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दीवाली 2019: ऐसे बनाएं बनाना कचौड़ी

जाहिर सी बात है, आप दीवाली पर कुछ स्पेशल बनाना चाहती हैं. इसके लिए आप बनाना कचौड़ी जरूर ट्राई करें. जो खाने में काफी टेस्टी और बनाने में बेहद आसान है. तो आइए जानते है, बनाना कचौड़ी बनाने की रेसिपी.

सामग्री

– 1 कप मैदा

– 1 बड़ा चम्मच मक्खन

– 1 कच्चा केला

– 1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

– 1/2 छोटा चम्मच धनिया पाउडर

– 1/4 छोटा चम्मच गरममसाला

– 1/4 छोटा चम्मच आमचूर

– 1/2 बड़ा चम्मच घी

– तलने के लिए तेल

– नमक स्वादानुसार.

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बनाने की विधि

कच्चे केले को उबाल लें.

फिर छील कर मैश करें.

मैदा में मक्खन व थोड़ा सा नमक डाल कर गूंध लें.

कड़ाही गरम कर उस में थोड़ा घी गरम करें और सभी मसाले व केला भूनें.

गुंधे आटे के पेड़े बना हलका बेल कर कच्चे केले का मसाला भर बंद करें व हलका बेल कर गरम तेल में सेंक लें.

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दीवाली स्पेशल: फैस्टिवल में दीजिए और्गेनिक गिफ्ट्स

त्योहार के इस सीजन में सब से बड़ा बदलाव पैकेजिंग को ले कर हो रहा है. सरकार ने प्लास्टिक को प्रतिबंधित कर दिया है. इस वजह से पैकेजिंग में अब प्लास्टिक का प्रयोग पूरी तरह से बंद हो गया है.

अब लोग और्गेनिक गिफ्ट्स देना चाहते हैं. और्गेनिक गिफ्ट्स की सब से अधिक मांग है. और्गेनिक ग्रींस ऐंड बोटेनिकल नैचुरोपैथी की डायरैक्टर तेजस्विनी सिंह कहती हैं, ‘‘हमारे यहां फेस और हैल्थ के तमाम और्गेनिक प्रोडक्ट्स हैं जिन को लोग गिफ्ट्स में अपने दोस्त व रिश्तेदारों को देना पसंद करते हैं. ये प्रोडक्ट्स ऐसे होते हैं जिन का प्रयोग सुरक्षित होने के साथ ही साथ हमेशा किया जा सकता है.’’

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तेजस्विनी सिंह कहती हैं, ‘‘खाने में मिठाई, मेवे और नमकीन को उपहार में दिए जाने का पारंपरिक रिवाज है. गिफ्ट्स देते समय लोग कुछ अलग हट कर देना चाहते हैं जिस से लोग याद रखें और गिफ्ट्स उन के उपयोग का भी हो. और्गेनिक चाय काफी तादाद में लोग उपहार में देते हैं. यह अलगअलग फ्लेवर में आती है. इस की पैकिंग बेहद आकर्षक होती है. यह लकड़ी के बौक्स में पैक कर के दी जाती है. इस के साथ ही साथ और्गेनिक ब्यूटी सोप और क्रीम भी लोग उपहार में देते हैं. इस को लकड़ी के बौक्स के साथ जूट बैग में

भी पैक कर के दिया जाता है जो पर्यावरण के अनुकूल होता है. फैस्टिवल सीजन में पटाखों से होने वाले प्रदूषण से दीवाली का मजा किरकिरा न हो, इस वजह से और्गेनिक चीजों का अब ज्यादा प्रयोग किया जा रहा है.’’

खुशबू का और्गेनिक खजाना

फैस्टिवल में खुशबू और रोशनी का भी खूब प्रयोग किया जाता है. ऐसे में गिफ्ट्स के लिए सब से ज्यादा पसंद किए जाने वाले आइटम्स में खुशबूदार चीजों का प्रयोग काफी होने लगा है. इस को पसंद किए जाने की दूसरी सब से बड़ी वजह यह है कि इत्र और सुगंध जैसी चीजें बहुत ही सुंदर पैकिंग में होती हैं. पैकिंग में कांच के अलावा लकड़ी का प्रयोग होने से उपहार देखने में अच्छे लगते हैं. लोग ऐसे उपहारों को संभाल कर रखते हैं. ये लंबे समय तक खराब भी नहीं होते. ये महिला और पुरुष दोनों के उपयोग में आते हैं. उपहार देते समय पसंदनापसंद का बहुत खयाल नहीं रखना पड़ता. ये सभी को ही पसंद आ जाते हैं.

और्गेनिक खुशबू वाले गिफ्ट आइटम्स में नैचुरल इत्र और खुशबूदार रोशनी देने वाली कैंडिल को लोग खूब पसंद करते हैं. जिस तरह से गुलाल होली के त्योहार की पसंद होता है उसी तरह से दीवाली का उपहार तब तक पूरा नहीं होता जब तक कैंडिल उपहार में न दी जाएं. खुशबूदार रोशनी देने वाली कैंडिल और्गेनिक वैक्स वाली आने लगी हैं. अब ये भी प्लास्टिक की पैकिंग में नहीं आतीं. इन को भी जूट या पेपर पैकिंग में दिया जाता है.

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और्गेनिक खुशबूदार गिफ्ट आइटम्स में मसाज औयल का भी बड़ा नाम है. यह स्किनकेयर और हेयरकेयर वाले होते हैं. इस के साथ ही साथ छोटे बच्चों के उपहार के लायक बेबी केयर के औयल भी बहुत ही आकर्षक पैकिंग में होते हैं. द सौफी टौक की डायरैक्टर रिधिमा सिंह कहती हैं, ‘‘बच्चों के प्रयोग के औयल और सौप्स और्गेनिक बनने लगे हैं. इन को इस तरह से पैक किया जाता है कि लोगों को देखने में बहुत अच्छे लगें. सब से अच्छी बात यह होती है कि ये बहुत महंगे नहीं होते. ऐसे में ये हर बजट में फिट हो जाते हैं.’’

और्गेनिक हनी बड़े काम का

त्योहार में मिठाई का प्रयोग खूब ही होता है. मिठाई से डायबिटीज का खतरा अधिक होता है. ऐेसे में शुगर यानी चीनी का प्रयोग अब कम किया जाता है. मिठास के लिए नैचुरल शुगर में हनी सब से भरोसेमंद होता है. हनी यानी शहद को बनाने में भी कैमिकल चीनी का प्रयोग किया जाने लगा है जो सेहत के लिए नुकसानदेह है. ऐसे में लोगों को अब और्गेनिक हनी की तलाश होती है.

दीवाली के उपहार में और्गेनिक हनी का उपयोग किया जाने लगा है. यह उपहार भी लोगों को पसंद आता है. इस के जल्दी खराब होने का खतरा नहीं रहता. ऐसे में हनी को चाय के साथ प्रयोग कर सकते हैं. फैस्टिवल में बनने वाली मिठाइयों और खीर तक में हनी का प्रयोग होने लगा है.

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और्गेनिक ब्यूटी प्रोडक्ट्स

और्गेनिक गिफ्ट्स में सब से अधिक आइटम महिलाओं के प्रयोग वाले होते हैं. इन में क्रीम, स्किनकेयर और औयल होते हैं.

दीवाली गिफ्ट आइटम्स की पैकिंग करने वाली शालिनी श्रीवास्तव कहती हैं, ‘‘फैस्टिवल में महिलाओं को दिए जाने वाले आइटम्स सब से अधिक बिकते हैं. आज के दौर में कई तरह के कपड़े भी और्गेनिक कौटन से बनने लगे हैं. ये स्किन के लिए अधिक उपयोगी होते हैं. कई कंपनियां अब और्गेनिक कौटन के कपड़े भी बनाने लगी हैं. इस के अलावा दीवाली में रंगोली बनाने का खूब चलन है. रंगोली को बनाने में अब नैचुरल कलर का प्रयोग किया जाने लगा है. रंगोली बनाने के लिए बनेबनाए पैकिंग में सामग्री आती है.’’

