Download App

समय से पहले मारता है स्ट्रेस

नौकरी के दौरान होने वाला स्ट्रेस जीवन के लिए काफी खतरनाक साबित हो रहा है. हाल ही में ऐसे कई केस सामने आए हैं जहां कर्मचारी ने अपने अधिकारी के उत्पीड़न से तनाव में आकर स्वयं को गोली मार ली. हाल ही में हुए एक रिसर्च से पता चलता है कि काम के बोझ और ऊपरी अधिकारियों द्वारा दिए जाने वाले तनाव के चलते समय पूर्व मृत्यु का जोखिम 68 प्रतिशत तक जा पहुंचा है. काम से जुड़ा तनाव कई अन्य समस्याओं को भी जन्म देता है. हर समय औफिस-औफिस खेलते रहना और खुद व परिवार के लिए वक्त न निकाल पाना खतरनाक होता जा रहा है.

प्रदर्शन पर असर

कार्यस्थल का कुछ तनाव तो सामान्य बात है, लेकिन अत्यधिक तनाव आपकी उत्पादकता और प्रदर्शन दोनों को ही प्रभावित करता है. यह आपके शारीरिक और भावनात्मक स्वास्थ्य के साथ ही आपके रिश्ते और घरेलू जीवन को भी तहस-नहस कर देता है. यह नौकरी में सफलता पाने के मार्ग को अवरुद्ध कर आपको नकारात्मकता की ओर ढकेलता है.

बढ़ता है स्ट्रेस हार्मोन

तनाव के कारण शरीर में स्ट्रेस हार्मोन कोर्टिसोल के स्तर में वृद्धि होती है, जिसके चलते शरीर की आंतरिक प्रणालियों में बाधा पड़ने से दिल की बीमारी का खतरा बढ़ जाता है. कोर्टिसोल नकारात्मकता उत्पन्न करता है. इससे तनावग्रस्त व्यक्ति अस्वास्थ्यकर भोजन, ऐल्कोहाल और धूम्रपान का सहारा लेने लगता है. काम की अधिकता के चलते सैर-सपाटा, व्यायाम या मनोरंजन जैसी चीजें छूटती हैं. हर वक्त काम का टेंशन हृदय रोगों को जन्म देता है. इन चीजों से हृदय गति में परिवर्तन होने लगता है और दिल कमजोर होता चला जाता है. रक्त में अधिक कोर्टिसोल होने पर रक्त वाहिकाओं और दिल को नुकसान पहुंचता है. काम और घर के बीच प्राथमिकताओं का टकराव होने से मानसिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और इससे नशे की लत की संभावना बढ़ जाती है. चिंता, चिड़चिड़ाहट, अवसाद, रुचि की कमी, अनिंद्रा, अन्य नींद विकार, थकान, ध्यान देने में परेशानी, मांसपेशियों में तनाव या सिरदर्द, पेट की समस्याएं, मिलने जुलने में अरुचि, सेक्स ड्राइव कम होना और नशे की प्रवृत्ति बढ़ना कार्यस्थल पर तनाव के साइड इफेक्ट हैं.

ये भी पढ़ें- पोषण से भरपूर है नारियल पानी, जानें इसके फायदे

कार्यस्थल के तनाव को ऐसे करें कम

– सकारात्मक संबंध बनाएं और जब आप महसूस करें कि कोई काम हाथ से बाहर हो रहा है तो अपने सहयोगियों को विश्वास में लें.

– स्वस्थ खाने और नाश्ते से अपना दिन शुरू करें. यह न केवल आपको ध्यान केंद्रित करने में मदद करेगा, बल्कि यह भी सुनिश्चित करेगा कि आप तनाव से दूर रहें.

– पर्याप्त नींद लें और अपने सोने के समय में काम न करें. सुनिश्चित करें कि आप हर दिन एक ही समय में सोएं.

– हर दिन लगभग 30 मिनट शारीरिक व्यायाम करें. यह एंडोर्फिन हार्मोन जारी करेगा, जो आपके मूड को अच्छा बनाने में मदद कर सकता है.

– अपने काम को प्राथमिकता दें और व्यवस्थित तरीके से काम करें. इससे आप किसी भी तरह के बैकलॉग से बच जाएंगे.

– काम के दौरान मिलने वाली छुट्टियां अवश्य लें और परिवार के साथ भरपूर समय बिताएं, कहीं बाहर घूमने जाएं और वहां कार्यालय संबंधी फोन कॉल्स से पूरी तरह दूर रहें.

ये भी पढ़ें- आखिर हेल्दी डाइट से क्यों दूर हो रहे हैं युवा ?

जीवन देता जहर

जानकारी

जहर, दहशत और खौफ के साये एहसास से बना एक ऐसा नाम जिस के जबान पर आते ही झुरझुरी छूट जाती है. ‘जहर’ शब्द सुनते ही मन कसैला होना शुरू हो जाता है, क्योंकि जहर से कहीं ज्यादा जहर का मनोविज्ञान बहुत जहरीला यानी डरावना है.

जहर हमेशा मौत का बायस नहीं होता. तमाम अलगअलग स्थितियों, परिस्थितियों में जहर जीवन देते हैं. ये खुशियां भी देते हैं. जी हां, यह मजाक नहीं, सौ फीसदी सच है. आज की तारीख में मैडिकल साइंस अपनी तमाम उन्नति और भावी योजनाओं के लिए एक नहीं, अनेक किस्म के जहर पर निर्भर है क्योंकि जहर जीवन भी दे रहे हैं और इसे खूबसूरत भी बना रहे हैं.

ये कई किस्म के जहर ही हैं जो हमें तमाम असहनीय दर्दों और कई दूसरी भीषण किस्म की तकलीफों से छुटकारा दिलाते हैं. ये सीधे कुदरत से हासिल, कुदरत के कुनबे में मौजूद कई तरह के जहरीले जानवरों से हासिल और इंसानी दिमाग से कारखानों में तैयार किए गए हैं. जहर से बनी आज एकदो नहीं, सैकड़ों दवाइयां हैं जो हमें स्वस्थ रखती हैं और हमारी जिंदगी को आसान व आकर्षक बनाती हैं.

जीवन देता जहर

जहर से बनी दवाइयां हमें सिर्फ जीवन ही नहीं दे रही हैं, बल्कि इस जीवन के प्रतिनिधि शरीर को जहर कई तरीकों से खूबसूरत भी बना रहा है. चेहरे पर बुढ़ापा थोपने वाली ? झुर्रियों को भगा कर जवानी की ताजगी देने वाला ऐसा ही एक इंजैक्शन जहर से बनता है, नाम है बोटोक्स.

जी हां, सूचनाओं और अफवाहों की कौकटेल में आप ने तमाम सैलिब्रिटीज का नाता इस इंजैक्शन से पड़ा होगा. यह बेहद खतरनाक जहर से ही बनता है. बोटोक्स का इंजैक्शन बहुत महंगा होता है, फिर भी सुंदर यानी जवान दिखने की चाहत से सस्ता होता है. यही कारण है कि नोटों की संख्या जिन्हें परेशान नहीं करती वे इस का भरपूर आनंद लेते हैं.

वास्तव में यह इंजैक्शन बेहद तीखा जहर बौटुलिनम टौक्सिन है. यह इंसान की जानकारी में आया आज तक का सब से जहरीला पदार्थ है. इस के खतरनाकपन का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस के कुछ चम्मच से ही एक करोड़ लोगों का काम तमाम हो सकता है. अगर समूचे धरतीवासियों की टें बुलाना हो, तो बस, इस की कुछ किलो मात्रा ही काफी है. इतना खतरनाक होने के बावजूद इस का जबरदस्त आकर्षण है.

महिलाएं बुढ़ापा दूर करने वाले इस के प्रभाव से सम्मोहित हैं. ब्रिटेन और अमेरिका में हुए एक सर्वे के मुतबिक जिन महिलाओं को इस की खासीयत पता है, उन में 85 प्रतिशत महिलाएं बोटोक्स का इस्तेमाल कर के एक बार फिर से अपने चेहरे को  झुर्री रहित बनाना चाहती हैं.

लेकिन इस भुलावे में रहने की जरूरत नहीं है कि यह केवल चेहरे की झुर्रियां हटाने के कारण ही इतना दुर्लभ पदार्थ है. इसके और भी असंख्य फायदे हैं.

ये भी पढ़ें- एफआईआर दर्ज कराने से पहले पढ़ ले ये जानकारी

सब से कीमती उत्पाद

इंसान द्वारा निर्मित संसार का यह सब से खतरनाक पदार्थ है. फिर भी इस के महंगे होने की चर्चा कभी नहीं होती.

जब भी यह सुर्खियां बटोरता है, अपने खतरनाक होने के खौफ की ही बटोरता है. इस के खतरनाक होने के चलते ही हर किसी को इस के उत्पादन की छूट नहीं है. बौटुलिनम टौक्सिन आज भी सैन्य नियंत्रण में ही बनाया जाता है. यह करोड़ों नहीं, अरबों नहीं, खरबों रुपए प्रति किलो के हिसाब से बिकता है.

9,938 अरब रुपए प्रतिकिलो के हिसाब से यह बिकता है. यह रेट कम या ज्यादा हो सकता है. यह दुनिया का आज तक का सब से महंगा उत्पाद है. फिर भी बोटोक्स की मांग में जरा भी कहीं कोई कमी नहीं है.

जहर के एलडी 50 पैमाने, जिस में पदार्थ की वह मात्रा देखी जाती है जिस से किसी की मौत हो सकती है.इस पैमाने के मुताबिक, 0.000001 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम को निबटाने के लिए काफी है. इस का मतलब यह हुआ कि 70 किलोग्राम के किसी आदमी को मारने के लिए इस की सिर्फ 0.00007 ग्राम की जरूरत पड़ेगी. इसे चाहें तो यों भी कहा जा सकता है कि 70 किलो के आदमी को मारने के लिए हवा की एक क्यूबिक मिलीमीटर से भी कम की जरूरत पड़ेगी.

