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‘सौरव गांगुली’ के कदम से देश की युवा पीढ़ी हीनग्रंथि से मुक्त हो गई थी: अभिनय देव

इतिहास हमें सिखाता है और इतिहास से प्रेरणा लेनी चाहिए. इस बात पर यकीन रखने वाले फिल्मकार अभिनय देव परिचय के मुहताज नहीं हैं. वे टीवी सीरियल ‘24’ के 2 सीजन निर्देशित करने के साथ ही ‘देल्ही बेली,’ ‘गेम,’ ‘फोर्स 2,’ ‘ब्लैकमेल’ जैसी फिल्में निर्देशित कर चुके हैं. इस बार अभिनव देव इतिहास के पन्ने यानी कि 2002 में सौरव गांगुली ने जो कृत्य किया था, उस पर डौक्यू फिक्शन फिल्म ‘दूसरा’ ले कर आ रहे हैं.

फिल्म ‘दूसरा’ को आप डौक्यू फिक्शन क्यों कह रहे हैं? इस सवाल पर अभिनव देव कहते हैं, ‘‘हम ने अपनी फिल्म को डौक्यू फिक्शन का रूप दिया है, जिस से 2002 में सौरव गांगुली ने जो इतिहास रचा था, उसे समाहित कर सकें. जो इतिहास घटा था, उस का डौक्यूमैंटेशन जरूरी है. 13 जुलाई, 2002 को इंग्लैंड में क्रिकेट का मक्का कहे जाने वाले लार्ड्स स्टेडियम पर नैटवैस्ट क्रिकेट सीरीज को जीतने पर भारतीय क्रिकेट टीम के तत्कालीन कैप्टन सौरव गांगुली ने अपनी टीशर्ट उतार कर उसे लहराते हुए खुशी का इजहार किया था, जिस का उस वक्त की युवा पीढ़ी पर काफी प्रभाव पड़ा और उस के बाद देश में कई सामाजिक व राजनीतिक बदलाव हुए.

जब वह इतिहास घट रहा था, उस वक्त एक युवा लड़की तारा अपनी जिंदगी में आगे बढ़ रही थी. 2002 में भारतीय क्रिकेट टीम के कैप्टन की हैसियत से मैच जीतने के बाद सौरव गांगुली ने जो कुछ किया था, उस का उस 10 साल की लड़की तारा (प्लाविता बोर ठाकुर) पर क्या प्रभाव पड़ा, यह फिक्शन है. इस घटना के चलते किस तरह उस लड़की का एटिट्यूड बदलने लगा, यह फिल्म में दिखाया गया है. तारा एक सामान्य लड़की है जो कि भारत के छोटे शहर जोधपुर, राजस्थान में रहती है. फिल्म में 10 साल की उम्र से ले कर 27 साल की उम्र तक की उस की यात्रा है.’’

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इस पर फिल्म बनाने का खयाल आप को कैसे आया? इस पर वे बताते हैं, ‘‘शिकागो में रोहन सजदेह और माशा नामक एक दंपती रहते हैं. उन्होंने ही मुझे इस फिल्म के लिए आइडिया दिया. उन्होंने कहा कि 2002 में इंग्लैंड में क्रिकेट के मैदान लार्ड्स स्टेडियम पर सौरव गांगुली ने मैच जीतने के बाद जिस तरह से अपनी शर्ट उतार कर स्टेडियम में लहराई थी, उस पर फिल्म बननी चाहिए. इन दोनों का मानना है कि 2002 का यह पल सिर्फ भारतीय क्रिकेट ही नहीं, बल्कि भारत के लिए भी बहुत महत्त्वपूर्ण था, क्योंकि सौरव गांगुली ने स्टेडियम में जो कुछ किया था, उस के कई माने थे. उस से 9 माह पहले इंग्लैंड के क्रिकेटर एंडो क्ंिलटौप ने वानखेड़े स्टेडियम में टीशर्ट उतारी थी.

‘‘सौरव गांगुली ने सिर्फ उस का जवाब नहीं दिया था, बल्कि पूरे ब्रिटिश साम्राज्य को जवाब दिया था. सौरव गांगुली का यह कदम भारतीय जनता की तरफ से ब्रिटिश साम्राज्य को जवाब था. सौरव गांगुली अपनी इस हरकत से पूरे ब्रिटिश साम्राज्य को जताना चाहते थे कि आप ने हिंदुस्तान पर ढाई सौ साल राज किया और हमें क्रिकेट जैसा खेल अपने फायदे के लिए सिखाया था, अब हम ने आप के ही खेल में आप के ही घर यानी कि आप के देश की धरती पर जवाब दिया है.

‘‘मेरे हिसाब से सौरव गांगुली का यह बहुत बड़ा कदम था. यह अलग बात है कि उस वक्त तमाम लोगों ने कहा था- ‘सौरव गांगुली ने यह क्या किया?’ ‘एक क्रिकेटर को इस तरह की हरकत नहीं करनी चाहिए,’ ‘क्या क्रिकेट के मैदान पर टी शर्ट उतारनी चाहिए?’ यानी कि कुछ लोगों ने सौरव गांगुली के इस कदम की निंदा की थी.’’

2002 की इस घटना का आप जो सामाजिक व राजनीतिक प्रभाव फिल्म में दिखा रहे हैं, वह क्या है? इस पर उन का कहना है, ‘‘मेरे खयाल से इस घटना से उस वक्त की जो युवा पीढ़ी थी, उसे एहसास हुआ कि हम जो हैं, सही हैं. हमें दूसरे देश की तरफ देखने की जरूरत नहीं है. उस जीत और उस घटना का सब से बड़ा सामाजिक व राजनीतिक प्रभाव यह था कि हम कंधे से कंधा मिला कर दुनिया के साथ खड़े हो गए.

‘‘हम ने कहना शुरू किया कि हम भी उतने ही अच्छे हैं, जितना कि सामने वाला. शायद कुछ जगह हम बेहतर थे. कम से कम 2002 की क्रिकेट की घटना और सौरव गांगुली ने जो कुछ किया, उस से हमारे देश की उस वक्त की युवा पीढ़ी हीनग्रंथि से मुक्त हो गई थी. उस वक्त के 15 से 18 साल के भारतीय युवा आज पूरे विश्व को चला रहे हैं. यह फिल्म साहस, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अन्य चीजों के बीच सामाजिक पूर्वाग्रहों से लड़ने की बात करती है.

‘‘मेरी राय में समाज, राजनीति, खेल और फिल्म को अलग नहीं किया जा सकता. इन चारों को अलगअलग कर के बात करना मुश्किल है. क्रिकेट के माध्यम से हमें जीत का एहसास होता है, एनर्जी मिलती है, जो इंसान की रोजमर्रा की जिंदगी, राजनीति व सामाजिक हालातों पर असर डालती है. हम पोलिटिकली जो कुछ करते हैं, हम जिस तरह से देश को दर्शाते हैं, उस का इंसान की रोजमर्रा की जिंदगी पर असर होता है.

आज की राजनीति जिस तरह से देश चला रही है, उस के प्रभाव से कोई भी इंसान अछूता नहीं है. पर मेरी निजी राय है कि खेल और राजनीति को जितना दूर रखें, उतना अच्छा है. पर अफसोस खेल में बहुत ज्यादा राजनीति घुसी हुई है. इसी तरह से शिक्षा और राजनीति को भी अलग रखना चाहिए. पर यह भी नहीं हो पा रहा है. राजनीति हर जगह है, चाहे वह देश की राजनीति हो या घर के अंदर सासबहू के बीच आपसी राजनीति हो.’’

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2002 के बाद ग्लोबलाइजेशन ने भी बहुतकुछ देश को बदला है. क्या यह मुद्दा भी आप की फिल्म का हिस्सा है? इस सवाल पर उन्होंने कहा, ‘‘जी हां, देखिए, ग्लोबलाइजेशन तो होना ही था. देश की तरक्की के लिए ग्लोबलाइजेशन जरूरी है. लेकिन मेरी फिल्म का मूल हिस्सा यह है कि जब ग्लोबलाइजेशन हो रहा था, तब हमारी सरकार ने पूरी दुनिया को हमारे देश में आने के लिए दरवाजे खोल दिए थे. पर उस में जरूरी यह था कि आप उन्हें किस तरह से अंदर आने दे रहे हैं.

‘‘क्या आप उन के घुटने पकड़ कर उन्हें ला रहे हो या उन के कंधे पर हाथ रख कर ला रहे हो? हमारी कहानी का यही मूल है कि क्रिकेट की जीत ने हम भारतीयों को मानसिक रूप से स्ट्रौंग बनाया. हमें ऐसा एटिट्यूड दिया कि हम झुक कर किसी देश को निमंत्रण देने के बजाय उस के कंधे पर हाथ रख कर बुलाने लगे.’’

आप के सीरियल ‘24’ के फर्स्ट सीजन को थोड़ीबहुत सफलता मिली थी, लेकिन दूसरे सीजन को सफलता नहीं मिली? इस सवाल पर चिंतित होते हुए वे बोले, ‘‘हकीकत यही है कि टीवी सीरियल  ‘24’ टीवी के लिए गलत था. पर अब जो इस का अगला सीजन आ रहा है, वह टीवी में जरूर काम करेगा. क्यों अब जो सीजन हम ले कर आ रहे हैं उस का दर्शक वर्ग अलग है. जब ‘24’ का पहला सीजन आया, तो दर्शकों को कुछ नईर् बात नजर आई, इसलिए थोड़े दर्शक मिल गए. लेकिन सैकंड सीजन के साथ दर्शक रिलेट नहीं कर पाए.

