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दीवाली स्पेशल : दीवाली कभी पति के घर कभी पत्नी के मायके

मधु की शादी के बाद की पहली दीवाली थी. ससुराल में सब खुश थे. पूरे घर में चहलपहल थी. घर में नई बहू आई थी, सो ननद परिवार समेत दीवाली सैलिब्रेट करने आई थी. मधु ससुराल वालों की खुशी में खुश थी मगर उस के मन के एक कोने में मायके के सूने आंगन का एहसास कसक पैदा कर रहा था. वह एकलौती बेटी थी. शादी के बाद उस के मांबाप अकेले रह गए थे. मां की तबीयत ठीक नहीं रहती थी. वैसे भी, पहले पूरे घर में उस की वजह से ही तो रौनक रहती थी. अब उस आंगन में कौन दौड़दौड़ कर दीये जलाएगा, यह एहसास उस के दिल के अंदर एक खालीपन पैदा कर रहा था.

मधु ने पति से कुछ कहा तो नहीं, मगर उस के मन की उदासी पति से छिपी भी न रह सकी. पति ने मधु से रात 9 बजे के करीब कार में बैठने को कहा. मधु हैरान थी कि वे कहां जा रहे हैं. गाड़ी जब उस के मायके के घर के आगे रुकी तो मधु की खुशी का ठिकाना न रहा. घर में सजावट थी पर थोड़ीबहुत ही. वह दौड़ती हुई अंदर पहुंची. मां बिस्तर पर बैठी थीं और पापा किचन में कुछ बना रहे थे. अपनी लाड़ली को देखते ही दोनों ने उसे गले लगा लिया. बीमार मां का चेहरा खुशी से दमकने लगा. दोनों करीब 1 घंटे वहां रहे. घर को रोशन कर जब वापस लौटे तो मधु का दिल पति के प्रेम में आकंठ डूबा हुआ था.

खुशियों के त्योहार दीवाली का आनंद पूरे परिवार के साथ मनाने में आता है.  एक लड़की के लिए उस का मायका और ससुराल दोनों ही महत्त्वपूर्ण होते हैं.  शादी के बाद उसे अपनी ससुराल में ही दीवाली मनानी होती है और तब वह अपनी मां के हाथों की मिठाई व भाईबहनों की चुहलबाजियां बहुत मिस करती है.  आज जबकि परिवार वैसे ही काफी छोटे होते हैं, दीवाली में सब के साथ मिल कर ही खुशियां बांटी जा सकती हैं.

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शरीर से स्त्री भले ही ससुराल में हो  पर उस के मन का कोना मायके की याद में गुम रहता है. क्यों न इस दीवाली की रोशनी हर आंगन में बिखेरें. कभी पति की ससुराल तो कभी पत्नी की ससुराल खुशियों से आबाद करें.

कहां मनाएं दीवाली

आमतौर पर शादी के बाद की पहली दीवाली रिश्तों को बनाने और उन्हें रंगों से सजाने में खास महत्त्वपूर्ण होती है. यह दिन ससुराल में ही बीतना चाहिए ताकि नई बहू के आने की खुशी दोगुनी हो जाए. पर ध्यान रहे आप की बहू किसी घर की बेटी भी है. वह आप के घर में रौनक ले कर आई है पर उस का मायका सूना हो चला है. तो क्यों न पत्नी के मायके को भी नए दामाद के आने की खुशी से रोशन किया जाए.

यदि पत्नी का मायका और ससुराल एक ही शहर में हैं तो दोनों परिवार मिल कर भी दीवाली मना सकते हैं. इस से दोनों परिवारों को आपस में घुलनेमिलने का मौका मिलेगा और बच्चे भी दोनों परिवारों से जुड़ सकेंगे. दोनों घरों की खुशियों के लिए यह भी किया जा सकता है कि पतिपत्नी दोचार घंटे के लिए बच्चों को नानानानी के पास छोड़ आएं.

यदि दोनों घर अलगअलग शहरों में हैं तो पतिपत्नी बच्चों को ले कर एक दीवाली ससुराल में तो दूसरी मायके में मना सकते हैं.

आजकल कई घरों में एकलौती  बेटियां होती हैं. ऐसे में लड़की के मायके वाले यानी उस के मांबाप को भी हक  है कि वे अपनी बेटी और उस के बच्चों के साथ अपने जीवन की खुशियां बांटें.

जब पति दीवाली में अपनी ससुराल जाए तो दामाद के बजाय बेटे की तरह जाए.  अपनी आवभगत  कराने के बजाय इस बात का खयाल ज्यादा रखे कि सासससुर के लिए तोहफा क्या ले जाना है या मिठाइयों, कपड़ों, पटाखों और सजावटी सामानों का बढि़या इंतजाम कैसे किया जाए या घर को इस दिन कैसे अधिक खूबसूरत बनाया जाए या फिर सासससुर के स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं कैसे दूर की जाएं.

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पति की ससुराल का अर्थ है पत्नी के मांबाप का घर. जब पत्नी पति के मांबाप को अपने मांबाप और उस के घर को अपना घर मान सकती है तो पति क्यों नहीं? आखिर मांबाप तो लड़के के हों या लड़की के, उतने ही प्यारदुलार और केयर के साथ अपने बच्चों का पालनपोषण करते हैं. तो क्या लड़की के मांबाप को  बुढ़ापे में अपने बच्चों का प्यार और साथ पाने का हक नहीं है?

झगड़े दूर करें

यदि किसी बात को ले कर दोनों घरों में किसी भी तरह का मनमुटाव है तो दीवाली के मौके पर उसे जरूर दूर कर दें. परस्पर आगे बढ़ने और खुशियों को बांटने से ही जीवन सुखद बनता है.

करण जौहर के साथ काम करना गर्व की बात- विक्रमजीत विर्क

इन दिनों डिजिटल और ओटीटी प्लेटफार्म ने कई फिल्मकारों के लिए एक नई राह खोल दी है. जो फिल्में सिनेमा घरों में नहीं पहुंच पा रही हैं, कम से कम वह डिजिटल या ओटीटी प्लेटफार्म पर आकर दर्शकों से रूबरू हो रही हैं. यह एक कड़वा सच है. मशहूर फिल्मकार करण जौहर ने भी सुशांत सिंह राजपूत और दक्षिण भारत की फिल्मों में अपने अभिनय का जलवा दिखा चुके अभिनेता विक्रमजीत विर्क को लेकर फिल्म ‘‘ड्राइव’’ का निर्माण किया था. यह फिल्म लंबे समय से अपने प्रदर्शन का इंतजार कर रही थी. अब खबर है कि यह फिल्म एक नवंबर को सिनेमाघरों की बजाय ‘‘नेटफ्लिक्स’’ पर आएगी.

फिल्म ‘‘ड्राइव’’ के नेटफ्लिक्स पर आने की खबर से विक्रमजीत विर्क काफी खुश व उत्साहित हैं. मूलतः हरियाणवी जाट विक्रमजीत विर्क ने दस साल के अंदर दक्षिण भारत की 15 फिल्मों में अभिनय कर अपनी खास पहचान बनायी है. मगर वह लंबे समय से हिंदी फिल्मों से जुड़ने के लिए इंतजार कर रहे थे. जब उन्हें करण जौहर की प्रोडक्शन कंपनी ‘‘धर्मा प्रोडक्शन” की फिल्म ‘‘ड्राइव’’ में सुशांत सिंह राजपूत के साथ समानांतर लीड के रूप में अभिनय करने का मौका मिला, तो वह अति उत्साहित थे. मगर इस फिल्म के प्रदर्शन के अधर में लटक जाने से वह काफी निराश भी थे. पर अब वह खुश हैं क्योंकि उनकी फिल्म ‘‘ड्राइव’’ एक नवंबर को ‘‘नेटफ्लिक्स’’ पर आएगी. इससे वह अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी अभिनय प्रतिभा को पहुंचा सकेंगे.

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करण जौहर प्रतिभा को तराशने में माहिर माने जाते हैं और उनके साथ इस फिल्म के माध्यम से विर्क का मार्गदर्शन करने के साथ, उनकी सीमाओं का भी विस्तार हुआ है और उन्हें हर दृश्य में खुद को आगे बढ़ाने का अवसर भी मिला है.

तरूण मनसुखानी निर्देशित एक्शन व रोमांच से भरपूर फिल्म ‘‘ड्राइव’’ में जैकलीन फर्नांडिस, बोमन ईरानी, पंकज त्रिपाठी, विभा छिब्बर और सपना पब्बी भी हैं. इसके गाने पहले से ही हिट हो चुके हैं.

खुद विक्रमजीत विर्क कहते हैं- ‘‘करण जोहर के प्रोडक्शन की फिल्म से हिंदी फिल्मों यानी कि बौलीवुड में कदम रखना सौभाग्य की बात है. उनके निर्देशन और मार्गदर्शन की तुलना नहीं की जा सकती है और मैं इस अवसर को पाकर बेहद भाग्यशाली महसूस कर रहा हूं. उन्होंने मुझे अभिनय के बारे में एक नया दृष्टिकोण दिया और मुझे खुद को चुनौती देने में मदद की.

