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लिप्सा : भाग 1

‘‘मां घर खंडहर हुआ जा रहा है. आप को नहीं लगता कि हम 5 लोगों के लिए यह घर थोड़ा बड़ा है, एकदो कमरे किराए पर क्यों नहीं दे देतीं?’’

‘‘बेटा, तुम तो जानती हो कि तुम्हारे पापा का स्वभाव कैसा है. उन के चिड़चिड़ेपन को देख कर भला कोई एक दिन भी यहां रह सकता है?’’

‘‘तो घर बेच क्यों नहीं देते? 250 गज का घर, वह भी दिल्ली के जनकपुरी जैसे पौश इलाके में. कम से कम 6 करोड़ रुपए मिल जाएंगे.’’

‘‘फालतू की बकवास मत करो, रीमा. यह घर तुम्हारे पापा की दिनरात की मेहनत का फल है. जीतेजी तो हम इसे बेचने के बारे में सोच भी नहीं सकते.’’

रीमा मातापिता की बड़ी बेटी थी. 23 साल बीत चुके थे उस की शादी हुए और 6 वर्ष हुए पति का देहांत हुए. मांबाप ने कभी बड़ी बेटी को अकेला महसूस नहीं होने दिया. रीमा के दोनों बच्चों को उस के मांबाप ने दिल्ली के बड़े कालेज में भेजा था. दोनों का पूरा खर्चा भी वही उठा रहे थे.

45 वर्षीया रीमा के लिए जीवन अब उस के बच्चों के आगेपीछे ही घूमता था. अपने मम्मीपापा के लिए तो वह एक आदर्श बेटी थी, उन्हीं की मरजी से शादी की. हमेशा उन के लिए श्रद्धावान रही. घर में बेटे की कमी भी अब वही पूरी कर रही थी.

दूसरी बेटी 41 वर्षीया सृष्टि थी, रीमा से बिलकुल अलग. प्रकाश से शादी भी उस ने मम्मीपापा के खिलाफ जा कर की थी. यही वजह थी कि मम्मीपापा उसे अपने बुढ़ापे की लाठी नहीं सम झते थे और उस से किनारा कर के रखते थे.

सृष्टि के पति के एक प्राइवेट कंपनी में एनिमेटर की नौकरी करते थे. सृष्टि भी उसी कंपनी में स्केच आर्टिस्ट थी. दोनों की महीने की तनख्वाह मिला कर 56 हजार रुपए थी. बेटे निखिल का दाखिला भी मैडिकल कालेज में हो गया था. जीवन में कोई कमी नहीं थी. उस के पास उस का पति था, नौजवान बेटा था, बहुत बड़ा न सही पर खुद का घर था. उस ने कभी मातापिता के आगे हाथ नहीं फैलाए थे. बड़ी बहन रीमा से भी उस के रिश्ते कुछ खास नहीं थे. हां, उस के पति नितिन की मौत पर सृष्टि को दुख तो हुआ था, बहन को कंधा देना भी चाहा था पर उस के पास इतने लोगों का सहारा था कि सृष्टि अपनेआप को पराया महसूस कर दूर ही रही.

अमरकांत और उन की पत्नी सुषमा ने क्या कुछ नहीं देखा था जीवन में. रीमा और सृष्टि को साथ मिल कर बड़ा किया था उन्होंने, बिलकुल वैसे ही जैसे पौधे को सींच कर बड़ा किया जाता है. बेटियों से अटूट प्रेम था. पर जब सृष्टि ने प्रकाश का हाथ थामा तो अमरकांत बेटी के सिर पर आशीर्वाद देने के लिए हाथ नहीं बढ़ा पाए. आखिर बढ़ाते भी कैसे? प्रकाश नीची जाति का जो था. उन्होंने सृष्टि को शादी के लिए मना किया तो अगले दिन ही वह कोर्ट में जा कर शादी कर आई.

वह पढ़ीलिखी थी, सो, कानूनी दांवपेंच अच्छी तरह सम झती थी. सृष्टि और प्रकाश के रिश्ते पर उन्होंने कभी हामी तो नहीं भरी लेकिन पत्नी के कहने पर उसे घर आनेजाने से नहीं रोका.

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‘‘मां, मैं मार्केट जा रही हूं,’’ रीमा ने अपना पर्स टेबल से उठाते हुए कहा.

‘‘ठीक है बेटा, आराम से जाना,’’ मां ने जवाब दिया.

रीमा मौडर्न बाजार में खरीदारी कर के निकल ही रही थी कि उसे मन्नू आंटी दिखीं.

‘‘नमस्ते मन्नू आंटी, बड़े दिनों बाद दिखीं,’’ रीमा ने मन्नू आंटी की ओर देखते हुए कहा.

‘‘अरे रीमा, कैसी हो बेटा,’’ मन्नू आंटी ने पूछा.

‘‘मैं बिलकुल ठीक हूं, आप बताइए, कीर्ति कैसी है?’’

‘‘वह तो मुंबई में है. पति से तलाक हो गया था. बच्चों के साथ वहीं बस गई. अब कमा रही है और खा रही है.’’

‘‘अच्छा, यह तो बहुत अच्छा है.’’

‘‘हां, अब हर कोई तो अपने मांबाप के ऊपर बैठ कर खाएगा नहीं न,’’ मन्नू आंटी ने ताना कसते हुए जवाब दिया.

रीमा बात के कटाक्ष को सम झ गई थी, वह छोटा सा मुंह लिए रह गई.

कुछ देर बाद रीमा घर तो आ गई पर मनमस्तिष्क अभी भी मन्नू आंटी की बातों पर ही था. रातभर यहां से वहां करवटें बदलती रही. ‘अब हर कोई तो अपने मांबाप के ऊपर बैठ कर खाएगा नहीं.’ मन्नू आंटी की यह बात बारबार उस के दिमाग में दौड़ रही थी. उस की रक्तवाहिनियों में रक्त की जगह पीड़ा दौड़ रही थी. उस के सामने उस के 2 बच्चे थे. उसे उन के लिए कुछ करना था.

पापा अगले महीने रिटायर हो जाएंगे. उस के खुद के बैंक अकाउंट में भी 3-4 हजार रुपए से ज्यादा की रकम नहीं थी. लेकिन, पापा के अकाउंट में अभी 3 लाख रुपए थे. वो कुछ महीने ही चलेंगे. उस के बाद क्या? ससुराल में तो कोई ऐसा संबंधी भी नहीं जो उसे या उस के बच्चों को सहारा दे, मम्मी पापा की जिंदगी अब बची ही कितनी है. रीमा के सामने पूरा भविष्य था.

अगले दिन रीमा ने दोनों बच्चों को अपने पास बैठाया और अपने मन का हाल उन से कह डाला. तीनों घंटों तक इस विषय पर चर्चा करते रहे. उन्होंने कुछ योजना बनाई थी पर वह क्या थी और उस के क्या परिणाम होने वाले थे, इस की अमरकांत और उन की पत्नी ने कभी कल्पना भी नहीं की थी.

‘‘पापा, जरा इन कागजों पर दस्तखत तो कर दीजिए.’’

‘‘किस चीज के कागजात हैं बेटा? मेरा चश्मा तो ले आओ.’’

‘‘पापा, रिन्नी के कालेज में एफिडेविट जमा करना है, उसी के पेपर हैं. वह कालेज के लिए लेट हो रही है, आप थोड़ा जल्दी कर दें तो अच्छा होगा.’’

‘‘अच्छा, ठीक है, बताओ कहां करने हैं?’’

‘‘यहां,’’ रीमा ने रिक्त स्थान की तरफ इशारा करते हुए कहा.

पापा के दस्तखत करा कर रीमा अपने कमरे की तरफ लौटी.

‘‘काम हो गया मां?’’ दिनेश ने पूछा.

हां, हो गया. मैं आज ही डीलर से घर बेचने की बात कर आऊंगी. महीने के आखिर तक तो घर बिक ही जाएगा. इस के बाद प्लान के दूसरे भाग की बारी आएगी,’’ रीमा ने मुसकराते हुए कहा.

रीमा बिना संकोच किए पापा से एफिडेविट के नाम पर पावर औफ अटौर्नी के पेपर पर दस्तखत करा लाई थी. अब, बस उसे डीलर से मिल कर घर बेचने की बात करनी थी.

एक हफ्ता ही हुआ था कि डीलर ने एक बहुत अच्छी डील के बारे में रीमा को फोन किया.

‘‘हैलो,’’ रीमा ने फोन उठाते हुए कहा.

‘‘हैलो, रीमा जी, मैं बोल रहा हूं, वह आप के घर के लिए एक बहुत अच्छी पार्टी मिल गई है, कब लाऊं घर दिखाने?’’

‘‘जी, वो…म..आ…आप उन्हें कल आने के लिए कह दीजिए,’’ रीमा ने  िझ झकते हुए कहा.

‘‘अच्छाअच्छा, जैसा आप को ठीक लगे.’’

रीमा नीचे मां के कमरे में गई, ‘‘मां, जरा सुनो.’’

‘‘हां, कहो क्या हुआ?’’ मां ने जवाब दिया.

‘‘मां, वो मैं सोच रही थी कि प्रिया आंटी ने पोते के जन्मदिन के लिए बुलाया है, तो आप और पापा वहां क्यों नहीं हो आते. थोड़ा अच्छा भी महसूस होगा.’’

‘‘हां, मैं भी यही सोच रही थी. कल तुम्हारे पापा की छुट्टी भी है. बड़े दिन हो गए प्रिया के घर भी नहीं गए. इसी बहाने एकदो लोगों से मिलनामिलाना भी हो जाएगा.’’

अगले दिन घड़ी के 4 बजे तो 2 ही मिनट बाद दरवाजे की घंटी बजी. रीमा ने दरवाजा खोला. डीलर के साथ एक महिला और एक पुरुष थे.

‘‘जी नमस्ते, मैं रीमा हूं और ये मेरे 2 बच्चे हैं दिनेश और रिन्नी.’’

‘‘रीमाजी, ये मिस्टर राकेश और इन की पत्नी ललिता हैं. बड़े ही इज्जतदार लोग हैं. आप बिलकुल सही हाथों में अपना घर देने जा रही हैं.’’

‘‘अरे, पहले घर पसंद तो आने दीजिए,’’ दिनेश ने आगे बढ़ कर कहा.

‘‘भई, आएगा क्यों नहीं, इतनी बड़ी कोठी है. नजर रखो तो लगता है नजर न लग जाए,’’ रिन्नी  झट से बोल पड़ी.

‘‘हां,’’ लेकिन दीवारें पुरानी होती मालूम पड़ती हैं, रहने से पहले काफी काम की जरूरत है,’’ राजेश ने कहा.

