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‘बिग बौस 13’: लड़कियों को शेयर करना पड़ेगा लड़कों के साथ बेड

कलर्स चैनल पर प्रसारित होने वाला रियलिटी शो ‘बिग बौस सीजन 13’ का आगाज हो चुका है.  इस बार ‘शो’ का कौन्सेप्ट काफी अलग है. वैसे आपको बता दें इस बार जब बिग बौस लौन्च हुआ तो ज्यादा देर कौन्टेस्टेंट से डांस नहीं करवाया गया. सीधा कौंटस्टेंट को दर्शकों से मिलवा दिया गया. जी हां, ‘बिग बौस 13’ के घर में इस बार 5 लड़के हैं.  और खास बात यह है कि इस बार बिग बौस के घर में काम पहले दिन ही काम बांट दिए गए हैं.

इस सीजन की खास बात ये है कि लड़कियों को जो काम दिया गया है, उनके पास ये औप्शन भी है कि वो इन 5 में से किसी भी एक लड़के को अपने मदद के लिए चुन सकती हैं. अधिकतर लड़कियों ने सिद्धार्थ शुक्ला को ही अपने काम के लिए पार्टनर चुना.  जिन्हें एक भी काम के लिए पार्टनर नहीं चुना गया है, वो हैं अनु मलिक के भाई अबु मलिक.

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‘बिग बौस 13’  के  लिए एक खास रूल बनाया गया है.  चलिए बताते है आपको. तो इस बार सलमान खान ने पहले ही दिन सभी लड़कियों को अपना बीएफएफ यानी ‘बेड फ्रेंड फौरएवरट यानी बेड पार्टनर चुनना था. लड़कियों को चुनते वक्त ये नहीं पता था कि सामने वाला लड़का है या लड़की. लेकिन जब बैंड लेकर लड़कियां अंदर घुसी तो पता चला कि आपस में किसी लड़की को बेड नहीं शेयर करना है बल्कि लड़की को जिनके साथ बेड शेयर करना है वो लड़के होंगे. जी हां, इस बार लड़कियों को लड़कों के साथ बेड शेयर करना पड़ सकता है.

आपको बता दें, वैसे अब तक सिर्फ दो कंटेस्टेंट का नाम सामने आया है जिन्हें बेड शेयर करना है. वो हैं सिद्धार्थ शुक्ला और रश्मि देसाई. दोनों इससे पहले कलर्स के सीरियल में पति-पत्नी के रोल में थे, रश्मि को जब ये बात पता चली कि उन्हें सिद्धार्थ के साथ बेड शेयर करना है वो असहज हो गईं. अपकमिंग एपिसोड में देखना दिलचस्प होगा कि आगे क्या होने वाला है.

इस शो में कंटेस्टेंट के तौर पर कोएना मित्रा, आरती सिंह, दलजीत कौर, पारस छाबड़ा, आसिम रियाज, अबु मलिक, सिद्धार्थ डे, रश्मि देसाई देवोलीना भट्टाचार्जी, सिद्धार्थ शुक्ला जैसे सितारें प्रतिभागी है.

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बिहार में बाढ़ : कुदरत के कहर पर सियासी घमासान

बिहार के पटना स्थित कंकङबाग के एक कालोनी में पिछले 4 दिनों से रामसरूप अपने परिवार को दो जून का खाना नहीं दे पा रहा. उस की 4 साल की बेटी है जो बारिश में भीग कर बीमार हो चुकी है पर पास में पैसे नहीं हैं. और तो और अपनी बेटी को अस्पताल ले जाने पर भी आफत है. पूरा पटना डूबा पङा है और अधिकतर अस्पतालों के अंदर भी पानी जमा है.

रामसरूप एक गुमटी में चाय की दुकान चलाता है मगर यह गुमटी लगातार हो रही बारिश में कहां गया उसे खुद पता नहीं.

राजधानी पटना की पौश कालोनी राजेंद्र नगर की एक तसवीर तो सोशल मीडिया में खूब वायरल है, जिस में एक बुजुर्ग अपनी बुजुर्ग पत्नी को ठेले पर कुरसी पर बैठा कर सुरक्षित स्थान की तलाश में है.

हाल ही में पटना से लौटे आम आदमी पार्टी नेता मृत्युंजय श्रीवास्तव ने बताया,”बिहार में बङा ही हृदयविदारक दृश्य है और पटना की हालत तो बेहद खराब. कम आमदनी वाले लोग जो मजदूरी कर पेट पालते हैं, उन्हें न तो खाना मिल पा रहा न साफ पानी. पटना जंक्शन पर पानी जमा है और ट्रेनों की आवागमन भी प्रभावित है.”

उन्होंने बताया,”वहां घोर अव्यवस्था है और सुध लेने वाला कोई नहीं.”

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कुदरत का कहर

“इस असमय बारिश ने पिछले 40 साल का रिकौर्ड तोङ दिया है. 1976 में भी इतने बेकार हालात नहीं थे,” यह कहना है बिहार जदयू के प्रदेश महासचिव इंजी. शंभूशरण का.

उन्होंने बताया कि लगातार बारिश से बिहार के कई जिलों में बाढ की स्थिति बन गई है. लगातार हो रही इस भारी बारिश की वजह से 15 जिलों में रेड अलर्ट घोषित किया गया है. जिलों में स्कूलों और आंगनबाड़ी केंद्रों को फिलहाल बंद कर दिया गया है. बिहार के अधिकतर भूभाग में पानी है और खेत डूब चुके हैं. फसल खराब हो गई है और इंसान के साथसाथ जानवरों तक का जीना मुहाल बन चुका है.”

लाखों लोग प्रभावित

उधर राज्य के आपदा प्रबंधन ने मीडिया को जानकारी देते हुए बताया,”लगातार बारिश से राज्य के लाखों लोग प्रभावित हैं. प्रभावित इलाकों में बोट चलाए जा रहे हैं और लोगों को बोट व ट्रैक्टरों से सुरक्षित स्थानों पर ले जाया जा रहा है.”

इस असमय बारिश ने राजधानी पटना सहित सहरसा, सुपौल,अररिया, फारबिसगंज, जोगबनी, पुर्णियां, कटिहार आदि जिलों में अभी भी अलर्ट जारी किया गया है भारी बारिश की चेतावनी जारी की गई है.

अकेले राजधानी पटना में 36 बोट, 75 ट्रैक्टर चला कर 26 हजार से अधिक लोगों को ररैस्क्यू कर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है.

पटना शहर में तो कहीं कहीं 8 फीट तक पानी जमा हो चुका है और पहली मंजिल पूरी तरह डूब चुका है.

इस कुदरती कहर से अब तक 29 लोगों की मौत हो चुकी है.

सीएम की आपात बैठक पर सियासी घमासान

इस बीच बिहार में आपात स्थिति को देखते हुए सीएम नीतीश कुमार ने आपदा प्रबंधन विभाग के साथ बैठक की और कई जिलों के डीएम से वीडियो कौन्फ्रेंसिंग के जरीए हालात की जानकारी तो ली पर मीडिया से बातचीत में सीएम के एक बयान से सियासी विपक्षी पार्टियों ने उन्हें निशाने पर ले कर खूब खिंचाई की है. विपक्ष आरोप लगा रहे हैं कि एक तरफ पूरे बिहार में हाहाकार मचा है, लेकिन नीतीश कुमार ने सिवाए कुछ करने के इसे प्राकृतिक आपदा बता कर पल्ला झाङ लिया.

राष्ट्रीय जनता दल के नेता व पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने नीतीश सरकार की आलोचना की है और उचित प्रबंधन न करने पर सरकार को आङे हाथों लिया है.

विपक्ष के इस आरोप के पीछे कुछ सचाई भी है क्योंकि बिहार में पिछले 10 सालों से अधिक जदयू और भाजपा के गठबंधन में सरकार रही है. अभी भी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं और भाजपा के साथ गठबंधन में सरकार चल रही है. इस सरकार में भाजपा के विधायक को भी मंत्री बनाया गया है.

हालांकि इस से पहले नीतीश कुमार की पार्टी जदयू लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल के साथ मिल कर बिहार में सरकार बनाई थी पर बाद में अधिक समय तक यह गठबंधन चली नहीं और टूट गई. तब नीतीश कुमार ने भाजपा के समर्थन से सरकार बनाई थी.