‘‘सैकंड सीजन बहुत ही बुद्धिमत्ता वाला था, जहां आप को टकटकी लगा कर देख कर चीजों को समझना था. एक मिनट के लिए भी आप ने अपनी निगाहें इधरउधर कीं तो आप सीरियल नहीं समझ पाएंगे. जबकि टीवी में ऐसा संभव नहीं है. दर्शक खाना भी खाएगा, चाय भी पिएगा, हाथ धोने भी जाएगा. इसीलिए ‘24’ के सैकंड सीजन को सफलता नहीं मिली थी.’’

आप ने एक फिल्म ‘देल्ही बेली’ निर्देशित की थी. आप को लगता है कि वर्तमान में यदि यह फिल्म आती, तो ज्यादा सफल होती? इस बात पर वे मुसकराते हुए कहते हैं, ‘‘जरूर, मेरी राय में यह एक ऐसी फिल्म है जो चाहे जब आती, बौक्सऔफिस पर अपना असर डालती. यह यंगस्टर्स की कहानी है जिस के साथ हर समय का यंगस्टर रिलेट करेगा. पर आज यदि यह फिल्म आती तो ज्यादा लोग रिलेट करते. हां, जब रिलीज हुई थी तब कम पौपुलर हुई थी क्योंकि फिल्म में जिस तरह की भाषा रखी गई थी, उस तरह की भाषा उस वक्त कम लोग बोलते थे.’’

‘‘फिल्मकार” मुझसे बाल कटवा देने के लिए कहते हैं, जो मैं कभी नहीं कर सकता: मंजोत सिंह

टीनएज में करियर की शुरूआत करने वाले अभिनेता मंजोत सिंह को बौलीवुड में बारह साल हो गए हैं. अब तक उन्होंने हर फिल्म में कौमिक किरदार ही निभाए हैं. 13 सितंबर को प्रदर्शित हो रही राज शौंडिल्य की फिल्म ‘‘ड्रीमगर्ल’’में भी वह आयुष्मान खुराना और नुसरत भरूचा के संग हास्य किरदार में ही नजर आएंगे. मंजोत सिंह को इस बात का मलाल है कि उन्हें इतर किरदार निभाने के मौके नहीं मिलते. जबकि वह फिल्मों में रोमांस के साथ एक्शन भी करना चाहते हैं. पर उन्हें मनचाहे  किरदार निभाने के अवसर महज इसलिए नहीं मिल रह हैं, क्योंकि वह सरदार हैं. उनके सिर पर टर्बन रहता है, जिसे वह हटाने के लिए किसी भी सूरत में तैयार नही हैं.

हाल ही में जब मंजोत सिंह से हमारी एक्सक्लूसिव मुलाकात हुई, तो हमने उनसे महज हास्य किरदारों तक सिमटे रहने को लेकर सवाल किया, तो उनके दिल का दर्द उभर कर बाहर आ गया… प्रस्तुत है उनसे हुई बातचीत के अंश…

आप एक बार फिर फिल्म ‘‘ड्रीमगर्ल’’ में भी कौमेडी करते हुए ही नजर आने वाले हैं?

(दुःखी मन से मंजोत सिंह ने कहा) – ‘‘मैंने ‘ओए लक्की लक्की ओए’, ‘उड़ान’, ‘फुकरे’,‘फुकरे रिटर्न’, ‘अजहर’,‘जब हैरी मेट सेजल’, ‘सोनचिरैया’और‘ अर्जुन पटियाला’ सहित करीबन दस ग्यारह फिल्में कर ली. हम जो चाहते हैं, वह करने का मौका नहीं मिलता. मेरे पास सिर्फ हास्य किरदारों के ही आते हैं. जबकि मैं दूसरे अन्य कलाकारों की ही तरह परदे पर प्यार करना चाहता हूं. एक्शन करना चाहता हूं. गंभीर किरदार निभाना चाहता हूं.’’

मगर ऐसा क्यों है? हम देख रहे हैं कि पंजाबी फिल्मों में भी ज्यादातर फिल्में कौमेडी फिल्म में ही बनती हैं?

इसकी वजह यह है कि फिल्म निर्माता को लगता है कि एक सरदार सिर्फ कौमेडी कर सकता है और दर्शक उसे उसे सिर्फ कौमेडी करते हुए ही देखना चाहते हैं. जब तक लोगों की इस सोच में बदलाव नहीं आएगा, तब तक कुछ नहीं होगा. यह सोच दर्शकों की नहीं है. जिस दिन निर्माता और निर्देशक एक सरदार को भी गंभीर किरदार में दिखाएंगे, उस दिन से लोग हमें गंभीर किरदार में भी पसंद करेंगे.जिस दिन फिल्म निर्देशक यह दिखाना शुरू करेंगे सरदार भी गंभीर किस्म के किरदार निभा सकता है,उस दिन दर्शक भी इस बात को स्वीकार कर लेगा.

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क्या लोगों को आपके टर्बन से समस्या है?

जी हां! कई लोगों ने मुझसे कहा कि, आप अपने बाल कटवा लो, तो हम आपको कुछ अलग तरह का किरदार देने के बारे में सोच सकते हैं? उनकी बातें सुनकर मुझे बहुत बुरा लगता था. मेरा मानना है कि यह मेरे धर्म से जुड़ा मामला है. यदि मैं अपने धर्म का सम्मान नहीं कर सकती, अपने माता पिता का सम्मान नहीं कर सकती, अपने माता-पिता द्वारा सिखाई गई सीख की इज्जत न रख सकें ,तो फिर काम करने से क्या फायदा? हमारे फैंस समझते हैं कि फिल्म में कुछ सरदार ही नजर आ रहे हैं.फिर भी मैं अपने बाल हटा दूं, सिर्फ पैसा कमाने के लिए. यह तो उसको ठेस पहुंचाने वाली बात हो जाएगी. फिर मुझे जो प्यार मिल रहा है, वह प्यार नहीं मिलेगा. जब दर्शकों का, प्रशंसकों का प्यार नहीं मिलेगा, तो मैं कहां जाऊंगा? मेरी किस्मत है कि मुझे अच्छा काम मिल जाता है.

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अब आपके अलावा दिलजीत दोसांझ सहित कई कलाकार आ गए हैं.तो अब स्थितियां बदलनी चाहिए?

आपने एकदम सही फरमाया. जरूरत है कि हम अपने हक के लिए लड़ाई लड़े. मैंने इसीलिए कई फिल्में ठुकराई हैं. मैं उन फिल्मों या उन किरदारों को करने से साफ मना कर देता हूं, जिसमें किसी सरदार या हमारे धर्म को ठेस पहुंचाने वाली बात हो. मेरे पापा हर बार मुझे याद दिलाते हैं कि मुझे यह याद रखना चाहिए कि मुझे एक सरदार होने की वजह से कोई किरदार निभाने का मौका मिल रहा है,तो उसे आहत न किया जाए.

देखिए, मैंने तो पहली ही फिल्म मेन लीड की थी. भले ही वह अभय देओल के बचपन का किरदार था, पर वह फिल्म का हीरो था. तो अपनी स्थिति को बरकरार रखते हुए चल रहा हूं. मुझे कहीं भी पहुंचने की जल्दी नहीं है लेकिन मैं हर फिल्म में सिर्फ हास्य किरदार नहीं निभा सकता. मैं अपने आप को विभिन्न किरदार निभाने वाला कलाकार साबित करना चाहता हूं. हो सकता है कि आज मेरी जो लड़ाई है,या आज जो मैं मेहनत कर रहा हूं, उसका फायदा मेरी बजाए मेरी आने वाली पीढ़ी को मिले.

जब कई प्रशंसक मुझसे मिलते हैं और वह कहते हैं कि उन्हें भी मेरी तरह काम करना है, तो मेरा अंतर्मन कहता है कि मैं कुछ ऐसा काम करते जाऊं, जिसे जब यह फिल्मों से जुड़े इन्हें उसका फायदा मिले. लोगों को मेरी कला पसंद आती है. इसके अलावा फिल्म निर्देशक को समझना चाहिए कि फिल्मों का माहौल बदला है. दर्शकों की सोच बदली है. अब दर्शक सपनों में नहीं देखना चाहता. अब दर्शक सब कुछ रिजल्ट देखना चाहता है. तो पर्दे पर हमें भी रियालिटी पेश करनी चाहिए. लोग उन दृश्यों या किरदारों के साथ खुद को जुड़ा पाते हैं, जिन्हें उन्होंने अपने आसपास देखा होता है.

जब आप फिल्म निर्देशक से गंभीर किरदार की मांग करते हैं, तो उनका जवाब क्या होता है?

आपने बहुत सही सवाल पूछा है. मैं जब इस तरह की मांग करता हूं, तो कुछ फिल्म निर्देशक यह कहकर बात टाल जाते हैं कि वह इस पर विचार करेंगे.तो वहीं कुछ निर्देशक कह देते हैं कि अरे  आप सरदार हैं. और दर्शक, सरदार को इसी तरह के हास्य किरदारों में देखना पसंद करता है. आप इस गंभीर किरदार में जच नहीं सकते, यह थोड़ा हीरोइक किरदार है. बहुत ही कठिन किरदार है.