इस की बहुत ज्यादा ख्याति जवान बनाने के संबंध में इसलिए है क्योंकि यह चेहरे की ? झुर्रियों को पलक ? झपकते ही हटा देता है. दरअसल, यह जहर झुर्रियां पैदा करने वाली धमनियों को मार देता है. नतीजतन, आगे काफी दिनों के लिए ये रुक जाती हैं. लेकिन इस काम में इस की बहुत छोटी सी मात्रा इस्तेमाल होती है. एक ग्राम की करोड़वीं मात्रा को सेलाइन में घोल कर इस का इस्तेमाल किया जाता है.

बौटुलिनम टौक्सिन नाम के इस खतरनाक जहर को सिर्फ चेहरे या गले की ?झुर्रियों को हटाने भर के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाता, बल्कि इस का इस्तेमाल और भी तमाम तरह की स्वास्थ्य दिक्कतों को दूर करने के लिए किया जाता है. मसलन, आंखों का भेंगापन दूर करने के लिए, माइग्रेन, अत्यधिक पसीना आना और मूत्राशय की तकलीफ भी शामिल है.

जानकारों के मुताबिक, यह विभिन्न किस्म की 2 दर्जन से ज्यादा स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों को दूर करने में काम आता है. जबकि इस के व्यापक उपयोगों की तलाश जारी है. रसायनविदों की मानें तो 21वीं सदी के अंत तक इस खतरनाक जहर के कम से कम 200 से ज्यादा उपयोग इंसान को मालूम हो चुके होंगे.

बेहद उपयोगी एक जहर

कीमती मगर बेहद उपयोगी जहर की फेहरिस्त में एक और बिलियन डौलर जहर है. नाम है मैरी एन कौटन. इसे उच्च रक्तदाब निरोधक दवा कैप्टोप्रिल के रूप में कहीं ज्यादा आसानी से जाना जाता है. इसे सांप के जहर पर किए गए अध्ययनों के बाद प्रयोगशाला में विकसित किया गया है. इसी से एक्सेनेटाइड भी बना है जिसे बाएट्टा भी कहा जाता है. यह जहर टाइप-2 डायबिटीज का प्रभावी इलाज है. इसे दक्षिणपश्चिमी अमेरिका और मैक्सिको में रहने वाली विशाल जहरीली छिपकली जिला मौनस्टर की लार से तैयार किया जाता है.

हालांकि, जहर के चमत्कारिक उपयोगों ने हमारे स्वास्थ्य परिदृश्य को बदल कर रख दिया है, फिर भी विशेषज्ञों का मानना है कि अगर हम ने जहर को महज उन के स्वास्थ्य संबंधी प्रयोगों के आधार पर वर्गीकृत किया तो

यह बहुत सरलीकरण होगा, क्योंकि आधुनिक स्वास्थ्य विज्ञान पर जहर का असर सिर्फ इलाज प्रदान करने से कहीं अधिक है.

लालच का फंदा, बदनाम हुआ जहर

विक्टोरिया युग के ब्रिटेन में बीमा एक उभरता हुआ उद्योग था. लेकिन आसानी से हासिल होने वाले बीमे के पैसे की वजह से बहुत सी हत्याएं हो रही थीं. शुरू में तो किसी को कुछ ज्यादा समझ में नहीं आया, लेकिन जब यह सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा था तो स्कौटलैंड यार्ड पुलिस के कान खड़े हुए. उस ने सही अनुमान लगाया कि इन मौतों में कोई न कोई तो रहस्य है क्योंकि ये ज्यादातर मौतें जहर के कारण हुई थीं.

सब से मशहूर मामला एक महिला मैरी एन कौटन का था जिस पर 1873 में कई हत्याओं के लिए मुकदमा चलाया गया था. इन मोहतरमा ने 4 बार शादी की थी और उन के 3 पति, जिन का अच्छाखासा बीमा था, मर गए थे.

शायद चौथे को तीनों के पास पहुंचने में देर न लगती अगर उसे यह हठ न आ गया होता कि वह बीमा नहीं कराएगा. मैरी ने भी उस की जिद के साथ उसे जीने दिया और बीमा से उसे बख्श दिया. मगर चौथे पति को बख्श देने का यह कतई मतलब नहीं था कि बीमा नाम की उसे सोने का अंडा देने वाली जो मुरगी हाथ लगी थी, उसे उस ने जंगल में छोड़ दिया हो. उस का खेल जारी था. रहरह कर उस के सभी 10 बच्चे पेट संबंधी किसी रहस्यमयी बीमारी से मर गए.

ये भी पढ़ें- अजब गजब: 100 किलोग्राम सोने के सिक्का का बना रहस्य

मगर हैरानी की बात यह थी कि बेहद दुखद मौत मरने वाले इन सभी बच्चों का अच्छाखासा बीमा मौजूद था. मगर रुकिए, मैरी के परिवार वालों के बुरे वक्त का अभी अंत नहीं हुआ था. उस की मां, उस की भाभी, बूआ, सब की रहरह कर मौत हो गई. इन सभी मामलों में उसे जबरदस्त आर्थिक फायदा हुआ.

आधुनिक दवा उद्योग के लिए इतिहास में जो साल मील का पत्थर माना जाता है यानी 1872 तक मैरी के 16 नजदीकी परिजन और तमाम दोस्त या दूर के पारिवारिक सदस्य मारे जा चुके थे. बस, पूरे परिवार में एक बच्चा बच गया था, 7 साल का सौतेला बेटा चार्ल्स. मैरी ने उसे एक स्थानीय अनाथालय को देने की कोशिश की लेकिन उस ने लेने से इनकार कर दिया. इस के कुछ दिनों बाद ही चार्ल्स भी मर गया.

इस से उस अनाथालय के प्रबंधक को थोड़ा शक हो गया. उसे लगा जरूर दाल में कुछ काला है. हालांकि तब तक उसे नहीं पता था कि पूरी दाल ही काली है. बहरहाल, उस ने पुलिस को सूचना दे दी. पुलिस को पहले से ही मैरी पर कुछ शक था. सो, पुलिस को यह निष्कर्ष निकालने में कोई ज्यादा वक्त नहीं लगा कि इन तमाम मौतों के पीछे कहीं न कहीं मैरी का ही हाथ है. प्रारंभिक जांच के बाद ही पुलिस ने जान लिया कि मैरी ने संबंधित तमाम लोगों को जहर दे कर मारा है. पुलिस ने माना कि मैरी ने इन सब को आर्सेनिक दे कर मारा है.

आर्सेनिक एक खनिज है और एक जहर के रूप में इस का इस्तेमाल अद्वितीय है. यह स्वादरहित होता है. बहुत ही जल्द गरम पानी में घुल जाता है और एक आउंस के सौवें हिस्से से भी कम की इस की मात्रा जानलेवा होती है. वास्तव में 19वीं शताब्दी में इसे चूहों के जहर के रूप में बेचा और इस्तेमाल किया जाता था. यह सस्ता था और आसानी से उपलब्ध था.

उस वक्त फोरैंसिक विज्ञान अपनी शैशावस्था में था. फिर भी आर्सेनिक के लिए अच्छा टैस्ट मौजूद था. मृत लड़कों के पेट से लिए गए नमूनों की जांच की गई तो पता चला कि उन की मृत्यु आर्सेनिक की घातक मात्रा से हुई है. मैरी को उन की हत्या का दोषी पाया गया और उसे डरहम जेल में फांसी दे दी गई जहर हमेशा मौत का बायसनहीं होता. तमाम अलगअलग स्थितियों, परिस्थितियों में जहर जीवन देते हैं. ये खुशियां भी देते हैं. जी हां, यह मजाक नहीं, सौ फीसदी सच है. आज की तारीख में मैडिकल साइंस अपनी तमाम उन्नति और भावी योजनाओं के लिए एक नहीं, अनेक किस्म के जहर पर निर्भर है क्योंकि जहर जीवन भी दे रहे हैं और इसे खूबसूरत भी बना रहे हैं.

ये कई किस्म के जहर ही हैं जो हमें तमाम असहनीय दर्दों और कई दूसरी भीषण किस्म की तकलीफों से छुटकारा दिलाते हैं. ये सीधे कुदरत से हासिल, कुदरत के कुनबे में मौजूद कई तरह के जहरीले जानवरों से हासिल और इंसानी दिमाग से कारखानों में तैयार किए गए हैं. जहर से बनी आज एकदो नहीं, सैकड़ों दवाइयां हैं जो हमें स्वस्थ रखती हैं और हमारी जिंदगी को आसान व आकर्षक बनाती हैं.

जीवन देता जहर

जहर से बनी दवाइयां हमें सिर्फ जीवन ही नहीं दे रही हैं, बल्किइस जीवन के प्रतिनिधि शरीर को

जहर कई तरीकों से खूबसूरत भी बना रहा है. चेहरे पर बुढ़ापा थोपनेवाली झुर्रियों को भगा कर जवानी की ताजगी देने वाला ऐसा ही एक इंजैक्शन जहर से बनता है, नाम है बोटोक्स.

जी हां, सूचनाओं और अफवाहों की कौकटेल में आप ने तमाम सैलिब्रिटीज का नाता इस इंजैक्शन से पड़ा होगा. यह बेहद खतरनाक जहर से ही बनता है. बोटोक्स का इंजैक्शन बहुत महंगा होता है, फिर भी सुंदर यानी जवान दिखने की चाहत से सस्ता होता है. यही कारण है कि नोटों की संख्या जिन्हें परेशान नहीं करती वे इस का भरपूर आनंद लेते हैं.

वास्तव में यह इंजैक्शन बेहद तीखा जहर बौटुलिनम टौक्सिन है. यह इंसान की जानकारी में आया आज तक का सब से जहरीला पदार्थ है. इस के खतरनाकपन का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस के कुछ चम्मच से ही एक करोड़ लोगों का काम तमाम हो सकता है. अगर समूचे धरतीवासियों की टें बुलाना हो, तो बस, इस की कुछ किलो मात्रा ही काफी है. इतना खतरनाक होने के बावजूद इस का जबरदस्त आकर्षण है.

महिलाएं बुढ़ापा दूर करने वाले इस के प्रभाव से सम्मोहित हैं. ब्रिटेन और अमेरिका में हुए एक सर्वे के मुतबिक जिन महिलाओं को इस की खासीयत पता है, उन में 85 प्रतिशत महिलाएं बोटोक्स का इस्तेमाल कर के एक बार फिर से अपने चेहरे को झुर्रिरहीत बनाना चाहती हैं.

