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नर्सरी से राजाराम की बदली जिंदगी

ऐसा कर दिखाया है राजस्थान के झुंझुनूं जिले की चिड़ावा तहसील के महरमपुर के बाशिंदे राजाराम ने, जो फलफूल व छायादार पौधे तैयार कर हर साल

4 लाख रुपए कमा रहा?है. नर्सरी के काम में हो रही ज्यादा आमदनी को देख कर उस ने आगामी साल में एक लाख पौधे तैयार करने की ठानी?है.

स्नातक की डिगरी हासिल करने के बाद राजाराम ने फल, छायादार पौधे व फूलों के पौधों की बढ़ती मांग को देख कर अपनी खेती लायक जमीन पर नर्सरी लगाने की ठानी. राजाराम को नए पौधे तैयार करने की जानकारी नहीं थी. उस के परिवार के आशाराम के यहां हरियाणा से नर्सरी का काम करने वाले लोग आते थे. उन से राजाराम ने कलमी पौधे तैयार करने के लिए कटिंग, बडिंग, ग्राफ्टिंग की तकनीक सीखी और 2 साल पहले उन के साथ काम भी किया. जब वह पूरी तरह से सीख गया तो उस ने अपनी 2 बीघा जमीन में नर्सरी लगा ली.

नर्सरी में राजाराम खुद कटिंग, बडिंग, ग्राफ्टिंग व दूसरे काम करता और परिवार के दूसरे लोग मिट्टी में खाद मिलाने, दीमक व दूसरे रोगों की रोकथाम के लिए कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल करते व थैलियां तैयार करने का काम करते.

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जब परिवार के सभी लोग मेहनत के साथ काम करते हैं तो इस के अच्छे नतीजे मिलने लगे जिस से तैयार पौधा सूखा नहीं. हालात ये रहे कि राजाराम ने पहले साल ही तकरीबन 50,000 पौधे तैयार किए, जिन की महज 4 महीने में बिक्री होने से उसे तकरीबन 2 लाख रुपए आसानी से मिल गए.

जब राजाराम को नर्सरी के पौधे तैयार करने में तकनीकी जानकारी की जरूरत होती तो रामकृष्ण जयदयाल डालमिया सेवा संस्थान के कृषि माहिरों से जरूर मिलता. पहले साल हुए मुनाफे को देख कर राजाराम ने अगले साल दोगुने जोश से नर्सरी पौधे तैयार करने शुरू किए. उस ने किन्नू, मौसमी, संतरा, आम, जामुन, करंज, पपीता के अलावा गुलमोहर, शीशम, देशी बबूल, नीम के हाई क्वालिटी के पौधे तैयार किए.

पौधों की क्वालिटी को देखते हुए राजाराम के पौधों की मांग राजस्थान के सभी जिलो के अलावा पड़ोसी राज्य हरियाणा में भी?बढ़ने लगी. आज हालात ये हैं कि राजाराम पौधों की मांग को पूरा नहीं कर पा रहा है.

पौधों की बढ़ती मांग को देखते हुए राजाराम आने वाले साल में तकरीबन एक लाख पौधे तैयार करेगा, जिस से उस की आमदनी भी बढ़ जाएगी.

राजाराम की कामयाबी देख कर क्षेत्र के गांव बिसाऊ व मलसीसर के किसानों ने भी नर्सरी लगाना शुरू कर दिया है. चिड़ावा क्षेत्र में फलदार पौधों की मांग को देखते हुए रामकृष्ण जयदयाल डालमिया सेवा संस्थान के सहयोग से अब तक 14 नर्सरियां लग चुकी हैं.

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फेस्टिवल स्पेशल 2019: किचन को दें ट्रेंडी लुक

किचन एक्सेसरीज की किचन में महत्वपूर्ण भूमिका होती है. आजकल ये काफी महंगे मिलने लगे है. पर किचन को ट्रेंडी लुक देने के लिए इनका इस्तेमाल करना जरुरी है. तो आइए जानते हैं कैसी होनी चाहिए आपकी किचन एक्सेसरीज.

–  जूसर-मिक्सर-ग्राइन्डर जैसी चीजें और माइक्रोवेव जैसी एक्सेसरीज किचन की शोभा बढाते हैं. माइक्रोवेव खरीदते समय एक बात का ध्यान जरूर रखना चाहिए कि माइक्रोवेव किचन के हिसाब से लें. यदि किचन छोटा है तो उसी के हिसाब से माइक्रोवेव लें.

–  चिमनी खरीदते समय कुछ बातों का ध्यान जरूर रखना चाहिए. भारत में वसा युक्त खाना ज्यादा बनता है तो इन चीजों को ध्यान में रखते हुए चिमनी ऐसी लेनी चाहिए जो धुएं पर काबू करने में कारगर हो.

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–  अगर किचन में रंगों की बात करें तो किचन की दीवारों में हमेशा हल्के रंगो का इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि किचन मे तेज रोशनी का होना बहुत जरूरी होता है और गहरे रंग अक्सर रोशनी को दबा देते हैं, इसलिए किचन में हमेशा लाइट यलों, व्हाइट, लाइट ब्लू और लाइट ग्रीन रंगों का इस्तेमाल करें.

–  किचन में सामान रखने के लिए रैक बहुत जरूरी है, पर किचन में स्पेस को ध्यान में रखते हुए रैक बनवाना चाहिए. आप वुडेन की जगह ग्लास का भी रैक बनवा सकती हैं. यह देखने में भी अच्छा लगेगा और सामान को ढूंढने में भी आपको असुविधा नहीं होगी, क्योंकि आपकों आसानी से पता चल जाएगा कि कौन-सा सामान कहां है.