हालांकि इस से पहले की पटकथा स्वयं नीतीश कुमार ने ही लिखी थी और अपने कई भाषणों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ में कसीदे पढ़े थे. कुमार ने तब भी बिहार की जनता को सुरक्षा, संरक्षा और तरक्की दिलाने की बात कही थी पर उस के बाद न तो बिहार की स्थिति सुधरी, न रोजगार बढे और न ही गांवोंशहरों का विकास हुआ.

रहीसही कसर बारिश और बाढ पूरी कर देता है. इस आपदा में बिहार के तमाम जगहों के साथ राजधानी पटना भी झील में तब्दील हो चुका है.

जलमग्न है कई इलाके

दिक्कत तो यह कि पटना के कई अस्पतालों में भी पानी भर चुका है और नालंदा मेडिकल कालेज एवं अस्पताल में जलजमाव होने से मरीजों का पलायन भी शुरू हो गया है. मरीजों को ले जाने के लिए स्ट्रैचर पानी में पूरी तरह डूबा नजर आया, तो वहीं पटना के बहादुरपुर, भूतनाथ रोड, आर ब्लौक स्टेशन रोड आदि जगहों में सड़कों पर पानी लग जाने से यातायात व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है. जलजमाव से नाले का गंदा पानी और कचड़ा सड़कों पर आ गया है.

इस बारिश ने पटना नगर निगम की सफाई व्यवस्था की भी पोल खोल कर रख दी है. पर सचाई यह भी है कि नालों में जमा कचरा पानी का निकासी नहीं होने देते और प्रदूषण फैलाते हैं. सरकार ने हालांकि जागरूकता अभियान चला कर लोगों से प्लास्टिक के कचरे को नालियों व सङकों पर न फेंकने की अपील पहले भी की है पर शहरी आबादी बढने और उचित मास्टरप्लान न होने की वजह से यह कचरा अब किसी भी शहर के लिए खतरा बन चुका है.

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बाढ़ और बालू का इतिहास

यों, बिहार में बाढ आमतौर पर नेपाल से पानी छोङे जाने और बिहार का शोक कोसी नदी के असमय मार्ग परिवर्तन से भी आती है पर इस समय राज्य के अधिकतर हिस्सों में बारिश इतनी अधिक हो रही है कि कई नदियां उफान पर हैं और कई छोटेबड़े बांध को तोङ कर पानी गांवोंशहरों में घुस गया है.

वैसे बिहार और बाढ पर राजनीति भी खूब होती रही है और हर सरकार जनता से यह वादा करती है कि बेतरतीब और कमजोर बांधों को मजबूत बनाया जाएगा, शहरों में पानी का निस्तारण उचित ढंग से किया जाएगा पर होता जमीनी रूप से कुछ भी नहीं.

सरकार की नींद भी तब तक नहीं खुलती जब तक राज्य की जनता बरबादी को झेलते मौत के गाल में समा न जाती हो. तब भी सिर्फ राज्य और केंद्र के मंत्री सिर्फ दौरा कर के और चंद घोषणाओं की झड़ी लगा कर वादों का पिटारा लिए वापस चले जाते हैं पर जमीनी तौर पर होता कुछ नहीं. बिहार में बाढ़ नेपाल द्वारा छोङे गए पानी की वजह से भी आती है पर इस दिशा पर भी कभी कोई ठोस पहल नहीं की गई है.

मौसम विभाग का अलर्ट

अब मौसम विभाग ने राज्य में अगले 48 घंटे में भारी बारिश का अनुमान जताया है और प्रशासन को अलर्ट कर दिया गया है. भागलपुर में भारी बारिश की संभावना जताई जा रही है. बताया जाता है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भारी बारिश के मद्देनजर प्रभावित जिलों के जिलाधिकारियों से वीडियो कौन्फ्रेंसिंग कर हालात का जायजा लेंगे. इधर, राजधानी में बारिश के कारण पटना यूनिवर्सिटी में होने वाली प्रवेश परीक्षा स्थगित कर दी गई है. इस के अलावा बीएड, पीएचडी की परीक्षा भी रद्द कर दी गई है. साथ ही शहर में होने वाली प्रतियोगिताओं को भी अगली सूचना तक के लिए रद्द कर दिया गया है.

हेल्पलाइन नंबर जारी

सरकार ने राजधानी पटना का हेल्पलाइन नंबर भी जारी किया है-

राजेंद्र नगर : 947319129 या 9006192686, एसडीआरएफ अधिकारी : 9110099313, कदमकुआं : 8210286544 या 9431295882, एसडीआरएफ अधिकारी : 9801598289, पत्रकार नगर :  7992297183, एनडीआरएफ अधिकारी : 9973910810, कंकड़बाग  : 6203674823, एसडीआरएफ अधिकारी : 8541908006, पटना सिटी  : 7903331869

रिलेशनशिप को ग्रांटेड मानकर नही चलना चाहिए: ऐली अवराम

स्वीडिश अभिनेत्री मारिया ग्रानलुंड की बेटी और स्वीडिश अदाकारा ऐली अवराम ने 2012 में मुंबई पहुंचते ही  मनीष पौल के साथ कौमेडी फिल्म ‘‘मिकी वायरस’’ में नजर आयी थी, तो उनकी संवाद अदाएगी से किसी को अहसास नहीं हुआ था कि वह भारतीय नहीं, बल्कि स्वीडन की रहने वाली स्वीडिष अदाकारा हैं. ऐली अवराम ने अपनी पहली ही फिल्म से लोगों को अपनी आकर्षक सुंदरता और संवाद अदायगी से प्रभावित कर लिया था. उसके बाद ‘‘बिग बौस सीजन 7’’ ने रातों रात स्टार बना दिया. बहरहाल, अब तो उनकी गिनती एक बेहतरीन व सफल बौलीवुड अदाकारा के रूप में होने लगी है. महज सात वर्ष के करियर में वह सिर्फ हिंदी भाषी फिल्मों तक ही सीमित नही है, बल्कि तमिल व कन्नड़ भाषा का सिनेमा भी कर रही हैं. इन दिनों वह तीस सितंबर से ‘‘औल्ट बालाजी’’और ‘‘जी 5’’ पर एक साथ स्ट्रीमिंग होने वाली वेब सीरीज ‘‘वर्डिक्ट आफ स्टेट वर्सेस नानावटी’’ को लेकर चर्चा में हैं, जिसमें उन्होंने सिल्विया नानावटी का किरदार निभाया है.

हाल ही में ऐली अवराम से हिंदी भाषा में उनके बौलीवुड व भारतीय संस्कृति के प्रति प्रेम के अलावा उनके करियर को लेकर एक्सक्लूसिव बातचीत हुई…

आप स्वीडन से हैं. आपकी मम्मी अभिनेत्री और आपके पिता संगीतकार हैं. दोनों में से किसने आपको सबसे ज्यादा इंस्पायर किया? और किस बात के लिए किया है?

मुझे लगता है कि मेरी मां ने मुझे इंस्पायर किया है. क्योंकि वह बहुत ही ज्यादा आर्टिस्टिक हैं. यूं तो मेरे पिता भी आर्टिस्टिक हैं, पर मेरी मं कुछ ज्यादा ही आर्टिस्टिक हैं. वह अभिनेत्री हैं. वह गाती भी हैं. कहानी सुनाती/स्टोरी ट्रेलर हैं. वह डांस भी करती हैं. उनको सब कुछ आता है. मेरे हिसाब से मुझे लगता है कि जब मैं बच्ची थी, तो मैंने शायद अपनी मां को यह सब करते हुए देखा और उनसे प्रभावित हुई. इतना प्रभावित हुई कि यह सब मुझे भी अच्छा लगने लगा. शायद मैंने अपनी मौम को बहुत कौपी भी किया है. जब मैं छोटी थी, तो कभी मैंने मौम के कपड़े ले लिए, मैंने उनकी शौल्स वगैरह कुछ ले ली, उससे मैंने कुछ बनाया और मैं गार्डन में खेलने लगती थी. मैं खुद का प्ले/नाटक बनाती थी. मैं गाना गाने लगी थी. मैं गार्डेन में नृत्य कर रही थी. मैं खेलती थी कि अभी मैं प्रिंसेस हूं. उसके बाद मैंने एक काला कपड़ा डाला और बोला कि अभी मैं व्हिच/भूत हूं. तो मैंने अपनी खुद की ही कई मनगढंत कहानी बनायी. यह सब कुछ मुझे लगता है कि मुझे मेरी मौम से विरासत में मिला. उनके कई नाटक मैंने देखा. अपनी मां को काम करते देखकर मैंने उसे अपने अंदर एक्सप्लोर किया. जब मेरी मां थिएटर करती थी, तब मुझे अच्छा लगता था.

