की जानी-मानी एक्ट्रेस वाहबिज दोराबजी अपने पति से तलाक लेने वाली हैं. हाल ही में ऐसी खबर आईं है. और इसके लिए उन्होंने विवियन से 2 करोड़ रुपये की भी मांग की हैं. वाहबिज ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक ओपन लेटर लिखा हैं, जिसमें उन्होंने ऐसी सभी अफवाहें बंद करने की मांग करते हुए बहुत सारी बातें कही हैं.

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वाहबिज ने लिखा है, ‘जो लोग मेरे तलाक में इतना इंट्रेस्ट ले रहे हैं क्या वो बताएंगे कि उन्होंने कभी अपने आपको ऐसी स्थिति में पाया है ? क्या आप अपनी जिंदगी के सबसे खराब दिनों से गुजरे हैं और अपने आपसे पूछा है कि यह मेरे साथ ही क्यों हो रहा है यह किसी भी लड़की के लिए शर्मिंदगी की बात है कि उसको लेकर ऐसी खबरें सामने आ रही हैं. वाहबिज ने ऐसे समय में चुप रहने की जगह अपनी बात खुलकर कहना सही समझा.

 

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सोचकर देखिए ऐसी स्थिति में आप पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया जाए… सबसे खराब बात तब होती है जब ऐसे सवाल आपके करीबियों से नहीं बल्कि उन लोगों से आते हैं जो आपको जानते ही नहीं हैं. जब आप इन चीजों को लेकर परेशान होते हैं तो आपसे कहा जाता है कि यह एक सेलेब्रिटी होने की कीमत है.

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बालों में खुजली की समस्या से राहत पाने के ये हैं 4 उपाय

अगर आपके भी बालों में खुजली होती है तो इसके कई कारण हो सकते हैं. बालों की जड़ों में रूखेपन के कारण भी खुजली होती है या तो डैंड्रफ की समस्या हो सकती है. अगर डैंड्रफ का भी इलाज नहीं किया गया तो आपके सिर में इंफेक्शन भी हो सकता है. तो आइए बालों की खुजली की समस्या से निजात पाने के लिए आपको कुछ घरेलू उपाय बताते हैं जिससे आप अपना सकती हैं.

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  1. ऐलोवेरा

ऐलोवेरा का इस्तेमाल आपके बालों को सुंदर, मजबूत और डैंड्रफ फ्री कर सकता है. जी हां, अगर ऐलोवेरा जेल को बालों की जड़ों में थोड़ी देर मसाज करके 15 मिनट बाल शैम्पू से लें तो सिर में खुजली की समस्या दूर हो जाती है.

2. सेब का सिरका

ये सिर की गंदगी को साफ करने के लिए बहुत समय से उपयोग किया जा रहा है. तीन चौथाई पानी के साथ एक चौथाई सेब का सिरका मिलाकर बालों में रोज मालिश करने से सिर में खुजली की समस्या दूर हो जाती है.

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3. नींबू और शहद

नींबू भी एंटी-बैक्टीरियल, एंटीफंगल गुणों से लैस होता है. बस शहद में नींबू का रस मिलाइए और बालों की जड़ों में मसाज कीजिए, 15 मिनट बाद सिर धो लीजिए. खुजली और डैंड्रफ की समस्या से छुटकारा मिल जाएगा.

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4. टी ट्री औयल

टी ट्री औयल का प्रयोग लोग सुंदरता बढ़ाने के लिए करते रहे हैं. इसमें टरपीन्स नाम को यौगिक मौजूद होता है जो एंटी-बैक्टीरियल, एंटीफंगल गुणों से लैस होता है. इसके उपयोग से बालों की जड़ों में नमी बनी रहती है और खुजली से निजात मिल जाती है.