‘‘हां, पर आप को कौन सा यहां अभी रहना है. अगले साल रहना शुरू करेंगे न आप अपना कीर्ति नगर का घर बेच कर. तो, तब तक करा लीजिएगा घर की रिपेयरिंग,’’ डीलर ने कहा.

राकेश और ललिता ने घर की अच्छी तरह जांचपड़ताल की. फिर सभी लोग हौल में आ कर बैठ गए और घर के विषय पर चर्चा करने लगे.

‘‘रीमा जी, घर तो आप के मातापिता का है. वे दोनों कहां हैं? वे यह घर बेचना क्यों चाहते हैं?’’ राकेश ने पूछा.

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‘‘जी, वे जरूरी काम से बाहर गए हैं. घर बेचना इसलिए चाहते हैं क्योंकि वे मेरे दोनों बच्चों को उन की आगे की पढ़ाई के लिए दूसरे शहर भेजना चाहते हैं. इन से बहुत प्यार है उन्हें. पापा वैसे भी अब रिटायर होने वाले हैं और मां की दिमागी हालत ठीक नहीं है. दोनों 4 महीने बाद मेरी दूर की मौसी के घर पटना रहने चले जाएंगे,’’ रीमा एक सांस में ऐसे बोल पड़ी जैसे रट्टू तोता बोलता है.

‘‘और आप?’’ ललिता ने पूछा.

‘‘मु झ विधवा का क्या है, मैं तो बस पड़ी रहूंगी एक कोने में,’’ रीमा ने उत्तर दिया.

बात 6 करोड़ रुपए में पक्की हो गई. घर खाली करने के लिए राकेश और ललिता की तरफ से कोई जल्दी नहीं थी. लेकिन घर की कीमत मिल जाने के बाद रीमा और उस के परिवार को उस घर में रहने के लिए किराया देना होगा, यह उन का प्रस्ताव था. किराए की रकम 24 हजार थी, जिस के लिए रीमा ने हामी भी भर दी. एक महीना बीत चुका था, पापा रिटायर भी हो चुके थे. सो, वे हर वक्त घर में ही रहने लगे थे.

एक दिन दिनेश कालेज से घर वापस लौटा तो उस के चेहरे पर जरूरत से ज्यादा खुशी थी. आखिर होती भी क्यों न, अभीअभी डीलर के यहां से 6 करोड़ का चैक जो ले कर आया है. अब रीमा के प्लान का दूसरा भाग शुरू होना था.

‘‘मम्मीपापा, मैं आप से कुछ बात करना चाहती हूं?’’

‘‘हां, कहो रीमा,’’ मां ने उत्तर दिया.

‘‘वो…वो दिनेश और रिन्नी का कालेज खत्म हो गया है तो उन की आगे की पढ़ाई के लिए मैं सोच रही थी कि इन दोनों को चंडीगढ़ भेज दूं और मैं भी कुछ दिन इन के साथ ही रह आऊं. आखिर आप को भी तो लगता होगा कैसी बो झ सी पड़ी रहती हूं घर में. हां, आप से इन की फीस के लिए थोड़े पैसे मिल जाते तो मुश्किल आसान हो जाती,’’ कहते हुए रीमा की आंखें भर आईं.

‘‘रीमा, हमारे लिए तुम बो झ नहीं हो, हमारी बेटी हो. तुम्हें जो चाहिए, जितने पैसे चाहिए, खुशी से लो. पर यों चंडीगढ़ चली जाओगी तो तुम्हारे इन बूढ़ेमांबाप का क्या होगा?’’ अमरकांत रीमा की ओर आश्चर्य से देखते हुए बोले.

‘‘पापा, कुछ महीने की ही बात है. बस, थोड़ा समय घर से दूर बिताना चाहती हूं.’’

‘‘ठीक है बेटा, अगर तुम्हारी यही मरजी है तो हमें एतराज नहीं,’’ अमरकांत ने रीमा के सिर पर हाथ रखते हुए कहा.

अगले हफ्ते रीमा बच्चों को ले कर चंडीगढ़ जाने के लिए रवाना हो गई. उस ने पापा से लिए 75 हजार रुपए घर के किराए के रूप में दे दिए. उस के इस षड्यंत्र के बारे में न उस के मातापिता को खबर थी और न ही सृष्टि को. रीमा ने फिर दोबारा घर की तरफ मुड़ कर नहीं देखा. हां, हफ्तेदस दिनों में फोन कर लिया करती थी, पर दोढाई महीना बीतने के बाद उस ने फोन करना भी बंद कर दिया.

डेटिंग टिप्स: भूलकर भी न पूछे ये 8 सवाल

डेटिंग पर जाना अब रूटीन बन गया है. आप एक क्यूट युवक से पार्टी में मिलीं और अगले ही दिन उस ने आप को डेट पर बुलाया तो आप मना करने से रहीं. हां, उस से मिलने जाने से पूर्व इतना जरूर सोचेंगी कि क्या पहनूं, मेकअप कैसा करूं और ऐक्सैसरीज में क्या अलग करूं. माना कि आप का आउटलुक महत्त्वपूर्ण है, आप के दिखने से आप का स्टेटस बनताबिगड़ता है, लेकिन इस से भी ज्यादा फर्क इस बात से पड़ेगा कि आप वहां क्या बातें करेंगी, किस अंदाज से बोलेंगी, बातचीत के टौपिक क्या होंगे.

अगर यह आप की पहली औफिशियल डेट है तो आप यह भी नहीं चाहेंगी कि आप की बातों से उसे कुछ गलत सिगनल मिले या बनतेबनते बात बिगड़ जाए और पहली डेट आखिरी बन कर रह जाए. तो जानिए, क्या बोलना है, कितना बोलना है? साथ ही यह भी कि कौनकौन सी बातें आप को कम से कम ‘फर्स्ट डेट’ पर कभी नहीं पूछनी चाहिए?

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1. क्या आप किसी और को भी डेट कर रहे हैं?

अगर आप सीरियस रिलेशनशिप चाहती है तो आप के लिए यह जानना बेहद जरूरी है, लेकिन निश्चित तौर पर यह पहली डेट पर पूछा जाने वाला सवाल नहीं है. अभी आप एकदूसरे के लिए अजनबी हैं. पहली डेट आप के लिए पहला कदम है, एकदूसरे के बारे में छोटीमोटी बातें जानने, पसंदनापसंद जानने तथा यह जानने के लिए कि ‘एज ए परसन’ वह कैसा है, लेकिन पहली डेट पर हद से ज्यादा पर्सनल होना लड़के को इरिटेट कर सकता है.

2. आप की सैलरी कितनी है?

यह बेहद पर्सनल और सैंसिटिव इश्यू है कि एक व्यक्ति कितना कमाता है, जिस तरह किसी युवती से उस की उम्र नहीं पूछनी चाहिए उसी तरह किसी युवक से उस की अर्निंग के बारे में सवाल करना ठीक नहीं. ऐसा ‘फर्स्ट डेट’ पर कतई न पूछें. कुछ ही युवक होते हैं जो इस सवाल का जवाब कूल हो कर देंगे. युवक कितना कमाते हैं, इस बात को ले कर बेहद ‘टची’ होते हैं. यह सवाल ईगो को ठेस पहुंचा सकता है.

3. मैं सीरियस रिलेशनशिप में यकीन रखती हूं क्या आप भी रखते हैं?

जिंदगी में सीरियस होना, रिश्तों को गंभीरता से निभाना बेहद जरूरी है और अपने लिए उस एक स्पैशल इंसान की तलाश करना जिस के साथ आप अपनी पूरी जिंदगी बिताना चाहें, भी कुछ गलत नहीं है. यह ठीक नहीं कि आप पहली ही डेट पर यह जानना चाहें कि वह भी उतना ही सीरियस है कि नहीं. डेटिंग को ले कर युवक ज्यादा सीरियस नहीं होते, लेकिन फिर भी पहली डेट पर ही आप सीरियस कमिटमैंट की चाह रखती हैं, तो गलत होगा. उसे धीरेधीरे समझें और परखें फिर आप को यह पूछने की जरूरत भी महसूस नहीं होगी.

4. क्या आप जल्दी शादी प्लान करने की सोच रहे हैं?

क्या होगा अगर आप के सीधे सवाल के जवाब में उस ने भी सीधेसीधे ‘नहीं’ कह दिया? तो क्या आप उसी पल उठ कर रैस्टोरैंट से बाहर चली जाएंगी, नहीं न? दरअसल, शादी एक लौंग लाइफ डिसीजन है. पहली डेट पर तो कोई इस बारे में सोचता ही नहीं. हां, अगर आप को युवक पसंद आ गया है और अपने लिए मिस्टरराइट लग रहा है या आप पहली डेट को शादी तक ले जाने की सोच रही हैं तो बात अलग है. फिर भी 4-5 डेट तो सिर्फ यह जानने में लग जाती हैं कि आप दोनों एकसाथ आगे वक्त बिता सकते हैं या नहीं.

5. मुझे बच्चे पसंद हैं और आप को?

कैरियर ओरिएंटेड युवतियां शादी की कल्पना करते ही बच्चे के बारे में प्लान कर बैठती हैं, लेकिन पहली डेट पर ही उस से बेबीज के बारे में बात करेंगी तो उस का दिल करेगा कि उसी पल वह आप को छोड़ कर भाग जाए.  पहली डेट पर हलकाफुलका फ्लर्ट, रोमांटिक बातें, आंखों ही आंखों में कहनेसुनने की उम्मीद ले कर युवक युवती से मिलने आता है और आप जानना चाहती हैं कि वह आप के मिजाज का है या नहीं. जिंदगी के बारे में बातें कीजिए, फिल्म, फैशन, मौसम, कैरियर की बातें कीजिए पर बच्चे जैसे टौपिक पर नहीं.

6. क्या आप किसी के साथ फिजिकली इन्वौल्व्ड थे?

बेशक आप बेहद मौडर्न, बोल्ड युवती हों, जिस के लिए लव, सैक्स कोई टैबू नहीं और जिसे आप डेट कर रही हों, वह युवक भी यूएस रिटर्न्ड हो, फिर भी पहली डेट पर इतना पर्सनल, अंतरंग सवाल न पूछें. अभी आप एकदूसरे के इतने करीब नहीं आए कि दूसरे के नितांत निजी पलों को जानने का हक रखें. वैसे भी ‘सैक्स टौक’ बेहद निजी सब्जैक्ट है, सोचिए अगर आप से वह ऐसा ही सवाल पूछ ले तो?

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7. हम दोबारा कब मिल रहे हैं?

अगर आप का पार्टनर आप से दोबारा मिलना चाहता है तो निश्चिंत रहिए, वह खुद आप को दोबारा कौल कर इन्वाइट करेगा, आप को बेकरार हो कर उसी वक्त उस से पूछने की जरूरत नहीं है. इस की जगह पहले अपनेआप से पूछिए कि क्या आप उस युवक के साथ दोबारा डेट पर जाना चाहेंगी. यदि आप की ओर से हां है तो भी पहली डेट का आकलन कर लें कि कैसा अनुभव रहा.

