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लहलहाते वृक्ष : भाग 2

सरकार के साधन असंख्य होते हैं. फौरन जिलाधीशों और विकास अधिकारियों की आपातबैठक हुई. निर्देश दिया गया कि सच्चीमुच्ची में वृक्ष लगाए जाएं. इस के और नाना प्रकार के अन्य फंड पहले से ही सब की जेब में हैं, सो, कोई कमी या दिक्कत का बहाना नहीं सुना जाएगा. 15 दिनों बाद दोबारा जांच की जाएगी तब तक किसी न किसी बहाने कमीशन का दौरा अटकाया जाता रहेगा.

अधिकारसंपन्न अधिकारी वापस लौट आए. वे ऐसे आदेशों की अनसुनी करने के अभ्यस्त मगर अपनी खाल बचाने में पारंगत. उन्होंने फौरन तहसीलदारों और खंडविकास अधिकारियों को वृक्षारोपण सुनिश्चित करने के लिखित निर्देश जारी किए और चैन की बंसी बजाने लगे.

मगर अगंभीर सरकार इस बार गंभीर थी. मामला कोर्ट का था न. मुख्य सचिव को अपने अफसरों की ईमानदारी और कर्मठता के बारे में कोई गलतफहमी न थी. इसलिए एक दिन लावलश्कर के साथ खुद जांच के लिए निकल पड़े. जैसा अंदेशा था, बिलकुल वैसा ही हुआ. जिनजिन तहसीलों में छापे मारे वहां के वृक्ष केवल फाइलों में लहलहाते मिले. इतनी हिमाकत. मुख्य सचिव का कहर तहसीलदारों और खंडविकास अधिकारियों की पीठ पर निलंबन का कोड़ा बन बरसने लगा. एकदो जिलाधीश भी उस के लपेटे में आ गए.

पूरे प्रदेश में हंगामा मच गया. सारे तहसीलदारों और अधिकारियों की नींद हराम हो गई. मगर खेलावन बाबू मस्त थे. 15 वर्षों पहले वे पटवारी के रूप में सरकारी सेवा में भरती हुए थे और ‘कड़ी वाली’ मेहनत कर तहसीलदार बन गए थे. इस बीच वे कितने घाटों का पानी पी चुके थे, उन्हें खुद भी याद न होगा.

2 दिनों बाद मुख्य सचिव का लश्कर उन के इलाके में पहुंचा. सचिव से ले कर अपर सचिव तक के अधिकारियों की फौज उन के मुंह से निकले शब्दों को मूर्तरूप देने के लिए साथ में थी.

‘‘पिछली रिपोर्ट में बताया गया है कि आप के इलाके में वृक्ष नहीं लगाए गए हैं,’’ मुख्य सचिव ने फाइल देखते हुए कहा.

‘‘हुजूर, वृक्ष तो लगाए गए थे लेकिन उन्हें बकरियां खा गई थीं. मगर 15 दिनों में आप के गुलाम ने दोबारा वृक्ष लगवा दिए हैं,’’ खेलावन बाबू ने हाथ जोड़ अपनी कमर को जितना झुका सकते थे उतना झुकाते हुए कहा.

खेलावन बाबू ने दिखाया, मुख्य सचिव और उन की फौज ने देखा. वास्तव में दूरदूर तक लहराते हुए वृक्ष लगे हुए थे. हरेभरे. 4-4, 5-5 फुट के वृक्ष.

‘‘अरे वाह, ये तो बहुत खूबसूरत वृक्ष हैं. बिलकुल हरेभरे,’’ मुख्य सचिव ने सचिव से कहा.

‘‘यस सर, इन वृक्षों की ग्रोथ देख कर लग रहा है 10-15 दिनों में इन में फ्रूट्स भी उग आएंगे,’’ सचिव ने अपनी टाई ठीक करते हुए कहा.

‘‘सर, ये सारे वृक्ष हाइब्रिड के लग रहे हैं. इन में फसल भी बेहतर होनी चाहिए,’’ संयुक्त सचिव, जो शीघ्र ही सचिव बनने वाले थे, ने भी अपना ज्ञान बघारना जरूरी समझा.

‘‘आई थिंक खेलावन बाबू ने इन वृक्षों पर हाई क्वालिटी का इन्सैक्टिसाइड डाला है, तभी बकरियों ने इन्हें नहीं खाया,’’ मुख्य सचिव ने कुछ सोचते हुए कहा.

‘‘यस सर,’’ सचिव ने खोपड़ी हिलाई.

‘‘यू आर राइट सर,’’ संयुक्त सचिव ने अपनी पूरी गरदन हिला डाली. सरकारी सेवा में अधीनस्थों की कार्यकुशलता इन्हीं शब्दों में जाप की मात्रा से नापी जाती है.

मुख्य सचिव ने एक बार फिर अपनी दृष्टि दूरदूर तक लहलहाते

वृक्षों पर डाली. फिर संयुक्त सचिव की ओर मुखरित होते हुए बोले, ‘‘अभी तक हम सब को पनिश करते आ रहे थे, बट आई थिंक, हमें खेलावन को उस के गुड वर्क के लिए अवार्ड देना चाहिए ताकि दूसरों को मोटिवेशन मिल सके.’’

‘‘यस सर’’, ‘‘यू आर राइट सर,’’ सचिव और संयुक्त सचिव ने पूर्ववत अपनीअपनी खोपड़ी और गरदन हिलाई.

‘‘खेलावन, तुम ने 15 दिनों में इतना काम कैसे कर डाला?’’ मुख्य सचिव, खेलावन बाबू से मुखातिब हुए.

‘‘हुजूर, सब आप से प्रेरणा ले कर किया है वरना इस गुलाम में इतनी कूवत कहां,’’ खेलावन बाबू ने एक बार फिर हाथ जोड़ कर अपनी कमर को जितना झुका सकते थे उतना झुकाया.

खेलावन बाबू की मुद्रा देख सचिव का अंतर्मन तृप्त हो गया. खुश हो उन्होंने कहा, ‘‘खेलावन, तुम हमारे वृक्षारोपण अभियान के आईकन हो. हम तुम्हें अवार्ड देंगे.’’

खेलावन बाबू पूरी तरह नतमस्तक हो गए. तृप्त मुख्य सचिव ने इशारा किया तो अपर सचिव ने फौरन अपने ब्रीफकेस से एक लिफाफा निकाला. पुराने अनुभव के चलते वे छपेछपाए सस्पैंशन और्डर के साथसाथ अवार्ड के लिफाफे और एक फोटोग्राफर को भी ले कर मुख्यालय से चले थे.

फोटोग्राफर ने कैमरा संभाला. मुख्य सचिव ने दाता कृष्ण की मुद्रा बनाई और खेलावन बाबू ने सुदामा की मुद्रा में हाथ आगे बढ़ाया.

‘‘तभी हट…हट…हट…’’ करता एक धूलधूसरित 15-16 वर्षीय बालक अपनी बकरियों को हांकते हुए उधर आ गया.

‘‘हटवाओ इन बकरियों को वरना ये वृक्षों को खा जाएंगी और इन्हें उगाने में 15 दिनों की मेहनत बेकार हो जाएगी,’’ मुख्य सचिव ने हाथ रोक कर सचिव को आदेश दिया.

इस से पहले कि सचिव महोदय कुछ कह पाते, उस बालक ने ढीठ की तरह कमर पर हाथ रखते हुए मुख्य सचिव से पूछा, ‘‘बाबू, आप लोग शहर से आए हो?’’

‘‘हां.’’

‘‘तभी ऐसी बातें कर रहे हो,’’ बालक खिलखिला कर हंस पड़ा.

‘‘कैसी बातें?’’ मुख्य सचिव ने आंखें तरेरीं.

‘‘पहली बात, बकरियां खाती नहीं, चरती हैं. और दूसरी बात, वृक्ष 15 दिनों में नहीं, बल्कि 15 साल में तैयार होते हैं,’’ बालक के चेहरे पर व्यंग्यभरी मुसकान तैर गई.

मुसकान देख मुख्य सचिव तिलमिला गए. उन्होंने डपटते हुए कहा, ‘‘तू पूरा मूर्ख है क्या? तुझे ये वृक्ष दिखलाई नहीं देते?’’

वह बालक अपने गांव का राजकुमार सा था. उसी की धरती पर कोई बाहर वाला उसे मूर्ख कहे, यह बात बरदाश्त से बाहर थी. वह ताव खा गया, ‘‘मूरख हो तुम. पक्के पढ़ेलिखे मूरख, जिसे वृक्ष और ताजा खोद कर गाढ़ी गई डाल में फर्क करने की तमीज नहीं है.’’

मुख्य सचिव अवाक रह गए. उन्हीं के सूबे में उन के अफसरों के सामने कोई उन्हें मूर्ख कह सकता है, यह बात कल्पना से भी परे थी. उन की समझ में ही नहीं आया कि क्या कहें.

वक्त की नजाकत समझ उन की तरफ से मोरचा संभालते हुए खेलावन बाबू ने बालक को डपटा, ‘‘चलो, भागो यहां से. साहब लोग वृक्षों की जांच करने आए हैं. उन्हें जांच करने दो. सरकारी काम में बाधा मत डालो वरना अंदर कर दिए जाओगे.’’

पहले मूर्ख कहा और अब अंदर करने की धमकी. बालक का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा और वह हाथ नचाते हुए बोला, ‘‘जांच करने आए हैं तो कायदे से जांचें. झूठमूठ की फोटो क्यों खिंचवा रहे हैं?’’

इतना कह कर वह एक वृक्ष के करीब पहुंचा और बोला, ‘‘अगर ये वृक्ष हैं तो इन की जड़ें भी होंगी.’’

खेलावन बाबू खतरा भांप गए थे मगर इस से पहले कि वे कूद कर उस उद्दंड बालक को दबोच पाते, उस ने अपनी नन्ही भुजाओं से कई वृक्षें को उखाड़ डाला.

जड़विहीन वृक्षों ने सब को जड़ से हिला दिया. खेलावन बाबू तो पूरी तरह सनाका खा गए. अब तो नौकरी जाने की पक्की गारंटी. उन की टांगें कांपने लगीं. नीचे गिरने से पहले उन्होंने भयभीत नजरों से मुख्य सचिव की ओर देखा. वहां मंदमंद मुसकराहट छाई हुई थी.

