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दीवाली 2019 : और्गेनिक प्रोडक्ट्स के साथ इस दीवाली को बनाएं टौक्सिन फ्री

दीवाली के नजदीक आने के साथ ही यह टौक्सिन-फ्री जिंदगी जीने की अहमियत पर ध्यान केंद्रित करने का समय है, जो पर्यावरण के साथ साथ हमारे लिए फायदेमंद है. यह हर जगह साफ-सफाई करने और रसायनों को हटाने का समय है. पटाखे फोड़ने से बचते हुए सही तरह की और्गेनिक स्किनकेयर का इस्तेमाल करने तक यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम एक ऐसी जिंदगी चुनें जो स्वच्छ और सुरक्षित हो. पेश है तीन और्गेनिक स्किनकेयर ब्रांड्स जो रसायनों के इस्तेमाल को पूरी तरह से नकारते हुए अच्छी और स्वच्छ जिंदगी को चुनते हैं.

मेकअपः रूबी और्गेनिक्स

रूबी और्गेनिक्स एक और ब्रांड है, जो पूरी तरह से हमारी भारतीय स्कीन टोन और टेक्सचर के अनुरूप तैयार किया गया है. इनके उत्पाद पूरी तरह से जैविक(और्गेनिक) और मेड इन इंडिया हैं. उनके पास परबीन फ्री, केमिकल प्रिजर्वेटिव फ्री, औल वेजिटेरियन और नौन-एनिमल टेस्टेड मेकअप की विस्तृत रेंज है. इन प्राकृतिक उत्पादों को ऐसी चीजों से तैयार किया जाता है, जिन्हें बेहद सावधानी से प्राप्त किया जाता है और उन्हें कम संरक्षण की आवश्यकता होती है. इन सौ प्रतिशत शाकाहारी,जैविक,केमिकल प्रिजर्वेटिव लिपस्टिक्स के चलते इनकी लोकप्रियता दिनो-दिन बढ़ती जा रही है. निश्चित रूप से दीवाली के समय इसका उपयोग किया जाना लाभप्रद होगा.

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ब्यूटी – लव और्गेनिकनली

बेहतरीन व खुशनुमा त्वचा के लिए दीपशिखा देशमुख यह प्राकृतिक ब्रांड लेकर आयी हैं. उनका दावा है कि उनका हर प्रोडक्ट ‘लव और्गेनिक’’ के तहत बेहद सावधानी, गहन शोध और आयुर्वेदिक विशेषज्ञों, प्राकृतिक चिकित्सकों और डौक्टरों के परामर्श से तैयार किया गया है. यह प्रोडक्ट हर प्रकार की त्वचा के लिए उपलब्ध उत्पादों और इस विश्वास के साथ कि छोटे से छोटे कारक भी त्वचा पर असर डालते हैं, ब्रांड मिट्टी की सेहत से लेकर पैकेजिंग प्रक्रिया तक सब कुछ सही तरीके से हो इसका बहुत ध्यान रखा गा है.उनके उत्पादों में फेस पैक, बौडी वाश, बौडी लोशन, साबुन, मालिश का तेल और बहुत कुछ शामिल हैं.

हेयर केयर:हर्बल इसेंसेस

हर्बल इसेंसेस प्रकृति की अच्छाई में यकीन करते हुए और्गैनिक पदार्थों से बना शैंपू बनाते हैं. इनके शैंपू आर्गन औयल, नारियल का दूध (कोकोनट औयल), सफेद अंगूर, ककड़ी, ग्रीन टी,विटामिन ई, नारियल का मक्खन (कोकोनट बटर) और बहुत से प्राकृतिक तत्वों से भरपूर हैं. पूरी तरह सल्फेट-फ्री शैंपू बालों को शानदार चमक देने का साथ ही उन्हें घना बनाता है.  उनके उत्पाद जड़ों से सिरों तक बालों का कायाकल्प करके उनमें नई जान डालते हैं.

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सावधानी हटी दुर्घटना घटी

लेखक: संतोष सांघी

परिवहन विभाग की ओर से देशभर में ‘सावधानी हटी, दुर्घटना घटी’ के पोस्टर, बैनर, होर्डिंग्स लगवाए गए हैं. ये सड़क पर चलने या कोई भी गाड़ी चलाने वालों को चौकन्ना करने के लिए लगवाए गए हैं, ताकि किसी भी तरह का ऐक्सिडैंट न हो. लेकिन, यह स्लोगन हर इंसान के लिए हर समय के लिए भी है. घटनादुर्घटना कभी भी किसी भी तरह की घट सकती है. यह जरूरी नहीं कि सड़क पर ही दुर्घटना घटती है. यहां कुछ ऐसे ही हुए हादसों का जिक्र किया जा रहा है.

कैंची की करामात

ट्रेन तेज गति से चली जा रही थी. हमारे डब्बे में एक महिला सामने की सीट पर अपनी ढाईतीन वर्षीया बच्ची को गोद में ले कर बैठी हुई थी. बच्ची बेहोशी में कभीकभी कराह उठती थी. महिला उसे थपकती हुई अपने आंसू पोंछती जा रही थी. कुछ देर के बाद जब मुझ से रहा नहीं गया तो मैं ने पूछ ही लिया, ‘बहनजी, बच्ची को क्या तकलीफ है? इस की आंख पर पट्टी क्यों बंधी हुई है? और आप रो क्यों रही हैं?’

मुझ से सहानुभूति पा कर उस का सब्र का बांध ही टूट पड़ा. रोते हुए उस ने जो घटना सुनाई उस का सार यह था- 4 दिनों पहले बच्ची दोपहर में दरी पर सो रही थी. मां ने सोचा, थोड़ी सिलाई कर लूं, उठने पर यह बहुत तंग करती है, कभी मशीन पकड़ लेती है तो कभी कपड़ा खींचती है. घंटेडेढ़घंटे का समय मिल जाएगा. सर्दी बहुत थी, सो वह मशीन उठा कर आंगन में धूप में ले जा रही थी. मशीन पर कैंची रखी हुई थी. जैसी कि महिलाओं की आदत होती है, कैंची मशीन पर ही रख देती हैं.

बच्ची के पास से मशीन ले जाते समय न मालूम कैसे कैंची फिसल कर ठीक बच्ची की आंख पर जा गिरी. फल की तरफ से गिरी थी, एक फल आंख में और दूसरा मस्तक में जा धंसा. बच्ची चीत्कार कर उठी, खून के फौआरे छूट गए. महिला की चीख सुन कर पासपड़ोस के लोग इकट्ठे हो गए. डाक्टर बुलाया गया.

काफी देखभाल के बाद नेत्र चिकित्सक ने यह कहा कि प्राथमिक चिकित्सा तो मैं कर देता हूं पर आंख जाने की पूरी संभावना है. आप दिल्ली में एम्स में दिखा लीजिए, शायद आंख बच जाए. सो, इसे दिल्ली ले जा रहे हैं.

सुन कर मेरा दिल दहल उठा. बच्ची सुंदर और भोलीसी दिखाई दे रही थी. 2-3 दिनों की असह्य पीड़ा से बिलकुल मुरझाया हुआ फूल सी प्रतीत हो रही थी. बेचारी मां की असावधानी का परिणाम भुगत रही थी.

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मौत का कुआं

कुछ वर्षों पहले जब हम जोधपुर में रहते थे, एक रविवार को हमारे यहां बाहर से कुछ मेहमान आए हुए थे. हम लोगों ने भंडोर कायलाना आदि देखने के बाद चिडि़याघर देखने का प्रोग्राम बनाया. हमारे मेहमान के छोटेछोटे बच्चे थे, हम ने सोचा बच्चे आनंदित होंगे. चिडि़याघर देखते हुए हम शेरों की खाई की तरफ आए. वह कुछ अलगथलग सी जगह में है. काफी गहरी खाई है, जिस प्रकार सर्कस में मौत का कुआं होता है.

खाई में एक खूंखार सा शेर दहाड़ता हुआ घूम रहा था. जंगल के राजा को कैद देख कर लोग मजे ले रहे थे. दर्शकों के मध्य एक दंपती अपने छोटे से शिशु को बड़ी दिलचस्पी से शेर दिखा रहे थे. शायद वे दंपती किसी छोटे से कसबे के रहने वाले थे और पत्नी पहली बार ही शहर आई थी. वह बड़ी प्रसन्न नजर आ रही थी. महिला ने शिशु को मुंडेर पर बैठाया हुआ था और कस कर पकड़ रखा था. पतिपत्नी दोनों बातों में मग्न थे.

अचानक 2 गिलहरियां लड़तेलड़ते महिला के पैर पर से गुजर गईं. महिला एकदम से उछली और उस के हाथ से शिशु छूट गया व सीधा जा कर खाई में गिरा. वातावरण में महिला और शिशु की चीखें गूंज रही थीं. सब लोग निरुपाय खड़े देख रहे थे. पलभर में वहां मेला सा लग गया. सब महिला और उस के पति को कह रहे थे कि बच्चे को मुंडेर पर बैठाया ही क्यों? हमारा मन इतना खराब हो चुका था कि पलभर भी वहां ठहरना मुश्किल लग रहा था. मेरी भतीजी ने अपने डेढ़ वर्षीय शिशु को कस कर सीने से चिपकाते हुए कहा, ‘मुझे चक्कर आ रहे हैं, जल्दी घर चलो.’

