राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता कलाकार राज कुमार राव निरंतर आगे बढ़ते जा रहे हैं. वह अपनी हर फिल्म के साथ साबित करते आ रहे हैं कि अभिनय में उनका कोई दूसरा सानी नही है. और उनके अंदर हर तरह के किरदार निभाने की अपार क्षमता है. आप उन्हें किसी एक ईमेज में नहीं बांध सकते. फिलहाल वह मिखिल मुसाले निर्देशित व 25 अक्टूबर को प्रदर्शित हो रही फिल्म ‘‘मेड इन चाइना’’ को लेकर चर्चा में हैं, जिसमें वह एकदम नए अवतार में नजर आएंगे.
प्रस्तुत है उनसे हुई एसक्लूसिव बातचीत के अंश.
आपके करियर के टर्निंग प्वाइंट्स क्या रहे ?
सबसे पहले तो ‘लव सेक्स धोखा है, उसके बाद ‘शाहिद’ है. फिर ‘बरेली की बर्फी’ है, जिसने मुझे लोगों के सामने एक नए अवतार में पेश किया. फिर ‘स्त्री’ है, जिसने बौक्स औफिस पर बहुत बड़ी कमायी की.
आज आप मानते हैं कि ‘‘लव सेक्स धोखा’’ जैसी फिल्म करना सही कदम था?
यह अच्छी शुरूआत थी. लोग कहां कहां से बौलीवुड में अपना कैरियर बनाने आते हैं, पर संघर्ष करते रह जाते हैं. मगर मेरे मुंबई पहुंचने के दो वर्ष के अंदर ही मुझे दिवाकर बनर्जी और एकता कपूर के साथ ऐसी फिल्म करने का अवसर मिला, जिसे बौलीवुड के फिल्म मेकरों ने देखी और तारीफ की. इस फिल्म की वजह से कई फिल्म मेकरों की निगाह मेरी तरफ गया. इसी के चलते मुझे हंसल मेहता की फिल्म ‘शाहिद’ मिली. वहीं से मेरे करियर ने गति पकड़ ली. तो मेरे लिए खुशी की बात है कि छोटे बजट की फिल्म को जबरदस्त सफलता मिली.
जब आपने ‘बरेली की बर्फी’ से खुद को बदलते हुए नए अवतार में उतरे थे तो उम्मीद थी कि लोग आपको पसंद कर लेंगे?
जी नही. ऐसा बिलकुल नही लगा था. वैसे भी जब मैं किसी किरदार को निभा रहा होता हूं, उस वक्त नहीं सोचता कि वह कितना पसंद आएगा. पर मुझे उम्मीद नहीं थी कि लोग इतना पसंद करेंगे. लोगों का इतना प्यार मिलेगा. मैं खुद सिनेमाघर में फिल्म देखने गया था, तो लोग तालियां बजा रहे थे.
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आज आप एक अच्छे मुकाम पर हैं. धन और शोहरत के साथ साथ राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल गया. फिर भी आपको किस चीज की कमी महसूस होती है?
माता पिता के न होने की कमी महसूस होती है, जो जिंदगी भर रहेगी. खासकर मां की कमी बहुत महसूस होती है. क्योंकि उनकी इच्छा थी कि वह मुझे सिनेमा के परदे पर नृत्य करते हुए देखें. पर ‘न्यूटन’ की शूटिंग के दौरान वह गुजर गयी थी. जिंदगी भर इस बात का मलाल रहेगा कि वह होती, तो मुझे डांस करते हुए देखती और ‘स्त्री’ की सफलता को देखती.
तब तो फिल्म ‘स्त्री’ में डांस करते हुए आपको अपनी मां की बहुत याद आयी होगी?
जी हां! क्योंकि वह हमेशा चाहती थीं कि वह मुझे कौमेडी करते हुए और डांस करते हुए देखें. इससे पहले वह मुझे ‘शाहिद’ व ‘अलीगढ़’ जैसी फिल्मों में ज्यादातर संजीदा किरदारों में ही देखा था. वास्तव में हम बचपन से नौटंकी व रामलीला आदि में यही सब देखते हुए बड़े हुए थे, तो वह चाहती थीं कि मैं फिल्मों में ऐसा कुछ करुं.
