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‘कसौटी जिंदगी के 2’:  क्या कोमोलिका की नई चाल से फिर से अलग हो जाएंगे अनुराग और प्रेरणा

स्टार प्लस पर प्रसारित होने वाला सीरियल ‘कसौटी जिंदगी के 2’ में जबरदस्त ट्विस्ट आने वाला है. इस शो के पिछले एपिसोड में आपने देखा कि प्लास्टिक सर्जरी के बाद कोमोलिका प्रेरणा से बदला लेना चाहती है और जल्द ही वह अपनी पहचान को रिवील किए बगैर ही अनुराग की जिंदगी में एंट्री लेती है.

आप इस सीरियल के अपकमिंग एपिसोड में देखेंगे मिस्टर बजाज प्रेरणा को तलाक देने वाले हैं और प्रेरणा अनुराग के पास लौट आएगी. इसके साथ ही जल्द ही प्रेरणा और अनुराग शादी करने का फैसला लेंगे,  लेकिन कोमोलिका अपनी नई चाल चलेगी.

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एक रिपोर्ट के अनुसार प्रेरणा अपनी प्रेग्नेंसी की सच्चाई अनुराग को बताएगी. ऐसे में अनुराग अपने बच्चे को इस दुनिया में लाने के लिए काफी एक्साइटेड होगा. तो उधर कोमोलिका अनुराग से कहेगी कि ये बच्चा उसका नहीं बल्कि मिस्टर बजाज का है.

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कोमोलिका अपनी बात को सही साबित करने के लिए कई हथकंडे अपनाएगी. ऐसे में अनुराग उसकी बात मान जाएगा और प्रेरणा को खूब खरी खोटी सुनाएगा. अब देखना ये दिलचस्प होगा कि कोमोलिका के इस चाल का पर्दाफास कैसे होता है और अनुराग प्रेरणा एक हो पाएंगे या नहीं.

आपको बता दें, कुछ दिन पहले ही मिस्टर बजाज यानी करण सिंह ग्रोवर ने अलविदा कहा है. हाल ही में ये खबर आई है कि अब सोन्या अयोध्या भी इस सीरियल को अलविदा कहने वाली हैं.

DIWALI SPECIAL: जब घर से दूर गरीब बच्चों के साथ मनाई यादगार दीवाली

अदित मिश्रा (बिहार)

ये बात है पिछली दीवाली की, जब मेरी नौकरी रांची (झारखंड) में जनसंपर्क अधिकारी के तौर पर लगी. पहली बार अपने परिवार, अपने घर से दूर गया था और इस बात का एहसास मुझे तब ज्यादा हुआ जब रोशनी और खुशियों से भरपूर दिवाली का त्योहार नजदीक आया. वैसे तो जब भी मैं दीवाली में घर पर रहा तो हर काम, चाहे बाजार का हो या घर का दोनों ही बहुत ही आनंद से करा. लेकिन इस दीवाली मैं बाहर था, औफिस में काम ज्यादा होने के कारण मुझे छुट्टी  नहीं मिली. बहुत बुरा भी लगा रहा था कि इस बार घर का दीपक अपने घर के आगे दीपक भी नहीं जला पाएगा लेकिन मजबूरी भी थी.

बहरहाल दीवाली की उस रात मैं अपने औफिस से लौट ही रहा था कि मैंने देखा, मेरे फ्लैट के आगे चार छोटे गरीब बच्चे जली हुई फूलझड़ी को जलाने की कोशिश कर रहे है. वो ऐसा क्यों कर रहे थे, ये सवाल मुझे उनके चेहरे पर दिख रही उदासी से पता चल गया. अकेला मैं भी था और वो भी तो मैंने उन चारों बच्चों के साथ दीवाली मनाने को सोचा.

सबसे पहले मैं उन चारों को लेकर पटाखे की दुकान पर गया और कुछ फूलझड़ी और पटाखें खरीदे. साथ ही मिठाई भी खरीदी और फ्लैट के पास वापस आए. मैंने एक फूलझड़ी निकाली और उन बच्चों को दी, जैसे ही उन्होंने फूलझड़ी जलाई, उस के चेहरे पर फूलझड़ी की रोशनी से ज्यादा रोशनी थी. शायद इतनी खुशी मुझे अपने परिवार के साथ दीवाली मनाने से भी नहीं मिलती, जितनी उस रात दीवाली के दिन उन बच्चों के चेहरे पर आई.

मेरे 25 साल के अनुभव में 2018 की दीवाली मेरे लिए सबसे बड़ी सीख बन गई कि अंजानों के साथ भी हम अच्छी और यादगार दीवाली मना सकते हैं.

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अगर आपके साथ भी कभी ऐसा कुछ हुआ तो हमें बताइए कैसी थी आपकी- घर से दूर अजनबी के साथ ‘दीवाली’.

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दीवाली 2019: घर में प्रदूषण कम करने के अपनाएं ये नेचुरल तरीके 

दीवाली आने में बस कुछ ही दिन बचे  है. बड़े त्योहारों के इस मौसम में हर घर को साफ करके सजाया जाता है, रोशनी की जाती है और हर ओर खुशियां छाई रहती हैं. पर पटाखों से हवा भी प्रदूषित होता है. हर साल सरकार आतिशबाजी रोकने करने के लिए कहती हैं पर लोग इसका  पालन नही करते है.  नतीजा यह है कि अगले दिन हम उठते हैं तो गहरा काला धुंआ हमें घेरे रहता है.

एक व्यक्ति के रूप में हम अकले ऐसा कुछ खास नहीं कर सकते हैं जिससे लोगों को आतिशबाजी चलाने से रोका जा सके. क्लीनिक ऐप्प के सीईओ, श्री सतकाम दिव्य, कुछ ऐसे उपाय बता रहे जो घर के अंदर की हवा को जहां तक संभव हो, साफ रखने में आपकी सहायता केरेगी.

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सक्रिय चारकोल का उपयोग कीजिए

हमलोगों ने ऐक्टिवेटेड (सक्रिय) चारकोल के बारे में सुना है. फेश वाश और टुथ पेस्ट में इसका उपयोग होता है पर बहुत लोग नहीं जानते हैं कि ये अच्छे एयर प्यूरीफायर की तरह भी काम करते हैं. ऐक्टिवेटेड चारकोल को ऐक्टिव कार्बन भी कहा जाता है. सबसे अच्छी बात यह है कि इसमें कोई दुर्गन्ध नहीं है और यह अच्छा सोखता भी है. आप इसे गैस फिल्टर के रूप में भी देख सकते हैं. लोग चारकोल को बाथरूम में रखना पसंद करते हैं क्योंकि यह आर्द्रता नियंत्रित रखता है और बाथरूम की खुश्बू तरोताजा बनी रहती है.

भाप लेना स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है

घर के अंदर प्रदूषण नियंत्रित करने के लिए हम अपनी सर्वश्रेष्ठ कोशिश कर सकते हैं. पर जब हम बाहर निकलते हैं तो मुंह ढंकने के सिवा बहुत कुछ नहीं कर सकते हैं. बहुत लोगों को मालूम नहीं है कि अगर आप प्रदूषण से घिरे हों तो भाप लेना मददगार होता है. रोज रात में सोने जाने से पहले भाप लीजिए. इसमें यूकलिप्टस औयल की कूछ बूंदें डाल दीजिए. इससे ना सिर्फ आराम मिलेगा और हवा जाने का मार्ग खुलेगा बल्कि आपका शरीर नुकसानदेह पदार्थों से भी मुक्त होगा.

आवश्यक तेल

जब आप अपने घर को प्रदूषण मुक्त बनाने के उपायों पर विचार कर रहे हों तो आवश्यक तेल ज्यादा उपयोगी हो सकते हैं इतना कि आप सोच भी नहीं सकते. वेबर स्टेट यूनिवर्सिटी में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक थीव्ज औयल की मारने की शक्ति चौकाने वाली है और हवा में रहने वाले 99.96% बैक्टीरिया को यह मार डालता है. यह कई एसेंसियल औयल और अर्क का मेल है जो आपके घर के अंदर हवा को शुद्ध और साफ रखने में सहायता करता है.

घर के अंदर की हवा को साफ करने के लिए आप एसेंसियल ऑयल की कुछ बूंदें एक डीफ्यूजर में रख सकते हैं. अगर घर के बाहर निकलने से आपकी एलर्जी बढ़ जाए तो कुछ बूंदे गर्म तौलिए पर रखकर सांस लीजिए. इससे आप तत्काल बेहतर महसूस करेंगे. आप अपनी ललाट, गर्दन और सीने पर यूकलिप्टस औयल भी रगड़ सकते हैं. यह आपको अंदर से अच्छा अहसास कराएगा.

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घर में पौधे रखिए

बीबीसी के लिए नासा और यूनिवर्सिटी औफ योर्क द्वारा किए गए अध्ययन से पता चला कि घरों के अंदर प्रदूषण कम करने में पौधों की अहम भूमिका होती है और इसके लिए घरों में रखने वाले पौधे अलग होते हैं. यह प्रदूषण के निपटने के सर्वश्रेष्ठ तरीकों में से एक है खासकर तब जब घर में छोटे बच्चे, बुजुर्ग या कोई ऐसा व्यक्ति हो जिसे सांस की समस्या हो.