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सांप सीढ़ी : भाग 1

जब से फोन आया था, दिमाग ने जैसे काम करना बंद कर दिया था. सब से पहले तो खबर सुन कर विश्वास ही नहीं हुआ, लेकिन ऐसी बात भी कोई मजाक में कहता है भला.

फिर कांपते हाथों से किसी तरह दिवाकर को फोन लगाया. सुन कर दिवाकर भी सन्न रह गए.

‘‘मैं अभी मौसी के यहां जाऊंगी,’’ मैं ने अवरुद्ध कंठ से कहा.

‘‘नहीं, तुम अकेली नहीं जाओगी. और फिर हर्ष का भी तो सवाल है. मैं अभी छुट्टी ले कर आता हूं, फिर हर्ष को दीदी के घर छोड़ते हुए चलेंगे.’’

दिवाकर की बात ठीक ही थी. हर्ष को ऐसी जगह ले जाना उचित नहीं था. मेरा मस्तिष्क भी असंतुलित हो रहा था. हाथपैर कांप रहे थे, मन में भयंकर उथलपुथल मची हुई थी. मैं स्वयं भी अकेले जाने की स्थिति में कतई नहीं थी.

पर इस बीतते जा रहे समय का क्या करूं. हर गुजरता पल मुझ पर पहाड़ बन कर टूट रहा था. दिवाकर को बैंक से यहां तक आने में आधा घंटा लग सकता था. फिर दीदी का घर दूसरे छोर पर, वहां से मौसी का घर 5-6 किलोमीटर की दूरी पर. उन के घर के पास ही अस्पताल है, जहां प्रशांत अपने जीवन की शायद आखिरी सांसें गिन रहा है. कम से कम फोन पर खबर देने वाले व्यक्ति ने तो यही कहा था कि प्रशांत ने जहर इतनी अधिक मात्रा में खा लिया है कि उस के बचने की कोई उम्मीद नहीं है.

जिस प्रशांत को मैं ने गोद में खिलाया था, जिस ने मुझे पहलेपहल छुटकी के संबोधन से पदोन्नत कर के दीदी का सम्मानजनक पद प्रदान किया था, उस प्रशांत के बारे में इस से अधिक दुखद मुझे क्या सुनने को मिलता.

उस समय मैं बहुत छोटी थी. शायद 6-7 साल की जब मौसी और मौसाजी हमारे पड़ोस में रहने आए. उन का ममतामय व्यक्तित्व देख कर या ठीकठीक याद नहीं कि क्या कारण था कि मुझे उन्हें देख कर मौसी संबोधन ही सूझा.

यह उम्र तो नामसझी की थी, पर मांपिताजी के संवादों से इतना पता तो चल ही गया था कि मौसी की शादी हुए 2-3 साल हो चुके थे, और निस्संतान होने का उन्हें गहरा दुख था. उस समय उन की समूची ममता की अधिकारिणी बनी मैं.

मां से डांट खा कर मैं उन्हीं के आंचल में जा छिपती. मां के नियम बहुत कठोर थे. शाम को समय से खेल कर घर लौट आना, फिर पहाड़े और कविताएं रटना, तत्पश्चात ही खाना नसीब होता था. उतनी सी उम्र में भी मुझे अपना स्कूलबैग जमाना, पानी की बोतल, अपने जूते पौलिश करना आदि सब काम स्वयं ही करने पड़ते थे. 2 भाइयों की एकलौती छोटी बहन होने से भी कोई रियायत नहीं मिलती थी.

उस समय मां की कठोरता से दुखी मेरा मन मौसी की ममता की छांव तले शांति पाता था.

मौसी जबतब उदास स्वर में मेरी मां से कहा करती थीं, ‘बस, यही आस है कि मेरी गोद भरे, बच्चा चाहे काला हो या कुरूप, पर उसे आंखों का तारा बना कर रखूंगी.’

मौसी की मुराद पूरी हुई. लेकिन बच्चा न तो काला था न कुरूप. मौसी की तरह उजला और मौसाजी की तरह तीखे नाकनक्श वाला. मांबाप के साथसाथ महल्ले वालों की भी आंख का तारा बन गया. मैं तो हर समय उसे गोद में लिए घूमती फिरती.

प्रशांत कुशाग्रबुद्धि निकला. मैं ने उसे अपनी कितनी ही कविताएं कंठस्थ करवा दी थीं. तोतली बोली में गिनती, पहाड़े, कविताएं बोलते प्रशांत को देख कर मौसी निहाल हो जातीं. मां भी ममता का प्रतिरूप, तो बेटा भी उन के स्नेह का प्रतिदान अपने गुणों से देता जा रहा था. हर साल प्रथम श्रेणी में ही पास होता. चित्रकला में भी अच्छा था. आवाज भी ऐसी कि कोई भी महफिल उस के गाने के बिना पूरी नहीं होती थी. मैं उस से अकसर कहती, ‘ऐसी सुरीली आवाज ले कर किसी प्रतियोगिता के मैदान में क्यों नहीं उतरते भैया?’ मैं उसे लाड़ से कभीकभी भैया कहा करती थी. मेरी बात पर वह एक क्षण के लिए मौन हो जाता, फिर कहता, ‘क्या पता, उस में मैं प्रथम न आऊं.’

‘तो क्या हुआ, प्रथम आना जरूरी थोड़े ही है,’ मैं जिरह करती, लेकिन वह चुप्पी साध लेता.