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posted by- Saloni

ज्यादा पानी पीना हो सकता है खतरनाक, जानें क्यों

आपके शरीर में 60 प्रतिशत पानी होता है. पाचन, अवशोषण, पोषक तत्व पहुंचाने और शरीर के तापमान को ठीक बनाए रखने में मदद करता है. आप जानते हैं कि कम पानी से शरीर थका हुआ और डी-हाइड्रेटड हो जाता है, लेकिन क्या कभी आपने सोचा है जरूरत से ज़्यादा पानी पीने से क्या होता है?

एक अन्तर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ पैनल के नए दिशा-निर्देशों के अनुसार, हाइपोनैट्रिमया (ईएएच) (ब्लड में सोडियम की कमी) से बचने के लिए पानी का सेवन सिर्फ तभी करें, जब आपको प्यास लगी हो. यह दिशा-निर्देश ‘क्लिनीकल जरनल औफ स्पोर्ट मेडिसिन’ में छपे थे.

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ज्यादा पानी पीने के नुकसान

– ज्यादा पानी पीने की सीमा होनी चाहिए और ज़्यादा डी-हाइड्रेशन से बचने के लिए, जब पर्याप्त तरल       पदार्थ दिए जाते हैं तो उससे हाइपोनैट्रिमया का विकास होता है.

–   किडनी की अतिरिक्त पानी पचाने की क्षमता कमजोर होने लगती है और शरीर में मौजूद सोडियम     पतला होने लगता है.

– ज्यादा पानी पीने से कोशिकाओं में सूजन आने लगती है, जो कि जीवन के लिए खतरनाक साबित हो     सकती है.

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ज्यादा पानी पीने से होने वाले नुकसानों की पहचान के लक्षण

– इसके शुरूआती लक्ष्ण हैं चक्कर आना, उबकाई, सूजन और एथलेटिक इवेंट के दौरान वजन बढ़ना.

– समस्या बढ़ जाने पर ईएएच के दौरान उल्टी, सिर दर्द, मानसिक स्थिती का बदलना ( भ्रम, उत्तेजक और बेहोशी) और कोमा जैसे लक्ष्ण देखने को मिलते हैं.

– कठिन प्रतियोगिता जैसे मैरेथान, ट्रायथलान, स्विंमींग, रेस और सैन्य अभ्यास के दौरान ईएएच हो सकता है.

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गरीब की ताकत है पढ़ाई

हमारे देश में ही नहीं, लगभग सभी देशों में गरीब, मोहताज, कमजोर पीढ़ी दर पीढ़ी जुल्मों के शिकार रहे हैं. इसकी असली वजह दमदारों के हथियार नहीं, गरीबों की शिक्षा और मुंह खोलने की कमजोरी रही है. धर्म के नाम पर शिक्षा को कुछ की बपौती माना गया है और उसी धर्म देश के सहारे राजाओं ने अपनी जनता को पढ़ने-लिखने नहीं दिया. समाज का वही अंग पीढ़ी दर पीढ़ी राज करता रहा जो पढ़-लिख और बोल सका.

बिकाऊ मीडिया

2019 के चुनाव में भी यही दिख रहा है. पहले बोलने या कहने के साधन बस समाचारपत्र या टीवी थे. समाचारपत्र धन्ना सेठों के हैं और टीवी कुछ साल पहले तक सरकारी था. इन दोनों को गरीबों से कोई मतलब नहीं था. अब डिजिटल मीडिया आ गया है, पर स्मार्टफोन, डेटा, वीडियो बनाना, अपलोड करना खासा तकनीकी काम है जिस में पैसा और समय दोनों लगते हैं जो गरीबों के पास नहीं हैं.

गरीबों की आवाज 2019 के चुनावों में भी दब कर रह गई है. विपक्ष ने तो कोशिश की है पर सरकार ने लगातार राष्ट्रवाद, देश की सुरक्षा, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर जनता को बहकाने की कोशिश की है ताकि गरीबों की आवाज को जगह ही न मिले. सरकार से डरे हुए या सरकारी पक्ष के जातिवादी रुख से सहमत मीडिया के सभी अंग कमोबेश एक ही बात कह रहे हैं, गरीब को गरीब, अनजान, बीमार चुप रहने दो.