ईमानदारी की बात तो यह है कि अभी मैं बौलीवुड में इतना बड़ा कलाकार नहीं बना हूं कि मैं निर्देशकों पर अपनी मांग, अपनी पसंद थोप सकूं. इसलिए कई बार हमारे पास जो औफर आते हैं, उनमें से जो ज्यादा अच्छे होते हैं, उन्हें हम स्वीकार कर लेते हैं. लेकिन हास्य किरदार में भी भिन्नता लाने की जो मेरी लड़ाई है, वह बंद ना हुई है ना होगी. मेरी पूरी कोशिश होती है कि किसी भी निर्देशक के साथ मेरे रिश्ते खराब ना हो. मुझे ऐसी परवरिश दी गई है कि मैं किसी को भी गलत बात नहीं कह सकता. कई बार हम लोगों की बात सुनकर चुपचाप वापस भी आ जाते हैं. जबकि हम उन्हें जवाब दे सकते थे, लेकिन कई बातें सोचनी पड़ती हैं. वैसे एक कहावत है कि ‘‘डर के आगे जीत है.’’ इसी के चलते में अपनी बात कहता जरूर हूं. मैं धीरे-धीरे कोशिश कर रहा हूं. मुझे अपने अंदर के डर को भगाना है. शायद यही वजह है कि अब कुछ लोग मेरी बातों को सुनने लगे हैं. इसी के चलते मुझे फिल्म ‘‘ड्रीम गर्ल’’ में हास्य किरदार ही मिला है, पर थोड़ा ‘स्ट्रांग’ है. मुझे लगता है कि मेरे काम को देखकर दूसरे निर्देशक का मेरे उपर विश्वास बढ़ेगा. मैं भी लोगों को बताऊंगा कि देखिए, मैंने एक अलग तरह का काम किया है और उसका यह परिणाम है. अब आप भी मुझे कुछ अलग तरह का गंभीर किरदार निभाने का मौका दें, तो मैं उसे करके दिखाऊंगा.उम्मीद है कि मेरे हर काम को दर्शक पसंद करेगा. थोड़ा सा इंतजार कर रहा हूं कि किसी निर्देशक को मेरी प्रतिभा पर भरोसा हो जाए.

आपको नहीं लगता कि आप स्वयं अपनी अभिनय प्रतिभा को दिखाने वाला एक वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर पोस्ट करें, जिस पर फिल्म निर्देशकों की नजर पड़ेगी और उन्हें एहसास होगा कि आप कौमेडी के अलावा भी कुछ कर सकते हैं?

आपने एकदम सही फरमाया. कई लोग खुलकर इसी तरह अपने मन की बात को सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों को तक पहुंचा रहे हैं. पर मैंने अब तक ऐसा कुछ नहीं किया है. पर आपकी बात ने मेरा हौसला बढ़ा दिया. अब मैं भी ऐसा ही प्रयास करूंगा.

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आपने पंजाबी फिल्म करने के बारे में नहीं सोचा?

पंजाबी फिल्मों में भी हमें कौमेडी करने के लिए ही कहा जाता है. मुझे पंजाबी फिल्मों के औफर आते हैं, पर मैं बहुत चूजी हूं. मैंने 11 साल के करियर में सिर्फ 10 हिंदी फिल्में की हैं. इसी तरह पंजाबी फिल्में मिली पर मुझे पसंद नहीं आई. मैने सिर्फ एक पंजाबी फिल्म ‘पुरे पंजाबी’ 2012 में की थी. मैं सिर्फ फिल्मों की संख्या नहीं बढ़ाना चाहता. मैं अच्छा काम करना चाहता हूं. अधिक से अधिक फिल्में करके हम कितना पैसा कमा लेंगे? जब फिल्में असफल होंगी, तो काम मिलना बंद हो जाएगा. फिर उन पैसों का क्या? हम पूरी जिंदगी चला लेंगे, मेरा मानना है कि काम करना है, तो सिर्फ अच्छा करना है.

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पहचान : भाग 2

‘‘नीरद ढंग से बताता कुछ नहीं, आप लोग हैं कौन? धर्मजात क्या है आप की? आप की बेटी रोज कहां जाती है? नीरद ने किराया कुछ बताया भी है या नहीं? हम ने यह घर माली के लिए बनवाया था. अब जब तक आप लोग हो, मेरा बगीचा फिर से सही कर देना. वैसे, हो कब तक आप लोग?’’

अम्मी ने हाथ जोड़ दिए, कहा, ‘‘दीदी, नीरद बड़ा अच्छा बच्चा है. बाढ़ में हमारा घरबार सब डूब गया. समय थोड़ा सही हो जाए, चले जाएंगे.’’

सिर से पांव तक राबिया की अम्मी को नीरद की मां ने निहारा और कहा, ‘‘घरवालों के सीने में मूंग दल कर बाहर वालों पर रहमकरम कर रहा है, अच्छा बच्चा तो होगा ही.’’

नीरद की मां का इस तरह बोल कर निकल जाना अम्मी को काफी मायूस कर गया. अब चोरों की तरह अपनी ही नजरों से खुद को छिपाना भारी हो गया था. हमेशा बस यही डर कि किसी को पता न लग जाए कि वे सरकारी लिस्ट के बाहर के लोग हैं. जाने कितनी पुश्तों से इस माटी में रचेबसे अब अचानक खुद को घुसपैठिए सा महसूस करने लगे हैं. जैसे धरती पर बोझ. जैसे चोरी की जिंदगी छिपाए नहीं छिप रही.

भरोसा उन्हें इस अनजान धरती पर भले ही नीरद का था, लेकिन काम के सिलसिले में वह भी तो अकसर शहर से बाहर ही रहता. इस घटना को अभी 4-5 दिन बीते होंगे. नीरद अभी भी शहर से बाहर ही था और दूसरे दिन आने वाला था. राबिया ने शाम को अपनी रसोई की खिड़की से एक साया सा देखा. वह साया एक पल को खिड़की के सामने रुक कर तुरंत हट गया.

उस रात थोड़ा डर कर भी वह शांत रह गई, किसी से कुछ नहीं कहा. नीरद दूसरे दिन घर वापस आया और उन से मिला भी, लेकिन बात आईगईर् हो गई. नीरद 3 दिनों बाद फिर शहर से बाहर गया. शाम को रसोई की खिड़की के बाहर राबिया ने फिर एक आकृति देखी. एक पल रुक कर वह आकृति सामने से हट गई. राबिया दौड़ कर बाहर गई. कोई नहीं था. राबिया पसोपेश में थी. अम्मी खामख्वाह परेशान हो जाएंगी. यह सोच कर वह बात को दबा गई.

हां, राबिया को इन सब से छुट्टी नहीं मिली. खिड़की, एक आकृति, इन सब का डर और फिर बाहर झपटना और कुछ न देख पाना. राबिया मानसिक रूप से लगातार टूट रही थी.

अगले हफ्ते नीरद वापस आया तो उसे सारी बातें बताने की सोच कर भी वह डर कर पहले चुप रह गई.

दरअसल, राबिया का डर लाजिमी था. एक तो नीरद ने उन दोनों के आपसी रिश्ते पर अब तक बात नहीं की थी, दूसरे, अम्मी और अजीम की जिंदगी राबिया की किसी गलती की वजह से अधर में न लटक जाए. दरअसल, राबिया तो अब तक नीरद की चुप्पी देख खुद के एहसासों को भी खत्म कर लेने का जिगर पैदा कर चुकी थी.

खिड़की पर रोजरोज किसी का दिखना कोई छोड़ा जाने वाला मसला नहीं लगा राबिया को और उस ने हिम्मत कर ही ली कि नीरद को सारी बातें बताई जाएं.

नीरद समझदार था. उसे अंदेशा हुआ कि हो न हो कोई राबिया के लिए ही आता हो. गिद्दों की नजर पड़ने में देर ही कहां लगती है. एक परिवार को वह खुद के भरोसे उन की जमीन से उखाड़ लाया है. क्या वह राबिया के लिए कोई जिम्मेदारी महसूस करता है? क्या यह सिर्फ जिम्मेदारी ही है?

अजीम बाहर खेल रहा था, और अम्मी टेलर की दुकान से अभी तक नहीं लौटी थीं. नीरद को यह सही वक्त लगा. उस ने राबिया से कहा, ‘‘राबिया, मैं तुम से एक बात पूछना चाहता हूं.’’

राबिया की धड़कनें धनसिरी के उफानों से भी तेज चलने लगीं. आशानिराशा के बीच डोलती उस की आंखों की पुतलियां भरसक स्थिर होने की कोशिश में लगीं नीरद की आंखों से जा टकराईं.

नीरद ने कहा, ‘‘राबिया, तुम्हारा नाम मुझे लंबा लगता है, मैं तुम्हें ‘राबी’ कह कर बुलाना चाहता हूं. इजाजत है?’’

‘‘है, है, सबकुछ के लिए इजाजत है.’’

राबिया का दिल खुशी के मारे मन ही मन बल्लियों उछल पड़ा. मगर शर्मीली राबिया बर्फ की मूरत बनी एक ही जगह शांत खड़ी रही और जमीन की ओर देखती स्वीकृति में बस सिर ही हिला सकी.

नीरद ने धीरे से पूछा, ‘‘तुम्हारी पसंद में कोई लड़का है जिस से तुम शादी कर सको? मुझे बता दो, यहां मैं ही तुम सब का अपना हूं?’’

‘इस की बातें किसी पराए की तरह चुभती हैं. कभी इस ने मेरे मन को टटोलने की कोशिश नहीं की. जबकि मैं न जाने इसे कब से अपना सबकुछ…’ राबिया आक्रोश पर काबू नहीं रख सकी और नीरद के सामने अपनेआप को जैसे पूरा खोल कर रख दिया अचानक, ‘‘चूल्हे में जाए तुम्हारा अपनापन. आठों पहर दिल में कुढ़ती हूं, आंखों का पानी अब तेजाब बन गया है. अब सब्र नहीं मुझ में.’’