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‘ड्राइव’ एक सम्मोहक कहानी है, जिसमें एक्शन से लेकर इमोशन तक सब कुछ है. हमें यकीन है कि यह फिल्म डिजिटल जगत की सभी सीमाओं को तोड़ देगी. मैं खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं कि बौलीवुड में कदम रखते हुए मुझे करण जौहर के साथ ही ‘नेटफ्लिक्स’ का साथ मिल गया.’’

एडिट बाय- निशा राय

कच्चे पंखों की फड़फड़ाहट : भाग 2

एक रात बिजली नहीं थी और लावण्या के घर का इनवर्टर भी डाउन हो गया था. गरमी के चलते उस की नींद खुल गई और प्यास भी लगने लगी थी. पानी पी आती लेकिन आलस भी होरहा था. इसी उधेड़बुन में वह चुपचाप लेटी रही.

तभी लावण्या को अपनी तरफ सोनू के हाथ की हरकत महसूस हुई. लावण्या को कुछ अलग सी छुअन लगी सो वह यों ही लेटी रही कि देखे आगे क्या होगा.

उन हाथों के पड़ावों के बारे में जैसेजैसे लावण्या को पता चलता गया, उस के आश्चर्य की सीमाएं टूटती गईं. उस का दिल जोरजोर से धड़कने लगा और प्यास से सूखे मुंह में कसैले स्वाद ने भी अपनी जगह बना ली. जी तो चाहा कि सोनू को उठा कर थप्पड़ मारने शुरू कर दे, लेकिन विचारों के बवंडर ने ऐसा करने नहीं दिया.

कुछ देर बाद सोनू ने धीरे से करवट बदली और शांत हो गया. लावण्या उठ कर बिस्तर पर बैठ गई और अपनी हालत को देखने लगी. अकसर रात में अपने कपड़ों के बिखरने का राज जान कर उस की आंखों से झरझर आंसू बहने लगे थे. आखिर उन लड़कों का बुरा असर उस के कलेजे के टुकड़े को भी अपनी चपेट में ले गया था.

लावण्या सोच रही थी कि उस की परवरिश में आखिर कहां कमी रह गई, जो बाहरी चीजें इतनी आसानी से उस के खून में आ मिलीं? वह उसी हाल में पूरी रात पलंग पर बैठी रही.

अगली सुबह नाश्ता बनाते समय लावण्या ने सोनू के सामने अनजान बने रहने की भरसक कोशिश की लेकिन रहरह कर उस के अंदर का हाल उस के शब्दों से लावा बन कर फूटने को उतावला हो जाता और सोनू हैरानी से उस का मुंह ताकने लगता.

सोनू के स्कूल चले जाने के बाद लावण्या लगातार अपने मन को मथती रही. आनंद से इस बारे में बात करे या नहीं? अपनी मां को बताए कि दीदी को, वह फैसला नहीं ले पा रही थी.

कई दिनों तक लावण्या इसी उधेड़बुन में रही, लेकिन किसी से कुछ कहा नहीं. सोनू से बात करते समय अब उस ने मां वाली गरिमा का ध्यान रखना शुरू कर दिया.

आखिरकार उस के दिल ने फैसला कर लिया कि सोनू उस का जिगर है, उम्र के इस मोड़ पर वह भटक सकता है मगर खो नहीं सकता.

इस के अलावा सोनू बहुत कोमल मन का भी था. अपनी छोटी सी गलती के भी पकड़े जाने पर वह काफी घबरा उठता. और यहां तो इतनी बड़ी बात थी. सीधेसीधे उस से इस बारे में कुछ कहना किसी बुरी घटना को न्योता देने के बराबर था.

लावण्या ने तय किया कि वह उन जरीयों को तोड़ देगी जो उस के बेटे के कच्चे मन की फड़फड़ाहट को अपने अनुसार हांकना चाह रहे हैं.

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लावण्या ने उन लड़कों और सोनू के बीच हो रही बातचीत को छिपछिप कर सुनना शुरू किया. उस का सोचना बिलकुल सही निकला.

वे लड़के लगातार सोनू के बचपन को अधपकी जवानी में बदलना चाह रहे थे और उन की घिनौनी चर्चाओं का केंद्र लावण्या होती थी.

सोनू फटीफटी आंखों से उन की बातें सुनता रहता था. नए हार्मोंस से भरे उस के किशोर मन के लिए ये अनोखे अनुभव जो थे. लावण्या सबकुछ अपने मोबाइल फोन में रेकौर्ड करती गई.

लगातार उन को मार्क करने के बाद एक दिन लावण्या ने अपने संकल्प को पूरा करने का मन बना लिया और उन लड़कों के कमरे में गई.

सोनू अभीअभी वहां से निकला था. उसे देख कर दोनों चौंक उठे. एक ने बनावटी भोलेपन से पूछा, ‘‘क्या बात है आंटी? आप यहां…’’

लावण्या ने सोनू के साथ होने वाली उन की बातचीत की वीडियो रेकौर्डिंग चला कर मोबाइल फोन उन की ओर कर दिया. यह देख दोनों लड़के घबरा गए.

लावण्या गुस्साई नागिन सी फुफकार उठी, ‘‘अपने बच्चे पर तुम लोगों का साया भी मैं अब नहीं देख सकती. अभी और इसी वक्त यहां से अपना सामान बांध लो वरना मैं ये रेकौर्डिंग पुलिस को दिखाने जा रही हूं.’’

वे दोनों उस के पैरों पर गिर पड़े, पर लावण्या ने उन को झटक दिया और गरजी, ‘‘मैं ने कहा कि अभी निकलो तो निकलो.’’

वे दोनों उसी पल अपना बैग उठा कर वहां से भाग निकले. लावण्या सोनू के पास आई. वह इन बातों से अनजान बैठा कोई चित्र बना रहा था.

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लावण्या ने उस से पूछा तो बोला कि पूरा होने पर दिखाएगा. चित्र बना कर उस ने दिखाया तो उस में लावण्या और अपना टूटफूटा मगर भावयुक्त स्कैच बनाया था उस ने और लिखा था, ‘मेरी मम्मी, सब से प्यारी.’

लावण्या ने उसे गले लगा लिया और चूमने लगी. उस की आंखों से आंसू बह निकले और दिल अपने विश्वास की जीत पर उत्सव मनाने लगा. उस के कलेजे का टुकड़ा बुरा नहीं था, बस जरा सा भटका दिया गया था जिस को वापस सही रास्ते पर आने में अब देर नहीं थी.

सिगरेट की लत

‘‘आप कहीं जा रहे हैं?’’ पति को जाते देख कर मैं ने पूछा. ‘‘तुम खाना लगाओ, मैं बस 2 मिनट में आता हूं,’’ कह कर पतिदेव जो निकले तो घंटे भर के लिए लापता हो गए. उन की इस आदत से मैं वाकिफ हूं फिर भी पतिदेव की हुक्मउदूली नहीं  कर सकती. खाना मेज पर रखेरखे ठंडा हो गया. अपनी आदत के अनुसार वह घंटे भर बाद वापस आए. चाहे कितना कुछ कहूं पर चिकने घड़े की तरह उन पर कुछ असर ही नहीं होता है.

मेरा दिल तो शादी के बाद से ही पतिदेव को सिगरेट पीता देख कर सुलगना शुरू हो गया था. मैं जब भी उन के होंठों पर सौतन की तरह सिगरेट को चिपके देखती कसमसा कर रह जाती. अब तो सिगरेट पीने की लत, शौक से जनून की हद तक बढ़ गई है और घर की तमाम कीमती चीजें फुंकनी शुरू हो गई हैं.

कभी सोफे के कवर पर सिगरेट का जला निशान दिखाई देता है तो कभी कारपेट पर. सिगरेट पीने की कोई एक जगह तो बन नहीं सकती, इसलिए तकिए के कवर भी सिगरेट के वार से बच नहीं पाते. अखबार या पत्रिका पढ़तेपढ़ते हाथ में सिगरेट दबाए कब पतिदेव नींद में खर्राटे लेने लगते हैं, उन्हें खुद पता नहीं चलता है. वह तो जब मैं काम खत्म कर सोने के लिए कमरे में आती हूं तो रजाई व गद्दे से उठते धुएं का रहस्य समझ में आता है.

दुखी हो कर एक बार तो मैं ने पतिदेव को धमकी भी दे डाली थी, ‘‘या तो तुम सिगरेट पीना बंद कर दो, वरना मैं तुम से दोगुनी सिगरेट पीना शुरू कर दूंगी.’’

पतिदेव ने ठहाका लगाते हुए कहा, ‘‘यह शुभ काम तुम जितनी जल्दी चाहो शुरू कर लो.’’

पति को खुश देख कर सोचा कोई और चाल चलनी होगी, सो मैं ने ऐलान कर दिया, ‘‘आज से आप घर के अंदर सिगरेट नहीं पिएंगे.’’

‘अंधा क्या चाहे दो आंखें.’ यह कहावत यहां बिलकुल सटीक बैठी. अब तो पान की दुकान पर देर रात तक मित्रमंडली में जमे रहने का उन्हें एक बहाना मिल गया.