मोदी की नैया

चूंकि सोशल, इलैक्ट्रोनिक व प्रिंट मीडिया पढ़ेलिखों के हाथों में है, उन्हीं का शोर सुनाई दे रहा है. आरक्षण पाने के बाद भी सदियों तक जुल्म सहने वाले भी शिक्षित बनने के बाद भी आज भी मुंह खोलने से डरते हैं कि कहीं वह शिक्षित ऊंचा समाज जिस का वे हिस्सा बनने की कोशिश कर रहे हैं उन का तिरस्कार न कर दे. कन्हैया कुमार जैसे अपवाद हैं. उन को भीड़ मिल रही है पर उन जैसे और जमा नहीं हो रहे. 15-20 साल बाद कन्हैया कुमार क्या होंगे कोई नहीं कह सकता क्योंकि रामविलास पासवान जैसों को देख कर आज कोई नहीं कह सकता कि उन के पुरखों के साथ क्या हुआ. रामविलास पासवान, प्रकाश अंबेडकर, मायावती, मीरा कुमार जैसे पढ़लिख कर व पैसा पा कर अपने समाज से कट गए हैं.

बदलना होगा शहरों के पुराने इलाकों को

2019 के चुनावों के दौरान राहुल गांधी गरीबों की बात करते नजर आए पर वोट की खातिर या दिल से, कहा नहीं जा सकता. पिछड़ों, दलितों ने उन की बातों पर अपनी हामी की मोहर लगाई, दिख नहीं रहा. दलितों से जो व्यवहार पिछले 5 सालों में हुआ उस पर दलितों की चुप्पी साफ करती है कि यह समाज अभी गरीबी के दलदल से नहीं निकल पाएगा. हां, सरकार बदलवा दे यह ताकत आज उस में है पर सिर्फ उस से उस का कल नहीं सुधरेगा. उसे तो पढ़ना और कहना दोनों सीखना होगा. आज ही सीखना होगा. पैन ही डंडे का जवाब है.

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5 टिप्स: दांतों का पीलापन हटाएं और पाएं परफेक्ट स्माइल

एक अच्छी स्माइल के लिए दांतों का सफेद होना भी जरूरी होता है. दांतों का पीलापन हमारी पर्सेनेलिटी के लिए कभी-कभी दाग की तरह हो जाता है. हर कोई ब्यूटीफुल दिखने के लिए कई तरह के प्रोडक्ट्स ट्राई करता है लेकिन जब बात दांतों की आती है तो हम कोशिश करते हैं कि घरेलु नुस्खों से ही उनका इलाज हो तो वह बढ़िया रहता है. इसीलिए आज हम आपको कुछ होममेड टिप्स बताएंगे. जिससे आप लंबे समय तक के लिए दांतों के पीलेपन से छुटकारा पा सकते हैं…

1. दांतों के पीलेपन को हटाने के लिए नमक है असरदार

दांतों के पीलेपन हटाने और मोतियों जैसा सफेद बनाने के लिए नमक का इस्तेमाल बहुत होता है. नमक में भारी मात्रा में सोडियम और क्लोराइड होता है, जो दांतों का पीलापन कम करने में मदद करता है. दांत साफ करते वक्त हमेशा ब्रश में पेस्ट के साथ थोड़ा सा नमक जरूर रखें. आप खुद देखेंगे कि कुछ ही दिनों में आपके दांत साफ हैं, लेकिन ध्यान रहे नमक के ज्यादा इस्तेमाल से दांतों के इनेमल को नुकसान पहुंच सकता है.

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2. पीलेपन को हटाने के लिए अपनाएं दूध के प्रोडक्ट्स

वैसे तो आपको बाजार में कई तरह के प्रोडक्ट्स दांत चमकाने के लिए मिल जाते हैं, लेकिन इनसे दांतों को फायदा मिलने के बजाय नुकसान पहुंचने के चांस ज्यादा होते हैं. जिस तरह से नेचुरल प्रोडक्ट आपके दांतों को साफ और मजबूत कर सकते हैं उस तरह कोई और नहीं कर सकते हैं. दूध और दूध से बने प्रोडक्ट्स हमारे दांतों से बहुत जल्द पीलापन दूर करते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि दूध में ज्यादा कैल्शियम होता है, जो दांतों के लिए बहुत जरूरी होता है.

