वी-मार्ट रिटेल कम्पनी लिमिटेड के सीएमडी ललित अग्रवाल का परिवार यूं तो मूल रूप से राजस्थान का रहने वाला है, मगर उनके पिता कोलकाता में जा बसे थे. कोलकाता में ही ललित अग्रवाल का जन्म हुआ. आसपास बंगाली माहौल होने के कारण बचपन से ही उनकी बंग्ला भाषा पर अच्छी पकड़ बन गयी, मगर इसके साथ ही वे कई और भाषाएं भी बखूबी बोल लेते हैं. वे उड़िया और पंजाबी में धाराप्रवाह बात करते हैं. मराठी और गुजराती भाषाएं जानते हैं. हिन्दी, उर्दू और अंग्रेजी तो खैर परिवार में ही बोली जाती थी. आज वे बिजनेस के कार्यों से जिस शहर में जाते हैं, वहां के लोगों से उनकी भाषा में वार्तालाप करके उन्हें क्षण भर में अपना बना लेते हैं. उनकी यह खूबी उनके व्यापार को बढ़ाने में काफी अहम सिद्ध हुई है. यह जानकर आश्चर्य होता है कि टेलर पिता की छोटी सी दुकान में बैठने वाले ललित अग्रवाल ने महज सोलह बरसों में देश के 17 राज्यों में वी-मार्ट के 245 शोरूम्स खोल डाले. गारमेंट्स के क्षेत्र में वी-मार्ट आज नये कीर्तिमान स्थापित कर रहा है. मौल में शॉपिंग की बात जहां पहले उच्च वर्ग के लोगों के बस की बात मानी जाती थी, वी-मार्ट ने मध्यम और निम्न वर्ग के लोगों को भी यह मौका उपलब्ध कराया है कि वे भी शान और गुरूर से किसी मॉल में जाकर मनपसंद डिजाइनर कपड़ों की खरीदारी कर सकें. छोटे शहरों के निवासियों की जरूरतों और उनकी पौकेट को समझते हुए उन्हें बढ़िया क्वालिटी और डिजाइन के अत्याधुनिक ड्रेसेज उपलब्ध कराने में आज वी-मार्ट का जवाब नहीं है.
बचपन का अनुभव काम आया
वी-मार्ट के मालिक ललित अग्रवाल के पिता सिलाई का काम करते थे. उनकी दुकान पर आने वाले ग्राहकों और उनकी डिमांड को ललित ने बचपन में काफी गौर से देखा-समझा. कौन सा ड्रेस मिटीरियल किस क्वालिटी का है, किस दाम का है, क्या डिजाइन मार्केट में ट्रेंड कर रहा है, ग्राहक क्या पसन्द कर रहा है, क्या सिलवाना और पहनना चाहता है, इन तमाम बातों पर बचपन से ही उनकी पैनी नजर रही है. गारमेंट इंडस्ट्री में कदम रखने के पीछे उनके इसी अनुभव ने महती भूमिका निभायी है. महज सोलह बरस के छोटे से समयान्तराल में एक टेलर की दुकान से उठ कर रिटेल सेक्टर में इतना बड़ा नाम बन जाना कोई मामूली बात नहीं है.
ललित अग्रवाल कहते हैं, ‘मेरे खून में रिटेल दौड़ता था. मैं खुद छोटे शहर से निकल कर आया था, तो मुझे पता था कि छोटे शहर के लोगें की क्या दिक्कतें हैं, उनकी क्या चाहतें हैं, वो क्या खरीदते हैं और उन्हें क्या क्वालिटी मिलती है. मुझे निम्न और मध्यम वर्ग के लिए बाजार में बहुत बड़ा गैप नजर आ रहा था. मेरे लिए यह अच्छी औपेरच्यूनिटी थी, जहां मैं एक बहुत बड़े वर्ग के लिए कुछ बड़ा कर सकता था, तो सबसे पहले मैंने अपने चचेरे भाई के साथ 1999 में विशाल मेगामार्ट शुरू किया. हम जैसे-जैसे काम करते गये वैसे-वैसे रास्ता बनता गया. फिर 2003 में मैंने वी-मार्ट शुरू किया. आज देशभर में वी-मार्ट के 245 शोरूम्स हैं.’
जहां चाह वहां राह
भारत के बाजार और ग्राहकों को बहुत बेहतर तरीके से समझने वाले ललित अग्रवाल एक आशावादी व्यापारी हैं. आज जहां चारों तरफ आर्थिक मंदी का शोर मचा हुआ है, वहीं देश भर में अपने शोरूम्स का जायजा लेकर हाल ही में दिल्ली लौटे ललित अग्रवाल दीवाली के त्योहार को लेकर खासे उत्साहित दिखते हैं. उनका कहना है कि मंदी और खरीदारी को लेकर जो भ्रम मीडिया जगत में फैला हुआ है, बाजार की सच्चाई उससे कोसों दूर है. फेस्टिव सीजन में ग्राहक काफी उत्साहित है और व्यापारी भी. त्योहार की खरीदारी चरम पर है, देश भर के बाजारोंं में ऑफर्स की बहार है और दुकानों पर खूब भीड़ उमड़ रही है.