नीरद नजदीक आ कर उस की दोनों बांहें पकड़ उस की आंखों की गहरी झील में उतरता रहा. कितनी सीपियां यहां मोती छिपाए पड़ी हैं. वह कितना बेवकूफ था जो झिझकता ही रह गया.

राबिया प्रेम समर्पण और लज्जा से थरथरा उठी. धीरेधीरे वह नीरद के बलिष्ठ बाजुओं के घेरे में खुद को समर्पित कर उस के सीने से जा लगी.

नीरद ने उस पर अपनी पकड़ मजबूत करते हुए पूछा, ‘‘शादी करोगी मुझ से?’’

‘‘पर कैसे? तुम कर पाओगे? मेरा तो कोई नहीं, लेकिन तुम्हारा परिवार और समाज?’’

‘‘तुम प्यार करती हो न मुझ से?’’

‘‘क्या अब और भी कुछ कहना पड़ेगा मुझे?’’

‘‘फिर तुम मेरी हो चुकी, राबी. कोईर् इस सच को अब झुठला नहीं सकता.’’

नीरद के मन की हूर अब नीरद के लिए सच बन कर जमीन पर उतर चुकी थी. लेकिन इस सच को परिवार और समाज की जड़बुद्धि को कुबूल करवाना कोई हंसीखेल नहीं था.

असम के ग्रामीण इलाकों में बाढ़ का प्रकोप कुछ कम हुआ तो एनआरसी यानी नैशनल रजिस्टर औफ सिटीजन्स का प्रकरण फिर शुरू हुआ.

राबिया का परिवार अपना घरबार, जमीन खो कर जड़ से कट चुका था. अभी के हालात में दो जून की रोटी और अमन से जीने की हसरत इतनी माने रखती थी कि अम्मी और राबिया फिर से उसी पचड़े में नहीं पड़ना चाहती थीं.

इधर, नीरद चाहता था कि एनआरसी की दूसरी लिस्ट में उन का नाम आ जाए. अभी नीरद इसी मामले में बात कर अपने घर की सीढि़यों से ऊपर चढ़ा ही था, और बाहर तक उसे छोड़ने आई राबिया अपने घर की तरफ मुड़ी ही थी, कि शाम के धुंधलके वाले सन्नाटे में कोई राबिया का मुंह झटके से अपने हाथों में दबा, तेजी से पीछे जंगल की ओर घसीट ले गया. वह इतनी फुरती में था कि राबिया को संभलने का मौका न मिला.

राबिया के घर के पीछे घनी अंधेरी झाडि़यों में ले जा कर उस ने राबिया को जमीन पर पटक दिया और उस के सीने पर बैठ गया. उस के चेहरे के पास अपना चेहरा ले जा कर अपना मोबाइल औन कर के उस ने अपना चेहरा दिखाया और शैतानी स्वर में पूछा, ‘‘पहचाना?’’

राबिया घृणा और भय से सिहर उठी. उस ने अपना चेहरा राबिया के चेहरे के और करीब ला कर फुसफुसा कर कहा, ‘‘जो सोचा भी नहीं जा सकता वह कभीकभी हो जाता है. अब तुम्हारे सामने 3 विकल्प हैं. पहला, तुम रोज रात को इसी जगह मेरी हसरतें पूरी करो चाहे नीरद से रिश्ता रखो. दूसरा, अपने परिवार को ले कर चुपचाप यहां से चली जाओ, किसी से बिना कुछ कहे, नीरद से भी नहीं. अंतिम विकल्प, मुझ से बगावत करो, इसी घर में रहो, नीरद को फांसो और अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहो.

‘‘वैसे, अंजाम भी सुन ही लो. 3 जिंदगियां खतरे में होंगी. नीरद, अजीम और तुम्हारी अम्मी की. हां, तुम्हें आंच नहीं आने दूंगा जानेमन. तुम तो मेरी हसरतों की आग में घी का काम करोगी.’’

सन्नाटे पर चोट सी पड़ती उस की खूंखार आवाज से बर्फ सी ठंडी पड़ चुकी राबिया दहल गई थी. उस के शरीर को अश्लील तरीके से छूता हुआ वह परे हट बैठा और अपनी कठोर हथेली में उस के गालों को भींच कर बोला, ‘‘देखा, मैं कितना शानदार इंसान हूं. मैं तुम्हें आसानी से हासिल कर सकता था, लेकिन मैं चाहता हूं तुम खुद को खुद ही मुझे सौंपो. जैसे सौंपोगी नीरद को. उफ, वह क्या मंजर होगा. तुम मेरी आगोश में होगी- और वह पल, नीरद के साथ धोखा… कयामत आएगी उस पर.

‘‘लगेहाथ यह भी बता दूं, नीरद की शादी तय हो गई है, खानदानी लड़की से, सरकारी लिस्ट वाली.’’

राबिया बेहोशी सी हालत में घर पहुंची तो यथासंभव खुद को संभाले रही और नीरद के साथ बाहर चले जाने का बहाना बना दिया. लड़की जात ही ऐसी होती है, ड्रामेबाज. कभी मां से, कभी प्रेमी, पति, भाई या पिता से झूठ बोलती ही रहती है. अपना दर्द छिपाती है, डर छिपाती है ताकि अपने निश्चित रहें, शांत और खुश रहें.

सुबह हुई तो राबिया को फिर शाम का डर सताने लगा. इतने में नीरद आ गया. उस का व्यवहार उखड़ा सा था. आते ही वह कह पड़ा, चलो, अब और नहीं रुकूंगा. रजिस्ट्री मैरिज के लिए आज ही आवेदन दे दूंगा.’’

राबिया सकते में थी. ‘‘इतनी जल्दी? सब मानेंगे कैसे?’’ फिर रजिस्ट्री होगी कैसे? वह तो सब की नजर में घुसपैठिया है.

कागज का टुकड़ा जाने कब कहां किस बाढ़ में बह गया. वे तो बेगाने ही हो गए. नीरद ने अम्मी के पांव छू लिए. कहा, ‘‘अम्मी, आप बस आशीर्वाद दे दो, बाकी मैं संभाल लूंगा. रात को घर में मां और भाई ने खूब हंगामा किया.

‘‘मां ने मेरी शादी एक नामी खानदानी परिवार में तय कर रखी है. मोटी रकम देंगे वे. मुझे कल रात यह बात पता चली. मेरे पिता की मृत्यु के बाद से मैं ही घर की जिम्मेदारी उठा रहा हूं. पिता की पैंशन से मां मनमाना खर्च करती हैं और 32 साल के मेरे निकम्मे बड़े भाई को दे देती हैं. बड़ा भाई पहली शादी से तलाक ले कर आवारागर्दी करता है. पार्टी से जुड़ा है और पार्टी फंड के नाम पर उगाही कर के जेब गरम करता है. अब इन दोनों का मेरी निजी जिंदगी में दखल मैं कतई बरदाश्त नहीं करूंगा.’’

राबिया के दिल में तूफान उठा. वह अपने साथ हुए उस भयानक हादसे को जेहन में रोक कर न रख सकी. आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा, ‘‘नीरद,’’ कहते हुए उस की हिचकियां बंध गईं. अम्मी अजीम को ले कर बाहर चली गईं.

नीरद पास आ गया था. उस की आंखों में बेइंतहा प्रेम और हाथों में अगाध विश्वास का स्पर्श था. उस ने पूछा, ‘‘क्या हुआ है, राबी? बताओ मुझे. शायद कहीं मेरा अंदेशा तो सही नहीं? तुम ही बताओ राबी?’’

‘‘तुम्हारा बड़ा भाई,’’ सिर झुकाए हुए आंसुओं की धार में राबिया के सारे मलाल बाहर निकल आए. नीरद को गुस्से में होश न रहा, चिल्ला कर पूछा, ‘‘क्या कर दिया कमजर्फ ने?’’

राबिया सकते में आ गई. नीरद के हाथ पकड़ कर विनती के स्वर में कहा, ‘‘कुछ कर नहीं पाया, मगर जंगल में खींच कर ले गया था मुझे.’’ बाकी बातें सुनते ही नीरद आपे से बाहर हो गया, कहा, ‘‘चलो थाने, रिपोर्ट लिखाएंगे.’’

‘‘आप के परिवार की इज्जत?’’

‘‘तुम्हारे दुख से बड़ी नहीं. क्या तुम ने उस का चेहरा देखा था? उस ने जैसा तुम्हें धमकाया था, वैसा वाकई कर दिखाया?’’

‘‘साफसाफ देखा मैं ने उसे. वह खुद चाहता था कि मैं उसे पहचानूं, खौफ खाऊं.’’

नीरद उन तीनों को ले कर थाने तो गया लेकिन वहां उन की नागरिकता के प्रश्न पर उन्हें जलील ही होना पड़ा. पुलिस वालों ने कहा, ‘‘तब तो पहले एनआरसी में नाम दर्ज करवाओ, फिर यहां आओ. जब हमारे यहां के नागरिक हो ही नहीं, तो हमें क्या वास्ता?’’

न्याय, अन्याय और सुखदुख की मीमांसा अब इंसानियत के हाथों में नहीं थी. बाध्य हो कर नीरद ने अपने कद्दावर दोस्त माणिक का सहारा लिया. वह एक सामाजिक संस्था का मुखिया था और समाज व राजनीतिक जीवन में उस की गहरी पैठ थी.

