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इन 6 खूबसूरत बौलीवुड एक्ट्रेसेस के डिंपल वाली स्माईल के दीवाने है हजारों

फिल्मी सितारों के व्यक्तित्व में कुछ खास बात होती है. वे अपने व्यक्तित्व और आकर्षण से सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं. स्क्रीन पर महज अपनी मौजूदगी से ही वे आपको मंत्रमुग्ध कर देते हैं. उनकी ब्यूटी और बाहरी लुक्स के विपरीत एक और ऐसी चीज़ होती है जो आपके ध्यान को उनकी ओर ले जाती है. जी हां हम बात कर रहे है बौलीवुड की उन एक्ट्रेसेस की जिनके हंसने से गालों पर पड़ने वाले डिंपल मामूली से गढ्ढे होते है पर चेहरे की खूबसूरती को कई गुना बढ़ा देते है.

हम आपको 6 ऐसी एक्ट्रेस के बारे में बताएंगे. जो अपने डिम्पलज से सभी का दिल जीत रहीं हैं. जब एक्ट्रेसेस के डिंपल की बातों हो तो सबसे पहले प्रीति जिंटा का नाम ही सामने आता है. उनकी डिंपल वाली स्माईल को कोई कैसे भूल सकता है.

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प्रीति जिंटा

आपको एक साबुन का मशहूर एड तो जरूर याद होगा जिसमें एक खूबसूरत लड़की मस्ती में झरने में नहा रही होती है. जिसके हसने से गालों पर पड़ते डिंपल उसको और भी खूबसूरत दिखा रहे होते है जी हां हम बात कर रहे है डिंपल गर्ल प्रीति जिंटा की. जिनके इस एड ने उनको डिंपल गर्ल के रूप में फेमस कर दिया था. इस एड के बाद प्रीति जिंटा ने अपनी एक्टिंग के बल पर बौलीवुड में अपनी एक खास जगह बनाई है. लेकिन उनको अब भी डिंपल गर्ल के रूप में ही जाना जाता है उनके डिंपल ने उनकी खूबसूरती में चार-चांद लगा कर उनकी और बेहतर लुक दिया है.

पिछले साल इंडिया टुडे कौनक्लेव ईस्ट में जब रेपिड फायर राउंड में प्रीति जी जिंटा से पूछा गया कि यदि उन पर बायोपिक बनी वे किस एक्‍ट्रेस को अपने रोल में देखना पसंद करेंगी ? तो प्र‍ीति ने आलिया भट्ट का नाम लिया और कहा कि वे उनके रोल को सही तरीके से करेंगी क्योंकि उनके गाल पर भी डिम्पल पड़ते हैं.

प्रीति ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत 1998 की फिल्म दिल से की फिर फिल्म सोल्जर में फिर दिखीं. फिल्म क्या कहना में कुवारी मां की भूमिका के किरदार के लिए प्रीति को खूब सराहा गया. उन्हें इस रोल के लिए फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ नई अदाकारा का अवार्ड दिया गया. प्रीति जिंटा इन दोनों फिल्मों से दूर हैं. साल 2016 में जेन गुडएनफ संग शादी रचाने के बाद प्रीती का समय विदेश में अपने परिवार संग बीतता है. लेकिन सोशल मीडिया पर एक्ट‍िव रहने वाली प्रीति जिंटा अपने फिटनेस वीडियो शेयर करती रहती हैं.

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दीपिका पादुकोण

डिंपल गर्ल के रूप मे भला हम दीपिका को कैसे भूल सकते है अपनी हर एक अदा से दीवाना बनाने वाली दीपिका का डिंपल उनको खास पहचान देता है उनकी कोई भी फ़ोटो है हर फोटो में डिंपल उनको बेस्ट लुक देता है तभी तो सभी उनके लुक्स के दीवाने हैं. आपको बात दे , दीपिका ने हाल ही में अपने रीसेंट ऐड-फोटोशूट की तस्वीर अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर शेयर की थी. बिहाइंड द सीन पिक्चर में दीपिका कैजुअल कपड़ों में मुस्कुराती दिखाई दे रही हैं. तस्वीर में उनका डिंपल साफ दिखाई दे रहा है. दीपिका ने इसे #BTS (बिहाइंड द सीन) कैप्शन दिया है. दीपिका की इस फोटो पर उनके पति रणवीर ने कौमेंट किया है हेलो डिंपल, हम फिर मिल गए इसके साथ उन्होंने किस का सिंबल भी बनाया है.

इस समय दीपिका पादुकोण अपनी अपकमिंग फिल्म छपाक में एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल के रोल में नजर आएंगी. इस फिल्म को मेघना गुलजार बना रही हैं.

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सुरभि ज्योति

सीरियल नागिन 3 में बेला का रोल प्ले करने वाली सुरभि ज्योति अपनी डिंपल वाली स्माइल के लिए भी जानी जाती है.

इनकी एक्टिंग के तो सब दीवाने है ही लेकिन इनके डिंपल वाले चीक्स के भी दीवाने कम नही हैं. डिंपल गर्ल सुरभि ज्योति ने अपने टीवी करियर की शुरुआत सीरियल कुबूल है से की थी. सुरभि का नाम टीवी इंडस्ट्री की स्टाइलिश एक्ट्रेसेज़ की लिस्ट में भी शामिल है. औनस्क्रीन ही नहीं औफस्क्रीन भी सुरभि अपने आपको काफी मेंटेन करके रखती हैं. आए दिन वह सोशल अकाउंड पर ग्लैमर्स तस्वीरें शेयर करती है जिसमें न केवल उनका बेस्ट वेस्टर्न व ट्रेडीशनल लुक उनके फैंस को देखने को मिलता है.

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बिपाशा बासू

फेमस बंगाली एक्ट्रेस विपाशा बसु अपनी मस्त अदाओं और अपनी बोल्ड एक्टिंग से सभी को अपना दीवाना बनाये हुए है ही साथ ही उनकी डिंपल वाली स्माईल भी बहुत कातिलाना है उनके गालो पर पड़ने वाला डिंपल उनकी हौटनेस को और भी बढ़ा देता है.

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आलिया भट्ट

बौलीवुड की क्यूटेस्ट एक्ट्रेस की बात की जाए तो हम सभी के जेहन में आलिया भट्ट का नाम आता है कम उम्र में सफलता की सीढ़ियां चढ़ने वाली आलिया की स्माईल को सभी ने नोटिस किया उनके गालों पर भी एक छोटा सा डिंपल पड़ता है जो उनकी मासूमियत को और स्वीट बना देता हैं.

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हिना खान

खूबसूरती की एक और मिसाल है हिना खान. आपने देखा होगा जब हिना हसती है तो उनके गालों पर भी गड्ढे पड़ते है और उनके गालों पर पड़ने वाले डिम्पल ही उनकी सुंदरता को और बढ़ाते हैं. हिना जितनी ग्लैमरस अपने शो में दिखती हैं, उतनी ही हौट रीयल लाइफ में भी है. सोशल मीडिया पर हिना खूब एक्टिव हैं. इसलिए उनकी फैन फौलोइंग भी काफी अच्छी है. सोशल मीडिया पर वह अपनी हौट तस्वीरें, विडियो शेयर करना नहीं भूलती हैं. अपने शो कसौटी जिंदगी की- 2 को छोड़ने के बाद हिना अपने फिल्मी कमिटमेंट्स को लेकर काफी बिजी चल रही हैं. उन्होंने फिल्म लाइन्स, विश लिस्ट और कंट्री औफ ब्लाइट की शूटिंग पूरी कर ली है. इसके अलावा उन्होंने डायरेक्टर महेश भट्ट की फिल्म हैक्ड के फर्स्ट शेड्यूल को खत्म कर लिया है. टीवी और फिल्मी दुनिया के बाद अब हिना डिजिटल प्लेटफॉर्म पर डेब्यू करने जा रही हैं. खबर के मुताबिक वह हंगामा प्ले की अपकमिंग वेब सीरीज डैमेज्ड 2 में मुख्य भूमिका निभाती नजर आएंगी. इसमें वह एक्टर अध्यन सुमन के साथ काम करती दिखेंगी. इस वेब सीरीज के लिए दोनों ने शूटिंग शुरू कर दी है. कुछ दिन पहले हिना ने अपने इंस्टाग्राम पर सेट से कुछ फोटो शेयर की थी जिसमें वह, अध्ययन सुमन और क्रू मेंबर्स के साथ नजर आ रही हैं डैमेज्ड हंगामा प्ले की पहली वेबसीरीज थी और इसमें अमृता खानविलकर ने सीरियल किलर का रोल प्ले किया था. यह देश का पहला साइकोलौजिकल ड्रामा वेब शो था और इसमें अमृता के परफॉर्मेंस को खूब तारीफ मिली थी. अब देखना है कि डैमेज्ड 2 में हिना खान क्या कमाल दिखा पाती हैं.

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सिर्फ पराली जलाने से ही नहीं बढ़ रहा वायु प्रदूषण, ये कारण भी हैं!

