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ताहिरा कश्यप ने शाहरुख खान के साथ “टेड टौक्स इंडिया नई बात” में किया प्रेरित

स्तन कैंसर महिलाओं में सबसे अधिक पाए जाने वाले कैंसर में से एक है, हालांकि, इस पर चर्चा करना भारत में एक टैबू  है. भारत के प्रमुख लेखकों में से एक ताहिरा कश्यप को भी उनके परिवार द्वारा उनके पौजिटिव डायग्नोसिस के बारे में बात करने से मना कर दिया गया था.

लेकिन ताहिरा कश्यप ने समाज के इन टैबू से हटकर इंस्टाग्राम पर कैंसर से अपनी लड़ाई के बारे में अपनी बात खुलकर रखती आयी हैं.

हाल ही में ताहिरा कश्यप को शाहरुख खान द्वारा होस्ट किये जाने वाले शो ‘टेड टाक्स इंडिया नई बात’ में आमंत्रित किया गया था, जहां उन्होंने बताया कि सबसे कठिन समय कब होता है. ताहिरा उन 26 वक्ताओं में से एक थीं जो बेहतर भारत के भविष्य को आकार दे रही हैं.

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ताहिरा कहती हैं, “इस महत्वपूर्ण मंच को इस तरह के अद्भुत लोगों के साथ साझा करना और मेरी कहानी साझा करने में सक्षम होना एक सौभाग्य की बात है. खुलेआम इसके बारे में बात करने के पीछे एकमात्र कारण यह है कि प्रारंभिक स्तन कैंसर के लक्षण सभी के दिमाग में बैठ जाए और किसी को भी इन लक्षणों को जानने के बाद उन्हें नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. यह विचार डर पैदा करने के लिए नहीं है, बल्कि सतर्क करने के लिए है. यह न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया में मृत्यु दर को बदल सकता है. मैं टेड टौक्स की आभारी हूं कि उन्होंने मुझे ये अवसर दिया. ”

शो में जीवन के विभिन्न क्षेत्रों के वक्ताओं को दिखाया गया है, जिन्होंने भारत में स्वास्थ्य, पर्यावरण जागरूकता और यौन शोषण जैसे प्रमुख मुद्दों से निपटने के लिए अपने विचारों पर प्रकाश डाला.

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500 साल पुराने विवाद का फैसला: मंदिर भी बनेगा, मस्जिद भी बनेगी

अयोध्या के राम मंदिर पर फैसला भले ही दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट से सुनाया जाना था पर इसमें गांवगांव तक रहने वालो के कान लगे थे. एक रात पहले से ही लोगों के दिलों में तमाम आशंकायें घर कर गई थी. चिन्ता की लकीरों का आलम यह था कि दूर दराज के बाजार और सड़को पर सन्नाटा सुबह से ही परस गया था. हर कोई यह सुनने को बेचैन था कि फैसला क्या असर डालेगा ? जैसे जैसे सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने लगा जनता को राहत महसूस होने लगी.

देश का सबसे बड़ा और सबसे पुराना जमीन का विवाद पर सबसे बड़ी अदालत का फैसला समाज में गंगा जमुनी तहजीब को बढ़ावा देने वाला रहा है. अयोध्या राममंदिर विवाद का फैसला देते समय सुप्रीम कोर्ट ने विवादित जगह भारत सरकार को देते हुए कहा है कि वह 3 माह में ट्रस्ट बनाकर मंदिर निर्माण को दिशा दे. मंदिर निर्माण के साथ कोर्ट ने मस्जिद बनाने के लिये भी 5 एकड़ जमीन देने का निर्णय दिया है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले का देश की बहुसंख्यक जनता ने स्वागत किया है. सुप्रीम कोर्ट में बाबरी मस्जिद पक्ष के वादी इकबाल अंसारी ने कहा ‘यह फैसला अहम मुददा था. कोर्ट ने जो फैसला दिया है उसका स्वागत है. वह हम स्वीकार करते है. अब सरकार पर निर्भर है कि वह हमें कहा जमीन देती है.’

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सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी कहते हैं कि सुन्नी बोर्ड इस फैसले से संतुष्ट नहीं है. यह फैसला विरोधाभासी है. इस पर पुर्नविचार करना चाहिए. हम कोर्ट के फैसले का पूरा अध्ययन करके अगला कदम उठायेगे.’ दूसरी तरफ हिन्दू महासभा ने फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने विविधता में एकता का संदेश दिया है. देश की जनता ने 5 जजों की संविधान पीठ प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, एसए बोबडे, डीवाई चन्द्रचूड, अशोक भूषण और एस अब्दुल नजीर के फैसले का स्वागत किया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते समय इस बात का खास ख्याल रखा कि इसका सार्थक संदेश जनता में जाये. जिससे देश में सौहार्द का वातावरण बना रहे.

देश में सौहार्द को वातावरण बना रहे इसके लिये प्रशासनिक स्तर पर हर जगह कड़े प्रबंध पहले से ही कर लिए गये थे. स्कूल, कालेज, शराब और असलहों तक की दुकानों को बंद कर दिया गया था. धारा 144 लागू करके जनता में यह संदेश दिया गया कि वह भीड़ का हिस्सा ना बने. मुकदमे के फैसले के पक्ष और विपक्ष दोनो के लोग सड़कों पर उतर कर माहौल ना खराब करें. उत्तर प्रदेश में अयोध्या सहित पूरे प्रदेश के जिलों में सुरक्षा के लिये मजबूत प्रबंध किये गए. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिये यह चुनौती भरा समय था. विपक्षी दलों ने भी पूरे मामले में संयम का परिचय दिया. जिससे राजनीतिक बयानबाजी को रोका गया.

