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परित्यक्ता : भाग 1

बरसती बूंदें कजरी के पैरों से कदमताल कर रही थीं. अभी 6 ही तो बजे थे, पर तेज बारिश और काले बादलों ने वक्त से पहले ही जैसे अंधेरा करने की ठान ली थी. ठीक उस के जीवन की तरह, जिस में उस की खुशियों के उजाले को समय के स्याह बादलों ने हमेशा के लिए ढक लिया था. कजरी सोचती जा रही थी. झमाझम होती बारिश में उस की पुरानी छतरी ने भी आज उस का साथ छोड़ दिया था. बच्चों की चिंता ने उस के पैरों की गति को और बढ़ा दिया. उस का घर आने से पहले ही बाबूलाल किराने वाले की दुकान पड़ती थी, जहां से उसे कुछ किराना भी लेना था.

‘‘क्या चाहिए?’’ बाबूलाल ने कजरी की भीगी देह पर भरपूर नजर डालते हुए कहा.

‘‘2 किलो आटा, आधा लिटर तेल, पाव किलो शक्कर और हां, आधा लिटर दूध भी दे देना,’’ कजरी ने अपने आंचल को ठीक करते हुए कहा. बाबूलाल की ललचाई नजरों में उसे हमेशा ही एक मौन आमंत्रण दिखाई देता था. यह तो उस की मजबूरी थी कि वह यहां से वक्तबेवक्त कभी भी उधारी में सामान ले लिया करती थी, वरना उस की दुकान की ओर कभी वह मुड़ कर भी न देखती.

सोचतेसोचते कजरी घर पहुंच गई. बच्चे ‘‘मां, मां’’ कहते हुए उस से लिपट गए.

‘‘आई बहुत भूख लगी है, ताई ने कुछ खाने को नहीं दिया,’’ छोटे बेटे कमल ने दीदी की शिकायत की.

‘‘क्या करती आई, घर में आटा ही नहीं था,’’ सुमि ने सफाई देते हुए कहा.

‘‘अच्छा मेरा राजा बेटा, मैं अभी गरमागरम रोटी बना कर अपने लाल को खिलाती हूं, मीठे दूध में मींज के खा लेना,’’ कजरी ने बेटे को पुचकारते हुए कहा.

‘‘आई, मैं भी खाऊंगी,’’ 9 साल की रीना ने मचलते हुए कहा.

‘‘क्यों नहीं मेरी गोलू, तू भी खाना.’’ गोलमटोल बड़ीबड़ी आंखों वाली रीना को सब गोलू ही कह कर बुलाते थे.

‘‘मैं ने टमाटर की मस्त चटनी भी बनाई है, आई,’’ सुमि ने उसे पानी का गिलास पकड़ाते हुए कहा.

जल्दी से आटा गूंध कर उस ने बच्चों को खाना खिलाया. उन को सुलाने के बाद कजरी सुमि के साथ वहीं नीचे जमीन पर लेट गई.

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‘‘आई, आज फिर दीनू रीना को चौकलेट खिला रहा था. तब मैं ने रीना के हाथ से छीन कर वापस उस के मुंह पर फेंक दी, तो वह मेरे को देख लेने की धमकी दे कर चला गया. मुझे उस से बहुत डर लगता है, आई,’’ सुमि ने भयभीत स्वर में मां को बताते हुए कहा.

‘‘तुम घबराओ नहीं, सुमि, मैं उस की मां से बात करूंगी,’’ कजरी ने उसे तो समझा दिया, परंतु खुद सोच में पड़ गई.

जब से रमेश उसे छोड़ कर गया है, जीना कितना दूभर हो गया है. कभी सोचा नहीं था कि जिंदगी इस कदर बोझ बन जाएगी. रमेश के रहते उसे कभी भी बाहर जा कर काम करने की जरूरत नहीं पड़ी. 17 साल की थी जब मांबाप ने रमेश के साथ उस का ब्याह कर दिया था. बहुत खुश थी वह रमेश के साथ. पेशे से पेंटर रमेश इंदौर के राजेंद्रनगर इलाके से कुछ दूर बुद्धनगर के स्लम एरिया में किराए के मकान में रहता था. मकान बहुत अच्छा नहीं, पर रहने लायक जरूर था. दोनों की जिंदगी मजे में कट रही थी.

समय के साथ कजरी 3 प्यारे बच्चों की मां बनी. सब से बड़ी सुमि, उस से छोटी रीना और सब से छोटा कमल. बच्चों के जन्म के बाद कजरी का भरा बदन और भी सुंदर लगने लगा था. शादी के 12 साल बीत जाने पर भी रमेश उसे जीजान से चाहता था. आसपड़ोस के लोग उन दोनों के प्यारभरे रिश्ते से अनजान नहीं थे. कजरी के घर के पास ही एक बढ़ई परिवार रहता था. इस परिवार की इकलौती लड़की माया रमेश को बहुत पसंद करती थी, पर रमेश उस पर कभी ध्यान नहीं देता था.

इधर, बच्चों की देखरेख और घर के कामों में व्यस्त कजरी चाहते हुए भी रमेश को ज्यादा वक्त न दे पाती थी जिस वजह से अकसर दोनों में झड़प हो जाया करती थी. वह रमेश को समझाती थी कि बच्चों के आने के बाद उस का काम बढ़ गया है. पर पुरुषवादी सोच का गुलाम रमेश उस की न को अपना अपमान समझने लगा था. धीरेधीरे उन के बीच में दूरियां बढ़ती चली गईं.

अब काम से लौट कर रमेश सीधे जो बाहर निकलता, तो रात 11-12 बजे ही वापस आता. बच्चों के पालनपोषण में व्यस्त कजरी ने पहले तो इस ओर ध्यान नहीं दिया, और जब ध्यान दिया तब तक बड़ी देर हो चुकी थी.

35 साल का रमेश अब 16 साल की लड़की माया का दीवाना बन चुका था. इस बात का पता लगते ही कजरी ने बहुत बवाल मचाया. रमेश से लड़ीझगड़ी, उस माया के घर जा कर उसे लताड़ा. फिर भी उन दोनों पर कोई असर न होता देख कजरी ने माया के सामने अपना आंचल फैलाते हुए अपने बच्चों के पिता को छोड़ देने के लिए बहुत अनुनयविनय की. पर माया टस से मस न हुई. माया के मातापिता भी उस की इस हरकत के आगे मजबूर थे.

फिर, एक दिन वह दिन भी आया जब काम पर गया रमेश कभी घर नहीं लौटा. इधर, माया भी घर से गायब थी. कजरी की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. वह फूटफूट कर रोई. पर अब हो भी क्या सकता था. भारी मन से उस ने इस सचाई को स्वीकार कर लिया कि अब वह एक परित्यक्ता है, जिसे उस का आदमी हमेशा के लिए छोड़ कर जा चुका है.

पति द्वारा छोड़ी हुई औरत समाज के पुरुषों की बपौती बन जाती है, कुछ ही दिनों में यह बात उस की समझ में आ चुकी थी. यह वह समाज है, जहां पुरुषों द्वारा की गई गलती की सजा भी औरत को ही भुगतनी पड़ती है. घर के बाहर हर दूसरा आदमी उस के शरीर पर अपनी गिद्ध निगाह जमाए बैठा था. पर बच्चों के भरणपोषण के लिए उस का घर से निकलना बेहद जरूरी हो चुका था. ऐसे में रमेश के दोस्त लखन ने उस की बहुत सहायता की. उस ने अपने मालिक के घर पर कजरी को काम दिला दिया.

जल्द ही कजरी ने भी बेशर्मी की चादर ओढ़ कर जीना सीख लिया. लेकिन, अब भी काम पर जाने के बाद बच्चों की देखरेख की समस्या उस के आगे मुंहबाए खड़ी थी, जिस का जिम्मा उस की 11 साल की बेटी ने ले लिया. अपनी पढ़ाई छोड़ कर वह अपने छोटे भाईबहन को संभालने लगी. पापा के घर छोड़ कर चले जाने से वह अचानक ही अपनी उम्र से कुछ ज्यादा बड़ी हो गई थी. कुछ महीनों में कजरी को ऐसा लगने लगा कि जिंदगी फिर पटरी पर आने लगी है.

एक दिन वह काम पर से वापस आ रही थी कि रास्ते में लखन मिल गया. बातोंबातों में उस ने कजरी से अपने प्यार का इजहार कर दिया. उस के एहसानों तले दबी कजरी उसे एकदम से इनकार न कर सकी. उस ने उस से सोचने के लिए कुछ समय मांगा. रातभर वह इसी ऊहापोह में रही कि अपने ही पति द्वारा वह एक बार ठगी जा चुकी है. क्या फिर से उसे किसी पर इतना विश्वास करना चाहिए? परंतु बिना मर्द के घर पर लोगों की चीलकौवे सी पड़ती निगाहों से बचने के लिए आखिरकार उसे यही रास्ता सब से उपयुक्त लगा.

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उस के घर में ही लखन ने कुछ पासपड़ोसियों के सामने उसे मंगलसूत्र पहना कर उस की मांग में सिंदूर भर दिया. अब लखन उस के साथ ही आ कर रहने लगा. बच्चों ने भी कुछ समय बाद आखिर उसे अपना लिया.

शादी को 8 महीने हो चुके थे. पुराने जख्म भरने लगे थे कि अचानक एक दिन सुबहसुबह एक औरत उस के दरवाजे पर आ कर उसे भलाबुरा कहने लगी. पहले तो कजरी समझ ही न पाई कि यह चक्कर क्या है. बाद में उसे समझ आया, तो उस पर फिर से एक बार आसमान टूट पड़ा.

वह औरत लखन की पत्नी थी जो रात ही अपने गांव से आई थी, और लखन व उस के संबंध की जानकारी मिलते ही वह उस से लड़ने चली आई थी. कजरी ने इस बारे में लखन से कई सवाल किए, पर उस की खामोशी देख कर वह समझ गई कि समय ने फिर से उस के साथ बहुत ही गंदा मजाक किया है. लखन ने सिर्फ अपनी वासनापूर्ति की खातिर ही उस से संबंध जोड़ा था.

लखन जा चुका था, कजरी अंदर ही अंदर टूट कर फिर बिखर चुकी थी. पर इस बार वह पहले की तरह एक कमजोर औरत नहीं थी, जो अपनी बेबसी का रोना ले कर बैठे. सो, दूसरे दिन से ही उस ने सुमि पर भाईबहनों की जिम्मेदारी छोड़ कर काम पर जाना शुरू कर दिया.

नो वन किल्ड पहलू खान

स्वतंत्रता दिवस से एक दिन पहले 14 अगस्त, 2019 को अलवर के सत्र न्यायालय ने पहलू खान लिंचिंग मामले में सभी 6 आरोपियों को बाइज्जत बरी कर दिया. पहलू खान, उन के 2 बेटों और 3 अन्य लोगों को  गौतस्कर बता कर 1 अप्रैल, 2017 को भीड़ ने उन पर लाठीडंडों के साथ हमला किया था. इस बर्बर हमले में बुरी तरह घायल पहलू खान की अस्पताल में मौत हो गई थी.

मामले में पुलिस ने विपिन यादव, कालू राम, रविंद्र कुमार, भीम सिंह, दयानंद, योगेश और 2 नाबालिग लड़कों को आरोपी बनाया था और उन के खिलाफ इंडियन पीनल कोड की धारा 302 (हत्या), 341 (सदोष अवरोध), 308 (गैरइरादतन हत्या की कोशिश), 323 (जानबूझ कर चोट पहुंचाना) आदि के तहत मुकदमा दर्ज किया था. लेकिन आरोपों को कोर्ट में सिद्ध करने के लिए पुलिस को जो आवश्यक साक्ष्य जुटाने चाहिए थे, वे उस ने नहीं जुटाए और अदालत ने संदेह का लाभ देते हुए सभी आरोपियों को मुक्त कर दिया. कुल जमा, नतीजा यह कि – नो वन किल्ड पहलू खान…

अप्रैल 2017 की बात है जब 55 वर्षीय किसान पहलू खान अपने 2 बेटों आरिफ, इरशाद और गांव के 3 अन्य लोगों के साथ जयपुर से दुधारू गाय खरीद कर अपने गांव जयसिंहपुर वापस लौट रहा था, कथित गौरक्षकों ने उन लोगों को घेर लिया. भीड़ में मौजूद दबंगों ने उन से उन के पैसे छीन लिए और उन्हें गौतस्कर बता कर लाठीडंडों से जम कर पीटना शुरू कर दिया. पहलू खान की कई पसलियां टूट गईं और उन के सिर में काफी चोट आई.

गहरी चोटों की वजह से कुछ समय बाद ही अस्पताल में पहलू खान की मौत हो गई. हमले में पहलू के दोनों बेटे आरिफ और इरशाद भी बुरी तरह जख्मी हुए थे. वक्त के साथ उन के शरीर के घाव तो भर गए, लेकिन दिलदिमाग पर लगे घाव और भीड़ की दहशत से शायद वे जीवनभर नहीं उबर पाएंगे.