औफर्स से उत्साह
ललित अग्रवाल कहते हैं कि सोशल मीडिया और सेल्फी का जमाना है, हर व्यक्ति फेसबुक पर है, तो हर कोई अच्छा, सुन्दर और लखदख दिखना चाहता है. खासतौर पर महिलाएं. उनकी खरीदारी तो दुर्गापूजा और करवाचौथ से ही शुरू हो जाती है. दीवाली में भारतीय परिवारों के बीच गिफ्ट का आदान-प्रदान भी होता है, और उसके बाद फरवरी माह तक उत्सव का सा माहौल रहता है. क्रिस्मस, न्यू ईयर के साथ ही यह समय शादियों का होता है, ऐसे में खरीदारी तो जबरदस्त होगी ही. भारतीय महिलाओं की पसन्द और डिमांड को देखते हुए वी-मार्ट ने अपने शोरूम्स में काफी कुछ नया जोड़ा है. नये डिजाइन के कपड़ों के अलावा ज्वेलरी, घरेलू सामान, इलेक्ट्रानिक अप्लाएंस, नॉनस्टिक बर्तन, प्रेशर कुकर आदि की बड़ी रेंज उतारी है. इन तमाज चीजों के साथ आकर्षक औफर्स भी हैं. वी-मार्ट इस फेस्टिव सीजन में ‘मल्टीपल चेन औफर’ लेकर आया है. ललित अग्रवाल कहते हैं कि वी-मार्ट का लक्ष्य छोटे शहरों के लोगों को अच्छा सामान उचित दामों में उपलब्ध कराने का है. छोटे शहरों में आमतौर पर एक परिवार का त्योहारी बजट कोई पांच हजार रुपये तक होता है तो वी-मार्ट ने औफर दिया है कि जब वह 1500 रुपये की खरीदारी करेंगे तो उनको पांच सौ रुपये का गिफ्ट वाउचर मिलेगा, जिसको भुनाने के वक्त बारह सौ रुपये की खरीद पर उन्हें फिर पांच सौ रुपये का गिफ्ट वाउचर मिलेगा, ऐसे कुछ क्रमों के बाद यह ऑफर एक सोने के सिक्के पर खत्म होगा. इस औफर से छोटे शहर की महिलाओं में काफी उत्साह दिख रहा है, सोने का सिक्का पाने की हसरत में वे खूब खरीदारी कर रही हैं.
सोशल मीडिया से बढ़ी चाहतें
जमाना आज औफलाइन के साथ-साथ औनलाइन शौपिंग का भी है और महिलाएं घर बैठे अपने स्मार्ट फोन पर प्रोडक्ट्स की बहुत बड़ी रेंज से परिचित हो रही हैं, उनके ज्ञान और जानकारी में बढ़ोत्तरी हो रही है, ऐसे में वह बहुत सोच-समझ कर अपने बजट के अनुरूप अच्छे से अच्छे और ज्यादा से ज्यादा ड्रेसेज और ज्वेलरी खरीदना चाहती हैं. किस तरह के ड्रेस डिजाइन ट्रेंड कर रहे हैं, किस तरह की ज्वेलरी पहनी जा रही है, यह सब उन्हें सोशल मीडिया के जरिए पता चल जाता है. महानगरों में महिलाओं के पास पैसा ज्यादा है, तो वह बड़े-बड़े शोरूम्स में जाकर खूब खुलकर खर्च करती हैं, मगर छोटे शहर की महिलाओं का हाथ थोड़ा तंग रहता है. इस बात को वी-मार्ट ने बखूबी समझा है और यही वजह है कि त्योहार के वक्त उसने छोटे शहरों की महिलाओं को कतई मायूस नहीं होने दिया है. वी-मार्ट के शोरूम्स में उन्हें कम कीमत में अच्छी रेंज मिल रही है, जिसके चलते वे खासी उत्साहित हैं.
