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नए टोटकों से ठगी : मिर्ची यज्ञ और गुप्त नवरात्रि

ग्राहकों को लुभाने के लिए कंपनियां जैसे नएनए प्रोडक्ट लौंच करती हैं वैसे ही धर्म के दुकानदार भी नएनए पाखंड परोसते रहते हैं. लेकिन यह शुद्ध ठगी है, इस से दूर रहने में ही भलाई है.

केवल मध्य प्रदेश ही नहीं, बल्कि पूरे देश की राजनीति में बाबाओं, धर्मगुरुओं, महामंडलेश्वरों, तांत्रिकों और ज्योतिषियों सहित शंकराचार्यों का दखल बहुत बढ़ रहा है. 2019 के लोकसभा चुनाव में धर्म के इन दुकानदारों ने तबीयत से चांदी काटी थी. लेकिन सब से ज्यादा चर्चाओं में मध्य प्रदेश रहा जहां लगातार 15 साल भाजपा का राज रहा था.

एक है स्वामी वैराग्यानंद गिरि जिस के बारे में लोग इतना ही जानते हैं कि वह भी दूसरे बाबाओं की तरह सिद्ध और चमत्कारी है. महामंडलेश्वर कहे जाने वाले इस बाबा के इन दिनों कहीं अतेपते नहीं हैं. भले ही उस की पोल खुल चुकी हो, लेकिन उस की पोल के खुलने से लोगों की आंखें खुल रही हों, ऐसा कतई नहीं लग रहा.

मिर्ची यज्ञ का ढकोसला

मिर्ची बाबा के नाम से मशहूर हो गए वैराग्यानंद को नाम के मुताबिक किसी किस्म का वैराग्य नहीं है बल्कि यह बाबा पूरे ऐशोआराम से भक्तों की दक्षिणा पर भौतिक सुखों का भोग करता है. सही मानो में कहें तो यह भोगानंद मानव जीवन की नश्वरता समझते उसे ऐशोआराम से जीने में यकीन करता है.

दूसरे बाबाओं की तरह यह भी मेहनतमजदूरी कर पेट नहीं भरता, बल्कि इस का पेशा तंत्रमंत्र की आड़ में लोगों को उल्लू बना कर अपना उल्लू सीधा करना है. यह बाबा भोपाल लोकसभा चुनाव के दौरान और उस के बाद तक सुर्खियों में रहा था. इस सीट से कांग्रेसी दिग्गज दिग्विजय सिंह के मुकाबले भाजपा ने साध्वी प्रज्ञा सिंह को मैदान में उतारा था. उस समय सभी की निगाहें इस कड़े और दिलचस्प मुकाबले पर टिक गई थीं.

अपनी जीत के लिए दिग्विजय सिंह ने जिन सैकड़ों बाबाओं का डेरा, डंगर और लंगर भोपाल में डलवा दिया था, मिर्ची बाबा उन में से एक था जिस ने दावा किया था कि वह 5 क्ंिवटल मिर्ची का यज्ञ करेगा जिस के प्रभाव से दिग्विजय सिंह जीत जाएंगे. धर्म के इस नए आइटम को देखने के लिए हजारों लोग इकट्ठा हुए थे और मीडिया ने देशभर में मिर्ची यज्ञ की चर्चा या प्रचार कुछ भी कह लें, किया था.

मिर्ची यज्ञ एक नए किस्म का यज्ञ है जिस का आविष्कार शायद इसी बाबा ने किया है. इसीलिए लोगों की दिलचस्पी इस में और बढ़ गई. बड़े धूमधड़ाके से इस बाबा और इस की टीम ने मिर्ची यज्ञ संपन्न किया. बात में दम लाने के लिए इस बाबा ने यह घोषणा भी कर दी थी कि अगर इस अनूठे मिर्ची यज्ञ के बाद भी दिग्विजय सिंह नहीं जीते तो वह जल समाधि ले कर ब्रह्मलीन हो जाएगा.

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दिग्विजय सिंह नहीं जीते. उलटे, प्रज्ञा भारती के हाथों 3 लाख से भी ज्यादा वोटों से हारे तो यह बाबा नदारद हो गया, क्योंकि पोल खुल चुकी थी खुद की भी और यज्ञ की भी. जिन लोगों के पास इस का फोन नंबर था वे इसे फोन करकर के पूछते रहे कि बाबा जल समाधि कब ले रहे हो, तो उस ने फोन ही बंद कर दिया.

ड्रामे पे ड्रामा

बात आईगई होने लगी, लेकिन यह बाबा बेहतर जानता था कि धर्मांध लोग बेवकूफ होते हैं. इन से पैसा ? गटकने की संभावनाएं कभी खत्म नहीं होतीं. लिहाजा, जून के दूसरे सप्ताह में यह फिर प्रकट हो गया और जल समाधि लेने की घोषणा कर डाली.

चालाकी दिखाते यानी खुद को बचाने की गरज से मिर्ची बाबा ने एक वकील सैयद अली के जरिए कलैक्टर भोपाल तरुण पिथोड़े को एक चिट्ठी लिखी कि वह ब्रह्मलीन होना चाहता है, इसलिए प्रशासन इस की अनुमति दे.

यह ड्रामा भी कम दिलचस्प नहीं था. अपनी चिट्ठी में इस बाबा ने लिखा कि अभी वह तंत्रमंत्र के लिए मशहूर असम के कामाख्या मंदिर में तपस्यारत है और 16 जून की दोपहर 2 बज कर 11 मिनट पर समाधि लेना चाहता है. इस पत्र में उस ने माना कि चूंकि उस ने दिग्विजय सिंह की जीत के लिए यज्ञ किया था और उन के हारने की स्थिति में समाधि लेने की घोषणा की थी, इसलिए वह अपना संकल्प पूरा करना चाहता है.

चूंकि कानून में ऐसा कोई प्रावधान है नहीं कि प्रशासन किसी बाबा के विधिविधान से मरने का इंतजाम करे, इसलिए कलैक्टर ने इजाजत नहीं दी और यही इस बाबा की मंशा भी थी कि देखो, मैं तो मरने को तैयार था लेकिन सरकार ने नहीं करने दिया. मरने की इजाजत तो दूर की बात है, उलटे, प्रशासन को इस ढोंगी बाबा की जानमाल की सुरक्षा के इंतजाम भी करने पड़े.

दो कौड़ी की अक्ल रखने वाला भी कह सकता है कि जब ब्रह्मलीन होना ही था तो उस के लिए कलैक्टर की इजाजत की क्या जरूरत. तुम तो बाबा हो, जहां चाहे समाधि ले लो, किसे पता चलेगा. लेकिन मकसद पाखंड फैलाना और ड्रामा करना ही था, जो इस देश में कोई नई बात नहीं. हां, जिस दिन ऐसा कोई ड्रामा न हो, तो जरूर लगता है कि हम सांपसंपेरों और तंत्रमंत्र प्रधान देश के निवासी नहीं रहे.

फैल गया अंधविश्वास

साफ दिख रहा है कि अब यह बाबा जरूर किसी नए ड्रामे की तैयारी में है, क्योंकि यही इस का पेशा है. मिर्ची यज्ञ की पोल खुलने के बाद भी लोगों ने कोई सबक नहीं लिया. भोपाल में अब हर कहीं, छोटे स्तर पर ही सही, मिर्ची यज्ञ होने लगे हैं. हैरत तो इस बात की भी है कि लोग घरों में खुद मिर्ची यज्ञ करने लगे हैं. अब यज्ञ हवन के बाद दोचार मिर्चियां भी लोग हवन सामग्री के साथ हवन कुंड में डाल लेते हैं कि शायद इस से बिगड़ी बात बन जाए और कोई चमत्कार हो जाए.

मिर्ची यज्ञ धर्म की हाट का नया आइटम है, इसलिए इसे लोग खूब ट्राई कर रहे हैं. दतिया के नजदीक रतनपुर मंदिर में भी मिर्ची यज्ञ हुआ तो बिहार के गया में भी समारोहपूर्वक इसे संपन्न किया गया. इस नवीनतम यज्ञ का धुआं धीरेधीरे देशभर में फैल रहा है और लोग बेवकूफों की तरह मिर्ची आग में ?ोंक कर खांसते आंखें पोंछ रहे हैं. ऐसे में दिग्विजय सिंह और मिर्ची बाबा से ज्यादा तरस इन लोगों पर आता है.

मिर्ची जला कर बच्चों की नजर उतारने का रिवाज काफी पुराना है. फिर भी बच्चे बीमार पड़ते हैं. कुपोषण से और दूसरी बीमारियों से भी मर रहे हैं. लेकिन जब लोगों ने भी कसम खा रखी है कि वे नहीं सुधरेंगे, तो कोई क्या कर लेगा. जब बिलकुल जान पर आ जाती है, तो वे दौड़ते हैं डाक्टर के पास कि साहब, बचा लो, भगवान के बाद आप ही हो.

गुप्त नवरात्रि

मिर्ची यज्ञ हिट हो गया है. लेकिन जानकर हैरत होती है कि लोगों को मूंड़ने के लिए इन बाबाओं ने तरहतरह के पाखंड फैला रखे हैं. जुलाई के पहले सप्ताह में अखबारों में, न्यूज चैनल्स पर और उस से भी ज्यादा सोशल मीडिया पर जम कर प्रचार हुआ गुप्त नवरात्रि का. वायरल हुई एक पोस्ट में बीती 7 जुलाई को बताया गया कि गुप्त नवरात्रि के तहत आज सातवें दिन मां कात्यायनी की पूजा होती है जिस से घरगृहस्थी खुशहाल बनी रहती है, छात्र उत्तीर्ण हो जाते हैं, बेरोजगारों को रोजगार मिल जाता है और विवाहयोग्य उम्मीदवारों की शादी हो जाती है.

इस पोस्ट के आखिर में एक तांत्रिक का नाम और नंबर दिया गया था. लोगों ने इस तांत्रिक से संपर्क किया और गुप्त नवरात्रि में खूब पूजापाठ कराया. फिर तो अकेले इसी ने ही नहीं, बल्कि सैकड़ों तांत्रिकों ने गुप्त नवरात्रि से खूब पैसा बनाया और सालभर के राशनपानी का इंतजाम कर लिया.