बीते ढाई सालों से अपने पिता के हत्यारों को सजा दिलाने की आस में बैठे इस परिवार की सारी उम्मीदें अब सत्र न्यायालय द्वारा आरोपियों को बरी कर दिए जाने के बाद दम तोड़ चुकी हैं. अदालत इन आरोपियों को छोड़ने के लिए इसलिए मजबूर हुई क्योंकि अभियोजन पक्ष आरोपियों को अपराधी सिद्ध करने के लिए कोई ठोस सुबूत अदालत के सामने पेश ही नहीं कर पाया.

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पुलिस की दोगली भूमिका

राजनीतिक ताकतों के दम पर देशभर में दंगेफसाद, हिंसाहत्या को अंजाम देने वाले दुष्टोंहत्यारों को पुलिस किसकिस तरह बचाती है, पहलू खान का मामला उस का खुला उदाहरण है. कितनी हैरान कर देने वाली बात है कि पहलू खान और उस के परिजनों को सरेआम घेर कर बर्बर तरीके से पीटने और उन के साथ गालीगलौज करने की घटना जिस मोबाइल फोन से कैप्चर की गई थी और इंटरनैट पर फैलाई गई थी, उस मोबाइल फोन को पुलिस ने कभी अपने कब्जे में लिया ही नहीं. उस से बने वीडियो से कोई छेड़छाड़ हुई या नहीं, इस की जांच के लिए उसे फोरैंसिक लैब (एफएसएल) तक कभी भेजा ही नहीं गया. लिहाजा, मोबाइल फोन से बने वीडियो की विश्वसनीयता कोर्ट में संदेहपूर्ण बनी रही.

कोर्ट ने भीड़ द्वारा पहलू खान को पीटे जाने के एक अन्य वीडियो पर भी विचार करने से इनकार कर दिया क्योंकि उसे भी फोरैंसिक लैब नहीं भेजा गया और जिस व्यक्ति ने इसे शूट किया था, वह पहले ही अपने बयान से पलट चुका है. यही नहीं, पहलू खान के मृत्युपूर्व बयान को भी अदालत ने ठोस सुबूत नहीं माना क्योंकि पुलिस ने पहलू का इलाज कर रहे डाक्टरों के सहयोग के बिना ही उस का बयान दर्ज किया था.

पुलिस ने पहलू खान का बयान लेने के बाद अस्पताल के डाक्टर से इस बात का प्रमाणपत्र ही नहीं लिया कि पहलू खान उस वक्त बयान देने की स्थिति में था भी, या नहीं. वह बयान उस का था या नहीं, इस की भी कोई प्रामाणिकता नहीं है. वहीं, पहलू का मृत्युपूर्व बयान मुकदमा दर्ज होने के 16 घंटे बाद पुलिस स्टेशन में फाइल किया गया. सब से ज्यादा हैरतअंगेज बात यह है कि मरने से पहले पहलू ने जिन लोगों पर उसे पीटने का आरोप लगाया था, उन लोगों को क्लीनचिट दे कर पुलिस ने दूसरे लोगों को आरोपी बनाया और उन के खिलाफ चार्जशीट बनाई.

अदालत का कहना है कि जिन 6 आरोपियों को पुलिस ने कोर्ट के सामने पेश किया उन के नाम पहलू खान और अन्य शिकायतकर्ताओं के पर्चा बयान में दर्ज ही नहीं थे. पहलू खान ने मृत्युपूर्व बयान में जिन 6 लोगों के नाम लिए थे वे लोग थे – हुकुम चंद, ओम प्रकाश, सुधीर यादव, राहुल सैनी, नवीन शर्मा और जगमाल यादव. इन्हें राजस्थान पुलिस ने घटनास्थल पर मौजूद लोगों के बयान, फोटोग्राफ और मोबाइल लोकेशन के आधार पर सितंबर 2017 में ही क्लीनचिट दे कर आजाद कर दिया था. जबकि कोर्ट के सामने पुलिस ने जिन लोगों को आरोपी बना कर पेश किया वे दूसरे लोग थे, जिन की पहचान पुलिस ने उस वीडियो के जरिए की थी, जिस की विश्वसनीयता साबित करने के लिए उसे कभी फोरैंसिक लैब ही नहीं भेजा गया.

कितनी हास्यास्पद बात है कि पुलिस ने जिन लोगों को आरोपी बनाया उन की पहचान शिकायतकर्ताओं द्वारा की ही नहीं गई थी, जिसे सीआरपीसी की धारा 161 के तहत किया जाना चाहिए था. गौरतलब है कि इस मामले की जांच पहले बहरोड़ थाने के थानाधिकारी रमेश सिनसिनवार और उस के बाद तत्कालीन सर्कल अफसर परमल सिंह ने की.

मामले की जांच वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली पूर्व भाजपा सरकार के दौरान की गई थी और जांच अधिकारियों ने इस में जिस लापरवाही का परिचय दिया है, उस को ले कर कोर्ट काफी नाराज दिखी. बाद में मामले को जयपुर मुख्यालय के सीबीसीआईडी में स्थानांतरित किया गया और सीआईडी ने भी असल आरोपियों को बचाने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ी.

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न्यायालय में मिला अन्याय

एडिशनल सेशंस जज डा. सरिता स्वामी ने संदेह का लाभ देते हुए सभी आरोपियों को बरी कर दिया. अपने 92 पृष्ठों के आदेश में उन्होंने लिखा कि अभियोजन पक्ष इस मामले में अभियुक्तों का दोष सिद्ध करने में नाकाम रहा है. ये सारी बातें साफ संकेत करती हैं कि अलवर जिला पुलिस किस तरह आरोपियों और उन को शह देने वाले सत्ताधारियों के दबाव में काम कर रही थी और पीडि़त को न्याय दिलाने में उसे कोई दिलचस्पी कभी नहीं थी.

अदालत के फैसले के बाद से पहलू खान का परिवार सदमे में है. ढाई साल से यह परिवार न्याय की आस लगाए बैठा था. इस दौरान यह परिवार अपना सबकुछ गंवा चुका है. ढाई साल पहले पहलू के फलतेफूलते घर में 7-8 गायभैंसें थीं और दूध बेचने से उन्हें 20-25 हजार रुपए महीने की आमदनी होती थी. पहलू खान की हत्या के बाद बीते ढाई सालों में घर की हालत जर्जर हो चुकी है. विरोध प्रदर्शनों, वकीलों और अदालतों के चक्कर में उन का सारा पशुधन बिक गया, खेतीबाड़ी चौपट हो गई. घर के नाम पर आज टूटेफूटे ईंटगारे का ढेर अपनी बदहाली की गाथा कह रहा है.

आज पहलू के घर में केवल एक भैंस और एक बछड़ा बचा है. पहलू की विधवा जैबुना अदालत के फैसले के बाद से सुन्न पड़ गई है और बेटा इरशाद यह कह कर रो पड़ता है कि दिमाग कुछ सोच नहीं पा रहा है, हम न्याय की उम्मीद कर रहे थे और अदालत ने उन लोगों को बरी कर दिया.

किस ने मारा, कौन हैं मुजरिम

अपने घर के उजाड़ से आंगन में बैठे इरशाद कहते हैं, ‘‘न्याय के लिए जयपुर, अलवर और दिल्ली भटकतेभटकते ढाई साल गुजर गए, हम को न्याय तो नहीं मिला, उलटा हमारे ऊपर ही पुलिस ने गौतस्करी का मुकदमा किया हुआ है. वह केस भी चल रहा है. हमारे साथ जो ज्यादतियां हुई हैं, वे सारी दुनिया के सामने हैं. इंटरनैट पर आज भी हमारी और हमारे अब्बा की पिटाई और कत्ल के वीडियो मौजूद हैं.

‘‘वे लोग हमें मारते हुए कह रहे थे, ‘ये मुसलमान हैं, इन को मारो. ये मुल्ले बीफ खाते हैं, गौतस्करी करते हैं, ये आतंकवादी हैं, इन को मारो, इन्हें पाकिस्तान भेजो.’

‘‘मेरे अब्बा ने उन्हें गाय की खरीद की रसीदें दिखाई थीं. हाथपैर जोड़ते हुए कहा था, ‘यह दूध देने वाली गाय हम दूध बेचने के लिए ले जा रहे हैं.’ लेकिन वहां किसी को हमारी बात सुनने का होश कहां था. वे तो बस हमें मार डालना चाहते थे. हमें मारते हुए वे लोग कह रहे थे कि वे गौरक्षक हैं, बजरंग दल से हैं और सरकार उन के साथ है. सच ही कह रहे थे, तभी तो उन के नाम जो मेरे अब्बा ने लिखवाए, उन्हें क्लीन चिट दे कर पहले ही रिहा कर दिया गया. बाद में जिन 8 आरोपियों के नाम पुलिस ने अपनी चार्जशीट में दर्ज किए, उन्हें यह कह कर बेल दे दी गई थी कि उन के खिलाफ सीधे सुबूत नहीं हैं.

‘‘अब वे लोग भी बाइज्जत बरी हो गए. कोई अपराधी नहीं है तो फिर किस ने मारा मेरे अब्बा को? किस ने पीटा मुझे और मेरे भाई को? पुलिस या कोर्ट हमें मुलजिम ला कर तो दे.’’

इरशाद बात करतेकरते बेचैनी में भर जाता है. कहता है, ‘‘कितने दिनों से नींद नहीं आ रही थी. फैसले का इंतजार था. अब कैसे नींद आएगी? ढाई साल से भागतेभागते यह दिन आया था और आज हमें ऐसा फैसला सुनाया गया है. इस से अच्छा होता कि हम मर जाते. क्या करेंगे हम ऐसे हिंदुस्तान में रह कर कि सरेआम मारते हुए सारी दुनिया सब देख रही है, फिर भी उन लोगों को बरी कर दिया गया. यह हम कैसे बरदाश्त करेंगे?’’

पहलू खान की विधवा जैबुना कहती हैं, ‘‘ढाई साल में जीवन बेकार हो गया है, इस से तो मर जाना बेहतर है. हमें लगता था कि अदालत से हमें न्याय मिलेगा, लेकिन हमें न्याय नहीं मिला. ढाई साल में हम बरबाद भी हो गए, हमारा आदमी भी मर गया. इस से ज्यादा बुरा और क्या होगा?’’

पहलू खान के परिवार के वकील कासिम खान अभियुक्तों के बरी होने का कारण पुलिस का ढीलापन, कमजोर चार्जशीट और राजनीतिक पैतरेबाजी मानते हैं. चाहे वायरल वीडियो की सत्यता का सवाल हो या पहलू की मौत से पहले दिए गए बयान की प्रामाणिकता की बात हो, पुलिस जांच पूरी तरह शक के घेरे में है.

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दोबारा जांच

पहलू खान केस के आरोपियों को बरी किए जाने के बाद राजस्थान सरकार की थूथू हो रही है. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने भी ट्वीट किया कि अदालत के फैसले से वे अचंभित हैं. प्रियंका के ट्वीट के बाद से ही राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार मामले की फिर से जांच के लिए ऐक्शन में नजर आ रही है.

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पूरे मामले की दोबारा जांच कराने के लिए बाकायदा एसआईटी का गठन भी कर दिया है और 15 दिनों में रिपोर्ट भी तलब की है, ताकि फैसले के खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील की जा सके. एसआईटी का प्रमुख स्पैशल औपरेशन गु्रप के डीआईजी नितिन देव को बनाया गया है, जबकि राज्य के एडीजी क्राइम बी एल सोनी जांच पर नजर रखेंगे.

एसआईटी में सीबीसीआईडी के एसपी समीर कुमार सिंह भी हैं. एसआईटी मुख्यरूप से पहलू खान मौबलिंचिंग केस की जांच में खामियों और मिलीभगत कर आरोपियों को बचाने वाले अधिकारियों की पहचान करेगी. एसआईटी मामले की पड़ताल में लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों को चिह्नित करने के साथ ही मौखिक और कागजी साक्ष्य एकत्रित भी करेगी.

मौबलिंचिंग मौबलिंचिंग का शोर

बीते 5 सालों में देशभर में अल्पसंख्यक समुदाय गौरक्षकों के उत्पीड़न और आतंक से परेशान है. अखबार के पन्ने इरशाद, अखलाक, दानिश, पहलू, रकबर जैसों के सरेआम कत्ल की कहानियों से पटे रहे हैं. ह्यूमन राइट्स वाच की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मई 2015 से दिसंबर 2018 के बीच भारत के 12 राज्यों में कम से कम 44 लोग मौबलिंचिंग में मारे गए, जिन में 36 मुसलमान थे. इस अवधि में 20 राज्यों में 100 से अधिक अलगअलग घटनाओं में करीब 280 लोग भीड़ द्वारा किए गए हमलों में घायल हुए.

रिपोर्ट कहती है कि लगभग सभी मामलों में शुरू में पुलिस ने जांच रोक दी, प्रक्रियाओं को नजरअंदाज किया और यहां तक कि हत्याओं तथा अपराधों पर लीपापोती करने में उस की मिलीभगत रही. पुलिस ने तुरंत जांच और संदिग्धों को गिरफ्तार करने के बजाय, गौहत्या निषेध कानूनों के तहत पीडि़तों, उन के परिवारों और गवाहों के खिलाफ शिकायतें दर्ज कीं. पहलू खान और उस के बेटों के खिलाफ भी पुलिस ने गौतस्करी का मामला दर्ज किया है, जिस का मुकदमा अलग चल रहा है.

