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रातों का खेल: भाग 2

रातों का खेल: भाग 1

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आखिरी भाग

लीड जैक इंफोकाम और सर्वर के माध्यम से एक साथ 10 हजार अमेरिकी नागरिकों को वायस मैसेज भेजा जाता था. मैसेज द यूनाइटेड स्टेट्स सोशल सिक्योरिटी एडमिनिस्ट्रेशन अधिकारी की तरफ से भेजा जाता था, जिस में कभी कर चोरी तो कभी उन की गाड़ी के आपराधिक मामले में इस्तेमाल किए जाने की रिपोर्ट से संबंधित वायस मैसेज होता था. इस के अलावा ऐसे ही कई दूसरे मामलों में उन के खिलाफ शिकायत मिलने की बात कह कर एक टोल फ्री नंबर पर कौन्टैक्ट करने को कहा जाता था.

वायस मैसेज भेजने वाली नौर्थ ईस्ट की लड़कियां इस लहजे में मैसेज देती थीं कि कोई भी अमेरिकी नागरिक उस के अंगरेजी बोलने के लहजे से यह नहीं सोच सकता था कि वह किसी भारतीय लड़की की आवाज है.

इस के लिए मैजिक जैक डिवाइस का उपयोग किया जाता था. मैजिक जैक एक ऐसी डिवाइस है जिसे कंप्यूटर व लैंडलाइन फोन से कनेक्ट कर विदेशों में काल कर सकते हैं. इस से विदेश में बैठे व्यक्ति के फोन पर फेक नंबर डिसप्ले होता है. यह वायस ओवर इंटरनेट प्रोटोकाल (वीओआईपी) के प्लेटफार्म पर चलती है. इस से अमेरिका और कनाडा में काल कर सकते हैं और रिसीव भी कर सकते हैं.

एसपी जितेंद्र सिंह के अनुसार ठगी का कारोबार 3 स्तर पर पूरा होता था. ऊपर बताया गया काम डायलर का होता था. इस के बाद काम शुरू होता था ब्रौडकास्टर का. जिन 10 हजार अमेरिकी नागरिकों को फरजी तौर पर द यूनाइटेड स्टेट्स सोशल सिक्योरिटी एडमिनिस्ट्रेशन अधिकारी की ओर से नियम तोड़ने या किसी अपराध से जुड़े होने की शिकायत मिलने का फरजी वायस मैसेज भेजा जाता था, उन में से कुछ ऐसे भी होते थे जिन्होंने कभी न कभी अपने देश का कोई कानून तोड़ा होता था.

इस से ऐसे लोग और कुछ दूसरे लोग डर जाने के कारण मैसेज में दिए गए नंबर पर फोन करते थे. इन काल को ब्रौडकास्टर रिसीव करता था, जो प्राय: नार्थ ईस्ट की कोई युवती होती थी.

आमतौर पर ऐसे लोगों द्वारा किए जाने वाले संभावित सवालों का अनुमान उन्हें पहले से ही होता था, इसलिए ब्रौडकास्टर युवती सामने वाले को कुछ इस तरह संतुष्ट कर देती थी कि अच्छाभला आदमी भी खुद को अपराधी समझने लगता था. जब कोई अमेरिकी जाल में फंस जाता था, तो उस के काल को तीसरी स्टेज पर बैठने वाले क्लोजर को ट्रांसफर कर दिया जाता था.

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यह क्लोजर पहले तो विजिलेंस अधिकारी बन कर अमेरिकी लैंग्वेज में कठोर काररवाई के लिए धमकाता था, फिर उसे सेटलमेंट के मोड पर ला कर गिफ्ट कार्ड, वायर ट्रांसफर, बिटकौइन और एकाउंट टू एकाउंट ट्रांजैक्शन के औप्शन दे कर डौलर ट्रांसफर के लिए तैयार कर लेता था.

इस के बाद गिफ्ट कार्ड के जरिए अमेरिकी खातों में डौलर में रकम जमा करवा कर उसे हवाला के माध्यम से भारत मंगा कर जावेद और राहिल खुद रख लेते थे. हवाला से रकम भेजने वाला 40 प्रतिशत अपना हिस्सा काट कर शेष रकम जावेद को सौंप देता था.

एसपी जितेंद्र सिंह के अनुसार यह गिरोह रोज रात को कालसेंटर खुलते ही एक साथ नए 10 हजार अमेरिकी लोगों को फरजी वायस मैसेज भेजने के बाद फंसने वाले लोगों से लगभग 3 से 5 हजार डौलर यानी लगभग 3 लाख की ठगी कर सुबह औफिस बंद कर अपने घर चले जाते थे.

अनुमान है कि जावेद और राहिल के गिरोह ने अब तक लगभग 20 हजार से अधिक अमेरिकी नागरिकों से अरबों रुपए ठगे होंगे. उस के पास 10 लाख दूसरे अमेरिकी नागरिकों का डाटा भी मिला, जिन्हें ठगी के निशाने पर लिया जाना था.

गिरोह का दूसरा मास्टरमाइंड राहिल छापेमारी की रात अहमदाबाद गया हुआ था, इसलिए वह पुलिस की पकड़ से बच गया जिस की तलाश की जा रही है. राहिल के अलावा संतोष, मिनेश, सिद्धार्थ, घनश्याम तथा अंकित उर्फ सन्नी चौहान को भी पुलिस तलाश रही है, जो इस फरजी कालसेंटर को 12 से 14 रुपए प्रति अमेरिकी नागरिक का डाटा उपलब्ध कराते थे.

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कहानी सौजन्य: मनोहर कहानी

निशान : भाग 2

मां ने हड़बड़ाते हुए रसोई से आ कर राकेश की ओर प्रश्नवाचक निगाहों से देखा तो उस ने मन की भड़ास निकाल दी. 16 साल का राकेश मां से अपने पिता के व्यवहार की शिकायत कर रहा था और मां मौके की नजाकत भांप कर बेटे को समझा रही थीं.

‘‘बेटा, मैं तुम्हारे पापा से बात करूंगी कि इस बात का ध्यान रखें. वैसे बेटा, तुम यह तो समझते ही हो कि वे तुम से कितना प्यार करते हैं. तुम्हारी हर फरमाइश भी पूरी करते हैं. अब गुस्सा आता है तो वे खुद को रोक नहीं पाते. यही कमी है उन में कि जराजरा सी बात पर गुस्सा करना उन की आदत बन गई है. तुम उसे दिल पर मत लिया करो.’’

‘‘रहने दो मां, पापा को हमारी फिक्र कहां, कभी भी, कहीं भी हमारी बेइज्जती कर देते हैं. दोस्तों के सामने ही कुछ भी कह देते हैं. तब यह कौन देख रहा है कि वे हमें कितना प्यार करते हैं. लोग तो हमारा मजाक बनाते ही हैं.’’

राकेश अभी भी गुस्से से भनभना रहा था और उस की मां सरला माथा पकड़ कर बैठ गई थीं, ‘‘मैं क्या करूं, तुम लोग तो मुझे सुना कर चले जाते हो पर मैं किस से कहूं? तुम क्या जानो, अगर तुम्हारे पिता के पास कड़वे बोल न होते तो दुख किस बात का था. उन की जबान ने मेरे दिल पर जो घाव लगा रखे हैं वे अभी तक भरे नहीं और आज तुम लोग भी उस का निशाना बनने लगे हो. मैं तो पराई बेटी थी, उन का साथ निभाना था, सो सब झेल गई पर तुम तो हमारे बुढ़ापे की लाठी हो, तुम्हारा साथ छूट गया तो बुढ़ापा काटना मुश्किल हो जाएगा. काश, मैं उन्हें समझा सकती.’’

तभी परदे के पीछे सहमी खड़ी मासूमी धड़कते दिल से मां से पूछने लगी, ‘‘मां, क्या हुआ, भैया को गुस्सा क्यों आ रहा था?’’

‘‘नहीं बेटा, कोई बात नहीं, तुम्हारे पापा ने उसे डांट दिया था न, इसीलिए कुछ नाराज था.’’

‘‘मां, आप पापा से कुछ मत कहना. बेकार में झगड़ा शुरू हो जाएगा,’’ डर से पीली पड़ी मासूमी ने धीरे से कहा.

‘‘तू बैठ एक तरफ,’’ पहले से ही भरी बैठी सरला ने कहा, ‘‘उन से बात नहीं करूंगी तो जवान बेटों को भी गंवा बैठूंगी. क्या कर लेंगे? चीखेंगे, चिल्लाएंगे, ज्यादा से ज्यादा मार डालेंगे न, देखूंगी मैं भी, आज तो फैसला होने ही दे. उन्हें सुधरना ही पड़ेगा.’’

सरला जब से ब्याह कर आई थीं उन्होंने सुख महसूस नहीं किया था. वैसे तो घर में पैसे की कमी नहीं थी, न ही सुरेशजी का चरित्र खराब था. बस, कमी थी तो यही कि उन की जबान पर उन का नियंत्रण नहीं था. जराजरा सी बात पर टोकना और गुस्सा करना उन की सब से बड़ी कमी थी और इसी कमी ने सरला को मानसिक रूप से बीमार कर दिया था.

वे तो यह सब सहतेसहते थक चुकी थीं, अब बच्चे पिता की तानाशाही के शिकार होने लगे हैं. बच्चों को बाहर खेलने में देर हो जाती तो वहीं से गालियां देते और पीटते घर लाते, उन के पढ़ने के समय कोई मेहमान आ जाता तो सब को एक कमरे में बंद कर यह कहते हुए बाहर से ताला लगा देते, ‘‘हरामजादो, इधर ताकझांक कर के समय बरबाद किया तो टांगें तोड़ दूंगा. 1 घंटे बाद सब से सुनूंगा कि तुम लोगों ने क्या पढ़ा है? चुपचाप पढ़ाई में मन लगाओ.’’