8. क्या मैं तुम्हें पसंद हूं?

अगर पहली डेट पर ही आप को ऐसा लग रहा है कि आप को जिस की तलाश थी वह यही है, आप को अपना ड्रीमबौय मिल गया है, तो भी सब्र रखिए और उस की ओर से क्या जवाब आता है यह जानिए. क्या उस के ख्वाबों की ताबीर आप हैं? क्या वह भी आप को अपनी मंजिल मान रहा है? इस बारे में जान कर ही आगे बढि़ए और पूछिए कि क्या वह आप को पसंद करता है?

पहली डेट पर ही मुहर लगाना और लगवाना दोनों ही गलत हैं. थोड़ा इंतजार कीजिए कुछ और मुलाकातों का. इंतजार का भी तो अपना मजा है. दरअसल, डेटिंग में आप को क्या, कैसे करना है इस का निर्णय तो आप को स्वयं ही लेना है और डेटिंग के लिए आप तभी आगे बढि़ए जब आप में इतनी परिपक्वता आ जाए.

फैसला इक नई सुबह का : भाग 3

आजकल रिश्ते वाकई मतलब के हो गए हैं. सब की छोड़ो, पर अपनी बेटी भी…उस का सबकुछ तो बच्चों का ही था. फिर भी उन का मन इतना मैला क्यों है. उस की आंखों से आंसू निकल कर उस के गालों पर ढुलकते चले गए. क्या बताएगी कल वह समीर को अपने अतीत के बारे में. क्या यही कि अपने अतीत में उस ने हर रिश्ते से सिर्फ धोखा खाया है. इस से अच्छा तो यह है कि वह कल समीर से मिलने ही न जाए. इतने बड़े शहर में समीर उसे कभी ढूंढ़ नहीं पाएगा. लेकिन बचपन के दोस्त से मिलने का मोह वह छोड़ नहीं पा रही थी क्योंकि यहां, इस स्थिति में इत्तफाक से समीर का मिल जाना उसे बहुत सुकून दे रहा था. समीर उस के मन के रेगिस्तान में एक ठंडी हवा का झोंका बन कर आया था, इस उम्र में ये हास्यास्पद बातें वह कैसे सोच सकती है? क्या उस की उम्र में इस तरह की सोच शोभा देती है. ऐसे तमाम प्रश्नों में उस का दिमाग उलझ कर रह गया था. वह अच्छी तरह जानती थी कि यह कोई वासनाजनित प्रेम नहीं, बल्कि किसी अपनेपन के एहसास से जुड़ा मात्र एक सदभाव ही है, जो अपना दुखदर्द एक सच्चे साथी के साथ बांटने को आतुर हो रहा है. वह साथी जो उसे भलीभांति समझता था और जिस पर वह आंख मूंद कर भरोसा कर सकती थी. यही सब सोचतेसोचते न जाने कब उस की आंख लग गई.

सुबह 7 बजे से ही बेटी ने मांमां कह कर उसे आवाज लगानी शुरू कर दी. सही भी है, वह एक नौकरानी ही तो थी इस घर में, वह भी बिना वेतन के, फिर भी वह मुसकरा कर उठी. उस का मन कुछ हलका हो चुका था. उसे देख बेटी ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘क्यों मां, कितनी देर तक सोती हो? आप को तो मालूम है मैं सुबहसुबह आप के हाथ की ही चाय पीती हूं.’’

‘‘अभी बना देती हूं, नित्या,’’ कह कर उन्होंने उधर से निगाहें फेर लीं, बेटी की बनावटी हंसी ज्यादा देर तक देखने की इच्छा नहीं हुई उन की. घर का सब काम निबटा कर नियत 4 बजे मानसी घर से निकल गई. पार्क पहुंच कर देखा तो समीर उस का इंतजार करता दिखाई दिया. ‘‘आओ मानसी, मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था,’’ समीर ने प्रसन्नता व अपनेपन के साथ कहा.

‘‘मुझे बहुत देर तो नहीं हो गई समीर, क्या तुम्हें काफी इंतजार करना पड़ा?’’ ‘‘हां, इंतजार तो करना पड़ा,’’ समीर रहस्यमय ढंग से मुसकराया.

थोड़ी ही देर में वे दोनों अपने बचपन को एक बार फिर से जीने लगे. पुरानी सभी बातें याद करतेकरते दोनों थक गए. हंसहंस कर दोनों का बुरा हाल था. तभी समीर ने उस की आंखों में आंखें डाल कर पूछा, ‘‘तुम अब कैसी हो, मानसी, मेरा मतलब तुम्हारे पति व बच्चे कैसे हैं, कहां हैं? कुछ अपने आज के बारे में बताओ?’’ ‘‘मैं बिलकुल ठीक हूं, बहुत अच्छे से,’’ कहते हुए मानसी ने मुंह दूसरी ओर कर लिया.

‘‘अच्छी बात है, यही बात जरा मुंह इधर कर के कहना,’’ समीर अब असली मुद्दे पर आ चुका था, ‘‘बचपन से तुम्हारी आंखों की भाषा समझता हूं, तुम मुझ से छिपा नहीं सकती अपनी बेचैनी व छटपटाहट. कुछ तो तुम्हारे भीतर चल रहा है. मैं ने कल ही नोटिस कर लिया था, जब तुम ने हमें देख कर भी नहीं देखा. तुम्हारा किसी खयाल में खोया रहना यह साफ दर्शा रहा था कि तुम कुछ परेशान हो. तुम पर मेरी नजर जैसे ही पड़ी, मैं तुम्हें पहचान गया था. अब मुझे साफसाफ बताओ किस हाल में हो तुम? अपने बारे में पूरा सच, और हां, यह जानने का मुझे पूरा हक भी है.’’ ‘‘समीर’’ कहती हुई मानसी फूटफूट कर रोने लगी. उस के सब्र का बांध टूट गया. अपनी शादी से ले कर, राजन की बेवफाई, अपनी घुटन, सासससुर, अपने बच्चों व उन की परवरिश के बारे में पूरा वृतांत एक कहानी की तरह उसे सुना डाला.

‘‘ओह, तुम जिंदगीभर इतना झेलती रही, एक बार तो अपने भैयाभाभी को यह बताया होता.’’ ‘‘क्या बताती समीर, मेरा सुख ही तो उन की जिंदगी का एकमात्र लक्ष्य था. उन के मुताबिक तो मैं बहुत बड़े परिवार में खुशियांभरी जिंदगी गुजार रही थी. उन्हें सचाई बता कर कैसे दुखी करती?’’

‘‘चलो, जो भी हुआ, जाने दो. आओ, मेरे घर चलते हैं,’’ समीर ने उस का हाथ पकड़ते हुए कहा. ‘‘नहीं समीर, आज तो बहुत देर हो चुकी है, नित्या परेशान हो रही होगी. फिर किसी दिन चलूंगी तुम्हारे घर.’’ समीर के अचानक से हाथ पकड़ने पर वह थोड़ी अचकचा गई.

‘‘तुम आज ही चलोगी. बहुत परेशान हुई आज तक, अब थोड़ा उन्हें भी परेशान होने दो. मेरे बच्चों से मिलो, तुम्हें सच में अच्छा लगेगा,’’ कहते हुए समीर उठ खड़ा हुआ.

समीर की जिद के आगे बेबस मानसी कुछ संकोच के साथ उस के संग चल पड़ी. बड़ी ही आत्मीयता के साथ समीर की बहू ने मानसी का स्वागत किया. कुछ देर के लिए मानसी जैसे अपनेआप को भूल ही गई. समीर के पोते के साथ खेलतेखेलते वह खुद भी छोटी सी बच्ची बन बैठी. वहीं बातोंबातों में समीर की बहू से ही उसे पता चला कि उस की सासूमां अर्थात समीर की पत्नी का देहांत 2 साल पहले एक रोड ऐक्सिडैंट में हो चुका है. उस दिन समीर का जन्मदिन था और वे समीर के जन्मदिन पर उन के लिए सरप्राइज पार्टी की तैयारियां करने ही बाहर गई थीं. यह सुन कर मानसी चौंक उठी. उसे समीर के लिए बहुत दुख हुआ.

अचानक उस की नजर घड़ी पर पड़ी और उस ने चलने का उपक्रम किया. समीर उसे छोड़ने पैदल ही उस के अपार्टमैंट के बाहर तक आया. ‘‘समीर तुम्हारे पोते और बहू से मिल कर मुझे बहुत अच्छा लगा. सच, बहुत खुश हो तुम.’’

‘‘अरे, अभी तुम हमारे रौशनचिराग से नहीं मिली हो, जनाब औफिस से बहुत लेट आते हैं,’’ समीर ने मुसकराते हुए कहा. ‘‘चलो, फिर सही, कहते हुए मानसी लिफ्ट की ओर चल पड़ी.’’

‘‘अब कब मिलोगी,’’ समीर ने उसे पुकारा. ‘‘हां समीर, देखो अब कब मिलना होता है, मानसी ने कुछ बुझी सी आवाज में कहा.’’

‘‘अरे, इतने पास तो हमारे घर हैं और मिलने के लिए इतना सोचोगी. कल शाम को मिलते हैं न पार्क में,’’ समीर ने जोर दिया. ‘‘ठीक है समीर, मैं तुम्हें फोन करती हूं, जैसा भी संभव होगा,’’ कहते हुए लंबे डग भरते हुए वह लिफ्ट में दाखिल हो गई. जैसा कि उसे डर था, घर के अंदर घुसते ही उसे नित्या की घूरती आंखों का सामना करना पड़ा. बिना कुछ बोले वह जल्दी से अपने काम में लग गई.

बैकुंठ : भाग 2

राधे महाराज से पहले उन के पिता किशन महाराज, श्यामाचरण के पिता विद्याचरण के जमाने से घर के पुरोहित हुआ करते थे. जरा भी कहीं धर्म के कामों में ऊंचनीच न हो जाए, विवाह, बच्चे का जन्म, अन्नप्राशन, मुंडन कुछ भी हो, वे ही संपन्न करवाते, आशीष देते और थैले भरभर कर दक्षिणा ले जाते.