बीते 5 सालों की मोदी सरकार के दौरान मौबलिंचिंग मौबलिंचिंग का ही शोर सुनाई देता रहा. गांवदेहातों में खौफ फैला रहा. हर तरफ ऐसा माहौल बना दिया गया कि हिंदू और मुसलमान एकदूसरे को शक की निगाह से देखने लगे. हिंदुओं को भड़काने और उन के दिमाग में यह बिठाने की कोशिश की गई कि मुसलमान सिर्फ गायों को मारते हैं. सवाल ये उठते हैं कि सदियों से गाएं क्या सिर्फ हिंदुओं के घरों में ही पली हैं, मुसलमानों के घरों में नहीं पलीं? सदियों से दूध का धंधा क्या सिर्फ हिंदू कर रहे हैं, मुसलमान नहीं कर रहे? बाजारहाट से दुधारू पशुओं की खरीद क्या सिर्फ हिंदू करते हैं, मुसलमान नहीं? मटन, चिकन, बीफ क्या सिर्फ मुसलमान खाते हैं, हिंदू नहीं खाते? बूचड़खाने क्या सिर्फ मुसलमानों के हैं, हिंदुओं के नहीं?

70 सालों में ऐसा नहीं हुआ जो बीते 5 सालों में मुसलमानों के साथ हुआ. हिंदुत्वहिंदुत्व का शोर मचा कर मुसलमानों की हत्या का खौफनाक खेल खेला गया. गौरक्षकों के नाम पर हत्यारों के गिरोह पैदा किए गए, ताकि इन के जरिए लोगों में भय पैदा किया जा सके, भावनाओं को भड़का कर हिंदुओं का धु्रवीकरण किया जा सके. मोदी सरकार-2 में भी लिंचिंग की घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रही हैं. साल 2019 में देशभर में गाय के नाम पर हिंसा की अब तक करीब 8 घटनाएं घट चुकी हैं. न सिर्फ हरियाणा बल्कि कर्नाटक, असम, झारखंड, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार राज्यों में भी गाय के नाम पर हिंसा हो चुकी है.

क्या इन्हें मिलेगा न्याय?

हरियाणा के नूह जिले के कोलगांव में अस्मीना के 26 साल के जवान बेटे रकबर को गौरक्षकों ने पीटपीट कर मार डाला. आज भी अस्मीना की आंखों के आंसू नहीं रुकते हैं. उस के जवान बेटे का कुसूर क्या था? सीधासादा वह ग्वाला भी अपने बाप और दोस्त के साथ बाजार से दुधारू गाएं खरीद कर ला रहा था. गायभैंस से ही उन का घर चलता था, उन्हीं का दूध बेच कर 7 बच्चों के परिवार को उस की मां अस्मीना ने पाला था.

अस्मीना गाय को अपनी मां समझती है, उस से भी ज्यादा उस का बेटा रकबर उन जानवरों से प्यार करता था. मगर गायों को प्यार करने वाले, उन को सानीपानी देने वाले, उन को तालाब पर ले जा कर रोज नहलाने वाले, दिनरात अपनी गायों से दुलार करने वाले रकबर को हत्यारी भीड़ ने गौतस्कर घोषित कर के लाठीडंडों से पीटपीट कर मार डाला. वह जान की भीख मांगता रहा, चीखता रहा, कि वह गाय को काटने के लिए नहीं ले जा रहा, दुधारू गाय को बाजार से खरीद कर घर ले जा रहा है. मगर हत्यारे नहीं रुके, इतने डंडे बरसाए कि रकबर की दोनों हथेलियों की सारी हड्डियां चकनाचूर हो गईं. पसलियां टूट गईं. घुटने, कुहनी सब टूट गईं. कीचड़ में लथेड़लथेड़ कर हैवानों ने उस निर्दोष को मारा. आज तक उस को मारने वाले खुलेआम घूम रहे हैं.

सितंबर 2015 में दादरी में मोहम्मद अखलाक की हत्या ने पूरी दुनिया में सनसनी मचा दी. बूढ़े अखलाक को गौरक्षकों ने यह कह कर मार दिया कि उन के घर के फ्रिज में गाय का गोश्त रखा है. उन के छोटे बेटे को भी मारमार कर अधमरा कर दिया. जबकि फोरैंसिक रिपोर्ट के बाद पता चला कि उन के घर के फ्रिज से जो मांस मिला वह गाय का नहीं, बकरे का था. आज अखलाक के बड़े बेटे सरताज, जो भारतीय एयरफोर्स के अधिकारी हैं, अपने निर्दोष पिता के कत्ल पर इंसाफ पाने के लिए अदालत के चक्कर लगा रहे हैं.

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हरियाणा के बल्लभगढ़ जिले के खंदावली गांव का 16 वर्ष का नाबालिग हाफिज जुनैद अपने भाइयों के साथ हरियाणा से दिल्ली आया था कि ईद पर कुछ नए कपड़े खरीद ले. मगर वापस लौटते वक्त ट्रेन में उस को भीड़ ने चाकू, छुरे और मुक्कों से मारमार कर खत्म कर दिया. उस के दोनों भाइयों को अधमरा कर दिया. क्यों? क्योंकि उस ने कुरतापाजामा और सिर पर टोपी पहन रखी थी. उस के सिर से टोपी खींच कर उसे पैरों तले रौंद दिया गया. कौन थे वे लोग? किस की शह पर कत्लेआम कर रहे थे? क्यों उन को कानून का खौफ नहीं था? क्या कभी इन पीडि़तों को न्याय मिलेगा? क्या कभी इन तमाम अपराधियों को सजा मिल सकेगी? यह बड़ा सवाल है.

खेती का भविष्य है एक्वापौनिक्स तकनीक

हमारे देश की 60 फीसदी आबादी का हिस्सा किसी न किसी रूप से खेती से जुड़ा है. यही वजह है कि भारत एक कृषि प्रधान देश है. अगर हम इस क्षेत्र में दूर तक नजर दौड़ाएं तो खेती में नवाचार की खासी कमी है. आज भी अनेक किसान पारंपरिक तरीके से खेती कर रहे हैं. खेती में हमें आज बहुतकुछ नए प्रयोग करने की जरूरत है. इन्हें इस्तेमाल कर के अच्छी पैदावार ली जा सकती है.

ऐसी ही एक आधुनिक तकनीक है एक्वापौनिक्स. इस तकनीक में मछलियां और पौधे आपस में एकदूसरे की मदद करते हैं यानी इस सिस्टम का इस्तेमाल कर मछलियों को सब्जियों के उत्पादन के एक्वाकल्चर और हाइड्रोपौनिक्स (पानी में पौधे उगाना) सिस्टम का एकसाथ इस्तेमाल किया जाता है. इस तकनीक को हम कम जगह में भी अपना सकते हैं. इस में मिट्टी या जमीन की जरूरत नहीं होती है.

एक्वापौनिक्स की शुरुआत शायद एशिया से हुई. यहां के किसानों ने देखा कि ज्यादा बरसात या बाढ़ आने के बाद खेतों में पानी भर जाता है जिस में मछलियां भी होती हैं. उन खेतों में उगाई गई धान की फसलों से अच्छी पैदावार मिलती है. मछलियों से निकलने वाली गंदगी धान या दूसरी फसल के लिए पोषक तत्त्वों का काम करती है.

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अगर आसान तरीके से बताया जाए तो जिस पानी का इस्तेमाल इस तकनीक में किया जाता?है उस पानी में मछली छोड़ दी जाती हैं, जो उस पानी में रह कर अपना मल वगैरह छोड़ती?हैं, वही पानी पौधों के लिए जैविक उर्वरक का काम करता है. इस के उलट हाइड्रोपौनिक्स सिस्टम में हमें पानी में जैविक उर्वरक के रूप में कुछ रसायन डालने होते?हैं.

इसी तकनीक को आज विकसित कर एक्वापौनिक्स सिस्टम का नाम दिया है. पारंपरिक खेती, एक्वाकल्चर या हाइड्रोपौनिक्स की तुलना में एक्वापौनिक्स तकनीक के कई फायदे हैं.

इस तकनीक में पौधे पानी से अमोनिया और नाइट्रोजन लेते हैं जिस से मछलियां शुद्ध और आक्सिजनयुक्त बेहतर माहौल में पलती बढ़ती हैं.

माहिरों का मानना है कि जमीन में खेती करने की तुलना में एक्वापौनिक्स सिस्टम के तहत सलाद और सब्जियां, जिस में टमाटर, बैगन, शलगम वगैरह पैदा की जा सकती हैं. इस तरह के पौधों में पानी की बहुत ही कम जरूरत होती है. साथ ही, इस सिस्टम के लिए ऊर्जा भी कम लगती है.

आने वाले समय में इस तकनीक को इस्तेमाल किया जाएगा तो इस से मछलियों के साथसाथ रसायनमुक्त सब्जियां भी मिलेंगी.

दुनियाभर में प्राकृतिक रूप से मछलियों का उत्पादन घटा है और अब माहिर भी मछली उत्पादन के लिए नए समाधान तलाश रहे?हैं. फार्म में मछलीपालन करने वालों के लिए भी एक्वापौनिक्स सिस्टम बेहतर विकल्प साबित हो सकता है.

इस बारे में हमारी बात अनुभव दास से हुई. वे एक्वापौनिक्स के क्षेत्र में काम कर रही कंपनी ‘रैड ओटर फार्म्स’ के संस्थापक हैं. उन का कहना?है कि पैदावार के मामले में हम दुनियाभर में कुछ उत्पादों में ऊंचाई पर हो सकते हैं, लेकिन हमारी फसल पैदावार प्रति हेक्टेयर

के हिसाब से कम है. पिछले 5 सालों में हमारे कृषि उत्पादन की वृद्धि दर 0.2 फीसदी से 4.2 फीसदी के आसपास रही है.

टमाटर का उदाहरण लें. साल 2017 में भारत चीन के बाद दुनिया में सब से ज्यादा टमाटर पैदा करने वाला देश था. चीन ने तकरीबन 110,000 हेक्टेयर जमीन पर 56.8 मिलियन टन टमाटर का उत्पादन किया, वहीं भारत ने तकरीबन 10 फीसदी कम जमीन पर 18.7 मिलियन टन का उत्पादन किया. टमाटर की यह प्रति हेक्टेयर उत्पादकता अतुलनीय है.

उन्होंने आगे बताया कि आज बड़े पैमाने पर सरकार द्वारा खेती से जुड़े कामों के लिए मदद भी की जाती?है?. इस के बाद भी भारत का कृषि उत्पादन कमजोर?है. तो क्या आने वाले कृषि उत्पादन बढ़ती आबादी की मांगों को पूरा करेगा? क्या हमारे खेत की पैदावार और उस की क्वालिटी बेहतर होगी जो स्वस्थ जीवन के लिए जरूरी है? क्या खेती कभी मौडर्न होगी वगैरह.

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इस पर अनुभव दास ने कहा कि आने वाले कल को बेहतर बना सकें, इस के लिए हमें कृषि क्षेत्र की मौडर्न तकनीकों की तरफ जाना होगा. बदलाव बहुत जरूरी है. एक बेहतर राष्ट्र के लिए खेती के विकास पर ध्यान देना ही होगा. दिनोंदिन हमारी खेत की जोत घट रही है जबकि आबादी बढ़ रही है. हमारे 65 फीसदी खेत फसल विकास के लिए मानूसन पर निर्भर हैं. इसलिए अगर हम प्रकृति के?भरोसे रहे तो हम प्रगति की राह नहीं चल सकते. सामाजिक नवाचारकों के?रूप में हम एक बदलाव लाना चाहते थे. हमें कृषि के क्षेत्र में एक अलग और नई सोच पैदा करने की जरूरत है. मानसून के भरोसे रह कर खेती नहीं की जा सकती. इस के अलावा हमें रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों के अत्यधिक इस्तेमाल को भी कम करने की जरूरत है.

हमारा मानना है कि एक्वापौनिक्स हमें यह यह मौका देता है. इसे हमें अपनाना चाहिए. एक्वापौनिक्स चक्र पारंपरिक मिट्टी आधारित कृषि की तुलना में 90 फीसदी से ज्यादा बढ़ने वाली फसलों के लिए पानी की जरूरत को कम करता है.

एक्वापौनिक्स तकनीक खेती की जमीन पर निर्भर नहीं है. यह बिना मिट्टी के होने वाली इस तकनीक को दुर्गम इलाकों, यहां तक कि शहरी जगहों में ले जाया जा सकता है. इस से बड़ी मात्रा में पानी की बचत होती है और खेती की पैदावार रासायनिक मुक्त होती है. पारंपरिक खेती के मुकाबले पैदावार भी 10-12 गुना ज्यादा है और क्वालिटी बेहतर है. एक लाइन में अगर कहा जाए तो एक्वापौनिक्स जिम्मेदार और टिकाऊ कृषि प्रणाली है और आने वाले समय में यह खेती का भविष्य है.