समस्या का हल उन्हें मिल गया था. अब जहांतहां कमीशन जाएगा, वहांवहां एक दिन पहले ‘खेलावनी विधि’ से लहलहाते वृक्षों का रोपण कर दिया जाएगा. कमीशन के आसपास इस नादान बालक जैसे तत्त्व न भटकने पाएं, यह सुनिश्चित करवाने के उन के पास अनेक साधन थे. वे लावलश्कर के साथ फौरन राजधानी लौट पड़े. बहुत सी तैयारियां जो करनी थीं.

कर्फ्यू : भाग 2

लेखिका: सुरभि शर्मा

मैं ने कदम आगे बढ़ाए और दूसरी गली में पहुंच गई. मैं ने  झांक कर देखा, वह गली भी खाली थी. मैं उस गली में आगे बढ़ गई और गली के दूसरे कोने पर पहुंच कर आगे का जायजा ले ही रही थी कि मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मेरे पीछे कोई है. मैं ने शायद किसी के पैरों की आवाज सुनी है. मैं इतना डर गई कि पीछे मुड़ कर देखने की भी मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी. बुत सी बन वहीं खड़ी रह गई. वह आवाज मेरे और पास आई. अब मुझे यकीन हो चला था कि मेरे पीछे कोई तो है. में ने डरते हुए पीछे देखा. वहां वाकई कोई था.

‘‘डरना मत, चिल्लाना मत, मैं कुछ नहीं करूंगा.’’

वह मेरी ही हमउम्र लड़का था. लंबा, अच्छी कदकाठी का, काली आंखों वाला. चिल्लाने की मुझ में हिम्मत थी भी नहीं. डर से मेरे हाथपैर ठंडे हो चुके थे.

‘‘मैं दंगाई नहीं हूं. मैं बाजार में फंसा था. घर जाना चाहता हूं. क्या तुम भी घर जा रही हो?’’

मुझ से कुछ भी बोलते नहीं बना, तो उस ने फिर पूछा.

‘‘कुछ तो बोलो. डरो मत. मैं तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाऊंगा.’’

मैं जवाब में सिर्फ ‘हां’ कह पाई.

‘‘तुम्हारा घर कहां है. मेरे साथ चलो. इस तरह अकेले पकड़ी जाओगी,’’ कह कर उस ने अपना हाथ बढ़ा कर मेरा हाथ पकड़ना चाहा. मैं ने अपना हाथ पीछे खींच लिया.

‘‘अच्छा ठीक है. बस, मेरे साथ रहो,’’ वह बोला.

पहली बार मैं ने हिम्मत कर के, बस, इतना कहा, ‘‘मैं खुद से चली जाऊंगी.’’ और अगली गली में जाने के इरादे से नजर डाली.

‘‘तुम जहां जाने की सोच रही हो वहां से मैं बड़ी मुश्किल से बच कर आया हूं, वहां लोग खड़े हैं, पकड़ी गई तो मारी जाओगी. बेहतर यही है कि मेरे साथ चलो. मैं तुम्हें घर पहुंचा दूंगा, भरोसा रखो.’’

मैं ने एक नजर उस की आंखों में डाली, क्या वह सच बोल रहा है? क्या उस पर भरोसा किया जा सकता है? मुझे इस तरह अपनी तरफ देखते हुए उस ने कहा, ‘‘मैं मनसुख चाचा की दुकान के बाद 2 दुकानें छोड़ कर जो घर है, उस में रहता हूं. तुम कहां रहती हो?’’

मनसुख चाचा की दुकान सब से मशहूर हलवाई की दुकान है. मैं समझ नहीं पाई कि जवाब दूं या नहीं, जवाब न पा कर उस ने दोबारा पूछा, ‘‘तुम कहां रहती हो?’’ तो मैं ने बता दिया, ‘‘तुम दरी वालों का घर जानते हो, वह घर हमारा है. मनसुख चाचा की दुकान के 2 गली पीछे. हमारे घर में दरी बनाने का काम किया जाता है, इसलिए सब दरीवालों का घर कहते हैं.’’

‘‘हां, जानता हूं, मैं तुम्हें पहुंचा दूंगा. बस मेरे साथ रहो.’’

डर से मेरे सोचने समझने की शक्ति खत्म हो गई थी. सहीगलत समझ नहीं आ रहा था. बस, इतना समझ आया कि वह मुझे मेरे घर पहुंचाने की बात कह रहा था.

वह सड़क के दूसरी तरफ जाने लगा और मैं उस के पीछे चल दी. चलतेचलते उस ने बताया कि उस का नाम अखिल है. उस ने कहा, ‘‘कल से मेन बाजार में फंसा हुआ था. वहां हालात इस से बदतर हैं. आज हिम्मत कर के घर के लिए निकला हूं.’’ फिर बोला, ‘‘देखो, मेरा घर तुम्हारे घर से पहले आएगा, इसलिए मैं अपने घरवालों को सूचित कर के कि मैं सहीसलामत हूं, फिर तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ आऊंगा. तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘सांची.’’ मैं हां या न कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं थी. बस, इतना ही कह पाई और चुपचाप पीछे चलती रही.

कुछ दूर छिपतेछिपाते गलियों से निकलते हुए हम एक घर के सामने रुके. उस ने दरवाजे पर दस्तक दी. अंदर से कोई जवाब नहीं आया. उस ने फिर से दस्तक दी. और अपना नाम बताया. जैसे ही दरवाजा खुला, हम तूफान के जैसे अंदर दाखिल हुए और दरवाजा बंद हो गया. अंदर अखिल का परिवार था. सब उसे सहीसलामत देख कर बहुत खुश थे. फिर सब ने मेरी तरफ देखा. अखिल ने सारी कहानी कह सुनाई.

‘‘तुम आज रात यहीं रुक जाओ. अंधेरा भी हो गया है. कल सुबह हम तुम्हें छोड़ आएंगे,’’ अखिल की मां ने कहा.

‘‘जी शुक्रिया, मेरा घर अब पास ही है, मैं चली जाऊंगी,’’ मैं ने कहा और चलने के लिए दरवाजे की तरफ मुड़ी.

मैं चाहती थी कि अखिल मेरे साथ जाए पर जब उस की मां ने रात रुकने के लिए कहा तो मैं कुछ कह नहीं पाई.‘‘नहीं, अकेले मत जाओ. अखिल तुम्हें छोड़ आएगा,’’ अखिल के पिता ने कहा.

हम ने घरवालों से विदा ली और फिर से सड़क पर आ गए.

हम कुछ दूर चले ही थे कि अखिल ने मेरा हाथ पकड़ लिया. मैं ने गुस्से से उस की तरफ देखा, तो उस ने समझते हुए कहा, ‘‘तुम पीछे रह जाती हो, इसलिए. और अब हमें सड़क पार करनी है, पीछे रह गई, तो हम अलग हो जाएंगे.’’

मैं ने चुप रहना ही बेहतर समझा. हम ने कुछ कदम आगे बढ़ाए ही थे कि हमें हमारी तरफ आती हुई कुछ आवाजें सुनाई दीं. हम ने अपने कदम वापस लिए और भाग कर एक टूटी हुई कार के पीछे शरण ली. अखिल ने मेरा हाथ अपने दोनों हाथों से पकड़ा हुआ था और मैं अपना चेहरा उस के सीने में छिपाए बैठी थी. वे 3-4 लोग थे जो भाग रहे थे. उन के पीछे 3-4 पुलिस वाले भाग रहे थे.

अखिल के मैं इतना करीब बैठी थी कि मुझे उस की धड़कनें साफ सुनाई दे रही थीं. उस का दिल जोरों से धड़क रहा था और सांसें बहुत तेज चल रही थीं. यह अखिल की जिम्मेदारी नहीं थी कि वह मुझे  घर पहुंचाए, पर फिर भी न जाने क्यों उस ने अपनी जान का जोखिम लिया. मैं पहली बार अपनेआप को महफूज महसूस कर रही थी.

वे आवाजें दूर चली गईं. फिर सुनाई देना बंद हो गईं. हम ने एकदूसरे की तरफ देखा और हमारी नजरें उलझ कर रह गईं.

अपनेआप को संयत कर के उस ने कहा, ‘‘चलो, हमें निकलना होगा.’’ पर अब मुझे पहुंचने की जल्दी नहीं थी.

वे आवाजें फिर नहीं आईं और हम छिपतेछिपाते, रुकतेरुकाते हुए घर पहुंचे. घर के दरवाजे पर मैं ने धीरे से मां को आवाज लगाई. कुछ ही पलों में दरवाजा खुल गया. हम अंदर चले गए. सब सहीसलामत घर पर ही थे. उन्हें सिर्फ मेरी फिक्र थी. मैं ने उन्हें बताया कि किस तरह अखिल ने अपनी परवा न करते हुए मुझे घर तक पहुंचाया.

सब अखिल के बहुत शुक्रगुजार थे. अखिल हम से उसी वक्त विदा ले कर अपने घर के लिए निकल गया. हम उसे रोक नहीं पाए. खाना खा कर मैं सोने चली गई. घर में सब बहुत खुश थे. पर मुझे फिक्र थी अखिल की, क्या वह ठीक से घर पहुंचा होगा? क्या वे दंगाई फिर आए होंगे? मेरे सामने अखिल का चेहरा घूम रहा था. मेरा मन उसी की फिक्र कर रहा था. मन बारबार सोच रहा था कहीं उसे कुछ हो न गया हो. लगता था उस से कोई अनकहा रिश्ता जुड़ गया था.

जब खेतों में हो गाजर घास, कैसे पाएं निजात

बरसात में गाजर की पत्तियों की तरह दिखने वाली यह घास बहुत तेजी से बढ़ती है. इसे चटक चांदनी, गंधी बूटी और पंधारी फूल के नाम से भी जाना जाता है. गाजर घास की वजह से फसलों की पैदावार में कमी आती है, इसलिए इस की रोकथाम करना जरूरी हो जाता है.

कृषि मंत्रालय और भारतीय वन संरक्षण संस्थान के वैज्ञानिक बताते हैं कि भारत में गाजर घास का वजूद पहले नहीं था. ऐसा माना जाता?है कि इस के बीज साल 1950 से 1955 के बीच अमेरिका और कनाडा से आने वाले गेहूं पीएल 480 के साथ भारत में आए थे. आज यह गाजर घास मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा और महाराष्ट्र जैसे उन्नत कृषि उत्पादक राज्यों में हजारों एकड़ खेतों में फेल चुकी है. गाजर घास में पाए जाने वाला जहरीलापन फसलों की पैदावार पर बुरा असर डालता?है.

