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कापीराइट एक्ट का उल्लंघन करने का हक किसी को नहीं है: प्रवीण मोरछले

बौलीवुड में दूसरे लेखक की कहानी को हड़प कर फिल्म बना लेना,दूसरी सफल फिल्मों की कहानी चुराकर फिल्म बनाना आम बात हो गयी है.अब तक कई फिल्मकारों पर आरोप लगते हैं.कुछ दिन पहले प्रदर्शित फिल्म‘‘साहो’’पर एक फ्रेंच फिल्म निर्देशक ने आरोप लगाया. पर इन मोटी चमड़ी वाले भारतीय फिल्मकारों पर कोई असर नहीं होता. अब फिल्म ‘‘बाला’’ के निर्माता पर भी चोरी का इल्जाम लगा है. निर्माता दिनेश वीजन व ‘जियो स्टूडियो’ की फिल्म ‘‘बाला’’ में आयुष्मान खुराना, भूमि पेडणेकर, यामी गौतम, जावेद जाफरी जैसे कलाकार हैं. मजेदार बात यह है कि राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्मकार प्रवीण मोरछले ने जब फिल्म ‘‘बाला’’ के निर्माताओं को अपनी ‘‘मिस्टर योगी’’ कहानी को चुराने का आरोप लगाते हुए कानूनी नोटिस भेजी, तो फिल्म ‘‘बाला’’के निर्माता ने इस नोटिस का जवाब देने की बजाय आनन फानन में अपनी फिल्म की शूटिंग कर डाली. और अब यह फिल्म 15 नवंबर को सिनेमाघरों में पहुंचने वाली है.

‘बाला’के निर्माता के इस रवैये को देखते हुए अंततः प्रवीण मोरछले ने फिल्म ‘बाला’ के निर्माता व अभिनेता आयुष्मान खुराना के खिलाफ ‘‘कौपीराइट एक्ट’’ के उल्ल्ंघन का आरोप लगाते हुए मुंबई हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. हमने इसी मसले पर प्रवीण मोरछले से ‘‘एक्सक्लूसिव’’बातचीत की.

आपको फिल्म ‘‘बाला’’ के निर्माता के खिलाफ अदालत जाने का कदम क्यो डठाना पड़ा?

मैं इस साल की शुरूआत से ही अपनी कश्मीर पर आधारित नई फिल्म ‘‘विडो आफ सायलेंस’’को लेकर अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में घूम रहा था. मई 2019 में जब मैं मुंबई आया, तो मैंने एक दिन अखबार में पढ़ा कि ‘‘प्री मैच्योर बाल्डिंग मतलब कम उम्र में बाल गिरने की कहानी’’ पर एक फिल्म ‘बाला’ बना रही है. जिसमें व्यंग भी है. तो मुझे एकदम से झटका लगा. क्योंकि इस विषय पर मैंने 2005 में ‘‘मिस्टर योगी’’नामक कहानी लिखकर ‘राइटर्स एसोसिएशन’ में रजिस्टर्ड कराया था. उसके बाद इस पर फिल्म बनाने के लिए मैंने बौलीवुड में कई बार कई लोगों को कहानी सुनायी थी. मेरी इस कहानी की जानकारी मेरे दोस्तों को भी है. मेरे दोस्त जानते हैं कि एक न एक दिन मैं इस फिल्म को बनाऊंगा. जो कि हर किसी को पसंद भी आएगी. खबर पढ़ने के बाद मैंने खोजबीन की.

औनलाइन जो कुछ पढ़ा, उससे यह पक्का हो गया कि यह कहानी लगभग लगभग वही है, जो मैंने 2005 में लिखी थी.तब मैंने कानूनी सलाहकार से बातकर फिल्म ‘‘बाला’’ के निर्माता को कानूनी नोटिस भेजी.उनेहोंने कहा कि हमें कुछ समय दीजिए. उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया. तो एक माह बाद रिमाइंडर भेजा कि आप जल्दी जवाब दें, यह कापीराइट का मसला है. जिस तरह से हमारी फिल्म इंडस्ट्री में होता, कापीराइट के मसले को बहुत हल्के तरीके से लिया जाता है.

आपकी कहानी का शीर्षक क्या था, जिस पर फिल्म‘‘बाला’’बन रही है?

मैंने 2005 में यह कहानी लिखनी शुरू की थी. मैंने अपनी कहानी का रजिस्ट्रेशन ‘‘मिस्टर योगी’’ के नाम से कराया था. यह कहानी इक्कीस बाइस साल के युवक की है. उसके सिर के बाल गिर रहे हैं और उसकी पूरी जिंदगी उसके बाल गिरने और बचाने के पीछे घूमती है. वह किस तरह से बाल बचाने का प्रयास करता है. क्या-क्या उपाय करता है, किन परिस्थितियों से उबरता है. किस तरह की सिच्युएशन में फंस जाता है. यही सब हमारी कहानी में है. जो कि बहुत ही सटायर रीयल सोशल कहानी थी. कौमेडी फिल्म थी. जब मैंने लोगों को यह कहानी सुनायी थी,तो लोगों ने मुझसे कहा-‘अरे यार, ऐसी फिल्म तो नहीं चलती.’ तो मुझे लगा था कि मैंने समय से बहुत पहले ही इस फिल्म को लिख दिया था. उस समय लोग इस बारे में सोचते भी नहीं थे. तब तो मल्टीप्लैक्स भी नहीं थे.

मैं अपने लेखन में समय से पहले ही नयापन ले आया था. मेरी ज्यादातर कहानियां बहुत अलग होती है. मेरी दूसरी दो कहानियों पर भी हिंदुस्तान में फिल्में बन चुकी हैं. इनमें बड़े स्टार कलाकार थे. उस वक्त मैं चुप रहा. अब तीसरी बार हुआ है. इस बार पीछे नही हटूंगा.

उनका जिक्र करना चाहेंगे?

जी नहीं. क्योंकि जो हो गया,वह हो गया. अब उन पर बात करना कोई मतलब नहीं है. यदि उसी समय कुछ कदम उठाया होता,तो आज नाम ले सकता था.जबकि वह फिल्में ‘100 करोड़ क्लब’ का हिस्स बनी.

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फिल्म‘‘बाला’’के निर्माता ने आपके द्वारा भेजी गयी कानूनी नोटिस का जवाब दिया नहीं?

फिल्म‘बाला’के निर्माताओं के लिए लेखक और उसके आइडिया की लगभग कोई वैल्यू नहीं है. हमने उन्हें दूसरी बार नोटिस भेजी, तब उन्होंने जवाब दिया कि उनकी फिल्म मौलिक है. तब मुझे लगा अब मुझे ‘कापीराइट एक्ट’ के इस मसले को अदालत में ले जाना चाहिए. क्योंकि यह बहुत जरूरी है कि एक लेखक की मौलिक सोच, मौलिक आइडिया या पटकथा या कहानी को निश्चित रूप से एक मुकाम मिलना चाहिए. बौलीवुड में तो हमेशा कापीराइट को बहुत हल्के ढंग से लिया जाता है. यह एक बहुत बड़ा मिसकंसेप्शन चलाया जाता रहा है कि,‘जब आपने मुझे कहानी नही सुनायी, तो मैंने आपकी कहानी कैसे चुरायी.’ मान लीजिए आपने मुझे कहानी नही सुनाई, तो मैं कैसे आपकी कहानी चुरा सकता हूं. क्योंकि मान लीजिए दो इंसानों को एक ही आइडिया आ जाए, तो फिर पहले किसका हक माना जाएगा. तो फिर जिसकी आइडिया पहले आयी,उसको जाना चाहिए. जी हां या तो फिर दोनों में कितनी समानता है, इसे तय करना पड़ेगा.लेकिन चोरी जैसा इल्जाम तो तब होता,जब मैं सीधे कहूं कि मैंने आपको कहानी सुनायी और आपने मुझे बिना बताए उसे छाप दिया. मेरा कहना है कि यह कापीराइट का उल्लंघन ही माना जाएगा, यदि मैंने अपनी कहानी, अपनी आइडिया पहले लिखा और उसे लेखक संघ में रजिस्टर्ड किया है. दूसरी बात मैंने यह कहानी बौलीवुड से जुड़े कम से कम सौ लोगों को सुनाई है. तो मुझे लगा कि बौलीवुड में कहीं ना कहीं कोई ना कोई आदमी एक दूसरे से जुड़ा ही रहता है. मैंने किसी को कहानी सुनाई,उसने आपको सुना दी हो. फिर आपने सोचा कि इस पर काम किया जाए. मुझे तो यह सब मालूम नहीं है. इसलिए अदालत को इस मसले पर निर्णय लेने देते हैं. मुझे अदालत पर पूरा भरोसा है. अदालत का जो भी निर्णय आएगा, वह लेखक व कौपीराइट कानून दोनों के लिए बेहतर होगा. उनके लिए बहुत ही फायदेमंद होगा.
यह कहना कि हमसे मिले नहीं, आपने हमको कहानी नहीं सुनाई थी, इसलिए हम गलत नही है. कहना ही गलत है. गलत तरीके से लोग बातें फैला रहे हैं. कापीराइट एक्ट का मतलब यह नहीं है. कापीराइट एक्ट का मतलब है कि माने लीजिए मैंने लिखा. हमारे पास हजार शब्द है, मैंने इन हजार शब्द को एक अलग ढंग से व्यवस्थित कर दूं, अरेंज कर दूं, तो एक कविता बन जाएगी. वह कविता मेरी रचना होगी. शब्द मेरे नहीं है. उसी तरह से जो आप का स्क्रीनप्ले होगा, जो आपकी कहानी होगी, वह मेरा कापीराइट है. तो देखते हैं कि अब कोर्ट क्या बोलता है.

आप इस मामले को लेकर अदालत कब पहुंचे?

मैंने उनको नोटिस देने के बाद दो माह तक उनके जवाब का इंतजार किया. 28 अगस्त को हम लोगों ने हाई कोर्ट में अप्रोच किया और हमने अपने वकील के माध्यम से केस दायर कर दिया.

अभी इसमें कोई प्रगति हुई है या नहीं हुई है?

नहीं…अभी तो अदालत में मामला गए हुए 10 दिन ही हुए हैं.अदालत की एक कार्यशैली है. वह सामने वालों को नोटिस भेजेगी. उनका जो भी कानूनी प्रोसेस है,वह होगा.

बौलीवुड से जुड़े लोगों का संघ राइटर्स एसोसिएशन है. वह इस मामले में ढीली क्यों रहती है. कभी भी लेखक का साथ दे नहीं पाती है?

अगर आप ध्यान से देखेंगे, तो राइटर एसोसिएशन की अपनी सीमाएं हैं. उनका काम है, जिस दिन हम अपनी कहानी या पटकथा लेकर उनके पास रजिस्ट्रड कराने गए, तो वह उस पर एक स्टैंप लगा तारीख लिखकर हमें वापस दे देते हैं. इसके बाद उनका काम खत्म. मगर ऐसा सिस्टम राइटर्स एसोसिएशन मे होना चाहिए, जिससे इस तरह के कौपीराइट के मसले अदालत के बाहर भी सुलझाए जा सकें. मान लीजिए मैंने कहा कि यह मेरी कहानी है. एक अन्य लेखक ने दावा किया कि यह उनकी कहानी है. ऐसे में राइटर्स एसोसिएशन एक पैनल बनाए. यह पैनल दोनों की कहानी को पढ़़कर आदेश जारी करे. यदि पूरे पांच दृश्य में से एक भी दृश्य मिलता है, तो आप कौपीराइट के निशाने पर आ जाते हैं. यदि दोनो में कोई समानता नही है तो कोई समस्या ही नही है. अदालत तक जाने की नौबत ही न आए.

अदालत का रूख करने से पहले आपने राइटर्स एसोसिएशन में बात की थी?

नहीं…मुझे लगा कि पहले भी ऐसे कई केस हुए हैं,जहां राइटर्स एसोसिएशन ने अपना पल्ला झाड़ते हुए कहा कि,‘हम क्या कर सकते है. अगर आपको किसी तरह का कोई औब्जेक्शन है,तो यह कानूनी मसला बनता है.’ मुझे ऐसा लगता है कि राइटर एसोसिएशन भी इस मुद्दे पर ज्यादा रूचि नहीं लेना चाहता.

अक्सर होता यह है कि लोग फिल्म की पूरी शूटिंग करते हैं. फिर अदालत में कह देते हैं कि हमारी फिल्म की शूटिंग पूरी हो चुकी है. उस अदालत के भी हाथ बंधे होते हैं. तक कुछ दंडस्वरुप रकम के साथ मामला रफा दफा हो जाता है.

जी हां! ऐसा होता है,मगर यह गलत तरीका है.

तो इस मामले में आप अदालत के सामने किस तरह की मांग रखेंगें ?

जब इनकी शूटिंग शुरू होने वाली थी, तभी हमने इन्हें नोटिस दी थी. मैंने निवेदन किया था कि यह कहानी आपकी नहीं मेरी है, इसलिए शूटिंग न करें. और आगे किसी भी तरह की गतिविधि इस फिल्म को लेकर न करें. मैंने जिस दिन इन्हें कानूनी नोटिस भेजी, उसी दिन मेरा केस रजिस्टर्ड हो गया. मैंने साफ साफ कहा था कि आप आगे न बढ़े. इनको उसी वक्त शूटिंग करने की बजाय हमसे इस मसले को निपटाना चाहिए था. पर इन्होंने हमारी कानूनी नोटिस को महत्व ही नही दिया. तो यह उनकी गलती है. खैर,हमें तो यह देखना है कि अब हमसे अदालत क्या कहती है. पर उनका अदालत में जाकर यह कहना कि उन्होंने फिल्म की शूटिंग कर ली है या उनकी फिल्म सिनेमाघरों में पहुंचने वाली है, हमने कई करोड़ रूपए इस पर खर्च कर दिए हैं. मायने नही रखना चाहिए.

वास्तव में हमारे देश में ‘कौपीराइट एक्ट’को बहुत आसानी से लिया जाता है. विदेशों में तो इसका बहुत कठोरता से पालन होता है. विदेश में आप एक करोड़ लगाएं या सौ करोड़ या हजार करोड़ रूपए लगाएं.

यदि आपने अपनी फिल्म किसी लेखक की आइडिया से प्रेरित होकर बनाया है, यह उससे मिलती जुलती आइडिया पर उसको बनाया है, तो कापीराइट एक्ट के तहत आप दोषी हैं. वहां यह नहीं देखा कि गलती करने वाले ने कितना खर्च/इंवेस्ट किया है.क्योंकि जिसने लिखा था, या जिसकी स्क्रिप्ट है और जिसका कौपीराइट है,वह भी कल को इस पर हजार करोड़ की फिल्म बना सकता था. उसके लिए ऐसा क्यों माना जाए कि वह नहीं बना सकता है या नहीं बना पाएगा.

आपने किसी अन्य के सपने को तोड़ने की कोशिश की है. तो अदालत इस बात को भी देखेगी. मुझे लगता है कि हिंदुस्तान की कोर्ट दोनों पक्षों का हित रखा जाएगा . लेकिन अगर ऐसे तत्व मिलते हैं जिनसे कापीराइट एक्ट का उल्लंघन किया हुआ है,तो कठोर निर्णय सुनाया जाएगा.

हमारे देश में कौपीराइट के मुकदमों को सिर्फ पब्लिसिटी स्टंट मानकर छोड़ दिया जाता है. कुछ समय बाद लोग भूल जाते हैं.