इंटरनैशनल लैवल पर एक्वापौनिक्स ने खेती के विकल्प के रूप में अच्छा कदम बढ़ाया है. खासतौर पर संयुक्त राज्य अमेरिका और आस्ट्रेलिया में. भारत में एक्वापौनिक्स अभी शुरुआती दौर में है. लेकिन अगर हम मिल कर कदम बढ़ाएंगे तो आने वाले समय में एक्वापौनिक्स एक प्रभावी तकनीक साबित होगी और अपनेआप में कृषि क्षेत्र में एक लीडर का काम करेगी.

 अनुभव दास (फाउंडर, रैड औटर फार्म्स)

मेरी उम्र 18 साल है. मेरे चेहरे पर छोटे छोटे दाने निकल आए हैं. मैं क्या करूं?

सवाल
मेरी उम्र 18 साल है. मेरे चेहरे पर छोटेछोटे दाने निकल आए हैं. उन्हें हटाने के लिए मुझे कोई घरेलू उपाय बताएं?

जवाब
दानों को बिलकुल न छीलें, वरना भद्दे निशान पड़ सकते हैं. दानों को सुखाने के लिए यह पैक बना लें- 1 चम्मच मुलतान मिट्टी और थोड़ी सी सूखी व पिसी नीम की पत्तियों को गुलाबजल में मिक्स कर के इस पेस्ट को चेहरे पर लगाएं. ऐसा करने से दानें कुछ ही दिनों में सूख जाएंगे, साथ ही निकलने भी कम हो जाएंगे. इस के अलावा आप निशानों को कम करने के लिए कौस्मैटिक क्लीनिक से माइक्रोडर्मा ऐब्रेजर या फिर लेजर थेरैपी भी करवा सकती हैं. इस थेरैपी में लेजर किरणों से त्वचा को रिजनरेट कर के नया रूप दिया जाता है.

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चेहरे पर लगाती हैं नींबू तो..

अपनी त्वचा को दमकाने के लिए आपने कई तरह के घरेलू उपायों को अपनाया होगा. कभी बेसन और हल्दी से बना फेसपैक, तो कभी एलोवेरा जेल का प्रयोग तो कभी कच्चे दूध से चेहरा धुला होगा. लेकिन क्या आपने कभी नींबू का इस्तेमाल, त्वचा को सुंदर बनाने के लिए किया है. अगर नहीं तो आप कर सकती हैं.

कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि नींबू के इस्तेमाल से कुछ लोगों में रैशेज पड़ने और जलन होने की समस्या भी देखी गई है और इसके पीछे मुख्य वजह, लोगों की अलग-अलग प्रकार की त्वचा का होना होता है. चूंकि, नीबू की प्रकृति अम्लीय होती है, ऐसे में यह त्वचा पर विपरीत प्रभाव भी डाल देता है. अगर आपको नींबू के रस से एलर्जी हो तो इसका इस्तेमाल बिल्कुल न करें.

नींबू का पीएच मान बहुत कम होता है यानि उसमें अम्लीय गुण अधिक होता है. ऐसे में उम्मीद कहीं ज्यादा है कि आप चेहरे के जिस हिस्से का उपचार करें वो ठीक होने के बजाय धब्बे और चकत्तेदार हो जाएं.

कई लोगों को नींबू को चेहरे पर लगाने के बाद लाल चकत्ते भी पड़ जाते हैं और खुजली होने लगती है. आपको बता दें कि नींबू में फोटोसिंथेसाइजिंग कम्पाउंड होते हैं जो धूप में त्वचा को यूवी किरणों के प्रति अधिक संवेदनशील बनाते हैं. जिसकी वजह से चेहरे पर पिग्मेंटेशन भी हो सकता है.

इसलिए नींबू का इस्तेमाल करने से पहले इन बातों को ध्यान में रखें.

1. अगर आप नींबू का इस्तेमाल अपनी त्वचा को सुंदर बनाने के लिए करना चाहती हैं तो आपको सबसे पहले अपनी त्वचा का प्रकार जानना बेहद जरूरी है.

2. अगर त्वचा ड्राई या फ्लैकी है तो इसका इस्तेमाल न करें. इस्तेमाल से पहले चेहरे को नम कर लें.

3. चेहरे पर दाने या कील-कील-मुहांसे होने पर भी आप इसका इस्तेमाल न करें, वरना जलन हो सकती है.

4. नींबू से त्वचा हाईड्रेड हो जाती है इसलिए ये फायदेमंद साबित होता है.

5. गंदे हाथों से कभी भी इसे न लगाएं. अन्यथा आपको दाने हो सकते हैं या किसी प्रकार का संक्रमण भी हो सकता है.

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मैं एक लड़के से प्यार करती हूं लेकिन वह कहता है कि उसे कैंसर है. मुझे लग रहा है कि वह झूठ बोल रहा है, मैं क्या करूं?

सवाल
मैं 20 साल की युवती हूं, एक लड़के से बहुत प्यार करती हूं. हम दोनों 3 साल से साथ हैं लेकिन अब 10 दिनों से हमारे बीच कोई बात नहीं हो रही है. वह कहता है कि कुछ दिनों बाद बात करेगा क्योंकि उसे कैंसर है और उस का इलाज चल रहा है. वह मुझ से बहुत प्यार करता है. उस की इन बातों पर मुझे यकीन नहीं हो रहा है. मुझे लग रहा है कि वह झूठ बोल रहा है. अब आप ही बताएं कि मैं क्या करूं?

जवाब
जब आप का लवरिलेशन 3 वर्षों से चल रहा है तो अब तक आप दोनों के बीच बौंडिंग स्ट्रौंग हो जानी चाहिए थी, लेकिन आप की बातों से ऐसा लग रहा है कि सिर्फ यही नहीं, बल्कि आप का पार्टनर इस से पहले भी आप से झूठ बोलता रहा है. तभी आप के मन में यह बात बैठ गई है कि इस बार वह आप से अपनी बीमारी का झूठा नाटक कर के आप को धोखा दे रहा है.

आप संयम रखें और इस बीच उस से कोई बात न करें और खुद को भी स्ट्रौंग बनाएं ताकि अगर वह आप को धोखा भी दे रहा हो तो आप को खुद को संभालने का मौका मिल पाए. वक्त आने पर उस से बात कर के अपनी शंकाओं को दूर करें ताकि आप अंधकार में न रह कर, सही समय पर सही निर्णय ले पाएं.

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क्या तनु अपने प्रेमी अनिरुद्ध से मिल पाई

प्लेन से मुंबई से दिल्ली तक के सफर में थकान जैसा तो कुछ नहीं था पर मां के ‘थोड़ा आराम कर ले,’ कहने पर मैं फ्रैश हो कर मां के ही बैडरूम में आ कर लेट गई. भैयाभाभी औफिस में थे. मां घर की मेड श्यामा को किचन में कुछ निर्देश दे रही थीं. कल पिताजी की बरसी है. हर साल मैं मां की इच्छानुसार उन के पास जरूर आती हूं. मैं 5 साल की ही थी जब पिताजी की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. भैया उस समय 10 साल के थे. मां टीचर थीं. अब रिटायर हो चुकी हैं.

25 सालों के अपने वैवाहिक जीवन में मैं सुरभि और सार्थक के जन्म के समय ही नहीं आ पाई हूं पर बाकी समय हर साल आती रही हूं. विपिन मेरे सकुशल पहुंचने की खबर ले चुके थे. बच्चों से भी बात हो चुकी थी.

मैं चुपचाप लेटी कल होने वाले हवन, भैयाभाभी और अपने इकलौते भतीजे यश के बारे में सोच ही रही थी कि तभी मां की आवाज से मेरी तंद्रा भंग हुई, ‘‘ले तनु, कुछ खा ले.’’

पीछेपीछे श्यामा मुसकराती हुई ट्रे ले कर हाजिर हुई.

मैं ने कहा, ‘‘मां, इतना सब?’’

‘‘अरे, सफर से आई है, घर के काम निबटाने में पता नहीं कुछ खा कर चली होगी या नहीं.’’

मैं हंस पड़ी, ‘‘मांएं ऐसी ही होती हैं, मैं जानती हूं मां. अच्छाभला नाश्ता कर के निकली थी और प्लेन में कौफी भी पी थी.’’

मां ने एक परांठा और दही प्लेट में रख कर मुझे पकड़ा दिया, साथ में हलवा.

मायके आते ही एक मैच्योर स्त्री भी चंचल तरुणी में बदल जाती है. अत: मैं ने भी ठुनकते हुए कहा, ‘‘नहीं, मैं इतना नहीं खाऊंगी और हलवा तो बिलकुल भी नहीं.’’

मां ने प्यार भरे स्वर में कहा, ‘‘यह डाइटिंग मुंबई में ही करना, मेरे सामने नहीं चलेगी. खा ले मेरी बिटिया.’’

‘‘अच्छा ठीक है, अपना नाश्ता भी ले आओ आप.’’

‘‘हां, मैं लाती हूं,’’ कह कर श्यामा चली गई.

हम दोनों ने साथ नाश्ता किया. भैया भाभी रात तक ही आने वाले थे. मैं ने कहा, ‘‘कल के लिए कुछ सामान लाना है क्या?’’

‘‘नहीं, संडे को ही अनिल ने सारी तैयारी कर ली थी. तू थोड़ा आराम कर. मैं जरा श्यामा से कुछ काम करवा लूं.’’

दोपहर तक यश भी आ कर मुझ से लिपट गया. मेरे इस इकलौते भतीजे को मुझ से बहुत लगाव है. मेरे मायके में गिनेचुने लोग ही तो हैं. सब से मुधर स्वभाव के कारण घर में एक स्नेहपूर्ण माहौल रहता है. जब आती हूं अच्छा लगता है. 3 बजे तक का टाइम कब कट गया पता ही नहीं चला. यश कोचिंग चला गया तो मैं भी मां के पास ही लेट गई. मां दोपहर में थोड़ा सोती हैं. मुझे नींद नहीं आई तो मैं उठ कर ड्राइंगरूम में आ कर सोफे पर बैठ कर एक पत्रिका के पन्ने पलटने लगी. इतने में डोरबैल बजी. मैं ने ही दरवाजा खोला, श्यामा पास में ही रहती है. वह दोपहर में घर चली जाती है. शाम को फिर आ जाती है.

पोस्टमैन था. टैलीग्राम था. मैं ने उलटापलटा. टैलीग्राम मेरे नाम था. प्रेषक के नाम पर नजर पड़ते ही मुझे हैरत का एक तेज झटका लगा. मेरी हथेलियां पसीने से भीग उठीं. अनिरुद्ध. मैं टैलीग्राम ले कर सोफे पर धंस गई.

हमेशा की तरह कम शब्दों में बहुत कुछ कह दिया था अनिरुद्ध ने, ‘‘तुम इस समय यहीं होगी, जानता हूं. अगर ठीक समझो तो संपर्क करना.’’

पता नहीं कैसे मेरी आंखें मिश्रित भावों की नमी से भरती चली गई थीं. ओह अनिरुद्ध. तुम्हें आज 25 साल बाद भी याद है मेरे पिताजी की बरसी. और यह टैलीग्राम. 3 दिन बाद 164 साल पुरानी टैलीग्राम सेवा बंद होने वाली है. अनिरुद्ध के पास यही एक रास्ता था आखिरी बार मुझ तक पहुंचने का. मेरा मोबाइल नंबर उस के पास है नहीं, न मेरा मुंबई का पता है उस के पास. तब यहां उन दिनों घर में भी फोन नहीं था. बस यही आखिरी तरीका उसे सूझा होगा. उसे यह हमेशा से पता था कि पिताजी की बरसी पर मैं कहीं भी रहूं, मां और भैया के पास जरूर आऊंगी और उस की यह कोशिश मेरे दिल के कोनेकोने को उस की मीठी सी याद से भरती जा रही थी.

अनिरुद्ध… मेरा पहला प्यार एक सुगंधित पुष्प की तरह ही तो था. एक पूरा कालखंड ही बीत गया अनिरुद्ध से मिले. वयसंधि पर खड़ी थी तब मैं जब पहली बार मन में प्यार की कोंपल फूटी थी. यह वही नाम था जिस की आवाज कानों में उतरने के साथ ही जेठ की दोपहर में वसंत का एहसास कराने लगती. तब लगता था यदि परम आनंद कहीं है तो बस उन पलो में सिमटा हुआ जो हमारे एकांत के हमसफर होते, पर कालेज के दिनों में ऐसे पल हम दोनों को मुश्किल से ही मिलते थे. होते भी तो संकोच, संस्कार और डर में लिपटे हुए कि कहीं कोई देख न ले. नौकरी मिलते ही उस पर घर में विवाह का दबाव बना तो उस ने मेरे बारे में अपने परिवार को बताया.

फिर वही हुआ जिस का डर था. उस के अतिपुरातनपंथी परिवार में हंगामा खड़ा हो गया और फिर प्यार हार गया था. परंपराओं के आगे, सामाजिक नियमों के आगे, बुजुर्गों के आदेश के आगे मुंह सिला खड़ा रह गया था. प्यार क्या योजना बना कर जातिधर्म परख कर किया जाता है या किया जा सकता है? और बस हम दोनों ने ही एकदूसरे को भविष्य की शुभकामनाएं दे कर भरे मन से विदा ले ली थी. यही समझा लिया था मन को कि प्यार में पाना जरूरी भी नहीं, पृथ्वीआकाश कहां मिलते हैं भला. सच्चा प्यार तो शरीर से ऊपर मन से जुड़ता है. बस, हम जुदा भर हुए थे.