उस ने उन लोगों को शरण भी दी और देखभाल का जिम्मा भी लिया. नीरद भी कुछ दिन माणिक के घर से औफिस आनाजाना करता रहा.

इस बीच, नीरद ने अपने बड़े भाई की हरकतों का उस की ही पार्टी के राज्य हाईकमान से शिकायत की और उसे काबू में रखने का इशारा करते हुए उन की पार्टी की बदनामी का जिक्र किया. हाईकमान को बात समझ आ गई. उसी शाम जब वह फिर राबिया को तहसनहस करने के मंसूबे बांध उस के खाली घर के पास बिना कुछ जाने मंडरा रहा था. पार्र्टी हाईकमान के गुर्गों ने राबिया के घर के पीछे की झाडि़यों में ले जा कर उस की सारी हसरतें पूरी कर दीं. साथ ही, हाईकमान का आदेश भी सुना दिया, ‘पार्टी बदनाम हुई तो वह जिंदा नहीं बचेगा.’

इधर, यह कहानी यहां रुक तो गई, लेकिन नीरद की जिंदगी की नई कहानी कैसे शुरू हो? रजिस्ट्री तो तब होगी जब राबिया खुद को असम की लड़की साबित कर पाएगी.

पर क्या नीरद का प्रेम इन बातों का मुहताज है? जब उस ने धर्मजाति नहीं देखी तो अब नागरिकता पर अपने प्रेम की बलि चढ़ा दे?

प्रेम तो मासूम तितली सा नादान, दूसरों के दर्द, दूसरों की खुशी का वाहक  है जैसे परागकणों को तितलियां ले जाती हैं एक से दूसरे फूलों में.

नीरद ने अपना तबादला दिसपुर कर देने की अर्जी लगाई. भले ही वहां काम ज्यादा हो, लेकिन राबिया को नजदीक पाने के लिए वह कुछ ज्यादा भी मेहनत कर लेगा.

सच कहते हैं, भला मानुष कभी अकेला नहीं पड़ता. चार दुश्मन अगर उस के हों भी, सौ दोस्त भी उस के हर सुखदुख में साथ होते हैं. नीरद भी ऐसा ही था. ज्यादातर वह लोगों से मदद लेता कम था, देता अधिक था. औफिस के सारे स्टाफ वाले उस की अच्छाई के कायल थे. इसलिए कानून भले ही अड़ंगा था, मगर इंसानों ने इंसानियत का तकाजा अपने कंधों पर संभाल लिया था. नीरद और राबिया के प्यार की मासूमियत को सभी दिल से महसूस कर रहे थे और औफिस में फाइलें आगे बढ़ाते हुए उस के दिसपुर स्थानांतरण की राह प्रशस्त कर दी थी.

दिसपुर पहुंच कर नीरद और नीरद की राबी ने गुवाहाटी और दिसपुर के कुछ लोगों के सामने एकदूसरे को अपना बना लिया.

देश अभी भी बड़ी अफरातफरी में था. इंसानों पर जाति, धर्म और नागरिकता के टैग लगाने की बड़ी रेलमपेल लगी थी. इधर, नीरद और राबी ने दुनिया की रीत पर लिख दी अपने प्यार की पहचान. इंसान की सब से बड़ी पहचान राबी और उस के परिवार को मिल गई थी.

कृषि में तकनीक से तरक्की

तकनीकी दौर में आज अनेक कृषि उत्पादों की प्रोसैसिंग कर गिनेचुने किसान और कंपनियां खासा मुनाफा कमा रही हैं. लेकिन ज्यादातर किसानों को इस बारे में जानकारी नहीं है या वे कर नहीं पाते. नतीजतन, अपनी फसल से बंपर पैदावार होने पर भी वे अपनी उपज को औनेपौने दामों पर मंडी में बेचने को मजबूर हो जाते?हैं. मंडी में भी कई दफा इतने कम दाम मिलते हैं कि वहां ले जाने का किराया भी नहीं मिल पाता. ऐसे में किसान अपनी उपज को जानवरों को खिलाता है या ऐसे ही सड़कों पर फेंक देता है. इस समस्या से निबटने के लिए किसान क्या करें.

इसी संदर्भ में हमारी बातचीत जैन फार्म फ्रैश फूड लिमिटेड के डायरैक्टर अथांग जैन से हुई. उन का कहना है कि आज हम फार्म फ्रैश के जरीए फलसब्जी की प्रोसैसिंग कर किसानों की आमदनी बढ़ाने में मदद कर रहे हैं.

उन्होंने बताया कि फार्म फ्रैश जैन इरिगेशन की सहयोगी इकाई है जिस में ड्रिप इरिगेशन में हमारा मुख्य उद्देश्य किसान कम पानी में खेती से अच्छी पैदावार ले सकें. किसान को पैदावार तो अच्छी मिलने लगी परंतु उपज का बाजार भाव कम मिलने लगा इसलिए हम किसानों से उन की उपज खरीदने लगे, फिर उन्हें प्रोसैस कर देशविदेश में बेचने लगे ताकि आमदनी से किसान को भी बेहतर फायदा मिल सके.

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अथांग जैन का मानना?है कि कृषि को अगर तकनीक से किया जाए तो मुनाफा निश्चित है. आज खेती में अनेक ऐसे रास्ते हैं जो आप को तरक्की की ओर ले जाते?हैं जिन में फूड प्रोसैसिंग, हाईटैक फार्मिंग, टिश्यू कल्चर फार्मिंग वगैरह खास हैं.

आप का कहना है कि आप किसानों की आमदनी बढ़ाने में मदद कर रहे?हैं. इस पर कुछ विस्तार से बताएं कि आप का किसानों से जुड़ने का जरीया क्या है, उन्हें किस तरीके से आप उन की पैदावार की अच्छी कीमत दे पाते हैं.

जी हां, यह हमारा गंभीर व सार्थक प्रयास भी है. इस को विस्तार से बताने से पहले मैं एक खास पृष्ठभूमिका से आप को अवगत कराना चाहूंगा कि इस कंपनी यानी जैन इरिगेशन व अन्य सहयोगी कंपनियों के संस्थापक पद्मश्री भंवरलाल जैन, मेरे दादा स्वयं एक किसान परिवार में जनमे थे और किसान थे. हमारे पूर्वज राजस्थान से रोजगार की तलाश में मरूभूमि से यहां जलगांव जिले के बाकोद गांव में बस गए. खेती व्यवसाय के साथ ग्रामीण हाट में व्यवसाय भी किया. शिक्षा पूरी करने के बाद उन का चयन राज्य प्रशासनिक सेवा में हुआ था. नौकरी स्वीकार करने के बजाय उन्होंने अपनी मां के सुझाव से कृषि एवं कृषक संबंधी उपकरणों, साधनों का व्यवसाय शुरू किया.

अब आप के मूल प्रश्न के जवाब की ओर आता हूं कि हम किस तरह से किसानों की आमदनी बढ़ाने में मदद करते?हैं. हमारी कंपनी किसानों को विभिन्न बागबानी फसलों के उन्नत और अधिक पैदावार देने वाली किस्मों के टिश्यू कल्चर पौधे मुहैया कराती?है और किसानों को उन से बेहतर पैदावार मिल सके, इस के लिए समयसमय पर हमारे विशेषज्ञ उन के फार्महाउस पर जाते हैं जो जरूरत के मुताबिक उन्हें तकनीकी प्रशिक्षण दे कर उन की मदद करते?हैं. कंपनी का अपना 1,200 एकड़ में फैला अत्याधुनिक कृषि संशोधन व प्रदर्शन प्रक्षेत्र है जहां सालभर कृषि से जुड़ी जानकारी व विशेषज्ञों द्वारा प्रशिक्षण दिया जाता है.

हम जो भी नई तकनीक अपनाते हैं, जिस से किसानों को फायदा होता हो चाहे वह पौधे, बीज, खाद, सिंचाई, कीटनाशक के उपयोग वगैरह के बारे में हो, उसे हम किसानों तक पहुंचाते?हैं.

आप ने टिश्यू कल्चर पौधों के बारे में बात की?है, इन में केला, अनार, स्ट्राबेरी व अन्य फलों के मोडिफाई पौधे जैसे आम, चीकू, अमरूद, सीताफल, पपीता व ऐसे अनेक पौधे मुहैया कराते हैं. उन की फसल आने पर फलों को प्रोसैस कर उन से रस, पल्प वगैरह को बाजार में उपलब्ध कराते?हैं व कोकाकोला जैसी अंतर्राष्ट्रीय स्तर की कंपनियां इस उत्पाद को अपने लिए इस्तेमाल करती?हैं.

‘फार्म फ्रैश’ के तहत अन्य फसल प्याज, लहसुन, मिर्च, अदरक, हलदी, धनिया वगैरह मसाले और केला, अनार, आम वगैरह फलों के रस व पल्प खुदरा मार्केट में भी मौजूद होने लगे?हैं. चूंकि किसान को अपनी फसल की सही कीमत कंपनी से मिल जाती?है और किसानों को बाजार के भाव में तेजी, मंदी, मध्यस्थता के खर्च वगैरह में बचत होती?है.

अभी आप की पहुंच किनकिन इलाकों के किसानों तक?है जहां से आप किसानों की पैदावार खरीदते?हैं?