उधर सरला उस डांट का असर कम करने के लिए बच्चों से नरम व्यवहार करतीं और कई बार उन की गलत मांगों को भी चुपचाप पूरा कर देती थीं. पर आज तो उन्होंने सोच रखा था कि वे सुरेशजी को समझा कर ही रहेंगी कि जब बाप का जूता बेटे के पैर में आने लगे तो उस से दोस्त जैसा व्यवहार करना चाहिए. वरना कल औलाद ने पलट कर जवाब दे दिया तो क्या इज्जत रह जाएगी. औलाद भी हाथ से जाएगी और पछतावे के सिवा कुछ नहीं मिलेगा.

अपने विचारों में सरला ऐसी डूबीं कि पता ही नहीं चला कि कब सुरेशजी घर आ गए. घर अंधेरे में डूबा था. उन्होंने खुद बत्ती जलाई और उन की जबान चलने लगी :

‘‘किस के बाप के मरने का मातम मनाया जा रहा है, जो रात तक बत्ती भी नहीं जलाई गई. मासूमी, कहां है, तू ही यह काम कर दिया कर, इन गधों को तो कुछ होश ही नहीं रहता.’’

फिर उन्होंने तिरछी नजरों से सरला को देखा, ‘‘और तुम, तुम्हें किसी काम का होश है या नहीं? चायपानी भी पिलाओगी या नहीं? मासूमी, तू ही पानी ले आ.’’

उधर मासूमी मां की आड़ में छिपी थी. उस का दिल आज होने वाले झगड़े के डर से कांप रहा था. फिर भी उस ने किसी तरह पिता को पानी ला कर दिया. पानी पीते उन्होंने मासूमी से पूछा, ‘‘इन रानी साहिबा को क्या हुआ?’’

मासूमी के मुंह से बोल नहीं फूटे तो हाथ के इशारे से मना किया, ‘‘पता नहीं.’’

‘‘वे दोनों नवाबजादे कहां हैं?’’

‘‘पापा, बड़े भैया का आज मैच था. वे अभी नहीं आए हैं और छोटे किसी दोस्त के यहां नोट्स लेने गए हैं,’’ किसी अनिष्ट की आशंका मन में पाले मासूमी डरतेडरते कह रही थी.

‘‘हूं, ये सूअर की औलाद सोचते हैं कि बल्ला घुमाघुमा कर सचिन तेंदुलकर बन जाएंगे और दूसरा नोट्स का बहाना कर कहीं आवारागर्दी कर रहा है, सब जानता हूं,’’ सुरेशजी की आंखें शोले बरसाने को तैयार थीं.

बस, इसी अंदाज पर सरला कुढ़ कर रह जाती थीं. उन की आत्मा तब और छलनी हो जाती जब बच्चे पिता की इस ज्यादती का दोष भी उन के सिर मढ़ देते कि मां, अगर आप ने शुरू से पिताजी को टोका होता या उन का विरोध किया होता तो आज यह नौबत ही नहीं आती. मगर वे बच्चों को कैसे समझातीं, यहां तो पति के विरोध में बोलने का मतलब होता है कुलटा, कुलक्षिणी कहलाना.

वे तब उस इनसान की पत्नी बन कर आई थीं जब पुरुष अपनी पत्नियों को किसी काबिल नहीं समझते थे घर में उन की कोई अहमियत नहीं होती थी, न ही बच्चों के सामने उन की इज्जत की जाती थी. वरना सरला यह कहां चाहती थीं कि पितापुत्र का सामना लड़ाईझगड़े के सिलसिले में हो और इसीलिए सरला ने खुद बहुत संयम से काम ले कर पितापुत्र के बीच सेतु बनने की कोशिश की थी.

उन्होंने तो जैसेतैसे अपना समय निकाल दिया था पर अब नया खून बगावत का रास्ता अपनाने को मचल रहा था और इसी के चलते घर के हालात कब बिगड़ जाएं, कुछ भरोसा नहीं था और इन सब बातों का सब से बुरा असर मासूमी पर पड़ रहा था.

मासूमी मां की हमदर्द थी तो पिता से भी उसे बहुत स्नेह था, लेकिन जबतब घर में होने वाली चखचख उस को मानसिक रूप से बीमार करने लगी थी. स्कूल जाती तो हर समय यह डर हावी रहता कि कहीं पिताजी अचानक घर न आ गए हों क्योंकि राकेश भाई अकसर स्कूल से गायब रहते थे…और घर में रहते तो तेज आवाज में गाने सुनते थे…इन दोनों बातों से पिता बुरी तरह चिढ़ते थे.

मां राकेश को समझातीं तो वह अनसुनी कर देता. उसे पता था कि पिता ही मां की बातों पर ध्यान नहीं देते हैं इसलिए उन का क्या है बड़बड़ करती ही रहेंगी. ऐसे में किसी अनहोनी की आशंका मासूमी के मन को सहमाए रखती और स्कूल से घर आते ही उस का पहला प्रश्न होता, ‘मां, पापा तो नहीं आ गए? भैया स्कूल गए थे या नहीं? पापा ने प्रकाश भाई को क्रिकेट खेलते तो नहीं पकड़ा? दोनों भाइयों में झगड़ा तो नहीं हुआ?’

मां उसे परेशानी में देखतीं तो कह देती थीं, ‘क्यों तू हर समय इन्हीं चिंताओं में जीती है. अरे, घर है तो लड़ाई झगड़े होंगे ही. तुझे तो बहुत शांत होना चाहिए, पता नहीं तुझे आगे कैसा घरवर मिले.’

मगर मासूमी खुद को इन बातों से दूर नहीं रख पाती और हर समय तनावग्रस्त रहतेरहते ही वह स्कूल से कालेज में आ गई थी और आज फिर वह दिन आ गया था जो किसी आने वाले तूफान का संकेत दे रहा था.

सर्वे नमंति सुखिन

चाहे इंसान हो, शहर हो, सड़क हो, या फिर कोई स्थान हो, नाम बदलने का फैशन चल पड़ा है. भई, नाम बदलने वालों को लगता है कि वहां की या उस की तस्वीर या फिर दशा बदल जाएगी. पर ऐसा होता है क्या?

आखिर और क्या तरीका हो सकता था इन के जीवन को आसान बनाने का. यदि इन के लिए सार्वजनिक स्थानों, कार्यालयों आदि मैं रैंप बनवाया जाए, व्हीलचेयर की व्यवस्था की जाए, चलिष्णु सीढि़यां लगाई जाएं, बैटरीचालित गाड़ी का प्रबंध किया जाए, तो उस में कितना खर्च होगा. कितना परिश्रम लगेगा.

यदि अंगदान को प्रोत्साहन कर उन्हें वांछित अंग उपलब्ध करवाया जाए या फिर शोध व अनुसंधान के जरिए उन के लिए आवश्यक यंत्र बना कर या विकास कर उपलब्ध करवाया जाए तो यह काफी कष्टकर व खर्चीला होगा. फिर उन्हें वह संतुष्टि नहीं मिलेगी जो दिव्यांग जैसे दिव्य नाम प्राप्त होने से मिली. सो, और कुछ करने की अपेक्षा प्यारा सा, न्यारा सा नाम दे देना ही उचित होगा.

तो कुछ और करने से बेहतर है कि इस तरह के वंचित लोगों को खूबसूरत सा प्रभावी नाम दे दें. और हम ऐसा करते भी आए हैं. विकलांगों को पहले डिफरैंटली एबल्ड या स्पैशली एबल्ड का नाम दिया गया और अब दिव्यांग. हो सकता है आगे चल कर इस से भी तड़कभड़क वाला, इस से भी गरिमामय कोईर् नाम दे दिया जाए.

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किसानों को अन्नदाता का नाम और दर्जा दिया जाता रहा है. भले ही वे खुद अन्न के लिए तरसते रहें. भले ही वे अपने ही उपजाए अन्न को फलों को, सब्जियों को कौडि़यों के दाम बेच कर उसे पाने के लिए, खाने के लिए तरसें. अन्नदाता नाम का ही प्रभाव है कि हमारे अधिकांश किसान आत्महत्या नहीं कर रहे हैं. और यह कम बड़ी उपलब्धि नहीं है. हो सकता है आने वाले दिनों में यह समाचार छपा करे कि आज इतने किसानों ने आत्महत्या नहीं की.

हरिजन नामकरण मात्र मिल जाने से भी विशेष वर्गों को राहत मिली है. भले ही आज भी इन में से कुछ सिर पर मैला ढोने को बाध्य हों पर नाम तो ऐसा मिला है कि ये प्रकृति के साक्षात करीबी माने जा सकते हैं, फिर आम आदमी की बात ही क्या है.

किसी मशहूर लेखक ने दरिद्रनारायण नाम दे कर दरिद्रों को नारायण का दर्जा दे दिया था. दरिद्रतारूपी घाव पर नारायण नाम रूपी मरहम अपनेआप में कितना सुखद एहसास रहा होगा, यह सोचने की बात है.

इसी प्रकार हम सोचविचार कर दबेकुचले, वंचित लोगों को खूबसूरत सा चमत्कारिक नाम दे सकते हैं. बेरोजगारों को अमरबेल कहें तो कैसा रहेगा? जिस प्रकार अमरबेल बगैर जड़ के, बगैर जमीन के भी फैलती रहती है उसी प्रकार बेरोजगार युवकयुवती भी बगैर किसी रोजगार के जीवन के मैदान में डटे रहते हैं और कल की उम्मीद से सटे रहते हैं.

बेघर लोगों को भी इसी प्रकार का नाम दिया जा सकता है. विस्थापित हो कर अपने ही देश में शरणार्थी का जीवन जीने वालों को, बगैर अपराध सिद्ध हुए कारावास में रहने वालों को, दंगापीडि़तों को कोई प्यारा सा नाम दे दिया जाए. बलात्कार पीडि़त लड़की को तो निर्भया नाम दे भी दिया गया है. कोई और भी नाम दिया गया था उसे. शायद दामिनी, पर निर्भया नाम ज्यादा मशहूर हुआ. इतना मात्र उस के और उस के परिवार को राहत देने के लिए काफी नहीं होगा क्या? इसी प्रकार इस तरह की पीडि़त अन्य महिलाओं को भी यही या ऐसा ही कुछ नाम दे दिया जाए.