3. ब्रश करते टाइम नींबू का करें इस्तेमाल

दांत के बैक्टीरिया को मारने और दांतों को सफेद करने के लिए नींबू वाकई बहुत असरदार है. खाना खाने के बाद नींबू से ब्रश करने पर बहुत फायदा होता है. रोजाना रात के खाने के बाद एक नींबू का रस निकालकर उसमें बराबर मात्रा में पानी मिला लें. खाने के बाद इस पानी का कुल्ला करें. रोजाना ऐसा करने से दांतों का पीलापन और सांसों की बदबू दूर हो जाती है. अगर आप ऐसा रोज नहीं कर सकते हैं तो हफ्ते में एक बार जरूर करें.

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4. बेकिंग सोडा से करें दांतों को साफ

दांतों का पीलापन दूर करने के लिए बेकिंग सोडा बहुत कारगार है. जिस तरह हम दांत साफ करते वक्त नमक का इस्तेमाल करते हैं उसी तरह बेकिंग सोडा का इस्तेमाल भी करना है. यानी ब्रश करते वक्त अपने पेस्ट में थोड़ा सा बेकिंग सोडा मिला लें और अब धीरे-धीरे अपने दांत साफ करें. कुछ ही दिनों में आप देखेंगे कि आपके दांतों पर जमी पीली परत धीरे-धीरे साफ हो रही है.

edited by- rosy

हाय रे पर्यटन

सहेलियों पर अपना रोब झाड़ने के लिए मिसेज शर्मा ने किसी हिल स्टेशन  पर जाने की चेतावनी दे डाली. मैं, बेचारा अपनी जेब की तंगदिली का मारा हुआ, कभी पत्नी और बच्चों के उत्साह को देखता तो कभी पर्यटन के नाम पर शौपिंग करते हुए पैसों को धूंधूं उड़ते हुए.

आजकल पर्यटन पर खास जोर है. जिसे देखो वही कहीं न कहीं जा रहा है. कोई शिमला, कोई मनाली, कोई ऊटी. पत्नी भी कहां तक सब्र रखती, आखिर एक दिन कह ही दिया, ‘‘देखो, बहुत हो गया. इतने साल हो गए हमारी शादी को, आप कहीं नहीं ले जाते. ले दे कर पीहर और रिश्तेदारों के अलावा आप की डायरी में दूसरी कोई जगह ही नहीं है. अब तो किटी में भी लोग मुझ से पूछते हैं, ‘मिसेज शर्मा, आप कहां जा रही हो.’ अब मैं क्या जवाब दूं. मैं ने भी उन से कह दिया कि हम भी इस बार हिल स्टेशन जा रहे हैं.

‘‘इस बार आप पक्की तरह सुन ही लो. हमें इस बार किसी न किसी हिल स्टेशन पर जाना ही है, चाहे लोन ही क्यों न लेना पड़े. मेरी नाक का सवाल है,’’ यह कह कर वह कोपभवन में चली गईं.

हमारे जैसे शादीशुदा लोग पत्नी के कोप से अच्छी तरह परिचित हैं. वे जानते हैं कि एक बार निर्णय लेने के बाद पत्नियों को कोई नहीं समझा सकता, सो मैं ने समझौतावादी नीति अपनाई और उन्हें बातचीत के लिए आमंत्रित किया. एकतरफा बातचीत के बाद मैं ने मान लिया कि इस बार शिमला जाना ही हमारी नियति है.

रेलवे टाइमटेबिल में से कुछ गाडि़यां नोट कर मैं रिजर्वेशन कराने रेलवे के आरक्षण कार्यालय पहुंचा. कार्यालय बिलकुल खाली पड़ा था. मैं मन ही मन खुश हो उठा कि चलो अच्छा हुआ, अभी 5 मिनट में रिजर्वेशन हो जाएगा.

