दिल्ली, मुंबई, बैंगलुरु जैसे महानगरों में बसने वाले मध्यम और उच्चवर्गीय एकल परिवारों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है. ऐसे परिवारों की महिलाओं के पास शिक्षा, समय और पैसे की कमी नहीं है. पति के काम पर और बच्चों के स्कूल चले जाने के बाद उन के पास काफी खाली वक्त होता है. आज इसी खाली वक्त, शिक्षा और क्षमता का प्रयोग कर के बहुत सी महिलाओं ने बड़ेबड़े व्यवसाय खड़े कर लिए हैं. इस तरह उन्होंने न सिर्फ पैसा कमाने में पति का सहयोग किया, बल्कि घर में रहते हुए, घर को, कामों को नजरअंदाज किए बगैर पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए अपने समय का बेहतरीन उपयोग किया है.

खाने ने दिया रोजगार

दिल्ली की कैलाश कालोनी में रहने वाली सरन कौर की उम्र करीब 60 साल है. उन के 3 बेटे हैं. तीनों ही अब सैटल हो चुके हैं. उन की पढ़ाईलिखाई, शादियां और नौकरी में सैटल होने में सरन कौर की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है. वे पंजाब से ब्याह कर दिल्ली आई थीं. पति के पास नौकरी नहीं थी. घर में ही आगे के कमरे में उन्होंने एक किराने की दुकान खोल रखी थी. परिवार में तब सरन कौर के पति, सास, देवर और देवरानी थे.

सरन कौर के बच्चे हुए, परिवार बढ़ा तो किराने की दुकान से घर का खर्चा निकालना मुश्किल होने लगा. तब सरन कौर ने पति के काम में सहयोग करने की ठानी. उन्हें खाना बनाने का शौक था. पंजाबी खाना बनाने में तो उन्हें महारत हासिल थी. अत: उन्होंने कैलाश कालोनी के थाने में जा कर अपने महल्ले के सीनियर सिटिजन की लिस्ट हासिल कर ली. फिर उन्होंने घरघर जा कर उन बूढ़े लोगों से मुलाकात की, जो अपने बच्चों की नौकरी के सिलसिले में दूसरे शहर या विदेश में बसने के कारण अकेले पड़ गए थे और जिन से चूल्हाचौका अब नहीं हो पाता था.

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बहुत से बुजुर्ग होटल से खाना मंगवाते थे या नौकरों के हाथ से बने कच्चेपक्के खाने पर जी रहे थे. सरन कौर ने उन्हें बहुत कम रेट पर अपने घर से खाना भिजवाने की बात कही. धीरेधीरे महल्ले के कई घरों में बुजुर्गों को घर का बना ताजा और गरम खाना सरन कौर पहुंचाने लगीं. उन के बनाए खाने की प्रशंसा होने लगी तो जल्द ही उन के ग्राहकों की संख्या बढ़ने लगी. सरन कौर का टिफिन सिस्टम चल निकला. पैसा बरसने लगा.

आज सरन कौर के पास एक बड़ी किचन है, जिस में 10-12 नौकर हैं, जो रोजाना करीब 300 टिफिन तैयार करते हैं. डिलिवरी बौय समय से टिफिन ग्राहकों तक पहुंचाते हैं. आज सरन कौर के ग्राहकों में सिर्फ बुजुर्ग लोग ही नहीं, बल्कि पेइंगगैस्ट के तौर पर दूसरे शहरों से आ कर रहने वाले लोग और औफिस में काम करने वाले लोग भी शामिल हैं. होटल या रेहड़ी के मसालेदार और अस्वस्थकर खाने की जगह मात्र 100 रुपए में घर की बनी दाल, चावल, सब्जी, रोटी, सलाद, दही उन्हें ज्यादा स्वादिष्ठ और सेहतमंद लगता है. सरन ने अपनी मेहनत और लगन से न सिर्फ परिवार को संभाला, बल्कि कई अन्य लोगों को भी रोजगार उपलब्ध कराया.

गुड अर्थ गुड जौब

दिल्ली के छतरपुर में एक फार्महाउस में बनी ‘गुड अर्थ’ कंपनी की वर्कशौप को देख कर मैं दंग रह गई. यह कंपनी आज किसी परिचय की मुहताज नहीं है. इस में तैयार होने वाला सामान अपनी खूबसूरती, कलात्मकता और ऊंचे दाम की वजह से अमीर वर्ग में काफी लोकप्रिय है.

‘गुड अर्थ’ की मालकिन अनीता लाल उन बड़े उद्योगपतियों में से एक हैं, जिन्होंने अपने शौक को अपना व्यवसाय बना कर न सिर्फ अपनी रचनात्मकता को नए आयाम दिए, बल्कि सैकड़ों महिलाओं के लिए रोजगार के रास्ते भी तैयार कर दिए. उन की लगन, हिम्मत, जिद, कुछ नया करने का शौक और प्रतिभा ने ‘गुड अर्थ’ जैसी कंपनी की नींव डाली.