साइबर अपराधियों द्वारा लूटी गई जनता को कोई अच्छा सा नाम दिया जाए ताकि उसे बेहतरीन एहसास का आनंद मिले. आखिर मोबाइल सेवाप्रदाताओं पर रेवड़ी की भांति सिम वितरण पर रोक क्यों लगाई जाए? क्यों उन्हें केवाईसी नियमों के सही अनुपालन के लिए, केवाईसी के नवीकरण के लिए और उन के सिम का दुरुपयोग होने पर दंडित करने की कल्पना भी मन में लाई जाए?

आखिर ये बड़े स्वामियों के स्वामित्व में होते हैं. वैसे, कानून की नजर में सब बराबर होते हैं. फिर जौर्ज औरवैल ने कहा भी है, ‘औल आर इक्वल बट सम आर मोर इक्वल दैन अदर्स.’ तो ये भी मोर इक्वल हैं.

बात सिर्फ मनुष्यों की नहीं है, स्थानों, सड़कों आदि के नाम भी इसी प्रकार से बदले जा रहे हैं. कहीं  मेन रोड को महात्मा गांधी रोड कहा जा रहा है तो कहीं किसी चौक का नाम किसी शहीद के नाम पर रखा जा रहा है. सड़क को दुरुस्त करने के स्थान पर उसे प्यारा सा देशभक्ति से ओतप्रोत नाम देना ज्यादा श्रेयस्कर होगा. यह बात अलग है कि अधिकांश लोग उस सड़क को पुराने नाम से ही जानते हैं. नया देशभक्ति से ओतप्रोत नाम, बस, फाइलों में ही दबा रहता है.

कहींकहीं तो पूरे शहर का नाम ही बदल दिया जा रहा है. अब शहर को सुव्यवस्थित बनाने में, प्रदूषणमुक्त करने में काफी झमेला है. नया नाम, भले ही वह शहर का पूर्व में रह चुका हो, दे देना ज्यादा आसान है. इस से वर्तमान, गौरवमय अतीत की तरह लगने लगता है.

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इतना ही नहीं, नाम रखने का एक नया फैशन चल पड़ा है. इस फैशन में नाम हिंदी शब्द का होते हुए भी हिंदी नहीं होता. उदाहरण के लिए नीति आयोग को ले लें. नीति वैसे तो हिंदी शब्द है, पर वास्तव में यह इंग्लिश शब्दों का संक्षिप्त रूप है-नैशनल इंस्टिट्यूट फौर ट्रांस्फौर्मिंग इंडिया. इसी प्रकार उदय को ले लें. यह भी इंग्लिश शब्दों का संक्षिप्त रूप है, उज्ज्वल डिस्कौम एश्युरैंस योजना. और फिर इस में डिस्कौम भी अपनेआप में डिस्ट्रिब्यूशन कंपनी का संक्षिप्त रूप है. आखिर इतने नवोन्मेषी नाम हम खोज रहे हैं तो इस का लाभ तो होगा ही.

सो, दे दो प्यारा सा नाम, बस हो गया अपना काम, और बात खत्म.

एक सवाल : भाग 1

शीना और समीर दोनों ही किसी कौमन दोस्त के विवाह में आए थे. जब उस दोस्त ने उन्हें मिलवाया तो वे एकदूसरे से बहुत प्रभावित हुए. वैसे तो यह उन की पहली मुलाकात थी, लेकिन दोनों ही जानीमानी हस्तियां थीं. रोज अखबारों में फोटो और इंटरव्यू आते रहते थे दोनों के. सो, ऐसा भी नहीं था कि कुछ जानना बाकी हो.

समीर सिर्फ व्यवसायी ही नहीं, बल्कि देश की राजनीतिक पार्टी का सदस्य भी था. उधर, शीना बड़ी बिजनैस वूमन थी. अच्छे दिमाग की ही नहीं, खूबसूरती की भी धनी. सो, दोनों का आंखोंआंखों में प्यार होना स्वाभाविक था. दोस्त की शादी में ही दोनों ने खूब मजे किए और दिल में मीठी यादें लिए अपनेअपने घरों को चल दिए.

शीना सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी अपने बिजनैस का विस्तार कर रही थी. नाम, पैसा और ऊपर से हुस्न. भला ऐसे में कौन उस का दीवाना न हो जाए. सो, समीर ने उस से अपनी मुलाकातें बढ़ाईं. शीना को भी उस से एतराज नहीं था. अपने पति की मृत्यु के बाद वह भी तो कितनी अकेली सी हो गईर् थी. ऐसे में मन किसी न किसी के प्यार की चाहत तो रखता ही है. और सिर्फ मन ही नहीं, तन की प्यास भी तो सताती है.

शीना भी समीर को मन ही मन चाहने लगी थी. बातों बातों में मालूम हुआ समीर भी शादीशुदा है लेकिन उस का पहली पत्नी से तलाक हो चुका था. दोनों अभी अर्ली थर्टीज में थे.

कई दिनों बाद समीर अपने व्यवसाय के सिलसिले में आस्ट्रेलिया गया और शीना भी उस वक्त वहीं किसी जरूरी मीटिंग के लिए गईर् थी.

दोनों को मिलने का जैसे फिर एक बहाना मिल गया. समीर अपना काम खत्म कर जब शीना से उस के होटल में डिनर पर मिला तो उस ने अपने मन की बात शीना से कह ही डाली, ‘‘शीना, आज जिंदगी के जिस पड़ाव पर तुम और मैं हूं, क्या ऐसा नहीं लगता कि कुदरत ने हमें एकदूसरे के लिए बनाया है? क्यों न हम दोनों विवाह के बंधन में बंध जाएं?’’

शीना को लगा समीर ठीक ही तो कह रहा है. उसे भी तो पुरुष के सहारे की जरूरत है. सो, उस ने समीर को इस रिश्ते की रजामंदी दे दी.

बस, फिर क्या था, दोनों ने भारत लौट कर दोस्तों को बुला कर अपने प्यार को दुनिया के साथ साझा किया और साथ ही विवाह की घोषणा भी. रातोंरात सारे जहां में उन का प्यार दुनिया की सब से बड़ी खबर बन गया था. सारे विश्व में फैले उन के सहयोगी उन्हें बधाइयां दे रहे थे. दोनों ने ट्विटर पर अपने दोस्तों व फौलोअर्स की बधाइयां स्वीकारते हुए धन्यवाद किया.

बस, अगले ही महीने दोनों ने शादी की रस्म भी पूरी कर ली. हनीमून के लिए मौरिशस का प्लान तो पहले ही बना रखा था, सो, विवाह के अगले दिन ही हनीमून को रवाना हो गए.

शीना कहने लगी, ‘‘समीर, जीवन में सबकुछ तो था, शायद एक तुम्हारी ही कमी थी. और वह कमी अब पूरी हो गई है. ऐसा महसूस हो रहा है जैसे मैं दुनिया की सब से खुशहाल औरत हूं.’’

समीर ने भी अपना मन शीना के सामने खोल कर रख दिया था, बोला, ‘‘सेम हियर शीना, तुम बिन जिंदगी अधूरीअधूरी सी थी.’’

दोनों ने अपने हनीमून के फोटो इंस्टाग्राम पर शेयर किए. इतनी सुंदर तसवीरें थीं कि शायद कोई भी न माने कि यह उन दोनों का दूसरा विवाह था. शायद ईर्ष्या भी होने लगे उन तसवीरों को देख कर.

खैर, हनीमून खत्म हुआ और दोनों भारत लौट आए. और फिर से अपनेअपने काम में व्यस्त हो गए. दोनों खूब पैसा कमा रहे थे. पैसे के साथ नाम और शोहरत भी. 2 वर्ष बीते, शीना ने एक बेटे को जन्म दिया. अब ऐसा लग रहा था जैसे उन का परिवार पूरा हो गया हो.

शीना अपनी जिंदगी में भरपूर खुशियां समेट रही थी और अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाती जा रही थी. समीर और उस के विवाह के 10 वर्ष कैसे बीत गए, उन्हें कुछ मालूम ही न हुआ. बेटा भी होस्टल में पढ़ने के लिए चला गया था.

समीर अब व्यवसाय से ज्यादा राजनीति में सक्रिय हो गया था. एकदो बार किसी घोटाले में फंस भी गया. लेकिन, उस ने सारा पैसा शीना के अकाउंट में जमा किया था, जिस से बारबार बच जाता. वैसे तो शीना इन घोटालों को खूब सम?ाती थी लेकिन अकसर व्यवसाय में थोड़ाबहुत तो इधरउधर होता ही है. इसलिए उसे भी कुछ फर्क नहीं पड़ता था.

शौकीनमिजाज समीर जनता के पैसों से अपने सारे शौक पूरे कर रहा था. साथ में शीना भी. अब वे स्पोर्ट्स टीम के मालिक भी बन चुके थे. कभी दोनों साथ में रेसकोर्स में, तो कभी स्पोर्ट्स टीम को चीयर्स करते नजर आते थे. दोनों को साथ मौजमस्ती करते देख भला किस की नीयत खराब न हो जाए.

अंधेरे आसमान में चांदनी फैलाने वाले चांद में भी कभी तो ग्रहण लगता ही है. शीना को अपने पति के रंगढंग कुछ बदलेबदले लगने लगे थे. उसे लगने लगा कि आजकल समीर पहले की तरह उसे दिल से नहीं चाहता है. जैसे, वह उस के साथ हो तो भी उस का मन कहीं और होता है. वैसे तो वह 50 वर्ष की उम्र पार कर रहा था, लेकिन दौलतमंद लोग अपने जीवन को जीभर कर जी लेना चाहते हैं. उन के शौक तो हर दिन बढ़ते जाते हैं और साथ ही साथ, वे उन्हें पूरा भी कर ही लेते हैं.