तेजी से फैलती घास

बरसात के मौसम के अलावा भी गाजर घास के पौधे कभी भी उग आते?हैं और बहुत जल्दी इन पौधों की बढ़वार होती है. 3 से 4 फुट तक लंबी इस घास का तना मजबूत होता है. इस घास पर?छोटेछोटे सफेद फूल 4 से 6 महीने तक रहते हैं. कम पानी और कैसी भी जमीन हो, उस पर उगने वाली इस घास के बीजों का फैलाव भी बड़ी तेजी से होता है.

गाजर घास के एक पौधे में औसतन 650 अंकुरण योग्य बीज होते?हैं. जब यह एक जगह पर जड़ें जमा लेती?है तो दूसरे किसी पौधे को जमने नहीं देती. यही वजह है कि यह घास खेत, मैदान या चारागाह को जल्दी ही अपना निशाना बना लेती है.

देवरी गांव के किसान माधव गूजर खेत में घास की समस्या से खासा परेशान हैं. उन का कहना है कि खेत में उग आई गाजर घास की वजह से पहले तुअर और अब गेहूं की पैदावार में कमी आई है. इस?घास की एक खूबी यह भी है कि यह अपने आसपास किसी दूसरे पौधे को पनपने नहीं देती. यदि खेत में गाजर घास ज्यादा हो तो यह फसल पैदावार पर सीधा असर डालती है.

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सेहत के लिए नुकसानदेह

फसलों के अलावा गाजर घास पालतू जानवरों और किसानों के लिए नुकसानदायक है. पालतू जानवर इस की हरियाली के प्रति आकर्षित होते हैं, पर इसे सूंघ कर निराश हो कर लौट आते?हैं. कभीकभी घास और चारे की कमी में कुछ दुधारू पशु इसे खा लेते हैं, जिस से उन का दूध कड़वा और मात्रा में कम हो जाता है. इसे खाने से पशुओं में कई तरह के रोग हो जाते?हैं. अगर गाय या भैंस इसे खा लेती हैं तो उन के थनों में सूजन भी आ जाती है.

आमगांव के किसान गणेश वर्मा अपने खेत में ही मकान बना कर रहते हैं. मकान के आसपास उगी गाजर?घास के पौधों की वजह से वे त्वचा की एलर्जी से पीडि़त हैं. गाजर घास के पौधे छूने पर त्वचा में खुजली होने लगती है.

गाजर घास फसलों और पशुओं के अलावा इनसानों के लिए भी काफी गंभीर समस्या है. गाजर घास की पत्तियों के काले छोटेछोटे रोमों में ‘पार्थीनम’ नाम का कैमिकल पदार्थ पाया जाता है, जो दमा, एग्जिमा, बुखार, सर्दीखांसी, एलर्जी जैसे रोगों को पैदा करता है. किसान गाजर घास को उखाड़ते हैं तो गाजर घास के पराग कण सांस की नली से शरीर के अंदर जा कर विभिन्न प्रकार के त्वचा रोगों का कारण बन जाते हैं. गाजर घास की जड़ों से निकलने वाला तरल पदार्थ ‘एक्यूडेर’ जमीन की मिट्टी को खराब करता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम करता है.

रोकथाम जरूरी

अनुविभागीय कृषि अधिकारी केएस रघुवंशी ने इस बारे में बताया कि गाजर घास अगर जमीन में बहुतायत में उग आई है तो इस की रोकथाम का प्रभावी तरीका यही है कि इसे फूल आने से पहले जड़ समेत उखाड़ कर एक जगह पर ढेर लगा दें और 2-3 दिन बाद सूखने पर आग लगा दें. इस से गाजर घास के बीज नष्ट हो जाते हैं. इस के अलावा गाजर घास के?ऊपर 100 लिटर पानी में 20 किलो साधारण नमक का घोल बना कर छिड़काव करने से?भी इस के पौधे, फूल और बीज सभी नष्ट हो जाते?हैं.

उन्होंने आगे कहा कि गाजर घास को उखाड़ते समय हाथों में रबड़ के दस्ताने पहनें, सुरक्षात्मक कपड़ों का उपयोग जरूर करें, जिस से त्वचा पर किसी भी तरह के संक्रमण का खतरा न हो.

गोविंद वल्लभपंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्विविद्यालय, पंतनगर से जुड़े सचिन दुबे के मुताबिक, गाजर घास की रोकथाम के लिए विभिन्न फसलों में कैमिकलों का इस्तेमाल किया जा सकता?है. शुरुआती अवस्था में जब पौधे 2-3 पत्तियों के हों, इस खरपतवार को विभिन्न शाकनाशियों जैसे 2, 4-डी 0.5 किलो या मेट्रीब्यूजीन 0.35-0.4 किलो या खरपतवारनाशक दवा ग्लाइफोसेट 1-1.25 किलो सक्रिय अवयव को 600-800 लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव कर के इस को खत्म किया जा सकता है. छिड़काव करते समय पौधों को घोल में अच्छी तरह भिगोना जरूरी होता है.

वरिष्ठ कृषि विस्तार अधिकारी अशोक त्रिपाठी बताते?हैं कि गाजर घास को फूल आने से पहले जड़ समेत उखाड़ कर गड्ढे में डाल कर मिट्टी से ढक दें. गाजर घास जहां भी हो, उस जगह की गरमी में गहरी जुताई करें ताकि बाकी बची जड़ें भी नष्ट हो जाएं, उस के बाद बरसात में खरपतवारों के निकलने पर भी निगरानी रखें. खेत व मेंड़ पर यदाकदा गाजर घास दिखे तो उसे नष्ट करते रहें.

गैरकृषि भूमि में इस की रोकथाम के लिए सामुदायिक रूप से कोशिश करनी होगी. इस में यांत्रिक विधि, जैविक विधि और कैमिकलों का इस्तेमाल किया जा सकता है. इस के अलावा प्रतिस्पर्धात्मक पौधों द्वारा इस की बढ़वार और विकास को रोका जा सकता है. घर के आसपास और संरक्षित इलाकों में गेंदे के पौधे लगाने चाहिए.

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खेतों में जल्दी बढ़ने वाली फसलें जैसे

ढैंचा, ज्वार, बाजरा वगैरह की फसलें ले कर इस खरपतवार को काफी हद तक काबू में किया जा सकता है.

छोटी ट्रौली से करें काम बोझ ढोना हुआ आसान

कृषि क्षेत्र में महिलाओं की भी भागीदारी अहम है. पशुपालन में भी महिलाओं की तकरीबन 70 फीसदी भागीदारी है. महिलाओं द्वारा पशुओं के लिए चारा काटना और उसे लाना, दूध दुहना, गोबर डालना व उस के उपले बनाना और पशुओं की देखरेख करना ये सभी काम शामिल हैं.

ये सभी काम मेहनत वाले हैं जिन से थकावट होती है इसलिए अब कृषि में अनेक प्रयोग होने लगे हैं जो खेती से जुड़े कामों को आसान बना रहे हैं.

इसी दिशा में चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के ‘पारिवारिक संसाधन प्रबंधन विभाग’ द्वारा एक बहुद्देशीय ट्रौली को बनाया गया?है जिस पर सामान लादना व ढोना आसान है. इस ट्रौली से किसी भी सामान को एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता?है जैसे गोबर, ईंधन, पानी वगैरह. इस ट्रौली को हाथों से धक्का दे कर चलाया जाता?है. बोझ को सिर पर उठा कर नहीं चलना पड़ता इसलिए इस ट्रौली के इस्तेमाल में आराम रहता है.

यह ट्रौली खेतिहर महिलाओं के लिए काफी आरामदायक है. इस?ट्रौली को लोहे की चादर और पाइपों से बनाया गया है जिस में तकरीबन 17-18 किलो वजन होता है. इस की अनुमानित कीमत 2,000 रुपए है.

आप इसे स्थानीय बाजार से भी ले सकते हैं या हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के ‘पारिवारिक संस्थान प्रबंधन विभाग’ से संपर्क कर सकते हैं.

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घूस ऊपर तक जाती है!

घूस में ऊपर वाले तक का बड़ा हिस्सा रहता है. इसलिए, घूसखोरों को पापी तो किसी भी लिहाज से नहीं कहा जा सकता, बल्कि ढूंढ़ने से उन के जैसे पुण्यात्मा और दानी नहीं मिलेंगे और जो मिलेंगे, उन के घूसखोर न होने की गारंटी खुद ऊपर वाला नहीं लेगा, क्योंकि जब सबकुछ उसी का बनाया हुआ है तो तय है घूस और घूसखोरी भी उसी ने बनाए हैं.

‘तेरा तुझ को अर्पण क्या लागे मेरा’ को वास्तविक रूप से कोई मानता और उस पर ईमानदारी से अमल करता है तो वह घूसखोर ही है जो दिनभर में जो भी पैसा घूस का बटोरता है उस का कुछ हिस्सा घर ले जाने से पहले धर्मस्थलों पर जरूर चढ़ाता है. ऐसा करने से उस के पाप धुल जाते हैं और मन की ग्लानि दूर होती है. यानी, जब ऊपर वाला तक घूस का पैसा स्वीकार लेता है तो किसी को कोई हक नहीं कि वह नीचे वालों को कोसे.

मध्य प्रदेश के कटनी जिले के सलमान हैदर खान खाद्य आपूर्ति निगम में प्रबंधक पद पर थे. उन्होंने अपने सेवाकाल में खूब घूस खाई और कभी भी ऊपर वाले का हिस्सा देना नहीं भूले. बीते दिनों जब लोकायुक्त पुलिस ने उन के इंदौर और कटनी स्थित भव्य आवासों पर छापा मारते 5 करोड़ रुपए की जायदाद का खुलासा किया तो लोगों के मन में उन के प्रति नफरत कम, श्रद्धा ज्यादा जागी, कि जैसा भी था, आखिर था तो महादानी. अब यह और बात है कि आम लोगों की यह दलील अदालत में नहीं चलेगी.