देश में हर साल अक्टूबर-नवंबर महीने में पर्यावरण प्रदूषण खासकर वायु प्रदूषण का जिक्र होने लगता है. सरकार में बैठे सियासतदान प्रेस कौन्फ्रेंस कर लोगों से कई तरह की अपीलें करने लगते हैं. इस बार तो संयोग तो देखिए कि सितंबर आखिरी में प्रदूषण का आंकड़ा कुछ कम आया. नेताओं ने इस मुद्दे को भुनाने की पूरी कोशिश की. दिल्ली के सीएम से लगाकर केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावेड़कर तक सभी ने क्रेडिट लेने के लिए मीडिया का सहारा लिया और ढिंढोरा पी पीटा गया. इसके कुछ ही दिनों बाद सबकी पोल खुलकर सामने आ गई. वायु प्रदूषण की गुणवत्ता ने एकदम से गोता लगा दिया. सबके चेहरे सन्न पड़ गए और फिर एक रटा रटाया बयान सामने आया कि हरियाणा पंजाब में पराली जलाने के कारण प्रदूषण बढ़ गया. सारा का सारा ठीकरा जाकर किसान के माथे पर जड़ दिया जाता है जबकि आजतक उन किसानों को ये नहीं बताया गया अगर वो इस पराली को जलाएं नहीं तो क्या करें. मशीनों का सहारा भी अगर लें तो ईंधन इतना मंहगा है कि किसान क्या खाएगा और क्या बचाएगा. लेकिन हुकूमत को इससे कोई वास्ता ही नहीं है. हम आपको बताते हैं प्रदूषण की असल कहानी…

धान की फसल की कटाई के साथ ही उत्तर भारत विशेषकर पंजाब और हरियाणा में धान की फसल के अवशेष (पराली) जलाने से इस पूरे इलाके में वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है. इससे अक्टूबर-नवंबर में दिल्ली एनसीआर की हवा भी बहुत खराब हो जाती है लेकिन इस समय बढ़ने वाले वायु प्रदूषण के स्तर के लिए केवल आसपास के राज्यों में किसानों द्वारा पराली जलाना ही जिम्मेदार नहीं है. आइआइटी कानपुर के एक अध्ययन के अनुसार इन महीनों में दिल्ली के प्रदूषण में केवल 25 प्रतिशत हिस्सा ही पराली जलाने के कारण होता है. बाकी का 75 फीसदी प्रदूषण कहां से आता है और इसका जिम्मेदार कौन हैं इस बारे में बात नहीं की जाती. किसानों पर आरोप मढ दिए जाते हैं लेकिन उनको इस दुविधा से कैसे निकाला जाए इस बारे में बात नहीं की जाती.

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अक्सर सितंबर बाद से ही वायु गुणवत्ता सूचकांक गिर जाता है. ऐसा होने की कई वजह हैं. सबसे पहला कारण है मौसम. ये वक्त ऐसा होता है जबकि बरसात खत्म हो जाती है और सुबह शाम थोड़ी-थोड़ी ठंडक महसूस होती है. हवाओं की रफ्तार भी कम हो जाती है और हवा का दिशाओं में भी फेरबदल होता है. अक्टूबर और नवंबर महीने में हवाओं का जैसे ही रूख बदलता है वैसे ही मौसम करवट ले लेता है. एक मौसम वैज्ञानिक ने बताया कि हिमालय से उठने वाली हवाओं को नीचे की ओर बहना चाहिए यानी कि अगर भारत के नक्शे के आधार पर शीर्ष से नीचे की ओर लेकिन कभी-कभी हवा उल्टी बहने लगती हैं. आमतौर पर हवा के चलने की रफ्तार 15 से 20 किमी. प्रति घंटे होती है लेकिन जब से घटकर 5-10 किमी. प्रति घंटे आ जाती है तो वायुमंडल में जितने भी कण होते हैं वो वहीं मंडराते रहते हैं. जिसके कारण वायु प्रदूषण में इजाफा होता है.

पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने द्वारा नियुक्त पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण (ईपीसीए) के अध्यक्ष भूरे लाल ने निजी वाहनों के उपयोग पर रोक लगाने जैसे कदम उठाने की बात कही थी. जब यह बात कही तो दिल्ली-एनसीआर की जनता के माथे पर शिकन आ गई. इससे पहले सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार के परिवहन विभाग को आदेश दिए थे कि वह 10 साल पुराने डीज़ल और 15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों की पहचान करके उनके परिचालन पर रोक लगाए. इसके साथ ही जस्टिस एम.बी. लोकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने विभाग को निर्देश दिए कि वह ऐसे वाहनों की सूची बनाकर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और परिवहन विभाग की वेबसाइट पर प्रकाशित करे.

दिल्ली सरकार के आंकड़ों के अनुसार, 1994 में दिल्ली में रजिस्टर्ड वाहनों की संख्या 22 लाख थी जो अब तकरीबन 76 लाख के करीब पहुंच चुकी है. इसमें हर साल 14 फ़ीसदी की वृद्धि हो रही है. इसके अलावा इन कुल वाहनों में दो-तिहाई दोपहिया वाहन हैं. ईपीसीए की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में निजी वाहनों के मुक़ाबले ट्रक और टैक्सी प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं. ओला और उबर जैसी ऐप आधारित टैक्सी सेवा एक दिन में 400 किलोमीटर तक चलती हैं जबकि कोई निजी वाहन एक दिन में 55 किलोमीटर चलता है. इस वजह से इन टैक्सियों से अधिक प्रदूषण होता है.

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डेनमार्क में 170 से 200 फ़ीसदी तक टैक्स गाड़ियों पर लगा हुआ है. इसका मक़सद लोगों को गाड़ी ख़रीदने से हतोत्साहित करना है ताकि वह सार्वजनिक वाहनों का अधिक से अधिक इस्तेमाल करें. वहां सरकार ने सार्वजनिक वाहनों पर भी अधिक ध्यान दिया है जो हमारे देश में बहुत धीरे-धीरे हुआ है.” हमारे देश में आटो मोबाइल सेक्टर की हालत वैसे ही खस्ता है ऐसे में सरकार ने बीएस-4 इंजन वाली गाड़ियों को भी परमिट दे दिया है. कारपोरेट टैक्स भी घटा दिया गया है.

वाहनों और पराली के अलावा दिल्ली एनसीआर और देश भर में हो रहे कंस्ट्रक्शन भी इसका बड़ा कारण है. एनजीटी और प्रदूषण नियंत्रण विभाग ने कंस्ट्रक्शन के लिए कई तरह की गाइडलाइंस जारी की है लेकिन इसका पालन नहीं किया जाता. नियम के मुताबिक आप घऱ के बाहर बालू,रेत या फिर किसी भी तरह के निर्माण सामग्री को नहीं डाल सकते लेकिन ऐसा नहीं होता. निर्माणाधीन इमारतों को ढकने का निर्देश दिया जाता है लेकिन ऐसा नहीं किया जाता. जिसके कारण भी हमारा वायुमंडल प्रदूषित होता है.

पराली जलाने वाला किसान क्या करे?

एक किसान ने जब इस बारे में जानकारी ली कि आखिरकार क्यों उनको पराली जलानी पड़ती है तो उनका जवाब था, एक एकड़ से धान की पराली हटाने का खर्चा कम से कम ₹2000 आता है. अबकी बार उन्होंने जिस खेत को तीन लाख रुपये की लीज पर लिया था, उसमें सिर्फ डेढ़ लाख रुपये की धान की फसल काटी गई है. ऐसे में प्रति एकड़ 2000 रुपये और खर्चा करना उसके बस से बाहर है.

पंजाब के किसान और किसान संघ सरकार से पराली के वैज्ञानिक नियंत्रण के लिए ₹2000 से ₹5000 प्रति एकड़ मुआवजे की मांग कर रहे हैं. लेकिन सरकार ने कोई मुआवजा तय करने के बजाए उल्टा उनसे जुर्माना वसूलने का फैसला किया है.

किसानों के सामने ये बड़ी समस्या राज्य सरकार हैप्पी सीडर और स्ट्रॉ रीपर जैसी मशीनों की खरीद पर 50 फ़ीसदी सब्सिडी देने का दावा कर रही है, लेकिन ये महंगी मशीनें आम किसान के बूते से बाहर हैं. किसानों का मानना है कि वह पहले से ही कर्ज के बोझ तले दबे हैं और सरकार उनको महंगी मशीनें खरीदने के लिए और कर्जा लेने पर मजबूर कर ही है.

सरकार को और आम जनता को भी इस बारे में सोचना होगा. दिनों-दिन हमारा पर्यावरण जहरीले धुंए की माफिक होता जा रहा है. इसकी वजह से हम अपने बच्चों को गंभीर बीमारी की जद में ढकेल रहे हैं. भारत में सांस की बीमारी गंभीर से फैलती जा रही है. टीबी, स्टोन जैसी घातक बीमारियों का ग्राफ भी बढञता जा रहा है इन सब की जड़ प्रदूषण है.

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‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’: जानिए, दोबारा वापसी करने की खबर पर करन मेहरा ने क्या कहा ?

छोटे पर्दे का मशहूर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ के ‘नैतिक’ यानी करन मेहरा वापसी करने वाले हैं. जी हां, हाल ही में ये खबर आई थी कि करण मेहरा की इस शो में दोबारा एंट्री हो सकती है. खबरों के अनुसार करण मेहरा ने इस शो में वापसी को लेकर खुद बयान दिया है. आइए जानते हैं करण मेहरा इस शो में वापसी कर रहे हैं या नहीं.

फिलहाल इस शो के स्टारर चेहरा नायरा (शिवांगी जोशी) और  कार्तिक (मोहसिन खान) हैं. लेकिन इस शो में निभा चुके किरदार अक्षरा (हिना खान) और नैतिक (करन मेहरा) को दर्शक नहीं भूले हैं. इस सीरियल के फैंस आज भी इस जोड़ी को काफी मिस करते हैं. यह फैंस के प्यार का ही तो नतीजा है कि, हिना खान तो अब फिल्मों की तरफ रुख कर चुकी हैं. वहीं दूसरी तरफ करण मेहरा अब भी एक बड़े सीरियल की तलाश में हैं.