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भोपाल के एक प्रमुख समाचारपत्र की खबर पर गौर करें तो प्रकट नवरात्रि के अलावा 2 और गुप्त नवरात्रि भी होती हैं जो माघ और आषाढ़ के महीने में आती हैं. इन नवरात्रि में गुप्त साधनाएं करने से भक्तों और साधकों की तमाम मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इस खबर में दुर्गा के 10 रूपों का वर्णन करते बताया गया था कि 10 जुलाई तक कब, किस देवी की साधना किस तरीके से करनी चाहिए.

इस प्रतिनिधि ने एक पंडेनुमा तांत्रिक से गुप्त नवरात्रि पर पूजा करने की बात कही तो वह सहर्ष तैयार हो गया. उस ने इस बाबत 11 हजार रुपए नकद मांगे और इतने के ही सामान की लिस्ट थमा दी. इस के बाद इस तांत्रिक से संपर्क नहीं किया गया तो उस ने तो पहले फोन किए और बाद में घर पर ही आ धमका. पूजा के बाबत मना करने पर इस ने तरहतरह के श्राप दिए और गुप्त नवरात्रि का डर दिखाया कि एक बार मन में बात आ जाने के बाद या संकल्प लेने के बाद पूजापाठ नहीं कराया तो इतने अनिष्ट होंगे कि फिर ब्रह्मा भी कुछ नहीं कर सकेगा.

बिलकुल मना कर देने पर यह तांत्रिक घर में धूनी रमा कर बैठ गया कि पूजा के 11 हजार रुपए दो नहीं तो भस्म होने के लिए तैयार हो जाओ. यह नजारा देख दिल्ली के चांदनी चौक की याद हो आई जहां के फुटपाथी दुकानदारों से किसी आइटम का भाव पूछ लो तो वे हाथ धो कर ग्राहक के पीछे पड़ जाते हैं कि अब तो लेना ही पड़ेगा. नहीं तो वे गालीगलौज और मारपीट तक पर उतारू हो आते हैं.

जब इस पंडे को पुलिस बुलाने की धौंस दी गई तो उस ने पहली बार सच बोला कि बुला लो, सभी पुलिस वाले हमारे यजमान हैं और घर तो घर, थानों तक में हम से ही यज्ञहवन करवाते हैं. पिछले साल फलां आईपीएस की लड़की चुपचाप भागी थी तो उन्होंने हम से ही अनुष्ठान करवाया था.

बहरहाल, जैसेतैसे यह पंडा टला लेकिन खोजबीन करने पर पता चला कि केवल गुप्त नवरात्रि में ही नहीं, बल्कि काफी लोग घरों में तांत्रिक अनुष्ठान करवाते रहते हैं और इन में तथाकथित सभ्य, शिक्षित, आधुनिक और संपन्न लोग ज्यादा होते हैं. किसी को संतान से समस्या है तो किसी की पत्नी बीमार रहती है, किसी को व्यापार में घाटा हो रहा है और किसी को शत्रु का नाश करवाना है. ऐसे सैकड़ों काम ये तांत्रिक करते हैं.

इन के पास होटलों की तरह बाकायदा एक मैन्यू कार्ड होता है जिस में शत्रु को मारने से ले कर वशीकरण यज्ञ तक का रेट लिखा रहता है. ऐसी क्रियाएं अकसर रात को की जाती हैं और गुप्त नवरात्रि में तो भोपाल जैसे शहर में पंडों और तांत्रिकों का टोटा पड़ जाता है.

कोई क्या कर लेगा

मिर्ची वाला बाबा हो या गुप्त नवरात्रि वाला, इन का कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाता, क्योंकि इन के खिलाफ कार्यवाही का जिम्मा जिन लोगों के पास है वही इन के यजमान होते हैं. इन के विज्ञापन चैनलों पर, अखबारों में, पत्रपत्रिकाओं में और सोशल मीडिया पर धड़ल्ले से चलते हैं.

मिर्ची वाले बाबा की बात करें तो बात कम हैरत की नहीं कि भोपाल कलैक्टर ने उस की ब्रह्मलीन होने की दरख्वास्त ली और उस की सुरक्षा में पुलिस बल तैनात कर दिया. अगर उसे यह कह दिया जाता कि यह काम भगवान का है, उस से पूछ लो, तो यह बाबा फिर दुम दबा कर भाग जाता या फिर कोई और नई दलील गढ़ लेता.

दरअसल, जब लोग यहां लुटने और बेवकूफ बनने को तैयार बैठे हैं तो इन बाबाओं का क्या दोष. उलटे, जब ये बाबा लोग तरहतरह से तंत्रमंत्र और चमत्कारों का प्रचार और ब्रैंडिंग करते हैं तो धर्मभीरु लोग इन के ?ांसे में क्यों नहीं आएंगे, जो दिमाग और तर्कों को ताक में रखते कुछ भी करवाने को तैयार हो जाते हैं. इन के दिमाग में तो सदियों से यह बात ठुंसी पड़ी है कि धर्मग्रंथों में वर्णित चमत्कार वास्तव में भी होते हैं.

कहने को ही यह युग विज्ञान का है वरना बोलबाला और दबदबा तो मिर्ची और अदरक वाले बाबाओं सहित सड़क छाप निठल्ले, निकम्मे और ठग तांत्रिकों का है जिन पर किसी का जोर नहीं चलता. राजनेता इन का सहारा लेते हैं और प्रशासन इन की हिफाजत करने के साथ इन्हें महिमामंडित करता है. ऐसे में कोई इन का क्या कर लेगा. देश का आर्थिक विकास जाए भाड़ में, धर्म का विकास होना चाहिए.

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सेक्सी लुक के लिए अपनाएं ये खास टिप्स

अगर आप यह सोचती हैं कि सब आप की तारीफ करें, पलटपलट कर आप को देखें, सीटी बजाएं और बोलें ‘वाउ’ क्या पटाखा है, क्या खूबसूरती है, तो आप को अपना लुक चेंज करना होगा और इसे सैक्सुअली अट्रैक्टिव बनाना होगा. जी हां, आप के सैक्सी लुक से अट्रैक्ट हो सब आप को न केवल मुड़मुड़ कर देखेंगे, बल्कि देख कर दिल थाम लेंगे. आप जहां भी जाएंगी आप की पर्सनैलिटी को देख कर सब यही कह उठेंगे कि क्या लुक है, क्या चाल है, क्या ब्यूटी है. तो अपने लुक को बिंदास बनाइए और बन जाइए औफिस की जान, महफिल की शान.

कैसे पाएं सेक्सी लुक

ड्रेस सेंस हो मौडर्न

ड्रेस सेंस मौडर्न होने का मतलब छोटे कपड़ों से नहीं बल्कि स्मार्ट कपड़ों से है, जो आप की पर्सनैलिटी में चारचांद लगा दें. कहा भी जाता है कि कपड़ों से कौन्फिडैंस बढ़ता है, तो फिर देर किस बात की, जब भी शौपिंग पर जाएं तब ऐसे कपड़े खरीदें जो आप के कौंप्लैक्शन और फिगर पर सूट करें.

आजकल जहां फ्रौक स्टाइल व म्यूलेट ड्रैसेज, जैगिंग के साथ शौर्ट कुरती कैरी करने का फैशन है वहीं प्लाजो विद कुरती, जींस पर शौर्ट कुरती डिमांड में हैं. ये न सिर्फ कंफर्टेबल होती हैं बल्कि आप को कूल लुक भी देती हैं.

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ऐक्सैसरीज बढ़ाएं रौनक

घर में भले ही आप सिंपल रहें लेकिन जब भी बाहर जाएं हर बार खुद के लुक में थोड़ा चेंज कर लें. जैसे अगर आप ने सिंपल सूट पहना है और सोच रही हैं कि इस में मैं सैक्सी और ग्लैमरस नहीं लग सकती तो ऐसा नहीं है, बस, इस के लिए आप को देना होगा ऐक्सैसरीज का टच. जैसे कानों में हैंगिंग ईयररिंग्स, हाथ में घड़ी या फिर ब्रैसलेट. इसी तरह जींसटौप के साथ फंकी ऐक्सैसरीज काफी सूट करेंगी. लेकिन ध्यान रहे ऐक्सैसरीज का सलैक्शन ड्रैस के हिसाब से हो वरना आप की सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा.

बालों में हो बला का आकर्षण

सेक्सी आप सिर्फ फिगर से ही नहीं बल्कि हेयरस्टाइल में बदलाव ला कर भी लग सकती हैं. अभी तक आप चाहे कालेज जाएं या फिर किसी पार्टीफंक्शन में, हमेशा सीधेसपाट या फिर घुंघराले बालों में ही जाती हैं तो इसे बदलें. आप बालों में बन, कर्ल्स, पफ, नौट्स व रिंग्स दे कर अपनी सुंदरता निखार सकती हैं और फ्रैंड्स को वाउ कहने पर मजबूर कर सकती हैं.

ऊंची हील से बढ़ाएं कौन्फिडैंस

प्रजेंटेबल और ग्लैमरस दिखने में हील्स का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान होता है, क्योंकि इस से हाइट तो लंबी लगती ही है, साथ ही चाल भी आत्मविश्वास से भरी दिखाई देती है. अब यह आप पर निर्भर करता है कि आप किस तरह की हील पहन कर जाना पसंद करेंगी, क्योंकि हील्स में भी कई वैरायटी हैं जैसे, किटन हील्स, ऐंकल स्ट्रैप हील्स, कोन हील्स, हाईहील सैंडिल्स, ऐंकल बूट्स, फ्रैंच हील्स, पंपस, प्लेटफौर्म हील्स आदि. ये कंफर्टेबल के साथसाथ फैशन में भी जबरदस्त तड़का लगाती हैं.

बौडी पार्ट्स की नीटनैस भी जरूरी

स्लीवलैस कुरती व कैपरी पहनने से सैक्सी लुक तभी आएगा जब हाथपैर नीट दिखेंगे वरना कपड़ों से ज्यादा लोगों का ध्यान आप के हाथपैरों पर उगे बालों पर ही जाएगा. आप को भी अच्छा नहीं लगेगा कि आप बस या मैट्रो में हाथ ऊपर करें और आप की अंडरआर्म्स को देख लोग कमैंट्स मारें. भद्दे कमैंट्स सुन कर आप का मूड औफ तो होगा ही साथ ही आप का आत्मविश्वास भी घटेगा. इसलिए बौडी पार्ट्स की वैक्सिंग के साथसाथ आइब्रो, अपरलिप्स भी रैगुलर करवाती रहें. इस से आप खुद को परफैक्ट लुक दे पाएंगी.