शीना को महसूस होने लगा था कि अब समीर उस से दूरियां बनाने लगा है. न तो वह पहले की तरह उसे वक्त देता है और न ही उस की तारीफ करता है. जहां शीना को देख समीर के चेहरे पर मुसकराहट खिल जाती थी वहीं अब वह काम का बहाना कर उस से नजरें तक नहीं मिलाना चाहता था. वह समझने लगी थी कि जरूर समीर के जीवन में कोई और औरत आई है.

अब वह उस की ज्यादा से ज्यादा खबर रखने लगी थी. जैसे, बैंक अकाउंट में कितने पैसे हैं, वह कहां और कितने पैसे खर्च कर रहा है आदि. इस बार जब शीना के बिजनैस अकाउंट से समीर ने कुछ पैसे निकालने चाहे तो उस ने समीर को साफ न कह दिया. वह बोली, ‘‘समीर, तुम्हारी मौजमस्ती के लिए नहीं कमाती मैं. तुम्हारे पास मेरे लिए फुरसत के दो क्षण नहीं, अकेले मौजमस्ती के लिए वक्त है? अगर ऐसा ही है तो वह मौजमस्ती तुम अपने पैसों से करो.’’

गरबा स्पेशल 2019 : ऐसे सजाएं अपने नाखूनों को

सजे हुए और खूबसूरत नाखून आपकी पर्सनालिटी में निखार लाने के साथ ही साथ आपकी सुंदरता में भी चार चांद लगा देती है. आज आपको नेल आर्ट के बारे में कुछ खास टिप्स बताते हैं.

इन टिप्स को अपनाकर आप  आसानी से अपने नाखूनों को सजा सकती है. गरबा के लिए ये नेल आर्ट जरूर ट्राई करें. आपके नेल्स को स्मार्ट लुक मिलेगा.

 नेल आर्ट टिप्स

नेल आर्ट से पहले अपने हाथों को साबुन से अच्छी तरह धोएं. नाखूनों को भी साफ करें और पांच मिनट रुकें, जबतक नाखून पूरी तरह से सूख न जाए. अब न्‍यूड पिंक नेल पौलिश लें और उसे लगाने से पहले शेक कर लें, जिससे आपको उसका सही रंग मिल सके.

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इस नेल पौलिश की एक कोट अपने नाखूनों पर ऊपर से नीचे की ओर लगाएं. अगर शेड बहुत ही लाइट है तो एक कोट और लगा सकती हैं. अब नेल पौलिश को अच्‍छी तरह से सूखने दें.

अब एक डार्क ब्‍लू रंग की नेल पौलिश लें. इस नेल आर्ट में नीले रंग को नाखून की टिप पर लगाया जाता है, यानी की सबसे आखिर और नीचे की ओर.

ब्‍लू नेल पौलिश को उसी शेप में लगाइये, जिस शेप में आपके नाखून कटे हुए हों. अगर नाखून चौकोर आकार में कटे हैं, तो ब्‍लू कलर को उसी तरह लगाइये. ध्‍यान रहे की पिंक वाली नेल पौलिश पर ब्‍लू नेल पौलिश न चढ़े. जब नेल पौलिश लगा लें तो उसे पांच मिनट तक अच्‍छे से सूखने के लिये छोड़ दें. अब लास्‍ट में एक गोल्‍डन नेल आर्ट डिजाइन ले कर अपने हाथ की रिंग फिंगर के नाखून में बड़ी ही सफाई से चिपका दें. लीजिये अब आपके नाखूनों पर नेल आर्ट बन गई.

आप इस तरह से कई अलग अलग कलर के नेल पौलिश का इस्तेमाल कर सकती हैं. आप काले रंग के नेल पौलिश को अपने नाखून पर लगाकर उसके ऊपर सिल्वर कलर की नेलपौलिश का एक कोट लगा सकती हैं. आप चाहें तो उसके ऊपर बाजार में मिलने वाले रेडीमेड डिजाइन भी चिपकाकर अपने नाखून को सुन्दर बना सकती हैं.

इसके अलावा अपने रिंग फिंगर में एक छोटा सा छेद करके आप घूंघरू पहन सकती हैं. आप अपने नाखून पर बाजार में मिलने वाले स्टीकर चिपकाकर भी अपने नाखून को सुन्दर बना सकती हैं.

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आप किसी भी दो कलर के नेल पौलिश को नाखून के आधे आधे हिस्से पर लगाकर सजा सकती हैं. आप चाहें तो उससे फूल पत्ती आदि डिजाइन बनाकर भी अपने नाखून को सजा सकती हैं और खूबसूरत बना सकती हैं.

बच्चा चोरी की अफवाह

लेखक: मदन कोथुनियां

बेगुनाहों पर भीड़ का वहशीपन

बच्चा चोरी के मामले में भीड़ और उस के हमलों का पैटर्न देखें तो पता चलता है कि यह भीड़, दरअसल, उसी भीड़ की एक छिटकी हुई परत है जो कुछ वर्षों पहले गौरक्षा और लवजिहाद के नाम पर अल्पसंख्यकों व दलितों पर टूटी थी.

एक देश के रूप में यह पहली बार नहीं है कि भारत का सिर शर्म से झुक रहा है लेकिन एक भीषण डर और हैरानी जरूर पहली बार है. और इस की वजह है भीड़तंत्र का उभार, पीटपीट कर मार डालने वाली नफरत और बातबेबात भड़क उठती हिंसा.

जनवरी 2019 से ले कर जुलाई 2019 तक बच्चा चोरी की अफवाह के बाद भीड़ की हिंसा के 69 मामले सामने आए हैं. जिन में 33 लोगों को भीड़ ने मार डाला और करीब 100 को घायल किया. हालात की भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि महज 2 माह (जुलाईअगस्त) में 16 लोग मारे गए.

जुलाई में पहले 6 दिनों में भीड़ की हिंसा के 9 मामले हुए और 11 लोग मारे गए. इस तरह सिर्फ अफवाहों से बेगुनाहों की जानें जा रही हैं. मार्च 2014 से मार्च 2019 तक सरकार के मुताबिक देश के 9 राज्यों में विभिन्न वजहों से हुई मौब लिंचिग के 140 मामलों में 68 लोग मारे गए और 200 से ज्यादा लोग गिरफ्तार किए गए. लेकिन गैरआधिकारिक आंकड़े इस से कहीं ज्यादा संख्या बता रहे हैं.

सरकार के आंकडे़ बताते हैं कि बच्चा चोरी की वारदातों का अफवाहों से कोई संबंध नहीं है. जिस राज्य में बच्चा चोरी की वास्तविक वारदातें ज्यादा हुई हैं वहां अफवाहों से पैदा हिंसा या मरने वालों की संख्या अपेक्षाकृत उतनी नहीं है, जितनी कि उन इलाकों में जहां सिर्फ अफवाहों ने भीड़ को उकसाया.

मिसाल के लिए कर्नाटक के जिस इलाके में पिछले दिनों जिस युवा इंजीनियर को जान गंवानी पड़ी, वहां तो ऐसी कोई वारदात हुई ही नहीं थी, फिर भी वहां पर भीड़ जमा हो गई.

इन अफवाहों के पीछे सिर्फ भय या आशंका का हाथ नहीं है, ये एक अधिक खूंखार और घिनौनी साजिश का हिस्सा जान पड़ती है. इन में स्वार्थ, लालच, प्रतिहिंसा और किन्हीं आगे के खतरनाक मंसूबों की पूर्ति की बू आती है.

लोकतंत्र को कुचलने पर आमादा यह भीड़तंत्र अदृश्य रूप से फैल रहा है. बच्चा हो या बीफ शक में या अफवाह में या किसी भी तरह की अन्य संदिग्ध स्थिति बना कर भीड़ किसी को भी घेर सकती है और जान से मार सकती है.

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चरम पर बच्चा चोरी की अफवाह

देश के कई राज्यों से बच्चा चोरी की खबरें या अफवाहें जोर पकड़ रही हैं. राजस्थान, मध्य प्रदेश से ले कर छत्तीसगढ़, बिहार व उत्तर प्रदेश के कई शहरों में लोग कानून अपने हाथ में ले रहे हैं. वे बच्चा चोरी की अफवाहों या खबरों के बाद महिलाओं व युवकों को बच्चा चोर होने के शक में पीट रहे हैं.

हालांकि विभिन्न प्रदेशों की पुलिस ने बाकायदा इस बात का ऐलान किया हुआ है कि कुछ लोग बच्चा चोरी की अफवाह फैला रहे हैं. यह सब गलत है, ऐसा कुछ नहीं हो रहा है. किसी भी अफवाह पर कानून अपने हाथ में न लें. यदि संशय होता है तो थानाचौकी पुलिस को सूचित करें. लेकिन इस अपील का असर होता दिख नहीं रहा और बच्चा चोरों के शक में लोगों की पिटाई का सिलसिला जारी है.

दरअसल, पुलिस और प्रशासन के सामने आए जब तक के ज्यादातर मामलों में भीड़ के हाथ कोई भी ऐसा शख्स नहीं लगा है जो वाकई बच्चा चोर हो. यह सिर्फ सोशल मीडिया और एकदूसरे के मुंह से सुनासुनाई बात के आधार पर फैली अफवाह है जिस के आधार पर लोगों को सतर्क जरूर हो जाना चाहिए.

राजस्थान, बेगुनाह हुए शिकार

राजस्थान में इन दिनों भीड़ कानून अपने हाथ मे ले रही है. अफवाहों की वजह से लोग उग्र हो जाते हैं और दहशत में लोगों को अगर अपराधी की थोड़ी भी आशंका लगती है तो भीड़ उस पर टूट पड़ती है और बिना कोई कारण जाने कानून हाथ में ले कर फैसला कर देती है.

इन मामलों में बच्चा चोरी की घटना की अफवाह सब से अधिक फैलती है. हालांकि, अन्य मामलों में भी भीड़ काफी दहशत फैला रही है.

