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‘ये रिश्ता कहलाता है’: क्या सुरेखा मारेगी नायरा को जोरदार थप्पड़ ?

स्टार प्लस पर प्रसारित होने वाला मशहूर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में लगातार आपको धमाकेदार ट्विस्ट देखने को मिल रहे हैं. हाल ही में इस शो ने 3000 एपिसोड पूरे किए है. ये शो टीआरपी में टौप पर भी बना हुआ है. इन दिनों इस सीरियल में आपने देखा होगा कि नायरा और कार्तिक नजदीक आ गए हैं. जो दर्शकों को काफी पसंद आ रहा है.

तो वही कार्तिक के चाचा अखिलेश और नायरा की दोस्त लीजा के रिलेशनशिप का खुलासा हो चुका है. कार्तिक-नायरा को उनके रिश्ते की सच्चाई पता चल चुकी है. खबरों के अनुसार इस शो के अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि नायरा अपनी दोस्त लीजा से वादा करेगी कि वो उसे न्याय दिलाएगी. और अगर अखिलेश, सुरेखा संग खुश नहीं है तो उन्हें लीजा से शादी करनी पड़ेगी. नायरा की ये सारी बात सुन लेगी और वो इस सच्चाई को मानने से इंकार करेगी और नायरा को जोरदार  थप्पड़ भी मारेगी.

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पिछले एपिसोड में दिखाया गया कि ये रिश्ता में गोयंका फैमिला एक पुराने केस को जीतने की खुशी में जश्न मनाती है. साथ ही सभी तीज का सेलिब्रेशन भी करते हैं. कार्तिक, नायरा का अनजाने में व्रत भी खुलवाता है. और वही गोयनका हाउस में एंट्री से नाराज वेदिका कार्तिक को तलाक देने का फैसला करती है. इसके अलावा वेदिका गोयनका हाउस भी छोड़कर चली जाएगी.

दरअसल, आपने  तीज के मौके पर देखा कि कार्तिक, नायरा को पानी पिलाकर उनका व्रत खोलता है, जिसे वेदिका देख लेती है. नायरा और कार्तिक को एक साथ देखकर वेदिका को एहसास होता है कि इन दोनों को कोई भी अलग नहीं कर सकता. इसलिए वेदिका कार्तिक को तलाक देकर उन दोनों की जिंदगी से दूर जाने का फैसला करती है.

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विसर्जन हादसा: ये खुद जिम्मेदार हैं अपनी मौत के या फिर भगवान

वे सब के सब नौजवान थे जिनकी आखो में आने वाली जिंदगी को लेकर तरह तरह के सपने थे कि बड़ा होकर ये करूंगा, वो करूंगा, ये बनूंगा, वो बनूंगा लेकिन अब उन सभी का दाह संस्कार हो गया है और पीछे रह गए हैं तो रोते बिलखते मां बाप और परिजन जो किस्मत और उस घड़ी को कोस रहे हैं कि क्यों उन्होंने अपने घर के लाडले चिरागों को गणेश विसर्जन में जाने दिया. लेकिन ये ही नहीं बल्कि कोई उस भगवान गणेश को नहीं कोस पा रहा जिसकी मूर्ति विसर्जित करने ये लोग ढ़ोलढ़मांके के साथ नाचते , गाते, गुलाल उड़ाते इस उम्मीद के साथ गए थे कि बप्पा मोरिया उनकी मुराद पूरी करेगा .

अगर इन नौनिहालों की मुराद मरने की थी तो वो जरूर पूरी हो गई है जिसके बाबत पूरे भोपाल में सिर्फ बतोलेबाजी चल रही है कि ऐसा होता तो ऐसा नहीं होता और मूर्ति विसर्जन के दौरान क्या क्या एहतियात बरतनी चाहिए.  कोई यह नहीं कह रहा कि आखिर झांकियां बैठाने की तुक क्या है और इनसे किसको क्या मिलता है. अकेले भोपाल में इस बार छोटी बड़ी कोई दस हजार झांकियां गणेश की लगी थीं इनमें से अधिकतर गरीब बस्तियों यानि झुग्गी झोपड़ी वाले इलाकों में थीं .

झांकियों के कारोबार का गुणा भाग कि इनसे किसको क्या और कितना मिलता है और क्यों. झांकियों का धंधा दिनों दिन फल फूल रहा है. लगाने से पहले एक नजर भोपाल के छोटे तालाब पर हुये उस बड़े हादसे पर डाला जाना जरूरी है जिससे समझ आए कि इन दिनों धार्मिक जुनून सर चढ़कर बोल रहा है .

ऐसे हुआ हादसा : भोपाल के पिपलानी इलाके के सौ क्वार्टर्स के अंबेडकर पार्क में समिति ने गणेश की झांकी लगाई थी. इसमें गणेश की 12 फीट ऊंची मूर्ति रखी गई थी और सजावट वगैरह पर भी तबीयत से पैसा फूंका गया था. इस इलाके में मामूली खाते पीते लोग रहते हैं जिनमे से अधिकतर छोटी और पिछड़ी जाति वाले हैं. जिन्होंने अपना पेट काटकर झांकी के लिए चंदा दिया था. कोई एक लाख रु इस पर खर्च हुये थे.

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दस दिन झांकी पांडाल भक्तों से आबाद रहा और गणपति बब्बा के नारे सुबह शाम लगते रह. 12 सितंबर की देर रात सैकड़ों लोग मूर्ति विसर्जन के लिए छोटे तालाब गए इनमे से कई रास्ते में से ही लौट गए.  रह गए तो झूमते नौजबान जिनके जिम्मे विसर्जन का काम भी था. यह झांकी शाम 5 बजे के लगभग सौ क्वार्टर इलाके से रवाना होकर देर रात 3 बजे के लगभग खटलापुरा घाट पर पहुंची. 4 बजे के लगभग मूर्ति को नाव पर रखा गया. जब एक नाव कम पड़ने लगी तो दूसरी नाव भी बुलाई गई क्योंकि मूर्ति भारी भरकम थी और विसर्जन के लिए 17 नौजवान तालाब तक जाने वाले थे.

नाविकों ने इन युवा भक्तों को आगाह भी किया था कि इतने वजन से नावों का बैलेन्स बिगड़ सकता है लेकिन जुनून में डूबे इन जोशीले युवाओं को गणपति पर पूरा भरोसा था क जो अंधों को आंख,कोढ़ियों को काया और बांझ औरतों को पुत्र देता है वह कोई अनहोनी कैसे होने देगा लिहाजा इन लोगों ने एक नहीं सुनी और मोरिया रे मोरिया के नारे लगाते रहे. नावें अभी कुछ दूर ही पहुंचीं थीं कि उनका बैलेन्स बिगड़ने लगा . जैसे ही नौजवानों ने मूर्ति को विसर्जन के लिए धक्का दिया तो बैलेन्स पूरी तरह बिगड़ गया और जुड़ी दोनों नावे अलग हो गईं.

बुद्धि देने वाले और विध्न हरने वाले गणपति ने कोई अक्ल इन्हें नहीं दी उल्टे जो थी उसे और हर लिया जो सभी लड़के दूसरी नाव पर आ गए. वजन ज्यादा हो जाने के चलते नाव डूब गई और वे 11 लड़के जो तैरना नहीं जानते थे, गहरे पानी में छटपटाते महज 50 सेकेंड में खुद विसर्जित हो गए. घाट पर खड़े लोग मदद के लिए चिल्लाते रह गए लेकिन जिनकी भगवान भी न सुने उनकी कोई और क्यों सुनता .

इस दुखद हादसे की खबर सुबह तक सोशल मीडिया पर वायरल हुई तो लोग भौंचक्क रह गए .

कार्रवाई की लीपापोती – अफरातफरी मचना कुदरती बात थी जिन्होंने अपने जवान बेटे खोये थे. वे मां  बाप रोते बिलखते घाट पर पहुंचे.  लेकिन वहां किसी को उनका लाल नहीं मिला.  भोपाल में अफसोस की लहर दौड़ गई तो पिपलानी इलाके में तो मातम छा गया. अब तक पुलिस प्रशासन और नेता भी जाग चुके थे. मुख्यमंत्री कमलनाथ ने हादसे की मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दे दिये और विपक्ष इसे लापरवाहियों की देन बताता रहा .

मुद्दे की बात यानी जगत के रखवाले ने क्यों अपने उन नौजवान भक्तों की जान नहीं बचाई.  भटकते बातें ये होती रहीं कि जब तालाब पर इतनी बड़ी मूर्तियों के विसर्जन पर रोक थी तो ये लोग वहां पहुंचे कैसे, नाजायज नावों को विसर्जन के लिए इजाजत किसने दी और ड्यूटी बजा रहे मुलाजिम कहां गायब थे वगैरह वगैरह. आम लोगों के साथ साथ मीडिया ने भी जमकर प्रशासन को खूब कोसा.  मानों उसने आकर नावें पलटाई हों. तुरंत ही कुछ मुलाजिमों को बर्खास्त भी कर दिया गया. नाजायज तौर पर नाव चलाने वाले चार नाविकों को गिरफ्तार कर लिया गया.

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मुआवजा क्यों:  इतना करने के बाद सरकार ने मृतकों के परिजनों को 11 – 11 रु के मुआवजे का ऐलान कर दिया और नगर निगम भोपाल ने भी 2 – 2 लाख रु देने की घोषणा कर दी . 50 – 50 हजार रु नौजवानों के अंतिम संस्कार के लिए दे दिये. यानी हरेक परिवार के हिस्से में बारह लाख रु आए. सवाल यह अहम नहीं है जैसी कि चर्चा ऐसे मौकों पर होती है कि सरकार ने नौजवानों की जिंदगी की कीमत इतनी या उतनी आंकी और क्या मुआवजे से किसी का बेटा वापस मिल जाएगा.

