नवरात्र शुरू हुए नहीं कि पटाखों और मिठाइयों की दुकानों में रौनकें चटखने लगी. दीवाली आते-आते तो यह रौनकें अपनी चरम पर होती हैं. मिठाई की दुकानों पर लोग टूटे पड़ते हैं. भला मिठाई बिना भी कोई त्योहार मनाता है? कितना भी चौकलेट या ड्राई फू्रट के पैकेट्स खरीद लाओ, मगर जब तक घर में मिठाई का डिब्बा न आ जाए, त्योहार का मजा ही नहीं आता. श्राद्ध खत्म होते ही मिठाई दुकानदारों की व्यस्तता बढ़ जाती है. मेवे, खोये, दूध, घी के व्यापारियों के फोन घनघनाने लगते हैं. कोई फोन पर चिल्ला रहा है कि - अरे भाई, बीस किलो नहीं, पचास किलो मावा भिजवाना, इस बार मांग बहुत ज्यादा है, तो कोई डेयरी प्रोडक्ट्स के दामों पर माथापच्ची कर रहा है. दूध-घी के दाम आसमान पर चढ़े जा रहे हैं, मगर मिठाई दुकानदार अपने प्रोडक्ट की क्वालिटी और अपने ग्राहकों के टेस्ट से समझौता करने को कतई तैयार नहीं हैं. खासतौर पर दिल्ली के वह पुराने और स्थापित दुकानदार, जिनका नाम ही मिठाई की शुद्धता की गारंटी है. फिर वह चाहे पुरानी दिल्ली के श्याम स्वीट्स हों, कल्लन मिठाईवाला, चैनाराम हों या नई दिल्ली के हीरा स्वीट्स और बिट्टू टिक्की वाले. मिठाई मार्केट में यह नाम खुद में ब्रैंड बन चुके हैं. शुद्ध देसी घी, दूध, मलाई, खोया, काजू, बादाम, पिस्ते, किशमिश, अंजीर, खजूर और न जाने किन-किन मावों से बनी मिठाइयां खूबसूरत डिजाइनर डिब्बों में सजधज कर दिल्लीवालों का दिल ही नहीं लूट रहीं हैं, बल्कि अन्य राज्यों और समन्दर पार के ग्राहकों का मुंह भी मीठा कर रही हैं.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...