इसी परंपरा को तोड़ना है.बौलीवुड के फिल्म निर्माता हर बार एक ही बात कहते हैं कि अब तो हमने करोड़ों रूपए खर्च कर फिल्म बना दी. तो अब हम क्या करें. हमारा नुकसान हो जाएगा? इस बहाने पर रोक लगाना जरुरी है.

दूसरी बात यह तो हमसे कभी मिलने नहीं आए,इसलिए इन्होंने हमे कभी अपनी कहानी सुनाई नहीं. तो फिर हमने इनका आइडिया कैसे लिया? इस तरह की बहाने बाजी पर भी पूर्ण विराम लगवाना जरुरी है. आप मुझे बताएं, आज अगर मैं विलियम शेक्सपियर की किताब पर फिल्म बना डालूं और फिर कहूं कि मैं तो विलियम शेक्सपिअर से कभी मिला ही नहीं. मैं तो अपने जीवन में लंदन ही नहीं देखा. तो उसका गुनाह माफ. क्या संसार के किसी भी लेखक के उपन्यास पर फिल्म बनाकर इस तरह की बहाने बाजी करने का आपका जन्मसिद्ध अधिकर है.

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मान लीजिए, हौलीवुड की किसी फिल्म को देखकर कापी कर दो और फिर दावा करो कि आप अमरीका नही गए, आप कभी इस फिल्म के कलाकार या निर्देशक से नही मिले.

इसी तरह से जो भ्रांति फैला दी गई है कि कौपीराइट एक्ट का उल्लंघन तभी होता है,जब प सामने वाले से मिल चुके होते हैं,गलत है. पीराइट एक्ट का मतलब ही होता है कि मैंने लिखा है,आपने कहां से सुना है,उससे मतलब नहीं है.इससे फर्क नहीं पड़ता है.

हमारे देश में कहानियों का भंडार है फिर भी सिर्फ पैसे के लिए आप इतना सब कुछ करते जाएं, किसी भी नियम कानून को ना माने, यह तो बहुत गलत है.

इसीलिए शायद आज इंडस्ट्री की यह हालत है. बामुश्किल में 12 फिल्में सफल हो पा रही हैं. अगर सिनेमा सिनेमाघर थिएटर देखने नहीं जा रहे हैं, इसके लिए फिल्मकार ही जिम्मेदार हैं. यदि आप किसी एक ही चीज को साइकल करते रहेंगे. ल्म की नकल करते रहेंगे,कुछ नया नही देंगे,आप अपना खुद का कुछ नया नहीं सोचेंगे,तो निश्चित रूप से आप अपनी इंडस्ट्री को ही नुकसान पहुंचा रहे हैं.

लेकिन बौलीवुड के फिल्मकारों की ऐसी प्रवृत्ति क्यों हो गई है? कुछ दिन पहले फ्रेंच निर्देशक ने भी फिल्म ‘‘साहो’’पर उनकी फिल्म की कहानी ज्यों की त्यों चुराने का आरोप लगाया?

यह शर्मनाक हरकत है. वास्तव में सभी असुरक्षा का शिकार है. यदि एक कहानी या फिल्म को थोड़ी सी सफलता मिल गयी,तो दूसरे लोग उसकी नकल करने की चूहा दौड़ में शामिल हो जाते हैं. यह सोच गलत है. यदि ऐसा होता, तो हम कभी नई कहानी पर फिल्म न बनाते. पर इसी गलत सोच के चलते हम नया सोचने, नई कहानी पर फिल्म बनाने का साहस नही दिखा पा रहे हैं. और अंत में हम लोग सारा दोष दर्शक को देते हैं.

जब स्टूडियो सिस्टम और मल्टीप्लेक्स शुरू हुए थे,तो लोगों को लगा था कि अब कुछ अच्छा काम होगा.लेकिन उसके बाद से ही चोरियां ज्यादा हो रही है?

क्योंकि अब सिनेमा सिर्फ 3 दिन, शुक्रवार, शनीवार व रवीवार के लिए बनता है. फिल्मकार सोचता है कि मेरी फिल्म ने तीन दिन कमाई कर ली, तो मेरा बेड़ा पार. जबकि मेरी राय में सिनेमा ऐसा बनना चाहिए, जो कि सदियों तक जीवित रहे. यदि हम पीछे मुड़कर देखेंगे,तो 50 व 60 व 70 के दशक की फिल्में, हम आज भी देखते हैं. हम उन फिल्मों पर बात करते हैं. क्योंकि वह कालजयी फिल्में हैं. अगर आपका सिनेमा 10 साल सरवाइव नहीं करता, तो वह सिनेमा है ही नहीं. पर यहां छह माह बाद ही फिल्म का नाम याद नहीं रहता. इसलिए इसे सिनेमा नही कहा जाना चाहिए.

फिल्म‘‘बाला’’के निर्माता तो नवंबर माह में फिल्म को प्रदर्शित करने की तैयारी कर रहे हैं?

हम इस पर अदालत से रोक लगाने के लिए निवेदन करेंगे.

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’: कस्टडी केस जीतने के लिए कार्तिक, नायरा को ब्लेम करेगा ?

स्टार प्लस पर प्रसारित होने वाला मशहूर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में लगातार महाट्विस्ट चल रहा है. इस सीरियल की कहानी एक नयी मोड़ ले रही है. कार्तिक और नायरा के बीच कायरव के कस्टडी केस को लेकर महासंग्राम चल रहा है. इधर कायरव नायरा से पूछता है कि वो घर कब जाएगा?

तो उधर वेदिका, कार्तिक से सौरी बोलती है और चाय पीने को कहती है लेकिन वो मना कर देता है. वो कार्तिक से सोने को भी कहती है लेकिन उस बिस्तर पर वेदिका को बैठा देख कार्तिक वहां से चला जाता है. वेदिका सोचती है कि काश ऐसा होता कि नायरा ये केस जीत जाती और वो कायरव को लेकर यहां से दूर कहीं चली जाती.

कार्तिक अपने पापा और चाचा के साथ वकील से मिलने जाता है. वकील दामिनी मिश्रा कार्तिक से वादा करती है कि वो ये केस जिता देगी लेकिन उसकी शर्त ये है कि उससे कोई कुछ सवाल नहीं पूछेगा. और वो ये भी कहती है कि आप बस फैसले का इंतजार कीजिए. प्रोसीजर क्या होगा इससे मतलब मत रखिए. उधर बाहर नक्ष दामिनी मिश्रा से मिलने के लिए इंतजार करता है, वहां दामिनी उसे देखकर कहती है कि आपने लेट कर दिया है, मैंने कार्तिक को हां कह दिया है.

ये शार्प शूटर रिवौल्वर दादी : सांड की आंख

नक्ष वापस लौटता है और दूसरा वकील हायर कर लेता है. वह नायरा को बताता है कि दामिनी मिश्रा, कार्तिक की तरफ से लड़ रही है. नायरा थोड़ा उदास होती है लेकिन नक्ष से कहती है कि इस केस को थोड़ा डिले करने की कोशिश करना. जिससे मुझे कार्तिक को समझाने का मौका मिल जाए. तभी कार्तिक का कौल आ जाता है वो नायरा से कहता है कि कल 11 बजे फैमिली कोर्ट में मिलो. नायरा उसे समझाने की कोशिश करती है लेकिन कार्तिक फोन काट देता है.

कार्तिक के पास दामिनी मिश्रा का वीडियो कौल आता है वो उनसे कहती है कि जो मैं कहूंगी वही कोर्ट में बोलना होगा, लेकिन कार्तिक मना कर देता है लेकिन वो कहती है कि अगर केस जीतना है तो ऐसा करना पड़ेगा. वो परेशान हो जाता है कि कोर्ट में वो क्या बोलेगा? वो किसी भी तरह नायरा को ब्लेम नहीं करना चाहता है.

तो दूसरी ओर वेदिका उसकी मदद के लिए आती है लेकिन कार्तिक उसे ये कहकर जाने को कह देता है कि वो उसे परेशान ना करे.

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अपकमिंग एपिसोड में देखना ये दिलचस्प होगा कि दामिनी मिश्रा के कहने पर कार्तिक नायरा को ब्लेम करता है या नहीं.

शार्प शूटर रिवौल्वर दादी : सांड की आंख

इस महिला को हल्के में मत लेना क्योंकि ये कोई साधारण महिला नहीं, ये हैं इंडिया की रिवौल्वर दादी. शूटिंग में उस्तादों की उस्ताद रिवौल्वर दादी का हर निशाना होता है बिल्कुल सटीक. शूटर रेंज पर अच्छे अच्छों की खाट खड़ी कर देती हैं ये शूटर दादी. इनका नाम है चंद्रो तोमर. उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के जोहड़ी गांव में रहने वाली 86 साल की ये महिला न सिर्फ खुद एक बेहतरीन शूटर हैं, बल्कि वे दूसरों को शूटिंग की ट्रेनिंग भी देती हैं. पच्चीस राष्ट्रीय शूटिंग चैम्पियनशिप के खिताब चंद्रो तोमर के नाम दर्ज हैं.
रिवौल्वर दादी की जिन्दगी पर बन रही फिल्म ‘सांड की आंख’ की चर्चा आजकल जोरों पर है. इस फिल्म में चंद्रो और उनकी शूटर ननद प्रकाशी तोमर की कहानी दिखायी जाएगी. फिल्म की शूटिंग जोरों पर है, जिसमें दोनों महिलाओं का किरदार निभा रही हैं तापसी पन्नू और भूमि पेडनेकर. फिल्म का निर्देशन लेखक से डायरेक्टर बनने जा रहे तुषार हीरानंदानी कर रहे हैं.

फिल्म में तापसी और भूमि के साथ-साथ विनीत सिंह, शाद रंधावा भी नजर आएंगे. ग्रामीण बैकड्रौप पर बन रही इस फिल्म के लिए राज शेखर ने लिरिक्स तैयार किये हैं. विशाल मिश्रा फिल्म के म्यूजिक डायरेक्टर होंगे. वहीं अनुराग कश्यप, निधि परमार और रिलायंस एंटरटेनमेंट फिल्म प्रोड्यूस कर रहे है. बागपत में 10 फरवरी 2019 को इस फ़िल्म का फिल्मांकन शुरू हुआ. फ़िल्म के कुछ हिस्सों को हस्तिनापुर और मवाना में फिल्माया जाएगा. इसे 25 अक्टूबर 2019 को रिलीज़ किया जाना तय है.

यह फिल्म उन महिलाओं की कहानी सामने ला रही हे, जिन्होंने भाग्य बदलने हर लड़ाई लड़ी!

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पोती के चक्कर में बन गईं निशानचीं

‘रिवौल्वर दादी’ के नाम से मशहूर चंद्रो तोमर निशानेबाजी से लेकर गाय का दूध दुहने और रसोई के काम निपटाने में माहिर हैं. उनके छह बच्चे और पंद्रह नाती-पोते हैं. दिलचस्प बात यह है कि चंद्रो तोमर ने निशानेबाजी शुरुआत 65 साल की उम्र में की. वह भी अचानक. दरअसल वह तो अपनी पोती शैफाली को लेकर भारतीय निशानेबाज डौक्टर राजपाल सिंह की शूटिंग रेंज पर गई थीं. दो दिन की ट्रेनिंग में उन्होंने देखा कि शैफाली को गन लोड करना ही नहीं आया. तीसरे दिन दादी ने उसके हाथ से गन लेकर लोड की और निशाना लगा दिया. निशाना सटीक लगा. निशाना सही देख कर राजपाल तो आश्चर्यचकित रह गए, बोले, ‘दादी तू भी शूटिंग शुरू कर दे.’ बच्चों ने भी उन्हें थोड़ा उकसाया, बोले कि दादी प्रेक्टिस शुरू कर, हम गांव में किसी से न कहेंगे और बस दादी शुरू हो गईं. निशानेबाजी का सिलसिल चल पड़ा. रात को जब परिवार में सब सो जाते थे तब दादी भूसा वाले कमरे में जाकर पानी से भरा जग घंटों हाथ में लेकर खड़ी रहती थीं. जिससे गन से निशाना लगाते समय हाथ सधा रहे. एक बार जो निशानेबाजी शुरू हुई तो फिर दादी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने 25 नेशनल शूटिंग चैंपियनशिप में हिस्सा लिया और सारे टूनार्मेंट जीते.

अखबार में छपी फोटो तो दादी की सूखी जान

जब चंद्रो तोमर राजपाल की एकेडमी में शूटिंग की कोचिंग ले रही थीं, तब किसी पत्रकार ने अपने समाचार पत्र में शूटिंग करता उनका फोटो प्रकाशित कर दिया. अगले दिन घर में अखबार आया तो अपना फोटो देखकर दादी डर गईं. चटपट अखबार फाड़ कर चूल्हें में झोंक दिया कि कहीं किसी को पता न चल जाए. दादी कहती हैं, ‘पढ़ना तो जानती नहीं थी, मगर अखबार में अपनी फोटो देखकर सारा मामला समझ में आ गया था, सो तुरंत फाड़ के फेंका कि कहीं पति देख न लें.’

लेकिन चंदन की खुश्बू जैसा रिवौल्वर दादी का यह गुण गांव भर में फैल गया. जल्दी ही दूर-दूर से लोग दादी से शूटिंग की ट्रेनिंग लेने आने लगे.

सैकड़ों को किया प्रशिक्षित

उत्तर प्रदेश में सैकड़ों युवाओं को शूटिंग में प्रशिक्षित करने के साथ-साथ चंद्रो तोमर ने अपने भतीजी सीमा सहित अपने परिवार के नौ सदस्यों को पढ़ाया-लिखाया और अपनी पोती शैफाली के निशानेबाजी के कौशल में सुधार किया. उनकी भतीजी सीमा 2010 की शाटगन चैंपियनशिप में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं और शैफाली ने हंगरी और जर्मनी में अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लिया.
चंद्रो की ट्रेनिंग के बाद कई महिला छात्रों ने सेना में नौकरियां भी प्राप्त की हैं.

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चंद्रो कहती हैं, ‘महिलाओं को भी पुरुषों के समान खेलों में बराबर की भागेदारी मिलनी चाहिए.’ एक पुरानी घटना को याद करते हुए वो कहती हैं कि एक बार उन्होंने एक पुलिस औफिसर को शूटिंग में हरा दिया था, तो तस्वीर खिंचवाते हुए उसने मेरे साथ खड़े होने से इंकार कर दिया और ऐसा उसने मेरे महिला होने की वजह से खेल में हारने के बाद किया. चंद्रो कहती हैं कि हाल ही में उनके पास राजस्थान से एक खिलाड़ी का कौल आया, जिसमें उसने शूटिंग सीखने का अनुरोध किया. मगर चंद्रो वहां जाकर उस बच्चे को नहीं सिखा सकती थी, इसलिए मना कर दिया. चंद्रो की इच्छा है कि वो बागपत में अपने गांव के निकट एक हौस्टल का निर्माण कर सकें, ताकि अलग-अलग राज्यों से खिलाड़ी सीखने के लिए वहां आ सकें.
10 मीटर की पिस्तौल शूटिंग में 30 से अधिक चैंपियनशिप जीतने के बाद, उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चंद्रो तोमर की उपलब्धियों का जश्न भी मनाया. ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ की मुहीम में आज चंद्रो तोमर एक अनूठा उदाहरण हैं, जिन्होंने लोगों को ये सोचने पर मजबूर किया है कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती और इंसान अगर ठान ले तो कुछ भी कर सकता है. आज चंद्रो नियमित रूप से टीवी शोज में दिखाई देती हैं. रूढ़िवादी परंपराओं को तोड़कर उड़ चलने सीख देने वाली यह रिवौल्वर दादी आज भारत की हर महिला के लिए गर्व और प्रेरणा का स्रोत हैं.