हाल के दिनों में बांसवाड़ा, डूंगरपुर, सवाईमाधोपुर, भरतपुर, अलवर के बानसूर और उदयपुर में भी ऐसे मामले सामने आए हैं. बांसवाड़ा में तो स्वांग बना कर अपना पेट पालने वाले बहुरुपियों को बच्चा चोर समझ कर लोगों ने पीट तक दिया. वहीं, डूंगरपुर के बिछीवाड़ा में फेरी लगाने वाली महिला को बच्चा चोर समझ कर लोगों ने मारा.

सोशल मीडिया पर भी इस तरह की खबरें तेजी से फैल रही हैं. सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल करते हुए बच्चा चोर बता कर अलर्ट रहने की अपील की जा रही है. इन अफवाहों के चलते कई बेगुनाह भीड़ का शिकार बन रहे हैं.

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पिछले एकदो महीने के दौरान प्रदेश के कई जिलों से ऐसी दर्जनों घटनाओं की खबरें आई हैं जिन में भीड़ ने बच्चा चोरी का आरोप लगाते हुए अनजान लोगों को पीटना शुरू कर दिया. ऐसी पिटाई में कई लोगों की जानें जा चुकी हैं. ऐसी अफवाहों के संबंध में अब तक करीब सौ मामले दर्ज किए जा चुके हैं और दर्जनों लोगों को गिरफ्तार भी किया जा चुका है.

जयपुर जिले की बस्सी तहसील के एक गांव में एक जने की इसी संदेह में पिटाई के दौरान मौत हो गई. बच्चा चोरी के शक में भीड़ ने एक मंदबुद्धि व्यक्ति को पीटपीट कर मार डाला. अपने घर के बाहर सो रही महिला ने इस व्यक्ति पर अपने 4 साला बच्चे को छीन कर भागने का आरोप लगाया. शोर सुन कर भीड़ इकट्ठा हुई. 30 वर्षीय उस मंदबुद्धि व्यक्ति की पीटने के दौरान मौत हो गई.

उस के अगले ही दिन जयपुर जिले के ही आमेर इलाके में भी इसी संदेह के चलते एक व्यक्ति को पकड़ कर लोगों ने पीटना शुरू किया और फिर बाद में उस की भी मौत हो गई.

जयपुर के सब से निकट के गंवई इलाकों में एक हफ्ते के भीतर बच्चा चोरी के शक में 3 लोगों की पीटपीट कर हत्या की जा चुकी है, जबकि बच्चा चोरी के आरोप में लोगों को पकड़ने, पीटने और फिर पुलिस के हवाले करने की करीब डेढ़ दर्जन घटनाएं हो चुकी हैं.

राजस्थान के अलवर जिले में तो बच्चा चोरी करने वाले गिरोह की आशंका में ग्रामीणों ने स्वास्थ्य विभाग की टीम को ही बंधक बना लिया. यही नहीं, भीड़ ने पुलिस को भी दौड़ाते हुए पथराव कर दिया, जिस में दारोगा, सिपाही समेत 3 लोग घायल हो गए. बाद में पहुंची टीम ने सभी स्वास्थ्यकर्मियों को ग्रामीणों के बंधन से मुक्त कराया.

अलवर जिले के बानसूर थाना इलाके के गांव बुटेरी में टोल नाका पर एक संदिग्ध युवक को ग्रामीणों ने पकड़ लिया. बच्चा चोर की अफवाहों के साथ ही उस पर लोग टूट पड़े और लाठीडंडों से पिटाई कर दी.

दरअसल, एक शख्स साबी नदी की पुलिया के नीचे छिपा था, जिसे लोगों ने बच्चा चोर समझा. जब लोगों ने उसे देखा तो वह भागने लगा. नदी में से उसे पकड़ कर टोल नाका के कमरे में बंद कर दिया गया. साथ ही उस की पिटाई की.

जब लोगों ने उसे पुलिस के हवाले किया तो पूछताछ में पता चला कि वह शख्स बिहार का रहने वाला है जो ढाबे पर काम करता है. जिस के बाद पुलिस ने ऐसी अफवाहों से सतर्क रहने की अपील की.

वहीं उदयपुर के गोगुंदा थाना क्षेत्र में एक युवक को बच्चा चोर समझा गया और गांव वालों ने उस की पिटाई कर दी. हालांकि, बाद में पता चला कि वह एक फाइनैंस कंपनी का कर्मचारी है. वइ फाइनैंस कंपनी का पैसा वसूलने के लिए गांव आया था. लेकिन किसी ने उस के खिलाफ बच्चा चोरी की अफवाह फैला दी. जिस के बाद ग्रामीणों ने उसे पकड़ लिया.

ग्रामीणों ने उस की खूब पिटाई की. इतने में ही उस ने कर्मचारी होने का सुबूत देने की गुजारिश की और अपने मैनेजर से बात करवाई. तब लोगों ने उसे छोड़ा. पीडि़त ने गोगुंदा थाने में अज्ञात युवकों पर मामला दर्ज करवाया है.

वहीं, जोधपुर के प्रताप नगर इलाके में पानी की टंकी के पास एक व्यक्ति को बस्ती के लोगों ने बच्चा चोरी करने के संदेह में पकड़ लिया और उस की पिटाई कर दी. बताया जाता है कि एकलव्य भील बस्ती में तैयब खान के घर में खेल रही बच्ची के अपहरण का प्रयास किया गया, लेकिन उसे रंगेहाथों पकड़ लिया गया और उस की धुनाई कर दी. बाद में उसे पुलिस को सौंपा गया. अब पुलिस मामले की जांच कर रही है.

जोधपुर के भीतरी इलाके बकरा मंडी में 2 युवकों को बच्चा चोर समझ कर क्षेत्रवासियों ने मारमार कर अधमरा कर दिया. इस के बाद दोनों संदिग्धों को पुलिस थाने लाया गया, जहां पर पुलिस ने पूछताछ की तो पता चला कि दोनों ही भिखारी हैं, जो भीख मांग कर अपना पेट भरते हैं.

इन दोनों की शक्लसूरत से क्षेत्रवासियों को लगा कि ये बच्चा चोर गैंग के सदस्य हैं और इलाके से बच्चा चोरी कर ले जाएंगे. पीडि़तों ने बताया कि उन से कुछ लोगों ने पूछताछ की और इस बीच कुछ लोगों ने मारपीट करनी शुरू कर दी.

दिल्ली में भी पिटे बेगुनाह

देशभर में बच्चा चोरी की अफवाहें इस कदर फैल गई हैं कि पुलिस के लिए इन से निबटना चुनौती बन गई है. बात चाहे राजस्थान की हो, उत्तर प्रदेश या फिर हरियाणा की, बच्चा चोरी की अफवाहें सभी जगह लगातार फैल रही हैं.

अखबारों के बीच बच्चा चोरी की यह अफवाह अब देश की राजधानी दिल्ली तक भी पहुंच चुकी है.

दिल्ली एनसीआर में ताजा मामला सामने आया है. ग्रेटर नोएडा के कुलेसरा गांव में अपने बच्चों को साथ ले जा रहे पिता को ही भीड़ ने बच्चा चोर की अफवाह फैला कर पीट डाला. मामला 31 अगस्त का है. कुलेसरा गांव में अपने और साले के 4 बच्चों को कार में बैठा कर ले जा रहे व्यक्ति को लोगों ने बच्चा चोर समझ कर बुरी तरह पीट दिया. घायल को बाद में एक अस्पताल में भरती कराया गया. सूचना पर जब तक पुलिस पहुंची, तब तक आरोपी फरार हो चुके थे. हालांकि पूछताछ के बाद पुलिस ने 3 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है.

दरअसल, जेवर गांव निवासी किशन राजमिस्त्री का काम करता है. किशन अपने 2 बच्चों और साले के 2 बच्चों को कार में बैठा कर कुलेसरा गांव में अपने रिश्तेदार से मिलने गया था. बच्चों ने सड़क पर दुकान देख कर समोसा खाने की जिद की. किशन बच्चों को कार में छोड़ कर दुकान पर समोसा लेने चला गया. वह सड़क पर खड़ा हो कर अपने बच्चों को कार में समोसा पकड़ा ही रहा था कि कुछ लोगों ने उसे बच्चा चोर समझ कर जम कर पिटाई कर दी.

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अफवाह की ही वजह से पिछले दिनों दिल्ली के हर्ष विहार इलाके में भी एक गर्भवती महिला को बेरहमी से पीटा गया. जिस महिला को लोग बच्चा चोर समझ कर पीट रहे थे. वह बोल तक नहीं  सकती थी.

भीड़ का वहशीपन इस बात से समझा जा सकता है कि जब महिला ने इशारे से पानी मांगा तो पानी देने के बजाय कुछ लोग उसे मारने के लिए लाठी ले आए. पीडि़त महिला अपनी ससुराल से कुछ दिनों से लापता थी. महिला के साथ मारपीट का वीडिया जब उस के परिवार वालों ने देखा तो उन के होश उड़ गए.

वीडियो सामने आने के बाद महिला के घर वालों ने पुलिस में मामला दर्ज कराया, जिस के 4 दिनों बाद पीडि़त महिला दिल्ली के हर्ष विहार थाने में मिली.

अफवाहें साजिश का हिस्सा

अफवाहों का फैलना और फिर उन की वजह से हिंसा होना कोई नई बात नहीं है. इस से पहले भी विभिन्न तरीकों की अफवाहें उड़ती रही हैं और उन से शांति व्यवस्था भंग होती रही है. मुंहनोचवा, चोटीकटवा जैसी अफवाहें फैल चुकी हैं और देखते ही देखते इन्होंने देशभर को अपने गिरफ्त में ले लिया था.

कुछ समाजशास्त्री ऐसी अफवाहों के पीछे सोशल मीडिया को भी जिम्मेदार मानते हैं, लेकिन यह भी सही है कि जब सोशल मीडिया नहीं था, ऐसी अफवाहें तब भी तेजी से फैलती थीं. करीब एक दशक पहले पूर्वी उत्तर प्रदेश के तमाम इलाकों में ‘मुंहनोचवा’ जैसी अफवाह लोग अभी भी नहीं भूले हैं.