अब मैं पति के इंतजार में कुढ़ती रहती हूं. कुछ कह भी नहीं पाती.

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मसूरी में हिमपात हुआ तो पति ने मुझे खुश करने के लिए स्नोफाल देखने का प्रोग्राम बना डाला. वहां पहुंचे तो स्नोफाल नहीं देख सके, क्योंकि दिल्ली की बरसात की तरह स्नोफाल रूपी बादल बरस चुके थे. हां, वहां पहुंच कर बर्फ पर पैर फिसलने का खतरा मुझे जरूर लग रहा था. नीचे से आते हुए लोगों पर वहां पहले पहुंचे लोग बर्फ का गोला बना कर फेंक रहे थे. मेरी कनपटी पर ऐसे ही एक बर्फ का गोला लगने से मैं स्वयं को संभाल नहीं पाई और फिसल गई. आखिर वही हुआ जिस के लिए मैं डर रही थी. हिम्मत कर के उठी तब तक दूसरा गोला सिर पर पड़ा और दोबारा गिर पड़ी. अब दर्द से कराहती हुई मैं वापस उतरने लगी.

दूर से अपनी गाड़ी के पास भीड़ लगी देख कर मन में एकसाथ शंका के कई बुलबुले बनने व फूटने लगे. आखिर में मेरी सोच सिगरेट पर जा कर अटक गई. मुझे लगा कि शायद गाड़ी चलाते समय पति के हाथ में सिगरेट जलती ही होगी और नींद का झोंका आया होगा और हाथ की जलती सिगरेट छूट कर नीचे गिर गई होगी. जब फर्श का कारपेट जल कर गाड़ी में धुआं भर गया होगा तो उसे देख कर लोगों ने शीशा तोड़ कर आग बुझाई होगी.

पता नहीं क्या सोच कर मैं दुखी नहीं थी. शायद मैं सोच रही थी कि आज के बाद पति हमेशा के लिए ही सिगरेट छोड़ देंगे, क्योंकि बहुत बड़ा नुकसान होतेहोते बच गया.

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रात को खाना खाने से पहले मैं ने पति को बाहर जाते देख कर पूछा, ‘‘कहां जा रहे हैं?’’

‘‘सिगरेट खत्म हो गई है. बाहर पीने जा रहा हूं.’’

‘‘क्या…आप ने अब भी सिगरेट छोड़ने का फैसला नहीं किया?’’

‘‘तुम क्या समझती हो कि मेरी सिगरेट से गाड़ी जलने लगी थी?’’

‘‘और क्या. इस में कोई शक है क्या?’’

‘‘मैडम, तुम्हारी पूजापाठ की वजह से आज गाड़ी में आग लग जाती. घर से कहीं जाओगी तो गाड़ी में अगरबत्ती जलाना नहीं भूलती हो. आगे से यह सब नहीं चलेगा, समझीं.’’

मैं आंखें फाड़े आश्चर्य से पति को देख रही थी.

कम्मो : भाग 1

‘‘मैं जा रही हूं बाबूजी, 9 बजने वाले हैं,’’ कम्मो ने कहा.

‘‘ठीक है कम्मो, जरा देखभाल कर घर जाया करो रात को. आजकल ऐसा ही जमाना है.’’

‘‘बाबूजी, मुझे अकेले कोई डर नहीं लगता. मैं ऐसे लोगों से बखूबी निबटना जानती हूं,’’ कम्मो ने राजेश की ओर देखते हुए कहा और कमरे से बाहर निकल गई.

कुछ देर बाद राजेश उठे और दरवाजा बंद कर बिस्तर पर बैठ गए.

राजेश की उम्र 62 साल हो चुकी थी. 2 साल पहले वे एक सरकारी महकमे से अफसर रिटायर हुए थे. परिवार में पत्नी कमला और 2 बेटे विकेश और विजय थे. दोनों बेटों को पढ़ालिखा कर इंजीनियर बनाया. दोनों ने बेंगलुरु में नौकरी कर ली. दोनों की शादी कर दी गई और वे अपनी पत्नियों के साथ खूब मजे में रह रहे थे.

जब तक पत्नी कमला का साथ रहा, राजेश को कुछ भी कमी महसूस न हुई. नौकरी के दौरान खूब पैसा कमाया. बड़ा 4 कमरों का मकान बना लिया. पिछले साल एक दिन कमला को हार्ट अटैक हुआ और अस्पताल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ दिया.

कमला के मरने के बाद राजेश बिलकुल अकेले हो गए. दिन तो किसी तरह कट जाता, पर रात काटनी बहुत मुश्किल हो जाती.

विकेश और विजय ने बारबार फोन कर के उन को अपने पास बुला लिया. दोनों के घर एकएक महीना बिता कर वे फिर यहां अपने मकान में आ गए.

सुबह का नाश्ता, सफाई, पोंछा व कपड़ों की धुलाई का काम जमुना करती थी. दोपहर व शाम का खाना शांति बनाती थी.

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एक दिन राजेश ने कहा था, ‘जमुना, मैं चाहता हूं कि तुम किसी ऐसी काम वाली को ढूंढ़ दो जो सुबह 9 बजे से रात के 8 बजे तक रहे. सुबह नाश्ते से रात के खाने तक के सारे काम कर सके.’

‘ठीक है बाबूजी, मैं तलाश करूंगी,’ जमुना ने कहा था.

एक दिन सुबह जमुना एक औरत को ले कर आई.

जमुना ने कहा, ‘बाबूजी, यह कम्मो है. जब मैं ने यहां काम के बारे में बताया तो यह तैयार हो गई. यह सुबह 9 बजे से रात के 8 बजे तक रहेगी.’

राजेश ने कम्मो की तरफ देखा. सांवला रंग, गदराया बदन, मोटीमोटी आंखें. उम्र तकरीबन 30-32 साल. माथे पर बिंदी और मांग में सिंदूर.

अगले दिन सुबह कम्मो आई तो राजेश अखबार पढ़ रहे थे.  कम्मो ने ‘नमस्ते बाबूजी’ कहा.

‘आओ कम्मो,’ राजेश ने उसे देखते हुए कहा, ‘बैठो.’

कम्मो वहां रखी कुरसी पर बैठ गई.

‘कम्मो, जरा अपने बारे में कुछ बताओ?’  राजेश ने पूछा.

‘बाबूजी, मेरा नाम कामिनी है, पर सभी मुझे कम्मो कहते हैं. मैं बिहार में पटना के पास ही एक गांव की रहने वाली हूं. मैं ने 10वीं तक पढ़ाई की है. मैं ने अपने मातापिता को नहीं देखा. वे दोनों मजदूरी करते थे. एक दिन एक मकान का लैंटर टूट गया तो उस में दब कर दोनों मर गए. मकान मालिक ने मेरे मामा को

3 लाख रुपए दे दिए थे तब मेरी उम्र 5 साल थी. मामामामी ने ही पाला है.

‘18 साल की उम्र में मामा ने मेरी शादी पास के ही एक गांव में कर दी. शादी के 3 महीने बाद मेरे पति की सड़क हादसे में मौत हो गई. कुछ समय बाद देवर मोहन के साथ मेरी शादी हो गई. वह शहर में एक फैक्टरी में काम करता था. रोज सुबह चला जाता और शाम को लौटता था.

‘मेरी सास नहीं थी. एक दिन दोपहर का खाना खा कर मैं आराम कर रही थी तो अचानक ही ससुर ने मुझे दबोच लिया. मैं ने बहुत मना किया, पर वह नहीं माना. मैं ने इस बारे में पति मोहन को बता दिया.

‘उन दोनों की लड़ाई हो गई. इस लड़ाई में ससुर के हाथ से मोहन की हत्या हो गई. ससुर को पुलिस ने पकड़ लिया. मैं वहां उस घर में अकेली कैसे रहती, इसलिए मैं अपने मामामामी के पास लौट गई.

‘कुछ महीने बाद एक आदमी मामा के घर आया. वह आदमी मेरी तरफ ही देख रहा था. मामा ने मुझे बताया कि यह किशनलाल है. मुजफ्फरनगर का रहने वाला है. यह सब्जी बेचने का काम करता है. इस की घर वाली को पीलिया हो गया था. इलाज कराने पर भी वह बच नहीं सकी. घर में 20 साल का बेटा कमल है. वह 7वीं क्लास तक ही पढ़ सका, किसी दुकान पर नौकरी करता है.

‘मामा ने एक मंदिर में मेरी शादी किशनलाल से कर दी. मैं अपने पति के साथ यहां आ गई. मुझे बाद में पता चला कि मेरे मामा ने इस शादी के लिए 40,000 रुपए लिए थे.

‘मेरी शादी कर के मामा बहुत खुश था कि रुपए भी मिल गए और छाती पर बैठी मुसीबत भी टल गई.

‘एक दिन मुझे पता चला कि मेरे ससुर को हत्या के जुर्म में उम्रकैद की सजा हो गई है. यहां सब ठीकठाक चल रहा था. पहले तो मेरा पति कभीकभार शराब पी कर आता था, पर धीरेधीरे उसे रोज पीने की आदत पड़ गई. वह जुआ भी खेलने लगा था.