अहम सवाल यह है कि सरकार ऐसे धार्मिक हादसों पर मुआवजा देती ही क्यों है जिससे आम लोगों की लापरवाहियां और गलतियां न केवल ढकें और उन्हें शह भी मिले . असल में कोई सरकार चाहे भाजपा की हो या कांग्रेस की या किसी और पार्टी की यह नहीं चाहती कि भगवान धर्म और उसके दुकानदारों की असलियत उजागर हो . इससे होगा यह कि लोग जागरूक होने लगेंगे और तरह तरह के सवाल करने लगेंगे उन्हें पिछड़े रखने का इकलौता तरीका है कि धार्मिक पाखंडों को मुआवजे की चादर से ढके रखो.

हालात तो यह हो गई है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री जिनकी इमेज नास्तिकों जैसी है वे तक भाजपा की धार्मिक राजनीति से निपटने इस बार दुर्गा पूजा के पांडालों को 25 – 25 हजार रु दे रहीं हैं. पश्चिम बंगाल में भी हर साल दुर्गा मूर्ति विसर्जन के दौरान सैकड़ों लोग मरते हैं, ऐसे में पांडालों को सरकारी इमदाद देना इस तादाद में बढ़ोत्री करना नहीं तो और क्या है. मिसाल भोपाल के हादसे की ही लें तो कल तक अपने बच्चों की अकाल मौतों पर छाती पीट रहे घरवालों और नजदीकियों ने सरकारी नौकरी देने की बात भी उठवा दी है. अगर ऐसे हादसों पर भारी भरकम मुआवजा यूं ही दिया जाता रहा तो लोगों का लालच और बढ़ेगा और डर इस बात का भी है कि लोग जानबूझकर धर्म की आड़ में न मरने लगें जिससे उनके घर वालों को भारीभरकम मुआवजा मिले .

झुग्गियों में पसरता कारोबार : भोपाल विसर्जन में मारे गए सभी लड़के गरीब घरों के थे जिनके मन में कम उम्र में ही यह बात बैठ गई थी या बैठा दी गई थी कि पूजा पाठ झांकी वगैरह से ही वे सवर्णों के लेबल आ सकते हैं.  बाकी रही बात मेहनत और तालीम तो वे कोई खास मायने नहीं रखतीं क्योंकि आखिरकार देता तो ऊपर वाला ही है जैसे गरीब भिखारिन रानू मण्डल को दिया जो कल तक सड़कों पर गाने गाकर गुजर करती थी .

दरअसल में झुग्गी झोपड़ियों तक में गहरी पेठ बना चुके धर्म से फायदा सिर्फ पूजा पाठ करने वाले पंडे पुजारियों को ही होता है. जो अपना कारोबार चमकाने अब कुछ भी करने तैयार हैं. इससे गरीब छोटी जाति वाले बड़े खुश होते हैं कि देखो पंडित जी हमारे घर और झांकी में पूजा करने आ गए यह भगवान की लीला नहीं तो और क्या है. बेचारे यह नहीं समझ पाते न कोई उन्हें समझाना चाहता कि इसी धर्म के चलते वे सदियों और पीढ़ियों से गरीब बने हुय हैं. पहले उन्हें दुतकारा जाता था अब गले लगाकर जेब काटी जा रही है .

झांकी एक्ट क्यों नहीं: बात जहां तक भोपाल हादसे की है तो उसे देख जरूरत महसूस होने लगी है कि अब वक्त है कि मोटर व्हीकल एक्ट के बजाय सरकार झांकी एक्ट लाये. जिसमें ये इंतजाम किए जाएं कि विसर्जन के दौरान जो लोग मारे जाएंगे, उनके घरवालों को बजाय मुआवजा देने के उन पर उससे भी ज्यादा जुर्माना लगाया जाएगा. जिससे आइंदा ऐसे हादसे न हों और अनाप शनाप लगती झांकियों पर लगाम लगे. इससे अरबों रु की फिजूलखर्ची रुकेगी. इसमें कोई शक नहीं.

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किन फिल्मों से दूरी बनाना चाहते हैं आयुष्मान खुराना

बौलीवुड एक्टर आयुष्मान खुराना का नाम सबसे टैलेंटेड एक्टर्स की लिस्ट में शुमार हैं. उनकी हर फिल्म एक-दूसरे से काफी अलग होती है. और हर फिल्म में उनकी एक्टिंग शानदार होती है. चाहे उनकी कौमेडी  फिल्म  हो या समाज को मैसेज देने वाली फिल्म.

बता दें, हाल ही में रीलिज हुई ‘ड्रीम गर्ल’ में आयुष्मान की एक्टिंग के दर्शक कायल हो गए हैं. लेकिन कुछ ऐसी  फिल्में भी हैं, जिनसे आयुष्मान खुराना खुद को इनसे दूर रखना चाहते हैं. मीडिया रिपोर्टस के अनुसार आयुष्मान ने बताया कि वो कभी भी ऐसी फिल्में नहीं करना चाहेंगे, जिनको करने के बाद उन्हें पछताना पड़े और जो उन्हें पीछे की ओर ले जाएं. आयुष्मान ने  ये भी कहा कि एक प्रोग्रेसिव सिनेमा का हिस्सा होने पर मैं कभी भी ऐसा नहीं करूंगा, जिसके बाद मुझे पछताना पड़े.

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फिर चाहें ड्रीम गर्ल जैसी पारंपरिक फिल्म ही क्यों ना हो, जिसमें 90 के दशक का फ्लेवर हो. फिल्म में जिस तरह से गाने दिखाएं गए हैं, वो भी 90 के दशक के इंस्पायर है. हर सौन्ग के लिए एक परफेरक्ट जगह है.

आयुष्मान खुराना की फिल्म ‘ड्रीम गर्ल’ के बारे में आपको बताते हैं,  इस फिल्म में वो कौल सेंटर  में काम करते हैं और पूजा बनकर लड़कियों की आवाज में लोगों से बातें करते हैं. ये एक रोमांटिक कौमेडी फिल्म है. इसे राज शांडिलिया ने डायरेक्ट किया है. इस फिल्म नुशरत भरूचा संग आयुष्मान की केमिस्ट्री को भी काफी पसंद किया जा रहा है. इस फिल्म को दर्शक काफी पसंद कर रहे हैं. बौक्स औफिस पर काफी अच्छा रिस्पौंस मिल रहा है.

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राजभाषा हिंदी का सफर

हिंदी को संविधान में राजभाषा का स्थान प्राप्त हुए 69 वर्ष व्यतीत हो चुके हैं और अगर हम गंभीरता से इस बार विचार करें तो ये पायेंगे कि इतने वर्षों में अगर इस लक्ष्य की और हमने एक कदम भी बढ़ाया होता तो मंजिल के बहुत करीब होते.  हमने तो सिर्फ दशकों में उसे अधिनियम में परिवर्तन किया और कुछ परिवर्तन भी नहीं किया बल्कि उसको गोल गोल घुमा कर वहीं ला कर रख दिया गया.  हमने इसको इतने वर्षों में इस दिशा में कार्य करने सितम्बर माह की 14 तारीख, प्रथम पखवारा, अंतिम पखवारे तक सीमित कर दिया है.  प्रयास चाहे सरकारी हों या  संस्थानीय. अगर निरंतर प्रयास किया गया होता या फिर हम आज भी करें तो सकारात्मक परिणाम मिल सकते हैं.  अच्छे कार्य  के लिए देर कभी भी नहीं होती है.  अब भी सिर्फ राजभाषा के लिए नहीं अपितु हिंदी भाषा के लिए प्रगति और उसको गतिमान बनाये रखने की दिशा में हम बहुत काम कर चुके होते.

सरकार ने नीतियां बनाई लेकिन राजभाषा के साथ अंग्रेजी को हमेशा जोड़े रखा, आखिर क्यों ? अंग्रेजी हमारी देश की किसी भी राज्य की मातृभाषा नहीं है.  इसको तमिलनाडु की राजभाषा घोषित क्यों गया ? वहां की अपनी मातृभाषा है. संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाएं पास करके  समस्त  राज्यों से अधिकारी बनते हैं तो फिर उन समस्त विषयों के साथ राजभाषा की परीक्षा अनिवार्य क्यों नहीं रखा गया क्योंकि नौकरशाही और राजनीतिक महत्वाकांक्षा हिंदी को उसका   समुचित स्थान देने के लिए प्रतिबद्ध हुए ही नहीं है.

हिन्दी को भारत की राजभाषा के रूप में १४ सितम्बर सन् १९४९ को स्वीकार किया गया. इसके बाद संविधान में अनुच्छेद ३४३ से ३५१ तक राजभाषा के साम्बन्ध में व्यवस्था की गयी. इसकी स्मृति को ताजा रखने के लिये १४ सितम्बर का दिन प्रतिवर्ष हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है. केंद्रीय स्तर पर भारत में दूसरी सह राजभाषा अंग्रेजी है.

धारा ३४३(१) के अनुसार भारतीय संघ की राजभाषा हिन्दी एवं लिपिदेवनागरी है. संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिये प्रयुक्त अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतरराष्ट्रीय स्वरूप (अर्थात 1, 2, 3 आदि) है.

हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं है क्योंकि भारत का संविधान में कोई भी भाषा को ऐसा दर्जा नहीं दिया गया था.[2][3] संसद का कार्य हिंदी में या अंग्रेजी में किया जा सकता है. परन्तु राज्यसभा के सभापति महोदय या लोकसभा के अध्यक्ष महोदय विशेष परिस्थिति में सदन के किसी सदस्य को अपनी मातृभाषा में सदन को संबोधित करने की अनुमति दे सकते हैं. {संविधान का अनुच्छेद 120} किन प्रयोजनों के लिए केवल हिंदी का प्रयोग किया जाना है, किन के लिए हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं का प्रयोग आवश्यक है और किन कार्यों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाना है, यह राजभाषा अधिनियम 1963, राजभाषा नियम 1976 और उनके अंतर्गत समय समय पर राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय की ओर से जारी किए गए निदेशों द्वारा निर्धारित किया गया है.