आज देशभर में ‘गुड अर्थ’ के तमाम शोरूम्स में विभिन्न प्रकार की कलात्मक वस्तुओं, वस्त्र, ज्वैलरी आदि की बिक्री होती है. इन वस्तुओं पर जो कलाकारी, नक्काशी, रंगरोगन, बेलबूटे दिखाई पड़ते हैं, वे अद्भुत होते हैं और उन्हें बनाने वाली महिलाओं की उच्च रचनात्मकता का परिचय देते हैं.

‘गुड अर्थ’ की वस्तुओं पर मुगलकालीन चित्रकारी, राजस्थानी लोककला के नमूने, लखनवी और कश्मीरी कढ़ाई के जो बेहद खूबसूरत बेलबूटे नजर आते हैं, उस की वजह है स्वयं अनीता लाल का देश की कला के प्रति गहरा लगाव. भारत की कलात्मक विरासत को जीवित रखने और उसे नए रंग में ढाल कर आगे ले जाने वाली अनीता लाल ने 20 साल पहले अपना व्यवसाय तब शुरू किया था, जब अपने बच्चों को उन्होंने सैटल कर दिया था, क्योंकि उन की पहली वरीयता उन का परिवार और उन के बच्चे थे.

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वे शुरू से ही आजाद खयाल की थीं उन की अपनी सोच थी, क्षमता और प्रतिभा थी. मातापिता का सहयोग उन्हें प्राप्त था. घर में इस बात की आजादी थी कि अपनी शिक्षा, क्षमता और प्रतिभा का प्रयोग वे जहां और जैसे करना चाहें, कर सकती हैं.

वे कहती हैं, ‘‘चूंकि घर में कोई दकियानूसी खयालों का नहीं था और लड़कियों को भी लड़कों की तरह शिक्षा, प्यार और पालनपोषण मिला, लिहाजा मेरे काम में कभी कोई व्यवधान नहीं आया. आज मैं एक सफल व्यवसायी हूं

तो अपने परिवार के प्यार और सहयोग के कारण ही.’’

अनीता लाल की शादी एक धनी व्यवसायी परिवार में हुई, जहां पैसे की कोई कमी नहीं थी. वे चाहतीं तो आराम से घर में बैठ कर अपना जीवन व्यतीत कर सकती थीं, लेकिन उन्होंने हाथ पर हाथ धरे घर में बैठे रहने या हाइप्रोफाइल पार्टियां ऐंजौय करने के बजाय एक ऐसे व्यवसाय को शुरू करने की सोची, जिस में वे ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को जोड़ कर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा कर सकें. उन का लक्ष्य पैसा कमाना नहीं था, वरन हिंदुस्तान की कला और कारीगरों को नए आयाम देना, महिलाओं को रोजगार से जोड़ना और लीक से हट कर कुछ नया और बेहतर करना था.

अनीता कहती हैं, ‘‘हम ने अपनी महिला कर्मियों के लिए कभी कोई सख्त नियम नहीं रखे. वे अपनी सुविधानुसार अपने काम के घंटे खुद तय करती हैं. यहां उन्हें हर तरह की सुविधा और आजादी है. मेरा मानना है कि औरत की पहली जिम्मेदारी उस का घर और बच्चे हैं. मैं ने भी अपने बच्चों के बड़े होने के बाद ही अपना व्यवसाय शुरू किया था. इसलिए ‘गुड अर्थ’ में कार्यरत किसी भी महिला के लिए उस का घर प्रथम है.

‘‘मेरा मानना है कि जिंदगी भी अच्छी तरह चले और काम भी. इस के लिए जरूरी है कि महिलाएं मानसिक रूप से तनावमुक्त रहें. तनावमुक्त वे तभी रहेंगी जब हम उन की परेशानियों को समझें और उन्हें मिल कर दूर करें.

‘‘हमारे देश में महिलाएं लगातार हिंसा, बलात्कार, भेदभाव का शिकार हो रही हैं. यदि उन्हें सिर्फ 2 चीजें- पहली शिक्षा और दूसरी रोजगार हासिल हो जाए तो उन पर होने वाले अपराधों पर विराम लग जाए. शिक्षा से समझ बढ़ेगी और रोजगार से पैसा आएगा.’’

सरन कौन, अनीता लाल जैसी महिलाओं को देख कर कहा जा सकता है कि मजबूत और सकारात्मक सोच रखने वाली महिलाएं न सिर्फ खुद सशक्त हो रही हैं, बल्कि दूसरों को भी सशक्त बना रही हैं.

व्यावहारिकता, अनुभव और कौशल विपरीत से विपरीत स्थिति में भी जीवनयापन में सहायता करता है. ऐसा नहीं है कि अशिक्षित महिलाओं में कौशल एवं हुनर कम है. कृषि, कुटीर उद्योग, पारंपरिक व्यवसाय, पशुपालन, दुग्ध व्यवसाय जैसे कार्यों की तरफ महिलाएं तेजी से बढ़ रही हैं.

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औरत के सशक्त होने से एक परिवार ही नहीं, बल्कि समाज और राष्ट्र भी सशक्त होता है. महानगरों में एकल परिवार की कितनी ही महिलाएं हैं, जिन के पास खूब खाली वक्त है, जिस का सदुपयोग कर के वे अपनी शिक्षा, शौक और क्षमता को नष्ट होने से बचा सकती हैं और परिवार, समाज और देश को कुछ अद्भुत दे सकती हैं.

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