‘पति ने रेहड़ी लगानी बंद कर दी. मंडी वालों का कर्ज सिर पर चढ़ गया था. घर में जो जमापूंजी, जेवर वगैरह रखे थे, मंडी वालों को दे कर पीछा छुड़ाया. इस के बाद मैं ने घरों में काम करना शुरू कर दिया,’ कम्मो ने अपने बारे में बताया.

‘ठीक है कम्मो, अब तुम घर का काम संभालो.’

‘बाबूजी, इतनी देर तक अपनी दुखभरी कहानी सुना कर मैं ने आप के सिर में दर्द कर दिया न? आप कहें तो सब से पहले मैं आप के लिए बढि़या सी चाय बना दूं?’ कम्मो ने हंसते हुए कहा था. राजेश मना नहीं कर सके थे.

कम्मो ने घर में काम करना शुरू कर दिया. सुबह नाश्ते से ले कर रात के खाने तक सभी काम बहुत सलीके से करती थी. उसे राजेश के यहां काम करते हुए 2 महीने हो चुके थे.

अकसर फर्श की सफाई करते हुए जब कम्मो पोंछा लगाती तो उस के उभार ब्लाउज से बाहर निकलने को हो जाते.

राजेश कुरसी पर बैठे हुए अखबार पढ़ रहे होते तो उन की नजरें उभारों पर टिक जातीं. वे इधरउधर देखने की कोशिश करते, पर फिर भी उन की नजर कम्मो की गदराई जवानी पर आ कर ठहर जाती. वे अखबार की आड़ ले कर एकटक उसे देखते रहते.

कम्मो भी यह सब जानती थी कि बाबूजी क्या देख रहे हैं. वह चुपचाप अपने काम में लगी रहती मानो उसे कुछ पता ही न हो.

एक दिन कम्मो ने राजेश से कहा, ‘‘बाबूजी, कमल के पापा की तबीयत ठीक नहीं चल रही है. उस को किसी अच्छे डाक्टर को दिखाना पड़ेगा.’’

‘‘क्या हो गया है उसे?’’

‘‘भूख नहीं लगती. कमजोरी भी आ गई है. महल्ले का डाक्टर कह रहा था कि शराब पीने के चलते गुरदे खराब हो रहे हैं.’’

‘‘जब इतनी शराब पीएगा तो गुरदे तो खराब होंगे ही.’’

‘‘बाबूजी, मुझे कुछ पैसे दे दीजिए.’’

‘‘कितने पैसे चाहिए?’’

‘‘5,000 रुपए दे दीजिए. डाक्टर की फीस, टैस्ट, दवा वगैरह में इतने तो लग ही जाएंगे.’

‘‘ठीक है, रात को जब घर जाएगी तो मुझ से लेती जाना.’’

कम्मो ने चेहरे पर मुसकान बिखेर कर कहा, ‘‘बाबूजी, आप बहुत अच्छे इनसान हैं जो हम जैसे गरीबों की कभी भी मदद कर देते हो.’’

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‘‘जब तुम यहां इतना अच्छा काम कर रही हो तो मेरा भी फर्ज बनता है कि मैं तुम्हारी मदद करूं,’’ राजेश ने कम्मो की तरफ देखते हुए कहा.

कुछ दिन बाद राजेश का एक पुराना दोस्त मदनलाल दिल्ली से आया. वह उन का पुराना साथी था. वह भी सरकारी नौकरी से रिटायर हुआ था.

कम्मो चाय व कुछ खाने का सामान ले कर आई और मेज पर सजा कर चली गई.

चाय पीतेपीते मदनलाल ने कहा, ‘‘यार राजेश, यह नौकरानी तो एकदम पटाखा है. कहां से ढूंढ़ कर लाए हो?’’

‘‘बस अपनेआप ही मिल गई.’’

ऐसे करें गन्ने के साथ राजमा की खेती

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ना मुख्य फसल के रूप में उगाया जाता है. नकदी फसल होने और तमाम चीनी मिलें होने की वजह से किसानों के बीच गन्ना बहुत ही लोकप्रिय फसल है. इस की खेती ज्यादातर एकल फसल के?रूप में की जाती है. किसान गन्ने की फसल को नौलख या पेड़ी के रूप में 2-3 साल तक लेते रहते हैं. अनेक किसान गन्ने के साथ अन्य फसल भी लेते हैं जिसे हम सहफसली खेती के रूप में जानते हैं. ऐसा करने से गन्ने की खेती में मुनाफा भी बढ़ जाता है.

गन्ना और राजमा की सहफसली खेती

खेत का चुनाव व तैयारी : गन्ना और राजमा की खेती के लिए समतल जीवांशयुक्त बलुई दोमट मिट्टी का चुनाव करना चाहिए. गोबर की खाद को खेत में डाल कर 4-5 बार जुताई कर के मिट्टी को भुरभुरी बना लेना चाहिए.

बीज का चुनाव व बोआई : पंत अनुपमा, अर्का कोमल, करिश्मा, सेमिक्स, कंटेंडर वगैरह राजमा की उन्नत प्रजातियां हैं. राजमा के बीजों को कार्बंडाजिम की 2 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें. गन्ने के बीजोपचार के लिए कार्बंडाजिम की 200 ग्राम मात्रा को 100 लिटर पानी में घोल कर टुकड़ों को उस में 25-30 मिनट तक डुबोएं.

गन्ना और राजमा की सहफसली खेती में राजमा के 80 किलोग्राम और गन्ने के 60 क्विंटल बीज प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करने चाहिए. बोआई 25 अक्तूबर से 15 नवंबर के मध्य कर लेनी चाहिए. गन्ने की 2 लाइनों के बीच राजमा की 2 लाइनों की मेंड़ों पर बोआई करें.

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निराईगुड़ाई व सिंचाई : दोनों फसलों की बोआई सर्दी के मौसम में होने की वजह से खरपतवारों की समस्या कम रहती है, फिर भी खरपतवार निकालने के लिए फसल में 2-3 बार निराईगुड़ाई करें. पूरे फसलोत्पादन के दौरान जमीन को नम बनाए रखें, ताकि फसल को पाले से सुरक्षित रखा जा सके.

खाद व उर्वरक : खेत में 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी गोबर की खाद मिलानी चाहिए. इस के अलावा 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, 80 किलोग्राम पोटाश और 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट उर्वरकों का प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए.

फसल सुरक्षा : बोआई से पहले बीजोपचार जरूर करें. आमतौर पर फलियां बनते समय फली भेदक, पर्ण सुरंगक व कुछ चूषक कीटों का हमला हो जाता?है. कभीकभी मोजैक रोग का संक्रमण भी हो जाता है.

उन्नत तकनीक से खेती करने पर राजमा की फलियों की औसत उपज 50-60 क्विंटल प्रति एकड़ तक हासिल हो जाती है और

तकरीबन 40,000 रुपए प्रति एकड़ अतिरिक्त आमदनी हो जाती है. इस के साथ ही गन्ने की उत्पादकता में भी इजाफा होता है.

खास वजह यह भी है कि खेत में डाली गई खाद व उर्वरकों का अधिकतम इस्तेमाल भी है. खरपतवार प्रबंधन का लाभ दोनों फसलों द्वारा हासिल किया जाता?है और सहफसल में अपनाए गए कीट व रोग प्रबंधन का लाभ मुख्य फसल को भी मिल जाता है.

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कीटों व रोगों की रोकथाम

* नीम का तेल 1.5 लिटर प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें. इस के इस्तेमाल से फसल की सुरक्षा भी हो जाती है और इनसानों की सेहत पर बुरा असर नहीं पड़ता है.

* नीम का तेल न होने पर 2 लिटर क्विनालफास 25 ईसी या 1.25 लिटर मोनोक्रोटोफास 36 एसएल या 2 किलोग्राम कार्बारिल 50 डब्लूपी को 600-700 लिटर पानी में मिला कर प्रति हेक्टेयर की दर से 12-14 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें.

वाचाल औरत की फितरत

लेखक: जगदीश शर्मा ‘देशप्रेमी’  

पहली अगस्त, 2019 का दिन था. उस वक्त सुबह के लगभग 11 बज रहे थे. उत्तराखंड के जिला हरिद्वार की प्रसिद्ध दरगाह पीरान कलियर के थानाप्रभारी अजय सिंह उस वक्त थाने में ही थे. तभी उन के पास एक व्यक्ति आया.

उस व्यक्ति ने अपना नाम भरत सिंह, निवासी हबीबपुर नवादा बताते हुए कहा कि उस का छोटा भाई रोजी सिंह कल से लापता है. उसे सभी जगहों पर ढूंढ लिया है लेकिन कोई जानकारी नहीं मिल रही. उस का मोबाइल फोन भी कल से बंद आ रहा है.

‘‘उस की उम्र कितनी है और कैसे गायब हुआ?’’ थानाप्रभारी अजय सिंह ने पूछा.

‘‘सर, उस की उम्र यही कोई 20-22 साल है. वह हरिद्वार के सिडकुल क्षेत्र में स्थित एक फैक्ट्री में काम करता है. कल दोपहर बाद 3 बजे वह अपनी मोटरसाइकिल ले कर ड्यूटी पर जाने के लिए निकला था. उस ने जाते समय घर पर बताया था कि रात 11 बजे तक घर लौट आएगा. जब वह रात 12 बजे तक भी नहीं लौटा तो हम ने उसे फोन किया. लेकिन उस का फोन बंद मिला.’’