घर की हवा को शुद्ध करने के लिए कुछ सबसे अच्छे पौधे हैं – पीस लिली और लेडी पाम. पीस लिली को ठीक-ठाक सूर्य की रोशनी की आवश्यकता होती है जबकि लेडी पाम को अप्रत्यक्ष पर तेज रोशनी चाहिए होती है. कारपोट वाले कमरों में आप आर्किया पाम प्लांट रख सकते हैं. जो कमरे हाल में पेंट किए गए हों उनमें भी इसे रखा जा सकता है. अगर ऑप कंप्यूटर और फैक्स मशीन से भरे ऑफिस में रखने के लिए कोई पौधा चाहें तो यूरोपियन ईवी सबसे उपयुक्त होगा.

इस बार दीवाली में याद रखने के लिए कुछ बातें

गए साल दीवाली के बाद सबसे खतरनाक माइक्रोपार्टिकल्स में से एक पीएम 2.5 की मौजूदगी करीब 2,000 प्वाइंट्स थी. इसकी सुरक्षित सीमा 50 के करीब है. रात में जब आकाश में पटाखे चल रहे थे तो हवा की गुणवत्ता गिरकर “गंभीर” हो गई. इस तरह की स्थितियों में दमे के मरीज अस्पताल पहुंच जाते हैं. यहां कुछ तरीके पेश है जिससे आप घर के अंदर की हवा को ताजा, साफ और शुद्ध रख सकेंगे.

वायु प्रदूषण से निपटने के सबसे अच्छे तरीकों में एक – अपने शरीर को स्वस्थ रखना. अपने डायट में मैग्नेशियम और विटामिन सी से समृद्ध भोजन शामिल कीजिए. इससे आप स्वस्थ रहेंगे और प्रदूषण के दुष्प्रभावों से लड़ सकेंगे.

अगर आपके घर में कारपेट हैं तो सुनिश्चित कीजिए कि उन्हें समय-समय पर साफ किया जाए क्योंकि जहरीले पदार्थों के लिए ये स्पांज के रूप में काम करते हैं. इससे हवा की गुणवत्ता पर गंभीर प्रभाव हो सकता है.

हर के अपने पौधों को नियमित रूप से साफ कीजिए.

जूतों को घर के बाहर रखना अच्छी आदत है. ईपीए द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार इससे जहरीले पदार्थों की मात्रा 60% तक कम हो सकती है.

अगर आपके पास पैसे हैं तो एयर प्यूरीफायर खरीदना अच्छा होगा और खिड़कियां खोलने की बजाय इनका उपयोग कीजिए.

अब जब दीवाली करीब है तो प्रदूषण से बचने के लिए लोग शहर छोड़कर चले जाते हैं. पर हममें से जो लोग घर में त्यौहार मनाना चाहते हैं उनके लिए छोटे उपाय भी काफी मददगार हो सकते हैं और वे प्रदूषण से बच सकते हैं. पालतू जानवरों का ध्यान रखिए और उन लोगों का भी जो स्वास्थ्य संबंधित किसी परेशानी में हैं. इस साल पटाखों को ना कहिए.

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’: कैरव होगा गायब, नायरा से माफी मांगेगा कार्तिक

स्टार प्लस का मशहूर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में आए दिन जबरदस्त  ट्विस्ट आ रहे है. अभी इस शो की कहानी कैरव की कस्टडी केस के इर्द गिर्द घुम रही है. हालांकि पिछले कुछ दिनों से इस शो की टीआरपी डाउन हो रही है.

खबरों के अनुसार ऐसे में अब मेकर्स ने इस सीरियल की कहानी को नया मोड़ देने वाले हैं. जी हां रिपोर्ट के अनुसार कार्तिक को जल्द ही नायरा के अबार्शन की सच्चाई पता चलेगी और उसे अपनी गलती का एहसास होगा.  कार्तिक नायरा से माफी भी मांगेगा.

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इसके अलावा नायरा कार्तिक को बताएगी कि जिस दिन उसका जन्मदिन होता है,  उसी दिन कैरव का भी जन्मदिन होता है. यानी  कार्तिक और कैरव का जन्मदिन सेम डेट पर होता है. ये बात सुनकर कार्तिक बेहद खुश होगा और वह कैरव के जन्मदिन को खास बनाने की प्लान करेगा.

इसी बीच कैरव को ये महसूस होने लगेगा कि उसके पिता उसकी मां की इज्जत नहीं करते है और दोनो में हमेशा लड़ाई होती है. इस शो के अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि कैरव कहीं गायब हो जाएगा. नक्क्ष उसके गायब होने की वजह ‘कार्तिक’ को ठहराएगा. लेकिन कैरव जल्द  ही मिल जाएगा. उसके बिहेव में काफी बदलाव नजर आएगा. वह नायरा और कार्तिक से बात भी नहीं करना चाहेगा.

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मैं अपने लिए कई दरवाजे खोल लेना चाहता हूं: विनीत कुमार सिंह

गैर फिल्मी परिवार से आकर संघर्ष करते हुए बौलीवुड में अपनी एक अलग पहचान बना लेने वाले अभिनेता विनीत कुमार सिंह निरंतर सफलता की उंचाइयां छू रहे हैं. ‘गैंग आफ वासेपुर’’ के दानिश खान से लेकर ‘मुक्काबाज’’ के श्रवण कुमार तक विनीत हर किरदार में लोगों का दिल जीतते आए हैं. 27 सितंबर को ‘नेटफ्लिक्स’ पर आयी ‘‘बार्ड आफ ब्लड’’ में एक अफगानी कमांडों वीर सिंह के रूप में उन्होंने जबरदस्त हंगामा मचाया. अब 25 अक्टूबर को प्रदर्शित हो रही तुशार हीरानंदानी निर्देशित फिल्म‘‘सांड़ की आंख’’ में वह निशानेबाजी के कोच यशपाल की भूमिका में नजर आएंगे.

फिल्म ‘‘मुक्काबाज’ में आप हीरो बनकर आए थे. जबकि फिल्म ‘‘सांड़ की आंख’’ में आप एक बार फिर कैरेक्टर कर रहे हैं?

मैं हर तरीके का एक्सपेरीमेंट करता रहूंगा. मैं चाहता हूं कि मैं ज्यादा से ज्यादा अलग अलग तरह के किरदार शुरुआती दौर में कर सकूं. क्योंकि कहीं ना कहीं ‘मुक्काबाज’ के बाद बहुत सारी फिल्में वैसी ही आ रही हैं, जो उस किरदार के टेंपरामेंट से प्रेरित हैं. पर मैं उससे बचने का प्रयास कर रहा हूं. फर्क इतना है कि ‘मुक्काबाज’ में बौक्सर के तौर पर वह बाक्सिंग रिंग से जुड़ा हुआ था. तो दूसरी फिल्मों में किसी और चीज से जुड़ा हुआ, लेकिन टेंपरामेंट वही था. मैंने ऐसे किरदार ठुकराए. मैं चाहता हूं कि अलग रिदम के किरदार मुझे मिले. अलग मानसिक सोच रखने वाले किरदार मुझे मिले. अलग भाषा बोलने वाले किरदार मुझे मिले. अलग बौडी लैंग्वेज वाले किरदार मुझे मिले. अलग अप्रोच वाले किरदार भी मिलें. मैं हमेशा यही तलाशता रहता हूं. मेरी राय में करियर की शुरूआात में ज्यादा से ज्यादा एक्सपेरीमेंट करना जरूरी है. जिससे भविष्य में मुझे इन किरदारों से रिफरेंस प्वाइंट मिल सके. जिससे लोग कहें कि यह कलाकार इस तरह का भी काम कर सकता है. फिल्म ‘‘गोल्ड’’ में मैंने कुछ अलग किया था. अभी 27 सितंबर से ‘नेटफ्लिक्स’ पर आयी ‘बार्ड औफ ब्लड’ 190 देशों में रिलीज हुई.

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‘‘ब्राड आफ ब्लड’’ में तो आपने अफगानी का किरदार निभाया है ?

जी हां! ‘इसमें मैंने वीर सिंह का किरदार निभाया है, जो कि मूलतः पंजाब से है, लेकिन अफगानिस्तान में काम करता है. इसकी कहानी पूर्णरूपेण अफगानिस्तान में है. तो मेरा किरदार वीर सिंह अफगानिस्तान में अफगानी की जिंदगी जी रहा है. वह एक ट्रेंड कमांडो है. वीर सिंह के लिए मैंने अफगान की पश्तो भाषा सीखी. पश्तो के गाने सीखें. एक अफगानी आदमी कैसे रहता है, क्या खाता है, उसकी कमजोरियां क्या है? सहित बहुत सी जानकारी हासिल की थी. यह सब मैंने अपने वीर सिंह के किरदार की मांग को ध्यान में रखकर ही किया था. इस बात को लोगों ने नोटिस किया. इसे अभी भी लोग देख रहे हैं और काफी बातें हो रही है. वीर सिंह के रूप में लोग मुझे पहचान नहीं पा रहे हैं. तो एक कलाकार के तौर पर यह बहुत जरूरी है कि एक चीज में बंधने से पहले ही आप अपने लिए कई सारे दरवाजे खोल लें. इसी वजह से मैं ‘सांड़ की आंख’ में डाक्टर यशपाल का जो किरदार है,  इसमें यह मुक्का नहीं मारता है.