इधर, राधे महाराज ने शुभमुहूर्त और शुभघड़ी के चक्कर में श्यामाचरण को कुछ ज्यादा ही उलझा लिया था. कारण मालती को साफ पता था, बढ़ते खर्च के साथ बढ़ता उन का लालच, जिसे श्यामाचरण अंधभक्ति में देख नहीं पाते. कभी समझाने का प्रयत्न भी करती तो यही जवाब मिलता, ‘‘तुम तो निरी नास्तिक हो मालती, नरक में भी जगह नहीं मिलेगी तुम को, मैं कहे दे रहा हूं. पूजापाठ कुछ करना नहीं, न व्रतउपवास, न नियमधरम से मंदिरों में दर्शन करना. घर में जो मुसीबत आती है वह तुम्हारी वजह से. चार अक्षर ज्यादा पढ़लिख गई तो धर्मकर्म को कुछ समझना ही नहीं.

‘‘तुम्हारी देखादेखी बच्चे भी उलटापुलटा सीख गए. घबराओ मत, बैकुंठ कभी नहीं मिलेगा तुम्हें. घर की सेवा, समाजसेवा करने का स्वांग बेकार है. अपने से ईश्वर की सेवा करते मैं ने तुम्हें कभी देखा नहीं, कड़ाहे में तली जाओगी, तब पता चलेगा,’’ कहते हुए आधे दर्जन कलावे वाले हाथ से गुरुवार हुआ तो गुरुवार के पीले कपड़ों में सजेधजे श्यामाचरण, हलदीचंदन का टीका माथे पर सजा लेते. उन के हर दिन का नियम से पालन उन के कपड़ों और टीके के रंग में झलकता.

‘‘नरक भी नहीं मिलेगा, कभी कहते हो कड़ाहे में तली जाऊंगी, कभी बैकुंठ नहीं मिलेगा, फिर पाताल लोेक में जाऊंगी क्या? जहां सीता मैया समा गई थीं. अब मेरे लिए वही बचा रह गया…’’ उस की हंसी छूट जाती. मुंह में आंचल दबा कर वह हंसी रोकने की कोशिश करती. कभीकभी उसे गुस्सा भी आता कि दिमाग है तो तर्क के साथ क्यों नहीं मानते कुछ भी. कौआ कान ले गया, सब दौड़ पडे़, अपने कानों को किसी ने हाथ ही नहीं लगा कर देखना चाहा, वही वाली बात हो गई. अब कुछ तो करना चाहिए कि यह सब बंद हो सके. पर कैसे?

वह सोचने लगी कि क्षितिज का सीडीएस का इंटरव्यू भी तो उन के इसी शुभमुहूर्त के चक्कर में छूट गया था. उस की बरात ले कर ट्रेन से पटना के लिए निकलने वाले थे हम सब, तब भी घर से मुहूर्त के कारण इतनी देर से स्टेशन पहुंचे कि गाड़ी ही छूट गई. किस तरह फिर बस का इंतजाम किया गया था. सब उसी में लदेफंदे हाईस्पीड में समय से पटना पहुंचे थे, पर श्यामजी की तो लीला निराली है, तब भी यही समझ आया कि सही मुहूर्त में चले थे, इसलिए कोई हादसा होने से बच गया. फिर पूजा भी इस के लिए करवाई, कमाल है.

नया केस लेंगे तो पूजा, जीते तो सत्यनारायण कथा, हारे तो दोष निवारण, शांतिपाठ हवन. पता नहीं वह कौन सी आस्था है. या तो सब अपने उस देवता पर छोड़ दो या फिर सपोर्ट ही करना है उसे, तो धार्मिक कर्मकांडों की चमचागीरी से नहीं, बल्कि उसे ध्यान में रख कर अपने प्रयास से कर सकते हो. तो वही क्यों न करो. पर अब कौन समझाए इन्हें कितनी बार तो कह चुकी.

करवाचौथ की पूजा के लिए मेरी जगह वे उत्साहित रहते हैं. मांजी के कारण यह व्रत रखे जा रही हूं. पिछले वर्ष ही तो उन का निधन हो गया, पर श्यामजी को कैसे समझाऊं कि मुझे इस में भी विश्वास नहीं. कह दूं तो बहुत बुरा मान जाएंगे. औरत के व्रत से आदमी की उम्र का क्या संबंध? हां, स्वादिष्ठ, पौष्टिक व संतुलित भोजन खिलाने, साफसफाई रखने और घर को व्यवस्थित व खुशहाल रखने से अवश्य हो सकता है, जिस का मैं जीजान से खयाल रखती हूं. बस, अंधविश्वास में उन का साथ दे कर खुश नहीं कर पाती, न स्वयं खुश हो पाती.

‘‘चलो, कोई तो पूजा करती हो अपने से, साल में एक बार. घर की औरत के पूजाव्रत से पूरे घर को पुण्य मिलता है, सुहागन मरोगी तो सीधा बैकुंठ जाओगी.’’ दुनियाभर को जतातेफिरते श्यामाचरण के लिए आज मालती ने भी व्रत रखा है, उन की इज्जत बढ़ जाती. अपने से ढेर सारे फलफलाहारी, फेनीवेनी, पूजासामग्री, उपहार, साड़ी, चूड़ी, आल्ता, बिंदी सब ले आते. सरगई का इंतजाम करना जैसे उन्हीं की जिम्मेदारी हो, इस समझ का मैं क्या करूं? रात की पूजा करवाने के लिए राधे पंडित को खास निमंत्रण भी दे आए होंगे.

सरगई के लिए 3 बजे उठा दिया श्यामाचरण ने. ‘‘खापी लो अच्छी तरह से मालती, पूजा से पहले व्रत भंग नहीं होना चाहिए.’’ वह सोते से अनमनी सी घबरा कर उठ बैठी थी कि क्या हो गया. उस ने देखा श्यामजी उसे जगा कर, फिर चैन से खर्राटे भरने लगे. यह प्यार है या बैकुंठ का डर? पागलों की तरह इतनी सुबह तो मुझ से कभी खाया न गया, भूखा रहना है तो पूरे दिन का खाना मिस करो न.

हिंदुओं का करवा, मुसलमानों का रोजा सब यही कि दो समय का भोजन एकसाथ ही ठूंस लो कि फिर पूजा से पहले न भूख लगेगी न प्यास, यह भी क्या बात हुई अकलमंदी की. नींद तो उचट चुकी थी, वह सोचे जा रही थी. तभी फोन की घंटी बजी. इस समय कौन हो सकता है? श्यामजी की नाक अभी भी बज रही थी, सो, फोन उसी ने उठा लिया.

‘‘हैलो, कौन?’’

‘‘ओ मालती, मैं रैमचो, तुम्हारा डाक्टर भैया, अभी आस्ट्रेलिया से इंडिया पहुंचा हूं.’’

‘‘नमस्ते भैया, इतने सालों बाद, अचानक,’’ मालती खुशी से बोली, ससुराल में यही जेठ थे जिन से उन के विचार मेल खाते थे.

‘‘हां, कौन्फ्रैंस है यहां, सब से मिलना भी हो जाएगा और सब ठीक हैं न?

1 घंटे में घर पहुंच रहा हूं.’’

‘आज 5 सालों बाद डाक्टर भैया घर आ रहे हैं. अम्मा के निधन पर भी नहीं आ सके थे. भाभी का लास्ट स्टेज का कैंसर ट्रीटमैंट चल रहा था, उसी में वे चल भी बसीं. 3 लड़के ही हैं भैया के, तीनों शादीशुदा, वैल सैटल्ड. कोई चिंता नहीं अब, डाक्टरी और समाजसेवा में ही अपना जीवन समर्पित कर रखा है उन्होंने. वह बच्चों को प्रेरणा के लिए उन का अकसर उदाहरण देती है,’ यह सब सोचते हुए मालती फटाफट नहाधो कर आई. फिर श्यामजी को उठा कर भैया के आने के बारे में बताया.

‘‘रामचरण भैया, अचानक…’’

‘‘नहीं, रैमचो भैया. मैं उन की पसंद का नाश्ता तैयार करने जा रही हूं, आप भी जल्दी से तैयार हो जाओ,’’ उस ने हंसते हुए कहा और किचन की ओर बढ़ गई.

श्यामाचरण उठे तो सरगई को वैसे ही पड़ा देख कर बड़बड़ाए थे. खाया नहीं महारानी ने, बेहोश होंगी तो यही होगा, मैं ने ही जबरदस्ती व्रत रखवाया है. भैया तो मुझे छोड़ेंगे नहीं. जब तक यहां थे, मालती की  हिमायत, वकालत करते थे हमेशा. मांबाबूजी और दादी से कई बार बहस होती रहती धर्म संस्कारों, रीतिरिवाजों को ले कर कि आप लोग तो आगे बढ़ना ही नहीं चाहते. तभी तो एक दिन अपने परिवार को ले कर भाग लिए आस्टे्रलिया, वहीं बस गए और रामचरण से रैमचो बन गए. अपनी धरती, अपने परिवार को छोड़ कर, उन के बारे में सोचते हुए श्यामाचरण नहाधो कर जल्दीजल्दी नित्य पूजा समाप्त करने में जुट गए.

इशिता राज शर्मा का ब्यूटी एंड फिटनेस मंत्र

मिस एंड मिसेज इंडिया एशिया पैसिफिक 2019 का दिल्ली औडिशन होटल हौलीडे इन, एरोसिटी दिल्ली में  13 अक्टूबर को आयोजित किया गया, जिसमें बौलीवुड के फेमस एक्टर व एक्ट्रेस ने जूरी मेम्बर्स के रूप में अपनी खास भूमिका निभाई, जिनमें बौलीवुड अभिनेत्री इशिता राज शर्मा,  अभिलाषा जाखड, संतोष शुक्ला, अजय नागरथ  आदि मौजूद रहे.

इस मौके पर ‘यारम’ मूवी में लीड रोल निभाने वाली  बौलीवुड एक्ट्रेस इशिता राज शर्मा से  हुई मुलाकात के दौरान ब्यूटी और फिटनेस को लेकर हुई खास बातचीत.

आज के समय में सभी लड़कियां और महिलाएं खूबसूरत हैं. अपनी खूबसूरती को बढ़ाने के लिए आप अच्छा खाये, हल्का खाएं. अगर आप अच्छा और हल्का खाएंगे तो हल्का महसूस भी करेंगे इसके अलावा आप ज्यादा से ज्यादा पानी पीजिये, फाइबर वाली चीजें खाइये

फिटनेस बहुत ही व्यक्तिगत मामला है उसके लिए जरूरी नही की आप जिम ही जाएं. आप योग, जुम्बा, डांसिंग इस तरह की कोई पापुलर एक्सरसाइज कर अपने आप को फिट रख सकती हैं.

आपको बता दें, इशिता ने अपने करियर की शुरुआत वर्ष 2011 में लव रंजन निर्देशित फिल्म प्यार का पंचनामा से की थी. इस फिल्म में उन्होंने चारु की भूमिका अदा की. इस फिल्म के बाद वह इसी फिल्म के अगले सीक्वल प्यार का पंचनामा 2 में कुसुम की भूमिका में अभिनय किया. इसके अलावा वर्ष 2015 में ईशिता ने फ़िल्म मेरठिया गैंगस्टर में भी अभिनय किया.