अभी हमारी पहुंच अलगअलग फसलों के लिए अलगअलग इलाकों में है जहां उन का उत्पादन बहुतायत होता है. उदाहरण के लिए प्याज के लिए नासिक, जलगांव, गुजरात के कुछ जिले, केले के लिए जलगांव के आसपास का?इलाका भारत में प्रसिद्ध है ही. स्वीट ओरैंज के लिए विदर्भ, महाराष्ट्र व मध्य प्रदेश का छिंदवाड़ा, बैतूल इलाका, अनार के लिए महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, आम के लिए महाराष्ट्र, कोंकण, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, लहसुन के लिए मध्य प्रदेश के रतलाम, मंदसौर, नीमच जिले व राजस्थान के प्रतापगढ़, चित्तौड़गढ़ इलाका, अमरूद के लिए मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, स्ट्राबेरी के लिए नासिक, महाबलेश्वर व महाराष्ट्र के दूसरे जिले, मिर्च के लिए निमाड़?इलाका व आंध्र प्रदेश व हलदी के लिए महाराष्ट्र का सांगली, कोल्हापुर व दूसरे इलाकों में हमारी अच्छीखासी पहुंच है.

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फलों के अलावा क्या सब्जियों पर भी कुछ काम करने का इरादा है,

जी हां, आने वाले समय में सब्जियों के निर्जलीकरण व प्रसंस्करण की योजना है.

अभी जिन फलों को आप अपने उत्पाद में इस्तेमाल करते?हैं, क्या वह जैविक तरीके से उगाए गए होते?हैं?

यह अच्छी बात है कि किसानों का झुकाव भी अब जैविक खेती की ओर तेजी से हो रहा?है. कंपनी इस काम को बढ़ावा दे रही?है. हालांकि हमारी कोशिश यही है कि अधिकतम उत्पाद जैविक प्रणाली से उत्पादित हों. खाद, कीटनाशकों के उपयोग को सीमित करते हुए उस का विपरीत असर फसलों पर न हो, उस का खास ध्यान रखते?हैं.

अगर कोई किसान आप की संस्था से जुड़ना चाहे तो वह किस तरह से और कहां संपर्क करे?

जो भी किसान हमारी संस्था से जुड़ना चाहता?है तो वह कंपनी की तय शर्तों व नियमों के मुताबिक जुड़ सकता?है. उन का स्वागत है. उन के लिए वे हम से इस पते पर संपर्क कर सकते हैं:

गेट नंबर 139/2, जैन फूड पार्क, जैन व्हैली, सिरसोली, जलगांव-425001. फोन नंबर 0257-2260033/44

किसानों के लिए कोई ऐसा सुझाव देना चाहेंगे जिन से उन्हें पैदावार की बेहतर कीमत मिल सके?

बेहतर पैदावार, अधिक आमदनी, सही दाम हासिल करने के लिए हमारा खास सुझाव है कि किसान उत्पादन देने वाली अच्छी किस्म की फसलों का चयन करें और कृषि उत्पादन के प्रोटोकाल का ईमानदारी से पालन करें.

सिंचाई के सही साधन व प्रणाली अपनाते हुए फसल को जरूरत के मुताबिक प्रतिदिन पानी दें व विशेषज्ञों द्वारा की गई सिफारिशों का पालन करें.

एक बात और साफ करना चाहता हूं कि जमीन, सिंचाई व दूसरे कृषि उत्पाद के बाबत बहुत सी भ्रांतियां किसानों को हैं. उन सभी भ्रांतियों को दूर करने के लिए आधुनिक व नवाचारित खेती करने के तरीकों को देखने के लिए हमारे जलगांव स्थित प्रक्षेत्र पर पधारें, उन का स्वागत कर हमें बेहद खुशी होगी.

(अथांग जैन, डायरैक्टर, जैन फार्म फ्रैश फूड लिमिटेड)        

इंस्टेंट ग्लो के लिए ऐसे करें फेशियल

आप इंस्टेंट ग्लो के लिए स्टीम यानी भाप फेशियल कर सकते है. इस फेशियल की सबसे खास बात ये है कि आप आसानी से घर पर ही स्टीम  फेशियल कर सकते हैं और ये आपको चेहरे को देगा इंस्टेंट ग्लो.  तो आइए जानते हैं आप इसे घर पर  कैसे कर सकती हैं और इस फेशियल के क्या फायदे है.

भाप लेने के फायदे

रक्त संचार बेहतर

जब चेहरे पर हीट पड़ती है तो हमारा ब्रेन, रक्त धमनियों को संकेत देता है कि वे चेहरे पर खून के फ्लो को बढ़ाएं. फेस में ब्लड का सर्क्युलेशन बढ़ने से ऑक्सिजन और न्यूट्रिएंट्स ज्यादा मात्रा में चेहरे तक पहुंचते हैं और चेहरा ग्लो करने लगता है.

डेड स्किन सेल्स से छुटकारा

भाप लेने से स्किन की सतह सौफ्ट हो जाती है जिससे डेड स्किन सेल्स के साथ ही धूल, गंदगी और बैक्टीरिया को भी दूर करने में मदद मिलती है. एक बार स्किन की सतह साफ हो गई फिर आपकी स्किन आसानी से सांस ले पाएगी.

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स्किन पोर्स खुल जाते हैं

स्टीमिंग यानी भाप लेने से चेहरे से पसीना निकलने लगता है जिससे स्किन में मौजूद पोर्स खुल जाते हैं और स्किन के पोर्स में छिपे रहने वाले डेड सेल्स और टॉक्सिन्स को बाहर निकालने में मदद मिलती है.

ब्लैकहेड्स से छुटकारा

भाप लेने से चेहरे पर मौजूद ब्लैकहेड्स और वाइटहेड्स सॉफ्ट हो जाते हैं और उन्हें स्क्रब कर निकालना आसान हो जाता है. ब्लैकहेड्स से छुटकारा पाने के लिए भाप लेने के बाद चेहरे पर माइल्ड स्क्रब का इस्तेमाल भी करें.

घर पर ऐसे करें

– सबसे पहले चेहरे को फेसवॉश का इस्तेमाल कर ठंडे पानी से धो लें.

– फेस धोने के बाद चेहरे को तौलिए से पोंछकर सुखा लें.

– अब पानी को स्टीमर या किसी बर्तन में गर्म कर लें. पानी को उतना ही गर्म करें, जितना आपकी स्किन सह पाए.

– अब अपने फेस टाइप के हिसाब से कोई इसेंशियल ऑइल चुनें और उसकी कुछ बूंदें भाप वाले पानी में मिलाएं.

– अपने सिर के ऊपर तौलिया ओढ़ लें, ताकि आपके चेहरे के ऊपर एक टेंट जैसा बन जाए और अपने चेहरे को गर्म पानी के कटोरे या स्टीमर के ऊपर झुकायें.

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हर स्किन टाइप को सूट करता है ऑर्गैनिक फेशल

हर स्किन टाइप को सूट करता है ऑर्गैनिक फेशल

– करीब 10 मिनट तक अपना चेहरा ऐसे ही झुकाए रखें. अपनी आंखें बंद कर लें और गहरी सांस लें, ताकि भाप आपके चेहरे तक पहुंच सके और चेहरे के रोमछिद्र खुल जाएं.

– बहुत ज़्यादा देर तक चेहरे को भाप न दें और न ही चेहरे को पानी के बहुत नजदीक ले जाएं. यदि चेहरा देर तक भाप के ऊपर रहा तो चेहरे पर जलन हो सकती है.

– करीब 5 मिनट भाप लेने के बाद चेहरे पर फेस मास्क लगाएं, जो चेहरे के खुले रोमछिद्रों से गंदगी बाहर खींचेगा.

– यदि आपके पास क्ले-मास्क है, तो वह लगाएं, क्योंकि वह सबसे बेहतर होता है. इस मास्क को 15 मिनट तक लगाए रखें और फिर हल्के गर्म पानी से चेहरा धो लें.

– भाप लेने के बाद, टोनर का इस्तेमाल करने से आपका चेहरा ताज़ा और निखरा नजर आएगा. आप टोनर के लिए नींबू के रस का भी प्रयोग कर सकती हैं.

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पहाड़ की चोटी पर बना है ये शानदार होटल

आपने कई होटलों के नाम सुने होंगे. जहां दूसरे होटलों से अलग सुविधाएं मिलती होंगी. और अपने आप में अनोखा होगा. लेकिन आज आपको एक ऐसे  होटल के बारे में बताने जा रहे हैं वह होटल सभी होटलों से अलग है. क्योंकि ये होटल पहाड़ पर बना हुआ है. जहां पहुंचने के लिए आपको 60,000 सीढ़ियां पार करनी होगी.

जी हां ये होटल चीन के यलो माउंटेन पर बना हुआ है. जेड स्क्रीन नाम का ये होटल फोर स्टार है. जेड स्टार होटल जमीन से 1830 मीटर की ऊंचाई पर बना हुआ है. ऊपर पहुंचने पर हंगशन माउंटेन रेंज का सुंदर और शानदार नजारा देखने को मिलता है. ये होटल दुनिया का एक मात्र होटल है जो इतनी ऊंचाई पर बना हुआ है जहां पहुंचने के लिए लोगों को सीढ़ियां चढ़कर जाना पड़ता है. बता दें कि इतनी ऊंचाई पर होने के बावजूद इस होटल में सभी तरह की लग्जरी सुविधाएं मौजूद हैं.

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इस होटल में आपको स्पा और स्विमिंग पूल की सुविधा भी मिलेगी. अगर कोई होटल तक पहुंचने के लिए सीढ़ियों का इस्तेमाल नहीं करना चाहता तो उसके लिए कुली का इंतजाम है. जो उन्हें कुर्सी पर बैठाकर ऊपर ले जाता है. यही नहीं पर्यटकों के लिए केबल कार की सुविधा भी मौजूद है.