उस की विरह में मेरी आंखों से बहे अनगिनत आंसू बाबुल के घर से विदाई के आंसुओं में गिन लिए गए थे. मैं इस अध्याय को वहीं समाप्त समझ पति के घर आ गई थी. लेकिन आज उसी बंद अध्याय के पन्ने फिर से खुलने के लिए मेरे सम्मुख फड़फड़ा रहे थे.

टैलीग्राम पर उस का पता लिखा हुआ था, वह यहीं दिल्ली में ही है. क्या उस से मिल लूं? देखूं तो कैसा है? उस के परिवार से भी मिल लूं. पर यह मुलाकात हमारे शांतसुखी वैवाहिक जीवन में हलचल तो नहीं मचा देगी? दिल उस से मिलने के लिए उकसा रहा था, दिमाग कह रहा था पीछे मुड़ कर देखना ठीक नहीं रहेगा. मन तो हो रहा था, देखूंमिलूं उस से, 25 साल बाद कैसा लगता होगा. पूछूं ये साल कैसे रहे, क्याक्या किया, अपने बारे में भी बताऊं. फिर अचानक पता नहीं क्या मन में आया मैं चुपचाप स्टोररूम में चली गई. वहां काफी नीचे दबा अपना एक बौक्स उठाया. मेरा यह बौक्स सालों से यहीं पड़ा है. इसे कभी किसी ने नहीं छेड़ा. मैं ने बौक्स खोला, उस में एक और डब्बा था.

सामने अनिरुद्ध के कुछ पुराने पीले पड़ चुके, भावनाओं की स्याही में लिपटे खतों का 1-1 पन्ना पुरानी यादों को आंखों के सामने एक खूबसूरत तसवीर की तरह ला रहा था. न जाने कितनी भावनाओं का लेखाजोखा इन खतों में था. मुझे अचानक महसूस हुआ आजकल के प्रेमियों के लिए तो मोबाइल ने कई विकल्प खोल दिए हैं. फेसबुक ने तो अपनों को छोड़ कर अनजान रिश्तों को जोड़ दिया है.

सारा सामान अपनी गोद में फैलाए मैं अनगिनत यादों की गिरफ्त में बैठी थी जहां कुछ भी बनावटी नहीं होता था. शब्दों का जादू और भावों का सम्मोहन लिए ये खत मन में उतर जाते थे. हर शब्द में लिखने वाले की मौजूदगी महसूस होती थी. अनिरुद्ध ने एक पेपर पर लिखा था, ‘‘खुसरो दरिया प्रेम का, उलटी वाकी धार. जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार.’’

मेरे होंठों पर एक मुसकराहट आ गई. आजकल के बच्चे इन शब्दों की गहराई नहीं समझ पाएंगे. वे तो अपने प्रिय को मनाने के लिए सिर्फ एक आई लव यू स्माइली का सहारा ले कर बात कर लेते हैं. अनिरुद्ध खत में न कभी अपना नाम लिखता था न मेरा, इसी वजह से मैं इन्हें संभाल कर रख सकी थी. अनिरुद्ध की दी हुई कई चीजें मेरे सामने पड़ी थीं. उस का दिया हुआ एक पैन, उस का पीला पड़ चुका एक सफेद रूमाल जो उस ने मुझे बारिश में भीगे हुए चेहरे को साफ करने के लिए दिया था. मुझे दिए गए उस के लिखे क्लास के कुछ नोट्स, कई बार तो वह ऐसे ही कोई कागज पकड़ा देता था जिस पर कोई बहुत ही सुंदर शेर लिखा होता था.

स्टोररूम के ठंडेठंडे फर्श पर बैठ कर मैं उस के खत उलटपुलट रही थी और अब यह अंतिम टैलीग्राम. बहुत सी मीठी, अच्छी, मधुर यादों से भरे रिश्ते की मिठास से भरा, मैं इसे हमेशा संभाल कर रखूंगी पर कहां रख पाऊंगी भला, किसी ने देख लिया तो क्या समझा पाऊंगी कुछ? नहीं. फिर वैसे भी मेरे वर्तमान में अतीत के इस अध्याय की न जरूरत है, न जगह.

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फिर पता नहीं मेरे मन में क्या आया कि मैं ने अंतिम टैलीग्राम को आखिरी बार भरी आंखों से निहार कर उस के टुकड़ेटुकड़े कर दिए. मुझे उसे कहीं रखने की जरूरत नहीं है. मेरे मन में इस टैलीग्राम में बसी भावनाओं की खुशबू जो बस गई है. अब इसी खुशबू में भीगी फिरती रहूंगी जीवन भर. वह मुझे भूला नहीं है, मेरे लिए यह एहसास कोई ग्लानि नहीं है, प्यार है, खुशी है.

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’: क्या वेदिका, कार्तिक और नायरा को दूर कर पाएगी?

स्टार प्लस का मशहूर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’  में लगातार आपको धमाकेदार ट्विस्ट देखने को मिल रहे हैं. फिलहाल इस शो की कहानी अखिलेश, सुरेखा, लीजा, वेदिका, नायरा और कार्तिक के इर्द-गिर्द घुम रही है. तो आइए अपकमिंग एपिसोड के बारे में आपको बताते हैं. अखिलेश ने खुद अपने अफेयर का खुलासा किया है. सुरेखा अपने हस्बैंड अखिलेश का ये बात सुनकर बेहोश हो जाती है.

तभी दादी गुस्से में अखिलेश को घर से बाहर निकलने को कहती हैं. अखिलेश दादी से माफी मांगता है लेकिन सुवर्णा उसे गुस्से में डांटती है और कहती है कि तुमने दो औरतों के साथ गलत किया है. दादी अखिलेश का हाथ पकड़ती हैं और उसे घर से बाहर निकालती है और कहती हैं कि अगर दोबारा इस घर में कदम रखा तो मेरा मरा मुंह देखेगा.

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लीजा, नायरा से कहती है कि उसे जाने से क्यों रोका. वो गोवा चली जाती तो ये सब नहीं होता, आज उसके साथ और भी कई रिश्ते टूट गए. इस पर समर्थ पूछता है कि क्या नायरा को ये बात पहले से पता थी? कार्तिक कहता है कि हां हमें पता थी, पहले नायरा को पता चला फिर उसने मुझे बताया. नायरा सबसे माफी मांगती है और कहती है कि उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वो ये बात कैसे बताए?

सुवर्णा, नायरा से कहती है कि उसे सौरी बोलने की जरूरत नहीं है, वो बताती भी तो शायद हममें से कोई यकीन नहीं करता. दादी भी नायरा को कहती हैं कि तुम्हारी कोई गलती नहीं थी. वेदिका ये सोचकर परेशान है कि कार्तिक ने उसे क्यों नहीं बताया? इसके बाद नायरा, वेदिका के पास आती है और कहती है कि दादी की तबीयत ठीक नहीं है हो सके तो डौक्टर से बात कर लीजिएगा. इस पर वेदिका को गुस्सा आ जाता है और वो नायरा से कहती है कि आपने मेरे परिवार के लिए जो कुछ भी किया उसके लिए शुक्रिया.

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कार्तिक, नायरा को कायरव की रिपोर्ट निकलवाने के लिए अपने कमरे में ले जाता है. वहां उसे कार्तिक संग बिताए सभी पुराने दिन याद जाते हैं. वहां कार्तिक अपने लैपटौप से कायरव की रिपोर्ट निकालता है. रिपोर्ट में सबकुछ ठीक देखकर कार्तिक और नायरा खुशी से डांस करने लगते हैं. डांस करते करते दोनों एक दूसरे के करीब आ जाते हैं, तभी वहां वेदिका आ जाती है. वैसे वेदिका कायरव रिपोर्ट के बारे में  जानकर बहुत खुश होती  है. अब आगे ये देखना दिलचस्प होगा  कार्तिक, नायर और वेदिका के लाइफ में कहानी क्या नया मोड़ लेगी.

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‘कसौटी जिंदगी की 2′: आखिर कौन-सी एक्ट्रेस निभाएगी कोमोलिका का किरदार

टीवी का मशहूर सीरियल ‘कसौटी जिंदगी की 2’  में कोमोलिका के किरदार में हिना खान दिखाई दे रही थी पर अब वो बौलीवुड में एंट्री करने वाली हैं. जी हां,  हिना जल्द ही विक्रम भट्ट की फिल्म ‘हैक्ड’ में नजर आएंगी.

इसकी जानकरी खुद हिना ने सोशल मीडिया के जरिए फैंस को दी थी. इसलिए हिना खान ने सीरियल ‘कसौटी जिंदगी की 2 ‘ से अलविदा लिया था. इस सीरियल के मेकर्स कोमोलिका के किरदार के लिए नए चेहरे की तलाश में थे.

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मीडिया रिपोर्टस के अनुसार करिश्मा तन्ना और गौहर खान कोमोलिका की भूमिका में दिखाई दे सकते हैं. अब हिना इस शो का हिस्सा नहीं होगी. शो की निर्माता एकता कपूर ने कई अभिनेत्रियों का औडिशन लिया लेकिन अभी तक किसी को भी फाइनल नहीं किया गया है.

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खबरों के अनुसार,  करिश्मा तन्ना और गौहर खान ने भी  इस शो में नई कोमोलिका की भूमिका निभाने में अपनी रुचि दिखाई हैं.  लेकिन अभी तक इस किरदार के लिए कोई एक्ट्रेस फाइनल नहीं हुई है. आपको बता दें, कुछ दिन पहले ही खबर आई थी कि जैस्मिन भसीन में नई कोमोलिका की भूमिका में नजर आएंगी. लेकिन इस खबर में भी कोई सच्चाई नहीं आई थी. अब देखना ये दिलचस्प होगा कि नई कौमोलिका का किरादार कौन-सी एक्ट्रेस निभाने वाली हैं.

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5 ट्रिलियनी भव: चरमराती अर्थव्यवस्था में सरकारी मंत्र

झारखंड में भाजपा के बारीडीह मंडल के आईटी सहसंयोजक कुमार विश्वजीत के 26 वर्षीय बेटे आशीष ने 16 अगस्त को अपने घर के पंखे से लटक कर जान दे दी. आशीष को डर था कि औटो सैक्टर में आने वाली भारी मंदी के चलते उस की नौकरी चली जाएगी और उस के घर का खर्च चलना मुश्किल हो जाएगा. आशीष टाटा मोटर्स के लिए जौबवर्क करने वाली कंपनी औटोमेटिक एक्सेल में काम कर रहा था.

आशीष के पिता कुमार विश्वजीत भी जौब इनसिक्योरिटी से ग्रस्त हैं. भारतीय जनता पार्टी के सदस्य होने के साथ ही वे टाटा स्टील के लिए कौंटै्रक्ट पर काम करते हैं. उन का कहना है कि उन की कंपनी टिस्को में भी कठिन ट्रेनिंग के बाद कर्मचारियों का टैस्ट लिया जा रहा था. ज्यादातर कर्मचारियों को डर था कि अगर वे टैस्ट में फेल हुए, तो अगले दिन उन का गेटपास तक नहीं बनेगा.

कुमार विश्वजीत कई दिनों से अपनी नौकरी को ले कर चिंतित थे और कुछ दिनों पहले ही आशीष से इस बारे में बातचीत भी हुई थी कि अगर उन की नौकरी चली जाएगी तो घर का खर्चा कैसे चलेगा. तब आशीष ने बताया था कि उस की नौकरी पर भी खतरा मंडरा रहा है. जौब इनसिक्योरिटी ने आखिरकार आशीष की जान ले ली. बारबार नौकरी खोने से उसे जान खोना ज्यादा आसान लगा. उस की पत्नी सदमे में है. अभी एक साल पहले ही जून 2018 में दोनों ने प्रेमविवाह किया था.

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गहरा रहा है संकट 

आर्थिक मंदी की वजह से औटो सैक्टर का हाल सब से खराब है. इस सैक्टर में मंदी की वजह से अब तक लाखों कर्मचारियों की नौकरियां जा चुकी हैं और कितने ही इस डर के साथ जी रहे हैं.

जमशेदपुर के एक अन्य युवा इंजीनियर प्रभात कुमार ने भी अपनी नौकरी गंवाने के बाद बर्मा माइंस इलाके में खुद को आग के हवाले कर दिया. प्रभात कुमार औटो इंडस्ट्री में इंजीनियर था. उस की कंपनी भी टाटा मोटर्स के लिए जौबवर्क करती है. टाटा मोटर्स में क्लोजर के कारण कंपनी ने प्रभात को नौकरी से निकाल दिया था.

गौरतलब है कि प्रभात को झारखंड सरकार ने प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत ट्रेनिंग दिलवाई थी. उस के पिता तारकनाथ भी टाटा स्टील के कर्मचारी थे. अब रिटायरमैंट के बाद वे औटो चलाते हैं. इकलौते बेटे को खो देने के गम से वे अब शायद ही कभी उबर पाएं.