राजस्थान विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र पढ़ाने वाले राजकुमार करनाणी कहते हैं, ‘‘सवाल यह है कि यदि ऐसी अफवाहें किसी षड़यंत्र का हिस्सा हैं तो आखिर उस से फायदा किसे है? दरअसल, ऐसा कुछ माहौल कहीं न कहीं से बनाया जाता है और फिर उस से जुड़ी बातों को लोग ऐसी अफवाहों से जोड़ने लगते हैं.

‘‘बच्चा चोरी में भी ऐसा ही देखने को मिल रहा है. महल्ले में या गांव में किसी अनजान व्यक्ति या महिला के पास बच्चा दिखा तो लोग उसे चोर ही समझने लग रहे हैं. पहले ऐसा नहीं था. लेकिन जब से अफवाह उड़ रही है, लोग आशंकित होने लगे हैं.’’

बहरहाल, पुलिस इन अफवाहों और इन की वजह से होने वाली घटनाओं को रोकने के लिए कड़ी मशक्कत कर रही है. लेकिन यह भी सही है कि इसे रोकना सिर्फ पुलिस के हाथ में नहीं है. सोशल मीडिया के दौर में जब तक अफवाहों से लोग खुद दूर नहीं रहेंगे, तब तक इसे रोक पाना मुमकिन नहीं है.

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पुलिस की चेतावनी

अफवाहों की वजह से भीड़ की हिंसा इस कदर भयावह होती जा रही है कि राजस्थान के डीजीपी को अपील जारी करनी पड़ी. पुलिस महानिदेशक ने कहा,‘‘लोग ऐसी अफवाहों पर ध्यान न दें और किसी आशंका की स्थिति में सीधे पुलिस को सूचना दें. अफवाह फैलाने वालों पर कड़ी कार्यवाही होगी और उन के खिलाफ रासुका भी लगाया जा सकता है.’’

वहीं, जिलों की पुलिस इन अफवाहों को रोकने और भीड़ हिंसा से आम और अनजान लोेगों को बचाने में कड़ी मशक्कत कर रही है. कहीं लाउडस्पीकर से लोगों को सावधान करने की अपील जारी की जा रही है तो कहीं पुलिस वाले खुद यह जिम्मा संभाले हुए हैं. मंदिरमसजिदों से भी ऐलान कराया जा रहा है कि बच्चा चोरी की घटनाएं सिर्फ अफवाह हैं, जिन पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है.

राज्य के डीजीपी के मुताबिक, अब तक की जांच में किसी भी घटना में बच्चा चोरी की पुष्टि नहीं हुई है. उन्होंने बताया कि अब तक ऐसी अफवाहों में शामिल 82 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है और कई लोगों से पूछताछ की जा रही है.

इस मामले में एडीजे, क्राइम, बी एल सोनी ने बताया कि इस मामले में पुलिस अधीक्षकों को कार्यवाही करने के निर्देश देने के साथ ही लोगों में जागरूकता लाने के प्रयास किए जा रहे हैं. ऐसे गिरोह के लोगों की कोई जानकारी मिलती है तो व्यक्ति को उसे पुलिस के साथ शेयर करना चाहिए. ऐसे मामलों में सत्यता होने पर पुलिस कार्यवाही करेगी.

सांसों में घुलता जहर

यह माना जाता था कि वायु प्रदूषण के कारण सिर्फ सांस के रोग ही होते हैं, मगर नई रिसर्च कहती है कि वायु प्रदूषण हमारे शरीर के सभी महत्वपूर्ण अंगों को नुकसान पहुंचाता है. यह कैंसर, मस्तिष्क सम्बन्धी रोग, त्वचा सम्बन्धी रोग, फेफड़े और किडनी से जुड़े रोगों के लिए उत्तरदायी है. जिस तेजी से भारत में प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है, आने वाले वक्त में यह सरकार के सामने बड़ी चुनौती बन कर खड़ा होगा. भारत दुनिया के उन देशों में से एक है जहां वायु प्रदूषण उच्चतम स्तर पर है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार दुनिया के 20 प्रदूषित शहरों में 13 भारत में हैं. भारत में हर साल करीब 11 लाख लोगों की मौत होती है और उसका कारण चौंकाने वाला है. इनमें से ज्यादातर मौतें सांस लेने से हो रही हैं. यूएस की दो संस्थानों ने मिलकर दुनिया भर में प्रदूषण से मरने वालों पर स्टडी की है. इस अध्ययन में पाया गया है कि वायुप्रदूषण से सबसे ज्यादा लोग भारत और चीन में मरते हैं. भारत की हालत चीन से भी गम्भीर है. स्टडी के मुताबिक चीन में प्रदूषण से मरने वालों की संख्या 2005 के बाद नहीं बढ़ी है, लेकिन भारत में यह आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है. वायु प्रदूषण मृत्युदर को बढ़ाने वाली विभिन्न घातक बीमारियों जैसे कि फेफड़े के विभिन्न विकारों और फेफड़े के कैंसर के प्रसार में योगदान दे रहा है. हमारी सांस के साथ हवा में व्याप्त जहरीले सूक्ष्म कण शरीर में घुस कर कैंसर, पर्किन्सन, दिल का दौरा, सांस की तकलीफ, खांसी, आंखों की जलन, एजर्ली, दमा जैसे रोग पैदा कर रहे हैं. प्रदूषित वायु सांस के माध्यम से शरीर में घुसकर दिल, फेफड़े और मस्तिष्क की कोशिकाओं में पहुंच कर उन्हें क्षति पहुंचाती है.

फेफड़ों के रोग

वायु प्रदूषण से अस्थमा और क्रोनिक औब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज बढ़ती है, जिनमें क्रोनिक ब्रौन्काइटिस और एम्परसेमा जैसे रोग शामिल हैं. हवा में मौजूद एलर्जी और रासायनिक तत्व अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, त्वचा रोग, सीओपीडी, आंखों में जलन उत्पन्न करते हैं. बच्चों में फेफड़ों के रोगों का प्रमुख कारण वायु प्रदूषण ही है. इसके अलावा कई प्रकार की एलर्जी से भी लोग परेशान हो रहे हैं.

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कैंसर

वायु प्रदूषण से फेफड़ों के कैंसर का खतरा बहुत ज्यादा बढ़ गया है. प्रदूषित हवा से अस्थमा जैसे फेफड़ों के रोग बूढ़े और जवान सभी में देखे जा रहे हैं. तेजी से बढ़ता प्रदूषण फेफड़ों में कैंसर के फैलने का मुख्य कारक है. अध्ययनों से यह पता चला है कि वायु प्रदूषण, फेफड़ों के कैंसर और विभिन्न हृदय रोगों के बीच एक गहरा सम्बन्ध है. यद्यपि धूम्रपान फेफड़ों के कैंसर के सबसे बड़े कारणों में से एक माना जाता है, लेकिन बहुत से लोग अपने आसपास के वातावरण में मौजूद प्रदूषण के कारण कैंसर का शिकार हो गये हैं. प्रदूषित हवा के कारण सांस लेने में दिक्कत होती है. हमारे देश मे फेफड़े के कैंसर, ट्यूमर और तपेदिक के प्रकोप में तेजी से वृद्धि के प्रमुख कारणों में धूम्रपान और वायु प्रदूषण शामिल है. फ्रिज से निकलने वाली  क्लोरोफ्लोराकार्बन गैस पर्यावरण में ओजोन की सतह को नुकसान पहुंचा रही है, जिससे त्वचा कैंसर – मेलेबोमा का खतरा काफी बढ़ गया है.

हृदय रोग

लम्बे समय तक कार्बन मोनोऑक्साइड, नाट्रोजन डाइऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड के सम्पर्क में रहने से दिल का दौरा पड़ने का खतरा बढ़ जाता है. यह खतरा जनसंख्या के 0.6 से 4.5 प्रतिशत तक को प्रभावित कर सकता है. छाती में दर्द, कफ, सांस लेने में दिक्कत, सांस लेते वक्त आवाज निकलना और गले का दर्द भी दूषित हवा में सांस लेने का लक्षण हो सकता है. वायु प्रदूषण का सम्बन्ध कोरोनरी स्ट्रोक में वृद्धि की घटनाओं के साथ भी जुड़ा हुआ है.

मस्तिष्क विकार

वायु प्रदूषण मस्तिष्क के कामकाज को प्रभावित करता है. इससे पहले वायु प्रदूषण को दिल और सांस के रोगों के लिए जिम्मेदार माना जाता था, लेकिन नये शोध में दस लाख मस्तिष्क टिश्यू में लाखों चुम्बकीय पल्प कण पाये गये हैं, जो मस्तिष्क को दीर्घकालिक नुकसान पहुंचा सकते हैं. जब अल्जाइमर रोग से पीड़ित रोगियों के मस्तिष्क की जांच की गयी तो डॉक्टरों ने पाया कि वायु प्रदूषण से घिरे रोगियों के दिमाग में मैग्नेटाइट के मौजूद होने की मात्रा ज्यादा है. यह वायु प्रदूषण के कारण है.

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गर्भवती महिलाओं को खतरा

स्त्रीरोग विशेषज्ञ के अनुसार यदि गर्भवती महिलाएं प्रदूषित हवा में अपना जीवन बिताती हैं तो उनमें मस्तिष्क की विकृति, अस्थमा, टीबी जैसे रोग तो पनपते ही हैं, उनके होने वाले बच्चे में मस्तिष्क का विकास भी ठीक से नहीं होता. लगातार प्रदूषित हवा में सांस लेने वाली गर्भवती का बच्चा पेट में ही मर सकता है. डौक्टरों के मुताबिक ऐसी महिलाओं के बच्चों में निमोनिया आम है और उनमें बीमारियों से लड़ने की शक्ति भी बहुत कम हो जाती है.

मेथी की खेती और बोआई यंत्र

भारत में राजस्थान और गुजरात मेथी पैदा करने वाले खास राज्य हैं. 80 फीसदी से ज्यादा मेथी का उत्पादन राजस्थान में होता है. मेथी की फसल मुख्यतया रबी मौसम में की जाती है, लेकिन दक्षिण भारत में इस की खेती बारिश के मौसम में की जाती है. मेथी का उपयोग हरी सब्जी, भोजन, दवा, सौंदर्य प्रसाधन वगैरह में किया जाता है.