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हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किये जाने का औचित्य

हिन्दी को राजभाषा का सम्मान कृपापूर्वक नहीं दिया गया, बल्कि यह उसका अधिकार है. यहां अधिक विस्तार में जाने की आवश्यकता नहीं है, केवल राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा बताये गये निम्नलिखित लक्षणों पर दृष्टि डाल लेना ही पर्याप्त रहेगा, जो उन्होंने एक ‘राजभाषा’ के लिए बताये थे-

(१) अमलदारों के लिए वह भाषा सरल होनी चाहिए.(२) उस भाषा के द्वारा भारतवर्ष का आपसी धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवहार हो सकना चाहिए.(३) यह जरूरी है कि भारतवर्ष के बहुत से लोग उस भाषा को बोलते हों.(४) राष्ट्र के लिए वह भाषा आसान होनी चाहिए.(५) उस भाषा का विचार करते समय किसी क्षणिक या अल्प स्थायी स्थिति पर जोर नहीं देना चाहिए.

इन लक्षणों पर हिन्दी भाषा बिल्कुल खरी उतरती है.

 अनुच्छेद 343 संघ की राजभाषा

(१) संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी, संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा.(२) खंड (१) में किसी बात के होते हुए भी, इस संविधान के प्रारंभ से पंद्रह वर्ष की अवधि तक संघ के उन सभी शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा जिनके लिए उसका ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले प्रयोग किया जा रहा था, परन्तु राष्ट्रपति उक्त अवधि के दौरान, आदेश द्वारा, संघ के शासकीय प्रयोजनों में से किसी के लिए अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिंदी भाषा का और भारतीय अंकों के अंतर्राष्ट्रीय रूप के अतिरिक्त देवनागरी रूप का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगा.(३) इस अनुच्छेद में किसी बात के होते हुए भी, संसद उक्त पन्द्रह वर्ष की अवधि के पश्चात्‌, विधि द्वारा(क) अंग्रेजी भाषा का, या(ख) अंकों के देवनागरी रूप का,

ऐसे प्रयोजनों के लिए प्रयोग उपबंधित कर सकेगी जो ऐसी विधि में विनिर्दिष्ट किए जाएं.

अनुच्छेद 351 हिंदी भाषा के विकास के लिए निर्देश

संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिंदी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे जिससे वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किए बिना हिंदुस्थानी में और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहां आवश्यक या वांछनीय हो वहां उसके शब्द-भंडार के लिए मुख्यतः संस्कृत से और गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करे.

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राजभाषा संकल्प, 1968

भारतीय संसद के दोनों सदनों (राज्यसभा और लोकसभा) ने १९६८ में ‘राजभाषा संकल्प’ के नाम से निम्नलिखित संकल्प लिया-

  1. जबकि संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार संघ की राजभाषा हिंदी रहेगी और उसके अनुच्छेद 351 के अनुसार हिंदी भाषा का प्रसार, वृद्धि करना और उसका विकास करना ताकि वह भारत की सामासिक संस्कृति के सब तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम हो सके, संघ का कर्तव्य है :

यह सभा संकल्प करती है कि हिंदी के प्रसार एंव विकास की गति बढ़ाने के हेतु तथा संघ के विभिन्न राजकीय प्रयोजनों के लिए उत्तरोत्तर इसके प्रयोग हेतु भारत सरकार द्वारा एक अधिक गहन एवं व्यापक कार्यक्रम तैयार किया जाएगा और उसे कार्यान्वित किया जाएगा और किए जाने वाले उपायों एवं की जाने वाली प्रगति की विस्तृत वार्षिक मूल्यांकन रिपोर्ट संसद की दोनों सभाओं के पटल पर रखी जाएगी और सब राज्य सरकारों को भेजी जाएगी.

2. जबकि संविधान की आठवीं अनुसूची में हिंदी के अतिरिक्त भारत की 21 मुख्य भाषाओं का उल्लेख किया गया है , और देश की शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक उन्नति के लिए यह आवश्यक है कि इन भाषाओं के पूर्ण विकास हेतु सामूहिक उपाए किए जाने चाहिए :

यह सभा संकल्प करती है कि हिंदी के साथ-साथ इन सब भाषाओं के समन्वित विकास हेतु भारत सरकार द्वारा राज्य सरकारों के सहयोग से एक कार्यक्रम तैयार किया जाएगा और उसे कार्यान्वित किया जाएगा ताकि वे शीघ्र समृद्ध हो और आधुनिक ज्ञान के संचार का प्रभावी माध्यम बनें.

3. जबकि एकता की भावना के संवर्धन तथा देश के विभिन्न भागों में जनता में संचार की सुविधा हेतु यह आवश्यक है कि भारत सरकार द्वारा राज्य सरकारों के परामर्श से तैयार किए गए त्रि-भाषा सूत्र को सभी राज्यों में पूर्णत कार्यान्वित करने के लिए प्रभावी किया जाना चाहिए :

यह सभा संकल्प करती है कि हिंदी भाषी क्षेत्रों में हिंदी तथा अंग्रेजी के अतिरिक्त एक आधुनिक भारतीय भाषा के, दक्षिण भारत की भाषाओं में से किसी एक को तरजीह देते हुए, और अहिंदी भाषी क्षेत्रों में प्रादेशिक भाषाओं एवं अंग्रेजी के साथ साथ हिंदी के अध्ययन के लिए उस सूत्र के अनुसार प्रबन्ध किया जाना चाहिए.

4.  यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि संघ की लोक सेवाओं के विषय में देश के विभिन्न भागों के लोगों के न्यायोचित दावों और हितों का पूर्ण परित्राण किया जाए

यह सभा संकल्प करती है कि-(क) कि उन विशेष सेवाओं अथवा पदों को छोड़कर जिनके लिए ऐसी किसी सेवा अथवा पद के कर्त्तव्यों के संतोषजनक निष्पादन हेतु केवल अंग्रेजी अथवा केवल हिंदी अथवा दोनों जैसी कि स्थिति हो, का उच्च स्तर का ज्ञान आवश्यक समझा जाए, संघ सेवाओं अथवा पदों के लिए भर्ती करने हेतु उम्मीदवारों के चयन के समय हिंदी अथवा अंग्रेजी में से किसी एक का ज्ञान अनिवार्यत होगा; और(ख) कि परीक्षाओं की भावी योजना, प्रक्रिया संबंधी पहलुओं एवं समय के विषय में संघ लोक सेवा आयोग के विचार जानने के पश्चात अखिल भारतीय एवं उच्चतर केन्द्रीय सेवाओं संबंधी परीक्षाओं के लिए संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित सभी भाषाओं तथा अंग्रेजी को वैकल्पिक माध्यम के रूप में रखने की अनुमति होगी.

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संगोष्ठी के उद्देश्य –

  • राजभाषा को दस्तावेजों से उठाकर वास्तव में प्रयोग करने की दिशा में कार्ययोजना तैयार करना
  • ‎प्राथमिक स्तर से उच्चतर माध्यमिक स्तर तक हिंदी की अनिवार्यता पर विचार किया जाय.
  • ‎शिक्षा के स्तर का समय समय और परीक्षण होना ज़रूरी है.
  • ‎प्राथमिक शिक्षकों के हिंदी के ज्ञान के स्तर का परीक्षण के पश्चात नियुक्ति की जाय. अथवा नियुक्ति से पहले एक परीक्षा हिंदी व्याकरण आदि के ज्ञान पर आधारित पास करना अनिवार्य हो.
  • ‎अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में भी स्कूलों में हिन्दी का पाठ्यक्रम सतही ना होकर सभी शिक्षा बोर्डों में समान हो, ताकि हिंदी को दोयम दर्जे का ना समझ जाये.
  • ‎राजभाषा को इतने वर्षों में पूरी तरह से लागू नहीं किया जा सका है, संविधान में परिभाषित इसके सफर को इतने वर्ष बाद गति देने के विषय में विमर्श किया जाए.
  • ‎अंग्रेजी को हिन्दी के स्थान और कुछ वर्षों तक रहने का प्राविधान किया गया था लेकिन आज भी अंग्रेजी ऊपर और हिन्दी नीचे है.
  • ‎हिन्दी को समुचित स्थान पर लाने का प्रयत्न करना है.
  • ‎अभिजात्य वर्ग की राजभाषा को उसके स्थान से चित्त रखने में भूमिका पर विचार.
  • ‎विश्व के पटल पर छायी रहने वाली हिन्दी और देश में प्रयोग होने वाली हिन्दी का स्थान सुनिश्चित कैसे हो. सोशल मीडिया द्वारा हिन्दी को विकृत करने की दिशा में उसकी भूमिका पर विमर्श एवं अंकयश पर प्रस्ताव.
  • ‎राजभाषा को मिलने वाले अनुदान पुरस्कार तथा अन्य सहायता का समुचित प्रयोग.

इतने वर्षों में यदि शिक्षा के स्तर पर हिंदी को देखा जाय तो मीडिया , मोबाइल और नेट से उपलब्ध सामग्री ने गहन ज्ञान में सेंध लगाई है . हिंदी का स्वरूप बिगड़ रहा है. न स्कूली शिक्षा में, न कार्यालयीन कार्यों में. जितने वर्ष हमने  हिंदी माह, पखवाड़ा, सप्ताह और दिवस मना रहे हैं, उतना ही हिंदी को प्राथमिकता देते तो ये दिवस बेमानी हो चुका होता .