फिल्म ‘‘सांड़ की आंख’’ करने के लिए किस बात ने आपको प्रेरित किया?

यह फिल्म बागपत जिले के जोहरी गांव की दो विश्व प्रसिद्ध शूटर दादीयों की सत्य कथा है, जो कि बहुत ही ज्यादा प्रेरणा दायक है. ऐसी कहानी को कहा जाना चाहिए. दूसरी बात मेरी राय में किसी को भी लड़का या लड़की, जात पात, धर्म अथवा उसकी आर्थिक स्थिति के आधार पर किसी काम को करने से नहीं रोका जाना चाहिए. तीसरी बात यह पूर्वी उत्तर प्रदेश की बजाय पश्चिमी उत्तर प्रदेश का किरदार है. जो लोग उत्तर प्रदेश से वाकिफ हैं, उन्हें पश्चिमी व पूर्वी उत्तर प्रदेश का फर्क भी पता है. वेस्टर्न यूपी में बातचीत अलग तरह से की जाती है. तो यह किरदार जो काम करता है, जिस तरह की भाषा बोलता है, वह मैंने इससे पहले कभी किया नहीं था.

डा. यशपाल के किरदार को निभाने के लिए किसी तरह की तैयारी करने की जरुरत पड़ी?

सबसे पहले तो इस किरदार के रिदम को पकड़ना बहुत जरुरी था. वह निशानेबाज और कोच है. निशानेबाजी में अगर सांस थोड़ी भी ऊपर नीचे हुई, तो आप निशाना चूक जाते हैं. निशानेबाजी एक ऐसा खेल है, जिसमें आपको पूरा ध्यान अपने टारगेट पर रखना पड़ता है. जरा सी भी हदल की धड़कन ऊपर नीचे हुई, तो आपका टारगेट हिल जाता है. मैंने ‘सांड की आंख’ में वह अपने किरदार में भी डाला है कि यशपाल अपने टारगेट पर हिट करने से पहले काफी कंसंट्रेट रहता है. एकदम शांत रहता है. अपने कंट्रोल को नहीं छोड़ता. वह रिदम बनाए रखता है. यह किरदार रिएक्ट कम करता है,जो करना है, वही करता है. इसके अलावा मैंने हरियाणवी भाषा सीखी.

इसके अलावा नया क्या कर रहे हैं?

अभी 27 सितंबर को ‘नेटफ्लिक्स’ पर ‘‘बार्ड औफ ब्लड’’ रिलीज हुई थी. अब 25 अक्टूबर को फिल्म ‘‘सांड की आंख’’ आएगी. उसके बाद छह दिसंबर को एक बहुत प्यारी फिल्म ‘‘आधार’’ आएगी, जो कि आधार कार्ड से जुड़ी है. इसका निर्देशन दो फिल्मों के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्मकार और अमरीका में इकोनौमिक्स के प्रोफेसर सुमन घोष ने किया है. झारखंड में फिल्मायी गयी फिल्म ‘‘आधार’’ का निर्माण ‘दृश्यम फिल्म्स’ और ‘जिओ स्टूडियो’ ने किया है. फिल्म की कहानी बहुत प्यारी है. इसमें मेरे साथ सौरभ शुक्ला, संजय मिश्रा, रघुवीर यादव और इश्ताक खान भी हैं. इसके बाद फिल्म ‘‘एंथौलाजी’ आएगी, जिसमें चार कहानियां हैं. उसमें से एक कहानी ‘रेस्ट विथ डेस्टिनी’ में मैंने अभिनय किया है. ‘‘धर्मा प्रोडक्शन’’ की फिल्म ‘कारगिल गर्ल गुंजन सक्सेना’ कर रहा हूं.फिर नेटफ्लिक्स और रेड चिल्ली का शो है. एक शो ‘‘बेताल’’ में मेन लीड कर रहा हूं.

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आपकी जो वेब सीरीज आयीं, उनका रिस्पांस कैसा रहा?

बहुत ही बढ़िया रिस्पौन्स मिल रहे हैं. हम इन्हें वेब सीरीज नहीं कहते, इसे नेटफ्लिक्स सीरीज या अमेजौन सीरीज या ओटीटी प्लेटफार्म सीरीज कहते हैं.क्योंकि इन्हें किसी भी फार्मेट में आप देख सकते हैं. किसी भी गैजेट पर आप देख सकते हैं. जबकि वेब सीरीज को खास तरह के गैजेट पर ही देख सकते हैं. ओटीटी प्लेटफार्म पर जो चीजें आती हैं, उन्हें आप किसी भी परदे यानी कि बड़े पर्दे पर भी देख सकते हैं. एक कलाकार चाहता है कि ज्यादा से ज्यादा लोग उसका काम देखें. तो ‘‘ब्राड औफ ब्लड’’ नेटफ्लिक्स पर विश्व के 190 देशों में प्रसारित हुई. 190 देशों में हिंदी फिल्म रिलीज नहीं होती हैं. एक कलाकार को खुद नहीं पता होता है कि उसका काम कहां देखा जा रहा है.

लेकिन एक कलाकार के तौर पर एक फर्क मुझे नजर आता है कि फिल्म रिलीज होने के चंद घंटों के अंदर ही आपको बहुत सारे रिस्पांस मिल जाते हैं. ओटीटी प्लेटफार्म पर इस तरह का रिस्पांस मिलने में समय लगता है?

आप सही कह रहे हैं.पर मैं इसमें एक बात जरूर जोड़ना चाहूंगा कि ओटीटी प्लेटफार्म पर आपको अगले कई वर्षों तक दर्शक मिलते रहेंगे, जो कहेंगे कि हमने कल आपकी यह सीरीज देखी. जबकि शुरुआत में बहुत ज्यादा लोग देते हैं. उसके बाद वह संख्या धीरे धीरे धीरे धीरे कम जरूर होती है,पर रूकती नही है. सोशल मीडिया पर आए दिन मेरे पास संदेश आ रहे हैं कि ‘बार्ड औफ ब्लड’ में  पश्तो बोलने के कारण पहचान नही पाए.

अंधेरे उजाले : भाग 2

कसबे में तनवी का वह निर्णय खलबली मचा देने वाला साबित हुआ था. देखा जाए तो बात मामूली थी, ऐसी घटनाएं अकसर शादीब्याह में घट जाया करती हैं पर मानमनौवल और समझौतों के बाद बीच का रास्ता निकाल लिया जाता है. तनवी ने बीच के सारे रास्ते अपने फैसले से बंद कर दिए थे.

तनवी की शादी जिस लड़के से तय हुई थी वह भौतिक विज्ञान के एक आणविक संस्थान में काम करने वाला युवक था. बरात दरवाजे पर पहुंची. औपचारिकताओं के लिए दूल्हे को घोड़ी से उतार कर चौकी पर बैठाया गया. लकड़ी की उस चौकी के अचानक एक तरफ के दोनों पाए टूट गए और दूल्हे राजा एक तरफ लुढ़क गए. द्वारचार के उस मौके पर मौजूद बुजुर्गों ने कहा कि यह अपशकुन है. विवाह सफल नहीं होगा. दूल्हे राजा उठे और लकड़ी की उस चौकी में ठोकर मारी, एकदम बौखला कर बोले, ‘ऐसी मनहूस लड़की से मैं हरगिज शादी नहीं करूंगा. इस महत्त्वपूर्ण रस्म में बाधा पड़ी है. अपशकुन हुआ है.’

क्रोध में बड़बड़ाते दूल्हे राजा दरवाजे से लौट गए. ‘मुझे नहीं करनी शादी इस लड़की से,’ उन का ऐलान था. पिता भी बेटे की तरफ. सारे बुजुर्ग भी उस की तरफ. रंग में भंग पड़ गया.

बाद में पता चला कि चौकी बनाने वाले बढ़ई से गलती हो गई थी. जल्दबाजी में एक तरफ के पायों में कीलें ठुकने से रह गई थीं और इस मामूली बात का बतंगड़ बन गया था.

तनवी ने यह सब सुना तो फिर उस ने भी यह कहते हुए शादी से इनकार कर दिया, ‘ऐसे तुनकमिजाज, अंधविश्वासी और गुस्सैल युवक से मैं हरगिज शादी नहीं करूंगी.’