सोनू के टीटू की स्वीटी और प्यार का पंचनामा से फेमस हुई इंडियन फ़िल्म एक्ट्रेस इशिता राज शर्मा को अब तक आपने चारु और पीहू के किरदार में देखा. लेकिन अब इशिता को फ़िल्म याराम में मुख्य किरदार में जल्दी देखेंगे. इशिता बहुत फेमस मौडल भी है जो कई बड़े- बड़े ब्रांड्स के विज्ञापनों में नजर आती रही है. इशिता सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर भी काफी एक्टिव रहती है और लगातर सुर्खियों में बनी रहती है.

तो आलिया भट्ट बनेंगी गंगूबाई काठियावाड़ी!

आलिया भट्ट के सितारे बुलंदियों पर हैं. एक तरफ उनकी फिल्म ‘‘गली ब्वाय’’ को औस्कर के लिए भारतीय प्रतिनिधि फिल्म के रूप भेजी गयी है. तो दूसरी तरफ वह अपने पिता महेश भट्ट के निर्देशन में फिल्म ‘‘सड़क 2’’ की शूटिंग कर रही हैं. और अब संजय लीला भंसाली के निर्देशन में काम करने का उनका सपना टूटने के बाद भी साकार होने जा रहा है.

पिछले एक वर्ष से चर्चा थी कि आलिया भट्ट और सलमान खान को लेकर संजय लीला भंसाली फिल्म ‘‘इंशा अल्लाह’’ बना रहे हैं. इस फिल्म की शूटिंग के लिए सेट भी बन गए. मगर शूटिंग शुरू होने से एक सप्ताह पहले इस फिल्म को अचानक बंद कर दिया गया और तब कहा जाने लगा कि संजय लीला भंसाली के निर्देशन में काम करने का आलिया भट्ट का सपना अधूरा रह गया. लेकिन अब की बार फिर आलिया भट्ट के चेहरे पर खुशी लौट आयी है. जी हां! आलिया भट्ट, संजय लीला भंसाली के निर्देशन में  फिल्म ‘‘गंगूबाई काठियावाड़ी’’ करने जा रही हैं. जो कि अगले वर्ष 11 सितंबर 2020 को सिनमाघरों में पहुंचेगी. इसकी शूटिंग नवंबर माह में शुरू हो जाएगी. इसका सह निर्माण पेन मूवीज के जयंतीलाल गाड़ा करेंगें. आलिया भट्ट ने खुद ही अपने ट्वीटर हैंडल पर इस बात की जानकारी दी है.

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सूत्रों की माने तो फिल्म ‘‘गंगूबाई काठियावाड़ी’’ की कहानी  मुंबई के रेड लाइट एरिया कमाठीपुरा के एक वेश्यालय की मैडम के जीवन पर आधारित है. कहा जाता है कि इस महिला ने कमाठीपुरा और वेश्या बाजार का चेहरा बदल कर रख दिया. यह मुंबई के इतिहास की सबसे ज्यादा याद की जाने वाली महिलाओं में से एक है. कहा जाता है कि गंगूबाई को बहुत कम उम्र में वेश्यावृत्ति में धकेल दिया गया था और यह शहर के कई नामचीन अपराधियों की सेवा करने वाली सबसे प्रभावशाली दलाल बन गई थी.

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‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’: इस खास मौके पर होगा कार्तिक और नायरा का मिलन

स्टार प्लस का मशहूर सीरियल  ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’  में धमाकेदार ट्विस्ट चल रहा है. जी हां अभी इस सीरियल की कहानी कायरव की कस्टडी को लेकर चल रही है. इस कस्टडी केस को लेकर सस्पेंस बना हुआ है. आखिर ये केस कार्तिक या नायरा, किसे मिलेगी ?

दरअसल नायरा, कार्तिक से केस खत्म करने को कहती है. लेकिन कार्तिक कोर्ट में चला जाता है. कार्तिक अपनी वकील दामिनी मिश्रा से कहता है कि वो आज कोर्ट में नायरा के साथ किसी तरह का गलत बर्ताव ना करें. लेकिन नायरा और उसके भाई नक्ष को लगता है कि कार्तिक अपनी वकील को नायरा के खिलाफ भड़का रहा है.

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जैसे ही कोर्ट में केस की सुनवाई शुरू होती है तो वकील दामिनी मिश्रा फिर से नायरा को उल्टा सीधा सुनाने लगती है, वो कहती है कि आप ना  अच्छी बीवी हैं, ना अच्छी मां हैं और ना ही अच्छी इंसान हैं. ये सारी बातें सुनकर कार्तिक को बहुत तेज गुस्सा आता है. वो वहीं उठ खड़ा होता है और खूब गुस्सा करता है. जज ने जब कार्तिक पर गुस्सा किया कि तो उसने कहा कि उसे कुछ कहना है. इसके बाद वो विटनेस बौक्स में जाता है और वो नायरा से अपने गुस्से और मिसबिहैव के लिए नायरा से माफी मांगता है.

वो कोर्ट में कहता है कि नायरा बुरी मां नहीं है ना ही वो बुरी इंसान है. हम उसे जानते नहीं हैं, लेकिन जो लोग जानते हैं उसे वो ये बात जानते हैं कि नायरा अच्छी बेटी, अच्छी बहू और अच्छी मां है. इसके बाद वो कहता है कि मैंने अपनी वकील से कहा था कि मैं केस विड्रा करना चाहता हूं लेकिन दामिनी मानी नहीं और नायरा पर इल्जाम लगाने लगी. मैं कायरव की सोलो कस्टडी नायरा को सौंपता हूं और ये केस विड्रा करता हूं.

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खबरों के मुताबिक अपकमिंग एपिसोड में दिवाली के  मौके पर नायरा और कार्तिक का मिलन होगा. अब देखना ये दिलचस्प होगा कि नायरा और कार्तिक का मिलन कैसे होता है. उनका मिलन दर्शकों के लिए ट्रिट की तरह साबित होगा.

मिठाई कारोबार में आई बहार

नवरात्र शुरू हुए नहीं कि पटाखों और मिठाइयों की दुकानों में रौनकें चटखने लगी. दीवाली आते-आते तो यह रौनकें अपनी चरम पर होती हैं. मिठाई की दुकानों पर लोग टूटे पड़ते हैं. भला मिठाई बिना भी कोई त्योहार मनाता है? कितना भी चौकलेट या ड्राई फू्रट के पैकेट्स खरीद लाओ, मगर जब तक घर में मिठाई का डिब्बा न आ जाए, त्योहार का मजा ही नहीं आता. श्राद्ध खत्म होते ही मिठाई दुकानदारों की व्यस्तता बढ़ जाती है. मेवे, खोये, दूध, घी के व्यापारियों के फोन घनघनाने लगते हैं. कोई फोन पर चिल्ला रहा है कि – अरे भाई, बीस किलो नहीं, पचास किलो मावा भिजवाना, इस बार मांग बहुत ज्यादा है, तो कोई डेयरी प्रोडक्ट्स के दामों पर माथापच्ची कर रहा है. दूध-घी के दाम आसमान पर चढ़े जा रहे हैं, मगर मिठाई दुकानदार अपने प्रोडक्ट की क्वालिटी और अपने ग्राहकों के टेस्ट से समझौता करने को कतई तैयार नहीं हैं. खासतौर पर दिल्ली के वह पुराने और स्थापित दुकानदार, जिनका नाम ही मिठाई की शुद्धता की गारंटी है. फिर वह चाहे पुरानी दिल्ली के श्याम स्वीट्स हों, कल्लन मिठाईवाला, चैनाराम हों या नई दिल्ली के हीरा स्वीट्स और बिट्टू टिक्की वाले. मिठाई मार्केट में यह नाम खुद में ब्रैंड बन चुके हैं. शुद्ध देसी घी, दूध, मलाई, खोया, काजू, बादाम, पिस्ते, किशमिश, अंजीर, खजूर और न जाने किन-किन मावों से बनी मिठाइयां खूबसूरत डिजाइनर डिब्बों में सजधज कर दिल्लीवालों का दिल ही नहीं लूट रहीं हैं, बल्कि अन्य राज्यों और समन्दर पार के ग्राहकों का मुंह भी मीठा कर रही हैं.

मिठाई हमारी संस्कृति का अंग है. कोई भी उत्सव बिना मिठाई के तो पूरा हो ही नहीं सकता. दीवाली की मिठाई तकरीबन संपूर्ण भारत में भगवान के भोग के बाद ही परोसी जाती है. भारतीय खाने की तरह भारतीय मिठाइयों में भी बहुत विविधता है. पूर्वी भारत में जहां छेना आधारित मीठा अधिक प्रचलित है, वहीं अधिकांश उत्तर भारत में खोया आधारित मिठाईयां – लड्डू, हलवा, खीर, बरफी आदि बहुत लोकप्रिय हैं. एक समय था जब मुंबईवालों की जुबान केवल लड्डू, पेड़े, श्रीखंड, मैसूर पाक, खाजा, हलवा, जैसी पांच-छह तरह की मिठाइयों का स्वाद ही जानती थी.  मुंबई में तब अधिकाँश मिठाइयां कोलकाता से आती थीं. लेकिन देश के विभिन्न प्रांतों के लोग जब रोजी रोटी की तलाश में मुंबई आए तो साथ में अपनी मिठाइयां भी लेते लाए. यहां बृजवासी दुग्ध प्राइवेट लिमिटेड ने छेने की मिठाइयों की शुरूआत की. हीरा मिष्ठान्न के सुरेशचंद्र अग्रवाल बताते हैं, ‘उत्तर प्रदेश से आए बृजवासियों ने ही सबसे पहले अलग-अलग स्थान व अलग-अलग जातियों की मिठाइयों और उन्हें बनाने के तरीके से मुंबई का परिचय कराया और यहां के बाशिंदों की जुबान को उनका स्वाद लगा दिया.’

कभी हलवाई की दुकानों से शुरू हुआ मुंबई का मिठाई व्यवसाय आज कौपोर्रेट की शक्ल में है. मिठाइयां फैक्टरियों में बनती हैं, डिपार्टमेंटल स्टोर्स के रैक्स में जगह पाती हैं, एक्सपोर्ट की जाती हैं, मांगलिक समारोहों व स्टार होटेल्स के साथ कापोर्रेट आयोजनों और विमानों में परोसी जाती हैं और औन लाइन डिलीवरी से सीधे आपके डायनिंग टेबल पर हाजिर हो जाती हैं. आज मिष्ठान्न मुंबई में सबसे बड़ा माने जाने वाले खान-पान उद्योग का प्रमुख हिस्सा है. दीवाली के इन दिनों यह उद्योग पूरी रवानी पर है.