अजब गजब: ये है दुनिया का सबसे भारी बच्‍चा

आज आपकोे दुनिया का सबसे भारी बच्चे के बारे में बताएंगे, जी हां इस  बच्चे का वजन महज 14 साल के उम्र में 237 किलोग्राम तक पहुंच गया था.  इस बच्चे का नाम मीहिर है और ये बच्चा दिल्ली का रहने वाला है. इसके परिवार वाले उसे दिल्‍ली में साकेत स्‍थित मैक्स हौस्पिटल ले कर गए जहां उसका मोटापा देख कर डौक्‍टर भी हैरान हो गए.

इसके बाद डौक्‍टरों ने फैसला किया कि उसकी  गैस्ट्रिक बाईपास सर्जरी की जाये. हांलाकि ये काफी चुनौती पूर्ण था. इससे पहले 2010 में जब मिहिर को डाक्‍टरों को दिखाया गया था तो उन्‍होंने उसकी कम उम्र के कारण सर्जरी करने से इंकार कर दिया था. डाक्टरों के अनुसार ये सर्जरी कराने वाला मिहिर दुनिया का सबसे भारी बच्चा था.  डौक्टरों के लिए ये एक चुनौती था, क्‍योंकि इतने भारी बच्‍चे को एनीस्थीसिया कैसे दी जायेगी.

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परिवार वालों का कहना है कि वैसे 2003 में जन्‍म के समय मिहिर का वजन सामान्‍य बच्‍चों की तरह ही 2.5 किलोग्राम था, पर उम्र बढ़ने के साथ ये खतरनाक हद तक बढ़ता चला गया. पांच साल तक होते होते वो 60 से 70 किलो तक पहुंच गया और 14 साल में ये 237 किलो हो गया. उसके लिए चलना फिरना दूभर हो गया. बिना मदद के वो खड़ा नहीं हो पाता था और ज्‍यादातर बेड पर पड़ा रहता था.

आपको बता दें,  बाद में मिहिर की सफल गैस्ट्रिक बाईपास सर्जरी की गई, और अब उसका वजन घट कर सामान्‍य हो गया है. इलाज की प्रक्रिया कई चरणों में चली. जैसे पहले चरण में पास्‍ता और पिज्‍जा के शौकीन मिहिर की डाइट को नियंत्रित करके उसको 2,500 कैलोरी से कम करके 800 कैलोरी पर लाया गया. जिससे उसका वजन करीब 10 किलो घटा.

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डौक्टर के सीने में डायलिसिस की गोली: भाग 2

डौक्टर के सीने में डायलिसिस की गोली: भाग 1

भाग-2

 अब आगे पढ़ें- 

पुलिस ने पहले तो परिवार के लोगों से जानकारी ली कि उन्हें कभी किसी ने फिरौती के लिए तो फोन नहीं किया था या फिर किसी के साथ उन का झगड़ा तो नहीं हुआ था. इस बारे में परिवार के सदस्यों से कोई जानकारी नहीं मिल पाई.

इस के बाद पुलिस की एक टीम ने अस्पताल के डाक्टरों, नर्सों और कर्मचारियों से पूछताछ की. किसी मरीज ने डाक्टर के साथ झगड़ा किया हो, किसी मरीज की मौत के बाद उस के घर वालों ने झगड़ा किया हो या कोई धमकी दी हो. पर ऐसा कोई वाकया सामने नहीं आया.

इस हत्या के बाद शहर के सभी डाक्टर डरे हुए थे. अभी तक डाक्टर की हत्या के कारणों का खुलासा नहीं हुआ था. पुलिस इस मामले को फिरौती व पुरानी रंजिश से भी जोड़ कर देख रही थी.

पुलिस ने दोबारा डा. राजीव गुप्ता के ड्राइवर साहिल से गहराई से पूछताछ कर जानकारी ली. तीनों आरोपी कैसे दिखते थे?  इस पूछताछ में ड्राइवर ने बताया कि एक आरोपी सेहत में हट्टाकट्टा था और बाकी के 2 आरोपी दुबलेपतले थे.

2 लोगों ने अपने चेहरे ढंके हुए थे और बाइक चालक का चेहरा खुला था, पर वह उन्हें ठीक से देख नहीं पाया था क्योंकि गोली चलते ही वह कार से उतर कर पास वाली झुग्गियों की तरफ भाग गया था.

साहिल के इस बयान के बाद पुलिस ने आसपास के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकलवाई तो एक के बाद एक तार जुड़ते चले गए. बाइक पर सवार एक व्यक्ति डा. राजीव गुप्ता के ही अस्पताल का पूर्व कर्मचारी था. पुलिस ने उस की कुंडली खंगाली तो पता चला कि वह  डायलिसिस तकनीशियन था और गांव पाढ़ा का रहने वाला था. लेकिन फिलहाल वह आर.के. पुरम में रह रहा था.

वह डा. गुप्ता के पास पिछले 10 सालों से काम कर रहा था. बाद में डा. गुप्ता ने दिसंबर, 2018 में किसी बात पर उसे अस्पताल से निकाल दिया था. दूसरी ओर पुलिस की एक टीम शहर के चौक चौराहे पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाल रही थी.

इन फुटेज में वारदात से पहले बाइक पर सवार 3 युवकों को सेक्टर-16 में जाते देखा गया था. उस फुटेज को पुलिस ने ड्राइवर सहित अस्पताल के स्टाफ को दिखाया तो उन्होंने आरोपी पवन दहिया को पहचान लिया.

फिर क्या था. पुलिस की 8 टीमों ने ड्राइवर के बताए हुलिए से 10 घंटों में यानी सुबह पांच बजे तक पवन दहिया सहित 2 युवकों रमन उर्फ सेठी निवासी बड़ा मंगलपुर, शिवकुमार उर्फ शिबू निवासी रामनगर को गिरफ्तार कर लिया. इन तीनों को हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सीमा के पास से गिरफ्तार किया गया.

पुलिस ने तीनों आरोपियों से वह देसी कट्टा भी बरामद कर लिया, जिस से उन्होंने डाक्टर पर गोलियां चलाई थीं. 8 जुलाई, 2019 को तीनों आरोपियों को अदालत में पेश कर उन का 7 दिनों का पुलिस रिमांड लिया गया.

रिमांड के दौरान हुई पूछताछ में डा. राजीव गुप्ता की हत्या का जो कारण सामने आया, वह था नौकरी से निकाले गए एक कर्मचारी की रंजिश. मुख्य आरोपी पवन डा. राजीव गुप्ता के पास काम करता था.

पवन डा. गुप्ता के साथ 10 साल तक बतौर डायलिसिस टेक्नीशियन के तौर पर काम कर चुका था. उस ने इस वारदात को अपने 2 साथियों के साथ मिल कर अंजाम दिया. डा. राजीव गुप्ता ने पवन को नौकरी से निकाल दिया था, जिस के बाद उसे कहीं और काम नहीं मिल रहा था. इसलिए वह डा. राजीव से रंजिश रखने लगा था.

दरअसल पवन दहिया को बचपन से ही हथियार रखने का शौक था. उस के फेसबुक पेज पर उस का जो फोटो लगा था, वह भी हथियारों के साथ था. उसे एक शौक यह भी था कि हर समय उस के साथ 3-4 चेले रहें और उस के कहे अनुसार काम करें.

पवन ने साल 2009 में असलहे का लाइसेंस बनवा कर एक रिवौल्वर खरीदा था. तभी से उस के रंगढंग बदल से गए थे. वह दुबलापतला इंसान था. लेकिन रिवौल्वर की धाक जमाने के लिए उस ने जिम जौइन किया और अपनी सेहत बना कर हट्टाकट्टा जवान बन गया.

अब वह हर समय रिवौल्वर अपने पास रखता था और लोगों पर धौंस जमाता था. यहां तक कि वह अस्पताल भी अपनी रिवौल्वर के साथ आता था. उस के यारदोस्त भी किसी पर रौब जमाने के लिए उसे साथ ले जाने लगे थे. इसी वजह से वह कभी भी समय पर अस्पताल नहीं पहुंचता था. मरीज उस का घंटों बैठ कर इंतजार करते और थकहार कर वापस लौट जाते.

डा. राजीव को जब पवन की इस हरकत का पता चला तो उन्होंने अस्पताल का मालिक और बड़ा होने के नाते पवन को समझाया. एक बार नहीं, बारबार समझाया. उसे मौखिक और लिखित चेतावनियां दी गईं. पर पवन अपनी हरकतों से बाज नहीं आया.

अपने अस्पताल की प्रतिष्ठा को देखते हुए राजीव गुप्ता ने पवन को दिसंबर 2018 में नौकरी से निकाल दिया था. नौकरी से निकाले जाने के बाद वह जहां भी नौकरी मांगने जाता, उसे नौकरी नहीं मिलती थी. धीरेधीरे पवन के दिमाग में यह बात घर करने लगी थी कि डा. राजीव ही दूसरे डाक्टरों को उसे नौकरी देने से मना करता होगा. वह डा. राजीव से रंजिश रखने लगा और उन से बदला लेने की फिराक में रहने लगा.

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अमृतधारा अस्पताल के संचालक व आईएमए के पूर्व प्रधान डा. राजीव गुप्ता की हत्या को अंजाम देने के लिए पवन दहिया ने अपने लाइसैंसी रिवौल्वर का इस्तेमाल नहीं किया था, बल्कि उस ने उत्तर प्रदेश से 50 हजार रुपए में देसी पिस्तौल खरीदा था.

