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जानिए, क्यों जरूरी है विटामिन ?

सेहत की बात हो और विटामिन का जिक्र न हो ऐसा हो ही नहीं सकता. क्योंकि ये माइक्रो न्यूट्रीऐंट्स के रूप में जाने जाते हैं और इन की कमी से हम बीमारियों की गिरफ्त में आ जाते हैं. जिस के लिए जरूरत है हमें अपने खानपान में इन विटामिन्स को शामिल करने की.

विटामिन क्या है

विटामिन भोजन के वे अवयव होते हैं, जिन की सभी जीवों को थोड़ी मात्रा में आवश्यकता होती है. ये कार्बनिक यौगिक होते हैं. उस यौगिक को विटामिन कहा जाता है, जो शरीर द्वारा पर्याप्त मात्रा में स्वयं उत्पन्न नहीं किया जाता बल्कि खाने के माध्यम से उन विटामिन्स की प्राप्ति की जाती है.

विटामिन्स की कैटेगिरी

इसे 2 वर्गों में विभाजित किया गया है, जो इस प्रकार है :

वाटर सौलूबल– ये वो विटामिन्स होते हैं, जो पानी में घुल जाते हैं और शरीर में स्टोर नहीं रहते. इस के अंतर्गत विटामिन सी, विटामिन बी 7, विटामिन बी9, बी 3, बी 5, बी 2, बी1, बी6, बी12 आते हैं.

कार्य– ये ऊर्जा उत्पन्न करने के साथ प्रोटीन व कोशिकाओं को बनाने व कोलाजन के निर्माण में सहायक है.

फैट सौलूबल– ये वो विटामिंस होते हैं, जो शरीर के फैट में घुल जाते हैं और शरीर के फैट टिशूज में स्टोर रहते हैं. जैसे विटामिन ए,डी,ई,के.

कार्य– हड्डियों को मजबूती प्रदान करने के साथ, सैल्स को हैल्दी रख आंखों की रोशनी को बचाए रखने का काम करते हैं.

जानें 13 विटामिन्स के बारे में

  1. विटामिन ए(रैटिनौल)

कार्य– यह विटामिन दांतों, हड्डियों और स्किन को हैल्दी बनाने में मदद करता है.

कमी– इस की कमी से नाइट ब्लाइंडनेस  और केरातो मलैया  हो जाता है.

स्रोत- मीट, अंडे, चीज, क्रीम, फल, सब्जियों आदि .

2. विटामिन सी ( ऐस्कोबिक एसिड)

कार्य– इस में ऐंटी औक्सीडैंट गुण होने के कारण यह दांतों को हैल्दी रखने का काम करता है. ये शरीर में आयरन को अवशोषित करने में मदद करने के साथ हैल्दी ऊतकों को बनाए रखने का काम करता है.

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कमी- इस की कमी से  स्कर्वी  बीमारी हो जाती है.

स्रोत- पालक, पत्ता गोभी, टमाटर, शिमला मिर्च, आलू आदि

3. विटामिन बी 6- (pyridoxine )

कार्य- यह लाल रक्त कोशिकाओं को बनाने के साथ ब्रेन फंक्शन को मैंटेन रखने का काम करता है.

कमी- इस की कमी से नर्व डैमेज हो जाते हैं.

स्रोत- फिश, ब्रैड, अंडे, सब्जियां, सोयाबीन, आलू आदि.

4. विटामिन बी12 (कयनोसोबलमीन )

कार्य– यह मैटाबोलिज्म के लिए जरूरी होने के साथ रैड ब्लड सैल्स को बनाने के साथ सैंट्रल नर्वस सिस्टम को मैंटेन रखने का काम करता है.

कमी-  इस की कमी से मेगालोब्लास्टिक ऐनिमिया हो जाता है.

स्रोत– अंडे, मछली, लो कैट मिल्क, दही, चीज.

5. विटामिन डी (cholecalciferol )

कार्य–  यह विटामिन शरीर में कैल्शियम को अवशोषित करने का काम करता है. यह कैल्शियम और फास्फोरस के उचित रक्त स्तर को बनाए रखने में भी मदद करता है.

कमी– इस की कमी से  रिकेट्स  और osteomalacia  हो जाता है.

स्रोत– अंडे का पीला भाग, संतरा, सोया मिल्क, चीज, डेयरी प्रोडक्ट्ïस आदि .

6. विटामिन ई(तोसोफेरोल्स )

कार्य- यह शरीर के लिए लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण में मदद करता है.

कमी- इस की कमी से नवजात शिशु में हेमोलाइटिक ऐनिमिया हो जाता है.

स्रोत- कीवी, ऐपोकेडा, अंडा, दूध, नट्स, सब्जियां आदि.

7. विटामिन बी 7(बायोटिन )

कार्य-  यह प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट के चयापचय  के लिए जरूरी है. साथ ही हारमोन और कौलेस्ट्रोल के उत्पादन के लिए भी आवश्यक है.

कमी- इस की कमी से डर्मेटाइटिस  और intestine  में जलन की शिकायत होती है.

8. विटामिन बी3 (nicalin )

कार्य– यह त्वचा को स्वस्थ रखने और नसों को सुचारु रूप से काम करने में मदद करता है.

कमी- इस की कमी से पेलाग्रा  होता है.

स्रोत- फिश, टमाटर, डेट्ïस, दूध, अंडे, ऐवोकेडा, गाजर, ब्रोकली, नट्ïस.

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9. विटामिन बी 9 (फोलिक एसिड )

कार्य– यह विटामिन बी12 के साथ कार्य कर के लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण में सहायक है. यह डीएनए के उत्पादन के लिए आवश्यक है, जो ऊतक विकास और सैल्स फंक्शन को नियंत्रित करता है.

कमी– इस की कमी से बच्चे में  डिफेक्ट्स  हो सकता है इसलिए प्रैग्नैंसी से कुछ महीने पहले इसे लेने की सलाह दी जाती है.

स्रोत- हरी सब्जियां, दालें, अंडे, ब्रोकली.

10. विटामिन बी5(पैंटोथेनिक एसिड)

कार्य– यह मैटाबोलिज्म के लिए जरूरी होने के साथ यह हार्मोन और कोलेस्ट्रोल के उत्पादन में भी अहम भूमिका निभाता है.

कमी- इस की कमी से चक्कर आना, डिप्रैशन, पेट में दर्द की समस्या होती है.

स्रोत- ऐवोकेडा, आलू, ब्रोकली, ओट्ïस, ब्राउन राइस.

11. विटामिन बी2 (रिबौफ्लेविन)

कार्य– यह अन्य विटामिन बी के साथ मिल कर काम करता है. ये शरीर के विकास और लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन में सहायक है.

कमी- इस की कमी से ariboflavinosis  हो जाता है.

स्रोत- केला, दही, मीट, अंडे, मछली, बीन्स, दूध आदि

12. विटामिन बी1 (thiamine)

कार्य- यह विटामिन शरीर की कोशिकाओं को कार्बोहाइड्रेट को ऊर्जा में बदलने में मदद करता है.

कमी– इस की कमी से बेरीबेरी हो जाता है।

स्रोत- ब्लैक वीन्स, मैक्रोनी, ब्रैड,बारले , ब्राउन राइस, कौर्न, और मील.

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13. विटामिन के (phylloquinone )

कार्य– यह विटामिन हृदय की रक्षा करने, हड्ïिडयों के निर्माण व इंसुलिन के स्तर को अनुकूलित करने में मदद करता है.

कमी– ब्लीडिंग दिएथेसिस होता है.

स्रोत– ऐवोकेडा, कीवी, हरी पत्तेदार सब्जियां.

टीजर आने के साथ ‘‘लाल कप्तान’’ ने रचा इतिहास

‘इरोज इंटरनेशनल’और आनंद एल राय की कंपनी ‘येलो प्रोडक्शन’ की निर्माणाधीन फिल्म ‘लाल कप्तान‘ ने आईएमडीबी पर सबसे अधिक प्रत्याशित भारतीय फिल्मों और शो की लिस्ट में नंबर एक पर अपनी जगह बनाई है. भारत में ग्लोबल मूवीज और टीवी ट्रेंडिंग के कैटेगरी में सैफ अली खान की इस फिल्म को दुनिया भर में तीसरे स्थान पर रखा गया है.

फिल्म ‘लाल कप्तान‘ अपने फर्स्ट लुक  के रिलीज होने के बाद से ही सुर्खियों में बनी हुई है. हाल में ही इस फिल्म का टीजर रिलीज किया गया. इसके कुछ मिनटों के भीतर ही यह इंटरनेट पर ट्रेंड करने लगा. और दुनिया भर में इसकी चर्चा हुई. सैफ अली खान इस फिल्म में एक नागा साधु का किरदार निभा रहे हैं और उनके इस अवतार को देखकर दर्शक दंग रह गए हैं.

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लगभग एक मिनट के टीजर में सैफ ‘हर राम का अपना रावण, हर राम का अपना दशहरा जैसा दमदार डायलौग बोलते हुए नजर आए, जिसने दर्शकों के बीच इस फिल्म को लेकर जिज्ञासा और भी बढ़ा दी. फिल्म के टीजर को मिले शानदार रिस्पौन्स को देखते हुए, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि इसे आईएमडीबी पर नंबर 1 प्रत्याशित भारतीय फिल्म और वैश्विक स्तर पर तीसरा स्थान मिला है.

ऐसी उम्मीद की जा रही है कि सैफ अली खान स्टारर ‘लाल कप्तान‘ दशहरा पर रिलीज होगी. इंडियन फिल्म इंडस्ट्री के सबसे बड़े बैनर्स, इरोज इंटरनेशनल और कलर येलो प्रोडक्शंस ने ‘एनएच 10‘ फेम नवदीप सिंह द्वारा निर्देशित ये एपिक एक्शन-ड्रामा एक साथ लाया है.फिल्म का मुख्य विषय प्रतिशोध और छल के इर्द-गिर्द घूमता  है.

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‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’: कार्तिक को तलाक देगी वेदिका!

स्टार प्लश पर प्रसारित होने वाला शो ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’  में लगातार आपको धमाकेदार ट्विस्ट देखने को मिल रहे हैं. फिलहाल इस सीरियल की कहानी  नायरा, कार्तिक, वेदिका  के इर्द गिर्द ही घूम रही है. आप इस शो में इन दिनों काफी दिलचस्प सीन देख रहे होंगे. और इस शो की टिआरपी भी काफी अच्छी चल रही है.

इस सीरियल में कार्तिक, नायरा और वेदिका के बीच का लव ट्राएंगल दिखाया जा रहा है. कार्तिक की लाइफ में नायरा की दोबारा एंट्री हो चुकी है. स्टोरी का ये प्लौट दर्शकों को काफी पसंद आ रहा है. इस शो के अपकमिंग एपिसोड में ये दिखाया जाएगा कि नायरा की गोयनका हाउस में एंट्री से नाराज वेदिका कार्तिक को तलाक देने का  फैसला लेगी. इसके अलावा वेदिका गोयनका हाउस भी छोड़कर चली जाएगी.

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दरअसल, आपने  तीज के मौके पर देखा होगा कि कार्तिक, नायरा को पानी पिलाकर उनका व्रत खोलता है, जिसे वेदिका देख लेती है. नायरा और कार्तिक को एक साथ देखकर वेदिका को एहसास होता है कि इन दोनों को कोई भी अलग नहीं कर सकता. इसलिए वेदिका कार्तिक को तलाक देकर उन दोनों की जिंदगी से दूर जाने का फैसला करती है.