यह ठीक है कि ऐसी दुर्घटनाएं रोज नहीं होतीं, लेकिन मां अगर अपने बच्चे पर पूरी चौकसी रखती, तो दुर्घटना टाली जा सकती थी. क्या इस दुर्घटना के अपराध से मातापिता दोषमुक्त हो सकते हैं?

बेसन का हलवा

कभीकभी बच्चों से मजाक काफी महंगा पड़ जाता है. माला के 2 वर्षीय बेटे को हलवा काफी पसंद था. एक दिन उस ने कड़ाही में साबुन बनाया. साबुन घुटने के बाद एकदम बेसन के हलवे जैसा लग रहा था. पप्पू खेलता हुआ वहां आ गया. उस ने मां से पूछा, ‘यह क्या बनाया है?’ माला के पति वहीं खड़े थे. उन्होंने हंस कर कहा, ‘हमारे राजा बेटे के लिए ममा ने हलवा बनाया है.’ यह कह कर वे चल दिए. किसी कार्यवश माला को भी पड़ोस में जाना पड़ा.

पप्पू ने मैदान साफ देख कर हलवे पर हाथ साफ करना चाहा. उस ने कड़ाही में से मुट्ठीभर कर कथित हलवा निकाल कर मुंह में भर लिया और जल्दीजल्दी निगलने लगा.

पर यह क्या? मुंह बेहद कसैला हो गया, आंखों से आंसू निकलने लगे. पप्पू की तो हालत खराब. अचानक माला ने बच्चे को देख लिया. वह भागती आई. उंगली डाल कर बच्चे का मुंह साफ किया. मुंह से झाग ही झाग निकलता जा रहा था और जो साबुन फूड पाइप और श्वास नलिका में चला गया था उस ने बच्चे को बेहाल कर दिया. तुरंत डाक्टर को दिखाया गया. डाक्टर ने ग्लूकोज का पानी पिलाया, गले में दवाई लगाई.

एक सप्ताह तक बच्चे की हालत इतनी खराब रही कि वह ठोस खाना नहीं खा सकता था. पूरे मुंह में छाले ही छाले हो गए थे. माला के पति उस घड़ी को कोस रहे थे जब उन्होंने मजाक में साबुन को बेसन का हलवा बताया था.

आम का थाल

एक बार मेरी बड़ी बहन अपने 2 वर्षीय बच्चे के साथ हमारे यहां आई हुई थीं. गरमी के दिन थे, आमों की बहार थी. पिताजी बाजार से काफी आम लाए थे. टोकरी में भरने के बाद भी कुछ आम बच गए. मां ने उन्हें एक थाल में डाल कर ऊपर ताक पर रख दिया. वहीं रसोई में बैठी हुई मां आम का अचार डाल रही थीं कि जीजी का बेटा मचल गया कि मैं तो 2 आम लूंगा.

जीजी ने बच्चे को आम देने के लिए थाल की तरफ हाथ बढ़ाया. आम अधिक थे, गिरने लगे. उन्हें संभालने में थाल का संतुलन बिगड़ गया और थाल हाथ से छूटता हुआ नीचे बैठी हुई मां के सिर पर गिरा. थाल किनारे वाला था, किनारे से थाल करीब 3 इंच सिर में धंस गया. खून के फौआरे छूट गए. थाल बड़ी मुश्किल से निकाला गया. मां को तुरंत अस्पताल ले गए, उन्हें अतिरिक्त खून देना पड़ा. कई वर्षों तक मां के सिर की पीड़ा उस घटना की याद दिलाती रही.

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रजाईगद्दे जान के दुश्मन

नीता अपने 3 माह के शिशु को ले कर मामा के बेटे की शादी में आई हुई थी. उस की सास ने भेजने से इनकार कर दिया था कि बच्चा अभी छोटा है, सर्दी बहुत ज्यादा है, शादी की भीड़ में तुम बच्चे का ध्यान नहीं रख पाओगी. वैसे भी 2 शिशु खोने के बाद बड़ी मुश्किल से यह बच्चा हुआ था. किंतु नीता की जिद के सामने सास को हार माननी पड़ी.

सब से मिल कर नीता बहुत खुश थी. 2 दिन आराम से निकल गए. तीसरे दिन सुबह नीता ने बच्चे को दूध पिला कर जमीन पर बिछे गद्दे पर एक कोने में सुला दिया ताकि आतेजाते किसी की ठोकर न लग जाए. फिर वह मां के बुलाने पर रसोई में चायनाश्ते का प्रबंध करने चली गई. इधर, मामी ने नौकरानी को आदेश दिया कि दूसरे कमरे के सारे रजाईगद्दे उठा कर एक कोने में जमा दे. नौकरानी 3-4 गद्दे और कुछ रजाइयां सिर पर रख कर लाई. वजन बहुत था और उसे कुछ दिख नहीं रहा था. सो, धप्प से रजाईगद्दे कोने में डाल दिए.

अचानक नीता को बच्चे का ध्यान आया. देखा बच्चा कहां गया? मैं तो कोने में सुला कर गई थी. एकदम विचार कौंधा कि कहीं बच्चा दब तो नहीं गया. रजाईगद्दे उठा कर देखा, बच्चा अंतिम सांसें ले रहा था. नीता ने रोरो कर सारा घर सिर पर उठा लिया. वह तो गनीमत थी कि मेहमानों में 2 दामाद डाक्टर थे. तुरंत बच्चे को प्राथमिक उपचार के बाद अस्पताल ले जाया गया. बच्चे के थोड़ा ठीक होते ही नीता तुरंत ससुराल के लिए रवाना हो गई. नीता को सास की बात न मानने का बहुत अधिक दुख हो रहा था.

रंग में भंग

सुरेश बाबू के बेटे पिंकू की चौथी वर्षगांठ थी. उन्होंने उत्सव को खूब धूमधाम से मनाने का निश्चय किया था. करते भी क्यों न, 5 पीढि़यों के बाद जो घर में पुत्र दिखाई पड़ा था. पुत्रजन्म के बाद ही माया अपनेआप को रानी से कम नहीं समझती थी. उस ने ऐसा करिश्मा कर दिखाया था जो उस की 5-5 पूर्वज नहीं कर सकी थीं.

इस के पहले उन के घर में हमेशा गोद लिए हुए बेटे ही आते रहे हैं. उत्सव में शहर के गणमान्य व्यक्तियों को निमंत्रित किया गया था. समय से पहले ही पिंकू के नन्हे मित्र आने शुरू हो गए थे. पूरे हौल की शोभा दर्शनीय थी. निश्चित समय पर केक काटा गया. चारों तरफ हैप्पी बर्थडे टू यू की ध्वनि गूंज रही थी. बच्चे उछलउछल कर गुब्बारे लूटने लगे.

कुछ बच्चे एक ओर खड़े हुए टूटे हुए गुब्बारों कोे मुंह में डालडाल कर बिटकनियां बनाने लगे. अचानक बच्चों के मध्य बड़ी जोर का कोलाहल मच गया. पता चला कि पिंकू बेहोश हो गया है. उस की सांस की गति कम हो रही है, हाथपैर ढीले पड़ चुके हैं. हुआ यह कि गुब्बारे का टुकड़ा फट कर श्वास नलिका पर चिपक गया. काफी कोशिश करने पर भी वह टुकड़ा निकल न सका. देखते ही देखते बालक की आंखें पलट गईं. डाक्टर के आने तक तो वह समाप्त हो चुका था. एक हरीभरी बगिया उजड़े उद्यान में परिणत हो गई.

मैं तो अच्छे किरदार के लिए इंतजार करता हूं : राज कुमार राव

राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता कलाकार राज कुमार राव निरंतर आगे बढ़ते जा रहे हैं. वह अपनी हर फिल्म के साथ साबित करते आ रहे हैं कि अभिनय में उनका कोई दूसरा सानी नही है. और उनके  अंदर हर तरह के किरदार निभाने की अपार क्षमता है. आप उन्हें किसी एक ईमेज में नहीं बांध सकते. फिलहाल वह मिखिल मुसाले निर्देशित व 25 अक्टूबर को प्रदर्शित हो रही फिल्म ‘‘मेड इन चाइना’’ को लेकर चर्चा में हैं, जिसमें वह एकदम नए अवतार में नजर आएंगे.

प्रस्तुत है उनसे हुई एसक्लूसिव बातचीत के अंश.

आपके करियर के टर्निंग प्वाइंट्स क्या रहे ?

सबसे पहले तो ‘लव सेक्स धोखा है, उसके बाद ‘शाहिद’ है. फिर ‘बरेली की बर्फी’ है, जिसने मुझे लोगों के सामने एक नए अवतार में पेश किया. फिर ‘स्त्री’ है, जिसने बौक्स औफिस पर बहुत बड़ी कमायी की.

आज आप मानते हैं कि ‘‘लव सेक्स धोखा’’ जैसी फिल्म करना सही कदम था?

यह अच्छी शुरूआत थी. लोग कहां कहां से बौलीवुड में अपना कैरियर बनाने आते हैं, पर संघर्ष करते रह जाते हैं. मगर मेरे मुंबई पहुंचने के दो वर्ष के अंदर ही मुझे दिवाकर बनर्जी और एकता कपूर के साथ ऐसी फिल्म करने का अवसर मिला, जिसे बौलीवुड के फिल्म मेकरों ने देखी और तारीफ की. इस फिल्म की वजह से कई फिल्म मेकरों की निगाह मेरी तरफ गया. इसी के चलते मुझे हंसल मेहता की फिल्म ‘शाहिद’ मिली. वहीं से मेरे करियर ने गति पकड़ ली. तो मेरे लिए खुशी की बात है कि छोटे बजट की फिल्म को जबरदस्त सफलता मिली.