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तनवी के इस फैसले ने एक नया बखेड़ा खड़ा कर दिया. लड़के वालों को उम्मीद थी कि लड़की वाले दबाव में आएंगे. अपनी इज्जत का वास्ता देंगे, मिन्नतें करेंगे, लड़की की जिंदगी का सवाल ले कर गिड़गिड़ाएंगे.

तनवी के पिता और मामा लड़के के और उन के परिवार वालों के हाथपांव जोड़ने पहुंचे भी, किसी तरह मामला सुलटने वाला भी था पर तनवी के इनकार ने नई मुसीबत खड़ी कर दी. पिता और मामा ने तनवी को बहुत समझाया पर वह किसी प्रकार उस विवाह के लिए राजी नहीं हुई. उस ने कह दिया, ‘जीवन भर कुंआरी रह लूंगी पर इस लड़के से शादी किसी भी कीमत पर नहीं करूंगी. नौकरी कर रही हूं. कमाखा लूंगी, भूखी नहीं मर जाऊंगी, न किसी पर बोझ बनूंगी. उस का निर्णय अटल है, बदल नहीं सकता.’

कसबे में तमाम चर्चाएं चलने लगीं…लड़की का पहले से किसी लड़के से संबंध है. कसबे के किन्हीं परमानंद बाबू ने इस अफवाह को और हवा दे दी. बताया कि जिस कालिज में तनवी नौकरी करती है, उस के प्रबंधक के लड़के के साथ वह दिल्ली, कोलकाता घूमतीफिरती है. होटलों में अकेली उस के साथ एक ही कमरे में रुकती है. चालचलन कैसा होगा, लोग स्वयं सोच लें. कसबे के भी 2-3 युवकों से उस के संबंध होने की बातें कही जाने लगीं. दूसरे के फटे में अपनी टांग फंसाना कसबाई लोगों को खूब आता है.

पत्रकार अनूप तनवी का रिश्ते में कुछ लगता था. उस विवाह समारोह में वह भी शामिल हुआ था इसलिए उसे सारी घटनाओं और स्थितियों की जानकारी थी.

‘बदनाम हो जाओगी. पूरी जाति- बिरादरी में अफवाह फैल जाएगी. फिर तुम से कौन शादी करेगा?’ मामा ने समझाना चाहा था.

सुदेश ने अनूप से शंका प्रकट की, ‘ऐसी जिद्दी लड़की से शादी कैसे निभेगी, यार?’

‘सुदेशजी, इस बीच गुजरे वक्त ने तनवी को बहुत कुछ समझा दिया होगा. 28-29 साल कुंआरी रह ली. बदनामी झेल ली. नातेरिश्तेदारों से कट कर रह ली. इन सब बातों ने उसे भी समझा दिया होगा कि बेकार की जिद में पड़ कर सहज जीवन नहीं जिया जा सकता. सहज जीवन जीने के लिए हमें अपना स्वभाव नरम रखना पड़ता है. कहीं खुद झुकना पड़ता है, कहीं दूसरे को झुकाने का प्रयत्न करना पड़ता है. इस सिलसिले में तनवी से बहुत बातें हुई हैं मेरी. उसे भी जिंदगी की ऊंचनीच अब समझ में आने लगी है.’

अनूप के इतना कहने पर भी सुदेश के भीतर संदेह का कीड़ा हमेशा रेंगता रहा. एक तरफ तनवी का दृढ़निश्चयी होना सुदेश को प्रभावित करता था. दूसरी तरफ उस का अडि़यल रवैया उसे शंकालु भी बनाता था.

अपनी सारी शंकाओं को उस दिन रिश्ता पक्का करने से पहले सुदेश ने अनूप के सामने तनवी पर जाहिर भी कर दिया था. तनवी सचमुच गंभीर थी, ‘मैं जैसी हूं, आप जान चुके हैं. विवाह का मतलब मैं अच्छी तरह जानती हूं. बिना समझौते व सामंजस्य के जीवन को नहीं जिया जा सकता, यह भी समझ गई हूं. मेरी ओर से आप को कभी शिकायत का मौका नहीं मिलेगा.’

‘विवाहित जिंदगी में छोटीमोटी नोकझोंक, झगड़े, विवाद होने स्वाभाविक हैं. मैं कोशिश करूंगा, तुम्हारी कसबाई घटनाओं को कभी बीच में न दोहराऊं…उन बातों को तूल न दूं जो बीत चुकी हैं.’

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‘मैं भी कोशिश करूंगी, जिंदगी पूरी तरह नए सिरे से, नई उमंग और नए उत्साह के साथ शुरू करूं…इतिहास दोहराने के लिए नहीं होता, दफन करने के लिए होता है.’

मुसकरा दिया था सुदेश और अनूप भी खुश हो गया था.

अचानक तनवी ने कुछ पूछा तो अतीत की यादों में खोया सुदेश उसे देख कर हंस दिया.

उन की शादी को पूरे 8 साल गुजर गए थे. 2 बच्चे थे. शुभा 7 साल की, वैभव 5 साल का. ऐसा नहीं है कि इन 8 सालों में उन के बीच झगड़े नहीं हुए, विवाद नहीं हुए. पर पुराने गड़े मुर्दे जान- बूझ कर न सुदेश ने उखाड़े न तनवी ने उन्हें उखड़ने दिया. जीवन के अंधेरे- उजाले संगसंग गुजारे.

दीवाली 2019: घंटो का सफर, कुछ पल की दीवाली

दीवाली अपनों के साथ मनाया जाने वाला त्योहार है. आमतौर पर अपने परिवार के साथ रह रहे बच्चों के लिए दीवाली का मतलब एक महीने पहले से ही मम्मी के साथ मिलकर घर की सफाई करना, शौपिंग जाना, गिफ्ट्स खरीदना, घर सजाना और दीवाली के दिन त्योहार मना अगले दिन से पहली जैसी दिनचर्या अपना लेना ही है. लेकिन, उन बच्चों के लिए जो होस्टल से मीलों का सफर तय कर घर सिर्फ दीवाली मनाने पहुंचते हैं, दीवाली सिर्फ एक त्योहार नहीं है. यह उन की यादें हैं, जज्बात हैं, प्यार है अपने परिवार के लिए जो इस त्योहार को और खास बना देता है.

दिल्ली में हर साल कितने ही बच्चे अलगअलग शहरों से पढ़ने या नौकरी करने आते हैं. यहां उन के लिए सबकुछ होता है पर उन का परिवार और बचपन के वे दोस्त नहीं होते जिन के साथ हर साल वे दीवाली मनाते आए हैं. यही कारण है कि पूरे साल वे अपने घर जाएं या न जाएं लेकिन दीवाली में जरूर जाते हैं.

दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ रहीं कशिश बताती हैं, ‘‘होस्टल से घर जाने में मुझे सब से बढ़ी दिक्कत लगती है कपड़े पैक करने की. अलमारी से निकालो, कपड़े सिलैक्ट करो फिर पैक करो, बड़ी झंझट है. सब से ज्यादा टेंशन वाला काम है होस्टल से पर्मिशन लेना. पहले तो वो दस तरह के फोर्म साइन कराते हैं. उस के बाद पैरेंट्स की आईडी से मेल भेजनी पड़ती है. उस के बाद होस्टल से निकलते टाइम पैरेंट्स से बात करवानी पड़ती है वार्डेन की. फिर एक एंट्री होस्टल के गेट पर और एक कालेज के गेट पर करनी होती है. इन सब के बाद कालेज से निकलो तो छुट्टियों के चलते कोई रिक्शा नहीं मिलता. या तो अपने सारे सामान के साथ खड़े रहो या रोड क्रोस कर के जाओ ग्रामीण सेवा लेने जो कभी खाली नहीं होती. जैसेतैसे मेट्रो तक पहुंचो तो इतना भारी सामान उठाओ और स्क्रीनिंग पर डालो. कभी फोन गिर रहा होता है तो कभी हैंडबैग. और गलती से फोन बैग में डाल कर भूल जाओ तो समझो मिनी हार्टअटैक आतेआते रह जाता है.

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“वैसे तो मैं घर फ्लाइट से आतीजाती हूं लेकिन दीवाली के समय फ्लाइट काफी एक्सपेनसिव हो जाती है दिल्ली से लखनऊ की. फ्लाइट में वैसे तो वक्त बच जाता है लेकिन सामान थोड़ा सा भी ज्यादा हो तो दिक्कत होती है. ट्रेन से जाने पर कम से कम 9 से 10 घंटे का समय लग ही जाता है. जब में फर्स्ट ईयर में थी तो मैं पहली बार दिल्ली से लखनऊ अकेली जा रही थी, क्योंकि एडमिशन के टाइम पर तो मम्मी आई थीं साथ और उस के बाद मैं सीधा दीवाली पर ही जा रही थी. मेरी ट्रेन पूरे 6 घंटे लेट थी. उस का टाइम था शाम 7 बजे पहुंचने का पर मैं पहुंची रात डेढ़ बजे. मम्मीपापा तो बहुत परेशान हो गए थे. 11 से एक बजे तक वो ट्रेन हिली ही नहीं अपनी जगह से और स्टेशन तक पहुंचने में 4 किलोमीटर बाकी थे. मुझे लगा ये थोड़ा सा डिस्टेंस तो मैं कवर कर ही लुंगी. तो बस मैं निकाल गई. खाना मैं साथ बस एक टाइम का लाई थी वो भी मेस वाले भैया से प्लीजप्लीज बोल कर जो बहुत पहले ही खत्म हो चुका था. हालत हद से ज्यादा खराब हो गई थी, पर फिर स्टेशन पर मम्मीपापा का चेहरा देखा तो मैं सब भूल गई.”