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तभी तो जब खबरें आई थीं कि, करण मेहरा दोबारा  ‘ये रिश्ता में’ एंट्री कर सकते हैं. इस खबर के आने के बाद से ही उनके फैंस काफी खुश हो गए थे. दरअसल एक रिपोर्ट के मुताबिक ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ के प्रोड्यूसर राजन शाही और करन मेहरा को एक अवार्ड फंक्सन के दौरान एक दूसरे के साथ देखा गया था. करन और राजन ने काफी गर्मजोशी से एक दूसरे के साथ मिलते नजर आए. इस खबर के सामने आने के बाद से ये दावा किया जा रहा है कि करन जल्द ही  इस शो में वापसी कर सकते हैं.

तो करण के वापसी  की खबर आने पर कई सवाल यह उठ रहे थे, क्या करण मेहरा वापस से नैतिक के रोल में ही दिखने वाले हैं या कोई दूसरा किरदार करण का इंतजार कर रहा है?  इस सवाल का जवाब तो खुद करण मेहरा ने ही दे दिया है.  हाल ही में एक रिपोर्ट के अनुसार करण मेहरा ने इस बात का खुलासा किया है कि, वह इस शो में वापसी कर भी रहे हैं या फिर नहीं.

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करण ने बताया कि, ‘मैं आज भी राजन शाही के कौन्टेक्ट में हूं. मुझे यह समझ नहीं आ रहा है कि, यह खबर आई कहां से है. उस इवेंट में राजन शाही मौजूद जरूर थे लेकिन हम दोनों की किसी तरह की कोई मुलाकात नहीं हुई थी.

करण मेहरा के इस बयान से तो यहीं लगता है कि  ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में वापसी करने के बिल्कुल मूड में नहीं है और न ही उनको बुलाया जा रहा है. आपको बता दें, हाल ही में करण मेहरा स्टार प्लस से शो ‘एक भ्रम सर्वगुण सम्पन्न’ में देखा गया था. इसमें करण के किरदार को काफी पसंद किया गया था.

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दीवाली स्पेशल 2019 : कानून के दायरे में पटाखे 

जिस तरह गुलाल और रंगों के बगैर होली का त्योहार मनाने की कल्पना नहीं की जा सकती ठीक वैसे ही बिना आतिशबाजी के दीवाली का त्योहार मनाने की सोचना अटपटी सी बात लगती है. लेकिन पिछले कुछ सालों से दीवाली की आतिशबाजी पर्यावरण के लिए खतरनाक साबित होने लगी है. इस की वजहें हैं अनापशनाप पटाखे चलाना, पटाखों में नुकसानदेह रसायनों का इस्तेमाल और देररात तक पटाखे फोड़ना. इस सब से आम लोगों का चैन से सोना भी दूभर हो जाता है.

लेकिन सुप्रीम कोर्ट के पिछले 2 सालों में आए अलगअलग एक दर्जन से भी ज्यादा फैसलों ने उद्दंडतापूर्वक पटाखे फोड़ने वालों पर लगाम कसने की जो कोशिश की है वह पूरी तरह नाकाम नहीं कही जा सकती. अब वाकई ज्यादातर लोग सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के मुताबिक पटाखे फोड़ने लगे हैं. हालांकि कुछ शरारती लोग आदतन कानून तोड़ने से बाज नहीं आते लेकिन राहत देने वाली बात यह है कि दीवाली की आतिशबाजी को ले कर लोगों में जागरूकता आ रही है.

दीवाली पर आतिशबाजी के चलन का कोई ज्ञात प्रामाणिक इतिहास उपलब्ध नहीं है. लेकिन यह भी सच है कि पटाखे और दीवाली एकदूसरे का पर्याय हैं. पटाखे और आतिशबाजी खुशी और उल्लास का प्रतीक हैं खासतौर से बच्चों की दीवाली तो बिना पटाखों के दीवाली जैसी लगती ही नहीं. ऐसे में पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध की बात सहज गले नहीं उतरती, जिस की मांग राजधानी दिल्ली से साल 2017 में उठी थी.

इस में कोई शक नहीं कि दिल्ली न केवल देश बल्कि दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से एक है जहां प्रदूषण तमाम हदें पार कर चुका है. दिल्ली की जहरीली होती हवा की पूरी वजह हालांकि पटाखे नहीं हैं लेकिन यह भी सच है कि दीवाली के पटाखों का धुआं पर्यावरण के मानक स्तरों को बेहद खतरनाक और नुकसानदेह तरीके से पार कर जाता है. सो, पटाखों पर प्रतिबंध की मांग सब से पहले दिल्ली से ही उठी थी और इस बाबत कई लोगों ने सब से बड़ी अदालत से गुहार लगाई थी.

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दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की और पटाखों को ले कर नएनए नियमकायदेकानून बनाना शुरू कर दिए, जिन्हें ले कर कट्टरवादी हिंदू अकसर यह कहते एतराज जताते रहते हैं कि सारी बंदिशें हमारे तीजत्योहारों पर ही क्यों, जबकि यह देश हमारा है.

अब संस्कृति के इन पैराकारों, ठेकेदारों को यह समझाने वाला कोई नहीं है कि वे भारत को अगर अपना देश मानते हैं तो दीवाली जैसे त्योहार पर बेतहाशा और बेलगाम पटाखे फोड़ कर आम लोगों की सेहत से खिलवाड़ करना खुद का ही नुकसान नहीं तो और क्या है. दूसरे, हिंदू चूंकि बहुसंख्यक हैं, इसलिए भी पटाखों का चलन अकसर जरूरत से ज्यादा है जिस पर अभी और लगाम कसी जानी जरूरी है.

22 अक्तूबर, 2018 को अपने एक अहम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी थी कि अब पटाखे रात 8 बजे से 10 बजे के बीच ही फोड़े जा सकेंगे और वे पटाखे भी ऐसे होने चाहिए जो पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचाने वाले हों. लेकिन अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने पटाखा उत्पादकों की आजीविका के मौलिक अधिकार और देश के लोगों के स्वास्थ्य का खयाल रखने सहित दूसरे अहम पहलुओं पर भी पर्याप्त ध्यान दिया था.

इस के बाद लगातार याचिकाएं दायर होती गईं और सुप्रीम कोर्ट हर फैसले में कुछ न कुछ बदलाव करता रहा. यह प्रक्रिया अभी तक जारी है. अच्छी बात यह है कि अब पटाखे अदालत के आदेश के मुताबिक ही चलाए जा सकते हैं.

पालन लोग खुद करें 

इस के बाद भी कई जगह इस फैसले की धज्जियां उड़ती दिखाई देती हैं तो इस के जिम्मेदार वे लोग हैं जो पटाखों की आड़ में हिंदुत्व फैलाना चाहते हैं. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी हिंदूवादियों ने अदालत के बाहर ही पटाखे फोड़ कर अपने इरादे जाहिर कर दिए थे. लेकिन उन्हें उतना समर्थन नहीं मिला जितना कि ये लोग उम्मीद कर रहे थे. इस की अहम वजह यह है कि अब लोग खुद पटाखों से परेशान हो चले हैं. इस परेशानी से बचना जरूरी है. सो, सभी लोग धार्मिक पूर्वाग्रह और कुछ लोगों की भड़काऊ बातों में न आ कर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार पटाखे फोड़़ें क्योंकि इन से न केवल वायु और ध्वनि प्रदूषण फैलता है बल्कि इन्हेंचलाने से पालतू जानवर भी डरेसहमे रहते हैं.

यह बात भी समझी जानी चाहिए कि पटाखे बहुत महंगे हो चले हैं, जो दीवाली का बजट बिगाड़ते ही हैं और इन से हासिल कुछ नहीं होता. जरूरत इस बात की है कि रोशनी करने वाले आइटम ज्यादा चलाए जाएं और तेज आवाज वाले कम फोड़े जाएं और लडि़यां वगैरह तो बिलकुल ही न जलाई जाएं.

दीवाली प्रकाश का पर्व है, शोर या धूमधड़ाके का नहीं. इस से जुड़े पर्यावरण संबंधी नुकसान सीधे नहीं दिखते, लेकिन दीर्घकालिक असर डालते हैं. उन से बचना जरूरी है और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालन कर सभी अपराधी कहलाने से बचें भी.

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फिल्म समीक्षाः  “यारम”

रेटिंग:  ढाई स्टार

निर्देशक:  ओवैस खान

कलाकार: प्रतीक बब्बर, सिद्धांत कपूर, इशिता राज शर्मा, अनिता राज दलिप ताहिल, शुभा राजपूत व अन्य.

अवधिः एक घंटा 49 मिनट

मुस्लिम समाज के प्रचलित तीन तलाक को गैरकानूनी घोषित किए जाने के बाद फिल्मकार ओवैस खान इसी मुद्दे पर हास्य और दोस्ती के रिश्ते की चाशनी के साथ फिल्म ‘‘यारम’’ लेकर आए हैं, जिसके अंत में तीन तलाक खत्म हो जाने को लेकर वर्तमान सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा में अभिनेता शक्ति कपूर का एक लंबा चैड़ा भाषण भी है.