लहसुन की खेती

लहसुन कंद वाली मसाला फसल है. इस में एलसिन नामक तत्त्व पाया जाता है, जिस के कारण इस में एक खास गंध व तीखा स्वाद होता है. इस का इस्तेमाल गले और पेट संबंधी बीमारियों के अलावा हाई ब्लड प्रेशर, पेटदर्द, फेफड़े के रोगों, कैंसर, गठिया, नपुंसकता और खून की बीमारी दूर करने के लिए किया जाता है.

लहसुन नकदी फसल है. मध्य प्रदेश में लहसुन का रकबा 60,000 हेक्टेयर है और उत्पादन 270 हजार टन है. लहसुन की खेती मंदसौर, नीमच, रतलाम, धार व उज्जैन के साथसाथ प्रदेश के सभी जिलों में की जा सकती है.

आजकल लहसुन का प्रसंस्करण यानी प्रोसैस कर के पाउडर, पेस्ट व चिप्स तैयार करने की तमाम इकाइयां मध्य प्रदेश में काम कर रही हैं, जो प्रसंस्करण किए गए उत्पादों को दूसरे देशों में बेच कर अच्छा मुनाफा कमा रही हैं.

जलवायु : लहसुन को ठंडी जलवायु की जरूरत होती है. वैसे तो लहसुन के लिए गरमी और सर्दी दोनों ही मौसम मुनासिब होते हैं, लेकिन ज्यादा गरम और लंबे दिन इस के कंद बनने के लिए सही नहीं रहते हैं. छोटे दिन इस के कंद बनने के लिए अच्छे माने जाते हैं. इस की सफल खेती के लिए 29 से 35 डिगरी सेल्सियस तापमान मुनासिब होता है.

खेत की तैयारी : इस के लिए जल निकास वाली दोमट मिट्टी बढि़या रहती है. भारी मिट्टी में इस के कंदों की सही बढ़ोतरी नहीं हो पाती है. मिट्टी का पीएच मान 6.5 से 7.5 ठीक रहता है. 2-3 बार जुताई कर के खेत को अच्छी तरह एकसार कर के क्यारियां व सिंचाई की नालियां बना लेनी चाहिए.

अन्य किस्में: नासिक लहसुन, अगेती कुआरी, हिसार स्थानीय, जामनगर लहसुन, पूना लहसुन, मदुरई पर्वतीय व मैदानी लहसुन, वीएलजी 7 आदि स्थानीय किस्में हैं.

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बोआई का समय : लहसुन की बोआई का सही समय अक्तूबर से नवंबर माह के बीच होता है.

बीज व बोआई : लहसुन की बोआई के लिए 5 से 6 क्विंटल कलियां बीजों की प्रति हेक्टेयर जरूरत होती है. बोआई से पहले कलियों को मैंकोजेब और कार्बंडाजिम दवा के घोल से उपचारित करना चाहिए.

लहसुन की बोआई कूंड़ों में बिखेर कर या डिबलिंग तरीके से की जाती है. कलियों को 5 से 7 सैंटीमीटर की गहराई में गाड़ कर ऊपर से हलकी मिट्टी से ढक देना चाहिए. बोते समय कलियों के पतले हिस्से को ऊपर ही रखते हैं. बीज से बीज की दूरी 8 सैंटीमीटर व कतार से कतार की दूरी 15 सैंटीमीटर रखना ठीक होता है. बड़े क्षेत्र में फसल बोने के लिए गार्लिक प्लांटर का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.

खाद व उर्वरक?: सामान्य तौर पर प्रति हेक्टेयर 20 से 25 टन सड़ी गोबर की खाद या कंपोस्ट या 5 से 8 टन वर्मी कंपोस्ट, 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस व 50 किलोग्राम पोटाश की जरूरत होती है. इस के अलावा 175 किलोग्राम यूरिया, 109 किलोग्राम डाई अमोनियम फास्फेट व 83 किलोग्राम म्यूरेट औफ पोटाश की जरूरत होती है. गोबर की खाद, डीएपी व पोटाश की पूरी मात्रा और यूरिया की आधी मात्रा खेत

की आखिरी तैयारी के समय मिला देनी चाहिए. बाकी बची यूरिया की मात्रा  खड़ी फसल में 30 से 40 दिनों बाद छिड़काव के साथ देनी चाहिए.

सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की मात्रा का इस्तेमाल करने से उपज में बढ़ोतरी होती?है. 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर 3 साल में 1 बार इस्तेमाल करना चाहिए.

सिंचाई व जल निकास: बोआई के तुरंत बाद हलकी सिंचाई कर देनी चाहिए. वानस्पतिक बढ़ोतरी के समय 7 से 8 दिनों के अंतर पर और फसल पकने के समय 10 से 15 दिनों के अंतर पर सिंचाई करते रहना चाहिए, पर खेत में पानी नहीं भरने देना चाहिए.

निराईगुड़ाई व खरपतवार नियंत्रण : जड़ों में हवा की सही मात्रा के लिए खुरपी या कुदाली द्वारा बोने के 25 से 30 दिनों बाद पहली निराईगुड़ाई व 45 से 50 दिनों बाद दूसरी निराईगुड़ाई करनी चाहिए.

खुदाई व लहसुन का सुखाना : जिस समय पौधों की पत्तियां पीली पड़ जाएं और पौधा सूखने लग जाए तो सिंचाई बंद कर के खुदाई करनी चाहिए. इस के बाद गांठों को 3 से 4 दिनों तक छाया में सुखा लेते हैं. फिर 2 सैंटीमीटर छोड़ कर पत्तियों को कंदों से अलग कर लेते हैं. कंदों को भंडारण में पतली तह में रखते हैं. ध्यान रखें कि फर्श पर नमी न हो.

बढ़ोतरी नियामक का प्रयोग : लहसुन की उपज ज्यादा हो, इसलिए 0.05 मिलीलिटर प्लैनोफिक्स या 500 मिग्रा साइकोसिल या 0.05 मिलीलिटर इथेफान प्रति लिटर पानी में घोल बना कर बोआई के 60 से 90 दिनों बाद छिड़काव करना सही रहता है.

कंद की खुदाई से 2 हफ्ते पहले 3 ग्राम मैलिक हाइड्रोजाइड प्रति लिटर पानी का छिड़काव करने से भंडारण के समय अंकुरण नहीं होता है व कंद 10 महीने तक बिना नुकसान के रखे जा सकते हैं.

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भंडारण : अच्छी तरह से सुखाए गए लहसुन को उन की छंटाई कर के हवादार घरों में रख सकते हैं. 5 से 6 महीने भंडारण से 15 से 20 फीसदी तक का नुकसान मुख्य रूप से सूखने से होता है. पत्तियां सहित बंडल बना कर रखने से कम नुकसान होता है.

औषधीय गुण : भोजन को पचाने व सोखने में लहसुन काफी फायदेमंद है. यह खून में कोलेस्ट्राल के गाढ़ेपन को कम करता है. इस का इस्तेमाल करने से कई बीमारियों जैसे गठिया, तपेदिक यानी टीबी, कमजोरी, कफ व लाल आंखें हो जाना वगैरह से छुटकारा दिलाने में मददगार है.

कीटनाशी प्रभाव : लहसुन के रस में कीटनाशी गुण के कारण 10 मिलीलिटर अर्क प्रति लिटर पानी में घोल कर इस्तेमाल करने से मच्छर व घरेलू मक्खी की रोकथाम की जा सकती है.

जीवाणुनाशी प्रभाव : लहसुन के इस्तेमाल से स्टेफाइलोकोकस आरियस नामक जीवाणु की रोकथाम की जा सकती?है. खाद्य पदार्थों में 2 फीसदी से ज्यादा लहसुन की मात्रा जहर पैदा करने वाले जीवाणु क्लोस्ट्रीडियम परिफ्रंजेंस से रक्षा करती है. इस के अलावा इस में अन्य कई प्रकार के हानिकारक जीवाणुओं से बचाने की कूवत होती है.

खास कीट

माहू : इस के निम्फ और वयस्क दोनों ही पौधों से रस चूसते?हैं, जिस से पत्तियां किनारों से मुड़ जाती हैं. कीट की पंख वाली जाति लहसुन में वाइरसजनित रोग भी फैलाती है. ये चिपचिपा मधुरस पदार्थ अपने शरीर के बाहर निकालते हैं, जिस से पत्तियों के ऊपर काली फफूंद पनपती देखी जा सकती है, जिस से पौधों के भोजन बनाने की क्रिया पर असर पड़ता?है.