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इस शो में वेदिका के जाने के बाद कार्तिक और नायरा को दोबारा एक साथ देखना काफी दिलचस्प होगा. इस शो के फैंस भी काफी समय से कार्तिक और नायरा के मिलने का इंतजार कर रहे हैं. इन दोनों के बीच की केमिस्ट्री और बौन्डिंग फैन्स को काफी पसंद आती है. और टीआरपी के मामले में भी ये शो अपनी जगह बनाए हुए है.

लौंग डिस्टेंस रिलेशनशिप को कैसे बनाएं स्ट्रौंग

हर रिलेशनशिप को कभी न कभी किसी न किसी तरह लौंग डिस्टेंस में आना ही पड़ता है, कभी काम के सिलसिले में तो कभी पारिवारिक मसलों के चलते. यह डिस्टेंस कभी कभार कुछ हफ़्तों का होता है तो कभी महीनों और सालों का. लेकिन, परेशानी तब महसूस होती है जब पार्टनर्स इस डिस्टेंस के कारण अपनी रिलेशनशिप हैंडल नहीं कर पाते और उन्हें अपने रिलेशनशिप को खत्म करने की ज़रुरत महसूस होने लगती है. कई बार तो होता यह है कि 2 -3 साल की रिलेशनशिप भी 2 महीनों की दूरी से कमजोर पड़ जाती है. ऐसे में कपल्स को अपने लोंग डिस्टेंस रिलेशनशिप को बनाए रखने के लिए कुछ एफर्ट्स करने ही पड़ते हैं. बिना एफर्ट्स कोई भी लोंग डिस्टेंस रिलेशनशिप कारगर नहीं हो सकती.

रिया और विनय पिछले 16 महीनों से रिलेशनशिप में थे. वे दोनों एक ही कालेज में पढ़ते थे जहां रिया विनय की जूनियर थी और विनय उस का सीनियर. विनय दिल्ली में पीजी था और ग्रेजुएशन खत्म करने के बाद उसे वापस अपने घर आजमगढ़ लौटना था. रिया और विनय ने फैसला किया कि अब वे दोनों लोंग डिस्टेंस रिलेशनशिप में रहेंगे और जबतब विनय दिल्ली आया करेगा वे मिलेंगे.

विनय वापस अपने घर गया तो अपने घरवालों के बीच अपनी पढ़ाई में काफी व्यस्त रहने लगा. यहां दिल्ली में रिया का थर्ड ईयर चल रहा था. जब भी वह बाकी कपल्स को देखती तो विनय को याद करने लगती. रिया विनय को मैसेज करती तो उस का रिप्लाई कभी समय पर नहीं आता. कभी कभी तो विनय दो तीन दिन लगाकर रिप्लाई करता. विनय ने रिया को साफ़ बता दिया था कि उस के पापा बहुत स्ट्रिक्ट हैं और इसलिए उसे दिन भर अपने कौम्पिटिटिव एग्जाम  के लिए पढ़ाई करनी पड़ती है जिस कारण वह फोन को हाथ तक नहीं लगा सकता. विनय कभी रिया को कौल तक नहीं करता. इतना सब तो रिया सह लेती लेकिन जब वह विनय को फेसबुक या इंस्टाग्राम पर एक्टिव देखती तो उस का खून खौल उठता.

रिया ने विनय से इन हरकतों का कारण पूछा तो विनय कहने लगा कि पापा हर समय घर ही होते हैं तो उन के सामने फेसबुक चला सकते हैं लेकिन गर्लफ्रेंड से बात नहीं कर सकते. विनय की रिया के प्रति इस उदासीनता ने रिया को यह रिलेशनशिप खत्म करने पर मजबूर कर दिया. उस ने विनय से ब्रेकअप कर लिया जिस का सब से बढ़ा कारण विनय का बदला हुआ व्यवहार और रिया के प्रति किसी भी तरह की जिम्मेदारी और एफर्ट का न होना था.

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लोंग डिस्टेंस रिलेशनशिप में सब से महत्वपूर्ण है अपने पार्टनर को अनचाहा महसूस न कराना. माना आप दोनों साथ नहीं लेकिन इस का मतलब यह नहीं कि आप दूर होने की तकलीफ को भरने की जगह उसे बढ़ाते जाएं. निम्नलिखित कुछ ऐसे सुझाव हैं जिन के माध्यम से आप अपने लोंग डिस्टेंस रिलेशनशिप को बनाए रख सकते हैं.

कम्यूनिकेट करते रहें

रिलेशनशिप्स में कम्युनिकेशन बहुत महत्वपूर्ण है. आप के पार्टनर का दिन कैसा गया, उसे किसी बात का गम तो नहीं, उसे आज क्या क्या काम करने पड़े, दोस्तों के साथ कहां घूमे फिरे, कल क्या करने का प्लान है इत्यादि पूछना और बताना बहुत जरूरी है. यदि आप बात नहीं करेंगे तो आप दोनों के बीच की दूरियां गहराती जाएंगी, हां, इस बात का ध्यान रखें कि हर वक़्त सिर्फ बात ही न करते रहें, प्रेजेंट मोमेंट में जिएं. ऐसा न हो कि एकदूसरे से बात करने के चक्कर में आप अपने बगल में बैठे व्यक्ति को इग्नोर करते रहें.

पर्सनल स्पेस दें और सपोर्ट करें

एक दूसरे के पर्सनल स्पेस का ख्याल रखें और यदि वह कुछ नया करता है तो उसे सपोर्ट करें. ऐसा न हो कि आप का पार्टनर कुछ समय अकेला रहना चाहता है और आप उसे खुद से बातें करने के लिए कहते रहें. आप का पार्टनर यदि अपने लिए कोई नयी क्लास ज्वाइन करता है या कोई कार्य करता है तो उस में उसे सपोर्ट करें फिर चाहे आप को उन कार्यों में इंटरेस्ट न भी हो.

एकदूसरे को अपडेटेड रखें

लोंग डिस्टेंस रिलेशनशिप में पार्टनर्स का एकदूसरे के क्रियाकलापों के बारे में अपडेटेड रहना बहुत जरूरी है. आप ने नया टैटू बनवाया है, शौपिंग कर के आए हैं, औफिस, कालेज या घर में कुछ नया हो रहा है, आप ने कुछ अलग करना शुरू किया है या किसी नए व्यक्ति से मिले हैं, इन सब की  जानकारी अपने पार्टनर को देते रहें. इस से आप दोनों को लगेगा कि आप अब भी एकदूसरे के पास हैं और किसी बात से अनजान नहीं हैं.

सिर्फ चैटिंग ही करें

केवल चैटिंग करने से आप एकदूसरे के इमोशंस को अच्छी तरह नहीं समझ सकते. चैटिंग के अलावा वीडियो कौल, फोन कौल भी करें. जितना पौसिबल हो एकदूसरे से मिलते रहें. अगर महीनों तक नहीं मिल पाते तो कोई बात नहीं कम से कम हर दूसरे दिन कौल पर बात करते रहें. वीडियो कौल पर एकदूसरे के लिए गाने गाएं, ढेर सारी बातें करें और एक दूसरे को ऐसा फील कराएं जैसे आप दोनों पास हैं. अपने फेवरेट सोंग्स एकदसरे से शेयर करें, फिल्में देखें और उन पर चर्चा करें. सोशल मीडिया पर नया क्या हो रहा है इस बारे में बातचीत करें. रोमांटिक के साथ साथ फनी और सरकास्टिक चीज़ें भी शेयर करें.

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छोटीछोटी बातों को अंडररेस्टीमेट करें

रिलेशनशिप में छोटीछोटी बातों की बहुत बड़ी वैल्यू होती है. आप दोनों एक दूसरे से दूर भले हों लेकिन एकदूसरे को छोटीछोटी चीज़ों से खुश जरूर कर सकते हैं. आई लव यू जब तब कहते रहें, पार्टनर को कौम्पलिमेंट करें, तारीफ करें, कोई बात अच्छी लगती है तो उसे बताएं, सोशल मीडिया पर कमेंट करें, एकदूसरे को स्पेशल महसूस कराते रहें. हो सके तो एकदूसरे के लिए औनलाइन शोपिंग कर गिफ्ट्स भेजें, हाथ से लेटर्स और पोस्टकार्ड्स लिख कर भेजें. अपनी टीशर्ट या फेवरेट बुक एकदूसरे को भेजें.

परिवार और दोस्तों के बारे में बात करें

लोंग डिस्टेंस रिलेशनशिप में बहुत जरूरी है कि आप दोनों एकदूसरे से केवल एकदूसरे के बारे में ही बातें न करते रहें. एक दूसरे के परिवार और दोस्तों के बारे में बात करना भी जरूरी है. इस से पार्टनर को यह महसूस होगा कि आप उन से हर विषय पर बात कर सकते हैं और उन के जीवन में इम्पोर्टेंस रखते हैं केवल उन की रोमांटिक लाइफ में ही सिमटकर नहीं रह गए हैं.

सेक्सुअल डिजायर को बरकरार रखें

एक दूसरे के पास न होने पर पार्टनर्स सेक्सुअली फ्रीक्वेंट नहीं रह पाते. वे दोनों ही एकदूसरे को छूने के लिए और अपने पास महसूस करने के लिए तरस जाते हैं. जब वे किसी और कपल को अपने आसपास अंतरंग पल एंजोय करते देखते हैं तो अपने पार्टनर को हद से ज्यादा याद करने लगते हैं. ऐसे में बहुत जरूरी है कि आप दोनों अपनी सेक्सुअल डिजायर को बरकरार रखें और सेक्सुअली भी एक दूसरे से जुड़े रहें. सेक्सचैट करें, रोमांटिक बातें करें, फ़ोन पर एकदूसरे को बताएं कि जब भी आप मिलेंगे तो क्या करना पसंद करेंगे इत्यादि. एकदूसरे से मिलने पर रोमांस और सेक्स को महत्वता दें.

भरोसा बरकरार रखें

पार्टनर्स का लोंग डिस्टेंस रिलेशनशिप में इनसेक्योर होना आम है. ऐसे में बहुत जरूरी है कि आप दोनों एकदूसरे को यह यकीन दिलाएं कि आप उन्हें चीट नहीं कर रहे और न कभी करेंगे. लोंग डिस्टेंस रिलेशनशिप में पार्टनर आसानी से चीट कर सकता है इसलिए कोई मौका हाथ लगे तब भी चीट न करें. यदि आप अपने पार्टनर को छोड़ना चाहते हैं तो बेशक ब्रेकअप कर लें लेकिन कभी चीट न करें, उसे धोखा न दें. भरोसा बनाए रखने के लिए किसी भी नए व्यक्ति से मिलें तो अपने पार्टनर को उस के बारे में बताने से झिझके नहीं, अपने पार्टनर को जलाने की कोशिश न करें, कभी चीट करते हैं तो अपने पार्टनर को साफसाफ बता दें. जितना भरोसा आप चाहते हैं कि आप का पार्टनर आप पर करे उतना ही आप भी उस पर भरोसा करें.

इमोशनली एकदूसरे के लिए अवेलेबल रहें

किसी भी रिलेशनशिप में फिजिकल से ज्यादा इमोशनली अवेलेबल होना जरूरी है. आप का पार्टनर किसी चीज़ को ले कर परेशान है तो उसे उस के हाल पर छोड़ देने के बजाए पूछें कि आखिर हुआ क्या है. आप दोनों की लड़ाई हो तो अपने अहंकार को हवा देने की बजाए प्यार को महत्त्व दें और बात करें. इमोशनली कनेक्टेड रहना बहुत जरूरी है.

