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यह है दुनिया का दूसरा बड़ा पार्क, जो पहाड़ पर स्थित है

इस पार्क में सब से ऊपर हरक्यूलिस की विशाल प्रतिमा लगी है. इस के अलावा यहां पर खास तरह के हाइड्रो न्यूमेटिक उपकरण लगे हैं, जिन से यहां लगे फव्वारों में पानी प्रवाहित होता है. पिछली एक शताब्दी से टेक्नोलौजी में काफी परिवर्तन आया है. इधर कुछ दशकों से तो टेक्नोलौजी में ऐसी क्रांति सी आई है कि ज्यादातर चीजें डिजिटल होती जा रही हैं.

अब टेक्नोलौजी ने भले ही हर क्षेत्र में तरक्की कर ली है, लेकिन बीसवीं सदी के शुरुआती दौर तक ऐसा कुछ नहीं था. पुराने जमाने के बादशाहों और राजामहाराजाओं के महलों में फव्वारे भी होते थे, जिन के अवशेष अभी हैं. उस समय भव्य भवन कुछ इस तरह बनाए जाते थे कि उन में पंखे, कूलर अथवा एसी की जरूरत नहीं होती थी.

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आप मुगल काल में बने किलों में जा कर पुराने जमाने की टेक्निक को देख समझ सकते हैं. लाल किला इस की साक्षात मिसाल है. बर्ग पार्क की बात करें तो दूसरे विश्वयुद्ध के समय बमबारी के दौरान इस पार्क को काफी नुकसान हुआ था. 1968 से 1974 के बीच इसे दोबारा आर्ट म्युजियम बनाया गया.

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हैडलाइनें जो दिखाई नहीं दीं: ‘नींबू-मिर्च’ ने मचाई देश की राजनीति में खलबली !

आज एक विशेष बैठक में निर्णय लिया गया कि सुरक्षा को मजबूत करने के लिए सीमा पर दो किलोमीटर तक नींबू और मिर्च की खेती की जाएगी. वैदिक ज्ञान से युक्त विशेषज्ञों से 5000 करोड़ का टेंडर बिना अनुबंध किया गया है. अब भारत पर किसी की टेढ़ी नजर नहीं लगेगी.

सुरक्षामंत्री ने खुद डाले नींबू के बीज –

भारत की सभी सीमाओं के आस-पास एक मजबूत सुरक्षा घेरा बनाने हेतु आज से भारत सरकार ने सभी सीमाओ पर नींबू की खेती करने की घोषणा की. इस ऐतिहासिक निर्णय का शुभारंभ खुद सुरक्षामंत्री जी ने नींबू के बीज डालकर किया. सरकार ने नींबू मिर्ची की खेती को आगे बढ़ाने के लिये विशेष फंड का इस बजट में प्रावधान किया.

घरों के बाहर नींबू-मिर्च लटकाना अनिवार्य घोषित –

सरकारी आदेश के अनुसार अपने व्यवसाय और परिवार को दूसरों की बुरी नजर से बचाने के लिये घरों के बाहर नींबू मिर्च लटकाना अनिवार्य घोषित किया गया है. जनता की सुरक्षा हेतु अब नींबू मिर्ची लगाना अनिवार्य है, वरना, जुर्माना लग सकता है. कोर्ट ने भी नींबू मिर्ची लगाने पर हरी झंडी दिखा दी है.

वाहनों पर भी नींबू-मिर्च टांगना अनिवार्य –

यातायात के नियमो में सुरक्षा को लेकर और कड़े नियम बनाए गए हैं. अब से लोगों को अपने वाहनों पर नींबू-मिर्च टांगना अनिवार्य है. नियम तोड़ने पर भारी जुर्माना लगाया जाएगा. हालांकि, इसकी घोषणा बाद में की जाएगी. साथ ही कोर्ट में ही जुर्माने का भुगतान करना होगा.

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मंत्रियों ने कुर्सियों से बांधे नींबू-मिर्च –

सरकार के इस फ़ैसले से प्रभावित होकर कुछ मंत्रीगण आज नींबू और मिर्च से बनी मालाएं लेकर अपने-अपने दफ़्तर पहुंचे और मालाएं अपनी-अपनी कुर्सी से बांध दीं. अब कुर्सी चले जाने के डर से रात में चिंताग्रस्त हो उन्हें जागना नहीं पड़ेगा.

नींबू-मिर्च की खेती पर अनुदान की घोषणा –

सरकार ने नींबू-मिर्च की खेती करने पर अनुदान की घोषणा की. ऊर्जा विभाग ने किसानों को दी जाने वाली बिजली पर प्रति यूनिट 10 पैसे छूट की घोषणा की.

सरकार के फैसले की खबर का असर –

  1. नींबू मिर्ची के भावों में भारी उछाल.
  2. किसानों के चेहरे खिले.
  3. सेंसेक्स ने लगाई छलांग.
  4. नींबू मिर्ची की कालाबाजारी शुरू.

मुफ्त नींबू-मिर्च के लिए जुटी भीड़, लाठीचार्ज में दो घायल

सरकार ने घोषणा की कि वह राशन की दुकानों पर नींबू-मिर्च सबको मुफ्त में देगी. इस खबर से राशन की दुकानों पर भारी भीड़ जुट गई. भीड़ को नियंत्रित करने के पुलिस ने लाठी चलाई. इसमें दो की हालत गंभीर बनी हुई है. सरकार ने मामले में जांच कमेटी का गठन किया. दूसरी तरफ, बैंक कर्मचारियों के काम में बढ़ोतरी हो गई है क्योंकि नींबू-मिर्च की खेती के लिए लोन लेने वालों की भीड़ बढ़ गई है.

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पीओके को अपने आधिपत्य में लाने का नया फार्मूला –

पूरे POK में राफेल के द्वारा नींबू-मिर्च फैलाए जाएंगे. इससे पाक खुद-ब-खुद POK भारत को सौंप देगा.

नींबू-मिर्च व हवन सामग्री के साथ बाबाओं को सीमा पर किया गया तैनात –

सरकार द्वारा जल्द ही समस्त बाबाओं को नींबू-मिर्च और हवन सामग्री लेकर देश सुरक्षा की दृष्टि से सीमा पर तैनात रहने के अनिवार्य आदेश दिये जा रहे हैं.

पाकिस्तान की नज़र हमारे कश्मीर पर है. केसर-वेसर की खेती छोड़कर कश्मीर में नींबू के बाग लगवाए जाने चाहिए और मिर्ची की खेती शुरू करवानी चाहिए, फिर देखिए दुश्मन देश आंख उठाकर भी देखने की हिम्मत नहीं करेगा.

राफेल के गले मे नीम्बू मिर्ची की माला
बुरी नज़र वाले तेरा मुंह काला
हिन्दुस्तानी टोटका है दमदार
क्या कर लेगा अब पकिस्तान
क्या कर लेगा चाइना वाला

 ‘गी टीवी’, ‘कल तक’, ‘बिडिंया टीवी’ और ‘सिपब्लिक चैनल’ चैनल के बीच मची होड़…

आज ‘गी टीवी’ एक खोजी पत्रकार ने खोज निकाला कि जिन जिन लड़ाइयों में भारत को हार का सामना करना पड़ा है, उसमें वायुसेना के विमान बिना सुरक्षा के निकल गये थें. वहीं अन्य युद्धों में जहां सुरक्षा नियमों का पूर्ण पालन हुआ यानी युद्धक विमानों को नींबू मिर्ची की शक्ति से लैस कर उतारा गया वहां दुश्मन को आसानी से धूल चटा दिया गया.

वहीं ‘कल तक’ के विशेष संवाददाता ने खबर दी है कि अब घरेलू विमानों को भी इस विशेष सुरक्षा से लैस होने की सलाह दी गई है.