सलमान ने एक करोड़ रुपए की राशि धर्मस्थलों के लिए दान की थी और तकरीबन 40 लाख रुपए लोगों की हजयात्रा पर भी खर्च किए थे. जाहिर है, कोई भी आदमी इतनी बड़ी रकम मेहनत से कमा कर तो ऊपर भेजेगा नहीं, क्योंकि खूनपसीने और मेहनत की कमाई अव्वल तो इतनी भारीभरकम होती नहीं, और होती भी है तो लोग कंजूसी कर जाते हैं. वे उतना ही दान करते हैं कि उसे घूस की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता क्योंकि दान अल्प होता है और घूस अपार होती है.

तो सलमान भाई पकड़े गए, उन पर उस ऊपर वाले को भी रहम नहीं आया जिसे वे नियमित घूस का हिस्सा देते रहे थे. फिर नीचे वालों से तो किसी डिस्काउंट या रहम रखने की उम्मीद करना बेकार की बात है. ऐसे धर्मपरायण और महादानी व्यक्ति को हिकारत से देखा जाना और अपराधी माना जाना उस के साथ ज्यादती नहीं तो और क्या है?

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घूस और दान

सलमान खान के पकड़े जाने से दिलचस्प बात यह उजागर हुई कि दुनियाभर के धर्मस्थल जिस पुण्य के पैसे से फलफूल रहे हैं उस में घूस की बड़ी भागीदारी है. मंदिरों, मसजिदों, चर्चों और गुरुद्वारों में जो अरबोंखरबों रुपए चढ़ते हैं उन में बड़ा योगदान घूसखोरों का रहता है, जिन्हें चढ़ाने से पहले सोचना नहीं पड़ता कि कितना चढ़ाएं. भोपाल के एक रिटायर्ड कौंस्टेबल हैं रामसिंह (बदला नाम) जिन्होंने जिंदगीभर ‘भाभीजी घर पर हैं’ नाम के टीवी धारावाहिक के एक पात्र दरोगा हप्पू सिंह की तरह न्योछावर यानी घूस खाई. लेकिन, पूरी ईमानदारी से वे ऊपर वाले का हिस्सा देते रहे. नतीजतन, बेदाग रिटायर हो गए. जिस तरह पुलिस के सेवाकाल में उन्हें अपनी पगार निकालने की जरूरत नहीं पड़ती थी, उसी तरह घूस का पैसा उन्होंने बिना किसी अर्थशास्त्री या फाइनैंशियल एडवायजर की मदद के कुछ इस तरह इन्वैस्ट किया कि उस के रिटर्न और इंट्रैस्ट के चलते पैंशन की रकम निकालने की जरूरत नहीं पड़ती.

हप्पू सिंह की तरह रामसिंह को भी कभी घूस लेने में कोई संकोच नहीं हुआ और न ही शर्म आई. वे बेहिचक घूस खाते रहे, जिस के बूते पर दोनों बेटे महंगे स्कूलों में पढ़ कर सरकारी नौकरी में लग गए. वे अब भी घूस खाने की अपनी पुश्तैनी परंपरा को पूरी निष्ठा और ईमानदारी से निभा रहे हैं. बड़ा पुलिस विभाग में ही पिता का नाम रोशन कर रहा है तो छोटा बेटा राजस्व विभाग के राजस्व में मलाई काट रहा है. हालांकि, वह नकदी के अलावा जेवर, जमीन और जिस्म तक घूस में ले लेता है.

इन दोनों की नौकरी लगवाने में रामसिंह ने 5-5 लाख रुपए दिए थे. रामसिंह बड़े फख्र से बताते हैं कि वे पैसे भी घूस के ही थे. बड़े बेटे का समय बलवान था जो उस की मौखिक परीक्षा यानी इंटरव्यू के ठीक पहले ही कसबे में एक मर्डर हो गया. कत्ल की इस वारदात के प्रताप से उन्हें पत्नी के गहने बेचने का विचार त्यागना पड़ा. छोटे बेटे के इंटरव्यू के पहले ही ऊपर वाले ने एक अमीर घराने की जवान विधवा बहू को गर्भवती कर दिया. वह गर्भसहित भागी तो ससुराल वालों ने इस बाबत उन्हें घूस दी कि वह पकड़ी जाए तो पेट वाली बात वे अपने पेट तक ही रखें.

रामसिंह का बुढ़ापा ऐशोआराम से कट रहा है. दोनों बेटे चारों हाथों से कमा रहे हैं. घूस कैसे लें कि पकड़े न जाएं, इस हुनर के टिप्स सीखने बेटों को किसी कोचिंग में नहीं जाना पड़ा. बचपन से ही उन्हें पूजापाठ के साथसाथ घूस के संस्कार और प्रशिक्षण दोनों ही पूज्य पिताजी से मिल गए थे.

सलमान खान और रामसिंह जैसे मुलाजिम कुछ और करें न करें, अपनेअपने धर्मस्थल सुबहशाम जरूर जाते हैं. उन की पहली प्रार्थना यह रहती है कि हे दाता, आज खूब घूस दिलवाना, तो शाम को इतने या उतने चढ़ाऊंगा और कभी पकड़ा न जाऊं तो इतने और, और कभी कोई भ्रष्ट बुद्धि वाला शिकायत न करे और कर भी दे तो उस पर कोई कार्यवाही न हो तो उस के लिए इतने और चढ़ाऊंगा.

अधिकतर मामलों में ऊपर वाला सुन लेता है. लेकिन उस के पास भी काम इतना ज्यादा है कि वह सभी घूसखोरों को नहीं बचा पाता. कहने का मतलब यह नहीं कि उन की भक्ति, श्रद्धा या दान की मात्रा में कोई कमी होती है, बल्कि यह है कि ऊपर वाला जिस दिन ध्यान नहीं दे पाता उस दिन वे लापरवाह और बेखौफ हो जाते हैं. इसलिए रंगेहाथों धरे जाते हैं. सावधानी हटी कि दुर्घटना घटी वाली कहावत सड़कों पर ही नहीं, घूसखोरी के कठिन मार्ग पर भी लागू होती है.

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घूसखोर क्यों अपेक्षाकृत ज्यादा धार्मिक होता है, इस विषय पर शोध की अपार संभावनाएं मौजूद हैं. लेकिन यह बात तय है कि पकड़े जाने के डर से नीचे वाले घूसखोरों ने ऊपर वाले को भी घूसखोर बना दिया है. मान लिया जाता है कि नहीं पकड़े गए तो ऊपर वाले की कृपा है जो दान यानी ग्रांट घूस से मिलती है और अगर पकड़े गए तो ग्रहनक्षत्र खराब थे, जो लेने में चूक या लापरवाही कर दी.

साबित होता है कि दान और घूस में केवल शाब्दिक अंतर है, नहीं तो भावना दोनों की समान है कि हमारा काम हो जाए. सलमान खान धड़ल्ले से खाद्य आपूर्ति निगम को चूना लगा रहे थे, लेकिन वे आर्थिक दिखावे की चूक कर गए और ऊपर वाले पर जरूरत से ज्यादा भरोसा कर बैठे. इसलिए अब हवालात में हैं. और यकीन मानें, यदि वे बरी भी होंगे तो ऊपर वाले की कृपा से ही होंगे. रामसिंह कभी पकड़े नहीं गए तो यह भी ऊपर वाले की कृपा थी. यह और बात है कि उन जैसे मुलाजिम घूस लेने में मुकम्मल एहतियात बरतते हैं.

भगवान को घूस देने का रिवाज नया कहीं से नहीं है. हर धर्म यह कहता है कि अपनी कमाई का इतना या उतना हिस्सा चढ़ाओ. लेकिन, इस हिदायत में कहीं भी जायज या नाजायज कमाई का जिक्र नहीं है.

धर्मस्थलों में भी

हर कोई बातबात पर अपने इष्ट और आराध्य को घूस देता है कि हे भगवान, यह काम करवा दो तो इतने का चढ़ावा चढ़ाऊंगा. सार यह कि बेटे की नौकरी इसी घूस का दाना डालने से लगती है और बेटी की शादी भी इसी से होती है. असाध्य बीमारियों से ठीक होने में भी भगवान को घूस दी जाती है और पत्नी की कलह से बचने के लिए निसंतानों के घरों में किलकारियां घूस से गूंजती हैं और मनचाहा प्रेमी या प्रेमिका भी घूस से मिलती है.

ऊपर वाला चूंकि सीधे घूस नहीं ले पाता, इसलिए उस के नीचे भी दलाल बैठे हैं जिन का कभी कुछ नहीं बिगड़ता क्योंकि दान घूस की तरह जुर्म नहीं है. अब सलमान हैदर खान के मामले ने दिलचस्पी तो पैदा कर दी है कि उस एक करोड़ रुपए की रकम का क्या होगा जो उन्होंने धर्मस्थल को दान में दी थी. अदालत इसे घूस मानते जब्त करने का हुक्म देती है या नहीं.

लेकिन इन सांसारिक बातों से इतर एक कड़वा और उजागर सच यह भी है कि धर्मस्थलों पर मूर्ति के दर्शन तक के लिए घूस का चलन है. किसी भी ब्रैंडेड मंदिर में तयशुदा फीस दे कर जल्द दर्शन कर सकते हैं, इसे वीआईपी दर्शन कहा जाता है. ज्यादा समझदार लोग धर्मस्थल के इर्दगिर्द तैनात सुरक्षाकर्मियों को ही घूस दे कर आम श्रद्धालुओं और भक्तों से पहले दर्शन लाभ ले लेते हैं. दक्षिण के मशहूर तिरुपति बालाजी मंदिर से ले कर उत्तर के वैष्णो देवी मंदिर तक यह परंपरा मौजूद है और उस के भुक्तभोगी भी हर कहीं मिल जाएंगे.

ऊपर वाला सर्वशक्तिमान होता है, इसलिए मान लेना चाहिए कि वह जानता है कि कौन सा भक्त नाजायज तरीके से दक्षिणा दे कर पहले उस के दर्शन कर गया और उस में से कितना पैसा घूस का था. इस के बाद भी वह भेदभाव नहीं करता. करता तो उस के संविधान में वर्णित यह अनुच्छेद शक की निगाह से देखा जाने लगेगा कि ऊपर वाले के दरबार में सब बराबर होते हैं. जाहिर है, दान की तरह घूस भी एक मौलिक अधिकार है जिस की पात्रता यानी सरकारी नौकरी हासिल करने में भी घूस देनी पड़ती है.

