दिवाली का त्यौहार वैसे तो खुशियों का है लेकिन पटाखे की आवाज, धुएं और गंध से सबसे अधिक परेशान पालतू जानवर होते हैं, खासकर कुत्ते. वे तेज आवाज से घबराकर खाना छोड़ देते हैं. कहीं दुबककर बैठ जाते हैं. जो उनके शरीर के लिए मुश्किल भरा होता है.

दिवाली को मनाने के साथ-साथ पेट्स का भी ख्याल अवश्य करें ताकि आपकी खुशियां और अधिक हो. इस बारें में साउथ ईस्ट एशिया मार्स इंडिया के वाल्थम साइंटिफिक कम्युनिकेशन मैनेजर डा. कल्लाहल्ली उमेश कहती है कि दिवाली का समय पेट्स के लिए बहुत ही क्रूशियल समय होता है. जब वे समझ नहीं पाते हैं कि उन्हें करना क्या है. चारों तरफ रौशनी और आवाज उन्हें दुविधा में डाल देती है.

जैसा कि छोटे बच्चे को दिवाली के पटाखे और आवाज को समझने में समय लगता है, वैसे ही पेट्स को भी समझने में समय लगता है. खासकर अगर ‘पपी’ आपके घर में हो तो उसे अधिक सम्हालना पड़ता है. ऐसे में घर में रहने वाले लोगों को उसके इस डर को दूर भगाना पड़ता है. पेट्स को इन आवाजों से परिचय करवाने के लिए पहले से कुछ तैयारियां करनी पड़ती है.

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पेट्स को करायें आवाज से परिचय

टेप या रिकौर्ड से आवाज सुनाकर पेट्स को उस आवाज से परिचय करवाया जा सकता है.

आवाज को सुनाकर उसे कुछ मनपसंद खाना दिया जा सकता है ताकि उस आवाज से उसका ध्यान हट जाय

इस काम के लिए वेटेनरी डॉक्टर की सलाह भी लिया जा सकता है.

लेकिन अगर आपने ऐसा नहीं किया है तो पेट्स का खास ख्याल रखें, ताकि वह भी इस दिवाली में आपके साथ हो.

ऐसे करें अपने पेट्स का डर कम

पटाखे बजाने से पहले पेट्स को बाहर घूमा कर लायें.

घर की खिड़की और दरवाजे बंद रखें, पर्दा गिरा दें, ताकि रौशनी की चमक दिखायी न पड़े.

टीवी और रेडियो के वाल्यूम को थोड़ा ऊपर रखें जिससे उसे पटाखे की आवाज सुनाई न पड़े.

उसे अकेला न छोड़े बल्कि साथ में रखे और थोड़ी-थोड़ी देर बाद मनपसंद खाना दें

अगर वह अधिक सेंसिटिव है तो कानों थोड़ी रुई डाल दें.

उसे जहां बैठने की इच्छा हो उसे वही रहने दें, परेशान न करें

नेचुरल वातावरण बनाये रखने के लिए फूलों की सुगंध या लैवेंडर का छिड़काव करें

कुछ काम दिवाली को खुशनुमा बनाने के लिए कभी न करें

स्ट्रीट डौग्स के ऊपर पटाखे न फेकें, न ही उनके दुम में पटाखे बांधे, ये आपके लिए मजेदार हो सकती है पर उनके जान पर बन आती है, कई बार वे जल जाते हैं.

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पटाखों या फुलझड़ी से उन्हें डरायें नहीं, इससे डरकर वे ट्रैफिक के नीचे आकर मर सकते हैं.

अगर वे आहत हो गए हो तो उन्हें शरण दें और इलाज़ करवाएं.

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