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प्रदेश में हर तरफ चैकसी रखने के साथ ही साथ सोशल मीडिया को नियत्रित करना भी कठिन चुनौती थी. इसके लिये कल रात से पूरा प्रचार प्रसार शुरू हो गया था. सोशल मीडिया पर नजर रखने के लिये पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों की टीम का गठन कर लिया गया था. शनिवार को तमाम सरकारी विभागों में पहले से छुट्टी होती है. स्कूल कालेज बंद होने से सड़को पर सन्नाटा सुबह से ही परसा था. कल रात जैसे ही यह पता चला कि कल सुबह अयोध्या का फैसला आयेगा तमाम लोग कर्फ्यू जैसी आशंकाओं से घिर कर जरूरी सामान की खरीददारी करने लगे. ऐसे लोगों को सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुनकर राहत महसूस हो रही है.

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देश की अधिकतर जनता का मंदिर के मुकदमे से होई सरोकार नहीं था. उसकी रूचि इस बात में थी कि समाज में अमन और चैन बना रहे. देश के लोगों के सामने 1992 में ढांचा ढ़हाये जाने की घटना के बाद हुए खूनखराबे का खौफ था. अयोध्या के मुकदमें में सैकड़ों सालों में सैकड़ों लोगों की जान गई इसके बाद ऐसे सौहार्द पूर्ण फैसले ने देश में अमनचैन की राह दिख रही है. मंदिर के फैसले साथ मंदिर के नाम पर होने वाली राजनीति पर भी विराम लग सकता है. जिससे जनता भी अब अपने रोजीरोजगार के मुददों पर सोच सकेगी.

‘छोटी सरदरानी’: क्या परम सरबजीत से दूर हो जाएगा ?

कलर्स चैनल पर प्रसारित होने वाला सीरीयल “छोटी सरदारनी” में धमाकेदार ट्विस्ट एंड टर्न दर्शकों को देखने को मिल रहे हैं. जी हां, कहानी का एंगल परम की कस्टडी को लेकर चल रहा है. अगर परम की कस्टडी नीरजा को मिल जाती है तो  परम सरबजीत से दूर हो जाएगा. ये ट्रैक तो आने वाले एपिसोड में ही पता चलेगा. फिलहाल आपको इस शो के ट्विस्ट एंड टर्न के बारे में बताते हैं.

हाल ही में आपने देखा कि कुलवंत मेहर से मिलने आती है. वो मेहर से कहती है कि मैं अपने आप को यहां आने से रोक ही नहीं पाई. कुलवंत मेहर से बताती है कि बिट्टु की शादी तय हो गई है और वो मेहर से कहती है, आपको खुश होना चाहिए. मेहर को कुलवंत ये भी बताती है कि आज मैं एक सरदार से मिली थी, वह बिल्कुल तुम्हारी तरह दिख रहा था.

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कुलवंत नीरजा के पास जाती है और उसे मिठाई देती है. और वो परम को अपने पास बुलाती है. परम के पैर में चोट लगी होती है, कुलवंत उसे ठीक करती है. परम सरबजीत से कहता है, पापा अब मैं बिल्कुल ठीक हो गया हूं. मेहर ये सब देखकर खुश होती है. सरबजीत परम को गले लगाता है.

इस शो के अपकमिंग एपिसोड में ये देखना दिलचस्प होगा कि नीरजा को परम की कस्टडी मिलेगी या नहीं.

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‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’:  फिर टूटेगा कायरव का दिल, क्या करेगी नायरा ?

स्टार प्लस का लोकप्रिय शो ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में लगातार हाईवोल्टेज ड्रामा चल रहा है. आए दिन इस शो की कहानी में नए नए मोड़ आ रहे है. दर्शक इस शो को खूब पसंद कर रहे हैं. शो के ट्रैक में कार्तिक और कायरव के रिश्ते की कहानी दिखाया जा रहा है. पूरा गोयंका और सिंघानिया परिवार दोनो के रिश्ते सुधारने की पूरी तरह कोशिश कर रहे हैं.

हाल ही में आपने देखा कि नायरा ने बौस्केटबौल खेल का आयोजन किया था, जिससे कायरव खुश हो जाए. लेकिन कायरव तो अपने पापा कार्तिक से नाराज है क्योंकि कायरव को लगता है कि कार्तिक नायरा से हमेशा लड़ता है. कायरव ने तो औनलाइन पापा के लिए भी डिमांड कर दी है.

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इस शो के  एपिसोड में आपको धमाकेदार ट्विस्ट देखने को मिलेगा. जी हां कार्तिक अपने बेटे को खुश करने के लिए सरदार जौली सिंह के गेटअप में दिखेगा. दरअसल पुरुष और महिलाओं के बीच डांस प्रतियोगिता का आयोजन किया जाएगा, इसमें सारे सदस्य पंजाबी गेटअप में नजर आएंगे. तो वही कार्तिक सरदार जौली सिंह के गेटअप में दिखेगा. प्रतियोगिता में डांस के दौरान सरदार जौली सिंह यानी कार्तिक गिर जाएगा.

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तो उधर नायरा कार्तिक का नाम लेकर उसे तेजी से आवाज देगी. तभी कायरव सुन लेगा. और कायरव को पता चल जाएगा कि सरदार जौली सिंह कोई और नहीं बल्कि उसके पापा कार्तिक है. अब देखना ये दिलचस्प होगा कि सरदार जौली सिंह की सच्चाई जानने के बाद कायरव का क्या रिएक्शन होगा. फिर से कार्तिक नायरा कैसे मनाएंगे कायरव को.

सर्जिकल कैस्ट्रेशन : समाधान या नई समस्या

‘‘मेरे हाथ बंधे हुए हैं. मैं वही सजा सुना सकती हूं जिस का प्रावधान है. लेकिन मेरी चेतना मु झे यह कहने के लिए अनुमति देती है कि वक्त आ गया है कि देश के कानून बनाने वाले विद्वान बलात्कार की वैकल्पिक सजा के तौर पर रासायनिक या सर्जिकल बधियाकरण के बारे में सोचें जैसे कि  दुनिया के तमाम देशों में यह मौजूद है.’’

इतिहास अपनेआप को दोहराता है कम से कम सर्जिकल कैस्ट्रेशन जैसी सजा को ले कर तो यह बात 100 फीसदी सच है. राजधानी दिल्ली स्थित रोहिणी जिला अदालत की अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश कामिनी लौ ने 17 फरवरी, 2012 को यौन अपराध के एक मामले में 30 वर्षीय बलात्कारी नंदन को हालांकि उम्रकैद की सजा सुनाई और निर्देश दिया कि दोषी को सजा में कोई रियायत न दी जाए यानी उसे मरते दम तक जेल में रखा जाए, लेकिन कसक के साथ न्यायाधीश ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में सर्जिकल कैस्ट्रेशन की सजा होनी चाहिए. उन्होंने अपनी इच्छा जताते हुए यह भी जोड़ा कि हमारे यहां ऐसी सजा का प्रावधान नहीं है.

आश्चर्यजनक किंतु सत्य यह है कि जज महोदया ने इस के पहले भी ठीक इन्हीं शब्दों में सर्जिकल कैस्ट्रेशन की वकालत की थी. तब उन्होंने शब्दश: उस जुमले का इस्तेमाल किया था जिस जुमले का इस्तेमाल हम ने लेख के शुरू में किया है. सचमुच इस तरह की एकरूपता बहुत कम देखने को मिलती है खासतौर पर जब मामला इतना संवेदनशील हो. बहरहाल, एक 30 वर्षीय रिश्ते के मौसा द्वारा 6 साल की बच्ची के साथ बलात्कार किए जाने पर जज महोदया ने यह फैसला सुनाया. इस फैसले की पृष्ठभूमि में टाटा इंस्टिट्यूट औफ सोशल साइंसेज द्वारा कराए गए सर्वे के वे आंकड़े भी थे जो बताते हैं कि हिंदुस्तान की हर 3 में से 1 लड़की और हर 2 में से 1 लड़का परिजनों से ही यौनशोषण का शिकार है.

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सजाओं पर बहस

हमारे यहां कई ऐसे अपराध हैं जिन की सजाओं को ले कर रहरह कर समाज में बहस उठती रहती है कि सजा के पुराने प्रावधान को बदल दिया जाना चाहिए. इस में लंबे समय से बहस में रहने वाला एक मामला सजाएमौत को ले कर भी है. देश में एक बड़ा तबका अकसर यह बहस करता है कि देश में सजाएमौत का प्रावधान खत्म होना चाहिए जैसे कि दुनिया के कई उन्नत लोकतांत्रिक देशों में है. ऐसे देशों में फ्रांस और ब्रिटेन का उदाहरण दिया जाता है.

दूसरी तरफ लंबे अरसे से यह बहस भी देश में काफी शिद्दत से होती रही है कि बलात्कारियों को सजाएमौत देने की सिफारिश पूर्व गृहमंत्री और उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी भी करते रहे हैं.

मगर अभी तक इस मामले में रासायनिक या सर्जिकल बधियाकरण की मांग न तो महिला आयोग की तरफ से आई थी और न ही किसी राजनीतिक या सामाजिक संस्था या संगठन की तरफ से आई थी. इस मामले में खुद एक न्यायाधीश ने अपनी निजी राय प्रकट कर के देश को एक ज्वलंत मुद्दा दिया है कि इस पर सोचा जाना चाहिए कि बलात्कारी भविष्य में ऐसा न कर सकें, इस के लिए उन से उन का पौरुष छीन लिया जाना चाहिए. सुनने में यह एक भावनात्मक, आक्रोशपूर्ण और महिलाओं के प्रति सकारात्मक सोच लगती है, लेकिन क्या वास्तव में यह महिलाओं के हित में होगा? क्या कैमिकल या सर्जिकल कैस्ट्रेशन जैसे सख्त कानून बनने व उस के लागू होने के बाद बलात्कार की घटनाओं में कमी आएगी? क्या ऐसे कानून के खतरनाक दुरुपयोग किए जाने की आशंका नहीं है?

आमतौर पर कानून सिर्फ आक्रामक भावनाओं का प्रतिनिधित्व नहीं करते, बल्कि किसी स्थितिपरिस्थिति की बहुत गहराई से पड़ताल करते हैं. उस के व्यावहारिक नतीजों के अनुमानों पर माथापच्ची करते हैं. इस के बाद तय होता है कि यह समाज या उस व्यापक वर्ग, जिस की बेहतरी की जिम्मेदारी उस कानून में होती है, के लिए कितना फायदेमंद होगा?

सुनने में लगता है कि यह बहुत अच्छा कानून होगा. इस के भय से बलात्कारी महिलाओं को  मां, बहन, बेटी के रूप में देखने लगेंगे. लेकिन इस पूरी संभावना के विपरीत एक डरावनी आशंका का भी पहलू है.

कानूनों पर प्रतिक्रिया     

आमतौर पर कठोर कानूनों की प्रतिक्रिया डर के बजाय कई बार विद्रोह के रूप में होती है. कैमिकल या सर्जिकल कैस्ट्रेशन की कानूनन स्थिति में आशंका है कि कहीं ऐसी स्थितियां न पैदा हो जाएं कि बलात्कारी बजाय डरने के, बलात्कार करने के साथसाथ पीडि़ता की हत्या करने पर ही उतर आए.

जब बलात्कारी को सजाएमौत देने की बात होती है तो अकसर प्रबुद्ध वकीलों द्वारा यह तर्क दिया जाता है कि इस से हो सकता है कि कुछ, बहुत मामूली फर्क बलात्कार की घटनाओं पर तो पड़े लेकिन बलात्कारियों द्वारा बलात्कार पीडि़त महिला की हत्या किए जाने के मामले बहुत ज्यादा बढ़ जाएंगे. कारण यह है कि जब कानून इस की इजाजत देगा तो भला कौन बलात्कारी है जो अपने हाथ कानून के हाथों तक पहुंचने देगा. हर बलात्कारी यही सोचेगा, बलात्कार करने के बाद बेहतर है पीडि़त की हत्या कर दी जाए जिस से सजा के डर की आशंका ही खत्म हो जाए.

कुछ इसी तरह की आशंका देखी जाए तो इस प्रस्तावित कानून के साथ भी जुड़ती है. जब बलात्कारी को यह लगेगा कि उस के पकड़े जाने पर उसे हमेशाहमेशा के लिए पुरुषत्वविहीन किया जा सकता है तो वह घृणा, भय और वितृष्णा में पीडि़ता की जिंदगी लेना ज्यादा सीधा और सुविधाजनक सम झेगा.

नतीजतन, सिर्फ पीडि़तों की संख्या में ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा बल्कि उन की हत्याओं का एक भयंकर सिलसिला शुरू हो सकता है. इसलिए इस कानून के बारे में भावुकता से सोचने के पहले गहराई से उन्हीं के प्रति ईमानदारी व सहानुभूति से सोचना चाहिए जो आज भी पीडि़त हैं यानी महिलाएं.

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कुल मिला कर  कैस्ट्रेशन की सजा से लगता नहीं कि महिलाओं को कोई फायदा होगा, उलटे उन के लिए स्थितियां और भी डरावनी, भयानक व जटिल हो जाएंगी.

इस प्रस्तावित कानून के साथ एक जबरदस्त आशंका इस के दुरुपयोग की भी है. क्राइम रिकौर्ड्स ब्यूरो औफ इंडिया के एकत्रित आपराधिक आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि 95 फीसदी से ज्यादा बलात्कार जानपहचान के मित्र, पड़ोसी, रिश्तेदार और नजदीकी करते हैं. लेकिन उस से भी ज्यादा जटिल तथ्य यह है कि बलात्कार के जितने मामले दर्ज होते हैं उन में से 50 फीसदी तक मामले ऐसे होते हैं जिन के पीछे कहीं न कहीं सहमति का आधार होता है और किसी वजह से परिस्थितियां बदल जाने से सहमति के रिश्ते बलात्कार की श्रेणी में आ जाते हैं.

इन आंकड़ों के भीतर का आंकड़ा यह भी बताता है कि बड़े पैमाने पर ऐसे आंकड़े एक स्थिति के बाद जा कर बलात्कार का मामला बन गए जबकि पहले उन में एक सहमति का आधार था.

कहने का मतलब यह है कि ऐसी परिस्थितियों में इस प्रस्तावित कानून के दुरुपयोग की आशंका और ज्यादा बढ़ जाती है. सहमति के रिश्ते कब बलात्कार के टैग के नीचे आ जाएं, कहना कठिन होगा. फिर बात देखने वाली यह भी है कि भले ऐसे मामले बहुत कम होते हों जिन में बलात्कारी की भूमिका में महिलाएं होती हैं, फिर भी ऐसे कुछ मामले तो होते ही हैं जब पुरुष किसी मजबूरी या ब्लैकमेलिंग के तहत बलात्कार जैसी स्थिति का शिकार होता है.

सवाल है क्या ऐसे पुरुषों के लिए न्याय की कोई व्यवस्था वैसे ही बनाई जा सकेगी जैसी महिलाओं के लिए बनाए जाने का प्रस्ताव है?

पीडि़त महिलाएं ही

दोराय नहीं कि बलात्कार जैसे मामलों में महिलाओं के प्रति सकारात्मक और सहानुभूतिपूर्वक सोचे जाने की जरूरत है, क्योंकि आमतौर पर वे ही पीडि़त होती हैं. लेकिन, कोई ऐसा कानून बनाना खतरे से खाली नहीं होगा जिस के दुरुपयोग की जबरदस्त आशंकाएं मौजूद हों.

हालांकि दुनिया के कई देश इस तरह का कानून रखते हैं मगर देखने में यह कतई नहीं आया कि ऐसे कानून बना देने भर से बलात्कार जैसी यौनहिंसा के अपराध में किसी तरह की कोई कमी दिखी हो. इस समय दुनिया में जिन देशों में सर्जिकल और कैमिकल कैस्ट्रेशन की सजा का प्रावधान है उन में अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, पोलैंड और जरमनी जैसे विकसित देश भी शामिल हैं. अमेरिका में कुछ राज्यों में स्वेच्छा से कैमिकल कैस्ट्रेशन के लिए राजी होने वाले यौन अपराधियों को कम सजा दी जाती है. इसराईल ने भी बाल यौन उत्पीड़कों को ऐसी ही सजा देने का प्रावधान किया है.

कैलिफोर्निया, अमेरिका का वह अकेला राज्य है जिस ने अपने यहां कैस्ट्रेशन का प्रावधान लागू करने के लिए अपनी पारंपरिक दंड संहिता बदल डाली.

इस में भी दोराय नहीं कि महिलाओं के विरुद्ध बढ़ते यौन हिंसा अपराधों को रोकने के लिए कोई प्रशासनिक मनोवैज्ञानिक कड़ा कानून लाना ही होगा. लेकिन इस के पहले इस मामले में देशव्यापी बहस की जरूरत है ताकि यह सुनिश्चित हो कि ऐसे कानून से पीडि़तों की पीड़ा और नहीं बढ़ेगी तथा समाज में बर्बरता का युग नहीं लौटेगा.

लेकिन अगर कोई बिना इन तमाम मुद्दों पर विचारविमर्श किए, बिना एक राष्ट्रव्यापी जनचेतना विकसित किए हुए यह कानून परवान चढ़ाता है तो जाहिर है इस के कई खतरनाक नतीजे भी देखने को मिल सकते हैं. इन से बचने के लिए इस पर एक राष्ट्रव्यापी बहस की जरूरत है.

क्या है सर्जिकल कैस्ट्रेशन या बधियाकरण?

कैस्ट्रेशन या बधियाकरण की मानव इतिहास में मौजूदगी तब से है जब अभी व्यवस्थित ढंग से इतिहास को दर्ज करना भी शुरू नहीं किया गया था. कहने का मतलब यह कि इंसान को जब से याद है उस से पहले ही इस तरह की व्यवस्था विभिन्न कबीलाई समाजों में मौजूद थी. दुनिया के हर भौगोलिक और ऐतिहासिक क्षेत्र में, चाहे वह मध्यपूर्व रहा हो, यूरोप रहा हो, या अफ्रीका हर कोने में यह सजा के एक रूप में मौजूद रही है.

प्राचीनकाल में जब कोई सेना दूसरी सेना पर विजय हासिल कर लेती थी तो अपनी विजय को खौफनाक याद का रूप देने के लिए या कहें कि पराजितों में दहशत भरने के लिए सेना के तमाम सैनिकों का पौरुष छीन लिया जाता था. इतिहास में ऐसे तथ्य भी मौजूद हैं कि इन पुरुषों का पुरुषत्व छीन कर इन्हें महिलाओं की तरह हरम (रनिवास) में रखा जाता था. इन्हें हिजड़ा भी कहा जाता था और इस के बाद इन की दुनिया बदल जाती थी.

दरअसल, कैस्टे्रशन वह कार्यवाही है जिस के तहत किसी भी पुरुष का पुरुषत्व के कारक उस के टैस्टीकल्स या अंडकोश को नष्ट कर दिया जाता है. जब टैस्टीकल्स ही नहीं होंगे तो सैक्सुअल रसायनों का उत्पादन नहीं होगा और न तो दिलोदिमाग में और न ही शारीरिक गतिविधि के रूप में पुरुष सैक्स के लिए सक्षम रह पाएगा. इस तरह वह बलात्कार कर पाने में अक्षम हो जाएगा.

जहां तक सर्जिकल कैस्ट्रेशन की बात है तो इस में पुरुष के अंडकोश हमेशाहमेशा के लिए सर्जिकल ढंग से काट दिए जाते हैं यानी शरीर से इस हिस्से को ही खत्म कर दिया जाता है, लेकिन जब बात कैमिकल कैस्ट्रेशन की होती है तो इस के तहत इस तरह का शरीर में रासायनिक प्रभाव पैदा किया जाता है कि ऐसा व्यक्ति सैक्सुअल उत्थान और सैक्सुअल कल्पनाशीलता से हमेशाहमेशा के लिए वंचित हो जाता है. इस में रसायनों के जरिए टैस्टीकल्स को पूरी तरह नष्ट कर दिया जाता है.

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जहां तक कैस्ट्रेशन को एक सजा के रूप में इस्तेमाल किए जाने की बात है, तो इस के मूल में यह मकसद है कि इस प्रक्रिया के जरिए किसी व्यक्ति में सैक्स की क्षमता और उस में सैक्स की मानसिक चाहत को भी हर हालत में खत्म किया जाए. लेकिन इस तरह की कार्यवाहियां मानवाधिकारों के हनन की वजह भी बनती हैं.

अगर समाजशास्त्री नजरिए से देखें तो इस तरह की खौफनाक कार्यवाही के कुछ साइड इफैक्ट्स भी देखने में आते हैं. ऐसे समाज में जहां कड़ाई से कैस्ट्रेशन का कानून मौजूद है वहां देखा गया कि बलात्कार के पीडि़तों को अकसर अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ता है. सब से बड़ी बात यह है कि अगर वाकई यह कानून इतना ही प्रभावशाली होता तो उन तमाम देशों में बलात्कार जैसे अपराध हमेशाहमेशा के लिए खत्म हो गए होते जहां कैस्ट्रेशन की सजा का प्रावधान है.

इस सजा के कुछ अनदेखे मैडिकल पहलू भी हैं. मसलन, देखने में आया है कि जब किसी अपराधी को कैमिकल कैस्ट्रेशन की प्रक्रिया से गुजारा जाता है तो उस में खून के थक्के बनने की और गंभीर एलर्जिक रिऐक्शन की स्थितियां पैदा हो जाती हैं. कुछ लोग इस से बहुत ज्यादा मोटे हो जाते हैं और कुछ की इस कार्यवाही के बाद हड्डियां छोटी पड़ जाती हैं, उन में घनत्व कम हो जाता है और उन्हें कई तरह की कार्डियोवैस्कुलर व्याधियों व ओस्टियोपोरोसिस जैसी समस्याएं हो जाती हैं.

कैस्टे्रशन के बाद देखा गया कि तमाम पुरुष महिलाओं जैसा व्यवहार करने लगते हैं. उन के हावभाव बदल जाते हैं. उन की सिर्फ पुरुषत्व की क्षमता ही नहीं छीनी जाती, बल्कि उन के कुदरती पुरुषपन का स्वभाव भी खत्म हो जाता है. इस तरह यह सजा जिंदगीभर मानसिक और भावनात्मक रूप से भी घुटघुट कर मरने के लिए होती है. इसलिए बधियाकरण के बारे में सोचते हुए इस के सभी पहलुओं पर ध्यान रखना होगा.

एकमत नहीं वकील

सर्जिकल कैस्ट्रेशन क्या वास्तव में महिलाओं के विरुद्ध बढ़ते यौन अपराधों को रोकने का कोई कारगर विकल्प हो सकता है? इस सवाल पर समाज की व्यापक राय मिले, इस से पहले यह जान लेना जरूरी है कि वकीलों की भी इस संबंध में एक राय नहीं है.

नामी वकील मीनाक्षी लेखी सर्जिकल कैस्ट्रेशन जैसी सजा के बारे में एडिशनल सैशन जज कामिनी लौ से सहमत हैं. मीनाक्षी के मुताबिक, ‘सर्जिकल कैस्ट्रेशन के बारे में कोर्ट ने जो राय रखी है, उस के बारे में विचारविमर्श तो किया ही जाना चाहिए.’

साथ ही वे उन का यह मानना है कि हमें अपनी पारंपरिक सोच को बदलने की जरूरत है. आखिर उदारवादी देशों में भी इस तरह की सजा का प्रावधान है. तब फिर भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में इस तरह की सजा के बारे में क्यों नहीं सोचा जाना चाहिए?

मीनाक्षी लेखी का मानना है कि हमारे यहां सिर्फ आरोपी के मानवाधिकार के बारे में ही बातें होती हैं, पीडि़त के बारे में कोई कुछ नहीं सोचता. मगर मीनाक्षी लेखी के इन तर्कों से मशहूर क्रिमिनल लायर आर के आनंद कतई सहमत नहीं हैं. उन का मानना है, ‘‘भारत में इस तरह की बातें नहीं हो सकतीं. हमारे सिस्टम में मुजरिम को सुधारने की चिंता व कोशिश होती है. ऐसे में कैस्ट्रेशन जैसी सजा के बारे में नहीं सोचा जा सकता. क्योंकि इस से पीडि़ताओं के विरु द्ध अपराध के और अधिक उग्र होने की आशंका है.’’ आर के आनंद का इस संदर्भ में सु झाव है, ‘‘बच्चियों, बूढ़ी औरतों के साथ घिनौने तरीके से किए गए रेप के मामलों में सजा को और सख्त तो बनाया जा सकता है लेकिन कैस्ट्रेशन जैसी सजा बेमानी है. सजा गंभीर ही करनी है तो फांसी की सजा के बारे में सोचा जा सकता है. आखिर फिरौती व अपहरण के मामलों में यदि फांसी की सजा हो सकती है तो फिर रेप में क्यों नहीं हो सकती?’’

कुल मिला कर समाज के दूसरे तबकों की तरह ही कानून की जानकारी रखने वाले वकीलों का तबका भी कैस्ट्रेशन की सजा को ले कर एकमत नहीं है.

कायाकल्प : भाग 1

बेटे की शादी के कुछ महीने बाद ही सुमित्रा ने अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए. रोजरोज की कलह से परेशान बेटेबहू ने अलग घर ले लिया लेकिन 15 दिन के अंदर ही सुमित्रा को ऐसी खबर मिली जिस से उस के स्वभाव में अचानक परिवर्तन आ गया.

खिड़की से बाहर झांक रही सुमित्रा ने एक अनजान युवक को गेट के सामने मोटरसाइकिल रोकते देखा.

‘‘रवि, तू यहां क्या कर रहा है?’’ सामने के फ्लैट की बालकनी में खड़े अजय ने ऊंची आवाज में मोटर- साइकिल सवार से प्रश्न किया.

‘‘यार, एक बुरी खबर देने आया हूं.’’

‘‘क्या हुआ है?’’

‘‘शर्मा सर का ट्रक से एक्सीडेंट हुआ जिस में वह मर गए.’’

खिड़की में खड़ी सुमित्रा अपने पति राजेंद्र के बाजार से घर लौटने का ही इंतजार कर रही थीं. रवि के मुंह से यह सब सुन कर उन के दिमाग को जबरदस्त झटका लगा. विधवा हो जाने के एहसास से उन की चेतना को लकवा मार गया और वह धड़ाम से फर्श पर गिरीं और बेहोश हो गईं.

छोटे बेटे समीर और बेटी रितु के प्रयासों से कुछ देर बाद जब सुमित्रा को होश आया तो उन दोनों की आंखों से बहते आंसुओं को देख कर उन के मन की पीड़ा लौट आई और वह अपनी बेटी से लिपट कर जोर से रोने लगीं.

उसी समय राजेंद्रजी ने कमरे में प्रवेश किया. पति को सहीसलामत देख कर सुमित्रा ने मन ही मन तीव्र खुशी व हैरानी के मिलेजुले भाव महसूस किए. फिर पति को सवालिया नजरों से देखने लगीं.

‘‘सुमित्रा, हम लुट गए. कंगाल हो गए. आज संजीव…’’ और इतना कह पत्नी के कंधे पर हाथ रख वह किसी छोटे बच्चे की तरह बिलखने लगे थे.

सुमित्रा की समझ में आ गया कि रवि उन के बड़े बेटे संजीव की दुर्घटना में असामयिक मौत की खबर लाया था. इस नए सदमे ने उन्हें गूंगा बना दिया. वह न रोईं और न ही कुछ बोल पाईं. इस मानसिक आघात ने उन के सोचनेसमझने की शक्ति पूरी तरह से छीन ली थी.

करीब 15 दिन पहले ही संजीव अपनी पत्नी रीना और 3 साल की बेटी पल्लवी के साथ अलग किराए के मकान में रहने चला गया था.

पड़ोसी कपूर साहब, रीना व पल्लवी को अपनी कार से ले आए. कुछ दूसरे पड़ोसी, राजेंद्रजी और समीर के साथ उस अस्पताल में गए जहां संजीव की मौत हुई थी.

अपनी बहू रीना से गले लग कर रोते हुए सुमित्रा बारबार एक ही बात कह रही थीं, ‘‘मैं तुम दोनों को घर से जाने को मजबूर न करती तो आज मेरे संजीव के साथ यह हादसा न होता.’’

इस अपराधबोध ने सुमित्रा को तेरहवीं तक गहरी उदासी का शिकार बनाए रखा. इस कारण वह सांत्वना देने आ रहे लोगों से न ठीक से बोल पातीं, न ही अपनी गृहस्थी की जिम्मेदारियों का उन्हें कोई ध्यान आता.

ज्यादातर वह अपनी विधवा बहू का मुर्झाया चेहरा निहारते हुए मौन आंसू बहाने लगतीं. कभीकभी पल्लवी को छाती से लगा कर खूब प्यार करतीं, पर आंसू तब भी उन की पलकों को भिगोए रखते.

तेरहवीं के अगले दिन वर्षों की बीमार नजर आ रही सुमित्रा क्रियाशील हो उठीं. सब से पहले समीर और उस के दोस्तों की मदद से टैंपू में भर कर संजीव का सारा सामान किराए के मकान से वापस मंगवा लिया.

उसी दिन शाम को सुमित्रा के निमंत्रण पर रीना के मातापिता और भैयाभाभी उन के घर आए.

सुमित्रा ने सब को संबोधित कर गंभीर लहजे में कहा, ‘‘पहले मेरी और रीना की बनती नहीं थी पर अब आप सब लोग निश्ंिचत रहें. हमारे बीच किसी भी तरह का टकराव अब आप लोगों को देखनेसुनने में नहीं आएगा.’’

‘‘आंटी, मेरी छोटी बहन पर दुख का भारी पहाड़ टूटा है. अपनी बहन और भांजी की कैसी भी सहायता करने से मैं कभी पीछे नहीं हटूंगा,’’ रीना के भाई रोहित ने भावुक हो कर अपने दिल की इच्छा जाहिर की.

‘‘आप सब को बुरा न लगे तो रीना और पल्लवी हमारे साथ भी आ कर रह सकती हैं,’’ रीना के पिता कौशिक साहब ने हिचकते हुए अपना प्रस्ताव रखा.

सुमित्रा उन की बातें खामोश हो कर सुनती रहीं. वह रीना के मायके वालों की आंखों में छाए चिंता के भावों को आसानी से पढ़ सकती थीं.

रीना के साथ पिछले 6 महीनों में सुमित्रा के संबंध बहुत ज्यादा बिगड़ गए थे. समीर की शादी करीब 3 महीने बाद होने वाली थी. नई बहू के आने की बात को देखते हुए सुमित्रा ने रीना को और ज्यादा दबा कर रखने के प्रयास तेज कर दिए थे.

‘इस घर में रहना है तो जो मैं चाहती हूं वही करना होगा, नहीं तो अलग हो जाओ,’ रोजरोज की उन की ऐसी धमकियों से तंग आ कर संजीव और रीना ने अलग मकान लिया था.

उन की बेटी सास के हाथों अब तो और भी दुख पाएगी, रीना के मातापिता के मन के इस डर को सुमित्रा भली प्रकार समझ रही थीं.

उन के इस डर को दूर करने के लिए ही सुमित्रा ने अपनी खामोशी को तोड़ते हुए भावुक लहजे में कहा, ‘‘मेरा बेटा हमें छोड़ कर चला गया है, तो अब अपनी बहू को मैं बेटी बना कर रखूंगी. मैं ने मन ही मन कुछ फैसला लिया है जिन्हें पहली बार मैं आप सभी के सामने उजागर करूंगी.’’

आंखों से बह आए आंसुओं को पोंछती हुई सुमित्रा सब की आंखों का केंद्र बन गईं. राजेंद्रजी, समीर और रितु के हावभाव से यह साफ पता लग रहा था कि जो सुमित्रा कहने जा रही थीं, उस का अंदाजा उन्हें भी न था.

‘‘समीर की शादी होने से पहले ही रीना के लिए हम छत पर 2 कमरों का सेट तैयार करवाएंगे ताकि वह देवरानी के आने से पहले या बाद में जब चाहे अपनी रसोई अलग कर ले. इस के लिए रीना आजाद रहेगी.

‘‘अतीत में मैं ने रीना के नौकरी करने का सदा विरोध किया, पर अब मैं चाहती हूं कि वह आत्मनिर्भर बने. मेरी दिली इच्छा है कि वह बी.एड. का फार्म भरे और अपनी काबिलीयत बढ़ाए.

‘‘आप सब के सामने मैं रीना से कहती हूं कि अब से वह मुझे अपनी मां समझे. जीवन की कठिन राहों पर मजबूत कदमों से आगे बढ़ने के लिए उसे मेरा सहयोग, सहारा और आशीर्वाद सदा उपलब्ध रहेगा.’’

सुमित्रा के स्वभाव में आया बदलाव सब को हैरान कर गया. उन के मुंह से निकले शब्दों में छिपी भावुकता व ईमानदारी सभी के दिलों को छू कर उन की पलकें नम कर गईं. एक तेजतर्रार, झगड़ालू व घमंडी स्त्री का इस कदर कायाकल्प हो जाना सभी को अविश्वसनीय लग रहा था.

रीना अचानक अपनी जगह से उठी और सुमित्रा के पास आ बैठी. सास ने बांहें फैलाईं और बहू उन की छाती से लग कर सुबकने लगी.

कमरे का माहौल बड़ा भावुक और संजीदा हो गया. रीना के मातापिता व भैयाभाभी के पास अब रीना व पल्लवी के हितों पर चर्चा करने के लिए कोई कारण नहीं बचा.