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चाल भी हो सेक्सी

अटै्रक्टिव फिगर और सौंदर्य ही अपनेआप में काफी नहीं है बल्कि आप का पोश्चर भी सैक्सुअली अट्रैक्शन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है खासकर आप की चाल. रैंप पर मौडल को चलते हुए देख कौन नहीं दिल थाम लेता, उसी तरह का आकर्षण और अट्रैक्शन आप भी अपनी चाल में पैदा करें ताकि देखने वाला कह उठे, ‘तेरी चाल भी सैक्सी…’

फेशियल ऐक्सप्रेशंस हों लाजवाब

कपड़े तो पहन लिए मौडर्न लेकिन जब मुंह खोला तो सारी सुंदरता पर पानी फेर दिया. इसलिए कपड़ों के साथसाथ अपने फेशियल ऐक्सप्रैशंस पर भी ध्यान दें. जब भी किसी से बात करें तो धीमी आवाज में करें. साथ ही अपना हाई कौन्फिडैंस दिखाने के लिए उस की आंखों में आंखें डाल कर बात करें इस से आप की पर्सनैलिटी दूसरों पर गजब का प्रभाव छोड़ेगी.

आर्टिफिशियल ब्यूटी से उभारें फिगर

कुछ युवतियों की ब्रैस्ट या तो बहुत बड़ी होती हैं या फिर छोटी, जिस से उन्हें काफी शेम फील होती है, क्योंकि इस से फिगर सैक्सी लुक नहीं दे पाती, जबकि इसे महिला का ऐसा आकर्षण माना जाता है जिसे देख पहली नजर में ही युवक उस का कायल हो जाता है. अगर आप छोटी ब्रैस्ट से परेशान हैं तो ट्राई कीजिए पैडेड और ऐसी ब्रा जो ब्रैस्ट  को उभारे और अगर बड़ी बैस्ट है तो नौर्मल ब्रा पहनें. तभी तो आप कहलाएंगी हुस्न की मलिका. आप फेस वाइज तो काफी क्यूट दिखती हैं, लेकिन आप का हिप एरिया बिलकुल सपाट है जिस के कारण कोई भी युवक आप की तरफ अट्रैक्ट नहीं होता.   यदि यह बात आप को मन ही मन दुखी कर रही है तो आप अपने सपाट हिस्से को उभार सकती हैं पैडेड पैंटीज, शेपवियर अंडरवियर्स से. भले ही ये आर्टिफिशियल हैं लेकिन सैक्सी लुक तो देते ही हैं. इस तरह आप खुद को सैक्सी लुक दे पाएंगी.

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सफर: जिस्म का मजा और रंगीन नोटो की सजा

रात के ठीक 10 बजे ‘झेलम ऐक्सप्रैस’ ट्रेन ने जम्मूतवी से रेंगना शुरू किया, तो पलभर में रफ्तार पकड़ ली. कंपार्टमैंट में सभी मुसाफिर अपना सामान रख आराम कर रहे थे. गीता ने भी लोअर बर्थ पर अपनी कमर टिकाई. कमर टिकाते ही उस ने देखा कि सामने वाली बर्थ पर जो साहब अभी तक बैठे थे, मुंह खुला रख कर खर्राटों भरी गहरी नींद सो चुके थे. गीता की नजर उन साहब के ऊपर वाली बर्थ पर गई तो देखा कि एक नौजवान अपनी छाती पर मोबाइल फोन रख कानों में ईयरफोन लगाए उस में बज रहे गानों के संग जुगलबंदी में मस्त था.

गीता को नींद नहीं आ रही थी. उस के ऊपर वाली बर्थ पर कोई हलचल नहीं थी. उस पर सामान रखा हुआ था और सामान वाला उसी कंपार्टमैंट के आखिरी छोर पर अपने दोस्त के साथ कारोबार की बातें कर रहा था. रात गुजर गई. गीता लेटी रही, मगर सो नहीं पाई थी. सुबह के 5 बज चुके थे. अपनी ही दुनिया में मस्त वह नौजवान उठा और वाशरूम की तरफ चल दिया. जब वह लौटा, तो उस का चेहरा एकदम तरोताजा दिख रहा था. तब तक गाड़ी अंबाला कैंट रेलवे स्टेशन पर रुक चुकी थी. वह नौजवान छोलेकुलचे ले कर आया और फिर उस ने देखते ही देखते नाश्ता कर लिया. सामने वाली बर्थ पर लेटे साहब हरकत में आने शुरू हुए. उन्होंने गीता से पूछा, ‘‘मैडम, यह गाड़ी कौन से स्टेशन पर रुकी हुई है?’’

गीता ने उन के सवाल का जवाब देते हुए कहा, ‘‘जी, अंबाला स्टेशन पर.’’

तभी ट्रेन ने रेंगना शुरू कर दिया. उन साहब ने सवाल किया, ‘‘क्या कोई चाय वाला नहीं आया अब तक?’’

गीता बोली, ‘‘जी, बहुत आए थे, मगर आप सो रहे थे.’’ वे साहब चाय की तलब लिए फिर से अपनी बर्थ पर आलू की तरह लुढ़क गए. थोड़ी देर बाद उन का मुंह खुला और वे फिर से खर्राटे लेने लगे. गीता ने सामने ऊपर वाली बर्थ पर उस नौजवान पर निगाह डाली तो देखा कि वह कोई उपन्यास पढ़ रहा था. न जाने क्यों गीता की निगाहों को वह अच्छा लगने लगा था. उस का डीलडौल, कदकाठी, हेयरकट और उस के दैनिक रूटीन से उस ने अंदाजा लगा लिया था कि यह तो पक्का फौजी है. इस के बाद गीता वाशरूम चली गई. थोड़ी देर बाद वह होंठों को और गुलाबी कर, आंखों को कजरारी कर, चेहरे को चमका कर व जुल्फों को संवार कर जब वापस अपनी बर्थ की ओर लौटने लगी, तो उस की नजरें दूर से ही उस नौजवान पर जा टिकीं. वह उपन्यास के पात्रों में खोया हुआ था.

गीता ने ठोकर लगने की सी ऐक्टिंग कर उस का ध्यान अपनी ओर खींचने की कोशिश की, मगर सब बेकार. गीता खिसियाई सी खिड़की के पास आ कर बैठ गई और बाहर झांकने लगी.

तकरीबन 8 बजे गाड़ी पानीपत स्टेशन पर रुकी, तो गीता ने अपनी नजरें नौजवान पर टिका कर सामने वाले साहब को पुकारते हुए कहा, ‘‘जी उठिए, स्टेशन पर गाड़ी रुकी है… चायनाश्ता सब है यहां.’’

‘‘ओके थैंक्यू, चाय पीने का बड़ा मन है मेरा,’’ उन साहब ने कहा.

‘‘जी, इसीलिए तो उठाया है. मैं जानती हूं कि आप चाय की तलब के साथ ही सो गए थे,’’ गीता बोली.

चाय वाला जैसे ही खिड़की पर आया, तो उन साहब ने झट से चाय का कप लिया और अपनी जेब से पैसे निकाल कर चाय वाले को थमा दिए. इस के तुरंत बाद आलूपूरी वाले ने खिड़की पर दस्तक दी, तो पलभर में उन साहब ने आलूपूरी अपने हाथों में थाम ली. गीता की नजर दोबारा ऊपर वाली बर्थ पर गई, तो उस ने देखा कि वह नौजवान अभी भी उपन्यास पढ़ने में डूबा हुआ था. चायनाश्ते से निबट कर जब उन साहब को फुरसत मिली, तो उन्होंने गीता को ‘थैंक्यू’ कहा. तभी ऊपर बैठे उस नौजवान ने नीचे झांका तो देखा कि साहब नाश्ता कर चुके थे.

उस नौजवान ने बड़ी नम्रता से कहा, ‘‘सर, अगर आप बैठ रहे हैं, तो मैं अपनी बर्थ नीचे कर लूं क्या?’’

‘‘हांहां क्यों नहीं.’’

थोड़ी देर बाद वह नौजवान उन साहब की बगल में, तो गीता के ठीक सामने बैठ चुका था.

गीता अपनी बर्थ पर बैठीबैठी खिड़की से बाहर झांकतेझांकते अपनी नजरें उस नौजवान की नजरों से मिलाने की कोशिश करने लगी. लेकिन वह नौजवान तो उसे देख ही नहीं रहा था. वह सोचने लगी, ‘ऐसा कभी हुआ ही नहीं कि मुझे कोई देखे भी न. अगर कोई मेरी बगल से भी गुजरता है, तो वह पलट कर मुझे जरूर देखता है.’ उस नौजवान पर टकटकी लगाए गीता सोच रही थी कि तभी उस ने पानी की बोतल गीता की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘मैडम, पानी पी लीजिए.’’

यह सुन कर गीता के गंभीर चेहरे पर एक मुसकान उभरी. उस की ओर देखतेदेखते गीता पानी की बोतल अपने हाथ में थाम बैठी और दोचार घूंट गटागट पी भी गई.

पानी की बोतल उसे वापस देते हुए गीता ने अपने कयास को पुख्ता करने के लिए पूछ लिया, ‘‘आप फौजी हैं न?’’

‘‘जी…’’

गीता ने उस से दोबारा कहा, ‘‘बुरा मत मानना प्लीज… मैं ने किसी से सुना था कि फौजी दिमाग से पैदल होते हैं… जहां लड़की देखी नहीं कि कभी उन के सिर में तो कभी बदन में खुजली होने लगती है और फिर वे पागलों की तरह लड़कियों को देखने लगते हैं. पर आप ने यह साबित कर दिया कि सभी फौजी एकजैसे नहीं होते.’’

‘‘हां, पर फौजियों को ठीक रहने कौन देता है… जहां फौजी ऐसी हरकत नहीं करते, वहां लड़कियां उन के साथ ऐसा ही करने लगती हैं. आखिर कोई कहां तक बचे?’’ उस नौजवान की यह बात सीधा गीता के दिल को जा कर लगी.

बातचीत का सिलसिला चला, तो उस नौजवान ने पूछ लिया, ‘‘क्या नाम है आप का?’’