चंद मिनटों में मेरा नंबर भी आ गया.

‘‘लाइए,’’ यह कहते हुए आरक्षण क्लर्क ने मेरा फार्म पकड़ा और उस पर अपनी पैनी नजर फिरा कर मुझे वापस पकड़ा दिया.

‘‘क्या हुआ?’’ मैं ने चौंक कर पूछा, ‘‘आप ने फार्म वापस क्यों दे दिया?’’

वह क्लर्क हंस कर बोला, ‘‘भाईसाहब, गाड़ी में नो रूम है यानी कि अब जगह नहीं है.’’

‘‘तो कोई बात नहीं, दूसरी गाड़ी में दे दीजिए.’’

‘‘इस समय इस ओर जाने वाली किसी भी गाड़ी में कोई जगह नहीं है.’’

‘‘कैसी बात करते हैं. सारे काउंटर खाली पड़े हैं और आप हैं कि…’’

‘‘ऐसा है, आप तैश मत खाइए. सारी गाडि़यां 2 महीने पहले ही बुक हो गई हैं. अब कहें तो जुलाई का दे दें.’’

एकाएक मुझे खयाल आया कि मैं भी कैसा बेवकूफ हूं. नहीं मिला तो अच्छा ही हुआ. अब कम से कम इस बहाने जाने से तो बचा जा सकता है.

मैं खुशीखुशी घर लौट आया और जैसे ही घर में प्रवेश किया तो यह देख कर हैरान रह गया कि वहां महल्ले की किटी कार्यकारिणी की सभी महिला पदाधिकारी अपने बच्चों सहित मौजूद थीं.

‘‘भाईसाहब, बधाई हो, आप ने शिमला का निर्णय ठीक ही लिया, पर लगे हाथ कुल्लूमनाली भी हो आइएगा,’’ मिसेज वर्मा बोलीं.

‘‘अरे, जब वहां जा रहे हैं तो कुल्लूमनाली को कैसे छोड़ देंगे,’’ श्रीमतीजी चहक कर बोलीं.

‘‘और भाईसाहब, रिजर्वेशन ए.सी. में ही करवाइएगा, नहीं तो आप पूरे रास्ते परेशान हो जाएंगे.’’

‘‘अरे भाभीजी, हमारे साहब के स्वभाव में तकलीफ उठाना तो बिलकुल नहीं है. हम ने तो ए.सी. में ही रिजर्वेशन करवाया है. इन्होंने तो होटल में भी ए.सी. रूम ही बुक करवाए हैं.’’

मुझे काटो तो खून नहीं. केवल स्टेटस सिंबल के लिए श्रीमतीजी झूठ पर झूठ बोलती जा रही थीं.

चायनाश्ते के दौर के बाद जब महिला ब्रिगेड विदा हुई तो मैं धम से सोफे पर पड़ गया.

उन्हें छोड़ कर वे अंदर आईं तो मेरा हाल देख कर घबरा गईं, ‘‘क्या हो गया, तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न.’’

मैं ने श्रीमतीजी को रिजर्वेशन की असलियत बताई तो वह बिफर उठीं, ‘‘तुम कैसे आदमी हो, तुम से एक रिजर्वेशन नहीं हुआ. मैं नहीं जानती. मुझे इस बार शिमला जरूर जाना है. अब तो मेरी नाक का सवाल है,’’ कह कर वह अंदर चली गईं.

बेटी, मां की बात सुन कर मुसकराई, ‘‘देखो पापा, मम्मी की नाक का सवाल बहुत बड़ा होता है. इस सवाल में अच्छेअच्छों के कान भी कट जाते हैं. ऐसा करते हैं, गाड़ी कर के चलते हैं.’’

अब इस फैसले को मानने के अलावा मेरे पास कोई चारा नहीं था.