घूस की महिमा अपरंपार है जिस पर 19वां घूस पुराण लिखा जा सकता है, जिस का सार यह होगा कि घूस की महिमा से बिगड़े काम बनते हैं. घूस से जाति और मूल निवासी प्रमाणपत्र बन जाता है. मकान का नामांतरण हो जाता है. पासपोर्ट बन जाता है. बच्चे को मनचाहे स्कूल में दाखिला मिल जाता है. एफआईआर दर्ज नहीं होती. मुकदमे में मनमाफिक तारीख मिल जाती है. डाक्टर फुरती से इलाज कर देता है और इकोनौमिक्स की स्पेलिंग न जानने वाला भी अर्थशास्त्र में मास्टर डिगरी ले लेता है.

कोई नहीं मानता और न ही कहता है कि कर्मकांडों की तरह घूस कभी खत्म होगी क्योंकि वह महादान है, इसलिए बेहतर होगा कि उसे आईपीसी की अपराध वाली धारा 171 से हटाया जाए.

सच तो यह है कि लोग खुद घूस का रिवाज बनाए रखना चाहते हैं. इस का प्रमाण वह नया कानून है जिस में घूस देने वाले को भी सजा का प्रावधान साल 2018 में किया गया था. लेकिन, एक साल गुजरने के बाद भी घूस देने के आरोप में शायद ही कोई पकड़ा गया हो. भ्रष्टाचार निवारण संशोधन अधिनियम 2018 पुराणों की तरह हो गया है जिन्हें खोलने के बजाय लोग ऊपर से ही उस का पूजापाठ कर देते हैं.

घूस को कानूनी मंजूरी मिल जाए, तो सरकार का राजस्व बढ़ेगा, किसानों को वक्त पर मुआवजा मिलने लगेगा. देश के सारे लोगों के पास गरीबी का प्रमाणपत्र होगा. और तो और, जातिगत भेदभाव खत्म हो जाएगा क्योंकि सभी के पास एससी, एसटी होने के प्रमाण होंगे. इस से आरक्षण की समस्या अपनेआप हल हो जाएगी.

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इन तमाम वर्णित और अवर्णित कारणों के चलते घूसखोरी की प्रवृत्ति और घूसखोरों को कोसा नहीं जाना चाहिए क्योंकि वे काम को आसान बनाते हैं और इस के एवज में कुछ पैसा ले लेते हैं तो कोई जुर्म नहीं करते. घूसखोरी एक ही शर्त पर बंद हो सकती है कि जागरूकता और समझदारी दिखाते लोग ऊपर वाले को घूस देना बंद कर दें, तो नीचे वाले अपनेआप सुधर जाएंगे.

कहां कितनी घूस

घूस के लेनदेन को ले कर नैशनल काउंसिल औफ एप्लाइड इकोनौमिक

रिसर्च की एक रिपोर्ट पर गौर करें तो शहरी क्षेत्र में रहने वाला एक परिवार औसतन 4,400 और ग्रामीण क्षेत्र का परिवार अपने काम कराने के लिए औसतन 2,900 रुपए की घूस देता है. घूस का एक बड़ा हिस्सा मनरेगा में जाता है, जहां लोगों को जनकल्याण योजनाओं का लाभ लेने के लिए दक्षिणा चढ़ानी पड़ती है. ग्रामीण क्षेत्रों के लोग सरकारी काम ऐडमिशन और पुलिस से जुड़े कामों के लिए सब से ज्यादा घूस देते हैं, शहरों में नौकरी, ट्रांसफर और पोस्ंिटग के लिए एक परिवार सालाना औसतन 18,000 रुपए और ट्रैफिक पुलिस को 600 रुपए सालाना रिश्वत देता है.

बात भाजपा राज की करें, तो ट्रांसपेरैंसी इंटरनैशनल इंडिया ऐंड लोकल सर्कल्स के एक सर्वे के मुताबिक,  56 फीसदी लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष घूस देनी पड़ती है. सीधे नकद दी जाने वाली घूस 40 फीसदी है. सरकारी दफ्तरों में दलालों के जरिए दी जाने वाली घूस 25 फीसदी है. सब से ज्यादा घूस पुलिस महकमे को 25 फीसदी दी जाती है. इस के बाद स्थानीय निगम, राजस्व विभाग और दूसरे महकमों को घूस जाती है.

इस सर्वे में दिलचस्प बात यह उजागर हुई थी कि अधिकांश सरकारी दफ्तरों में सीसीटीवी कैमरे लगे होने के बाद भी घूस दी और ली गई. एक और दिलचस्प बात यह है कि 58 फीसदी लोगों को नहीं मालूम कि उन के प्रदेशों में कोई एंटीकरप्शन हैल्पलाइन भी है. इस के चलते घूस का कारोबार दिन दोगुना रात चौगुना फलफूल रहा है.

अजब गजब: यहां मिलती है दुनिया की सबसे बड़ी थाली

कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिन्हें  बाहर का खाना काफी पसंद होता है. पर कई लोग ऐसे भी होते हैं, जिन्हें घर का ही खाना पसंद होता है. कभी ऐसा भी होता है जब आप बाहर किसी रेस्टोरेंट या ढाबे पर खाने जाते हैं तो वहां ग्राहकों को  स्पेशल औफर दिया जाता  है. तो आइए आज आपको एक ऐसी जगह के बारे में बताते है जहां दुनिया की सबसे बड़ी थाली मिलती है. औप यहां खाने के लिए आपको औफर भी मिलेगा.

जी हां, ये  रेस्टोरेंट  मुंबई में है. यहां पर नौनवेज खाने वालों के लिए के स्पेशल थाली मिलती है. ऐसा कहा जाता है कि ये दुनिया की सबसे बड़ी थाली है. इस नौन वेज थाली का नाम मशहूर भारतीय पहलवान दारा सिंह के नाम पर रखा गया है. इस थाली का नाम ‘दारा सिंह’ थाली है. इस थाली में कुल 44 प्रकार के व्यंजन शामिल हैं.

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बताया जाता है कि इस थाली का नाम दारा सिंह थाली इसलिए पड़ा क्योंकि उन्हें पंजाबी फूड बहुत पंसद था और खासकर उत्तर भारत का खाना उन्हें बहुत भाता था. इस थाली में सीख कबाब, मक्के दी रोटी, दाल, मटन, बटर चिकन, पापड़, सलाद, मटन मसाला, चिकन बिरयानी, टगड़ी कबाब, कोली वाड़ा, चूर- चूर नान आदि शामिल है. वहीं इसके साथ पंजाब की मशहूर लस्सी, शिकंजी, छाछ, ब्लैक कैरल पीने के लिए मौजूद है. जबकि स्वीट आइटम की बात करें तो इसमें रस्गुल्ला, जलेबी, रबड़ी, मूंग दाल हलुआ, पेटा बर्फी, मालपुआ, आईस्क्रीम शामिल है.

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दरअसल में मुंबई के पवई में मिनी पंजाब के लेकसाइड नाम से मशहूर एक रेस्टोरेंट ने दुनिया की सबसे बड़ी लाजवाब और मसालेदार नौन वेज थाली बनाई है. इस थाली के बारे में ऐसा भी कहतेे है, अगर कोई इस थाली को 30 मिनट के अंदर खा ले, तो उसके लिए यह मुफ्त है. वैसे  इस थाली को 12 लोग ही पूरा खत्म कर पाए हैं.

पैसों की भूखी एक प्रेमिका का हैरतअंगेज खेल

लेखक- एमके मजूमदार

आज एक की बांहों में, तो कल दूसरे की बांहों में. इस तरह के कई प्रेमी देखने को मिल जाएंगे, पर कई लड़कों से इश्क लड़ा कर उन के पैसों पर ऐश करने का शौक रखने वाली लड़कियां कम ही मिलती हैं. विदिशा, मध्य प्रदेश की स्वीटी (बदला हुआ नाम) उन में से एक थी. उसे बौयफ्रैंड बनाने का शौक था. वह आएदिन नएनए बौयफ्रैंड बनाती थी. जिस की जेब उसे तंग लगने लगती, वह उस को अपनी जिंदगी से दूर कर देती थी. हाल ही में स्वीटी ने गोपाल रैकवार को अपने हुस्न के जाल में फंसाया. कुछ समय तक उस के पैसों पर खूब ऐश की. जब उस ने महसूस किया कि गोपाल की जेब तंग हो रही है, तो उस ने एक बकरा काट कर बेचने वाले मोटे आसामी अकरम को हुस्न का चारा दिखा कर अपना आशिक बना लिया और उसे हलाल करने लगी.

इस बात का पता गोपाल को चला. वह स्वीटी को अकरम से दूर रखने की कोशिश करने लगा. स्वीटी कम होशियार नहीं थी. उस ने दोनों हाथों में लड्डू हासिल करने के लिए अपने प्रेमियों के सामने दिल्ली सरकार के ईवनऔड वाले फार्मूले की तरह तारीख को आपस में बांट लेने का औफर रखा.

गोपाल को स्वीटी का औफर पसंद नहीं आया, तो उस की लाश शहर के बाहर एक कुएं में मिली. मध्य प्रदेश के विदिशा जिले के लोहांगीपुरा की रहने वाली 19 साला स्वीटी दिखने में काफी खूबसूरत थी. उस के पिता की मौत कई साल पहले हो गई थी. उस की विधवा मां बच्चों की सही तरीके से देखभाल नहीं कर पा रही थी. वह मंडी में मजदूरी कर के अपने तीनों बच्चों का पेट पाल रही थी.

कहते हैं कि गरीब की बेटी जल्दी ही जवान हो जाती है. ऐसा ही स्वीटी के साथ भी हुआ. अपनी ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए उस ने अपने हुस्न को ही चारा बना लिया. उस ने खातेपीते घरों के लड़कों को पटाना शुरू किया. स्वीटी के हुस्न को पाने के लालच में कई लड़के बहुतकुछ लुटाने को तैयार थे. वह उन्हें हुस्न का स्वाद चखाती, इस के बदले में उन से मोटी रकम लेती. उस रकम से वह ऐश करती.

स्वीटी को मोटरसाइकिल चलाने का शौक था.  विदिशा और बीना की भीड़ भरी सड़कों पर तेज स्पीड में मोटरसाइकिल चला कर वह लोगों के आकर्षण का केंद्र बन चुकी थी.