रोकथाम : माहू का प्रकोप होने पर पीले चिपचिपे ट्रैप का इस्तेमाल करें, जिस से माहू ट्रैप पर चिपक कर मर जाएं. परभक्षी कौक्सीनेलिड्स या सिरफिड या क्राइसोपरला कार्निया को एकत्र कर 50,000-1,00,000 अंडे या सूंड़ी प्रति हेक्टेयर की दर से छोडे़ं. जरूरतानुसार डाईमिथोएट 30 ईसी या मैटासिस्टौक्स 25 ईसी 1.25-2.0 मिलीलिटर प्रति लिटर की दर से छिड़काव करना चाहिए.

लहसुन का मैगट : मैगट पौधे के तने व शल्क कंद में घुस कर नुकसान पहुंचाते हैं. बड़े शल्क कंदों में 8 से 10 मैगट एकसाथ घुस कर उसे खोखला बना देते हैं.

रोकथाम: शुरुआत में रोगी खेत पर काटाप हाइड्रोक्लोराइड 4जी की 10 किलोग्राम मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में बिखेर कर सिंचाई कर दें. बढ़ते हुए पौधों पर मिथोमिल 40 एसपी की 1.0 किलोग्राम या?ट्राईजोफास 40 ईसी की 750 मिलीलिटर मात्रा को 500-600 लिटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने पर नए निकले हुए मैगट मर जाते हैं.

थ्रिप्स : इस कीट का हमला तापमान के बढ़ने के साथसाथ होता?है व  मार्च महीने में इस का हमला ज्यादा दिखाई देता है. यह कीट

पत्तियों से रस चूसता है, जिस से पत्तियां कमजोर हो जाती हैं और रोगी जगह पर सफेद चकत्ते पड़ जाते हैं, जिस के कारण पत्तियां मुड़ जाती हैं.

रोकथाम : लहसुन की कीट रोधी प्रजातियां उगानी चाहिए. कीट के ज्यादा प्रकोप की दशा में 150 मिलीलिटर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल को 500-600 लिटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

माइट्स?: इस कीट के प्रकोप से पत्ती का असर वाला भाग पीला हो जाता है और पत्तियां मुड़ी हुई निकलती हैं. वयस्क और शिशु कीट दोनों ही नई पत्तियों का रस चूस कर फसल को नुकसान पहुंचाते हैं.

रोग के शुरू में सब से पहले पौधों की निचली पत्तियां तैलीय हो जाती?हैं और बाद में पूरा पौधा तैलीय हो जाता है. रोगी पत्तियां छोटी हो जाती हैं और चमड़े की तरह दिखाई देती हैं. पत्तियां निचली तरफ से तांबे जैसी रंगत की दिखाई देती हैं. माइट का ज्यादा हमला होने से रोगी पत्तियां सूख कर गिर जाती?हैं और पूरा पौधा मुरझा कर सूख जाता है.

रोकथाम : रोगी पौधों के कंद व जड़ सहित उखाड़ कर नष्ट कर दें. घुलनशील गंधक 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर या कैराथीन 500 मिलीलिटर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से इस्तेमाल करें. मैटासिस्टौक्स छिड़कने से भी फायदा होता है.

लहसुन के रोग

विगलन : इस रोग का असर कंदों पर खेतों में या भंडारगृह दोनों में हो सकताहै. खेत में रोगी पौधा पीला हो जाता है और जड़ें सड़ने लगती हैं.

कभीकभी रोग के लक्षण बाहर से नहीं दिखाई पड़ते हैं, लेकिन लहसुन की गर्दन के पास दबाने से कुछ शल्क मुलायम जान पड़ते हैं. बाद में ये शल्क भूरे रंग के हो जाते हैं. सूखे मौसम में शल्क धीरेधीरे सूख कर सिकुड़ जाते हैं, जिस की वजह से छिलका फट कर अलग हो जाता है.

रोकथाम : खेत को ट्राईकोडर्मा नामक जैव फफूंद की 2.5 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से उपचारित करना चाहिए. गरमी के महीनों में खेत की अच्छी तरह जुताई कर के खुला छोड़ दें, जिस से कि कवक व अन्य रोग जनकों की मौत हो जाए. कंदों को बोआई से पहले 2.0 ग्राम कार्बंडाजिम का प्रति लिटर पानी की दर से घोल बना कर उपचारित करें.

बैगनी धब्बा : इस रोग से लहसुन को काफी नुकसान होता है. इस रोग के लक्षण पत्तियों, कंदों पर उत्पन्न होते हैं, शुरू में छोटे धंसे हुए धब्बे बनते हैं, जो बाद में बड़े हो जाते?हैं. धब्बे के बीच का भाग बैगनी रंग का हो जाता है. यदि आप उसे हाथों से छुएं तो काले रंग का चूर्ण हाथ में चिपका हुआ दिखाई देता?है. रोगी पत्तियां झुलस कर गिर जाती हैं. रोगी पौधों से प्राप्त कंद सड़ने लगते हैं.

रोकथाम: 2-3 साल का सही फसल चक्र अपनाएं. रोग के लक्षण दिखाई देते ही मैंकोजेब की 2.0 ग्राम मात्रा प्रति लिटर पानी की दर से घोल बना कर 2 बार छिड़काव करें.

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सफेद सड़न: इस बीमारी से कलियां सड़ने लगती हैं.

रोकथाम: जमीन को ट्राईकोडर्मा नामक जैव फफूंद की 2.5 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से उपचारित करना चाहिए. गरमी के महीनों में खेत की अच्छी तरह जुताई कर के खुला छोड़ दें जिस से कि कवक व अन्य रोग जनकों की मौत हो जाए. कंदों को बोआई के पहले 2.0 ग्राम कार्बंडाजिम का प्रति लिटर पानी की दर से घोल बना कर उपचारित करें.

कंद सड़न : इस बीमारी का हमला भंडारण में होता है.

रोकथाम : इस की रोकथाम के लिए कंद को 2 फीसदी बोरिक अम्ल से उपचारित कर के भंडारण करना चाहिए. बीज के लिए यदि कंद को रखना हो तो 0.1 फीसदी मरक्यूरिक क्लोराइड से उपचारित कर के रखें. खड़ी फसल में मैंकोजेब की 2.0 ग्राम मात्रा का प्रति लिटर पानी की दर से छिड़काव करें.

फुटान : नाइट्रोजनयुक्त उर्वरकों के ज्यादा इस्तेमाल से यह बीमारी फैलती है. इस के अलावा ज्यादा पानी या ज्यादा दूरी पर रोपाई की वजह से फुटान ज्यादा होता है. इस बीमारी से लहसुन कच्ची दशा में कई छोटेछोटे फुटान देता है, जिस से कलियों का भोजन पदार्थ वानस्पतिक बढ़वार में इस्तेमाल होता है.

रोकथाम: लहसुन की रोपाई कम दूरी पर करें और नाइट्रोजन व सिंचाई का इस्तेमाल ज्यादा न करें. ऐसे रोगी पौधों को देखते

ही पौलीथिन की थैली से ढक कर सावधानीपूर्वक उखाड़ कर मिट्टी में दबा दें.

बीजों को बोने से पहले वीटावैक्स 2.5 ग्राम या टेबूकोनाजोल 1.0 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम की दर से उपारित करें.

पूसा लहसुन प्लांटर से करें बोआई

इस यंत्र को 35 हौर्सपावर के ट्रैक्टर के साथ जोड़ कर मैदानी इलाकों में लहसुन की अच्छी बोआई कर सकते हैं.

इस यंत्र के काम करने की कूवत 2 हेक्टेयर प्रति घंटा और यह 9 कतारों में लहसुन की बोआई करता है. लहसुन की बोआई करने के लिए इसे इस्तेमाल किया जाता है.