बोलने में विनम्रता, चाल में आत्मविश्वास, व्यवहार में बड़ों का आदरमान, चरित्र में सोना. सचमुच हजारों में एक को ही नसीब होता है ऐसा बेटा. मौसी वाकई समय की बलवान थीं.

मां के अनुशासन की डोरी पर स्वयं को साधती मैं विवाह की उम्र तक पहुंच चुकी थी. एमए पास थी, गृहकार्य में दक्ष थी, इस के बावजूद मेरा विवाह होने में खासी परेशानी हुई. कारण था, मेरा दबा रंग. प्रत्येक इनकार मन में टीस सी जगाता रहा. पर फिर भी प्रयास चलते रहे.

और आखिरकार दिवाकर के यहां बात पक्की हो गई. इस बात पर देर तक विश्वास ही नहीं हुआ. बैंक में नौकरी, देखने में सुदर्शन, इन सब से बढ़ कर मुझे आकर्षित किया इस बात ने कि वे हमारे ही शहर में रहते थे. मां से, मौसी से और खासकर प्रशांत से मिलनाजुलना आसान रहेगा.

पर मेरी शादी के बाद मेरी मां और पिताजी बड़े भैया के पास भोपाल रहने चले गए, इसलिए उन से मिलना तो होता, पर कम.

मौसी अलबत्ता वहीं थीं. उन्होंने शादी के बाद सगी मां की तरह मेरा खयाल रखा. मुझे और दिवाकर को हर त्योहार पर घर खाने पर बुलातीं, नेग देतीं.

प्रशांत का पीईटी में चयन हो चुका था. वह धीरगंभीर युवक बन गया था. मेरे दोनों सगे भाई तो कोसों दूर थे. राखी व भाईदूज का त्योहार इसी मुंहबोले छोटे भाई के साथ मनाती.

स्कूटर की जानीपहचानी आवाज आई, तो मेरी विचारशृंखला टूटी. दिवाकर आ चुके थे. मैं हर्ष की उंगली पकड़े बाहर आई. कुछ कहनेसुनने का अवसर ही नहीं था. हर्ष को उस की बूआ के घर छोड़ कर हम मौसी के घर जा पहुंचे.

घर के सामने लगी भीड़ देख कर और मौसी का रोना सुन कर कुछ भी जानना बाकी न रहा. भीतर प्रशांत की मृतदेह पर गिरती, पछाड़ें खाती मौसी और पास ही खड़े आंसू बहाते मौसाजी को सांत्वना देना सचमुच असंभव था.

शब्द कभीकभी कितने बेमानी, कितने निरर्थक और कितने अक्षम हो जाते हैं, पहली बार इस बात का एहसास हुआ. भरी दोपहर में किस प्रकार उजाले पर कालिख पुत जाती है, हाथभर की दूरी पर खड़े लोग किस कदर नजर आते हैं, गुजरे व्यक्ति के साथ खुद भी मर जाने की इच्छा किस प्रकार बलवती हो उठती है, मुंहबोली बहन हो कर मैं इन अनुभूतियों के दौर से गुजर रही थी. सगे मांबाप के दुख का तो कोई ओरछोर ही नहीं था.

बच्चे की जिज्ञासा से 27 साल बाद खुला रहस्य 

बच्चे जब बचपन को पीछे छोड़ किशोरावस्था में प्रवेश करते हैं तो उन में नईनई चीजों के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने की उत्सुकता होती है. अपनी इसी उत्सुकता की वजह से कभीकभी वे कई ऐसे काम कर जाते हैं, जो आयु के हिसाब से उन के लिए मना होते हैं. ब्रिटिश कोलंबिया के एक जिज्ञासु किशोर ने अपनी उत्सुकता के चलते ऐसा कारनामा किया कि उस के मातापिता ही नहीं, पुलिस भी हैरत में रह गई.

दरअसल, कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया के 13 साल के किशोर मैक्स वेरेंका को प्रकृति से बहुत प्रेम था. वह अपने गो-प्रो कैमरे से फोटो खींचता रहता था. पिछले दिनों मैक्स ग्रिफिन झील के किनारे फोटो खींच रहा था. तभी उसे पानी में कोई चमकदार चीज दिखाई दी. कुछ समझ में नहीं आया तो मैक्स अपने घर वालों को बुला लाया. उन लोगों ने पानी के अंदर जा कर करीब से देखा तो पाया वह चमकदार चीज कोई कार थी.

मैक्स के घर वालों ने इस की सूचना पुलिस को दी. पुलिस वहां पहुंच भी गई लेकिन झील का पानी बहुत गंदा था और नीचे कुछ भी नजर नहीं आ रहा था. मैक्स के मन में उत्सुकता तो थी ही, वह अपनी बात को सच भी साबित करना चाहता था.

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इसलिए उस ने पुलिस के सामने उन की मदद करने का प्रस्ताव रखा. उस ने बताया कि उस के गो-प्रो कैमरे से पानी के भीतर फोटो भी खींची जा सकती हैं और वीडियो भी बनाई जा सकती है. इस से यह पता चल जाएगा कि पानी के भीतर क्या है.

पुलिस की स्वीकृति के बाद मैक्स अपना कैमरा ले कर पानी के अंदर उतर गया. थोड़ी देर बाद वह पानी के बाहर आया तो उस के कैमरे में एक वीडियो थी. जिस झील में यह कवायद हुई, उस में चमकने वाली चीज किनारे से केवल 10 फीट दूर थी. जबकि पानी का स्तर 20 फीट था. मैक्स ने पानी के अंदर की जो वीडियो बनाई थी, उस से पता चला कि पानी में एक कार थी.