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार न्यू इंडिया का नारा दे कर एक बार फिर सत्ता में है. सरकार कहती है कि 2024-25 तक वह भारत की अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डौलर यानी 36,00,00,00,00,00,000 रुपए की अर्थव्यवस्था बना देगी. सरकार की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में 2019-20 का बजट पेश करते हुए बाकायदा इस का विजन पेश किया और कहा कि इस विजन का मुख्य आधार निवेश प्रेरित विकास और रोजगार सृजन है.

उन का कहना है कि देश को अगले 5 वर्षों में ‘5 ट्रिलियन डौलर इकोनौमी’ की अर्थव्यवस्था बनाना मोदी सरकार का एक महत्त्वपूर्ण लक्ष्य है. इस के ठीक अगले दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी वाराणसी में भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए अगले 5 वर्षों में ‘5 ट्रिलियन डौलर इकोनौमी’ का सपना दिखाया.

लेकिन, सरकारी व गैरसरकारी नौकरियों में छंटनी, बंदी और हताश नौजवानों की आत्महत्याएं मोदी सरकार की मजबूत होती अर्थव्यवस्था के दावे के ठीक उलट कहानी बयां कर रही हैं. लाखों लोग अपनी नौकरियां गंवा चुके हैं और करोड़ों की नौकरियों पर छंटनी की तलवार लटक रही है.

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कराह रहे कई उद्योग

रियल एस्टेट ध्वस्त हो रहा है. मार्च 2019 के अंत तक निर्माण उद्योग में 12 लाख 80 हजार फ्लैट बिना बिके पड़े थे. कताई उद्योग में एकतिहाई उत्पादन बंद हो चुका है. जो मिलें चल रही हैं, वे भारी घाटे का सामना कररही हैं. कौटन और ब्लैंड्स स्पिनिंग इंडस्ट्री आज उसी तरह के संकट से गुजर रही है जैसा कि 2010-11 में देखा गया था.

अप्रैल से जून की तिमाही में कौटन यार्न के निर्यात में 34.6 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई. जुलाईअगस्त में तो इस में 50 फीसदी तक की गिरावट आ चुकी है.

यही हालत रही तो अगले सीजन में भारतीय बाजार में आने वाले करीब 80 हजार करोड़ रुपए की 4 करोड़ गांठ कपास का कोई खरीदार नहीं मिलेगा. नौर्दर्न इंडिया टैक्सटाइल मिल्स एसोसिएशन के अनुसार, राज्य और केंद्रीय जीएसटी और अन्य करों की वजह से भारतीय यार्न वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा के लायक नहीं रह गया है. भारतीय टैक्सटाइल इंडस्ट्री में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से करीब 10 करोड़ लोगों को रोजगार मिलता है.

टैक्सटाइल इंडस्ट्री कृषि के बाद सब से ज्यादा रोजगार देने वाला सैक्टर है. ऐसे में बड़े पैमाने पर लोगों के बेरोजगार होने की आशंका है. इसलिए नौर्दर्न इंडिया टैक्सटाइल मिल्स एसोसिएशन ने सरकार से मांग की है कि वह तत्काल कदम उठा कर नौकरियां जाने से बचाए और इस इंडस्ट्री को गैरनिष्पादित संपत्ति यानी एनपीए बनने से रोके.

बिस्कुट बनाने वाली देश की सब से बड़ी कंपनी पारले प्रोडक्ट्स आगाह करती है कि कन्जंपशन में सुस्ती आने के कारण उसे और उस के साथ काम करने वाले ठेकेदार को कच्चा माल देने वालों के 8,000-10,000 लोगों की छंटनी करनी पड़ सकती है. कंपनी के कैटेगरी हेड मयंक शाह कहते हैं, ‘‘हम ने 100 रुपए प्रतिकिलो या उस से कम कीमत वाले बिस्कुट पर जीएसटी घटाने की मांग की है. ये बिस्कुट आमतौर पर 5 रुपए या कम के पैक में बिकते हैं. हालांकि, अगर सरकार ने हमारी मांग नहीं मानी तो हमें अपनी फैक्ट्रियों में काम करने वाले 8,000-10,000 लोगों को निकालना पड़ेगा. सेल्स घटने से हमें भारी नुकसान हो रहा है.’’

पारलेजी, मोनाको और मैरी गोल्ड बिस्कुट बनाने वाली पारले कंपनी की बिक्री 10,000 करोड़ रुपए सालाना से ज्यादा होती है. 10 प्लांट चलाने वाली इस कंपनी में एक लाख कर्मचारी काम करते हैं. पारले के पास 125 सहयोगी थर्ड पार्टी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट हैं. कंपनी की सेल्स का आधा से ज्यादा हिस्सा ग्रामीण बाजारों से आता है.

जीएसटी लागू होने से पहले 100 रुपए प्रतिकिलो से कम कीमत वाले बिस्कुट पर 12 फीसदी टैक्स लगाया जाता था. कंपनियों को उम्मीद थी कि प्रीमियम बिस्कुट के लिए 12 फीसदी और सस्ते बिस्कुटों के लिए 5 फीसदी का जीएसटी रेट तय किया जाएगा. हालांकि, सरकार ने 2 साल पहले जब जीएसटी लागू किया था तो सभी बिस्कुटों को 18 फीसदी के स्लैब में डाला था. इस के चलते कंपनियों को इन के दाम 5 फीसदी बढ़ाने पड़े जिस से बिक्री में भारी गिरावट आई. लगातार घाटे में जा रही कंपनी अब अपने कर्मचारियों की छंटनी करने के लिए मजबूर है.

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समस्याओं से जूझता देश

कामगारों की छंटनी, रोजगार की तलाश, बाढ़ और सूखे से होने वाली मौतें और नुकसान, पानी व बिजली की कमी का संकट और असमानता जैसी समस्याओं से देश जूझ रहा है. बीएसई और एनएसई के सूचकांकों में भारी गिरावट, रुपए के अवमूल्यन, बौंड्स पर बढ़ते प्रतिफल, सरकारी क्षेत्रों के बैंकों के बढ़ते घाटे, कठोर करों, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा हाथ खींचने और कैफे कौफी डे के प्रमोटर वी जी सिद्धार्थ की आत्महत्या के बारे में चर्चा जारी है. ऐसे में भाजपा सरकार की 5 ट्रिलियन डौलर की अर्थव्यवस्था की बात दूर की कौड़ी है.

वर्ष 2018 की ग्लोबल जीडीपी रैंकिंग में भारत 7वें स्थान पर जा गिरा है. वर्ल्ड बैंक द्वारा जारी ग्लोबल जीडीपी (ग्रौस डोमैस्टिक प्रोडक्ट) रैंकिंग में 32.22 लाख वर्ग किलोमीटर वाले भारत का स्थान 7वां दर्ज हुआ है. जबकि वर्ष 2017 में भारत 5वें नंबर पर था. वर्ल्ड बैंक की नई सूची में 20.5 लाख करोड़ डौलर की अर्थव्यवस्था के साथ अमेरिका पहले स्थान पर है.

इस लिस्ट में चीन का स्थान दूसरा है और उस की जीडीपी का आकार 13.6 लाख करोड़ डौलर है. तीसरे स्थान पर 3.77 वर्ग किलोमीटर वाला जापान है, जिस की जीडीपी लगभग 5 लाख करोड़ डौलर की है. चौथे स्थान पर

3.57 लाख वर्ग किलोमीटर वाला जरमनी (4 लाख करोड़ डौलर), 5वें पर 2.42 लाख वर्ग किलोमीटर वाला ब्रिटेन (2.8 लाख करोड़ डौलर) और छठवें पर 6.4 लाख वर्ग किलोमीटर वाला फ्रांस (2.77 लाख करोड़ डौलर) हैं. भारत 2.73 लाख करोड़ डौलर की अर्थव्यवस्था के साथ 7वें स्थान पर है.

क्यों चौपट हुई अर्थव्यवस्था

देश की अर्थव्यवस्था को चलाने के मुख्य 4 कारक हैं – सरकारी खर्च, निजी निवेश, निजी खपत और निर्यात. बीते 5 वर्षों में इन में से कोई भी कारक ठीक तरीके से नहीं चल रहा है. इसीलिए भारत की अर्थव्यवस्था चौपट है. लोकसभा में बजट पेश करने के बाद से देश की अर्थव्यवस्था, बढ़ती बेरोजगारी और मंदी पर न तो सदन में कोई बात हो रही है और न मीडिया में कोई चर्चा है.

चर्चा है तो बस जम्मूकश्मीर विभाजन की, मुसलमानों से जुड़े विवादास्पद विधेयकों को सदन में पारित कराने की, नरेंद्र मोदी सरकार के दबदबे की, पाकिस्तान की खस्ता हालत की, कांग्रेस पार्टी के नेतृत्वविहीन हो जाने की, या पी चिदंबरम की गिरफ्तारी की.

कई मशहूर अर्थशास्त्री और वित्त विशेषज्ञ सरकार को बारबार आगाह कर रहे हैं कि अर्थव्यवस्था एक ऐसा क्षेत्र है, जिस में बाहुबल वाला राष्ट्रवाद काम नहीं करता है. इस के उलट, यह अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने का काम कर सकता है. लेकिन अंधभक्त सरकार न तो किसी की बात सुनने की इच्छुक है, न वह कुछ समझना चाहती है.

देश की जीडीपी की वृद्धि दर लगातार गिर रही है. पूरे वर्ष के लिए 6.8 फीसदी और 2018-19 की आखिरी तिमाही में 5.8 फीसदी रहने के बाद 2019-20 की पहली तिमाही में इस के उठने की कोई उम्मीद नजर नहीं आती है. आरबीआई और अन्य बैंकिंग क्षेत्रों के अनुमान के मुताबिक यह 2019-20 में 6.9 फीसदी से ज्यादा नहीं रहेगी. जबकि मोदी सरकार, जो 5 ट्रिलियन डौलर की अर्थव्यवस्था हो जाने का सपना दिखा रही है, के लिए जीडीपी दर अगले 5 सालों में लगातार 8 फीसदी से ज्यादा रहनी चाहिए.

आर्थिक फ्रंट पर लगातार नाकाम रही मोदी सरकार भारतीय रिजर्व बैंक से बड़ी रकम की मांग करती रही थी. बैंक के 2 गवर्नर इसी वजह से इस्तीफा दे चुके हैं. अब, आखिरकार गैरअर्थशास्त्री भूमिका वाले मौजूदा गवर्नर ने मोदी सरकार की हां में हां मिला दी है.

आरबीआई से लिया पैसा

चरमराती अर्थव्यवस्था से उबरने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने मोदी सरकार को 24.8 अरब डौलर यानी लगभग 1.76 लाख करोड़ रुपए लाभांश और सरप्लस पूंजी के तौर पर देने का फैसला किया. यह फैसला सरकार के दबाव में है या आरबीआई की अपनी इच्छा से, इस को ले कर खुसुरफुसुर जारी है.

मोदी सरकार की नजर बहुत लंबे समय से आरबीआई के इस रिजर्व फंड पर थी और आरबीआई पर इस बात के लिए लगातार दबाव बनाया जा रहा था कि वह अपना रिजर्व फंड सरकार को दे दे. आरबीआई के गवर्नर रहे रघुराम राजन से ले कर उर्जित पटेल तक के इस्तीफों के पीछे आरबीआई की स्वायत्तता को बरकरार रखने और रिजर्व फंड सरकार को देने का दबाव ही कारण रहा है.

आसान भाषा में इस बात को समझें तो एक ऐसा घर जहां घर के सारे सदस्य कमाते हैं, फिर भी उस घर के खर्चे इतने हैं कि पैसा न तो बच रहा है और न ही किसी के लिए कोई नई चीज घर में आ रही है. मगर इसी घर में एक बुजुर्ग है जो बहुत समझदार है. उस ने अपना पैसा बचा कर रखा है. उस के पास धीरेधीरे कर के पैसे तभी जमा हुए जब घर के लोगों ने अपनी कमाई से उसे थोड़ेथोड़े दिए.

यह दिमागदार बुजुर्ग अपना पैसा पागलों की तरह खर्च नहीं करता है. वह बिलकुल भी शाहखर्च नहीं है, वह पैसे की वैल्यू समझता है और यह पैसा उस ने उस दिन के लिए रख रखा है, जब कोई बड़ी आफत घर पर आन पड़े. लेकिन बाकी लोग बिना सोचेसमझे अनापशनाप खर्च कर रहे हैं. उसी पैसे के बल पर बाजार से जरूरत पड़ने पर कर्ज मिल जाता है.

एक दिन घर के लोग उस बुजुर्ग से कहते हैं कि घर की हालत बहुत खराब हो गई है. हमारे पास पैसा नहीं बचा है. लोगों की नौकरी जाने वाली है. सारा कामधंधा चौपट हो गया है, हमें अपना पैसा दे दो. सब उस की चिरौरी करने लगते हैं. वह नहीं मानता है तो उस पर दबाव डालते हैं. इतना दबाव डालते हैं कि अंत में बुजुर्ग हथियार डाल देता है और अपनी जमापूंजी में से बहुत बड़ा हिस्सा दे देता है, मगर इस डर के साथ कि यह पैसा भी डूब जाएगा.