लेकिन इस भुलावे में रहने की जरूरत नहीं है कि यह केवल चेहरे की झुर्रियां हटाने के कारण ही इतना दुर्लभ पदार्थ है. इस के और भी असंख्य फायदे हैं.

ये भी पढ़ें- इन्का सभ्यता : खुलना बाकी हैं कई रहस्य

सब से कीमती उत्पाद

इंसान द्वारा निर्मित संसार का यह सब से खतरनाक पदार्थ है. फिर भी इस के महंगे होने की चर्चा कभी नहीं होती.

जब भी यह सुर्खियां बटोरता है, अपने खतरनाक होने के खौफ की ही बटोरता है. इस के खतरनाक होने के चलते ही हर किसी को इस के उत्पादन की छूट नहीं है. बौटुलिनम टौक्सिन आज भी सैन्य नियंत्रण में ही बनाया जाता है. यह करोड़ों नहीं, अरबों नहीं, खरबों रुपए प्रति किलो के हिसाब से बिकता है.

9,938 अरब रुपए प्रतिकिलो के हिसाब से यह बिकता है. यह रेट कम या ज्यादा हो सकता है. यह दुनिया का आज तक का सब से महंगा उत्पाद है. फिर भी बोटोक्स की मांग में जरा भी कहीं कोई कमी नहीं है.

जहर के एलडी 50 पैमाने, जिस में पदार्थ की वह मात्रा देखी जाती है जिस से किसी की मौत हो सकती है.

इस पैमाने के मुताबिक, 0.000001 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम को निबटाने के लिए काफी है. इस का मतलब यह हुआ कि 70 किलोग्राम के किसी आदमी को मारने के लिए इस की सिर्फ 0.00007 ग्राम की जरूरत पड़ेगी. इसे चाहें तो यों भी कहा जा सकता है कि 70 किलो के आदमी को मारने के लिए हवा की एक क्यूबिक मिलीमीटर से भी कम की जरूरत पड़ेगी.

इस की बहुत ज्यादा ख्याति जवान बनाने के संबंध में इसलिए है क्योंकि यह चेहरे की  झुर्रियों को पलक  झपकते ही हटा देता है. दरअसल, यह जहर झुर्रियां पैदा करने वाली धमनियों को मार देता है. नतीजतन, आगे काफी दिनों के लिए ये रुक जाती हैं. लेकिन इस काम में इस की बहुत छोटी सी मात्रा इस्तेमाल होती है. एक ग्राम की करोड़वीं मात्रा को सेलाइन में घोल कर इस का इस्तेमाल किया जाता है.

बौटुलिनम टौक्सिन नाम के इस खतरनाक जहर को सिर्फ चेहरे या गले की झुर्रियों को हटाने भर के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाता, बल्कि इस का इस्तेमाल और भी तमाम तरह की स्वास्थ्य दिक्कतों को दूर करने के लिए किया जाता है. मसलन, आंखों का भेंगापन दूर करने के लिए, माइग्रेन, अत्यधिक पसीना आना और मूत्राशय की तकलीफ भी शामिल है.

जानकारों के मुताबिक, यह विभिन्न किस्म की 2 दर्जन से ज्यादा स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों को दूर करने में काम आता है. जबकि इस के व्यापक उपयोगों की तलाश जारी है. रसायनविदों की मानें तो 21वीं सदी के अंत तक इस खतरनाक जहर के कम से कम 200 से ज्यादा उपयोग इंसान को मालूम हो चुके होंगे.

बेहद उपयोगी एक जहर

कीमती मगर बेहद उपयोगी जहर की फेहरिस्त में एक और बिलियन डौलर जहर है. नाम है मैरी एन कौटन. इसे उच्च रक्तदाब निरोधक दवा कैप्टोप्रिल के रूप में कहीं ज्यादा आसानी से जाना जाता है. इसे सांप के जहर पर किए गए अध्ययनों के बाद प्रयोगशाला में विकसित किया गया है. इसी से एक्सेनेटाइड भी बना है जिसे बाएट्टा भी कहा जाता है. यह जहर टाइप-2 डायबिटीज का प्रभावी इलाज है. इसे दक्षिणपश्चिमी अमेरिका और मैक्सिको में रहने वाली विशाल जहरीली छिपकली जिला मौनस्टर की लार से तैयार किया जाता है.

हालांकि, जहर के चमत्कारिक उपयोगों ने हमारे स्वास्थ्य परिदृश्य को बदल कर रख दिया है, फिर भी विशेषज्ञों का मानना है कि अगर हम ने जहर को महज उन के स्वास्थ्य संबंधी प्रयोगों के आधार पर वर्गीकृत किया तो यह बहुत सरलीकरण होगा, क्योंकि आधुनिक स्वास्थ्य विज्ञान पर जहर का असर सिर्फ इलाज प्रदान करने से कहीं अधिक है.

एक और अध्याय : भाग 1

  लेखक: यदु जोशी ‘गढ़देशी’

वृद्धाश्रम के गेट से सटी पक्की सड़क है, भीड़भाड़ ज्यादा नहीं है. मैं ने निकट से देखा, दादीमां सफेद पट्टेदार धोती पहने हुए वृद्धाश्रम के गेट का सहारा लिए खड़ी हैं. चेहरे पर  झुर्रियां और सिर के बाल सफेद हो गए हैं. आंखों में बेसब्री और बेबसी है. अंगप्रत्यंग ढीले हो चुके हैं किंतु तृष्णा उन की धड़कनों को कायम रखे हुए है.

तभी दूसरी तरफ से एक लड़का दौड़ता हुआ आया. कागज में लिपटी टौफियां दादीमां के कांपते हाथों में थमा कर चला गया. दादीमां टौफियों को पल्लू के छोर में बांधने लगीं. जैसे ही कोई औटोरिकशा पास से गुजरता, दादीमां उत्साह से गेट के सहारे कमर सीधी करने की चेष्टा करतीं, उस के जाते ही पहले की तरह हो जातीं.

मैं ने औटोरिकशा गेट के सामने रोक दिया. दादीमां के चेहरे से खुशी छलक पड़ी. वे गेट से हाथ हटा कर लाठी टेकती हुई आगे बढ़ चलीं.

‘‘दादीमां, दादीमां,’’ औटोरिकशा से सिर बाहर निकालते हुए बच्चे चिल्लाए.

‘‘आती हूं मेरे बच्चो,’’ दादीमां उत्साह से भर कर बोलीं, औटोरिकशा में उन के पोतापोती हैं, यही समय होता है जब दादीमां उन से मिलती हैं. दादीमां बच्चों से बारीबारी लिपटीं, सिर सहलाया और माथा चूमने लगीं. अब वे तृप्त थीं. मैं इस अनोखे मिलन को देखता रहता. बच्चों की स्कूल से छुट्टी होती और मैं औटोरिकशा लिए इसी मार्ग से ही निकलता. दादीमां इन अमूल्य पलों को खोना नहीं चाहतीं. उन की खुशी मेरी खुशी से कहीं अधिक थी और यही मुझे संतुष्टि दे जाती. दादीमां मुझे देखे बिना पूछ बैठीं, ‘‘तू ने कभी अपना नाम नहीं बताया?’’

‘‘मेरा नाम रमेश है, दादी मां,’’ मैं ने कहा.

‘‘अब तुझे नाम से पुकारूंगी मैं,’’ बिना मेरी तरफ देखे ही दादीमां ने कहा.

स्कूल जिस दिन बंद रहता, दादीमां के लिए एकएक पल कठिन हो जाता. कभीकभी तो वे गेट तक आ जातीं छुट्टी के दिन. तब गेटकीपर उन्हें समझ बुझा कर वापस भेज देता. दादीमां ने धोती की गांठ खोली. याददाश्त कमजोर हो चली थी, लेकिन रोज 10 रुपए की टौफियां खरीदना नहीं भूलतीं. जब वे गेट के पास होतीं, पास की दुकान वाला टौफियां लड़के से भेज देता और तब तक मुझे रुकना पड़ता.

‘‘आपस में बांट लेना बच्चो…आज कपड़े बहुत गंदे कर दिए हैं तुम ने. घर जा कर धुलवा लेना,’’ दादीमां के पोपले मुंह से आवाज निकली और तरलता से आंखें भीग गईं.

मैं मुसकराया, ‘‘अब चलूं, दादी मां, बच्चों को छोड़ना है.’’

‘‘हां बेटा, शायद पिछले जनम में कोईर् नेक काम किया होगा मैं ने, तभी तू इतना ध्यान रखता है,’’ कहते हुए दादीमां ने मेरे सिर पर स्नेह से हाथ फेर दिया था.

‘‘कौन सा पिछला जनम, दादी मां? सबकुछ तो यहीं है,’’ मैं मुसकराया.

ये भी पढ़ें- मेरा फुटबौल और बाबा की कुटिया

दादीमां की आंखों में घुमड़ते आंसू कोरों तक आ गए. उन्होंने पल्लू से आंखें पोंछ डालीं. रास्तेभर मैं सोचता रहा कि इन बेचारी के जीवन में कौन सा तूफान आया होगा जिस ने इन्हें यहां ला दिया.

एक दिन फुरसत के पलों में मैं दादीमां के हृदय को टटोलने की चेष्टा करने लगा. मैं था, दादीमां थीं और वृद्धाश्रम. दादीमां मुझे ले कर लाठी टेकतेटेकते वृद्धाश्रम के अपने कमरे में प्रवेश कर गईं. भीतर एक लकड़ी का तख्त था जिस में मोटा सा गद्दा फैला था. ऊपर हलके रंग की भूरी चादर और एक तह किया हुआ कंबल. दूसरी तरफ बक्से के ऊपर तांबे का लोटा और कुछ पुस्तकें. पोतापोती की क्षणिक नजदीकी से तृप्त थीं दादीमां. सांसें तेजतेज चल रही थीं. और वे गहरी सांसें छोड़े जा रही थीं.

लाठी को एक ओर रख कर दादीमां बिस्तर पर बैठ गईं और मुझे भी वहीं बैठने का इशारा किया. देखते ही देखते वे अतीत की परछाइयों के साथसाथ चलने लगीं. पीड़ा की धार सी बह निकली और वे कहती चली गईं.