‘बिडिंया टीवी’ के खजत शर्मा ने इस खबर की पुष्टि की है कि अमेरिका, इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया, फ्रांस सहित कई यूरोपीय देशों ने सुरक्षा के विभिन्न टोटकों को भारत से आयात करने में रुचि दिखाई है. यहां तक की राफेल निर्माताओं ने अगली खेप की सप्लाई से पहले इन विभिन्न प्रतीकों को बाय डिफाल्ट शामिल करने की बात की है.

‘सिपब्लिक चैनल’ में तो एक गर्मा गर्म बहस में एक नये मंत्रालय की आवश्यकता पर बल दिया गया जो प्राचीन संस्कृति के नाम पर भूले बिसरे विस्मृत परंपरागत टोटकों को फिर से प्रयोग में लाने के लिए प्रयास करेगा. बहस में इस बात पर भी बल दिया गया कि टोटकों पर सिर्फ रक्षा मंत्रालय का ही हक न रहे इस पर विशेष ध्यान दिया जाए.

पाकिस्तान ने बुलाई आपात बैठक…

सारे चैनलों पर ये दिन भर दिखाया जाता रहा कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री भारत के इस नये रक्षा प्रणाली से हतप्रभ हो एक आपातकालीन बैठक बुलाई है जिसमें सिंध पंजाब और लाहौर के पुराने टोटकों को पुनर्जीवित करने के बारें में विचार किया जाएगा. वहीं चीन के अखबारों में इस बाबत हंसी उड़ाई गई कि टोटकों के उपयोग में भारत अभी उनसे बहुत पीछे है. ज्ञातव्य है कि देश में चीनी सामानों की तरह चीनी टोटकों की भी भारी बिक्री होती है.

ट्विटर-फेसबुक पर दूसरे टोटकों की चर्चा…

इस बीच टिव्टर, फेसबुक और वाट्सएप में भी टोटकों का बाजार गर्म रहा. लोग नींबू मिर्ची से अधिक प्रभावी टोटकों की चर्चा करते दिखें. विपक्ष ने इस बात पर सरकार की टांग खींचने में कोई कसर नहीं छोड़ी है कि उन्होंने नींबू जैसे छोटे टोटके का प्रयोग किया है, कम से कम संतरे का सहारा लिया जा सकता था.
फिलहाल नींबू मिर्ची की शक्ति पर शोध कार्य शुरू कर दिया गया है.

बुआ जी ने भी अपनाया टोटका…
दीपू को बुखार है? तो जरूर किसी की बुरी नजर लगी होगी. अरे, डौक्टर फोक्टर क्या करेगा. एक काम करो, दीपू के सिर के ऊपर से पैर तक सात बार नींबू वार लो और फिर उसके बाद इस नींबू के चार टुकड़े करके किसी सुनसान जगह पर या किसी चौराहें पर फेंक आओ और हां, नींबू के टुकड़े फेकने के बाद पीछे मुड़कर न देखना. देखना तुम्हारा दीपू एकदम भलाचंगा हो जाएगा.

एडिट बाय- निशा राय

अपनी अपनी खुशियां : भाग 2

उस ने उसे मजबूर तो नहीं किया था? संजय को बुलाने से पहले वह उस से पूछ तो लेती, सलाह तो कर लेनी चाहिए थी. और अब नौकर की तरह थैला थमा कर उसे बाजार की ओर ठेल दिया है. यह ठीक है कि शिखा को उस ने घर में पूरा हक देने का वादा जरूर किया था, मगर उसे एकदूसरे की बेइज्जती करने का तो अधिकार नहीं है.

इस की कुछ न कुछ सजा जरूर संजय और शिखा को मिलनी चाहिए. वे दोनों फूड पौयजन से बीमार हो जाएं तो कैसा रहे? रूपेश के दिमाग में एकदम विचार उभरा. हां, यह ठीक रहेगा. उस के कदम एक डिपार्टमैंटल स्टोर की ओर बढ़े.

‘‘आप के यहां कोई ऐसी डब्बाबंद सब्जी है जिस से फूड पौयजन होने का खतरा हो?’’ उस ने सेल्समैन से सीधा सवाल किया.

‘‘क्या मजाक करते हैं, साहब? हमारे यहां तो बिलकुल ताजा स्टौक है,’’ सेल्समैन ने दांत निकालते हुए कहा.

‘‘एकआध डब्बा भी नहीं?’’

‘‘क्या आप स्वास्थ्य विभाग से आए हैं?’’ सेल्समैन ने सतर्क हो कर पूछा.

‘‘नहीं, डरो नहीं. हां, यह बताओ कि कोई ऐसा डब्बा…’’

‘‘जी नहीं. हम इमरजैंसी से पहले और इमरजैंसी के बाद भी अच्छा ही माल बेचते रहे हैं,’’ सेल्समैन ने कहा.

‘‘अच्छा, कोई ऐसी दुकान का पता बता दो जहां ऐसी डब्बाबंद सब्जी मिल जाए.’’ अपनी बेइज्जती के बाद की भावना से पागल हो रहे रूपेश ने 500 रुपए का नोट सेल्समैन की तरफ सरकाया.

‘‘क्रांति बाबू, जरा पुलिस को फोन करना. यह पागल आदमी किसी की हत्या करना चाहता है,’’ सेल्समैन ने टैलीफोन के करीब बैठे एक नौजवान से कहा.

पुलिस का नाम सुन कर रूपेश उड़नछू हो गया. 500 रुपए का नोट काउंटर से उठाने की भी उसे सुध न रही, संजय व शिखा को बीमार कर देने का विचार भी उस के दिमाग से उड़ गया. अब तो वह उन दोनों की सेहत ठीक रहने की ख्वाहिश कर रहा था. उस के डरे हुए मस्तिष्क में यह विचार उभरा कि संजय व शिखा को कुछ हो गया तो सेल्समैन की गवाही पर वह पकड़ लिया जाएगा.

रात को खाने के बाद कौफी का दौर चला. वे चारों बैठक में बैठे थे. संजय अपने चुटकुलों से सब को हंसाता रहा.

‘‘क्या बात है, डार्लिंग, तुम कुछ नहीं बोल रहे हो?’’ अर्चना ने रूपेश के करीब सरकते हुए कहा.

‘‘मैं तो कहता हूं, रूपेशजी, यदि सब लोग आप की तरह समझदार हो जाएं तो प्रेम के कारण होने वाली सारी समस्याएं समाप्त हो सकती हैं,’’ संजय ने कहा.

‘‘और प्रेम में निराश हो कर आत्महत्याएं भी कोई न करे,’’ अर्चना बोली.

‘‘मानव जाति को कितना अच्छा सुझाव दिया है रूपेशजी ने,’’ शिख ने कहा.

‘‘मगर पहले तो तुम अडि़यल घोड़े की तरह दुलत्तियां झाड़ रही थीं, मरनेमारने की धमकियां दे रही थीं,’’ रूपेश ने शिखा की तरफ देख कर कहा.

‘‘तब मैं तुम्हारे दिल की गहराई नाप नहीं पाई थी.’’

‘‘अच्छा भई, तुम दिल की गहराइयां नापो. हम तो नींद की गहराइयों में उतरने चले,’’ संजय उठ खड़ा हुआ, ‘‘शिखा डार्लिंग, सोने का कमरा किधर है?’’

‘‘वह बाएं कोने वाला इन का है और दाएं वाला हमारा.’’

‘‘अच्छा भई, गुडनाइट,’’ स्लीपिंग गाउन सरकाता हुआ संजय दाईं ओर के सोने के कमरे की ओर बढ़ गया.

संजय के चले जाने के बाद कुछ देर तक अर्चना अंगरेजी पत्रिका के पन्ने पलटती रही. फिर वह भी अंगड़ाई ले कर उठ खड़ी हुई.