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कभी भी आपकी मम्मी ने आपके अभिनय को देखकर कुछ कमेंट किया?

जी हां!! अभी जैसे मेरा यह वेब सीरीज ‘वर्डिक्ट आफ स्टेट वर्सेस नानावटी’ का ट्रेलर देखा है, यह उनको बहुत बहुत अच्छा लगा. मतलब वह बहुत प्राउड फील कर रही हैं. मुझे संजीदा अभिनय करते हुए देखना उन्हें बहुत अच्छा लगता है.

आपने स्वीडन में भी नृत्य व अभिनय किया. वहां पर थिएटर व फिल्मों में अभिनय किया. तो फिर बौलीवुड से जुड़ने की बात आपके दिमाग में कैसे आयी? किस बात ने आपको बौलीवुड से जुड़ने के लिए इंस्पायर किया?

मेरे अंदर जाने अनजाने बौलीवुड के प्रति लगाव तो पांच साल की उम्र में ही हो गया था. वास्तव में  जब मैं 5 साल की थी, तब मैंने टीवी पर एक बौलीवुड गाना देखा था. वह गाना कौन सा था, यह याद नही है. मुझे बस इतना याद है कि सब लोग एक बस के ऊपर खड़े होकर नाच गा रहे थे. और मुझे यह बहुत अच्छा लगा था. मुझे अच्छे से याद है कि मुझे बहुत अच्छा लगा, मतलब बौलीवुड से प्यार हो गया. शायद इसका जुड़ाव मेरे गार्डेन में नाचने, गाने, अभिनय करने से रहा हो. क्योंकि मुझे ऐसा फील हुआ कि यह लोग भी तो वही कर रहे हैं, जो मैं अपने गार्डेन में करती हूं. तो वहां से बौलीवुड प्रेम मेरे अंदर पनपा. मैंने अपने माता पिता से पूछा था यह क्या है? तो उन्होंने बताया था कि इसको बौलीवुड यानी भारत/इंडिया का सिनेमा कहा जाता है. उसी दिन से मैंने बौलीवुड और इंडिया के बारे में सोचना शुरू कर दिया था. फिर मेरी समझ में आया कि भारत एक देश है, जो कि हमारे देश से काफी दूर है. धीरे धीरे मेरे अंदर इंडिया जाने और बौलीवुड में काम करने की इच्छा पैदा हुई.

वक्त बीता. मैंने मेरे टीनएज में फिर से टीवी में बौलीवुड फिल्में देंखी, उस समय जब मैंने फिल्म ‘देवदास’ देखी, तो मुझे इस फिल्म से इतना प्यार हुआ कि मैंने अपने माता पिता से कह दिया कि मुझे अपनी जिंदगी में इसी तरह की फिल्म में काम करना है. मेरे पिता ने कहा कि ठीक है, पर पहले पढ़ाई करनी चाहिए. तो मैंने स्नातक तक की पढ़ाई की.

स्वीडन से बौलीवुड में आना कैसे हुआ? शायद 2012 में आप मुंबई आयी थीं?

वह एक लंबी कहानी है.पहले जब मैं टीनएज थी, तो मैंने डिसाइड किया कि मुझे बौलीवुड डांस सीखना है. तब मैंने पता लगाना शुरू किया. पूरे दो साल के बाद मुझे स्वीडन में एक अच्छा ‘डांस क्लास’ मिला. जहां पर  बौलीवुड डांस सिखाया जाता था.

स्वीडन में?

जी हां! स्वीडन में बौलीवुड डांस क्लास में मैंने एडमीशन लिया. मैंने डांस सीखना शुरू किया. कुछ दिन बाद मैंने अखबार में पढ़ा कि एक बौलीवुड डांस का शो होना है, जिसके लिए औडीशन हो रहे हैं. मैं वहां गयी. औडीशन दिया और मैं उसका हिस्सा बन गयी. हमारे डांस ग्रुप का नाम था- ‘‘परदेसी डांस ग्रुप.’’

तो उसके शो हुए होंगे?

जी हां! मैंने स्वीडन में एक नही कई शो किए. सभी ने मेरे बौलीवुड डांस की तारीफ की. वैसे भी डांस तो मेरी हौबी रही है. मेरे स्कूल में भी था. उस वक्त मैं सोचती थी कि जब मैं ग्रेजुएशन पूरा कर लूंगी, तब बौलीवुड जाने की कोशिश करुंगी. और ‘स्टाकहोम युनिविर्सिटी से ग्रेजुएशन पूरा होते ही मैंने देवनागरी सीखा. मैंने स्वीडन में ‘स्टाकहोम युनिविर्सिटी’ से ही देवनागरी भाषा की पढ़ाई की. मैंने सोचा कि यदि मुझे भारत जाना है, तो मुझे देवनागरी में लिखना व पढ़ना आना चाहिए. क्योंकि भारत में तो लोग देवनागरी में ही लिखते पढ़ते हैं. तो खुद की तैयारी अच्छी होनी चाहिए. मैंने पहले पूरी तैयारी की. मुझे जेब खर्च के लिए मिलने वाले पैसे बचाए. मुंबई में कहां रूकना है, पासपोर्ट बनवाया, हवाई जहाज की टिकट निकाला, फिर अपने माता पिता से भारत आने के लिए राजी किया. मुझे इंडिया जाना है, इस बात से दोनों बहुत डरे हुए थे. उनके मन में कई सवाल थे. वह अपनी बेटी को कैसे छोड़ेंगे? वैसे भी मेरे पिता बचपन से बहुत कड़क थे. मतलब अकेले बाहर जाना मना था. पिक्चर देखना भी मना था.

तो फिर आपने बौलीवुड फिल्में कैसे देखी?

हमें अकेले या दोस्त/सहेलियों के संग फिल्म देखने की इजाजत नहीं थी. पर हम अपने माता पिता के साथ फिल्म देखने जाते थे. वहां भी रात में अकेले या दोस्तों के साथ घर से बाहर जाना खतरनाक है. खैर, जैसा कि मैंने बताया कि मैंने अपने बलबूते पर भारत आने की सारी तैयारी की. गूगल पर इंडिया के बारे में जानकारी ली. मुंबई में रह रहे पारिवारिक दोस्तों से संपर्क किया. जब मैंने अपने पिता को अपनी सारी तैयारी के बारे में बताया, मैंने उन्हें टिकट दिखायी, मुंबई में कहां रंहूगी, उसकी जानकारी दी. तब उनको मुझे पर गर्व हुआ. और इंडिया आने की इजाजत मिल गयी.

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बौलीवुड के अपने अब तक के करियर को किस तरह से देखती हैं?

जन्म से 22 साल की उम्र तक स्टाकहोम, स्वीडन में रहने, स्वीडिष नागरिक होते हुए स्वीडन थिएटर व फिल्म में अभिनय करने के बाद जब मैंने 2012 में बौलीवुड में कदम रखा, तो बौलीवुड ने जिस तरह से खुले हाथों मेरा स्वागत किया, मुझे स्वीकार किया, उससे मै अभिभूत हूं. पर आज जिस मुकाम पर भी हूं, उसमें मेरी कड़ी मेहनत और प्रतिभा का भी योगदान है. मेहनत की बदौलत बौलीवुड में मैं अपनी पहचान बनाने में सफल हो सकी. किसी ने भी वास्तव में मेरी मदद नहीं की. पर सलमान खान की आभारी हूं कि उन्होंने मुझे शो में शुक्रवार और शनिवार को आने के लिए शो में स्वीकार किया. तब कई लोगों ने मुझे देखा. झगड़ालू किस्म की न होने के चलते मैं शो में कम नजर आती थी. मगर अच्छी फिल्में व किरददार निभाने के मौके मिले. अब ‘वर्डिक्ट आफ स्टेट वर्सेस नानावटी’ किया है.