कहानीः

फिल्म की कहानी बचपन के तीन दोस्तों रोहित बजाज (प्रतीक बब्बर), साहिल (सिद्धांत कपूर) और जोया (इशिता राज शर्मा) की है. फिल्म शुरू होती है रोहित के मीरा (शुभ राजपूत) से मिलने से. रोहित व मीरा अपने अपने माता-पिता की रजामंदी से इस मुलाकात के बाद तय करते हैं कि शादी तीन महीने बाद होगी. इन तीन माह में मीरा, रोहित को समझ लेंगी और फिर अंतिम निर्णय ले सकती हैं. उसके बाद रोहित अपने व्यापार के सिलसिले में मारीशस पहुंचता है, जहां उसे पता चलता है कि उसके बचपन के दोस्तों साहिल और जोया की जिंदगी में तूफान आ गया है. साहिल और जोया ने शादी कर ली थी. लेकिन तीन साल बाद रोहित के मारीशस पहुंचते ही साहिल ने तीन बार तलाक शब्द बोलकर जोया को तलाक दे देता है. उसके बाद साहिल को अपनी गलती का एहसास होता है. साहिल को लगता है कि वह जोया के बिना रह नहीं सकता. इसलिए अब मुस्लिम परंपरा के अनुसार हलाला करा कर दोबारा जोया से शादी करना चाहता है. इसके लिए वह रोहित से मदद मांगते है. साहिल चाहता है कि रोहित, जोया से शादी कर ले. उसके बाद रोहित, जोया को तलाक दे दे.जिससे साहिल फिर से जोया से शादी कर सके. रोहित को पता है कि अब कानून बन गया है, जिसके चलते  तीन बार तलाक कह देने से तलाक नहीं होता. इसलिए वह जोया से मिलकर एक नई योजना बनाता है, जिससे साहिल को सबक सिखाया जा सके. रोहित, साहिल से कहता है कि वह धर्म परिवर्तन करके जोया से शादी करेगा और फिर विलेन बनकर तलाक दे देगा. साहिल खुश हो जाता है. लोगों की नजर में रोहित व जोया की मुस्लिम परंपरा के अनुसार शादी होती है. इस शादी में साहिल या रोहित के माता-पिता मौजूद नहीं रहते. शादी के बाद रोहित साहिल से कह देता है कि वह जोया को तलाक नहीं देगा, क्योंकि वह तो बचपन से ही जोया से शादी करना चाहता था. अब साहिल को लगता है कि उसके जिगरी दोस्त ने उसे धोखा दिया है. उधर जोया और रोहित पति और पत्नी की तरह रहते हुए ऐसी हरकतें साहिल के सामने करते रहते हैं, जिससे साहिल को गुस्सा आता है. तो दूसरी तरफ रोहित के पिता साहिल को समझाते हैं कि प्यार के मायने यह हैं कि आप अपने प्यार को हमेशा खुश रखें. उसके बाद साहिल अपनी तरफ से जोया को खुशी पहुंचाने के लिए कुछ काम करता है.

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इसी बीच रोहित, साहिल और अपने माता-पिता को बता देता है कि जोया मां बनने वाली है. और वह उसके बच्चे का पिता. इस खुशी में रोहित एक पार्टी रखते हैं. इस पार्टी में कई मेहमानों के साथ साथ रोहित के माता पिता और साहिल भी आते हैं. इस पार्टी में साहिल कह देता है कि उसे रोहित से यह उम्मीद नहीं थी. कुछ बातें होती हैं और फिर रोहित बताता है कि साहिल और जोया की शादी टूटी ही नहीं. क्योंकि अब तीन तलाक कह देने से शादी नहीं टूटती. इसके अलावा जोया और रोहित ने शादी का सिर्फ नाटक किया था. रोहित का मकसद प्यार और शादी को लेकर साहिल को सही राह दिखानी थी.

FILM-YAARAM

निर्देशनः

फिल्मकार ने एक गंभीर मुद्दे को हास्य के साथ पेश करते हुए पूरी तरह से हास्यास्पद बना दिया है. फिल्म में शक्ति कपूर का जो भाषण है, उससे यह जाहिर होता है कि यह फिल्म वर्तमान सरकार के निर्णय का प्रचार करने के मकसद से बनाई गई है, जो कि गलत है. इसी विषय पर बेहतरीन पटकथा के साथ बेहतरीन फिल्म बन सकती थी. मगर फिल्मकार ऐसा करने से वंचित रह गए. अपनी कहानी व पटकथा पर थोड़ी सी मेहनत करते तो यह एक क्लासिक फिल्म बन सकती थी. फिल्म की एडीटिंग भी गड़बड़ हैं.

अभिनयः

प्रतीक बब्बर और सिद्धांत कपूर का साधारण अभिनय भी इस फिल्म की एक कमजोर कड़ी है. इशिता राज शर्मा ने किरदार के साथ पूरा न्याय किया है. अनीता राज ने साबित किया कि अभी भी वह अच्छी अभिनेत्री हैं. दलीप ताहिल इस फिल्म एकदम नए अवतार में नजर आए और अपने किरदार में शानदार अभिनय किया है. अभिनेत्री शुभा राजपूत के हिस्से करने को कुछ खास रहा नहीं.

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फेस्टिवल स्पेशल 2019: घर पर बनाएं इडली मंचूरियन

फेस्टिव सीजन का  चल रहा है. इस सीजन में आप कोई ऐसा डिश बनना चाहती होगी. जो आसानी से बन भी जाए और खाने में टेस्टी भी हो. तो आइए झट से बताते हैं आपको इडली मंचूरियन की रेसिपी.

सामग्री

इडली- 10 पीस

कार्नफ्लोर- आधा कप

मैदा- आधा कप

सोया सौस- 1 चम्मच

अदरक लहसून पेस्ट- आधा चम्मच

तेल

ग्रेवी के लिएः प्याज, हरी मिर्च, छोटा पीस अदरक, शिमला मिर्च, सोया सौस, तेल, कौर्नफ्लोर, एक कप स्प्रिंग औनियन.

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बनाने की विधि

सबसे पहले इडली को छोटे पीस में काट लें.

दूसरी ओर सभी सामग्रियों को मिक्स कर के पेस्ट तैयार करें. जैसे- मैदा, कार्नफ्लोर, अदरक लहसुन पेस्ट, हल्का सा नमक और पानी. अब इडली के पीस को इस घोल में डुबो कर डीप फ्राई करें.

इडली फ्राई कर के किनारे रखें.

अब प्याज, हरी मिर्च, अदरक और शिमला मिर्च को बारीक काट लें. एक कढ़ाही में 1 चम्मच तेल डालें और उसमें इन सामग्रियों को हल्का भून लें.

उसके बाद इसमें आधा चम्मच सोया सौस मिला कर ऊपर से फ्राइड इडली डाल दें. अब इसमें कार्नफ्लोर को 2 कप पानी के साथ मिक्स करें.

इसे उबाल कर आंच से हटा दें. ऊपर से हरी पत्तेदार प्याज को छिड़के और इडली मंयूरियन गरमागरम सर्व करें.

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डीआईवाई विधि: ऐसे बचाएं अपनी त्वचा को प्रदूषण से

डा. रिंकी कपूर

वायु प्रदूषण

वायु प्रदूषण एवं शरीर व त्वचा पर अंदर से बाहर तक इसके नुकसान वास्तविक हैं और इनसे बचने का कोई तरीका नहीं. हर बीतते दिन के साथ वायु प्रदूषण के व्यापक प्रभाव चिंता का विषय बनते जा रहे हैं. वायु प्रदूषण के कारण त्वचा को सांस लेना मुश्किल हो गया है और त्वचा रूखी होती जा रही हैं एवं इसमें जरूरी पोषक तत्व खत्म होते जा रहे हैं.

हमारी त्वचा बाहरी तत्वों से हमारी रक्षा करती है. इस त्वचा पर पराबैंगनी किरणें, सिगरेट का धुआँ तथा विभिन्न मशीनों से निकलने वाला धुआं पड़ता है, जिसमें घुलनशील कार्बनिक कंपाउंड एवं एरोमैटिक हाईड्रोकार्बन और ओजोन होते हैं. हमारी त्वचा इस केमिकल्स एवं प्रदूषक तत्वों से हमारी रक्षा करती है. हालांकि यदि आप अपनी त्वचा को वायु प्रदूषण से नहीं बचाएंगे, तो हवा में मौजूद प्रदूषक तत्व विभिन्न समस्याएं पैदा कर सकते हैं, जिनमें शामिल हैं:

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समयपूर्व बुढ़ापा

भूरे धब्बे

स्किन का असमान टोन

डिहाईड्रेशन

मुहांसे

एटोपिक डर्मेटिटिस

सोरियासिस

एक्जेमा

रोसाकिया

त्वचा का कैंसर

विविध वायु प्रदूषकों के कारण त्वचा अलग अलग तरह से प्रभावित होती है. उदाहरण के लिए नाईट्रोजन डाई आक्साईड एवं सल्फर डाई आक्साईड जैसे वायु प्रदूषक यूवीआर एवं यूवी रेडिएशन को फैला देते हैं, लेकिन स्माग में भी ये एक्टिव अवयव होते हैं, जो त्वचा को नुकसान पहुंचाता है. वायु प्रदूषण का प्रभाव अनेक तत्वों पर निर्भर होता है, जैसे प्रदूषक तत्वों की प्रकृति क्या है और त्वचा वायु प्रदूषण के कितने संपर्क में है तथा उसकी इंटीग्रिटी क्या है. त्वचा की सुरक्षा प्रदान करने की क्षमता असीमित नहीं तथा पर्यावरण के तत्वों में निरंतर रहने से त्वचा की आत्मरक्षा की प्रणाली कम हो जाती है. परिणामस्वरूप, त्वचा प्राकृतिक एंटीऔक्सीडैंट बनाने की अपनी क्षमता खो देती है.