जब आपने ‘बरेली की बर्फी’ से खुद को बदलते हुए नए अवतार में उतरे थे तो उम्मीद थी कि लोग आपको पसंद कर लेंगे?

जी नही. ऐसा बिलकुल नही लगा था. वैसे भी जब मैं किसी किरदार को निभा रहा होता हूं, उस वक्त नहीं सोचता कि वह कितना पसंद आएगा. पर मुझे उम्मीद नहीं थी कि लोग इतना पसंद करेंगे. लोगों का इतना प्यार मिलेगा. मैं खुद सिनेमाघर में फिल्म देखने गया था, तो लोग तालियां बजा रहे थे.

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आज आप एक अच्छे मुकाम पर हैं. धन और शोहरत के साथ साथ राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल गया. फिर भी आपको किस चीज की कमी महसूस होती है?

माता पिता के न होने की कमी महसूस होती है, जो जिंदगी भर रहेगी. खासकर मां की कमी बहुत महसूस होती है. क्योंकि उनकी इच्छा थी कि वह मुझे सिनेमा के परदे पर नृत्य करते हुए देखें. पर ‘न्यूटन’ की शूटिंग के दौरान वह गुजर गयी थी. जिंदगी भर इस बात का मलाल रहेगा कि वह होती, तो मुझे डांस करते हुए देखती और ‘स्त्री’ की सफलता को देखती.

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तब तो फिल्म ‘स्त्री’ में डांस करते हुए आपको अपनी मां की बहुत याद आयी होगी?

जी हां! क्योंकि वह हमेशा चाहती थीं कि वह मुझे कौमेडी करते हुए और डांस करते हुए देखें. इससे पहले वह मुझे ‘शाहिद’ व ‘अलीगढ़’ जैसी फिल्मों में ज्यादातर संजीदा किरदारों में ही देखा था. वास्तव में हम बचपन से नौटंकी व रामलीला आदि में यही सब देखते हुए बड़े हुए थे, तो वह चाहती थीं कि मैं फिल्मों में ऐसा कुछ करुं.

फिल्म ‘‘मेड इन चाइना’’ के अपने किरदार को लेकर क्या कहेंगें?

यह फिल्म गुजरात के एक एंटरप्रिनोर की कहानी है. मैंने इसमें अहमदाबाद, गुजरात में रहने वाले युवा व्यवसायी का किरदार निभाया है, जो अपने परिवार के लिए कुछ करना चाहता है, मगर उसे असफलता ही हाथ लग रही है. वह प्यारा इंसान है. अब तक वह तेरह चौदह व्यापार में हाथ आजमा चुका है. कभी रोटी मेकर, कभी नेपाल हैंडीक्राफ्ट, तो कभी कुछ और स्ट्रगल करते हुए वह चाइना पहुंच जाता है. वहां पर उसे सेक्स परफार्मेंस से जुड़ी एक आइडिया मिलती है और वह उस आइडिया के साथ भारत आकर भारत के जुगाड़ के साथ व्यवसाय शुरू करता है. फिर कई चीजें बदलती हैं. वह सफलता की उंचाइयां छूता है. इसमें वह सेक्सोलौजिस्ट डाक्टर वर्धी की भी मदद लेता है.?

इसी वजह से फिल्म में सेक्सोलौजिस्ट डौक्टर संग आपकी दोस्ती… ?

जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि रघु चाइना से सेक्स परफार्मेंस बढ़ाने की एक आइडिया लेकर आता है, तो उसे भारत में एक डाक्टर की जरुरत महसूस होती है. क्योंकि हमारे यहां लोग डाक्टर के कहने पर ही दवा लेते हैं. रघु डाक्टर वर्धी से मिलता है, जो कि बहुत ही आदर्शवादी डाक्टर हैं. वह उनके साथ भागीदारी करने के लिए कहता है. डा. वर्धी के संग उसके बहुत अच्छे इक्वेशन बन जाते हैं. पर फिर दोनो अलग भी हो जाते हैं.

तो क्या ‘‘मेड इन चाइना’’ सेक्स पर आधारित फिल्म है?

देखिए, यह फिल्म दिवाली के मौके पर सिनेमाघरों में आ रही है. फिल्म में सिच्युएशनेबल हास्य है. यह पूरी तरह से पारिवारिक फिल्म है. आप अक्सर अखबारों में पढ़ते होंगे कि लोगों में सेक्स को लेकर आज भी कई तरह की गलत भ्रांतियां हैं. हमारी फिल्म हास्य के साथ उन्ही भ्रांतियों को लेकर कुछ कहने का प्रयास करती है.

फिल्म में गुजरात का माहौल व गुजराती किरदार रखे जाने की कोई खास वजह रही?

क्योंकि इसकी मूल लेखक परिंदा गुजराती हैं. उन्होंने यह उपन्यास गुजराती भाषा में ही लिखा था. निर्देशक मिखिल स्वयं गुजरात से हैं और उन्होंने यह उपन्यास पढ़ा हुआ था. पटकथा लेखक करण व निरेन भी गुजरात से हैं. फिर जब भी बड़े बिजनेसमैन का नाम आता है, तो लोगों के दिमाग में सीधे गुजरात ही आता है. गुजरातियों में हर युवा कुछ अपना नया काम करना चाहता है. इसलिए इस फिल्म में गुजराती किरदार व गुजराती माहौल है.

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लोगों को फिल्म ‘‘मेड इन चाइना’’ क्या संदेश देगी?

हम लोगों को हंसाने के साथ ही यह भी कहने का प्रयास कर रहे हैं कि अगर आपको जिंदगी में कुछ बनना है, कुछ करना है, तो जिंदगी व करियर की शुरूआत में असफलता मिलने के बावजूद आपको लगे रहना होगा. हार नही माननी है. यह कहानी लोगों को ‘‘नेवर गिव अप’’ एटीट्यूड सिखाएगी.

आप सोशल मीडिया पर कितना सक्रिय /एक्टिव हैं?

जितना होना चाहिए. बहुत ज्यादा नही. मेरी सक्रियता फिल्म की रिलीज के वक्त ही होती है. उस वक्त फिल्म से संबंधित जानकारियां सोशल मीडिया पर पोस्ट करनी होती हैं. पर मैं सोशल मीडिया पर दुनिया भर की जानकारी हासिल करने के लिए पढ़ता रहता हूं.

कुछ कलाकारों ने सोशल मीडिया को कमाई का साधन बना रखा है. आप इसे कितना सही कदम मानते हैं?

गलत कुछ नही. यह तो एड फिल्म करने जैसा ही है. एड फिल्म के लिए कलाकार पैसा लेता है, उसी तरह सोशल मीडिया पर कुछ पोस्ट करने के लिए पैसा लेता है, तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है.

पर सोशल मीडिया के फालोवर्स फिल्म के बाक्स अफिस पर कितना असर डालते हैं?

बिलकुल नही पड़ता. बौक्स आफिस पर इस बात का असर पड़ता है कि फिल्म कैसी बनी है.

जब आपने बौलीवुड में कदम रखा, उन्ही दिनों सिनेमा बदलना शुरू हुआ था. क्या आपको लगता है कि आपको उसका फायदा मिला?

जी हां! मुझे सिनेमा में आ रहे बदलाव का फायदा मिला. मैं अकेला तो कुछ बदल नही सकता था. क्योंकि मैं किसी ताकत के साथ तो आया नहीं था. जब मैं 2010 में यहां आया, उस वक्त तक सिनेमा को बदलने वाले यह सभी लोग आ चुके थे. श्रीराम राघवन, विशाल भारद्वाज, दिवाकर बनर्जी, अनुराग कश्यप, विक्रम मोटवानी, हंसल मेहता यह सभी आ चुके थे. तो सिनेमा बदलना शुरू हो गया था, उसी दौर में मैं यहां आया. फिर सिनेमाहाल बदलते गए. पिछले तीन वर्ष में तो सिनेमा व दर्शकों में काफी बदला आया है. अब दर्शक फिल्म में कहानी देखना चाहता है. नए किरदार देखना चाहते है. उसी का नतीजा है कि मेरे जैसे कलाकार अच्छा काम कर रहे हैं.

बीच में आपने लगातार कुछ फिल्में हंसल मेहता के साथ की थी, अब आप अलग अलग निर्देशकों के साथ फिल्में कर रहे हैं?

हंसल मेहता के साथ भी फिल्में कर रहा हूं. हमने उनके साथ एक फिल्म ‘तुर्ररम खां’ की शूटिंग पूरी कर ली है, जिसका नाम शायद बदलेगा. वह भी बहुत अलग तरह की कहानी है. हंसल मेहता भी पहली बार खुद को ब्रेक कर रहे हैं और मैं भी इस फिल्म में अपने आपको ब्रेक कर रहा हूं. हम दोनो ने सोचा कि हमसे लोग जो आपेक्षा रखते हैं, उससे कुछ अलग किया जाए.

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आपके दिमाग में कोई कहानी या किरदार है, जिसे आप करना चाहते हों?

जी नहीं.. मैं तो अच्छे काम के लिए इंतजार करता हूं. मैं ढेर सारी कहानियां को पढ़ता हूं और फिर उनमें से कुछ अच्छा चुनने का प्रयास करता हूं.

