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वर्ल्ड फूड डे: टेक्नोलौजी में करियर

वर्ल्ड फूड डे 16 अक्टूबर यानी आज ही के दिन मनाया जाता है. जी हां सुयंक्त राष्ट्रीय संघ द्वारा 16 अक्टूबर 1945 मे संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन की स्थापना की गयी थी. इस दिन को मनाने का कारण दुनिया भर में खाद्य सुरक्षा को सुरक्षित और उन्नत करना है. विश्व खाद्य दिवस 150  देशों में मनाया जाता है. इसके अलावा वर्ल्ड फूड प्रोग्राम और अंतर्राष्ट्रीय कृषि विकास कोष द्वारा भी इसे व्यापक रूप से मनाया जाता है. खाद्य और कृषि विकास का यह एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है जिसके अंतर्गत कृषि उत्पादन, वानिकी और कृषि विपणन का अध्ययन किया जाता है. इसके अलावा यह संगठन खाद्य और कृषि संबंधी ज्ञान और जानकारियों को आदान-प्रदान करने के लिए एक विश्वस्तरीय मंच भी प्रदान करता है. आज हम आपको इसी से जुड़े करियर फूड टेक्नोलौजी के बारे में बताने जा रहे हैं .

फूड टेक्नोलौजी

आज कल प्रोसेस्ड फूड मार्केट की डिमांड बहुत बढ़ गयी है इसी को देखते हुए फूड टेक्नोलौजिस्ट की डिमांड बढ़ रही है. चाहे मल्टीनेशनल कम्पनी हो या सरकारी दोनों मे फूड टेक्नोलौजिस्ट का बोलबाला है. फूड टेक्नोलौजिस्ट खाद्य वस्तुओं का स्वाद, रंग रूप हाइजीन और उनकी गुणवत्ता को देखते है और उनका स्टोरेज और एक्सपायरी जैसे मह्त्वपूर्ण कामों पर अपनी नजर बनाये रखते हैं. सीधे तौर पर कहें तो कम्पनी का भविष्य इन्हीं से जुड़ा होता है. सौफ्ट ड्रिंक, बटर, बिस्कुट, ब्रेड, आइसक्रीम, चौकलेट आज लोगों की रोजाना की जरूरत बन गये हैं और इसी को देखते हुए फूड टेक्नोलौजिस्ट कंपनियों की जरूरत बन गये है. यह दो भागों में बंटा हुआ है.

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मैनुफेक्चर्ड प्रोसेसेज और वैल्यु एडेड प्रोसेसेज

मैनुफेक्चर्ड प्रोसेसेज मे कच्चे उत्पाद जैसे अनाज, मीट, दुध सब्जियों आदि उत्पादों का भौतिक स्वरूप बदलकर उसे खाने और बिक्री योग्य बनाया जाता है.

वैल्यू एडेड प्रोसेसेज में कच्चे खाद्य उत्पादों में ऐसे कई बदलाव किए जाते है जिससे वह सुरक्षित और कभी भी खाने लायक बन जाते है. जैसे टमाटर सौस और आइसक्रीम.

योग्यता

यदि आप इस क्षेत्र से जुड़ना चाहते है तो आपको 12वीं साइंस (मैथ्स/बायो) के साथ पास करना होगा. 12वीं के बाद आप फूड टेक्नोलौजी में ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन कर सकते हैं.

प्रमुख कोर्सेस – बीएससी (औनर्स), फूड टेक्नोलौजी – बीटेक फूड टेक्नोलौजी -एमटेक फूड टेक्नोलौजी -पीजी डिप्लोमा इन फूड साइंस एंड टेक्नोलौजी – एमबीए (एग्री बिजनेस मैनेजमेंट).

नौकरी के अवसर

फूड प्रोसेसिंग यूनिट, रिटेल कंपनी, होटल्स, एग्री प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनी से जुड़कर काम कर सकते है. इसके अलावा आपको कई प्रयोगशालाओं में भी काम मिल सकता है जो खाद्य वस्तुओं पर रिसर्च और उन्हें संरक्षित करने का काम करती है.

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सैलरी

शुरुआत में 10 -15  हजार कमा सकते हैं और अनुभव के बाद 30  हजार आसानी से कमा सकते हैं. चाहे तो अपना बिजनेस भी कर सकते हैं.

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’: ‘नैतिक’ के किरदार में हो सकती है ‘करन मेहरा’ की वापसी

टीवी का मशहूर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में करन मेहरा ‘नैतिक’ के किरदार से काफी पौपुलर हुए. फैंस को उनका किरदार काफी पसंद आया था. आपको बता दें, एक बार फिर से करन मेहरा यानी नैतिक फिर से सुर्खियों में छाए हुए है.

जी हां कई  खबरों के मुताबिक में  करन मेहरा जल्द ही  इस शो में ‘ नैतिक’ के किरदार में वापसी कर सकते हैं. दरअसल एक रिपोर्ट के मुताबिक ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ के प्रोड्यूसर राजन शाही और करन मेहरा को एक अवार्ड फंक्सन के दौरान एक दूसरे के साथ देखा गया था. करन और राजन ने काफी गर्मजोशी से एक दूसरे के साथ मिलते नजर आए. इस खबर के सामने आने के बाद से ये दावा किया जा रहा है कि करन जल्द ही  इस शो में वापसी कर सकते हैं.

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“Is there anything more beautiful than the way the ocean refuses to stop kissing the shoreline, no matter how many times it's sent away” I wish we did justice to the saying. Yesterday I, along with Nisha and Kavish #twoandahalfmehras went for my 1st Beach cleanup and it was so disheartening to witness Versova beach with the amount of dirt, filth and debris around. Kavish refused to step on the beach because it was that dirty and he kept saying ‘Dirty Yuck’ throughout the entire process of the beach cleanup. It was so sad to see a two-year-old who actually realises the fact that the beach is dirty and we as adults refuse to even acknowledge that our environment is going for a toss. I would like to request each and everyone to come forward for this initiative and inspire each other. I also took long to do this and I was wondering WHY? I ask myself and take this action! Let’s save our environment. After Ganpati and Durga Visarjan it takes 2 months for these volunteers to clean the beach of it. Let’s stop using plastic, stop dumping things in the ocean, stop harming the aquatic life, stop harming the ocean, stop harming nature, stop harming Mother Earth who we owe our existence ?? Thankyou @afrozshah_ for this great initiative who every Saturday is standing with his volunteers tirelessly cleaning our beaches that we polluted. Above all thankyou @missnisharawal for pulling me into this ? ? @styleepix . . . Styled by : @khyati_dhami Assisted by : @shivanitanwar_14 Outfit by : @all2defy

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हालांकि रिपोर्ट्स के अनुसार जब करन से “ शो में वापसी” के बारे में पूछा गया तो उन्होंने इस खबर को महज एक अफवाह बताया. करन ने कहा कि, ‘हम दोनों मैसेजेस के जरिए एक दूसरे के टच में है, लेकिन उस दिन में राजन सर ने नहीं मिला था. पता नहीं ऐसी खबरें कहां से आ जाती है. करन से इस सीरियल में कमबैक के बारे में उनका क्या कहना है, तो उन्होंने कहा, अभी तक तो कुछ ऐसा प्लान नहीं है.

फिलहाल इस शो  में आए दिन लगातार धमाकेदार ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. जल्द ही इस शो में वेदिका का खुलासा होने वाला है. जी हां, उसके एक्स-हसबैंड की एंट्री होने वाली है. वेदिका ने अपने  बीते हुए कल के बारे में सबसे छुपाया है. लेकिन जल्द ही उसका सच सबके सामने आने वाला है.

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फैसला इक नई सुबह का : भाग 1

लखनऊ की पौश कौलोनी गोमतीनगर में स्थित इस पार्क में लोगों की काफी आवाजाही थी. पार्क की एक बैंच पर काफी देर से बैठी मानसी गहन चिंता में लीन थी. शाम के समय पक्षियों का कलरव व बच्चों की धमाचौकड़ी भी उसे विचलित नहीं कर पा रही थी. उस के अंतर्मन की हलचल बाहरी शोर से कहीं ज्यादा तेज व तीखी थी. उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर उस से गलती कहां हुई है. पति के होते हुए भी उस ने बच्चों को अपने बलबूते पर कड़ी मेहनत कर के बड़ा किया, उन्हें इस काबिल बनाया कि वे खुले आकाश में स्वच्छंद उड़ान भर सकें. पर बच्चों में वक्त के साथ इतना बड़ा बदलाव आ जाएगा, यह वह नहीं जानती थी. बेटा तो बेटा, बेटी भी उस के लिए इतना गलत सोचती है. वह विचारमग्न थी कि कमी आखिर कहां थी, उस की परवरिश में या उस खून में जो बच्चों के पिता की देन था. अब वह क्या करे, कहां जाए?

दिल्ली में अकेली रह रही मानसी को उस का खाली घर काट खाने को दौड़ता था. बेटा सार्थक एक कनैडियन लड़की से शादी कर के हमेशा के लिए कनाडा में बस चुका था. अभी हफ्तेभर पहले लखनऊ में रह रहे बेटीदामाद के पास वह यह सोच कर आई थी कि कुछ ही दिनों के लिए सही, उस का अकेलापन तो दूर होगा. फिर उस की प्रैग्नैंट बेटी को भी थोड़ा सहारा मिल जाएगा, लेकिन पिछली रात 12 बजे प्यास से गला सूखने पर जब वह पानी पीने को उठी तो बेटी और दामाद के कमरे से धीमे स्वर में आ रही आवाज ने उसे ठिठकने पर मजबूर कर दिया, क्योंकि बातचीत का मुद्दा वही थी. ‘यार, तुम्हारी मम्मी यहां से कब जाएंगी? इतने बड़े शहर में अपना खर्च ही चलाना मुश्किल है, ऊपर से इन का खाना और रहना.’ दामाद का झल्लाहट भरा स्वर उसे साफ सुनाई दे रहा था.

‘तुम्हें क्या लगता, मैं इस बात को नहीं समझती, पर मैं ने भी पूरा हिसाब लगा लिया है. जब से मम्मी आई हैं, खाने वाली की छुट्टी कर दी है यह बोल कर कि मां मुझे तुम्हारे हाथ का खाना खाने का मन होता है. चूंकि मम्मी नर्स भी हैं तो बच्चा होने तक और उस के बाद भी मेरी पूरी देखभाल मुफ्त में हो जाएगी. देखा जाए तो उन के खाने का खर्च ही कितना है, 2 रोटी सुबह, 2 रोटी शाम. और हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि उन के पास दौलत की कमी नहीं है. अगर वे हमारे पास सुकून से रहेंगी तो आज नहीं तो कल, उन की सारी दौलत भी हमारी होगी. भाई तो वैसे भी इंडिया वापस नहीं आने वाला,’ कहती हुई बेटी की खनकदार हंसी उस के कानों में पड़ी. उसे लगा वह चक्कर खा कर वहीं गिर पड़ेगी. जैसेतैसे अपनेआप को संभाल कर वह कमरे तक आई थी.