‘‘कभी मैं घर की बहू थी, मां बनी, फिर दादीमां. भरेपूरे, संपन्न घर की महिला थी. पति के जाते ही सभी चुकने लगा…मान, सम्मान और अतीत. बहू घर में लाई, पढ़ीलिखी और अच्छे घर की. मुझे लगा जैसे जीवन में कोई सुख का पौधा पनप गया है. पासपड़ोसी बहू को देखने आते. मैं खुश हो कर मिलाती. मैं कहती, चांदनी नाम है इस का. चांद सी बहू ढूंढ़ कर लाई हूं, बहन.

‘‘फिर एकाएक परिस्थितियां बदलीं. सोया ज्वालामुखी फटने लगा. बेटा छोटी सी बात पर ? झिड़क देता. छाती फट सी जाती. मन में उद्वेग कभी घटता तो कभी बढ़ने लगता. खुद को टटोला तो कहीं खोट नहीं मिला अपने में.

‘‘इंसान बूढ़ा हो जाता है, लेकिन लालसा बूढ़ी नहीं होती. घर की मुखिया की हैसियत से मैं चाहती थी कि सभी मेरी बातों पर अमल करें. यह किसी को मंजूर न हुआ. न ही मैं अपना अधिकार छोड़ पा रही थी. सब विरोध करते, तो लगता मेरी उपेक्षा की जा रही है. कभीकभी मुझे लगता कि इस की जड़ चांदनी है, कोई और नहीं.

‘‘एक दिन मुझे खुद पर क्रोध आया क्योंकि मैं बच्चों के बीच पड़ गई थी. रात्रि का दूसरा प्रहर बीत रहा था. हर्ष बरामदे में खड़ा चांदनी की राह देख रहा था. झुंझलाहट और बेचैनी से वह बारबार ? झल्ला रहा था. रात गहराई और घड़ी की सुइयां 11 के अंक को छूने लगीं. तभी एक कार घर के सामने आ कर रुकी. चांदनी जब बाहर निकली तब सांस में सांस आई.

‘‘‘ओह, कितनी देर कर दी. मुझे तो टैंशन हो गई थी,’ हर्ष सिर झटकते हुए बोला था. चांदनी बता रही थी देर से आने का कारण जिसे मैं समझ नहीं पाई थी.

‘‘‘यह ठीक है, लेकिन फोन कर देतीं. तुम्हारा फोन स्विचऔफ आ रहा था,’ हर्ष फीके स्वर में बोला था.

‘‘‘इतने लोगों के बीच कैसे फोन करती, अब आ गई हूं न,’ कह कर चांदनी भीतर जाने लगी थी.

‘‘मुझ से रहा नहीं गया. मैं ने इतना ही कहा कि इतनी रात बाहर रहना भले घर की बहुओं को शोभा नहीं देता और न ही मुझे पसंद है. देखतेदेखते तूफान खड़ा हो गया. चांदनी रूठ कर अपने कमरे में चली गई. हर्र्ष भी उस पर बड़बड़ाता रहा और दोनों ने कुछ नहीं खाया.

‘‘मुझे दुख हुआ, मुझे इस तरह चांदनी को नहीं डांटना चाहिए था. ? झिड़कने के बजाय समझना चाहिए था. लेकिन बहू घर की इज्जत थी, उसे इस तरह सड़क पर नहीं आने देना चाहती थी. एक मुट्ठीभर उपलब्धि के लिए अपने दायित्वों को भूलना क्या ठीक है? नारी को अपनी सुरक्षा और सम्मान के लिए हमेशा ही जूझना पड़ा है.

‘‘हर्ष मेरे व्यवहार से कई दिनों तक उखड़ाउखड़ा सा रहा. लेकिन मैं ने बेटे की परवा नहीं की. हर्ष हर बात पर चांदनी का पक्ष लेता. मां थी मैं उस की, क्या कोई मां अपने बच्चों का बुरा चाहेगी? कई बार मुझे लगता कि बेटा मेरे हाथ से निकला जा रहा है. मैं हर्ष को खोना नहीं चाहती थी.

ये भी पढ़ें- तिकोनी डायरी : भाग 3

‘‘यह मेरी कमजोरी थी. मैं हर्ष को समझने की कोशिश करती तो वह अजीब से तर्क देने लग जाता. वह नहीं चाहता कि चांदनी घर में चौकाचूल्हा करे. घर के लिए बाई रखना चाहता था वह, जो मुझे नापसंद था. मैं साफसफाई पसंद थी जबकि सभी अस्तव्यस्त रहने के आदी थे. मूर्ख ही थी मैं कि बच्चों के आगे जो जी में आता, बक देती थी. कभी धैर्य से मैं ने नहीं सोचा कि सामंजस्य किसे कहते हैं.

‘‘चांदनी भी कई दिनों तक गुमसुम रही. बहूबेटा मेरे विरोध में खड़े दिखाई देने लगे थे. एक दिन चांदनी खाना रख कर मेरे सामने बैठ गई. खाना उठाते ही मेरे मुंह से न चाह कर भी अनायास छूट गया, ‘तुम्हारे मायके वालों ने कुछ सिखाया ही नहीं. भूख ही मर जाती है खाना देख कर.’

‘‘चांदनी का मुंह उतर गया, लेकिन कुछ न बोली. आज सोचती हूं कि मैं ने क्यों बहू का दिल दुखाया हर बार. क्यों मेरे मुंह से ऐसे कड़वे बोल निकल जाते थे. अब उस का दंड भुगत रही हूं. आज पश्चात्ताप में जल रही हूं, बहुत पीड़ा होती है, बेटा.’’ दादीमां रोंआसी हो गईं.

‘‘जो हुआ, सो हुआ, दादी मां. इंसान हैं सभी. कुछ गलतियां हो जाती हैं जीवन में,’’ मैं ने अपना नजरिया पेश किया.

दादी आगे कहने लगीं, ‘‘हर्ष को भी न जाने क्या हुआ कि वह मुझ से दूरदूर होता रहा. न जाने मुझ से क्या चूक हो रही थी, वह मैं तब न समझ सकी थी. एक स्त्री होने की वेदना, उस पर वैधव्य. विकट परिस्थिति थी मेरे लिए. लगता था कि मैं दुनिया में अकेली हूं और सभी से बहुत दूर हो चुकी हूं.

‘‘कुछ सालों बाद चांदनी की गोद भर गई. बड़ा संतोष हुआ कि शायद बचीखुची जिंदगी में खुशी आई है. कुछ माह और बीते, चांदनी का समय क्लीनिकों में व्यतीत होता या फिर अपने कमरे में. चांदनी की छोटी बहन नीना आ गई थी. नीना सारा दिन कमरे में ही गुजार देती. देर तक सोना, देर रात तक बतियाते रहना. घर का काफी काम बाई के जिम्मे सौंप दिया गया था.

‘‘एक दिन हर्ष औफिस से जल्दी आया और सीधे रसोई में जा कर डिनर बनाने लगा. इतने में नीना रसोई में आ गई, ‘अरे…अरे जीजू, यह क्या हो रहा है? मुझ से कह दिया होता.’

‘‘मुझ से रहा नहीं गया, सो, बोल पड़ी कि इंसान में समझ हो तो बोलना जरूरी नहीं होता. हर्ष का पारा चढ़ गया और देर तक मुझ पर चीखताचिल्लाता रहा.

‘‘खाना पकाना, कपड़े धोना और छोटेमोटे काम बाई के जिम्मे सौंप कर सभी निश्ंचित थे. मेरे होने न होने से क्या फर्क पड़ता? बाई व्यवहार की अच्छी थी. मेरा भी खयाल रखने लगी. न जाने क्यों मैं सारी भड़ास बाई पर ही निकाल देती. तंग आ कर एक दिन बाई ने काम ही छोड़ दिया. मेरे पास संयम नाम की चीज ही नहीं थी और चांदनी व हर्ष के लिए यह मुश्किल घड़ी थी. यह अब समझ रही हूं.

समाज की दूरी से दो लोगों को फांसी: भाग 2

समाज की दूरी से दो लोगों को फांसी : भाग 1

अब आगे पढ़ें

आखिरी भाग

संदीप और शैफाली का प्यार परवान चढ़ ही रहा था कि एक दिन उन का भांडा फूट गया. हुआ यूं कि उस रोज शैफाली अपने कमरे में मोबाइल पर संदीप से प्यार भरी बातें कर रही थी. उस की बातें मां रेनू ने सुनीं तो उन का माथा ठनका. कुछ देर बाद उन्होंने उस से पूछा, ‘‘शैफाली, ये संदीप कौन है? उस से तुम कैसी अटपटी बातें करती हो?’’

शैफाली न डरी न लजाई, उस ने बता दिया, ‘‘मां संदीप मेरी सहेली शिवानी का भाई है. गांव के पूर्वी छोर पर रहता है. बहुत अच्छा लड़का है. हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं.’’

रेनू कुछ देर गंभीरता से सोचती रही, फिर बोली, ‘‘बेटी अभी तो तुम्हारी पढ़नेलिखने की उम्र है. प्यारव्यार के चक्कर में पड़ गई. वैसे तुम्हारी पसंद से शादी करने पर मुझे कोई एतराज नहीं है. किसी दिन उस लड़के को घर ले आना, मैं उस से मिल लूंगी और उस के बारे में पूछ लूंगी. सब ठीकठाक लगा तो तुम्हारे पापा को शादी के लिए राजी कर लूंगी.’’

3-4 दिन बाद शैफाली ने संदीप को चाय पर बुला लिया. होने वाली सास ने बुलाया है. यह जान कर संदीप के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. उसे विश्वास हो था कि शैफाली के घर वालों की स्वीकृति के बाद वह अपने घर वालों को भी मना लगा. उस ने अभी तक अपने मांबाप को अपने प्यार के बारे में कुछ भी नहीं बताया था. घर में उस की बहन शिवानी ही उस की प्रेम कहानी जानती थी.

शैफाली की मां रेनू ने संदीप को देखा तो उस की शक्लसूरत, कदकाठी तो उन्हें पसंद आई. लेकिन जब जाति कुल के बारे में पूछा तो रेनू की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. संदीप दलित समाज का था.