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हमेशा शिकायत करते रहें

अपने पार्टनर से उस के दूर होने पर हर समय शिकायत करने की बजाए उस के दूर होने के कारण की रिस्पेक्ट करें. वह आप से जानकर दूर नहीं है, उस के अपने भी कुछ कर्तव्य, लक्ष्य और जिम्मेदारियां हैं इस बात को समझें. हमेशा शिकायत कर के उसे गिलटी फील न कराते रहें.

घर पर बनाएं सेव टमाटर की सब्जी  

आज आपको एक खास रेसिपी के बारे में बताते हैं, जी हां आमतौर पर आपके घर में टमाटर और सेव तो होते ही है. आप इसकी स्पाइसी सब्जी भी बना सकते हैं. जो बहुत टेस्टी लगती है. आपको बता दें, एक ट्रेडिशनल गुजराती सब्जी है. तो आइए जानते हैं इस सब्जी बनाने की विधि.

सामग्री

2 टेबलस्पून रिफाइंड औइल

2 टीस्पून जीरा

1 टीस्पून हल्दी पाउडर

2 टीस्पून मिर्च पाउडर

2 टीस्पून धनिया पाउडर

100 ग्राम सेव

5 लहसनु की कलियां

3 हरी मिर्च

1 टीस्पून हींग

10 ग्राम गुड़ का पाउडर

2 चुटकी नमक

4 टीस्पून कटी हुई धनिया पत्तियां

1 कप पानी

250 ग्राम क्यूब साइज में कटे दमाटर

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 बनाने की वि​धि

एक पैन में तेल गर्म करें, अब इसमें जीरा और हींग डालें.

फिर लहसुन और हरी मिर्च डालें और एक मिनट के लिए चलाएं.

इसके बाद टमाटर और मिर्च पाउडर डालें और पानी डालकर पकने के लिए छोड़ दें.

अब इसमें गुड़ का पाउडर, धनिया पाउडर, हल्दी पाउडर और नमक डालकर मिलाएं.

पैन को ढक दें और गुड़ के पिघलने तक पकाएं.

गुड़ के घुल जाने के बाद इसमें सेव मिलाएं और थोड़ी देर तक उबलने दें.

इसे ग्रेवी की तरह बनने दें.

अब टमाटर सेव की सब्जी तैयार है और कटे धनिया से इसे सजा लें.

आप इसे चपाती या राइस के साथ सर्व कर सकते हैं.

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कहीं आप मेंटल डिसऔर्डर के शिकार तो नहीं?

मेंटल डिसऔर्डर को लेकर आज भी भारत में बहुत कम जागरूकता है. इस वजह से अक्सर इलाज तब शुरू हो पाता है, जब स्थिति काफी बिगड़ जाती है. हाल ही में हुए एक अध्ययन में यह सामने आया है कि घातक बीमारियों की तुलना में दिमागी तनाव ज्यादा खतरनाक है. इस अध्ययन में पाया गया कि लोग एचआईवी, टीबी और डायबिटीज जैसी घातक बीमारियों की वजह से कम, लेकिन डिप्रेसिव डिसऑर्डर के कारण ज्यादा बीमार पड़ रहे हैं और इससे उनकी मौत भी हो रही है. एक अनुमान के मुताबिक दुनिया भर में बीमारियों की वजह से हो रही मौतों में से 40 प्रतिशत हिस्सेदारी दिमागी डिसऑर्डर से जुड़ी है.

दिमाग से जुड़े विकार विभिन्न प्रकार के होते है. आम व्यक्ति को भी कुछ छोटे-मोटे दिमागी विकार हो सकते हैं, जिसे आमतौर पर सामान्य मान कर नजरअंदाज कर दिया जाता है, लेकिन ऐसा जरूरी नहीं कि वे सामान्य ही हों. कई बार कुछ सामान्य सी दिखने वाली आदतें भी मेंटल डिसऑर्डर की ओर इशारा करती हैं. भारत में हजारों-लाखों लोग मानसिक रोग का शिकार हैं और इसका असर उनके साथ- साथ उनके परिचितों पर भी पड़ता है. देखा गया है कि हर चौथे इंसान को कभी-न-कभी मानसिक रोग होता है. दुनिया-भर में इस रोग की सबसे बड़ी वजह है, तनाव और निराशा. मानसिक रोग किसी को भी हो सकता है, फिर चाहे वह आदमी हो या औरत, जवान हो या बुजुर्ग, पढ़ा-लिखा हो या अनपढ़, या चाहे वह किसी भी संस्कृति, जाति, धर्म या तबके का हो. अगर मानसिक रोगी अच्छी तरह अपना इलाज करवाए, तो वह ठीक हो सकता है. वह एक अच्छी और खुशहाल जिन्दगी जी सकता है. लेकिन ज्यादातर केस में लोगों को लम्बे समय तक यह पता ही नहीं चल पाता कि वे मानसिक रोग का शिकार हैं. जब उन्हें पता चलता है तब वे काउंसलिंग करवाने से डरते हैं कि दूसरे लोग उन्हें पागल समझेंगे और इस तरह समस्या बढ़ जाती है. मानसिक रोग से जुड़ी एक संस्था की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल अमेरीका में 8 से 15 साल की उम्र के जिन बच्चों को मानसिक रोग था, उनमें से करीब 50 प्रतिशत बच्चों का इलाज नहीं करवाया गया और 15 से ऊपर की उम्र के करीब 60 प्रतिशत लोगों का इलाज नहीं हुआ.

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मेंटल डिसऔर्डर क्या हैै?

जब एक व्यक्ति लगातार तनाव और निराशा में रहता है, ठीक से सोच नहीं पाता, उसका अपनी भावनाओं और व्यवहार पर काबू नहीं रहता, तो ऐसी हालत को मेंटल डिसऔर्डर  कहते हैं. ऐसा रोगी आसानी से दूसरों को समझ नहीं पाता और उसे अपने रोजमर्रा के काम ठीक से करने में मुश्किल होती है. दिमागी रोग के लक्षण, हर व्यक्ति में अलग-अलग हो सकते हैं. ये इस बात पर निर्भर करते हैं कि उसे कौन-सी मानसिक बीमारी है. मानिसक रोग कई प्रकार के होते हैं, तनाव, डिप्रेशन, चिड़चिड़ापन, गुस्सा आदि. अगर मेंटल डिसऑर्डर के लक्षणों को शुरुआत में ही पहचान लिया जाए तो व्यक्ति को नॉर्मल होने व आम लोगों जैसा जीवन जीने में मदद मिलती है और उसके पूरी तरह ठीक होने के चांस भी काफी ज्यादा होते हैं.

हम आपको ऐसे संकेतों के बारे में बताते हैं, जो मेंटल डिसऔर्डर की ओर पहला इशारा करते हैं-

  1. दुखी महसूस होना और किसी चीज से खुशी न मिलना: कई लोग हमेशा दुखी ही नजर आते हैं. वे हमेशा नकारात्मक बातें करते हैं. दुखी गाने सुनते हैं, दुखी कहानियां, कविताएं आदि पढ़ते या लिखते रहते हैं. ऐसे लोग पार्टी-पिकनिक आदि जगहों पर भी बाकी लोगों से कटे-कटे रहते हैं, वे अकेले घूमते या किसी कोने में चुपचाप बैठे नजर आते हैं. वे लोगों से आसानी से घुलते-मिलते नहीं हैं. जिन बातों पर अन्य लोग ठहाके लगाकर हंसते हैं, वहीं ऐसे लोग एक हल्की सी मुस्कान ही देते हैं. स्पष्ट है कि वे गहरी निराशा या डिप्रेशन में हैं, जो मेंटल डिसऔर्डर का पहला इशारा है.
  2. किसी चीज पर ध्यान केन्द्रित करने में परेशानी होना : यदि आपका मन अपनी पढ़ाई या काम में नहीं लग रहा है, आपको हर वक्त बेचैनी महसूस होती है, आप एक काम को शुरू करके उसे अधूरा छोड़कर दूसरे काम में लग जाते हैं, या किसी काम को करते वक्त अन्य बातों के बारे में सोचने लगते हैं, तो यह दिमागी अस्थिरता की ओर इशारा है.
  3. छोटी-छोटी बातों पर बहुत ज्यादा डर लगना और चिंता होना : अकेले में डर लगना, घर से अकेले बाहर निकलने में डरना, किसी से बात करने में डरना, किसी काम को शुरू करने से डरना, रिश्तेदारी में जाने से डरना या आपसे वह काम हो पाएगा या नहीं इस चिन्ता में ग्रस्त रहना मेंटल डिसऑर्डर की निशानी है. कई बार इस बीमारी के कारण इंसान अपने करीबी लोगों से भी बात करने में डरने लगता है. उसे लगता है कि अगर उसने कुछ कहा तो उसको डांट पड़ेगी, या घर वाले उससे नाराज हो जाएंगे. उसका आत्मविश्वास खत्म हो जाता है और वह खुद को किसी काबिल नहीं समझता है.

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4. मूड में बहुत ज्यादा उतार-चढ़ाव होना : मेंटल डिसऔर्डर के शिकार व्यक्ति का मूड पल-पल बदलता रहता है. कभी वह अच्छे मूड में होता है और कभी अचानक ही किसी छोटी सी बात पर चीखने-चिल्लाने लगता है. अन्य लोग उससे बात करने से कतराते हैं कि पता नहीं उनकी किस बात पर वह कैसा रिएक्शन दे. ऐसे लोग ‘फिकल माइंडेड’ या ‘अनप्रिडिक्टिबल’ कहलाने लगते हैं. वह एक काम करते-करते अचानक दूसरे काम में बिजी हो जाते हैं. ऐसे लोग बार-बार नौकरियां बदलते रहते हैं. कभी-कभी तो अपनी वर्क-लाइन ही चेंज कर देते हैं. वह कहीं भी टिक कर काम नहीं कर पाते हैं. ये वे लोग हैं जो अभी कहीं जाने की बात सोचते हैं, और अचानक कहीं और चल देते हैं या जाने का आइडिया ही ड्रॉप कर देते हैं. यह तमाम संकेत उसमें दिमागी गड़बड़ को प्रदर्शित करते हैं.

5. दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलने का मन न करना : मेंटल डिसऔर्डर का शिकार व्यक्ति ज्यादातर वक्त अकेला ही रहता है. उसके दोस्तों की संख्या नगण्य होती है. कई बार दोस्त होते हैं, मगर वह उनसे मिलना-जुलना ही नहीं चाहता. वह अपने रिश्तेदारों से भी कटा-कटा रहता है. सामान्य व्यक्ति की भांति परिवार में होने वाले शादी समारोह या बर्थडे पार्टीज में भी उसका आना-जाना नहीं होता है. वह रिश्तेदारों से ज्यादा मेल-मुलाकात नहीं रखता, यहां तक कि आसपास रहने के बावजूद वह उनसे मिलने का इच्छुक नहीं होता है. अपनों से दूरी बना कर रखना दिमागी बीमारी का संकेत है.