इस के बाद उस ने अपने दोस्त शिव कुमार और रमन निवासी मंगलपुर को पैसे का लालच दे कर डाक्टर की हत्या करने के लिए तैयार कर लिया. पवन ने दोनों को कहा कि वह उस के साथ मिल कर एक काम करेंगे तो मोटा पैसा आएगा, जो भी पैसा मिलेगा उसे आपस में बांट लेंगे.

रिमांड के दौरान पवन ने बताया कि उसे हुक्का पीने का शौक है. वह घर के बाहर ही मजमा लगा कर दोस्तों के साथ हुक्का पीता था. मंगलपुर निवासी शिव कुमार और रमन भी इसी हुक्के के कारण उस के दोस्त बने थे.

पवन ने उन्हें अपना चेला बना लिया था. वे उस के कहे अनुसार काम करते थे. पूछताछ में रमन और शिव कुमार ने बताया कि उन के पास रोजगार नहीं था, कुछ ही दिनों में पवन ने अच्छा पैसा कमा लिया था, इसलिए वे उस के साथ जुड़ गए ताकि पैसा कमाया जा सके.

डा. राजीव गुप्ता की हत्या के समय शिव कुमार बाइक चला रहा था, जबकि उस के पीछे रमन बैठा था और सब से पीछे मुंह ढके पवन दहिया बैठा हुआ था. शाम 5 बज कर 5 मिनट पर तीनों बदमाश बाइक से जाते हुए आईटीआई चौक के कैमरे में कैद हुए थे.

डा. गुप्ता नमस्ते चौक के पास से होते हुए जब होटल येलो सफायर, सेक्टर-16 से अमृतधारा अस्पताल की ओर जा रहे थे, तभी बदमाशों ने सेक्टर-16 के चौक के पास ब्रेकर पर बाइक खड़ी कर दी थी और डाक्टर के वापस आने का इंतजार करने लगे थे.

जब डा. राजीव वापस आए तो ब्रेकर पर गाड़ी धीमी होते ही पवन ने फायरिंग शुरू कर दीं. डाक्टर गुप्ता ड्राइवर साहिल के साथ अगली सीट पर बैठे हुए थे. एक के बाद एक बदमाशों ने शीशे पर 3 गोलियां दागीं, जो डाक्टर गुप्ता के हाथों पर लगीं.

इस के बाद पवन ने साइड के आधे खुले शीशे के पास जा कर डाक्टर की छाती पर 3 गोलियां दाग दीं. डाक्टर की हत्या करने के बाद तीनों आरोपी पहले पवन के घर गए. वहां से पवन ने अपनी स्विफ्ट कार ली और फिर वे उसी में सवार हो कर उत्तर प्रदेश भाग रहे थे. इस दौरान पुलिस को इस बात की भनक लग गई थी. सुबह 5 बजे ही पुलिस ने तीनों आरोपियों को उत्तर प्रदेश-हरियाणा सीमा पर गिरफ्तार कर लिया.

जिस बाइक पर सवार हो कर इन तीनों आरोपियों ने वारदात को अंजाम दिया था, वह बाइक शिवकुमार की थी. इस बाइक की नंबर प्लेट आरोपियों ने उतार दी थी ताकि कोई नंबर नोट ना कर सके. जिसे रिमांड के दौरान पुलिस ने बरामद कर लिया. इस पूरी वारदात को बदले की भावना से अंजाम दिया गया था.

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7 जुलाई को शाम साढ़े 5 बजे जुंडला गेट स्थित शिवपुरी के श्मशानघाट में डा. राजीव गुप्ता का अंतिम संस्कार किया गया.

रिमांड की समाप्ति के बाद तीनों आरोपियों को अदालत में पेश कर जिला जेल भेजा गया. पवन दहिया इतना चालाक था कि डाक्टर राजीव गुप्ता की हत्या करने के बाद उस ने यह खबर रात 9 बजे बड़े दुख के साथ अपने फेसबुक पेज पर पोस्ट की थी ताकि कोई उस पर संदेह ना करे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य: मनोहर कहानियां

सावधान! एसी है स्वास्थ्य के लिए हानिकारक

अगर आप भी हैं एसी की हवा के शौकिन तो हो जाये सावधान. आजकल हर कोई एसी की सुकून भरी हवा में रहना पसंद करता हैं लेकिन ये ठंडी हवा आपकी सेहत पर भारी पड़ सकती हैं और आपको कई बीमारियों से पीड़ित बना सकती हैं. लोगों को एसी वरदान की तरह लगता हैं दफ्तर हो या घर एसी की हवा ही सुहाती हैं इतना ही नहीं बच्चों को स्कूल भी वही भाते हैं जिनमे हर क्लास मे एसी की ठंडक मिले.

अगर बात सफर की करें तो बिना एसी की गाड़ी तो अब किसी को भाती ही नहीं. एसी में गर्मी से राहत तो मिलती हैं लेकिन आपकी सेहत पर बुरा असर डालती है. तो आइए जानते हैं, एसी में रहने के क्या नुकसान है.

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जोड़ों में दर्द -अक्सर लोग शिकायत करते हैं कि उनके घुटनो मे दर्द रहने लगा है. लेकिन वो यह नहीं समझ पाते कि ये दर्द होता क्यों है. लगातार एसी के कम तापमान में बैठने से सिर्फ घुटनों की समस्या ही नहीं होती बल्कि आपके शरीर के सभी जोड़ों में दर्द के साथ-साथ अकड़न पैदा करता है और उनकी कार्यक्षमता धीरे-धीरे कम होने लगती है. आगे चलकर यह हड्डियों से जुड़ी बीमारियों को जन्म भी दे सकता है.

नमी कम करता है : एसी में ज्यादा देर तक रहने से शरीर के कई अंगो मे मौइस्चर की कमी आ जाती है आपकी आंखों के अंदर भी नमी की कमी हो जाती है जिस कारण आपको आंखों मे दर्द व खुजली महसूस होती है. एसी के दुस्प्रभाव आपकी त्वचा को  भी झेलने पड़ते है. जिससे आपकी त्वचा में रूखी व बेजान लगने लगती है.

रक्तसंचार: एसी में बैठने से शारीरिक तापमान कृत्रिम तरीके से ज्यादा कम हो जाता है जिससे कोशिकाओं में संकुचन होता है और सभी अंगों में रक्त का संचार बेहतर तरीके से नहीं हो पाता, जिससे शरीर के अंगों की क्षमता प्रभावित होती है.

ताजी हवा खाएं

एसी चलते समय रूम ठंडा करने के लिये, हमें कमरे के खिड़की दरवाजे बंद करने पड़ते है जिस कारण हमें ताजी हवा नहीं मिल पाती और यह नुकसान दायक होती है. ताजी हवा की कमी से हम जल्दी थक जाते हैं.

एसी से हो सकती हैं ये बीमारियां

कमरे का तापमान जरूरत से ज्यादा ठंडा हो तो हमारे शरीर की सहने की क्षमता कम हो जाती है. ठंड की वजह से सिरदर्द और बदन दर्द जैसी समस्याएं भी हो जाती हैं. जरूरत से ज्यादा ठंड से जो़ड़ों में दर्द और गठिया की दिक्कतें भी हो जाती हैं. अगर आपके एसी का फ़िल्टर साफ सुथरा नहीं है तो आपको सांस से जुड़ी बीमारियां भी घेर सकती हैं और लंग इन्फेक्शन भी हो सकता है.

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अगर आपको ब्लडप्रेशर संबंधित समस्याएं हैं तो आपको एसी से परहेज करना चाहिए. यह लो ब्लडप्रेशर के लिए जिम्मेदार हो सकता है और सांस संबंधी समस्याएं भी पैदा कर सकता है. अस्थमा के मरीजों को भी एसी के संपर्क में आने से बचना चाहिए.

एसी का करते है प्रयोग तो इन बातों का रखें ख्याल

हर साल सर्विस करवाएं.

एसी के फिल्टर हर महीने खुद ही साफ कर के लगाए.

स्प्लिट एसी विंडो एसी के मुकाबले ज्यादा बेहतर गैस की क्वालिटी का ध्यान रखें.

गलत गैस डालने से भी दिक्क़त होती है.

सारे वक्त कमरे, खिड़कियों को बंद न रखें ताकि प्रदूशित हवा निकल सके.

घरों या दफ्तरों में एसी का तापमान 25-26 डिग्री सेल्सियस ही रखना चाहिए. ऐसा करने से सेहत भी ठीक रहेगी और बिजली का बिल भी कम आएगा.

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अगर आप अपने गुस्से पर काबू करना चाहते हैं तो पढ़ें ये खबर

यह सच है कि गुस्सा एक प्राकृतिक और सामान्य भावना है. यह इंसान की एक शारीरिक प्रतिक्रिया है. अगर यह कहें कि गुस्सा इंसान की खुशी और गम की तरह एक भावना है तो गलत नहीं होगा.

क्या आप ने ‘एंग्री बर्ड’ मूवी देखी है? इस में मुख्य पात्र को गुस्सा आता है, इसलिए वह पक्षियों की बस्ती से दूर सागर के किनारे रहता है. मगर जब वह अपने गुस्से पर नियंत्रण करना सीख जाता है तो बस्ती का हीरो बन जाता है. मूवी में यही सीख है कि गुस्सा किसी भी चीज का हल नहीं है.

यह सच है कि गुस्सा एक प्राकृतिक और सामान्य भावना है. यह इंसान की एक शारीरिक प्रतिक्रिया है. अगर यह कहें कि गुस्सा इंसान की खुशी और गम की तरह एक भावना है तो गलत नहीं होगा. लेकिन कभीकभी गुस्सा इतना बढ़ जाता है कि वह स्वयं की और आसपास के लोगों की खुशियों पर अपना प्रभाव डालने लगता है.