भारत आने से पहले आप हिंदी और बौलीवुड डांस सीख रही थीं. यहां आने पर उसका फायदा मिला?

जी हां! मुझे ऐसा लगता है. पर मैंने स्वीडन में रहकर सिर्फ देवनागरी लिखना व पढ़ना सीखा था. हिंदी भाषा तो मैंने मुंबई आकर सीखी. मगर स्वीडन मे मैंने जो न्त्य सीखा था, उसका फायदा जरुर मिला. क्योंकि हर बार जब मैं एक नए कोरियोग्राफर/ नृत्य निर्देशक के साथ काम करती हूं, तो वह यही कहते हैं कि, ‘आप तो बहुत जल्दी डांस के स्टेप्स पकड़ लेती हैं. ’फिर चाहे वह स्टेप साउथ इंडियन स्टाइल, पंजाबी स्टाइल, मराठी स्टाइल, मौडर्न स्टाइल या क्लासिक स्टाइल का क्यों न हो. इसकी मूल वजह यह है कि मैंने स्वीडन मे बौलीवुड, देसी,बैले वगैरह कई तरह के नृत्य करना सीखा था. तेा जब आपका डांस का बेस/आधर मजबूत हो, तो सब तरह के डांस करना आसान हो जाता है. इतना ही नहीं जब मैं स्वीडन में थी, तो वक्त मेरे ट्रेनर ने भी कई बार कहा था कि,‘तुम बहुत अच्छी डांसर हो, बहुत जल्दी स्टेप्स पकड़ लेती हो.’ देखिए, रिदम वगैरह तो हर डांस में चाहिए.

वेब सीरीज‘‘वर्डिक्ट आफ स्टेट वर्सेस नानावटी’’ करने की वजह?

इसमे मैंने सिल्विया नानावटी का किरदार निभाया है. यह वेब सीरीज पूर्णरूपेण नारी प्रधान वेब सीरीज है. यह एक भावपूर्ण भूमिका है. सिल्विया नानावटी के किरदार में बहुत सारी परतें हैं. सिल्विया युवा है, शादीशुदा है, और एक मां और दर्शकों को उसके बुढ़ापे में भी उसे देखने को मिलता है. कलाकार को हर दिन इस तरह की चुनौतीपूर्ण व एक ही भूमिका में कई रंग निभाने वाली भूमिका नहीं मिलती है. मुझे बहुत अच्छा लगा क्योंकि इसमें बहुत ही सकारात्मक तरीके से इस युवा महिला और उसकी भावनाओं को दिखा रहा है. यह सिर्फ एक सुंदर चेहरा नहीं है, इस वेब सीरीज में महिला के दृष्टिकोण से कहानी पेश की जा रही है. जी हां, इसमें सिल्विया के दृष्टिकोण से 1959 की सत्य कथा को पेश किया गया है. यह फिल्म कहती है कि किसी भी औरत को लेकर किसी को भी जजमेंटल नही होना चाहिए.

इसी कथा पर अक्षय कुमार की फिल्म ‘‘रूस्तम’’ आयी थी?

यह फिल्म बहुत अलग थी. इसमें युवा महिला सिल्विया के नजरिए को व्यक्त नहीं किया गया. जबकि बड़ा मामला है, और इसलिए महिलाओं पर उंगली उठाना आसान है. वह अपने पति के लिए कैसे लड़ी, यह जानना जरुरी है. उसने अपने पति को धोखा दिया, लेकिन हमें उसके फैसले के कारण और परिस्थितियों को जानने की जरूरत है. उसने सुनिश्चित किया कि वह अपने पति और उसके परिवार के साथ वापस रहे. तो यह एक मजबूत महिला की अद्भुत कहानी है.

आप भी एक औरत हैं. अब आपने वेब सीरीज में सिल्विया का किरदार निभाया, वह भी औरत है. तो आपने सिल्विया को क्या समझा? या आप उसे क्या कहना चाहेंगी?

मेरे हिसाब से सिल्विया बहुत ही वलनरेबल औरत है. मेंटली बहुत स्ट्रौंग है. वह बहुत साहसी भी है. वह एक ऐसी औरत है, जिस अपनी जिंदगी जीनी है. वह अपनी जिंदगी स्वतंत्रता के साथ अपने दिल से जीना चाहती है. उसे समाज की परवाह नही है. उसे जो लगता है,  वही वह सही मानती है. सिल्विया संजीदा और खूबसूरत है. सिल्विया काव्य है. मैं समझ गई कि कहानी सुनने के बाद की दोनों ने अपने आप को माफ किया है. और अपने रिश्ते को आगे बढ़ाया है. बहुत से लोग ऐसा भी कहते हैं कि सिल्विया ने बाद में अपने पति के लिए इतनी लड़ाई इसलिए लड़ी, क्योंकि अब वह अपने पति के अलावा कहीं और जा नहीं सकती थी. उसका प्रेमी मर चुका था. अब उसकी जिंदगी में उसके पति के अलावा कोई बचा नहीं था. फिर उसके अपने बच्चे भी थे. तो अब पति के अलावा उसका कोई सहारा नहीं था. मगर इस तरह की बातें करने वाले लोग भूल जाते हैं कि अगर ऐसा था, तो जब पूरा परिवार कनाडा चला गया था, तब भी सिल्विया तलाक ले सकती थी. लेकिन उसने ऐसा किया नहीं. वह पूरी जिंदगी पति के साथ रह गई. इससे यही बात उभर कर आती है कि उसने पति से भी सच में प्यार किया है, पति ने भी उससे प्यार किया है. मगर रिलेशनशिप में कभी गलती होती है. कभी कभी एक दूसरे को भूल जाते हैं,कभी एक दूसरे को ग्रांटेड मानकर चलते है. जबकि रिलेशनशिप में हमेशा गिव एंड टेक होता है. फिर यहां तो अकेलेपन का भी मसला रहा. क्योंकि पति तो ज्यादातर समय उसके साथ रहता नही था.

क्या आप मानती हैं कि रिलेशनशिप में ग्रांटेड नहीं होना चाहिए?

जी नहीं…जिंदगी में रिश्ता इतना बड़ा होता है कि इसे कभी भी ग्रांटेड नहीं लेना चाहिए. एक पेड़ व फूल को हर दिन आपको पानी देना चाहिए, अन्यथा वह मर/मुरझा जाएगा.

मान लीजिए सिल्विया, आज की औरतों की तरह कामकाजी औरत होती, तो उसका प्रस्पैक्टिव बदल जाता? उसका निर्णय कुछ और होता?

आपके कहने का अर्थ यह हुआ कि सिल्विया अगर एक कामकाजी और आत्मनिर्भर व स्वतंत्र औरत होती तो अपने पति का केस न लड़ती. तो गलत. मेरे हिसाब से वह लड़ेगी. क्योंकि जब वह लोग कनाडा रहने जाते हैं, तब भी तलाक नही लेती.उ न दोनों के बीच सच्चा प्यार है. वह दोनो बहुत यंग थे,जब मिले थे. फिर उन्होंने शादी की. तीन बच्चे हैं. जिसको बहुत प्यार करते हैं. सेल्विया सच में एक परिवार चाहती थी. पर हालात ऐसे हुए कि पति के अक्सर घर से बाहर रहने का पति के दोस्त ने फायदा उठाया. अकेली औरत के भी अपने अहसास तो होते ही है, तो सिल्विया ने भी महसूस किया. पर इसके यह मायने नही है कि उसने अपने पति को प्यार करना बंद कर दिया.

अकेलापन दूर करने के लिए साथी ढूढ़ा और उससे प्यार हो गया ?

जी हां..ऐसा ही हुआ होगा.

जब आपके पास किसी फिल्म का औफर आता है, तो आप किस बात को प्रिफरेंस देती है?

सबसे पहले स्क्रिप्ट व अपने किरदार को सुनती हूं.फिर अपने अंदर के इंस्टीट्यूशन को सुनती हूं.

किस तरह के किरदार निभाना चाहती हैं?

एक्शन प्रधान सशक्त किरदार निभाना चाहती हूं. जबकि मेरी मां को लगता है कि मैं संजीदा किरदार ज्यादा अच्छे से निभा सकती हूं.