बड़े ही काम का है लहसुन हार्वेस्टर यंत्र

आमतौर पर लहसुन की खेती किसानों द्वारा मिट्टी को खोद कर या इस के तने को हाथों से खींच कर निकाला जाता है. इस काम में बहुत समय लगता है. इस के लिए प्रति हेक्टेयर तकरीबन 30 से 35 मजदूरों की जरूरत होती है. कुछ इलाकों में किसानों द्वारा बक्खर या कल्टीवेटर द्वारा खोद कर भी लहसुन को निकाला जाता है. इस से फसल को काफी नुकसान होता है और लहसुन को इकट्ठा करने में मजदूरी की लागत भी बढ़ जाती है.

ट्रैक्टर चालित लहसुन खोदने वाले यंत्र से यह काम बड़ी आसानी से किया जा सकता है. इस मशीन में डेढ़ मीटर चौड़ी ब्लेड लगी होती है, जो मिट्टी को खोदने का काम करती है. इस के बाद लहसुन को चैन टाइप की पृथक्रण जाली से गुजारा जाता है. इस जाली में लोहे की छड़ें समान दूरी पर लगी होती हैं.

मशीन के संचालन के दौरान पृथक्करण जाली से पौधों में लगी मिट्टी अलग हो जाती है. इस जाली के पिछले हिस्से से लहसुन गिर कर एक लाइन में जमा हो जाता है. इस के बाद लहसुन की गांठों को 3-4 दिनों तक खेत में सुखाया जाता है.

इस मशीन को ट्रैक्टर के पीटीओ द्वारा चलाया जाता है. मशीन की कार्यक्षमता 0.25 से 0.30 हेक्टेयर प्रति घंटा है. इस की परिचालन लागत 3,000-3,500 रुपए प्रति हेक्टेयर है. काली मिट्टी में यह मशीन चलाने के लिए थोड़ी नमी होना जरूरी है. लाल मिट्टी में इसे बड़ी आसानी से चलाया जा सकता है.

मैं आसान कहानी पर फिल्म नहीं बनाना चाहता था : तुषार हीरानंदानी

‘‘मस्ती’,‘प्यारे मोहन’,‘ग्रैंड मस्ती’, ‘डबल धमाल’,‘टोटल धमाल’,‘ग्रेट ग्रैंड मस्ती’’ जैसी बीस से अधिक वयस्क सेक्स हास्य फिल्मों के लेखक तुषार हीरानंदानी ने जब 16 साल बाद निर्देषन के क्षेत्र में कदम रखा,तो उन्होंने बागपत जिले की दो उम्र दराज शार्प शूटर/ निशानेबाज औरतों चंद्रो तोमर और प्रकाशी तोमर की सत्य कथा को चुनकर पूरे बौलीवुड को आश्चर्यचकित कर दिया. बहरहाल, अब उनकी यह फिल्म दिवाली के अवसर पर 25 अक्टूबर को रिलीज हो रही है…

प्रस्तुत है उनसे हुई एक्सक्लूसिव बातचीत के अंश..

आपने फिल्म लेखन से कैरियर की शुरुआत की थी. निर्देशक बनने में 16 साल का वक्त लग गया?

जी हां! जब लेखन की दुकान ठीक ठाक चल रही थी, तो उसे बदलना ठीक नही समझ रहा था. गाड़ी ठीक-ठाक चल रही है, तो बोनट खोल कर रखने की क्या जरूरत? जब तक गाड़ी चलती है, ठीक-ठाक तो चलने दो. खराब होती है, तभी बोनट खोलते हैं. इसी के चलते लेखन से निर्देशन की तरफ मुड़ने में काफी वक्त लग गया. बहरहाल, सच यह है कि मैं लगातार निर्देशक बनने का प्रयास कर रहा था, मैंने कुछ सब्जेक्ट पर काम भी किया था. कलाकारों के चयन पर भी काफी समय लगाया, पर अंततः मुझे ही मजा नही आया, तो आगे बात नहीं बढ़ी. कई बार ऐसा हुआ, जब मैं पीछे हट जाता था. पता नही क्यों लास्ट मूवमेंट में मुझे कहानी में रूचि ही खत्म हो जाती थी. सच कहूं तो मेरे अंदर पेशंस बहुत कम है. फिर भी इस फिल्म में मैंने कहानी  में अपना पेशंस खत्म कर दिया. जबकि मैं अपने आप को पीछे कर देता था और फिल्म छोड़ देता. निर्माता सोचते थे कि मैं पागल हूं. यह निर्देशक बनने से रहा, सिर्फ लेखक ही बनकर रहेगा.

शायद लेखक के तौर पर आप एक मोटी रकम कमा रहे थे, इसलिए निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखने की रिस्क लेने से बच रहे थे?

जी हां! ऐसे ही होता है. आप ऐसा ही समझ लीजिए. पर इसी के साथ मुझे ऐसी कहानी नही मिल रही थी, जिससे मैं खुद निर्देशक के तौर पर करियर शुरू करूं. जबकि मैं दूसरे निर्देशकों के लिए लगातार कहानी व पटकथा लिख रहा था. मैं आसान कहानी पर फिल्म नही बनाना चाहता था.मुझे ऐसी कहानी की तलाश थी जो कि मुझे इस कदर आकर्षित करे कि मेरा पेशंस भी हार जाए.

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पहली मुलाकात में दोनो दादीयों की किस बात ने आपको प्रभावित किया था?

सबसे पहले मैं और मेरी पत्नी उनसे मिलने गए थे. मैं तो उनकी बातें सुनकर सन्न रह गया था. मैं तो एकाग्र होकर उनके चेहरे को ही देख रहा था. मुझे लग रहा था, जैसे कि मुझे कोई बहुत बड़ा खजाना मिल गया है. जब मैं इनसे मिला, तो यह 82 और 85 वर्ष की थीं. जबकि मैं 40 साल का था. अच्छी खासी जिंदगी जी रहा था. अच्छा कमा रहा था. बहुत पैसे आ रहे थे. मैं अपनी पत्नी से कहा करता था कि पचास साल की उम्र के बाद सब कुछ छोड़कर मोहाली में जाकर रहेंगें. मैने मोहाली में एक ‘आउट हाउस’ भी खरीद रखा है. वैसे भी हम दो प्राणी है. हमारी अपनी कोई संतान नही है. हमारे पास सिर्फ दो कुत्ते हैं. मगर इन दादीयों से मिलकर मैं सोचने पर मजूबर हुआ. मेरे दिमाग में आया कि मैंने पचास साल की उम्र के बाद रिटायर होने की येाजना बनायी है. और इन औरतों ने तो 60 साल की उम्र में नए कैरियर की शुरुआत कर पूरे विश्व को हिलाकर रख दिया. इस बात ने मुझे बहुत एक्साइट किया. इन दादीयों की बातों मेरे दिल को छू लिया. मेरी आंखों से आंसू आ गए. मैं और मेरी पत्नी निधि परमार जब जोहरी गांव जाकर चंद्रो तोमर व प्रकाशी तोमर से मिला,तो उनकी कहानी सुनकर मेरी आंखों से आंसू निकल पड़े. तब मेरी पत्नी ने मेरे रोने की वजह पूछी, तो मैंने कहा-‘‘यह बहुत ही ग्रेट स्टोरी है. मैं इसे बनाना चाहूंगा.’ तो उसने भी कहा, ‘ठीक हैं, हम बनाते हैं.’ इस तरह यह फिल्म शुरू हुई.

इस कहानी में उम्र का जो पड़ाव है, उसने आपको निर्देशन में कदम रखने के लिए इंस्पायर किया?

जी हां!‘सत्यमेव जयते’ का एपीसोड तो इस उम्र में काम करने वालो पर ही था. इस एपीसोड ने लोगों को प्रेरित किया कि इस उम्र में भी लोगों ने वह काम किया है, जो कि हर किसी के लिए अविश्वसनीय है. सच यही है कि हम बहु जल्द हार मान बैठते हैं. आज कितने लोग ऐसे हैं, जो 50 साल की उम्र में गिव अप कर देते हैं. पर इन्होंने 60 साल की उम्र में काम शुरू किया था. मगर हमारी फिल्म की कहानी 16 साल कही उम्र से अब तक की है.

तो इसमें ओमन इंपावरमेंट भी है?