फिल्म ‘‘मेड इन चाइना’’ के अपने किरदार को लेकर क्या कहेंगें?
यह फिल्म गुजरात के एक एंटरप्रिनोर की कहानी है. मैंने इसमें अहमदाबाद, गुजरात में रहने वाले युवा व्यवसायी का किरदार निभाया है, जो अपने परिवार के लिए कुछ करना चाहता है, मगर उसे असफलता ही हाथ लग रही है. वह प्यारा इंसान है. अब तक वह तेरह चौदह व्यापार में हाथ आजमा चुका है. कभी रोटी मेकर, कभी नेपाल हैंडीक्राफ्ट, तो कभी कुछ और स्ट्रगल करते हुए वह चाइना पहुंच जाता है. वहां पर उसे सेक्स परफार्मेंस से जुड़ी एक आइडिया मिलती है और वह उस आइडिया के साथ भारत आकर भारत के जुगाड़ के साथ व्यवसाय शुरू करता है. फिर कई चीजें बदलती हैं. वह सफलता की उंचाइयां छूता है. इसमें वह सेक्सोलौजिस्ट डाक्टर वर्धी की भी मदद लेता है.?
इसी वजह से फिल्म में सेक्सोलौजिस्ट डौक्टर संग आपकी दोस्ती… ?
जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि रघु चाइना से सेक्स परफार्मेंस बढ़ाने की एक आइडिया लेकर आता है, तो उसे भारत में एक डाक्टर की जरुरत महसूस होती है. क्योंकि हमारे यहां लोग डाक्टर के कहने पर ही दवा लेते हैं. रघु डाक्टर वर्धी से मिलता है, जो कि बहुत ही आदर्शवादी डाक्टर हैं. वह उनके साथ भागीदारी करने के लिए कहता है. डा. वर्धी के संग उसके बहुत अच्छे इक्वेशन बन जाते हैं. पर फिर दोनो अलग भी हो जाते हैं.
तो क्या ‘‘मेड इन चाइना’’ सेक्स पर आधारित फिल्म है?
देखिए, यह फिल्म दिवाली के मौके पर सिनेमाघरों में आ रही है. फिल्म में सिच्युएशनेबल हास्य है. यह पूरी तरह से पारिवारिक फिल्म है. आप अक्सर अखबारों में पढ़ते होंगे कि लोगों में सेक्स को लेकर आज भी कई तरह की गलत भ्रांतियां हैं. हमारी फिल्म हास्य के साथ उन्ही भ्रांतियों को लेकर कुछ कहने का प्रयास करती है.
फिल्म में गुजरात का माहौल व गुजराती किरदार रखे जाने की कोई खास वजह रही?
क्योंकि इसकी मूल लेखक परिंदा गुजराती हैं. उन्होंने यह उपन्यास गुजराती भाषा में ही लिखा था. निर्देशक मिखिल स्वयं गुजरात से हैं और उन्होंने यह उपन्यास पढ़ा हुआ था. पटकथा लेखक करण व निरेन भी गुजरात से हैं. फिर जब भी बड़े बिजनेसमैन का नाम आता है, तो लोगों के दिमाग में सीधे गुजरात ही आता है. गुजरातियों में हर युवा कुछ अपना नया काम करना चाहता है. इसलिए इस फिल्म में गुजराती किरदार व गुजराती माहौल है.
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लोगों को फिल्म ‘‘मेड इन चाइना’’ क्या संदेश देगी?
हम लोगों को हंसाने के साथ ही यह भी कहने का प्रयास कर रहे हैं कि अगर आपको जिंदगी में कुछ बनना है, कुछ करना है, तो जिंदगी व करियर की शुरूआत में असफलता मिलने के बावजूद आपको लगे रहना होगा. हार नही माननी है. यह कहानी लोगों को ‘‘नेवर गिव अप’’ एटीट्यूड सिखाएगी.
आप सोशल मीडिया पर कितना सक्रिय /एक्टिव हैं?
जितना होना चाहिए. बहुत ज्यादा नही. मेरी सक्रियता फिल्म की रिलीज के वक्त ही होती है. उस वक्त फिल्म से संबंधित जानकारियां सोशल मीडिया पर पोस्ट करनी होती हैं. पर मैं सोशल मीडिया पर दुनिया भर की जानकारी हासिल करने के लिए पढ़ता रहता हूं.