अबकी दीवाली पर देशवासियों का मुंह मीठा कराने के लिए मिठाई बाजार नए कलेवर में सजकर तैयार है. तरह- तरह की परम्परागत मिठाइयों के साथ ही इस बार डिजाइनर मिठाई भी लोगों का ध्यान खींच रही है. दिवाली पर सूखे मेवे और चौकलेट देने का चलन भी बढ़ा है. चौकलेट का कारोबार बहुत तेजी से बढ़ रहा है. फूड नेविगेटर-एशिया की रिपोर्ट की मानें, तो साल 2005 में भारत में चौकलेट का उपभोग 50 ग्राम प्रति व्यक्ति था, जो साल 2013-14 में बढ़कर 120 ग्राम प्रति व्यक्ति हो गया. साल 2018 में चौकलेट का 58 अरब रुपये का कारोबार हुआ था और 2019 में बढ़कर 122 अरब रुपये तक पहुंच गया है. चौकलेट की लगातार बढ़ती मांग की वजह से बाजार में घटिया किस्म के चौकलेट की भी भरमार हो गई है. मिलावटी और बड़े ब्रांड के नाम पर नकली चौकलेट भी बाजार में खूब बिक रही हैं. इस सच्चाई से ग्राहक बखूबी परिचित है. शायद यही वजह है कि इस बार लोगों का रुझान मिठाइयों की ओर ही ज्यादा है.

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मिठाई का विकल्प चौकलेट नहीं

पुरानी दिल्ली में चांदनी चौक इलाके में मिठाई की मशहूर दुकान ‘श्याम स्वीट्स’ की स्थापना 1910 में बाबूराम हलवाई ने की थी, आज इस दुकान को बाबूराम की छठी पीढ़ी देख रही है. दीवाली में यहां तिल धरने की जगह नहीं होती है. लोगों को अपनी पसंद की मिठाई पैक करवाने के लिए लाइन में धक्कामुक्की तक करनी पड़ती है. दुकान के कर्ताधर्ता भरत अग्रवाल कहते हैं कि दिल्लीवालों की मांग तो हमें पूरी करनी ही है, हमारे पास अमृतसर, चंडीगढ़, मेरठ, लखनऊ, कानपुर, सहारनपुर से जो और्डर्स आ रहे हैं, उन्हें भी समय पर पूरा करना है.

BHARAT-AGARWAL

भरत अग्रवाल अपने पिता अजय अग्रवाल और चाचा संजय अग्रवाल के साथ कारोबार को संभालते हैं. वह बताते हैं कि बीच में चौकलेट और ड्राईफ्रूट देने का चलन काफी हो गया था, लेकिन अब लोग वापस मिठाई की ओर लौट आये हैं. वजह यह है कि बाहरी कम्पनियों की इम्पोर्टेड चौकलेट्स की पैकिंग तो बड़ी आकर्षक होती है, मगर अन्दर ठन-ठन गोपाल! लोगों को जल्दी ही समझ में आ गया कि चॉकलेट्स के बड़े-बड़े आकर्षक डिब्बों में कुछ खास नहीं है, उनका पैसा सिर्फ कार्डबोर्ड पर खर्च हो रहा है और विभिन्न रंगों की चौकलेट्स का स्वाद भी एक जैसा ही है. तो अब लोगों का रुझान एक बार फिर भारतीय व्यंजनों, नमकीन और मिठाईयों की ओर हुआ है. मिठाईयों में कई तरह के स्वाद का लुत्फ उठाया जा सकता है और यह चौकलेट से सस्ती पड़ती है. अब बड़ी-बड़ी कौरपोरेट कम्पनियां अपने कर्मचारियों को मिठाई के डिब्बे ही देना पसंद कर रही हैं. इस साल मिठाई की मांग बीते साल की अपेक्षा ज्यादा है. काफी पाजिटिव रिस्पौन्स है, काफी और्डर्स आ रहे हैं.

वहीं फतेहपुरी मस्जिद के पास मिठाई की पुरानी और ख्यात दुकान ‘चैनाराम’ के मालिक हरीश गिडवानी को भी दम लेने की फुर्सत नहीं है. उन्होंने अपने वर्करों की संख्या दोगुनी कर दी है. मांग के अनुसार शुद्ध, स्वादिष्ट और आकर्षक मिठाईयां तैयार करना, उनकी आकर्षक पैकिंग करवा कर समय पर उनकी डिलीवरी करना कोई आसान काम नहीं है. मिठाई की फील्ड में ‘चैनाराम’ का नाम 118 वर्ष पुराना है. चैनाराम की मिठाइयों का स्वाद पाकिस्तान से हिन्दुस्तान आया है.

HARISH-GIDWANI

हरीश गिडवानी बताते हैं कि जब देश का बंटवारा नहीं हुआ था, तब उनकी दुकान ‘चैनाराम सिंधी हलवाई’ के नाम से लाहौर के अनारकली बाजार में हुआ करती थी. यह वहां सन् 1901 में खुली थी. 1947 में बंटवारे के बाद हरीश गिडवानी के दादा पूरे परिवार को लेकर लाहौर से भारत चले आये. पहले यह परिवार हरिद्वार में रुका. वह भारी असमंजस के कठिन दिन थे. दादाजी को मिठाई बनाने में महारत हासिल थी. एक दिन परिवार को हरिद्वार में छोड़ कर वह एक दुकान की तलाश में दिल्ली आये. चांदनी चौक में फतेहपुर मस्जिद के पास यह दुकान उनको भा गयी. फिर क्या था देखते ही देखते लाहौर का ‘चैनाराम सिंधी हलवाई’ दिल्ली में ‘चैनाराम स्वीट्स’ के नाम से छा गया. मजे की बात यह है कि इस दुकान में बनने वाले ‘कराची हलुवा’ के स्वाद में आज भी रत्ती भर का फर्क नहीं आया है. पिन्नी, पतीसा, खुर्मा, कोकोनेट बर्फी, पिस्ता हलवा, बादाम हलवा और काजू हलवा तो इस दुकान की शान हैं.

हरीश गिडवानी कहते हैं कि मार्केट में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के कितने भी प्रोडक्ट आ जाएं, चौकलेट, टाफियां, बेकरी आइटम छाए रहें, मगर हम भारतीय पारम्परिक चीजों में ही विश्वास करते हैं. हमारी होली-दीवाली मिठाई के बिना अधूरी है. भारतीय आदमी चौकलेट या ड्राईफ्रूट से त्योहार नहीं मनाता है. उसको तो मिठाई चाहिए, भोग लगाने के लिए भी और बांटने के लिए भी. हम इस भावना का सम्मान करते हैं और इसीलिए हम अपनी मिठाईयों की क्वालिटी से कोई समझौता नहीं करते. क्वालिटी अच्छी है तो फिर ग्राहक पैसा नहीं देखता, वह बस अच्छा माल खरीद लेता है.

बाजार मटिया महल में जामा मस्जिद के गेट नम्बर -1 के सामने कल्लन स्वीट्स की दुकान की शानो-शौकत भी दशहरा, दीवाली और ईद में देखने लायक होती है. यह वही मिष्ठान भंडार है जहां कभी मशहूर आर्टिस्ट स्व. एम.एफ. हुसैन नंगे पैर मीठा दूध पीने चले आते थे और जाते-जाते शाही टोस्ट खाना नहीं भूलते थे. जानेमाने तबलावादक उस्ताद जाकिर हुसैन सर्दियों में गाजर का हलवा खाने का अपना लोभ संवरण नहीं कर पाते हैं और कल्लन स्वीट्स तक दौड़े आते हैं. यहां का हलवा खाकर ही उनकी आत्मा तृप्त होती है. ‘हीरोपंती’ फिल्म की शूटिंग के दौरान एक्टर टाइगर श्राफ ने भी कल्लन स्वीट्स की मिठाइयों का खूब स्वाद चखा और चर्चित हास्य टीवी शो ‘भाभी जी घर पर हैं’ के विभू उर्फ विभूति नारायण मिश्रा यानी कलाकार आसिफ शेख भी यहां से मिठाइयों के डिब्बे ले जाना नहीं भूलते हैं.

‘कल्लन स्वीट्स’ सन् 1939 में हाजी कल्लन के द्वारा स्थापित की गयी थी. आज उनकी तीसरी पीढ़ी के मोहम्मद शान और मोहम्मद नावेद इस दुकान का संचालन कर रहे हैं. मोहम्मद शान बताते हैं कि हाजी कल्लन अनाथ थे. वे सन् 1912 में अपनी चाची के साथ पेशावर से दिल्ली आये थे. फिर यहीं पले-बढ़े और यहीं उनकी शादी हुई.  कल्लन साहब का रंग कुछ दबा हुआ था. उनके रंग की वजह से उनका नाम ‘कल्लन’ पड़ गया था, फिर उन्होंने इसी नाम से दुकान खोल ली और आज यह नाम एक ब्रांड बन चुका है. मटिया महल इलाके में जामा मस्जिद के ठीक सामने जब उन्होंने यह दुकान खरीदी तो पहले दूध और दही बेचना शुरू किया था. जल्दी ही वह दिल्ली वालों को पूड़ी-सब्जी का नाश्ता भी कराने लगे. जब 1947 में बंटवारा हुआ और भारी मारकाट मची तो हाजी कल्लन बहुत डर गये और उन्होंने अपनी बीवी बिस्मिल्लाह से पाकिस्तान चलने की बात की, मगर बिस्मिल्लाह बी अड़ गयीं कि यह हमारा मुल्क है, हमारा घर है, हम इसे छोड़ कर कहीं नहीं जाएंगे. वे अपनी दिल्ली से बहुत प्यार करती थीं. उनकी जिद के आगे हाजी कल्लन की एक न चली. धीरे-धीरे जब माहौल शांत हुआ तो कल्लन की दुकान फिर चल निकली. धीरे-धीरे कल्लन और बिस्मिल्लाह बी ने तरह-तरह की मिठाईयों से दिल्ली वालों का दिल जीत लिया. उनकी बनायी बर्फी, लड्डू और गुलाब जामुन का तो कोई तोड़ ही न था. काम बढ़ा तो सन् 1963 में हाजी कल्लन ने बगल वाली दुकान भी खरीद ली. सन् 1975 में हाजी कल्लन के गुजरने के बाद उनके बेटे हबीब उर रहमान और अजीज उर रहमान ने दुकान का काम और नाम बढ़ाया. इन दोनों भाइयों की मृत्यु के उपरांत अब हाजी कल्लन के पोते मोहम्मद शान और मोहम्मद नावेद इस दुकान को चला रहे हैं. तब से अब तक हालांकि मिठाईयों के रूप-रंग और संख्या में काफी बढ़ोत्तरी हो चुकी है, मगर कुछ मिठाईयों की पुरानी रेसेपीज से मोहम्मद शान ने कोई छेड़छाड़ नहीं की. वह आज भी अपने दादा-दादी की रेसेपीज से ही कई मिठाईयां तैयार करते हैं.