‘‘तुम्हारा भाई शादीशुदा था? उस की किसी से कोई रंजिश तो नहीं थी?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘नहीं सर, रोजी अविवाहित था. अभी कुछ दिन पहले ही इमलीखेड़ा की एक लड़की के साथ उस की मंगनी हुई थी और रही बात दुश्मनी की तो सर, उस की ही नहीं बल्कि हमारे परिवार में किसी की भी किसी से कोई दुश्मनी नहीं है.’’ भरत सिंह ने बताया.

‘‘आप अपने भाई का फोटो दे कर गुमशुदगी दर्ज करा दीजिए, हम अपने स्तर से उसे ढूंढने की कोशिश करेंगे.’’ थानाप्रभारी ने कहा.

भाई की गुमशुदगी दर्ज कराने के बाद भरत सिंह घर लौट आया.

चूंकि मामला जवान युवक की गुमशुदगी का था, इसलिए थानाप्रभारी ने इस की सूचना एसपी (देहात) नवनीत सिंह भुल्लर को दे दी. उन्होंने थानाप्रभारी को इस मामले की जांच के निर्देश दिए. लेकिन 2 दिन बाद भी थानाप्रभारी लापता रोजी सिंह के बारे में कोई जानकारी नहीं जुटा पाए तो एसपी (देहात) नवनीत सिंह भुल्लर ने सीओ चंदन सिंह बिष्ट के निर्देशन में एक टीम गठित कर दी.

टीम में थानाप्रभारी अजय सिंह, महिला थानेदार शिवानी नेगी व भवानीशंकर पंत, एएसआई अहसान अली सैफ आदि को शामिल किया गया.

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पुलिस टीम ने सब से पहले रोजी सिंह के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. जांच में पता चला कि उस के फोन की आखिरी लोकेशन उत्तर प्रदेश के जिला मुजफ्फरनगर के बरला कस्बे में थी. इस के अलावा उस के मोबाइल से जिस नंबर पर आखिरी बार बात हुई थी, वह मोबाइल नंबर शिक्षा नाम की युवती का था, जो गांव हबीबपुर नवादा की ही रहने वाली थी.

शिक्षा से पूछताछ करनी जरूरी थी, इसलिए थानाप्रभारी ने शिक्षा को थाने बुलवा लिया. उस से एसआई शिवानी नेगी ने पूछताछ की तो वह कहती रही कि रोजी के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं है और न ही उस का रोजी से कोई ताल्लुक है.

‘‘तुम झूठ बोल रही हो, रोजी से तुम्हारी कल भी बात हुई थी. इतना ही नहीं, तुम्हारी इस से पहले भी काफी देरदेर तक बातें होती थीं. अब तुम इतना और बता दो कि 30 जुलाई को रोजी के गायब होने के बाद तुम मुजफ्फरनगर जिले के बरला कस्बे में क्या करने गई थीं?’’

शिवानी नेगी के मुंह से बरला कस्बे का नाम सुनते ही शिक्षा सहम गई और अपना सिर नीचे कर के रोने लगी. एसआई शिवानी नेगी ने उसे सांत्वना दे कर चुप कराया. तभी शिक्षा सुबकते हुए बोली, ‘‘मैडम, रोजी इस दुनिया में नहीं है. उस की हत्या कर दी गई है. हत्या में उस के भाई रोहित, आदेश और उन का दोस्त रजत भी शामिल थे.’’

हत्या की बात सुन कर पुलिस अधिकारी चौंक गए. थानाप्रभारी ने उस से पूछा, ‘‘रोजी की लाश कहां है?’’

‘‘उस की हत्या बरला के गन्ने के एक खेत में ले जा कर की गई थी. लाश भी वहीं पड़ी होगी.’’ शिक्षा ने बताया.

पुलिस ने शिक्षा की निशानदेही पर उस के भाइयों आदेश, रोहित और इन के साथी रजत को गिरफ्तार कर लिया.

सीओ चंदन सिंह ने यह जानकारी एसपी (देहात) नवनीत सिंह को दी तो उन्होंने लाश बरामद करने के लिए एक पुलिस टीम घटनास्थल के लिए रवाना कर दी.

इस के बाद थानाप्रभारी के नेतृत्व में एक टीम चारों अभियुक्तों को ले कर बरला पहुंच गई. उन्होंने वहां की पुलिस से संपर्क किया, फिर थानाप्रभारी आरोपियों को साथ ले कर बरला पैट्रोल पंप के पीछे गन्ने के खेत में पहुंचे.

चारों आरोपियों ने पुलिस को वह जगह दिखा दी, जहां पर उन्होंने रोजी सिंह को घेर कर उस की हत्या की थी. इस के बाद पुलिस ने उन चारों की निशानदेही पर गन्ने के खेत से रोजी का शव बरामद कर लिया.

रोजी के सिर का कुछ हिस्सा किसी जानवर ने खा लिया था, दूसरे गरमी की वजह से उस का शव काफी गल गया था. प्राथमिक काररवाई में बरला पुलिस द्वारा रोजी के शव का पंचनामा भरा गया.

घटनास्थल की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने रोजी सिंह का शव पोस्टमार्टम के लिए राजकीय अस्पताल मुजफ्फरनगर भेज दिया.

अगले दिन हरिद्वार के एसएसपी सेंथिल अवूदई कृष्णराज एस. ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर चारों आरोपियों को मीडिया के सामने पेश किया और रोजी की हत्या का खुलासा कर दिया. अभियुक्तों से पूछताछ के बाद रोजी सिंह की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

शिक्षा रुड़की क्षेत्र के गांव नगला इमरती की रहने वाली थी. करीब 7 साल पहले उस की शादी हबीबपुर नवादा निवासी जोगेंद्र से हुई थी. 3 बच्चे होने के बाद भी उस का रूपयौवन बरकरार था. करीब 2 साल पहले पड़ोस के रहने वाले रोजी सिंह से उस का चक्कर चल गया था. रोजी सिंह अविवाहित था, जिस पर शिक्षा पूरी तरह से फिदा थी. दोनों अकसर खेतों में जा कर रंगरलियां मनाते थे.

जब उन दोनों के अवैध संबंधों की जानकारी शिक्षा के पति जोगेंद्र को हुई तो उस ने पत्नी को परिवार की इज्जत की दुहाई देते हुए बहुत समझाया, मगर वह नहीं मानी. उस के ऊपर तो रोजी सिंह के इश्क का जबरदस्त भूत सवार था. वह उस के साथ जीनेमरने की कसमें खा चुकी थी.

अंत में जोगेंद्र ने समाज में हो रही बदनामी के कारण शिक्षा को 25 मई, 2019 को घर से निकाल दिया. इस के बाद जोगेंद्र ने इस मामले की सूचना स्थानीय इमलीखेड़ा पुलिस चौकी को भी दे दी थी, मगर पुलिस ने मामले को पतिपत्नी विवाद बता कर जोगेंद्र को महिला हेल्पलाइन केंद्र रुड़की जाने की सलाह दी.

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पति द्वारा घर से निकाल देने के बाद शिक्षा अपने मायके में जा कर रहने लगी. लेकिन उस का अपने प्रेमी रोजी सिंह से संपर्क बराबर बना रहा. फोन पर दोनों बात करते रहते थे और समय निकाल कर मिल भी लेते थे.

रोजी के कारण शिक्षा को पति से तो अलग होना ही पड़ा, साथ ही मायके में भी उसे काफी अपमान झेलना पड़ रहा था. मगर रोजी के प्रेम के कारण वह सब सहन कर रही थी. कुछ दिनों पहले शिक्षा को पता चला कि रोजी की मंगनी तय हो गई है. इस बारे में शिक्षा ने रोजी से बात की तो उस ने बताया कि घर वालों के दबाव में उसे शादी करनी पड़ रही है.

प्रेमी का यह जवाब सुन कर वह तिलमिला गई. उस के मन में रोजी के प्रति नफरत पैदा हो गई. क्योंकि जिस रोजी के कारण वह ससुराल से निकाली गई थी, वही रोजी उसे छोड़ कर किसी और लड़की का होने जा रहा था.

रोजी से नफरत होने के कारण शिक्षा ने एक भयानक निर्णय ले लिया. वह निर्णय था रोजी की हत्या का. इस योजना में उस ने अपने 2 भाइयों रोहित व आदेश और उन के दोस्त रजत को भी शामिल कर लिया.

फिर शिक्षा ने एक योजना के तहत 30 जुलाई, 2019 को रोजी को शाम के समय रुड़की में दिल्ली रोड पर स्थित सैनिक अस्पताल तिराहे पर पहुंचने को कहा. शिक्षा ने कहा कि हमें बरला कस्बे में एक तांत्रिक के पास चलना है. रोजी निर्धारित समय पर मोटरसाइकिल से सैनिक अस्पताल तिराहे पर पहुंच गया. वहीं पर शिक्षा उस का इंतजार कर रही थी. वह रोजी के पीछे बाइक पर बैठ कर बरला की ओर चल दी.