क्या लखनऊ की तर्ज पर होगी कश्मीर इन्वेस्टर समिट ? 

मशहूर शायर फिरदौस ने लिखा था कि, ‘गर फिरदौस बर रूए जमीं अस्त, हमी अस्तो हमी अस्तो हमी अस्तो’. इस का अर्थ है कि धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है, यहीं है, यहीं है. फारसी के शायर फिरदौस की इन लाइनों से कश्मीर के महत्त्व को समझा जा सकता है.

इस के साथ ही साथ अगर आधुनिक विकास के आंकड़ों को देखें तो भी जम्मूकश्मीर देश के तमाम विकसित राज्यों के कहीं समकक्ष तो कहीं बेहतर खड़ा नजर आता है. जिस से साफ  है कि अनुच्छेद 370 जम्मूकश्मीर के विकास में बाधक नहीं था. सिक्के का दूसरा पहलू यह भी बताता है कि जब पूरा देश मंदी के माहौल में है तो केवल जम्मूकश्मीर में ही विकास किया जाएगा, यह बात बेमानी सी लगती है.

कश्मीर में अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद जम्मूकश्मीर को 2 राज्यों जम्मूकश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया गया है. अनुच्छेद 370 खत्म होने का सब से बड़ा सब्जबाग यह दिखाया जा रहा है कि अब वहां सस्ती जमीन मिलेगी और वहां बड़े स्तर पर उद्योगपति निवेश करेंगे, जिस से 2025 तक कश्मीर स्वर्ग बन जाएगा. इस के लिए अब केंद्र सरकार कश्मीर में इन्वैस्टर मीट अक्तूबर में कराने जा रही थी, लेकिन फिलहाल टल गई है.

कश्मीर के राज्यपाल सतपाल मलिक ने घोषणा कर दी है कि कश्मीर में 50 हजार नौकरियां दी जाएंगी. कश्मीर के विकास को ले कर केंद्र सरकार जो छवि पेश कर रही है, उस के अनुसार, कश्मीर बेहद अविकसित प्रदेशों में शुमार था. अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद कश्मीर में विकास की गंगा बहेगी. कश्मीर की जमीन पर पूरे देश के उद्योगपतियों की नजर लगी है.

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कश्मीर को ले कर पूरे देश की एक ही धारणा है कि वहां केवल पर्यटन उद्योग और सेब की बागबानी पर ही पूरी आर्थिक व्यवस्था टिकी है. कश्मीर में तमाम दूसरे तरह के खनिज मिलते हैं जो पूरे देश में कहीं दूसरी जगह नहीं मिलते. इन में चूना, पत्थर, संगमरमर, जिप्सम, ग्रेनाइट, बौक्साइट, डोलोमाइट, कोयला और सीसा प्रमुख रूप से उल्लखनीय हैं. इस तरह के कारोबार को करने वालों के लिए कश्मीर बिजनैस की नजर से स्वर्ग लग रहा है.

कश्मीर में भूमि सुधार कानून लागू था, जिस की वजह से देश के दूसरे हिस्सों के मुकाबले यहां की भूमि पर सुधार का असर अधिक पड़ा. आंकड़े भी इस अंतर को बताते हैं. 2010-11 में जम्मूकश्मीर में ग्रामीण गरीबी का अनुपात 8.1 था, जबकि पूरे देश में यह 33.8 था. जम्मूकश्मीर में देश के कुल सेब उत्पादन का 77 फीसदी हिस्सा पैदा होता है.

गरीबी रेखा के आंकडे़ को देखें तो जहां पूरे देश की 21 फीसदी आबादी गरीबी रेखा के नीचे रहती है वहीं जम्मू कश्मीर में केवल 10 फीसदी आबादी ही गरीबीरेखा के नीचे रहती है. 2011 में जम्मूकश्मीर में साक्षरता दर 68.74 फीसदी थी, जो देश के किसी भी विकसित राज्य के मुकाबले कम नहीं है. जम्मूकश्मीर राज्य राष्ट्रीय विकास के सूचकांक के दूसरे कई बिंदुओं पर देश के विकसित राज्यों से पीछे नहीं है. स्वास्थ्य से जुड़े कई मामलों में तो वह देश के विकसित राज्यों से बेहतर हालत में है. 5 साल से कम आयु के बच्चों की औसत मृत्युदर पूरे देश में 36 प्रतिहजार है जबकि जम्मूकश्मीर में यह आंकड़ा 35 प्रतिहजार ही है. बिजली, स्वच्छ पेयजल, साफसफाई खाना बनाने में अच्छे ईंधन का प्रयोग जम्मूकश्मीर में देश के दूसरे राज्यों उत्तर प्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ से बेहतर है.

अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू कश्मीर को ले कर कई किस्म की भ्रांतियां पूरे देश में फैली हुई हैं. सब से बड़ी धारणा यह थी कि देश का सब से अधिक पैसा जम्मूकश्मीर को जा रहा है. दूसरे शब्दों में कहें तो पूरा देश मिल कर जम्मूकश्मीर का पालनपोषण कर रहा था. असल बात इस से अलग है. विशेष राज्य का दर्जा केवल जम्मूकश्मीर को ही नहीं मिला था. पिछले कुछ सालों में विशेष राज्य का दर्जा वाले दूसरे प्रदेशों, जैसे अरुणाचल और सिक्किम से कम सहायता जम्मूकश्मीर को मिलती थी. देश में भूमिहीनों की संख्या गांव में रहने वालों की एकतिहाई है, जबकि जम्मूकश्मीर में भूमिहीनों की संख्या केवल गांव की आबादी की 2 फीसदी ही है.

देश में ऐसा माहौल बन रहा है जैसे कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद विकास की गति बढ़ जाएगी. पूरे देश में मंदी का माहौल है. बेरोजगारी की दर 45 सालों में सब से अधिक है. मंदी के इस दौर में पूरे देश को छोड़ कर केवल जम्मूकश्मीर में विकास होगा, यह सही नहीं लगता. जब पूरे देश में उद्योग जगत संकट में है तो केवल जम्मूकश्मीर में वह लाभ देगा, यह समझ से परे है. ऐसे में जम्मूकश्मीर में होने वाली इन्वैस्टर समिट का क्या असर होगा, आसानी से समझा जा सकता है.

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इन्वेस्टर समिट का सब्जबाग

कश्मीर ऐसा पहला प्रदेश नहीं है जहां इन्वैस्टर समिट आयोजित किए जाने की बात की जा रही है. इस के पहले भी गुजरात, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में इन्वैस्टर समिट पूरे जोरशोर से हो चुकी हैं. उत्तर प्रदेश में पहली इन्वेस्टर समिट 2018 में हुई, जब उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की अगुआई में पहली बार बहुमत वाली सरकार बनी. इस में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उपस्थित थे. 2019 में दूसरी इन्वैस्टर समिट हुई, जिस में केंद्र के गृहमंत्री अमित शाह ने हिस्सा लिया.

2 साल में हुईं 2 इन्वैस्टर समिट के बाद भी उत्तर प्रदेश के धरातल पर विकास का कोई काम होता नहीं दिखा जिस का वादा इन्वैस्टर समिट में किया गया था. प्रदेश में बेरोजगारी, अपराध और गरीबी पहले की ही तरह कायम है. काम धंधों पर भी इन्वैस्टर समिट का प्रभाव नहीं दिख रहा है. उत्तर प्रदेश के कुटीर उद्योग वाले जिलों आगरा, वाराणसी, भदोही, कानपुर, अलीगढ़, फिरोजाबाद और मुरादाबाद के उद्योगधंधे बेहाल हैं. नोटबंदी और जीएसटी ने इन को और भी अधिक बेहाल कर दिया है. 2018 के इन्वैस्टर समिट के समय बहुजन समाज पार्टी की नेता और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने कहा था, ‘जनता की गाढ़ी कमाई का अरबों रुपया खर्च कर के इन्वैस्टर मीट हुई. यह इन्वैस्टर्स समिट राजनीतिक अखाड़ेबाजी के साथसाथ ‘शोबाजी’ मात्र बन कर रह जाएगी.’

बसपा प्रमुख मायावती ने कहा कि इन्वैस्टर्स समिट पर खर्च किए गए धन से गरीबों, मजदूरों तथा बेरोजगार युवाओं व बाकी जनता के कल्याण के अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य हो सकते थे. उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र तथा कई अन्य राज्यों के बाद अब उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार पर भी निवेशक सम्मेलन का बुखार चढ़ गया है. पूरी सरकार इसे ही सब से बड़ी जनसेवा और विकट जनसमस्याओं का हल मान कर व्यस्त रही और सरकारी धन को पानी की तरह बहाया गया. असल में इन्वैस्टर्स समिट भाजपा सरकार की घोर नाकामियों से ध्यान हटाने का जरिया भी बन गई है.

योगी सरकार के कार्यकाल के ढाई साल से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर पर विकास कहीं नहीं दिख रहा. ऐसे में यह सवाल बनता है कि जब उद्योगपति उत्तर प्रदेश में निवेश नहीं कर सके तो वे कश्मीर में क्या निवेश करेंगे? कश्मीर की इन्वैस्टर्स समिट भी उत्तर प्रदेश की तरह कहीं दिखावा ही बन कर न रह जाए. कश्मीर में होने जा रहे इन्वैस्टर्स समिट के औचित्य को समझने के लिए उत्तर प्रदेश इन्वैस्टर्स समिट के समय उद्योगपतियों और नेताओं के बयानों व वादों को फिर से याद करने की जरूरत है कि उस समय क्या क्या हुआ था?

इन्वैस्टर्स मीट और खर्च

उत्तर प्रदेश निवेशक सम्मेलन 2018 (इन्वैस्टर्स समिट) के लिए राजधानी के सौंदर्यीकरण पर 65 करोड़ रुपए से अधिक की राशि खर्च की गई. जिला प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सम्मेलन के लिए राजधानी के सौंदर्यीकरण पर 66.15 करोड़ रुपए खर्च हुए. इस में लखनऊ नगर निगम ने सब से अधिक 24.25 करोड़ रुपए खर्च किए. लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) ने लगभग 13.08 करोड़ रुपए खर्च किए. लोक निर्माण विभाग ने 12.58 करोड़ रुपए खर्च किए. राज्य में होने वाला यह अब तक का सब से बड़ा सम्मेलन था. इस के लिए 22 चार्टर्ड विमान, 12 से अधिक लक्जरी होटलों में 300 कमरों की व्यवस्था की गई थी. पूरे शहर में होर्डिंग व पोस्टर लगाए गए और रंगबिरंगी रोशनी से राजधानी को सजाया गया.

इस 65 करोड़ रुपए के खर्च में इस समारोह के प्रचार और 6 मैट्रो शहरों (मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु, कोलकाता, हैदराबाद और अहमदाबाद) में हुए रोडशो के खर्च को नहीं जोड़ा गया है. इस के अलावा विभिन्न मंत्रियों और अधिकारियों की अलगअलग टीमें अहमदाबाद सहित कई शहरों में उद्योगपतियों से मिलने और उन के यहां हुए निवेशक सम्मेलनों के बारे में समझने गई थीं. सम्मेलन की तैयारियों, प्रचार और ट्रांसपोर्ट को मिला कर सम्मलेन का कुल खर्च 1 अरब रुपए के करीब होगा.

विपक्ष ने इसे धन की बरबादी बताया. विपक्षी सपा और बसपा ने राज्य सरकार पर निवेशक सम्मेलन के नाम पर धन की बरबादी करने का आरोप लगाते हुए कहा कि इस धन का इस्तेमाल गरीबों के कल्याण के लिए किया जा सकता था. बसपा सुप्रीमो मायावती ने कहा कि उद्योगधंधे लगवाने के लिए कानूनव्यवस्था का दुरुस्त होना जरूरी है. मगर मौजूदा हालात में तो ऐसा नहीं लगता कि निवेशक यहां आने में रुचि लेंगे.

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सपा ने कहा कि बड़ी शानोशौकत के साथ भाजपा ने राजधानी लखनऊ में निवेशकों का जो मेला आयोजित किया, उस में निवेशकों की ओर से वादे तो बड़ेबड़े किए गए लेकिन उन में से कितने जमीनी हकीकत बनेंगे, कहना मुश्किल है. सपा के राष्ट्रीय सचिव राजेंद्र चौधरी ने कहा, ‘यह संयोग ऐसे ही नहीं है कि एक ओर भाजपा सरकार ने उत्तर प्रदेश में करोड़ों रुपए विज्ञापन और शहर की साफसफाई व सुरक्षा व्यवस्था पर खर्च कर वाहवाही लूटने की कोशिश की है. आज 2 साल के बाद विपक्ष की बात सच साबित होती नजर आ रही है.

यूपी इन्वैस्टर्स समिट

पीएम मोदी की मौजूदगी में योगी सरकार ने पहली यूपी इन्वैस्टर्स समिट 2018 का आगाज किया था. इस मौके पर पीएम मोदी और कई केंद्रीय मंत्रियों के अलावा योगी सरकार की पूरी कैबिनेट मौजूद थी. इस के अलावा यूपी सरकार के इस मंच पर रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी, अडानी गु्रप के गौतम अडानी, एस्सेल गु्रप के सुभाष चंद्रा, आदित्य बिड़ला गु्रप के कुमार मंगलम बिड़ला, महिंद्रा ऐंड महिंद्रा के चेयरमैन आनंद महिंद्रा, कैडिला हैल्थकेयर के चेयरमैन पंकज पटेल, अपोलो हौस्पिटल की शोभना कामनी, इंडलवाइस गु्रप के चेयरमैन रमेश शाह और टाटा संस के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन मौजूद थे.

पीएम मोदी द्वारा इन्वैस्टर्स समिट का उद्घाटन करने के बाद सब से पहले रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी ने अपनी कंपनी के निवेश का ऐलान किया. मुकेश अंबानी ने एक तरफ यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ को कर्मयोगी बताया तो वहीं दूसरी तरफ पीएम मोदी की तारीफ करते हुए उन के ईज औफ  लिविंग से खुद को प्रेरित बताया. अंबानी ने जियो के प्लैटफौर्म से आने वाले 3 सालों में यूपी में 10,000 करोड़ रुपए के निवेश का वादा किया है.

मुकेश अंबानी ने कहा कि 2018 के अंत तक जियो यूपी के हर गांव तक पहुंच जाएगा. अंबानी के बाद गौतम अडानी ने भी पीएम मोदी की तारीफ करते हुए कहा कि उन्होंने इस तरह के कार्यक्रम गुजरात में शुरू किए थे. इस के बाद कई राज्यों में इस तरह के कार्यक्रम किए गए. अडानी गु्रप में यूपी में 5 सालों के भीतर करीब 35,000 करोड़ रुपए के निवेश का लक्ष्य रखा. अडानी गु्रप ने यूपी में मैट्रो परियोजना, यूनिवर्सिटी खोलने और फूड पार्क खोलने की भी बात कही.

आदित्य बिड़ला गु्रप के कुमार मंगलम बिड़ला ने यूपी में 25,000 करोड़ रुपए के निवेश की बात कही. आनंद महिंद्रा ने कहा कि उन की मां यूपी की ही हैं. उन्होंने कहा कि यूपी की तुलना राज्य से नहीं, देशों से की जानी चाहिए.

यूपी सरकार ने इन्वैस्टर्स समिट के माध्यम से उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में करीब 3 लाख करोड़ रुपए का निवेश जुटाने का लक्ष्य रखा है. समिट के माध्यम से प्रदेश के इंफ्रास्ट्रक्चर सैक्टर में करीब एक लाख करोड़ रुपए का निवेश कराया जाएगा. इस के अलावा हैल्थकेयर सैक्टर और पावर सैक्टर में 50 हजार करोड़ रुपए जबकि आईटी सैक्टर में 26 हजार करोड़ रुपए का निवेश जुटाने का लक्ष्य रखा गया है.