‘‘गीता.’’

‘‘क्या करती हैं आप?’’

‘‘जी, मैं बैंक में हूं.’’

‘‘बहुत अच्छा,’’ वह फौजी बोला.

गीता ने पूछा, ‘‘और आप का नाम?’’

‘‘मेरा नाम प्रिंस है.’’

‘‘प्रिंस… वह भी सेना में… पर कौन रहने देता होगा आप को वहां प्रिंस की तरह…’’

इस बात पर वे दोनों हंस दिए थे, हंसीठहाकों के बीच उन्हें पता ही नहीं चला कि टे्रन कब नई दिल्ली स्टेशन पर आ कर रुक गई. सवारियों ने उतरना शुरू किया, तो साथ ही साथ नई सवारियों का चढ़ना भी जारी था. तभी एक बंगाली जोड़ा अपना बर्थ नंबर ढूंढ़तेढूंढ़ते वहां आ पहुंचा. अधेड़ उम्र के उस बंगाली जोड़े ने अपना सामान सीट के नीचे रखा और वे दोनों गीता व प्रिंस के साथ ही आ बैठे. दिनभर की प्यारभरी बातों के सिलसिले के साथ ही एक के बाद एक स्टेशन भी पीछे छूटते रहे और पता ही नहीं चला कि कब शाम हो गई. पैंट्री वाले आए, खाने का और्डर बुक किया. कुछ देर बाद रात का भोजन सब के सामने था. खाना खाने के बाद प्रिंस ने टूथब्रश किया, तो गीता ने भी उस की देखादेखी यह काम कर डाला. सभी सुस्ताने के मूड में आए, तो सब ने अपनीअपनी बर्थ संभालनी शुरू कर दी.

बंगाली जोड़ा कुछ परेशान सा इधरउधर ताकनेझांकने लगा. प्रिंस ने उन्हें टोकते हुए पूछ ही लिया, ‘‘क्या बात है जी?’’

बंगाली आदमी ने अपना दर्द बयां किया, ‘‘क्या बताएं बेटा. एक तो हम शरीर से भारी, उस पर उम्र के उस पड़ाव पर हैं कि जहां हमारे लिए ऊपर वाली बर्थ पर चढ़नाउतरना किसी किले को फतेह करने से कम नहीं है. कहीं इस चढ़नेउतरने में फिसल कर गिर गए, तो 2-4 हड्डियां तो टूट ही जाएंगी.’’

इतने में बंगाली औरत की याचक निगाहें गीता के छरहरे बदन पर जा पड़ीं. उन्होंने विनती करते हुए कहा, ‘‘बेटी, क्या आप हमारी मदद कर सकती हैं?’’

गीता हैरानी से उन की ओर देखते हुए बोली, ‘‘कैसे आंटी?’’

‘‘आप बर्थ ऐक्सचेंज कर लीजिए प्लीज. आप जवान लोग हो, ऊपर की बर्थ पर चढ़उतर सकते हो.’’

‘‘ठीक है आंटी. मैं ऊपर वाली बर्थ पर चली जाती हूं, आप मेरी बर्थ पर सो जाइए,’’ गीता ने कहा. गीता पायदान में पैर अटका कर प्रिंस के सामने ऊपर वाली बर्थ पर चढ़ गई, तो बंगाली जोड़ा भी नीचे वाली बर्थ पर लेट गया.

प्रिंस, जो पहले से ही अपनी बर्थ पर मौजूद था, अब तक उपन्यास के पन्नों में डूब चुका था. गीता ने ऊंघते हुए उस की तरफ देखा और एक बदनतोड़ अंगड़ाई लेते हुए अपनी छाती को उभारा, तो फौजी की नजरें उपन्यास से हट कर उस के बदन पर आ ठहरीं. उपन्यास हाथ से छूट कर नीचे गिर गया. गीता के चेहरे पर मादकता में लिपटी जीत की मुसकान तैर गई. उस ने नीचे गिरे हुए उपन्यास को देखा तो उस के उभार झांकने लगे. फौजी की निगाहें तो मानो वहीं पर अटक कर रह गईं.

फौजी ने गीता की ओर देख कर कहा, ‘‘बुरा मत मानना, आप की हंसी तो बेहद खूबसूरत है.’’

गीता ने भी जवाब में कहा, ‘‘आप का चालचलन बहुत अच्छा है… मैं कल से देख रही हूं.’’

यह बात सुन कर प्रिंस हंस पड़ा और बोला, ‘‘आर्मी वालों का चालचलन बिगड़ने कौन देता है मैडम? कैद में रहते हैं. कोई हमें खुला छोड़ कर तो देखे.’’

गीता मुसकराते हुए कहने लगी, ‘‘अब चालचलन कुछ ठीक नहीं लग रहा है आप का.’’

‘‘कहां से ठीक रहता… आप जो कल रात से मुझ पर डोरे डालती आ रही हैं. हम कंट्रोल करना जानते हैं, तो इस का मतलब यह तो नहीं हुआ कि किसी हुस्नपरी को देख कर हमारा दिल ही नहीं धड़कता. हम बात मौका देख कर करते हैं मैडम.’’ गीता ने उस की बातों में दिलचस्पी लेते हुए पूछा, ‘‘गाने के शौकीन हो बाबू, फौज में क्यों चले गए?’’

प्रिंस गंभीर हो गया, फिर कुछ सोचते हुए बोला, ‘‘एक लड़की के चक्कर में फौजी बन गया. उसे आर्मी वाले पसंद थे.’’

‘‘ओह… अब तो वह लड़की आप की पत्नी होगी?’’

‘‘न… जब मैं ट्रेनिंग कर के गांव लौटा, तब तक उस ने किसी कारोबारी से शादी कर ली थी. मगर मैं फौजी हो कर रह गया.’’

‘‘बहुत दुख हुआ होगा उस के ऐसा करने पर?’’

‘‘हां, पर क्या करता? जिंदगी है ही चलने का नाम. कभी दोस्तों ने मुझ को, तो कभी मैं ने खुद को समझा लिया कि जो होता है, अच्छे के लिए ही होता है.’’

फिर गीता की ओर आंख मार कर प्रिंस ने हलके से मुसकराते हुए कहा, ‘‘बस, अब मैं कुछ अच्छा होने का इंतजार कर रहा हूं.’’

‘‘क्या बात है साहब… मुझे आप की यही अदा तो बड़ी पसंद है.’’

‘‘मुझ से दोस्ती करोगी?’’

‘‘वह तो हो ही गई है अब… इस में कहने की क्या बात है?’’ फिर उन दोनों ने एकदूसरे से हाथ मिलाया, तो गीता ने प्रिंस की हथेली में अपनी उंगलियों से सरसराहट सी पैदा कर दी. उस सरसराहट ने प्रिंस के तनमन में खलबली मचा दी थी. दोनों एकदूजे की आंखों में डूबने लगे. रात अपने शबाब पर चढ़नी शुरू हो गई थी. वे दोनों कब एक ही बर्थ पर आ गए, किसी को भनक तक न हुई. गीता के बदन से आ रही गुलाब के इत्र की भीनीभीनी खुशबू में प्रिंस बहकता चला गया. गीता ने थोड़ी ढील दी, तो प्रिंस के हाथ उस के बदन से खेलने लगे. गीता ने कुछ नहीं कहा, तो प्रिंस ने उसे अपनी बांहों में जकड़ लिया. थोड़ी ही देर में वे दो बदन एक जान हो गए. चलती टे्रन में उन के प्यार का सफर अब अपनी हद पर था. फिर इसी सफर में वे दोनों हांफतेहांफते नींद के आगोश में समा गए. सुबह के तकरीबन 3 बजे गाड़ी ने अपनी रफ्तार कम की, तो गीता की नींद खुल गई. उस ने अपनेआप को प्रिंस की बांहों से आजाद कर कपड़े पहने. उस का खंडवा स्टेशन आने वाला था.

गीता ने एक कागज पर प्रिंस के लिए कुछ लिखा और उस के सिरहाने रख दिया. फिर कुछ सोचा और जल्दबाजी में एक और पुरजे पर कुछ लिखा और पर्स निकाल कर उस पुरजे को पर्स में रखा और पैंट की जेब के हवाले किया.

फिर गीता ने अपना सामान समेटा और बिना आहट किए ही प्लेटफार्म पर उतर गई. रात के प्यार में थके प्रिंस की नींद सुबह के 5 बजे खुली, तो उस ने अपनी बगल में गीता को टटोला. वह वहां नहीं थी और न ही उस का सामान. प्रिंस हैरानपरेशान सा इधरउधर ताकने लगा. गीता का कहीं नामोनिशान न मिलने पर उस ने खुद को ठीकठाक करने के लिए सिरहाने रखी अपनी शर्ट उठाई, तो उसे उस के नीचे एक चिट्ठी मिली. लिखा था:

‘डियर,

‘आप बहुत अच्छे फौजी हैं. देर से बहकते हो जरा… पर बहकते जरूर हो. सफर रोमांचक गुजरा. आप की बात ही कुछ और थी… फिर कभी दोबारा आप से इसी तरह मुलाकात हो.

‘लव यू डियर, गुड बाय.’

चिट्ठी पढ़ कर प्रिंस हैरान हुआ. उस भोलीभाली दिखने वाली मासूम बला के बारे में सोचतेसोचते उस के माथे पर सिलवटें पड़ने लगीं, तभी चाय वाला वहां आया.