बाद में पुलिस ने जब कार को बाहर निकाला तो उस में एक महिला का कंकाल मिला. काले रंग की उस कार के नंबर को चैक किया गया तो पता चला कार जैनेट नाम की एक महिला की थी, जो 1992 में लापता हो गई थी.

गायब होने के 27 साल बाद यह रहस्य खुला कि जैनेट क्यों और कैसे लापता हो गई थी.

छानबीन में सामने आया कि 1992 में 69 वर्ष की जैनेट अकेली ही अलबर्टा में एक शादी समारोह में शामिल होने गई थी. अनुमान लगाया गया कि रास्ते में किसी जानवर को बचाने की कोशिश या अन्य किसी कारण से जैनेट कार पर नियंत्रण खो बैठी होगी और उस की कार झील में जा गिरी होगी, इसीलिए 27 साल तक उस का कोई पता नहीं चला.

बहरहाल, मैक्स वेरेंका की जानने की जिज्ञासा बहुत काम आई. अगर उस के मन की उत्सुकता ने जोर न मारा होता तो न जाने कब तक जैनेट का कंकाल और कार झील में पड़ी रहती.

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अगर आप भी हो रहे हैं मोटापा का शिकार तो पढ़ें ये खबर

आज के समय मे लोगों का रहन सहन, खान पान और दिनचर्या ऐसी होती जा रही है कि हम खुद ही बिमारियों को दावत दे रहे हैं उन बिमारियों में से एक है बढ़ता मोटापा. मोटापा आजकल ज्यादातर लोगों के लिए परेशानी का सबब बनता जा रहा है. लोग पेट की चर्बी से परेशान है. मोटे होने से हमारी उम्र भी ज्यादा दिखती है व हमारे काम करने की क्षमता भी कम हो जाती है. कुछ लोग इस परेशानी को नजरअंदाज कर देते है और बाद में यह उनके जी का जंजाल बन जाता है. यही मोटापा कई बिमारियों की जड़ भी बन जाता है मोटापे सहाइपरटेंशन, हार्ट अटैक, कैंसर कई बीमारियों का खतरा भी बढ़ाता है.

मोटापे से होने वाली बीमारियां

हाइपरटेंशन, हार्ट अटैक, कैंसर, थायराइड, मधुमेह, गठिया,  दिल की बीमारी, सांस फूलना.

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मोटापे का कारण

दुनियाभर में करीब दो तिहाई आबादी मोटापे से परेशान है, जिसका कारण गलत लाइफस्टाइल, एक्सरसाइज ना करना और खराब खान-पान आदि है. इतना ही नहीं, इनमें युवाओं और बच्चों में भी मोटापे की समस्या सबसे ज्यादा है. क्योंकि बच्चों को जंक फूड का सेवन करना पसंद होता है. पुरूषों से ज्यादा महिलाओं को होता है मोटापा. मोटापे के कारण जेनटिक अनुवांशिक भी होते है अगर माता पिता मोटे है तो बच्चा भी मोटा रहता है सही पोषक आहार न लेने से, ज्यादा तैलीय पर्दार्थ खाने से, धूम्रपान करने से, महिलाओं में गर्भावस्था के समय हार्मोनल बदलाव के होने से, मासिक धर्म हमेशा के लिये बंद होने पर व ज्यादा देर बैठे रहने से भी मोटापा होता है.

कैसे बचें

दिन भर मे 3 लीटर पानी अवश्य पिएं इससे आपका मेटाबोलिज्म ठीक होगा व शरीर के विषैले पर्दार्थ भी बहार निकलते है.

ब्रेकफास्ट, लंच, डिनर सभी समय पर खाये पौष्टिक आहार का सेवन करें, व डाइटिंग से बचें, भूखे बिलकुल न रहे ,क्योंकि भूखे रहने से मोटापा बढ़ता है.
जंक फूड को बाई बाई कहे क्योंकि यह सिर्फ मोटापा ही नहीं बल्कि शरीर में बीमारियों को बढ़ता है. चौकलेट भी मोटापा बढ़ती हैं इसलिये इसका सेवन भी न करें.

खाने मे कार्बोहाइड्रेट  की मात्र कम करें क्योंकि कार्बोहाइड्रेट वजन बढ़ता है
वजन घटाने के लिए यह बेहद जरूरी है कि आप जो कुछ भी खाएं वो रीयल फूड हो. मार्केट में बिकने वाले प्रोसेस्ड और लो-कार्ब फूड खाने से परहेज करें.

बीयर को कहें अलविदा. बीयर में ऐसे कार्बोहाइड्रेट्स पाए जाते हैं जो बहुत जल्दी पच जाते हैं और वजन बढ़ाते हैं.

मिठाई से करें परहेज

कई बार ऐसा भी होता है कि किसी हार्मोन की अनियमितता के चलते भी वजन बढ़ जाता है. ऐसे में हार्मोन चेक करा लें ताकि किसी भी तरह की आंतरिक समस्या हो तो उसका पता चल जाए.

अगर आप वजन घटाने को लेकर पूरी तरह डेस्परेट हो चुके हैं तो आप डौक्टर की सलाह से पिल्स ले सकते हैं. ऐसे डाइट सप्लीमेंट भी आते हैं जो वजन घटाने में कारगर होते हैं.