समिट में 100 से ज्यादा कंपनियों के स्टौल भी लगाए गए. 2 दिनों के इस इवैंट में 5,000 से अधिक मेहमान शामिल हुए. इवैंट में करीब 100 वक्ताओं ने अपनी बात रखी. लखनऊ में होने वाली इन्वैस्टर्स समिट में हिस्सा लेने के लिए केंद्र सरकार के 18 मंत्री लखनऊ पहुंचे थे.

नेताओं की कोरी घोषणाएं

समिट में सभी उद्योगपतियों और प्रधानमंत्री का स्वागत करते हुए सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा, ‘‘यूपी को बीमारू राज्य से बाहर निकाल कर एक समृद्ध राज्य बनाने की दिशा में किया गया यह एक प्रयास है.’’ अलगअलग उद्योगपतियों द्वारा यूपी में 90,000 करोड़ रुपए के निवेश की घोषणा की गई. पीएम मोदी ने कहा, ‘‘जब परिवर्तन होता है तो सामने दिखने लगता है. यूपी में इतने व्यापक स्तर पर इन्वैस्टर्स समिट होना और इतने निवेशकों व उद्यमियों का उपस्थित होना अपनेआप में बहुत बड़ा परिवर्तन है.’’

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि इस समिट में उन का मुख्य फोकस एग्रो, डेयरी, फूड प्रोसैस, इलैक्ट्रौनिक्स जैसे बड़े क्षेत्रों पर है. प्रदेश में कानून का राज स्थापित किया गया है, प्रदेश में शांति व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए भी काम किया गया है. हालांकि, मुज्जफरनगर, इटावा, गोरखपुर जैसे शहर भी उत्तर प्रदेश में ही हैं जहां कानून व्यवस्था का क्या आलम है, सब के सामने है.

नन्हा सा मन : भाग 1

लेखिका: डा. अनिता श्रीवास्तव

पिंकी के स्कूल की छुट्टी है पर उस की मम्मी को अपने औफिस जाना है. पिंकी उदास है. वह घर में अकेली शारदा के साथ नहीं रहना चाहती और न ही वह मम्मी के औफिस जाना चाहती है. वहां औफिस में मम्मी उसे एक कुरसी पर बिठा देती हैं और कहती हैं, ‘तू ड्राइंग का कुछ काम कर ले या अपनी किताबें पढ़ ले, शैतानी मत करना.’ फिर उस की मम्मी औफिस के काम में लग जाती हैं और वह बोर होती है.

अपनी छुट्टी वाले दिन पिंकी अपने मम्मीपापा के साथ पूरा समय बिताना चाहती है. पर दोनों अपनाअपना लंचबौक्स उठा कर औफिस चल देते हैं. हां, इतवार के दिन या कोईर् ऐसी छुट्टी जिस में उस के मम्मी व पापा का भी औफिस बंद होता है, तब जरूर उसे अच्छा लगता है. इधर 3 वर्षों से वह देख रही है कि मम्मी और पापा रोज किसी न किसी बात को ले कर ?ागड़ते हैं.

3 साल पहले छुट्टी वाले दिन पिंकी मम्मीपापा के साथ बाहर घूमने जाती थी, कभी पार्क, कभी पिक्चर, कभी रैस्टोरैंट, कभी बाजार. इस तरह उन दोनों के साथ वह खूब खुश रहती थी. तब वह जैसे पंख लगा कर उड़ती थी. वह स्कूल में अपनी सहेलियों को बताती थी कि उस के मम्मीपापा दुनिया के सब से अच्छे मम्मीपापा हैं. वह स्कूल में खूब इतराइतरा कर चलती थी.

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अब वह मम्मीपापा के झगड़े देख कर मन ही मन घुटती रहती है. पता नहीं दोनों को हो क्या गया है. पहली बार जब उस ने उन दोनों को तेजतेज झगड़ते देखा था तो वह सहम गईर् थी, भयभीत हो उठी थी. उस का नन्हा सा मन चीखचीख कर रोने को करता था.

‘आज तुम्हारी छुट्टी है पिंकी, घर पर ठीक से रहना. शारदा आंटी को तंग मत करना,’ उस की मम्मी उसे हिदायत दे कर औफिस के लिए चली जाती हैं. बाद में पापा भी जल्दीजल्दी आते हैं और उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए उसे ‘बाय’ कहते हुए वे भी चले जाते हैं. घर में वह और शारदा आंटी रह जाती हैं. शारदा आंटी घर के काम में लग जाती हैं. काम करने के बाद वे टीवी खोल कर बैठ जाती हैं. पिंकी के नाश्ते व खाने का पूरा खयाल रखती हैं शारदा आंटी. जब वह बहुत छोटी थी तब से ही शारदा आंटी उस की देखभाल के लिए आती थीं. पिंकी को नाश्ते में तथा खाने में क्या पसंद है, क्या नहीं, यह शारदा आंटी अच्छी तरह जानती थीं, इसीलिए पिंकी शारदा आंटी से खुश रहती थी. अब रोजरोज मम्मीपापा को झगड़ते देख वह अब खुश रहना ही भूल गई है.

स्कूल में पहले वह अपनी सहेलियों के साथ खेलती थी, अब अलग अकेले बैठना उसे ज्यादा अच्छा लगता है. एक दिन अपनी फ्रैंड निशा से उस ने पूछा था, ‘निशा, अलादीन के चिराग वाली बात तूने सुनी है?’

‘हां कुछकुछ,’ निशा बोली थी.

‘क्या वह चिराग मुझे मिल सकता है?’

‘क्यों, तू उस का क्या करेगी?’ निशा ने पूछा था.

‘उस चिराग को घिसूंगी, फिर उस में से जिन्न निकलेगा. फिर मैं उस से जो चाहूंगी, मांग लूंगी,’ पिंकी बोली.

‘अब वह चिराग तो पता नहीं कहां होगा, तुझे जो चाहिए, मम्मी पापा से मांग ले. मैं तो यही करती हूं.’

पिंकी चुप रही. वह उसे कैसे बताए कि अपने लिए नहीं, मम्मीपापा के लिए कुछ मांगना चाहती है. मम्मीपापा का यह रोज का ? झगड़ा उसे पागल बना देगा. एक बार उस की इंग्लिश की टीचर ने भी उसे खूब डांटा था, ‘मैं देख रही हूं तुम पहले जैसी होशियार पिंकी नहीं रही, तुम्हारा तो पढ़ाई में मन ही नहीं लगता.’

पिछले साल का रिजल्ट देख कर टीचर पापामम्मी पर नाराज हुए थे, ‘तुम पिंकी पर जरा भी ध्यान नहीं देतीं, देखो, इस बार इस के कितने कम नंबर आए हैं.’

‘हां, अगर अच्छे नंबर आए तो सेहरा आप के सिर कि बेटी किस की है. अगर कम नंबर आए तो मैं ध्यान नहीं देती. मैं पूछती हूं आप का क्या फर्ज है? पर पहले आप को फुरसत तो मिले अपनी सैक्रेटरी खुशबू से.’

‘पिंकी की पढ़ाई में यह खुशबू कहां से आ गई?’ पापा चिल्लाए.

बस, पिंकी के मम्मीपापा में लड़ाई शुरू हो गई. उस दिन उस ने जाना था कि खुशबू आंटी को ले कर दोनों झगड़ते हैं. वह समझ नहीं पाई थी कि खुशबू आंटी से मम्मी क्यों चिढ़ती हैं. एक दो बार वे घर आ चुकी हैं. खुशबू आंटी तो उसे बहुत सुंदर, बहुत अच्छी लगी थीं, गोरी चिट्टी, कटे हुए बाल, खूब अच्छी हाइट. और पहली बार जब वे आई थीं तो उस के लिए खूब बड़ी चौकलेट ले कर आई थीं. मम्मी पता नहीं खुशबू आंटी को ले कर पापा से क्यों झगड़ा करती हैं.

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पिंकी के पापा औफिस से देर से आने लगे थे. जब मम्मी ने पूछा तो कहा, ‘ओवरटाइम कर रहा हूं, औफिस में काम बहुत है.’ एक दिन पिंकी की मम्मी ने खूब शोर मचाया. वे चिल्लाचिल्ला कर कह रही थीं, ‘कार में खुशबू को बिठा कर घुमाते हो, उस के साथ शौपिंग करते हो और यहां कहते हो कि ओवरटाइम कर रहा हूं.’

‘हांहां, मैं ओवरटाइम ही कर रहा हूं. घर के लिए सारा दिन कोल्हू के बैल की तरह काम करता हूं और तुम ने खुशबू को ले कर मेरा जीना हराम कर दिया है. अरे, एक ही औफिस में हैं, तो क्या आपस में बात भी नहीं करेंगे,’ पिंकी के पापा ने हल्ला कर कहा था.

‘उसे कार में घुमाना, शौपिंग कराना, रैस्टोरैंट में चाय पीना ये भी औफिस के काम हैं?’

उन दोनों में से कोई चुप होने का नाम नहीं ले रहा था. दोनों का झगड़ा चरमसीमा पर पहुंच गया था और गुस्से में पापा ने मम्मी पर हाथ उठा दिया था. मम्मी खूब रोई थीं और पिंकी सहमीसहमी एक कोने में दुबकी पड़ी थी. उस का मन कर रहा था वह जोरजोर से चीखे, चिल्लाए, सारा सामान उठा कर इधरउधर फेंके, लेकिन वह कुछ नहीं कर सकी थी. आखिर इस झगड़े का अंत क्या होगा, क्या मम्मीपापा एकदूसरे से अलग हो जाएंगे, फिर उस का क्या होगा. वह खुद को बेहद असहाय और असुरक्षित महसूस करने लगी थी.

उस दिन वह आधी रात एक बुरा सपना देख कर अचानक उठ गई और जोरजोर से रोने लगी थी. उस के मम्मीपापा घबरा उठे. दोनों उसे चुप कराने में लग गए थे. उस की मम्मी पिंकी की यह हालत देख कर खुद भी रोने लगी थीं, ‘चुप हो जा मेरी बच्ची. तू बता तो, क्या हुआ? क्या कोई सपना देख रही थी?’ पिंकी की रोतेरोते घिग्घी बंध गई थी. मम्मी ने उसे अपने सीने से कस कर चिपटा लिया था. पापा खामोश थे, उस की पीठ सहला रहे थे.

पिंकी को पापा का इस तरह सहलाना अच्छा लग रहा था. चूंकि मम्मी ने उसे छाती से चिपका लिया था, इसलिए पिंकी थोड़ा आश्वस्त हो गई थी. इस घटना के बाद पिंकी के मम्मीपापा पिंकी पर विशेष ध्यान देने लगे थे. पर पिंकी जानती थी कि ये दुलार कुछ दिनों का है, फिर तो वही रोज की खिचखिच. उस का नन्हा मन जाने क्या सोचा करता. वह सोचती कि माना खुशबू आंटी बहुत सुंदर हैं, लेकिन उस की मम्मी से सुंदर तो पूरी दुनिया में कोई नहीं है. उस को अपने पापा भी बहुत अच्छे लगते हैं. इसीलिए जब दोनों झगड़ते समय अलग हो जाने की बात करते हैं तो उस का दिल धक हो जाता है. वह किस के पास रहेगी? उसे तो दोनों चाहिए, मम्मी भी, पापा भी.

पिंकी ने मम्मी को अकसर चुपकेचुपके रोते देखा है. वह मम्मी को चुप कराना चाहती है, वह मम्मी को दिलासा देना चाहती है, ‘मम्मी, रो मत, मैं थोड़ी बड़ी हो जाऊं, फिर पापा को डांट लगाऊंगी और पापा से साफसाफ कह दूंगी कि खुशबू आंटी भले ही देखने में सुंदर हों पर उसे एक आंख नहीं सुहातीं. अब वह खुशबू आंटी से कभी चौकलेट भी नहीं लेगी. और हां, यदि पापा उन से बोले तो मैं उन से कुट्टी कर लूंगी.’ पर वह अपनी मम्मी से कुछ नहीं कह पाती. जब उस की मम्मी रोती हैं तो उस का मन मम्मी से लिपट कर खुद भी रोने का करता है. वह अपने नन्हे हाथों से मम्मी के बहते आंसुओं को पोंछना चाहती है, वह मम्मी के लिए वह सबकुछ करना चाहती है जिस से मम्मी खुश रहें. पर वह अपने पापा को नहीं छोड़ सकती, उसे पापा भी अच्छे लगते हैं.

थोड़े दिनों तक सब ठीक रहा. फिर वही झगड़ा शुरू हो गया. पिंकी सोचती, ‘उफ, ये मम्मीपापा तो कभी नहीं सुधरेंगे, हमेशा झगड़ा करते रहेंगे. वह इस घर को छोड़ कर कहीं दूर चली जाएगी. तब पता चलेगा दोनों को कि पिंकी भी कुछ है. अभी तो उस की कोई कद्र ही नहीं है.’

वह सामने के घर में रहने वाला भोलू घर छोड़ कर चला गया था तब उस के मम्मीपापा जगहजगह ढूंढ़ते फिर रहे थे. वह भी ऐसा करेगी, पर वह जाएगी कहां? जब वह छोटी थी तो शारदा आंटी बताती थीं कि बच्चों को कभी एकदम अकेले घर से बाहर नहीं जाना चाहिए. बाहर बच्चों को पकड़ने वाले बाबा घूमते रहते हैं जो बच्चों को झोले में डाल कर ले जाते हैं, उन के हाथपांव काट कर भीख मंगवाते हैं. ना बाबा ना, वह घर छोड़ कर नहीं जाएगी. फिर वह क्या करे?

पिंकी अब गुमसुम रहने लगी थी. वह किसी से बात नहीं करती थी. अब वह मम्मी व पापा से किसी खिलौने की भी मांग नहीं करती. हां, कभीकभी उस का मन करता है तो वह अकेली बैठी खूब रोती है. वह अब सामान्य बच्चों की तरह व्यवहार नहीं करती. स्कूल में किसी की कौपी फाड़ देती, किसी का बस्ता पटक देती. उस की क्लासटीचर ने उस की मम्मी को फोन कर के उस की शिकायत की थी.

एक दिन उस ने अपने सारे खिलौने तोड़ दिए थे. तब मम्मी ने उसे खूब डांटा था, ‘न पढ़ने में मन लगता है तेरा और न ही खेलने में. शारदा बता रही थी कि तुम उस का कहना भी नहीं मानतीं. स्कूल में  भी उत्पात मचा रखा है. मैं पूछती हूं, आखिर तुम्हें हो क्या गया है?’

वह कुछ नहीं बोली. बस, एकटक नीचे जमीन की ओर देख रही थी. उसे अब सपने भी ऐसे आते कि मम्मीपापा आपस में लड़ रहे हैं. वह किसी गहरी खाई में गिर गई है और बचाओबचाओ चिल्ला रही है. पर मम्मीपापा में से कोईर् उसे बचाने नहीं आता और वह सपने में भी खुद को बेहद उदास, मजबूर पाती. वह किसी को समझ नहीं सकती, न मम्मी को, न पापा को.