बेटी और दामाद की हकीकत से रूबरू हो उस का मन बड़ा आहत हुआ. दिल की बेचैनी और छटपटाहट थोड़ी कम हो, इसीलिए शाम होते ही घूमने के बहाने वह घर के पास बने इस पार्क में आ गई थी.

पर यहां आ कर भी उस की बेचैनी बरकरार थी. निगाहें सामने थीं, पर मन में वही ऊहापोह थी. तभी सामने से कुछ दूरी पर लगभग उसी की उम्र के 3-4 व्यक्ति खड़े बातें करते नजर आए. वह आगे कुछ सोचती कि तभी उन में से एक व्यक्ति उस की ओर बढ़ता दिखाई पड़ा. वह पसोपेश में पड़ गई कि क्या करे. अजनबी शहर में अजनबियों की ये जमात. इतनी उम्र की होने के बावजूद उस के मन में यह घबराहट कैसी? अरे, वह कोई किशोरी थोड़े ही है जो कोई उसे छेड़ने चला आएगा? शायद कुछ पूछने आ रहा हो, उस ने अपनेआप को तसल्ली दी. ‘‘हे मनु, तुम यहां कैसे,’’ अचकचा सी गई वह यह चिरपरिचित आवाज सुन कर.

‘‘कौन मनु? माफ कीजिएगा, मैं मानसी, पास ही दिव्या अपार्टमैंट में रहती हूं,’’ हड़बड़ाहट में वह अपने बचपन के नाम को भी भूल गई. आवाज को पहचानने की भी उस की भरसक कोशिश नाकाम ही रही. ‘‘हां, हां, आदरणीय मानसीजी, मैं आप की ही बात कर रहा हूं. आय एम समीर फ्रौम देवास.’’ देवास शब्द सुनते ही जैसे उस की खोई याददाश्त लौट आई. जाने कितने सालों बाद उस ने यह नाम सुना था. जो उस के भीतर हमेशा हर पल मौजूद रहता था. पर समीर को सामने खड़ा देख कर भी वह पहचान नहीं पा रही थी. कारण उस में बहुत बदलाव आ गया था. कहां वह दुबलापतला, मरियल सा दिखने वाला समीर और कहां कुछ उम्रदराज परंतु प्रभावशाली व्यक्तित्व का मालिक यह समीर. उसे बहुत अचरज हुआ और अथाह खुशी भी. अपना घर वाला नाम सुन कर उसे यों लगा, जैसे वह छोटी बच्ची बन गई है.

‘‘अरे, अभी भी नहीं पहचाना,’’ कह कर समीर ने धीरे से उस की बांहों को हिलाया. ‘‘क्यों नहीं, समीर, बिलकुल पहचान लिया.’’

‘‘आओ, तुम्हें अपने दोस्तों से मिलाता हूं,’’ कह कर समीर उसे अपने दोस्तों के पास ले गया. दोस्तों से परिचय होने के बाद मानसी ने कहा, ‘‘अब मुझे घर चलना चाहिए समीर, बहुत देर हो चुकी है.’’ ‘‘ठीक है, अभी तो हम ठीक से बात नहीं कर पाए हैं परंतु कल शाम 4 बजे इसी बैंच पर मिलना. पुरानी यादें ताजा करेंगे और एकदूसरे के बारे में ढेर सारी बातें. आओगी न?’’ समीर ने खुशी से चहकते हुए कहा.

‘‘बिलकुल, पर अभी चलती हूं.’’

घर लौटते वक्त अंधेरा होने लगा था. पर उस का मन खुशी से सराबोर था. उस के थके हुए पैरों को जैसे गति मिल गई थी. उम्र की लाचारी, शरीर की थकान सभीकुछ गायब हो चुका था. इतने समय बाद इस अजनबी शहर में समीर का मिलना उसे किसी तोहफे से कम नहीं लग रहा था. घर पहुंच कर उस ने खाना खाया. रोज की तरह अपने काम निबटाए और बिस्तर पर लेट गई. खुशी के अतिरेक से उस की आंखों की नींद गायब हो चुकी थी. उस के जीवन की किताब का हर पन्ना उस के सामने एकएक कर खुलता जा रहा था, जिस में वह स्पष्ट देख पा रही थी. अपने दोस्त को और उस के साथ बिताए उन मधुर पलों को, जिन्हें वह खुल कर जिया करती थी. बचपन का वह समय जिस में उन का हंसना, रोना, लड़ना, झगड़ना, रूठना, मनाना सब समीर के साथ ही होता था. गुस्से व लड़ाई के दौरान तो वह समीर को उठा कर पटक भी देती थी. दरअसल, वह शरीर से बलिष्ठ थी और समीर दुबलापतला. फिर भी उस के लिए समीर अपने दोस्तों तक से भिड़ जाया करता था.

गिल्लीडंडा, छुपाछुपी, विषअमृत, सांकलबंदी, कबड्डी, खोखो जैसे कई खेल खेलते वे कब स्कूल से कालेज में आ गए थे, पता ही नहीं चला था. पर समीर ने इंजीनियरिंग फील्ड चुनी थी और उस ने मैडिकल फील्ड का चुनाव किया था. उस के बाद समीर उच्चशिक्षा के लिए अमेरिका चला गया. और इसी बीच उस के भैयाभाभी ने उस की शादी दिल्ली में रह रहे एक व्यवसायी राजन से कर दी थी. शादी के बाद से उस का देवास आना बहुत कम हो गया. इधर ससुराल में उस के पति राजन मातापिता की इकलौती संतान और एक स्वच्छंद तथा मस्तमौला इंसान थे जिन के दिन से ज्यादा रातें रंगीन हुआ करती थीं. शराब और शबाब के शौकीन राजन ने उस से शादी भी सिर्फ मांबाप के कहने से की थी. उन्होंने कभी उसे पत्नी का दर्जा नहीं दिया. वह उन के लिए भोग की एक वस्तु मात्र थी जिसे वह अपनी सुविधानुसार जबतब भोग लिया करते थे, बिना उस की मरजी जाने. उन के लिए पत्नी की हैसियत पैरों की जूती से बढ़ कर नहीं थी.

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भूलकर भी रिलेशनशिप में रेड फ्लैग्स न करें इग्नोर

रिलेशनशिप में रेड फ्लैग्स या कहें लाल झंडी पहचानना बहुत जरूरी है. नहीं नहीं, रेड फ्लैग्स का मतलब सचमुच में लाल झंडियां नहीं है. असल में रेड फ्लैग्स वे साइन होते हैं जो आप को बताते हैं कि आप के रिलेशनशिप और पार्टनर में कौन सी बुराइयां हैं जिन्हें देखना आप के लिए बेहद जरूरी है. जिस तरह लाल झंडी देख कर ट्रेन रुक जाती है उसी तरह रिलेशनशिप में भी जब यह दिखने लगे तो आप को रुक जाना चाहिए. लोग अकसर रेड फ्लैग्स इग्नोर करते हैं जो उन के पार्टनर व रिलेशनशिप के टौक्सिक होने की सब से बड़ी वजह बनता है और आगे जा कर खुद उन्हें ही तकलीफ देता है. कोई भी रिलेशनशिप पर्फेक्ट नहीं होती लेकिन अगर उस में हद से ज्यादा बुराइयां हों तो उसे खत्म कर देना ही अच्छा होता ही. आप के पार्टनर का आप पर हाथ उठाना, ओवर पोस्सेसिव होना, हर दूसरे व्यक्ति से फ्लर्ट करते रहना रेड फ्लैग्स ही तो हैं. आप को ऐसा लगता है कि यह छोटीछोटी बाते हैं जिन्हें नजरअंदाज कर आगे बढ़ जाना चाहिए. लेकिन, यही रेड फ्लैग्स आगे चल कर इतने गहरा जाएंगे, इतने बढ़ जाएंगे कि बहुत देर हो जाएगी.

सुरभि और रमन की मुलाकात एक फैमिली फंकशन में हुई थी. रमन एक समझदार और स्मार्ट लड़का था. दोनों ने आपस में बात की तो जाना कि दोनों की पसंदनापसंद भी लगभग मिलती है. सुरभि और रमन उस समय 12वीं मे थे और उन दोनों के मातापिता को भी उन के रिश्ते से कोई ऐतराज नहीं था. सुरभि ने दिल्ली यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया तो रमन ने आईआईटी में. दोनों अब एकदूसरे को डेट करने लगे. एकदूसरे से मिलने लगे. सुरभि धीरेधीरे रमन को जानने लगी. उसे पता चला कि रमन स्वभाव का गुस्सैल है. उसे सुरभि का किसी और लड़के से बात करना तक पसंद नहीं था. सुरभि को लगता कि रमन को उस से इतना ज्यादा प्यार है कि वह उसे किसी और के साथ नहीं देख सकता. उसे इस में कुछ गलत नहीं लगा. जब रातरात भर बैठके वे दोनों एकदूसरे से बातें किया करते तो रमन अक्सर ही सो जाया करता था. कभीकभी तो यह होता कि सुरभि उस का सुबह 4  बजे तक इंतेजार करती रह जाती.

रमन सुरभि को दिनभर में सिर्फ एक मैसेज किया करता था जिस पर उस का कहना होता कि वह बिजी रहता है और उस का शैड्यूल काफी टाइट है. जब सुरभि और रमन एकदूसरे से होटल में मिलने लगे तो रमन का बिहैवियर लव मेकिंग के समय काफी ज्यादा बदल जाता. वह हिंसक हो उठता. कितनी बार तो ऐसा भी हुआ जब सुरभि को गुप्तांगो में चोट भी आई. इस पर रमन उसे सौरी कहता और बताता कि वह फलो में बह गया था जिस पर सुरभि उसे हमेशा कि तरह माफ कर देती.