संदीप के जाने के बाद रेनू ने शैफाली को डांटा, ‘‘यह क्या गजब किया. दिल लगाया भी तो एक दलित से. राजपूत और दलित का रिश्ता नहीं हो सकता. तू भूल जा उसे, इसी में हम सब की भलाई है. समाज उस से तुम्हारा रिश्ता स्वीकर नहीं करेगा. हम सब का हुक्कापानी बंद हो जाएगा. तुम्हारी अन्य बहनें भी कुंवारी बैठी रह जाएंगी. भाई को भी कोई अपनी बहनबेटी नहीं देगा.’’

शैफाली ने ठंडे दिमाग से सोचा तो उसे लगा कि मां जो कह रही हैं, सही बात है. इसलिए उस ने उस वक्त तो मां से वादा कर लिया कि वह संदीप को भूल जाएगी. लेकिन वह अपना वादा निभा नहीं सकी. वह संदीप को अपने दिल से निकाल नहीं पाई.

ये भी पढ़ें- प्रेमी प्रेमिका के चक्कर में दुलहन का हश्र: भाग 2

संदीप के बारे में वह जितना सोचती थी उस का प्यार उतना ही गहरा हो जाता. आखिर उस ने निश्चय कर लिया कि चाहे जो भी हो, वह संदीप का साथ नहीं छोड़ेगी. शादी भी संदीप से ही करेगी.

भूरा राजपूत को शैफाली और संदीप की प्रेम कहानी का पता चला तो उस ने पहले तो पत्नी रेनू को आड़े हाथों लिया, फिर शैफाली को जम कर फटकार लगाई. साथ ही चेतावनी भी दी, ‘‘शैफाली, तू कान खोल कर सुन ले, अगर तू इश्क के चक्कर में पड़ी तो तेरी पढ़ाई लिखाई बंद हो जाएगी और तुझे घर से बाहर जाने की इजाजत नहीं मिलेगी.’’

घर वालों के विरोध के कारण शैफाली भयभीत रहने लगी. वह अच्छी तरह जान गई थी कि परिवार वाले उस की शादी किसी भी कीमत पर संदीप के साथ नहीं करेंगे. उस ने यह बात संदीप को बताई तो उस का दिल बैठ गया. वह बोला, ‘‘शैफाली घर वाले विरोध करेंगे तो क्या तुम मुझे ठुकरा दोगी?’’

‘‘नहीं संदीप, ऐसा कभी नहीं होगा., मैं तुम से प्यार करती हूं और हमेशा करती रहूंगी. हम साथ जिएंगे, साथ मरेंगे.’’

‘‘मुझे तुम से यही उम्मीद थी, शैफाली.’’ कहते हुए संदीप ने उसे अपनी बांहों में भर लिया. उस की आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे.

रेनू अपनी बेटी शैफाली पर भरोसा करती थीं. उन्हें विश्वास था कि समझाने के बाद उस के सिर से इश्क का भूत उतर गया है. इसलिए उन्होंने शैफाली के घर से बाहर जाने पर एतराज नहीं किया. लेकिन उस का पति भूरा राजपूत शैफाली पर नजर रखता था. उस ने  पत्नी से कह रखा था कि शैफाली जब भी घर से निकले, छोटी बहन के साथ निकले.

13 जून, 2019 की सुबह 8 बजे संदीप के पिता दिनेश कमल अपनी पत्नी माधुरी बेटी शिवानी तथा बेटे मुन्ना के साथ अपने गांव चिलौली (कानपुर देहात) चले गए.

दरअसल, बरसात शुरू हो गई थी. उन्हें मकान की मरम्मत करानी थी. उन्हें वहां सप्ताह भर रुकना था. जाते समय संदीप की मां माधुरी ने उस से कहा, ‘‘बेटा संदीप, मैं ने पराठा, सब्जी बना कर रख दी है. भूख लगने पर खा लेना.’’.

मांबाप, भाईबहन के गांव चले जाने के बाद घर सूना हो गया. ऐसे में संदीप को तन्हाई सताने लगी. इस तनहाई को दूर करने के लिए उस ने अपनी प्रेमिका शैफाली को फोन किया, ‘‘हैलो, शैफाली आज मैं घर पर अकेला हूं. घर के सभी लोग गांव गए हैं. तुम्हारी याद सता रही थी. इसलिए जैसे भी हो तुम मेरे घर आ जाओ.’’

‘‘ठीक है संदीप, मैं आने की कोशिश करूंगी.’’ इस के बाद शैफाली तैयार हुई और मां से प्यार जताते हुए बोली, ‘‘मां, कुछ दिन पहले मैं अपनी सहेली शिवानी से कुछ किताबें लाई थी. उसे किताबें वापस करने उस के घर जाना है. घंटे भर बाद वापस आ जाऊंगी.’’ मां ने इस पर कोई ऐतराज नहीं किया.

शैफाली किताबें वापस करने का बहाना बना कर घर से निकली ओर संदीप के घर जा पहुंची. संदीप उस का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. उस के आते ही संदीप ने उसे बांहों में भर कर चुंबनों की झड़ी लगा दी. इस के बाद दोनों प्रेमालाप में डूब गए.

इधर भूरा राजपूत घर पहुंचा तो उसे अन्य बेटियां तो घर में दिखीं पर शैफाली नहीं दिखी. उस ने पत्नी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह सहेली के घर किताबें वापस करने गई थी.

ये भी पढ़ें- पति पत्नी का परायापन: भाग 2

यह सुनते ही भूरा का माथा ठनका. उसे शक हुआ कि शैफाली बहाने से घर से निकली है और प्रेमी संदीप से मिलने गई है.

भूरा ने कुछ देर शैफाली के लौटने का इंतजार किया, फिर उस की तलाश में घर से निकल पड़ा. वह सीधा संदीप के घर पहुंचा. संदीप घर पर ही था.

शैफाली के बारे में पूछने पर उस ने भूरा से झूठ बोल दिया कि शैफाली उस के घर नहीं है. शैफाली को ले कर भूरा की संदीप से हाथापाई भी हुई फिर वह पुलिस लाने की धमकी दे कर वहां से पुलिस चौकी चला गया.

संदीप ने शैफाली को घर में ही छिपा दिया था. पिता की धमकी से वह डर गई थी. उस ने संदीप से कहा, ‘‘संदीप, घर वाले हम दोनों को एक नहीं होने देंगे. और मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकती. अब तो बस एक ही रास्ता बचा है, वह है मौत का. हम इस जन्म में न सही अगले जन्म में फिर मिलेंगे.’’

संदीप ने शैफाली को गौर से देखा फिर बोला, ‘‘शैफाली मैं भी तुहारे बिना नहीं जी सकता. मैं तुम्हारा साथ दूंगा.’’

इस के बाद दोनों ने मिल कर पंखे के कुंडे से साड़ी बांधी और साड़ी के दोनों किनारों का फंदा बनाया, एकएक फंदा डाल कर दोनों झूल गए.

कुछ ही देर में उन की मौत हो गई. इधर भूरा राजपूत अपने साथ पुलिस ले कर संदीप के घर पहुंचा. बाद में पुलिस को कमरे में संदीप और शैफाली के शव फंदों से झूले मिले. इस के बाद तो दोनों परिवारों में कोहराम मच गया.

सौजन्य: मनोहर कहानियां

DANDIYA NIGHT: शानदार लुक के लिए ट्राई करें ये खास टिप्स

त्यौहारों का सीजन चल रहा है. जाहिर सी बात है कि आप सबसे खूबसूरत दिखना चाहती हैं. खूबसूरत दिखने के लिए सबसे पहले आपको मेकअप के कुछ खास टिप्स बताते हैं. इन टिप्स को अपनाकर आप डांडिया नाइट की शान बन सकती हैं.  तो  चलिए झट से बताते हैं आपको ये खास मेकअप टिप्स.

सबसे पहले चेहरे को अच्छी तरह से साफ करें, फिर टोन करें और उसके बाद लाइट मौइश्चराइजर यूज करें.  और पूरे चेहरे के साथ-साथ हाथ और पैर पर भी सनस्क्रीन लगा लें.

अगर आपका चेहरा अच्छी तरह से मौइश्चराइज्ड और सन-प्रोटेक्टेड नहीं है तो किसी भी तरह का मेकअप आपकी खूबसूरती को निखार नहीं सकता. लिहाजा मेकअप शुरू करने से पहले अपने चेहरे को  क्लेन्ज, टोन और मौइश्चराइज करना न भूलें. चेहरे को पहले अच्छी तरह से साफ करें, फिर टोन करें और उसके बाद लाइट मौइश्चराइजर यूज करें.

ये भी पढ़ें- सेक्सी लुक के लिए अपनाएं ये खास टिप्स

सही बेस तैयार करें

मेकअप का सही बेस तैयार करने के लिए लाइट या मीडियम कवरेज वाला फाउंडेशन या फिर बीबी या सीसी क्रीम यूज करें. हेवी फाउंडेशन यूज करने से बचें.

कंसीलर यूज करें

अगर आपके चेहरे पर डार्क सर्कल्स, पिंपल्स या ब्लेमिश है तो उन्हें छिपाने के लिए कंसीलर यूज करना जरूरी है. हमेशा ऐसा कंसीलर खरीदें जो आपकी स्किन के टोन से एक शेड लाइट हो और कंसीलर का इस्तेमाल चेहरे की सिर्फ उन ही जगहों पर करें जहां यूज करना जरूरी हो.

पाउडर और ब्लश

मेकअप को सेट करने के लिए पूरे चेहरे पर कौम्पैक्ट पाउडर लगाएं और उसके बाद हल्के रंग के ब्लश का इस्तेमाल करें. कान के एक कौर्नर से लेकर दूसरे कौर्नर तक मुस्कुराएं और फिर चीकबोन्स के आउटर कौर्नर पर ब्लश लगाएं. इसके बाद नोज के टिप पर हल्का सा फोरहेड और गर्दन पर.

ये भी पढ़ें- गरबा स्पेशल 2019 : ऐसे सजाएं अपने नाखूनों को

आई मेकअप और लिपस्टिक

अब जब आपका चेहरा रेडी हो गया है तो अब बारी आंख और होंठ की है. आंखों के लिए आइलाइनर के साथ-साथ मस्कारा का एक कोट यूज करें और फिर एक अच्छे शेड की लिपस्टिक यूज करें. अगर आप लिपस्टिक लगाना पसंद नहीं करतीं तो लिप ग्लौस या टिंटेड लिप बाम भी यूज कर सकती हैं.