‘‘सोना नहीं है, रूपेश डार्लिंग?’’

‘‘तुम चलो, मैं थोड़ी देर और बैठूंगा.’’ रूपेश ने अनमने स्वर में कहा.

‘‘ओके, गुडनाइट.’’

‘‘गुडनाइट,’’ रूपेश कुछ नहीं बोला लेकिन शिखा ने स्वेटर पर सलाई चलाते हुए कहा.

फिर बैठक में खामोशी छा गई. घड़ी की टिकटिक और शिखा की सलाइयों की टकराहट इस खामोशी को तोड़ देती. रूपेश अनमना सा कुरसी पर बैठा रहा.

‘‘अब सो जाइए, 1 बजने को है, मुझे तो नींद आ रही है,’’ शिखा ऊन के गोलों में सलाइयां खोंसती हुई बोली.

शिखा ने स्वेटर और ऊन के गोलों को कारनेस पर टिका कर एक अंगड़ाई ली, रूपेश की तरफ देखा और और फिर पलट पड़ी दाएं कोने वाले सोने के कमरे की ओर.

‘‘रुक जाओ, शिखा,’’ रूपेश तड़प कर शिखा और कमरे के दरवाजे के बीच बांहें फैला कर खड़ा हो गया, ‘‘बेशर्मी की भी हद होती है.’’

‘‘बेशर्मी, कैसी बेशर्मी? रूपेश डार्लिंग, तुम ने मुझे जो हक दिया है मैं उसी का इस्तेमाल कर रही हूं. हट जाओ, मेरी वर्षों से मुरझाई हुई खुशियों के बीच दीवार न बनो. मुझे खुशियों का रास्ता दिखा कर राह में कांटे न बिछाओ.’’

‘‘अपने पति के सामने ऐसा कदम उठाते हुए तुझे डर नहीं लगता? शर्म नहीं आती?’’

‘‘डर, शर्म आप से? क्यों? यह तो बराबरी का सौदा है. रात काफी हो चुकी है, सो जाइए. आप का कमरा उधर है,’’ शिखा ने बाएं कोने में कमरे की ओर इशारा किया, ‘‘छोडि़ए, मेरा रास्ता.’’

‘‘बेशर्म, मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था कि तुम इतनी गिर सकती हो. तुम्हारी इस हरकत से एक पति के दिल पर क्या गुजर सकती है, यह तुम ने कभी सोचा है?’’ रूपेश की आंखें क्रोध से जल उठीं.

‘‘मर्द जब दूसरी पत्नी ब्याह कर लाता है तब क्या अपनी पहली पत्नी के दिल में उठने वाली चीखों की शहनाइयों के शोर को सुनता है? रातरातभर कोठों पर ऐश की शमाएं जलाने वाले पति कभी अपनी पत्नी के दिल के अंधेरों में झांक कर देखते हैं? हर जवान लड़की पर लार टपकाने वाला पति कभी यह भी सोचता है कि उस की पत्नी के गालों पर आंसू के निशान क्यों बने रहते हैं? आप ने जब अर्चना को लाने की तजवीज पेश की थी, तब मैं भी रोईचिल्लाई थी. अब मैं संजय के पास जा रही हूं तो आप क्यों चीख उठे?’’

‘‘मैं उस का सिर तोड़ दूंगा,’’ रूपेश कमरे की तरफ बढ़ा.

‘‘अरे, रुको तो,’’ शिखा ने उस की बांह पकड़ ली.

‘‘मैं कुछ सुनना नहीं चाहता. उसे इसी वक्त चलता कर दो.’’

‘‘और अर्चना?’’

‘‘वह भी जाएगी. मेरा फैसला गलत था. मैं अंधे जज्बात की धारा में बह गया था,’’ रूपेश ने हथियार डाल दिए.

‘‘अंधे जज्बात नहीं, वासना ने तुम्हें अंधा कर दिया था. रूपेश भैया,’’ संजय  पूरे कपड़े पहन अतिथिकक्ष के दरवाजे पर खड़ा था.

रूपेश कभी सोने के कमरे की तरफ और कभी अतिथिकक्ष के दरवाजे पर खड़े संजय की ओर देख रहा था.

‘‘जी हां, आप का खयाल ठीक है. मैं सोने के कमरे में स्लीपिंग सूट पहन कर गया जरूर था. किंतु दूसरे दरवाजे से बाहर निकल गया था,’’ संजय ने कहा, ‘‘आप को फिर कोई शो करना हो तो याद कीजिएगा. यह रहा मेरा कार्ड.’’

‘नितिन…निर्देशक तथा स्टेज आर्टिस्ट,’ रूपेश कार्ड की पहली पंक्ति पर अटक गया.

‘‘आगे हमारे ड्रामा क्लब का पता भी लिखा है. नोट कर लीजिए,’’ नितिन मुसकरा दिया.

रूपेश मुंह फाड़ कभी कार्ड को तो कभी उस युवक को देख रहा था, जो संजय से नितिन बन गया था.

‘‘यह नितिन है, हमारे शहर के माने हुए कलाकार और भैया के जिगरी दोस्त. जब मैं ने भैया को आप की अर्चना को साथ रखने की जिद के बारे में लिखा तब उन्होंने नितिन की सहायता से यह सारा नाटक रचवाया,’’ शिखा ने सारी बात समझाते हुए कहा.

‘‘ओह,’’ रूपेश ने एक लंबी सांस ली और धम से सोफे पर बैठ गया.

तापसी पन्नू ने कंगना रानौत की बहन रंगोली चंदेल से ये कहा, पढ़े पूरी खबर

इन दिनों कंगना रानौत की बहन ने हर किसी से पंगा लेना शुरू कर दिया है. फिर चाहे मीडिया हो या कलाकार. हाल ही में जब विश्व प्रसिद्ध शौर्प शूटर चंद्रो तोमर और प्रकाशी तोमर की जिंदगी पर बनी फिल्म ‘‘सांड की आंख’ का ट्रेलर लांच हुआ, तो रंगोली चंदेल ने तापसी पन्नू के खिलाफ मोर्चा खेलते हुए उनके अभिनय पर कई तरह की टिप्पणी कर डाली. इस पर तापसी ने सोशल मीडिया पर कुछ जवाब दिया, पर फिर भी रंगोली चंदेल ने आपना काम जारी रखा.

हाल ही में जब तापसी पन्नू से हमारी ‘एक्सक्लूसिव मुलाकात’  हुई, तो ‘सांड़ की आंख’ का ट्रेलर आने के बाद उठे विवाद पर बड़ी साफगोई से तापसी ने कहा- ‘‘मुझे यह सवाल बहुत ही स्टूपिड/ मुर्खतापूर्ण लगता है, जब एक कलाकार/अभिनेत्री से यह पूछा जाए कि इस उम्र या इस लुक का किरदार क्यों निभा रही हैं ?

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मैं तो कलाकार हूं. मेरा काम ही है दूसरे किरदार में ढलना. मैं हर फिल्म में तापसी बनकर तो नहीं आउंगी. यह आधारहीन व मूर्खतापूर्ण बात लगी, पर जब कुछ लोगों ने यह बात उठायी,  तो मुझे लगा कि कम से कम एक बार में सोशल मीडिया के द्वारा इसका जवाब दे दूं. जिससे बार बार मुझसे यह सवाल न पूछा जाए. मगर कुछ लोगों ने मुझे मुफ्त में प्रचार देने का ठेका ले रखा है. यह आश्चर्यजनक बात है कि मेरे पास मेरा प्रचार करने के लिए वक्त नहीं है, पर बाकी लोग मेरा प्रचार कर रहे हैं.’’