जी हां!सब कुछ है. इस फिल्म में नारी समानता और ओमन इंम्पावरमेंट का मुद्दा है, मगर उपदेशात्मक नही. हमने फिल्म में कहीं भी उपदेश नहीं झाड़ा. सब कुछ मनोरंजक तरीके से ही बयां किया है. यह पूरी तरह से कमर्शियल फिल्म है.

आपने फिल्म के साथ निर्माता के तौर पर अनुराग कश्यप और रिलायंस इंटरटेनेमंट को कैसे जोड़ा?

बहुत पापड़ बेले. पूरे पांच वर्ष की मेहनत है. जब मैं किसी को यह कहानी सुनाता, तो दो बुढ्ढी औरतों की कहानी की बात सुनकर लोगों की तरफ से अच्छा रिएक्शन नहीं मिलता था. क्योंकि मेरी ईमेज तो ‘मस्ती’ जैसी फिल्म के लेखक की है. पर अनुराग कश्यप ने मुझे प्रोत्साहित किया.मेरे मित्र संजय मासूम ने काफी मदद की. वह इस फिल्म में कहानी सलाहकार भी हैं. फिर मैं पटकथा लेखक बल्ली के साथ जौहरी गांव गया. उसके बाद संवाद लेखक के तौर पर जगदीप संधू को जोड़ा, जो कि कई पंजाबी फिल्मों का लेखन व निर्देशन कर चुके हैं.

 

ट्रेलर आने के बाद रंगोली चंदेल, नीना गुप्ता व सोनी राजदान के बयान..?

मैं इस बारे में कुछ भी नहीं बोलना चाहता. यह उनकी अपनी राय है. भारत में हर किसी के पास अपनी बात कहने की पूरी स्वतंत्रता है. मैं नकारात्मक बातों पर ध्यान नही देता. डेविड धवन, रोहित शेट्टी, इंद्र कुमार, अनिल कपूर सहित तमाम लोगों ने  तारीफ की है, तो मैं तारीफो पर ही ध्यान देना चाहूंगा.मेरा मानना है कि हमें सकारात्मक बातों पर ही ध्यान देना चाहिए.

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भूमि से पहले कई अभिनेत्रियों ने इस फिल्म को करने से मना क्यों किया था?

लोगों को बूढ़ी नही होना था. मेकअप नही करना था. भाषा नहीं सीखनी थी. इसकी ट्रनिंग के लिए वक्त नही देना था. मेरा वर्कशाप ही दो माह चला था. कोई समय नही देना चाहता. सब चाहते हैं कि एक डेढ़ माह में शूटिंग पूरी कर वह दूसरी फिल्म में बिजी हो जाएं.

आपने फिल्म में गाना भी रखा है. क्या चंद्रो या प्रकाशी दादी भी अपनी जिंदगी में कभी गाना गाती थीं?

वह तो बहुत मजेदार हैं. वह तो अभी भी गाने लगती हैं. यह दोनों बहुत बिंदास हैं. उन्हें गीत गाने में एक मिनट नही लगता. वह तो अंग्रेजी में भी बात करती हैं.

बचा ही लिए गए सुनहरे लंगूर

पूरी दुनिया में तमाम ऐसे जीव हैं जो या तो पूरी तरह से विलुप्त हो चुके हैं या लुप्त होने की कगार पर हैं. इन्हीं में से एक है सुनहरा लंगूर जिस की संख्या इतनी तेजी से गिरी है कि अब केवल 400 सुनहरे लंगूर रह गए हैं. बेहद छोटे और गिलहरी के आकार के इन लंगूरों को ब्राजील के वर्षावनों में देखा जा सकता है. इस सुनहरे लंगूर को टैमेरिन भी कहा जाता है.

यहां के सुरक्षित वनों और चिडि़याघरों में इस प्रजाति को फिर से बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है. मात्र 600 ग्राम वजन और 60 सेंटीमीटर लंबाई वाले इस जीव को कभी 1600 किलोमीटर तक फैले वर्षावनों में देखा जाता था, पर आबादी की वजह से तेजी से काटे जा रहे वर्षावनों से सुनहरे लंगूरों की आबादी पर विपरीत असर पड़ा है.

सब से पहले ब्राजील के जीवविज्ञानी अडेल्मार फारिया कोइंब्रा-फिल्हो का ध्यान जब इस लंगूर की ओर गया. काफी पहले उन्होंने अपने देश के लोगों से कहा था कि वे इस सुनहरे लंगूर को पालतू न बनाएं क्योंकि एक लंगूर पकड़ने के चक्कर में 10 नन्हें बच्चे मारे जाते हैं. कोइंब्रा के कारण ही इस लंगूर के निर्यात पर पूरी तरह रोक लगा दी गई.

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इस सफलता के बाद सरकार ने कोइंब्रा के कहने पर ही 3250 हेक्टेयर वर्षावन को राष्ट्रीय सुरक्षित वन घोषित कर दिया. इस समय तक इस जीव की संख्या खतरनाक तरीके से नीचे गिर गई थी. यानी मात्र 100 सुनहरे लंगूर ही बचे थे. उधर ये सुनहरे लंगूर या तो पालतू थे अथवा चिडि़याघर में प्रजनन नहीं कर रहे थे.

इसी के बाद वाशिंगटन स्थित नैशनल जूलौजिकल पार्क के जंतु वैज्ञानिक डेवरा क्लीमान ने एक प्रोजैक्ट सामने रखा ताकि इन लंगूरों को बचाया जा सके. डेवरा ने ही अध्ययन के बाद पता लगाया कि टैमेरिन यानी सुनहरे लंगूरों को हड्डियों के रोग ज्यादा होते हैं क्योंकि शरीर में विटामिन-डी बनाने के लिए जिस विटामिन-डी की जरूरत होती है, वह सूर्य के प्रकाश में ही शरीर में बनता है.

यही नहीं टैमेरिन पूरी तरह से शाकाहारी होते हैं. जब इन लंगूरों को जब जीवों के लिए प्रोटीन और विटामिन दिए गए तभी इन का स्वास्थ्य ठीक हुआ. इस के बाद इन लंगूरों को पेड़ पर ही ऐसे बक्से दिए गए जो पेड़ पर बने हलके घोंसलों जैसे होते थे, इसी के बाद इन की संख्या बढ़ने लगी.

इन लंगूरों के बीच लड़ाई भी काफी भयंकर होती है, जिस से हर साल कई लंगूर मारे जाते हैं. ज्यादातर ऐसी लड़ाइयां मादाओं के बीच होती हैं. ऐसी सभी मादा टैमेरिन को एक जगह अलग रखा गया, जो अपने झुंड से, लड़ाई की वजह से, अलग हो गई थीं. इन सभी मादाओं को अलग स्थान दिया गया और देखते ही देखते सभी की संख्या में भारी वृद्धि हो गई.

इस के बाद पूरी दुनिया से कई जंतु वैज्ञानिकों ने ब्राजील में डेरा डाला और नए सिरे से टैमेरिन यानी सुनहरे लंगूरों को बचाने की कवायद शुरू हो गई. जंतु वैज्ञानिकों के प्रयासों से पता चला कि टैमेरिन को घने और कंटीले वृक्षों की छांव पसंद है, क्योंकि इस से वे शत्रुओं से अपनी सुरक्षा कर सकते हैं. ये लंगूर अपने परिवार के साथ काफी विशाल क्षेत्रफल को अपने लिए सुरक्षित बना लेते हैं. इस क्षेत्र में लंगूरों का कोई दूसरा परिवार नहीं आ सकता. ये क्षेत्र कई बार तो 35 हेक्टेयर तक का होता है.

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यही कारण है कि इन जीव वैज्ञानिकों ने सरकार को सचेत करने के अलावा खुद भी तमाम पेड़ लगाने का काम शुरू कर दिया है. लोगों का समर्थन प्राप्त करने के लिए कई जीव वैज्ञानिकों ने निजी चैनलों से भी संपर्क किया है ताकि इन लंगूरों के प्रति आमजन को जागरुक किया जा सके.