किसी भी फिल्म के किरदार को निभाने में ज्यादा से ज्यादा लोगों से बातचीत करना मददगार साबित होता है या सिर्फ पटकथा से चिपके रहना?

पटकथा तो महत्वपूर्ण होती है, पर उसके बाद कम से कम निर्देशक के संग बैठकर बातचीत करना बहुत मददगार साबित होता है. कलाकार के लिए यह समझना जरुरी है कि फिल्म और किरदार को लेकर निर्देशक का अपना विजन क्या है?  लेखक का प्वांइंट आफ व्यू समझना भी जरुरी होता है. उसके बाद हम अपनी कल्पना और अपनी चीजें पिरोकर उस किरदार को परदे पर साकार करते हैं.

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आप अभी खुद को आउट साइडर मानते हैं?

देखिए, मेरी सोच आज भी वही है जो गुड़गांव में रहते हुए थी. मैं आज भी सड़क पर शूटिंग होते देखकर रूक जाता हूं. मैं भूल जाता हूं कि मैं भी इसी का एक हिस्सा हूं. उस लिहाज से मैं भी आउट साइडर हूं.

दीवाली 2019: घर पर बनाएं हांडी पनीर

हांडी पनीर बहुत ही टेस्टी रेसिपी है. इस मसालेदार डिश को आप घर पर आसानी से बना सकते हैं. तो देर किस बात की, आईये जानते हैं इसकी रेसिपी.

 सामग्री

पनीर 200 ग्राम

हल्दी पाउडर 1/2 चम्मच

गरम मसाला 1/2 चम्मच

पानी 1/2 कप

पिसी हुई काली मिर्च 2 चुटकी

अदरक के टुकड़े 2 घिसे हुए

मिर्च पाउडर 1/2 चम्मच

टमाटर 1 बारीक कटा

कटी हुई धनिया की पत्ती मुट्ठीभर

रिफाइंड तेल 4 टेबलस्पून

प्याज 3 कटे

दही 1/2 कप

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बनाने की वि​धि

हांडी में तेल डालें, मध्यम आंच पर कटा हुआ प्याज फ्राई करें इसके बाद आंच धीमी कर लें, इसके बाद अदरक, हल्दी, मिर्च, गरम मसाला डालकर अच्छी तरह मिलाएं.

बारीक कटा हुआ टमाटर और हरी मिर्च डालें और धीमी आंच पर 10 मिनट तक पकाएं.

नमक डालने से पहले आधा कप दही डालर सूखने तक पकाएं। आधा कप पानी डालकर उबाल आने दें.

पनीर और कटी हुई धनिया मिलाएं और मसाले के सूखने तक इसे पकाएं.

काली मिर्च डालकर इसे आंच से हटा लें और धनिया से गार्निश करें.

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हिन्दूराज में हिन्दूवादी नेता का कत्ल:  कमलेश तिवारी हत्याकांड

उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार है. जो हिन्दूओं की रक्षा का दम भरती है. प्रदेश की राजधानी लखनऊ में सरकार की नाक के नीचे 18 अक्टूबर कर दोपहर हिन्दूवादी नेता कमलेश तिवारी की हत्या दिनदहाड़े घर में घुरकर हत्या कर दी गई. कमलेश तिवारी का घर लालकुआ के खुर्शिदबाग में भीडभाड वाली जगह पर था.

कमलेश तिवारी की हत्या के बाद हत्यारे आराम से फरार हो गये. लखनऊ पुलिस कमलेश हत्याकांड को आईएसआईएस के इस्लामिक जेहाद से जोड जांच कर रही है. घटना में उत्तर प्रदेश से लेकर गुजरात, पंजाब और नेपाल तक बिखरी कड़ियों को मिला रही है. 22 अक्टूबर हत्या के 5 दिन के बाद भी गुजरात एटीएस ने हत्यारों अशफाक और पठान मोइनीउउदीन को पकड़ने में सफलता पाई. कमलेश तिवारी की मां कुसुमा तिवारी हत्याकांड में सीतापुर के भाजपा नेता शिवकुमार गुप्ता का नाम ले रही थी. पुलिस ने मां के सीधे आरोप के बाद भी भाजपा नेता से पूछताछ तक नहीं की है.

कमलेश तिवारी की हत्या बहुत ही आराम से की गई. भगवा रंग के कुर्ते पहने दोनो युवक अशफाक और पठान मोइनीउउदीन उनके घर पंहुचें. मिठाई के डिब्बे में चाकू और पिस्तौल छिपाये हुये थे. दोपहर पौने 12 बजे दोनो वहां पहुचे. कमलेश से मुस्लिम लड़की की हिन्दू लडके से शादी कराने के मसले में दखल देने की बात कर रहे थे. इस बीच कमलेश से दोनो दही बड़ा खिलाया. कमलेश की पत्नी उनको चाय दे गई. चाय देने के बाद कमलेश ने पार्टी कार्यकर्ता सौराष्ट्र सिंह को सिगरेट और पान मसाला लेने नीचे दुकान तक भेजा. जब वह वापस आया तब तक दोनो युवक चाकू से गला रेत कर फरार हो चुके थे. चाकू से गला रेतने के बाद शरिर पर पीठ और पेट कर तरफ चाकू से वार के कई घाव थे. इसके बाद भी कमलेश जिंदा ना रह जाये इसलिये पिस्तौल से भी गोली मारी थी.

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नात्थू राम गोड्से थे आदर्श

कमलेश तिवारी खुद को हिन्दू नेता के रूप में स्थापित करने की कोशिश में थे. धर्म से राजनीति की तरफ जाना चाहते थे. अपनी कट्टरवादी छवि से वह पूरे देश में अपना प्रचार प्रसार करना चाहते थे. कमलेश तिवारी ने अपने करियर की शुरूआत हिन्दू महासभा से की. इसके वह प्रदेश अध्यक्ष भी बने. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की विधानसभा से मात्र 3 किलोमीटर गुरूगोबिंद सिंह मार्ग के पास खुर्शेदबाग में हिदू महासभा का प्रदेश कार्यालय था. खुर्शेदबाग का नाम हिन्दू महासभा के कागजों पर वीर सावरकर नगर लिखा जाता था. कमलेश तिवारी नात्थूराम गोड्स को अपना आदर्श मानता था. घर पर उनकी तस्वीर लगी थी. कमलेश तिवारी सीतापुर स्थित अपने गांव में नात्थूराम गोड्से के नाम पर मंदिर भी बनाने की बात कही थी.

कमलेश तिवारी मूलरूप से सीतापुर जिले के संदना थाना क्षेत्र के पारा गांव के रहने वाले थे. साल 2014 में वह अपने गांव में नात्थूराम गोडसे के मंदिर को बनवाने को लेकर चर्चा में आये थे. 18 साल पहले कमलेश पारा गांव छोड़कर परिवार के साथ रहने महमूदाबाद चले गये थे. उनके पिता देवी प्रसाद उर्फ रामशरण  महमूदाबाद कस्बे के रामजनकी मंदिर में पुजारी थे. कमलेश पारा गांव में गोडसे का मंदिर बनवाना चाहते थे. 30 जनवरी 2015 को उनको मंदिर की नींव रखनी थी. इसी बीच पैगंबर पर टिपप्णी को लेकर वह दूसरे मामलें में उलझ गये. महमूदाबाद में कमलेश के पिता रामशरण मां कुसुमा देवी, भाई सोनू और बड़ा बेटा सत्यम तिवारी रहते है.

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कमलेश तिवारी हिन्दू महासभा के प्रदेश कार्यालय से संगठन का काम देखते थे. कुछ समय के बाद वह अपने बेटे रिशी और पत्नी किरन तिवारी और पार्टी कार्यकर्ता सौराष्ट्र सिंह के साथ इसी कार्यालय के उपरी हिस्से में रहने लगे. साल 2015 में जब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी तब कमलेश तिवारी ने मुस्लिम पैगंबर पर आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी थी. जिसके बाद मुस्लिम वर्ग में आक्रोश भड़का और सहारनपुर में रहने वाले मौलाना ने तो कमलेश तिवारी का सर काटने वाले को इनाम देने की घोषणा कर दी थी. इसके बाद उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार ने कमलेश तिवारी को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून यानि रासूका के तहत जेल भेज दिया गया.

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कमलेश के जेल जाने के बाद हिन्दू महासभा ने उनकी पैरवी नहीं की. इस बात को लेकर कमलेश तिवारी काफी खफा थे. जेल से छूटने के बाद संगठन पर खुलकर अपना साथ ना देने का आरोप लगाया था. कमलेश तिवारी का कहना था कि हिन्दू महासभा में एक नहीं 8 राष्ट्रीय अध्यक्ष है. ऐसे में यह संगठन ठीक तरह से काम नहीं कर रहा. ऐसे में कमलेश तिवारी ने ‘हिंदू समाज पार्टी’  के नाम से अपना अलग संगठन बनाया. कमलेश तिवारी खुद इस सगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गये. कमलेश तिवारी का लक्ष्य धार्मिक संगठन से राजनीति पकड़ को मजबूत करने की थी. 2019 के लोकसभा चुनाव में वह अयोध्या से लोकसभा का चुनाव भी लड़े थे. कमलेश अब अपनी राजनीति को अयोध्या में केन्द्रित करना चाहते थे. कमलेश को लगता था कि 2022 के विधानसभा चुनाव में वह भाजपा का विकल्प बन सकते है. ऐसे में वह हिन्दू समाज पार्टी को विस्तार देने का काम करने लगे थे.