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यह रमन और सुरभि का कालेज का थर्ड इयर था जब दोनों के बीच चीजे काफी ज्यादा बिगड़ने लगीं. दोनों यकीनन ही एकदूसरे से प्यार करते थे लेकिन रमन सुरभि को ऐसे ट्रीट करता था जैसे वह उस की गर्लफ्रेंड न हो कर कोई आईगई लड़की है. उस के पास सुरभि के लिए न तो टाइम था न ही उसे जताने के लिए थोड़ा सा भी प्यार. इस पर जब भी वे दोनों मिलते तो वह सैक्स के लिए हमेशा ही कहता. सुरभि की क्लास में एक लड़का था जो उसे पसंद करता था. वह सुरभि को हद से ज्यादा इम्पौर्टेन्स देता था. सुरभि को भी वह अच्छा लगा था. बस, सुरभि से एक गलती हो गई कि उस ने इस लड़के के बारे में रमन को बता दिया. रमन ने यह सुनते ही सुरभि के गालों पर जोरदार तमाचा मार दिया. रमन और सुरभि की रिलेशनशिप अब लव स्टोरी कम और हेट स्टोरी ज्यादा बन गई थी. रमन ने कोई कसर नहीं छोड़ी सुरभि को यह बताने में कि वह एक बेहया और बच्चलन लड़की है जो हर दूसरे लड़के के साथ सैक्स करने की इच्छा रखती है. वह सुरभि को केवल ताने ही नहीं दिया करता था बल्कि उस के साथ मारपीट भी करता था. वक्त बेवक्त उसे गालियां मैसेज करता.

सुरभि पूरी तरह से डिप्रेशन में चली गई. उस ने अपने दोस्तों से बातें करना बंद कर दीं. किसी लड़के के साए से भी घबरा उठती. वह रमन से ब्रेकअप करना चाहती थी लेकिन उस का प्यार उसे हमेशा ही रोक लेता. एंजाइटी और डिप्रेशन से सुरभि की हालत इतनी बुरी होने लगी कि उस की बेस्ट फ्रेंड कशिश को उस से जबर्दस्ती सब उगलवाना पड़ा. वह सुरभि को  साइकाइट्रिस्ट के पास ले कर गई. सुरभि को रिकवर करने में बहुत समय लगा. वह हर एप्पोइंटमेंट में चीखचीख कर रोती. वह अनिद्रा की शिकार हो गई. आखिरकार उसे 4 साल लगे रमन से मूवऔन करने और इन सब से बाहर निकालने में.

रेड फ्लैग्स इग्नोर करने का नतीजा

सुरभि की ही तरह बहुत से लड़के व लड़कियां हैं जो रिलेशनशिप में रेड फ्लैग्स इग्नोर करने की गलती करते हैं. हां, सभी की हालत इतनी बुरी शायद नहीं होती लेकिन दिल तो टूटता ही है, तकलीफ तो होती ही है. रिलेशनशिप हमेशा के लिए परेशानी का सबब बन कर रह जाती है.

टौक्सिक बिहेवियर को बढ़ावा देना – रेड फ्लैग्स इग्नोर करने का साफ मतलब है कि आप अपने पार्टनर के टौक्सिक बिहेवियर को बढ़ावा दे रहे हैं. आप पर आप का पार्टनर यदि एक बार हाथ उठाता है और आप उसे माफ कर देते हैं तो यकीनन ही वह एक बार फिर ऐसा करेगा. आप की गर्लफ्रेंड आप के दोस्तों से हद से ज्यादा फ्लर्ट कर रही है और आप इस पर कुछ नहीं कहेंगे तो वह बेहिचक ऐसा करती रहेगी.

खुद को मानसिक प्रताड़ना देना – आप को अपने पार्टनर के रेड फ्लैग्स दिखाई दे रहे हैं और आप फिर भी उसे कुछ नहीं कह रहे तो इस का मतलब यह नहीं कि आप इस बारे में सोचेंगे नहीं. आप के पार्टनर से जुड़ी हर बुरी चीज आप के दिमाग में जरूरत से ज्यादा घूमती रहेगी. आप हर समय टेंशन मे रहेंगे और खुद को स्ट्रैस देते रहेंगे. इस से आप की मेंटल हैल्थ पर बहुत असर पड़ेगा.

खुद को कमतर समझना – इस में तो कोई दोराय नहीं कि जब हम टौक्सिक रिलेशनशिप में होते हैं तो हर समय हमारे दिमाग  में यह चलता रहता है कि आखिर इस रिलेशनशिप में कुछ सही क्यों नहीं चल रहा है. हो सकता है गलती हमारी ही है. यह सोच आप को अंदर ही अंदर कुरेदती रहती है और आखिर में सेल्फ डाउट इतने बढ़ जाते हैं कि आप को समझ नहीं आता कि इस का हल आखिर है तो है क्या.

आप को गलत सहने की आदत हो जाती है – एक गलत व्यक्ति के साथ रहने पर आप को अपने साथ होने वाली हर गलत चीज़ सही लगने लगती है. आप को लगता है कि उस का आप को हद से ज्यादा कंट्रोल करना सही है, या पोस्सेसिव होने में भी कोई बुराई नहीं है आखिर यह तो प्यार की ही निशानी है. यह सोच असल में आप को इन गलत चीजों का आदि बना देती है.

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खुशियों से समझौता – असल में होता यह है कि जब आप अपने पार्टनर को खुश करने की हद कोशिश करने लगते हैं तो आप अपनी खुशियों के बारे में सोचना छोड़ देते हैं. आप को लगने लगता है कि अगर आप के पार्टनर को आप का किसी से बात करना नहीं पसंद तो आप को नहीं करनी चाहिए, आप के पार्टनर को आप का ड्रेसिंग सैन्स नहीं पसंद तो आप वह भी बदलने लगते हैं. आप अपने पार्टनर की खुशी के आगे अपनी खुशी भूल जाते हैं.

फेस्टिवल 2019: अबकी दीवाली मनाएं कुछ हट के

संध्या हर साल दीवाली का त्योहार अपने परिवार के साथ ही मनाती थी. वही शाम को पूजा-अर्चना, फिर घर-बाहर की दीया-बत्ती, पटाखे, खाना-पीना, पड़ोसियों-दोस्तों में मिठाईयों का आदान-प्रदान और बस लो मन गयी दीवाली. एक बारं संध्या कम्पनी के काम से लालपुर गयी थी. जिस औफिस में उसको काम था, उसके बगल वाली बिल्डिंग के लौन में उसने बहुत सारे नन्हें-नन्हें बच्चों को खेलते देखा था. पहले तो उसको लगा कि कोई छोटा-मोटा स्कूल है, मगर वहां लगे एक धुंधले से बोर्ड पर जब उसकी नजर पड़ी तो पता चला कि वह एक अनाथाश्रम है. लंच टाइम में फ्री होने पर संध्या उस अनाथाश्रम को देखने की इच्छा से भीतर चली गयी. दरअसल बच्चों के प्रति उसका खिचांव ही उसे वहां ले गया. बरसों से उसकी कोख सूनी थी. शादी के दस साल तक एक बच्चे की चाह में उसने शहर के हर डौक्टर, हर क्लीनिक के चक्कर लगा डाले थे, हर तरह की पूजा-पाठ कर ली थी, मगर उसकी मुराद पूरी नहीं हुई. धीरे-धीरे उसने अपना मन काम में लगा दिया और उसकी मां बनने की इच्छा कहीं भीतर दफन हो गयी. मगर उस दिन उन छोटे-छोटे बच्चों को लॉन में खेलता देख उसकी कामना फिर जाग उठी.

अनाथाश्रम में जीरो से सात सात तक के कोई पच्चीस बच्चे थे. बिन मां-बाप के बच्चे. जिन्हें पता ही नहीं कि परिवार क्या होता है. मां-बाप का प्यार क्या होता है. वे तो यहां बस आयाओं के रहमो-करम पर पल रहे थे. उनके इशारे पर उठते-बैठते, सोते-जागते और खेलते-खाते थे. संध्या ने देखा कि कुछ बच्चे यहां-वहां पड़े रो रहे थे, मगर उनको उठा कर छाती से चिपकाने वाला कोई नहीं था. आयाएं अपनी बातों में मशगूल थीं. संध्या ने अनाथाश्रम चलाने वाले के बारे में पूछा तो पता चला कि वह शनिवार को आते हैं और दोपहर तक रहते हैं. बाकी दिनों में अनाथाश्रम का सारा जिम्मा वहां काम करने वाली चार आयाएं ही उठाती थीं.

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उस दिन के बाद से संध्या अक्सर ही उस अनाथाश्रम में जाने लगी थी. वह जगह उसके घर से ज्यादा दूर नहीं थी. एक शनिवार जाकर वह अनाथाश्रम के मालिक से भी मिल आयी थी और उन्होंने संध्या के वहां आने और बच्चों के साथ वक्त गुजारने पर कोई आपत्ति भी नहीं जाहिर की थी. दरअसल संध्या एक बड़ी कम्पनी में अच्छी पोस्ट पर काम कर रही थी. जिसका हवाला देने पर अनाथाश्रम के मालिक पर काफी प्रभाव पड़ा था. जब संध्या ने उनसे कहा कि वह बच्चों की जरूरत की चीजें डोनेट करना चाहती है, तो यह सुनकर वह खुश हो गये थे. संध्या जल्दी ही उन नन्हें-नन्हें बच्चों के साथ घुलमिल गयी थी. संडे की शाम तो वह उन बच्चों के लिए ही खाली रखने लगी थी और बच्चे भी उसके आने का इंतजार करते थे क्योंकि वह जब भी आती थी उनके लिए चॉकलेट्स, बिस्कुट, फल और चिप्स आदि के ढेर सारे पैकेट्स लेकर आती थी.

दीवाली आने वाली थी. संध्या ने अबकी दीवाली अलग तरह से मनाने का फैसला किया था. अपनी योजना से उसने जब अपने पति और परिवार के दूसरे सदस्यों को अवगत कराया तो वह भी खुशी-खुशी उसके फैसले में शामिल हो गये. योजना था कि इस बार की दीवाली सपरिवार अनाथाश्रम के बच्चों के साथ मनाएंगे. संध्या की ननद तो उनकी योजना के बारे में सुनकर खुशी से नाच उठी. हर साल एक जैसी दीवाली मनाने से यह योजना बहुत हट कर थी. दीवाली के दो दिन पहले ही संध्या और उसकी ननद बाजार से ढेर सारे पटाखे, दीये, मिठाइयां, चौकलेट्स, फल आदि खरीद लाये थे. दीवाली के साथ-साथ जाड़ा भी दस्तक दे देता है, इसको देखते हुए संध्या ने छोटी-छोटी पच्चीस दुलाइयां भी खरीद ली थीं. वहां की आयाओं के लिए साड़ियां और मिठाइयां अलग से पैक करवा ली थीं. घर के दूसरे सदस्यों ने भी संध्या की योजना में खूब हाथ बंटाया. दीवाली वाले दिन जब संध्या की सास ने उसके सामने एक बड़ा सा बैग खोला तो उसमें चार-पांच कम्बल, नन्हें-नन्हें मोजे, टोपे, स्वेटर्स, तौलिये, पाउडर के डिब्बे, सोप वगैरह देखकर तो संध्या खुशी के मारे अपनी सास के गले लग गयी. इन सब चीजों की तो उन बच्चों को बहुत जरूरत थी. पता नहीं मां और बाबू जी कब चुपके-चुपके जाकर इतनी सारी खरीदारी कर आये थे. संध्या के पति ने भी कमाल कर दिया. शौपिंग से हमेशा दूर रहने वाले पतिदेव टोकरी भर के खिलौने खरीद लाए थे.