‘‘अरे भैया, एक कप चाय दे दो,’’ कहते हुए प्रिंस ने अपना पर्स निकाला, तो उस में से एक और पुरजा निकला, जिस पर लिखा हुआ था: ‘आप का पर्स रंगीन नोटों की गरमी से लबालब था. दिल आ गया… सो, निशानी के तौर पर सभी रंगीनियां साथ लिए जा रही हूं… उम्मीद है कि आप बुरा नहीं मानेंगे.’ प्रिंस के मुंह से बस इतना ही निकला, ‘‘चाय के लिए चिल्लर तो छोड़ जाती…पर फौजी पर तरस खाता कौन है…’’

फिल्म समीक्षाः ‘सैरा नरसिम्हा रेड्डी’

रेटिंगः साढ़े तीन स्टार

निर्माताः राम चरण

निर्देशकः सुरेंद्र रेड्डी

संगीतकारः अमित त्रिवेदी

कलाकारः चिरंजीवी, सुदीप, अमिताभ बच्चन, विजय सेतुपथी, जगपथी बाबू, नयनतारा, तमन्ना, रवि किशन, निहारिका कोनोडिया, ब्रम्हानंदम, रघु बाबू, राम चरण, अनुष्का शेट्टी

अवधिः दो घंटे 51 मिनट

दो अक्टूबर को महात्मा गांधी की 150 वीं जंयती पर फिल्मकार सुरेंद्र रेड्डी देशभक्ति के तड़के से भरपूर बायोग्राफिकल एपिक एक्शन फिल्म ‘‘सैरा नरसिम्हा रेड्डी’’ लेकर आए है. जो कि आंध्रप्रदेश के रायलसीमा क्षेत्र के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी उयालवाड़ा नरसिम्हा रेड्डी सैरा के जीवन पर एक भव्य एक्शन फिल्म हैं. फिल्म मूलतः तेलुगु भाषा में है, पर हिंदी,  कन्नड़,  मलयालम और तमिल में डब करके प्रदर्शित किया गया है. फिल्म में कितना इतिहास है और कितनी कल्पना इसका दावा तो नहीं किया गया है. मगर एक काल खंड विशेष की बेहतरीन एक्शन फिल्म है.

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कहानी:

आंध्र प्रदेश के रायलसीमा क्षेत्र के स्वतंत्रता सेनानी उयालवाड़ा नरसिम्हा रेड्डी के जीवन पर आधारित एक काल्पनिक कहानी है. कहानी शुरू होती है 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम से. जब झांसी की रानी लक्ष्मी बाई के बचे हुए चालिस सैनिक अंग्रजों से युद्ध करने से मना करते हैं, तब झांसी की रानी लक्ष्मीबाई (अनुष्का शेट्टी) अपने सैनिकों व सेनापति से स्वतंत्रता के लिए युद्ध लड़ने के लिए कहते हुए दस साल पहले के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी दक्षिण भारत के इनाड़ू के उयालवाडा नरसिम्हा रेड्डी (चिरंजीवी) की कहानी सुनाती हैं. आंध्र प्रदेश के रायलसीमा क्षेत्र के पहलदार हैं, जो अपनी प्रजा और अपनी पत्नी सिद्धम्मा (नयनतारा),  अपनी मां (लक्ष्मी गोपालस्वामी) के साथ खुशी से रहते थे. उन दिनों वहां पर 71 छोटे छोटे राज्यों का समूह था और हर राज्य का मुखिया पहलदार कहा जाता था. उसी समय ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी व्यवसाय के लिए भारत आई थी, लेकिन जल्द ही भारतीय लोगों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया और भारतीय संसाधनों को लूट कर अपने देश ले जाने लगे.

इधर सैरा नरसिम्हा रेड्डी बचपन में छह साल की उम्र से ही वह पहाड़ी के मंदिर का कार्तिक पूर्णिमा पर दिया जलाने जाने गलते है. बचपन में ही गुरू गोसाई वेनकना (अमिताभ बच्चन) ने सैरा को ऐसी शिक्षा दी है, कि अब उनका मुकाबला करने की शक्ति किसी में नही है. युवावस्था में पहुंचते ही जब नरसिम्हा रेड्डी अंग्रजों के अत्याचारों के साक्षी होते हैं, तो वह उग्र हो जाते हैं. और अकेले ही अंग्रजों के खिलाफ युद्ध का बिगुल बजा देते हैं. दूसरे पहलदार उनका साथ नही देते हैं. उधर मंदिर मे नाचने गाने वाली लक्ष्मी (तमन्ना) को वह अपना नाम देते हुए उसे मंगलसूत्र पहना देते हैं, पर उससे कहते हैं कि वह अपनी इस कला का उपयोग लोगों के अंदर आजादी के लिए लड़ने की भावना भरने के लिए करे. इधर घर पहुंचने पर पता चलता है कि बचपन में एक खास परिस्थिति के चलते उनका व्याह सिद्धमा (नयनतारा)से हुआ था.

पर अग्रेजों के बढ़ते अत्याचार से लड़ने के लिए सैरा अपने सिंहासन, पत्नी और मां को छोड़ देते हैं. धीरे धीर अन्य क्षेत्र के पहलदार वीरा रेड्डी (जगपति बाबू), अवुकु राजू (सुदीप), राजा पंडी (विजय सेतुपति) भी सैरा नरसिम्हा रेड्डी के साथ हो जाते हैं. सैरा का ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विद्रोह शुरू होता है. कई मोड़ आते हैं. अंग्रेज फूट डालो, राज करो की नीति का सहारा लेते हैं. उधर सैरा भी बराबर चैकन्ना रहता है और अपने अंदर के गद्दारों को भी खत्म करता रहता है. अंग्रेज लगातार परास्त होते रहते हैं. पर एक दिन अंग्रेजों की बातों में आकर वीरा रेड्डी (जगपति बाबू) ही सैरा नरसिम्हा रेड्डी को पकड़वा देते हैं. परिणामतः सैरा नरसिम्हा रेड्डी शहीद हो जाते हैं.

निर्देशनः

बतौर लेखक व निर्देशक सुरेंद्र रेड्डी ने बेहतरीन कला कौशल का परिचय दिया है. मगर फिल्म कुछ ज्यादा ही लंबी हो गयी है. इसे एडीटिंग टेबल पर कसने की जरुरत थी. इंटरवल तक दर्शक टकटकी लगाकर फिल्म देखता रहते हैं. मगर इंटरवल के बाद पूरे 45 मिनट तक बहुत कुछ सामान्य सा होता है और दर्शक महसूस करने लगते हैं कि निर्देशक ने फिल्म पर से पकड़ खो दी. सैरा नरसिम्हा की वीरता दिख चुका. इन 45 मिनट में गाना भी ठूंसा लगता है. लेकिन उसके बाद फिल्म जिस चरमोत्कर्ष पर जाती है, वह कमाल का है. फिल्म के कुछ संवाद काफी अच्छे बन पड़े हैं.

फिल्म के एकशन दृश्य काफी बेहतरीन व प्रभावशाली है. पहली बार इसमें एक्शन व युद्ध कौषल के कुछ अनोखे दृश्य पेश किए गए हैं. इंटरवल के बाद तमन्ना भाटिया का अंग्रेजों के सामने आत्मघाती नृत्य रोंगटे खड़ा कर देता है. यह दृश्य लेखक व निर्देशक की कुशाग्र बुद्धि का परिचायक है. मगर फिल्म का क्लायमेक्स जरुरत से ज्यादा मैलोड्ामा वाला हो गया है.देषभक्ति को उकेरने के नाम पर भी क्लाइमेक्स को लंबा खींचा गया है. दर्शक को फिल्म याद रह जाती है, मगर यह भी सच है कि फिल्मकार ने सिनेमाई स्वतंत्रता का भरपूर उपयोग करते हुए इसे मैलोड्रामा ज्यादा बना दिया.

फिल्म की पटकथा की सबसे बड़ी खासियत यह है कि फिल्मकार ने दिखाया है कि सैरा नरसिम्हा रेड्डी को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ हर बार जीत इसलिए मिलती है, क्योंकि वह दुश्मन से लड़ने के अलावा भीतरघाट करने वाले अपनों की भी पहचान करते रहते हैं. मसलन-बासी रेड्डी (रवि किशन), सैरा नरसिम्हा रेड्डी के साथ होते हुए भी ईस्ट इंडिया कंपनी से मिले हुए हैं और एक दिन वे सैरा नरसिम्हा रेड्डी के पूरे परिवार को खत्म करने की योजना बनाते है, पर सैरा को पता चल जाता है और बासी रेड्डी को मौत की सजा मिलती है.

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फिल्म के कैमरामैन आर रथनावेलु की जितनी तारीफ की जाए ,उतनी कम है.विज्युअल इफेक्ट्स भी अच्छे हैं.

कुल मिलाकर फिल्म एक ऐसी देश प्रेम की कहानी को जीवंत करती है, जो अपने देश और अपने लोगों के लिए, अपने देश और उनके बलिदानों के लिए सैरा के जुनून के बारे में बात करती है. यह एक कहानी है कि कैसे योद्धा ने अपने जीवन और यहां तक कि मृत्यु के साथ भविष्य को बदल दिया.

अभिनयः

चिरंजीवी ने पहली बार कास्ट्यूम ड्रामा वाली फिल्म की है. अपनी बेहतरीन अभिनय क्षमता के बल पर वे सैरा नरसिम्हा रेड्डी को जीवंत करने में सफल रहे हैं. 64 साल की उम्र में उन्होंने इस किरदार को न्यायसंगत तरीके से परदे पर उतारने के लिए अपना दिल और आत्मा लगा दिया. किचा सुदीप की प्रतिभा को जाया किया गया है. नयनतारा के हिस्से करने को कुछ रहा ही नहीं. तमन्ना भाटिया के नृत्य लोगों को याद रह जाते हैं. चिरंजीवी के गुरू की छोटी मेहमान भूमिका में अमिताभ बच्च्न ने उत्कृष्ट अभिनय किया है.

जल्द ही निपटा लें जरूरी काम, 11 दिन बंद रहेंगे बैंक

अक्टूबर का महीना शुरू हो चुका है और इसके साथ ही Festive Season की शुरूआत भी हो चुकी है. दो बड़े त्योहार दशहरा और दिवाली इसी महीने में हैं. जिसके लिए आपको ढेर सारी तैयारी भी करनी होगी. इसलिए बैंक से पैसा निकालने के साथ जरूरी काम भी जल्द ही निबटा लें, क्योंकि अक्टूबर में लगभग 11 दिन बैंक बंद रहेंगे. हालांकि ATM मशीन से भी आप पैसे निकाल सकते हैं लेकिन त्योहार के चलते कभी-कभी यह भी खाली हो जाता है. ऐसे में कैश की कमी त्योहार का मजा किरकिरा कर सकती है.

तीन दिन लगातार बंद रहेंगे बैंक

छुट्टियों की बात करें तो इसकी शुरूआत दो अक्टूबर से ही हो रही है. यहां हम आपको छुट्टियों (Bank Holidays) के बारे में पूरी जानकारी दे रहे हैं. दो अक्टूबर को बैंक बंद रहेंगे क्योंकि इस दिन गांधी जयंती है. वहीं छ:, सात और आठ अक्टूबर को भी बैंक नहीं खुलेंगे. कारण यह है कि 6 को Sunday है और 7 को नवमी. वहीं 8 अक्टूबर को दशहरे की छुट्टी  होगी. इस वजह से आपको परेशानी का सामना करना पड़ सकता है.