विडियोग्राफर के तौर पर नौकरी कर रहे नीलेश अपने कालेज के दिनों को याद करते हुए दीवाली के दौरान की अपनी होस्टल टू होम जर्नी याद करते हुए बताते हैं, “कालेज का पहला साल था. घर भोपाल में था और सारे दोस्त भी वहीं थे. यहां काफी अकेला महसूस होता है. क्लासेस शुरू होने के बाद से ही मैं इंतेजार कर रहा था कि कब दीवाली की छुट्टी मिले और मैं घर जाऊं. मुझे उस समय ट्रैवल करना आता नहीं था, तो मुझे पता नहीं था कि खुद को सामान के साथ कैसे मैनेज करना है. मैं ने तो घर में किसी को बताया भी नहीं था कि मैं आ रहा हूं. मैं ने ओवर स्मार्ट बनते हुए पहले ही कौल कर के बोल दिया था कि मैं नहीं आऊंगा इस बार क्योंकि पढ़ाई का प्रैशर बहुत ज्यादा है.

“मैं ने भोपाल जाने के लिए ट्रेन की टिकट बुक की. मैं ने अपने टाइम को मैनेज करने के लिए एक चार्ट बनाया कि दो दिनों में किसकिस से मिलना है, क्या करना है क्या नहीं, बस यही सब. मैं रेलवे स्टेशन के लिए होस्टल से निकला और कैब में बैठा. कैब में बैठने के कुछ देर बाद ही कैब पंचर हो गई. मुझे आधे घंटे के रास्ते पर 2 घंटे लगे क्योंकि जब मैं कैब से उतरा तो सामने जो औटो मुझे मिला उस रोड पर, उस की सीएनजी खत्म हो गई थी. उन्होंने मुझे कहा कि रास्ता बस 2 किलोमीटर का ही है तो तुम पैदल ही चले जाओ. आगे ट्रैफिक बहुत ज्यादा था तो कोई और औटो मिल भी नहीं रहा था.

“मैं 2 किलोमीटर तक पैदलपैदल चला और जैसे ही स्टेशन तक पहुंचा तो ट्रेन बस निकलने ही वाली थी. यह देख कर मैं ने अपना सामान अपने सिर पर उठाया और मैं दौढ़ा. मैं ने अपना सामान अंदर की तरफ फेंका और चढ़ गया. मेरा कोच था बी 2 और चढ़ मैं एस 1 में गया था. फिर धीरेधीरे अंदरअंदर से होते हुए मैं अपनी सीट पर पहुंचा. अब मैं होस्टल में रहता था तो सफर के लिए खाना पैक कर के देने वाला कोई नहीं था. लेकिन, जिस डब्बे में मैं था उस में बैठे अंकलआंटी ने मेरे साथ अपना खाना शेयर किया. मेरे 12 घंटे इस के बाद के काफी अच्छे गुजरे. मैं आसपास बैठे लोगों से बातें करने लगा. थोड़ी देर सोया भी और अगली सुबह घर पहुंचा. मैं ने गेट खटखटाया और जब मम्मी ने मुझे देखा तो उन के चेहरे पर जो खुशी थी वो मेरे लिए प्राइजलेस थी. मेरे लिए यह दीवाली पिछली सभी दीवालियों से बहुत ज्यादा खास थी.”

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कालेज के मिड सेमेस्टर ब्रेक में जहां एग्जाम की टेंशन से सब बच्चे परेशान रहते हैं वहीं होस्टल से घर जाने वाले बच्चों के सिर पर तो परेशानियों का पहाड़ गिर पड़ता है. ईशान हर साल दीवाली के समय होस्टल से अपने घर गुवाहाटी जाता है. वह अपना एक्सपीरियंस शेयर करते हुए बताता है, “घर से दूर रहने पर घर की अहमियत मालूम पड़ती है. दीवाली के समय घर पर अलग ही रौनक होती है तो मन करता है कि सभी चीजों का हिस्सा बनूं. मुझे घर जाने से पहले कालेज का सारा काम निबटा लेना पड़ता है क्योंकि दो या तीन दिन की ही छुट्टी मिलती है. फ़्रेंड्स के साथ के कई प्लांस कैन्सल करने पड़ते हैं. एग्जाम के लिए पहले से पढ़ना पड़ता है. मम्मीपापा फोन करते हैं तो बताते रहते हैं कि तेरे लिए यह खरीद कर रखा है या वो खरीद कर रखा है. अब तो बोलना भी नहीं पड़ता जैसे बचपन में बोलना पड़ता था. खाना भी बनता है तो मेरी पसंद का. घर जा कर लगता है कि हम फिर से बच्चे बन चुके हैं. यहां दिल्ली में ऐसा फील होता है कि हम बहुत बड़े हैं लेकिन घर जा कर बिलकुल अलग लगता है. हां, दीवाली में फ्लाइट की टिकट महंगी जरूर होती है और सोचना पड़ता है कि घर जाऊं कि नहीं, 10,000 कम नहीं होते, ये वर्थी है या नहीं. लेकिन, घर जाने की खुशी के आगे सब छोटा लगने लगता है. दो दिन में भी घर पर अच्छा लगता है. अपने शहर में कदम रख कर एक अलग ही एहसास होता है. हर तरफ दीवाली की चमक होती है.”

कुछ ऐसी ही होती है हास्टल वालों की दीवाली जहां उन के लिए दीवाली सिर्फ दो दिन का त्योहार ही नहीं बल्कि 12-15 घंटों का सफर भी है जिस की थकान और तकलीफ घरवालों के साथ दीवाली मनाने की खुशी के नीचे दब जाती है.

मृत महिला से पुरुष भयभीत, महिलाओं ने दिया कंधा!

छत्तीसगढ़ में बस्तर संभाग  कांकेर के तुमसनार गांव में एक अजीब  घटना घटित हुई. महिला की मौत हो गई …अंधविश्वास ऐसा की परिवार के पुरुषों ने महिला को कंधा देने से इनकार कर दिया, क्योंकि उन्हें भय था मृतक महिला भूत बनकर उनके जीवन को बर्बाद कर देगी. आज 21वीं शताब्दी में भी ऐसे अंधविश्वास हमारे समाज में फैले हुए हैं,जिन को रोकने के लिए कोई पहल नहीं होती सरकार,समाज मूकदर्शक बना हुआ है. इस घटनाक्रम को देखकर निसंदेह आज कि हमारी सभ्यता शिक्षा- दीक्षा  पर शर्म आती है.

दरअसल, कुछ गांवों में आज भी है मान्यता है कि प्रसूता कि अगर मौत हो जाए  तो  वह  प्रेतनी ,भूत बन जाती है. ऐसा विश्वास करते  हुए पुरुष समाज  अंतिम संस्कार के लिए शव को हाथ भी नहीं लगाते, न गांव के बाहर  जा कर दफनाते, अथवा  मृतका  का संस्कार करते हैं.

पुरुष भाग खड़े हुए !

छत्तीसगढ़ में कांकेर के तुमसनार गांव में अंधविश्वास के कारण परिवार  व मोहल्ले के पुरुषों ने प्रसूता का शव दफनाने से साफ  इनकार कर दिया.यही नही  मृतक संस्कार के दरमियान भाग खड़े हुए.यही नहीं उन्होंने साफ साफ कह दिया कि शव को कंधा भी नहीं दे सकते. तत्पश्चात  रीति नीति के अनुरूप  गांव की महिलाओं ने ही अंतिम यात्रा निकाली और शव गांव के बाहर जंगल में दफनाया.  महत्वपूर्ण बात यह है कि महिलाओं ने शव यात्रा निकाली और मृतक महिला को खटिया पर लिटा कर कांधा देते हुए गांव के बाहर चली गई.  यहां ऐसा अंधविश्वास है कि किसी प्रसूता का शव गांव में दफनाने से वह भूत बन जाती है. प्रसूता के शव को शादीशुदा पुरुष हाथ भी नहीं लगाते.तुमसनार की सुकमोतीन कांगे (32) ने राजस्थान के पंकज चौधरी (30) से तीन  वर्ष पूर्व मे शादी की थी. सुकमोतीन मां बनने वाली थी, उसे प्रसव के लिए कांकेर के जिला अस्पताल लाया गया जहाँ 15 अक्टूबर की रात 2.30 बजे उसने बच्चे को जन्म दिया,  मगर शिशु की आधे घंटे बाद ही मौत हो गई.सुकमोतीन को जब इस बारे में पता लगा तो थोड़ी देर बाद  उसने भी दम तोड़ दिया.