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आपने बौलीवुड में हिंदी फिल्में की. अब साउथ में तमिल व कन्नड भाषा की भी फिल्में की. क्या यह भाषाएं भी सीखी है?

नहीं.. मगर संवाद रटे और उनका अनुवाद कराकर भाव को समझा. मैं अपनी साउथ में अपनी कन्नड़ भाषा की फिल्म ‘बटरफ्लाय’ को लेकर बहुत उत्साहित हूं. क्योंकि वहां काम करना बहुत मुश्किल था. कन्नड़ भाषा में ‘बटरफ्लाय’ मेरी पहली फिल्म है. यह हिंदी फिल्म ‘क्वीन’ का वहां की भाषा में रीमेक है. फिल्म के प्रदर्शन के बाद पता चलेगा कि मैंने अभिनय कैसा किया है. दर्शकों का रिस्पांस क्या होता है. हां! इस फिल्म को करते हुए मैंने इंज्वाय किया.

‘‘बटरफ्लाय’ में विदेशी भाषा के भी संवाद?

जी हां! मैं इस फिल्म में कन्नड़, फ्रेंच व अंग्रेजी भाषा में बात करते नजर आउंगी. जब मुझे फ्रेंच बोलने का मौका मिला,तो बहुत अच्छा लगा.

इसके बाद क्या?

वेब सीरीज ‘इनसाइड एज 2’ में नजर आउंगी. दो फिल्में तथा एक अन्य वेब सीरीज भी है, पर इनके बारे में समय आने पर बताउंगी.

आपको लिखने का शौक हैं?

जी हां! मैं कविताएं लिखती हूं. जिनमें मेरे गहरे विचार होते हैं. जिंदगी के बारे में लिखती हूं. जिंदगी की मीनिंग के बारे में लिखती हूं. अलग-अलग इमोशंस के बारे में लिखती हूं. मेरे दिमाग में जो आता है, उसे पन्नें पर उतार देती हूं. मैं ज्यादा सोचती भी नहीं हूं. मैं बस लिखती हूं और उसके बाद मैं पढ़ती हूं कि क्या लिखा है.

अब तक कितनी कविताएं लिखी?

मुझे याद ही नहीं. पर मैं टीन एज से लिख रही हूं. मेरे पिता ने कहा है कि मुझे एक किताब बनानी चाहिए. मैं अपनी लिखी कहानियों को किताब के रूप में लाने की तैयारी कर रही हूं.

अब स्वीडन की कितनी याद आती है?

हर दिन बहुत याद आती है.

इंडिया में बौलीवुड के अलावा और क्या खास आपको पसंद है?

वैसे तो बहुत सारी चीजें हैं. यहां का कल्चर बहुत ही रोचक है. यह देश अपने आप में बहुत एक्साटिक है. फेस्टिवल बहुत ही कलरफुल है. बहुत फन. बहुत सारे लोग आपकी मदद करते हैं. खासकर गांव के लोगों में बहुत ज्यादा अपनापन मिलता है. जो मुझे बहुत अच्छा लगता है.

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क्या आपका भी बच्चा बिस्तर गीला करता है ?

कितना बड़ा हो गया /बड़ी हो गयी है. कितने कपड़े गीले करेगा/करेगी. ऐसी ही कुछ और बातें उन बच्चों को सुनने को मिलती है, जो बिस्तर पर पेशाब करते हैं. लेकिन मातापिता की डांट का बच्चे पर असर नहीं पड़ता क्योंकि वजह उनका आलसीपन नहीं बल्कि कुछ और है. अगर आपका बच्चा 6 साल की उम्र के बाद भी बिस्तर पर पेशाब करता है तो जरूरी है की उसे बाल रोग विषेशज्ञ को दिखाएं.

क्योंकि ये उनके अंदर किसी बीमारी का भी संकेत हो सकता है लगभग 70 % बच्चे इस समस्या से परेशान हैं. पांच साल की उम्र तक करीब 85 फीसदी बच्चे पेशाब पर नियंत्रण करना सीख जाते हैं. लड़कियों की तुलना में लड़कों में 12 साल की उम्र तक बिस्तर गीला करने की प्रवृति ज्यादा होती है.

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कारण

  1. बच्चों में आर्जीनीन वैसोप्रेसिन हार्मोन का स्तर नींद में नीचे चला जाता है, जो किडनी के द्वारा मूत्र निर्माण की प्रक्रिया को धीमा कर देता है. चूंकि नींद में इस हार्मोन का स्तर नीचे चला जाता है, इसलिए मूत्र निर्माण की प्रक्रिया तेज हो जाती है और मूत्राशय तेजी से भर जाता है. और इसी कारण बच्चा बिस्तर मे पेशाब कर देता है.

2. कब्ज या अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऔर्डर की वजह से भी बच्चे को बिस्तर में पेशाब करने की आदत हो सकती है.

3. जो बच्चा अधिक तनाव व डर में रहता है उनके अंदर भी यह समस्या हो सकती है.

4. बच्चे के यूरीन ट्रैक में संक्रमण, कम उम्र में मधुमेह, शरीर की बनावट में असंतुलन, नर्वस सिस्टम से संबंधित कोई समस्या से भी यह समस्या उतपन्न हो सकती है.

5. एक रिसर्च के मुताबिक यह आदत अनुवांशिक भी हो सकती है. जिन बच्चों के माता पिता भी बचपन मे बिस्तर गीला किया करते थे. उन के बच्चों में यह समस्या ज्यादा पायी जाती है.

6. आजकल ज्यादातर माताएं बच्चों को नैप्पीज पहना कर रखती हैं जिस कारण उन में पेशाब आने की प्रक्रिया को महसूस करना नहीं सिख पाते. जिस कारण थोड़ा बड़े होने के बाद भी उनके अंदर ये परेशानी बनी रहती और बिस्तर मे पेशाब कर देते हैं.

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क्या हैं उपाय

  • रोज सोने से पहले बच्चे को बाथरूम जाने की आदत डालें व रात में एक बार उसे पेशाब के लिये लेकर जाएं.
  • बच्चे को रात मे तरल पदार्थ कम दे.
  • गुड़, आजवाइन और काले तिल को मिला लें. रोज सुबह एक चम्मच इस मिश्रण को एक गिलास दूध में मिलाकर बच्चे को पिलाएं.
  • आंवले के गूदे में थोड़ी  काली मिर्च पाउडर मिलाकर बच्चे को सोने से पहले दें.
  • रात को सोने से पहले 2-3 छुहारे खिलाएं.
  • बच्चे को प्रतिदिन दो अखरोट व 10-12 किशमिश के दाने 15-20 दिनों तक खिलाएं.
  • जो माताएं बच्चे को नैप्पीज पहनाती हैं. उन्हें नैपी पहनने से पहले पेशाब कराएं व खोलने के बाद भी पेशाब के लिये लेकर जाएं.

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डेटिंग टिप्स: लड़कियां जरूर करती हैं ये 4 काम

कहा जाता है कि जब बात रिलेशनशिप की हो तो लड़कियों का दिमाग बहुत ज्यादा चलता हैं और वे हर पहलू पर नजर रखती हैं. ऐसा ही कुछ होता है जब वे किसी लड़के के साथ पहली डेट पर जा रही होती हैं.

जी हां, लड़कियां डेट पर जाने से पहले लड़कों के बारे में पूरी जानकारी निकालने की कोशिश करती हैं और इसके लिए कई तरीके निकलती हैं. तो आइये हम बताते हैं आपको कि किस तरह लडकियां डेट पर जाने से पहले ही लड़कों के बारे में जानकारी लेती हैं.

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  1. फैमिली बैकग्राउंड चैक करना

इसके साथ ही वो लड़के के फैमिली बैकग्राउंड के बारे में भी पता करती है कि लड़का कैसे परिवार से है. उसकी फैमिली इमेज कैसी है, क्या बिजनेस है आदि.

2. सोशल मीडिया अकांउट चेक करना

लड़कियां पहली डेट से पहले लड़के का सोशल मीडिया अकाउंट जरूर चेक करती हैं, ताकि उन्हें पता चल सके कि लड़का और उसकी सोसायटी कैसी हैं.

3. पसंद-नापसंद जानना

लड़कियां डेट पर जाने से पहले लड़के की पसंद-नापसंद जानने की कोशिश करती है. ताकि वह लड़के को इंप्रैस कर सके.