जब हमने उनसे पूछा कि ‘क्या इसकी मूल वजह यह है कि वर्तमान समय में कलाकारों के बीच असुरक्षा की भावना कुछ ज्यादा हो गयी है? ’तो तापसी ने इसके लिए सोशल मीडिया को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा-‘‘सोशल मीडिया ज्यादा हो गया है. पहले हर बात लोगों तक पहुंचाने का जरिया सिर्फ पत्रकार हुआ करते थे. पहले पत्रकार के माध्यम से ही यह बातें कही जाती थीं, जिसमें समय लगता था. जब पत्रकार इंटरव्यू के लिए मिलता था, तभी इस तरह की बाते की जा सकती थी. पर इस बीच जो समय बीतता था,  उसमें सब कुछ ठंडा पड़ जाता था. मगर अब सोशल मीडिया ऐसा हथियार है कि दिमाग में कोई बात आयी, तुरंत सोशल मीडिया पर उसी मूड़ में लिख मारा. तीर कमान से निकलकर कभी सही तो कभी गलत जगह लगता है, पर लगता है. सोशल मीडिया में सब कुछ इंस्टेंट/त्वरित हो गया है, तो इंस्टेंट मूड़ में स्टेंट प्रतिक्रिया आ जाती है. यह भावनाएं तो इंसान की हैं, पहले भी होती थी, आज भी हैं.’’ पर तापसी सोशल मीडिया को महज नुकसानदायक भी नही मानती. वह कहती हैं- ‘‘जब हर चीज लिमिट से बाहर हो तो नुकसान करती है. मैं सोशल मीडिया के हर प्लेटफार्म पर हूं, क्योंकि सोशल मीडिया पर कुछ सकारात्मक चीजें भी हैं. मैं सभी खबरें औन लाइन पढ़ती हूं. दूसरे देशों में बैठे लोग, जिन्हें मैं पसंद करती हूं, उन तक पहुंच सकती हूं. उनके बारे में मुझे सोशल मीडिया से जानकारी मिलती है. कुछ लोगों से मैं सोशल मीडिया के कारण जुड़ी रहती हूं.

पर सोशल मीडिया में कुछ नकारात्मक बातें भी हैं. कुछ लोग कुछ भी बोलते रहते हैं.’’

आखिर कंगना रानौत की बहन रंगोली चंदेल सोशल मीडिया पर तापसी के खिलाफ कुछ न कुछ क्यों लिखती रहती हैं? इस पर तापसी ने कहा- ‘‘पता नहीं, उनको मुझसे प्यार क्यों है? पर उनसे कहना चाहती हूं कि आप मेरी जिंदगी में महत्व नही रखती. मैं आपसे दरख्वास्त करती हूं कि प्लीज आप अपना समय, अपनी ताकत/इफर्ट मुझ पर व्यर्थ में मत गंवाओ. क्योंकि आप दीवार पर सिर मारोगी, तो आपका सिर फटेगा. मैं दीवार हूं. मुझे अभिनय नही आता. मैं फिल्मों में यूं ही दीवार की तरह खड़ी रहती हॅूं. फिर भी आप अपना समय मेरे लिए बर्बाद न करें. मैं आपकी बहन की शुभचिंतक तो नहीं, मगर प्रशंसक जरुर हूं. कृपया समय व अपनी एनर्जी बर्बाद न करे, आपको कोई प्रतिक्रिया नही मिलेगी. आप जो कर रहे हो, करते रहो, मेरी फिल्मों या मेरे पीछे पड़ने से न आपको कुछ मिलेगा और न ही मुझे.’’

रंगोली चंदेल ने सोशल मीडिया पर लिखा है कि तापसी को अभिनय नही आता. वह तो सस्ती कौपी हैं. इस पर तापसी कहती हैं-‘‘देखिए, अंतिम निर्णायक तो दर्शक ही है कि मुझे अभिनय आता है या नही, मेरी फिल्में अच्छी हैं या नहीं. इसका निर्णय आप या मैं खुद नहीं कर सकती. इसका निर्णय हमारे दर्शक ही करेंगे. मैंने इतने साल तक इतनी फिल्में कर ली. मैं हर वर्ष चार चार फिल्में कर ली. साढ़े नौ वर्ष का करियर सफलता पूर्वक चलता आया है, तो मेरे अंदर कुछ तो ऐसा होगा, जिसे दर्शक देखना चाहता है. यहां पर न आपाका गौड फादर था और न मेरा कोई गौड फादर है.’’

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असफलता के बाद मिलती है कामयाबी

सफलता और असफलता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. किसी के सर पर जल्दी ही सफलता का सहरा बंध जाता है तो किसी को असफलता ही हाथ लगती है. अंग्रेजी की एक कहावत है ट्राय एंड ट्राय अगैन यू विल गेट सक्सेस यानि प्रयास करते रहो एक दिन सफलता अवश्य मिलेगी. आज जितनी भी सुख सुविधा हमारे पास हैं ऐसा नहीं है कि इनका अविष्कार एक ही बार में हो गया था. बल्कि कितनी बार उन लोगों को असफलता का मुंह देखना पड़ा होगा इस बात का हमें अंदाजा भी नहीं होता. तो जरूरी है की हमें असफलता के सामने घुटने नहीं टेकने चाहिये बल्कि उन असफलताओं से सिख लेकर हमें आगे बढ़ना चाहिये तो आइए जनते हैं कैसे अपनी असफलताओं से हम सफलता हासिल कर सकते हैं.

अपनी कमजोरियों को पहचाने

हमारे अंदर की सोच यदि नकारात्मक हो जाये तो हम कभी भी कामयाब नहीं हो सकते और वही नकारात्मक सोच हमें कमजोर बना देगी. ऐसे में हम खुद की कमजोरियों को पहचाने. इससे आप भविष्य में वो गलतियां नहीं दोहराएंगे व आपका आत्म विश्वास बढ़ेगा.

जटिलताओं से न घबराये

आपके सामने आने वाली चुनौतियों से बिलकुल न घबराये. हमेशा उनका डट कर सामना करें. ऐसा नहीं है कि अगर कोई मुश्किल है तो हमें कभी भी हार मान कर अपना रास्ता बदल देना चाहिये बल्कि उस मुसीबत का सामना करने से ही हमें सफलता की सीधी का रास्ता हासिल हो सकता है. जिस तरह लगातार रस्सी को पत्थर पर घिसने से पत्थर पर निशान पड़ जाते है उसी तरह परिश्र्म, करने से आपको कामयाबी अवश्य हासिल होगी.

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असफलता पर विचार करें

आपने जितने भी सफल लोगों की कहानी सुनी हैं. उसमें एक बात गौर करने वाली है और वो ये कि उन सभी लोगों ने कई बार असफलता का सामना किया है. थौमस अल्वा एडिसन जिन्होंने बल्ब का अविष्कार किया इससे पहले उनको 999  बार असफलता ही हाथ लगी थी, अल्बर्ट आईंस्टीन को सभी ने मंदबुद्धि कहा था लेकिन उनके सिद्धांतों और थिअरी ने उन्हें दुनिया का सबसे बड़ा साइंटिस्ट  बना दिया.  तो अपनी असफलताओं से सिख ले की आप से कहा चूक हो रही है और फिर आगे बढे ,एक दिन कामयाबी आपके कदम अवश्य चूमेगी.

शार्ट कट न अपनाए

सफलता पाने का कोई शार्ट कट नहीं होता इसलिये कोई भी शार्ट कट न अपनाए. कई बार यह सुनने को मिलता है कि फलां आदमी ने सफलता बहुत कम समय में पा ली. क्योंकि उसने शौर्ट-कट अपनाया था.  सफलता पाने के लिए शौर्ट कट अपनाना सुनने में तो अच्छा लगता है, लेकिन ऐसी कामयाबी ज्यादा दिनों तक नहीं चलती. और न ही आपको ऐसी कामयाबी वो खुशी दे पाती है जिसमे आपकी मेहनत और लगन नहीं होती.