योजना के अनुसार, उस के दोनों भाई रोहित व आदेश और उन का दोस्त रजत दूसरी बाइक से रोजी का पीछा करते हुए चलने लगे. शिक्षा प्रेमी के साथ बरला के पैट्रोल पंप के पास पहुंच गई.

तब तक अंधेरा घिर चुका था. वहां पहुंचने पर शिक्षा ने रोजी से कहा कि हमें जिस तांत्रिक के पास जाना है, वह पैट्रोल पंप के पीछे जंगल में मिलेगा. रोजी ने अपनी बाइक जंगल की तरफ मोड़ दी. तभी पीछा करते हुए रोहित, आदेश व रजत भी वहां पहुंच गए. उन्हें देख कर रोजी समझ गया कि मामला गड़बड़ है. वह घबरा कर वहां से भागने की कोशिश करने लगा. मगर रोहित व आदेश ने रोजी को दबोच लिया. उन्होंने उस पर डंडे से हमला कर दिया.

रोजी के सिर पर डंडा लगने से वह लहूलुहान हो गया. इस के बाद रोहित व आदेश ने तुरंत रोजी के गले में गमछा डाल कर खींच दिया, जिस से रोजी की मौके पर ही मौत हो गई.

रोजी की मौत के बाद शिक्षा के दोनों भाइयों ने रोजी के शव को खींच कर पास के गन्ने के खेत में डाल दिया. इस के बाद वे लोग रोजी की बाइक, मोबाइल व गमछे को दिल्ली रोड स्थित मंगलौर के निकट फेंक कर घर आ गए.

पुलिस ने शिक्षा, रोहित, आदेश व रजत से पूछताछ के बाद उन के खिलाफ भादंवि की धारा 365, 302, 201, 34 के तहत केस दर्ज कर लिया. आरोपियों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया गया, जहां से 3 अगस्त, 2019 को उन्हें जेल भेज दिया गया.

रोजी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी पुलिस को मिल गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में रोजी का शरीर ज्यादा गल जाने के कारण मौत का कारण स्पष्ट नहीं हो पाया. इस मामले में डाक्टरों ने उस का विसरा व डीएनए सुरक्षित रख लिया था.

कथा लिखे जाने तक आरोपी शिक्षा, रोहित, आदेश व रजत जेल में थे. केस की आगे की जांच थानाप्रभारी अजय सिंह कर रहे थे.

   —पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य:   मनोहर कहानियां  

जब कोई आपको बदनाम करे तो क्या करें ?

लंबा कद, मुसकराती आंखें और मन में कुछ करने की ललक पर जमाने की बेरुखी से परेशान 27 वर्षीय अनुभा बताती हैं, ‘‘मैं आगरा की रहने वाली हूं. ग्रैजुएशन के बाद दिल्ली आ कर फैशन डिजाइनिंग कोर्स जौइन किया. जब मैं यह कोर्स कर रही थी उस दौरान मेरे साथ ऐसी घटना घटी कि उस ने मेरी जिंदगी का रुख ही बदल दिया.

‘‘दरअसल अमित नामक लड़के से मेरी फ्रैंडशिप थी. हम दोनों एकदूसरे को पसंद करते थे. समय के साथ दोनों को लगा कि अब हमें शादी कर लेनी चाहिए. मगर हमारे घर वाले इस के लिए तैयार नहीं हुए. मैं ने अमित से कहा कि हमें शांति से अलग हो जाना चाहिए. वह इस के लिए तैयार नहीं था. मगर यह बात मुझे मंजूर नहीं थी. तब उस ने मुझे धमकी दी कि अगर तुम मेरी नहीं हुई तो मैं तुम्हें किसी और की भी नहीं होने दूंगा. उस ने एक साइको की तरह व्यवहार करना शुरू कर दिया. मेरी मम्मी का फोन ट्रैक कर लिया. मम्मी के नंबर से कईकई बार फोन आने लगा, जबकि कौल मम्मी नहीं बल्कि अमित करता था. उस ने मुझे धमकी दी कि बात न मानने पर फोटो एडिट कर सोशल मीडिया पर वायरल कर देगा ताकि मैं बदनाम हो जाऊं.

‘‘मैं डर गई थी पर फिर भी उस की बात नहीं मानी. एक दिन जब मैं लौट रही थी तो उस ने मुझे जबरदस्ती अपनी गाड़ी में बैठा लिया. फिर हमारी कौमन फ्रैंड के जरीए मेरे घर यह संदेश भिजवा दिया कि मुझे 3-4 लड़के पकड़ ले गए हैं. बदहवास से मेरे पेरैंट्स दिल्ली दौड़े आए. आसपास वालों को भी यह खबर मिल गई.

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‘‘इधर अमित मुझे गाड़ी में बैठा कर मुझे डरानेधमकाने लगा. उस ने मेरे बाल भी नोचे. वह इस बात पर क्रोधित था कि उस के बगैर मैं खुश कैसे रह सकती हूं. मैं ने उसे समझाना चाहा कि मेरा कैरियर अभी पीक पर चल रहा है और मैं अपना पूरा ध्यान पढ़ाई और कैरियर पर लगाना चाहती हूं. मगर वह मुझ से लड़ता रहा. तभी उस के पेरैंट्स का फोन आ गया तो उस ने मुझे छोड़ दिया.

‘‘मुझे बदनाम करने के लिए उस ने मेरे एक साड़ी वाले फोटो को फोटोशौप में एडिट कर मेरी मांग में सिंदूर भर दिया और मेरे पासपड़ोस के घरों में फोटो फिंकवा दिए. उस ने यह अफवाह फैला दी कि मैं ने किसी दलित लड़के के साथ भाग कर शादी कर ली है. मेरे घर वालों ने मुझे छुड़ाने के लिए उस के मांबाप को क्व50-60 हजार भी दिए हैं. उस ने मेरे मैसेजेस के साथ भी छेड़छाड़ कर उन्हें इस तरह रीराइट किया जैसे मैं उस के पीछे पड़ी हूं और मैं ने ही उसे मिलने को दिल्ली बुलाया था.

‘‘उस ने झूठी अफवाहों को इतनी हवा दी कि आज लोग मुझे सही होने पर भी गलत समझते हैं. जहां कहीं भी मेरी शादी की बात चलती है तो यह अफवाह अपना असर दिखाने लगती है. लड़के वाले कोई स्पष्ट कारण बताए बिना शादी करने से इनकार कर देते हैं. 2 साल पहले अमित की शादी हो गई है पर मैं आज तक उस की वजह से खुली हवा में सांस नहीं ले पा रही हूं. मेरी शादी भी नहीं हो पा रही है. मैं स्ट्रैस की वजह से अपने कैरियर पर भी ध्यान नहीं दे पा रही. मैं ने कोई गलती नहीं की पर उस ने मेरी जिंदगी में इतना तूफान ला दिया है कि स्ट्रैस से पापा बीमार रहने लगे हैं. ‘‘मेरा सवाल यह है कि सर्फ लड़कियों को ही जज क्यों किया जाता है? सचाई जाने बगैर बड़ी आसानी से मान लिया जाता है कि लड़की का ही चरित्र खराब होगा. अफवाहें फैला कर लड़कियों की जिंदगी खराब कर दी जाती है पर लड़के मजे से जीते हैं.’’

कौन फैलाते हैं अफवाहें

अफवाहें अकसर जलन और क्रोध का नतीजा होती हैं. किसी से बदला लेने या उसे नीचा दिखाने के मकसद से कुछ लोग ऐसी हरकतों को अंजाम देते हैं. मगर लोग अफवाहों को सच मान लेते हैं. असलियत पता लगाने का जरा भी प्रयास नहीं करते.

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जिस व्यक्ति के बारे में ऐसी अफवाहें उड़ाई जाती हैं उसे बिना गलती किए भी बहुत कुछ सहना पड़ता है. अफवाहें उस की जिंदगी में तूफान ला देती हैं. उस की मानसिक सेहत पर असर डालती हैं. उस का जौब करना दूभर हो सकता है. नएपुराने रिश्ते टूट सकते हैं. दूसरों की नजरों में उस की अहमियत घट जाती है. उस के करीबी उस से दूर हो जाते हैं. वह किसी भी काम में अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाता. इस की वजह से वह डिपै्रशन, स्ट्रैस आदि का शिकार हो सकता है. परेशान हो कर सुसाइड भी कर सकता है.

अफसोस की बात यह होती है कि दूसरे लोग जो इस तरह की बातें होते देखते हैं वे भी अकसर सही व्यक्ति का साथ नहीं देते. लोग उस व्यक्ति से कटने लगते हैं जिस के खिलाफ अफवाहें फैलाई जाती हैं. लोगों को डर होता है कि कहीं अगला शिकार वे ही न बन जाएं.