सीने पर पत्थर रख कर मैं गाड़ी की बात करने गया. गाड़ी का रेट सुन कर मेरे होश उड़ गए, पर क्या करता, श्रीमतीजी की नाक का सवाल सब से बड़ा था. मुझे लगा, जितने पैसे में घूम कर आ जाते, उतना तो गाड़ी ही खा जाएगी, लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था.

देखतेदेखते वह दिन भी आ गया. सोसायटी की सभी महिलाएं विदा करने आईं. श्रीमतीजी फूली नहीं समा रही थीं. वह मेरी तरफ ऐसे देख रही थीं जैसे कह रही हों, देखो, मेरी इज्जत. हां, बात करतेकरते सभी महिलाएं अपने लिए शिमला से कुछ न कुछ लाने की फरमाइश कर रही थीं, जिसे श्रीमतीजी सहर्ष स्वीकार करती जा रही थीं. इन फरमाइशों की सूची सुन कर मेरा दिल घबराने लगा था.

अंतत: गाड़ी रवाना हुई तो श्रीमतीजी ने प्रधानमंत्री की तरह हाथ हिला कर सोसायटी वालों से विदा ली. थोड़ी देर में सूरज सिर पर आ गया. लू के थपेड़े चलने लगे. गाड़ी बुरी तरह तप रही थी. जहां हाथ लगाओ वहीं ऐसा लगता था जैसे गरम सलाख दाग दी गई हो. कुछ देर में पत्नी, फिर बेटी धराशायी हो गई.

बेटा मां से लड़ने लगा, ‘‘यह कौन सा हिल स्टेशन है? हम सहारा मरुस्थल में चल रहे हैं क्या?’’

श्रीमतीजी कराहती हुई बोलीं, ‘‘अरे बेटा, यह तेरे पापा की कंजूसी से ऐसा हुआ है. मैं ने तो ए.सी. गाड़ी लाने को कहा था.’’

जवाब में बेटा और बेटी अपने कलियुगी पिता को घूरने लगे. मैं क्या करता, मैं ने निगाहें नीचे कर लीं.

दवाइयां खाते, उलटियां करते जैसेतैसे कर के शिमला तक पहुंचे. शिमला तक का रास्ता आलोचनाओं में अच्छी तरह कटा. उन की आलोचनाओं का केंद्र मैं जो था.

शिमला पहुंच कर सब ने चैन की सांस ली. ड्राइवर ने सड़क के एक ओर गाड़ी लगा दी.

बेटा अचानक गाड़ी को रुकते देख बोला, ‘‘क्यों पापा, होटल आ गया?’’

‘‘हां, बेटा, तेरे पापा ने फाइव स्टार होटल बुक करा रखा है,’’ श्रीमतीजी व्यंग्य से बोलीं.

ड्राइवर भी हैरान रह गया, ‘‘क्या साहब, आप ने होटल भी बुक नहीं करवाया? सीजन का टाइम है. क्या पहली बार घूमने आए हो?’’

‘‘हां, भैया, पहली बार ही आए हैं. हमारी तकदीर में बारबार घूमने आना कहां लिखा है,’’ श्रीमतीजी लगातार वार पर वार कर रही थीं, ‘‘जा बेटा, उठ और होटल ढूंढ़, मेरे तो बस की नहीं है.’’

फिर बेटे और बेटी को ले कर गलीगली घूमने लगा. ज्यादातर होटल भरे हुए थे, हार कर एक बहुत महंगा होटल कर लिया. अब सब बहुत खुश थे.

उस दिन आराम किया. शाम को माल रोड घूमने निकले. मैं उन्हें बता रहा था, ‘‘देखो, रेलिंग के नीचे घाटी कितनी सुंदर लग रही है,’’ पर घाटी को निहारने के बाद अपना सिर घुमाया तो पाया मैं अकेला था. ये तीनों अलगअलग दुकानों में घुसे हुए थे.

थोड़ी देर बाद बेटी आई और हाथ पकड़ कर दुकान में ले गई, ‘‘देखो पापा, कितनी सुंदर ड्रेस है.’’