 रखें इन बातों का ध्यान

सफलता के बहुत से तरीके हो सकते हैं, लेकिन हर सफल इंसान की कुछ बातें होती है. वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी होने के साथ ही एक लक्ष्य को लेकर केंद्रित भी होते हैं. वे अनुशासित होने के साथ ही जुनूनी  होते हैं. वे अपने हर काम को अहमियत देते हैं. काम के प्रति उनकी रूचि सकारात्मक होती है.

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राफेल पर राजनाथ की “शस्त्र पूजन नौटंकी”

राजनाथ सिंह की शस्त्र- पूजा, आज देशभर में चर्चा का बयास बनी हुई है. ऐसा आजादी के बाद पहली दफे हो रहा है,जब भारत सरकार के एक कबीना मंत्री को शस्त्र पूजा करने का नाटक अपने देश में करने की जगह, विदेशी धरती फ्रांस के सर जमी पर करने की मजबूरी आन पड़ी है. ताकि प्रचार प्रसार का स्पेस कुछ ज्यादा मिले और देश में इसका बेहतरीन संदेश प्रसारित हो जाए.

यही वजह है कि भारत का रक्षा मंत्री एक गुप्त एजेंडे के तहत विजयदशमी को अपना टारगेट निर्धारित करता है. और शास्त्र- पूजा विधि विधान से करता है, इसका सीधा संदेश यह है कि पाकिस्तान के हुक्मरान! और वहां की आवाम भयभीत हो जाए…! और देश की जनता का खून उबाल मारने लगे, इसी गहरी सोच के साथ “प्रतीकों “का इस्तेमाल सरकार के वरिष्ठ मंत्री राजनाथ सिंह कर रहे हैं. और सीधी सरल बात यह की इस संपूर्ण परियोजना के पीछे राष्ट्रीय स्वयं संघ और उसके विचारकों का दिमाग काम कर रहा है.

झूठ बोल रहे हैं रक्षा मंत्री!

आज रक्षा मंत्री का शस्त्र पूजन और राफेल की खबर सुर्खियां बटोर रही है. देश की हर एक प्रिंट, इलेक्ट्रौनिक मीडिया में यह खबर प्रमुखता से रिलीज़  हुई है. और क्यों ना हो, जब देश की सरकार की एक-एक सोच, कदम को मीडिया स्थान देता है तो भला राफेल डील और शस्त्र पूजा को स्पेस क्यों नहीं मिलेगा. यह खबर है कि “विजयदशमी पर भारत को मिलेगा पहला राफेल जेट, होंगे यह बड़े बदलाव.”

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मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक “8 अक्टूबर यानी विजयादशमी के दिन भारत को अपना पहला राफेल जेट मिलने वाला है” फिर अगली पंक्ति में ही झूठ का पर्दाफाश करते कहा गया है कि” इसकी डिलीवरी अगले साल की जाएगी.”

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह फ्रांस पहुंच चुके हैं और राफेल में फ्रांसीसी एयरपोर्ट के बेस से उड़ान भरेंगे आज एयर फोर्स डे के मौके पर भारत को पहला राफेल मिलेगा, यह दो इंजन वाला लड़ाकू विमान है यह भारत को हवा से हवा में मार करने की अद्भुत क्षमता देगा. राजनाथ सिंह खुश हैं कह रहे हैं, आज इसे हैंड ओवर किया जाएगा आपको भी यह सेरेमनी  देखनी चाहिए.

दरअसल रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह आज एक खबर का निर्माण करने पहुंचे हैं वह है शस्त्र पूजा. आज सिर्फ हमारे रक्षा मंत्री राफेल में उड़ान  भरेंगे, फोटो सेशन होगा और राफेल जेट हमें आज हैंड ओवर या कहें,  मिलेगा नहीं, यह भारत की धरती पर आज नहीं आएगा. सरकारी सूत्रों की खबर कहती है यह अगले साल ही भारत की सर जमी पर कदम रखेगा फिर रक्षा मंत्री का शस्त्र पूजन का क्या अर्थ है?

सरकार प्रतीक गढ़ रही है

सरकार, नरेंद्र दामोदरदास मोदी की सरकार प्रतीक गढने में माहिर है. कब, कहां और कैसे बारंबार संपूर्ण ऊर्जा के साथ जनता जनार्दन को, आज की यह यह मोदी सरकार, ग्राहय हो यह प्रयास बड़ी शिद्दत के साथ किए जाते हैं. और मोदी सरकार की “थिंकटैंक” यह प्रयास निरंतर कर रहा है या मानता भी है की कोई भी मौका, राष्ट्रवाद और मोदी वाद उभारने से, चुकना नहीं है. यही कारण है कि ‘हाउडी मोदी’ शो हो या उनका देश वापसी का समय उसे “महोत्सव” बना दिया जाता है. इसी की अगली कड़ी है राफेल जेट की खरीदी, जिसे यह मोदी सरकार कुछ ऐसे प्रचारित कर रही है मानो राफेल जेट के आते ही पाकिस्तान आत्मसमर्पण कर देगा. और रक्षा मंत्री शस्त्र  पूजा तो, एक ऐसा ढकोसला है जो मोदी सरकार के भक्तों को कारु के खजाने की मानिंद जान पड़ रहा है. यह देश में हिंदुत्व कि लहर पैदा  करने की एक सोची समझी रणनीति के अलावा कुछ नहीं है. और मोदी सरकार कहीं चूकती भी नहीं है.

विपक्ष की बोलती बंद है

इधर विपक्ष अर्थात कांग्रेस की लीडरान सोनिया गांधी हों,  या राहुल गांधी अथवा अन्य सब की बोलती बंद है. राफेल जेट की खरीदी के घोटाले, घपले की बात करने वाले राहुल गांधी इन दिनों देश से बाहर हैं. और आज कांग्रेस राफेल पर कुछ भी बोलने से कतरा रही है तो क्या  राफेल  पर जो आरोप राहुल गांधी ने लगाए थे,  वह सब चुनावी स्टंट थे?

पहले यह राफेल जेट की खेप, पितृपक्ष में आने वाली थी. कहते हैं इसे सरकार द्वारा रोका गया और प्रतीक जोड़ने के लिए 8 अक्टूबर अर्थात विजयादशमी का समय -काल चुना गया है. क्या यह अच्छा नहीं होता कि राफेल जेट, जब भी भारत आता, तब प्रधानमंत्री मोदी संपूर्ण मंत्रियों सहित  हमारी सरकार उसका पूजन करती,  तब शायद देश की आवाम का खून और तेजी से उबाल मारता और और भाजपा के वोट भी पक्के होते.

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‘कार्तिक और नायरा’ की शादी की खबर सुनकर, ‘वेदिका’ का क्या होगा रिएक्शन

स्टार प्लस का मशहूर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ दर्शकों का फेवरेट शो बना हुआ है. हाल ही में इस सीरियल में कार्तिक नायरा के बीच की दूरीयां दिखाई जा रही थी. सीरियल की कहानी से ऐसा प्रतित हो रहा था कि कार्तिक नायरा अब एक हो भी पाएंगे या नहीं.  इस शो के दर्शकों के लिए खुशखबरी है कि अब कार्तिक नायारा एक हो गए. ये खुशखबरी दर्शकों के लिए  ट्रीट की तरह साबित होगा.

जी हां सही सुना आपने कार्तिक-नायरा एक हो गए. चलिए बताते हैं आपको कार्तिक नायरा कैसे एक हो गए और इन दोनों के बारे में जानकर वेदिका का रिएक्शन क्या  रहा?