6. सोने में परेशानी होना, बिना कुछ किये थकान महसूस होना और ऊर्जा में कमी आना : दिमागी रूप से कमजोर या मेंटल डिसऑर्डर के शिकार व्यक्तियों को आलस्य या थकान हर वक्त घेरे रहती है. सामने जरूरी काम पड़ा होने पर भी उसकी करने की इच्छा नहीं होती है. काम के प्रति उसको किसी प्रकार का उत्साह नहीं होता है. इसके अलावा वह रात में बिस्तर पर भी करवटें बदलता रहता है. मन की बेचैनी उसे ठीक प्रकार से नींद नहीं लेने देती है. देर रात तक जागते रहना दिमागी बीमारी की निशानी है.

7. रिऐल्टी से दूर कल्पनाओं में डूबे रहना: कुछ लोग असलियत से दूर सपनों की दुनिया में ही विचरण करते रहते हैं. वह सुन्दर जगहों, सैरसपाटे, मनोरंजन आदि के ख्याली पुलाव पकाते रहते हैं. चाहे उनके पास साइकिल न हो, लेकिन हवाईजहाज में उड़ने के विचार से वे निकल नहीं पाते. वे ऐसी तस्वीरें, फिल्में और टीवी शोज देखने के शौकीन होते हैं जिसमें वह अपने सपनों को पाते हैं. वे अपने साथी से भी उन रंगीनियों के सपने देखने के लिए कहते हैं. ऐसे लोग कल्पना में खुद को हीरो समझने हैं, जबकि असलियत में वह जीरो होते हैं.

8. दूसरों की स्थिति को समझने में परेशानी होना : मेंटल डिसऑर्डर के शिकार व्यक्ति कभी भी अपने साथ रहने वाले लोगों के मनोभावों, आदतों, व्यवहार और प्रेम को नहीं समझ पाता है. वह हरेक पर अपनी मर्जी चलाना चाहता है. उसको लगता है कि वह जो कह रहा है या कर रहा है, बस वही सही है. ऐसे लोग अपने घर वालों की दिक्कतों, बीमारियों, प्रेम या स्नेह को भी समझ पाने में अक्सर नाकाम रहते हैं.

9. ड्रग्स लेना या शराब का सेवन करना : मेंटल डिसऑर्डर का शिकार व्यक्ति हमेशा चिड़चिड़ा और बेचैन रहता है. उसका मन हमेशा अशांत बना रहता है, जिसका निवारण उसे शराब या ड्रग्स में दिखता है. ऐसे लोग जरूरत से ज्यादा नशा करते हैं. इसके लिए वे जगह और समय का भी ध्यान नहीं रखते हैं.

10. किसी भी बात पर बहुत ज्यादा गुस्सा आना : दिमागी बीमारी से जूझ रहे व्यक्ति को छोटी-छोटी सी बात पर तेज गुस्सा आता है. गुस्से की तीव्रता में वह घर की चीजों को तोड़ने-फोड़ने लगता है या चीजें उठा कर इधर-उधर फेंकता है. यहां तक कि वह सामने वाले व्यक्ति को मारने-पीटने पर भी उतारू हो जाता है. ऐसे लोगों की बातों का यदि जवाब देने लगें या उनको समझाने की कोशिश करें तो इससे उनका गुस्सा और ज्यादा बढ़ता है. वह सामने वाले व्यक्ति की बातों को सुनने के लिए कभी तैयार नहीं होता है, बल्कि गाली-गलौच या मारपीट करते हुए सामने वाले को खामोश करा देने में ही अपनी जीत समझता है.

11. आत्महत्या का ख्याल आना : अगर किसी व्यक्ति को बार-बार आत्महत्या का ख्याल आता है, या वह खुद को चोट पहुंचाने की कोशिश करता है तो यह इस बात का स्पष्ट संकेत है कि व्यक्ति दिमागी बीमारी से जूझ रहा है. खुद को नुकसान पहुंचाने की सोचना किसी सामान्य व्यक्ति का कृत्य नहीं है. डिप्रेशन की अवस्था में आत्महत्या का ख्याल आजकल युवा पीढ़ी को भी मौत की ओर ढकेल रहा है.

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दिमागी बीमारी से बचने के उपाय

मेंटल डिसऔर्डर को शुरुआती लक्षणों से ही पहचाना जा सकता है. दवाओं के साथ-साथ रोजमर्रा के जीवन में कुछ अहम बदलाव करके हम अपने मन-मस्तिष्क को रोग-मुक्त कर सकते हैं. हम आपको देते हैं कुछ टिप्स, जिनके जरिए आप दिमागी रूप से स्वस्थ और संतुलित रह सकते हैं –

  1. काम के बीच में खुद को थोड़ा सा ब्रेक दें. अगर आप किसी काम के कारण बहुत ज्यादा तनाव महसूस कर रहे हैं तो समझ लीजिए कि खुद को एक छोटा सा ब्रेक देने का समय आ गया है.
  2. लम्बी अवधि तक काम करने के बाद एक हफ्ते की छुट्टी लेकर कहीं बाहर घूमने चले जाएं. फिल्में देखें, क्लब जाएं, खेलकूद में हिस्सा लें या अपना पसंदीदा शौक पूरा करें. यह तमाम क्रियाएं आपको काम के प्रति पुन: उत्साह जगाने में सहायक होंगी.
  3. औफिस में लंच के बाद आधे घंटे आंख बंद करके झपकी जरूर लें. तनाव ज्यादा हो तो अपने कार्यस्थल पर ही थोड़ी देर का ब्रेक लीजिए, थोड़ी देर के लिए कुर्सी से उठकर कहीं और चले जाएं. तनाव को कम करने के लिए काम के बीच में ही 10-15 मिनट का वक्त खुद के साथ गुजारना जरूरी है, इसके लिए कैफेटेरिया या औफिस का टेरिस भी चुन सकते हैं.
  4. नियमित रूप से 20 से 30 मिनट शारीरिक व्यायाम (चलना, दौड़ना या उठना बैठना) करें. इससे आपके दिमाग को सोचने का वक्त मिलेगा.
  5. मेडिटेशन करें या राहत भरा संगीत सुनिए. 10-20 मिनट तक आंखें बंद करके शांति का अनुभव कीजिए. गहरी सांस लीजिए. दिमाग को शांत करें और तनाव भरी बातें दिमाग से निकाल दें.
  6. रोजाना अखबार या पत्रिका पढ़ने की आदत डालें या पड़ोसी से 15-20 मिनट गप्पें मारें. अपनी भावनाओं को कागज पर लिखने से, या किसी से बात करने पर आप ये जान पाएंगे कि आपके तनाव के कारण क्या है.
  7. बुरी आदतें छोड़ दें. रात देर से सोना या सुबह देर तक सोना गलत है. डॉक्टर भी मानते हैं कि देर से सोकर उठने वाले लोगों का मेटाबॉलिज्म ठीक नहीं रहता है जिससे उन्हें थकान, तनाव और उदासीनता अधिक सताती है. देर से उठने वाले लोग अक्सर सुबह का नाश्ता छोड़ते हैं जिससे उनका बॉडी-साइकिल गड़बड़ होता है और वे जल्द तनावग्रस्त होते हैं. यही तनाव आगे चल कर दिमागी बीमारी का कारण बनता है.
  8. घंटों टीवी देखना भी तनाव और अवसाद की स्थिति तक पहुंचाने के लिए काफी है. बजाय घंटों तक टीवी देखने के आप अपना समय परिवार के साथ बिताएंगे या सैर करेंगे तो तनाव से कोसों दूर रहेंगे. टीवी पर भी फैमिली ड्रामा या क्राइम सीरियल्स देखने के बजाए हंसी-मजाक वाले शोज देखें. हंसी हजार रोगों की दवा है.
  9. धूम्रपान आपका तनाव बढ़ाता है. धूम्रपान से धड़कन तेज हो जाती है जिससे तनाव बढ़ता है. लिहाजा धूम्रपान से दूर रहें. शराब या ड्रग्स का सेवन भी नाड़ीतंत्र को कमजोर करता है.
  10. अच्छे दोस्त बनाएं. अच्छे दोस्त आपको आवश्यक सहानुभूति प्रदान करते हैं और साथ ही साथ अवसाद के समय आपको सही निजी सलाह भी देते हैं.
  11. संतुलित आहार लें. फल, सब्जी, मांस, फलियां और कार्बोहाइड्रेट आदि का संतुलित आहार लेने से मन खुश रहता है. एक संतुलित आहार न केवल अच्छा शरीर बनता है बल्कि यह दुखी मन को भी अच्छा बना देता है.
  12. अपने जीवनसाथी और बच्चों से बातचीत करें. अपनी समस्याओं के सम्बन्ध में बात करना तनाव दूर करने का उत्तम जरिया है. हममें से अधिकतर लोग खुद तक ही सीमित रहते हैं. अंदर ही अंदर घुटते रहने से और भी गंभीर समस्याएं पैदा हो सकती हैं.
  13. अपने लिए समय निकालें. यह बेहद महत्वपूर्ण है कि आप व्यस्तता के बावजूद अपनी जरूरतों और देखभाल के लिए भी कुछ समय निकालें. आराम करने के लिए भी पर्याप्त समय बचा कर रखें. अक्सर घर और दफ्तर के कामों में घिरी महिलाओं को अपनी देखभाल का समय नहीं मिलता है. वे पूरे वक्त काम के तनाव में घिरी रहती हैं जो आगे चल कर दिमागी बीमारी पैदा करता है.
  14. लिखना शुरू करें. अपनी रोजाना की गतिविधियों और भावनाओं को लिखने से आत्मनिरीक्षण और विश्लेषण करने में आपको मदद मिलती है. एक जर्नल या डायरी अपने पास रखें, जिसमें रोजाना लिखें कि आप अपने और अपने करीबी लोगों के बारे में क्या महसूस करते हैं. यह आपके अवसाद को दूर करने में सहायक होगा.
  15. मनोचिकित्सक से सलाह लें. अवसाद को दूर भगाने का सबसे मुख्य और आसान तरीका है कि आप मनोचिकित्सक की सलाह लें . इसमें हिचकिचाने की जरूरत नहीं है. मनोचिकित्सक की सलाह से आपको अवसाद की जड़ तक जाने और इसे दूर करने में मदद मिलेगी.

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5 टिप्स: पीरियड्स के दौरान ऐसे रखें अपनी स्किन का ख्याल

पीरियड्स के दौरान महिलाओं के शरीर में कई तरह के हार्मोनल बदलाव होते हैं, जिसका असर महिलाओं के बौडी पर  पड़ता है. इस बदलाव के कारण स्किन से जुड़ी भी कई समस्याएं होती  हैं, ऐसे में जरूरत है आपको इन कठिन दिनों में अपनी  स्क्नि का खासतौर पर ख्याल चाहिए. तो आइए जानते हैं कुछ ऐसे टिप्स जो आपके कठिन दिनों में स्किन के लिए मददगार साबित हो सकते हैं.

क्लीनअप 

पीरियड्स के दौरान चेहरे को साफ रखना बेहद जरूरी है. क्लीनअप  इसमें आपकी मदद करेंगे. इससे  आपकी त्वचा साफ होगी और  जरूरत के मुताबिक मसाज, मौइस्चर मिलने के साथ ही आपका स्ट्रेस लेवल भी कम होगा जो पिंपल को रोकने में मदद करेगा.

मेकअप से रहें दूर

मेकअप पोर्स को ब्लौक करता है, ताकि आपके फेस को स्मूद लुक मिले, लेकिन पीरियड्स के दिनों में यह अच्छा नहीं है. कोशिश करें कि मेकअप से दूरी बना सकें या ऐसे फाउंडेशन या बीबी, सीसी क्रीम का इस्तेमाल करें जो पोर्स ब्लौक नहीं करतीं.

