सरकार मनमानी पर उतारू है और आम लोग उस के आगे बेबस हैं. मोटर व्हीकल एक्ट में जुर्माने की अनापशनाप राशि से हादसे रुकने की गारंटी नहीं. लेकिन, देश की लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था की पोल जरूर खुल गई है. लोग दरअसल इसी को ले कर सहमे हुए हैं और नए नियमों का मजाक बना कर अपनी भड़ास भी निकाल रहे हैं.

तानाशाही का दौर गुजर जाने के अरसे बाद लोग क्यों उस की तारीफ करने लगते हैं या आंशिक रूप से उस से सहमत क्यों होने लगते हैं, इस मानसिकता पर शोध की गुंजाइशें मौजूद हैं. लेकिन, सच यह भी है कि जब तानाशाही चल रही होती है तब इस का तात्कालिक विरोध करने की हिम्मत जनता में नहीं होती, फिर चाहे जमाना राजशाही का रहा हो या लोकतंत्र का. विरोध की हिम्मत एक मुद्दत बाद ही आती है.

साल 1933 में जरमनी में हिटलर के नेत़त्व वाली नाजी सरकार ने एक अजीब सा फैसला लिया था कि नसबंदी के लिए एक मुहिम चलाई जाएगी. जरमनी तब कतई जनसंख्या के दबाव से कराह नहीं रहा था. यह तो हिटलर की सनक थी कि वह ऐसा इसलिए कर रहा था कि वंशानुगत बीमारियां अगली पीढ़ी में न फैलें. तब तकरीबन 4 लाख ऐसे जरमनियों की जबरिया नसबंदी कर दी गई थी जो किसी आनुवंशिक रोग की चपेट में थे.

यह वह दौर था जब आनुवंशिकी यानी जेनेटिक्स में रोज नएनए प्रयोग हो रहे थे और काफी वैज्ञानिक पादरी भी हुआ करते थे. हिटलर को यह गलत कहीं से नहीं लगा था कि अगर ऐसी बीमारियों पर काबू पा लिया जाए जो पीढ़ीदरपीढ़ी फैलती हैं तो जरमनी एक स्वस्थ देश होगा और नई नस्लें वंशानुगत रोगों से मुक्त होंगी. इस तरह जरमनी सब से बेहतर इंसानी नस्ल वाला देश बन जाएगा.

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