भाजपा के विरोध में थे कमलेश तिवारी

एक तरफ कमलेश तिवारी खुद को हिन्दूवादी नेता मानते थे. दूसरी तरफ भाजपा और उससे जुड़े लोग कमलेश को कांग्रेसी बता कर उनकी आलोचना करते थे. कमलेश कहते थे कि ’30 साल की उम्र में हम जेल गये. हिन्दूओं को जगा रहे है. लाठी खाई और आन्दोलन किया. इसके बाद भी भाजपा और उसके आईटी सेल के लोग मुझे कांग्रेसी बताते है. हिन्दूओं का विरोध करने वाली समाजवादी पार्टी की सरकार में मुझे 12-13 पुलिस सिपाहियों की सुरक्षा मिली थी. योगी सरकार ने सुरक्षा हटा दी और केवल एक सिपाही ही सुरक्षा में दिया. इससे साफ जाहिर होता है कि मुझे मारने की साजिष में वर्तमान सरकार भी हिस्सेदार बन रही है.’ कमलेश तिवारी ने यह बयान सोषल मीडिया पर पोस्ट किया था. सुरक्षा वापस लिये जाने के पहले भी कमलेष तिवारी भारतीय जनता पार्टी के विरोध में थे.

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कमलेश तिवारी को लगता था कि भाजपा केवल हिन्दुत्व का सहारा लेकर सत्ता में आ गई है. अब वह हिन्दुओं के लिये कुछ नही कर रही. कमलेश के ऐसे विचारों का ही विरोध करते भाजपा से जुड़े लोग कमलेश को कांग्रेसी कहते थे. कमलेश तिवारी को लग रहा था कि देश में हिन्दुत्व का जो महौल बना है उसका लाभ उनकी हिन्दू समाज पार्टी को मिलेगा. 27 सितम्बर को हुई पार्टी की मीटिंग में ‘2022 में एचएसपी की सरकार‘ के नारे लगे थे. अपनी पार्टी को गति देने के लिये कमलेश तिवारी ने देश के आर्थिक हालात, पाकिस्तान में हिन्दुओं पर अत्याचार, बंगाल में हिन्दुओं की हत्या, नये मोटर कानून में बढ़े जुर्माना का विरोध, जीएसटी जैसे मुददो पर भाजपा की आलोचना की. इन मुददों को लेकर वह राजधानी लखनऊ में धरना प्रदर्शन भी कर चुके थे. ऐसे में भाजपा के खिलाफ विरोध को समझा जा सकता है.

सोशल मीडिया पर थे बडी शख्सियत

उत्तर प्रदेश की राजधानी में भले ही कमलेश तिवारी को बड़ा नेता नहीं माना जाता था. इसके बाद भी सोशल मीडिया में वह मजबूत हिन्दूवादी नेता के रूप में पहचाने जाते थे. कमलेश तिवारी हिन्दुत्व की अलख सोशल मीडिया के जरीये जला रहे थे. फेसबुक, वाट्सएप, और ट्विटर पर कमलेश हिन्दूत्व के पक्ष में अपने विचार देते रहते थे. आपत्तिजनक टिप्पणी के कारण फेसबुक उनकी प्रोफाइल बंद कर देता था. ऐसे में कमलेश तिवारी के नाम पर 270 से अधिक टिप्पणी बनी हुई थी. उत्तर प्रदेश में भले ही कांग्रेस नेताओं को कमलेश तिवारी की हत्या कानून व्यवस्था का मसला लगती हो पर मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कमलेश तिवारी की हत्या पर सवाल उठाते कहा कि ‘कमलेश तिवारी की हत्या सुनियोजित है या नहीं यह उत्तर प्रदेश सरकार बताये?  कमलेश की मां जिस शिव कुमार गुप्ता का नाम ले रही उसको पकड़ा क्यो नहीं गया? शिव कुमार गुप्ता भाजपा नेता है क्या इस लिये उनको पकड़ा नहीं जा रहा.? ‘ दिग्विजय सिंह ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी सवाल किये.

कमलेश तिवारी की हत्या का आरोप जिन लोगों पर है वह भी कमलेश को सोशल मीडिया से ही मिले थे. पुलिस कहती है कि कमलेश तिवारी की हत्या करने वाले अशफाक ने रोहित सोलंकी राजू के नाम से अपना फेसबुक बनाया था. उसने खुद को मेडिकल कंपनी में जौब करने वाला बताया. जो मुम्बई का रहने वाला था और सूरत में काम कर रहा था. उसने हिन्दू समाज पार्टी से जुड़ने के लिये गुजरात के प्रदेश अध्यक्ष जैमिन बापू से संपर्क किया. जैमिन बापू कमलेश तिवारी के लिये गुजरात में पार्टी का काम देखते थे. जैमिन बापू के सपर्क में आने के बाद ही रोहित ने दो फेसबुक प्रोफाइल बनाई. इसके बाद वह कमलेश से जुड़ गया. अब वह यहां पर हिन्दुओं से जुड़े देवी देवताओं की पोस्ट करने लगा.

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फेसबुक बना सहारा

अशफाक ने फेसबुक मैसेंजर पर कमलेश तिवारी से बात करनी शुरू की. वह एक लड़की की शादी के सिलसिले में उनसे मिलना चाहता था. कमलेश के करीबी गौरव से अशफाक ने जानपहचान बढ़ाई और उनके बारे में सब जानकारी लेता रहा. अशफाक बने रोहित सोलंकी के फेसबुक में हिन्दूवादी संगठनों के 421 लोग जुड़े थे. हत्या के एक दिन पहले उसने कमलेश तिवारी को फोन करके मिलने का समय बताया. कमलेश ने पत्नी किरन से कहा कि ‘बाहर से दो लोग आ रहे है कमरा साफ कर दो’. अशफाक और पठान मोइनउददीन कमलेश तिवारी के घर से कुछ दूरी पर बने होटल खालसा इन में एक रात पहले आकर रूक चुके थे. सुबह 11 बजे होटल से नाश्ता करके निकले और कमलेश के घर पंहुच कर बारदात को अंजाम देकर वापस होटल आये अपने कपड़े बदले और 15 मिनट के बाद होटल छोड़ कर चले गये. होटल वालों को किसी भी तरह का कोई संदेह नहीं हुआ.

पुलिस को घटना स्थल से 16 अक्टूबर की रात करीब 9 बजे सूरत से खरीदी गई मिठाई का डिब्बा और बैग मिला. यह मिठाई सूरत के उद्योगनगर उधना स्थित धरती फूड प्रोडक्स से खरीदी गई थी. डिब्बे में पिस्ता धारी मिठाई की रसीद मिली. इसके बाद लखनऊ पुलिस ने गुजरात पुलिस के बीच संपर्क किया तो साजिश की कडियां जुड़नी शुरू हुई. पुलिस ने अशफाक और पठान मोइनउददीन के सपर्क के कुछ लोगों को पकड़ा. जिस आधार पर यह कहा जा रहा है कि 1 दिसम्बर 2015 को जिस समय कमलेष तिवारी से पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी उसी समय से वह मुसलिम कटटरवादी ताकतों और आईएसआईएस के निशाने पर थे.

कमलेश तिवारी की पत्नी किरन तिवारी ने हत्या में सहारनपुर के दो मौलानाओं अनवारूल हक मुफ्रती नईम का नाम पुलिस को तहरीर में लिख कर दिया. इन दोनो ने कमलेश तिवारी का सिर काटने वाले को 1 करोड़ 11 लाख का इनाम और हीरो का हार देने की घोषणा की थी. पुलिस का कहना है कि जिस तरह से गला काट कर कमलेश तिवारी की हत्या की गई है वह आईएसआईएस का तरीका दिखता है. पुलिस ने हत्या की थ्यौरी में आईएसआईएस को सामने कर दिया है पर अभी तक मुख्य आरोपी पकड़ से दूर है. ऐसे में पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठ रहे है. पुलिस ने पहले पूरे मामले को निजी विवाद बताया था पर सूरत की मिठाई की दुकान की रसीद मिलने के बाद गुप्तचर सूचानाओं को आधार मानकर वह आईएसआईएस की तरफ चली गई है. कमलेश का परिवार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिला. उत्तर प्रदेश सरकार ने कमलेश के परिवार को मदद देने की बात कही. कमलेश की मां पुलिस के खुलासे से संतुष्ट नहीं है. जब तक मुख्य आरोपी पुलिस की पकड से दूर है कमलेश हत्याकांड का सच सामने आने से दूर दिख रहा है.

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‘कसौटी जिंदगी के 2’: कोमोलिका की वजह से होगा अनुराग का एक्सिडेंट

छोटे पर्दे का पौपुलर सीरियल ‘कसौटी जिंदगी के 2’ में दर्शकों को लगातार महाट्विस्ट देखने को मिल रहा है. इस शो के पिछले एपिसोड में आपने देखा कि जब प्रेरणा ने कुकी की जान बचाई तब से मिस्टर बजाज का बिहेव प्रेरणा के लिए बदलता जा रहा है. और ऐसे में मोकै मिलते ही उन्होंने प्रेरणा का तलाक भी दे दिया.