कांटा निकल गया

महाराजजी पर मेरे ससुरालवालों की अपार श्रद्धा थी. महाराजजी के दिशा-निर्देशन पर ही हमारे घर के समस्त कार्य संपन्न होते थे. सासूमां सुबह उठते ही सबसे पहले महाराजजी की तस्वीर पर माथा टेकतीं थीं. ससुर जी नहा-धो कर सबसे पहले उनकी तस्वीर के आगे दिया-बत्ती करते और मेरे पति तो हर गुरुवार और शनिवार नियम से महाराजजी के दरबार में हाजिरी दिया करते थे. उनके आदेश पर श्रद्धालुओं को भोजन कराना, कहीं मंदिर बनवाने में सहयोग राशि जुटाना, कहीं लड़कियों का सामूहिक विवाह कराना ऐसे तमाम कार्य थे, जिसमें महाराजजी के आदेश पर वे तन, मन, धन से जुटे रहते थे. मैं जब शादी करके इस घर में आई तो किसी मनुष्य के प्रति इतना श्रद्धाभाव और पैसे की बर्बादी मुझे कुछ जमती नहीं थी. अपने घर में तो हम बस मंदिर जाया करते थे और वहीं दिया-बत्ती करके भगवान के आगे ही हाथ जोड़ कर अपने दुखड़े रो आते थे. मगर यहां तो कुछ ज्यादा ही धार्मिक माहौल था. अब ईश्वर के प्रति होता तो कोई बात नहीं थी, मगर एक जीते-जागते मनुष्य के प्रति ऐसा भाव मुझे खटकता था. महाराजजी की उम्र भी कोई ज्यादा न थी, यही कोई बत्तीस-पैंतीस बरस की होगी. रंग गोरा, कद लंबा, तन पर सफेद कलफदार धोती पर लंबा रंगीन कुर्ता और भगवा फेंटा. माथे पर भगवा तिलक और कानों में सोने के कुुंडल पहनते थे. साधु-महात्मा तो नहीं, मुझे हीरो ज्यादा लगते थे. अपने भव्य, चमचमाते आश्रम के बड़े से हॉल में चांदी के पाए लगे एक सिंहासननुमा गद्दी पर बैठ कर माइक पर प्रवचन किया करते थे. सामने जमीन पर दूर तक भक्तों की पंक्तियां शांत भाव से हाथ जोड़े उनकी गंभीर वाणी को आत्मसात करती घंटों बैठी रहती थी. शुरू-शुरू में सासु मां और मेरे पति मुझे भी सत्संग में ले जाते थे. जब मुझे उससे उकताहट होने लगी तो मैं सवाल उठाने लगी, इस पर हमारे घर में महाभारत मचने लगा. कभी सास-ससुर का मुंह फूल जाता, कभी पति का. हफ्तों गुजर जाते बातचीत बंद. धीरे-धीरे मैंने ही घर की शांति के लिए सबसे समझौता कर लिया. महाराजजी में घरवालों की आस्था बढ़ती रही और हमारे घर में छोटे से छोटा कार्य भी महाराजजी की अनुमति से ही होने लगा.

बेटी पूजा की शादी तय हुई, तब महाराजजी ने कहा, ये रिश्ता तोड़ दो, लड़का इसके लिए ठीक नहीं रहेगा…. मुझे बड़ी खीज मची क्योंकि लड़का मेरी सहेली के भाई का था. परिवार मेरा देखा-भाला था. लड़के की अच्छी जौब थी, अच्छा पैसा था, ऑफिस की तरफ से फॉरेन ट्रिप भी करता रहता था. मुझे तो उसमें कोई खोट नजर नहीं आया, मगर महाराजजी का आदेश था तो मेरे पति ने बिना कोई सवाल किये रिश्ता तोड़ दिया. बाद में बेटी की जिस लड़के से शादी हुई वह न तो देखने में हैंडसम था और न उसकी कोई पक्की नौकरी थी. बाद में पता चला कि वह शराब भी पीता है और लड़कियों का शौक भी रखता है. मेरी बेटी की तो जिन्दगी ही बर्बाद हो गयी. मगर ससुरालवालों की अंधभक्ति कम न हुई. उनको मेरी बच्ची का दुख न दिखता था. उनकी आस्था महाराजजी में ज्यों की त्यों बनी रही. सास बोलीं सब अपने भाग्य का पाते हैं. इसमें महाराजजी की कोई गलती नहीं है. वह तो ज्ञानी व्यक्ति हैं. पूजा ने पिछले जन्म में पापकर्म किये होंगे, अब उसका प्रायश्चित कर रही है. प्रायश्चित से तप कर निकलेगी तो सोना हो जाएगी. मैंने तो सिर ही पीट लिया सास की ऐसी बातें सुनकर मगर कर भी क्या सकती थी.

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बेटा अर्जुन आईआईटी करके इंजीनियर बनना चाहता था, महाराजजी ने कहा, ये लाइन ठीक नहीं इसके भविष्य के लिए, मेडिकल लाइन अच्छी है, इन्होंने इंटरमीडिएट के बाद उसका एडमिशन बीएससी में करवा दिया, साथ ही पीएमटी परीक्षाओं की तैयारियों के लिए कह दिया. बेटा भुनभुनाया. जीव-विज्ञान, वनस्पति विज्ञान में उसकी जरा भी रुचि नहीं थी, वह तो मैथ्स और फिजिक्स का दीवाना था. मगर महाराजजी का आदेश था. उधर बेटी की जिन्दगी बर्बाद हो गयी, अब बेटे का भविष्य दांव पर लगा था. वह लगातार पढ़ाई से दूर होता जा रहा था. पढ़े भी कैसे, वह सब्जेक्ट तो उसकी रुचि के ही नहीं थे. मैं मां थी. अपने बच्चों की इच्छाओं को, उनकी भावनाओं को मुझसे बेहतर कौन समझ सकता था? मन ही मन कुढ़ रही थी, मगर कुछ बोल नहीं पाती थी. बोलती तो हंगामा उठ खड़ा होता, सास-ससुर और पति मेरे हाथ से बने खाने का त्याग कर देते. सास चिल्लाती कि महाराजजी का अपमान करती है, चल प्रायश्चित कर. इतने ब्राह्मणों को अपने हाथों से भोजन बना कर खिला तभी यह पाप कटेगा, तभी हम भी भोजन-पानी ग्रहण करेंगे, इत्यादि, इत्यादि.

आज शाम को टीवी खोला तो हर चैनल पर ब्रेकिंग न्यूज चल रही थी. चंद मिनटों में घर में रोना-धोना मच गया. सास ने तो अपनी चूड़ियां तक तोड़ डाली कि जैसे वे विधवा ही हो गयी हों, ससुर रोने-तड़पने लगे, पति ने तुरंत गाड़ी निकाली. मां और बाबूजी को लेकर आश्रम की ओर भागे. मैं बेटे अर्जुन के साथ ड्राइंगरूम में बैठी टीवी पर खबर सुनती रही और खुश होती रही. टीवी पर न्यूज चल रही थी कि महाराजजी ने घरेलू तनाव के चलते आत्महत्या कर ली. किसी अन्य लड़की का चक्कर था. मैं सोच रही थी कि कैसा शांत व्यक्तित्व दिखता था, कैसी ओजपूर्ण वाणी थी, कैसे दिल को छूते प्रवचन करते थे, दुनिया को तनावमुक्त करने वाले, दुनिया के दुखों को हरने वाले, दुनिया से यह कहने वाले कि कर्म किए जा, फल की चिंता न कर, आखिर स्वयं तनावग्रस्त कैसे हो गए और वह भी उस स्तर तक कि आत्महत्या जैसा कायरता भरा कदम उठा लिया? महाराजजी इतने दुखी और टूटे हुए इंसान कैसे निकले? इतने कायर और दब्बू कैसे निकले? अपनी पत्नी के होते दूसरी औरत के साथ रिश्ता… छी…छी… धर्म के कवर में छिपा कामी पुरुष…. अच्छा हुआ मर गया. मेरे रास्ते का कांटा हटा. काश कि अब मेरे सास-ससुर और पति की आंखों पर चढ़ा आस्था का चश्मा उतर जाए? किसी की मौत पर खुश होना अच्छी बात नहीं, मगर आज महाराजजी की मौत की खबर सुनकर जो खुशी मुझे हो रही थी उसका मैं वर्णन नहीं कर सकती. मन कर रहा है खुशी से नाचूं.

अचानक बेटे के सवाल ने मेरी तंद्रा भंग की. उसने पूछा, ‘मां, क्या अब मैं आईआईटी का फॉर्म भर दूं?’

और मैं उत्साह में भर कर बोली, ‘जरूर भर दे… अब किसी बात की चिन्ता मत कर… मैं सब संभाल लूंगी…

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निजामुद्दीन दरगाह : जियारत के नाम पर लूट और फरेब

दिल्ली के निजामुद्दीन बस स्टेशन पर बस से उतर कर मैं यों ही चहलकदमी करता चिश्ती घराने के चौथे संत हजरत ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया के मकबरे की ओर निकल गया. हजरत वैराग्य और सहनशीलता की मिसाल कहे जाते हैं. बड़ा नाम सुना था उन का. फकीराना अंदाज और शहंशाही मिजाज. कहते हैं बड़ेबड़े बादशाह उन को सलामी देते थे. वर्ष 1303 में उन के कहने पर मुगल सेना ने अपना हमला रोक दिया था. 92 साल की उम्र में हजरत ख्वाजा की मृत्यु हुई और उस के बाद उन का जो मकबरा बना, उस का वर्ष 1562 तक नवीनीकरण होता रहा. आज उन की दरगाह पर देश के कोनेकोने से लोग अपनी मुरादें ले कर आते हैं. कहते हैं कि उन के दर से कोई खाली हाथ नहीं लौटता है.

मैं जैसे ही दरगाह जाने वाले मुख्य रास्ते पर नीचे की ओर मुड़ा, तो पहली दुकान फूल, अगरबत्ती और मजार पर चढ़ाई जाने वाली चादर व अन्य सामग्री की दिखाई पड़ी. कुछ आगे चलने पर भीड़भाड़ बढ़ने लगी. सड़क के दोनों तरफ खानेपीने की दुकानों के साथसाथ भिखारियों की टोलियां भी यहांवहां सड़क पर पसरी हुई थीं. इन नजारों को देखता हुआ मैं उस सड़क पर आगे बढ़ता जा रहा था, जिस का एक हिस्सा दरगाह पर जा कर खत्म होता है.

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दरगाह से लगभग 150 मीटर पहले से सड़क के दोनों तरफ एकदो अन्य चीजों की दुकानों को छोड़ कर सिर्फ फूल, अगरबत्ती, मजार पर चढ़ाई जाने वाली चादर आदि बेचने वालों की दुकानें ही नजर आईं. वे दुकानदार दरगाह की तरफ जाने वाले हर व्यक्ति को अपनी तरफ खींच कर मजार पर चढ़ाने का सामान लेने की गुहार लगाते या कहें कि आपस में एकदूसरे से कड़ी प्रतिस्पर्धा करते नजर आ रहे थे.

जैसे ही मैं वहां पहुंचा, एक दुकानदार ने मुझ से भी अपनी चप्पलें दुकान में जमा करने और साथ ही मजार पर चढ़ाने के लिए कुछ फूल, अगरबत्ती, चादर आदि खरीदने की गुजारिश की. मेरे इनकार करने पर दूसरा दुकानदार मुझे खींच कर अपनी दुकान की ओर ले गया. उस की इतनी अपील पर आखिरकार मैं उस के साथ उस की दुकान तक चला गया. मैं ने उस से कहा, ‘‘मैं दरगाहों पर बहुत कम जाता हूं, मुझे इन रिवायतों के बारे में कम जानकारी है, इसलिए पहले तो आप मुझे इस के बारे में बताइए कि जो सामान आप मुझे बेचना चाहते हैं उसे खरीदने और मजार पर चढ़ाने से क्या लाभ होगा?’’

उस दुकानदार ने जवाब दिया, ‘‘इस से आप की हर मुराद पूरी हो जाएगी. बस, इसे चढ़ा कर सच्चे दिल से मांग लेना.’’ जब मैं ने जोर दे कर पूछा, ‘‘क्या वाकई यह संभव है,’’ तो उस ने कहा, ‘‘सच्चे दिल से मांगोगे तो मुराद जरूर पूरी होगी.’’

इसी बीच, उस ने एक प्लेट में गुलाब के कुछ फूल, अगरबत्ती और मिस्री के एकएक पैकेट रख कर पूछा कि और क्या लोगे? मैं ने कोई जवाब नहीं दिया और चुपचाप खड़ा रहा तो उस ने कहा, ‘‘ज्यादा सोचो मत, जो करना है फटाफट कर दो.’’ इस बीच एक अधेड़ उम्र की मगर देखने में काफी तंदुरुस्त औरत वहां आई और मेरे आगे हाथ फैला कर कुछ पैसे मांगने लगी. साथ ही दुकानदार की हां में हां मिलाते हुए बोली, ‘‘बेटा, वाकई यहां सब की मुरादें पूरी हो जाती हैं.’’

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धर्म के नाम पर धंधा

मेरे मन में एक सवाल उठा कि अगर वाकई ऐसा होता है, तो यह औरत भीख क्यों मांग रही है? इस ने मन्नत मांग कर अपनी गरीबी दूर क्यों नहीं करा ली? मैं अनमना सा दुकानदार की थाली वहीं छोड़ कर आगे बढ़ गया. संकरी होती गली में जैसैजैसे मैं आगे बढ़ता गया, मुझ से चप्पलें जमा कराने और फूल, अगरबत्ती आदि सामग्री खरीदने की गुजारिश की जाती रही. साथ ही, वे यह बताना नहीं भूलते थे कि चप्पलें रखने का वे कोई पैसा नहीं लेते.

मैं ने एक दूसरे दुकानदार से पूछा, ‘‘जब वे कोई पैसा नहीं लेते तो बेवजह चप्पलों की जिम्मेदारी क्यों ले रहे हैं?’’ इस पर दुकानदार ने कहा, ‘‘हम आप से कुछ खरीदने की आशा करते हैं,’’ जबकि दूसरे ने बताया, ‘‘वे पुण्य पाने के लिए ऐसा कर रहे हैं.’’

आखिरकार, बिना कुछ खरीदे और बिना चप्पलें जमा किए मैं दरगाह के पास पहुंच गया. सामने अमीर खुसरो की मजार नजर आई. अंदर दरगाह के पास भी फूल, अगरबत्ती आदि सामग्री की 2 दुकानें थीं. एक दुकान पर बिना कुछ लिए ही मैं ने अपनी चप्पलें रख दीं. आसपास कुछ और पक्की कब्रें बनी थीं. थोड़ा अंदर गया तो मैं ने देखा कि मजार के सामने वाली दीवार पर संगमरमर का एक पत्थर गड़ा था, जिस पर उर्दू में कुछ लिखा हुआ था.

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वहां कुछ औरतें खड़ी थीं. उन के साथ एक किशोरी लड़की उस संगमरमर के पत्थर पर 2 रुपए का एक सिक्का चिपकाने का प्रयास कर रही थी. मेरी जिज्ञासा जगी कि यह लड़की ऐसा क्यों कर रही है? मैं ने उन औरतों से इस बारे में पूछा तो पता चला कि अगर यह सिक्का दीवार से चिपक जाता है तो मुराद अवश्य पूरी हो जाती है. अगर नहीं चिपकता, तो नहीं होती.

मैं उन महिलाओं के अंधविश्वास या कहें बेवकूफीभरी बातों के बारे में कुछ कह पाता, इस से पहले ही पास खड़े एक बुजुर्ग ने उन की बातों में संशोधन कर के कहा कि बृहस्पतिवार के दिन करने से ऐसा होता है. मैं अपना माथा पीटता सा आगे बढ़ गया.