दीवाली वाले दिन शाम को तीन बजे संध्या का पूरा परिवार सारे सामान के साथ अनाथाश्रम की ओर रवाना हो गया. अनाथाश्रम के गेट पर जैसे ही संध्या की गाड़ी रुकी, अन्दर शोर सा मच गया – संध्या दीदी आ गयीं, संध्या दीदी आ गयीं चिल्लाते एक आया भागती हुई गेट पर पहुंच गयी. उसके पीछे कई बच्चे भी भागते आये. सारे आकर संध्या से लिपट गये. संध्या के सास-ससुर, पति और ननद यह नजारा देखकर भावुक हो उठे. संध्या ने सबका परिचय वहां के लोगों से करवाया. उस दिन अनाथाश्रम के मालिक भी अपने परिवार के साथ वहां उपस्थित थे. सबने मिलकर पूरे अनाथाश्रम में दीये और मोमबत्तियां लगायीं. बच्चे तो इतने सारे लोगों को अपने बीच देख कर बेहद उत्साहित थे. संध्या ने सारे बच्चों को इकट्ठा करके एक मजेदार कहानी भी सुनायी. फिर कई तरह के खेल खेले गये. बच्चों को जब उनके मनपसंद तोहफे मिले तो वह खुशी से झूम उठे. किसी को गुड़िया, किसी को बत्तख, किसी को बंदर तो किसी को हाथी. बच्चे एक दूसरे को अपने खिलौने दिखाते घूम रहे थे. आज पूरा अनाथाश्रम खुशी के अलग ही रंग में रंगा हुआ था. बच्चे संध्या को छोड़ते ही न थे. कोई उसकी गोद में बैठा चौकलेट खा रहा था तो कोई उसकी पीठ पर झूल रहा था. संध्या की ननद भी जब से आयी थी उनके साथ खेलने में मशगूल थी. शाम को सबने एक साथ मिलकर दीवाली की पूजा की. फिर पटाखों का डिब्बा निकाला गया और बाहर के लौन में खूब जम कर पटाखे छुड़ाए गये. खूब रोशनी की गयी. बड़े बच्चों के हाथों में फुलझड़ियां भी दी गयीं. बच्चों को मिठाइयां, फल और चौकलेट्स बांटे गये. सच पूछो तो अबकी दीवाली संध्या के परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि अनाथाश्रम के बच्चों, आयाओं और उसके मालिक के लिए भी बिल्कुल नयी और अनोखी थी.

रात को सबने इकट्ठा होकर खाना बनवाने में मदद की और खाने के बाद जब संध्या ने बच्चों के लिए लाए जरूरी सामान का बैग खोला तो अनाथाश्रम के मालिक भावुक होकर बोल पड़े – बहनजी, अगर शहर के कुछ अन्य लोग भी आपकी तरह का दिल रखते तो यह बच्चे अनाथ न कहलाते. हम अपनी हैसियत भर जो हो सकता है, इन बच्चों के लिए करते हैं मगर वह कम ही पड़ता है. जिस तरह आप इन बच्चों से जुड़ी हैं, इनको अपनापन दिया है, इनकी जरूरतों को समझा है, ऐसा कोई कोई ही समझता है. अपना त्योहार हमारे इन बच्चों के साथ मनाना बहुत बड़ी बात है और आप इनके लिए जो तोहफे और जरूरत का सामान लायी हैं वह हमारे लिए बहुत बड़ी मदद है.

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तब से संध्या हर साल दीवाली और होली इन्हीं नन्हें-मुन्नों के साथ मनाती है और इसमें हर साल उसके परिवार वाले भी शामिल होते हैं. क्या आपका दिल नहीं चाहता रुटीन से हट कर कुछ करने का? किसी के चेहरे पर मुस्कान बिखेरने का? सच्ची और असली खुशी पाने का? अगर करता है तो अपने खींचे हुए दायरों से बाहर निकलें. घर से बाहर निकलें. अपने आसपास नजर डालें. कितने वृद्धाश्रम हैं जहां मौत की कगार पर बैठे बूढ़ों की बुझती आंखों में आप अबकी त्यौहार में खुशियों की चमक पैदा कर सकते हैं. कितने अनाथाश्रम हैं जहां बच्चों को एक पैकेट फुलझड़ी की देकर आप उनकी खुशियों को आसमान पर पहुंचा सकते हैं. अगर यह न कर सकें तो देखें अपनी कॉलोनी के गार्ड को, अपनी मेड को, अपने रिक्शेवाले को, अपने ड्राइवर को… क्या इस दीवाली उनके बच्चों के लिए छोटा सा उपहार देकर आप उनके परिवार में थोड़ी सी खुशी भेज सकते हैं… अगर हां, तो इतना ही कर दीजिए… मगर इस दीवाली कुछ हट कर जरूर करिये…

चित्तशुद्धि : भाग 2

मैं उस के साथ अंदर प्रवेश करती हूं. ड्राइंगरूम एकदम साफसुथरा लग रहा है, करीने से सजा हुआ. मैं सोफे पर बैठ जाती हूं. वह फ्रिज में से पानी की बोतल निकाल कर गिलास में डालती है और मु झे दे कर मेरे पास ही बैठ जाती है. फिर ढेर सारे सवाल करती है, ‘‘और बता, तू इतनी मोटी जो हो गई, पहचानती कैसे? और तू इस शहर में क्या कर रही है? किसी रिलेटिव के पास आई है क्या? और तु झे मेरा पता कैसे मिला?’’

‘‘अरे रुक यार, कितने सवाल पूछेगी एकसाथ?’’

वह हंसने लगती है. पर मैं देख रही हूं कि उस की हंसी में स्वाभाविकता नहीं है. एकदम फीकी सी हंसी. मैं सम झ रही हूं, वह खुश नहीं है, अंदर से परेशान है.

मैं उसे बताती हूं, ‘‘मैं ने यहां कल ही समाज कल्याण अधिकारी के पद पर जौइन किया है. आज ही सुबह अखबार में तेरी खबर पढ़ी, और बेचैन हो गई. इतनी चिंतित हुई कि किसी तरह तेरा नंबर और पता लिया. पहले फोन किया, वह स्विचऔफ जा रहा था. फिर मिलने चली आई.’’

‘‘किस से मिला मेरा फोन नंबर और पता?’’

‘‘अब यह सब छोड़. वैसे सीडीओ साहब से ही मिला.’’

‘‘क्या बात है, एक ही दिन में काफी मेहरबान हो गए सीडीओ साहब?’’ उस ने व्यंग्यात्मक मजाक किया.

‘‘हां, तो क्या हुआ? भले व्यक्ति हैं. मिलनसार हैं.’’

‘‘और मोहब्बत वाले हैं,’’ यह कह कर वह फिर हंसी.

‘‘हां, हैं मोहब्बत वाले. अब तो खुश. अब तू बता, तू ने यह क्या कांड कर डाला?’’

‘‘कैसा कांड?’’

‘‘अरे, तेरी कुक ने तु झ पर मारपीट का मामला दर्ज कराया है. यह कांड नहीं है.’’

‘‘अरे, वह कुछ नहीं है, उस से मैं निबट लूंगी.’’

‘‘कैसे? यह कहेगी कि वह  झूठ बोल रही है?’’

‘‘हां, तो क्या हुआ?’’

‘‘तेरे लिए गरीब औरत के लिए कोई इज्जत नहीं है?’’

‘‘काहे की गरीब और काहे की इज्जत? क्या मेरी कोई इज्जत नहीं है? मेरा धर्म भ्रष्ट कर के चली गई?’’ उस ने क्रोध से भर कर कहा.

‘‘कैसा धर्म भ्रष्ट? क्या किया उस ने?’’

तब उस ने बताया, ‘‘मु झे एक ब्राह्मण कुक की जरूरत थी. एक व्यक्ति ने एक औरत को मेरे यहां भेजा कि यह बहुत अच्छा खाना बनाती है और ब्राह्मण भी है. उस व्यक्ति के विश्वास पर मैं ने उसे रख लिया. वह काम करने लगी. सुबह में वह नाश्ता बनाती और दोनों समय का खाना बना कर, खिला कर चली जाती थी. अचानक 6 महीने बाद उस की कालोनी की एक औरत उस से मिलने आई. मैं ने उस से पूछा, ‘तुम इसे कैसे जानती हो?’ उस ने बताया, ‘यह हमारी ही कालोनी में रहती है.’

‘‘मैं ने पूछा, ‘कौन है यह,’ तो वह बोली, ‘यादव है.’

‘‘यह सुन कर मेरे तो बदन में आग लग गई. इतना बड़ा  झूठ मेरे साथ, यह घोर अनर्र्थ था. मैं 6 महीने से एक शूद्रा के हाथों का बना खाना खा रही थी. मेरे नवरात्र के व्रत तक भ्रष्ट कर गई. मेरा सारा धर्म भ्रष्ट कर गई.’’

मैं ने कहा, ‘‘इस का मतलब है कि तु झे दूसरी औरत ने बताया कि वह कुक यादव है, तब तु झे पता चला.’’

‘‘हां, वरना मैं ब्राह्मण ही सम झती रहती.’’

‘‘और भ्रष्ट होती रहती?’’

‘‘और क्या? मु झे उस ने बचा लिया.’’

‘‘अच्छा, उस पहले व्यक्ति ने उसे ब्राह्मण बताया था.’’

‘‘हां.’’

‘‘मतलब यह कि एक ने कहा, वह ब्राह्मण है, तो तू ने उसे ब्राह्मण मान लिया, दूसरे ने कहा, वह यादव है, तो तू ने उसे यादव मान लिया. कोई तीसरा उसे चमार बताता, तो उसे मान लेती.’’

‘‘तू कहना क्या चाहती है?’’

‘‘मैं यह कहना चाहती हूं कि औरत की जाति को पहचानने का तेरे पास कोई मापदंड नहीं है. जो भी जाति औरत अपनी बताएगी, या दूसरा व्यक्ति बताएगा, तू उसी पर विश्वास करेगी.’’

अब वह घूम गई, क्योंकि कोई जवाब उस के पास नहीं है. मैं ने कहा, ‘‘सरला, औरत के वर्ग की कोई पहचान नहीं है.’’

‘‘क्यों नहीं है?’’ उस ने बहस में अपने अज्ञान को निरर्थक छिपाने का प्रयास किया.