अब मिस्टर बजाज चाहते हैं कि प्रेरणा अनुराग के साथ अपनी खुशहाल जिंदगी जी पाए. ऐसे में इस शो के दर्शकों अनुराग और प्रेरणा की शादी का बेसब्री से इंतजार है. ‘कसौटी जिंदगी के 2’ के  अपकमिंग एपिसोड में ये दिखाया जाएगा कि प्रेरणा अनुराग को बताएगी कि वह उसके बच्चे की मां बनने वाली है. अनुराग काफी खुश होगा.

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At last she had to accept her because of Anu's love but I'm sure when Anu will loss her memory, Mohini will be the one to become a hurdle firstly like the previous time? This is temporary? Fc~ @ibfiltera ❤️ {Don't forget to watch Kasautii Zindagii Kay on TV at 8.pm Mon-Fri on Star plus. Let's rise kasautii back in TRP ratings. If our not giving the TRP made Bajaj out then our giving highest TRP can change the upcoming tracks too. Please don't post the whole epi on IG. Precap,Edits and updates are fine to keep the excitement intact}. . . . . @iam_ejf @the_parthsamthaan #ejf #erica #ericafernandes #ps #parth #parthsamthaan #theparthsamthaan #anuragbasu #prernasharma #anupre #parica #earth #kzk #kzk2 #kasautiizindagiikay #kasautiizindagiikay2 #bestjodi

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लेकिन इस शो के आने वाले एपिसोड में आप देखेंगे कि अनुराग और प्रेरणा की जिंदगी में एक हादसा होने वाला है. जी हां इस हादसा को अंजाम कोमोलिका देने वाली है.

अपकमिंग एपिसोड में ये दिखाया जाएगा अनुराग और प्रेरणा अपनी शादी की खुशी मनाएंगे तो वहीं दूसरी ओर कोमोलिका उसकी जिंदगी में फिर से वापसी करने की तैयारी करेगी. जल्द ही आप देखेंगे कि अनुराग का एक्सीडेंट हो जाएगा और इस एक्सीडेंट की प्लानिंग और प्लौटिंग कोमोलिका ही करने वाली है. इसी के साथ ही कोमोलिका धीरे-धीरे अनुराग को ये यकीन भी दिला देगी कि प्रेरणा के पेट में पल रहा बच्चा मिस्टर बजाज का है.

जब प्रेरणा को पता चलेगा कि अनुराग उस पर शक कर रहा है तो वह उससे दूर जाने का फैसला करने लगेगी. ऐसे में एक बार फिर से अनुराग और प्रेरणा की राहें हमेशा-हमेशा के लिए अलग हो जाएंगी.

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अंजाम ए मोहब्बत: भाग 2

अंजाम-ए-मोहब्बत: भाग 1

आखिरी भाग

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इसी बीच दोनों एकदूसरे से खुल कर बातें करते और हंसतेहंसाते थे. इस हंसनेहंसाने में दोनों में कब प्यार हो गया, इस बात का उन्हें पता ही नहीं चला. दोनों जब तक एकदूसरे से बात नहीं कर लेते थे, उन्हें चैन नहीं आता था.

इस के पहले कि दोनों के संबंधों की भनक राजकुमार चौरसिया और उस के परिवार के कानों में पहुंचती, बृजेश चौरसिया ने राजकुमार की पान की दुकान पर बैठना छोड़ दिया और उसी इलाके में एक दुकान किराए पर ले कर काम शुरू कर दिया.

एक तरफ जहां मीनाक्षी और बृजेश का प्यार मजबूत हो रहा था, वहीं दूसरी ओर राजकुमार जब कभी बृजेश से मिलता था तो बृजेश से मीनाक्षी के लिए किसी योग्य लड़के की तलाश करने को कहता था. बृजेश भी राजकुमार का मन रखने के लिए उसे हां बोल दिया करता था.

बृजेश और मीनाक्षी ने मिलना बंद नहीं किया. वे समय निकाल कर कहीं न कहीं मुलाकात कर ही लेते थे. एक दिन जब उन के संबंधों की जानकारी राजकुमार को हुई तो उस के पैरों तले से जमीन सरक गई थी.

हुआ यह कि राजकुमार ने जब मीनाक्षी की शादी के लिए मुंबई के विरार में एक लड़का फाइनल किया तो मीनाक्षी ने उस लड़के से शादी करने से मना कर दिया. मीनाक्षी ने घर वालों से साफ कह दिया कि वह शादी केवल बृजेश से ही करेगी.

तब राजकुमार ने मीनाक्षी को आडे़हाथों लिया था. उसे मारापीटा और धमकाते हुए कहा कि यह कभी नहीं हो सकता क्योंकि वह उस के ही गांव और उसी की जाति का है. उस ने इस मामले में बृजेश को भी काफी धमकाया.

इस के महीने भर बाद ही उस ने मीनाक्षी की शादी एक दूसरे लड़के के साथ तय कर दी थी. यह शादी उस के गांव में होने वाली थी. इसलिए पूरा परिवार मीनाक्षी को गांव नुमाईडाही ले कर चला गया था.

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9 मार्च, 2019 को मीनाक्षी की बारात आने वाली थी. सभी मीनाक्षी की शादी की तैयारी में लगे थे. लेकिन मीनाक्षी वहां से फरार होने का रास्ता खोज रही थी. इस बीच मौका पा कर मीनाक्षी ने बृजेश को फोन किया. बृजेश ने उसे मध्य प्रदेश के शहर सतना पहुंचने को कहा.

मीनाक्षी शादी के 15 दिन पहले 22 फरवरी, 2019 को अपना घर छोड़ कर सतना पहुंच गई, वहां बृजेश ने अपने दोस्तों के साथ उस का स्वागत किया. फिर आर्यसमाज मंदिर में जा कर दोनों ने विवाह कर लिया. मंदिर में शादी करने के बाद उन्होंने 2 मई, 2019 को मुंबई पहुंच कर कोर्टमैरिज कर ली. इस के बाद दोनों मुंबई के नारायण नगर के शिवपुरी चाल में किराए का रूम ले कर रहने लगे. बृजेश अपनी दुकान पर बैठने लगा था.

मीनाक्षी के इस कदम से राजकुमार चौरसिया की समाज, गांव और नातेरिश्तेदारी में काफी बदनामी हुई थी. बेटी की वजह से उस का सिर शर्म से झुक गया था. उसे पता चल गया था कि बेटी ने बृजेश से शादी कर ली है. जिस की टीस उस के मन की गहराई में जा कर बैठ गई थी.

कुछ दिनों बाद मीनाक्षी ने अपनी मां से फोन पर बात करनी शुरू कर दी थी. परिवार वालों ने मीनाक्षी को इस शर्त पर माफ कर दिया था कि वह कभी बृजेश के साथ मुंबई से गांव या ससुराल नहीं जाएगी.

मगर ऐसा हुआ नहीं. समय अपनी गति से चल रहा था. मीनाक्षी गर्भवती हो गई थी. इस बीच बृजेश और मीनाक्षी ने यह योजना बनाई कि डिलिवरी के बाद वे दोनों गांव जा कर बच्चे को अपने मांबाप का आशीर्वाद दिलवाएंगे.

इस बात की भनक जब राजकुमार को लगी तो वह अपनी इज्जत को ले कर परेशान हो गया. वह गांव में दोबारा अपनी बेइज्जती नहीं करवाना चाहता था, इसलिए उस ने बेटी मीनाक्षी के प्रति एक खतरनाक फैसला ले लिया. उस ने सोच लिया कि वह ऐसा करेगा कि न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी.

योजना के अनुसार, 13 जुलाई 2019 की रात राजकुमार चौरसिया ने मीनाक्षी को फोन कर के 14 जुलाई को अपने घर बुलाया और कहा कि जिस तरह से तुम लोगों ने शादी की थी, उस में वह उन्हें कुछ नहीं दे पाया था, इसलिए उस ने उस के और दामाद के लिए कुछ कपड़े आदि खरीद कर रखे हैं. वह आ कर कपड़े वगैरह ले जाए.

पिता से फोन पर बात होने पर मीनाक्षी काफी खुश हुई. उस ने यह बात पति बृजेश को बताई तो बृजेश ने उसे पिता के पास जाने से मना कर दिया. लेकिन फिर भी मीनाक्षी नहीं मानी. क्योंकि वह तो इस विश्वास में थी कि पिता ने उसे माफ कर दिया है.

इसलिए पिता का थोड़ा प्यार पा कर वह उन से मिलने उस के घर चली गई थी. रात 12 बजे जब बृजेश दुकान से घर आया तो उसे मीनाक्षी घर पर नहीं मिली. वह समझ गया कि वह अपने पिता के पास ही गई होगी.

उस ने उसी समय मीनाक्षी और उस के पिता राजकुमार चौरसिया को फोन किया, लेकिन फोन बंद आ रहा था. काम से थका होने के कारण उस ने घर में रखा खाना खाया और फिर सो गया. सुबह उसे पुलिस वालों ने आ कर जगाया था.

हुआ यह था कि 14 जुलाई, 2019 की रात 10 बजे जब मीनाक्षी पिता राजकुमार चौरसिया के घर पहुंची तो घर में उस समय कोई नहीं था. राजकुमार के परिवार वाले उस रात बाहर एक रिश्तेदार के यहां चले गए थे. राजकुमार चौरसिया पूरी तैयारी के साथ बेटी मीनाक्षी का इंतजार कर रहा था.