अफवाहें हमेशा शक के आधार पर फूलतीफलती हैं. ये ऐसी सूचनाओं के रूप में फैलती हैं जो लोगों के लिए नई और रोचक हों. इन की सत्यता पर हमेशा शक होता है. ये अनवैरीफाइड होती हैं. प्रत्यक्षअप्रत्यक्ष रूप से लोगों से जुड़ी होती हैं या किसी के व्यक्तिगत जीवन से वास्ता रखती हैं. मान लीजिए कोई लड़का कई दिनों से औफिस या स्कूल नहीं आ रहा तो ऐसे में बड़ी तेजी से उस के बीमार होने या जीवन में कोई बड़ा हादसा हो जाने की अफवाह फैला दी जाती है.

हिंसक रूप लेती हैं अफवाहें

देश में जनवरी, 2017 में भीड़ एक बच्चे के अपहरण के आरोप में 33 लोगों की हत्या कर चुकी है. ये सब व्हाट्सऐप पर एक फर्जी मैसेज की वजह से हुआ. इस मैसेज पर यकीन कर केवल शक के आधार पर भीड़ बेगुनाहों को मौत के घाट उतार सकती है तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि अफवाहें और क्याक्या गुल खिला सकती हैं.

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2006 में प्रकाशित प्रशांत बोडिया और राल्फ रोजनो की रिसर्च के मुताबिक ज्यादा चिंताग्रस्त और उत्सुक लोग अफवाहें ज्यादा फैलाते हैं. किसी के स्टेटस और लोकप्रियता से चिढ़ने वाले अकसर अफवाहों का सहारा लेते हैं. गलत तरीके से किसी का नाम बदनाम करना उन का मकसद होता है.

यह संभव नहीं कि हम हर किसी के अच्छे दोस्त बन पाएं या हमें हरकोई पसंद आए. मगर किसी को पसंद न करने का मतलब यह नहीं कि हमें उस के खिलाफ अफवाह फैलाने या भलाईबुराई करने का अधिकार मिल गया. अपना स्टेटस बढ़ाने या गु्रप में लोकप्रियता हासिल करने का यह गलत तरीका है. वास्तविक लोकप्रियता इंसान के आचरण पर निर्भर करती है. किसी से इस तरह की दुश्मनी निकाल कर या अपमान कर व्यक्ति अपना सम्मान तो खोता ही है, दूसरे लोगों का भी उस पर विश्वास खत्म हो जाता है.

जब आप बन जाएं शिकार

यदि कभी आप के साथ इस तरह की घटना घट जाए तो डिप्रैशन में आ कर कोई गलत फैसला लेने से बेहतर होगा कि आप यह बात अपने पेरैंट्स, टीचर, काउंसलर या दोस्तों से शेयर करें. अपनी बेगुनाही का सुबूत तैयार करें और सिर ऊंचा कर हर सवाल का जवाब दें. अपनी जिंदगी के लिए कोई लक्ष्य तैयार करें. इन बातों से दिमाग हटा कर पूरी एकाग्रता से अपने मकसद को पूरा करने में ध्यान दें. अपने दोस्तों से मिलनाजुलना, उन के साथ मस्ती करना न छोड़ें.

यही नहीं जो शख्स आप के खिलाफ अफवाह उड़ा रहा है उस से मिलें. शांति से उस से अपनी बात कहें. आप के मन में जो भी सवाल उठ रहे हैं या आप उस से जो भी कहना चाहती हैं वह सब बोल कर अपनी भड़ास निकालें. उसे ताकीद करें कि आइंदा उलटासीधा बोलने का अंजाम बहुत बुरा होगा. अपनी बातें पूरे विश्वास, स्पष्टता और मैच्योरिटी से करें. इस के बाद उस के जवाब का इंतजार किए बगैर वहां से निकल जाएं ताकि वह आप की बातों पर गहराई से विचार करने को मजबूर हो जाए.

कुछ लोग दूसरों की निजी बातें या गलत सूचनाएं फैला कर मजे लेते हैं, भले ही वे सच हों या नहीं. ऐसा वे दूसरे को चोट पहुंचा कर अच्छा महसूस करने के लिए करते हैं. वे जिसे पसंद नहीं करते उस के खिलाफ झूठी बातें बोल कर भले ही अपना मकसद पूरा कर लें, मगर वे खुद को इस के लिए कभी माफ नहीं कर पाएंगे.

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बेहतर यह है कि आप अफवाहें फैलाने या गौसिप करने वाले से दूरी बढ़ा लें. यदि कोई आप से किसी की उस की पीठ पीछे बुराई कर रहा है तो सौरी कह कर वहां से चल दें. जाने से पहले स्पष्ट रूप से कहें कि जिस के बारे में यह बात कही जा रही है जब वह खुद को निर्दोष साबित करने के लिए मौजूद नहीं है तो फिर उस के बारे में बात करने में आप कंफर्टेबल नहीं हैं. ऐसा कर के आप न केवल उस गौसिप चेन को तोड़ेंगे, बल्कि दूसरे लोगों का भी विश्वास जीत सकेंगे. दूसरे लोग यह महसूस करेंगे कि आप फालतू की बातों में रुचि नहीं रखते. ऐसा कर के आप दूसरों के आगे एक उदाहरण पेश करेंगे.

सावधान! दवाओं से अबौर्शन कराना हो सकता है खतरनाक

बहुत ज्यादा खून बह जाने की वजह से 24 साला संगीता (बदला हुआ नाम) जब डाक्टर के पास आई तो डाक्टर भी चकरा गई. डाक्टर के बारबार पूछने पर संगीता ने सचाई बताई कि कुछ दिन पहले वह किसी दाई के कहने पर दुकान से पेट गिराने की दवा ले कर खा चुकी थी जिस से थोड़ा खून बहा था, पर पेट की पूरी सफाई नहीं हुई थी. अब जब उस ने दोबारा दवा ली है तो बहुत ज्यादा खून बह रहा है.

संगीता को तुरंत अस्पताल में भरती कर खून चढ़ाया गया, क्योंकि उस का हीमोग्लोबिन का लैवल 4 तक गिर चुका था. इस वजह से उस की मौत भी हो सकती थी.

मां बनना हर औरत की इच्छा होती है लेकिन कभीकभार न चाहते हुए भी कई औरतें पेट से हो जाती हैं. परिवार नियोजन की वजह से बहुत सी औरतें दूसरे बच्चे के लिए तैयार नहीं होती हैं. ऐसे में सब से आसान और अच्छा तरीका पेट गिराना है, पर ऐसा कराने का भी एक तय समय होता है.

अनचाहे पेट से छुटकारा पाने के 2 तरीके हैं, मैडिकल अबौर्शन और सर्जिकल तरीका. मैडिकल अबौर्शन केवल 7 हफ्ते तक ही कर सकते हैं. ज्यादा से ज्यादा 8 हफ्ते तक. लेकिन जितनी जल्दी मैडिकल अबौर्शन किया जाएगा, उतने ही उस के कामयाब होने के चांस रहते हैं.

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इस बारे में मुंबई की अपोलो क्लिनिक और फोर्टिस अस्पताल की स्त्री व प्रसूति रोग विशेषज्ञ डाक्टर बंदिता सिन्हा बताती हैं कि रिसर्च में भी यह साबित नहीं हो सका है कि अबौर्शन पिल्स सौ फीसदी कारगर होती हैं या नहीं. कई बार 7 या 8 हफ्ते के बाद ये गोलियां पूरी तरह से अबौर्शन नहीं कर पाती हैं. यह ‘अधूरा अबौर्शन’ होता है जिसे बाद में सर्जिकल तरीके से साफ किया जाता है. इन गोलियों को देने से पहले इन बातों पर ध्यान देना जरूरी है:

* सब से पहले औरत की काउंसलिंग से पता किया जाता है कि वह पेट गिराना क्यों चाहती है.

* सोनोग्राफी कर के बच्चे की पोजीशन का पता लगाया जाता है.

* औरत का ब्लड टैस्ट कर के पता किया जाता है कि उस की जिस्मानी हालत कैसी है. अबौर्शन पिल्स उस के लिए ठीक रहेंगी या नहीं, क्योंकि अगर हीमोग्लोबिन का लैवल 12 है तो ऐसे अबौर्शन के बाद हीमोग्लोबिन लैवल घट कर 8 हो जाता है और अगर 8 है तो

4 होने का डर बना रहता है. ऐसे में उसे अस्पताल भेजा जाता है.

* इस के अलावा कोई पारिवारिक समस्या या दूसरी समस्या रहने पर भी दवा नहीं दी जाती है.

* अगर मरीज दिल, दमा, डायबिटीज, एनीमिया या किसी दूसरी बीमारी की शिकार है तो भी अबौर्शन पिल्स को नहीं दिया जाना चाहिए.

* ज्यादा बीड़ीसिगरेट पीने वाली और एचआईवी पीडि़त मरीज को भी ऐसी दवा लेने से मना किया जाता है.

* या तो पहले सर्जरी सैक्शन हुआ हो या फिर 2 सिजेरियन बच्चा हुआ हो, ऐसे में मैडिकल पिल्स से यूट्रस में ‘कैंप’ आ सकता है. वह फट भी सकता है, जो काफी दर्दनाक होता है.

* 18 से 35 साल की उम्र तक ये पिल्स सही रहती हैं लेकिन

40 साल की उम्र के बाद ये गोलियां ज्यादा देते हुए ध्यान रखना चाहिए.

