लेखक: संतोष सांघी

परिवहन विभाग की ओर से देशभर में ‘सावधानी हटी, दुर्घटना घटी’ के पोस्टर, बैनर, होर्डिंग्स लगवाए गए हैं. ये सड़क पर चलने या कोई भी गाड़ी चलाने वालों को चौकन्ना करने के लिए लगवाए गए हैं, ताकि किसी भी तरह का ऐक्सिडैंट न हो. लेकिन, यह स्लोगन हर इंसान के लिए हर समय के लिए भी है. घटनादुर्घटना कभी भी किसी भी तरह की घट सकती है. यह जरूरी नहीं कि सड़क पर ही दुर्घटना घटती है. यहां कुछ ऐसे ही हुए हादसों का जिक्र किया जा रहा है.

कैंची की करामात

ट्रेन तेज गति से चली जा रही थी. हमारे डब्बे में एक महिला सामने की सीट पर अपनी ढाईतीन वर्षीया बच्ची को गोद में ले कर बैठी हुई थी. बच्ची बेहोशी में कभीकभी कराह उठती थी. महिला उसे थपकती हुई अपने आंसू पोंछती जा रही थी. कुछ देर के बाद जब मुझ से रहा नहीं गया तो मैं ने पूछ ही लिया, ‘बहनजी, बच्ची को क्या तकलीफ है? इस की आंख पर पट्टी क्यों बंधी हुई है? और आप रो क्यों रही हैं?’

मुझ से सहानुभूति पा कर उस का सब्र का बांध ही टूट पड़ा. रोते हुए उस ने जो घटना सुनाई उस का सार यह था- 4 दिनों पहले बच्ची दोपहर में दरी पर सो रही थी. मां ने सोचा, थोड़ी सिलाई कर लूं, उठने पर यह बहुत तंग करती है, कभी मशीन पकड़ लेती है तो कभी कपड़ा खींचती है. घंटेडेढ़घंटे का समय मिल जाएगा. सर्दी बहुत थी, सो वह मशीन उठा कर आंगन में धूप में ले जा रही थी. मशीन पर कैंची रखी हुई थी. जैसी कि महिलाओं की आदत होती है, कैंची मशीन पर ही रख देती हैं.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...