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4. अफेयर के बारे में

लड़कियां ये जानने को खास उत्सुक रहती हैं कि उसे डेट करने से पहले लड़के के कितने अफेयर रहे हैं. कहीं लड़के की इमेज प्लेबौय टाइप तो नहीं है, जो समय आने पर उसका दिल तोड़ दे.

उफान पर धर्मव्यवस्था

देश की धार्मिक व्यवस्था चाहे सुदृढ़ हो गई हो पर आर्थिक व्यवस्था चरमराने लगी है. यज्ञों और हवनों की सरकार की देन नोटबंदी, जीएसटी और कैशलैस सारे देश को फकीर बनाने में तुले हैं. कहने को चाहे हम अपने मुंह मियां मिट्ठू बनते हुए कहते रहें कि हम विश्वगुरु हैं, हम ढोल बजाते रहें कि हम दुनिया की सब से तेज गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था हैं.

हम असल में दुनिया की सब से तेज गति से बढ़ने वाली धर्मव्यवस्था हैं. यहां मंदिर, मठ, आश्रम, तीर्थ, आरतियों, मूर्तियों की भरमार हो रही है. पूरा आम चुनाव धर्म पर लड़ा गया है. मोदी के हिंदुत्व का जवाब देने के लिए दूसरी पार्टियों को भी धर्म को मानने का नाटक करना पड़ा.

हम इतिहास से सीखने को तैयार नहीं हैं कि धर्म ने हमेशा लड़ाई सिखाई है. पौराणिक कहानियां देवताओं और दस्युओं की लड़ाइयों से भरी हैं. रामायण में भाइयों में लड़ाई का माहौल है जिस कारण राम को न केवल राजगद्दी नहीं मिली,

14 साल देश से बाहर जाना भी पड़ा. महाभारत में भी भाइयों की लड़ाइयां हैं. ग्रंथों में कहीं देश निर्माण की बात नहीं है, कहीं आम जनता के सुख की बात नहीं. सारा माहौल ऋषियों, मुनियों और राजाओं के झगड़ों का रहा है.

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भारत ने 1947 से पहले कम आर्थिक उन्नति नहीं की थी. उसी समय तो देशभर में रेलों का जाल बिछा, शहर विकसित हो गए थे. उन दिनों धर्मव्यवस्था कमजोर थी और ब्रिटिशों के राज के बावजूद लोग 1857 से पहले से ज्यादा खुश थे.

आज हमारी सारी जिंदगी पश्चिम एशिया के मुसलिम देशों की तरह धर्म के आदेशों के चारों ओर घूम रही है. उस संत ने यह कहा, उस साध्वी ने यह किया, उस ने जनेऊ पहना, उस ने आरती की, वहां मंदिर बना, वहां मूर्ति बनी, वहां तीर्थयात्रा होगी, वहां पाठ होगा, मीडिया इन्हीं बातों से भरा रहता है.

नतीजा यह है कि पिछले दशकों के थोड़े से लाभ भी हाथ से फिसलते नजर आ रहे हैं. भवन निर्माण उद्योग का भट्ठा बैठ गया है. बैंक कंगाल होने लगे हैं. कर चोरों को पकड़ने के लिए नाजीनुमा कानूनों की आड़ में राजनीतिक उल्लू सीधे किए जा रहे हैं. कर आजकल आफत बन गए हैं. नेता धार्मिक दुपट्टे पहने नजर आ रहे हैं, कामकाज वाले कपड़े नहीं.

बड़ी कंपनियों के दीवाले निकल रहे हैं. जो चल रही हैं वे प्रमुख आचार्य के निकट होने के कारण, जो दान में धर्मभीरुओं से वसूला पैसा उन्हें दे रहा है.

आम आदमी, आम युवा, आम किसान, आम व्यापारी, आम गृहिणी आज परेशान है. स्थिति यह है कि खाली पेट, बस, हरहर महादेव, जय राम, जय राधे करते रहो.

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इन्का सभ्यता : खुलना बाकी हैं कई रहस्य

यह आज तक पता नहीं चल पाया है कि बोझा ढोने वाले जीवों, पहियों और लोहे के औजारों के बिना इन्का सभ्यता ने कई टन वजनी पत्थरों को निर्माणस्थल तक कैसे पहुंचाया होगा? क्या कोई सभ्यता किसी लिपि और लेखन कला के बिना शीर्ष ऊंचाइयों को छू सकती है? जवाब होगा नहीं. लेकिन एक ऐसी सभ्यता भी थी जो न पहिए को जानती थी, न ही मेहराबों को. फिर भी इस सभ्यता ने निर्माण क्षेत्र में जो ऊंचाइयां हासिल कीं, वह देखने लायक तो है ही, लोग आज भी यह समझ नहीं पाते कि आखिर भवन निर्माण की मामूली जानकारी के बावजूद इस सभ्यता ने निर्माण के क्षेत्र में इतनी ऊंचाइयों को कैसे छुआ.

आज इन्काओं का बनाया हुआ शहर माचू-पिच्चू इतिहासकारों के बीच एक रहस्य बना हुआ है. इस शहर को जिन 2 पहाडि़यों के बीच में बसाया गया, वह यहां की उरुबंबा नदी के ऊपर स्थित है. यहां पर इन्काओं ने सैकड़ों विशाल घर, दालान और मंदिरों का निर्माण किया. यह सभ्यता स्पेनी लुटेरों की वजह से अचानक ही समाप्त हो गई और इस के करीब 500 साल बाद 1911 में अमेरिकी पुरातत्ववेत्ता हिराम बिंघम ने इसे खोजा.

यह आज तक पता नहीं चल पाया है कि बोझा ढोने वाले जीवों, पहियों और लोहे के औजारों के बिना इन्का सभ्यता ने कई टन वजनी पत्थरों को निर्माणस्थल तक कैसे पहुंचाया होगा? उन के पास पत्थर की बनी हथौडि़यां, तांबे की छेनी, तांबे व लकड़ी के बने सब्बल और पौधों के रेशों से बनी रस्सियों के अलावा कोई अन्य औजार नहीं था.

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यह आज भी रहस्य ही है कि इन लोगों ने विशाल ग्रेनाइट चट्टानों को कैसे काटा होगा और गहरी खाइयों से होते हुए इन्हें किस तरह पहाडि़यों तक पहुंचाया होगा. ये सभी पत्थर बिना किसी सीमेंट आदि के एकदूसरे पर इस तरह से जमाए गए हैं कि 2 पत्थरों के बीच एक सुई तक नहीं घुसाई जा सकती.

इन्का राजधानी का प्रहरी बना शाकसाहुआमान किला ऐसे पत्थरों से बना है, जो बहुआयामी हैं और हर पत्थर का वजन 300 टन से कम नहीं है. इन पत्थरों को घंटों घिसा गया, तब जा कर किनारे नोकदार से चिकने हुए हैं. ये काम किस कदर मेहनत वाला रहा होगा, कल्पना की जा सकती है.

इन्का सभ्यता ने जो कुछ भी सीखा, उसे उन सभ्यताओं से सीखा जो उन से काफी पहले यहां पर बसी थीं. यहीं पर 300 ईसवी में एक ऐसी सभ्यता ने जन्म लिया, जिस ने विशाल पिरामिडों का निर्माण किया. इन में से कुछ पिरामिड मिट्टी की 14 करोड़ ईंटों से बनाए गए हैं.

यहां पर चीनी मिट्टी से बने कई बरतन भी मिले हैं जो 1500 साल तक पुराने हैं. इन में से किसी पर भिखारी, किसी पर संभ्रांत व्यक्तियों तो किसी पर उन कैदियों के चित्र बने हैं, जिन की नाक काट दी गई थी. यहीं पर कुछ ही दूर स्थित है शहर तियाहुआनाको, जो कभी टिरिकाका झील के किनारे बसा था. समय था 600 से 1100 ईसवी. आश्चर्य की बात यह है कि इस पूरे शहर को समुद्र से 4300 मीटर की ऊंचाई पर बसाया गया. उस समय का सब से रईस और विशाल शहर था चिमौर. आज भी इस शहर के सुंदर अवशेष देखे जा सकते हैं.इन्काओं के पास अपनी कोई मुद्रा भी नहीं थी. व्यापार सिर्फ वस्तुओं के आदानप्रदान पर निर्भर था. सोने को सूरज का पसीना माना जाता था और इस का प्रयोग सिर्फ राजा ही करता था, वह भी धार्मिक अनुष्ठानों में.