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‘बिग बौस 13’: सिद्धार्थ शुक्ला को मिली रश्मि देसाई का नौकर बनने की सजा

छोटे पर्दे का विवादित शो “बिग बौस 13” में एक से बढ़कर एक कंटेस्टेंट ने हिस्सा लिया है. जिससे दर्शकों को इस शो से काफी इंटरटेन हो रहा है. वैसे इस शो में टीवी स्टार सिद्धार्थ शुक्ला और रश्मि देसाई के बीच आए दिन अनबन देखने को मिलती रही है. दोनों एक-दूसरे से बात तो कम करते हैं. लेकिन वो आपस में झगड़ते हुए ही नजर आते हैं.

आपको बता दें, इस ‘वीकेंड के वार’  एपिसोड में एक टास्क हुआ. जिसमें रश्मि और सिद्धार्थ के बीच पावर कार्ड को लेकर टक्कर थी. इस टास्क में सिद्धार्थ और रश्मि दोनों की ही घरवालों का बराबर सपोर्ट मिला. इसके बाद सलमान खान ने घर की क्वीन देवोलीना भट्टाचार्जी को दोनों में से किसी एक को चुनने को कहा. देवोलीना ने अपनी दोस्त रश्मि देसाई को चुना. जिसकी वजह से पावर कार्ड रश्मि देसाई जीत गई.

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टास्क खत्म होने के बाद सलमान खान ने ऐलान किया कि बिग बौस ने आदेश दिया है कि सिद्धार्थ शुक्ला को रश्मि देसाई को नौकर बनाना होगा. रश्मि ये बात जानकर तुरंत ये आदेश करने से मना करती हैं. फिर सलमान कहते हैं कि बिग बौस का और्डर उन्हें मानना ही पड़ेगा.

ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि रश्मि और सिद्धार्थ इस टास्क को कैसे हैंडल करते हैं. शो के दूसरे हफ्ते कोयना मित्रा और दलजीत कौर घर से बाहर हो गई हैं. नौमिनेशन में रश्मि देसाई और शहनाज गिल भी थे. लेकिन  भरपूर वोट कारण दोनों बच गए.

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कितनी बार बौद्ध धर्म अपनाएंगी मायावती ?

30 जून 2016 को एक बयान जारी कर बसपा प्रमुख मायावती ने बौद्ध धर्म अपनाने की बात कही थी फिर 5 सितम्बर 2016 को भी उन्होंने इलाहाबाद से दहाड़ लगाई थी कि वे बौद्ध धर्म अपना लेंगी और फिर 24 अक्तूबर 2017 को भी आजमगढ़ में उन्होंने बौद्ध धर्म में जाने की बात कही थी. इस बार मायावती नागपुर से बोली हैं कि वे बौद्ध धर्म की दीक्षा ले लेंगी लेकिन हर बार की तरह इस बार भी उन्होंने अपने बहुप्रतीक्षित धर्मपरिवर्तन के बारे में यह लेकिन फिर जोड़ दिया है कि उचित समय पर.

इत्तेफाक नहीं बल्कि बात हंसी और साजिश की है कि उक्त तारीखों की तरह अभी चुनाव के वक्त ही उन्हें बौद्ध धर्म अपनाने का दौरा पड़ा और यह भी उन्होंने जोड़ा कि वे अकेली नहीं बल्कि करोड़ों दलितों के साथ बौद्ध धर्म की दीक्षा लेंगी. नागपुर बौद्ध बाहुल्य शहर है और यहीं 1956 में भीमराव अंबेडकर ने हिन्दू धर्म त्याग कर बौद्ध धर्म अपनाया था अब मायावती के पास दलितों को लुभाने कुछ बचा नहीं है लिहाजा बौद्ध दलितों को रिझाने उन्हें एक बार और बौद्ध धर्म में जाने का एलान करना पड़ा वह भी बिना इस बात का हिसाब किताब किए कि उनके बौद्ध धर्म में जाने से कौन सा हाहाकार मच जाएगा और अंबेडकर के बौद्धिस्ट बनने से कौन सी क्रांति आ गई थी यानी दलितों की बदहाली दूर हो गई थी या दूर हो गई है.

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दरअसल  आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने दशहरे के मौके पर कहा था कि सभी भारतीय हिन्दू हैं. मोहन भागवत ने और भी कई सनातनी दार्शनिकों सरीखी बातें कहीं थीं जो विनायक दामोदार सावरकर की इस थ्योरी से मेल खाती हुईं थीं कि जो भारत में पैदा हुआ है वह हिन्दू है.

पर इन कट्टर हिंदूवादियों की शाश्वत समस्या यह है कि दूसरे धर्म के अनुयायी उनसे इत्तफाक नहीं रखते खासतौर से वे धर्म जिन्हें हिन्दुओ में पसरे जातिवाद से डर लगता है और जो कथित तौर पर हिन्दू धर्म से टूटकर अस्तित्व में आए हैं. इस्लाम और इसाइयत की तो बात करना बेमानी है लेकिन सिक्ख जैन पारसी और बौद्ध भी भागवत की हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा  से सहमत नहीं हैं. कोई धर्म हिन्दू बनने के लालच में अपनी धार्मिक पहचान नहीं खोना चाहता तो इसके पीछे और आगे का सच हिन्दू धर्म की कमजोरियों और उसमें पसरे ब्राह्मणबाद है बाकी अंधविश्वासों, दिखावों, पैसा बटोरने और पाखंडों के मामले में कोई धर्म किसी से उन्नीस नहीं है.