बस, यही हालत मोदी सरकार की है. सरकार को आरबीआई के सरप्लस रिजर्व से वह पैसा चाहिए जो आरबीआई को अपने कामधाम से मिलता है. हर वित्तीय वर्ष में सरकार की नजर इस पैसे पर रही है. इस पैसे को पाने के लिए सरकार 2014 से ही उस पर दबाव बना रही थी. पहले उस ने 3.96 लाख करोड़ रुपए की मांग की. आरबीआई ने नहीं दिया. फिर सरकार ने आरबीआई के कामों में दखल देना शुरू कर दिया. गवर्नर उर्जित पटेल ने इसी बात पर इस्तीफा दिया था. बावजूद इस के, सरकार की हरकतें नहीं रुकीं.

गौरतलब है कि जिस दिन शक्तिकांत दास आरबीआई के गवर्नर बने उसी दिन साफ हो गया था कि अब सरकार जो चाहेगी, वह आरबीआई को करना होगा. वजह यह कि शक्तिकांत दास आईएएस अधिकारी रहे हैं, सरकार के निकट और प्रिय हैं और वित्त मंत्रलाय में प्रवक्ता के तौर पर काम कर चुके हैं. दास ने मोदी सरकार की नोटबंदी का भी काफी समर्थन किया था.

आरबीआई से पैसा निकलवाने के लिए दास और सरकार की आपसी रजामंदी से पूर्व गवर्नर बिमल जालान की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की गई थी. इसी कमेटी ने 26 अगस्त को सरकार को 1.76 लाख करोड़ रुपए देने के लिए कहा था.

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ऐसा नहीं है कि आरबीआई ने इस से पहले सरकार को पैसा नहीं दिया. आरबीआई अपने कंटिनजैंसी फंड का एक हिस्सा सरकार को देती रही है. बीते साल आरबीआई ने सरकार को 68 हजार करोड़ रुपए दिए थे. उस के पहले लगभग 40 हजार करोड़ रुपए सरकार ले चुकी है. उस के पहले 2 साल लगभग 65 हजार करोड़ रुपए और साल 2014 में 52 हजार करोड़ रुपए मोदी सरकार आरबीआई से ले चुकी है. आरबीआई हर साल अपनी कमाई में से मोदी सरकार को हिस्सा दे रही है. लेकिन यह पहला मौका है जब हर साल का दुगनातिगुना रिजर्व सरकार को मिल रहा है.

यही सरकार यह कह कर सत्ता में आई थी कि वह विदेश में जमा सारा कालाधन वापस ले कर आएगी. भ्रष्ट नेताओं और पूंजीपतियों का स्विस बैंक में जमा सारा धन निकालेगी और आज इस सरकार की यह हालत हो गई है कि वह अपने ही घर में डाका डालने को मजबूर है. हाल ही में पूर्व आरबीआई गवर्नर डी सुब्बाराव ने कहा था कि आरबीआई के रिजर्व पर ‘धावा बोलना’ सरकार के ‘दुस्साहस’ को दर्शाता है.

आरबीआई का सरकार को पैसे देने का मतलब है कि सरकार खोखली हो चुकी है, उस के पास पैसे नहीं हैं. देश में मंदी है. और अब बड़ी मुसीबत सामने है क्योंकि पैसा छोटामोटा नहीं है, 1.76 लाख करोड़ रुपए है.

अर्थशास्त्री विवेक कौल कहते हैं कि जिस किस्म के स्लोडाउन में अभी हम हैं, मुझे तो नहीं लगता कि यह स्लोडाउन जल्दी खत्म होने वाला है. अगले साल अगर ऐसी ही कुछ हालत रही और टैक्स कलैक्शन धीमा ही रहा, तो फिर पैसा कहां से आएगा? उस हिसाब से आरबीआई से इतनी बड़ी धनराशि लेना एक गलत उदाहरण है. अभी तक सरकार के पास पैसे नहीं होते थे तो कभी एलआईसी से जुगाड़ कर के, ओएनजीसी ने एचपीसीएल को खरीदा जैसी तिकड़मबाजी कर के काम चलता था. अब आप आरबीआई के आगे कहां जाएंगे?

यह महत्त्वपूर्ण सवाल है कि इस साल तो आरबीआई से पैसा आ गया है, लेकिन अगले साल क्या होगा? सरकार की कोशिश होनी चाहिए थी कि अर्थव्यवस्था को ठीक किया जाए. लेकिन सरकार की शाहखर्ची किसी तरह कम नहीं हो रही है. आरबीआई से मिला 1.76 लाख करोड़ रुपया सरकार कहां और किस तरह खर्च करने वाली है, इस का कोई ब्योरा सरकार की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से अभी तक सामने नहीं रखा गया है.

इस में दोराय नहीं कि भारतीय अर्थव्यवस्था में आई कमजोरी से सरकार बड़े दबाव में है. भारतीय मुद्रा रुपया अमेरिकी डौलर की तुलना में 72 के पार चला गया है. सरकार ने टैक्स कलैक्शन का जो लक्ष्य रखा था उसे पाने में वह पूरी तरह नाकाम रही है. जीएसटी की वजह से जितनी रैवेन्यू यानी राजस्व की प्राप्ति की उम्मीद सरकार ने की थी, उतनी नहीं हुई. नोटबंदी का आइडिया भी सफल नहीं हुआ और जीडीपी भी लगातार गिरावट की ओर जा रही है.

लगातार चौथी तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर में गति नहीं आ पाई है. यही नहीं, कई सरकारी संस्थान और मंत्रालय इस वक्त दिक्कत में हैं. कई चीजें घाटे में चली गई हैं. आरबीआई से मिले पैसे को सरकार किस तरह इस्तेमाल करेगी कि ये सारी चीजें पटरी पर आ जाएं. सवाल यह उभरता है कि क्या मोदी सरकार आरबीआई से पैसे ले कर अर्थव्यवस्था में मजबूती ला पाएगी या यह पैसा भी डूब जाएगा?

गिरता रुपया, घटता निवेश

आज भारतीय रुपए की हालत बद से बदतर हो चुकी है. रुपया इस वक्त एशिया की सब से खराब हालत वाली मुद्रा बन चुका है. अमेरिकी डौलर के मुकाबले अगस्त माह में यह 3.4 फीसदी तक गिर चुका है.

भारत में देशी और विदेशी निवेश लगातार घट रहा है. जून 2019 में समाप्त तिमाही में नई परियोजनाओं (निजी और सरकारी) में निवेश पिछले 15 वर्षों में सब से कम यानी 71,337 करोड़ रुपए रहा. इस तिमाही में पूरी हुई परियोजनाओं का मूल्य गिर कर 5 वर्षों में साल के न्यूनतम स्तर यानी 64,494 करोड़ रुपए पर आ गया. अप्रैलजून 2019 में रेलवे को कोयला, सीमेंट, पैट्रोलियम, उर्वरक, लौह अयस्क आदि की ढुलाई से जो कमाई हुई उस में सिर्फ 2.7 फीसदी का ही इजाफा हुआ, जो पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले 6.4 फीसदी कम है.

इस साल अप्रैल से जुलाई के बीच निर्यात (कारोबारी और सेवाएं) सिर्फ 3.13 फीसदी बढ़ा है. पिछली अवधि में भी यही था, जबकि आयात में 0.45 फीसदी की गिरावट आई है, जो अर्थव्यवस्था की निराशाजनक हालत को बयां करता है. वहीं, खपत में जैसी कमी आई है वैसी पहले कभी नहीं रही. 2019-20 की पहली तिमाही में कारों की बिक्री 23.3 फीसदी, दुपहिया वाहनों की 11.7 फीसदी, व्यावसायिक वाहनों की साढ़े 9 फीसदी घट गई है. ट्रैक्टरों की बिक्री में 14.1 फीसदी की कमी आई है. जुलाई में तो हालत सब से खराब रही. 286 डीलर अपना कारोबार बंद कर चुके हैं. उद्योग संगठनों – सियाम और फाडा ने 2 लाख 30 हजार नौकरियां जाने की बात कही है.

त्वरित उपभोग वाली वस्तुओं (एफएमसीजी) की खपत भी आशा के अनुरूप नहीं रही. हिंदुस्तान लीवर, डाबर, ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज और एशियन पेंट्स सहित कई कंपनियों की कुल कारोबारी वृद्धि इस साल की पहली तिमाही में आधी रह गई है या पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले में कम रही है.

देश के मौजूदा वित्त वर्ष (2019-20) की पहली तिमाही में केंद्र सरकार का सकल कर राजस्व 1.4 फीसदी ही बढ़ा है जबकि पिछले साल इसी अवधि में यह 22.1 फीसदी रहा था. ये तमाम बातें इस बात का खुलासा हैं कि कौर्पोरेट और वैयक्तिक आय में लगातार कमी आ रही है और खर्च में भी भारी गिरावट है.

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धीमापन चिंताजनक

भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन अर्थव्यवस्था में इस समय दिख रहे धीमेपन को बहुत चिंताजनक करार देते हैं. उन का कहना है कि सरकार को ऊर्जा एवं गैरबैंकिंग वित्तीय क्षेत्रों की समस्याओं को तत्काल सुलझाना चाहिए. इसी के साथ निजी निवेश प्रोत्साहित करने के लिए जल्द ही सरकार को नए कदम उठाने चाहिए.

वर्ष 2013-16 के बीच आरबीआई के गवर्नर रहे रघुराम राजन ने भारत में जीडीपी की गणना के तरीके पर नए सिरे से गौर करने का भी सुझाव दिया है. इस संदर्भ में उन्होंने पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री अरविंद सुब्रमण्यम के शोध निबंध का हवाला दिया, जिस में साफ कहा गया था कि मोदी सरकार में देश की आर्थिक वृद्धि दर को बढ़ाचढ़ा कर आंका गया है.

अरविंद सुब्रमण्यम ने दावा किया था कि 2011-12 से 2016-17 के दौरान देश की आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान तकरीबन ढाई फीसदी अधिक बताया गया था. सरकार का कहना था कि इस अवधि में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 7 फीसदी रही, जबकि सुब्रमण्यम कहते हैं कि यह इस आंकड़े से बहुत कम करीब साढ़े 4 फीसदी के आसपास ही थी.

हैरानी यह भी है कि वहीं दूसरी ओर मोदी सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के रक्षा उपक्रमों (पीएसयू) को भी बंद करने का प्रयास कर रही है. सांठगांठ वाले पूंजीवाद के लिए रक्षा क्षेत्र के पीएसयू को बंद करना देश की सुरक्षा से बड़ा खिलवाड़ साबित होगा.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा इस पर चिंता व्यक्त करते हुए कहते हैं कि सरकार द्वारा भारतीय पीएसयू में हिस्सेदारी बेची जा रही है. कोई भी देश अच्छी गुणवत्ता वाले हथियारों का उत्पादन किए बिना अपनी रक्षा नहीं कर सकता है. केंद्र सरकार देश को बड़े खतरे की ओर ढकेल रही है. कुल मिला कर देश की आर्थिक सुरक्षा के फ्रंट पर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र की भाजपा सरकार अब तक फेल रही है.

अगर सरकार सफल है तो सिर्फ नारेबाजी और भावनाएं उकसाने वाले फैसले करने में. लेकिन लट्ठ बजाने से न गेहूं उगता है, न कारखाना चलता है. द्य

  अर्थव्यवस्था के दावे

भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने एक नया शिगूफा छोड़ा है. स्वच्छ भारत, मेक इन इंडिया, अच्छे दिन, सब का विकास, जय श्रीराम, मंदिर वहीं बनाएंगे, गौमाता जैसे नारों को गढ़ने में उस्ताद भाजपाई सरकार का अब नया नारा है ‘5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था.’ यह ट्रिलियन होता क्या है? इस का अर्थ क्या है, यह मत पूछिए. यह वेदों में छिपे ज्ञान की तरह है जिसे केवल तपस्वी, ऋषिमुनि, त्यागी, महात्मा समझ सकते हैं या फिर निर्मला सीतारमण. ये नरेंद्र मोदी सरकार की वित्त मंत्री हैं. आम व्यक्ति को इस से कुछ मतलब नहीं है पर उस का यह कर्तव्य है कि जैसे वह भारत माता की जय बोलता है, वैसे ही ‘हम 5 ट्रिलियन इकोनौमी होंगे’ हर दूसरी सांस में बोले.

वैसे 5 ट्रिलियन का मतलब है 5,000,000,000,000 डौलर यानी 36,00,00,00,00,00,000 रुपए (36 नील रुपए) की अर्थव्यवस्था. इस का अर्थ होगा कि प्रतिव्यक्ति वार्षिक आय जो आज लगभग 1,35,000 रुपए है, बढ़ कर 5-7 सालों में 2,40,000 रुपए प्रतिव्यक्ति हो जाएगी. यह मात्र खुशफहमी है, यह पक्का है, क्योंकि जब निर्मला सीतारमण पानी का घूंट पिए बिना लंबा बजट भाषण दे रही थीं, उस समय सुधरती अर्थव्यवस्था के 2 बड़े पैमाने, गाडि़यों और मकानों की बिक्री कम हो रही थी. कारें फैक्ट्रियों में बनीं लेकिन फैक्ट्रियां न बिकने वाली गाडि़यों को खड़ी करने की जगह ढूंढ़ रही थीं जबकि बिल्डर्स हाथ पर हाथ धरे दीवारें निकालने को बैठे थे.