‘‘बता क्या पहचान है? किस चीज से पहचानेगी – चेहरे से? भाषा से? पहनावे से?’’

वह मौन रही.

‘‘अच्छा, तू बता, तेरी क्या पहचान है? तू कैसे साबित करेगी कि तू ब्राह्मण है?’’ मैं ने तर्क किया, ‘‘पुरुष तो अपना जनेऊ दिखा कर साबित कर देगा, पर औरत क्या दिखा कर साबित करेगी कि वह ब्राह्मण है?’’

वह सोच में पड़ गई थी. गरम लोहा देख कर मैं ने फिर तर्क का प्रहार किया, ‘‘क्या तेरा जनेऊ हुआ है?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘मेरा भी नहीं हुआ है,’’ मैं ने कहा, ‘‘तू धर्म को ज्यादा सम झती है. जिस का जनेऊ नहीं होता, उसे क्या कहते हैं?’’

वह चुप.

मैं ने कहा, ‘‘उसे शूद्र कहते हैं. तब बिना जनेऊ के तू भी शूद्रा हुई कि नहीं? मैं भी शूद्रा हुई कि नहीं?’’

उस का ब्राह्मण अहं आहत हो गया, तुरंत बोली, ‘‘एक ब्राह्मणी शूद्रा कैसे हो सकती है?’’

‘‘नहीं हो सकती न, फिर सम झा तू, किस तरह ब्राह्मण है?’’

‘‘मेरे पिता ब्राह्मण हैं, दादा ब्राह्मण थे, मेरी मां ब्राह्मण हैं,’’ उस ने तर्क दिया.

मैं ने कहा, ‘‘यह कोई तर्कनहीं है. तेरे पिता और दादा ब्राह्मण हो सकते हैं, पर तेरी मां भी ब्राह्मण हैं, इस का दावा तू कैसे कर सकती है? खुद तेरी मां भी ब्राह्मण होने का दावा नहीं कर सकती.’’

‘‘तू कैसी अजीब बातें कर रही है, क्यों नहीं कर सकती मेरी मां ब्राह्मण होने का दावा?’’ उस ने क्रोध में जोर दे कर कहा.

‘‘क्योंकि वे औरत हैं, इसलिए.’’

‘‘मतलब?’’

मतलब यह है कि औरत उस तरल पदार्थ की तरह है, जो जिस बरतन में रखा जाता है, वह उसी का रूप धारण कर लेता है. औरत अपने पिता या पति के वर्ग से जानी जाती है, उस का अपना कोई वर्ण नहीं होता है. वह ब्राह्मण से विवाह करने पर ब्राह्मणी, ठाकुर से विवाह करने पर ठकुरानी, लाला से विवाह करने पर लालानी होगी, और शूद्र वर्ण में जिस जाति से विवाह करेगी, उस की भी वही जाति मानी जाएगी. सरला, मैं फिर कह रही हूं कि औरत का अपना कोई वर्ण नहीं होता है.’’

वह मौन हो कर सुन रही थी. पर मैं सम झ रही थी कि उसे यह अच्छा नहीं लग रहा था. मैं ने अपनी बात जारी रखी, ‘‘तुम्हारी मां भी तुम्हारे पिता के वर्ण से ब्राह्मण हैं, और दादी भी तुम्हारे दादा के वर्ण से ब्राह्मण थीं. इस से पहले की पीढि़यों के बारे में भी जहां तक तुम्हें याद है, वहीं तक बता सकती हो. उस के बाद वह भी नहीं.’’

मैं ने आगे कहा, ‘‘तू ऋतु को तो जानती होगी. अभी पिछले महीने उस की किन्हीं प्रोफैसर शर्मा से शादी हुई है.’’

‘‘इस में अचरज क्या है?’’ अब उस ने पूछा.

‘‘सरला, अचरज यह है कि ऋतु की मां ब्राह्मण नहीं थीं. रस्तोगी जाति की थीं, जिसे शायद सुनार कहते हैं. फिर वह एक शूद्रा की बेटी हुई कि नहीं? पर चूंकि उस के पिता भट्ट थे, इसलिए वह भी ब्राह्मण है. अब उस के बच्चे भी भट्ट ब्राह्मण कहलाएंगे, क्योंकि दूसरी पीढ़ी में वह ब्राह्मण हो गई. इसलिए सरला, यह ब्राह्मण का भूत दिमाग से निकाल दे.’’

पर हार कर भी सरला हार मानने को तैयार नहीं थी. उस ने गुण का सवाल खड़ा कर दिया, ‘‘तो क्या ब्राह्मण का कोई गुण नहीं होता?’’

अनजाने में यह उस ने एक अच्छा प्रश्न उठा दिया था. मु झे उसे निरुत्तर करने का एक और अवसर मिल गया. मैं ने कहा, ‘‘इस का मतलब है, तू ने यह मान लिया कि ब्राह्मण गुण से होता है?’’

‘‘बिलकुल, इस में क्या शक है?’’

‘‘गुड, अब यह बता, ब्राह्मण के गुण क्या हैं?’’

‘‘ब्राह्मण के गुण?’’

‘‘हां, ब्राह्मण के गुण?’’

‘‘क्या तू नहीं जानती?’’

‘‘हां, मैं नहीं जानती. तू बता?’’ फिर मैं ने कहा, ‘‘अच्छा छोड़, यह बता, ब्राह्मण के कर्म क्या हैं.’’

‘‘वेदों का पठनपाठन और दान लेना.’’

‘‘गुड, और ब्राह्मणी के?’’

‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि यह कर्म जो तू ने बताए हैं, वे तो ब्राह्मण के कर्म हैं. ब्राह्मणी के कर्म क्या हैं?’’

‘‘ब्राह्मण और ब्राह्मणी एक ही बात है.’’

‘‘एक ही बात नहीं है, सरला. स्त्री के रूप में ब्राह्मणी वेदों का पठनपाठन नहीं कर सकती. उस का कोई संस्कार भी नहीं होता. वह यज्ञ भी नहीं कर सकती. एक ब्राह्मणी के नाते क्या तू यह सब कर्म करती है?’’

‘‘नहीं, मेरी इस में कोई रुचि नहीं है.’’

‘‘वैरी गुड. अब तू ने सही बात कही. यार, तबीयत खुश कर दी. अब मैं तु झे बताती हूं कि शास्त्रों में ब्राह्मण का गुण भिक्षाटन कर के जीविका कमाना है. तू नौकरी क्यों कर रही है? यह तो ब्राह्मण का गुण नहीं है.’’

‘‘यार, तेरी बातें तो अब मु झे सोचने पर मजबूर कर रही हैं. मैं इतनी पढ़ीलिखी, क्यों भीख मांगूंगी? यह तो व्यक्ति की क्षमताओं का तिरस्कार है.’’

‘‘व्यक्ति की क्षमताओं का ही नहीं, गुणों का भी.

‘‘हर व्यक्ति में ब्राह्मण है, क्षत्रिय है, वैश्य है और शूद्र है. गुण के आधार पर वह स्त्री ब्राह्मण है, जिसे तू ने शूद्रा मान कर मारपीट कर निकाल दिया. उसे अगर पढ़नेलिखने का अवसर मिलता और बौस बन कर तेरे ऊपर बैठी होती, तो क्या तू तब भी उस से नफरत करती? लेकिन मैं जानती हूं, तू तब भी करती. तेरे जैसे अशुद्ध चित्त वाले जातीय अभिमानी लोग ही समाज को रुढि़वादी बनाए हुए हैं.’’

वह गुमसुम बैठी थी. मैं ने कहा, ‘‘यार, तू ने तो चाय भी नहीं पिलाई. चल, आज मैं ही तु झे चाय बना कर पिलाती हूं.’’ यह कह कर मैं उस के किचन में चली जाती हूं.

ऐसे बनाएं ककोरा की कुरकुरी सब्जी

 पिंटू मीना पहाड़ी

ककोरा एक जंगली फल है. जंगलों के साथसाथ खेत की मेंड़ों पर पहली बारिश होने के साथ ही यह पैदा होने लगता है. यह कहां और किस के खेत में पैदा होगा, यह नहीं कहा जा सकता. जंगलों में भी जहां झाडि़यां ज्यादा होती हैं, वहां यह आसानी से पैदा हो जाता है. इस की एक खूबी और भी है, जितनी अच्छी बारिश होगी, उतनी ही ककोरा की पैदावार भी अच्छी होगी. फल तोड़ लेने के बाद ककोरा की बेल से फिर से फल आने लगते हैं.

भारत के ज्यादातर हिस्सों में मिलने वाली इस सब्जी को केकरोल, काकरोल और दूसरे कई नामों से जाना जाता है. इस में कैलोरी कम होती है. इस वजह से यह फल वजन घटाने वालों के लिए  काफी बेहतर है. फाइबर से भरपूर ककोरा पाचन तंत्र को सही रखता है. इस फल में अनेक पौष्टिक तत्त्व होते हैं.

कैंसर की रोकथाम में मददगार : इस फल में मौजूद ल्यूटेन जैसे केरोटोनाइड्स, विभिन्न नेत्र रोग, दिल की बीमारी और यहां तक कि कैंसर की रोकथाम में यह मददगार है.

सर्दीखांसी में राहत दिलाए : इस में एंटीएलर्जिक तत्त्व होते हैं, जो सर्दीखांसी से राहत देने और इसे रोकने में मददगार साबित होते हैं.

सेहत सुधारने में सहायक : ककोरा में मौजूद फाइटोकैमिकल्स सेहत को सुधारने में मदद करते हैं. एंटीऔक्सीडैंट से भरपूर इस सब्जी से शरीर को साफ रखने में मदद मिलती है.

वजन घटाने वालों के लिए अच्छी : प्रोटीन और आयरन से भरपूर ककोरा में कम मात्रा में कैलोरी होती है. 100 ग्राम ककोरा में केवल 17 फीसदी कैलोरी होती है. इस वजह से यह वजन घटाने वालों के लिए बेहतर विकल्प है. यह फल ब्लड शुगर को कम करने और डायबिटीज को नियंत्रित करने में सहायक है.

पाचन तंत्र को सही रखने में होता है मददगार : इस की सब्जी में भरपूर मात्रा में फाइबर और एंटीऔक्सीडैंट होते हैं. इस वजह से यह आसानी से हजम हो जाती है. ये मानसून में कब्ज और इंफैक्शन को नियंत्रित कर आप के पेट को सही रखती है.

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छोटे ककोरा की सब्जी

सामग्री

250 ग्राम ककोरा, 1-2 टेबल स्पून तेल, 1 पिंच हींग, एकचौथाई छोटी चम्मच जीरा, एकचौथाई छोटी चम्मच से कम हलदी पाउडर, 2 छोटीछोटी कटी हुई हरी मिर्च, 1 इंच लंबा टुकड़ा अदरक (कद्दूकस किया हुआ), आधा छोटी चम्मच धनिया पाउडर, नमक व लाल मिर्च स्वादानुसार, अमचूर पाउडर एकचौथाई चम्मच से भी कम.