मायावती को दरअसल में बताना जताना यह था कि वे हिन्दू हैं सो बता दिया जिसके अपने धार्मिक और राजनैतिक मायने भी हैं. मोहन भागवत के सभी हिन्दू हैं वाले बयान का सबसे ज्यादा अंदरूनी और खुला विरोध पंजाब के सिक्ख कर रहे हैं जिसे नींबू के टोटके को आस्था विज्ञान और परंपरा साबित करने तुला मीडिया जानबूझ कर नहीं दिखा और छाप रहा. सिक्खों से भी ज्यादा कट्टर जैन समुदाय के लोग भाजपा और आरएसएस के कहीं ज्यादा नजदीक हैं पर वे कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहे रहे. पारसी तो वे बेचारे अपनी कम होती आबादी को लेकर जैनियों से ज्यादा हैरान परेशान हैं और जगह जगह युवाओं से अपील कर रहे हैं कि वे वक्त पर शादी करें और प्यार भी करें फिर भले ही शादी किसी दूसरे धर्म में करें लेकिन खुद को लुप्त होने से बचाएं.

अब बारी आती है बौद्ध धर्म की तो हर कोई जानता है कि वह हिन्दू धर्म पार्ट 2 सरीखा ही है जिसमें सवर्णों के सताये दलित भरे पड़े हैं लेकिन बौद्ध बन जाने से कोई उल्लेखनीय सुधार उनकी दयनीय हालत में नहीं हुआ है. जिस मकसद से बौद्ध धर्म का निर्माण बुद्ध ने किया था उसकी आधी हवा तो ब्राह्मणों ने उन्हें अवतार घोषित कर ही निकाल दी थी और खुद का अस्तित्व बचा लिया था. फिर धीरे धीरे हिन्दू धर्म के सारे पाखंड बौद्ध धर्म में भी पसर गए.  अब वे खूब मूर्ति पूजा करते हैं, अपने मंदिर भी बनाते हैं, अपने पंडितों को दक्षिणा भी देते हैं. टोने टोटके, जादू मंतर भी करते हैं. बुद्ध जयंती पर अल्पकालिक झांकी भी लगाते हैं और मुकम्मल धूम धड़ाके से धार्मिक जुलूस और भव्य व खर्चीली शोभा यात्राएं भी निकालते हैं.

अधिकांश नव बौद्ध, बुद्ध के साथ साथ हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तिया भी रखते और पूजते  हैं यानी रग रग में बसे हिन्दू रीति रिवाज नहीं छोड़ पाते तो जाहिर है उनका बौद्ध बनना उनके किसी काम नहीं आता क्योंकि बौद्ध बन जाने के बाद ऊंची जाति वालों का नजरिया उनके प्रति बदलता नहीं है. कोई उन्हें गले नहीं लगाता और न ही उनसे रोटी बेटी के संबंध कायम करता.

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फिर बौद्ध बनने के मायने क्या यह शायद ही मायावती बता पाएं कि एक से निकलकर दूसरे नर्क में जाने से दलितों को हासिल क्या होता है असल बात तो यह है कि चमार जाति को छोड़कर अधिकतर दूसरी दलित जातियां भाजपा के साथ हो चली है और पिछड़े तो कांशीराम के वक्त में ही साथ छोड़ गए थे. पिछले लोकसभा चुनाव में जरूर इन दोनों समुदायों को फिर से  जोड़ने की कोशिश गठबंधन के जरिये हुई थी लेकिन जब नतीजे आए तो पता चला कि अब कुछ नहीं हो सकता. थोक में दलितों और पिछड़ों ने भाजपा को वोट कर जता दिया कि मायावती और अखिलेश यादव भाजपा से कम बेईमान नहीं लिहाजा भगवान वाली पार्टी क्या बुरी है जो कम से कम मोक्ष जैसी दुर्लभ चीज तो दिलबाने की बात करती है.

मायावती की भाजपा और आरएसएस को दी गई यह धौंस बेअसर साबित हो रही है तो इसकी सीधी वजह यह है कि पंडे पुजारी बसपा चला रहे हैं और मायावती सिर्फ चुनावी बातें करती हैं.  वे अब दलितों की हिफाजत की पहले सी गारंटी नहीं रहीं इसीलिए बसपा का ग्राफ लगातार गिर रहा है. अब मायावती हिन्दू रहें या बौद्ध बन जाएं इससे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला यह हकीकत भी वे समझ रहीं हैं लेकिन चूंकि नेतागिरी करते रहने ऐसे बयान जरूरी हैं इसलिए हर कभी दे देती हैं. मायावती अब मनु स्मृति पर कुछ बोलने की हिम्मत नहीं कर पातीं न ही वर्ण व्यवस्था का विरोध करती. हां यह जरूर कहती रहती हैं कि दलितों के साथ नाइंसाफी हो रही है. योगी मोदी और आरएसएस हिन्दुत्व का कार्ड खेल रहे हैं तो सुनने वाले उनकी तरफ हैरानी से देखने लगते हैं तो फिर आप क्या कर रहीं हैं.