जीवन में खुशियां, परेशानियां आतीजाती रहती हैं. गुस्सा कर के रिश्तों में दरार न पैदा करें. यह पता लगाएं कि किन हालात में गुस्सा बढ़ता है. हालात और कारणों को समझें और उन से उपजी परेशानियों को दूर करने का प्रयास करें. गुस्से को दबाएं नहीं, बल्कि इस के कारणों को पहचानें और दूर करने का प्रयास करें. आप के गुस्से से किसी और का फायदा हो सकता है, लेकिन आप का सिर्फ नुकसान ही होगा. आप का गुस्सा आप का नुकसान. गुस्सा रिश्तों को बिगाड़ता है, गलतफहमियों को भी जन्म देता है. ठंडे दिमाग से ही चीजें सुलझती हैं. गुस्से का अंत पछतावे पर होता है. यह चारित्रिक दोष है.

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यूं शांत करें गुस्सा

जब भी गुस्सा आए, ये आसान टिप्स आजमा कर देखें, गुस्सा छूमंतर हो जाएगा:

– पानी पीएं.

– तय कर लें कि जिस बात पर आप को गुस्सा आया है, उस की प्रतिक्रिया आप 48 घंटे बाद देंगी. क्या चमत्कार होगा, आप देख कर स्वयं ही हैरान रह जाएंगी.

– जब भी गुस्सा आए, कोई गाना गाना शुरू कर दें या कोई म्यूजिकल इंस्ट्रूमैंट बजाएं.

– जब गुस्सा आ रहा हो अपने स्मार्टफोन का फायदा उठाएं, नोटिफिकेशन देखना शुरू कर दें. डिस्काउंट्स देखना शुरू कर दें. फिर देखिए आप का गुस्सा अपनेआप गायब होता चला जाएगा.

– एक आजमाया हुआ फार्मूला-उलटी गिनती यानी 100 से 0 तक उलटी गिनती मन ही मन शुरू कर दें.

– गुस्से के समय आई ऐनर्जी का यूज करें. लंबी सैर पर निकल सकती हैं तो निकल जाएं. लौटने तक खुद को अच्छा, खुश और शांत महसूस करेंगी.

– कमान से निकला तीर, मुंह से निकला शब्द कभी वापस नहीं आता. गुस्सा जब आए तो बोलें नहीं. लिखना शुरू कर दें. आप को बाद में लगेगा वाह, क्या राइटर हैं आप.

– गहरी सांसें लें

– बुजुर्गों से बातें करें. बच्चों के साथ खेलना शुरू कर दें.

– जिस जगह गुस्सा आ रहा हो, उस जगह से फौरन हट जाएं.

– खूब अच्छी नींद लें. सो कर उठने पर गुस्सा स्वत: शांत हो चुका होगा.

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क्या कहती हैं हस्तियां

कई मशहूर हस्तियों ने भी क्रोध पर अपने विचार व्यक्त किए हैं:

– क्रोध के कारण की तुलना में उस के परिणाम कितने गंभीर होते हैं- मार्क्स औरलेस

– एक क्रोधित व्यक्ति अपना मुंह खोल लेता है और आखें बंद कर लेता है- कैटो

– अपने दुश्मनों को हमेशा खीझ भरे खत लिखें, उन्हें कभी भेजें नहीं- जोन्स फैलोज

– क्रोध वह तेजाब है जो किसी भी चीज, जिस पर वह डाला जाए, से ज्यादा उस पात्र को हानी पहुंचा सकता है, जिस में वह रखा है- मार्क ट्वेन.

अब जब गुस्से से सब से ज्यादा नुकसान गुस्सा करने वाले को ही पहुंचता है, तो अपना नुकसान क्यों करें? गुस्सा दूर करने के उपायों पर गौर करें, शांत रहें, प्रसन्न रहें. जो गुस्सा किसी काम का नहीं, फौरन उस से छुटकारा पा लें.

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गाय लें या कार

इधर कई दिनों से मैं भी सोच रहा था कि बहुत हो गया जिंदगी के 55 बजट बिना कार के सिटी बसों में धक्के खाते और देते गुजार दिये अब मुझे भी एक फोर व्हीलर यानि कि एक अदद कार ले ही लेना चाहिए . इसके लिए मैंने जरूरी रकम 2 लाख रु जिसे बैंक की भाषा में डाउन पेमेंट कहते हैं जुगाड़ भी ली थी. बाकी 6-8 लाख दूसरे निम्न मध्यमवर्गियों की तरह कर्ज लेने जरूरी जानकारियां भी जुटा ली थीं. यह अब तक की सबसे बड़ी राशि थी जो मेरे बचत खाते में इकट्ठा हुई थी .

एक भारतीय लेखक के लिए इतनी बड़ी राशि जुगाड़ लेना किसी चंद्रयान बना लेने से कम उपलब्धि नहीं होती जो हरेक रचना के पारिश्रमिक के लिए प्रकाशक नाम की शोषक बिरादरी का मोहताज रहता है. अभी चार दिन पहले ही ऐसा ही हजार रु का चेक लेकर बैंक पहुंचा और एंट्री के लिए पासबुक क्लर्क के आगे प्रस्तुत की तो उसने मेरी तरफ जेबी जासूस की तरह देखा और बोला क्या बात है प्रेमचंद जी, लगता है लिखने का धंधा खूब चकाचक चल रहा है. मैंने हमेशा की तरह उसके इस ताने का बुरा नहीं माना .

सालों से मैं अपने इकलौते खाते में चेक ही जमा कर रहा हूं लेकिन बीते 2 सालों से पैसा कम निकाल रहा हूं. बाबू भी मेरे खाते की तरह प्राचीन है जो जानता है कि यह वही शख्स है जो चेक जमा होने के दूसरे दिन से ही बैंक आकर पूछना शुरू कार देता है कि चेक क्लियर हुआ या नहीं जबकि उसे यानि मुझे मालूम है कि इसमें हफ्ता भर तो लग ही जाता है .

उस दिन मैं फोर व्हीलर को लेकर जोश में था क्योंकि उसके भ्रूण के दिमाग में विकसित होने का वक्त पूरा हो चुका था. इसलिए डिलिवर हो ही गई कि सोच रहा हूं कि फोर व्हीलर ले लूं. कहा भी इस रईसी अंदाज में मानों भाजी तरकारी खरीदने की बात कर रहा हूं.

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इतना सुनना भर था कि बाबू को गश सा आ गया.  अभी तक वह मुझे शक भरी निगाहों से देख रहा था लेकिन अब उसको यकीन हो आया कि मैं जरूर कोई बड़ी गड़बड़ लिखने के नाम पर कर रहा हूं.  उसकी नजरों में तरस का सितारा भी चमकता हुआ मुझे साफ साफ दिखा. कुछ संभलकर उपहास  उड़ाने के अंदाज में वह बोला ले लो, आप भी ले लो शायद कोई दूसरा बैंक कर्ज दे दे .

आदतन बाबू की बातों को ईर्ष्या समझ मैं उसे सकपकाया हुआ छोड़ कर वापस आ गया और सड़क पर आती जाती दर्जनों कारों के मौडलों का मुआयना करता रहा कि कौन सी ठीक रहेगी. जानें क्यों हर बार वे ही कारें जमी जिन्हें कोई खूबसूरत महिला चला रही थी. मैं खुद नहीं समझ पा रहा था कि मैं पसंद क्या कर रहा हूं, खूबसूरत कार या खूबसूरत महिला .

बाबू पर दिल का राज खोल चुका था इसलिए घर आकर पत्नी को भी सूचित कर दिया कि जल्द ही हम लोग भी कार वाले हो जाएंगे. उम्मीद थी कि सुनकर वह फिल्मी हीरोइनों की तरह गले से लिपट जाएगी और कहेगी ओह डार्लिंग तुम कितने अच्छे हो.  लेकिन उसने चाकू और सब्जी किनारे रखकर पास आकर मेरे नथुनो में अपने नथुने घुसाकर यह तसल्ली कर ली कि भरी दोपहर में मैं पीकर नहीं आया हूं और जो कह रहा हूं वह अविश्वसनीय ही सही. लेकिन  वैसा सच नहीं है जैसा यह था कि सभी के खाते में 15 – 15 लाख आएंगे .

पहले तो उसने इन्कमटेक्स अधिकारियों की तरह सारी पूछताछ की फिर एक और तसल्ली हो जाने के बाद कार आने की खुशी में पैसा छिपाने के इल्जाम से मुझे बाइज्जत बरी कर दिया. फिर शुरू हुई आगे की प्लानिंग कि चलो जैसे तैसे कार ले भी ली तो उसकी किश्तें कहां से भरेंगे. लिखने के धंधे में भी मंदी आती रहती है अगर दो तीन महीने भी काम नहीं चला तो कार बैंक वाले घसीट ले जाएंगे. एक तो पहले से ही अपनी समाज और रिश्तेदारी में कोई खास इज्जत नहीं है इसलिए बेइज्जती कराने के पहले हजार बार सोच लो क्योंकि वह अभी तक बहुत ज्यादा नहीं हुई है.

इतना सुनना भर था कि सालों की भड़ास निकल पड़ी कि बेइज्जती तो तब होती है जब लोग हमें अपने कार विहीन होने को लेकर ऐसे देखते है. जैसे पैसे वाले भक्त मंदिर के बाहर खड़े भिखारी को  याद कर रहे हैं. रिश्तेदार कैसे कैसे हमें बेज्जत करते हैं पिछले महीने ही मुन्नू ( मेरा फुफेरा भाई ) का फोन आया था कि मिलने आपके घर आ रहा हूं, रास्ते में हूं यह बताएं कि क्या मेरी कार आपकी गली में घुस पाएगी, अभी उठाई है 12 लाख की है थोड़ी बड़ी है इसलिए पूछ रहा हूं .