गोपाल खातेपीते घर से था. वह स्वीटी की खूबसूरती के जाल में फंस कर उस से प्यार करने लगा. वह उस पर मनमाना खर्च भी करने लगा. जब भी वे दोनों मोटरसाइकिल पर शहर में घूमने निकलते, तो स्वीटी गोपाल को पीछे बिठा कर मोटरसाइकिल खुद चलाती थी. उस वक्त गोपाल स्वीटी की कमर को कस कर पकड़ लेता था.

पूरे शहर में दोनों के प्यार की चर्चा हो रही थी. यह बात गोपाल के घर वालों तक भी पहुंच गई. उन्हें स्वीटी का स्वभाव बिलकुल भी पसंद नहीं था. वे स्वीटी को चालू किस्म की लड़की मानते थे. गोपाल के परिवार वालों ने समझाते हुए उसे स्वीटी से दूर रहने की हिदायत दी, पर गोपाल पर स्वीटी के प्यार का नशा बुरी तरह से चढ़ा हुआ था.

इधर स्वीटी ने महसूस किया कि गोपाल का हाथ कुछ तंग होता जा रहा है. ऐसे में वह दूसरे प्रेमी की तलाश में लग गई. एक दिन स्वीटी की मुलाकात 28 साला अकरम से हुई. वह मांस बेचने का धंधा करता था. उस की कमाई अच्छी थी. स्वीटी ने उसे अपने हुस्न के जाल में फंसा लिया. वह उस पर दिल खोल कर खर्च करने लगा.

स्वीटी इस बात का ध्यान रखती थी कि उस की और अकरम की दोस्ती की खबर गोपाल को न लगे. इस के लिए वह गोपाल से भी मिलती रही. गोपाल से स्वीटी और अकरम की दोस्ती की खबर ज्यादा दिनों तक छिपी नहीं रह सकी. उस ने स्वीटी पर अपना हक जताते हुए उसे अकरम से दूर रहने की हिदायत दी.

स्वीटी ने गोपाल से कहा, ‘‘तुम मेरे मामले में दखलअंदाजी मत करो. मैं किस से मिलूंगी या नहीं मिलूंगी, यह मेरा पर्सनल मामला है. तुम अगर चाहते हो कि मेरा प्यार तुम्हें भी बराबर मिलता रहे, तो मेरे पास एक फार्मूला है. तुम दिल्ली सरकार के ईवनऔड फार्मूले की तरह तारीख तय कर लो. मैं उस दिन तुम्हारे पास रहूंगी और अगले दिन अकरम के साथ.’’

गोपाल को उस की बात पसंद नहीं आई. वह स्वीटी को हमेशा अपनी बांहों में रखना चाहता था. उस ने स्वीटी के फार्मूले को मानने से इनकार कर दिया. इधर गोपाल स्वीटी को रोकने में लगा था कि वह अकरम से न मिले. साथ ही, अकरम को भी वह बारबार मोबाइल कर के स्वीटी से दूर रहने की हिदायत देता रहा था.

अकरम ने स्वीटी को फोन कर के कहा, ‘‘अपने आशिक गोपाल को संभाल ले, वरना मैं उसे ऊपर पहुंचा दूंगा.’’

स्वीटी को गोपाल अब सिरदर्द लगने लगा था, क्योंकि वह काफी टोकाटाकी करने लगा था.

स्वीटी ने अकरम से कहा, ‘‘रोजरोज के झगड़े से अच्छा है कि गोपाल को निबटा ही दें.’’

अपनी प्रेमिका का आदेश मिलते ही अकरम ने 28 मार्च, 2016 की रात को गोपाल को अपनी दुकान पर बुलाया. अपने नौकर सुरेश पाल के साथ मिल कर उस ने गोपाल को जम कर शराब पिलाने के बाद उस की हत्या कर दी.

अकरम ने यह सूचना स्वीटी को दे दी. गोपाल की हत्या की खबर सुन कर स्वीटी काफी खुश हुई. वह अकरम की दुकान पर पहुंच गई. वहां तीनों ने जम कर शराब पी और जश्न मनाया.

बाद में पुलिस ने हत्या के आरोप में अकरम, उस के नौकर सुरेश पाल व स्वीटी को गिरफ्तार कर लिया. इस केस की जांच कर रहे अधिकारी राजेश तिवारी का कहना है, ‘‘जवानी के जोश में नौजवानों को किसी बात का होश ही नहीं रहता है. लड़के खेलीखाई लड़की से मेलजोल बढ़ाते वक्त उस पर भरोसा न रखें, क्योंकि ऐसी लड़की अपने फायदे के लिए कुछ भी कर सकती है.’’

‘घर पर एक्शन को फौलो न करें युवा’

फिल्म ‘बाहुबली’ से चर्चित होने वाले अभिनेता प्रभास हैदराबाद के हैं. उन का परिवार तमिल और तेलुगू फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ा था, पर उन्हें अभिनेता बनने का शौक नहीं था. उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है और एक व्यवसायी बनने की इच्छा रखते थे. पर उन की कदकाठी उन्हें इस क्षेत्र की ओर ले आई और आज वे सब से अधिक फीस लेने वाले एक्टर बन चुके हैं. उन्हें हिंदी लिखना और पढ़ना अच्छी तरह से आता है. दक्षिण की फिल्मों में अमिट छाप छोड़ने वाले प्रभास ने हिंदी फिल्म ‘साहो’ से डैब्यू किया है और आगे भी हिंदी फिल्मों में काम करना चाहते हैं.

‘बाहुबली’ के बाद जिंदगी कितनी बदली है? इस प्रश्न के जवाब में प्रभास कहते हैं, ‘‘अभी कैरियर की कोई चिंता नहीं है. ‘बाहुबली’ की दोनों फिल्में बौक्स औफिस पर कामयाब रही हैं. मैं ने पहले ‘बाहुबली’ को तमिल और तेलुगू में किया था. दक्षिण में इस फिल्म ने अच्छा काम किया था, पर ‘बाहुबली’ का दूसरा भाग तो बहुत ही खास था. इसे पूरे देश में लोगों ने देखा और मेरे काम को सराहा. केवल देश में ही नहीं, विदेश में भी इस फिल्म को देखा गया.’’

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आप बौक्स औफिस की सफलता को कैसे लेते हैं? इस पर वे कहते हैं, ‘‘इसे देखना जरूरी होता है, क्योंकि जब आप एक फिल्म बनाते हैं, तो उस में करोड़ों रुपए लगे होते हैं. ऐसे में कौन सी फिल्म कहां चलेगी और कितनी चलेगी, इसे देखना चाहिए ताकि फिल्म बनाने वाले को नुकसान न हो.’’

हिंदी फिल्म में आप पहली बार आ रहे हैं, इस में कितना सफल होंगे? पूछे जाने पर वे कहते हैं, ‘‘फिल्म ‘साहो’ अगर दर्शकों को पसंद आती है, तो आगे भी काम मिलेगा. तमिल, तेलुगू, मलयालम के साथ हिंदी फिल्में भी करने की मेरी इच्छा है. कुछ रीजनल फिल्में भी करना चाहता हूं, लेकिन इन सब से जरूरी है सही स्क्रिप्ट का होना. ‘बाहुबली’ के बाद पता चला है कि फिल्मों में भाषा से अधिक उस की स्क्रिप्ट अच्छी होनी चाहिए. स्क्रिप्ट के दम पर ही ‘मैंने प्यार किया’ फिल्म मेरे गांव में भी करीब 150 दिनों तक चली थी. मेरे ग्रैंडफादर ने 10 बार इस फिल्म को देखा था और उन्हें सलमान खान बहुत पसंद थे. अच्छी फिल्में हर कोई पसंद करता है.’’

आप किस तरह की फिल्मों में काम करना चाहते हैं? इस पर वे अपनी मंशा कुछ यों जाहिर करते हैं, ‘‘मैं ने सोचा था कि ‘बाहुबली’ के बाद मैं एक लवस्टोरी करूंगा, पर मुझे ऐक्शन फिल्म मिल गई. यह सही है कि जिस फिल्म से आप सफल होते हैं, वैसी भूमिका आप को मिलने लगती है. आगे रोमांटिक फिल्में करने की इच्छा है.’’

‘बाहुबली’ के बाद आप के महिला प्रशंसकों की संख्या बहुत बढ़ गई है, शादी के प्रस्ताव भी आ रहे हैं, इसे कैसे लेते हैं? इस पर प्रभास कहते हैं, ‘‘मैं ‘बाहुबली’ के बाद अपने फ्रैंड्स और परिवार के बीच में रहा. मैं फिल्मों के अलावा अधिक पब्लिकपर्सन नहीं हूं. मुझे पता है कि ‘बाहुबली’ के बाद कई मैरिज प्रपोजल आए हैं, पर शादी जब होनी होगी, तब होगी. शादी के लिए एक सही लड़की का होना जरूरी है.’’

आप स्टंट करते वक्त किस बात का खास ध्यान रखते हैं और यूथ को इस बारे में क्या मैसेज देना चाहेंगे? इस पर गंभीर होते हुए वे अपना मत व्यक्त करते हैं, ‘‘मैं ने 17 साल की इस जर्नी में कई फिल्मों में कई सारे ऐक्शन किए हैं. मैं ने कभी बौडीडबल का प्रयोग करने नहीं दिया. इस से मुझे बहुत सारी इंज्युरी भी हुई हैं. इसलिए, सभी ऐक्शन मास्टर मेरे साथ काम करना पसंद करते हैं, क्योंकि मैं सारे खतरनाक स्टंट खुद करता हूं. रोप वर्क, 40-50 फुट से जंपिंग आदि सभी स्टंट मैं ने किए हैं. लेकिन, अब मैं इतने रिस्की स्टंट नहीं करता. अब मेरे लिए सेफ्टी अधिक जरूरी है.

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‘‘मैं यूथ से कहना चाहता हूं कि मेरी फिल्म को एंजौय करें. घर पर ऐक्शन को फौलो करने की कोशिश कभी न करें. ऐक्शन चाहे वीडियो गेम्स में हो या कहीं भी, उस में मजा आता है, इसलिए यूथ इसे पसंद करते हैं. ऐक्शन करते वक्त सावधानी बहुत ही जरूरी है.’’