और दीप जल उठे : भाग 2

‘‘पर यह गांठ कुछ दर्द तो करती नहीं है, फिर निकलवाने की क्या जरूरत है?’’ उन के मुंह से यह सुन कर मुझे सहज ही पता चल गया कि कैंसर के बारे में हमारी अज्ञानता ही इस रोग को बढ़ाती है. मम्मीजी ने तो मुझे यह भी बताया कि उन के स्कूल की एक अध्यापिका ने उन्हें एक वैद्य का पता बताया था जोकि बिना किसी सर्जरी के एक सप्ताह के भीतर अपनी आयुर्वेदिक गोलियों और चूर्ण से यह गांठ गला सकते हैं. मैं ने साफ कह दिया, ‘‘मम्मीजी, हमें इन चक्करों में नहीं पड़ना है.’’ मेरी बात सुन कर वे निरुत्तर हो गईं. जांच रिपोर्ट आने के तीसरे दिन ही डाक्टर ने औपरेशन की तारीख निश्चित कर दी थी. औपरेशन के एक दिन पहले ही रात को मम्मीजी को अस्पताल में भरती करवा दिया गया. राजेश और भाईसाहब मां की जरूरत का सामान बैग में ले कर अस्पताल चले गए.

अगले दिन ब्लडप्रैशर नौर्मल होने पर सवेरे 9 बजे मम्मीजी को औपरेशन थिएटर में ले जाया गया. हम लोग औपरेशन थिएटर के बाहर बैठ इंतजार कर रहे थे. साढ़े 11 बजे तक मम्मीजी का औपरेशन चला. उन के एक ही स्तन में 2 गांठें थीं. सर्जरी से डाक्टर ने पूरे स्तन को ही हटा दिया.

अचानक ही आईसीयू से पुकार हुई, ‘‘शांति के साथ कौन है?’ सुन कर हम सभी जड़ हो गए. राजेश को आगे धकेलते हुए हम ने जैसेतैसे कहा, ‘‘हम साथ हैं.’’ डाक्टर ने राजेश को अंदर बुलाया और कहा कि औपरेशन सफल रहा है. अब इस स्तन के टुकड़े को जांच के लिए मुंबई प्रयोगशाला में भेजेंगे ताकि यह पता लग सके कि कैंसर किस अवस्था में था. राजेश को उन्होंने कहा, ‘‘आप चिंता नहीं करें, आप की माताजी बिलकुल ठीक हैं. औपरेशन सफलतापूर्वक हो गया है तथा 4 से 6 घंटे बाद उन्हें होश आ जाएगा.’’

राजेश जब बाहर आए तो वे सहज थे. उन को शांत देख कर हमें भी चैन आया. तभी भाईसाहब ने परेशान होते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ? तुम्हें अंदर क्यों बुलाया था?’’ राजेश ने बताया कि चिंता की बात नहीं है. डाक्टर ने सर्जरी कर हटाए गए स्तन को दिखाने के लिए बुलाया था. मम्मीजी बिलकुल ठीक हैं.

शाम को करीब साढ़े 7 बजे मम्मीजी को होश आया. होश आते ही उन्होंने पानी मांगा. भाईसाहब ने उन्हें थोड़ा पानी पिलाया. तब तक दीदी भी बीकानेर से आ चुकी थीं. दीदी आते ही रोने लगीं तो हम ने उन्हें मां के सफल औपरेशन के बारे में बताया. जान कर दीदी भी शांत हो गईं. अगले दिन सुबह मां को आईसीयू से वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया. उन्हें हलका खाना जैसे खिचड़ी, दलिया, चायदूध देने की इजाजत दी गई थी.

3 दिनों तक तो उन्हें औपरेशन कहां हुआ है, यह पता ही नहीं चला, लेकिन जैसे ही पता चला वे बहुत दुखी हुईं और रोने लगीं. तब मैं ने उन्हें बताया, ‘‘मम्मीजी, अब चिंता की कोई बात नहीं है. एक संकट अचानक आया था और अब टल चुका है. अब आप एकदम स्वस्थ हैं.’’ 10 दिनों तक हम सभी हौस्पिटल के चक्कर लगाते रहे. मम्मीजी को अस्पताल से छुट्टी मिल गई तो फिर घर आ गए. घर पहुंच कर हम सभी ने राहत की सांस ली. भाईसाहब और दीदी को हम ने रवाना कर दिया. मां भी तब तक थोड़ा सहज हो गई थीं. अब उन्हें कैंसर के बारे में पता चल चुका था और वे समझ चुकी थीं कि औपरेशन ही इस का इलाज है.

एक महीने में उन के टांके सूख गए थे और हम ने हौस्पिटल जा कर उन के टांके कटवाए, क्योंकि वे एक मोटे लोहे के तार से बंधे थे. डाक्टर ने मम्मीजी का हौसला बढ़ाया तथा उन्हें बताया कि अब आप बिलकुल ठीक हैं. आप ने इस बीमारी का पहला पड़ाव सफलतापूर्वक पार कर लिया है. पहले पड़ाव की बात सुन कर हम सभी चौंक गए. ‘‘डाक्टर ये आप क्या कह रहे हैं?’’ राजेश ने जब डाक्टर से पूछा तो उन्होंने बताया कि आप की माताजी का औपरेशन तो अच्छी तरह हो गया है, लेकिन भविष्य में यह बीमारी फिर से उभर कर सामने न आए, इसलिए हमें दूसरे चरण को भी पार करना होगा और वह दूसरा चरण है, कीमोथेरैपी?

‘‘कीमोथेरैपी,’’ हम ने आश्चर्य जताया. डाक्टर ने बताया कि कैंसर अभी शुरुआती दौर में ही है. यह यहीं समाप्त हो जाए, इस के लिए हमें कीमोथेरैपी देनी होगी. कैंसर के कीटाणु के विकास की थोड़ीबहुत आशंका भी अगर हो तो उसे कीमोथेरैपी से खत्म कर दिया जाएगा. डाक्टर ने बताया कि आप की माताजी के टांके अब सूख चुके हैं. सो, ये कीमोथेरैपी के लिए बिलकुल तैयार हैं. अब आप इन्हें कीमोथेरैपी दिलाने के लिए 4 दिनों बाद यहां ले आएं तो ठीक रहेगा. पता चला, मां को कीमोथेरैपी दी जाएगी. कैंसर में दी जाने वाली यह सब से जरूरी थेरैपी है. 4 दिनों बाद मैं और राजेश मां को ले कर हौस्पिटल पहुंचे. 9 बजे से कीमोथेरैपी देनी शुरू कर दी गई. थेरैपी से पहले मां को 3 दवाइयां दी गईं ताकि थेरैपी के दौरान उन्हें उलटियां न हों. 2 बोतल ग्लूकोज की पहले, फिर कैंसर से बचाव की वह लाल रंग की बड़ी बोतल और उस के बाद फिर से 3 बोतल ग्लूकोज की तथा एक और छोटी बोतल किसी और दवाई की ड्रिप द्वारा मां को चढ़ाई जा रही थीं. धीरेधीरे दी जाने वाली इस पहली थेरैपी के खत्म होतेहोते शाम के 7 बज चुके थे. मैं अकेली मां के पास बैठी थी. शाम को औफिस से राजेश सीधे हौस्पिटल ही आ गए थे.

रात को 8 बजे हम तीनों घर पहुंचे. थेरैपी की वजह से मम्मीजी का सिर चकरा रहा था. हलका खाना खा कर वे सो गईं. अब अगली थेरैपी उन्हें 21 दिनों के बाद दी जानी थी. पहली थेरैपी के बाद ही उन के घने लंबे बाल पूरी तरह झड़ गए. यह देख कर हम सभी काफी दुखी हुए. बाल झड़ने के कारण मां पूरे समय अपने सिर को स्कार्फ से ढक कर रखती थीं. कई बार मां इस दौरान कहतीं, ‘‘कैंसर के औपरेशन में इतनी तकलीफ नहीं हुई जितनी इस थेरैपी से हो रही है.’’

मैं उन को ढाढ़स बंधाती, ‘‘मम्मीजी, आप चिंता मत करो, यह तो पहली थेरैपी है न, इसलिए आप को ज्यादा तकलीफ हो रही है. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा.’’ थेरैपी के प्रभाव के फलस्वरूप उन की जीभ पर छाले उभर आए. पानी पीने के अलावा कोई चीज वे सहज रूप से नहीं खापी पाती थीं. यह देख कर हम सभी को बहुत कष्ट होता था. उन के लिए बिना मिर्च, नमक का दलिया, खिचड़ी बनाने लगी, ताकि वे कुछ तो खा सकें. फलों का जूस भी थोड़ाथोड़ा देती रहती थी ताकि उन को कुछ राहत मिले. इस तरह 21-21 दिन के अंतराल में उन की सभी 6 थेरैपी पूरी हुईं.

हालांकि ये थेरैपी मम्मीजी के लिए बहुत कष्टकारी थीं लेकिन हम सभी यही सोचते थे कि स्वास्थ्य की तरफ मां का यह दूसरा चरण भी सफलतापूर्वक संपन्न हो जाए, तो अच्छा है. जिस दिन अंतिम थेरैपी पूरी हुई तो मां के साथ मैं ने और राजेश ने भी राहत की सांस ली. जब डाक्टर से मिलने उन के कैबिन में गए तो खुश होते हुए डाक्टर ने हमें बधाई दी, ‘‘अब आप की माताजी बिलकुल स्वस्थ हैं. बस, वे अपने खानेपीने का ध्यान रखें. पौष्टिक भोजन, फल, सलाद और जूस लेती रहें. सामान्य व्यायाम, वाकिंग करती रहें, तो अच्छा होगा.’’ इस के साथ ही डाक्टर ने हमें यह हिदायत विशेषरूप से दी कि जिस स्तन का औपरेशन हुआ है उस तरफ के हाथ पर किसी तरह का कोई कट नहीं लगने पाए. डाक्टर से सारी हिदायतें और जानकारी ले कर हम घर आ गए. अब हर 6 महीने के अंतराल में मां की पूरी जांच करवाते रहना जरूरी था ताकि उन का स्वास्थ्य ठीक रहे और भविष्य में इस तरह की कोई परेशानी सामने न आए. एक महीने आराम के बाद मम्मीजी वापस बीकानेर लौट गई थीं.