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पिंपल या ऐक्ने

पीरियड्स के दिनों में पोर्स बड़े हो जाते हैं जिससे स्किन ज्यादा औइल प्रड्यूस करती है. वहीं कुछ मामलों में स्किन रूखी हो जाती है. इससे निपटने के लिए दिन में कम से कम दो बार गुनगुने पानी से फेस धोएं. कोशिश करें कि ऐसे फेसवाश का इस्तेमाल करें जो स्किन के लिए माइल्ड हो. इसके बाद चेहरे पर टोनर लगाएं और फिर मौइस्चराइज करें.

बौडी मौइस्चराइजिंग

पीरियड्स में बौडी को मौइस्चराइज करने की खास जरूरत होती है. इस दौरान स्किन ड्राई होने लगती है, जिससे स्ट्रेच मार्क्स होने का भी डर रहता है, ऐसे में यह सुनिश्चित करें कि आप बौडी को अच्छे से मौइस्चराइज करें.

डायट

पीरियड्स में डायट का ध्यान रखना काफी जरूरी है. खाने में ऐसी चीजों को शामिल करें जो ओमेगा-3 फैटी ऐसिड, विटमिन ई और ऐंटीऔक्सिडेंट प्रौपर्टीज से युक्त हैं. यह न सिर्फ त्वचा को ब्रेकआउट से बचाएंगे बल्कि उसे ग्लोइंग बनाए रखेंगे.

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लोबिया की खेती

दलहनी खेती के तहत लोबिया की फसल  आती है. यह प्रोटीन, शर्करा, वसा, विटामिन व खनिज से भरपूर होती है. इस की 2 तरह की किस्में होती हैं. पहली झाड़ीयुक्त बौनी प्रजाति व दूसरी लतायुक्त यानी फैल कर फली देने वाली प्रजाति. लतायुक्त प्रजाति की खेती मचान विधि से ही की जाती है.

उन्नतशील प्रजातियां

काशी कंचन : सब्जी के लिहाज से यह प्रजाति ज्यादा मशहूर है. बोआई के 40-45 दिनों बाद इस की फलियां तोड़ने के लिए तैयार हो जाती हैं. इस की फलियों की लंबाई

30 सैंटीमीटर तक होती है. यह रोग प्रतिरोधी प्रजाति है. इस की औसत उपज 150-200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

काशी श्यामल : इस प्रजाति की बोआई के 50 दिन बाद फलियां तोड़ने लायक हो जाती हैं, जिन की औसत लंबाई 25-30 सैंटीमीटर होती है. इस की उपज तकरीबन 75-100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

काशी गौरी : इस प्रजाति की बोआई के 45-50 दिन बाद फलियां तोड़ने लायक हो जाती हैं, जिन की औसत लंबाई 25 सैंटीमीटर होती है. इस की उपज 100-125 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

टा. 5269 : यह प्रजाति कम उत्पादन वाली है, जो बोआई के 50-60 दिन बाद फलियां देने लगती है. इस की औसत उपज 50-60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

पूसा कोमल : इस की खेती खरीफ के लिए ज्यादा सही होती है. इस की फलियों की लंबाई 15-20 सैंटीमीटर होती है. इस की औसत उपज 70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

काशी उन्नति : बोआई के 40-45 दिन बाद इस की फलियां तोड़ने लायक हो जाती हैं. इस की औसत उपज 125-150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

आईआईएमआर 16 : लोबिया की अगेती प्रजातियों में यह खास मानी जाती है.

इस की फलियों की लंबाई 15-18 सैंटीमीटर और औसत उपज 100-125 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

लोबिया : इस की खेती गरमी व बारिश दोनों मौसमों में की जाती है. इस की फलियां तकरीबन 20 सैंटीमीटर तक लंबी होती हैं. इस की उपज 120 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

अर्का गरिमा :  यह एक फैलने वाली प्रजाति है. इस की फलियों की लंबाई

25 सैंटीमीटर तक होती है. यह विषाणु रोग प्रतिरोधी किस्म है. हरी फलियों की उपज 80-85 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

मिट्टी का चयन व खेत की तैयारी : लोबिया की खेती के लिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सब से अच्छी मानी जाती है. बोआई से पहले खेत की जुताई कर के मिट्टी को भुरभुरी कर लेते हैं.

बोआई का सही समय : बारिश के मौसम वाली फसल के लिए बोआई का सही समय जून से अगस्त तक होता है. गरमी के मौसम की फसल के लिए बोआई का सही समय फरवरी से मार्च तक होता है.

बीज की मात्रा : लोबिया की बौनी किस्म के लिए प्रति हेक्टेयर 20  किलोग्राम व लता वाली किस्म के लिए प्रति हेक्टेयर 15 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है.

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लोबिया की बोआई हमेशा मेंड़ों पर करनी चाहिए. बोआई में लाइन से लाइन की दूरी 60 सैंटीमीटर व बीज से बीज की दूरी 10 सैंटीमीटर रखें.

खाद व उर्वरक : दलहनी फसल  होने के कारण इस में खाद की बहुत कम जरूरत होती है. अच्छी उपज के लिए बोआई से 15 दिन पहले 8-10 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में मिला देनी चाहिए.

इस के अलावा 25 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस और 60 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से बोआई से पहले मिट्टी में मिला देनी चाहिए.

लोबिया की फसल जब एक महीने की हो जाए तो फसल की निराईगुड़ाई कर के तमाम खरपतवार निकाल देने चाहिए और पौधों पर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए.

सिंचाई : लोबिया के बीजों को बोते वक्त खेत में ठीकठाक नमी होना जरूरी है. बारिश के मौसम में फसल की सिंचाई की जरूरत नहीं होती है. गरमी में 5-7 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए.

कीट व बीमारियों का इलाज : कृषि विज्ञान केंद्र, बंजरिया (बस्ती) के डाक्टर प्रेमशंकर का कहना है कि लोबिया में माहू कीट का प्रकोप ज्यादा होता है. यह कीट पत्तियों व शाखाओं का रस चूसता है, जिस से फसल की बढ़वार रुक जाती है. इस से बचाव के लिए डाईमिथोएट 30 ईसी या मिथाइल डेमेटान का छिड़काव करना चाहिए.

फलीछेदक : यह कीट लोबिया की फलियों में छेद कर बीजों को खा जाता है. इस से बचाव के लिए इंडोसल्फान या थायोडान का छिड़काव करना चाहिए. इस में नीम गिरी का अर्क भी असरकारक होता है.

हरा फुदका या लीफ माइनर : हरा फुदका पत्तियों की निचली सतह का रस चूस लेता है, जिस से पौधे की बढ़वार रुक जाती है. इस की रोकथाम के लिए मैलाथियान के घोल का छिड़काव करना चाहिए.

लीफ माइनर कीट पत्तियों के बीच सुरंग बनाता है, जिस से फसल की बढ़वार व पैदावार दोनों पर बुरा असर पड़ता है. इस की रोकथाम के लिए इंडोसल्फान या नीम गोल्ड का छिड़काव करना चाहिए.

प्रमुख रोग : लोबिया में स्वर्णपीत रोग का प्रकोप देखा गया है, जो माहू द्वारा विषाणु से फैलाया जाता है. इस रोग के असर से पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और कलियों की बढ़वार रुक जाती है. इस रोग से बचाव के लिए रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करना चाहिए. अगर रोग का असर दिखाई दे तो रोगग्रस्त पौधों को उखाड़ कर जमीन में दबा देना चाहिए.

लोबिया की तोड़ाई व लाभ : कृषि विज्ञान केंद्र, बंजरिया के माहिर राघवेंद्र सिंह का कहना है कि लोबिया की अगेती किस्मों की फलियां 40-45 दिनों में तोड़ाई लायक हो जाती हैं.

उपज : लोबिया की अच्छी प्रजातियों से तकरीबन 150-200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज मिलती है, जबकि प्रति हेक्टेयर 50,000 से 60,000 रुपए लागत आती है. इस प्रकार किसान लोबिया की खेती से 3-4 महीने में ही अच्छी आमदनी हासिल कर सकते हैं.

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एक और आकाश

उस गली में बहुत से मकान थे. उन तमाम मकानों में उस एक मकान का अस्तित्व सब से अलग था, जिस में वह रहती थी. उस के छोटे से घर का अपना इतिहास था. अपने जीवन के कितने उतारचढ़ाव उस ने उसी घर में देखे थे. सुख की तरह दुख की घडि़यों को भी हंस कर गले लगाने की प्रेरणा भी उसे उसी घर ने दी थी.

कम बोलना और तटस्थ रहते हुए जीवन जीना उस का स्वभाव था. फिर भी दिन हो या रात, दूसरों की मुसीबत में काम आने के लिए वह अवश्य पहुंच जाती थी. लोगों को आश्चर्य था कि अपने को विधवा बताने वाली उस शांति मूर्ति ने स्वयं के लिए कभी किसी से कोई सहायता नहीं चाही थी.

अपने एकमात्र पुत्र के साथ उस घर की छोटी सी दुनिया में खोए रह कर वह अपने संबंधों द्वारा अपने नाम को भी सार्थक करती रहती थी. उस का नाम ज्योति था और उस के बेटे का नाम प्रकाश था. ज्योति जो बुझने वाली ही थी कि उस में अंतर्निहित प्रकाश ने उसे नई जगमगाहट के साथ जलते रहने की प्रेरणा दे कर बुझने से बचा लिया था.

तब से वह ज्योति अपने प्रकाश के साथ आलोकित थी. जीवन के एकाकी- पन की भयावहता को वह अपने साहस और अपनी व्यस्तता के क्षणों में डुबो चुकी थी. प्यार, कर्तव्य और ममता के आंचल तले अपने बेटे के जीवन की रिक्तताओं को पूर्णता में बदलते रहना ही उस का एकमात्र उद्देश्य था.

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उस दिन ज्योति के बच्चे की 12वीं वर्षगांठ थी. पिछली सारी रात उस की बंद आंखों में गुजरे 11 वर्षों का पूरा जीवन चित्रपट की तरह आताजाता रहा था. उन आवाजों, तानों, व्यंग्यों, कटाक्षों और विषम झंझावातों के क्षण मन में कोलाहल भरते रहे थे, जिन के पुल वह पार कर चुकी थी. उस जैसी युवतियों को समाज जो कुछ युगों से देता आया था, वह उस ने भी पाया था. अंतर केवल इतना था कि उस ने समाज से पाया हुआ कोई उपहार स्वीकार नहीं किया था. वह चलती रही थी अपने ही बनाए हुए रास्ते पर. उस के मन में समाज की परंपरागत घिनौनी तसवीर न थी, उसे तलाश थी उस साफ- सुथरे समाज की, जिस का आधार प्रतिशोध नहीं, मानवीय हो, उदार हो, न्यायप्रिय और स्वार्थरहित हो.