‘कसौटी जिंदगी के 2’:  क्या कोमोलिका की नई चाल से फिर से अलग हो जाएंगे अनुराग और प्रेरणा

स्टार प्लस पर प्रसारित होने वाला सीरियल ‘कसौटी जिंदगी के 2’ में जबरदस्त ट्विस्ट आने वाला है. इस शो के पिछले एपिसोड में आपने देखा कि प्लास्टिक सर्जरी के बाद कोमोलिका प्रेरणा से बदला लेना चाहती है और जल्द ही वह अपनी पहचान को रिवील किए बगैर ही अनुराग की जिंदगी में एंट्री लेती है.

आप इस सीरियल के अपकमिंग एपिसोड में देखेंगे मिस्टर बजाज प्रेरणा को तलाक देने वाले हैं और प्रेरणा अनुराग के पास लौट आएगी. इसके साथ ही जल्द ही प्रेरणा और अनुराग शादी करने का फैसला लेंगे,  लेकिन कोमोलिका अपनी नई चाल चलेगी.

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एक रिपोर्ट के अनुसार प्रेरणा अपनी प्रेग्नेंसी की सच्चाई अनुराग को बताएगी. ऐसे में अनुराग अपने बच्चे को इस दुनिया में लाने के लिए काफी एक्साइटेड होगा. तो उधर कोमोलिका अनुराग से कहेगी कि ये बच्चा उसका नहीं बल्कि मिस्टर बजाज का है.

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कोमोलिका अपनी बात को सही साबित करने के लिए कई हथकंडे अपनाएगी. ऐसे में अनुराग उसकी बात मान जाएगा और प्रेरणा को खूब खरी खोटी सुनाएगा. अब देखना ये दिलचस्प होगा कि कोमोलिका के इस चाल का पर्दाफास कैसे होता है और अनुराग प्रेरणा एक हो पाएंगे या नहीं.

आपको बता दें, कुछ दिन पहले ही मिस्टर बजाज यानी करण सिंह ग्रोवर ने अलविदा कहा है. हाल ही में ये खबर आई है कि अब सोन्या अयोध्या भी इस सीरियल को अलविदा कहने वाली हैं.

DIWALI SPECIAL: जब घर से दूर गरीब बच्चों के साथ मनाई यादगार दीवाली

अदित मिश्रा (बिहार)

ये बात है पिछली दीवाली की, जब मेरी नौकरी रांची (झारखंड) में जनसंपर्क अधिकारी के तौर पर लगी. पहली बार अपने परिवार, अपने घर से दूर गया था और इस बात का एहसास मुझे तब ज्यादा हुआ जब रोशनी और खुशियों से भरपूर दिवाली का त्योहार नजदीक आया. वैसे तो जब भी मैं दीवाली में घर पर रहा तो हर काम, चाहे बाजार का हो या घर का दोनों ही बहुत ही आनंद से करा. लेकिन इस दीवाली मैं बाहर था, औफिस में काम ज्यादा होने के कारण मुझे छुट्टी  नहीं मिली. बहुत बुरा भी लगा रहा था कि इस बार घर का दीपक अपने घर के आगे दीपक भी नहीं जला पाएगा लेकिन मजबूरी भी थी.

बहरहाल दीवाली की उस रात मैं अपने औफिस से लौट ही रहा था कि मैंने देखा, मेरे फ्लैट के आगे चार छोटे गरीब बच्चे जली हुई फूलझड़ी को जलाने की कोशिश कर रहे है. वो ऐसा क्यों कर रहे थे, ये सवाल मुझे उनके चेहरे पर दिख रही उदासी से पता चल गया. अकेला मैं भी था और वो भी तो मैंने उन चारों बच्चों के साथ दीवाली मनाने को सोचा.

सबसे पहले मैं उन चारों को लेकर पटाखे की दुकान पर गया और कुछ फूलझड़ी और पटाखें खरीदे. साथ ही मिठाई भी खरीदी और फ्लैट के पास वापस आए. मैंने एक फूलझड़ी निकाली और उन बच्चों को दी, जैसे ही उन्होंने फूलझड़ी जलाई, उस के चेहरे पर फूलझड़ी की रोशनी से ज्यादा रोशनी थी. शायद इतनी खुशी मुझे अपने परिवार के साथ दीवाली मनाने से भी नहीं मिलती, जितनी उस रात दीवाली के दिन उन बच्चों के चेहरे पर आई.

मेरे 25 साल के अनुभव में 2018 की दीवाली मेरे लिए सबसे बड़ी सीख बन गई कि अंजानों के साथ भी हम अच्छी और यादगार दीवाली मना सकते हैं.

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अगर आपके साथ भी कभी ऐसा कुछ हुआ तो हमें बताइए कैसी थी आपकी- घर से दूर अजनबी के साथ ‘दीवाली’.

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दीवाली 2019: घर में प्रदूषण कम करने के अपनाएं ये नेचुरल तरीके 

दीवाली आने में बस कुछ ही दिन बचे  है. बड़े त्योहारों के इस मौसम में हर घर को साफ करके सजाया जाता है, रोशनी की जाती है और हर ओर खुशियां छाई रहती हैं. पर पटाखों से हवा भी प्रदूषित होता है. हर साल सरकार आतिशबाजी रोकने करने के लिए कहती हैं पर लोग इसका  पालन नही करते है.  नतीजा यह है कि अगले दिन हम उठते हैं तो गहरा काला धुंआ हमें घेरे रहता है.

एक व्यक्ति के रूप में हम अकले ऐसा कुछ खास नहीं कर सकते हैं जिससे लोगों को आतिशबाजी चलाने से रोका जा सके. क्लीनिक ऐप्प के सीईओ, श्री सतकाम दिव्य, कुछ ऐसे उपाय बता रहे जो घर के अंदर की हवा को जहां तक संभव हो, साफ रखने में आपकी सहायता केरेगी.

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सक्रिय चारकोल का उपयोग कीजिए

हमलोगों ने ऐक्टिवेटेड (सक्रिय) चारकोल के बारे में सुना है. फेश वाश और टुथ पेस्ट में इसका उपयोग होता है पर बहुत लोग नहीं जानते हैं कि ये अच्छे एयर प्यूरीफायर की तरह भी काम करते हैं. ऐक्टिवेटेड चारकोल को ऐक्टिव कार्बन भी कहा जाता है. सबसे अच्छी बात यह है कि इसमें कोई दुर्गन्ध नहीं है और यह अच्छा सोखता भी है. आप इसे गैस फिल्टर के रूप में भी देख सकते हैं. लोग चारकोल को बाथरूम में रखना पसंद करते हैं क्योंकि यह आर्द्रता नियंत्रित रखता है और बाथरूम की खुश्बू तरोताजा बनी रहती है.

भाप लेना स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है

घर के अंदर प्रदूषण नियंत्रित करने के लिए हम अपनी सर्वश्रेष्ठ कोशिश कर सकते हैं. पर जब हम बाहर निकलते हैं तो मुंह ढंकने के सिवा बहुत कुछ नहीं कर सकते हैं. बहुत लोगों को मालूम नहीं है कि अगर आप प्रदूषण से घिरे हों तो भाप लेना मददगार होता है. रोज रात में सोने जाने से पहले भाप लीजिए. इसमें यूकलिप्टस औयल की कूछ बूंदें डाल दीजिए. इससे ना सिर्फ आराम मिलेगा और हवा जाने का मार्ग खुलेगा बल्कि आपका शरीर नुकसानदेह पदार्थों से भी मुक्त होगा.

आवश्यक तेल

जब आप अपने घर को प्रदूषण मुक्त बनाने के उपायों पर विचार कर रहे हों तो आवश्यक तेल ज्यादा उपयोगी हो सकते हैं इतना कि आप सोच भी नहीं सकते. वेबर स्टेट यूनिवर्सिटी में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक थीव्ज औयल की मारने की शक्ति चौकाने वाली है और हवा में रहने वाले 99.96% बैक्टीरिया को यह मार डालता है. यह कई एसेंसियल औयल और अर्क का मेल है जो आपके घर के अंदर हवा को शुद्ध और साफ रखने में सहायता करता है.