6 साल हो गए हैं. अब तो डाक्टर ने जांच भी साल में एक बार कराने के लिए कह दिया. मम्मीजी का जीवन दोबारा उसी रफ्तार और क्रियाशीलता के साथ शुरू हो गया. आज मम्मीजी अपने स्कूल और महल्ले में सब की प्रेरणास्रोत हैं. आज वे पहले से भी अधिक ऐक्टिव हो गई हैं. अब वे 2 स्तरों पर अध्यापन करवाती हैं- एक अपने स्कूल में और दूसरे कैंसर के प्रति सभी को जागरूक व सजग रहने के लिए प्रेरित करती हैं. उन्हें स्वस्थ और प्रसन्न देख कर मेरे साथ पूरा परिवार और रिश्तेदार सभी फिर से उन के स्नेह की छत्रछाया में खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं.

‘ये कहानियां हमारे समाज का आईना हैं’: अमिताभ बच्चन

सदी के महानायक, बिग बी, एंग्री यंगमैन, शहंशाह और न जाने कितने नामों से जाने जानेवाले अमिताभ बच्चन की बड़ी खासीयत यह है कि उन्होंने कभी हार नहीं मानी. शायद यही वजह है कि उन के समय के साथी अभिनेता कहीं गुम हो गए हैं जबकि अमिताभ आज भी छोटे और बड़े परदे पर वाहवाही लूट रहे हैं.

सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की शख्सीयत से कोई अछूता नहीं. उन्होंने अभिनय के क्षेत्र में एक लंबी पारी तय की है. आज वे फिल्म, विज्ञापन, टूरिज्म का प्रमोशन या किसी शो को होस्ट करना हो, हर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा कर सब का मन मोह लेते हैं. उन के कैरियर की शुरुआत में ऐसा नहीं था, उन्हें भी कई रिजैक्शन मिले, फिल्में असफल भी हुईं. फिल्म ‘कुली’ के दौरान उन्हें गंभीर चोट लगी, हौस्पिटल में रहे और अब वे लिवर सिरोसिस के शिकार हैं.

ये भी पढ़ें- ‘विडो आफ साइलेंस’: बेल्जियम के सिनेमाघरों में प्रदर्शित होने वाली पहली भारतीय फिल्म

वे 25 प्रतिशत लिवर के साथ अभी भी काम कर रहे हैं. उन्होंने कभी हार नहीं मानी. सोनी टीवी पर ‘कौन बनेगा करोड़पति’ के 11वें सत्र को उन्होंने लौंच कर रिश्तों की अहमियत को बताने की कोशिश की, क्योंकि इस शो में आने वालों के साथ उन का एक अलग रिश्ता जुड़ता है, जिसे वे शो के बाद भी याद करते हैं.

‘कौन बनेगा करोड़पति’ शो में आप को खास क्या लगता है? इस सवाल के जवाब में अमिताभ बच्चन कहते हैं, ‘‘मैं पिछले 9 सीजन से इस से जुड़ा हूं और हर बार कुछ नई चीजों को अपने साथ ले कर जाता हूं. इस में आए लोगों की जीवनी से मैं बहुत प्रेरित होता हूं और जानता हूं कि किस कठिन घड़ी से वे निकल कर यहां आते हैं और जीती हुई धनराशि का सही उपयोग जीवन में करने के लिए लालायित रहते हैं.’’

किस बात ने आप की जिंदगी बदल दी? यह पूछे जाने पर वे बताते हैं, ‘‘सभी कहानियां प्रेरणादायक होती हैं. कोलकाता की एक महिला गरीबों को उठा कर उन्हें घर देती है, जबकि दिल्ली का एक व्यक्ति अनाथ बच्चों को उठा कर आश्रय देता है. बनारस की एक लड़की वेश्यालय से उठ कर आज आम लोगों के बीच में आ कर काम कर रही है. ये दर्दनाक कहानियां हमारे समाज का आईना हैं. ये हमारे समाज और परिवार को मोटिवेट करती हैं. इन्हें मैं पूरे देश में पहुंचाना चाहता हूं.

ये भी पढ़ें- ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’: गायू क्यों नहीं चाहती कि कार्तिक को मिले कायरव की कस्टडी ?

‘‘कुछ लोग इतने भावुक हो जाते हैं कि वे मेरे सामने रोने लगते हैं. इतना ही नहीं, एक एसिड अटैक महिला जब मुझ तक पहुंची तो मुझे बहुत खुशी हुई. किसी ने सोचा नहीं था कि वह यहां तक पहुंच सकती है. ऐसे प्रोग्राम को करने के बाद रात को मैं इसी के बारे में सोचता हूं, लिखता हूं और अपनी जिंदगी को धन्यवाद देता हूं क्योंकि ये सब अनुभव मुझे इस शो से मिले हैं.’’

रिश्ते जीवन में कितना महत्त्व रखते हैं और रिश्तों को बनाए रखना कितना जरूरी है? इस पर सदी के महानायक अमिताभ बच्चन यों विचार प्रकट करते हैं, ‘‘रिश्ते बहुत जरूरी हैं. बहुत बार जो कर्मवीर होते हैं उन के साथ रिश्तों को ले कर ही बात होती है, क्योंकि उन का संबंध रिश्तों से ही होता है.

‘‘गरीब के साथ काम करना हो या किसी ऐसे व्यक्ति के साथ रिश्ता बनाना जिस के साथ कोई रिश्ता बनाने की इच्छा न रखता हो, ये कर्मवीर सब को अपना लेते हैं और परिवार का सदस्य समझते हैं. कोलकाता की एक महिला, जो मानसिक रूप से पीडि़त व्यक्तियों को सहारा देती है, ने एक ऐसी ही मानसिक हालत में परेशान व्यक्ति को सहारा दिया था. उस व्यक्ति को सिर्फ एक चाय के अलावा कुछ याद नहीं रहता था.

‘‘एक मुसलिम चाय वाले ने उस से उस का नाम पूछा तो वह बता नहीं पाया. सो, उस चाय वाले ने उस का नाम मोहम्मद रख दिया था. लेकिन बाद में कर्मवीर महिला को पता चला कि उस का असली नाम संतोष है.

‘‘मैं ने औडियंस में बैठे उस संतोष से जब मिलना चाहा, तो उस ने अपना नाम मोहम्मद ही बताया, क्योंकि मोहम्मद नाम के साथ उस की देखभाल हुई है. आज के युवा अपने मातापिता को घर से निकाल देते हैं, ऐसे में ये कर्मवीर लोग उन्हें सहारा और सम्मान देते हैं, उन्हें ये परिवार का सदस्य ही समझते हैं. रिश्ते ही हैं जो व्यक्ति को खुशी देते हैं, उन्हें एकदूसरे के साथ जोड़ कर रखते हैं.’’

आप अपनेआप को इतना फिट कैसे रखते हैं? इस बारे में वे बताते हैं, ‘‘यह मेरा काम है और मुझे यह करने में खुशी होती है. फिटनैस को मैं बना कर रखता हूं और इस तरह के शो को करने से एनर्जी बढ़ती है, क्योंकि इस में हमारे आसपास के लोगों की समस्या को जानने व समझने का मौका मिलता है.’’

आप के इस शो को आप का परिवार कितना पसंद करता है? इस सवाल पर वे कहते हैं, ‘‘यह शो जया और परिवार के दूसरे सभी लोग देखते हैं. वे चर्चा भी करते हैं. आराध्या भी मुझे टीवी पर देख कर खुश होती है. उसे मुझे बड़बड़े पोस्टरों पर देखना पसंद है.’’

ये भी पढ़ें- मीरा नायर की ‘ए सूटेबल ब्वाय’ सीरीज से जुड़ा इन एक्टर्स का नाम

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’: गायू क्यों नहीं चाहती कि कार्तिक को मिले कायरव की कस्टडी ?

टीवी का मशहूर शो ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में आए दिन आपको लगातार महाट्विस्ट देखने को मिल रहे है. लगातार इस सीरियल की कहानी एक नया मोड़ ले रही है. अभी इस शो में कार्तिक और नायरा के बीच लड़ाई चल रही है. दोनो लगातार आपस में अपने बेटे यानी कायरव के लिए लड़ाई कर रहे है.

कार्तिक, नायरा से कहता है वो कोर्ट के जरिए ही उससे लड़ेगा और कायरव भले नायरा के साथ रहे लेकिन सारा हक मुझ पे होगा. वो नायरा से कहता है कि  वो अब सिर्फ कोर्ट में ही उससे मिलेगा. तो उधर वेदिका भी इस बात से परेशान है कि कहीं नायरा ने कार्तिक को बता ना दिया हो कि वो उसकी वजह से तलाक ले रही है.

तो दूसरी और वहीं गायू ये सोचती है कि अगर कार्तिक को कायरव की कस्टडी मिल गई तो वंश की परिवार में जो जगह है वो भी नहीं मिल पाएगी. कार्तिक के जाने के बाद नायरा के सभी घरवाले परेशान होते हैं, उधर कार्तिक भी अकेले में रो रहा होता है.

ये भी पढ़ें- ‘विडो आफ साइलेंस’: बेल्जियम के सिनेमाघरों में प्रदर्शित होने वाली पहली भारतीय फिल्म

लेकिन कार्तिक के पापा उससे बोलते हैं कि परेशान मत हो मैं रास्ता निकाल लूंगा. उधर नायरा के भाई नक्ष भी उसे समझाते हैं कि तुम्हारी कोई गलती नहीं है.

नायरा ये भी कहती है कि वेदिका बेचारी की क्या गलती है, कार्तिक और वेदिका की शादी तब तक सेटल नहीं हो पाएगा जब तक वो यहां से नहीं जाएगी. कार्तिक और नायरा दोनों अपने घरवालों से अच्छे वकील हायर करने को कहते हैं. तो उधर कायरव अपने पापा को कौल करता है और कहता है कि वो जल्दी से उसे लेने आए.

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि कार्तिक, नायरा को फोन पर कहता है कि 11 बजे फैमिली कोर्ट में कस्टडी केस के लिए मिले.