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दिवाली में भी चार दिन की छुट्टी

दशहरे के बाद 12 (दूसरे शनिवार) और 26 अक्टूबर (चौथे शनिवार) को भी बैंक बंद रहेंगे. चूंकि दूसरे और चौथे शनिवार को बैंक बंद रहते हैं इसलिए इन दोनों दिन भी कोई काम नहीं होगा. इसके अलावा 13 व 20 अक्टूबर को रविवार है तो जाहिर सी बात है बैंक में काम तो होगा नहीं. यही नहीं अब बारी है दिवाली की छुट्टी की, जी हां दिवाली (Diwali 2019) पर चार दिनों तक बैंक बंद रहेंगे यानी इन दिनों तो आपका कोई काम होने से रहा. वो इसलिए क्योंकि 26 को चौथा शनिवार, 27 को दिवाली (रविवार), 28 को गोवर्धन पूजा तो 29 अक्टूबर को भैया दूज है.

नवंबर में भी लगातार तीन दिन बंद रहेंगे बंद

अभी तक तो हम अक्टूबर की बात कर रहे थे. अब बात करते हैं नवंबर की छुट्टियों की. दरअसल, 9 नवंबर को दूसरा शनिवार तो 10 को रविवार है वहीं 11 नवंबर को गुरूनानक जयंती है. हालांकि 11 को छुट्टी है या नहीं यह भी तक क्लीयर नहीं है. साथ ही ये छुट्टियां हर राज्य के हिसाब से अलग-अलग भी हो सकती हैं.

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मीरा नायर की ‘ए सूटेबल ब्वाय’ सीरीज से जुड़ा इन एक्टर्स का नाम

‘‘मानसून वेडिंग’’,‘‘द नेमसेक’’, ‘‘कतवे की रानी’’ जैसी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराही जा चुकी फिल्मों की सर्जक मीरा नार अब ‘‘बीबीसी वन’’ के लिए छ: एपीसोड वाली वेब सीरीज ‘‘ए सूटेबल ब्वाय’’ की शूटिंग शुरू कर चुकी हैं, जो कि विक्रम सेठ के अंतर्राष्ट्रीय बेस्टसेलर उपन्यास का स्क्रीन रूपांतरण होगा. इसकी पटकथा पुरस्कृत ब्रिटिश पटकथा लेखक एंड्रयू डेविस ने लिखी है. मीरा नायर की इस वेब सीरीज में तान्या मानिकतला, ईशान खट्टर, तब्बू, रसिका दुगल, नमित दास, गगन देव रायार, दानेश रजवी और मिखाइल सेन और महेश कक्कड़ जैसे कलाकार होंगे.

‘‘ए सूटेबल ब्वाय’’ की कहानी 1951 में उत्तर भारत के एक विश्वविद्यालय की उत्साही छात्रा लता के उत्तर भारत में आने की कहानी है. जब देश एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान बना रहा है. किस तरह लता की मां उसके लिए पति को खोजने के लिए दृढ़ है- ‘ए सूटेबल ब्वाय.’ लेकिन परिवार के कर्तव्य और रोमांस की उत्तेजना के बीच फंसी हुई लता, अपने आप ही प्यार और आत्म-खोज की महाकाव्य यात्रा पर निकल पड़ती है.

वेब सीरीज ‘‘ए सूटेबल ब्वाय’’ में लता की भूमिका में नवोदित अभिनेत्री तान्या मानिकतला तथा मान कपूर के किरदार में ईशान खट्टर हैं. जबकि सायदा बाई के किरदार में तब्बू हैं. इसके अलावा ‘मंटो’ और ‘मिर्जापुर’ फेम रसिका दुगल ने इसमें लता की बहन सविता का किरदार निभा रही हैं, जो कि अरेंज मैरिज के पारंपरिक रास्ते पर चलती है. सविता और उनके पति प्राण (गगन देव रौय) लता के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. क्योंकि उनका गहरा बंधन प्यार और इच्छा के बारे में उनके अपने विचारों को प्रश्न बनाता है.

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इस कहानी में सुंदर छात्र और स्टार क्रिकेटर कबीर (दानेश रजवी), विलक्षण कवि अमित (मिखाइल सेन) और महत्वाकांक्षी व आत्मविश्वासी  हरीश (नमित दास) किसी न सिकी मोड़ पर लता के संग विवाह के इच्छुक नजर आएंगे.

लता की मां श्रीमती रूपा मेहरा की भूमिका में माहिरा कक्कड़ नजर आएंगी, जो कि ‘आरेंज द न्यू ब्लैक’, ‘द ब्लैकलिस्ट’, ‘न्यू एम्स्टर्डम’, ‘द बिग सी एंड लौ एंड और्डर’ जैसे अमरीकन शो में अभिनय कर चुकी हैं. वह अमेरिका में थिएटर और टीवी में काम कर रही है, पर ‘ए सूटेबल ब्वाय’ के लिए भारत लौटी हैं.

सविता के किरदार को निभा रही अभिनेत्री रसिका दुगल कहती हैं- ‘मैं हमेशा मीरा नायर की फिल्मों से मंत्रमुग्ध रही हूं. अपने फ्रेम में हर व्यक्ति का ध्यान, उसके काम में संवेदनशीलता, सौम्यता और मस्ती ने मुझे उसकी फिल्मों को बार-बार देखने के लिए प्रेरित किया. वर्षों बाद, जब मुझे एक फिल्म समारोह में न्यूयार्क में मीरा से मिलने का मौका मिला, तो मैंने समझा कि उनकी फिल्मों में मजा कहां से आता है. वह एक दयालु और जीवंत व्यक्ति हैं. उनके साथ काम करना मेरी बकेट लिस्ट में रहा है. ‘ए सूटेबल ब्वाय‘ के साथ जुड़ना मेरे लिए खुशी की बात है.’’

हरेश के किरदार को निभाने वाले नमित दास कहते हैं- ‘‘मेरे लिए ‘ए सूटेबल ब्वाय’ एक ड्रीम प्रोजेक्ट्स में से एक है, जो कोई भी अभिनेता करना चाहेगा. इसमें मैंने इस दुनिया में मेरे पसंदीदा किरदार हरेश खन्ना को निभाया है,जिसे जीनियस विक्रम सेठ ने रचा है.महत्वाकांक्षी हरेश के किरदार में गहराई के साथ कई  परतें हैं,जिसे निभाना बहुत दिलचस्प है. मीरा के साथ मेरा जुड़ाव ‘मॉनसून वेडिंग’के समय से है.मैं वास्तव में उनका आभारी हूं.”

प्राण का किरदार निभा रहे अभिनेता गगन देव रायर कहते हैं- ‘‘मैं बहुत उत्साहित हूं कि मेरी पहली बड़ी स्क्रीन भूमिका मीरा नायर के साथ है और मुझे वास्तव में उम्मीद है कि मैं प्राण कपूर के अपने सपने को पूरा करने में सक्षम हूं. उन्हें कम आंकना आसान है, लेकिन वास्तव में एक बहुत ही दयालु, मजाकिया और बुद्धिमान व्यक्ति है, जिसे सभी से प्यार है.‘‘

कबीर के किरदार को निभा रहे दानेश रजवी ने कहते हैं- ‘‘मीरा नायर और इस तरह के एक प्रतिबद्ध कलाकार और चालक दल के साथ काम करना प्राणपोषक रहा है. यह मेरी पहली बड़ी वेब सीरीज है, जो कि मेरे लिए सीखने की एक महान प्रक्रिया रही है. मेरा किरदार कबीर अपने विश्वविद्यालय में एक स्पोर्ट्स स्टार होने के साथ-साथ लता के सक्सेसर्स और प्यार और जीवन के प्रति उनके भावुक,आवेगी दृष्टिकोण के कारण कुछ ऐसा है, जिसे मैं अच्छी तरह से चित्रित कर रहा हूं. ‘‘

अमित के किरदार को निभा रहे कलाकार मिखाइल सेन कहते हैं- ‘‘मीरा के साथ काम करने का अवसर पाकर मैं खुद को धन्य महसूस करता हूं. कलाकार और क्रू कमाल के हैं! यह बहुत ही शानदार और हिस्सा है. जब मैंने कुछ साल पहले किताब पढ़ी, तो मुझे इसके कई पात्रों से प्यार हो गया और अमित उनमें से एक था. वह विशेष रूप से मेरे साथ रहा क्योंकि वह रहस्यपूर्ण और पेचीदा है. वास्तव में इसे जीवन में लाने के लिए उत्साहित हूं.”

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श्रीमती रूपा मेहरा के किरदार को निभा रही अभिनेत्री माहिरा कक्कड़ कहती हैं- ‘‘रूपा मेहरा एक ऐसी महिला है, जिसमें धैर्य है, जिसमें भावनाओं का गहरा कुआं है. खासकर जब यह उसके परिवार की बात आती है. वह मुझे उन कई महिलाओं की याद दिलाती है, जिन्हें मैं अपनी मां और मां में जानती थी. दादी मां की पीढ़ियां. उनका घर जाना एक उपहार है और महिलाओं को एक श्रद्धांजलि की तरह महसूस करता है, जिन्हें इतनी आसानी से खारिज किया जा सकता था, क्योंकि उनकी चिंताएं उनके परिवार का कल्याण थीं. मैंने पहली बार मीरा नायर जी की कुछ फिल्में देखीं हैं. मुझे उनके साथ ‘मौनसून वेडिंग’ में काम करने का सौभाग्य मिला था.’’

इस छ: भाग की वेब सीरीज के कार्यकारी निर्माता एंड्रयू डेविस, मीरा नायर और विक्रम सेठ हैं. बीबीसी स्टूडियो द्वारा वितरित की जाने वाली वेब सीरीज ‘‘ए सूटेबल ब्वाय’ को लखनऊ और महेश्वर सहित पूरे भारत में कई स्थानों पर फिल्माया जाएगा.