घर के अंदर की हवा को साफ करने के लिए आप एसेंसियल ऑयल की कुछ बूंदें एक डीफ्यूजर में रख सकते हैं. अगर घर के बाहर निकलने से आपकी एलर्जी बढ़ जाए तो कुछ बूंदे गर्म तौलिए पर रखकर सांस लीजिए. इससे आप तत्काल बेहतर महसूस करेंगे. आप अपनी ललाट, गर्दन और सीने पर यूकलिप्टस औयल भी रगड़ सकते हैं. यह आपको अंदर से अच्छा अहसास कराएगा.

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घर में पौधे रखिए

बीबीसी के लिए नासा और यूनिवर्सिटी औफ योर्क द्वारा किए गए अध्ययन से पता चला कि घरों के अंदर प्रदूषण कम करने में पौधों की अहम भूमिका होती है और इसके लिए घरों में रखने वाले पौधे अलग होते हैं. यह प्रदूषण के निपटने के सर्वश्रेष्ठ तरीकों में से एक है खासकर तब जब घर में छोटे बच्चे, बुजुर्ग या कोई ऐसा व्यक्ति हो जिसे सांस की समस्या हो.

घर की हवा को शुद्ध करने के लिए कुछ सबसे अच्छे पौधे हैं – पीस लिली और लेडी पाम. पीस लिली को ठीक-ठाक सूर्य की रोशनी की आवश्यकता होती है जबकि लेडी पाम को अप्रत्यक्ष पर तेज रोशनी चाहिए होती है. कारपोट वाले कमरों में आप आर्किया पाम प्लांट रख सकते हैं. जो कमरे हाल में पेंट किए गए हों उनमें भी इसे रखा जा सकता है. अगर ऑप कंप्यूटर और फैक्स मशीन से भरे ऑफिस में रखने के लिए कोई पौधा चाहें तो यूरोपियन ईवी सबसे उपयुक्त होगा.

इस बार दीवाली में याद रखने के लिए कुछ बातें

गए साल दीवाली के बाद सबसे खतरनाक माइक्रोपार्टिकल्स में से एक पीएम 2.5 की मौजूदगी करीब 2,000 प्वाइंट्स थी. इसकी सुरक्षित सीमा 50 के करीब है. रात में जब आकाश में पटाखे चल रहे थे तो हवा की गुणवत्ता गिरकर “गंभीर” हो गई. इस तरह की स्थितियों में दमे के मरीज अस्पताल पहुंच जाते हैं. यहां कुछ तरीके पेश है जिससे आप घर के अंदर की हवा को ताजा, साफ और शुद्ध रख सकेंगे.

वायु प्रदूषण से निपटने के सबसे अच्छे तरीकों में एक – अपने शरीर को स्वस्थ रखना. अपने डायट में मैग्नेशियम और विटामिन सी से समृद्ध भोजन शामिल कीजिए. इससे आप स्वस्थ रहेंगे और प्रदूषण के दुष्प्रभावों से लड़ सकेंगे.

अगर आपके घर में कारपेट हैं तो सुनिश्चित कीजिए कि उन्हें समय-समय पर साफ किया जाए क्योंकि जहरीले पदार्थों के लिए ये स्पांज के रूप में काम करते हैं. इससे हवा की गुणवत्ता पर गंभीर प्रभाव हो सकता है.

हर के अपने पौधों को नियमित रूप से साफ कीजिए.

जूतों को घर के बाहर रखना अच्छी आदत है. ईपीए द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार इससे जहरीले पदार्थों की मात्रा 60% तक कम हो सकती है.

अगर आपके पास पैसे हैं तो एयर प्यूरीफायर खरीदना अच्छा होगा और खिड़कियां खोलने की बजाय इनका उपयोग कीजिए.

अब जब दीवाली करीब है तो प्रदूषण से बचने के लिए लोग शहर छोड़कर चले जाते हैं. पर हममें से जो लोग घर में त्यौहार मनाना चाहते हैं उनके लिए छोटे उपाय भी काफी मददगार हो सकते हैं और वे प्रदूषण से बच सकते हैं. पालतू जानवरों का ध्यान रखिए और उन लोगों का भी जो स्वास्थ्य संबंधित किसी परेशानी में हैं. इस साल पटाखों को ना कहिए.

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’: कैरव होगा गायब, नायरा से माफी मांगेगा कार्तिक

स्टार प्लस का मशहूर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में आए दिन जबरदस्त  ट्विस्ट आ रहे है. अभी इस शो की कहानी कैरव की कस्टडी केस के इर्द गिर्द घुम रही है. हालांकि पिछले कुछ दिनों से इस शो की टीआरपी डाउन हो रही है.

खबरों के अनुसार ऐसे में अब मेकर्स ने इस सीरियल की कहानी को नया मोड़ देने वाले हैं. जी हां रिपोर्ट के अनुसार कार्तिक को जल्द ही नायरा के अबार्शन की सच्चाई पता चलेगी और उसे अपनी गलती का एहसास होगा.  कार्तिक नायरा से माफी भी मांगेगा.

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इसके अलावा नायरा कार्तिक को बताएगी कि जिस दिन उसका जन्मदिन होता है,  उसी दिन कैरव का भी जन्मदिन होता है. यानी  कार्तिक और कैरव का जन्मदिन सेम डेट पर होता है. ये बात सुनकर कार्तिक बेहद खुश होगा और वह कैरव के जन्मदिन को खास बनाने की प्लान करेगा.

इसी बीच कैरव को ये महसूस होने लगेगा कि उसके पिता उसकी मां की इज्जत नहीं करते है और दोनो में हमेशा लड़ाई होती है. इस शो के अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि कैरव कहीं गायब हो जाएगा. नक्क्ष उसके गायब होने की वजह ‘कार्तिक’ को ठहराएगा. लेकिन कैरव जल्द  ही मिल जाएगा. उसके बिहेव में काफी बदलाव नजर आएगा. वह नायरा और कार्तिक से बात भी नहीं करना चाहेगा.

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मैं अपने लिए कई दरवाजे खोल लेना चाहता हूं: विनीत कुमार सिंह

गैर फिल्मी परिवार से आकर संघर्ष करते हुए बौलीवुड में अपनी एक अलग पहचान बना लेने वाले अभिनेता विनीत कुमार सिंह निरंतर सफलता की उंचाइयां छू रहे हैं. ‘गैंग आफ वासेपुर’’ के दानिश खान से लेकर ‘मुक्काबाज’’ के श्रवण कुमार तक विनीत हर किरदार में लोगों का दिल जीतते आए हैं. 27 सितंबर को ‘नेटफ्लिक्स’ पर आयी ‘‘बार्ड आफ ब्लड’’ में एक अफगानी कमांडों वीर सिंह के रूप में उन्होंने जबरदस्त हंगामा मचाया. अब 25 अक्टूबर को प्रदर्शित हो रही तुशार हीरानंदानी निर्देशित फिल्म‘‘सांड़ की आंख’’ में वह निशानेबाजी के कोच यशपाल की भूमिका में नजर आएंगे.

फिल्म ‘‘मुक्काबाज’ में आप हीरो बनकर आए थे. जबकि फिल्म ‘‘सांड़ की आंख’’ में आप एक बार फिर कैरेक्टर कर रहे हैं?

मैं हर तरीके का एक्सपेरीमेंट करता रहूंगा. मैं चाहता हूं कि मैं ज्यादा से ज्यादा अलग अलग तरह के किरदार शुरुआती दौर में कर सकूं. क्योंकि कहीं ना कहीं ‘मुक्काबाज’ के बाद बहुत सारी फिल्में वैसी ही आ रही हैं, जो उस किरदार के टेंपरामेंट से प्रेरित हैं. पर मैं उससे बचने का प्रयास कर रहा हूं. फर्क इतना है कि ‘मुक्काबाज’ में बौक्सर के तौर पर वह बाक्सिंग रिंग से जुड़ा हुआ था. तो दूसरी फिल्मों में किसी और चीज से जुड़ा हुआ, लेकिन टेंपरामेंट वही था. मैंने ऐसे किरदार ठुकराए. मैं चाहता हूं कि अलग रिदम के किरदार मुझे मिले. अलग मानसिक सोच रखने वाले किरदार मुझे मिले. अलग भाषा बोलने वाले किरदार मुझे मिले. अलग बौडी लैंग्वेज वाले किरदार मुझे मिले. अलग अप्रोच वाले किरदार भी मिलें. मैं हमेशा यही तलाशता रहता हूं. मेरी राय में करियर की शुरूआात में ज्यादा से ज्यादा एक्सपेरीमेंट करना जरूरी है. जिससे भविष्य में मुझे इन किरदारों से रिफरेंस प्वाइंट मिल सके. जिससे लोग कहें कि यह कलाकार इस तरह का भी काम कर सकता है. फिल्म ‘‘गोल्ड’’ में मैंने कुछ अलग किया था. अभी 27 सितंबर से ‘नेटफ्लिक्स’ पर आयी ‘बार्ड औफ ब्लड’ 190 देशों में रिलीज हुई.