कल्लन स्वीट्स का शाही टुकड़ा बहुत मशहूर है. रबड़ी, कराची हलुवा, हब्शी हलुवा, बादाम पाकीजा, वरक पाकीजा, खजूर की बर्फी का स्वाद तो बस यहीं मिलता है. मोहम्मद शान बताते हैं कि कुछ साल पहले वह दुबई गये थे, जहां उन्होंने खजूर की बर्फी खायी. वह उन्हें बहुत लजीज मालूम पड़ी. शुगर के मरीजों और उन ग्राहकों के लिए जो चीनी से परहेज करते हैं, खजूर की बर्फी बहुत अच्छा विकल्प है, यह सोच कर उन्होंने इसे अपने मैन्यू में शामिल किया और आज इसकी खूब मांग है, खासकर रमजान के दिनों में तो इसकी बिक्री काफी बढ़ जाती है. खजूर की बर्फी में चीनी का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं होता, वहीं मां बनने वाली महिलाओं के लिए देसी घी में बना गोंद का हलुवा और गोंद के लड्डू तो यहां सालोंसाल उपलब्ध हैं, जो शरीर को ताकत देते हैं. इसमें तमाम तरह के ड्राई फ्रूट्स डाले जाते हैं. पनीर की जलेबी, कीमा समोसा और खोया समोसा इस दुकान की खास चीजें हैं, जिनकी बहुत मांग है. मशहूर शेफ विकास खन्ना ने भी कल्लन स्वीट्स से ही पनीर की जलेबी बनाने का हुनर सीखा, वहीं कीमे के समोसे की रेसिपी कल्लन पारिवारिक का एक रहस्य है, जिसमें डाले जाने वाले मसाले सिर्फ इसी परिवार को मालूम हैं. आज भी मोहम्मद शान की अम्मी ही अपने हाथों से समोसे में भरा जाने वाला कीमा विभिन्न मसालों के साथ तैयार करती हैं और यहां बनने वाला कीमा समोसा अमेरिका, दुबई और आस्ट्रेलिया तक फ्रीज करके भेजा जाता है.

नये प्रयोग और नयी पैकेजिंग

इसमें शक नहीं कि बीते एक दशक में मिठाईयों के दामों में बहुत तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है. वहीं त्योहारों में लड्डू या बर्फी देने का चलन अब कम है और इनकी जगह रिच और फैंसी मिठाईयों ने ले ली है, जिनको बनाने में लागत भी काफी आती है. श्याम स्वीट्स के संचालक भरत अग्रवाल कहते हैं कि मिठाईयों के दाम इसलिए बढ़े हैं क्योंकि रा मिटीरियल का दाम लगातार बढ़ रहा है. हम अपनी क्वालिटी के साथ समझौता नहीं कर सकते हैं, लिहाजा मिठाई का दाम बढ़ना स्वाभाविक है. इस बार मार्केट में मिठाईयों के दाम चार सौ रुपये किलो से शुरू होकर दो-ढाई हजार रुपये किलो तक हैं. पिस्ते और चिलगोजे की मिठाईयों के दाम दो से तीन हजार रुपये किलो है. ग्राहक अपने परिवार, दोस्तों वगैरह में बांटने के लिए औसतन आठ से नौ सौ रुपये किलो वाली मिठाई खरीदना ही पसंद करता है. हजार रुपये में तो अच्छी मिठाई आ जाती है.

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मिठाई के साथ-साथ दुकानदारों को पैकेजिंग पर भी खासा ध्यान देना पड़ता है. श्याम स्वीट्स के भरत अग्रवाल कहते हैं कि आजकल डिब्बे के अन्दर मिठाइयों के साथ बच्चों को चॉकलेट और बेकरी आइटम भी चाहिए तो बड़े-बूढ़ों को ड्राईफ्रूट भी, इसलिए हम ऐसी पैकेजिंग करते हैं ताकि सबकी चाहतों को पूरा कर सकें. इसकी वजह से भी कुछ दाम बढ़ा है. अबकी दीवाली में हमने ऐसी मिठाइयां भी तैयार की हैं, जिसके अन्दर चौकलेट्स भी हैं और ड्राईफ्रूट्स भी और वह भी अलग-अलग फू्रट फ्लेवर्स की कोटिंग में. इसको काफी पसन्द किया जा रहा है. एल्फांजो बाइट, कीवी बाइट, स्ट्राबेरी बाइट, ग्वावा बाइट, पाइनेपिल बाइट, मिक्स ड्राईफ्रूट बाइट, मिक्स शाही ड्राईफ्रूट बाइट, इन सारी मिठाइयों के अन्दर काजू, बादाम और पिस्ता भरा हुआ है. इसको बनाने के लिए पानी या दूध इस्तेमाल नहीं किया जाता है. लिक्विड का इस्तेमाल न होने से यह मिठाईयां डेढ़ से दो महीने तक ठीक रहती हैं. जैसे-जैसे लोगों का टेस्ट बदल रहा है, हमने भी कुछ एक्सपेरिमेंट किये हैं, मगर कुछ पुरानी मिठाईयां जैसे सोहन हलवा, सोन टिक्की, बादाम टिक्की, जो  हमारे पूर्वज बनाते और खिलाते थे, आज भी वह स्वाद ढूंढते हुए लोग हमारी दुकान पर आते हैं. उनके लिए उस स्वाद को हमने ज्यों का त्यों रखा है. यूथ और बच्चों के लिए इस बार हम काफी कुछ नया लेकर आये हैं.

मिठाइयों के दाम को लेकर कल्लन स्वीट्स के मोहम्मद शान भी भरत की बातों से इत्तेफाक रखते हैं. उनका कहना है पिछले  पांच सालों में दूध और देसी घी के दाम तीस से चालीस प्रतिशत बढ़ गये हैं, इसका सीधा असर मिठाई कारोबार पर पड़ा है. मिठाईयों के दाम बढ़ने से हालांकि ग्राहकों की संख्या में तो कमी नहीं आयी है, लेकिन मिठाई की क्वांटिटी कम हो गयी है. पहले जो लोग अपने रिश्तेदारों को पांच किलो या दो किलो मिठाई के डिब्बे भेंट करते थे, वे अब एक किलो या आधा किलो पर आ गये हैं. काजू कतली का डिब्बा भी ज्यादातर लोग आधा किलो का ही मांगते हैं.

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शुगर रोगियों के लिए भी है कुछ खास

जिस तरह भारतीय समाज में फिटनेस के प्रति जागरूकता बढ़ी है और शुगर के मरीजों की संख्या भी बढ़ रही है, लोग लो शुगर मिठाईयां या शुगर फ्री मिठाईयों की मांग करने लगे हैं. ग्राहकों की इस मांग को मिठाई दुकानदारों ने सिर-आंखों पर लिया है. श्याम स्वीट्स की दुकान पर फिटनेस फ्रीक और शुगर के मरीजों के लिए देसी खांड की मिठाइयां तैयार की गयी हैं. भरत अग्रवाल बताते हैं कि यह ज्ञान हमने अपने बुजुर्गों से पाया कि देसी खांड की बनी मिठाई सेहत को नुकसान नहीं पहुंचाती हैं और यह चीनी की मिठाई से ज्यादा बेहतर है. अबकी दीवाली पर हमने शुगर के मरीजों को ध्यान में रखते हुए देसी खांड की मिठाईयां तैयार की हैं. यह बच्चों के लिए भी लाभकारी हैं. जो लोग लो कैलोरी मिठाईयों की मांग करते हैं, उनके लिए पनीर और खोये की मिठाईयां हैं. गाय के दूध का बना पनीर या छेना काफी हल्का होता है. स्पंज रसगुल्ला या रस मलाई इस छेने से बनती है, जो हल्की और सुपाच्य होती हैं. शुगर के मरीजों को भरत अग्रवाल यह सुझाव देते हैं कि वे छेने का रसगुल्ला खाएं मगर खाने से पहले थोड़ा निचोड़ लें ताकि शीरा निकल जाए.

मोहम्मद शान खजूर की मिठाई को शुगर के मरीजों के लिए ज्यादा बेहतर मानते हैं. ‘कल्लन स्वीट्स’ में ज्यादातर रिच मिटीरियल है. देसी घी और दूध के स्वाद में रची-बसी मिठाईयां हैं. मोहम्मद शान अपने दादा के जमाने से चली आ रही मिठाईयों के ओरिजनल फ्लेवर से छेड़छाड़ नहीं करते हैं. कल्लन स्वीट्स के कलाकंद में किसी तरह का फ्लेवर या रंग नहीं डाला जाता है, बस दूध को फाड़ा और जमा दिया. इससे घी-दूध का स्वाद बना रहता है. वे शाही टुकड़े में भी बाहरी रंग या फ्लेवर नहीं डालते हैं, जबकि अन्य छोटे दुकानदार केवड़ा या वैनिला एसेंस का इस्तेमाल खुश्बू के लिए करते हैं.

नमकीन की मांग भी खूब है 

अब त्योहारों में मीठे के साथ-साथ नमकीन के पैकेट देने का चलन भी बढ़ रहा है. इसको देखते हुए श्याम स्वीट्स ने अपने ग्राहकों के लिए विशेषतौर पर दाल की कचौड़ी, मटर का समोसा, गोभी का समोसा व अन्य कई तरह के नमकीन तैयार किये हैं. उनकी खासियत यह है कि उनके किसी भी व्यंजन में प्याज, लहसुन का इस्तेमाल नहीं होता है. वहीं बेकरी प्रोडक्ट में वे अंडा नहीं डालते हैं. उनकी एक स्पेशल नमकीन डिश है – बेड़मी, जो त्योहार के मौसम में खूब खायी जाती है. पुरानी दिल्ली के वासी इस जायके से खासे परिचित हैं. बेड़मी कचौड़ी की तरह बनायी जाती है, मगर इसका आटा दरदरा मोटा होता है. इस वजह से तले जाने पर यह ज्यादा घी नहीं पीता है और काफी सुपाच्य होता है. बेड़मी में उड़द दाल की पिट्ठी बना कर भरी जाती है और इसको आलू की सब्जी, छोले, सीताफल की सब्जी, कचालू और घिया के अचार के साथ सर्व करते हैं. इतवार और छुट्टी के रोज श्याम स्वीट्स का यह स्पेशल ब्रेकफास्ट दिल्ली वालों को चांदनी चौक तक खींच ही लाता है. बेड़मी के साथ लोग नागौरी हलवे की फरमाइश भी करते हैं. यह पुरानी दिल्ली का छिपा हुआ नाश्ता है, जो नई दिल्ली के ज्यादातर लोगों को नहीं मालूम है. नागौरी हलुवे का स्वाद पुरानी दिल्ली के पुराने हलवाइयों की दुकानों पर ही मिल सकता है. इसमें छोटी-छोटी करारी क्रिस्पी सूजी की पूड़ियां बनायी जाती हैं. इन पूड़ियों में हलुवा और सब्जी दोनों भर कर खाया जाता है यानी यह नमकीन और मीठे का बेहतरीन मिक्सचर होता है. इसकी खूबी यह कि इसे वह बच्चा भी आराम से खा सकता है जिसके दूध के दांत अभी नहीं आये हैं और वह बुजुर्ग भी जिसके सारे दांत गिर चुके हैं. नागौरी हलुवा देखने में कड़ा लगता है, लेकिन खाने में यह बेहद मुलायम होता है और मुंह में डालते ही घुल जाता है.