अच्छी बात यह है कि त्वचा पर वायु प्रदूषण के प्रभाव के आंकलन के लिए ज्यादा से ज्यादा शोध हो रही है और त्वचा को वायु प्रदूषण से बचाने तथा इसको हुए नुकसान को रिपेयर करने के तरीके मौजूद हैं.

वायु प्रदूषण में मौजूद कण बड़े होते हैं, इसलिए वो त्वचा को बेधकर अंदर नहीं जा पाते, लेकिन प्रदूषक तत्वों से जुड़े कैमिकल्स त्वचा को बेधकर अंदर जा सकते हैं और कोशिकाओं की जेनेटिक संरचना बदल सकते हैं. आप कुछ सहज विधियों से अपनी त्वचा की रक्षा कर सकते हैं और इसे युवा एवं निखरा स्वरूप फिर से प्रदान कर सकते हैं.

हाईड्रेट: प्रतिदिन ढेर सारा पानी पिएं और त्वचा को अंदर से हाईड्रेटेड रखें. हाईड्रेशन से त्वचा का लचीलापन बढ़ता है और त्वचा की प्राकृतिक सुरक्षात्मक गुणवत्ता बढ़ती है. हाईड्रेशन से विषैले तत्व शरीर से बाहर निकल जाते हैं.

प्रतिदिन स्क्रब करें: यदि आपको प्रतिदिन लंबे समय तक घर से बाहर रहना पड़ता है, तो आपको अपना चेहरा एवं त्वचा के हवा से संपर्क में रहने वाले हिस्सों को प्रतिदिन स्क्रब करना चाहिए. रोज 10 सेकंड तक स्क्रब करें, इससे आपकी त्वचा प्रदूषक तत्वों से होने वाले नुकसान को ठीक कर लेगी.

त्वचा को क्लींस करें और दो बार क्लींस करें: अपनी त्वचा को क्लींस किए बिना सोएं नहीं. पहले क्लीनिंग वाईप या मेकअप रिमूवर से त्वचा को साफ कर मेकअप, धूल व मिट्टी हटा लें. इसके बाद अपने चेहरे को क्लीनसर से धोएं और त्वचा पर मौजूद प्रदूषक तत्वों को हटा दें. बेहतर क्लीनिंग के लिए आप क्लीनसिंग ब्रश का इस्तेमाल कर सकते हैं.

त्वचा पर प्रोटेक्टेंट्स की परत चढ़ा दें: घर से बाहर निकलने से पहले अपनी त्वचा पर टोनर, मौईस्चराईजर एवं सनस्क्रीन की लेयर लगा लें. टोनर, मौईस्चराईजर एवं सनस्क्रीन बाहर निकलने से कम से कम 40 मिनट पहले लगाने चाहिए. हर 2 से 3 घंटे में सनस्क्रीन दोबारा लगाएं.

फेस पैक्स का इस्तेमाल करें: ऐसे फेस पैक्स का इस्तेमाल करें, जिनमें अवयव के रूप में एंटीऔक्सीडेंट मिले हों. फेस पैक्स रेडिकल्स को हटाते हैं और त्वचा को पोषण देकर उसमें सेहतमंद निखार लाते हैं.

मसाज: अपनी त्वचा को सप्ताह में एक बार कोकोनट औईल से मसाज करें और मसाज के बाद गुनगुने पानी से नहाएं. कोकोनट औईल की मसाज से त्वचा को आराम मिलेगा व यह क्लींस होगी.

अपनी आंखों को ब्लू लाईट से बचाएं: हमारी डिजिटल डिवाईसेस ब्लू लाईट उत्सर्जित करती हैं, जो आंखों व त्वचा के लिए बहुत नुकसानदायक है. तनाव कम करने के लिए अपनी डिवाईसेस यलो लाईट पर सेट करें.

अपने आहार में विटामिन बी3 शामिल करें: विटामिन बी3 धूल, धुएं और सिगरेट के धुएं के नुकसानों से बचने के लिए सर्वश्रेष्ठ अवयव है. अपनी दिनचर्या में विटामिन बी3 की सही खुराक जानने के लिए अपने डर्मेटोलाजिस्ट से संपर्क करें. विटामिन बी3 त्वचा की कोशिकाओं को होने वाले नुकसान को कम करता है, स्किन बैरियर को मजबूत करता है तथा यूवी से होने वाली क्षति को रिपेयर करता है.

उद्योगों के आसपास के इलाकों, सार्वजनिक धूम्रपान कक्ष से बचें एवं यदि आपको प्रदूषित हवा में रहना पड़े तो अच्छी क्वालिटी का एयर मास्क लेकर अपनी त्वचा की रक्षा करें. घर में एयर प्योरिफायर एवं वेंटिलेटर्स का उपयोग करें.

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क्या खरीदें

आप सही स्किन केयर उत्पाद की मदद से अपनी त्वचा को हवा के प्रदूषक तत्वों व उनके प्रभावों से सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं. ऐसे एंटीपौल्यूशन अवयव चुनें, जिनमें एंटीऔक्सीडेंट हों. सूदिंग अवयव प्रदूषण से होने वाली क्षति को न्यूट्रलाईज करते हैं तथा त्वचा की सतह से खोए एसेंशियल एलीमेंट्स का नवीकरण करते हैं.

यदि आपकी त्वचा पर वातावरण से क्षति हो रही है और आपको इसकी चिंता है, तो आपको अपनी स्किन के प्रकार तथा प्रतिदिन आपकी त्वचा को प्रभावित करने वाले वातावरण के कारकों के अनुकूल सही इलाज के लिए अपने डर्मेटोलाजिस्ट से संपर्क करना चाहिए. डर्मेटोलाॅजिस्ट इलाज की विविध विधियों, जैसे माईक्रोडर्माब्रेज़न, केमिकल पील्स एवं मेसोथेरेपी द्वारा त्वचा पर प्रदूषण के नुकसान को कम कर सकते हैं.

डा. रिंकी कपूर एक प्रतिष्ठित कास्मेटिक डर्मेटोलौजिस्ट एवं मुंबई, दिल्ली, हैदराबाद और कोलकाता में स्थित द एस्थेटिक्स क्लिनिक्स की को-फाउंडर हैं. वो द एस्थेटिक्स क्लिनिक्स एवं फोर्टिस हास्पिटल्स, मुंबई में कंसल्टैंट डर्मेटोलौजिस्ट, कौस्मेटिक डर्मेटोलौजिस्ट एवं डर्मेटो-सर्जन हैं. वो कास्मेटिक डर्मेटोलौजी एवं लेज़र्स, अपोलो हास्पिटल्स, हैदराबाद की एक्स-हेड हैं.

उन्होंने डर्मेटोलाजी, डर्मेटो-सर्जरी एवं लेजर्स, नेशनल स्किन सेंटर, सिंगापुर में अपनी फैलोशिप की है और वह स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी स्कूल औफ मेडिसीन, सीए, यूएसए में विज़िटिंग फैलो हैं. वो ‘‘मार्किस हूज हू’’ का हिस्सा हैं और विविध एजेंसीज़ द्वारा ‘बेस्ट डर्मेटोलाजिस्ट इंडिया’ चुनी गई हैं.

रोमांच का नया नाम बोल्डरिंग  

बोल्डरिंग यानी चट्टानों पर चढ़ने का एकदम नया और पहले से कहीं ज्यादा रोमांचक तरीका. इस तरह से जिस चट्टान पर चढ़ाई की जाती है, वह छोटी होती है. ऐसी ही छोटी चट्टानों को कहते हैं बोल्डर. खास बात यह है कि इन चट्टानों पर सिर्फ हाथों व पैरों का प्रयोग कर चढ़ा जाता है. यानी किसी प्रकार की रस्सी या पहाड़ पर चढ़ने के काम आने वाले किसी भी साजोसामान का प्रयोग नहीं होता.

यह खेल काफी खतरनाक भी है. कई बार लोग अपना शौक पूरा करने के लिए किसी विशाल कमरे में बनी चट्टान जैसी संरचना पर चढ़ते हैं. वैसे ज्यादातर लोग विशेष प्रकार के जूते जरूर पहनते हैं. अपने हाथों को भी वे एकदम सूखा रखते हैं ताकि हाथ फिसले नहीं. कमरे के अंदर बनाई गई नकली चट्टान के नीचे मोटी दरी भी बिछा दी जाती है ताकि कोई गिरे तो दरी की वजह से उसे ज्यादा चोट न लगे.

कई बार चट्टान पर चढ़ने वाला क्षैतिज अवस्था यानी जमीन के समानांतर भी ऊपर की ओर चढ़ता है. इसे नाम दिया गया है ट्रेवरसेज. इस खेल की प्रतियोगिता अंदर यानी नकली चट्टानों और बाहर यानी प्राकृतिक चट्टानों पर भी होती है. ये खेल शारीरिक ताकत के अलावा अंगुलियों की ताकत बढ़ाने के लिए काफी अच्छा माना जाता है.

ऐसी चट्टानें ग्रेनाइट की होती हैं, जो दरारों से भरी होती हैं. इन पर चढ़ना आसान होता है.

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हर देश में चाहे वह अमेरिका हो या कनाडा या फिर भारत, इस खेल को खेलने वालों ने कई स्थान यानी चट्टानें चिह्नित की हैं, जो इस खेल के लिए सब से ज्यादा उपयुक्त चट्टानें हैं.