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मृतका एनजीओ से थी जुड़ी

सबसे बड़ी बात मृतका एनजीओ से जुड़ी थी। इसी सिलसिले में वह कुछ समय जयपुर गुलाबी  नगरी  राजस्थान गई थी। राजस्थान में पंकज चौधरी नामक युवक से उसकी दोस्ती हो गई और  उसने विवाह कर लिया। वर्तमान में दोनों साथ ही गांव में रहते थे.

ग्रामीणों को जागरूक करेंगे

अंध श्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डा. दिनेश मिश्र ने कहा, महिला का अंतिम संस्कार नहीं करना  गलत है। यह साबित हो चुका है कि भूत-प्रेत का कोई अस्तित्व नहीं है। समिति गांव जाएगी। अंधविश्वास हटाने के लिए लोंगों को जागरूक करेगी.

केन्द्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह ने कुछ ऐसा कहा जिसे पढ़कर आप कहेंगे या तो सफेद झूठ के अलावा कुछ भी नहीं  केंद्रीय मंत्री ने कहा सुदुर इलाकों में लोगों में जागरुकता का आभाव है. इसके चलते ही इस तरह ही परंपराओं को आज भी महत्व दिया जा रहा है. सरकार द्वारा उन इलाकों में जागरुकता लाने की कवायद की जा रही है. जबकि सच्चाई सभी जानते हैं कि सरकार इस दिशा में आंख मूंदे हुए है.

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अंजाम ए मोहब्बत: भाग 1

सुहाग सेज पर बैठी मीनाक्षी काफी परेशान थी, क्योंकि उस ने अपनी मरजी से जो कदम उठाया था वह उस के परिवार वालों की इच्छा के खिलाफ था. उस ने अपने ही गांव के रहने वाले बृजेश चौरसिया के साथ कोर्टमैरिज की थी.

सुहागसेज पर बैठी वह सोच रही थी कि उस ने अपनी पसंद से यह शादी कर तो ली है और यदि बृजेश उस की कसौटी पर खरा न उतरा या प्यार का जुनून खत्म होने के बाद उस ने उसे अपने जीवन से दूध में गिरी मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिया तो क्या होगा. ऐसी स्थिति में वह क्या करेगी, कहां जाएगी?

इन्हीं विचारों के बीच वह अपने आप को सहज करने की कोशिश भी कर रही थी. इस भंवरजाल से उस का ध्यान तब भंग हुआ जब पति बृजेश ने उस के कंधे पर अपना हाथ रखते हुए कहा, ‘‘क्या बात है मीनू, किन खयालों में खोई हो?’’

‘‘अरे आप कब आए, पता ही नहीं चला.’’ मीनाक्षी अपने कंधे पर रखे बृजेश के हाथ का स्पर्श पा कर चौंकते हुए बोली.

‘‘जब तुम अपने खयालों में गहरी खोई थी.’’ बृजेश ने मुसकरा कर कहा, ‘‘बताओ, क्या सोच रही थी?’’

‘‘बृजेश, मैं अंदर से बहुत डरी हुई हूं क्योंकि मैं ने अपने पिता की मरजी के खिलाफ तुम से विवाह किया है. बस मैं तुम से यही चाहती हूं कि मुझे मझधार में मत छोड़ना वरना मैं कहीं की नहीं रहूंगी.’’ कहते हुए मीनाक्षी का चेहरा उदास हो गया.

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‘‘मीनू, तुम ऐसा क्यों सोच रही हो?’’ बृजेश ने उस के चेहरे को अपनी दोनों हथेलियों में ले कर कहा, ‘‘तुम्हें मेरे प्यार पर भरोसा नहीं है क्या, या फिर 4 सालों में तुम मुझे समझ नहीं पाई? मीनू, मैं आज भी वादा करता हूं कि मैं तुम्हें कभी अपने जीवन से अलग नहीं होने दूंगा, इसलिए इस तरह के विचार अपने मन से निकाल दो. मैं तुम्हें हमेशा खुश रखने की कोशिश करूंगा.’’

बृजेश ने मीनाक्षी के अंदर बैठी असुरक्षा की भावना को निकालने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘रही तुम्हारे मांबाप और परिवार की बात तो उस की चिंता तुम बिलकुल मत करो. समय के साथ सब ठीक हो जाएगा. यह तुम भी जानती हो कि किसी के भी मांबाप पत्थरदिल नहीं होते. उन की नाराजगी सिर्फ थोड़े ही दिनों की रहती है. बाद में वह सब भूल कर अपने बच्चों को गले लगा लेते हैं.’’

बृजेश की इन बातों से मीनाक्षी को काफी हिम्मत मिली थी और वह सामान्य हो गई. तब उन्होंने वह रात और भी ज्यादा खुशनुमा बनाई. इस के बाद बृजेश और मीनाक्षी की वैवाहिक जिंदगी हंसीखुशी से बीत रही थी. मीनाक्षी को पति से कोई शिकायत नहीं थी. ससुराल में मीनाक्षी का मन लग रहा था. वह बहुत खुश थी.

कुछ महीनों बाद मीनाक्षी ने फोन पर अपनी मां से भी बातें करनी शुरू कर दीं. वह पिता से भी बात करना चाहती थी. पिता राजकुमार ने उसे इस शर्त पर क्षमा किया कि वह अपने गांव प्रयागराज कभी नहीं जाएगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

15 जुलाई, 2019 की बात है. सुबह के यही कोई 6 बजे का समय था. महानगर मुंबई के उपनगर घाटकोपर (पूर्व) स्थित नारायण नगर के मधुबन टोयटा शोरूम के पास रिक्शा स्टैंड के नजदीक एक युवती की लाश पड़ी मिली. कुछ ही देर में लाश मिलने की खबर पूरे इलाके में फैल गई. देखते ही देखते मौके पर लोगों की भारी भीड़ एकत्र हो गई थी.

वह लाश खून से लथपथ थी. जिस ने भी वह लाश देखी, उस का कलेजा कांप गया. चूंकि वह युवती उसी क्षेत्र की रहने वाली थी, इसलिए कई लोगों ने उसे पहचान लिया. वह और कोई नहीं बल्कि शिवपुरी की चाल में पति बृजेश चौरसिया के साथ रहने वाली मीनाक्षी चौरसिया थी.

वहां मौजूद लोगों में से किसी ने युवती की हत्या की जानकारी पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. चूंकि जिस स्थान पर लाश मिली थी, वह इलाका घाटकोपर थाने के अंतर्गत आता है, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम से यह सूचना थाना घाटकोपर में दे दी गई.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी विश्वनाथ कोलेकर सहायक इंसपेक्टर विलाख दातीर, दीपवने आदि के साथ मौके पर रवाना हो गए. घटनास्थल पर पहुंच कर उन्होंने शव का निरीक्षण किया तो पता चला कि युवती की हत्या बड़ी ही बेरहमी से की गई थी.

देखने से ऐसा लग रहा था जैसे कि हत्यारे से उस की किसी बात को ले कर गहरी रंजिश थी. मृतका के सिर, गले और पीठ पर चाकुओं के कई गहरे जख्म थे. उन्होंने इस की सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को भी दे दी थी.

वहां मौजूद लोगों ने मृतका की शिनाख्त करते हुए जानकारी पुलिस को दे दी थी. तब थानाप्रभारी ने मृतका के पति बृजेश चौरसिया को बुलाने के लिए 2 सिपाहियों को शिवपुरी की चाल में भेजा. जब पुलिस वाले वहां पहुंचे तो बृजेश उस समय सो रहा था. पुलिस वाले उसे बुला कर मौके पर ले आए. वहां पत्नी मीनाक्षी का रक्तरंजित शव देख कर बृजेश दहाड़ें मार कर रोने लगा.

उसी समय एडिशनल सीपी लखमी गौतम, डीसीपी अखिलेश सिंह, एसीपी मानसिंह पाटिल मौके पर पहुंच गए. डौग स्क्वायड टीम भी वहां पहुंच कर अपने काम में जुट गई. टीम का काम निपट जाने के बाद पुलिस ने मीनाक्षी की लाश पोस्टमार्टम के लिए घाटकोपर के ही राजावाड़ी अस्पताल भेज दी.

बृजेश की शिकायत पर थानाप्रभारी ने मुकदमा दर्ज कर उस की जांच असिस्टेंट इंसपेक्टर विलाख दातीर को सौंप दी थी.

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अगले दिन पुलिस को मीनाक्षी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. रिपोर्ट से पता चला कि मीनाक्षी 4 महीने की गर्भवती थी. उस के शरीर पर 7 गहरे घाव थे, जो किसी धारदार हथियार से किए गए थे.

इस हत्या की क्या वजह हो सकती है, जानने के लिए पुलिस ने मृतका के पति बृजेश चौरसिया को थाने बुलाया. उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि मीनाक्षी की हत्या उस के पिता राजकुमार चौरसिया ने की है, क्योंकि मीनाक्षी ने अपने घर वालों की मरजी के खिलाफ उस से लवमैरिज की थी. इस बात से उस के घर वाले नाराज थे.