क्वालिटी से कोई समझौता नहीं
ललित अग्रवाल कहते हैं कि हमारा ग्राहक वर्ग छोटे शहरों का है. यह एक बहुत बड़ा वर्ग है, जो पांच-सात साल पहले तक शौपिंग मौल्स में खरीदारी का सपना भी नहीं देखता था, वह तो बस अपने गली-मोहल्लों में लगने वाले बाजार में ही खरीदारी करता था, मगर वी-मार्ट ने उनके अन्दर मॉल में जाकर शौपिंग करने का साहस पैदा किया है. जहां उन्हें अपनी जेब के अनुसार अच्छा सामान मिलता है. वे कहते हैं कि छोटे शहर का आदमी बड़ी मेहनत से पैसा कमाता है और मेहनत की कमाई को जब वह खर्च करता है तो बड़ा सोच-समझ कर खर्च करता है. इसलिए क्वालिटी को लेकर उसे बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता है. अगर हमें उनके साथ लम्बे समय तक चलने वाला व्यापार करना है तो हमें उनको अच्छी क्वालिटी ही देनी है. अगर आप कम दाम में अच्छी क्वालिटी देंगे तो कस्टमर बार-बार उसको यूज करेगा और लौट-लौट कर आपके पास ही आएगा. जो लोग साल में तीन या चार ड्रेसेज खरीदते हैं, और उन कपड़ों को बार-बार धोते और पहनते हैं, तो हम उन्हें खराब क्वालिटी तो दे ही नहीं सकते हैं. वरना दो बार की धुलाई के बाद ही उनके रंग उड़ जाएंगे. हम उन्हें उनकी जेब के अनुरूप अच्छी क्वालिटी का सामान उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध हैं, ताकि उनका हम पर विश्वास बना रहे और वे हमारे साथ हमेशा जुड़े रहें.
एथनीक के साथ वेस्टर्न ड्रेसेज की चाह
ललित अग्रवाल कहते हैं कि त्योहार के वक्त जहां छोटे शहरों की महिलाएं पारम्परिक ड्रेसेज जैसे साड़ी, लंहगा-चुन्नी या शलवार-सूट पहनना पसंद करती हैं, वहीं अन्य दिनों में वे हल्के और आरामदायक कपड़े चाहती हैं. इसलिए दोनों ही तरह के कपड़ों की काफी खरीदारी हो रही है. देश में कई ऐसे शहर हैं जहां पहले जीन्स-टीशर्ट पहनने के बारे में युवतियां सोचती भी नहीं थीं, मगर जब वी-मार्ट ने कम दामों में अपने स्टोर्स पर उनके लिए जीन्स-टीशर्ट, छोटी कुर्तियां, स्कर्ट्स इत्यादि उतारीं तो उनके प्रति उनमें गजब का आकर्षण देखा गया. अब छोटे शहरों की लड़कियां भी आराम से पाश्चात्य कपड़े पहनती हैं. ये सुविधाजनक और आरामदायक तो होते ही हैं, उनको स्मार्ट और ग्लैमरस लुक भी देते हैं. त्योहारों के मौसम में भारतीय महिलाएं जहां एथनीक कपड़े पहनना पसंद कर रही हैं, वहीं कॉलेज जाने या घूमने-फिरने के दौरान जीन्स टीशर्ट, शौर्टस या स्कर्ट उनकी पसंद बनती जा रही है.
महिलाओं को बड़े और मजबूत कदम उठाने चाहिए
ललित अग्रवाल मानते हैं कि भारत में महिलाओं के सामने काम करने के अवसर बहुत ज्यादा हैं. वे घर बैठे भी कई तरह के उद्योग शुरू कर सकती हैं. उनके लिए बहुत ऑपेरच्यूनिटीज हैं. बात चाहे उत्पादन को बढ़ाने की हो या खपत की, दोनों ही जगह वे बेहतर सहयोग दे सकती हैं. वी-मार्ट ने फरीदाबाद और दिल्ली में ऐसे दो यूनिट्स शुरू किये हैं जहां सारा काम महिलाएं ही संभाल रही हैं. वी-मार्ट के स्टोर्स में पारंपरिक कलात्मकता से भरी पोषाकें बनाने और हमें सप्लाई करने वाली महिलाएं ही हैं.
ललित अग्रवाल जल्दी ही एक औल विमेन स्टोर बनाने की प्लानिंग कर रहे हैं, जहां स्टोर मैनेजर से लेकर सेल्स डिपार्टमेंट तक का सारा काम महिलाएं ही करेंगी. वे एक ऐसा माहौल तैयार करना चाहते हैं, जिससे उनके आर्गेनाईजेशन और समाज में महिलाएं आगे रहें. बावजूद इसके वे मानते हैं कि भारतीय महिलाओं में कौन्फीडेंस की अभी कुछ कमी है. उनमें एक झिझक है. वे फैसले लेने के लिए परिवार वालों का मुंह देखती हैं. कोई चीज खरीदनी है तो वह दूसरे की इजाजत मिलने का इंतजार करती हैं, जबकि उनको खुद बाहर निकलना चाहिए. बड़े स्टेप्स लेने चाहिएं. बेझिझक खरीदारी करनी चाहिए. बेझिझक काम करना चाहिए. ललित अग्रवाल मानते हैं कि आज जब सरकार महिलाओं की सुरक्षा के प्रति इतनी संवेदनशील है, उन्हें काम करने के सुरक्षित अवसर उपलब्ध करा रही है, तो महिलाएं डर कर नहीं, खुल कर जियें. वे स्ट्रांग बनेंगी तभी देश स्ट्रांग बनेगा.