ये कोई छोटा मोटा होटल नहीं है बल्कि इस होटल में 65 सुइट्स और कमरे हैं. जिनमें आपको वाई-फाई की सुविधा मिलेगी. इस होटल में पहुंचने की सबसे बड़ी समस्या ये है कि अगर आप सामान के साथ होटल में जाते हैं तो आपको अपना सामान अपने कंधों पर ही लटका कर ले जाना पड़ेगा.

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बुढ़ापे में बच्चों का साथ है जरूरी

बहुत दिनों के बाद मेरा कानपुर अपने मायके आना हुआ था. पहले मैं बनारस में थी तब तो महीने-दो महीने में आ जाती थी, मगर जबसे पति के साथ देहरादून शिफ्ट हुई तब से कानपुर आना-जाना बहुत कम हो गया था. भईया तो पढ़ने के लिए वियतनाम गये, तो फिर वहीं के होकर रह गये. शादी भी वहीं कर ली और घर भी वहीं ले लिया,  पीछे से मां और पिताजी कानपुर में अकेले रह गये.

भईया कभी पांच-छह साल में कुछ हफ्तों के लिए आते भी हैं, तो यहां के माहौल में रह पाना उनके लिए काफी कष्टकारी हो जाता है. धूल भरी टूटी-फूटी सड़कें, हर वक्त बिजली जाने की समस्या, प्रदूषित पानी और हवा, उनके लिए तो यहां हफ्ता काटना भी मुश्किल हो जाता है. मैं ही साल छह महीने में एकाध बार चक्कर लगा जाती थी. अक्सर फोन पर ही बात कर लेती थी मां से, मगर फोन पर वह अपना दुखड़ा क्या रोती. अकेलापन दोनों के जीवन में गहरे बस गया था. सत्तर साल की उम्र तो पार हो चुकी थी, बची हुई बस किसी तरह काट रहे थे.

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उन्हें अकेला देखकर मुझे बड़ा बुरा महसूस होता था. मैं भी यहां उनके पास ज्यादा दिन तो रह नहीं पाती थी. अपने घर में भी बूढ़े सास-ससुर थे. बच्चे थे, पति था, जिनकी सारी जिम्मेदारी मेरे ही कंधों पर थी. मगर अपने मां-पिता का अकेलापन भी मुझे सालता रहता था.

अबकी बार आयी तो देखा कि दोनों काफी दुबले और कमजोर हो गये हैं. पापा का शुगर काफी बढ़ा हुआ था और कमजोरी बहुत थी. मां की भी कमर झुक गयी थी. बड़ी मुश्किल से रसोई में कुछ काम कर पा रही थीं. एक नौकरानी थी जो सुबह आकर दोनों वक्त का खाना पका जाती और झाड़ू-बरतन कर जाती थी. जिस दिन नहीं आती थी, दोनों ब्रेड खाकर गुजारा करते थे.

पहले कितना अच्छा होता था बड़े-बड़े परिवार थे. संयुक्त परिवारों में ढेर सारे बच्चे, बेटियां-बहुएं और बूढ़े लोग होते थे. न अकेलापन, न खाने-पीने की चिन्ता और न ही हारी-बीमारी की फिक्र. हर कोई हर किसी का ध्यान रख लेता था. मगर अब एकल परिवारों में बूढ़ों का जीना दुश्वार हो गया है. मैं सोच रही थी कि यहां इन दोनों के साथ कोई घटना घट जाए तो मुझे कोई खबर देने वाला भी यहां नहीं है. अब अड़ोस-पड़ोस भी वैसा नहीं रहा. ज्यादातर घरों में अब बुजुर्ग तो रहे नहीं, जवान हैं जो अपने-अपने में ही मस्त रहते हैं. बगल के घर में क्या हो रहा है किसी को खबर नहीं. काश यहीं कहीं आसपास ही मेरी शादी हुई होती तो कम से कम जरूरत पड़ने पर तुंरत आ तो जाती. मैं पापा के पास बैठी उनका सिर सहला रही थी और यह बातें सोच ही रही थी कि किचेन में कुछ धड़ाम से गिरने की आवाज आयी. मैं भाग कर गयी तो देखा मां चौके में चारों खाने चित्त पड़ी हैं. चाय बनाने आयी थीं, दूध एक ओर बिखरा पड़ा था और पतीली अलग उलटी हुई थी. मैं घबरा कर उन्हें उठाने के लिए झुकी तो वह धीरे से बोली, ‘चक्कर आ गया था…’

मैं उन्हें सहारा देकर बिस्तर तक लायी. वह बिस्तर पर ढेर हो गयीं, जैसे शरीर में ताकत ही न हो. मैंने पूछा, ‘ये चक्कर कब से आने लगे? तुमने कभी बताया नहीं?’

उन्होंने धीरे से आंखें खोलीं और कमजोर लड़खड़ाती आवाज में बोलीं, ‘बेटा, काफी दिन से आ रहे हैं, तुमको क्या बताती, तुम्हारा भी तो परिवार है, उसे छोड़कर तो नहीं आ सकती न?’

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बस उसी पल मैंने फैसला ले लिया. मैं नहीं आ सकती तो तुमको तो ले जा सकती हूं. उसी शाम पति से फोन पर बात की. कानपुर वाला घर बेचकर उस पैसे से देहरादून में अपने घर के पास ही एक छोटा सा घर लेने की बात पर वह बड़ी मुश्किल से राजी हुए. मुझे झूठी धमकी देनी पड़ी कि मेरे मां-बाप को मेरी जरूरत है, इसलिए मैं बच्चों को लेकर इधर शिफ्ट हो जाऊंगी, तब कहीं जाकर माने. इधर मां-पापा भी देहरादून जाना नहीं चाहते थे, दरअसल मजबूर होने के बावजूद वे मुझ पर बोझ नहीं बनना चाहते थे. मेरे ससुराल वाले क्या कहेंगे, दामाद जी क्या सोचेंगे, समधी और दूसरे रिश्तेदार क्या राय बनाएंगे, फिर तुम अपना घर देखोगी या हमें देखोगी, तमाम सवालों की झड़ी लगा दी थी दोनों ने. मगर मैंने तय कर लिया था कि इस बार उन्हें यहां अकेला छोड़ कर नहीं जाऊंगी. फिर चाहे पति खफा हों या सास ससुर. अब मैं इस तन्हाई में उनको मरने के लिए नहीं छोड़ सकती थी.

घर का सौदा जल्दी ही तय हो गया. पुराने समय का घर था. काफी बड़ा था और चारों तरफ काफी खाली जमीन भी थी, इसलिए तुरंत एक बिल्डर से डील हो गयी. मैंने सामान पैक करना शुरू किया तो मां फिर बोली, ‘बेटा फिर सोच ले.’

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मैंने दृढ़ता से कहा, ‘सोच लिया, अब सौ बार नहीं सोचना है… ’ मैंने देखा उनके चेहरे पर सुकून और शांति थी, आंखें बंद थीं और होंठो पर महीन सी मुस्कुराहट थी, जो इतने वक्त में मुझे पहली बार नजर आयी थी. बुढ़ापे में बच्चों का साथ कितना जरूरी है यह बात मैं उस पल महसूस कर रही थी.

बीमारी से बचना है तो पिएं पानी

आप सभी इस बात से वाकिफ है कि पानी अनमोल है क्योंकि हमारी जीवन शैली पानी पर ही निर्भर करती है. एक व्यस्क पुरुष के शरीर में पानी उसके शरीर के कुल भार का लगभग 65 प्रतिशत और एक व्यस्क स्त्री शरीर में उसके शरीर के कुल भार का लगभग 52 प्रतिशत तक होता है. पानी से हमारे शरीर की अंदरूनी सफाई होती है व ज्यादा पानी पीने से शरीर को नुकसान पहुंचने वाले अनुपयोगी पदार्थ मूत्र व पसीने के जरिये बाहर निकल जाते हैं.

हमारी हड्डियों मे 22 % ,त्वचा में २० %मस्तिष्क में ७५.६ %और खून मे ८३% पानी की मात्रा होती है. लेकिन हम लोग पानी पीने में कई तरह से गलतियां करते हैं. जो कि हमारे स्वस्थ के लिये हानिकारक सिद्ध होती हैं. तो चलिए आपको बताते हैं, आपको कब पानी पीना चाहिए और कब नहीं.

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कब पिएं और कब न पिएं पानी

*कई लोग घंटो शौचालय मे बैठे रहते है. मलत्याग के समय ज्यादा जोर लगाना पड़ता है या दर्द होता है तो इस समस्या से छुटकारा पाने के लिये रोज सुबह एक बड़ा गिलास गुनगुना पानी पिये. पानी शरीर की अतिरिक्त चर्बी को घटाता है और शरीर में एसिड की मात्रा को कम करता है. व आपके चेहरे को चमक भी देता है .

*गर्मियों मे ज्यादा ठंडा पानी से हमारे शरीर के लिये काफी नुकसानदेह होता है. शरीर के तापमान से ज्यादा ठंडा पानी नहीं पीना चाहिये. इससे आपके शरीर मे कमजोरी आती है व साथ ही हार्ट अटैक, किडनी फेल आदि का खतरा बढ़ जाता है.

*भोजन करते समय पानी न पिये. या तो आधा घंटा पहले पानी का सेवन करें या आधा घंटा बाद पानी पीकर खाना अच्छे से पचता है और खाने के द्वारा लिया गया एसिड आदि भी डाइल्यूट हो जाता है.