अपनी जिंदगी याद करतेकरते अनायास ज्योति का मन कहीं पीछे क्यों लौट चला था, वह स्वयं नहीं जान पाई थी. मन जहां जा कर ठहरा, वहां सब से पहला चित्र उस की अपनी मां का उभरा था. उसे बच्चे की वर्षगांठ मनाने की परंपरा और संस्कार उसी मां ने दिए थे. वह स्वयं उस का और उस के भाई का जन्मदिन एक त्योहार की तरह मनाती थीं. याद करतेकरते मन में कुछ ऐसी भी कसक उठी जो आंखों के द्वारों से आंसू बन कर बहने के लिए आतुर हो उठी. उस ने आंखें पोंछ डालीं. यादों का सिलसिला चलता रहा…

काश, कहीं मां मिल जातीं. केवल उस दिन के लिए ही मिल जातीं. मां प्रकाश को भी उसी तरह आशीष देतीं जैसे उसे दिया करती थीं. उसे विश्वास था कि बड़ेबूढ़ों के आशीर्वाद में कोई अदृश्य शक्ति होती है. भले ही उस की मां के आशीर्वाद उस के अपने जीवन में फलदायक न हो सके हों, परंतु वह अब जो कुछ भी थी, उस में मां के आशीर्वाद के प्रभाव का अंश, बचपन में मां से मिले संस्कारों का असर अवश्य रहा होगा.

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मन रुक न सका. सुबह होतेहोते ज्योति कागजकलम ले कर बैठ गई थी. भावनाओं के मोती शब्दों के रूप में कागज पर बिखरने लगे थे. 11 वर्ष की लंबी अवधि में मां के नाम ज्योति का यह पहला पत्र था. उसे भरोसा था कि वह उस पत्र को लिखने के बाद पोस्ट अवश्य करेगी. हमेशा की तरह वह पत्र टुकड़ों में बदल जाए, अब वह ऐसा नहीं होने देगी.

वह लिखे जा रही थी और आंखें पोंछती जा रही थी. कैसी विडंबना थी कि आज उसे उस घर की धुंधली पड़ गई छवि को नए रूप में याद करना पड़ रहा था जो कभी उस का अपना घर भी था. उस में वह 16 वर्ष की आयु तक पलीबढ़ी, पढ़ीलिखी थी. उस की बनाई हुई पेंटिंगों से उस घर की बैठक की दीवारों की शोभा बढ़ी थी. उस घर के आंगन में उस के नन्हेनन्हे हाथों ने एक नन्हा सा आम का पौधा लगाया था.

वह कल्पना में अपना अतीत स्पष्ट देख रही थी. पत्र को अधूरा छोड़ कर होंठों के बीच कलम दबाए हुए आंसू भरी आंखों के साथ सोच रही थी. मां बहुत बूढ़ी हो चली थीं, शायद अपनी उम्र से अधिक. पिता के चेहरे पर कुछ रेखाएं बढ़ जाने के बावजूद उन की आवाज में अब भी वही रोब था, शान थी और अपने ऊंचे खानदान में होने का अहंकार था. वह अपने समाज और खानदान में वयोवृद्ध सदस्य की तरह आदर पा रहे थे. भाई के सिर के बाल सफेद होने लगे थे. भाभी  आ गई थीं. घर के आंगन में नन्हेमुन्ने भतीजेभतीजी खेल रहे थे.

सोच रही थी ज्योति. बैठक की दीवार पर लगी पेंटिंगें हटाई नहीं गई थीं. शायद इसलिए कि घर वालों की दृष्टि में वह भले ही मर चुकी हो, लेकिन उन पेंटिंगों के बहाने उस की याद जिंदा रही. नित्य उन की धूलगर्द झाड़तेपोंछते समय उसे जरूर याद किया जाता होगा. कभी आंगन में लगाया गया आम का पौधा बढ़तेबढ़ते आज वृक्ष का रूप ले चुका था. उस में फल आने लगे थे और प्रत्येक फल की मिठास में एक विशेष मिठास थी, उस की याद की, उस घर की बेटी की यादों की.

इस तरह वह पत्र पूरा हो चला था, जगहजगह आंखों से टपके आंसू की मुहरों के साथ. उस पत्र में ज्योति ने अपने अब तक के जीवन की पुस्तक का एकएक पृष्ठ खोल कर रख दिया था, कहीं कोई दाग न था. वह पत्र मात्र पत्र न था, कुछ सिद्धांतों का दस्तावेज था. उस के अपने आत्मविश्वास की प्रतिछवि था वह. उस में आह्वान था एक नए आकार का, जिस के तले नई सुबहें होती हों, नई रातें आती हों. उस के तले जीने वाला जीवन, जीवन कहे जाने योग्य हो. ऐसा जीवन, जो केवल अपने लिए न हो कर दूसरों के लिए भी हो.

ज्योति ने उस पत्र की प्रतिलिपि को अपने पास सहेज कर एक हितैषी द्वारा दूसरे शहर के डाकघर से भिजवा दिया था.

7 दिन बीत चुके थे. इस बीच ज्योति के मन के भीतर विचित्र अंतर्द्वंद्व चलता रहा था. कौन जाने उस के पत्र की प्रतिक्रिया घर वालों पर क्या हुई होगी. पत्र अब तक तो पहुंच चुका होगा. 33 किलोमीटर दूर स्थित दूसरे शहर के डाकघर से पत्र भेजने का अभिप्राय केवल इतना था कि वह पत्र का उत्तर आए बिना, अपना असली पता नहीं देना चाहती थी. जवाब के लिए भी उस ने दूसरे शहर में रहने वाले एक ऐसे सज्जन महेंद्र का पता दिया था जो उसे असली पते पर पत्र भेज देते.

ज्योति एकएक दिन उंगलियों पर गिनती रही थी. अब तक तो पत्रोत्तर आ जाना चाहिए था. क्यों नहीं आया था? उस के पत्र ने घर की शांति तो नहीं भंग कर दी थी? नहीं, नहीं, ऐसा नहीं हो सकता. निश्चय ही उस के हाथ की लिखावट देखते ही उस की मां ने पत्र को चूम लिया होगा. फिर खूब रोई होंगी. पिता को भलाबुरा सुनाया होगा. खुशामद की होगी कि जा कर बेटी को लिवा लाएं. पिता ने कहा होगा कि बेटी ने सौगंध दी है कि उसे केवल पत्रोत्तर चाहिए. उत्तर के स्थान पर कोई उसे लिवाने न आए. यहां आना या न आना, उस का अपना निर्णय होगा.

फिर भी पिता के मन में छटपटाहट जागी होगी कि चल कर देखें अपनी बेटी को. अनायास पिता का भूलाबिसरा वास्तविक रूप उस को याद आ गया था. नहीं, नहीं, पिता मुझ तक आएं यह उन की शान के विरुद्ध होगा. पत्र पढ़ कर जब मां रोई होंगी तब पिता की दबंग आवाज ने मां को डांट दिया होगा. परंतु वह खुद भी भावुक होने से न बच पाए होंगे.

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मां के सो जाने के बाद उन्होंने भी लुकछिप कर एक बार फिर उस के पत्र को ढूंढ़ कर पढ़ने की कोशिश की होगी. आंखें भर आई होंगी तो इधरउधर ताका होगा कि कहीं कोई उन्हें रोते हुए देख तो नहीं रहा. मां ने पिता की इस कमजोरी को पहचान कर पहले ही वह पत्र ऐसी जगह रखा होगा, जहां वह चोरीछिपे ढूंढ़ कर पढ़ सकें क्योंकि सब के सामने उस पत्र को बारबार पढ़ना उन की मानप्रतिष्ठा के विरुद्ध होता और इस बात का प्रमाण होता कि वह हार रहे हैं.

ज्योति अनमनी सी नित्य बच्चों को पढ़ाने स्कूल जाती थी. घर लौट कर देखती थी कि कहीं पत्र तो नहीं आया. धीरेधीरे 10 दिन बीत गए थे और आशा पर निराशा की छाया छाने लगी थी.

एक दिन रास्ते में वही हितैषी महेंद्र अचानक मिल गए थे. उन के हाथ में एक लिफाफा था. उस पर लिखी अपने पिता की लिखावट पहचानने में उसे एक पल भी न लगा था.

‘‘बेटी, डाक से यहां तक पहुंचने में देर लगती, इसलिए मैं खुद ही पत्र ले कर चला आया…खुश है न?’’ महेंद्र ने पत्र उसे थमाते हुए कहा.

स्वीकृति में सिर झुका दिया था ज्योति ने. होंठों से निकल गया था, ‘‘कोई मेरे बारे में पूछने घर से आया तो नहीं था?’’

‘‘नहीं, अभी तक तो नहीं आया. और आएगा भी तो तेरी बात मुझे याद है, घर के सब लोगों को भी बता दिया है. विश्वास रखना मुझ पर.’’

‘‘धन्यवाद, दादा.’’

महेंद्र ने ज्योति के सिर पर हाथ फेरा. बहुत सालों बाद उस स्पर्श में उसे अपने मातापिता के हाथों के स्पर्श जैसी आत्मीयता मिली. पत्र पाने की खुशी में यह भी भूल गई कि वह स्कूल की ओर जा रही थी. तुरंत घर की ओर लौट पड़ी.

लिफाफा ज्यों का त्यों बंद था. मां के हाथों की लिखावट होती तो अब तक पत्र खुल चुका होता. परंतु पिता के हाथ की लिखावट ने ज्योति के मन में कुछ और प्रश्न उठा दिए थे क्योंकि अब तक वह पिता के प्रति अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं ला सकी थी. उस की दृष्टि में उस के दुखों के लिए वह खुद तो जिम्मेदार थी ही, परंतु उस के पिता भी कम जिम्मेदार न थे.

तो क्या उन्हीं कठोर पिता का हृदय पिघल गया है? मन थरथरा उठा. कहीं पिता ने अपने कटु शब्दों को तो फिर से नहीं दोहरा दिया था?

कांपते हाथों से ज्योति ने लिफाफा फाड़ा. पत्र निकाला और पढ़ने लगी. एकएक शब्द के साथ मन की पीड़ा पिघलपिघल कर आंखों के रास्ते बहने लगी. वह भीगती रही उस ममता और प्यार की बरसात में, जिसे वह कभी की खो चुकी थी.

ज्योति अगले दिन की प्रतीक्षा नहीं कर सकी थी और उसी समय उठ कर स्कूल के लिए चल दी थी. छुट्टी का आवेदन देने के साथसाथ डाकघर में जा कर तार भी दे आई थी.

वह रात भी वैसी ही अंधियारी रात थी, जैसी रात में ज्योति ने 11 वर्ष पूर्व अकेले यात्रा की थी. मांबाप और समाज के शब्दों में, अपने गर्भ में वह किसी का पाप लिए हुए थी और अनजानी मंजिल की ओर चली जा रही थी एक तिरस्कृता के रूप में. और उसी पाप के प्रतिफल के रूप में जन्मे पुत्र के साथ वह वापस जा रही थी. उस रात जीवन एक अंधेरा बन कर उसे डस रहा था. इस रात वही जीवन सूरज बन कर उस के लिए नई सुबह लाने वाला था.

उस रात ज्योति अपने घर से ठुकरा दी गई थी. इस रात उस का अपने उसी घर में स्वागत होने वाला था. यह बात और थी कि उस स्वागत के लिए पहल स्वयं उस ने ही की थी क्योंकि उस ने अपना अतापता किसी को नहीं दिया था. अपने साहसी व्यक्तित्व के इस पहलू को वह केवल परिवारजनों के ही नहीं, पूरे समाज के सामने लाना चाहती थी, यानी इस तरह घर से ठुकराई गई बेटियां मरती नहीं, बल्कि जिंदा रहती हैं, पूरे आदरसम्मान और उज्ज्वल चरित्र के साथ.