‘बिग बौस 13’: अमीषा पटेल ने घर में मारी धमाकेदार एंट्री, टास्क जीतने की लगी होड़

छोटे पर्दे का मशहूर रियलिटी शो ‘बिग बौस 13’ का आगाज हो चुका है. इस शो का पहला एपिसोड  ही काफी मनोरंजक रहा. जहां एक तरफ पहले ही दिन प्रतिभागियों ने खूब मस्ती धमाल मचाया तो वहीं दूसरी तरफ उनका दूसरा रूप देखने को मिल रहा है. तो आइए आपको बताते हैं, इस धमाकेदार शो में क्या क्या हो रहा है.

‘बिग बौस 13’ के इस सीजन में काफी नए नए बदलाव देखने को मिल रहे हैं. जी हां इस सीजन में काफी कुछ बदल चुका है. जो इससे पहले  बिग बौस के किसी भी सीजन में नही हुआ था. यही वजह है कि इस बार दर्शक “बिग बौस 13” को लेकर काफी उत्साहित नजर आ रहे हैं. अब भला दर्शकों का उत्साहित होना तो बनता है क्योंकि इस बार तो घर में जाने से पहले ही सदस्यों ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया था और  इनका यह सिलसिला अभी भी रुका नहीं है.

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आपको बता दें, ‘बिग बौस 13’ के इस सीजन में पहले दिन की शुरूआत ‘अमीशा पटेल’ के गाने कहो न प्यार है… से हुई. जिसके कुछ समय बाद ही अमीशा पटेल ने घर में धमाकेदार एंट्री मारी. सारे कंटेस्टेंट अमीशा को इस तरह से घर में देखकर काफी हैरान नजर आए. अमीशा ने आते ही बताया कि, वह बिग बौस के घर की मालकिन है और जो भी वह कहेगी, सभी सदस्यों को उनका कहा मानना ही पड़ेगा.

तो दूसरी ओर घर में राशन नहीं था. सभी लोगों ने अमीशा पटेल से राशन की मांग की. वैसे घर में कोई भी चीज आसानी से तो नहीं मिलने वाली. यही वजह है कि, राशन के लिए अमीशा पटेल ने घर की सभी जोड़ियों को एक टास्क करने के लिए कहा जिसमें सबको अपने मुंह से सामान उठा कर दूसरे सदस्य को देना था. घर के सभी लोगों को ऐसा करते देखना काफी मजेदार था.

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तो वहीं दूसरी तरफ सिद्धार्थ शुक्ला और रश्मि देसाई के बीच भी  नोक- झोक देखने को मिली. इन दोनों का रिएक्शन खुल कर सामने नहीं आया है लेकिन इन दोनों के नोक-झोक से इतना तो साफ है कि, दोनों को एक ही बेड शेयर करने में काफी परेशानी है. ऐसे में अपकमिंग एपिसोड्स में देखना दिलचस्प होगा कि इन दोनों के बीच में आखिर होता क्या है.

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’: कार्तिक ने नायरा को भेजा कायरव की कस्टडी का नोटिस!

स्टार प्लस का मशहूर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’  में  हाई वोल्टेज ड्रामा चल रहा है. जी हां आपने पिछले एपिसोड में देखा कि वेदिका को नायरा सुसाइड करने से बचाती है, उसके बाद नायरा से वेदिका पूछती है कि मैं क्या करूं?  मुझे लगा था मैं कार्तिक पत्नी हूं. पर तुम्हारे आने के बाद मैं कुछ भी नहीं रही.

ये सारी बातें सुनने के बाद नायरा, वेदिका को तलाक के पेपर्स पकड़ाती है. जिसे देखकर वेदिका दंग रह जाती है और नायरा को ‘थैंक यू’ बोलती है.  इसके अलावा वो नायरा को सौरी भी बोलती है.

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इसके बाद वहां नायरा अस्पताल जाती है और वो उन्हें कायरव का फिटनेस सर्टिफिकेट बनाने को कहती है, जिससे वो कायरव को बाहर ले सके. इसके बाद हौस्पिटल वालों ने कार्तिक को भी कायरव को फिटनेस सर्टिफिकेट मेल कर दिया, जिसमें ये लिखा होता है कि कायरव अब शहर से बाहर जा सकता है.

उधर नायरा कार्तिक को फोन करती है और कायरव के बारे में बताना चाहती है. लेकिन कार्तिक फोन नहीं उठाता है. वो मेल चेक करता है और उसके होश उड़ जाते हैं, बाकी घरवाले भी मेल देखते हैं. सब नायरा पर बहुत गुस्सा करते हैं.

तो दूसरी ओर कार्तिक गुस्से में घर से बाहर निकलता है. और उधर नायरा का भेजा डिवोर्स लेटर भी मिल जाता है, वो बहुत गुस्से में गाड़ी निकालता है और चला जाता है. नायरा अपने घरवालों से कहती है कि वो इस बार कायरव को छिपकर नहीं ले जाएगी बल्कि कार्तिक को बताकर ले जाएगी.

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अपकमिंग एपिसोड में आप ये देखेंगे कि कार्तिक, नायरा को डिवोर्स पेपर के जवाब में लीगल नोटिस देता है और कहता है कि अब हम डिवोर्स का केस के साथ-साथ बच्चे की कस्टडी का केस भी लड़ेंगे.

रातों का खेल: भाग 2

रातों का खेल: भाग 1

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आखिरी भाग

लीड जैक इंफोकाम और सर्वर के माध्यम से एक साथ 10 हजार अमेरिकी नागरिकों को वायस मैसेज भेजा जाता था. मैसेज द यूनाइटेड स्टेट्स सोशल सिक्योरिटी एडमिनिस्ट्रेशन अधिकारी की तरफ से भेजा जाता था, जिस में कभी कर चोरी तो कभी उन की गाड़ी के आपराधिक मामले में इस्तेमाल किए जाने की रिपोर्ट से संबंधित वायस मैसेज होता था. इस के अलावा ऐसे ही कई दूसरे मामलों में उन के खिलाफ शिकायत मिलने की बात कह कर एक टोल फ्री नंबर पर कौन्टैक्ट करने को कहा जाता था.

वायस मैसेज भेजने वाली नौर्थ ईस्ट की लड़कियां इस लहजे में मैसेज देती थीं कि कोई भी अमेरिकी नागरिक उस के अंगरेजी बोलने के लहजे से यह नहीं सोच सकता था कि वह किसी भारतीय लड़की की आवाज है.

इस के लिए मैजिक जैक डिवाइस का उपयोग किया जाता था. मैजिक जैक एक ऐसी डिवाइस है जिसे कंप्यूटर व लैंडलाइन फोन से कनेक्ट कर विदेशों में काल कर सकते हैं. इस से विदेश में बैठे व्यक्ति के फोन पर फेक नंबर डिसप्ले होता है. यह वायस ओवर इंटरनेट प्रोटोकाल (वीओआईपी) के प्लेटफार्म पर चलती है. इस से अमेरिका और कनाडा में काल कर सकते हैं और रिसीव भी कर सकते हैं.

एसपी जितेंद्र सिंह के अनुसार ठगी का कारोबार 3 स्तर पर पूरा होता था. ऊपर बताया गया काम डायलर का होता था. इस के बाद काम शुरू होता था ब्रौडकास्टर का. जिन 10 हजार अमेरिकी नागरिकों को फरजी तौर पर द यूनाइटेड स्टेट्स सोशल सिक्योरिटी एडमिनिस्ट्रेशन अधिकारी की ओर से नियम तोड़ने या किसी अपराध से जुड़े होने की शिकायत मिलने का फरजी वायस मैसेज भेजा जाता था, उन में से कुछ ऐसे भी होते थे जिन्होंने कभी न कभी अपने देश का कोई कानून तोड़ा होता था.

इस से ऐसे लोग और कुछ दूसरे लोग डर जाने के कारण मैसेज में दिए गए नंबर पर फोन करते थे. इन काल को ब्रौडकास्टर रिसीव करता था, जो प्राय: नार्थ ईस्ट की कोई युवती होती थी.

आमतौर पर ऐसे लोगों द्वारा किए जाने वाले संभावित सवालों का अनुमान उन्हें पहले से ही होता था, इसलिए ब्रौडकास्टर युवती सामने वाले को कुछ इस तरह संतुष्ट कर देती थी कि अच्छाभला आदमी भी खुद को अपराधी समझने लगता था. जब कोई अमेरिकी जाल में फंस जाता था, तो उस के काल को तीसरी स्टेज पर बैठने वाले क्लोजर को ट्रांसफर कर दिया जाता था.

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यह क्लोजर पहले तो विजिलेंस अधिकारी बन कर अमेरिकी लैंग्वेज में कठोर काररवाई के लिए धमकाता था, फिर उसे सेटलमेंट के मोड पर ला कर गिफ्ट कार्ड, वायर ट्रांसफर, बिटकौइन और एकाउंट टू एकाउंट ट्रांजैक्शन के औप्शन दे कर डौलर ट्रांसफर के लिए तैयार कर लेता था.

इस के बाद गिफ्ट कार्ड के जरिए अमेरिकी खातों में डौलर में रकम जमा करवा कर उसे हवाला के माध्यम से भारत मंगा कर जावेद और राहिल खुद रख लेते थे. हवाला से रकम भेजने वाला 40 प्रतिशत अपना हिस्सा काट कर शेष रकम जावेद को सौंप देता था.

एसपी जितेंद्र सिंह के अनुसार यह गिरोह रोज रात को कालसेंटर खुलते ही एक साथ नए 10 हजार अमेरिकी लोगों को फरजी वायस मैसेज भेजने के बाद फंसने वाले लोगों से लगभग 3 से 5 हजार डौलर यानी लगभग 3 लाख की ठगी कर सुबह औफिस बंद कर अपने घर चले जाते थे.

अनुमान है कि जावेद और राहिल के गिरोह ने अब तक लगभग 20 हजार से अधिक अमेरिकी नागरिकों से अरबों रुपए ठगे होंगे. उस के पास 10 लाख दूसरे अमेरिकी नागरिकों का डाटा भी मिला, जिन्हें ठगी के निशाने पर लिया जाना था.

गिरोह का दूसरा मास्टरमाइंड राहिल छापेमारी की रात अहमदाबाद गया हुआ था, इसलिए वह पुलिस की पकड़ से बच गया जिस की तलाश की जा रही है. राहिल के अलावा संतोष, मिनेश, सिद्धार्थ, घनश्याम तथा अंकित उर्फ सन्नी चौहान को भी पुलिस तलाश रही है, जो इस फरजी कालसेंटर को 12 से 14 रुपए प्रति अमेरिकी नागरिक का डाटा उपलब्ध कराते थे.