भारत में कर्नाटक के बादामी को बोल्डरिंग खेल के लिए अतिउत्तम माना जाता है. यहां की चट्टानें रेतीली मिट्टी की बनी हैं, जिस की वजह से चढ़ने वाले को अच्छी पकड़ मिलती है. इन चट्टानों के एक तरफ छांव रहती है इसीलिए इस पर चढ़ते समय व्यक्ति धूप से बचा रहता है.

कर्नाटक के हंपी में यानी बादामी से 3 घंटे की यात्रा कर के हंपी आया जा सकता है. ये स्थान भी बोल्डरिंग के लिए बेहद लोकप्रिय है. यहां तमाम तरह की चट्टानें हैं. यहां व्यक्ति अपनी मरजी से इन चट्टानों में से एक को चुन सकता है. यहां की चट्टानें ग्रेनाइट की हैं जो दरारों से भरी हैं और किसी भी चढ़ने वाले के लिए वरदान साबित होती हैं.

कर्नाटक में ही चित्रदुर्गा की चट्टानें बोल्डरिंग के लिए तेजी से लोकप्रिय हो रही हैं. ये चट्टानें भी ग्रेनाइट की ही हैं और इन में  दरारें भी खूब हैं. अगर चढ़ने वाले का शौक है कि वह ऊंची चट्टान पर चढ़े तो इसे कहते हैं हाईबौल बोल्डरिंग. ज्यादातर 15 फुट से ऊंची चट्टान को हाईबौल कहते हैं. आज लोग इस से भी ज्यादा ऊंचाई पर चढ़ रहे हैं. यह खेल पूरी दुनिया में तेजी से लोकप्रिय हो रहा है और खतरों के बावजूद इस के शौकीन बढ़ रहे हैं.

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आम पौधे की खास रोपाई तकनीक

डा. बालाजी विक्रम, पूर्णिमा सिंह सिकरवार

आम की खेती के लिए पौध रोपाई आमतौर पर 10-12 मीटर पर की जा रही है. इस में केवल 70-100 पेड़ एक हेक्टेयर क्षेत्र में लगाए जा सकते हैं. इस प्रणाली के तहत उपलब्ध क्षेत्र या जमीन का बहुत अधिक कुशलता से उपयोग नहीं किया जा सकता है. इस वजह से कम पैदावार मिलती है, वहीं पासपास पौध की रोपाई से बाग को 375-450 से अधिक पेड़ों को रोपा जा सकता है.

पासपास तय दूरी पर बाग लगाने के लिए जमीन के मुहैया होने में लगातार गिरावट, बागबानी ऊर्जा की बढ़ती मांग, ऊर्जा व जमीन की लागत में लगातार गिरावट के नतीजे हैं. पेड़ों की बढ़ी हुई तादाद प्रति हेक्टेयर के अलावा एक उच्च घनत्व वाला बाग, रोपने के बाद 2-3 सालों के भीतर असर में आना चाहिए.

जैसेजैसे पेड़ का घनत्व बढ़ेगा, पैदावार तकरीबन 2,500 टन प्रति हेक्टेयर तक बढ़ जाएगी.

उच्च घनत्व वाले बागों में न केवल शुरुआती सालों में प्रति यूनिट क्षेत्र में अच्छी पैदावार मिलती है, वहीं खालिस मुनाफा भी होता है. अच्छे उर्वरक, खादपानी, पौधों की सुरक्षा के उपायों को अपना कर खरपतवार नियंत्रण पर काबू पाना आसान होता है. इसलिए यह तकनीक  ‘आम्रपाली’ आम के लिए विकसित की गई थी जो आनुवंशिक रूप से बौनी किस्म है. पेड़ों को त्रिकोणीय प्रणाली के साथ (2.5 मीटर × 2.5 मीटर) लगाने की सिफारिश की गई है. इस में प्रति हेक्टेयर 1,600 पेड़ हैं.

यदि मुमकिन हो, तो बाग को साफसुथरी जगह पर लगाया जाना चाहिए. इस प्रणाली में रूटस्टौक्स को सीधे बाग में लगाया जाना चाहिए, जो बाद में खेत में ही तैयार हो जाता है.

पेड़ को झाड़ी का रूप देने के लिए टर्मिनल की शाखाओं से 2 साल के लिए पौधों की छंटाई की जानी चाहिए. 3 साल बाद पौधे फल देना शुरू कर देते हैं.

‘आम्रपाली’ में मुनाफाखोरी है. यह फल के आकार को कम करती?है इसलिए फलों के आकार को बढ़ावा देने के लिए पतला होना जरूरी?है. 7-8 साल की उम्र के पेड़ से अच्छे फल की उम्मीद की जाती है.

12 साल बाद पेड़ घना हो जाता है जो बदले में फल की पैदावार को कम कर देता है. इसलिए पेड़ों को अच्छी धूप में रखने के लिए सालाना नियमित छंटाई की जरूरत होती है.

ज्यादा आमदनी हासिल करने के लिए पैदावार को बेहतर बनाए रखने के लिए बाग में पोषण प्रबंधन जरूरी है, इसलिए पौधे के विकास के 10 साल बाद पेड़ के प्रत्येक बेसिन में 20-25 किलोग्राम गोबर की सड़ी हुई खाद, 2.17 किलोग्राम यूरिया, 3.12 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट और 2.10 किलोग्राम पोटैशियम सल्फेट डालें.

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शुरू के सालों में यानी 1 साल में 10 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद, 217 ग्राम यूरिया, 312 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट और 210 ग्राम पोटैशियम सल्फेट डालें.

फार्म यार्ड खाद और फास्फोरस अक्तूबर माह में ही डाल देना चाहिए. यूरिया और पोटैशियम सल्फेट की आधी खुराक अक्तूबर माह में और बाकी आधी मात्रा जूट की फसल की कटाई (जूनजुलाई माह) के बाद दी जाती?है.

जस्ता और मैंगनीज की कमी को पूरा करने के लिए मार्चअप्रैल, जून और सितंबर माह के दौरान 2 फीसदी जिंक सल्फेट और 1 फीसदी चूना डाला जाना चाहिए, वहीं पर्ण स्प्रे द्वारा 0.5 फीसदी मैंगनीज सल्फेट. बोरेक्स 250-500 ग्राम प्रति पेड़ का छिड़काव फलों की क्वालिटी में सुधार करने में मदद करता है.

अप्रैलमई माह में 10 दिनों के अंतराल पर बोरेक्स की 0.6 फीसदी घोल के साथ बोरोन की कमी होने पर छिड़कें. सिंचाई ठीक से होनी चाहिए. ड्रिप सिंचाई अत्यधिक कारगर है और फलों की क्वालिटी में भी सुधार करती है.

कुलतार का प्रयोग

आम के पेड़ में हर साल फल आने व पेड़ की बढ़वार के नियंत्रण के लिए कुलतार यानी पैक्लोब्यूटाजोल का इस्तेमाल किया जाता है. इस के लिए हर पेड़ को उस की सालाना उम्र पर 1 मिलीलिटर कुलतार को 5 लिटर पानी में मिला कर मुख्य तने के चारों ओर मिट्टी में मिला कर हलकी सिंचाई कर देनी चाहिए.

उत्तर भारत में कुलतार के इस्तेमाल का सही समय 15 सितंबर से 15 नवंबर माह माना जाता है. इस के इस्तेमाल से जुलाईअगस्त माह में आई नई शाखाओं पर, फरवरीमार्च माह में फूलों का खिलना व फलना शुरू हो जाता है.

कीट व रोगों की रोकथाम

नाशकीट प्रबंधन : आम के पौधों को नर्सरी से ले कर फल लगने तक तकरीबन दर्जनभर कीटों की प्रजातियां नुकसान पहुंचाती हैं इसलिए इन की रोकथाम बेहद जरूरी है. इन में से मुख्य कीट जैसे भुनगा, गुजिया, डासी मक्खी वगैरह आम की फसल को अच्छाखासा नुकसान पहुंचाती हैं. इन की रोकथाम कुछ इस तरह करनी चाहिए.

भुनगा : इस कीट की सूंड़ी व वयस्क दोनों ही मुलायम प्ररोहों, प्रत्तियों व फलों का रस चूसते हैं. फूलों पर इस का बुरा असर पड़ता है. इस वजह से फूल सूख कर गिर जाते हैं.

यह कीट एक प्रकार का मीठा रस निकालता है जो पेड़ों की पत्तियों, प्ररोहों वगैरह पर लग जाता है. इस मीठे रस पर काली फफूंदी पनपती है. यह पत्तियों पर काली परत के रूप में फैल कर पेड़ों के प्रकाश संश्लेषण पर बुरा असर डालती है.

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रोकथाम : बाग से खरपतवार हटा कर उसे साफसुथरा रखें. घने बाग की कटाईछंटाई दिसंबर माह में करें. वहीं दूसरी ओर बौर फूटने के बाद बागों की बराबर देखभाल करें.

पुष्प गुच्छ की लंबाई 8-10 सैंटीमीटर होने पर भुनगा कीट का हमला होता है. इस की रोकथाम के लिए 0.005 फीसदी इमिडा क्लोप्रिड का पहली बार छिड़काव करें. 0.005 फीसदी थायोमेथोक्जाम या 0.05 फीसदी प्रोफेनोफास का दूसरा छिड़काव फल लगने के तुरंत बाद करें.

गुजिया : इस कीट के बच्चे व वयस्क मादा प्ररोहों, पत्तियों व फूलों का रस चूसते हैं. जब इन की तादाद बढ़ जाती?है तो इन के द्वारा रस चूसे जाने के चलते पेड़ों के प्ररोह, पत्तियों व बौर सूख जाते हैं और फल नहीं लगते?हैं.