मेथी के बीज खासतौर पर सब्जी व अचार में मसाले के रूप में इस्तेमाल किए जाते हैं. तमाम बीमारियों के इलाज में भी मेथी का देशी दवाओं में इस्तेमाल किया जाता है. यदि किसान मेथी की खेती वैज्ञानिक तकनीक से करें, तो इस की फसल से अच्छी उपज हासिल की जा सकती है.

मेथी की अच्छी बढ़वार और उपज के लिए ठंडी जलवायु की जरूरत होती?है. इस फसल में कुछ हद तक पाला सहन करने की कूवत होती है. वातावरण में ज्यादा नमी होने या बादलों के घिरे रहने से सफेद चूर्णी, चैंपा जैसे रोगों का खतरा रहता है.

जमीन का चयन : वैसे तो अच्छे जल निकास वाली और अच्छी पैदावार के लिए सभी तरह की मिट्टी में मेथी की फसल को उगाया जा सकता है, लेकिन दोमट व बलुई दोमट मिट्टी में मेथी की पैदावार अच्छी मिलती है.

खेत की तैयारी : मेथी की फसल के लिए खेत को अच्छी तरह तैयार करने के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें और बाद में 2-3 जुताइयां देशी हल या हैरो से करनी चाहिए. इस के बाद पाटा लगाने से मिट्टी को बारीक व एकसार करना चाहिए.

बोआई के समय खेत में नमी रहनी चाहिए, ताकि सही अंकुरण हो सके. अगर खेत में दीमक की समस्या हो तो पाटा लगाने से पहले खेत में क्विनालफास (1.5 फीसदी) या मिथाइल पैराथियान (2 फीसदी चूर्ण) 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिला देना चाहिए.

उन्नत किस्में : मेथी की फसल से अच्छी पैदावार हासिल करने के लिए उन्नत किस्मों को बोना चाहिए. अच्छी उपज देने वाली कुछ खास किस्में जैसे हिसार सोनाली, हिसार सुवर्णा, हिसार मुक्ता, एएफजी 1, 2 व 3, आरएमटी 1 व 143, राजेंद्र क्रांति, को 1 और पूसा कसूरी, पूसा अर्ली बंचिंग वगैरह खास हैं.

बोआई का उचित समय : आमतौर पर उत्तरी मैदानों में इसे अक्तूबर से नवंबर माह में बोया जाता है. देरी से बोआई करने पर कीट व रोगों का खतरा बढ़ जाता है व पैदावार भी कम मिलती है, जबकि पहाड़ी इलाकों में इस की खेती मार्च से मई माह में की जाती है. दक्षिण भारत, विशेषकर कर्नाटक, आंध्र प्रदेश व तमिलनाडु में यह फसल रबी व खरीफ दोनों मौसमों में उगाई जाती है.

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बीज दर : सामान्य मेथी की खेती के लिए बीज दर 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखनी चाहिए. बोआई करने से पहले खराब बीजों को?छांट कर अलग निकाल देना चाहिए.

बीजोपचार : बीज को थाइरम या बाविस्टिन 2.0 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर के बोने से बीजजनित रोगों से बचा जा सकता है.

मेथी की बोआई से पहले बीजों को सही उपचार देने के बाद राइजोबियम कल्चर द्वारा उपचारित करना फायदेमंद रहता है.

बोआई की विधि : मेथी की बोआई छिटकवां विधि या लाइनों में की जाती है. छिटकवां विधि से बीज को समतल क्यारियों में समान रूप से बिखेर कर उन को हाथ या रेक द्वारा मिट्टी में मिला दिया जाता है.

छिटकवां विधि किसानों द्वारा अपनाई जा रही पुरानी विधि है. इस तरीके से बोआई करने में बीज ज्यादा लगता है और फसल के बीच की जाने वाली निराईगुड़ाई में भी परेशानी होती?है.

वहीं, इस के उलट लाइनों में बोआई करना सुविधाजनक रहता है. इस विधि में निराईगुड़ाई और कटाई करने में आसानी रहती है. बोआई 20 से 25 सैंटीमीटर की दूरी पर कतारों में करनी चाहिए. इस में पौधे से पौधे की दूरी 4-5 सैंटीमीटर रखनी चाहिए.

खाद और उर्वरक : खेत में मिट्टी जांच के नतीजों के आधार पर खाद और उर्वरक की मात्रा को तय करना चाहिए. आमतौर पर मेथी की अच्छी पैदावार के लिए बोआई के तकरीबन 3 हफ्ते पहले एक हेक्टेयर खेत में औसतन 10 से 15 टन सड़ी गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद डाल देनी चाहिए, वहीं सामान्य उर्वरता वाली जमीन के लिए प्रति हेक्टेयर 25 से 35 किलोग्राम नाइट्रोजन, 20 से 25 किलोग्राम फास्फोरस और 20 किलोग्राम पोटाश की पूरी मात्रा खेत में बोआई से पहले डाल देनी चाहिए.

सिंचाई प्रबंधन : यदि बोआई की शुरुआती अवस्था में नमी की कमी महसूस हो तो बोआई के तुरंत बाद एक हलकी सिंचाई की जा सकती है वरना पहली सिंचाई 4-6 पत्तियां आने पर ही करें. सर्दी के दिनों में 2 सिंचाइयों का अंतर 15 से 25 दिन (मौसम व मिट्टी के मुताबिक) और गरमी के दिनों में 10 से 15 दिन का अंतर रखना चाहिए.

खरपतवार नियंत्रण : खेत को खरपतार से मुक्त रख कर मेथी की अच्छी फसल लेने के लिए कम से कम 2 निराईगुड़ाई, पहली बोआई के 30 से 35 दिन बाद और दूसरी 60 से 65 दिन बाद जरूर करनी चाहिए, जिस से मिट्टी खुली बनी रहे और उस में हवा अच्छी तरह आजा सके.

खरपतवार की रोकथाम के लिए कैमिकल दवा का छिड़काव बहुत सोचसमझ कर करना चाहिए. अगर जरूरी हो तो किसी कृषि माहिर से सलाह ले कर ही खरपतवारनाशक का इस्तेमाल करें.

रोग व उस की रोकथाम : छाछया रोग मेथी में शुरुआती अवस्था में पत्तियों पर सफेद चूर्णिल पुंज दिखाई पड़ सकते हैं, जो रोग के बढ़ने पर पूरे पौधे को सफेद चूर्ण के आवरण से ढक देते हैं. बीज की उपज और आकार पर इस का बुरा असर पड़ता है.

रोकथाम के लिए बोआई के 60 या 75 दिन बाद नीम आधारित घोल (अजादिरैक्टिन की मात्रा 2 मिलीलिटर प्रति लिटर) पानी के साथ मिला कर छिड़काव करें. जरूरत होने पर 15 दिन बाद दोबारा छिड़काव किया जा सकता है. चूर्णी फफूंद से संरक्षण के लिए नीम का तेल 10 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी के घोल से छिड़काव (पहले कीट प्रकोप दिखने पर और दूसरा 15 दिन के बाद) करें.

मृदुरोमिल फफूंद : मेथी में इस रोग के बढ़ने पर पत्तियां पीली पड़ कर गिरने लगती?हैं और पौधे की बढ़वार रुक जाती है. इस रोग में पौधा मर भी सकता है.

इस रोग पर नियंत्रण के लिए किसी भी फफूंदनाशी जैसे फाइटोलान, नीली कौपर या डाईफोलटान के 0.2 फीसदी सांद्रता वाले 400 से 500 लिटर घोल का प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए. जरूरत पड़ने पर 10 से 15 दिन बाद यही छिड़काव दोहराया जा सकता है.

जड़ गलन : यह मेथी का मृदाजनित रोग है. इस रोग में पत्तियां पीली पड़ कर सूखना शुरू होती हैं और आखिर में पूरा पौधा सूख जाता है. फलियां बनने के बाद इन के लक्षण देर से नजर आते हैं. इस से बचाव के लिए बीज को किसी फफूंदनाशी जैसे थाइरम या कैप्टान द्वारा उपचारित कर के बोआई करनी चाहिए. सही फसल चक्र अपनाना, गरमी में जुताई करना वगैरह ऐसे रोग को कम करने में सहायक होते हैं.

फसल कटाई : अक्तूबर माह में बोई गई फसल की 5 बार व नवंबर माह में बोई गई फसल की 4 बार कटाई करें. उस के बाद फसल को बीज के लिए छोड़ देना चाहिए वरना बीज नहीं बनेगा.

मेथी की पहली कटाई बोआई के 30 दिन बाद करें, फिर 15 दिन के अंतराल पर कटाई करते रहें. दाने के लिए उगाई गई मेथी की फसल के पौधों के?ऊपर की पत्तियां पीली होने पर बीज के लिए कटाई करें. फल पूरी तरह सूखने पर बीज निकाल कर और सुखा कर साफ कर लें और भंडारण कर लें.

 पूसा शक्त्तिचालित बीज बोने का यंत्र

बीज बोने का यह यंत्र छोटे और सीमांत किसानों के लिए अच्छा है. इस यंत्र को पहाड़ी इलाकों में बीज बोने के लिए काफी इस्तेमाल किया जा सकता है. इस यंत्र में 3 हौर्सपावर का इंजन लगा?है. इसे स्टार्ट करने के लिए पैट्रोल का इस्तेमाल किया जाता है. स्टार्ट होने के बाद उसे आप मिट्टी के तेल या डीजल से भी चला सकते हैं. इस के काम करने की कूवत 0.15 हेक्टेयर प्रति घंटा है.

इस यंत्र का कुल वजन तकरीबन 98 किलोग्राम है. इस यंत्र से बीज भी कम लगता है और समय की भी बचत होती है जिस से अच्छी पैदावार मिलती है.