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कहानी सौजन्य: मनोहर कहानी

निशान : भाग 2

मां ने हड़बड़ाते हुए रसोई से आ कर राकेश की ओर प्रश्नवाचक निगाहों से देखा तो उस ने मन की भड़ास निकाल दी. 16 साल का राकेश मां से अपने पिता के व्यवहार की शिकायत कर रहा था और मां मौके की नजाकत भांप कर बेटे को समझा रही थीं.

‘‘बेटा, मैं तुम्हारे पापा से बात करूंगी कि इस बात का ध्यान रखें. वैसे बेटा, तुम यह तो समझते ही हो कि वे तुम से कितना प्यार करते हैं. तुम्हारी हर फरमाइश भी पूरी करते हैं. अब गुस्सा आता है तो वे खुद को रोक नहीं पाते. यही कमी है उन में कि जराजरा सी बात पर गुस्सा करना उन की आदत बन गई है. तुम उसे दिल पर मत लिया करो.’’

‘‘रहने दो मां, पापा को हमारी फिक्र कहां, कभी भी, कहीं भी हमारी बेइज्जती कर देते हैं. दोस्तों के सामने ही कुछ भी कह देते हैं. तब यह कौन देख रहा है कि वे हमें कितना प्यार करते हैं. लोग तो हमारा मजाक बनाते ही हैं.’’

राकेश अभी भी गुस्से से भनभना रहा था और उस की मां सरला माथा पकड़ कर बैठ गई थीं, ‘‘मैं क्या करूं, तुम लोग तो मुझे सुना कर चले जाते हो पर मैं किस से कहूं? तुम क्या जानो, अगर तुम्हारे पिता के पास कड़वे बोल न होते तो दुख किस बात का था. उन की जबान ने मेरे दिल पर जो घाव लगा रखे हैं वे अभी तक भरे नहीं और आज तुम लोग भी उस का निशाना बनने लगे हो. मैं तो पराई बेटी थी, उन का साथ निभाना था, सो सब झेल गई पर तुम तो हमारे बुढ़ापे की लाठी हो, तुम्हारा साथ छूट गया तो बुढ़ापा काटना मुश्किल हो जाएगा. काश, मैं उन्हें समझा सकती.’’

तभी परदे के पीछे सहमी खड़ी मासूमी धड़कते दिल से मां से पूछने लगी, ‘‘मां, क्या हुआ, भैया को गुस्सा क्यों आ रहा था?’’

‘‘नहीं बेटा, कोई बात नहीं, तुम्हारे पापा ने उसे डांट दिया था न, इसीलिए कुछ नाराज था.’’

‘‘मां, आप पापा से कुछ मत कहना. बेकार में झगड़ा शुरू हो जाएगा,’’ डर से पीली पड़ी मासूमी ने धीरे से कहा.

‘‘तू बैठ एक तरफ,’’ पहले से ही भरी बैठी सरला ने कहा, ‘‘उन से बात नहीं करूंगी तो जवान बेटों को भी गंवा बैठूंगी. क्या कर लेंगे? चीखेंगे, चिल्लाएंगे, ज्यादा से ज्यादा मार डालेंगे न, देखूंगी मैं भी, आज तो फैसला होने ही दे. उन्हें सुधरना ही पड़ेगा.’’

सरला जब से ब्याह कर आई थीं उन्होंने सुख महसूस नहीं किया था. वैसे तो घर में पैसे की कमी नहीं थी, न ही सुरेशजी का चरित्र खराब था. बस, कमी थी तो यही कि उन की जबान पर उन का नियंत्रण नहीं था. जराजरा सी बात पर टोकना और गुस्सा करना उन की सब से बड़ी कमी थी और इसी कमी ने सरला को मानसिक रूप से बीमार कर दिया था.

वे तो यह सब सहतेसहते थक चुकी थीं, अब बच्चे पिता की तानाशाही के शिकार होने लगे हैं. बच्चों को बाहर खेलने में देर हो जाती तो वहीं से गालियां देते और पीटते घर लाते, उन के पढ़ने के समय कोई मेहमान आ जाता तो सब को एक कमरे में बंद कर यह कहते हुए बाहर से ताला लगा देते, ‘‘हरामजादो, इधर ताकझांक कर के समय बरबाद किया तो टांगें तोड़ दूंगा. 1 घंटे बाद सब से सुनूंगा कि तुम लोगों ने क्या पढ़ा है? चुपचाप पढ़ाई में मन लगाओ.’’

उधर सरला उस डांट का असर कम करने के लिए बच्चों से नरम व्यवहार करतीं और कई बार उन की गलत मांगों को भी चुपचाप पूरा कर देती थीं. पर आज तो उन्होंने सोच रखा था कि वे सुरेशजी को समझा कर ही रहेंगी कि जब बाप का जूता बेटे के पैर में आने लगे तो उस से दोस्त जैसा व्यवहार करना चाहिए. वरना कल औलाद ने पलट कर जवाब दे दिया तो क्या इज्जत रह जाएगी. औलाद भी हाथ से जाएगी और पछतावे के सिवा कुछ नहीं मिलेगा.

अपने विचारों में सरला ऐसी डूबीं कि पता ही नहीं चला कि कब सुरेशजी घर आ गए. घर अंधेरे में डूबा था. उन्होंने खुद बत्ती जलाई और उन की जबान चलने लगी :

‘‘किस के बाप के मरने का मातम मनाया जा रहा है, जो रात तक बत्ती भी नहीं जलाई गई. मासूमी, कहां है, तू ही यह काम कर दिया कर, इन गधों को तो कुछ होश ही नहीं रहता.’’

फिर उन्होंने तिरछी नजरों से सरला को देखा, ‘‘और तुम, तुम्हें किसी काम का होश है या नहीं? चायपानी भी पिलाओगी या नहीं? मासूमी, तू ही पानी ले आ.’’

उधर मासूमी मां की आड़ में छिपी थी. उस का दिल आज होने वाले झगड़े के डर से कांप रहा था. फिर भी उस ने किसी तरह पिता को पानी ला कर दिया. पानी पीते उन्होंने मासूमी से पूछा, ‘‘इन रानी साहिबा को क्या हुआ?’’

मासूमी के मुंह से बोल नहीं फूटे तो हाथ के इशारे से मना किया, ‘‘पता नहीं.’’

‘‘वे दोनों नवाबजादे कहां हैं?’’

‘‘पापा, बड़े भैया का आज मैच था. वे अभी नहीं आए हैं और छोटे किसी दोस्त के यहां नोट्स लेने गए हैं,’’ किसी अनिष्ट की आशंका मन में पाले मासूमी डरतेडरते कह रही थी.

‘‘हूं, ये सूअर की औलाद सोचते हैं कि बल्ला घुमाघुमा कर सचिन तेंदुलकर बन जाएंगे और दूसरा नोट्स का बहाना कर कहीं आवारागर्दी कर रहा है, सब जानता हूं,’’ सुरेशजी की आंखें शोले बरसाने को तैयार थीं.

बस, इसी अंदाज पर सरला कुढ़ कर रह जाती थीं. उन की आत्मा तब और छलनी हो जाती जब बच्चे पिता की इस ज्यादती का दोष भी उन के सिर मढ़ देते कि मां, अगर आप ने शुरू से पिताजी को टोका होता या उन का विरोध किया होता तो आज यह नौबत ही नहीं आती. मगर वे बच्चों को कैसे समझातीं, यहां तो पति के विरोध में बोलने का मतलब होता है कुलटा, कुलक्षिणी कहलाना.

वे तब उस इनसान की पत्नी बन कर आई थीं जब पुरुष अपनी पत्नियों को किसी काबिल नहीं समझते थे घर में उन की कोई अहमियत नहीं होती थी, न ही बच्चों के सामने उन की इज्जत की जाती थी. वरना सरला यह कहां चाहती थीं कि पितापुत्र का सामना लड़ाईझगड़े के सिलसिले में हो और इसीलिए सरला ने खुद बहुत संयम से काम ले कर पितापुत्र के बीच सेतु बनने की कोशिश की थी.

उन्होंने तो जैसेतैसे अपना समय निकाल दिया था पर अब नया खून बगावत का रास्ता अपनाने को मचल रहा था और इसी के चलते घर के हालात कब बिगड़ जाएं, कुछ भरोसा नहीं था और इन सब बातों का सब से बुरा असर मासूमी पर पड़ रहा था.

मासूमी मां की हमदर्द थी तो पिता से भी उसे बहुत स्नेह था, लेकिन जबतब घर में होने वाली चखचख उस को मानसिक रूप से बीमार करने लगी थी. स्कूल जाती तो हर समय यह डर हावी रहता कि कहीं पिताजी अचानक घर न आ गए हों क्योंकि राकेश भाई अकसर स्कूल से गायब रहते थे…और घर में रहते तो तेज आवाज में गाने सुनते थे…इन दोनों बातों से पिता बुरी तरह चिढ़ते थे.

मां राकेश को समझातीं तो वह अनसुनी कर देता. उसे पता था कि पिता ही मां की बातों पर ध्यान नहीं देते हैं इसलिए उन का क्या है बड़बड़ करती ही रहेंगी. ऐसे में किसी अनहोनी की आशंका मासूमी के मन को सहमाए रखती और स्कूल से घर आते ही उस का पहला प्रश्न होता, ‘मां, पापा तो नहीं आ गए? भैया स्कूल गए थे या नहीं? पापा ने प्रकाश भाई को क्रिकेट खेलते तो नहीं पकड़ा? दोनों भाइयों में झगड़ा तो नहीं हुआ?’

मां उसे परेशानी में देखतीं तो कह देती थीं, ‘क्यों तू हर समय इन्हीं चिंताओं में जीती है. अरे, घर है तो लड़ाई झगड़े होंगे ही. तुझे तो बहुत शांत होना चाहिए, पता नहीं तुझे आगे कैसा घरवर मिले.’

मगर मासूमी खुद को इन बातों से दूर नहीं रख पाती और हर समय तनावग्रस्त रहतेरहते ही वह स्कूल से कालेज में आ गई थी और आज फिर वह दिन आ गया था जो किसी आने वाले तूफान का संकेत दे रहा था.

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