वे लोग मूर्ति पूजा करते हैं तो आप भी तो खुद के साथ साथ बुद्ध की अंबेडकर की और कांशीराम की मूर्तियां लगवाती हैं जिन्हें देख प्रेरणा तो कोई मिलती नहीं उल्टे पूजा पाठ को जी मचलता है तो हम में और सवर्णों में फर्क क्या. वे लोग पैसा बनाते हैं तो आप भी तो करोड़ों के आलीशान महल में रहती हैं और इन्द्र जैसी सिंहासन नुमा कुर्सी पर विराजती हैं. परिवारवाद फैला रहे हैं तो बसपा कौन सा इसका अपवाद हैं आपका भतीजा बसपा का वारिस घोषित किया जा चुका है. उनके साथ ब्राह्मण हैं तो बसपा का बही खाता भी तो पंडित सतीश मिश्रा देख रहे हैं और क्या बसपा में आए ब्राह्मण भी बौद्ध धर्म अपनाएंगे यह क्यों स्पष्ट नहीं किया जा रहा. आप कश्मीर से धारा 370 हटाये जाने का समर्थन करती हैं और फिर मुसलमानों को भाजपा और आरएसएस का डर और हौव्वा भी दिखाती हैं यह कौन सी ईमानदार राजनीति की मिसाल है. जब आप दलितों को हिफाजत मुहैया नहीं करा पा रहीं तो मुसलमान आप पर क्या खाकर भरोसा करे .

अगर वाकई मायावती आरएसएस और भाजपा की मंशा को लेकर गंभीर है और उन्हें सबक सिखाना चाहती हैं तो उन्हें हिन्दू धर्म के विकल्प के रूप में इस्लाम को चुनना चाहिए क्योंकि इन दोनों ही समुदायों की आबादी 40 करोड़ के लगभग है और डरे सहमे इन दोनों वर्गों ने कभी एक साथ आने से गुरेज नहीं किया. लेकिन हिन्दुत्व मायावती के दिलोदिमाग में भी कूट कूट कर भरा है इसलिए वे बौद्ध धर्म में जाने की बात कर रहीं हैं जिससे देश जो आधा सा हिन्दू राष्ट्र बन चुका है का हिस्सा वे रहें. करोड़ों तो नहीं कोई 10-15 हजार दलित मायावती के साथ बौद्ध धर्म में जा सकते हैं बाकी करोड़ों को भाजपा ही भा रही है तो वे कुछ नहीं कर सकतीं सिवाय गीदड़ भभकी देने के जिसकी चिंता भगवा खेमा नहीं कर रहा क्योंकि बौद्ध उसका बड़ा वोट बेंक है खासतौर से महाराष्ट्र में जहां उसकी तादाद सबसे ज्यादा है.

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‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’: क्यों वेदिका को घर से बाहर निकालेगा कार्तिक?

स्टार प्लस का पौपुलर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में आए दिन लगातार धमाकेदार ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. फिलहास इस सीरियल की कहानी कायरव की कस्टडी केस के ईर्द गिर्द घुम रही है. हाल ही में आपको बताया था कि कार्तिक की वकील दामिनी मिश्रा कस्टडी केस को जीतने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है.

इस शो के आने वाले एपिसोड में  दामिनी   मिश्रा कोर्ट में प्रूफ करेगी कि जब नायरा प्रेग्नेंट थी तो वह गोवा में अकेली ही थी, ऐसे में वह बच्चा नहीं चाहती थी. यहां तक की उसने अपने बच्चे को अबौर्ट करने का फैसला भी  लिया था.

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खबरों के अनुसार, नायरा बैग पैक करती हुई नजर आएगी और जैसे ही कार्तिक को पता चलेगा, वह गुस्सा होगा. इसी बीच कैरव अपने मम्मी-पापा की लड़ाई देखेगा. और वह वहां से भागने लगेगा. ऐसे में सीढ़ियों से जाता हुए कैरव गिर जाएगा और उसे चोट भी लग जाएगी. आपको बता दें, ये सारी घटनाएं कार्तिक के सपने में होने वाली है.

जल्द ही इस शो में वेदिका का खुलासा होने वाला है. जी हां, उसके एक्स-हसबैंड की एंट्री होने वाली है. वेदिका ने अपने  बीते हुए कल के बारे में सबसे छुपाया है. लेकिन जल्द ही उसका सच सबके सामने आने वाला है.

बता दें कि सबसे पहले वेदिका के पास्ट की बातें नायरा को पता चलेगी और वह वेदिका के बारे में कार्तिक को सब कुछ बता देगी. ये बात सुनकर कार्तिक आग बबूला हो जाएगा. और वेदिका को अपने धक्के मारकर घर से बाहर निकालेगा.

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एक गुटखे के लिए हत्या!

हत्या अनेक ढंग से होती है,कभी कोई अपने परिजन की हत्या कर देता है, तो कभी कोई अपने प्रिय के लिए हत्या कर देता है. हत्या का मनोविज्ञान कुछ ऐसा है की इसे सार रूप में समझ पाना बेहद जटिल है. देश दुनिया में हत्या अर्थात मर्डर का अपराध अपने चरमोत्कर्ष पर है. आज हम आपको बताते हैं एक ऐसे मर्डर की कहानी जो बेहद छोटी सी बात पर हो गई, यह बात थी एक गुटके को लेकर सहकर्मी ने गुटका नहीं मिलने पर और असहनीय व्यवहार की परिणति हत्या करके कर दी. पुलिस 2 माह तक इस हत्याकांड की खुरद- बीन करती रही. अंततः अपराधी तक पहुंचने में कामयाब हुई. यह कहानी है छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के तिल्दा नेवरा थाना क्षेत्र की. जहां बजरंग पावर प्लांट में हुए अंधे क़त्ल की गुत्थी को पुलिस के लिए एक पहेली बन गई थी. मृतक शुभम नायक की मौत के बाद पुलिस इस मामले की लगातार जांच पड़ताल कर रही थी. आखिरकार हत्या को अंजाम देने वाले युवक को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है.