पुरातत्त्ववेत्ता आज भी समझ नहीं पाते हैं कि इन्का सभ्यता में कला का कौशल कहां से आया. जब इस की पड़ताल की गई तो पता चला कि इस सभ्यता पर विश्व के कई स्थानों पर उभरी सभ्यता का प्रभाव पड़ा. कुछ बरतनों पर पूर्वी एशिया का प्रभाव स्पष्ट झलकता है.

अगर पेरू के लोग अटलांटिक महासागर के पार उभरी सभ्यताओं के संपर्क में थे तो ये लिखित भाषा और पहियों की पहचान रखते होंगे. ये भी समझ नहीं आता कि धुन निकालने वाली पाइपों से ये कैसे धुन निकालते थे. जैसी पाइप इन्का के पास थीं, ठीक वैसी ही पाइपें दक्षिण अमेरिका के अलावा अफ्रीका व अरब सभ्यताओं में भी मिलती हैं.

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इस जगह पर मिली नाज्का लाइंस भी बड़ा रहस्य है. पेरू के दक्षिणी इलाके में मिलने वाली इन रेखाओं को केवल हवाई जहाज से ही देखा जा सकता है. कुछ लाइनों को 1400 साल पहले बनाया गया था. इन की खोज 1939 में की जा सकी. यूएफओ यानी उड़नतश्तरियों को मानने वालों का कहना है कि ये लकीरें कभी उड़नतश्तरियों को धरती पर उतरने के लिए मार्गदर्शक का काम करती रही होंगी.

जहां तक इन्का सभ्यता के उद्भव की बात है तो वह खुद रहस्यों के घेरे में है. इन के सम्राटों का मानना था कि वे सूर्य की संतान हैं. इन्का बेहद मेहनती भी थे और अपने प्रयासों से इन्होंने विशाल साम्राज्य की स्थापना भी की. आम जनता में हर किसी को कोई विशेष काम दिया जाता था. फसल को मंदिर, राज्य व आमजन में बांटा जाता था.

राजा ही लोगों को बताता था कि कौन सी फसल बोई जाए, क्या पहना जाए. झूठ बोलना, आलस्य और परस्त्री पर नजर रखने की सजा मौत थी.

समाचार को कुछ लोग, जिन्हें चस्की कहते थे, दौड़दौड़ कर पूरे राज्य में फैलाते थे. आज भी इन्का सभ्यता पर शोध जारी है और नई चौंकाने वाली जानकारियां सामने आती रहती हैं.

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गरबा स्पेशल 2019 : ऐसे बनाएं आलू का हलवा

आज आपको आलू हलवा बनाने की रेसिपी बताते है. जी हां जो आप  गरबा के दौरान  बना सकती हैं. ये स्वीट हलवा बनाने में भी काफी आसान है और इसे बनाने में भी समय काफी कम लगता है. तो चलिए झट से बताते हैं आलू हलवा बनाने की रेसिपी.

सामग्री :

4 आलू (उबला हुआ)

शक्कर (02 बड़े चम्मच)

देशी घी  (02 बड़े चम्मच)

बादाम  (01 बड़ा चम्मच, कटे हुए)

किशमिश (01 बड़ा चम्मच)

काजू (01 बड़ा चम्मच, कटे हुए)

इलाइची पाउडर ( 01 छोटा चम्मच)

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बनाने की विधि :

इसे बनाने के लिए सबसे पहले उबले हुए आलुओं को छीलकर अच्छी तरह से मैश कर लें या फिर कद्दूकस कर लें.

अब एक कढ़ाही में देशी घी डालकर गरम करें. घी गरम होने पर उसमें मैश किये हुए आलू डालें और अच्छी तरह से भून लें.

इसके बाद कड़ाही में शक्कर, कतरे हुए काजू बादाम और किशमिश व इलाइची पाउडर डालें और 02 मिनट तक चलाते हुए पकाएं.

मिश्रण को चम्मच से बराबर चलाते रहें, नहीं तो कढ़ाही में नीचे की ओर जल जाएगा. 2 मिनट बाद गैस बंद कर दें.

लीजिए आपकी आलू हलवा बनाने की विधि कम्‍प्‍लीट हुई.

अब आपका आलू का हलवा तैयार है और इसे सर्विंग बाउल में निकालें और गरमा गरम सर्व करें.

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ताकि प्राकृतिक संतुलन बना रहे

वीगन यानी वैजिटेरियन व्यवसायों में अब काफी अवसर पैदा हो रहे हैं. बस थोड़े धैर्य और थोड़ी लगन की जरूरत है, जो वैसे भी हर व्यवसाय में जरूरी है.

फैशन के क्षेत्र में वीगन होने का मतलब यह नहीं कि आप स्टाइल की कुरबानी दे दें. आजकल बहुत सा हाई फैशन सामान रिसाइकल पौलिएस्टर से बन सकता है. जानवरों को मारे बिना जूते, बैल्ट, पर्स आदि हजारों में औनलाइन और औफलाइन दुकानों में बिक रहे हैं. जूतों में लगने वाला गोंद भी अब जरूरी नहीं कि जानवरों से आए या जानवरों पर टैस्ट किया जाए.

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वीगन बाजार

नई दिल्ली में 3 साप्ताहिक और्गेनिक मार्केट लगती हैं और कोई भी इन्हें शुरू कर पैसा कमा सकता है. वहां बीज, पौधे, सब्जियां, तेल, चीज, विनेगर, चाय, साबुन, कौस्मैटिक प्रौडक्ट्स भी बिक सकते हैं और वहीं बैठ कर खाने का स्टाल भी लगवाया जा सकता है. आस्ट्रेलिया के शहर सिडनी में एक बड़ा वीगन मेला लगता है.

आजकल वीगन बेकरियों के दीवाने भी कम नहीं हैं, जहां हर तरह की और्गेनिक मिठाई मिले, चौकलेट हों, कैरेमल हों, मार्शमैलो हों, मफिन और डोनट हों, इतना सामान हो कि गिफ्ट बास्केट बन सके. लेकिन इस तरह का व्यवसाय शुरू करना है तो अपने सप्लायर्स को सावधानी से चुनना होगा. पाम औयल की जगह कोकोनट औयल इस्तेमाल हो, मिठास के लिए गन्ने का रस या कोकोनट की चीनी हो सकती है. ये सब बिना डोनेटिक मोडिफाइड हो सकते हैं, जिन का पर्यावरण पर असर नहीं पड़ता.

लोगों की पसंद

व्यवसाय चलाने के लिए एक बुटीक टाइप शौप खोली जा सकती है जिस में सिर्फ तेल, घी, मक्खन हों. इस के साथ औलिव औयल, चिया बीज, काजू, बादाम, दूध, मेपल सिरप, सूरजमुखी तेल, पारंपरिक पोशाकें आदि भी बेची जा सकती हैं.

लोग अब ऐसा खाना पसंद करने लगे हैं जो मीट जैसी दिखने वाली चीजों में बना हो ताकि लोग मीट प्रोडक्ट्स की जगह वीगन बनें. अगर आप कैफे शुरू कर रहे हैं तो प्लास्टिक का इस्तेमाल न करें. मोटे सादे कपड़े के नैपकिन अब बेचे जा सकते हैं जो स्टाइलिश भी हैं और सौफ्ट भी और जिन में हानिकारक कैमिकल रंग नहीं हैं. रिसाइकल पेपर पर कापीकिताबों की भी भारी मांग है. यहां तक कि गाड़ी में खराब हुआ वनस्पति तेल तक इस्तेमाल करने की तकनीक उपलब्ध है.

वीगन ब्यूटीपार्लर खोले जा सकते हैं जहां बिना पैट्रो प्रोडक्ट्स से बनी क्रीम, लोशन, शैंपू, स्किन केयर सामान इस्तेमाल किया जा सकता है, जो प्रकृति के लिए भी अच्छा है और ग्राहकों के लिए भी. इन से ज्यादा से ऐलर्जी भी नहीं होती.