कुछ कलाकारों ने सोशल मीडिया को कमाई का साधन बना रखा है. आप इसे कितना सही कदम मानते हैं?
गलत कुछ नही. यह तो एड फिल्म करने जैसा ही है. एड फिल्म के लिए कलाकार पैसा लेता है, उसी तरह सोशल मीडिया पर कुछ पोस्ट करने के लिए पैसा लेता है, तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है.
पर सोशल मीडिया के फालोवर्स फिल्म के बाक्स अफिस पर कितना असर डालते हैं?
बिलकुल नही पड़ता. बौक्स आफिस पर इस बात का असर पड़ता है कि फिल्म कैसी बनी है.
जब आपने बौलीवुड में कदम रखा, उन्ही दिनों सिनेमा बदलना शुरू हुआ था. क्या आपको लगता है कि आपको उसका फायदा मिला?
जी हां! मुझे सिनेमा में आ रहे बदलाव का फायदा मिला. मैं अकेला तो कुछ बदल नही सकता था. क्योंकि मैं किसी ताकत के साथ तो आया नहीं था. जब मैं 2010 में यहां आया, उस वक्त तक सिनेमा को बदलने वाले यह सभी लोग आ चुके थे. श्रीराम राघवन, विशाल भारद्वाज, दिवाकर बनर्जी, अनुराग कश्यप, विक्रम मोटवानी, हंसल मेहता यह सभी आ चुके थे. तो सिनेमा बदलना शुरू हो गया था, उसी दौर में मैं यहां आया. फिर सिनेमाहाल बदलते गए. पिछले तीन वर्ष में तो सिनेमा व दर्शकों में काफी बदला आया है. अब दर्शक फिल्म में कहानी देखना चाहता है. नए किरदार देखना चाहते है. उसी का नतीजा है कि मेरे जैसे कलाकार अच्छा काम कर रहे हैं.
बीच में आपने लगातार कुछ फिल्में हंसल मेहता के साथ की थी, अब आप अलग अलग निर्देशकों के साथ फिल्में कर रहे हैं?
हंसल मेहता के साथ भी फिल्में कर रहा हूं. हमने उनके साथ एक फिल्म ‘तुर्ररम खां’ की शूटिंग पूरी कर ली है, जिसका नाम शायद बदलेगा. वह भी बहुत अलग तरह की कहानी है. हंसल मेहता भी पहली बार खुद को ब्रेक कर रहे हैं और मैं भी इस फिल्म में अपने आपको ब्रेक कर रहा हूं. हम दोनो ने सोचा कि हमसे लोग जो आपेक्षा रखते हैं, उससे कुछ अलग किया जाए.
आपके दिमाग में कोई कहानी या किरदार है, जिसे आप करना चाहते हों?
जी नहीं.. मैं तो अच्छे काम के लिए इंतजार करता हूं. मैं ढेर सारी कहानियां को पढ़ता हूं और फिर उनमें से कुछ अच्छा चुनने का प्रयास करता हूं.
किसी भी फिल्म के किरदार को निभाने में ज्यादा से ज्यादा लोगों से बातचीत करना मददगार साबित होता है या सिर्फ पटकथा से चिपके रहना?
पटकथा तो महत्वपूर्ण होती है, पर उसके बाद कम से कम निर्देशक के संग बैठकर बातचीत करना बहुत मददगार साबित होता है. कलाकार के लिए यह समझना जरुरी है कि फिल्म और किरदार को लेकर निर्देशक का अपना विजन क्या है? लेखक का प्वांइंट आफ व्यू समझना भी जरुरी होता है. उसके बाद हम अपनी कल्पना और अपनी चीजें पिरोकर उस किरदार को परदे पर साकार करते हैं.
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आप अभी खुद को आउट साइडर मानते हैं?
देखिए, मेरी सोच आज भी वही है जो गुड़गांव में रहते हुए थी. मैं आज भी सड़क पर शूटिंग होते देखकर रूक जाता हूं. मैं भूल जाता हूं कि मैं भी इसी का एक हिस्सा हूं. उस लिहाज से मैं भी आउट साइडर हूं.