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मीनाक्षी जैसे ही घर में दाखिल हुई तो राजकुमार उठ कर खड़ा हो गया और जैसे ही आशीर्वाद लेने के लिए वह पिता के पैर छूने को नीचे झुकी, तभी राजकुमार ने चाकू से उस के ऊपर हमला कर दिया. हमला करते समय राजकुमार ने मीनाक्षी का मुंह दबा रखा था, जिस कारण उस की चीख घुट कर ही रह गई थी.

मीनाक्षी की हत्या करने के बाद उस के शव को रिक्शा स्टैंड के पीछे डाल कर वह फरार हो गया और सीधे अपने गांव चला गया था.

पुलिस टीम ने राजकुमार चौरसिया से विस्तृत पूछताछ कर उसे उस की बेटी मीनाक्षी चौरसिया की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक राजकुमार चौरसिया जेल में बंद था. मामले का आरोपपत्र इंसपेक्टर विलाख दातीर तैयार कर रहे थे.

सौजन्य: मनोहर कहानियां

अमेरिका में तेजी से बढ़ रही है नास्तिकता

क्या लोगों का भगवान पर से भरोसा उठता जा रहा है? क्या भगवान के अस्तित्व पर यकीन कम हो रहा है? क्या इंसान अपने चारों ओर खींचे गये धर्म के दायरे से मुक्त होना चाहता है? अमेरिका में हुए एक सर्वे की मानें तो अमेरिका सहित दुनिया भर के देशों में नास्तिकों की आबादी में लगातार बढ़ोत्तरी देखी जा रही है. अमेरिका में तो ईसाई धर्म को माननेवालों की संख्या में निरंतर गिरावट दर्ज की जा रही है. ऐसे लोगों की संख्या वहां तेजी से बढ़ रही है जो किसी धर्म में यकीन नहीं रखते हैं. अमेरिका में नास्तिक और अनीश्वरवादियों की संख्या में जहां वृद्धि हुई है, वहीं रोमन कैथलिक मतावलंबियों की संख्या में काफी कमी आयी है. वहां ऐसे लोगों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है जो खुद को किसी एक धर्म से जुड़ा हुआ नहीं मानते हैं. खुद को ईसाई माननेवालों की संख्या में 1 दशक में 10% तक की कमी दर्ज की गयी है. यही नहीं अमेरिका में होने वाले धार्मिक आयोजनों में जानेवालों की संख्या में भी 7% तक की कमी देखी जा रही है.

उधर ब्रिटेन में भी बड़ी संख्या किसी भी धर्म को नहीं मानने वालों की है. ये ब्रिटेन की कुल आबादी के करीब आधे (49 फीसदी) हैं. वर्र्ष 1983 में ब्रिटेन में नास्तिक कुल आबादी के 31 फीसदी और एक दशक पहले कुल आबादी के 43 फीसदी थे. 1983 में ब्रिटेन में नास्तिकों की संख्या 1.28 करोड़ थी, जो 2014 में बढ़कर 2.47 करोड़ हो गयी. ब्रिटिश वयस्क काफी कम संख्या में चर्च ऑफ़ इंग्लैंड के अनुयायी बन रहे हैं. 1983 में 40 फीसदी लोग चर्च के अनुयायी थे, 2014 में इनका प्रतिशत घटकर 17 ही रह गया. चर्च औफ इंग्लैंड के अनुयायियों की संख्या में बीते एक दशक में सबसे ज्यादा नाटकीय परिवर्तन आया है.

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भारत की जनगणना जो वर्ष 2011 में हुई थी, के मुताबिक देश की आबादी में 2001 जनगणना के मुकाबले करीब 17.7 फीसदी की वृद्धि हुई है. जिसमें हिंदुओं में 16.8 फीसदी, मुसलमानों में 24.6 फीसदी, ईसाईयों में 15.5 फीसदी, सिखों में 8.4 फीसदी, बौद्धों में 6.1 फीसदी और जैनों में 5.4 फीसदी की वृद्धि हुई है. वहीं अन्य धार्मिक मत या अन्य मत मानने वालों (इसमें नास्तिक भी शामिल हैं) की संख्या में करीब 19 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गयी है. यह दूसरा सबसे तेजी से बढ़ता तबका है. दरअसल मतगणना में धर्म का उल्लेख न करने वालों की संख्या में आश्चर्यजनक तरीके से करीब चार गुना (करीब 300 फीसदी) की जबरदस्त वृद्धि देखी गयी है. भले ही ये देश की कुल आबादी के महज 0.23 फीसदी हैं, 2001 में इनकी संख्या 7,27,588 थी जो 2011 में बढ़कर 28,67,303 हो गयी है. अब इस तबके में ऐसी तीव्र वृद्धि की वजह लोगों में धर्म से बढ़ती दूरी की भावना हो या फिर कुछ और धार्मिक ठेकेदारों के लिए यह चिंता की बात तो है ही. आखिर अपने धर्म का उल्लेख न करने वालों की इतनी तीव्र वृद्धि भला क्यों हो रही है!

हाल ही में अमेरिका में प्यू रिसर्च सेंटर की ओर से किये गये सर्वे के नये डेटा में अमेरिका में बढ़ते नास्तिकों की संख्या की जानकारी काफी चौंकाने वाली है. सर्वे के अनुसार, प्यू सेंटर का कहना है कि हालिया सर्वे में 65% अमेरिकन व्यस्कों ने माना है कि उनका धर्म ईसाई है. जबकि वर्ष 2009 में यह आंकड़ा 77% तक था. दूसरी तरफ खुद को नास्तिक या अनीश्वरवादी बताने वालों की संख्या में बड़ी वृद्धि हुई है. यह आंकड़ा 17% से 26% तक बढ़ गया है. इसमें ऐसे लोग भी शामिल हैं जिन्होंने कहा कि वह किसी एक धर्म-विशेष में यकीन नहीं रखते हैं. कैथलिक ईसाई मतावलंबियों की संख्या में भी कमी आयी है. 2018 से 2019 के बीच टेलिफोन सर्वे के जरिए यह आंकड़े निकल कर आये हैं.

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अमेरिका में मुख्य रूप से रोमन कैथलिक और प्रॉटेस्टेंट दो मतों के ईसाई धार्मिक रहते हैं. रोमन कैथलिक लोगों की संख्या में पहले की तुलना में काफी कमी आयी है. 2009 में यह संख्या 51% तक थी जो अब घटकर 20% तक रह गयी है. दूसरी तरफ सर्वे के अनुसार 43% व्यस्कों ने खुद को प्रॉटेस्टेंट धर्म को मानने वाला बताया.

अमेरिका में ऐसे लोगों की संख्या काफी तेजी से बढ़ रही है जो किसी एक धर्म विशेष में यकीन नहीं रखते हैं. वहां स्वघोषित तौर पर खुद को नास्तिक बताने वालों की संख्या 4% हो गयी है, जबकि वर्ष 2009 में यह 2% ही थी. अनीश्वरवादियों की संख्या एक दशक पहले 3% तक थी, जो बढ़कर अब 5% हो गयी है. 17% अमेरिकन ऐसे हैं जिन्होंने खुले तौर पर कहा है कि वह किसी एक धर्म-विशेष में यकीन नहीं रखते हैं. 2009 में यह संख्या 12% थी.

प्यू सर्वे रिपोर्ट का कहना है कि धार्मिक सेवाओं में शिरकत करनेवालों की संख्या में भी पिछले एक दशक में काफी कमी आयी है. पिछले एक दशक में महीने में एक या दो बार धार्मिक आयोजनों में जानेवालों की संख्या 7 फीसदी तक घट गयी है. अब ज्यादा अमेरिकी ऐसे हैं जिनका कहना है कि वह धार्मिक आयोजन में बहुत कम हिस्सा लेते हैं. महीने में एक या दो बार धार्मिक आयोजन में हिस्सा लेनेवालों की संख्या 2009 में 52% तक थी जो अब घटकर 47% हो गयी है.

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कच्चे पंखों की फड़फड़ाहट : भाग 1

‘‘बुढ़ापे में तो बिस्तर पर चुपचाप सोना ही था लेकिन यहां तो आप ने 39 साल की उम्र में ही मुझे खाली पलंग के हवाले कर दिया है,’’ सोने से पहले आज भी लावण्या उदास सी अपने पति आनंद से वीडियो काल पर कह रही थी. उस का मन आनंद के बिना बिलकुल भी नहीं लगता था. दूसरे जिले में तबादले के बाद आनंद भी लावण्या के बगैर अधूरा सा हो गया था.

‘अब तो मेरा मन भी कर रहा है कि नौकरी छोड़ कर आ जाऊं घर वापस,’ आनंद ने भी बुझी सी आवाज में उस से अपने दिल का हाल बताया.

अब दिल चाहे जो भी कहे, सरकारी नौकरी भले साधारण ही क्यों न हो, लेकिन आज के जमाने में उस को छोड़ देना मुमकिन न था. इसे आनंद भी समझता था और लावण्या भी. सो, दोनों हमेशा की तरह फोन स्क्रीन के जरीए ही एकदूसरे की आंखों में डूबने की कोशिश करते रहे.

तभी लावण्या बोली, ‘‘लीजिए, सोनू भी बाथरूम से आ गया है, बात कीजिए और डांट सुनिए इस की,’’ कह कर लावण्या ने मोबाइल फोन अपने 13 साल के एकलौते बेटे सोनू को थमा दिया.

सोनू अपने पापा को देखते ही शुरू हो गया, ‘‘पापा, आप ने बोला था कि इस बार 15 दिनों के बीच में भी आएंगे… तो क्यों नहीं आए?’’