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प्रकृति प्रेमियों के लिए बहुत सी ऐसी चीजें बन रही हैं और बनाई जा सकती हैं जिन से प्राकृतिक संतुलन बना रहे. मेरे मंत्रालय में ऐसा बहुत कुछ इस्तेमाल हो रहा है और लोग खुश हैं.

निशान : भाग 1

उस दिन शन्नो ताई के आने के बाद सब के चेहरों पर फिर से उम्मीद की किरण चमकने लगी थी. ऐसा होता भी क्यों नहीं, आखिर ताई 2 साल बाद घर की बेटी मासूमी के लिए इतना अच्छा रिश्ता जो लाई थीं. लड़के ने इंजीनियरिंग और एम.बी.ए. की डिगरी ली हुई थी. 2 साल विदेश में रह कर पैसा भी खूब कमाया हुआ था. उस की 32 साल की उम्र मासूमी की 28 साल की उम्र के हिसाब से अधिक भी नहीं थी. खानदान भी उस का अच्छा था. रिश्ता लड़के वालों की तरफ से आया था, सो मना करने की गुंजाइश ही नहीं थी. सब से बड़ी बात तो यह थी कि जिस कारण से मासूमी का विवाह नहीं हो पा रहा था वह समस्या अब 2 साल से सामने नहीं आई थी.

हर मातापिता की तरह मासूमी के मातापिता भी चाहते थे कि बेटी को वे खूब धूमधाम से विदा कर ससुराल भेज सकें. फिर भी उस का विवाह नहीं हो पा रहा था. 2 भाइयों की इकलौती बहन, खातापीता घर और कम बोलने व सरल स्वभाव वाली मासूमी घर के कामों में निपुण थी. खूबसूरत लड़की के लिए रिश्तों की भी कमी नहीं थी पर समस्या तब आती थी जब कहीं उस के रिश्ते की बात चलती थी.

पहले दोचार दिन तो मासूमी ठीक रहती थी पर जैसे ही रिश्ता पक्का होने की बात होती उसे दौरा सा पड़ जाता था. उस की हालत अजीब सी हो जाती, हाथपैर ठंडे पड़ जाते, शरीर कांपने लगता और होंठ नीले पड़ जाते थे. वह फटी सी आंखों से बस, देखती रह जाती और जबान पथरा जाती थी. सब पूछने की कोशिश कर के हार जाते थे कि मासूमी, कुछ तो बोल, तेरी ऐसी हालत क्यों हो जाती है. तू कुछ बता तो सही. पर मासूमी की जबान पर जैसे ताला सा पड़ा रहता. बस, कभीकभी चीख उठती थी, ‘नहीं, नहीं, मुझे बचा लो. मैं मर जाऊंगी. नहीं करनी मुझे शादी.’ और फिर रिश्ते वालों को मना कर दिया जाता.

शुरूशुरू में तो उस की हालत को परिवार वालों ने छिपाए रखा. सो रिश्ते आते रहे और वही समस्या सामने आती रही पर धीरेधीरे यह बात रिश्तेदारों और फिर बाहर वालों को भी पता चल गई. तरहतरह की बातें होने लगीं. कोई हमदर्दी दिखाने के साथ उसे तांत्रिकों के पास ले जाने की सलाह देता तो कोई साधुसंतों का आशीर्वाद दिलाने को कहता और कोई डाक्टरों को दिखाने की बात करता, पर कोई बीमारी होती तो उस का इलाज होता न.

एक दिन मौसी से बूआजी ने कह भी दिया, ‘‘मुझे तो दाल में काला लगता है. चाहे कोई माने न माने, मुझे तो लग रहा है कि लड़की कहीं दिल लगा बैठी है और शर्म के मारे मांबाप के सामने मुंह नहीं खोल पा रही है वरना ऐसा क्या हो गया कि इतने अच्छेअच्छे घरों के रिश्ते ठुकरा रही है. अरे, यह जहां कहेगी हम इस का रिश्ता कर देंगे. कम से कम यह आएदिन की परेशानी तो हटे.’’

‘‘हां, दीदी, लगता तो मुझे भी कुछ ऐसा ही है, लेकिन उस समय उस की हालत देखी नहीं जाती. रिश्ते का क्या, कहीं न कहीं हो ही जाएगा. इकलौती भांजी है मेरी, कुछ तो रास्ता खोजना ही पड़ेगा,’’ मौसी दुख से कहतीं.

और फिर जब मौसी ने एक दिन बातों ही बातों में बड़े लाड़ के साथ मासूमी के मन की बात जाननी चाही तो उस की आंखें फटी की फटी रह गईं, जैसे दुनिया का सब से बड़ा दोष उस के सिर मढ़ दिया गया हो. काफी देर बाद संभल कर बोली, ‘‘मौसी, आप ने ऐसा सोचा भी कैसे? क्या आप को मैं ऐसी लगती हूं कि इतना बड़ा कदम उठा सकूं?’’

‘‘नहीं बेटा, यह कोई गुनाह या अपराध नहीं है. हम तो बस, तेरे मन की बात जान कर तेरी मदद करना चाहते हैं, तेरा घर बसाना चाहते हैं.’’

‘‘क्या कहूं मौसी, मैं तो खुद हैरान हूं कि रिश्ते की बात चलते ही जाने मुझे क्या हो जाता है. बस, यह समझ लीजिए कि मुझे शादी के नाम से नफरत है. मैं सारी जिंदगी शादी नहीं करूंगी,’’ मासूमी सिर झुकाए कहती रही और फिर सच में वह 18 से 28 साल की हो गई पर उस ने शादी के लिए हां नहीं की.

हालांकि कई बार मासूमी को विवाह की अहमियत का एहसास होता था कि मातापिता नहीं रहेंगे, भाई शादी के बाद अपने घरपरिवार में व्यस्त हो जाएंगे तो उसे कौन सहारा देगा. उसे भी शादी कर के घर बसा लेना चाहिए. उस की सखीसहेलियों के विवाह हो चुके थे और कितनों के तो बच्चे भी हो गए हैं.

अब इतने लंबे समय के बाद इस उम्र में उस के लिए इतना अच्छा रिश्ता आया था. सब को यही उम्मीद थी कि अब इतना समय गुजरने के बाद वह समझदार हो गई होगी और सोचसमझ कर फैसला लेगी पर मासूमी ने फिर मना कर दिया था. पूरे हफ्ते तो इसी उधेड़बुन में लगी रही और आखिर में उसे यही लगा कि विवाह का रिश्ता संभालने में वह असफल रहेगी.

उस रात वह जी भर कर रोई. इन सब बातों में उस का दोष सिर्फ इतना ही था कि उसे लगता था कि वह किसी की जिंदगी में शामिल हो कर उसे कोई खुशी देने के लायक नहीं है. रात भर अनेक विचार उस के दिमाग में आतेजाते रहे और सुबह उसे फिर दौरा पड़ गया था.

मां ने मासूमी के सिर में नारियल के तेल की मालिश की थी. उसे बादाम का दूध पिलाया था. दोनों भाई बारबार उसे आ कर देख जाते थे. पिता उस के बराबर में सिर झुकाए बैठे सोच रहे थे कि आखिर क्या दुख है मेरी बेटी को? कोई कमी नहीं है. सब लोग इसे इतना प्यार करते हैं, फिर कौन सा दुख है जो इसे अंदर ही अंदर खाए जा रहा है? पर मासूमी के होंठों पर फैली उस फीकी मुसकान का राज कोई नहीं समझ सका जिस ने उस के अस्तित्व को ही टुकडे़टुकड़े कर दिया था.

मासूमी ने बहुत कोशिश की थी खुद को बहलाने की, अकेली जिंदगी के कड़वे सच का आईना खुद को दिखाने की, लेकिन हर बार मायूसी ही उस के हाथ लगी थी. बिस्तर पर लेटी आंखें छत पर जमाए वह अतीत की गलियों से गुजर रही थी कि भाई राकेश की आवाज पर ध्यान गया, जिस ने गुस्से में पहले गमले को ठोकर मारी फिर अंदर आ कर मां से बोला, ‘‘मां, आप पापा को समझा दीजिए. उन्हें कुछ तो सोचना चाहिए कि वे कहां बोल रहे हैं. हमें कहीं भी डांटना, गाली देना शुरू कर देते हैं. हमारी इज्जत का उन्हें तनिक भी खयाल नहीं है. अब हम बच्चे तो नहीं रहे न.’’

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