चूंकि लाइन में बोआई की जाती है इसलिए फसल में पनपने वाले खरपतवारों को भी बहुत ही आसानी से निकाला जा सकता है. निराईगुड़ाई करने में आसानी रहती?है. इस यंत्र में बीज बोने के लिए कूंड़ की गहराई कम या ज्यादा भी की जा सकती है.

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खुशबूदार फसल कसूरी मेथी

कसूरी सुगंधित मेथी है. इस के पौधों की ऊंचाई तकरीबन 46 से 56 सैंटीमीटर तक होती?है. इस की बढ़वार धीमी और पत्तियां छोटे आकार की गुच्छे में होती हैं. पत्तियों का रंग हलका हरा होता है. फूल चमकदार नारंगी पीले रंग के आते हैं. फली का आकार 2-3 सैंटीमीटर और आकृति हंसिए जैसी होती है. बीज अपेक्षाकृत छोटे होते हैं.

भारत में कसूरी मेथी की खेती कुमारगंज, फैजाबाद (उत्तर प्रदेश) और नागौर (राजस्थान) में अधिक क्षेत्र में की जाती है. आज नागौर दुनियाभर में सब से अधिक कसूरी मेथी उगाने वाला जिला बन गया है. अच्छी सुगंधित मेथी नागौर जिले से ही आती है और यहीं पर यह कारोबारी रूप में पैदा की जाती है और इसी वजह से यह मारवाड़ी मेथी के नाम से भी जानी जाती है.

कसूरी मेथी की अच्छी उपज के लिए हलकी मिट्टी में कम व भारी मिट्टी में अधिक जुताई कर के खेत को तैयार करना चाहिए.

उन्नत किस्में : कसूरी मेथी की प्रचलित किस्में पूसा कसूरी व नागौरी या मारवाड़ी मेथी हैं.

बोआई का समय : कसूरी मेथी की बोआई के लिए सही समय 15 अक्तूबर से 15 नवंबर माह है. अगर कसूरी मेथी को बीज के लिए उगाना?है तो इसे सितंबर से नवंबर माह तक बोया जा सकता है.

बीज दर : छिटकवां विधि से कसूरी मेथी की बीज दर 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और कतार विधि से 30 से 35 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होती है.

बीजोपचार : कसूरी मेथी की अच्छी उपज लेने के लिए बीजोपचार जरूरी?है. एक दिन पहले पानी में भिगोने पर जमाव में बढ़ोतरी होती है. 50 से 100 पीपीएम साइकोसिल घोल में भिगोने से जमाव में बढ़ोतरी और अच्छी बढ़वार होती है. बोने से पहले राइजोबियम कल्चर से बीज को जरूर शोधित करें.

बोआई का अंतराल व विधि : कसूरी मेथी बोने की 2 विधियां प्रचलित हैं:

छिटकवां विधि : इस में सुविधानुसार क्यारियां बनाई जाती हैं, फिर बीजों को एकसमान रूप से छिटक कर मिट्टी से हलकाहलका ढक देते हैं.

कतार विधि : इस विधि में 20 से 25 सैंटीमीटर की दूरी पर कतारों में बोआई करते हैं. पौधे से पौधे की दूरी 5 से 8 सैंटीमीटर रखी जाती है, जबकि बीज की गहराई 2-3 सैंटीमीटर से ज्यादा नहीं होनी चाहिए.

सिंचाई : कसूरी मेथी की बोआई के तुरंत बाद सिंचाई करनी चाहिए. इस के बाद 10 से 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए. फूल और बीज बनते समय मिट्टी में सही नमी होनी चाहिए.

खरपतवार नियंत्रण : कसूरी मेथी की खेती मुख्यत: पत्तियों की कटाई के लिए की जाती है. बोआई के 15 दिन बाद और पत्तियों की कटाई करने से पहले खरपतवारों को हाथ से निकाल देना चाहिए.

गरबा स्पेशल 2019 : साबूदाना पूरी

आज हम आपके लिए लेकर आए हैं साबूतदाना पूरी रेसिपी.  इसे आप फेस्टिवल के दिनों में बनाकर अपने परिवार और दोस्तों को खिला सकते हैं.

सामग्री

एक कटोरी साबूदाना (भीगा हुआ)

1 कटोरी सिंघाड़े का आटा

दो उबले आलू

दो बारीक कटी हरी मिर्च

थोड़ा-सा हरा धनिया बारीक कटा हुआ

सेंधा नमक

काली मिर्च पावडर

थोड़ा-सा तेल

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बनाने की वि​धि

आलू को मैश कर सिंघाड़े के आटे में मिला लें. बाकी सभी वस्तुएं भी आटे में डालकर अच्छी तरह मिला लें.

थोड़ा पानी डालकर आटे जैसा गूंथ लें. अब हाथ पर पानी लगाकर छोटी-छोटी लोई तोड़कर पूड़ी का आकार दें.

अब तवे को चिकना करें. पूरी को इस पर पराठे जैसा तल लें.

जब पूरी अच्छी तरह सिंक जाए तो इसे दही के साथ पेश करें.

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लिव इन रिलेशनशिप: नफा या नुकसान

भारतीय संस्कृति में विवाह को एक संस्कार यानी जीवन जीने का तरीका माना गया है. लेकिन बदलते समय के साथ जीवन जीने का यह तरीका बदल रहा है और वे लोग जो बिना किसी रिश्ते में बंधे जिंदगी जीने का मजा लेना चाहते हैं वे विवाह का विकल्प लिव इन रिलेशनशिप में तलाश रहे हैं.

लिव इन रिलेशनशिप की वकालत करने वाले कहते है कि इसमें जिम्मेदारियों के अभाव में लाइफ टेंशन फ्री होती है, लिव इन पार्टनर अपना-अपना खर्च खुद उठाते है, कमरे के बेड से लेकर खाने-पीने की चीजों तक में दोनों फिफ्टी-फिफ्टी के भागीदार होते हैं. ज़िन्दगी भर किसी एक के साथ बंधे रहने की मजबूरी नहीं होती.

जब आपको लगे कि आप एक दूसरे के साथ खुश नहीं है आप एक दुसरे को टाटा बाय-बाय कह सकते हैं यानी आप बिना किसी झंझट के पार्टनर बदल सकते हैं. इस रिश्ते में कोई बंदिशें नहीं होती है. आप जब मर्ज़ी घर आइये, जिसके साथ मर्ज़ी घूमिये कोई रोकटोक नहीं, कोई पूछने वाला नहीं.

लिव इन उन लोगों को खासा आकर्षित करता है जो वैवाहिक जीवन तो पसंद करते हैं लेकिन उससे जुड़ी जिम्मेदारियों से मुक्त रहना चाहते हैं. जिम्मेदारियों के बिना ‘शेयरिंग और केयरिंग’ के रिश्ते का यह नया कॉन्सेप्ट युवाओं को बेहद रास आ रहा है. काम या पढ़ाई के लिए घर से दूर रह रहे युवाओं के बीच लिव इन रिलेशन खासा लोकप्रिय हो रहा है क्योंकि घर से दूर अनजाने शहर में यह रिश्ता युवाओं को भावनात्मक सपोर्ट देता है.

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बढ़ती मंहगाई की चलते ऐसे जोड़ों को बड़े शहरों में लिव इन में रहने के कई फायदे होते हैं. खर्चे शेयर होने के साथ एक दुसरे का साथ भी मिल जाता है. अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर अपनी मोहर लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट ने लिव इन रिश्ते को पाप या अपराध मानने की बजाय पुरुषों के साथ रह रही महिलाओं और उनके बच्चों को कानूनी संरक्षण देने का रास्ता निकाले जाने की पहल भी की है.

यह तो हुआ इस रिश्ते का खुशनुमा पहलू लेकिन बिना बंधन के इस रिश्ते का एक दर्दनाक पहलू भी है जिससे अधिकांश युवा अनजान हैं जो पत्रकार पूजा तिवारी और प्रत्यूषा के मौत के मामले में साफतौर पर सामने आया है.

जहाँ प्यार, सेक्स,  शक और धोखे ने किसी को जान देने पर मजबूर कर दिया. माना कि इस रिश्ते में कोई दायित्व नहीं होता. आप बिना किसी बंधन के एक दुसरे के साथ रहते हैं लेकिन जब दो लोग एक दुसरे के साथ रहने लगते है तो वे एक दुसरे के साथ भावनात्मक रूप से भी जुड़ते है और इस जुड़ाव में वे एक दुसरे से अपेक्षाएं भी रखने लगते है लेकिन जब दोनों पार्टनर्स में से कोई भी एक सामने वाली की फीलिंग्स की अनदेखी करता है तो भावनात्मक रूप से कमजोर साथी इसे धोखा समझता है और कुछ न कर पाने की स्थिति में तनाव और डिप्रेशन का शिकार हो जाता है और बिना बंधन का यह रिश्ता  दर्दनाक बन जाता है.

इस रिश्ते का सबसे नकारात्मक पहलू यह होता है कि लिव इन में रहने वाले इन जोड़ों का अपने परिवार या दोस्तों से कोई कनेक्शन नहीं होता जिसके चलते उनके बीच अनबन या लड़ाई होने पर सुलह समझौता कराने वाला कोई अपना नहीं होता.

जैसा कि प्रत्युषा के मामले में भी सामने आया. हाल में ही हुआ पत्रकार पूजा तिवारी आत्महत्या प्रकरण भी इसी बिना बंधन के रिश्ते का एक भयावह परिणाम है. हाल के दिनों में लिव इन के साथ यौन शोषण, धोखाधड़ी और घरेलू हिंसा के मामलों में काफी इजाफा हुआ है ऐसे में आज़ादी की चाह रखने वाले युवाओं को लिव इन रिश्ता थोड़े समय के लिए भले ही मौज मस्ती और खुलेपन का एहसास देता हो लेकिन पूजा हो या प्रत्यूषा,  इनकी डेथ मिस्ट्री से जुड़ा लिव-इन का सच खतरनाक संकेत दे रहा है जिस से युवाओं को सबक लेने की ज़रुरत है.

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