ठुकराए जाने के बाद अपने पिता का घर छोड़ते समय के क्षण ज्योति को याद आए. मन में गहन पीड़ा और भय का समुद्र उफन रहा था. फिर भी उस ने निश्चय किया था कि वह मरेगी नहीं, वह जिएगी. वह अपने गर्भ में पल रहे भ्रूण को भी नष्ट नहीं करेगी. उसे जन्म देगी और पालपोस कर बड़ा करेगी. वह समाज के सामने खुद को लज्जित अनुभव कर के अपने बच्चे को हीन भावना का शिकार नहीं होने देगी. वह समाज के निकृष्ट पुरुष के चरित्रों के सामने इस बात का प्रमाण उपस्थित करेगी कि पुरुषों द्वारा छली गई युवतियों को भी उसी तरह का अधिकार है, जिस तरह कुंआरियों या विवाहिताओं को. वह यह भी न जानना चाहेगी कि उस का प्रेमी जीवित है या मर गया. वह स्वयं को विधवा मान चुकी थी, केवल विधवा. किस की विधवा इस से उसे कोई मतलब नहीं था.

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इस मानसिकता ने उस नींव का काम किया था, जिस पर उस के दृढ़ चरित्र का भवन और बच्चे का भविष्य खड़ा था. उस ने घरघर नौकरी की. पढ़ाई आगे बढ़ाई. बच्चे को पालतीपोसती रही. जिस ने उस के शरीर को छूने की कोशिश की, उस पर उस ने अपने शब्दों के ही ऐसे प्रहार किए कि वह भाग निकला. आत्मविश्वास बढ़ता गया और उस ने कुछ भलेबुजुर्ग लोगों को आपबीती सुना कर स्कूल में नौकरी पा ली. एक घर ढूंढ़ लिया और अब अपने महल्ले की इज्जतदार महिलाओं में वह जानी जाती थी.

ज्योति का अब तक का एकाकी जीवन उस के भविष्य की तैयारी था. उस भविष्य की जिस के सहारे वह समाज के बीच रह सके और यह जता सके कि जिस समाज में उसे छलने वाले जैसे प्रेमी अपना मुंह छिपा कर रहते हैं, ग्लानि का बोझ सहने के बाद भी दुनिया के सामने हंसते हुए देखे जाते हैं, वहां उन के द्वारा ठुकराई हुई असफल प्रेमिकाएं भी अपने प्रेम के अनपेक्षित परिणाम पर आंसू न बहा कर उसे ऐसे वरदान का रूप दे सकती हैं, जो उन्हें तो स्वावलंबी बना ही देता है, साथ ही पुरुष को भी अपने चरित्र के उस घिनौने पक्ष के प्रति सोचने का मौका देता है.

उस एकाकीपन में ऐसे क्षण भी कम नहीं आए थे, जब ज्योति के लिए किसी पुरुष का साथ अपरिहार्य महसूस होने लगा था. कई बार उस ने सोचा भी था कि इस समाज के कीचड़ में कुछ ऐसे कमल भी होंगे, जो उसे अपना लेंगे. कुछ ऐसे व्यक्तित्व भी उसे मिलेंगे, जिन में उस जैसी ठुकराई हुई लड़कियों के लिए चाहत होगी.

परंतु उसी क्षण हृदय के किसी कोने में पुरुष के प्रति फूटा घृणा का अंकुर उसे फिर किसी पुरुष की ओर आकृष्ट होने से रोक देता. तब सचमुच उसे प्रत्येक युवक की सूरत में बस, वही सूरत नजर आती, जिस से उसे घृणा थी, जिसे वह भूल जाना चाहती थी. उस ने धीरेधीरे अपनी इच्छाओं, कामनाओं को केवल उसी सीमा तक बांधे रखा था, जहां तक उस की अपनी धरती थी, जहां तक उस का अपना आकाश था.

शारीरिक भूख से अधिक महत्त्व- पूर्ण उस के अपने बच्चे प्रकाश का भविष्य था, जिसे संवारने के लिए वह अभी तक कई बार मरमर कर जी थी. अपने को उस सीमा तक व्यस्त कर चुकी थी, जहां उस को कुछ सोचने का अवकाश ही नहीं मिलता था.

ज्योति की कल्पना में अभी स्मृतियों का क्रम टूट नहीं पाया था. वह शाम आंखों में तिर गई थी, जब उस ने मां को सबकुछ साफसाफ कह दिया था. अपने प्रेम को भूल का नाम दे कर रोई थी, क्षमा की भीख मांग कर मां से याचना की थी कि वह गर्भ नष्ट करने के लिए उसे जाने दे.

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मां ने उसे गर्भ नष्ट कराने का मौका न दे कर सबकुछ पिता को बता दिया था. फिर पहली बार पिता का वास्तविक रूप उस के सामने आया था. उन्होंने ज्योति को नफरत से देखते हुए दहाड़ कर कहा था, ‘‘खबरदार, जो तू ने मुझे आज के बाद पिता कहा. निकल जा, अभी…इसी वक्त इस घर से. तेरा काला मुंह मैं नहीं देखना चाहता. जाती है या नहीं?’’

अब उन्हीं पिता का पत्र उसे मिला था. क्षण भर के लिए मन तमाम कड़वाहटों से भर आया था. परंतु धीरेधीरे पिता के प्रति उदासीनता का भाव घटने लगा था. वह निर्णय ले चुकी थी कि अगर पिता ने उसे क्षमा नहीं किया तो कोई बात नहीं, वह अपने पिता को अवश्य क्षमा कर देगी.

उस दिन तो पिता की दहाड़ सुन कर कुछ क्षण ज्योति जड़वत खड़ी रही थी. फिर चल पड़ी थी बाहर की ओर. उसे विश्वास हो गया था कि उस का प्रेमी हो या पिता, पुरुष दोनों ही हैं और अपने- अपने स्तर पर दोनों ही समाज के उत्थान में बाधक हैं.

उस दिन ज्योति घर छोड़ कर चल पड़ी थी. किसी ने उस की राह नहीं रोकी थी. किसी की बांहें उस की ओर नहीं बढ़ी थीं. किसी आंचल ने उस के आंसू नहीं पोंछे थे. आंसू पोंछने वाला आंचल तो केवल मां का ही होता है. परंतु साथ ही उसे इस बात का पूरा एहसास था कि पिता के अंकुश तले दबी होंठों के भीतर अपनी सिसकियों को दबाए हुए उस की मां दरवाजे पर खड़ी जरूर थीं, पर उसे पांव आगे बढ़ाने की अनुमति नहीं थी. वह चली जा रही थी और समझ रही थी मां की विवशता को. आखिर वह भी तो नारी थीं उसी समाज की.

बच्चे को जन्म देने के बाद ज्योति ने उसे प्रकाश नाम दे कर अपने भीतर अभूतपूर्व शक्ति का अनुभव किया था. उसे वह गुलाब के फूल की तरह अनेक कांटों के बीच पालती रही थी.

अब ज्योति की आंखों में केवल एक ही स्वप्न शेष था. किस प्रकार वह समाज में अपना वही स्थान प्राप्त कर ले, जिस पर वह घर से निकाले जाने से पहले प्रतिष्ठित थी.

शायद इन्हीं भावनाओं ने ज्योति को प्रेरित किया था मां के नाम पत्र लिखने के लिए. डब्बे में रोशनी कम थी. फिर भी उस ने अपने पर्स को टटोल कर उस में से कुछ निकाला. आसपास के सारे यात्री सो रहे थे या ऊंघ रहे थे. ज्योति एक बार फिर उस पत्र को पढ़ रही थी जिसे उस ने केवल मां को भेजा था, केवल यह जानने के लिए कि कहीं भावावेश में किसी शब्द के माध्यम से उस का आत्मविश्वास डिग तो नहीं गया था.

‘‘मां, अपनी बेटी का प्रणाम स्वीकार करते हुए तुम्हें यह विश्वास तो हो गया है न कि ज्योति जीवित है.

‘‘मैं जीवन के युद्ध में एक सैनिक की भांति लड़ी हूं और अब तक हमेशा विजयी रही हूं प्रत्येक मोर्चे पर. परंतु मेरी विजय अधूरी रहेगी जब तक अंतिम मोर्चे को भी न जीत लूं. वह मोर्चा है, तुम्हारे समाज के बीच आ कर अपनी प्रतिष्ठा पुन: प्राप्त कर लेने का. मैं ने उस घर को अपना घर कहने का अधिकार तुम से छीन लेने के बाद भी छोड़ा नहीं. मैं उसी घर में आना चाहती हूं. परंतु मैं तभी आऊंगी जब तुम मुझे बुलाओगी. सचसच कहना, मां, क्या तुम में इतना साहस है कि तुम और पिताजी दोनों अपने समाज के सामने यह बात निसंकोच स्वीकार कर सको कि मैं तुम्हारी बेटी हूं और प्रकाश मेरा पुत्र है.

‘‘मेरी परीक्षा की अवधि बीत चुकी है. अब तुम दोनों की परीक्षा का अवसर है. मैं नहीं चाहती कि आप में से कोई मेरे पास ममतावश आए. मैं चाहूंगी कि आप सब कभी मुझे इस दया का पात्र न बनाएं. मैं छुट्टियों के कुछ दिन आप के पास बिता कर पुन: यहां वापस आ जाऊंगी. मेरे पुत्र या मुझे ले कर आप की प्रतिष्ठा पर जरा भी आंच आए, यह मेरी इच्छा नहीं है. मैं ऐसे में अंतिम श्वास तक आप के लिए उसी तरह मरी बनी रहने में अपनी खुशी समझूंगी जिस तरह अब तक थी. यदि मैं ने आप लोगों को अपनी याद दिला कर कोई गलती की है तो भी क्षमा चाहूंगी. शायद यही सोच कर मैं ने इस पत्र में केवल अपनी याद दिलाई है, अपना पता नहीं दिया.

-ज्योति.’’

ज्योति को यह सोच कर शांति मिली थी कि उस ने ऐसा कुछ नहीं लिखा था जिस से उन के मन में कोई दुर्बलता झांके. उस ने पत्र को पर्स में रखने के साथ दूसरा पत्र निकाला, जो उस के पिता का था. वह पत्र देखते ही उस की आंखें डबडबा आईं और उन आंसुओं में उतने बड़े कागज पर पिता के हाथ के लिखे केवल दो वाक्य तैरते रहे, ‘‘चली आ, बेटी. हम सब पलकें बिछाए हुए हैं तेरे लिए.’’

सुबह का उजाला उसे आह्लादित करने लगा था. अपनी जन्मभूमि का आकर्षण उसे बरबस अपनी ओर खींच रहा था. कल्पना की आंखों से वह सभी परिवारजनों की सूरत देखने लगी थी.

गाड़ी ज्योंज्यों धीमी होती गई, ज्योति की हृदयगति त्योंत्यों तीव्र होती गई. प्रकाश की उंगली थामे हुए वह डब्बे के दरवाजे पर खड़ी हो गई. कल्पना साकार होने लगी. गाड़ी रुकते ही कई गीली आंखें उन दोनों पर टिक गईं. कई बांहों ने एकसाथ उन का स्वागत किया. कई आंचल आंसुओं से भीगे और कई होंठ मुसकराते हुए कह बैठे, ‘‘कैसी हो गई है ज्योति, योगिनी जैसी.’’

ज्योति ने डबडबाई आंखों से भाई की ओर निहारा जो एक ओर चुपचाप खड़ा सहज आंखों से बहन को निहार रहा था. ज्योति ने अपने पर्स से पिछले 11 वर्षों की राखी के धागे निकाले और उस की कलाई पर बांधते हुए पूछा, ‘‘भाभी नहीं आईं, भैया?’’