दरअसल कार्तिक और नायरा ने एक बार फिर से शादी कर ली है. और उन्होंने ये शादी नशे की हालत में की है. भले ही कार्तिक और नायरा एकदूसरे से गुस्सा क्यों न हो जाए पर वो आज भी एकदूसरे से प्यार करते हैं. इधर कार्तिक और नायरा की डिवोर्स की तैयारी चल रही है. तो वही उन दोनों ने अपने प्यार के आगे मजबुर होकर शादी कर ली है.

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आपको बता दें. कार्तिक-नायरा किडनैप हो गई थे और उन दोनों को गुंडों ने एक स्टोर रूम में बंद कर दिया था. उसी हालत में कार्तिक-नायरा अपना इमोशन बांटते दिखे. नशे की हालत में दोनों अपने दिल की बात कहें और फिर से सात फेरे लिए.

तो वही उधर उनके किडनैपिंग से वेदिका खुद को दोषी मानती है और कहती है, मैं इतना नीचे कैसे गिर सकती हूं. लेकिन कोर्ट में नायरा कार्तिक की शादी की खबर सुनकर उसके होश उड़ जाएंगे. वेदिका गुस्से में  आग बबूला होती नजर आएगी. अपकमिंग एपिसोड में देखना ये दिलचस्प होगा कि कार्तिक नायरा के एक होने से वेदिका का अगला कदम क्या होगा.

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वापसी की राह : भाग 2

लेखक : विनय कुमार सिंह

उस ने फोन उठाया और अपने लोगों से पता लगाना शुरू किया कि जरीना की बेटी को किस ने उठाया होगा. रात तक उसे खबर मिल गईर् कि जरीना की बेटी को जिस्फरोशी के धंधे में डालने के लिए अगवा किया गया है. लेकिन जिस्मफरोशों ने उसे इस जगह से कई सौ किलोमीटर दूर पहुंचा दिया था. अब उसे वहां से छुड़ा कर लाना बहुत टेढ़ी खीर थी. वहां पर किसी ऐसे को वह जानता भी नहीं था जिस से मदद के लिए कह सके. बल्लू इन्हीं विचारों में खोया हुआ था कि उसे एक उम्मीद दिखी. उस ने फोन उठाया और इलाके के इंस्पैक्टर को लगाया. सारी बात बताने के बाद उस ने उस से मदद मांगी, लेकिन इंस्पैक्टर यह मानने को तैयार ही नहीं था कि बल्लू बिना पैसे लिए यह काम करने जा रहा है. बल्लू ने उसे समझाया कि वह वहां की पुलिस से बात करे, उन सब को उन का हिस्सा मिल जाएगा.

‘‘ठीक है, एक पेटी मुझे चाहिए, बाकी वहां वाला जो मांगेगा, वह देना पड़ेगा.’’

‘‘ठीक है साहब, आप बात करो, पैसा मिल जाएगा,’’ बल्लू ने कहा तो एक बार खुद उसे अपनी बात पर भरोसा नहीं हुआ. बिना पैसे के आज तक कोई काम नहीं किया था उस ने और आज सिर्फ एकसाथ पढ़ने वाली लड़की के लिए इतना बड़ा काम अपने पैसे से करने जा रहा है. लेकिन कुछ तो था जरीना की आंखों में, जिस ने उसे यह सब करने पर मजबूर कर दिया था.

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उस इलाके के इंस्पैक्टर से बात हुई, सौदा 3 लाख रुपए में पक्का हुआ. पैसों का इंतजाम कर बल्लू ने इंसपैक्टर को पैसे भिजवाए और अब बेसब्री से जरीना की बेटी की रिहाई के बारे में सोचने लगा.

जरीना हर समय फोन को देखती, उसे भी जैसे पूरा भरोसा था कि बल्लू जरूर उस की बेटी को छुड़ा लाएगा. जब भी फोन बजता, वह भाग कर उठाती. लेकिन, फोन बल्लू के अलावा किसी और का ही होता. एक दिन बीत गया था और उसे अफसोस हो रहा था कि उस ने क्यों बल्लू का नंबर नहीं लिया. अगले दिन फिर चलूंगी बल्लू के पास और एक बार और हाथ जोड़ूंगी उस के, यही सब सोच रही थी वह कि बल्लू का फोन आया.

उस ने जरीना को बता दिया कि उस की बेटी का पता चल गया है और उम्मीद है अगले 2 दिनों में वह उसे घर ले आएगा. बस, वह इस का जिक्र किसी से न करे और परेशान न हो. जरीना की आंखों से गंगाजमुना बह निकली, उस का मन खुशियों से सराबोर हो गया था. वह जब तक बल्लू को धन्यवाद देने के बारे में सोचती, फोन कट गया था. उस ने लपक कर बेटी का फोटो उठाया और उसे बेतहाशा चूमने लगी. उस के आंसू फोटो के साथसाथ उस के दामन को भी भिगोते रहे.

इंस्पैक्टर ने बल्लू को फोन कर के उस जगह का नाम बताया जहां उसे जरीना की बेटी मिलने वाली थी. अब बल्लू को बिलकुल भी चैन नहीं था और वह अपनी जीप में कुछ साथियों के साथ निकल गया. शाम होतेहोते वह उस इलाके के इंस्पैक्टर के पास पहुंच गया. उस ने अड्डे का पता बताया और बल्लू से कहा कि वह लड़की को ले कर निकल जाए, किसी को कानोंकान खबर न हो.

बल्लू अड्डे पर पहुंचा. जरीना की बेटी बुरी हालत में थी. पिछले कुछ दिन उस ने जिस हालत में बिताए थे, उस के चलते और कुछ की उम्मीद भी नहीं थी. पुलिस को देख कर जरीना की बेटी एकदम से चौंकी और उसे समझ में आ गया कि अब शायद उस की रिहाई हो जाए.

इंस्पैक्टर ने उस की मां से उस की बात कराई और बताया कि उस ने बल्लू को भेजा है उसे लाने के लिए. जरीना की बेटी निखत ने बल्लू को कस के पकड़ लिया और उस के कंधे पर सिर रख कर फूटफूट कर रोने लगी. कुछ देर तक तो बल्लू को कुछ समझ नहीं आया, लेकिन फिर उस की आंखों से भी आंसू बह निकले.

‘‘अब चिंता मत कर बेटी, मैं आ गया हूं,’’ बोलते हुए उस ने बेटी को दिलासा दी और फिर वह इंस्पैक्टर को धन्यवाद दे कर जीप से वापस चल पड़ा. पूरे रास्ते निखत भयभीत रही, रहरह कर वह रो पड़ती थी. बल्लू उस के पास ही बैठा था और उसे दिलासा देता रहा. शाम होतेहोते बल्लू निखत को ले कर अपने शहर पहुंच गया और सीधे जरीना के घर पहुंचा. जरीना को लगातार खबर मिल रही थी उस के पहुंचने की और वह बेसब्री से दरवाजे पर ही खड़ी थी कई घंटों से.

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जैसे ही जीप रुकी, निखत उतर कर भागी जरीना की तरफ. जरीना ने भी बेटी को देखा और वे दोनों एकदूसरे से लिपट कर बुरी तरह रोने लगीं. बल्लू कुछ देर ऐसे ही खड़ा जरीना और उस की बेटी को देखता रहा और फिर वह वापस अपने अड्डे पर चलने के लिए मुड़ा.

जरीना ने उस की बांह पकड़ी और फिर निखत को ले कर तीनों घर के अंदर चले गए. सब की आंखों के किनारे भी भीगे हुए थे. जरीना की बेटी तो उस से चिपक कर ही बैठी थी. अभी भी वह उस सदमे से उबर नहीं पाई थी. बल्लू भी मांबेटी को देख कर मन ही मन भीग गया. शायद पिछले कई सालों में पहली बार उस ने कोई अच्छा काम किया था जिस से उस के दिल को संतुष्टि हुई थी.