बहुत से जायरीन फूल, अगरबत्ती, चादर आदि सामग्री ले कर अंदर अमीर खुसरो की मजार पर जा रहे थे. और मजार पर उन्हें चढ़ा कर मन्नतें मांग रहे थे. कोई कुछ पढ़ रहा था, तो कोई मजार को चूम रहा था. जब मैं अंदर पहुंचा तो देखा कि गेट के अंदर एक आदमी खड़ा था जो आने वालों से मजार पर कुछ न कुछ चढ़ाने के लिए कह रहा था. वहीं आसपास कुछ लोग बैठे हुए भी थे. अंदर अमीर खुसरो की मजार के साथ ही एक कब्र और थी, जिस पर लोग पैसे डाल रहे थे.

अंधविश्वास का खेल

अमीर खुसरो की मजार के गेट के आसपास 2-3 लोग हाथों में रजिस्टर लिए खड़े थे. वे मजार पर आने वालों से कुछ दानराशि भेंट करने के वास्ते रजिस्टर में पैसे लिखवाने के लिए कह रहे थे या यों कहें कि उन पर ऐसा करने के लिए दबाव डाल रहे थे. वे लोगों को बताते कि शाम को होने वाली दुआ कार्यक्रम में आप का नाम लिया जाएगा. कुछ लोग मरजी से, तो कुछ बड़े अनमने ढंग से रजिस्टर में 10 रुपए, 50 रुपए,100 रुपए की एंट्री कर देते. साफ दिख रहा था कि यहां जायरीन यानी श्रद्धालुओं से पैसे लूटने का बड़ा धंधा चल रहा है.

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इसी बीच, वहां हो रही एक घटना ने मुझे बेहद परेशान कर दिया. मैं ने देखा कि अमीर खुसरो की मजार के आसपास जो 2-3 लड़के खड़े थे, वे जो भी जायरीन आता उसे अपनी तरफ बुलाते, बल्कि यों कहें कि उन का हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींचते और अमीर खुसरो की मजार पर ही उन्हें चढ़ावे की सामग्री चढ़ाने को कहते. शायद उन्हें डर था कि वे जायरीन कहीं आगे हजरत निजामुद्दीन की दरगाह पर न चले जाएं.

जो जायरीन पहली बार आ रहे थे और जिन्हें इस तमाशे का पता नहीं था, वे तो उन लड़कों की बातों में आ कर उन के कहे अनुसार वहीं अमीर खुसरो की मजार पर अपना चढ़ावा चढ़ा रहे थे, मगर जिन्हें पता था कि हजरत निजामुद्दीन की दरगाह आगे है, वे उन से हाथ छुड़ा कर आगे बढ़ जाते थे. जब कोई जायरीन इन के कहे अनुसार चलता तो इन के चेहरे की खुशी देखने लायक होती, ठीक वैसे ही जैसे एक दुकानदार ने दूसरे दुकानदार के ग्राहक को जबरन हासिल कर लिया हो.

मैं काफी देर तक वहां खड़ा हो कर यह तमाशा देखता रहा और फिर हजरत निजामुद्दीन की मुख्य दरगाह की तरफ चल पड़ा, जो अमीर खुसरो की दरगाह के पीछे वाले हिस्से में स्थित है. आगे चलने पर सीधे हाथ की तरफ 2-3 सीढि़यों के बाद एक चौकोर सी जगह नजर आई, जिस में कुछ कब्रों के आगेपीछे एक भिखारी सहित 4-5 औरतें बैठी जोरजोर से  झूम रही थीं. इन में से कुछ अपने चेहरों पर अपने बालों को फैलाए बेहोशी की हालत में पड़ी नजर आईं तो कुछ आगेपीछे  झूमती दिखीं.

एक औरत जोरजोर से चीख कर कुछ कह रही थी. पूछने पर पता चला कि उस के ऊपर कुछ ‘ऊपरी चक्कर’ है, यानी कुछ भूतपिशाच चढ़ा है. हालांकि, मुझे यह आज तक समझ में नहीं आया कि यह ‘ऊपरी चक्कर’ क्या बला है. एक लड़की वहीं बनी 2 पक्की कब्रों के बीच लेटी थी. उस के सिर के पास एक औरत बैठी हुई थी. जब मैं ने उस औरत से पूछा कि लड़की को क्या हो गया? तो वह औरत बेहद बेरुखी से बोली, ‘‘कौन हैं आप? क्या मतलब है आप को?’’ मैं ने कहा, ‘‘मैं तो बस ऐसे ही पूछ रहा हूं.’’ तो वह बोली, ‘‘नहीं, आप को किसी ने भेजा है.’’ आखिरकार मैं ने वहां से जाने में ही भलाई समझ. मैं दरगाह की ओर चला आया.

दरगाह के चारों तरफ काफी खाली जगह है, साथ ही हजरत निजामुद्दीन की मजार चौकोर जालियों से घिरी हुई है, जिस के चारों ओर खुली गैलरी है. इस गैलरी में मैं ने एक तरफ कुछ लड़कियों और औरतों को देखा जो वहां बैठी पवित्र कुरान पढ़ रही थीं, जबकि दूसरी ओर गेट के पास सफेद कुरतापाजामा और टोपी लगाए कुछ आदमी बैठे थे, जिन में से एक इंग्लिश का अखबार हिंदुस्तान टाइम्स पढ़ रहा था.

मैं ने अंदाजा लगाया कि शायद ये दरगाह के जिम्मेदार लोग थे, क्योंकि वे दरगाह पर आनेजाने वाले लोगों को न सिर्फ दिशानिर्देश दे रहे थे, बल्कि कभीकभी डांटफटकार भी कर रहे थे. दरगाह के पीछे की साइड में भी कुछ दुकानें थीं और उन के बीच रूहानी इलाज की दुकानें भी सजी हुई थीं, जो लोगों पर चढ़ी ऊपरी बलाओं के इलाज का दावा करते थे.

काफी देर इधरउधर घूमते हुए मैं दरगाह के चारों ओर बनी गैलरी के पिछले हिस्से के एक कोने में जा खड़ा हुआ. तभी वहां बैठे एक 55-60 साल की उम्र के व्यक्ति ने मुझे अपने पास बैठने का इशारा किया. बातचीत में पता चला कि उन का नाम चिश्ती इस्लाम उर्फ फड्डे खां है. उन्होंने मुझ से कहा कि मैं बाबा से अपनी मुराद मांगूं. फड्डे खां मुझ से बाबा की तारीफ करने लगे. बोले, ‘‘बाबा सब के दुख दूर करते हैं, जो मांगना जानता हो उस की भी, और जो न जानता हो उस की भी.’’

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मैं फड्डे खां से बतियाने लगा. फड्डे खां ने बताया, ‘‘जवानी के दिनों में लड़ाई झगड़ों में ज्यादा संलग्न रहने की वजह से लोग उन्हें ‘फड्डे खां’ कह कर बुलाने लगे. लगभग 25 साल पहले वे कानपुर में अपने 4 मासूम बच्चों और बीवी को छोड़ कर यहां चले आए थे और अब तो वहां जाते भी नहीं हैं. वे बोले कि अब बिना बाबा के उन का एक दिन भी नहीं कटता. बच्चों और बीवी की जिम्मेदारी के सवाल पर वे बोले कि जब इंसान फकीर बन जाता है तो उस की सारी इच्छाएं मर जाती हैं. हालांकि फड्डे खां की बाईं कलाई पर रौलेक्स की ब्रैंडेड घड़ी चमक रही थी. और मैं सोच रहा था कि इस आदमी का अपनी बीवी और बच्चों की जिम्मेदारी छोड़ कर यहां पड़े रहना क्या बाबा की नजर में उचित है?

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फड्डे खां बोले, ‘‘आप के दरगाह में पैर रखते ही बाबा को पता चल गया था कि आप की क्या इच्छा है.’’ मैं सोचने लगा कि अगर फड्डे खां की बात सच होती तो फिर यहां किसी को भी इस बात का भान क्यों नहीं हुआ कि मैं यहां कोई मन्नत मांगने नहीं आया, बल्कि यों ही टहलते हुए चला आया कि देखें यहां क्या है? सच पूछो तो औलिया की मजार के बाहर जो दुकानदारों की फौज जायरीन को ठगने के लिए खड़ी है, उन्हें देख कर ही मेरे मन में आया कि चलो जरा अंदर चल कर यहां की पोलपट्टी खंगाली जाए. जर्नलिस्ट हूं तो सचाई जानने की जिज्ञासा मन में कुलांचें मारने लगती है.

इसी बीच, फड्डे खां के पास बैठी एक अधेड़ उम्र की औरत ने विनती करते हुए मुझ से कहा कि मैं उन्हें अपनी मुराद बताऊं, वह तो बतानी पड़ेगी न. यह मेरे लिए एक और उलझन की स्थिति थी. मैं ने फड्डे खां से कहा, ‘‘आप तो कह रहे थे कि बाबा को बताने की जरूरत नहीं, वे सब कुछ जानते हैं, और ये कह रही हैं कि अपनी मुराद तो बतानी पड़ती है. अब मैं किस की बात सच मानूं?’’ इस पर फड्डे खां आनाकानी करने लगे.

फरेब के सिवा कुछ नहीं

बातचीत के दौरान मैं बड़े गौर से आसपास के माहौल को निहार रहा था. मैं ने ध्यान दिया कि वहां मजार के चारों ओर की जालियों में बहुत से धागे बंधे हुए हैं. पूछने पर पता चला कि आने वाले जायरीन अपनी मुराद मांग कर एक धागा इस जाली से बांध देते हैं और जब उन की मुराद पूरी हो जाती है, तो आ कर धागा खोल जाते हैं. रोचक बात यह थी कि मुराद पूरी होने पर कोई भी धागा खोल सकते हैं. यह बात भी मुझे उन दोनों ने ही बताई, वरना मैं बड़ी कशमकश में था कि मुराद पूरी होने के बाद अपना धागा खोलने आने वाला व्यक्ति इतने धागों के बीच अपना वाला कैसे पहचानेगा?

इस बीच, वह महिला बाबा को ‘दिल्ली का दूल्हा’ कर संबोधित कर रही थी. मैं ने फड्डे खां और उस महिला से जाने की इजाजत ली और उठ कर वहीं आसपास घूमने लगा. हजरत निजामुद्दीन की दरगाह से निकल जब मैं वापस आने के लिए अमीर खुसरो की दरगाह की तरफ आया तो देख कर हैरान रह गया कि एक आदमी जालियों में बंधे लोगों की मुरादों के धागों को कैंची से काटकाट कर एक ओर फेंक रहा है. वहीं खड़े उस लड़के, जो रजिस्टर में नाम लिखवा रहा था और मेरे न लिखवाने पर मुझ से बहुत नाराज हो गया था, से जब मैं ने धागे काटने की बाबत पूछा तो उस ने कहा, ‘‘सफाई भी जरूरी है न.’’

अब मैं हैरानपरेशान सोच में पड़ गया कि लोग कितनी दूर से, किस विश्वास और किनकिन मुरादों के साथ इन धागों को यहां बांध कर जाते हैं, और ये लोग पहले उन्हें बांधने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, और अब यही उन की मुरादों का बेशर्मी से कत्ल कर रहे हैं. ये सब आखिर हो क्या रहा है?

कुछ देर बाद मैं ने देखा कि मजार के सामने खाली मैदान में 3-4 लोग आए और ढोलक व हारमोनियम बजा कर कव्वाली गाने लगे. उन की कव्वाली सुन कर चारों ओर लोग जमा होने लगे. मैं भी कुछ देर उन की कव्वाली सुनता रहा. मैं ने देखा कि कुछ लोग उन्हें 10-20 रुपए का उपहार भी दे रहे थे. तभी वहां फड्डे खां एक लड़के से बात करते नजर आए. मैं चलता हुआ उन के पीछे पहुंच गया. वे उस लड़के से कह रहे थे – ‘ला, अब तो कुछ दे दे.’ जवाब में उस लड़के ने कहा, ‘अभी मेरे पास नहीं हैं.’  फड्डे खां बोले, ‘कैसा इंसान है, फकीरों का भी खयाल नहीं रखता’. इतना कह कर वे आगे बढ़ गए.

मैं ने उस लड़के को रोक कर पूछा, ‘‘फड्डे खां क्या मांग रहे थे?’’ वह बोला, ‘‘अजमेर जाने के लिए पैसे मांग रहे थे.’’ मैं फिर सोच में डूब गया कि आखिरकार इतने सालों से बीवीबच्चों की जिम्मेदारी छोड़ बाबा के दर पर पड़े फड्डे खां बाबा से अजमेर जाने की अपनी मुराद पूरी क्यों नहीं करा पाए?

इसी उधेड़बुन के साथ मैं बिना कुछ दानपुण्य किए व चादर चढ़ाए हैरानपरेशान व कुछ अनसुलझे सवालों के साथ दरगाह से बाहर आ गया. बसस्टैंड पर खड़े भुट्टे वाले से एक भुट्टा खरीदा. भुट्टे वाला बोला, ‘‘भाई, अगर भुट्टा मीठा हो तभी पैसे देना.’’ और वाकई भुट्टा बहुत ज्यादा मीठा और स्वादिष्ठ था, जिस की मैं ने वहीं उस से तारीफ भी की. मैं भुट्टा खाता हुआ 894 नं. की बस पकड़ कर अपने औफिस चला आया. मेरी नजर में हजरत ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया और अमीर खुसरो की मजार पर खिदमत करने के नाम पर जायरीन से झूठ बोलने, उन्हें लूटने और ठगने वाले लोगों से वह भुट्टे वाला कहीं ज्यादा ईमानदार व सच्चे दिल वाला था, जो अपनी बात पर खरा उतरा.

अरंडी की खेती

अरंडी को अंगरेजी में कैस्टर कहा जाता है, जबकि गांवदेहात के लोग इसे आम बोलचाल में अंडउआ कहते हैं. इस का पेड़ झाड़ीनुमा और पत्ते चौड़ी फांक वाले होते हैं. ये देखने में पपीते जैसे बड़ेबड़े होते हैं और इस के पेड़ सड़कों के किनारे या बेकार पड़ी जमीनों, गड्ढों वगैरह में देखे जा सकते हैं.

जानकारों का मानना है कि यह ऐसा पौधा है, जो बिना देखभाल किए खाली पड़ी जगहों पर अच्छाखासा पनप जाता है. अगर थोड़ी सी देखभाल कर के खेती की जाए तो यह खासी मुनाफे वाली फसल है.

अरंडी की मांग विकसित देशों में ज्यादा है. यह फसल तिलहनी फसल के तहत आती है. इस का तेल खाने के काम नहीं आता, लेकिन अनेक तरह की दवाओं, साबुन, कौस्मैटिक वगैरह में इस्तेमाल किया जाता है. इस के बीजों में 40 से 52 फीसदी तेल होता है और अरंडी की पैदावार में भारत पहले नंबर पर है, जो दुनियाभर की 90 फीसदी अरंडी की जरूरत को पूरा करता है.

अरंडी उगाने वाले खास राज्य गुजरात, राजस्थान और आंध्र प्रदेश हैं. इस के अलावा अरंडी की सीमित मात्रा में खेती करने वाले राज्यों में कर्नाटक, तमिलनाडु, ओडिशा, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश शामिल हैं.

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गुजरात और राजस्थान में इस की खेती सिंचाई पर आधारित है, जबकि बाकी राज्यों में बारिश आधारित परिस्थितियों में इस की खेती की जाती है. यह आमतौर पर गरम मौसम की फसल है. साफ आसमान वाले गरम इलाकों में अरंडी की फसल अच्छी होती है.