‘‘नहीं, बेटी. तेरे बिना तेरे भैया ने शादी नहीं की. अब तू आ गई है तो इस की शादी भी होगी,’’ मां बोल उठी थीं.

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घर की ओर जातेजाते ज्योति के मन में अपूर्व शांति थी. अपने भाई के प्रति मन स्नेह से भर गया था. उस का संघर्ष सार्थक हुआ था. उस के वियोग का मूल्य भाई ने भी चुकाया था. उस ने ऊपर की ओर ताका. मन के भीतर ही नहीं, ऊपर के आकाश को भी विस्तार मिल रहा था.

‘सौरव गांगुली’ के कदम से देश की युवा पीढ़ी हीनग्रंथि से मुक्त हो गई थी: अभिनय देव

इतिहास हमें सिखाता है और इतिहास से प्रेरणा लेनी चाहिए. इस बात पर यकीन रखने वाले फिल्मकार अभिनय देव परिचय के मुहताज नहीं हैं. वे टीवी सीरियल ‘24’ के 2 सीजन निर्देशित करने के साथ ही ‘देल्ही बेली,’ ‘गेम,’ ‘फोर्स 2,’ ‘ब्लैकमेल’ जैसी फिल्में निर्देशित कर चुके हैं. इस बार अभिनव देव इतिहास के पन्ने यानी कि 2002 में सौरव गांगुली ने जो कृत्य किया था, उस पर डौक्यू फिक्शन फिल्म ‘दूसरा’ ले कर आ रहे हैं.

फिल्म ‘दूसरा’ को आप डौक्यू फिक्शन क्यों कह रहे हैं? इस सवाल पर अभिनव देव कहते हैं, ‘‘हम ने अपनी फिल्म को डौक्यू फिक्शन का रूप दिया है, जिस से 2002 में सौरव गांगुली ने जो इतिहास रचा था, उसे समाहित कर सकें. जो इतिहास घटा था, उस का डौक्यूमैंटेशन जरूरी है. 13 जुलाई, 2002 को इंग्लैंड में क्रिकेट का मक्का कहे जाने वाले लार्ड्स स्टेडियम पर नैटवैस्ट क्रिकेट सीरीज को जीतने पर भारतीय क्रिकेट टीम के तत्कालीन कैप्टन सौरव गांगुली ने अपनी टीशर्ट उतार कर उसे लहराते हुए खुशी का इजहार किया था, जिस का उस वक्त की युवा पीढ़ी पर काफी प्रभाव पड़ा और उस के बाद देश में कई सामाजिक व राजनीतिक बदलाव हुए.

जब वह इतिहास घट रहा था, उस वक्त एक युवा लड़की तारा अपनी जिंदगी में आगे बढ़ रही थी. 2002 में भारतीय क्रिकेट टीम के कैप्टन की हैसियत से मैच जीतने के बाद सौरव गांगुली ने जो कुछ किया था, उस का उस 10 साल की लड़की तारा (प्लाविता बोर ठाकुर) पर क्या प्रभाव पड़ा, यह फिक्शन है. इस घटना के चलते किस तरह उस लड़की का एटिट्यूड बदलने लगा, यह फिल्म में दिखाया गया है. तारा एक सामान्य लड़की है जो कि भारत के छोटे शहर जोधपुर, राजस्थान में रहती है. फिल्म में 10 साल की उम्र से ले कर 27 साल की उम्र तक की उस की यात्रा है.’’

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इस पर फिल्म बनाने का खयाल आप को कैसे आया? इस पर वे बताते हैं, ‘‘शिकागो में रोहन सजदेह और माशा नामक एक दंपती रहते हैं. उन्होंने ही मुझे इस फिल्म के लिए आइडिया दिया. उन्होंने कहा कि 2002 में इंग्लैंड में क्रिकेट के मैदान लार्ड्स स्टेडियम पर सौरव गांगुली ने मैच जीतने के बाद जिस तरह से अपनी शर्ट उतार कर स्टेडियम में लहराई थी, उस पर फिल्म बननी चाहिए. इन दोनों का मानना है कि 2002 का यह पल सिर्फ भारतीय क्रिकेट ही नहीं, बल्कि भारत के लिए भी बहुत महत्त्वपूर्ण था, क्योंकि सौरव गांगुली ने स्टेडियम में जो कुछ किया था, उस के कई माने थे. उस से 9 माह पहले इंग्लैंड के क्रिकेटर एंडो क्ंिलटौप ने वानखेड़े स्टेडियम में टीशर्ट उतारी थी.

‘‘सौरव गांगुली ने सिर्फ उस का जवाब नहीं दिया था, बल्कि पूरे ब्रिटिश साम्राज्य को जवाब दिया था. सौरव गांगुली का यह कदम भारतीय जनता की तरफ से ब्रिटिश साम्राज्य को जवाब था. सौरव गांगुली अपनी इस हरकत से पूरे ब्रिटिश साम्राज्य को जताना चाहते थे कि आप ने हिंदुस्तान पर ढाई सौ साल राज किया और हमें क्रिकेट जैसा खेल अपने फायदे के लिए सिखाया था, अब हम ने आप के ही खेल में आप के ही घर यानी कि आप के देश की धरती पर जवाब दिया है.

‘‘मेरे हिसाब से सौरव गांगुली का यह बहुत बड़ा कदम था. यह अलग बात है कि उस वक्त तमाम लोगों ने कहा था- ‘सौरव गांगुली ने यह क्या किया?’ ‘एक क्रिकेटर को इस तरह की हरकत नहीं करनी चाहिए,’ ‘क्या क्रिकेट के मैदान पर टी शर्ट उतारनी चाहिए?’ यानी कि कुछ लोगों ने सौरव गांगुली के इस कदम की निंदा की थी.’’

2002 की इस घटना का आप जो सामाजिक व राजनीतिक प्रभाव फिल्म में दिखा रहे हैं, वह क्या है? इस पर उन का कहना है, ‘‘मेरे खयाल से इस घटना से उस वक्त की जो युवा पीढ़ी थी, उसे एहसास हुआ कि हम जो हैं, सही हैं. हमें दूसरे देश की तरफ देखने की जरूरत नहीं है. उस जीत और उस घटना का सब से बड़ा सामाजिक व राजनीतिक प्रभाव यह था कि हम कंधे से कंधा मिला कर दुनिया के साथ खड़े हो गए.

‘‘हम ने कहना शुरू किया कि हम भी उतने ही अच्छे हैं, जितना कि सामने वाला. शायद कुछ जगह हम बेहतर थे. कम से कम 2002 की क्रिकेट की घटना और सौरव गांगुली ने जो कुछ किया, उस से हमारे देश की उस वक्त की युवा पीढ़ी हीनग्रंथि से मुक्त हो गई थी. उस वक्त के 15 से 18 साल के भारतीय युवा आज पूरे विश्व को चला रहे हैं. यह फिल्म साहस, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अन्य चीजों के बीच सामाजिक पूर्वाग्रहों से लड़ने की बात करती है.

‘‘मेरी राय में समाज, राजनीति, खेल और फिल्म को अलग नहीं किया जा सकता. इन चारों को अलगअलग कर के बात करना मुश्किल है. क्रिकेट के माध्यम से हमें जीत का एहसास होता है, एनर्जी मिलती है, जो इंसान की रोजमर्रा की जिंदगी, राजनीति व सामाजिक हालातों पर असर डालती है. हम पोलिटिकली जो कुछ करते हैं, हम जिस तरह से देश को दर्शाते हैं, उस का इंसान की रोजमर्रा की जिंदगी पर असर होता है.

आज की राजनीति जिस तरह से देश चला रही है, उस के प्रभाव से कोई भी इंसान अछूता नहीं है. पर मेरी निजी राय है कि खेल और राजनीति को जितना दूर रखें, उतना अच्छा है. पर अफसोस खेल में बहुत ज्यादा राजनीति घुसी हुई है. इसी तरह से शिक्षा और राजनीति को भी अलग रखना चाहिए. पर यह भी नहीं हो पा रहा है. राजनीति हर जगह है, चाहे वह देश की राजनीति हो या घर के अंदर सासबहू के बीच आपसी राजनीति हो.’’

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2002 के बाद ग्लोबलाइजेशन ने भी बहुतकुछ देश को बदला है. क्या यह मुद्दा भी आप की फिल्म का हिस्सा है? इस सवाल पर उन्होंने कहा, ‘‘जी हां, देखिए, ग्लोबलाइजेशन तो होना ही था. देश की तरक्की के लिए ग्लोबलाइजेशन जरूरी है. लेकिन मेरी फिल्म का मूल हिस्सा यह है कि जब ग्लोबलाइजेशन हो रहा था, तब हमारी सरकार ने पूरी दुनिया को हमारे देश में आने के लिए दरवाजे खोल दिए थे. पर उस में जरूरी यह था कि आप उन्हें किस तरह से अंदर आने दे रहे हैं.

‘‘क्या आप उन के घुटने पकड़ कर उन्हें ला रहे हो या उन के कंधे पर हाथ रख कर ला रहे हो? हमारी कहानी का यही मूल है कि क्रिकेट की जीत ने हम भारतीयों को मानसिक रूप से स्ट्रौंग बनाया. हमें ऐसा एटिट्यूड दिया कि हम झुक कर किसी देश को निमंत्रण देने के बजाय उस के कंधे पर हाथ रख कर बुलाने लगे.’’

आप के सीरियल ‘24’ के फर्स्ट सीजन को थोड़ीबहुत सफलता मिली थी, लेकिन दूसरे सीजन को सफलता नहीं मिली? इस सवाल पर चिंतित होते हुए वे बोले, ‘‘हकीकत यही है कि टीवी सीरियल  ‘24’ टीवी के लिए गलत था. पर अब जो इस का अगला सीजन आ रहा है, वह टीवी में जरूर काम करेगा. क्यों अब जो सीजन हम ले कर आ रहे हैं उस का दर्शक वर्ग अलग है. जब ‘24’ का पहला सीजन आया, तो दर्शकों को कुछ नईर् बात नजर आई, इसलिए थोड़े दर्शक मिल गए. लेकिन सैकंड सीजन के साथ दर्शक रिलेट नहीं कर पाए.

‘‘सैकंड सीजन बहुत ही बुद्धिमत्ता वाला था, जहां आप को टकटकी लगा कर देख कर चीजों को समझना था. एक मिनट के लिए भी आप ने अपनी निगाहें इधरउधर कीं तो आप सीरियल नहीं समझ पाएंगे. जबकि टीवी में ऐसा संभव नहीं है. दर्शक खाना भी खाएगा, चाय भी पिएगा, हाथ धोने भी जाएगा. इसीलिए ‘24’ के सैकंड सीजन को सफलता नहीं मिली थी.’’

आप ने एक फिल्म ‘देल्ही बेली’ निर्देशित की थी. आप को लगता है कि वर्तमान में यदि यह फिल्म आती, तो ज्यादा सफल होती? इस बात पर वे मुसकराते हुए कहते हैं, ‘‘जरूर, मेरी राय में यह एक ऐसी फिल्म है जो चाहे जब आती, बौक्सऔफिस पर अपना असर डालती. यह यंगस्टर्स की कहानी है जिस के साथ हर समय का यंगस्टर रिलेट करेगा. पर आज यदि यह फिल्म आती तो ज्यादा लोग रिलेट करते. हां, जब रिलीज हुई थी तब कम पौपुलर हुई थी क्योंकि फिल्म में जिस तरह की भाषा रखी गई थी, उस तरह की भाषा उस वक्त कम लोग बोलते थे.’’

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