वापस आ कर बल्लू सोच में डूबा हुआ था, अब इस नेक काम को करने के बाद उसे अपना काम खटकने लगा. उसे जरीना के रूप में अब एक बहन मिल गई थी क्योंकि उस की बेटी को उस ने अपना मान लिया था.

अब उस के सामने एक बेहतर जिंदगी बिताने के लिए एक मकसद भी दिख रहा था. लेकिन जिस पेशे में वह था, उस से निकलना इतना आसान कहां था. न जाने कितने दुश्मन बन चुके थे और पुलिस में भी उस के नाम से एक बड़ी और बदनाम फाइल थी. इतना तो उसे पता ही था कि वह तभी तक बचा हुआ है जब तक वह इस पेशे में है. जिस दिन उस ने हथियार डाले, या तो दुश्मन और या फिर पुलिस उस का काम तमाम कर देगी. एक झटके में उस ने इन सब सोचों को विराम दिया और फिर वर्तमान में आ गया. हां, इतना परिवर्तन जरूर हो गया था उस में कि अब से किसी महिला या लड़की को प्रताडि़त करने वाला कोई काम नहीं करेगा.

उधर, जरीना ने फैसला कर लिया था कि अब उसे इस घटिया समाज की कोई परवा नहीं करनी है. उस समाज का क्या फायदा जो वक्त आने पर पीछे हट जाए और किसी का भला न कर सके. उस ने सोच लिया कि बल्लू को अपने घर में बुलाएगी और सारे रिश्तेदारों के सामने उसे अपना भाई बना लेगी. इसी बहाने उस की बेटी को भी एक पिता जैसे शख्स का साया मिल जाएगा. उस ने बल्लू को फोन लगाया, लेकिन उधर से आने वाली आवाज ने उसे हैरान कर दिया, ‘यह नंबर मौजूद नहीं है.’

धन्नो : भाग 1

धन की कमी ने भानुमती को व्यंग्य से धन्नो कहलवाया तो अनु की सहायता के सहारे भानुमती ने अपने बच्चों को संवारा था. काफी अरसे बाद भानुमती से जब अनु की भेंट हुई तब वे सच में धन्नो बन चुकी थीं लेकिन लक्ष्मी का गृहप्रवेश बड़ा ही विद्रूप था.

भानुमती नाम था उन का. निम्नमध्य- वर्गीय परिवार, परिवार माने पूरे डेढ़ दर्जन लोग, कमाने वाला इकलौता उन का पति और वे स्वयं राजस्थान के एक सरकारी स्कूल की शिक्षिका.

‘‘जब देखो तब घर में कोहराम छिड़ा रहता है,’’ वे अकसर अनु से कहती थीं. अनु उन से आधी उम्र की थी. उस की नियुक्ति प्रिंसिपल के पद पर हुई थी. भानुमती अकसर देर से स्कूल आतीं और जब आतीं तो सिर पर पट्टी बंधी रहती. सिर में उन के सदैव दर्द रहता था. चिड़चिड़ा स्वभाव, स्कूल आती थीं तो लगता था किसी जंग के मैदान से भाग कर आई हों.

उन्हें अनुशासन में बांधना असंभव था. अनु उन से एक सुहृदया बौस की तरह पेश आती थी. यही कारण था कि सब की अप्रिय, भानुमतीजी अपने जीवन की पोथी उस के सामने खोल कर बैठ जाती थीं.

एक दिन प्रार्थना सभा में वे चक्कर खा कर गिर पड़ीं. तुरंत चिकित्सा आदि की गई तो पता चला कि पिछले 24 घंटे से उन्होंने एक बूंद पानी भी नहीं पिया था. वे 7 दिन से व्रत कर रही थीं. स्कूल आना बेहद जरूरी था क्योेंकि परीक्षा चल रही थी. समय ही नहीं जुटा पाईं कि अपना ध्यान रख सकें. जब उन्हें चाय आदि पिला कर स्वस्थ किया गया तो एकदम से फफक पड़ीं.

‘‘आज घर में 10 रुपए भी नहीं हैं. 7 अपने बच्चे, 2 हम, सासससुर, 1 विधवा ननद व 4 उस के बच्चे. सब के तन पर चादर तानतेतानते चादर ही फट गई है, किसकिस का तन ढकूं? किसकिस के पेट में भोजन डालूं? किसकिस के पैरों को पत्थरकंकड़ चुभने से बचाऊं? किस को पढ़ाऊं, किस को नहीं? सब जरूरी हैं. एक का कुरता सिलता है तो दूसरे की सलवार फट जाती है. एक की रोटी सिंकती है तो दूसरे की थाली खाली हो जाती है. और ये लक्ष्मीमाता मेरे घर के दरवाजे की चौखट से कोसों दूर…वहां विष्णु के पैर दबा रही हैं. खुद तो स्वर्णजडि़त ताज पहने, कमल के फूल पर विराजमान हैं और यहां उन के भक्तों को कांटों के गद्दे भी नसीब नहीं होते…’’

न मालूम क्याक्या बड़बड़ा रही थीं. उस दिन तो जैसे किसी वेगवती नदी का बांध टूट गया हो. उन्होंने किसी को नहीं छोड़ा. न ऊपर वाले को न नीचे वाले को….

थोड़ा स्वस्थ होने पर बोलीं, ‘‘चाय का यह घूंट मेरे गले में दिन भर बाद उतरा है पर किसी को फिक्र है मेरी पति तो इस भीड़ में ऐसे खो गए हैं कि मेरी शक्ल देख कर भी मुझे पहचान नहीं पाएंगे. बस, बच्चे पैदा कर डाले, वह भी 7. आज के जमाने में जहां लोगों के घर 1 या 2 बच्चे होते हैं, मेरे घर में दूसरों को देने लायक ऐक्स्ट्रा बच्चे हैं. 6 बेटियां हैं, परंतु उन्हें तो बेटा चाहिए, चाहिए तो बस चाहिए, आखिर 7वां बेटा हुआ.

‘‘सच पूछो तो मैडम, मुझे अपनी कोखजनों से कोई लगाव नहीं है, कोई ममता नहीं है. आप कहेंगी कि कैसी मां हूं मैं? बस, मैं तो ऐसी ही हूं…रूखी. पैसे का अभाव ब्लौटिंग पेपर की तरह समस्त कोमल भावनाओं को सोख गया है. पानी सोख लेने वाला एक पौधा होता है, ठीक उसी तरह मेरे इस टब्बर ने पैसों को सोख लिया है,’’ वे रोती जा रही थीं और बोलती जा रही थीं.

‘‘जीवन में कुछ हो न हो, बस पैसे का अभाव नहीं होना चाहिए. मुझे तो आजकल कुछ हो गया है, पेड़ों पर लगे पत्ते रुपए नजर आते हैं. मन करता है, उन्हें तोड़ लाऊं. सड़क पर पड़े ईंट के टुकड़े रुपयों की गड्डी नजर आते हैं और नल से पानी जब खाली लोहे की बालटी में गिरता है तो उस में भी पैसों की खनक जैसी आवाज मुझे सुनाई देती है.’’

उस दिन उन की यह दशा देख कर अनु को लगा कि भानुमतीजी की मानसिक दशा बिगड़ रही है. उस ने उन की सहायता करने का दृढ़ निश्चय किया. मैनेजमैंट के साथ मीटिंग बुलाई, भानुमतीजी की सब से बड़ी लड़की जो कालेज में पढ़ रही थी, उसे टैंपोररी नौकरी दिलवाई, दूसरी 2 लड़कियों को भी स्कूल के छोटे बच्चों के ट्यूशन दिलवाए.