ये भी पढ़ें- फिल्म समीक्षाः ‘सैरा नरसिम्हा रेड्डी’

‘विडो आफ साइलेंस’: बेल्जियम के सिनेमाघरों में प्रदर्शित होने वाली पहली भारतीय फिल्म

बौलीवुड ने काफी तरक्की कर ली है. बौलीवुड की कमर्शियल फिल्में भारत के अलावा पाकिस्तान, दुबई, सउदी अरब सहित कुछ देशों के सिनेमाघरों में प्रदर्शित होने लगी है. मगर अब तक का इतिहास गवाह है कि बेल्जियम के सिनेमाघरो में आज तक एक भी भारतीय फिल्म प्रदर्शित नहीं हो पायी. मगर अब इस रिकार्ड को तोड़ने जा रही है गत वर्ष तीन राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल करने वाले फिल्मकार प्रवीण मोरछले की नई फिल्म ‘‘विडो आफ साइलेंस’’.

मजेदार बात यह है कि अपनी पिछली फिल्म ‘‘वौकिंग विथ द विंड’’ के लिए 2018 में तीन राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुके फिल्मकार प्रवीण मोरछले अपनी कश्मीर की ‘‘हाफ विडो’’ पर बनी नई विचारोत्तेजक फिल्म ‘‘विडो आफ साइलेंस’’ को भारत के सिनेमाघरो में अब तक प्रदर्शित नही कर पाए हैं. वह खुद नहीं जानते कि उनकी यह फिल्म भारतीय सिनेमा घरों में पहुंच पाएगी या नही.  फिल्म ‘‘विडो आफ साइलेंस’’ ने छह माह के अंदर पांच इंटरनेशनल अवार्ड जीते हैं. जबकि 11 इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में इंटरनेशनल कंपटीशन का हिस्सा रही. इजराइल,कोरिया, औस्ट्रेलिया, अमरीका,साउथ अमेरिका, राटरडैम, बुसान, सिएटल, कोलकाता, केरल,लंदन, बेल्जियम, फ्रांस, ईरान, जर्मनी यूरोप के हर इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में धूम मचा चुकी है. और अब यह फिल्म बेल्जियम के सिनेमाघरों में प्रदर्शित होने जा रही है.

ये भी पढ़ें- फिल्म समीक्षाः ‘सैरा नरसिम्हा रेड्डी’

हाल ही में फिल्म विडो आफ साइलेंस’’ के लेखक, निर्माता व निर्देशक से जब हमने पूछा कि क्या उनकी फिल्म से पहले भी बेल्जियम में भारतीय फिल्मे रिलीज होती रही हैं? तो इस पर प्रवीण मोरछले ने कहा- ‘‘मुझे तो नहीं मालूम. पर मेरी फिल्म ‘विडो आफ सायलेंस’ बेल्जियम के दो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में विजेता थी, इसे दो अवार्ड मिले थे. इसलिए वह हमारी फिल्म को लक्जमबर्ग,बेल्जियम और हालैंड इन 3 देशों के सिनेमाघरो में रिलीज कर रहे हैं. इसकी मुझे बहुत खुशी है. एक बहुत ही छोटी फिल्म बजट के हिसाब से बहुत ही सेंसिटिव सब्जेक्ट पर बहुत ही मानवीय फिल्म है. सच कहूं तो मुझे नहीं लगता कि मैं अपनी इस फिल्म को हिंदुस्तान में कभी सिनेमाघरो में प्रदर्शित कर पाऊंगा. कम से कम यूरोप में रिलीज हो रही है. यूरोप में कमर्शियल सिनेमा हौल में रिलीज होगी. यह अपने आप में मेरे लिए बहुत खुशी की बात है.

फिल्म ‘‘विडो आफ साइलेंस’’ की कहानी के केंद्र में कश्मीर की एक मुस्लिम हाफ विधवा आसिया (शिल्पी मारवाह) है, जिसका पति गायब हो गया है, खुद को, अपनी 11 वर्षीय बेटी और बीमार सास को संकट में पाती है, जब वह सरकार से अपने लापता पति का मृत्यु प्रमाण पत्र प्राप्त करने का प्रयास करती है. अब उसे एक अस्थिर और बेतुकी स्थिति से बाहर आने की ताकत तलाशनी होगी. इससे परिवार का जीवन एक विशाल उथल-पुथल में बदल जाता है.

ये भी पढ़ें- मीरा नायर की ‘ए सूटेबल ब्वाय’ सीरीज से जुड़ा इन एक्टर्स का नाम

यह फिल्म एक ‘आधी-विधवा‘ के भविष्य की पड़ताल करती है. क्योंकि वह नौकरशाही के साथ अपने पति की अनुपस्थिति में तय की गई जिंदगी को सामान्य स्थिति लाने के लिए प्रेरित करती है.

आज का युवा ‘नकली नोट’ बनाता है !

छत्तीसगढ़ में इन दिनों युवाओं में नकली नोट बनाकर, रुपए कमाने की चाहत कुछ ज्यादा दिखाई दे रही है. पुलिस ने हाल ही में अनेक  घटनाक्रम बलोदा बाजार, जिला कवर्धा, जिला मुंगेली  के सामने आने  के पश्चात युवाओं को दबोचा है. दरअसल, यह फितरत बहुत कम मेहनत करके ढेर सारे रुपए कमाने की है, जो आज के युवाओं में ज्यादा देखी जा रही है. इसका परिणाम यह हो रहा है कि आज का युवा शिक्षित होकर ऊंचाई छूने की अपेक्षा अशिक्षा एवं अपराध के भंवर में फंसकर अपना जीवन बर्बाद कर रहा है.

इस संबंध में  आईएएस सेवा से निवृत्त छत्तीसगढ़ के कई जिलों में कलेक्टर रहे राजपाल सिंह त्यागी का संदेश महत्वपूर्ण है कि युवाओं के नकली नोट के अपराध में फंसने का सीधा सीधा मनोविज्ञान आज की युवा पीढ़ी को समझना होगा, यह एक ऐसा दलदल है जो इस काम में लगे युवा को सिर्फ बर्बादी देता है. क्योंकि सबसे बड़ा सच तो यह है कि कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं और आज नहीं तो कल कानून के साथ खिलवाड़ करने वाले पुलिस गिरफ्त में होते हैं और अपने जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा जेल में काटने विवश हो जाते हैं यही  नहीं  आगे का जीवन भी अंधकार मय हो जाता है. ऐसे में ठहरकर, ठंडे दिमाग से सोचने की आवश्यकता होती है.

ये भी पढ़ें- जल्द ही निपटा लें जरूरी काम, 11 दिन बंद रहेंगे बैंक

महिलाओं को थमाते थे नकली नोट

नकली नोट बनाने वाले युवा  नकली नोट बनाकर छोटे दुकानदारों और खासकर महिलाओं को नोट खपाने का काम करता था. नकली नोटों को बाजार में खपाने वाले रूपेन्द्र साहू, राजू,रमेश  को पकड़ने के लिए पुलिस ने एक टीम का गठन किया था. जिसके तहत छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार जिला की गिधौरी थानान्तर्गत ग्राम नरधा से 100 रुपए के 61 नकली नोट सहित एप्शन प्रिंटर को पुलिस ने बरामद किया है. पुलिस ने इस संवाददाता को जानकारी देते हुए बताया कि ये आरोपी पहले भी महासमुंद जिले के पिथौरा एवं ओडिशा के बाजारों मे नकली नोट खपा चुका है. लंबे समय से नकली नोटों को खपाने का काम करता आ रहा है.आरोपी रूपेन्द्र साहू ने  बताया  टीवी न्यूज और यूटुब पर वीडियो देखकर नकली नोट बनाने की तरकीब सीखी थी. वह  शहर से दूर गांवों में नकली नोट खपाता था. ताकि गांव के लोग असली नकली नोटों का फर्क न कर सकें. आरोपी युवक को पुलिस ने हिरासत मे ले लिया है. गिधौरी थाना पुलिस राम अवतार धुव ने यह कार्यवाही की है. गिधौरी थाना क्षेत्र के ग्राम नरधा से  नकली नोटों के मामले में पुलिस ने एक युवक  को गिरफ्तार किया है. नकली नोट खपाने वाले आरोपी का नाम रूपेन्द्र साहू है. जिसका खुलासा प्रभारी पुलिस अधीक्षक जेआर ठाकुर ने  किया

आरोपी से पुलिस पुछताछ कर रही है. आरोपी पर धारा 489A, 489B, 489C,489D, भादवि के तहत कार्यवाही की गई है.

न्यूज चैनल यूट्यूब से सीखा नोट बनाना

जहां एक तरफ नकली नोट बना करके युवा वर्ग रातों-रात अपनी आर्थिक समस्याएं दूर करने की कोशिश में है, वहीं यह भी समझने की बात है जो तथ्य सामने आए हैं वह बहुत ही चौकानेवाले है क्योंकि युवा वर्ग नकली नोट बनाने का तरीका यूट्यूब एवं न्यूज चैनल में समाचार देखकर सीख रहा है. पुलिस के जिम्मेवार अधिकारियों ने यह सनसनीखेज जानकारी शेयर करते हुए जानकारी दी कि नकली नोट बनाने के पीछे प्रेरणा स्रोत न्यूज़ चैनल में रिपोर्टिंग का प्रसारण बना वही यूट्यूब में भी नकली नोट बनाने की तरकीब युवा सीख रहे हैं जो सीधे-सीधे युवाओं के जीवन को बर्बाद कर रहा है वहीं पुलिस प्रशासन पर भी इस तरह के अपराधों पर अंकुश लगाने का दबाव बढ़ गया है.

सबसे महत्वपूर्ण वस्तु यही है कि यूट्यूब और न्यूज़ चैनल लोगों को शिक्षित करने का माध्यम होना चाहिए ना की उन्हें अपराधी बनाने का माध्यम बन जाएं. इसके लिए आवश्यकता है जागरण  और विवेक की. आज का युवा अपराध की ओर बढ़ता है ऐसे में ठहर कर तनिक भी   चिंतन करता है अथवा परिजनों से परामर्श करता है  तो निश्चित रूप से उसे सही मार्गदर्शन मिल सकता है. और वे अपना बेशकीमती जीवन,  बर्बाद करने से बच सकते हैं.

ये भी पढ़ें- बच्चा चोरी की अफवाह

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें