अरंडी को अंगरेजी में कैस्टर कहा जाता है, जबकि गांवदेहात के लोग इसे आम बोलचाल में अंडउआ कहते हैं. इस का पेड़ झाड़ीनुमा और पत्ते चौड़ी फांक वाले होते हैं. ये देखने में पपीते जैसे बड़ेबड़े होते हैं और इस के पेड़ सड़कों के किनारे या बेकार पड़ी जमीनों, गड्ढों वगैरह में देखे जा सकते हैं.

जानकारों का मानना है कि यह ऐसा पौधा है, जो बिना देखभाल किए खाली पड़ी जगहों पर अच्छाखासा पनप जाता है. अगर थोड़ी सी देखभाल कर के खेती की जाए तो यह खासी मुनाफे वाली फसल है.

अरंडी की मांग विकसित देशों में ज्यादा है. यह फसल तिलहनी फसल के तहत आती है. इस का तेल खाने के काम नहीं आता, लेकिन अनेक तरह की दवाओं, साबुन, कौस्मैटिक वगैरह में इस्तेमाल किया जाता है. इस के बीजों में 40 से 52 फीसदी तेल होता है और अरंडी की पैदावार में भारत पहले नंबर पर है, जो दुनियाभर की 90 फीसदी अरंडी की जरूरत को पूरा करता है.

अरंडी उगाने वाले खास राज्य गुजरात, राजस्थान और आंध्र प्रदेश हैं. इस के अलावा अरंडी की सीमित मात्रा में खेती करने वाले राज्यों में कर्नाटक, तमिलनाडु, ओडिशा, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश शामिल हैं.

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गुजरात और राजस्थान में इस की खेती सिंचाई पर आधारित है, जबकि बाकी राज्यों में बारिश आधारित परिस्थितियों में इस की खेती की जाती है. यह आमतौर पर गरम मौसम की फसल है. साफ आसमान वाले गरम इलाकों में अरंडी की फसल अच्छी होती है.

मिट्टी : अरंडी की खेती तकरीबन सभी तरह की मिट्टी में, जिस में पानी न ठहरता हो, की जा सकती है. पर यह आमतौर पर भारत में बलुई दोमट और उत्तरपश्चिम राज्यों की हलकी कछारी मिट्टी में इस की खेती अच्छी होती है.

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