बनाने की विधि

ककोरा को साफ पानी में अच्छी तरह धो कर 4 टुकड़े काट लें. कड़ाही में तेल डाल कर गरम कीजिए, गरम तेल में हींग और जीरा डाल कर भूनिए.

जीरा भूनने के बाद हलदी पाउडर, हरी मिर्च, अदरक, धनिया पाउडर और सौंफ पाउडर डालिए और मसाले को हलका भूनिए.

अब कटे हुए ककोरे, नमक और लाल मिर्च पाउडर डाल कर तेज गैस पर इसे 2 मिनट तक अच्छी तरह भूनिए. एक टेबल स्पून पानी डालिए और ढक कर 5 मिनट के लिए धीमी आग पर पकने दीजिए.

अब ढक्कन खोलिए, ककोरा को चैक कीजिए. अगर यह अभी तक ठीक से नरम नहीं हुए हैं, तो 3-4 मिनट और धीमी आंच पर ढक कर पकने दीजिए.

लीजिए, सब्जी बन कर तैयार है और ककोरे भी अब अच्छी तरह से नरम हो गए हैं. खुले ककोरे तेज गैस पर 2 मिनट तक और पका लीजिए, बीच में चमचे से चलाते रहिए. सब्जी में अमचूर पाउडर और हरा धनिया डाल कर अच्छी तरह मिला दीजिए.

ककोरे की कुरकुरी सब्जी खाने के लिए तैयार है. सब्जी को कटोरे में निकालिए और गरमागरम परांठे या चपाती के साथ खाइए.

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सर्दियों में खाएं ये चीजें तो रहेंगे सेहतमंद

मौसम करवट बदल रहा है. अब गर्मी से राहत मिलने लगी है और सर्दियों का आगमन होने लगा है . सर्दियों के मौसम में सेहत का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है. सर्दी से बचने के  लिये केवल गर्म कपड़े ही काफी नहीं है. बल्कि जरूरी है कि शरीर में अंदरूनी गर्माहट बनी रहे जिस के लिये हमें  अपने खान पान का ध्यान रखना अति आवश्यक है. अगर हमारा आहार पौष्टिक और शरीर को गर्माहट देने वाला होगा तो हमारी सेहत भी ठीक रहेगी व हम अपने शरीर को सर्दी से होने वाले संक्रमण से भी बचा सकते हैं. ज्यादातर लोगों  के साथ यह परेशानी होती है की सर्दी जुखाम, खासी की गिरफ्त में जल्दी ही आ जाते हैं. इसका कारण इम्युनिटी सिस्टम का कमजोर होना भी  होता है सर्दियों में  खास तौर पर बच्चों का ध्यान अधिक रखना होता है. सर्दियों के मौसम में  हमें सामान्य से 500 कैलोरी  अधिक लेनी चाहिये क्योंकि हमारा मेटाबोलिज्म रेट बढ़ जाता है जिस कारण हमें ज्यादा ऊर्जा की आवश्यकता होती है. हर मौसम में मौसमी सब्जी, फल, नट्स अपनी एक अलग अहमियत रखते है. यह हमारे शरीर के तापमान को मौसम के अनुसार बना कर रखते  हैं. सर्दियों में हमारा रक्त संचार धीमी गति से होता है , जिस कारण ब्लड ब्लड प्रेशर की समस्या हो जाती है. इससे निबटने के लिये जरूरी है कि खान पान का अधिक ध्यान रखा जाये.

रोजाना खाये गुड़

गुड़ की तासीर गर्म होती है जिससे शरीर का तापमान ठीक रहता है इसमें कैल्शियम व मैग्नीशियम तत्व पाए जाते हैं जो हड्डियों के साथ मांसपेशियों व नसों की थकान को दूर करता है. गुड़ खाने  से पाचन तंत्र तंदरुस्त रहता है डायबिटीज के शिकार लोग चीनी की जगह मीठे के रूप में गुड़ खा सकते हैं क्योंकि यह नैचुरल शुगर है.

बाजरा व मक्का  करें डाइट मे शामिल  

बाजरा न केवल ऊष्मा देता है बल्कि यह  एक बहुत पौष्टिक आहार है. यह हमारे रक्त मे कोलेस्ट्रौल के स्तर को संतुलित रखता है यह रोटी खिचड़ी पुलाव के रूप मे खाया जाता है वहीं मक्का डायबेटिज के मरीजों के लिये बहुत लाभदायक होता है इसमें  विटामिन ए, बी व पोषक तत्व मौजूद होते हैं. इसे रोटी , सब्जी ,स्वीट कौर्न व पौप कौर्न के रूप मे खाया जाता है.

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 मूंगफली खाकर हड्डियां करें मजबूत

मूंगफली मे कैल्शियम और विटामिन डी होता है जो कि हड्डियों को कमजोर नहीं होने देता . इसके सेवन से कोलेस्ट्रौल का स्तर सही रहता है व खून की कमी नहीं होने देता. रोजाना सेवन से पाचन तंत्र ठीक रहता है मूंगफली का तेल जोड़ो की मालिश के लिये बहुत लाभदायक होता है. मूंगफली खाते समय उसका लाल छिलका उतार कर खाएं व  खाने के बाद आधा घंटे  तक पानी न पिये. क्योंकि छिलके समेत खाने से खांसी  की समस्या हो सकती है.

सरसों का साग खाएं

सर्दियां हो साग नहीं खाया तो क्या सर्दियों का  क्या मजा आया. जी हां साग स्वादिष्ट तो होता ही है और पौष्टिक भी सरसोें के साग में कैल्शियम और पोटाशियम मौजूद होता है जो कि हड्डियों को मजबूती देता है.  विटामन के, ओमेगा 3 फैटी एसिड पाए जाते हैं जो गठिए के रोग और शरीर के किसी भी भाग में सूजन से राहत दिलाने का काम करता है.

गाजर खाकर रहे तंदरुस्त

गाज़र  दिल, दिमाग, नस के साथ-साथ हेल्‍थ के लिए भी फायदेमंद है. इसमें विटामिन A, B,C,D,E, G और K पाए जाते हैं जिससे हमारी बौडी को काफी सारे न्‍यूट्रिएंट्स मिल जाते हैं. इसमें बीटा-कैरोटीन भी पाए जाते हैं क्योंकि ये  लाल, गहरे हरे, पीली  या फिर नारंगी रंग की सब्जी में पाया जाता है. एक गाजर  किसी व्यक्ति के भी शरीर में विटामिन-A की दैनिक खपत का 300 % ज्यादा पूर्ति करती है.गाजर हमें रतौंधी,कैंसर ,जैसी बिमारियों से बचाती है इससे  ब्लड कोलेस्ट्रौल कन्ट्रोल रहता है.

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देश की पहली नेत्रहीन महिला IAS के बारे में जानिए दिलचस्प कहानी

मन में हौसला हो और कुछ कर दिखाने का जज्बा तो कुछ भी नामुमकिन नहीं. अलबत्ता यह जज्बा और जोश पोगापंथियों को ठोकर मार खुद को नई पहचान देने की हो तो बात ही क्या.

कहते हैं, भारत जैसे देश में जहां अधिकांश लोग अब भी धर्म, पूजापाठ, अंधविश्वास के आगे हथियार डाल कर अपना भविष्य बेकार कर लेते हैं, वहीं महाराष्ट्र की रहने वाली प्रांजल पाटिल ने आंखों की रोशनी जाने के बाद न तो हिम्मत हारी और न ही किसी की दया का पात्र बन कर जीवन काटने जैसा रास्ता अपनाया. उन्होंने पढाई से दोस्ती कर ली, किताबों से बातें करना सीख लिया.

मेहनत ने दिलाई सफलता

कुछ लोगों ने इसका मजाक भी उङाया होगा, किसी ने संवेदनाएं जताई होंगी पर होना तो वही था, जिसे प्रांजल मन ही मन में ठान चुकी थी.

प्रांजल ने अपने पहले ही प्रयास में यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा में 773वां रैंक हासिल कर दूसरों के लिए मिसाल बन गईं. ऐसा कर वे देश की पहली नेत्रहीन महिला आईएएस बनने का गौरव पाई हैं.

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अचानक चली गई आंखों की रौशनी

महाराष्ट्र के उल्लासनगर की रहने वाली प्रांजल बचपन से ही काफी मेधावी थीं. दिक्कत यह था कि प्रांजल की आंखों की रोशनी कमजोर थी. मातापिता ने कई अस्पतालों के चक्कर लगाए पर 6 साल होतेहोते उस की आंखों की रोशनी पूरी तरह चली गई.

जिंदगी अब पूरी तरह बदल चुकी थी पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपना लक्ष्य निर्धारित कर जम कर मेहनत करने लगीं.

शुरुआती शिक्षा

प्रांजल की शुरुआती शिक्षा मुंबई के श्रीमती कमला मेहता स्कूल से पूरी हुई. इस स्कूल में ब्रेल लिपि में शिक्षा दी जाती है. प्रांजल ने 10वीं की शिक्षा इस स्कूल से लेने के बाद 12वीं की पढ़ाई चंदाबाई से पूरी की और फिर आगे की पढ़ाई सेंट जेवियर कालेज, मुंबई और फिर एमए की पढाई जेएनयू, दिल्ली से पूरी की.

साबित किया खुद को

प्रांजल ने अपनी बेहतरीन क्षमता से यह साबित कर दिया है कि शारीरिक अक्षमता कैरियर बनाने और सपने पूरे करने में बाधक नहीं होते. यही वजह है कि शारीरिक रूप से अक्षम लोग न सिर्फ शिक्षा बल्कि खेलों में भी सफलता के झंडे गाड़ रहे हैं.

समाज का बङा तबका भी अब अपनी सोच में परिवर्तन ला चुका है और दिव्यांगों को अब पहले से बेहतर माहौल मिलने लगा है.

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ये कैसा बदला ?

चीचली गांव कहने भर को ही भोपाल का हिस्सा है, नहीं तो बैरागढ़ और कोलार इलाके से लगे इस गांव में अब गिनेचुने घर ही बचे हैं. बढ़ते शहरीकरण के चलते चीचली में भी जमीनों के दाम आसमान छू रहे हैं. इसलिए अधिकतर ऊंची जाति वाले लोग यहां की अपनी जमीनें बिल्डर्स को बेच कर कोलार या भोपाल के दूसरे इलाकों में शिफ्ट हो गए हैं.

