30 जून 2016 को एक बयान जारी कर बसपा प्रमुख मायावती ने बौद्ध धर्म अपनाने की बात कही थी फिर 5 सितम्बर 2016 को भी उन्होंने इलाहाबाद से दहाड़ लगाई थी कि वे बौद्ध धर्म अपना लेंगी और फिर 24 अक्तूबर 2017 को भी आजमगढ़ में उन्होंने बौद्ध धर्म में जाने की बात कही थी. इस बार मायावती नागपुर से बोली हैं कि वे बौद्ध धर्म की दीक्षा ले लेंगी लेकिन हर बार की तरह इस बार भी उन्होंने अपने बहुप्रतीक्षित धर्मपरिवर्तन के बारे में यह लेकिन फिर जोड़ दिया है कि उचित समय पर.

इत्तेफाक नहीं बल्कि बात हंसी और साजिश की है कि उक्त तारीखों की तरह अभी चुनाव के वक्त ही उन्हें बौद्ध धर्म अपनाने का दौरा पड़ा और यह भी उन्होंने जोड़ा कि वे अकेली नहीं बल्कि करोड़ों दलितों के साथ बौद्ध धर्म की दीक्षा लेंगी. नागपुर बौद्ध बाहुल्य शहर है और यहीं 1956 में भीमराव अंबेडकर ने हिन्दू धर्म त्याग कर बौद्ध धर्म अपनाया था अब मायावती के पास दलितों को लुभाने कुछ बचा नहीं है लिहाजा बौद्ध दलितों को रिझाने उन्हें एक बार और बौद्ध धर्म में जाने का एलान करना पड़ा वह भी बिना इस बात का हिसाब किताब किए कि उनके बौद्ध धर्म में जाने से कौन सा हाहाकार मच जाएगा और अंबेडकर के बौद्धिस्ट बनने से कौन सी क्रांति आ गई थी यानी दलितों की बदहाली दूर हो गई थी या दूर हो गई है.

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