कुंआरी लड़कियों में ऐसी दवाएं काफी मशहूर हैं. ऐसी लड़कियां कई बार परिवार नियोजन का कोई साधन अपनाए बिना सैक्स करने के चलते पेट से हो जाती हैं. ऐसे में पेट गिराने की दवा के इस्तेमाल से उन्हें अस्पताल जाने की जरूरत नहीं होती. बाजार से प्रैगनैंसी ‘किट’ ला कर ‘यूरिन टैस्ट’ पौजिटिव आने पर वे खुद ही पेट गिराने की दवा ले लेती हैं, जो कई बार खतरनाक हो सकता है, इसलिए डाक्टर की सलाह के बिना दवा लेना ठीक नहीं.

कई बार प्रैगनैंसी यूट्रस में न हो कर ट्यूब में हो जाती?है. ऐसे में लड़की के लिए खतरा बढ़ता है. सोनोग्राफी से उस का पता लगाया जा सकता है. इस के अलावा ज्यादा खून बहने से यूट्रस का इंफैक्शन वगैरह कई दूसरी बड़ी दिक्कतों से बचा जा सकता है.

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वैसे, पेट गिराने की दवाएं बारबार लेना ठीक नहीं होता. इस से बाद में कई तरह की समस्याएं आ सकती हैं, जो इस तरह हैं:

* कोई जवान लड़की अगर 2-3 बार या इस से ज्यादा बार ऐसी दवाएं लेती है तो उस के हार्मोनों में बदलाव होने का डर बढ़ जाता है.

* बांझपन की भी दिक्कत हो सकती है.

* बाद में बच्चा पैदा करने में दिक्कतें आ सकती हैं.

पेट गिराने की दवा देने के बाद डाक्टर इन बातों पर नजर रखते हैं:

* दवा लेने के 48 से 72 घंटे में खून का बहना शुरू होना चाहिए.

* अगर अच्छी तरह से साफसफाई नहीं हुई है तो दोबारा दवा देते हैं.

* इस के 2 हफ्ते बाद सोनोग्राफी कर के यूट्रस साफ हुआ है या नहीं, देखा जाता है. अगर यूट्रस साफ नहीं हुआ है तो सर्जिकल तरीके से उसे साफ किया जाता है.

डाक्टर बंदिता सिन्हा कहती हैं कि पेट गिराने की नौबत न आए, उस पर ध्यान रखना चाहिए. किसी भी दाई या दवा की दुकान से पेट गिराने की दवा खरीद कर न खाएं. माहिर डाक्टर की सलाह से ही ये दवाएं कारगर साबित हो सकती हैं, नहीं तो जान का खतरा भी हो सकता है.

औरतों के कितने अनोखे सिंगार

सिंगार को दुनियाभर की औरतें अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानती हैं. सिंगार बिना औरत रह ही नहीं सकती. औरत शहर की हो, गांव की या जंगल की, वह किसी न किसी तरह खुद को सजा-संवार कर ही रखना चाहती है. सिंगार के बिना वह खुद को मुकम्मल नहीं देखती. सिंगार के लिए अगर उसे अपने शरीर को छिदवाना या गुदवाना भी पड़े तो वह उससे भी परहेज नहीं करती है, फिर चाहे कितना भी दर्द क्यों न हो. आप यह देखकर आश्चर्य में पड़ जाएंगे कि भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर में आदिवासी महिलाएं सिंगार को लेकर कितनी उतावली और उत्साहित हैं. उनके सिंगार तो आपको आश्चर्य में डाल देंगे –

  1. योनोमी जनजाति, ब्राजील

दक्षिण अमेरिका के वर्षावन में रहने वाली योनोमी जनजातियां बाहरी दुनिया के लोगों से बहुत कम संपर्क में रहती हैं. इस जनजाति को आज सबसे अधिक खतरे में माना जा रहा है क्योंकि बाहरी लोगों के संपर्क में आने से उनमें तरह-तरह के रोग पनप रहे हैं और ब्राजील सरकार उनकी घुसपैठियों और रोगों से रक्षा नहीं कर पा रही है. इस जनजाति की महिलाएं बहुत मेहनती होती हैं और जीवन में बहुत संघर्ष करती हैं. इनका सिंगार अनोखा होता है. ये शरीर में जगह-जगह छेद करके रंगीन स्टिक से अपना सिंगार करती हैं. कई नृविज्ञानियों का मानना है कि इनका स्टिक भेदी आचरण या तो एक सजावटी प्रकृति है या किशोरावस्था की निशानी है. अफसोस की बात है कि ये महिलाएं अपहरण और मारपीट की बहुत शिकार बनती हैं.

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2. दासनच जनजाति, इथियोपिया

अफ्रीका के पूर्वी छोर पर स्थित इथियोपिया न केवल शानदार प्राकृतिक नजारों से भरपूर है, बल्कि यह देश अनेक अनोखी जनजातियों का घर भी है, जिनकी समृद्ध परम्पराएं और अनुष्ठान भी कम हैरान करने वाले नहीं हैं. इथियोपिया में ओमो घाटी स्वदेशी लोगों के सबसे अधिक आबादी वाले क्षेत्रों में से एक है. वहां अनूठी संस्कृति के लोग रहते हैं जो कचरे को जमा करके उनसे अपने गहने निर्मित करते हैं. इन गहनों से यहां की महिलाएं अपना सुन्दर सिंगार करती हैं.

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3. अपतानी महिला, भारत

अपतानी जनजाति भारत के अरुणाचल प्रदेश में वास करती है. इनकी महिलाओं को बहुत सुंदर माना जाता है, इसलिए अन्य जनजातियों के पुुरुषों की नजरों से बचने के लिए वे अपनी नाक को विदू्रपता के स्तर तक बड़ा कर लेती हैं. वे नाक में ऐसा प्लग नुमा आभूषण पहनती हैं ताकि उनकी नाक बहुत भद्दी नजर आए. यह नाक प्लग कोई सौन्दर्य की चीज नहीं है, बल्कि बुरी नजर से बचाव का शस्त्र है.

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4. अफार जनजाति, इथियोपिया

इथियोपिया की एक और खूबसूरत जनजाति है अफार. इस जनजाति में सौन्दर्य के मानक बिल्कुल अलग हैं. इनकी महिलाएं एक विशेष तरीके से अपने बालों को रौंदती हैं और कई चोटियां बनाती हैं. बेहत तेज रंगों के इनके आभूषण इनकी सुन्दरता में चार चांद लगाते हैं. इसके अलावा ये सुन्दर रंगों से शरीर को पेंट भी करती हैं. इनके कपड़े भी चटख रंगों के होते हैं.

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5. मुर्सी जनजाति, इथियोपिया

मुर्सी जनजाति की महिलाओं को उनके लटके हुए होंठों से पहचाना जाता है. बचपन से ही लड़कियों के होंठों को खींच कर बड़ा किया जाता है. वहीं शरीर को रंगने और फलों को आभूषण बना कर धारण करने के आश्चर्यजनक आइडिया भी उनके पास हैं. मुर्सी औरतें अपने सिर को सींग और पुष्प मुकुट के साथ सजाने के लिए जानी जाती हैं और चेहरे सहित पूरे शरीर को पेंट करती हैं. अपना इतना डरावना रूप पहले वे अपहरण और गुलामी से बचने के लिए करती थीं, जो अब उनकी परंपरा बन गया है. इनकी महिलाओं का अंगभंग भी किया जाता है ताकि वे गुलाम बनाये जाने के अयोग्य हो जाएं.

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6. लाहुई जनजाति, वियतनाम

लाहुई जनजाति के लोग अपने दांत काले रंग से पेंट करते हैं और इसे खूबसूरत मानते हैं. लाहुई जनजाति की महिलाएं अपने दांतों को काले रंग से पेंट करके यह दर्शाती हैं कि वे अब शादी करने के लिए तैयार हैं. यह कस्टम एशिया के अन्य हिस्सों में भी लोकप्रिय है. यह जापान के समाज में एक उच्च स्तर का प्रतीक है.

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7. दायक महिला, इंडोनेशिया

इंडोनेशिया में दायक जनजाति में सुराखों का विस्तार हमेशा मुख्य रूप से सुंदरता का संकेत माना जाता था. उनकी महिलाओं के कान बहुत छोटी उम्र में छेद दिये जाते हैं और भारी वजन के झुमकों को पहना कर उन छेदों को लम्बा किया जाता हैे. यह एक दर्दनाक परंपरा है. हालांकि अब इस जनजाति के भीतर बहुत कम महिलाएं ऐसा करती हैं.

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8. बेबी फैट ओयेबोल , दक्षिण कोरिया

दक्षिण कोरिया के लोग खूबसूरत दिखना पसंद करते हैं. खुबसूरती की यह ललक उन पर इसकदर हावी है कि यहां की महिलाओं को बच्चों की तरह खुबसूरत स्किन दिखाने के लिए प्लास्टिक सर्जरी तक का सहारा लेना पड़ता है और वे अपने चेहरे पर गहरा मेकअप भी लगाती हैं जो उन्हें बिल्कुल बेबी स्किन जैसा ग्लो और लुक देता है.

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