याद करो लोग कैसे कैसे अपनी कारों के बारे में बताकर हमें नीचा दिखाते हैं. दूर दराज के मेरिज गार्डन में किसी शादी में जाओ तो हाल चाल से पहले भाई, भतीजे, भांजे तक यह पूछते हैं कि अरे कैसे आए.  इतनी रात गए तो आटो रिक्शा मिलता नहीं और मिल भी जाये तो मुंह मांगा पैसा वसूलते हैं जिसे देना हर किसी ( आपके) के बस की बात नहीं होती  और अब जाएंगे कैसे.  मैं आप लोगों को ड्रौप कर देता लेकिन वो क्या है कि अभी एक शादी में और जाना है खैर कुछ न कुछ इंतजाम हो ही जाएगा. लेकिन  अब आप भी कार ले ही लो आजकल तो आसानी से लोन मिल जाता है.

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ऐसे कई पीड़ादायक संदर्भ प्रसंगों का पुण्य स्मरण करने के बाद ईएमआई बगैरह गौण लगने लगीं और पत्नी को समझ आ गया कि अब  मैं बिना कार लिए मानने वाला नहीं तो वह सालों बाद असली प्यार से मेरे खिचड़ी बालों में अपनी सख्त हो गई उंगलियां फिराते बोली , कहो तो छोटू से बात करूं उससे 2-3 लाख उधार ले लेंगे फिर अपनी सहूलियत से लौटाते रहेंगे .

छोटू यानि उसका इकलौता भाई और मेरा इकलौता साला जो पुलिस में हवलदार है और उसकी चार कारें किराए पर चलती हैं. लाख  दो लाख उसके लिए उतनी ही मामूली रकम है जितनी मेरे लिए सौ दो सौ रु की होती है. प्रस्ताव हालांकि आकर्षक था लेकिन मेरे स्वभाव और स्वाभिमान से मेच करता हुआ नहीं था इसलिए मैंने उसे क्रूरता पूर्वक ठुकराते पत्नी को कुछ पुरानी बातें याद दिलाईं कि दहेज में मैंने तुम्हारे पूज्य जमींदार पिता से एक ढेला भी नहीं लिया था. उल्टे फिल्मी स्टाइल में हीरो की तरह डायलौग मारा था कि बेटी को एक जोड़ी कपड़ों में विदा कर दो और वे भी न हों तो कोई बात नहीं. मैं अभी शुभम वस्त्रालय से मगा लेता हूं मेरा उधारी खाता उसी के यहां चलता है .

इस पर ससुर जी खूब पछताए थे कि बेटी ने एक फक्कड़ लेखक के प्यार में फंसकर प्रेम विवाह कर डाला कोई खास हर्ज वाली बात नहीं पर बेचारी अब खुद ज़िंदगी भर पछताएगी. उन्होंने तो मुझे यह पेशकश तक की थी कि लिखते हो कोई बात नहीं, अक्सर जवानी में कुछ लोगों को यह रोग लग जाता है लेकिन इससे गृहस्थी नहीं चलती.  तुम लिखते रहो पर कहो तो कहीं मास्टरी दिलवा दूं या पटवारी बनवा दूं . कई नेता चंदे के लिए हर चुनाव में मेरी चौखट पर मत्था टेकते हैं .

आदर्श और प्रलोभनों की लड़ाई में आदर्श हमेशा की तरह जीते और ससुर जी बेचारे अपनी फूल सी बेटी की चिंता में कुम्हलाकर देव लोक प्रस्थान कर गए. इन भूतपूर्व बातों से पत्नी को समझ आ गया कि अब कुछ नहीं हो सकता यह आदमी बीस साल बाद भी नहीं बदला , नहीं तो छोटू तो एक फोन पर लाख दो लाख तो क्या पूरी कार ही भेज देता .

खैर अतीत के झरोखों से उतर कर बात कारों के माडलों पर आकर रुक गई . तय यह हुआ कि बेटा कालेज से आ जाये तो उससे ही पूछते हैं कि कौन सी ठीक रहेगी. सोचने की देर थी कि बेटा अरुण जिन्न की तरह प्रगट हो गया. उसने पूरी गंभीरता से पूरी रामायण सुनी और विशेषज्ञ अर्थशास्त्रियों की तरह ज्ञान बघारा कि आजकल आटो मोबाइल सेक्टर मंदी के दौर से गुजर रहा है और उसमें हम जैसे अभावग्रस्त लोग योगदान न ही दें तो बेहतर है .

उसके इस दो टूक जवाब से मेरी हिम्मत जीडीपी की तरह गिरने लगी तो मेरा उतरा चेहरा देखकर उसने ही वित्त मंत्री की तरह हिम्मत बंधाई कि आप टेंशन मत लो भगवान की कृपा से आज नहीं तो कल मंदी का कोहरा चीर कर रोजगार का सूरज निकलेगा और नौकरी लगते ही मैं आपको पसंद की कार गिफ्ट करूंगा . तब तक और सड़कें नाप लेते हैं अब तो और नई नई बन गईं हैं .

फिर उसने कार न लेने की ढेरों वजहें गिना दीं कि लोग दिखावे के लिए ले तो लेते हैं लेकिन वे गाय भैंसो की तरह खड़ी रहती हैं क्योंकि उनका चारा यानि पेट्रोल दिनोंदिन महंगा होता जा रहा है. अचानक उसकी नजर पास पड़े अखबार के मुख पृष्ठ पर पड़ी तो वह चहकते हुये बोला देखिये आपका फोर व्हीलर का शौक यूं पूरा हो सकता है कि अपन एक गाय खरीद लें . प्रधानमंत्री जी तक मथुरा में कह रहे हैं कि गाय का नाम सुनते ही लोगों के कान खड़े हो जाते हैं .

आप ही बताइये हमारे कितने रिश्तेदारों के पास गाय है. फिर उसने गाय के फायदे गिनाना शुरू कर दिये कि गाय पशु नहीं देवता है उसे पालने से दरिद्रता दूर होती है.  अभी हम जो हजार बारह सौ रु महीने का दूध खरीदते हैं वह पैसा बच जाएगा और कार में तो ईएमआई देना पड़ेगी. यहां तो गाय ही हमें ईएमआई देगी और हम देसी मुख्यधारा से जुड़ जाएंगे यानि दोहरी बचत होगी. आप व्हाट्सएप पर सक्रिय होते तो आपको पता चलता कि गाय की महिमा अपरमपार है .उस पर हाथ फेरने से हाइ ब्लड प्रेशर ठीक हो जाता है, जो आर्थिक तनाव के चलते आपको और मम्मी को हो गया है. गाय के मूत्र से कैंसर जैसी  कई लाइलाज बीमारियां ठीक हो जाती हैं और जरा सोचिए वह खूब खाकर खूब गोबर देगी जिससे उपले बनेंगे इससे हमारा महंगे गेस सिलेन्डर का खर्च कम होगा .

मुमकिन है कल को सरकार गाय पालने वालों को पद्म श्री बगैरह देने लगे जो लेखन से तो इस जिंदगी में पूरी होने से रही. मुमकिन यह भी है कि सरकार यह घोषणा भी कर दे कि गाय पालकों को धर्म और संस्कृति का सम्मान व रक्षा करने पर पेंशन दी जाएगी. गाय की महिमा का बखान करते करते वह वाकई जोश में आ आकर बोला मुमकिन यह भी है कि सरकार यह एलान भी कर दे कि गौ पालकों की संतानों को नौकरियों में आरक्षण देगी फिर तो मुझे बैठे बिठाये नौकरी मिल जाएगी.

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रही बात गौ माता के खाने की तो बात चिंता की नहीं आजकल लोग रोटी खिलाने गाय को कोहिनूर की तरह ढूंढते नजर आते हैं.  हम चाहें तो ऐसे धर्म प्रेमियों से अपनी गाय को रोटी खिलाने का शुल्क भी वसूल सकते हैं और बची रोटियाँ खुद भी खा सकते हैं  . उसने यह ज्ञान वृद्धि भी की कि चारे की चिंता भी न करें आजकल की  गाय दिन भर यहां वहां मुंह मार कर पेट भर लेती है लेकिन दूध मालिक को ही देती है .

अब मैं कार के मौडलों के बजाय गायों की उन्नत नस्लों की जानकारियां एकत्रित कर रहा हूं और सोच रहा हूं कि आस्तिक होते गाय के माथे पर ऊं गुदवा दूंगा आखिर लोग फोर व्हीलर पर साईं, शंकर, या फलां देवी माता या बाबा कि कृपा लिखवाते हैं तो मैं अपने फोर व्हीलर पर  ऊं गुदवाकर मुन्नू जैसे  फुफेरे, मौसेरे, चचेरे और ममेरे भाइयों के कानों के साथ साथ बाल भी खड़े कर दूंगा कि मेरे पास तो देवों वाला फोर व्हीलर है. जो धर्म और संस्कृति का प्रतीक है तुम्हारे लोन के फोर व्हीलर की तरह भौतिकता का भ्रम और छलावा नहीं है.

अभिनेता : भाग 4

उस दिन सागर के पास से लौटी सरिता ने फिर उससे कोई कौन्टैक्ट नहीं किया. सागर ने भी चैन की सांस ली कि चलो पीछा छूटा. छह महीने बीत गये. अचानक एक दिन सागर को सरिता की शादी का कार्ड मिला. वह किसी विनय शर्मा से शादी कर रही थी. शादी का कार्ड देखकर वह हैरान तो बहुत हुआ, मगर खुशी भी हुई कि चलो झंझट से पूरी तरह मुक्ति मिल गयी. उसे उम्मीद नहीं थी कि सरित इतनी जल्दी नॉर्मल लाइफ में लौट आएगी. हालांकि शूटिंग में व्यस्त होने के कारण सागर उसकी शादी में नहीं पहुंच सका. सच पूछो तो अब वह सरिता का सामना नहीं करना चाहता था, इसलिए नहीं गया. उसके मन में कहीं न कहीं गहरी ग्लानि भरी हुई थी. लेकिन कुछ दिनों बाद शिमला में एक सीरियल की शूटिंग के दौरान उसके पास सरिता का फोन आया. वह काफी गुस्से में लग रही थी.