आप स्कूल कालेज के दिनों में कैसे थे और दिल से कितने रोमांटिक हैं? इस पर वे बताते हैं,’’मैं स्कूलकालेज में कभी भी लड़कियों से बात नहीं करता था. मैं बहुत शर्मीले स्वभाव का था, शरारती था और कई बार सजा भी मिली है. शरारत करने के लिए बैंच के नीचे छिप जाता था, जिस से टीचर की डांट भी पड़ती थी.

‘‘मैं दिल से शायद रोमांटिक हूं, वरना रोमांटिक फिल्में करना मुश्किल था. सैट पर रोमांटिक सींस करना मुश्किल नहीं होता. मुझे याद आता है कि शुरूशुरू में एक फिल्म में मैं रोमांटिक दृश्य को सही तरीके से परफौर्म नहीं कर पाया था, जिस के लिए निर्देशक ने मुझे बाद में समझाया था.’’

अभी आप सलमान की ‘जय हो’ फिल्म को टक्कर देने वाले हैं, क्योंकि ‘साहो’ का अर्थ भी जय हो ही है, क्या कहना चाहेंगे? इस पर प्रभास कहते हैं, ‘‘मैं सलमान का फैन हूं. उन के साथ मेरी कोई प्रतियोगिता नहीं है. उन्होंने इंडस्ट्री में एक अच्छा मुकाम हासिल किया है. वे कई नए कलाकारों के लिए प्रेरणास्रोत हैं. 40 साल से वे काम कर रहे हैं. उन्होंने बहुत सारी अच्छी फिल्में दी हैं.’’

किस अभिनेता ने आप को प्रेरित किया है? यह पूछे जाने पर प्रभास स्पष्ट कहते हैं, ‘‘आमिर खान से मैं बहुत प्रभावित हूं. उन्होंने ‘लगान’ और ‘दिल चाहता है’ दोनों फिल्मों को एकसाथ किया है और इस तरह की अलग कहानियों की फिल्मों का सफल होना अपनेआप में काबिलेतारीफ है.’’ वे आगे कहते हैं कि अभिनेता कमल हासन के अभिनय को भी वे बहुत पसंद करते हैं.

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लड़खड़ाती आर्थिक स्थिति

ताबड़तोड़ कर लगाने से जो मायूसी आर्थिक बाजार में छाई थी, उस का मुकाबला यह मजबूत सरकार नहीं कर पाई. झक मार कर सरकार को विदेशी व देशी निवेशकों के पूंजीनिवेश पर हुए लाभ पर लगाए कर में कटौती करनी पड़ी, गाडि़यों की रजिस्ट्रेशन फीस को टालना पड़ा और पैंडिंग जीएसटी क्रैडिट लौटाने का वादा करना पड़ा है. ये कदम लड़खड़ाते बाजार को संभालने के लिए उठाए गए हैं, पर आज जो माहौल है उस में ये सरकंडे की बैसाखी का ही काम करेंगे.

देश के साथ मुश्किल यह है कि यहां अब अकेला व्यवसाय धर्म का बन गया है. हर कोई इस धंधे की गंगा में डुबकी लगा कर तर जाना चाहता है. देश का एक बहुत बड़ा निठल्ला वर्ग देखतेदेखते आज मंदिरों, आरतियों, जुलूसों, सोशल मीडिया रणबहादुरों के नाम पर या तो करोड़ों में खेलने लगा है या चौधरी बन गया है. आज व्यापारी, वैज्ञानिक, डाक्टर, उद्योगपति, मजदूर, किसान की कीमत कुछ नहीं है जितनी भगवा गमछा पहने व्यक्ति की है.

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देश नारों से नहीं चलते, विकास भाषणों से नहीं आता, देश में शांति जेलों को भरने से नहीं होती. देश के विकास के लिए हरेक को अपनी जगह दोगुनाचौगुना काम करना होता है, उत्पादन बढ़ाना होता है. और सरकार का काम इन क्षेत्रों में आने वाली अड़चनों को दूर करना होता है. जिस सरकार को यह कला आती है, वह सफल होती है. दुनिया के कई देशों में यह कला कूटकूट कर जनमानस की सोच में भर गई है तो कुछ देशों में इसे धर्म का अपमान माना जाता है. पहले खाड़ी और उस के आसपास के मुसलिम देश, अफ्रीकी देश, दक्षिणी अमेरिका के देश इस प्रकार की सरकारों को दिल से लगाते थे, अब हम भी उन की श्रेणी में आ रहे हैं.

वित्त मंत्री ने जो छूटें दी हैं, वे आर्थिक माहौल को चमकाएंगी, इस में शक है क्योंकि अंधेपन का वायरस तो पूरे बदन में फैल चुका है. केवल विदेशी निवेशकों को खुश करने से कुछ खास न होगा. दुनिया के कितने ही देश हैं जहां न टैक्स हैं, न विदेशी पूंजी पर प्रतिबंध, पर चूंकि वहां की जनता निकम्मी है, मौजमस्ती में विश्वास रखती है, इसलिए उन का विकास नहीं हो पाता. वहीं, सिंगापुर व हौंगकौंग जैसे शहरी क्षेत्र दुनिया के सब से अमीर इलाकों में से हैं.

सरकार आज समाज का हिस्सा बन गई है. सरकार ने लोगों के जीवन में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया है और लोग कैसे रहें, क्या खाएं, क्या पहनें, यह सरकार तय सा करने लगी है. ऐसे माहौल में व्यापारी हर समय सरकार के निर्देशों को देखेंगे और उसी के मुताबिक मार्च करेंगे. वित्त मंत्री की ढील इशारा करती है कि सरकार को गलती का एहसास है, लेकिन यह भी सच है कि सरकारें खुलेतौर पर गलती मानती नहीं हैं.

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इस दिन से ’बिग बौस 13’ लेकर आ रहे हैं सलमान खान

कलर्स टीवी पर प्रसारित होने वाला टीवी शो ‘’बिग बौस’’ का 13 वें सीजन का फैंस बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. तो आइए बता दें, आपका ये फेवरेट शो जल्द ही शुरू होने वाला है. जी हां सलमान खान इस शो को लेकर जल्द ही आ रहे हैं. ‘बिग बौस सीजन 13’ इसी महीने 29 तारीख से शुरू हो रहा है. शो के लौन्च के दिन ये रात 9 बजे से शुरू होगा, जबकि बाद में रोजाना 10:30 बजे से प्रसारित किया जाएगा.

हाल ही में कलर्स टीवी ने अपने ट्विटर अकाउंट से सलमान खान का एक वीडियो ट्वीट किया और साथ ही ‘बिग बौस 13’ किस दिन शुरू हो रहा है और कितने बजे से प्रसारित होगा इसकी जानकारी भी दी. ट्वीट में लिखा गया, “बिग बौस 13 आ गया है परोसने मैड मनोरंजन.

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कलर्स टीवी ने शो के शुरू होने की जानकारी देते हुए एक प्रोमो भी शेयर किया है, जिसमें सलमान खान शेफ के रूप में नजर आ रहे हैं. सलमान वीडियो में खिचड़ी और रायता बनाते नजर आ रहे हैं. इस बार के सीजन में सेलिब्रिटी कंटेस्टेंट्स की एंट्री के अलावा, एक नई चर्चा यह है कि इस सीजन में बिग बौस की आवाज को एक महिला की आवाज के तौर पर पेश किया जाएगा. अब तक के बीते सीजन में बिग बौस की आवाज काफी चर्चित रही है, इस दमदार आवाज के पीछे अतुल कपूर नाम के शख्स हैं. खबरों के अनुसार कि एक महिला भी अतुल के साथ बिग बौस के लिए आवाज बनेंगी.

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टीवी अभिनेता अंगद हसीजा, जिन्होंने स्टार प्लस के टीवी शो ‘सपना बाबुल का, ‘बिदाई’ में ‘आलेक’ की भूमिका निभाई थी. अभिनेता इस विवादित रिएलिटी शो ‘बिग बौस’ के अगले सीजन में बतौर कंटेस्टेंट शिरकत करने के लिए औफर किया गया था. मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक उन्होंने शो में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया है. इस बारे में अंगद ने कहा कि उन्हें लगता है कि बिग बौस उनके लिए नहीं है.

खेल जो हो गया फेल: भाग 2

खेल जो हो गया फेल: भाग 1

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पीआरओ तिवारी ने उसी समय यह बात मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बता दी. डा. दास के साथ हुई ठगी से मुख्यमंत्री बुरी तरह आहत हुए. उन्होंने उसी समय हौट लाइन पर गोरखपुर (जोन) के पुलिस महानिरीक्षक जयनारायण सिंह से बात की और इस घटना की पूरी जानकारी दी. साथ ही घटना की जांच कर के 2 दिनों के अंदर रिपोर्ट देने का आदेश दिया.

मुख्यमंत्री  योगी आदित्यनाथ की फटकार से आईजी आहत हुए. चूंकि एक तो मामला उन के ही विभाग से जुड़ा हुआ था, दूसरे ठगी का आरोप विभाग के एक एसआई पर लगाया जा रहा था, इसलिए उन्होंने इस मामले की जांच एएसपी रोहन प्रमोद बोत्रे को सौंप दी. उन्होंने बोत्रे को 24 घंटे में रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया. यह बात 19 मई, 2019 की है.

एएसपी रोहन बोत्रे ने जांच शुरू की तो मामला सच पाया गया. डा. रामशरण दास के यहां लगे सीसीटीवी कैमरे के रिकौर्ड में एसआई शिवप्रकाश सिंह के वहां आने और जाने के फुटेज मौजूद थी. उन्होंने ज्योति सिंह द्वारा दिए गए आवेदन की जांच की तो काफी बड़ा झोल सामने आया, जिसे जान कर एएसपी बोत्रे के पैरों तले से जमीन खिसक गई.

जिस ज्योति सिंह नाम की युवती द्वारा डा. रामशरण दास पर अमरुतानी (अमरूद का बगीचा) में ले जा कर जबरन दुष्कर्म करने और जान से मारने की धमकी देने का आरोप लगाया गया था, दरअसल, वह एसआई शिवप्रकाश सिंह के दिमाग की महज एक कोरी कल्पना थी. हकीकत में ज्योति सिंह नाम की कोई युवती थी ही नहीं.