यह कीट मीठा रस पैदा करता है, जिस के ऊपर काली फफूंदी पनपती है. इस कीट का प्रकोप दिसंबर से मई माह तक देखा जाता है.

रोकथाम : खरपतवार और दूसरी घास को नवंबर माह में जुताई कर के निकाल दें. बाग से निकालने से सुसुप्तावस्था में रहने वाले अंडे धूप, गरमी व चींटियों द्वारा खत्म हो जाते हैं.

दिसंबर माह के तीसरे सप्ताह में पेड़ के तने के आसपास 250 ग्राम क्लोरोपाइरीफास चूर्ण 1.5 फीसदी प्रति पेड़ की दर से मिट्टी में मिला देने से अंडों से निकलने वाले निम्फ मर जाते हैं. पौलीथिन की 30 सैंटीमीटर पट्टी पेड़ के तने के चारों ओर जमीन की सतह से 30 सैंटीमीटर ऊंचाई पर दिसंबर में गुजिया के निकलने से पहले लपेटने से निम्फ का पेड़ों पर ऊपर चढ़ना रुक जाता है.

पट्टी के दोनों सिरों को सुतली से बांधना चाहिए. इस के बाद थोड़ी ग्रीस पट्टी के निचले घेरे पर लगाने से गुजिया को पट्टी पर चढ़ने से रोका जा सकता?है. यह पट्टी बाग में स्थित सभी आम के पेड़ों व दूसरे पेड़ों पर भी बांधनी चाहिए.

यदि किसी कारणवश गुजिया पेड़ पर चढ़ गई है तो ऐसी अवस्था में 0.05 फीसदी कार्बोसल्फान 0.2 मिलीलिटर प्रति लिटर या 0.06 फीसदी डाईमिथोएट 2.0 मिलीलिटर प्रति लिटर का छिड़काव करें.

पुष्प गुच्छ मिज :  आम के पौधों पर मिज के प्रकोप से 3 चरणों में नुकसान होता है. इस का पहला प्रकोप कली के खिलने की अवस्था में होता है. नए विकसित बौर में अंडे दिए जाने व लार्वा द्वारा बौर के मुलायम डंठल में घुसने से बौर पूरी तरह से खराब हो जाते हैं. पूरी तरह विकसित लार्वा बौर के डंठल से निकलने के लिए छेद बनाते हैं. इस का दूसरा प्रकोप फलों के बनने की अवस्था में होता है. फलों में अंडे देने और लार्वा के घुसने के फलस्वरूप फल पीले हो कर गिर जाते हैं और तीसरा प्रकोप बौर को घेरती हुई पत्तियों पर होता है.

रोकथाम : अक्तूबरनवंबर माह में बाग में की गई जुताई से मिज की सूंडि़यों के साथ सुसुप्तावस्था में पड़े प्यूपा खत्म हो जाते?हैं. जिन बागों में इस कीट का असर होता रहा है, वहां बौर फूटने पर 0.06 फीसदी डाईमिथोएट का छिड़काव करना चाहिए.

वहीं, अप्रैलमई माह में 250 ग्राम क्लोरोपाइरीफास चूर्ण प्रति पेड़ के हिसाब से छिड़काव करने पर पेड़ के नीचे सूंडि़यां नष्ट हो जाती?हैं. फरवरी माह में भुनगा कीट के लिए किए जाने वाले कीटनाशी छिड़काव से इस कीट का भी नियंत्रण हो जाता है.

डासी मक्खी : प्रौढ़ मक्खियां अप्रैल माह में जमीन से निकल कर पके फलों पर अंडे देती हैं. एक मक्खी 150 से 200 तक अंडे देती?है. 2-3 दिन के बाद सूंडि़यां अंड़ों से निकल कर गूदे को खाना शुरू कर देती हैं. इस कीट की सूंडि़यां आम के गूदे खा कर उसे एक सड़े अर्धतरल बदबूदार पदार्थ के?रूप में बदल देती हैं.

रोकथाम : इस कीट के प्रकोप के असर को कम करने के लिए सभी गिरे हुए फल और मक्खी के प्रकोप से ग्रसित फलों को इकट्ठा कर जला देना चाहिए.

पेड़ों के आसपास सर्दियों में जुताई करने से जमीन में मौजूद प्यूपा को खत्म किया जा सकता है, वहीं लकड़ी की बनी यौनगंध?टैंप को पेड़ पर लगाना काफी कारगर है.

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इस टैंप के लिए प्लाइवुड के 5×5×1 सैंटीमीटर आकार के गुटके को 48 घंटे तक 6:4:1 के अनुपात में अल्कोहल : मिथाइल यूजीनौल : मैलाथियान के घोल में भिगो कर लगाना चाहिए. यौनगंध टैंप को 2 माह के अंतराल पर बदलना चाहिए. 10 टैंप प्रति हेक्टेयर लटकाने चाहिए.

रोग की रोकथाम : आम के पेड़ों में नर्सरी से ले कर फल लगने तक तमाम रोग लगते हैं जो पौधे के तकरीबन हरेक भाग को प्रभावित कर नुकसान पहुंचाते हैं. फल भंडारण के दौरान भी तमाम रोगों का प्रकोप होता?है जो फलों में सड़न पैदा करते?हैं. इसलिए इस के लक्षण व रोकथाम की जानकारी होना बेहद जरूरी है.

पाउडरी मिल्ड्यू यानी खर्रा,

दहिया : इस रोग के लक्षण बौर, पुष्प गुच्छ की डंडियों, पत्तियों व नए फलों पर देखे जा सकते?हैं. इस रोग का खास लक्षण सफेद कवक या चूर्ण के?रूप में दिखाई देता है.

नई पत्तियों पर यह रोग आसानी से दिख जाता है, जब पत्तियों का रंग भूरे से हलके हरे रंग में बदलता?है. नई पत्तियों पर ऊपरी और निचली सतह पर छोटे सलेटी रंग के धब्बे दिखाई देते?हैं जो निचली सतह पर ज्यादा साफ दिखते हैं.

बौरों पर यह रोग सफेद चूर्ण की तरह दिखाई पड़ता है और बोरों में लगे फूलों के झड़ने की वजह बनता है. भीतरी दल के मुकाबले बाहरी दल इस से?ज्यादा प्रभावित होते हैं. ग्रसित होने पर फूल नहीं खिलते हैं और समय से पहले ही झड़ जाते हैं. नए फलों पर पूरी तरह सफेद चूर्ण फैल जाता?है और मटर के दाने के बराबर हो जाने के बाद फल पेड़ से झड़ जाते हैं.

रोकथाम : पहला छिड़काव 0.2 फीसदी घुलनशील गंधक का घोल बना कर उस समय करना चाहिए जब बोर 3-4 इंच का होता है. दूसरा छिड़काव 0.1 फीसदी डिनोकेप का होना चाहिए, जो पहले छिड़काव के

15-20 दिन बाद तीसरा छिड़काव 0.1 फीसदी टाइडीमार्फ का होना चाहिए.

एंथ्रेक्नोज : यह रोग पत्तियों, टहनियों, मंजरियों और फलों पर देखा जा सकता है. पत्तियों की सतह पर पहले गोल या अनियमित भूरे या गहरे भूरे रंग के धब्बे बनते हैं. प्रभावित टहनियों पर पहले काले धब्बे बनते हैं और फिर पूरी टहनी या पर्णवृंत सलेटी काले रंग की हो जाती है. पत्तियां नीचे की ओर झुक कर सूखने लगती हैं और आखिर में गिर जाती हैं.

बौर पर सब से पहले पाए जाने वाले लक्षण हैं, गहरे भूरे रंग के धब्बे, जो कि फूलों और पुष्पवृंतों पर प्रकट होते हैं. बौर व खिले फूलों पर छोटे काले धब्बे उभरते?हैं जो धीरेधीरे फैलते हैं और आपस में जुड़ कर फूलों को सुखा देते हैं. अधिक नमी होने पर यह कवक तेजी फैलता है.

रोकथाम : सभी रोग से ग्रसित टहनियों की?छंटाई कर देनी चाहिए. बाग में गिरी हुई पत्तियों, टहनियों और फलों को इकट्ठा कर जला देना चाहिए. मंजरी संक्रमण को रोकने के लिए 0.1 फीसदी कार्बंडाजिम का 2 बार छिड़काव 15 दिनों के अंतराल पर करने से इस रोग को नियंत्रित किया जा सकता है.

पर्णीय संक्रमण को रोकने के लिए 0.3 फीसदी कौपर औक्सीक्लोराइड का छिड़काव कारगर है. 0.1 फीसदी थायोफेनेट मिथाइल या 0.1 फीसदी कार्बंडाजिम का बाग में फल की तुड़ाई से पहले छिड़काव करने से अंदरूनी संक्रमण को कम किया जा सकता है.

उल्टा सूखा रोग : टहनियों का ऊपर से नीचे की ओर सूखना इस रोग का मुख्य लक्षण है. खासतौर पर पुराने पेड़ों में बाद के पत्ते सूख जाते हैं जो आगे से झुलसे हुए से मालूम पड़ते हैं. शुरू में नई हरी टहनियों पर गहरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं. जब ये धब्बे

बढ़ते हैं, तब नई टहनियां सूख जाती हैं. ऊपर की पत्तियां अपना हरा रंग खो देती हैं. इस रोग का साफसाफ असर अक्तूबरनवंबर माह में दिखाई पड़ता है.