‘तुम मेरी शादी में क्यों नहीं आये? मेरा तोहफा भी हजम कर गये? बहुत बेइमान हो?’ उसने उलाहना दिया.

‘अरे सरिता… यह बात नहीं है… मैं सचमुच बहुत व्यस्त था… शिमला में शूटिंग चल रही है… नया सीरियल है…’ वह सफाई देता हुआ सा बोला.

‘दोस्त तो हूं न तुम्हारी… या सब खत्म…?’ सरिता ने तंज मारने के लहजे पूछा.

‘अरे नहीं यार… ऐसा कैसे हो सकता है… तुम मेरी दोस्त थी, हो और हमेशा रहोगी…’ सागर उसकी बेबाकी पर हैरान था.

‘तो चलो न दोस्ती की नई परिभाषा लिखते हैं… बिल्कुल तुम्हारे अनुकूल…’ सरिता हंसते हुए बोली.

‘क्या मतलब…?’ सागर उसकी बात सुनकर हैरान हुआ.

‘मतलब भी पता चल जाएगा, अभी तो सिर्फ इतना जान लो कि हम दोनों भी शिमला आये हुए हैं, यहां विनय की पैतृक जमीन है पुरानी झील के पास और वहीं एक कॉटेज भी… और आज शाम तुम हमारे घर खाने पर आ रहे हो… आओगे न…?’ उसने बड़े प्यार और इसरार से पूछा.

‘हां-हां, जरूर आऊंगा… सरिता, एक बात पूछूं… तुम खुश तो हो न…?’ सागर ने कुछ जलन महसूस की.

‘हां सागर… मैं बहुत खुश हूं… और तुम आओगे तो खुशी दोगुनी हो जाएगी…’ वह खिलखिलाते हुए बोली.

‘अच्छा तुम्हें तोहफे में क्या चाहिए…?’

‘जब तुम आओगे तब बताऊंगी… ओके… चलो मेरा पता नोट करो’ उसने कह कर सागर को अपना पता नोट करवाया.

आठ बजते-बजते सागर एक बड़ा सा गुलदस्ता लेकर सरिता के बताये पते पर पहुंच गया. बेहद खूबसूरत जगह थी… झील के किनारे… चारों ओर हरियाली… ठंडे-ठंडे हवा के झोंके… पेड़ों पर सफेद रुई के गुच्छों सी बर्फ उस वक्त को और रोमांटिक बना रही थी. आकाश में यहां वहां बादलों के बीच झिलमिलाते हुए तारे, ठंड से कंपकपाते प्रतीत हो रहे थे… इस प्राकृतिक सुन्दरता के बीच बना वह छोटा सा सुन्दर कॉटेज, जिसके छोटे से बरामदे में कई जगह कलात्मक कंदीलें जगमगा रही थीं.

सागर सीढ़ियां चढ़कर जैसे ही खुले हुए दरवाजे पर पहुंचा, सरिता ने बड़ी गर्मजोशी से उसका स्वागत किया. प्रसन्नता के अतिरेक में वह उसके सीने से लिपट गयी. सागर हड़बड़ा गया, इधर-उधर देखने लगा कि कहीं किसी ने देखा तो नहीं… मगर ड्राइंग रूम में उन दोनों के सिवा और कोई भी नहीं था. सरिता सुहागिन के रूप में अपने पूरे श्रृंगार के साथ बहुत खूबसूरत लग रही थी. वह उसका हाथ थाम कर भीतर डायनिंग रूम में पहुंची, जहां उसका पति विनय शर्मा कोने में पड़े एक बीम-बैग पर बैठा टीवी प्रोग्राम देख रहा था.

‘सागर… मैं कबसे तुम्हारा इंतजार कर रही थी… कितनी देर कर दी तुमने…’ वह उसका हाथ थामे विनय के पास पहुंची, ‘आओ… तुम्हें विनय से मिलवाऊं…’ वह सागर को लिए विनय और टीवी के बीच में जाकर खड़ी हो गयी.

‘विनय… यह मेरे दोस्त हैं… सागर कपूर… हलो करो… और सागर, यह हैं मेरे पति… विनय शर्मा…’

विनय ने मचलते हुए उससे हाथ मिलाया और फिर मस्त हो गया अपने टीवी प्रोग्राम में. सागर को लगा जैसे वह चकराकर वहीं गिर पड़ेगा.

‘ये…? मानसिक विकलांग…? सरिता का पति…?’

सागर आंखें फाड़कर सरिता की ओर देखने लगा… ‘सरिता… तुम्हें लड़कों की कमी थी क्या…? ये किससे शादी कर ली…? ऐसा खेल क्यों किया अपनी जिन्दगी के साथ…?’

‘अरे इसमें नाराज होने वाली क्या बात है…?’ सरिता सागर को लेकर वापस ड्राइंग रूम में आ गयी, ‘सच कहूं सागर, विनय बहुत अच्छा है… बहुत प्यारा है… वह शारीरिक रूप से तो आदमी हैै मगर मानसिक रूप से मात्र 9-10 साल का बच्चा ही है… हंसता है, खेलता है, रोता है, जिद्द करता है… मुझे उसके साथ बहुत अच्छा लगता है… उसमें कोई छल-कपट नहीं है… वह बहुत मासूम है… बहुत सच्चा है… मैं उसकी पत्नी भी हूं और परिचारिका भी.’

सागर हैरानी से सरिता की बातें सुन रहा था. सरिता बताती जा रही थी, ‘असल में विनय की मां ने अखबार में एक विज्ञापन दिया था, उन्हें अपने इकलौते बेटे के लिए एक परिचारिका की आवश्यकता थी. तुम छोड़ कर चले गये तो मैंने अखबार की नौकरी भी छोड़ दी. काफी वक्त तक खाली बैठी रही. मगर जिन्दगी जीने के लिए पैसे तो चाहिए थे. फिर मैंने ये विज्ञापन देखा. मुझे किसी की सेवा करने की यह नौकरी अच्छी लगी तो मैंने ज्वाइन कर ली. ज्वाइन करने के कुछ वक्त बाद मुझे पता चला कि विनय की मां को कैंसर है, उनका इलाज तो चल रहा है परन्तु वह जीवित रहेंगी या नहीं, कह नहीं सकते. उन्हें हर वक्त यह चिंता खाए जाती थी कि उनके बाद इस बेचारे की देखभाल करने वाला कोई भी नहीं है. इसका क्या होगा? इसके पिता काफी सम्पत्ति भी छोड़ गये हैं, उसकी देखभाल कौन करेगा? फिर मैंने उनके सामने एक प्रस्ताव रखा कि अगर वे मुझे अपनी बहू बना लें तो मैं जीवनपर्यन्त उनके बेटे की देखभाल करूंगी… मैंने उनको विश्वास दिलाया कि इसके पीछे मेरा कोई लालच या स्वार्थ नहीं है… दरअसल मैं नॉर्मल लोगों के साथ रहते-रहते तंग आ चुकी हूं… विनय मेरे साथ काफी हिलमिल भी गया था, मैं उसकी अच्छी तरह देखभाल कर रही थी…. इसलिए वे हमारी शादी के लिए राजी हो गयीं…’

एक सांस में सारी कहानी सुनाने के बाद सरिता ने रुक कर एक गहरी नजर सागर के चेहरे पर डाली. सागर सिर झुकाए बैठा था. उसको इस तरह देखकर सरिता हौले से हंसी और बोली, ‘जिन्दगी एक रंगमंच है सागर… तुम्हीं तो कहते थे न… इस रंगमंच पर बहुत से किरदार मिलते हैं… तुमसे जुदा होने के बाद मुझे भी एक बिल्कुल अलग किरदार के साथ रहने का मौका मिला…’ वह जोर-जोर से हंसने लगी.

‘यह तुमने अच्छा नहीं किया सरिता…’ सागर के चेहरे पर उदासी थी. उसने सरिता से ऐसी उम्मीद नहीं की थी. उसकी शादी का कार्ड मिलने पर उसने सोचा था कि उससे जुदा होकर सरिता उसे भुलाने के लिए अपने किसी पत्रकार मित्र से शादी कर रही है. अब उसको ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उससे प्यार करने के जुर्म में सरिता ने खुद अपने लिए सजा तय की है.

‘अरे… तुम किस सोच में डूब गये यार… मैं बहुत खुश हूं विनय के साथ… अच्छा ये बताओ क्या पियोगे…? कॉफी…?’ वह चहकती हुई सी बोली.

‘हां…’ सागर ने धीरे से कहा.

‘पता है… तुम्हारे लिए क्या-क्या पकाया है…? सब तुम्हारी पसंद का…’ कहती हुई वह किचेन की ओर चली गयी.

खाना खाते-खाते काफी रात हो गयी थी. सरिता का पति तो कबका सो चुका था अपने टेडिबियर के साथ.

‘अच्छा सरिता… रात काफी हो गयी है… अब मैं चलूं…?’ सागर उठने को हुआ.

‘सागर… मेरा तोहफा नहीं दोगे…?’ उसने धीरे से पूछा.

‘अरे हां… तुमने बताया ही नहीं… तुम्हें क्या चाहिए…?’ सागर ने अधीरता से पूछा.

‘अन्दर आओ…’ वह सागर का हाथ थामे बेडरूम की ओर बढ़ गयी.

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