वहीं, कुछ किसान मौनसून की कृपा के कारण तो कुछ बढ़ते खर्च व घटती आय के कारण जोत कम कर रहे थे. हां, बच्चे पैदा हो रहे थे. स्कूल भरे हुए थे. बेरोजगारों की फैक्ट्रियां चालू थीं.

इतना अवश्य है कि भारतीय जनता पार्टी की अद्भुत जीत, चाहे वह कैसे भी हासिल की गई हो, की वजह से मरघट सी चुप्पी छाई है. विपक्षी दलों की बोलती बंद है. मीडिया, जो पहले गुणगान में व्यस्त था, अब चुप हो गया. अमीर तो भारीभरकम अतिरिक्त टैक्स के खिलाफ भी नहीं बोल रहे, क्योंकि उन्हें डर है कि बोलने पर ईडी यानी एनफोर्समैंट डायरैक्टोरेट उन के दरवाजे खटखटाने न आ जाए.

यह 5 ट्रिलियन का नारा पूरा हो या न हो, फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि यदि किसी तरह की अमीरी आ भी गई तो वह पहले 2-3 फीसदी लोगों में आएगी. फिर कहीं खुरचन बंटी, तो ऊंची जातियों में बंट कर रह जाएगी. सरकारी कर्मचारी और पंडितों के व्यवसाय व ठाटबाट बेहतर होंगे. लेकिन बाकी सब लोग भगवान भरोसे, यदि वह कहीं है तो.

सत्ता में दोबारा आई मौजूदा सरकार के संसद में पेश किए गए पहले बजट के फैसलों से ऐसा कहीं नहीं लगता कि कुछ अच्छा होने वाला है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह विपक्षी कांग्रेस को ध्वस्त करने में ज्यादा लगे हैं, देश निर्माण में कम. अखबारों की सुर्खियां तो कम से कम यही कह रही हैं.

देश की प्रगति के लिए पूंजी निवेश चाहिए होता है, चाहे वह कारखानों में हो, सड़कों, पुलों पर हो, रेलों पर हो या स्कूलों में हो. हालत यह है कि इन की दर 2007-08 में 32.9 फीसदी से घट कर आज 29.3 फीसदी रह गई है. पूंजी निवेश के लिए जो सरकारी पैसा चाहिए होता है वह करों में चाहिए होता है. निर्मला सीतारमण के बजट का अंदाजा है कि इस वर्ष आयकर में 23.25 फीसदी की बढ़ोतरी होगी और जीएसटी में 44.98 फीसदी. हालांकि ऐसा संभव नहीं है, पर ऐसा अगर हुआ तो यह क्रूर रोमन सम्राटों या ईस्ट इंडिया कंपनी के अकाल के दिनों में भी कर बढ़ाने जैसा होगा, क्योंकि पूरी अर्थव्यवस्था ही धीमी चल रही है.

हां, अपना समर्थन देने के लिए जय 5 ट्रिलियन, जय गौवंश, जय भारतमाता बोलते रहें, अवश्य कल्याण होगा.

नीति आयोग का खुलासा

नीति आयोग के वाइस चेयरमैन राजीव कुमार ने साफ कहा है कि देश की अर्थव्यवस्था इस वक्त सब से जर्जर हालत में है और पिछले 70 वर्षों में देश ने ऐसी स्थिति का सामना नहीं किया है कि जब पूरी वित्तीय प्रणाली जोखिम में हो. राजीव कुमार के मुताबिक, नोटबंदी और जीएसटी के बाद कैश संकट बढ़ा है. राजीव कुमार ने कहा कि आज कोई किसी पर भरोसा नहीं कर रहा है. प्राइवेट सैक्टर किसी को कर्ज देने के लिए तैयार नहीं है. हर कोई नकदी दबा कर बैठा है. नोटबंदी, जीएसटी और आईबीसी (दीवालिया कानून) के बाद हालात बदल गए हैं. पहले करीब 35 फीसदी कैश उपलब्ध होता था, वह अब काफी कम हो गया है. इन सभी कारणों से स्थिति काफी जटिल हो गई है.

अर्थव्यवस्था में सुस्ती को ले कर राजीव कुमार ने कहा कि यह 2009-14 के दौरान बिना सोचेसमझे दिए गए कर्ज का नतीजा है. इस से 2014 के बाद नौन परफौर्मिंग एसेट (एनपीए) बढ़ा है. इस वजह से बैंकों की नया कर्ज देने की क्षमता कम हुई है. इस कमी की भरपाई गैरबैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) ने की. इन के कर्ज में 25 फीसदी की वृद्धि हुई है.

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जगदलपुर : प्राकृतिक सौंदर्य का ठिकाना

भारत के हृदय में बसा छत्तीसगढ़ सैलानियों के आकर्षण का केंद्र बनता जा रहा है. छोटीछोटी पर्वतमालाएं और इस की गोद में अठखेलियां करती नदियां बरबस ही अपनी ओर ध्यान आकर्षित करती हैं. जगदलपुर हरेभरे पहाड़ों, गहरी घाटियों, घने जंगलों, नदियों, झरनों, गुफाओं, प्राकृतिक पार्क, शानदार स्मारकों, समृद्ध प्राकृतिक संसाधनों और आनंदमय एकांत से भरापूरा है. प्राकृतिक सौंदर्य और जंगली जानवरों के लिए विशाल संरक्षित वन से समृद्ध जगदलपुर अपनी पारंपरिक लोक संस्कृति के लिए जाना जाता है जो इस क्षेत्र को विशिष्टता प्रदान करती है. इस बार हम आप को जगदलपुर के प्रसिद्ध पर्यटक स्थलों की सैर कराने जा रहे हैं–

चित्रकोट का जलप्रपात

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 274 किलोमीटर दूर स्थित जगदलपुर से 39 किलोमीटर की दूरी पर बहती इंद्रावती नदी के पास चित्रकोट जलप्रपात है. यह सैलानियों के आकर्षण का केंद्र है. चित्रकोट जलप्रपात छत्तीसगढ़ में सब से लोकप्रिय झरने के रूप में सूचीबद्ध है. इस जलप्रपात की ऊंचाई 90 फुट है. यह बस्तर संभाग का सब से प्रमुख जलप्रपात माना जाता है. जगदलपुर से समीप होने के कारण यह एक प्रमुख पिकनिक स्पौट के रूप में भी प्रसिद्धि प्राप्त कर चुका है. राज्य के बस्तर अंचल में स्थित जगदलपुर का चित्रकोट जलप्रपात इतना मनमोहक और आकर्षक है कि इसे भारत का नियाग्रा कहा जाता है. इस जलप्रपात की खासीयत यह है कि बारिश के दिनों में यह रक्तिम लालिमा लिए हुए होता है जबकि गरमी की चांदनी रात में यह झक सफेद नजर आता है.

यह जगह छत्तीसगढ़ के शीर्ष इकोटूरिज्म स्थलों में शुमार है. यहां आने के लिए रायपुर से जगदलपुर तक सड़क और रेलमार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता  है.जगदलपुर में स्थित मानव विज्ञान संग्रहालय, बस्तर, जनजाति की जीवनशैली और संस्कृति पर प्रकाश डालता है. बस्तर पैलेस जगदलपुर का एक अन्य आकर्षण है जो ऐतिहासिक अवशेष है. वर्तमान में बस्तर के शाही परिवार वहां रह रहे हैं. जगदलपुर में स्थित इंद्रावती नैशनल पार्क और कांगेरघाटी नैशनल पार्क भी मुख्य आकर्षण हैं.

इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान

त्तीसगढ़ के बेहतरीन और सब से मुख्य वन्यजीव उद्यानों में से एक इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान है. यह उद्यान पशुओं, पक्षियों और सरीसृप की व्यापक प्रजातियों के लिए प्रसिद्ध है. इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान को 1981 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया और बाद में 1983 में इसे भारत के प्रसिद्ध प्रोजैक्ट टाइगर के तहत टाइगर रिजर्व का दरजा मिला. यह छत्तीसगढ़ में एकमात्र टाइगर रिजर्व है. दुर्लभ जंगली भैंसे और हिरण उद्यान के मुख्य आकर्षण हैं. उद्यान की यात्रा करने के लिए सब से अच्छा मौसम जून से दिसंबर के दौरान का होता है.

तीरथगढ़ का जलप्रपात

पूरे बस्तर क्षेत्र में कई और जलप्रपात भी अपार जलराशि के कारण सैलानियों को विहंगम अनुभूति से भर देते हैं. इन में तीरथगढ़ का जलप्रपात  प्रसिद्ध है. यह जगदलपुर से 25 किलोमीटर दूर कांगेर (फूलों की घाटी) वैली राष्ट्रीय उद्यान में है. यहां का नैसर्गिक सौंदर्य शहरी सैलानियों को रोमांच और कुतूहल से भर देता है. जगदलपुर के समीप 30 किलोमीटर की दूरी पर प्राकृतिक रूप से बनी कोटमसर गुफा भी है. यह विश्वप्रसिद्ध है.इस के अलावा, जगदलपुर इलाके का तमारा घूमर झरना भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है. यह झरना जगदलपुर से लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. क्षेत्र के हरेभरे वन वाली भूमि, गहरी घाटियां और शानदार पहाडि़यों जैसे प्राकृतिक  सौंदर्य इस जगह की खूबसूरती को बढ़ाते हैं और अपनी ओर पर्यटकों को आकर्षित करते हैं.

फेस्टिव सीजन में भी औफर का सहारा

बिजनेस में औफर का सहारा आमतौर पर औफ सीजन में लिया जाता था. हर बिजनेस का एक औफ सीजन होता है. कारोबारी हमेशा से ही फेस्टिव सीजन को लेकर बहुत उत्साहित रहता है. उसे उम्मीद रहती है कि फेस्टिव सीजन में उसकी अच्छी कमाई हो जायेगी. जिससे औफ सीजन में कुछ लुभावने औफर के सहारें उसका बिजनेस चलता रहेगा. पितृपक्ष के पहले से फेस्टिवल सीजन शुरू होता है. पितृपक्ष में खरीददारी लोग कम करते हैं इसके बाद वापस खरीददारी का समय शुरू हो जाता है. पितृपक्ष के पहले गणेश उत्सव से ही फेस्टिवल माना जाता है. गणेश उत्सव में जिस बिजनेस की उम्मीद की जा रही थी वह इस बार नहीं दिखा है. गणेश उत्सव में भी बिजनेस का बढ़ाने के लिये औफर का सहारा लेना पडा. फैशन डिजाइनिंग स्टोर चलाने वाली नेहा दीप्ति कहती हैं ‘इस बार औफर के सहारे ही पूरा समय गुजर रहा है. बड़े- बड़े स्टोर में भी औफर लगा रहा. ऐसे में अब फेस्टिवल सीजन में भी औफर का ही सहारा लग रहा है.

केवल कपड़ों की दुकानों का ही यह हाल नहीं है. महिलाओं से हमेशा गुलजार रहने वाला ब्यूटी सेक्टर भी औफर की मजबूरी में फंसा है. ब्यूटी एक्सपर्ट पायल श्रीवास्तव का अपना ब्यूटी सैलून है. वह कहती है कि औफ सीजन में ब्यूटी सर्विस में औफर देने पड़ते है. पहले डिसकाउंट तक कम से कम दिया जाता था. अब बिजनेस के लिये पहले ही औफर देने पड़ रहे है.’ यही हालत ज्वैलरी बिजनेस के भी है. इन्द्रेष स्तोगी कहते हैं ‘सोना मंहगा होने से अब ज्वैलरी की खरीददारी कम होने लगी है. अभी तक लोगों को लग रहा था कि फेस्टिवल सीजन में तेजी आयेगी पर ज्वैलरी बनाने वाले से लेकर बेचने वाले तक में कोई उत्साह नहीं है. उनको लग नहीं रहा कि फेस्टिवल सीजन में बिजनेस में कोई बहुत तेजी आयेगी.‘

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आटो सेक्टर के बाद कपड़ा, ब्यूटी और ज्वैलरी बाजार में भी फेस्टिवल की तेजी नहीं दिखाई दे रही है. पितृपक्ष के बाद फेस्टिवल सीजन शुरू होने वाला है. ऐसे में सामान निर्माता जिस तरह से नये डिजाइन, नये उत्साह के साथ काम करते थे वह नहीं दिख रहा है. कपड़ा कारोबारी दीपक कुमार कहते हैं ‘सबसे अधिक परेशानी में हैंडवर्क करने वाले कारीगर है. मंहगी कढ़ाईदार कपड़ों का क्रेज कम हो गया है. हम लोग बनारसी साड़ी का काम करते हैं. इस बार वाराणसी के साड़ी बिजनेस में तेजी नहीं दिख रही है. लखनवी चिकन की कढ़ाई अब मशीनों से सूरत में तैयार होने लगी है. ऐसे में बिजनेस में फेस्टिवल सीजन को लेकर जो उसाह दिखता था वह नहीं दिख रहा. जानकार मानते हैं कि बिजनेस मैन फेस्टिवल सीजन के लिये भी नये नये औफर लेकर आने की तैयार में है. उनको लगता है कि बिना औफर के फेस्टिवल सीजन भी मंदा रह सकता है.

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