इन गिनेचुने घरों में से एक घर है विपिन मीणा का. पेशे से इलैक्ट्रिशियन विपिन की कमाई भले ही ज्यादा न थी, लेकिन घर को घर बनाने में जिस संतोष की जरूरत होती है वह जरूर उस के यहां था.  विपिन के घर में बूढ़े पिता नारायण मीणा के अलावा मां और पत्नी तृप्ति थी. लेकिन घर में रौनक साढ़े 3 साल के मासूम वरुण से रहती थी. नारायण मीणा वन विभाग से नाकेदार के पद से रिटायर हुए थे और अपनी छोटीमोटी खेती का काम देखते हैं.

इस खुशहाल घर को 14 जुलाई, 2019 को जो नजर लगी, उस से न केवल विपिन के घर में बल्कि पूरे गांव में मातम सा पसर गया. उस दिन शाम को विपिन जब रोजाना की तरह अपने काम से लौटा तो घर पर उस का बेटा वरुण नहीं मिला.

उस समय यह कोई खास चिंता वाली बात नहीं थी क्योंकि वरुण घर के बाहर गांव के बच्चों के साथ खेला करता था. कभीकभी बच्चों के खेल तभी खत्म होते थे, जब अंधेरा छाने लगता था.

थोड़ी देर इंतजार के बाद भी वरुण नहीं लौटा तो विपिन ने तृप्ति से उस के बारे में पूछा. जवाब वही मिला जो अकसर ऐसे मौकों पर मिलता है कि खेल रहा होगा यहीं कहीं बाहर, आ जाएगा.

विपिन वरुण को ढूंढने अभी निकला ही था कि घर के बाहर उस के पिता मिल गए. उन से पूछने पर पता चला कि कुछ देर पहले वरुण चौकलेट खाने की जिद कर रहा था तो उन्होंने उसे 10 रुपए दिए थे.

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चूंकि शाम गहराती जा रही थी और विपिन घर के बाहर आ ही गया था, इसलिए उस ने सोचा कि दुकान नजदीक ही है तो क्यों न वरुण को वहीं जा कर देख लिया जाए. लेकिन वह उस वक्त चौंका जब वरुण के बारे में पूछने पर जवाब मिला कि वह तो आज उस की दुकान पर आया ही नहीं.

घबराए विपिन ने इधरउधर नजर दौड़ाई तो उसे कोई बच्चा खेलता नजर नहीं आया, जिस से वह बेटे के बारे में पूछता. एक बार घर जा कर और देख लिया जाए, शायद वरुण आ गया हो. यह सोच कर वह घर की तरफ चल पड़ा.

घर आने पर भी विपिन को निराशा ही हाथ लगी क्योंकि वरुण अभी भी घर नहीं आया था. लिहाजा अब पूरा घर परेशान हो उठा. उसे ढूंढने के लिए विपिन ने गांव का चक्कर लगाया तो जल्द ही उस के लापता होने की बात भी फैल गई और गांव वाले भी उसे ढूंढने में लग गए.

रात 10 बजे तक सभी वरुण को हर उस मुमकिन जगह पर ढूंढ चुके थे, जहां उस के होने की संभावना थी. जब वह कहीं नहीं मिला और न ही कोई उस के बारे में कुछ बता पाया तो विपिन सहित पूरा घर किसी अनहोनी की आशंका से घबरा उठा.

वरुण की गुमशुदगी को ले कर तरहतरह की हो रही बातों के बीच गांव वालों ने एक क्रेटा कार का जिक्र किया, जो शाम के समय गांव में देखी गई थी. लेकिन उस का नंबर किसी ने नोट नहीं किया था.

हालांकि चीचली गांव में बड़ीबड़ी कारों का आना कोई नई बात नहीं है, क्योंकि अकसर प्रौपर्टी ब्रोकर्स ग्राहकों को जमीन दिखाने यहां लाते हैं. लेकिन उस दिन वरुण गायब हुआ था, इसलिए क्रेटा कार लोगों के मन में शक पैदा कर रही थी.

थकहार कर कुछ गांव वालों के साथ विपिन ने कोलार थाने जा कर टीआई अनिल बाजपेयी को बेटे के गुम होने की जानकारी दे दी. उन्होंने वरुण की गुमशुदगी दर्ज कर तुरंत वरिष्ठ अधिकारियों को इस घटना से अवगत भी करा दिया.

टीआई पुलिस टीम के साथ कुछ ही देर में चीचली गांव पहुंच गए. गांव वालों से पूछताछ करने पर पुलिस का पहला और आखिरी शक उसी क्रेटा कार पर जा रहा था, जिस के बारे में गांव वालों ने बताया था.

पूछताछ में यह बात उजागर हो गई थी कि मीणा परिवार की किसी से कोई रंजिश नहीं थी जो कोई बदला लेने के लिए बच्चे को अगवा करता और इतना पैसा भी उन के पास नहीं था कि फिरौती की मंशा से कोई वरुण को उठाता.

तो फिर वरुण कहां गया. उसे जमीन निगल गई या फिर आसमान खा गया, यह सवाल हर किसी की जुबान पर था. क्रेटा कार पर पुलिस का शक इसलिए भी गहरा गया था क्योंकि कोलार के बाद केरवा चैकिंग पौइंट पर कार में बैठे युवकों ने खुद को पुलिस वाला बता कर बैरियर खुलवा लिया था और दूसरा बैरियर तोड़ कर वे कार को जंगलों की तरफ ले गए थे.

चीचली और कोलार इलाके में मीणा समुदाय के लोगों की भरमार है, इसलिए लोग रात भर वरुण को ढूंढते रहे. 15 जुलाई की सुबह तक वरुण कहीं नहीं मिला और लाख कोशिशों के बाद भी पुलिस कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाई तो लोगों का गुस्सा भड़कने लगा.

यह जानकारी डीआईजी इरशाद वली को मिली तो वह खुद चीचली पहुंच गए. उन्होंने वरुण को ढूंढने के लिए एक टीम गठित कर दी, जिस की कमान एसपी संपत उपाध्याय को सौंपी गई. दूसरी तरफ एसडीपीओ अनिल त्रिपाठी के नेतृत्व में एक पुलिस टीम जंगलों में जा कर वरुण को खोजने लगी.

पुलिस टीम ने 15 जुलाई को जंगलों का चप्पाचप्पा छान मारा लेकिन वरुण कहीं नहीं मिला और न ही उस के बारे में कोई सुराग हाथ लगा. इधर गांव भर में भी पुलिस उसे ढूंढ चुकी थी. एक बार नहीं कई बार पुलिस वालों ने गांव की तलाशी ली लेकिन हर बार नाकामी ही हाथ लगी तो गांव वालों का गुस्सा फिर से उफनने लगा.

बारबार की पूछताछ में बस एक ही बात सामने आ रही थी कि वरुण अपने दादा नारायण से 10 रुपए ले कर चौकलेट खरीदने निकला था, इस के बाद उसे किसी ने नहीं देखा. इस से यह संभावना प्रबल होती जा रही थी कि हो न हो, बच्चे को घर से निकलते ही अगवा कर लिया गया हो.

विपिन का मकान मुख्य सड़क से चंद कदमों की दूरी पर पहाड़ी पर है, इसलिए यह अनुमान भी लगाया गया कि इसी 50 मीटर के दायरे से वरुण को उठाया गया है.

लेकिन वह कौन हो सकता है, यह पहेली पुलिस से सुलझाए नहीं सुलझ रही थी. क्योंकि पूरे गांव व जंगलों की खाक छानी जा चुकी थी इस पर भी हैरत की बात यह थी कि बच्चे को अगवा किए जाने का मकसद किसी की समझ नहीं आ रहा था.

अगर पैसों के लिए उस का अपहरण किया गया होता तो अब तक अपहर्त्ता फोन पर अपनी मांग रख चुके होते और वरुण अगर किसी हादसे का शिकार हुआ होता तो भी उस का पता चल जाना चाहिए था. चीचली गांव की हालत यह हो चुकी थी कि अब वहां गांव वाले कम पुलिस वाले ज्यादा नजर आ रहे थे. इस पर भी लोग पुलिसिया काररवाई से संतुष्ट नहीं थे, इसलिए माहौल बिगड़ता देख गांव में डीजीपी वी.के. सिंह और आईजी योगेश देशमुख भी आ पहुंचे.

2 बड़े शीर्ष अधिकारियों को अचानक आया देख वहां मौजूद पुलिस वालों के होश उड़ गए. चंद मिनटों की मंत्रणा के बाद तय किया गया कि एक बार फिर से गांव का कोनाकोना देख लिया जाए.

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इत्तफाक से इसी दौरान टीआई अनिल बाजपेयी की टीम की नजर विपिन के घर से चंद कदमों की दूरी पर बंद पड़े एक मकान पर पड़ी. उन का इशारा पा कर 2 पुलिसकर्मी उस सूने मकान की दीवार लांघ कर अंदर दाखिल हो गए. दाखिल तो हो गए लेकिन अंदर का नजारा देख कर भौचक रह गए क्योंकि वहां किसी बच्चे की अधजली लाश पड़ी थी.

बच्चे का अधजला शव मिलने की खबर गांव में आग की तरह फैली तो सारा गांव इकट्ठा हो गया. दरवाजा खोलने के बाद पुलिस और गांव वालों ने बच्चे की लाश देखी तो उस का चेहरा बुरी तरह झुलसा हुआ था. लेकिन विपिन ने उस लाश की शिनाख्त अपने साढ़े 3 साल के बेटे वरुण के रूप में कर दी.

सभी लोग इस बात से हैरान थे कि पिछले 2 दिनों से जिस वरुण की तलाश में लोग आकाशपाताल एक कर रहे थे, उस की लाश घर के नजदीक ही पड़ोस में पड़ी है, यह बात किसी ने खासतौर से पुलिस वालों ने भी नहीं सोची थी.

वरुण के मांबाप और दादादादी होश खो बैठे, जिन्हें संभालना मुश्किल काम था. घर वाले ही क्या, गांव वालों में भी खासा दुख और गुस्सा था. अब यह बात कहनेसुनने और समझने की नहीं रही थी कि मासूम वरुण का हत्यारा कोई गांव वाला ही है, लेकिन वह कौन है और उस ने उस बच्चे को जला कर क्यों मारा, यह बात भी पहेली बनती जा रही थी.

गुस्साए गांव वालों को संभालती पुलिसिया काररवाई अब जोरों पर आ गई थी. देखते ही देखते खोजी कुत्ते और फोरैंसिक टीम चीचली पहुंच गई.