मिलावटखोरों से रहें सावधान

त्योहार का मौसम शुरू होते ही मिलावटखोरों के कारनामे अपनी चरम पर होते हैं. मिलावटी और सस्ती मिठाइयां सेहत को बेतरह नुकसान पहुंचाती हैं. ऐसे में स्थापित और पुरानी दुकानों से ही मिठाई खरीदना ठीक रहता है. स्थापित दुकानदार थोड़े से प्राफिट के लिए कभी भी दशकों की मेहनत से बना अपना नाम खराब नहीं करना चाहते हैं. इसलिए हमारी सलाह तो यही है कि अबकी त्योहारों पर आप भले ही मिठाई कम खरीदें, मगर उन्हीं दुकानों से खरीदें जो पुरानी और मशहूर हों. मोहम्मद शान कहते हैं मिठाई चखने पर ही आपको असली और नकली का पता चल जाता है. अगर आप दो सौ रुपये किलो खोये की मिठाई ढूंढ रहे हैं तो आपको खुद सोचना चाहिए कि दो-ढाई सौ रुपये किलो में आज असली खोया नहीं आ रहा है, 54 रुपये किलो दूध है, देसी घी के रेट आसमान छू रहे हैं, तो ऐसे में आपको इस रेट में खालिस मिठाई कैसे मिलेगी और अगर कोई इतनी सस्ती मिठाई बेच रहा है तो वह मिलावटी और नकली खोये की ही है, इसमें कोई संदेह नहीं है.

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 आकर्षक पैकिंग का बड़ा महत्व है

त्योहार के मौसम में बड़ी कारपोरेट कम्पनियां अपने कर्मचारियों, स्टेक होल्डर्स और अन्य सहयोगियों को जो मिठाई के डिब्बे गिफ्ट करती हैं, उसमें डिब्बे की पैकिंग बहुत महत्वपूर्ण रोल अदा करती है. वे चाहते हैं कि पैकिंग इतनी आकर्षक हो कि लोग देखते ही मोहित हो जाएं. इसलिए हमने बकायदा डिजाइनर रखे हैं जो इन डिब्बों को सजाते हैं. एक कहावत है कि किताब को उसके कवर से जज नहीं करना चाहिए, मगर गिफ्ट के मामले में यह कहावत उलटी काम करती है. यहां कवर से ही किताब को जज किया जाता है. अगर हम डिब्बे को खूबसूरत नहीं बनाएंगे तो अन्दर रखी चीज कितनी भी स्वादिष्ट हो, लोगों को मजा नहीं देगी. कोई भी चीज जो आंखों को भा जाए वह मन को भी भाती है. इस दीवाली हमारे ग्राहकों को बहुत आकर्षक डिजाइनर पैकिंग में मिठाईयां मिलेंगी. उनके साथ दिवाली की बधाई देती सुन्दर मोमबत्तियां और दिये भी होंगे तो ड्राई फ्रूट और चौकलेट्स भी.

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– भरत अग्रवाल,  श्याम स्वीट्स, चांदनी चौक, दिल्ली

डायबिटीज के रोगी भी मुंह मीठा करें

शुगर के मरीजों के लिए हमारे पास खास खजूर बर्फी है. इसमें सिर्फ खजूर, ड्राई फ्रूट और घी है. मगर सलाह यह भी है कि इसे बहुत ज्यादा न खाएं. इसके अलावा पनीर का रसगुल्ला और छेने की रसमलाई ऐसे लोगों के लिए अन्य मिठाइयों से बेहतर है. यह दोनों ही कम मीठी और हल्की हैं. रसगुल्ले में से रस निचोड़ कर खाएं, त्योहार का लुत्फ उठाएं और स्वस्थ रहें.

– मोहम्मद शान, कल्लन स्वीट्स, बाजार मटिया महल, चांदनी चौक

फेस्टिवल स्पेशल 2019: ऐसे बनाएं वेज पुलाव

आज आपको वेज पुलाव की रेसिपी बताते हैं. जो आप त्यौहार के मौके पर आसानी से बना सकती हैं. इसे गर्मागर्म मेहमानों और फैमिली को सर्व करें.

 सामग्री :

– चावल (02 कप पका हुआ)

– प्याज (01 बारीक कटा हुआ)

– गाजर (01 पतला व लंबाई में कटा)

– हरे मटर (1/2 कप)

– शिमला मिर्च (01 पतला व लंबाई में कटा)

– हरी मिर्च (04 कटी हुई)

– दालचीनी (01 टुकड़ा)

– इलायची पाउडर ( 1/4 छोटा चम्मच)

– जीरा ( 1/2 छोटा चम्मच)

– लौंग ( 04 नग)

– लहसुन  (01 चम्मच कुटा हुआ)

– हरी धनिया  (01 छोटा चम्मच कटी हुई)

– तेल/घी ( 02 बड़े चम्मच)

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वेज पुलाव बनाने की विधि :

– सबसे पहले पैन में घी/तेल लेकर गर्म करें.

– घी/तेल गरम होने पर उसमें जीरे का छौंक लगाएं.

– फिर उसमें प्याज डालकर उसे सुनहरा होने तक भूनें.

– प्याज भुनने के बाद पैन में दालचीनी, लौंग, इलायची पाउडर डालें और भूनें.

– मसाले से हल्की सी खुश्बू आने पर उसमें कूटा हुआ लहसुन डालें और भूनें.

– इसके बाद कटी हुई सब्जियां, मटर, हरी मिर्च और नमक डालकर ढककर 5 मिनट तक धीमी आंच पर पकाएं.

– सब्जियों के गल जाने पर इसमें पके हुए चावल डालकर अच्छी तरह से मिक्स कर लें.

– अब आपका पंजाबी पुलाव  तैयार है. इसमें ऊपर से कटी हई हरी धनिया छिड़कें और प्लेट में निकाल कर टेस्ट करें.

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जनसंख्या का दुरुपयोग

अगर मोटर वाहनों को रामरथ बनाने से देश का कल्याण होता तो 1988 से 2004 के दौरान और 2014 के बाद औटो उद्योग को दोगुनाचारगुना फलनाफूलना चाहिए था. जिस तरह से भरभर कर तीर्थयात्राएं की जा रही हैं, कांवडि़ए ट्रकों, टैंपुओं में भरभर कर गातेबजाते रातभर सड़कों पर चलते हैं, मंदिरों के सामने पार्किंग की समस्या पैदा हो रही है, ऐसे में औटो उद्योग को तो सोना बरसने की उम्मीद होनी चाहिए, लेकिन चिंतनीय यह है कि लगभग सब से पुरानी कंपनी टाटा मोटर्स को 2019-20 की पहली तिमाही में 3,680 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है.

टाटा मोटर्स की पिछले साल अप्रैलजून में 66,619 करोड़ रुपए की बिक्री हुई थी पर इस ‘सुनहरे’ साल में उस की 61,467 करोड़ रुपए की ही बिक्र्री हुई जिस से उस का घाटा 1,863 करोड़ से बढ़ कर 3,680 करोड़ रुपए हो गया.

ऐसा सिर्फ औटो उद्योग के साथ ही नहीं हो रहा, सभी उद्योग भयंकर मंदी की चपेट में हैं. कृषि उत्पादन कम हो रहा है, इसलिए गांवोंकसबों में बिक्री कम हो रही है.

देश की प्रगति के लिए जिस माहौल की जरूरत है वह इस तरह के समाचारों से फीका पड़ता नजर आ रहा है. लोग अपनी जमापूंजी को संभाल कर रख रहे हैं. सरकार के दोषपूर्ण प्रयासों के चलते लोगों ने भारी रकम नकद के रूप में घर में रखनी शुरू कर दी है. क्योंकि अगर मकान खरीदें तो पहले उस का मिलना तय नहीं, और अगर मिल जाए तो उस से पर्याप्त आय नहीं हो रही. लोगों के पास जितना पैसा है उसे वे संभाल रहे हैं, सामान नहीं खरीद रहे क्योंकि भविष्य शंकित है. ब्याज तक अब सुरक्षित नहीं है. बैंकों ने केवाईसी के चक्कर में लोगों के चालू खाते तक फ्रीज करने का रिवाज बना डाला है.

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वाहनों की कम होती बिक्री के पीछे सरकारी नियमों में हर रोज फेरबदल भी है. कभी कहा जाता है कि 10 साल बाद वाहन बेकार हो जाएगा, कभी ड्राइविंग लाइसैंस को ईलाइसैंस करने की कवायद में लोगों को लगा दिया जाता है तो कभी हर कोने पर खड़े वरदीधारियों की चालान मशीन का डर रहता है.

सड़कों पर आज असुरक्षा का माहौल है. जो लोग दिन में गौरक्षक बने रहते हैं वे शाम को चोरउचक्के बन जाते हैं. वे जानते हैं कि पकड़े जाने पर उन्हें छुड़ाने के लिए भीड़ आ जाएगी. उधर, लोग वाहनों को अब शान का प्रतीक नहीं, एक जरूरतभर सम झ रहे हैं और गाडि़यों में ठूंसी जा रही नई तकनीक से प्रभावित नहीं हो रहे.

यह स्थिति सुधरेगी, इस की उम्मीद कम ही है. पश्चिम एशिया ने धर्म के कारण अपना आर्थिक विकास नष्ट कर डाला है. उन की दो पीढि़यां आरामतलब व  झगड़ालू हो गईं. इसलाम फैलाने के नाम पर अरब, जिन की तूती पूरे हिंद महासागर में फैलती थी, 20वीं सदी आने तक पिछड़े गड़रिए भर रह गए थे. अभी उन के पास तेल का पैसा है. पर, अब तेल का भाव वह नहीं रहा, लाभ कम हो चुका है. वहीं, भारत देश के पास भारी जनसंख्या की अहम पूंजी है पर अफसोस कि हम उसे निर्माण में नहीं, विध्वंस में लगा रहे हैं.

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