सहकर्मी ही निकला हत्यारा

इस समय हत्या का पर्दाफाश होने के बाद जो तथ्य सामने आए हैं यह बेहद चौंकाने वाले रहे. जांच अधिकारी शरत चंद्रा बताते हैं, हत्या को अंजाम देने वाला कोई और नहीं बल्कि मृतक के साथ पावर प्लांट में मजदूरी करने वाला युवक ही कातिल निकला है.

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पुलिस ने आरोपी को पकड़कर रायपुर सेंट्रल जेल भेज दिया है. थाना प्रभारी शरद चंद्रा ने बताया कि घटना 12 अगस्त 2019 की है. घटनास्थल बजरंग पावर प्लांट टंडवा में शुभम नायक 21 वर्ष निवासी ग्राम निनवा जो कि बजरंग पावर प्लांट में मजदूरी का काम किया करता था जिसको प्लांट के स्टोरेज बिल्डिंग में घायल अवस्था में मिलने से संयंत्र के द्वारा इलाज हेतु मेकाहारा रायपुर ले जाया गया था. जहां डौक्टरों ने मृत घोषित कर दिया . पुलिस की जांच पड़ताल और पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृतक की मौत का कारण हत्या होना बताया गया था. पुलिस के सामने एक अंधे कत्ल के रूप में यह प्रकरण चुनौती बनकर सामने था निरंतर विवेचना करने के पश्चात भी पुलिस को कोई सूत्र नहीं मिल रहा था कि आखिर हत्या का कारण क्या है और जब हत्यारा पकड़ में आया और उसने कारण बताए तो पुलिस ने भी आश्चर्य से दांतो तले उंगली दबा ली.

छोटी सी बात और कर की हत्या

पुलिस इस मामले की निरंतर जांच में सतत जुटी हुई थी. तिल्दा नेवरा में मृतक की हत्या के मामले में तहकीकात में लगी हुई थी. लगातार सघन जांच से कुछ तथ्य सामने आए. संयंत्र के संबंधित कर्मचारियों से एवं मृतक के परिजनों से पूछताछ की जा रही थी.

इस दौरान पूछताछ में मृतक शुभम नायक का घटना के कुछ दिन पहले ही ग्राम किरना निवासी भूपेंद्र मिर्झा जो की शुभम के साथ ही भी संयंत्र में काम करता था उसके साथ मृतक शुभम नायक का विवाद होने की जानकारी सामने आई. तत्पश्चात तिल्दा पुलिस हरकत में आ गई और भूपेंद्र मिर्झा की जानकारी में आए बिना संयंत्र से प्राप्त रिकार्ड को खंगाला गया. जिसमें जांच में पाया गया कि घटना दिनांक 12 अगस्त 2019 के बाद से भूपेंद्र मिर्झा कार्य पर उपस्थित नहीं हो रहा था. जिससे कि पुलिस के संदेह को और बल मिला. पुलिस भूपेंद्र की चुपचाप पतासाजी करती रही थी. जैसे ही पता चला कि आरोपी अपने घर में छुपा बैठा है.वैसे ही पलिस ने उसे पकड़ पूछताछ के लिए तलब किया.आरोपी पुलिस के सवालों से घबरा गया और बताया की घटना से पहले मृतक शुभम नायक से गुटका मांगने पर उसे बेइज्जत किया गया. इसके बाद दूसरी बार भी आरोपी का चार्जिंग में लगा मोबाइल निकाल कर शुभम नायक अपना मोबाइल चार्जिंग में लगा देता था. आरोपी द्वारा मना करने पर मृतक शुभम नायक ने आरोपी का मोबाइल पटक कर तोड़ भी दिया था  जिससे आरोपी भूपेंद्र को मृतक से नाराज था.इसके बाद भूपेन्द्र ने शुभम नायक से बदला लेने के लिए मौके की तलाश में रहने लगा और एक दिन जब मौका मिला तो मृतक के सिर पर लोहे की राड़ से हमला कर उसे मौत के घाट उतार दिया. हत्य़ा के बाद लोहे के प्लांट के बंकर क्रमांक 2 में साक्ष्य छुपा दिया. आरोपी भूपेंद्र के ने स्वीकार किया  कि वह मृतक को प्लांट में खुद अपने हाथ से मौत के घाट उतारा जिसे लोहे के राड को पुलिस ने जप्त कर लिया है.  आरोपी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है और ज्यूडिशियल रिमांड हेतु माननीय न्यायालय जेएमएफसी तिल्दा के न्यायालय पेश किया गया. जिसके बाद न्यायालय के आदेश पर आरोपी को रायपुर भेज दिया गया.

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भारतीय मूल के अभिजीत बनर्जी, उन की पत्नी ऐस्थर और माइकल क्रेमर को अर्थशास्त्र का नोबेल

अर्थशास्त्र के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार की घोषणा कर दी गई है. भारतीय मूल के अभिजीत बनर्जी, उनकी पत्नी ऐस्थर डफ्लो और माइकल क्रेमर को ‘वैश्विक गरीबी खत्म करने के प्रयोग’ के उन के शोध के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा.

भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक अभिजीत बनर्जी फिलहाल मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट औफ टैक्नोलौजी में अर्थशास्त्र के प्रोफैसर हैं. वह और उनकी पत्नी डफ्लो अब्दुल लतीफ जमील पौवर्टी ऐक्शन लैब के सह संस्थापक भी हैं.

अभिजीत बनर्जी ने 1981 में कोलकाता यूनिवर्सिटी से बीएससी किया था, जबकि 1983 में जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) दिल्ली से एमए किया था. इस के बाद उन्होंने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से 1988 में पीएचडी की थी.

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