मिट्टी : अरंडी की खेती तकरीबन सभी तरह की मिट्टी में, जिस में पानी न ठहरता हो, की जा सकती है. पर यह आमतौर पर भारत में बलुई दोमट और उत्तरपश्चिम राज्यों की हलकी कछारी मिट्टी में इस की खेती अच्छी होती है.

बीज और बोआई : बीज बोने की तैयारी के लिए गरमी के मौसम या गैरमौसम में अच्छी तरह जुताई करनी चाहिए. इस की खेती ज्यादातर खरीफ मौसम में की जाती है. वैसे, इसे जूनजुलाई माह में बोते हैं और रबी मौसम में सिंचित हालात में सितंबर से अक्तूबर माह के आखिरी हफ्ते तक इस की बोआई की जा सकती है.

फसल तैयार होने की अवधि 120-240 दिन होती है. फसल बोने के लिए लाइन से लाइन की दूरी 90 सैंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 45 सैंटीमीटर रखी जाती है. इस के लिए प्रति हेक्टेयर 12 से 15 किलोग्राम बीज लगता है.

बीजों को हल के द्वारा या सीड ड्रिल की सहायता से भी बोया जा सकता है. बीजों को बोने की गहराई 7-8 सैंटीमीटर से अधिक नहीं रखनी चाहिए. बीज बोने से पहले 3 ग्राम थाइरम प्रति किलोग्राम बीजों की दर से उपचारित करना चाहिए. उपचारित करने से बीजजनित रोगों से नजात मिलती है.

खाद और उर्वरक : सामान्य तौर पर अरंडी की फसल में किसी खाद की खास जरूरत नहीं होती, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि उन्नत किस्मों के बीज इस्तेमाल करने और सही मात्रा में खाद देने पर उन से अच्छी उपज ली जा सकती है.

अनेक इलाकों के हिसाब से 40 से 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30-40 किलोग्राम फास्फोरस प्रति हेक्टेयर की जरूरत होती है. सिंचित इलाकों में नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फोरस की पूरी मात्रा बोआई के पहले ही मिला देनी चाहिए. नाइट्रोजन की बाकी बची आधी मात्रा को 2 महीने बाद सिंचाई के समय देना चाहिए और ऐसे इलाकों में, जहां फसल को सही मात्रा में पानी न मिल पाता हो, वहां नाइट्रोजन की पूरी मात्रा बोआई के समय ही कूंड़ों में डाल देनी चाहिए.

निराईगुड़ाई : अरंडी की खेती में खरपतवार ज्यादा फलताफूलता है. बीजाई के 25 दिन बाद ब्लैड हैरो से जुताई के समय या फिर 2-3 बार हाथ से खरपतवार को 15-20 दिन के अंतराल पर उखाड़ देना चाहिए, जिस से खरपतवारों को बढ़ने से रोका जा सके.

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सिंचाई : कई साल तक फसल लेने के लिए अरंडी की समय पर सिंचाई करना जरूरी है. लंबे समय तक सूखा रहने पर एक सिंचाई स्पाइक विकसित होने की शुरुआती अवस्था में करें और दूसरे स्पाइक के शुरुआत में या विकसित अवस्था में देने से फसल को काफी फायदा मिलता है. इस से अच्छी पैदावार होती है. रबी और गरमी में बीजारोपण के तुरंत बाद एक सिंचाई देने से एकसमान अंकुरण होता है. मिट्टी को ध्यान में रखते हुए और फसल के विकास के मुताबिक सिंचाई करनी चाहिए.

अरंडी में लगने वाले रोग : अच्छी पैदावार के लिए फसल में रोग की रोकथाम भी जरूरी है.

अंगमारी रोग : यह एक आम रोग है. आमतौर पर यह रोग पौधों में शुरुआती बढ़वार के समय लगता है. रोग के लक्षण बीज पत्र के दोनों सतहों पर गोल व धुंधले धब्बे के रूप में दिखाई देते हैं. अगर इसे रोका न गया तो यह रोग धीरेधीरे पत्तियों से तने और फिर पूरे पौधे को अपनी चपेट में ले लेता है. पत्तियां सड़ने लगती हैं और आखिर में पौधे सड़ कर गिर जाते हैं. इस की रोकथाम के लिए डाइथेन एम 45 के 0.25 फीसदी घोल का 1,000 लिटर पानी में मिला कर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 2-3 बार छिड़काव करना चाहिए.

पर्णचित्ती रोग : इस रोग में पहले पत्तियों पर छोटेछोटे धब्बे उभरते हैं, फिर ये बाद में भूरे रंग के बड़े धब्बों में बदल जाते हैं.

1 फीसदी बोर्डोएक्स मिक्स्चर या कौपर औक्सीक्लोराइड 2 फीसदी की दर से छिड़काव करने से इस रोग की रोकथाम की जा सकती है वहीं मैंकोजेब 2 ग्राम प्रति लिटर या कार्बंडाजिम 500 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 10-15 दिन के अंतर पर 2 छिड़काव करने से इस रोग को कम किया जा सकता है.

झुलसा रोग : सब से पहले यह रोग बीज पत्र पर धब्बों के रूप में दिखाई देता?है. पत्ते के किसी भी भाग में धब्बे दिखाई दे सकते हैं. जब हमला अधिक होता है तब धब्बे मिल कर एक बड़ा धब्बा सा बना देते हैं. इस की रोकथाम साफसुथरी खेती व प्रतिरोधी किस्मों के चयन द्वारा संभव है.

रोग के लगने की संभावना होने पर डाइथेन एम 45 या डाइथेन जेड 78 में से किसी एक फफूंदीनाशी की 1 किलोग्राम सक्रिय तत्त्व की मात्रा को 500-600 लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए. यदि रोग नियंत्रण में न हो तो 10-15 दिन के बाद दोबारा छिड़काव करना चाहिए.

अरंडी में लगने वाले कीट

सैमीलूपर : यह इस फसल को बहुत तेजी से नुकसान पहुंचाने वाला कीट है. इस की रेंगने वाली लट, जो 3-3.5 सैंटीमीटर लंबी होती है, फसल को खा कर कमजोर कर देती है. यह लट 11-12 दिनों तक पत्तियां खाने के बाद प्यूपा में बदल जाती है. बारिश के समय (अगस्त से सितंबर माह) में इस कीट का अत्यधिक प्रकोप होता है.

लट सामान्य रूप से कालेभूरे रंग के होते हैं. इन पर हरीभूरी या भूरीनारंगी धारियां भी होती हैं. ये गिडारों की तरह सीधा न चल कर रेंगती हुई चलती हैं. इस कीट की रोकथाम के लिए क्विनालफास 1 लिटर कीटनाशी दवा को 700-800 लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव किया जा सकता है.

तना छेदक कीट : इस कीट की इल्ली गहरे और भूरे रंग की होती है. यह प्रमुख रूप से अरंडी के तनों और डालयों को खा कर खोखला कर देती है. इस की गिडार 2-3 सैंटीमीटर तक लंबी और भूरे रंग की होती है. इस अवस्था में वह 12-14 दिन रहती है और खोखले तनों के अंदर घुस कर प्यूपा में बदल जाती है.

इस की रोकथाम के लिए सब से पहले रोगग्रस्त तनों और संपुटों को इकट्ठा कर जला देना चाहिए और क्विनालफास 25 ईसी की 1 लिटर दवा को 800 लिटर पानी में घोल कर छिड़काव कर देना चाहिए.

रोएं वाली इल्ली : खरीफ फसलों में रोएं वाली इल्ली इस फसल को अधिक नुकसान पहुंचाती है. इस कीट की साल में 3 पीढि़यां होती हैं. इस के गिडार पत्तियों को खाते हैं जो बाद में गिर जाते हैं. खेत में जैसे ही इस कीट के अंडे दिखाई दें, उन्हें पत्तियों समेत चुन कर जमीन में गाड़ देना चाहिए. बाकी कीड़ों की रोकथाम के लिए खेत में इमिडाक्लोप्रिड 1 मिलीलिटर को 1 लिटर पानी में घोल कर छिड़काव कर देना चाहिए.

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कटाई : अरंडी के 180-240 दिनों में 30 दिन के अंतर से 4-5 स्पाइक पैदा होते हैं. पहला स्पाइक (फलों का गुच्छा) बीजारोपण के 90 से 120 दिन में तैयार होता है. इस की फसल एकसाथ नहीं पकती. इन्हें 30 दिन के अंतर से तोड़ा जा सकता है.

अगर गुच्छे ज्यादा पक जाते हैं तो वे  फटने लगते हैं और बीज खेत में बिखर जाते हैं. अनेक किस्में ऐसी भी हैं जिन के गुच्छे फटते नहीं हैं. फलों के गुच्छों को काटने के साथ धूप में अच्छे से सुखाने के बाद उन्हें डंडों से पीट कर बीज अलग कर लिया जाता है. बीज निकालने के लिए यंत्र का भी इस्तेमाल किया जाता है. कैप्सूल को कई बार नालीदार बोर्ड पर रगड़ कर बीज बाहर निकाला जाता है जिस में काफी समय लगता है. साफ बीजों को जूट के थैलों में सामान्य परिस्थितियों में रखा जा सकता है.

उपज : बारिश आधारित फसल से 10-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और सिंचित इलाकों में 20-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से पैदावार मिलती है.

राज्य के हिसाब से किस्में और संकर

आंध्र प्रदेश : डीसीएस 107, 48-1 (ज्वाला), क्रांति, किरन, हरिता किस्में हैं और जीसीएच 4, डीसीएच 519, डीसीएच 177, पीसीएच 111 और पीसीएच 222 संकर प्रजातियों की सिफारिश की गई है.

गुजरात : 48-1, जीसी 3 किस्में हैं और संकर प्रजातियों में जीसीएच 4, जीसीएच 6, जीसीएच 7, डीसीएच 519 वगैरह की सिफारिश की गई है.

राजस्थान : डीसीएस 107, 48-1 किस्में हैं और संकर प्रजातियों में जीसीएच 4, डीसीएच 32, आरएचसी 1, डीसीएच 177, डीसीएच 519 वगैरह की सिफारिश की गई है.

तमिलनाडु : एसए 2, टीएमबी 5, टीएमबी 6, को 1, 48-1 किस्में हैं और संकर प्रजातियों में जीसीएच 4, डीसीएच 31, डीसीएच 177, डीसीएच 519, वाईआरसीएच 1 की सिफारिश की गई है.

अन्य : डीसीएस 107, 48-1 किस्में हैं और संकर प्रजातियों में जीसीएच 4, जीसीएच 5, जीसीएच 6, डीसीएच 177, डीसीएच 519 की सिफारिश की गई है.

अंत:फसल तकनीक

खरीफ मौसम में अरंडी को आमतौर पर एकल फसल या मिश्रित फसल के रूप में उगाया जाता है. इन से अधिक फायदा लेने के लिए अरंडी आधारित अंत:फसल इस तरह हैं: अरंडी और अरहर (1:1), अरंडी और लोबिया (1:2), अरंडी और उड़द (1:2), अरंडी और मूंग (1:2), अरंडी और ग्वार (1:1), अरंडी और मूंगफली (1:5), अरंडी और अदरक/हलदी (1:5) और अरंड और मिर्ची (1:8) के अनुसार बोआई करें.

 अरंडी फोड़ाई यंत्र

यह यंत्र हाथ से चलने वाला है. इस यंत्र से अरंडी की फली के अलावा मूंगफली के दाने भी अलग किए जाते हैं. इस में अरंडी व मूंगफली के लिए अलगअलग छलनियां लगी होती हैं. इस यंत्र की अनुमानित कीमत 2,500 से 3,000 रुपए तक है. इस यंत्र को केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, भोपाल द्वारा बनाया गया है.

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GARBA SPECIAL 2019: ऐसे बनाएं मखाना हलवा

त्योहारों का सीजन शुरू हो चुका है और ऐसे में हर घर में कोई न कोई खास मिठाई बनती ही है. तो आज हम आपको मखाना हलवा की रेसिपी बताने जा रहे हैं.  ये डिश टेस्टी के साथ साथ हेल्दी भी है.

सामग्री

बादाम 50 ग्राम

पिस्ता 25 ग्राम

मखाना 1 किलो

घी 400 ग्राम

पानी आधा लीटर

चीनी 200 ग्राम

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बनाने की वि​धि

सबसे पहले मखाने को ठंडे पानी में करीब 12 घंटे के लिए भिगोकर रखें. फिर इसे पानी से निकालकर इसका पेस्ट तैयार कर लें.

अब एक कढ़ाई में धीमी आंच पर घी गर्म करें और उसमें मखाने के पेस्ट को डालकर धीमी आंच पर पकाएं जब तक पेस्ट का रंग हल्का गुलाबी न हो जाए. अगर इसमें घी ज्यादा लग रहा हो तो उसे निकाल लें.

अब एक पैन में आधा लीटर पानी उबालें और उसमें चीनी डालकर चाशनी तैयार करें. फिर चाशनी को मखाने के पेस्ट में कढ़ाई में डाल दें.

अब हलवे को तब तक पकाएं जब तक वह गाढ़ा न हो जाए. मखाने का हलवा तैयार है. इसे बादाम और पिस्ते से सजाकर गर्मा गर्म सर्व करें.

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पत्नी से छुटकारा लेने के लिए अपराध का सहारा ?

महिला अधिकार के नाम पर परिवार को प्रभावित करने वाले ऐसे कानून बन गए हैं जिन से दांपत्य जीवन खतरे में पड़ गया है. ऐसे में तमाम लोगोें के लिए पत्नी से छुटकारा पाने के वास्ते तलाक लेना या उसे छोड़ देना व्यावहारिक नहीं रह गया है. अपराधी प्रवृत्ति के लोग अब हत्या जैसे आपराधिक काम करने लगे हैं.

सुल्तानपुर जिले के हलियापुर गांव की रहने वाली मधु तिवारी न शिव प्रसाद के साथ प्रेमविवाह किया था. समय के साथ शिव प्रसाद और मधु तिवारी के बीच संबंध मधुर नहीं रह गए. दोनों के बीच रोज ही कहासुनी होने लगी. यह बात शिव प्रसाद ने अपने दोस्तों सचिन और अरविंद को बताई.

सचिन और अरविंद के साथ मिल कर शिव प्रसाद ने बहुत विचार किया कि पत्नी मधु से वह कैसे छुटकारा पाए. तलाक लेने पर भी विचार किया. फिर यह समझ आया कि तलाक लेना सरल काम नहीं है. सालों कोर्ट में धक्के खाने होंगे. इस के बाद भी गुजारा भत्ता देना होगा. पत्नी को छोड़ कर भाग गए तो वह तमाम तरह के मुकदमे दायर कर देगी जिन में उन को जेल तक जाना पड़ सकता है. इस के अलावा, काफी पैसा भी खर्च होगा. तब, शिव प्रसाद ने सोचा कि पत्नी को तलाक देने और छोड़ देने से अच्छा है कि उस की हत्या कर दी जाए.

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पत्नी की हत्या का खयाल आते ही तीनों दोस्तों ने मिल कर मधु की हत्या की साजिश रची. शिव प्रसाद पत्नी मधु को प्लौट दिखाने के बहाने रायबरेली जिले के लालगंज स्थित रेल कारखाना के पास ले गया. वहां उस के दोनों साथी भी आ गए. तीनों ने मिल कर मधु का गला दबा दिया. गला दबाने के बाद भी जब वह नहीं मरी तो गला काट कर उस की हत्या कर दी. इस के बाद वहां झाडियों में शव छिपा कर तीनों भाग गए.

2 दिनों बाद ये लोग वहां वापस गए और शव की पहचान खत्म करने के लिए शव का सिर काट कर धड़ से अलग कर दिया. सिर को बोरे में भर कर नाले में फेंक दिया और धड़ को एक गड्ढा खोद दफन कर दिया. घटना के 5 माह के बाद तीनों दोस्त पुलिस के हाथ आए तो मधु के साथ किए गए अपराध का खुलासा हुआ.