रोकथाम : छंटाई के बाद गाय का गोबर व चिकनी मिट्टी मिला कर कटे भाग पर लगाना फायदेमंद होता?है. संक्रमित भाग से

3 इंच नीचे से छंटाई करने के बाद बोर्डो मिश्रण 5:5:50 या 0.3 फीसदी कौपर औक्सीक्लोराइड का छिड़काव अधिक प्रभावशाली है.

यह भी ध्यान रखें कि कलम के लिए इस्तेमाल में आने वाली सांकुर डाली रोग से ग्रसित न हो.

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आखिरी सेल्फी : भाग 1

भाग 1

कोई जहरीली चीज खा कर, फंदा लगा कर और हाथ की नस काट कर तो आत्महत्या के मामले सामने आते रहते हैं. लेकिन अंजू और शंकर ने जिस तरह एकदूसरे को गोली मार कर आत्महत्या की, ऐसा देखनेसुनने में नहीं आया. अलबत्ता फिल्म ‘इशकजादे’ और ‘रामलीला: गोलियों की रासलीला’ का अंत जरूर ऐसा था. आखिर अंजू और शंकर ने ऐसा क्यों किया…

सोशल मीडिया एक ऐसा प्लेटफार्म है, जिस की लोकप्रियता तो बुलंदी पर है ही, इस का नशा भी सिर चढ़ कर बोल रहा है. महानगरों और बड़े शहरों की बात तो छोडि़ए, कस्बों से ले कर गांवों तक के लोग इस नशे के आदी हो गए हैं.

ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो सुबह को सो कर उठने के बाद सब से पहले अपनी फेसबुक और वाट्सऐप का स्टेटस चैक करते हैं. पेशे से ड्राइवर धरमाराम अपने भाई शंकर के वाट्सऐप ग्रुप से जुड़ा था. उस दिन सुबह उठ कर उस ने मोबाइल पर अपना स्टेटस देखा तो सन्न रह गया. उस ने जो देखा, वह दिल दहला देने वाला था.

धरमाराम ने देखा कि वाट्सऐप ग्रुप में सुबह 3.58 बजे 15 फोटो और एक वीडियो डाले गए थे. फोटो उस के भाई शंकर और उस की प्रेमिका अंजू के थे, जिन में से कुछ में दोनों एकदूसरे को किस कर रहे थे तो कुछ में एकदूसरे के कंधों पर हाथ रखे खड़े थे.

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सारे फोटो सेल्फी के थे, इन में से कुछ सेल्फी शंकर ने तो कुछ अंजू ने ली थीं, जो उन के हाथों के डायरेक्शन से पता चल रही थीं. फोटो के अलावा छोटेछोटे 6 वीडियो और 3 औडियो थे. औडियो में शंकर और अंजू की आवाज थी, जिस में दोनों एक ही बात कह रहे थे कि वे लोग जो कदम उठा रहे हैं, अपनी मरजी से उठा रहे हैं. इस के लिए किसी को परेशान न किया जाए.

इस के बाद का वीडियो देख कर धरमाराम दहल गया. क्योंकि एक वीडियो में शंकर और अंजू अपनीअपनी कनपटी पर पिस्तौल रखे हुए थे. देखतेदेखते 4 बज कर 15 मिनट पर एक साथ 2 गोलियां चलीं और दोनों जमीन पर गिरते नजर आए.

धरमाराम समझ गया कि शंकर और अंजू ने आत्महत्या कर ली है. वाट्सऐप ग्रुप पर फोटो, औडियो और वीडियो डालने का समय 3 बज कर 58 मिनट से 4 बज कर 15 मिनट के बीच था. उम्मीद तो नहीं थी, फिर भी धरमाराम ने यह सोच कर शंकर के मोबाइल पर काल की कि क्या पता भाई की जान बच जाए. लेकिन दूसरी ओर फोन नहीं उठाया गया.

धरमाराम समझ गया कि शंकर ने अपनी प्रेमिका अंजू के साथ सुसाइड कर लिया है. उस ने अपने वाट्सऐप ग्रुप के मेंबरों को यह बात बताई तो सभी ने अपनेअपने मोबाइलों पर मौत का भयावह दृश्य देखा. जरा सी देर में यह बात पूरे लालसर गांव में फैल गई.

लोग घर से निकल कर इस खोज में लग गए कि शंकर और अंजू ने आत्महत्या कहां की. थोड़ी खोजबीन के बाद दोनों की लाशें लालसर से थोड़ी दूर स्थित श्मशान के पास रेत में पड़ी मिलीं. दोनों के हाथों में पिस्तौल थीं.

किसी ने इस घटना की सूचना थाना चौहटन को दे दी थी. इंसपेक्टर राकेश ढाका पुलिस टीम के साथ लालसर पहुंच गए. उन्होंने घटना की सूचना उच्चाधिकारियों और फोरैंसिक टीम को दे दी.

पुलिस टीम ने घटनास्थल पर जा कर देखा तो युवक और युवती की लाशों के मुंह विपरीत दिशा में थे लेकिन दोनों की पीठ मिली हुई थीं. दोनों के हाथों में पिस्तौल थीं और चेहरे खून से तर.

घटनास्थल पर माचिस, सिगरेट का पैकेट, बीयर और पानी की बोतल पड़ी थीं. लाशों के पास एक मोबाइल भी पड़ा मिला. एसपी राशि डोगरा और फोरैंसिक टीम के आने के बाद इन सभी चीजों को काररवाई के बाद जाब्ते में ले लिया गया.

गांव वालों से यह बात पता चल गई थी कि आत्महत्या करने वाला युवक शंकर है और युवती अंजू. दोनों लालसर गांव के ही रहने वाले थे. एसपी राशि डोगरा मौकामुआयना कर के वापस चली गईं.

उन के जाने के बाद इंसपेक्टर राकेश ढाका ने दोनों के शवों को पोस्टमार्टम के लिए चौहटन सीएचसी भेज कर गांव वालों से पूछताछ की. मृतक के पिता भंवराराम ने पुलिस को बताया कि उसे सुबह पता चला कि उस के बेटे शंकर की लाश श्मशान के पास रेत के टीले पर पड़ी है. उस के साथ अंजू की लाश भी वहीं पड़ी है.

गांव वालों के साथ वह मौके पर पहुंचा तो श्मशान के पास दोनों की लाशें पड़ी मिलीं. दोनों के हाथों में पिस्तौल थीं. भंवराराम ने यह भी बताया कि शंकर और अंजू एकदूसरे को प्यार करते थे.

उधर अंजू के पिता टीकूराम सुथार ने कुछ और ही कहानी बताई. उस के अनुसार, शंकर जाट और मूलाराम उन की बेटी का यौनशोषण करते थे. 12 जून की रात शंकर और मूलाराम मोटरसाइकिल से उस के घर आए. शंकर ने अंजू को फोन कर के धमकी दी और उसे घर के बाहर बुलाया. फिर अंजू को मोटरसाइकिल पर बैठा कर ले गए. रात में शंकर और उस के 2 साथियों ने शराब पार्टी की. उन्होंने उस की बेटी अंजू को भी जबरन शराब पिलाई और उस के साथ गैंगरेप किया. बाद में इन लोगों ने उसे गोली मार दी. पुलिस ने टीकूराम की रिपोर्ट दर्ज कर ली.

एसपी राशि डोगरा ने उसी दिन प्रैस कौन्फ्रैंस में बताया कि लालसर गांव के श्मशान के पास एक लड़की और लड़के की लाशें पड़ी मिलीं. युवती 18-19 साल की थी और लड़का 20-21 साल का. दोनों के हाथों में पिस्तौल थीं और उन्होंने अपनीअपनी कनपटी पर गोली मार कर आत्महत्या की थी.

पत्रकारों ने जब एसपी से पिस्तौलों के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि राजस्थान का सीमावर्ती इलाका होने की वजह से वहां हथियारों की तस्करी होती है. पिस्तौलों की बात जांच का विषय है, हम जांच करेंगे. पुलिस जांच में जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस तरह थी—

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21 वर्षीय शंकर जाति से जाट था और 18 वर्षीय अंजू जाति से सुथार (बढ़ई) थी. दोनों में करीब 2 साल पहले प्यार हो गया था. शंकर और अंजू बेखौफ साथसाथ बाहर आनेजाने लगे थे. शंकर चूंकि दबंग लड़का था, इसलिए अंजू के घर वाले भी उसे कुछ नहीं कह पाते थे. वह अंजू को बाइक पर बैठा कर शहर घुमाने ले जाता था. दोनों ने शादी करने और साथसाथ जीनेमरने की कसमें खा ली थीं.

कसम खाने से पहले अंजू ने शंकर से पूछा था, ‘‘हमारी जातियां अलगअलग हैं. ऐसे में समाज हमें शादी करने देगा?’’

शंकर ने एक मोटी सी गाली दे कर कहा, ‘‘शादी हम दोनों को करनी है, समाज को नहीं. कौन रोकेगा हमें?’’

इस बात से अंजू को काफी सकून मिला और वह भावुक हो कर शंकर के सीने से लग गई. शंकर जालौर में ठेकेदारी का काम करता था. वह सीमेंट, चिनाई, प्लास्टर वगैरह के ठेके लेता था. इस काम में उसे अच्छी आय थी.

दूसरी और सुथार समाज के लोग अंजू के पिता टीकूराम पर दबाव डाल रहे थे कि अंजू और शंकर के संबंधों की वजह से समाज की बदनामी हो रही है, इसलिए वह अपनी बेटी पर पाबंदी लगाए.

क्रमश:

सौजन्य : मनोहर कहानियां

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