आनंद प्यार से उस को अपनी मजबूरियां बताता रहा. बात खत्म होने के बाद कमरे में नाइट बल्ब चमकने लगा और लावण्या सोनू को अपने सीने से लगा कर लेट गई.

सोनू फिर से जिद करने लगा, ‘‘मम्मी, आज कोई नई कहानी सुनाओ.’’

‘‘अच्छा बाबा, सुनो…’’ लावण्या ने नई कहानी बुननी शुरू की और उसे सुनाने लगी. नींद धीरेधीरे उन दोनों को जकड़ती चली गई.

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आधी रात को लावण्या की आंख खुली तो उस ने फिर अपने कपड़े बेतरतीब पाए. साड़ी सामान्य से ज्यादा ऊपर उठी थी. उस ने बैठ कर जल्दी से उसे ठीक किया और सोनू के सिर पर हाथ फेरा. वह निश्चिंत हो कर सो रहा था.

दरवाजा तो बंद था, लेकिन गरमी का मौसम होने के चलते कमरे की खिड़की खुली थी. लावण्या खिड़की के पास जा कर बाहर गलियारे में देखने लगी. नीचे वाले कमरे में 2 छात्र किराए पर रहते थे. कहीं किसी काम से इधर आए न हों…

‘‘कितनी लापरवाह होती जा रही हूं मैं… नींद में कपड़ों का भी खयाल नहीं रहता,’’ सबकुछ ठीक पा कर बुदबुदाते हुए लावण्या बिस्तर पर आ कर लेट गई. इधर कुछ हफ्तों में तकरीबन यह चौथी बार था जब उस को बीच रात में जागने पर अपने कपड़े बेतरतीब मिले.

एक दिन सोनू के स्कूल की छुट्टी थी और उन किराएदार लड़कों की कोचिंग की भी. ऐसा होने पर आजकल सोनू बस खानेपीने के समय ही ऊपर लावण्या के पास आता था और फिर नीचे उन्हीं लड़कों के पास भाग जाता था कि भैया यह दिखा रहे हैं, वह दिखा रहे हैं. लावण्या जानती थी कि दोनों लड़के सोनू से खूब घुलमिल चुके हैं. वह निश्चिंत हो कर घर के काम निबटाने लगी.

तभी सोनू हंसता और शोर मचाता हुआ वहां से भागा आया. पीछेपीछे वे दोनों लड़के भी दौड़े चले आए.

सोनू बिस्तर पर आ गिरा और वे दोनों उसे पकड़ने लगे.

लावण्या ने टोका, ‘‘अरेअरे… यहां बदमाशी नहीं… नीचे जाओ सब…’’

‘‘ठीक है आंटी…’’ उन में से एक लड़के ने कहा और उस के बाद वे दोनों लड़के सोनू का हाथ पकड़ कर उसे नीचे ले गए.

उन तीनों के चले जाने के बाद लावण्या की नजर बिस्तर पर पड़े एक मोबाइल पर गई जो उन दोनों में से किसी का था. लावण्या ने उन्हें बुलाना चाहा, लेकिन वे दोनों जा चुके थे.

लावण्या ने वह मोबाइल टेबल पर रखा ही था कि तभी उस की स्क्रीन पर ब्लिंक होती किसी नोटिफिकेशन से उस का ध्यान उस पर गया. उस ने अनायास ही मोबाइल उठा कर देखा तो कोई वीडियो फाइल डाउनलोड हो चुकी थी. फाइल के नाम से ही उसे शक हो रहा था, सो उस ने उस को ओपन किया.

वीडियो देखते ही लावण्या की आंखें फैलती चली गईं. लड़कों ने कोई बेहूदा फिल्म डाउनलोड की थी. उस ने उस मोबाइल फोन पर ब्राउजर ओपन किया तो एड्रैस बार में कर्सर रखते ही सगेसंबंधियों पर आधारित कहानियों के ढेरों सुझाव आने लगे जो उन्होंने पहले सर्च कर रखे थे.

उसी समय किसी के सीढि़यों से ऊपर आने की आहट हुई. लावण्या ने जल्दी से मोबाइल बिस्तर पर रख दिया.

वही किराएदार लड़का अपना मोबाइल लेने आया था. उस ने पूछा, ‘‘आंटी, क्या मेरा मोबाइल है यहां?’’

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‘‘हां, पलंग पर है,’’ लावण्या ने थोड़ी झल्लाहट के साथ जवाब दिया लेकिन उस लड़के का ध्यान उस पर नहीं गया और वह मोबाइल ले कर वापस नीचे चला गया.

लावण्या को कोई हैरानी नहीं हो रही थी, क्योंकि क्या लड़का और क्या लड़की, ये सब चीजें तो आज स्मार्टफोन के जमाने में आम बात हो चुकी हैं. उसे चिंता होने लगी थी तो बस सोनू के साथ उन लड़कों की बढ़ती गलबहियों की.

इस के बाद लावण्या ने सोनू को उन के पास जाने से रोकना शुरू किया. जब वह उन के पास जाना चाहता, तो वह उसे किसी बहाने से उलझा लेती. इस के बाद भी वह कभी न कभी उन के पास चला ही जाता था.

ऐसे जानें अपने बच्चे की प्रतिभा को

अगर आपके बच्चे में भी है कुछ अलग सा करने का हुनर तो उसे नजरअंदाज न करें. क्योंकि क्या पता उसी में उसका उज्वल भविष्य छिपा हो. जी हां, कई बार अगर बच्चा अपनी पसंद का कोई काम कर रहा  होता है.  जैसे डांस ,पेंटिंग या कोई पुरनी चीजों को ठीक कर के उन्हें दोबारा से बना देने का हुनर रखता है. या उसे गाने का शौक है. आप उसे हर समय गाना गाते रहने का ताना मार रही है.

अगर आप उसे उसकी पसंद का काम  करने से रोकती हैं  तो उसकी रचनात्मक शैली भी धीरे धीरे खत्म  होने लगेगी. इसलिये जरूरी है कि आप अपने बच्चे  की प्रतिभाओं को समझे, उनपर गौर करें कि उनके अंदर ऐसा क्या हुनर है. जो उनका भविष्य संवार सकता है. जरूरी नहीं कि हर बच्चा पढ़ाई में  अव्वल हो. हो सकता है कि उसका वो हुनर ही उसका करियर बन जाये. जरूरी है की माता पिता या उसके अध्यापक बच्चे की रचनात्मकता को समझे.

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जिस काम में रूचि है वो करने दें

छोटे बच्चों को आदत होती है कि वो कुछ न कुछ करते रहते हैं. कभी कोई पेंटिंग अच्छे से बनता है या  किसी में अपनी बात को खूबसूरत शब्दों में ढालने का हुनर  होता है या कोई और ऐसी खूबी होती है बस पेरेंट्स को उन्हें समझने की कोशिश की जरूरत होती है. अगर उसका मन घर में बैठकर कलरिंग करने का है या फिर वह टीवी पर थोड़ी देर के लिए अपना पसंदीदा कार्टून देखना चाहता है, तो इसके लिए आप उसे मना ना करें. अगर आपके पास समय है, तो उसके साथ बैठकर वो काम करें, जिसमें उसे मजा आ रहा हो. उसे बातों-बातों में जिंदगी के बारे में अच्छी बातें बताएं.

जबरदस्ती अपनी इच्छाएं न थोपे

अगर बच्चा अपनी पसंद का काम करना चाहता है तो उसको उस काम की जगह कोई और काम करने को न बोले. या उसको ये न कहें कि तुम्हारा दोस्त बौलीबौल खेलता है तुम भी वहीं खेलो ऐसा करने से बच्चे का आत्मविश्वास डगमगाता है. और बच्चे को परफेक्ट बनाने के लिये दबाव न डालें इससे बच्चे का उस काम के प्रति रूचि खत्म  होती चली जाएगी. बच्चे को उतना ही करने दें जितना  वो सहजता से कर पाए. बहुत सारे के चक्कर में वो कोई भी काम ठीक से नहीं कर पाएगा.

उसे सफलता व असफलता दोनों समझाएं  

अगर आपके बच्चे को सिर्फ सफलता का मतलब ही पता होगा तो वो अपनी असफलता के बाद डगमगा जायेगा. पेरेंट्स के तौर पर यह आपका दायित्व है कि अपने बच्चे के अंदर सफलता और असफलता को लेकर सही सोच विकसित करें. अपने बच्चे के अंदर असफलता से भी सीखने का भाव भरें.

बच्चे को किसी भी चीज़ का लालच देने से बचें

यदि बच्चा पढ़ाई नहीं कर रहा है या कोई काम जो की वह अभी नहीं करना चाहता है तो उससे जबरदस्ती न करें और न ही किसी चीज का लालच दें. लालच देने से उसकी यह आदतों मे शुमार हो जाएगा . और वह उस काम को ठीक से नहीं करेगा  क्योंकि उसका ध्यान उस चीज़ में पड़ा रहेगा जिसका अपने वादा किया है.

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अपने बच्चे के साथ वक्त गुजारें

अगर आपका बच्चा किसी काम को कर रहा है तो उसके साथ थोड़ी देर बैठे उस काम में अपनी रूचि दिखाए व उसको उसके लिये प्रोत्साहित करें क्योंकि पेरेंट्स का स्पोर्ट ही बच्चे को ऊंचाइयों तक ले जाता है व उसका नजरिया  उस काम के लिये सकारात्मक सोच पैदा करता  है.

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