*जब बीमार पड़ें तो खूब पानी पिएं.अगर पानी अच्छा नहीं लगे , तो अलग-अलग तरह के फ्लुइड्स जैसे जूस, छाछ, शर्बत, नारियल पानी आदि पियें. दिनभर में कम से कम 8 ग्लास पानी जरूर पिये .

*नहाने से आधा घंटा पहले पानी पियें जिससे की ब्लड प्रेशर की समस्या नहीं होगी .

*सोने से पहले पानी पिएं. ऐसा करने से हार्ट अटैक का खतरा कम होता है.

*वर्कआउट से पहले भरपूर पानी पिये. वर्कआइट के दौरान शरीर से पसीना ज्यादा निकलता है अगर इस दौरान शरीर में पानी की कमी हो जाती है तो आप डिहाइड्रेशन का शिकार हो सकते हैं. इसलिए वर्कआउट से पहले खूब पानी पिएं.

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*तांबे के बर्तन में रात को पानी भर कर रख दीजिए और सुबह होने पर इसे पिएं. 90 दिन लगातार ऐसा करने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. साथ ही आगर आप मुंहासों, दानों या त्वचा संबंधी किसी भी रोग से निजात दिलाता है.

*एक बार मे ज्यादा पानी न पिएं व पानी गिलास मे कर के पिएं न की सीधे बोतल से. इससे आपके होठ भी नहीं फटेंगे व स्वास्थ भी ठीक रहेगा.

रिश्ते में न रखें ये उम्मीदें वरना टूट सकता है आपका रिश्ता

हर कोई अपने साथी से कुछ उम्मीद रखता है. जहां उम्मीदें आपको जोड़ती है वही रिश्तों को तोड़ने का एक बड़ा कारण भी होती हैं. जरुरत से अधिक उम्मीदें करने से आप निराशा की भावना महसूस करने लगते हैं और यह आपके रिश्तों में खटास पैदा करता है. एक हेल्दी रिलेशन बनाए रखने के लिए जरुरी है कि आप अपने साथी से ये उम्मीदें ना ही रखें.

कि वो खुद से आपको पढ़ ले

अगर आप अपने साथी से उम्मीद करते हैं कि वो आपको समझें और जानें तो यह सही है लेकिन अगर आप चाहते हैं कि आपका साथी आपका दिमाग पढ़ लें और आपकी हर बात को बिना बोले समझ जाए तो ऐसा नहीं हो सकता है. आपकी क्या जरुरते हैं ये समझना आसान है लेकिन आप किस वक्त क्या चाहते हैं ये पूरी तरह से समझना मुश्किल है. वो आपकी इच्छा के लिए अंदाजा जरुर लगा सकते हैं लेकिन हर वक्त उनका अंदाजा सही रहें ऐसा नहीं हो सकता.

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कि वो आपको हमेशा खुश रखेगा

बहुत से लोग किसी भी रिश्ते को जोड़ने से पहले सोचते हैं कि उनका साथी उन्हें हमेशा खुश रखेगा. बल्कि कुछ लोगों का मानना है कि वो तब तक खुश नहीं रह सकते हैं जब तक कि वो किसी रिलेशन में नहीं हैं. वास्तव में ऐसा नहीं है, आप किसी दूसरे इंसान से अपने लिए खुशी नहीं ढ़ूढ़ सकती हैं. खुशी वो चीज है जो आपको अपने अंदर मिलती है या खुद से मिलती है.

कि आपके साथी की धारणा आपकी तरह हो

इस उम्मीद के कारण सम्बंधों में अधिकतर झगड़े होते हैं. किसी भी चीज को लेकर आपकी धारणाएं आपके साथी से अलग हो सकती हैं. धारणाएं कई तरह की चीजों से बनती हैं. आप किसी भी विषय को लेकर धारणाएं अपने अनुभवों और साक्ष्यों के आधार पर बनाते हैं. जाहिर है कि आपके और आपके साथी के अनुभव आपसे अलग होंगे. तो आप दोनों की धारणाएं भी अलग होंगी.

आपने ये कहावत तो सुनी ही होगी कि अगर आप चाहते हैं कि हर काम सही तरीके से हो तो वो काम खुद करें. जो चीजें आपको खुश रखती हैं और आप चाहते हैं कि वो बिल्कुल उचित तरीके से हो तो बेहतर है कि आप खुद ही उस काम को कर लें. अपने पार्टनर से ये उम्मीद करना कि वो सभी काम बिल्कुल सही करें और उससे कोई गलती ना हो,  खुद एक गलती करने जैसा है. अगर आप ये उम्मीद कर रहे है और आपका साथी उस उम्मीद पर खरा नहीं उतरता है तो आपको निराशा होगी और आप सोचेंगे कि आपका साथी परफेक्ट नहीं है.

क्या उम्मीदें करनी चाहिएं

एक रिश्ते में खुश रहने के लिए बहुत ज्यादा उम्मीदें लगाना गलत है लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि आप अपने पार्टनर से उम्मीद ही ना रखें. आप अपने साथी से वो उम्मीदें करें जो वास्तव में करनी चाहिए. कुछ उम्मीदें है जो आपको अपने पार्टनर से करनी चाहिए.

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  • आपका सम्मान करे.
  • आपसे प्यार करे.
  • आपके साथ ईमानदार हो.
  • सब्र और धैर्य की भावना हो.

‘चंद्रयान 2’: पाकिस्तान ने चंद्रयान को लेकर भारत पर कसा तंज

भले ही चंद्रयान-2 पूरी तरह सफल न रहा लेकिन इसरो के वैज्ञानिकों ने पूरी कोशिश की.मिशन चंद्रयान 2 का कुछ ही दूरी पर था विक्रम लैंडर जब इसरो के वैज्ञानिकों से उसका संपर्क टूट गया. इसरो के अध्यक्ष और सभी वैज्ञानिक बहुत हताश औऱ निराश हैं लेकिन इसरो पूरा भारत तुम्हारे साथ खड़ा है और आज नहीं तो कल कामयाबी जरूर मिलेगी.इसरो के अध्यक्ष के.सिवन ने जब घोषण कर बताया कि संपर्क टूट गया है तो वो काफी दुखी थें.उनके आंख में आंसू आ गया हालांकि प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें अपने गले लगाते हुए सांत्वना भी दिया.

पूरा  देश काफी उत्साहित था. 978 करोड़ रुपये में मिशन चंद्रयान 2 चांद को छूने ही वाला था लेकिन तभी एक दुखद खबर आई कि विक्रम लैंडर योजना के अनुरुप ही चल रहा था लेकिन 2.1 किमी पहले ही उसका भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन से संपर्क टूट गया. जब इसरो ने इसकी आधिकारिक घोषणा की तो सभी देशवासियों की उम्मीदें टूट गई और सारे वैज्ञानिक भी परेशान हो गए प्रधानमंत्री ने वहां से जाने से पहले सबको शुभकामनाएं दी लेकिन इसरो के अध्यक्ष जब मोदी के गले लगे तो उनके आंखों में आंसू थे वो भावुक पल देखकर किसी को भी रोना आ जाएगा.

इस वक्त पूरा देश इसरो के वैज्ञानिकों के साथ खड़ा है और उन्हें पूरी उम्मीद है कि एक दिन हम जरूर सफल होंगे.भारत की कोशिश बेकार नहीं जाएगी.इसरो पर आज पूरे देश को गर्व है. हालांकि पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आता है उसने भारत को ट्रोल करना शुरु कर दिया. पाकिस्तान के रेल मंत्री शेख रशीद ये कहते हैं कि उनके पास पाव भर के और आधे पाव के भी बम हैं. अब इस मंत्री की बात से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि ये मंत्री कैसा है कुछ और कहने की जरूरत नहीं हैं और फिर भी पाक भारत को धमकी देता है और चंद्रयान के विफल होने पर भारत पर कटाक्ष करता है.पाकिस्तान के विज्ञान और तकनीकि मंत्री फवाद ने ट्वीट कर लिखा है कि “जो काम नहीं आता, पंगा नहीं लेते ना..डियर इंडिया” इस मंत्री के बड़बोले बोल से अबतक आप ये तो समझ ही गए होंगे ही पाकिस्तान हमेशा पाकिस्तान ही रहेगा. क्योंकि उसे दूसरे मुल्कों को ट्रोल करने के सिवा कुछ भी नहीं आता है अब भाई  पाक मंत्री फवाद की बातों से तो यही लगता है.लेकिन पाकिस्तान तुम देखना भारत इस कामयाबी को जरूर हांसिल करेगा.

अरे भारत तो वो देश है जिसने पाकिस्तान से बहुत बाद में 1969 में इंडियन स्पेस रिसर्च और्गेनाइजेशन (इसरो) बनाया और छह साल के अंदर ही 1975 में अपना पहला सेटेलाइट आर्यभट्ट अंतरिक्ष में भेजा था. हिंदुस्तान ने हमेशा वैज्ञानिकों का सम्मान किया है और हिंदुस्तान को पूरा भरोसा है कि भले ही इस बार संपर्क टूटा है लेकिन उम्मीद अभी बाकी है और एक दिन ये सफलता भारत को जरूर मिलेगी. हमें यकीन है इसरो ये कामयाबी जरूर हांसिल करेगा और ये साबित करेगा कि भारत किसी भी देश से कम नहीं है. भारत के अंदर हर काम को करने का हौसला है और भारत कभी भी पीछे नहीं हटेगा.

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