ऐसी घटनाएं समाचारपत्रों में अकसर पढ़ने को मिलती हैं. ऐसी घटनाओं की वजहें महिला कानून हैं. इन कानूनों का सहारा ले कर महिलाएं अब पुरुषों का उत्पीड़न करने लगी हैं. लखनऊ में रहने वाले प्रभाकर की शादी प्रीति के साथ हुई थी. शादी के 4 दिनों बाद चौथी की विदाई में प्रीति अपने मायके गई और कुछ दिनों बाद हनीमून पर जाने के लिए ससुराल वापस आई. हनीमून से वापस आने के बाद वह अपने मायके चली गई. पति प्रभाकर जब विदाई के लिए गया तो उस ने ससुराल जाने से इनकार कर दिया. आपस में झगडे़ शुरू हो गए.

पुलिसथाने तक मामला गया. प्रभाकर पर घरेलू हिंसा का केस दर्ज हो गया. परामर्श केंद्र में सुलहसमझौता हुआ. इस के बाद भी पतिपत्नी के बीच संबंध सामान्य नहीं हो सके. 6 माह भी नहीं बीते कि प्रीति ने धारा 498 ए के साथसाथ रेप और अप्राकृतिक सैक्स का आरोप लगाते हुए पति के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया. पुलिस प्रभाकर को पूछताछ के लिए थाने बुलाने लगी. प्रभाकर मानसिक रूप से परेशान रहने लगा. वह बेरोजगार हो गया.

पुलिस और कचहरी के बीच भागदौड़ में उस की प्राइवेट जौब छूट गई. जो पैसा था वह भी खर्च हो गया. पत्नी प्रीति अपने वकीलों के जरिए समझौते के लिए 25 लाख रुपए की मांग करने लगी. प्रभाकर के पास पैसे नहीं थे. वह पुलिस के पास गया. वहां पर फाइनल रिपोर्ट लगाने के नाम पर 2 लाख रुपए की मांग की गई. अब कचहरी में प्रभाकर को अपने वकील को देने के लिए अलग से पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं.

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हालात ऐसे हो गए हैं कि प्रभाकर न तो पत्नी को साथ रख पा रहा है और न उसे तलाक मिल पा रहा है. दहेज कानून के चक्कर में वह उत्पीडि़त अलग हो रहा है. वह कहता है, ‘‘शादी करना मेरे लिए जहर बन गया है. मुझे समझ नहीं आता क्या करूं?’’ प्रभाकर जैसे लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है, ऐसे में विवाह संस्था से लोगों का भरोसा उठ रहा है.

सरल हो कानून 

जिस तरह से सरकार ने मुसलिम महिलाओं के हितों के लिए तीन तलाक कानून बनाया है, उसी तरह जरूरत है कि हिंदू विवाह कानून में अलगाव को सरल किया जाए और इस में कानून का बेजा इस्तेमाल न हो, यह भी तय किया जाए. लगातार इस बात की जरूरत महसूस की जा रही है कि दहेज कानून और हिंदू तलाक कानून को सरल किया जाए. सरकार और कोर्ट इस के बाद भी कानून को सरल करने के बजाय उसे और कठिन बनाती जा रही हैं, इस से लोगों में एक रोष फैल रहा है.

दहेज प्रताड़ना कानून में सुप्रीम कोर्ट के नए फैसले से परिवारों में रोष फैल रहा है. सब से बड़ा रोष इस बात को ले कर है कि अब दहेज प्रताड़ना केस में पुलिस की भूमिका पहले के मुकाबले अधिक मनमाना काम करेगी. इस से भ्रष्टाचार को भी बढ़ावा मिलेगा. पति परिवार कल्याण समिति नाम से संस्था चलाने वाली इंदू सुभाष कहती हैं, ‘‘दहेज प्रताड़ना कानून के दुरुपयोग की बात को हर कोई मान रहा है. ज्यादातर मामलों में लड़की केवल पति ही नहीं, बल्कि पूरे परिवार को फंसाना चाहती है. यह एक तरह का कानूनी आतंकवाद माना जा सकता है. यह विवाह संस्था को तोड़ने वाला काम साबित हो सकता है.’’

दहेज कानून में दर्ज मुकदमों की विवेचना से पता चलता है कि सालदरसाल मुकदमों के दुरुपयोग के मामले बढ़ते जा रहे हैं. ऐसे में नए बदलाव से पति परिवार पर पुलिस की प्रताड़ना भी बढ़ सकती है. साल 2003 में दिल्ली हाईकोर्ट के उस समय के जस्टिस जे डी कपूर ने दहेज प्रताड़ना कानून में बढ़ रही ऐसी प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त की थी. जस्टिस कपूर ने कहा था, ‘रिश्तेदारों और पति परिवार के सदस्यों को बेवजह परेशान किए जाने से शादी की बुनियाद हिल रही है. यह समाज और परिवार दोनों के हित में नहीं है.’ जस्टिस कैलाश गंभीर ने तो कहा कि दहेज प्रताड़ना के मामले में पुलिस लापरवाही में केस नहीं लिखेगी. पहले उसे किसी डीएसपी स्तर के अधिकारी द्वारा विवेचना किए जाने के बाद लिखा जाएगा.

दहेज के मुकदमे लगातार बढ़ते जा रहे हैं. साल 2004 में 58 हजार के करीब मुकदमे दर्ज हुए थे. 2015 में यह संख्या बढ़ कर 1 लाख 13 हजार के ऊपर पहुंच गईर्. ऐसे में यह समझा जा सकता है कि दहेज के मुकदमों से लोग कितना परेशान होते हैं. दहेज के मुकदमों में राहत हाईकोर्ट से ही मिलती है. हाईकोर्ट में मुकदमे को लड़ने के लिए खर्च का दबाव अलग होता है. साधारण परिवार ऐसे मुकदमों में आर्थिक और मानसिक रूप से टूट जाते हैं.

दहेज प्रताड़ना कानून पर सवाल

2014 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि 7 साल तक की सजा वाले मामले में बिना समुचित आधार के गिरफ्तारी नहीं होगी. पुलिस केवल मुकदमा दर्ज होने पर ही गिरफ्तारी नहीं करेगी. इस में दहेज प्रताड़ना कानून भी शामिल था. कोर्ट ने कहा था कि दहेज प्रताड़ना मामले में अगर पुलिस बिना पर्याप्त आधार के गिरफ्तारी करेगी तो पुलिस के खिलाफ भी कार्यवाही हो सकती है. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सी के प्रसाद और पी सी घोष ने कहा था कि किसी की गिरफ्तारी सिर्फ इसलिए नहीं हो सकती कि मामला गैर जमानती और संज्ञेय है और पुलिस को ऐसा करने का अधिकार है.

27 जुलाई, 2017 को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ए के गोयल, और जस्टिस यू यू ललित ने राजेश शर्मा बनाम स्टेट औफ यूपी के केस में दहेज प्रताड़ना मामले में छानबीन को ले कर गाइडलाइंस जारी कीं. इस में कहा गया कि देशभर में परिवार कल्याण समितियां बनाई जाएं.

जिला लीगल अथौरिटी को ऐसी कमेटी बनाने को कहा गया. इस में सिविल सोसाइटी के लोगों को भी शामिल किया गया. इस में कहा गया कि अगर दहेज प्रताड़ना की शिकायत पुलिस और मजिस्ट्रेट के पास आती है तो वे मामले को कमेटी के पास भेजेंगे. कमेटी दोनों पक्षों को सुनेगी. शिकायत के आधार को देखेगी. कमेटी पहले मामले को सुलझाने का प्रयासकरेगी. जब मामला नहीं बनेगा तो वह अपनी रिपोर्ट पुलिस या मजिस्टे्रट को देगी. इस के बाद ही आगे की कार्यवाही होगी. जब तक रिपोर्ट नहीं आएगी तब तक गिरफ्तारी नहीं होगी.

बढ़ गया पुलिस का दखल

सितंबर 2018 में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई वाली बैंच ने परिवार कल्याण कमेटी और गिरफ्तारी पर रोक के प्रावधान को खत्म कर दिया. इस फैसले में कहा गया कि परिवार कल्याण कमेटी सीआरपीसी के प्रावधानों के अनुरूप नहीं है. अब 7 साल से कम की सजा के मामले में गिरफ्तारी के कारण बताने होंगे. पुलिस को संदेह हो कि क्राइम हुआ है और मामले की छानबीन जरूरी है तो वह वैसा कर सकती है. लेकिन, पुलिस को धारा 41 और 41ए का ध्यान रखना होगा. यानी 7 साल से कम की सजा के मामले में मैकेनिकल तरह से गिरफ्तारी न हो, बल्कि आरोपों के आधार पर देख कर संतुष्ट होने के बाद गिरफ्तारी हो. इस में पुलिस आरोपी को नोटिस देगी. अगर नोटिस पर अमल हो रहा है तो आरोपी को पुलिस गिरफ्तार नहीं करेगी. अगर नोटिस का जवाब नहीं दिया जा रहा है तो गिरफ्तारी हो सकती है.

सुप्रीम कोर्ट ने परिवार कल्याण कमेटी को कानून के तहत नहीं माना है. वह समझौते के आधार पर केस को खत्म नहीं करा सकती. कानून की यह सही व्याख्या नहीं है. अगर बिना समझौते वाले केस में ऐसा होता भी है तो हाईकोर्ट केस को खत्म कर सकता है. परिवार कल्याण कमेटी के खारिज होने के बाद दहेज प्रताड़ना कानून के मामले में पुलिस का दखल बढ़ गया है. ऐसे में पुलिस उत्पीड़न और भ्रष्टाचार दोनों के बढ़ने की आशंका प्रबल हो जाती है. इस फैसले के बाद दहेज प्रताड़ना कानून 2017 के पहले की तरह का हो गया है.

27 जुलाई, 2017 के पहले दहेज प्रताड़ना कानून में जो प्रक्रिया अपनाई जाती थी वही अब अपनाई जाएगी. दहेज प्रताड़ना कानून गैरजमानती और गैरसमझौतावादी है. धारा 498 में अग्रिम जमानत का प्रावधान है. ऐसे में आरोपी को जमानत मिल सकती है. अब मामले परिवार कल्याण कमेटी के पास नहीं भेजे जाएंगे, बल्कि पुलिस के अफसरों के संज्ञान में आने के बाद मामला दर्ज हो जाएगा.

महिला मुद्दों की जानकार अधिवक्ता शिवा पांडेय कहती हैं, ‘‘दहेज प्रताड़ना कानून में पुलिस का खतरा सब से अधिक होता है. मामले में पुलिस का हस्तक्षेप बढ़ने से समाज में परिवार की प्रतिष्ठा धूमिल होती है. पति के साथ उस के परिवार को भी प्रताडि़त किए जाने के लिए मुकदमा लिखा दिया जाता है. पुलिस बारबार परिवार को थाने बुलाती है. सब से अधिक परेशानी तब होती है जब परिवार की लड़कियों और महिलाओं को थाने जाना पड़ता है.

पुलिस का रवैया हमेशा ही खराब होता है. ऐसे में लोगों को अपने उत्पीड़न के बढ़ जाने का खतरा सता रहा है. पुलिस अपनी सफाई में कहती है कि महिलाओं को कानून का अधिकार मिला है, ऐसे में हमें मुकदमा तो लिखना ही पडे़गा.’’

498ए के तहत पुलिस पति परिवार को बेवजह ही परेशान करती है. इस से समाज में बिखराव बढे़गा. ऐसे मामलों में जरूरी है कि पहले मामले के सच होने को परखा जाए, जिस से यह तय हो सके कि आरोपी को जेल भेजा जाए या जमानत दी जाए. हालांकि, कोर्ट भी यह देखता है कि धारा  498ए के तहत होने वाली गिरफ्तारी झूठ तो नहीं है. अगर ऐसा होता है तो संसद इस से बचाव के कानून बनाए. ऐसी स्थिति में बेवजह पतियों को फंसाने वाले मामलों में शिकायत वाली कोर्ट को ही जमानत देने का अधिकार हो जिस से उसे ऊपरी कोर्ट में न जाना पडे़.

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कुछ मामलों में कोर्ट ने कहा है कि संज्ञेय मामलों में पुलिस मामला पता करने के बाद ही दर्ज करे. शुरुआती जांच को जरूरी बताया गया. कोर्ट ने कहा है कि जब शिकायत वैवाहिक विवाद की हो, लेनदेन की हो, मैडिकल लापरवाही की हो तो पुलिस शिकायत मिलते ही जांच शुरू कर सकती है. उसे जांच में यह पता लगाना है कि संज्ञेय अपराध हुआ है या नहीं. अपराध संज्ञेय है, तो मुकदमा दर्ज किया जा सकता है.

कोर्ट ने गिरफ्तारी के मामले में कहा है कि पुलिस की ड्यूटी है कि वह आरोपी को वकील से मिलने दे. अरैस्ट मैमो में आरोपी के रिश्तेदार या दोस्त के हस्ताक्षर लेना जरूरी है. उस को पूरी जानकारी देनी पडे़गी. आरोपी का मैडिकल कराना होगा. अगर वह कस्टडी में है तो हर 48 घंटे के बाद मैडिकल जरूरी है. जघन्य अपराध को छोड़ कर पुलिस रूटीन गिरफ्तारी नहीं कर सकती. आरोपी के भागने की स्थिति अगर बनती है या बनने वाली है, तो ही गिरफ्तारी हो सकती है. अगर कोर्ट को यह लगता है कि आरोपी कानून का आदर कर रहा है तो उस को गिरफ्तार न किया जाए.

अधिवक्ता शिवा पांडेय कहती हैं, ‘‘दहेज प्रताड़ना कानून में पुलिस को अब बहुत सारे अधिकार मिल गए हैं. पुलिस की दी गई जानकारी पर ही कोर्ट आरोपी के आरोप को सही या गलत मानेगी. ऐसे में पुलिस की मनमानी बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है. आरोपी की गिरफ्तारी पुलिस की विवेचना और उस के विवेक पर बढ़ गई है. पुलिस के काम करने का तरीका हर कोई जानता है. ऐसे में कहीं न कहीं यह कानून पति परिवार के पुलिस के शिकंजे में फंसने की वजह बन जाएगा. पुलिस के पास पहले से बहुत सारे मामले होते हैं. ऐसे में यह बढ़ने से उस का बोझ बढ़ जएगा. इस से मामले की जांच में भी समय लगेगा.’’

वे आगे कहती हैं, ‘‘जरूरत इस बात की है कि कानून की जटिलताएं खत्म की जाएं. शिकायत पर जांच हो और दोषी को सजा मिले पर निर्दोष को केवल झूठी शिकायत पर फंसाया न जाए. कोर्ट में तलाक कानून भी सरल किया जाए जिस से कम समय में ही जो लोग साथ न रहना चाहते हों, वे अलग हो सकें. तलाक के मुकदमों का जल्दी निबटारा न होने से घरेलू हिंसा और दहेजके मुकदमे तो ज्यादा लिखे ही जा रहे हैं, आपस में मारपीट, हिंसा की घटनाएं भी बढ़ रही हैं.

‘‘फैमिली कोर्ट में तलाक के लिए आने वाले मुकदमों को लटकाने की कोशिश लोगों के मन में शादी के प्रति विरक्ति की भावना को पैदा कर रही है. अगर कानून और समाज ने इस का हल नहीं निकाला, तो आने वाले दिनों में हालात और भी गंभीर  होते जाएंगे.’’

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