चूंकि बृजेश ने सीधा आरोप अपने ससुर राजकुमार पर लगाया था, इसलिए पुलिस उसे तलाश करने लगी. लेकिन वह अपने घर से फरार मिला. आखिर राजकुमार चौरसिया के मोबाइल फोन की लोकेशन के सहारे पुलिस उस के पास पहुंच ही गई और उसे उत्तर प्रदेश के जिला प्रयागराज में स्थित उस के पैतृक घर से दबोच लिया.

मुंबई ला कर उस से उस की बेटी की हत्या के बारे में पूछताछ की तो राजकुमार ने अपनी बेटी की हत्या के मामले में अनभिज्ञता जाहिर की लेकिन पुलिस टीम ने जब उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की तो वह टूट गया और तोते की तरह बोलते हुए अपना गुनाह स्वीकार लिया.

इस के बाद पुलिस ने राजकुमार चौरसिया को कोर्ट में पेश कर 7 दिन के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उस से की गई पूछताछ के बाद मीनाक्षी चौरसिया हत्याकांड की जो कहानी उभर कर सामने आई, उस की पृष्ठभूमि कुछ इस प्रकार थी—

55 वर्षीय राजकुमार चौरसिया मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला प्रयागराज के गांव नुमाईडाही का रहने वाला था.

गांव में उस के परिवार की सिर्फ नाममात्र की काश्तकारी थी. उस का पुश्तैनी काम पान बेचने का था. गांव के बाजारों से जो आमदनी होती थी, उस से ही घर और परिवार की रोजीरोटी चलती थी. इस आमदनी से राजकुमार संतुष्ट नहीं था.

लिहाजा अपनी रोजीरोटी की तलाश में वह गांव छोड़ कर महानगर मुंबई चला आया. क्योंकि यहां उस के इलाके के और भी लोग काम करते थे. मुंबई शहर के बारे में उस ने यह सुन रखा था कि वह एक ऐसा शहर है, जहां मेहनत करने वाला इंसान कभी भूखा नहीं सोता है.

उन दिनों मुंबई की सूरत आज जैसी नहीं थी. न तो भीड़ थी और न जमीनों की कीमत आसमान छू रही थी. उस समय वहां आदमी को मामूली किराए पर दुकान और घर मिल जाते थे.

राजकुमार चौरसिया ने 2-4 दिन इधरउधर भटकने के बाद घाटकोपर नारायणनगर में अपना पुश्तैनी काम करने के लिए एक खोखा लगा लिया, जो धीरेधीरे एक पान की दुकान में बदल गया था.

कुछ ही दिनों में उस की दुकान चल निकली और उस से अच्छी कमाई होने लगी. जिस से उस ने अपने रहने के लिए दुकान के पास ही अपना एक घर ले लिया. इस के अलावा वह अपनी कमाई से घरपरिवार की भी मदद करने लगा था, जिस से घर की आर्थिक स्थिति भी पटरी पर आने लगी थी.

इस के बाद राजकुमार की शादी भी हो गई. शादी के थोड़े दिनों बाद वह अपनी पत्नी को भी मुंबई बुला लाया. समयसमय पर वह अपने गांव जाता रहता था, जिस से गांव के लोगों से उस का संपर्क बना रहा.

समय अपनी गति से बीतता गया और राजकुमार 3 बच्चों का पिता बन गया. 20 वर्षीय मीनाक्षी राजकुमार की सब से छोटी और लाडली बेटी थी. उस से बड़े उस के 2 बेटे थे. मीनाक्षी पढ़ाईलिखाई में काफी होशियार थी. वह जवान हुई तो राजकुमार को उस की शादी की चिंता हुई. वह बेटी के योग्य वर की तलाश में लग गया.

जहां एक तरफ राजकुमार मीनाक्षी के लिए वर की तलाश में था, वहीं मीनाक्षी ने अपने लिए बृजेश चौरसिया को चुन लिया था. 27 वर्षीय बृजेश चौरसिया उस की जाति बिरादरी का था. वह भी प्रयागराज के गांव नुमाईडाही का रहने वाला था.

सन 2016 में जब बृजेश चौरसिया अपना गांव छोड़ कर महानगर मुंबई आया था तो राजकुमार चौरसिया ने उसे अपने यहां सहारा दे कर उस की मदद की थी. उस ने उसे अपनी दुकान पर कुछ दिनों तक काम पर लगाया. राजकुमार और परिवार वाले उसे अपने घर का सदस्य मानते थे. मीनाक्षी कभीकभी दुकान पर बैठे बृजेश के लिए खाना देने जाती थी.

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क्रमश:

सौजन्य: मनोहर कहानियां

आलू की खेती में कृषि यंत्रों का उपयोग

कई बार आलू की खेती से किसान अच्छाखासा मुनाफा कमाते हैं, लेकिन कभीकभार यही ज्यादा पैदावार किसानों के लिए घाटे का सौदा भी बन जाती है, इसलिए सब से पहले हमें आलू की बोआई में अच्छी किस्मों का इस्तेमाल करना चाहिए जो रोगरहित हों.

अभी जल्दी में ही केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला ने आलू की 3 नई किस्में तैयार की हैं. संस्थान द्वारा विकसित ये नई किस्में कुफरी गंगा, कुफरी नीलकंठ और कुफरी लीमा हैं. आलू की ये प्रजातियां मैदानी इलाकों में आसानी से पैदा होंगी. किसान आलू की नई किस्में लगा कर अच्छी पैदावार ले सकते  हैं.

ये आलू पकने में आसान हैं और इन का स्वाद भी अच्छा है. कम समय में अधिक पैदावार होगी. 70 से 135 दिन की अलगअलग कुफरी किस्म की फसल से प्रति हेक्टेयर 350 से 400 क्विंटल तक पैदावार ली जा सकती है.

देश के केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला ने विभिन्न जलवायु क्षेत्रों के लिए अब तक 51 आलू की प्रजातियां विकसित की हैं. इन में से कुछ चुनिंदा किस्मों की जानकारी दी गई है. इन प्रजातियों को देश के अलगअलग इलाकों में लगाया जाता है.

देश की जलवायु और भौगोलिक परिस्थितियों के मुताबिक पूरे साल कहीं न कहीं आलू की खेती होती रहती है. उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार, मध्य प्रदेश, पंजाब और हिमाचल प्रदेश आलू के उत्पादन में अग्रणी राज्य माने जाते हैं. देश में सब से ज्यादा आलू उत्पादन उत्तर प्रदेश में होता?है. देश के कुल उत्पादन में 32 फीसदी हिस्सेदारी उत्तर प्रदेश की है.

किसानों को चाहिए कि वे आलू की खेती करने के लिए अपने इलाके के हिसाब से बेहतर बीज का चुनाव करें और समय पर फसल बोएं. आलू बीज का आकार भी आलू की पैदावार में खासा माने रखता है.

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फसल से अच्छी पैदावार लेने के लिए जमीन समतल और पानी के अच्छे निकास की सुविधा होनी चाहिए. आलू की खेती अनेक तरह की मिट्टी में की जा सकती है परंतु अच्छी पैदावार के लिए अधिक उर्वरायुक्त बलुई दोमट व दोमट मिट्टी ठीक रहती है.

बोआई का उचित समय : आलू की अगेती बोआई के लिए 15 सितंबर से 15 अक्तूबर तक का समय ठीक होता है. सामान्य फसल की बोआई के लिए 15 अक्तूबर से 15 नवंबर तक का समय सही रहता है.? आलू की अनेक किस्म ऐसी हैं जो बोने के 70-80 दिनों बाद आलू खोदने लायक हो जाते हैं.

बोआई करने से पहले बीजोपचार जरूर करें. इस से जड़ वाली बीमारियों से छुटकारा मिलता है. इस के लिए बोरिक एसिड 3 फीसदी का घोल यानी 30 ग्राम प्रति लिटर पानी के हिसाब से घोल बनाएं.

उर्वरकों का इस्तेमाल : आलू की अच्छी फसल के लिए 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 100 किलोग्राम फास्फोरस और 80 किलोग्राम पोटाश की जरूरत प्रति हेक्टेयर होती है. अच्छी पैदावार लेने के लिए गोबर की खाद भी डालें. यदि आप ने फसल बोने से पहले मिट्टी की जांच कराई हो और उस में जस्ता व लोहा जैसे सूक्ष्म तत्त्वों की कमी?हो, तो 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट और 50 किलोग्राम फेरस सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से उर्वरकों के साथ बोआई से पहले खेत में डालें.

बीजों की मात्रा : बोआई के लिए आलू के रोगरहित बीज भरोसे की जगह से खरीदें. वैसे, सरकारी संस्थानों, राज्य बीज निगमों या बीज उत्पादन एजेंसियों से ही बीज खरीदना चाहिए.