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‘‘ब्राड आफ ब्लड’’ में तो आपने अफगानी का किरदार निभाया है ?

जी हां! ‘इसमें मैंने वीर सिंह का किरदार निभाया है, जो कि मूलतः पंजाब से है, लेकिन अफगानिस्तान में काम करता है. इसकी कहानी पूर्णरूपेण अफगानिस्तान में है. तो मेरा किरदार वीर सिंह अफगानिस्तान में अफगानी की जिंदगी जी रहा है. वह एक ट्रेंड कमांडो है. वीर सिंह के लिए मैंने अफगान की पश्तो भाषा सीखी. पश्तो के गाने सीखें. एक अफगानी आदमी कैसे रहता है, क्या खाता है, उसकी कमजोरियां क्या है? सहित बहुत सी जानकारी हासिल की थी. यह सब मैंने अपने वीर सिंह के किरदार की मांग को ध्यान में रखकर ही किया था. इस बात को लोगों ने नोटिस किया. इसे अभी भी लोग देख रहे हैं और काफी बातें हो रही है. वीर सिंह के रूप में लोग मुझे पहचान नहीं पा रहे हैं. तो एक कलाकार के तौर पर यह बहुत जरूरी है कि एक चीज में बंधने से पहले ही आप अपने लिए कई सारे दरवाजे खोल लें. इसी वजह से मैं ‘सांड़ की आंख’ में डाक्टर यशपाल का जो किरदार है,  इसमें यह मुक्का नहीं मारता है.

फिल्म ‘‘सांड़ की आंख’’ करने के लिए किस बात ने आपको प्रेरित किया?

यह फिल्म बागपत जिले के जोहरी गांव की दो विश्व प्रसिद्ध शूटर दादीयों की सत्य कथा है, जो कि बहुत ही ज्यादा प्रेरणा दायक है. ऐसी कहानी को कहा जाना चाहिए. दूसरी बात मेरी राय में किसी को भी लड़का या लड़की, जात पात, धर्म अथवा उसकी आर्थिक स्थिति के आधार पर किसी काम को करने से नहीं रोका जाना चाहिए. तीसरी बात यह पूर्वी उत्तर प्रदेश की बजाय पश्चिमी उत्तर प्रदेश का किरदार है. जो लोग उत्तर प्रदेश से वाकिफ हैं, उन्हें पश्चिमी व पूर्वी उत्तर प्रदेश का फर्क भी पता है. वेस्टर्न यूपी में बातचीत अलग तरह से की जाती है. तो यह किरदार जो काम करता है, जिस तरह की भाषा बोलता है, वह मैंने इससे पहले कभी किया नहीं था.

डा. यशपाल के किरदार को निभाने के लिए किसी तरह की तैयारी करने की जरुरत पड़ी?

सबसे पहले तो इस किरदार के रिदम को पकड़ना बहुत जरुरी था. वह निशानेबाज और कोच है. निशानेबाजी में अगर सांस थोड़ी भी ऊपर नीचे हुई, तो आप निशाना चूक जाते हैं. निशानेबाजी एक ऐसा खेल है, जिसमें आपको पूरा ध्यान अपने टारगेट पर रखना पड़ता है. जरा सी भी हदल की धड़कन ऊपर नीचे हुई, तो आपका टारगेट हिल जाता है. मैंने ‘सांड की आंख’ में वह अपने किरदार में भी डाला है कि यशपाल अपने टारगेट पर हिट करने से पहले काफी कंसंट्रेट रहता है. एकदम शांत रहता है. अपने कंट्रोल को नहीं छोड़ता. वह रिदम बनाए रखता है. यह किरदार रिएक्ट कम करता है,जो करना है, वही करता है. इसके अलावा मैंने हरियाणवी भाषा सीखी.

इसके अलावा नया क्या कर रहे हैं?

अभी 27 सितंबर को ‘नेटफ्लिक्स’ पर ‘‘बार्ड औफ ब्लड’’ रिलीज हुई थी. अब 25 अक्टूबर को फिल्म ‘‘सांड की आंख’’ आएगी. उसके बाद छह दिसंबर को एक बहुत प्यारी फिल्म ‘‘आधार’’ आएगी, जो कि आधार कार्ड से जुड़ी है. इसका निर्देशन दो फिल्मों के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्मकार और अमरीका में इकोनौमिक्स के प्रोफेसर सुमन घोष ने किया है. झारखंड में फिल्मायी गयी फिल्म ‘‘आधार’’ का निर्माण ‘दृश्यम फिल्म्स’ और ‘जिओ स्टूडियो’ ने किया है. फिल्म की कहानी बहुत प्यारी है. इसमें मेरे साथ सौरभ शुक्ला, संजय मिश्रा, रघुवीर यादव और इश्ताक खान भी हैं. इसके बाद फिल्म ‘‘एंथौलाजी’ आएगी, जिसमें चार कहानियां हैं. उसमें से एक कहानी ‘रेस्ट विथ डेस्टिनी’ में मैंने अभिनय किया है. ‘‘धर्मा प्रोडक्शन’’ की फिल्म ‘कारगिल गर्ल गुंजन सक्सेना’ कर रहा हूं.फिर नेटफ्लिक्स और रेड चिल्ली का शो है. एक शो ‘‘बेताल’’ में मेन लीड कर रहा हूं.

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आपकी जो वेब सीरीज आयीं, उनका रिस्पांस कैसा रहा?

बहुत ही बढ़िया रिस्पौन्स मिल रहे हैं. हम इन्हें वेब सीरीज नहीं कहते, इसे नेटफ्लिक्स सीरीज या अमेजौन सीरीज या ओटीटी प्लेटफार्म सीरीज कहते हैं.क्योंकि इन्हें किसी भी फार्मेट में आप देख सकते हैं. किसी भी गैजेट पर आप देख सकते हैं. जबकि वेब सीरीज को खास तरह के गैजेट पर ही देख सकते हैं. ओटीटी प्लेटफार्म पर जो चीजें आती हैं, उन्हें आप किसी भी परदे यानी कि बड़े पर्दे पर भी देख सकते हैं. एक कलाकार चाहता है कि ज्यादा से ज्यादा लोग उसका काम देखें. तो ‘‘ब्राड औफ ब्लड’’ नेटफ्लिक्स पर विश्व के 190 देशों में प्रसारित हुई. 190 देशों में हिंदी फिल्म रिलीज नहीं होती हैं. एक कलाकार को खुद नहीं पता होता है कि उसका काम कहां देखा जा रहा है.

लेकिन एक कलाकार के तौर पर एक फर्क मुझे नजर आता है कि फिल्म रिलीज होने के चंद घंटों के अंदर ही आपको बहुत सारे रिस्पांस मिल जाते हैं. ओटीटी प्लेटफार्म पर इस तरह का रिस्पांस मिलने में समय लगता है?

आप सही कह रहे हैं.पर मैं इसमें एक बात जरूर जोड़ना चाहूंगा कि ओटीटी प्लेटफार्म पर आपको अगले कई वर्षों तक दर्शक मिलते रहेंगे, जो कहेंगे कि हमने कल आपकी यह सीरीज देखी. जबकि शुरुआत में बहुत ज्यादा लोग देते हैं. उसके बाद वह संख्या धीरे धीरे धीरे धीरे कम जरूर होती है,पर रूकती नही है. सोशल मीडिया पर आए दिन मेरे पास संदेश आ रहे हैं कि ‘बार्ड औफ ब्लड’ में  पश्तो बोलने के कारण पहचान नही पाए.

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