‘‘अच्छा भई, कितने की है?’’ लाचारी में मुझे पूछना पड़ा.

‘‘बस सर, सस्ती है. आप को डिस्काउंट में दे देंगे. मात्र 2 हजार रुपए.’’

मुझे मानो करंट लगा, ‘‘अरे भई, तुम तो दिन दहाड़े लूटते हो. यह डे्रस तो कोटा में 300-400 से ज्यादा की नहीं मिलती है.’’

दुकानदार ने डे्रस मेरे हाथ से छीन ली, ‘‘कोई दूसरी दुकान देखिए साहब, हमारा टाइम खराब मत कीजिए.’’

बेटी को भारी धक्का पहुंचा. बाहर निकलते ही वह रोने लगी, ‘‘आप भी बस पापा, कितना अपमान करवाते हैं.’’

तभी श्रीमतीजी भी बेटे के साथ आ गईं. बेटी को रोते देख उन्होंने मेरी जो क्लास ली कि मेरी जेब का अच्छाखासा पोस्टमार्टम हो गया.

दूसरे दिन कूफरी घूमने का प्रोग्राम बना. कूफरी में घोड़े वाले पीछे पड़ गए कि साहब, ऊपर पहाड़ी पर चलें. मुझे घुड़सवारी में कोई दिलचस्पी नहीं है और फिर रेट इतने कि मैं ने साफ मना कर दिया.

‘‘तुम ऊपर चले चलोगे तो बच्चों का मन बहल जाएगा. बच्चों का मन रखने के लिए क्या इतना भी नहीं कर सकते.’’

‘‘नहीं, बिलकुल नहीं कर सकता,’’ मुझे पत्नी पर गुस्सा आ गया, ‘‘एक बार घर वालों का मन रखने के लिए घोड़ी पर चढ़ा था जिस का मजा आज तक भोग रहा हूं… अब और रिस्क नहीं ले सकता.’’

मेरे इस व्यंग्य को सुन कर श्रीमतीजी ने रौद्र रूप धारण कर लिया. फिर क्या था, मुझे सपरिवार घोड़े की सवारी करनी ही पड़ी. लेकिन जिस बात का डर था, वही हुआ. घोड़े पर से उतरते वक्त मैं संतुलन खो बैठा और धड़ाम से नीचे जा गिरा. मेरे पांव में मोच आ गई. मेरा उस दिन का सफर गाड़ी में बैठेबैठे ही पूरा हुआ. वे बाहर घूमतेफिरते, मजे करते रहे और मैं अंदर बैठाबैठा कुढ़ता रहा.

शाम को वहीं एक डाक्टर को दिखाया. उस ने कहा, ‘‘कोई चिंता की बात नहीं है. एकदो दिन आराम करोगे तो ठीक हो जाएगा.’’

दूसरे दिन सुबह मैं पलंग पर लेटा रहा. तीनों सदस्य अर्थात श्रीमतीजी, पुत्र व पुत्री तैयार होते रहे. थोड़ी देर बाद वे तीनों एकसाथ आ कर मेरे सामने बैठ गए.

मैं बोला, ‘‘कोई बात नहीं. चोट लग गई तो लग गई. तुम लोग परेशान मत हो. जा कर घूम आओ.’’

‘‘हम क्यों परेशान होंगे. हम तो पैसे के लिए बैठे हैं.’’

पैसे ले कर तीनों सुबह के निकले तो रात तक ही लौट कर आए. उन्होंने इतना सामान लाद रखा था कि बड़ी मुश्किल से उठा पा रहे थे.

धीरेधीरे उन्होंने एकएक सामान का रेट बताना शुरू किया तो मेरा दिल बैठ गया. मैं ने खर्च का हिसाब लगाया तो सिर्फ इतने ही रुपए बचे थे कि बस होटल का बिल चुका कर हम जैसेतैसे घर पहुंच सकें.