बोआई : आलू की बोआई करने के लिए मेंड़ से मेंड़ की दूरी 50-60 सैंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 15 से 20 सैंटीमीटर रखें. कई बार आलू के आकार के हिसाब से यह दूरी कम या ज्यादा भी की जाती है.

आमतौर पर आलू को 8 से 10 सैंटीमीटर की गहराई पर खुरपी की सहायता से बोया जाता है, ताकि अंकुरण के लिए मिट्टी में सही नमी बनी रहे.

हाथ से बोई गई फसल में पौधों में अच्छे विकास और अच्छी पैदावार के लिए पेड़ों की जड़ों पर मिट्टी चढ़ाना भी जरूरी होता?है. जब पौधे 15-20 सैंटीमीटर के हो जाएं तो ऊपर मिट्टी चढ़ाएं.

ये सामान्य बातें हैं जिन्हें सभी किसान जानते हैं. आजकल आलू की बोआई के लिए बाजार में आलू बोने के यंत्र भी मौजूद?हैं, जिन्हें हम पोटैटो प्लांटर कहते हैं.

पोटैटो प्लांटर से बोआई

हाथ से आलू बोआई करने पर काफी समय और मजदूर लगते हैं. कई बार समय पर मजदूर भी नहीं मिल पाते. इस के चलते आलू बोआई के काम में देरी हो जाती है. इसी काम को अगर आलू बोआई यंत्र द्वारा यानी पोटैटो प्लांटर द्वारा किया जाए तो यह काम बहुत जल्दी और अच्छे तरीके से होता है.

यंत्र से बोआई करने पर खेत में आलू बीज एक तय दूरी और सही गहराई पर बोया जाता है. इस से फसल की पैदावार भी अच्छी मिलती है.

आलू बोने के 2 तरह के यंत्र आजकल चलन में हैं, एक सैमीआटोमैटिक आलू प्लांटर और दूसरा आटोमैटिक प्लांटर. दोनों ही तरह के यंत्र ट्रैक्टर में जोड़ कर चलाए जाते हैं.

सैमीआटोमैटिक प्लांटर

सैमीआटोमैटिक प्लांटर में आलू बीज भरने के लिए बड़ा बौक्स लगा होता है, जिस में आलू बीज भर दिया जाता?है और उसी के साथ नीचे की ओर घूमने वाली डिस्क लगी होती है. इन डिस्कों के पीछे आदमियों के बैठने की जगह भी होती है.

बोआई के समय जब डिस्क घूमती है तो छेदों में से आलू बीज नीचे गिरते जाते हैं और उस के साथ ही यंत्र द्वारा मिट्टी से आलू दबते चले जाते हैं. इस यंत्र से आलू बोआई के साथसाथ मेंड़/कूंड़ भी बनते जाते हैं. जितनी आलू के लिए डिस्क लगी होंगी, उतनी लाइन में ही आलू की बोआई होगी.

आलू बोआई करने के लिए हर डिस्क के पीछे बैठने के लिए सीट लगी होतीहै. इस पर आलू डालने वाला व्यक्ति बैठा होता है. जितनी डिस्क होंगी उतने ही आदमियों की जरूरत होगी क्योंकि जब ऊपर हौपर में से आलू नीचे आता है तो डिस्क में डालने का काम वहां बैठे आदमी द्वारा किया जाता है.

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आटोमैटिक प्लांटर

आटोमैटिक प्लांटर में अलग से किसी शख्स की जरूरत नहीं होती, केवल ट्रैक्टर पर बैठा व्यक्ति इसे नियंत्रित करता है. इस की खूबी यही है कि इस में आलू खुदबखुद बोआई के लिए नीचे गिरते चले जाते हैं और खेत में बोआई होती जाती है. साथ ही, मेंड़ भी बनती जाती?है लेकिन इस के लिए ट्रैक्टर चलाने वाले को यंत्र के इस्तेमाल करने की सही जानकारी होनी चाहिए. यह यंत्र सैमीआटोमैटिक की तुलना में महंगा होता है.

कीमत : 2 लाइनों में बोआई करने वाले मैन्यूअल पोटैटो प्लांटर की कीमत 38,000 है, 3 लाइनों में बोआई करने वाले प्लांटर की कीमत 48,000 है, वहीं 4 लाइनों में बोआई करने वाले प्लांटर की कीमत 55,000 रुपए है. आटोमैटिक पोटैटो प्लांटर की कीमत तकरीबन 1 लाख, 10 हजार रुपए तक हो सकती है. यह अनुमानित कीमत है.

बेड पर आलू बोआई वाला आटोमैटिक प्लांटर

मोगा इंजीनियरिंग वर्क्स से अमनदीप सिंह ने बताया कि पूरी तरह आधुनिक तकनीक से बना हमारा एक नया आटोमैटिक पोटैटो प्लांटर है जिसे जर्मन तकनीक पर बनाया गया है. यह प्लांटर बोआई के साथ बेड बनाता है और खाद भी डालता है. इस खास प्लांटर से बनाई गई बेड अधिक चौड़ी होती है, जो 24 इंच की होती?है. इस की खासीयत यह है कि इस तकनीक में आलू की 15-20 फीसदी अधिक पैदावार मिलती है और आलू हरा भी नहीं होता. फसल पर पाले का असर भी नहीं होता है.

इस यंत्र के जरीए एक दिन में 30 से 35 बीघा तक खेत में आलू की बोआई की जा सकती है. इस यंत्र को चलाने के लिए कम से कम 45 हार्सपावर के?ट्रैक्टर की जरूरत होती है.

अधिक जानकारी के लिए आप अमनदीप सिंह से उन के मोबाइल नंबर 8285325047 पर बात कर सकते हैं.

महिंद्रा पोटैटो प्लांटर

छोटे और बड़े सभी फार्मों के लिए यह खास आलू बोआई यंत्र है. इस यंत्र को इस्तेमाल करने के लिए 45 हौर्सपावर के ट्रैक्टर की जरूरत होती है. इस मशीन निर्माता का कहना है कि इस यंत्र के इस्तेमाल से हर पौधे की दूरी इस में लगे खास इम्प्लीमैंट से तय की जा सकती?है. इस में बीज बोने की गहराई 4 से 5 सैंटीमीटर रखी जाती?है.

इस पोटैटो प्लांटर के 3 मौडल हैं जिन से 2 लाइनों, 3 लाइनों और 4 लाइनों में आलू की बोआई की जा सकती?है. 2 लाइनों वाले प्लांटर में आलू बीज टैंक में रखने की कूवत 300 किलोग्राम व 3 कतारों वाले प्लांटर में 450 किलोग्राम और 4 कतार वाले प्लांटर में 600 किलोग्राम आलू बीज एकसाथ भरा जा सकता है. इस से अलग दूसरे टैंक में 100 किलोग्राम फर्टिलाइजर (खाद) भरा जा सकता है.

कंपनी का कहना है कि इस यंत्र के इस्तेमाल के लिए महिंद्रा का अर्जुन नोवो ट्रैक्टर खास है. इसलिए हमारा सुझाव है कि आप महिंद्रा पोटैटो प्लांटर का इस्तेमाल अर्जुन नोवो के साथ करें.

अर्जुन नोवो 650 डिआई एमएस

आलू बोआई व आलू खुदाई यंत्र को इस्तेमाल करने के लिए महिंद्रा का यह ट्रैक्टर मौडल 49.9 हौर्सपावर का है जिस में 4 सिलैंडर?हैं. पावर स्टीयरिंग है और इस में 60 लिटर तेल की क्षमता वाला टैंक है.

यह ट्रैक्टर खेत में 40 एप्लीकेशन पर काम कर सकता है. आलू बोआई व आलू खुदाई यंत्र के साथ इस के इस्तमाल के अच्छे नतीजे मिलते?हैं. इस ट्रैक्टर में 1,800 किलोग्राम वजन उठाने की कूवत है. इस में बेहतर कूवत वाली हाइड्रोलिक तकनीक है जो खेती के कामों को आसान बनाती है. रखरखाव पर कम खर्च और अपनी श्रेणी के ट्रैक्टरों में कम से कम ईंधन पर चलने वाला अच्छे नतीजे देने वाला ट्रैक्टर है.

अधिक जानकारी के लिए किसान टोल फ्री नंबर 18004256675 पर बात कर सकते हैं.

सिंचाई का रखें ध्यान

फसल की पहली सिंचाई बोआई के 15-20 दिनों के अंदर कर लेनी चाहिए. सिंचाई करते समय ध्यान रखें कि मेंड़ें पानी में आधे से अधिक नहीं डूबनी चाहिए.

इस के बाद तकरीबन 15 दिनों के अंतराल पर दोबारा सिंचाई करें. आलू की फसल में तकरीबन 8 से 10 बार सिंचाई की जरूरत होती है. आलू तैयार होने पर जब उस की खुदाई करनी हो तो तकरीबन 10 दिन पहले ही उस की सिंचाई बंद कर दें जिस से आलू की खुदाई अच्छी तरह से हो सके.

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