अनु लगभग 8 साल तक उस स्कूल में प्रिंसिपल रही और उस दौरान भानुमतीजी की समस्याएं लगभग 50 फीसदी कम हो गईं. लड़कियां सुंदर थीं. 12वीं कक्षा तक पढ़ कर स्वयं ट्यूशन करकर के उन्होंने कुछ न कुछ नौकरियां पकड़ लीं. सुशील व कर्मठ थीं. 4 लड़कियों की सहज ही बिना दहेज के शादियां भी हो गईं. 1 बेटी डाक्टरी में निकल गई और 1 इंजीनियरिंग में.

ननद के बच्चे भी धीरेधीरे सैटल हो गए. सासससुर चल बसे थे, पर उन का बुढ़ापा, भानुमतीजी को समय से पहले ही बूढ़ा कर गया था. 47-48 साल की उम्र में 70 साल की प्रतीत होती थीं भानुमतीजी. जब कभी कोई बाहर से सरकारी अफसर आता था और शिक्षकों का परिचय उन से करवाया जाता था, तो प्राय: कोई न कोई अनु से प्रश्न कर बैठता था :

‘‘आप के यहां एक टीचर काफी उम्र की हैं, उन्हें तो अब तक रिटायर हो जाना चाहिए.’’

उन की उम्र पता चलने पर, उन के चेहरे पर अविश्वास के भाव फैल जाते थे. जहां महिलाएं अपनी उम्र छिपाने के लिए नईनई क्रीम, लोशन व डाई का प्रयोग करती हैं वहीं भानुमतीजी ठीक इस के विपरीत, न बदन पर ढंग का कपड़ा न बालों में कंघी करना. लगता है, वे कभी शीशे में अपना चेहरा भी नहीं देखती थीं. जिस दिन वे मैचिंग कपड़े पहन लेती थीं पहचानी नहीं जाती थीं.

‘‘महंगाई कितनी बढ़ गई है,’’ वे अकसर कहती रहती थीं. स्टाफरूम में उन का मजाक भी उड़ाया जाता था. उन के न मालूम क्याक्या नाम रखे हुए थे… उन्हें भानुमतीजी के नाम से कोई नहीं जानता था.

एक दिन इंटरस्कूल वादविवाद प्रतियोगिता के सिलसिले में अनु ने अपने नए चपरासी से कहा, ‘‘भानुमतीजी को बुला लाओ.’’

वह पूरे स्कूल में ढूंढ़ कर वापस आ गया. तब अनु ने उन का पूरा नाम व क्लास लिख कर दिया, तब कहीं जा कर वे आईं तो अनु ने देखा कि चपरासी भी हंसी को दबा रहा था.

अनु ने वादविवाद का विषय उन्हें दे दिया और तैयारी करवाने को कहा. विषय था : ‘टेलीविजन धारावाहिक और फिल्में आज साहित्य का स्थान लेती जा रही हैं और जिस प्रकार साहित्य समाज का दर्पण होता जा रहा है वैसे ही टेलीविजन के धारावाहिक या फिल्में भी.’

वादविवाद प्रतियोगिता में बहुधा टीचर्स की लेखनी व वक्ता का भावपूर्ण भाषण होता है. 9वीं कक्षा की नीति प्रधान, भानुमतीजी की क्लास की थी. उस ने ओजपूर्ण तर्क रखा और समस्त श्रोताओं को प्रभावित कर डाला. उस ने अपना तर्क कुछ इस प्रकार रखा था :

‘टेलीविजन धारावाहिक व फिल्में समाज का झूठा दर्पण हैं. निर्धन किसान का घर, पांचसितारा होटल में दिखाया जाता है. कमरे में परदे, सोफासैट, खूबसूरत पलंग, फर्श पर कालीन, रंगीन दीवारों पर पेंटिंग और बढि़या स्टील के खाली डब्बे. भारी मेकअप व गहनों से लदी महिलाएं जेवरात की चलतीफिरती दुकानें लगती हैं.’

व्यंग्यात्मक तेवर अपनाते हुए नीति प्रधान पुरजोर पौइंट ढूंढ़ लाई थी, टेलीविजन पर गरीबी का चित्रण और वास्तव में गरीबी क्या होती है?

‘गरीब के नए कपड़ों पर नए कपड़ों का पैबंद लगाया दिखाते हैं. वे तो अकसर ऐसे लगते हैं जैसे कोई बुटीक का डिजाइन. गरीबी क्या होती है? किसी गरीब के घर जा कर देखें. आजकल के युवकयुवतियां घुटनों पर से फटी जीन्स पहनना फैशन मानते हैं, तब तो गरीब ही सब से फैशनेबल हैं. बड़ेबड़े स्टेटस वाले लोग कहते हैं :

‘आई टेक ब्लैक टी. नो शुगर प्लीज.’

‘अरे, गरीब के बच्चे सारी जिंदगी ब्लैक टी ही पीते रहे हैं, दूध और शक्कर के अभाव में पलतेपलते वे कितने आधुनिक हो गए हैं, उन्हें तो पता ही नहीं चला. आजकल अकसर लोग महंगी होलव्हीट ब्रैड खाने का ढोल पीटते हैं. अरे, गरीब तो आजीवन ही होलव्हीट की रोटियां खाता आया है. गेहूं के आटे से चोकर छान कर रोटियां बनाईं तो रोटियां ही कम पड़ जाएंगी. और हां, आजकल हर वस्तु में रिसाइक्ंलिंग शब्दों का खूब इस्तेमाल होता है, गरीब का तो जीवन ही रिसाइकल है. सर्दी की ठिठुरती रातों में फटेपुराने कपड़ों को जोड़ कर जो गुदड़ी सिली जाती है उसे कोई फैशनेबल मेमसाहब अपना बटुआ खाली कर खरीद कर ले जाएंगी.’

धन के अभाव का ऐसा आंखोंदेखा हाल प्रस्तुत करने वाला और कौन हो सकता था? प्रतियोगिता में नीति प्रथम घोषित हुई थी.

अजब गजब: ये है रौक कपल

दूरदूर तक फैले जल में खड़ी ये 2 पहाड़ी चट्टानें जापान के फुटामी की चट्टानें हैं, जिन्हें मीओटो ईवा यानी मैरीड कपल रौक के रूप में भी जाना जाता है. धान के भूसे से बनी कई टन वजनी रस्सियों, जिन्हें शिमेनावा कहा जाता है, से बांधी गई इन चट्टानों को इस तरह बंधे होने की वजह से ही इन्हें मैरीड कपल्स का नाम मिला है.

इन्हें बांधने वाली धान की रस्सियों को हर साल बदल दिया जाता है. निस्संदेह यह दर्शनीय स्थल है, लेकिन जापानियों के लिए यह सिर्फ दर्शनीय स्थल नहीं हैं, इन चट्टानों से उन की धार्मिक मान्यताएं भी जुड़ी हैं.

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जापान में मान्यता है कि ये दो चट्टानें देवताओं के वंशज इजानागी और जन्म, जीवन और मृत्यु निर्धारित करने वाली देवी इजानामी के एक हो जाने का प्रतीक हैं. इन में से बड़ी चट्टान को पति और छोटी को पत्नी माना जाता है. इसी वजह से बड़ी संख्या में जापानी कपल यहां अपनी शादी की कामनाएं ले कर आते हैं. जिस समय इन चट्टानों की रस्सियों को बदला जाता है, तब यहां बड़े त्यौहार जैसा मेला लगता है.

इस तसवीर को आस्ट्रेलिया की अनास्तासिया वूलमिंगटन ने क्लिक किया है. यह तसवीर 4900 प्रतिभागियों के बीच एप्सन इंटरनेशनल पानो अवार्ड्स के फाइनलिस्ट तक पहुंची थी.

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