डीआईजी इरशाद वली ने बारीकी से वरुण के शव का मुआयना किया तो उन्हें समझते देर नहीं लगी कि जिस किसी ने भी उसे जलाया है, उस ने धुआं उठने के डर से तुरंत लाश पर पानी भी डाला है. वरुण के शव पर गेहूं के दाने भी चिपके हुए थे, इसलिए यह अंदाजा भी लगाया गया कि उसे गेहूं में दबा कर रखा गया होगा. यानी हत्या कहीं और की गई है और लाश यहां सूने मकान में ला कर ठिकाने लगा दी गई है.

इस मकान के बारे में गांव वाले कुछ खास नहीं बता पाए सिवाए इस के कि कुछ दिनों पहले ही इसे भोपाल के किसी शख्स ने खरीदा है. पूछताछ करने पर विपिन ने बताया कि उस की किसी से भी कोई दुश्मनी नहीं है.

इस के बाद पुलिस ने लाश से चिपके गेहूं के आधार पर ही जांच शुरू कर दी. अच्छी बात यह थी कि खाली पड़े उस मकान से जराजरा से अंतराल पर गेहूं के दानों की लकीर दूर तक गई थी.

डीआईजी के इशारे पर पुलिस वाले गेहूं के दानों के पीछे चले तो गेहूं की लाइन विपिन के घर के ठीक सामने रहने वाली सुनीता के घर जा कर खत्म हुई. यह वही सुनीता थी जो कुछ देर पहले तक वरुण के न मिलने की चिंता में आधी हुई जा रही थी और उस का बेटा भी गांव वालों के साथ वरुण को ढूंढने में जीजान से लगा हुआ था.

पुलिस ने सुनीता से पूछताछ की तो उस का चेहरा फक्क पड़ गया. वह वही सुनीता थी, जो एक दिन पहले तक एक न्यूज चैनल पर गुस्से से चिल्लाती दिखाई दे रही थी. वह चीखचीख कर कह रही थी कि हत्यारों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए.

इस बीच पूछताछ में उजागर हुआ था कि सुनीता सोलंकी का चालचलन ठीक नहीं है और उस के घर तरहतरह के अनजान लोग आते रहते हैं. पर यह सब बातें उसे हत्यारी ठहराने के लिए नाकाफी थीं, इसलिए पुलिस ने सख्ती दिखाई तो सच गले में फंसे सिक्के की तरह बाहर आ गया.

वरुण जब चौकलेट लेने घर से निकला तो सुनीता को देख कर उस के घर पहुंच गया. मासूमियत और हैवानियत में क्या फर्क होता है, यह उस वक्त समझ आया जब भूखे वरुण ने सुनीता से रोटी मांगी. बदले की आग में जल रही सुनीता ने उसे सब्जी के साथ रोटी खाने को दे दी, लेकिन सब्जी में उस ने चींटी मारने वाली जहरीली दवा मिला दी.

वरुण दवा के असर के चलते बेहोश हो गया तो सुनीता ने उसे मरा समझ कर उस के हाथपैर बांधे और पानी के खाली पड़े बड़े कंटेनर में डाल दिया. इधर जैसे ही वरुण की खोजबीन शुरू हुई तो वह भी भीड़ में शामिल हो गई. इतना ही नहीं, उस ने दुख में डूबे अपने पड़ोसी विपिन मीणा के घर जा कर उन्हें चाय बना कर दी और हिम्मत भी बंधाती रही.

जबकि सच सिर्फ वही जानती थी कि वरुण अब इस दुनिया में नहीं है. उस की तो वह बदले की आग के चलते हत्या कर चुकी है. हादसे की शाम सुनीता का बेटा घर आया तो उसे बिस्तर के नीचे से कुछ आवाज सुनाई दी. इस पर सुनीता ने उसे यह कहते हुए टरका दिया कि चूहा होगा, तू जा कर वरुण को ढूंढ.

बाहर गया बेटा रात 8 बजे के लगभग फिर वापस आया तो नजारा देख कर सन्न रह गया, क्योंकि सुनीता वरुण की लाश को पानी के कंटेनर से निकाल कर गेहूं के कंटेनर में रख रही थी. इस पर बेटे ने ऐतराज जताया तो उस ने उसे झिड़क कर खामोश कर दिया. सुनीता ने मासूम की लाश को पहले गेहूं से ढका फिर उस पर ढेर से कपड़े डाल दिए थे.

16 जुलाई, 2019 की सुबह तड़के 5 बजे सुनीता ने घर के बाहर झांका तो वहां उम्मीद के मुताबिक सूना पड़ा था. वरुण की तलाश करने वाले सो गए थे. उस ने पूरी ऐहतियात से लाश हाथों में उठाई और बगल के सूने मकान में ले जा कर फेंक दी.

लाश को फेंक कर वह दोबारा घर आई और माचिस के साथसाथ कुछ कंडे (उपले) भी ले गई और लाश को जला दिया. धुआं ज्यादा न उठे, इस के लिए उस ने लाश पर पानी डाल दिया. जब उसे इत्मीनान हो गया कि अब वरुण की लाश पहचान में नहीं आएगी तो वह घर वापस आ गई.

हत्या सुनीता ने की है, यह जान कर गांव वाले बिफर उठे और उसे मारने पर आमादा हो आए तो उन्हें काबू करने के लिए पुलिस वालों को बल प्रयोग करना पड़ा. इधर दुख में डूबे विपिन के घर वाले हैरान थे कि सुनीता ने वरुण की हत्या कर उन से कौन से जन्म का बदला लिया है.

दरअसल बीती 16 जून को सुनीता 2 दिन के लिए गांव से बाहर गई थी. तभी उस के घर से कोई आधा किलो चांदी के गहने और 30 हजार रुपए नकदी की चोरी हो गई थी. सुनीता जब वापस लौटी तो विपिन के घर में पार्टी हो रही थी.

इस पर उस ने अंदाजा लगाया कि हो न हो विपिन ने ही चोरी की है और उस के पैसों से यह जश्न मनाया जा रहा है. यह सोच कर वह तिलमिला उठी और मन ही मन  विपिन को सबक सिखाने का फैसला ले लिया.

सुनीता सोलंकी दरअसल भोपाल के नजदीक बैरसिया के गांव मंगलगढ़ की रहने वाली थी. उस की शादी दुले सिंह से हुई थी, जिस से उस के 3 बच्चे हुए. इस के बाद भी पति से उस की पटरी नहीं बैठी क्योंकि उस का चालचलन ठीक नहीं था.

इस पर दोनों में विवाद बढ़ने लगा तो दुले सिंह ने उसे छोड़ दिया. इस के बाद मंगलगढ़ गांव के 2-3 युवकों के साथ रंगरलियां मनाते उस के फोटो वायरल हुए थे, जिस के चलते गांव वालों ने उसे भगा दिया था. वे नहीं चाहते थे कि उस के चक्कर में आ कर गांव के दूसरे मर्द बिगड़ें.

इस के बाद तो सुनीता की हालत कटी पतंग जैसी हो गई. उस ने कई मर्दों से संबंध बनाए और कुछ से तो बाकायदा शादी भी की लेकिन ज्यादा दिनों तक वह किसी एक की हो कर नहीं रह पाई. आखिर में वह चीचली में ठीक विपिन के घर के सामने आ कर बस गई.

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चीचली में भी रातबिरात उस के घर मर्दों का आनाजाना आम बात थी. इन में उस की बेटी का देवर मुकेश सोलंकी तो अकसर उस के यहां देखा जाता था. इस से उस की इमेज चीचली में भी बिगड़ गई थी. लेकिन सुनीता जैसी औरतें समाज और दुनिया की परवाह ही कहां करती हैं. गांव में हर कोई जानता था कि सुनीता के पास पैसे कहां से आते हैं, लेकिन कोई कुछ नहीं बोलता था.

चोरी के कुछ दिन पहले विपिन का भाई उस के यहां घुस आया था और उस ने सुनीता को आपत्तिजनक अवस्था में देख लिया था. इस पर भी विपिन के घर वालों से उस की कहासुनी हुई थी. यह बात तो आईगई हो गई थी, लेकिन वह चोरी के शक की आग में जल रही थी इसलिए उस ने बदला मासूम वरुण की हत्या कर के लिया.

गांव वालों के मुताबिक यह पूरा सच नहीं है बल्कि तंत्रमंत्र और बलि का चक्कर है. गांव वाले इसे चंद्रग्रहण से जोड़ कर देख रहे हैं. गांव वालों के मुताबिक वरुण की लाश के पास से मिठाई भी मिली थी. घटनास्थल के पास से अगरबत्ती और कटे नींबू मिलने की बात भी कही गई. इस के अलावा वरुण की लाश को लाल रंग के कपड़े से ही क्यों लपेटा गया, इस की भी चर्चा चीचली में है.

गांव वालों की इस दलील में दम है कि अगर वाकई सुनीता के यहां चोरी हुई थी तो उस ने इस का जिक्र किसी से क्यों नहीं किया था और न ही पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई थी.

वरुण के नाना अनूप मीणा तो खुल कर बोले कि उन के नाती की हत्या की असली वजह तंत्रमंत्र का चक्कर है. उन्होंने घटनास्थल पर मिले नींबू के अलावा घर के बाहर पेड़ पर लटकी काली मटकी का भी जिक्र किया.

वरुण की हत्या चोरी का बदला थी या तंत्रमंत्र, इस की वजह थी, इस पर पुलिस बोलने से बच रही है. लेकिन उस की लापरवाही और नकारापन लोगों के निशाने पर रहा. चीचली के लोगों ने साफसाफ कहा कि लाश एकदम बगल वाले घर में थी और पुलिस वाले यहांवहां वरुण को ढूंढ रहे थे.

गांव वालों का यह भी कहना है कि अगर डीजीपी और आईजी गांव में नहीं आते तो ये लोग उस सूने मकान में भी नहीं झांकते और वरुण की लाश पता नहीं कब मिलती. उम्मीद के मुताबिक इस हत्याकांड पर राजनीति भी खूब गरमाई. मुख्यमंत्री कमलनाथ ने हादसे पर अफसोस जाहिर किया तो पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बिगड़ती कानूनव्यवस्था को ले कर सरकार को कटघरे में खड़ा करते रहे.

हैरानी तो इस बात की भी है कि गुमशुदगी का बवाल मचने के बाद भी सुनीता ने वरुण की लाश बड़े इत्मीनान से जला दी और किसी को खबर भी नहीं लगी. सुनीता को अपने किए का कोई पछतावा नहीं है. इस से लगता है कि बात कुछ और भी हो सकती है.

पुलिस ने सुनीता से पूछताछ करने के बाद उस के नाबालिग बेटे को भी हिरासत में ले लिया. उस का कसूर यह था कि हत्या की जानकारी होने के बाद भी उस ने पुलिस को नहीं बताया था. पुलिस ने सुनीता को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया जबकि उस के नाबालिग बेटे को बालसुधार गृह भेजा गया.

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