ठगी कर के पैसा कमाने के लिए शिवप्रसाद सिंह ने इस चरित्र को जोड़ कर एक झूठी कहानी बनाई थी. वह इस खेल में अकेला नहीं था. उस के साथ एक और बड़ा खिलाड़ी शामिल था, जो फिल्म ‘मोहरा’ में नसीरुद्दीन शाह के पात्र की तरह परदे के पीछे छिप कर खेल खेल रहा था, ताकि उस का चेहरा बेनकाब न हो सके.

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वह कोई और नहीं बल्कि डा. रामशरण दास का बेहद करीबी और न्यूज चैनल सिटी वन का तथाकथित रिपोर्टर प्रणव त्रिपाठी था. डा. दास को जब इस हकीकत का पता लगा तो उन्हें अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ.

इस मामले की पटकथा प्रणव त्रिपाठी के शैतानी दिमाग की उपज और एसआई शिवप्रकाश सिंह की खाकी वरदी के मेलजोल से लिखी गई थी. एएसपी बोत्रे की जांच में पूरी हकीकत सामने आ गई.

एएसपी रोहन प्रमोद बोत्रे ने डाक्टर रामशरण दास के साथ हुई ठगी का परदाफाश 24 घंटे में कर दिया. जांच में डाक्टर दास के दिए गए 2 हजार और 5 सौ रुपए के नोटों में से प्रणव त्रिपाठी और शिवप्रकाश ने महज 2000 रुपए ही खर्च किए थे. बाकी के 7 लाख 98 हजार रुपए बरामद कर लिए गए.

राजघाट पुलिस ने एसआई शिव प्रकाश सिंह और तथाकथित पत्रकार प्रणव त्रिपाठी के खिलाफ भादंवि की धारा 388, 689, 120बी, 506, 419, 420, 468, 471 के तहत केस दर्ज कर के दोनों को गिरफ्तार कर लिया. उन्हें अदालत के सामने पेश किया गया. अदालत ने कागजी काररवाई कर के दोनों आरोपियों को जेल भेजने का आदेश दिया.

खाकी वर्दी के गुरूर में चूर और मीडिया के ग्लैमर की शान में डूबे दोनों आरोपियों ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि एक दिन ऐसा भी आएगा, जब वे खुद कहानी बन कर रह जाएंगे. एएसपी रोहन प्रमोद बोत्रे की पूछताछ में दोनों आरोपियों ने अपना जुर्म कबूलते हुए जो कहानी बताई. वह कुछ इस तरह थी.

30 वर्षीय शिवप्रकाश सिंह मूलरूप से वाराणसी के सारनाथ का रहने वाला था. उस के पिता वाराणसी में पुलिस विभाग में तैनात थे. वे ईमानदार इंसान थे. कुछ साल पहले उन का आकस्मिक निधन हो गया था.

शिवप्रकाश सिंह उन का बड़ा बेटा था. आश्रित कोटे में पिता की जगह पर शिवप्रकाश सिंह की नियुक्ति हो गई. नियुक्ति के पश्चात सन 2011 में उस की ट्रेनिंग हुई और फिर गोरखपुर में तैनाती मिल गई.

शिवप्रकाश सिंह अपने पिता के आचरण के विपरीत आचरण वाला युवक था. उस की नजर में पुलिस विभाग महज रुपए उगाने की फैक्ट्री मात्र था. वाराणसी से टे्रेनिंग से ले कर जब अपने गोरखपुर जौइन किया तो उस की पहली तैनाती राजघाट थाने की ट्रांसपोर्टनगर चौकी पर हुई.

यह चौकी ठीक राष्ट्रीय राजमार्ग और पौश कालोनी के बीचोबीच थी. इस चौकी पर तैनाती के लिए एसआई रैंक के अफसर मोटी रकम घूस देने के लिए तैयार रहते थे. जब से शिवप्रकाश की तैनाती हुई थी, तभी से उस ने ट्रक चालकों और व्यापारियों से वसूली करना शुरू कर दिया था. लेकिन वह इस छोटीमोटी ऊपरी कमाई से खुश नहीं था. उसे किसी ऐसे आसामी की तलाश थी, जिसे एक बार हलाल कर के मोटी रकम मिल सके.

शिवप्रकाश सिंह की करतूतों की शिकायतें बड़े अधिकारियों तक भी गईं. लेकिन वह अपनी चिकनीचुपड़ी बातों और व्यवहार से अधिकारियों को ऐसे झांसे में लेता था कि उस का बाल तक बांका नहीं हो पाता था. इस से उस की हिम्मत बढ़ गई थी.

चौकी इंचार्ज शिव प्रकाश सिंह की दोस्ती न्यूज चैनल सिटी वन के तथाकथित पत्रकार प्रणव त्रिपाठी से थी. दोनों में अच्छी पटती थी. प्रणव कैंट इलाके के अलहलादपुर मोहल्ले का रहने वाला था. मध्यमवर्गीय परिवार का प्रणव बेहद चालाक और शातिर दिमाग था.

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चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश सिंह प्रणव त्रिपाठी की इस अदा का कायल था. दोस्ती होने की वजह से दोनों का साथसाथ उठनाबैठना था. बात इसी साल के फरवरी महीने की है. एक दिन दोनों ट्रांसपोर्टनगर चौकी में बैठे थे. शाम का वक्त था.

शिवप्रकाश और प्रणव दोनों चाय की चुस्की ले रहे थे. तभी बातोंबातों में चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश ने प्रणव से कहा, ‘‘यार, किसी मोटे आसामी का इंतजाम क्यों नहीं करते, जिस से एक ही झटके में लाखों का वारान्यारा हो जाए.’’

प्रणव ने मुसकराते हुए जवाब दिया, ‘‘है एक मोटा आसामी मेरी नजर में.’’

‘‘कौन है?’’ शिवप्रकाश ने पूछा, ‘‘बताओ मेरी हथेलियों में खुजली हो रही है.’’

‘‘इसी शहर का जानामाना मानसिक रोग विशेषज्ञ डा. रामशरण श्रीवास्तव.’’

‘‘वाकई आदमी तो सही चुना है, एक ही बार में मोटी रकम मिल सकती है.’’

इस के बाद चौकी इंचार्ज शिव प्रकाश सिंह डा. रामशरण श्रीवास्तव को अपने चंगुल में फांसने के लिए ऐसी युक्ति सोचने लगा जिस से सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.

काफी सोचने के बाद उस ने एक जबरदस्त योजना बनाई. योजना बनाने के बाद शिवप्रकाश ने दोस्त और तथाकथित पत्रकार प्रणव को चौकी पर बुलाया और उसे योजना के बारे में बता दिया. योजना सुन वह भी चकित हुए बिना नहीं रह सका.

चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश सिंह की योजना सुन कर प्रणव त्रिपाठी ने कहा कि वह इस के सफल होने तक बीच में कभी सामने नहीं आएगा. वह परदे के पीछे रह कर डाक्टर की सारी गोपनीय सूचनाएं देता रहेगा.

इस पर शिव प्रकाश राजी हो गया. योजना के मुताबिक, 6 मार्च, 2019 को एक काल्पनिक किरदार ज्योति सिंह द्वारा डा. रामशरण श्रीवास्तव के विरुद्ध दुष्कर्म का शिकायती पत्र लिखा गया.

डा. रामशरण श्रीवास्तव उर्फ रामशरण दास को प्रणव त्रिपाठी कैसे जानता था, जरा इस पहलू भी पर गौर करें. तकरीबन 4 साल पहले डा. रामशरण दास का एक परिचित प्रणव को नौकरी दिलाने के लिए उन के क्लीनिक पर लाया था.

उस के आग्रह पर डाक्टर दास ने प्रणव को अपने यहां नौकरी पर रख लिया. उस ने थोड़े ही दिनों में अपने अच्छे व्यवहार से डाक्टर दास का दिल और भरोसा जीत लिया. डाक्टर दास उस पर आंख मूंद कर विश्वास करने लगे.

प्रणव त्रिपाठी क्लीनिक के साथसाथ डाक्टर दास का कोर्टकचहरी का काम भी देखता था. लिखनेपढ़ने का शौकीन प्रणव उसी दौरान मझोले किस्म के दैनिक और साप्ताहिक समाचार पत्रों में खबरें लिखने लगा.

दिमाग से तेजतर्रार प्रणव ने उन्हीं खबरों को आधार बना कर पुलिस विभाग में अपनी पैठ बनानी शुरू कर दी थी. उस की इस कला को देख कर डाक्टर दास उस से खुश रहते थे. धीरेधीरे वे उसे अपने मुंह बोले बेटे की तरह मानने लगे थे.

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इसी बीच प्रणव को ड्रग लेने का चस्का लग गया. जब उसे ड्रग नहीं मिलता था तो वह बीमार पड़ जाता था. तकरीबन एक महीने तक डाक्टर दास ने उस का इलाज किया.

इस के बाद डाक्टर दास ने उसे नौकरी से हटा दिया. फिर वह जुगाड़ लगा कर न्यूज चैनल सिटी वन से जुड़ गया था और खबर देने लगा था. इस चैनल की आड़ में वह अपना उल्लू भी सीधा करता था.

व्यापारियों से उसे जेब खर्च की मोटी रकम मिल जाती थी. डाक्टर दास के यहां से नौकरी से निकाले जाने के बाद भी उस ने उन से संबंध नहीं तोड़ा था. वह बराबर उन के संपर्क में बना रहता था.

बहरहाल, योजना बनाने के बाद इसे अमल में लाने की प्रक्रिया शुरू कर दी. लेकिन शिवप्रकाश यहीं पर एक बड़ी गलती कर बैठा. तथाकथित ज्योति का जो शिकायती पत्र थाने भेजा जाना चाहिए था, वह उस ने स्पीड पोस्ट से पुलिस चौकी के पते पर पोस्ट कर दिया था. यह गलती उसे भारी पड़ गई.

इस चक्रव्यूह में फंसे डाक्टर दास ने 3 लाख एक करीबी मित्र से ले कर शिवप्रकाश को 8 लाख रुपए दिए थे. इतने से भी शिवप्रकाश और प्रणव का लालच कम नहीं हुआ और डा. दास से 2 लाख रुपए और मांगने लगे.

ये लोग डा. दास से 2 लाख रुपए की उगाही कर पाते, इस से पहले ही साजिश का भंडाफोड़ हो गया.

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सौजन्य: मनोहर कहानी

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