रात को बैठ कर सारी पैकिंग की गई. कुल्लूमनाली न जाने की बाबत अफसोस जाहिर किया गया और यह चिंता जतलाई गई कि अब श्रीमतीजी घर पहुंच कर कैसे मुंह दिखाएंगी.

दूसरे दिन उदासी भरे चेहरों को ले कर वे शिमला से रवाना हुए और साथ में मुझे लेना भी नहीं भूले.

कुछ घंटों बाद जब हमारी कार पहाड़ों को छोड़ कर मैदानों में पहुंची तो गरमी अपना विकराल रूप दिखाने लगी. लू के थपेड़े खाते हुए जब हम घर पहुंचे तो श्रीमतीजी के आगमन पर पूरा महल्ला इकट्ठा हो गया. श्रीमतीजी रास्ते की थकान भूल गईं.

वह बढ़ाचढ़ा कर शिमला का बखान सुनाने लगीं. सब लोग धैर्य से सुनते रहे. फिर समापन के समय वस्तुवितरण समारोह हुआ. श्रोताओं का धैर्य टूट गया. वे सामानों की आलोचना करने लगे.

‘‘अरे, मिसेज शर्मा, यह शाल थोड़ा आप हलका ले आई हैं.’’

‘‘हां, कपड़े भी ठीक नहीं आए. फुटपाथ से लेने में क्वालिटी हलकी आ ही जाती है.’’

‘‘मिसेज शर्मा, आप ने तो बस घूमने का नाम ही किया, कुल्लूमनाली हो कर आतीं तो कुछ बात भी थी.’’

थोड़ी देर बाद सब चले गए. घर की 3 सदस्यीय ज्यूरी के सामने मैं अपराधी बैठा था. अपराध सिद्ध करने के लिए महल्ले के सभी गवाह पर्याप्त थे.

मुझे दोषी माना गया और सजा दी गई कि अब क्रिसमस की छुट्टियों में गोवा घूमने चलेंगे, जिस का सब इंतजाम बेटा पहले से ही कर लेगा और मुझे सिर्फ एक काम करना होगा, एक भारी राशि का चेक साइन करना होगा ताकि सबकुछ अच्छी तरह से निबट सके.

इक जरा हाथ छूटा तेरा, रास्ते ही जुदा हो गये

जबसे तुम बेवफ़ा हो गये
आदमी से ख़ुदा हो गये
तुम मिले दोस्त बन के मगर
दोस्ती की सज़ा हो गये
अब कभी आके मिलते नहीं
मुफ़लिसों की दुआ हो गये
इक ज़रा हाथ छूटा तेरा
रास्ते ही जुदा हो गये
नींद आंखों में आती नहीं
सारे सपने खफा हो गये
अब ये आंसू ये तन्हाइयां
मेरे ग़म की दवा हो गये

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अमिताभ बच्चन ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक जोक शेयर किया हैं, जिसमें उन्होंने नेताओं से लेकर भारतीय पत्नियों को निशाना साधा हैं. बिग बी ने इस जोक में लिखा हैं कि पत्नी- शादी से पहले तुम मुझे होटल, सिनेमा, और न जाने कहां- कहां घुमाते थे… शादी हुई तो घर के बाहर भी नहीं ले जाते.. पति- क्या तुमने कभी किसी को… चुनाव के बाद प्रचार करते देखा है.

मैं अपने कैरियर में हमेशा चूजी रहा हूं : राम कपूर

संघर्ष से सब को गुजरना पड़ता है : अक्षय कुमार

अमिताभ बच्चन के इस जोक को कई सारे लोगों ने लाइक किया हैं और इस पर कई कमेंट भी आ रहे हैं. बिग बी के आने वाले फिल्म की चर्चा की जाए तो वो जल्द ही रणबीर कपूर और आलिया भट्ट की बिग बजट सुपरहीरो फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र’ में नजर आएंगे. इसके साथ-साथ अमिताभ बच्चन अपनी सुपरहिट फिल्म ‘आंखे’ के सीक्वल में भी काम करते दिखेंगे.

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