क्या सुमित्रा का सचमुच कायाकल्प हुआ है? इस सवाल को अपने दिलों में समेटे सभी लोग कुछ देर बाद विदा ले कर अपनेअपने घर चले गए.

एक डौक्‍टर जो भिखारियों का करता है मुफ्त इलाज

महाराष्ट्र के पुणे के ये  डौक्टर हैं, उनका नाम अभिजीत सोनवाने है. डौक्टर अभिजीत सड़क के किनारे बैठे भिखारियों का मुफ्त में जांच करके उपचार करते हैं. उनका मानना है कि इन लोगों में कई ऐसे भी होते हैं जिनके परिवार वालों ने उनकी जिम्‍मेदारी से उठाने से अपना हाथ खींच लिया है.

ऐसे लोगों का इलाज करने के लिए वो उनकी जांच करते हैं और मुफ्त दवाएं भी देते हैं. वे अपने साथ दवाएं भी लेकर निकलते हैं. वे घूम घूम कर ऐसे लोगों का इलाज करते हैं.डौक्टर अभिजीत का काम यहीं खत्‍म नहीं होता बल्‍कि वे भीख मांगने को मजबूर इन बेसहारा लोगों के साथ बातचीत करते हैं और उनके एक रिश्ता कायम कर लेते हैं.

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इसके बाद जब वे पूरी तरह ठीक हो जाते हैं तो उन्हें समझाते हैं और बताते हैं कि भीख मांगना कोई अच्‍छी बात नहीं है.  ये काम छोड़ कर अपना कोई छोटा-मोटा काम करें. इस कोशिश में लगे लोगों की वो आर्थिक या अन्‍य प्रकार की मदद के लिए भी मौजूद रहते हैं. डौक्टर अभिजीत का कहना है कि ऐसा करके उन्हें खुशी मिलती है.

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मां : भाग 1

रात के 10 बजे थे. सुमनलता पत्रकारों के साथ मीटिंग में व्यस्त थीं. तभी फोन की घंटी बज उठी…

‘‘मम्मीजी, पिंकू केक काटने के लिए कब से आप का इंतजार कर रहा है.’’

बहू दीप्ति का फोन था.

‘‘दीप्ति, ऐसा करो…तुम पिंकू से मेरी बात करा दो.’’

‘‘जी अच्छा,’’ उधर से आवाज सुनाई दी.

‘‘हैलो,’’ स्वर को थोड़ा धीमा रखते हुए सुमनलता बोलीं, ‘‘पिंकू बेटे, मैं अभी यहां व्यस्त हूं. तुम्हारे सारे दोस्त तो आ गए होंगे. तुम केक काट लो. कल का पूरा दिन तुम्हारे नाम है…अच्छे बच्चे जिद नहीं करते. अच्छा, हैप्पी बर्थ डे, खूब खुश रहो,’’ अपने पोते को बहलाते हुए सुमनलता ने फोन रख दिया.

दोनों पत्रकार ध्यान से उन की बातें सुन रहे थे.

‘‘बड़ा कठिन दायित्व है आप का. यहां ‘मानसायन’ की सारी जिम्मेदारी संभालें तो घर छूटता है…’’

‘‘और घर संभालें तो आफिस,’’ अखिलेश की बात दूसरे पत्रकार रमेश ने पूरी की.

‘‘हां, पर आप लोग कहां मेरी परेशानियां समझ पा रहे हैं. चलिए, पहले चाय पीजिए…’’ सुमनलता ने हंस कर कहा था.

नौकरानी जमुना तब तक चाय की ट्रे रख गई थी.

‘‘अब तो आप लोग समझ गए होंगे कि कल रात को उन दोनों बुजुर्गों को क्यों मैं ने यहां वृद्धाश्रम में रहने से मना किया था. मैं ने उन से सिर्फ यही कहा था कि बाबा, यहां हौल में बीड़ी पीने की मनाही है, क्योंकि दूसरे कई वृद्ध अस्थमा के रोगी हैं, उन्हें परेशानी होती है. अगर आप को  इतनी ही तलब है तो बाहर जा कर पिएं. बस, इसी बात पर वे दोनों यहां से चल दिए और आप लोगों से पता नहीं क्या कहा कि आप के अखबार ने छाप दिया कि आधी रात को कड़कती सर्दी में 2 वृद्धों को ‘मानसायन’ से बाहर निकाल दिया गया.’’

‘‘नहीं, नहीं…अब हम आप की परेशानी समझ गए हैं,’’ अखिलेशजी यह कहते हुए उठ खडे़ हुए.

‘‘मैडम, अब आप भी घर जाइए, घर पर आप का इंतजार हो रहा है,’’ राकेश ने कहा.

सुमनलता उठ खड़ी हुईं और जमुना से बोलीं, ‘‘ये फाइलें अब मैं कल देखूंगी, इन्हें अलमारी में रखवा देना और हां, ड्राइवर से गाड़ी निकालने को कहना…’’

तभी चौकीदार ने दरवाजा खटखटाया था.

‘‘मम्मीजी, बाहर गेट पर कोई औरत आप से मिलने को खड़ी है…’’

‘‘जमुना, देख तो कौन है,’’ यह कहते हुए सुमनलता बाहर जाने को निकलीं.

गेट पर कोई 24-25 साल की युवती खड़ी थी. मलिन कपडे़ और बिखरे बालों से उस की गरीबी झांक रही थी. उस के साथ एक ढाई साल की बच्ची थी, जिस का हाथ उस ने थाम रखा था और दूसरा छोटा बच्चा गोदी में था.

सुमनलता को देखते ही वह औरत रोती हुई बोली, ‘‘मम्मीजी, मैं गुड्डी हूं, गरीब और बेसहारा, मेरी खुद की रोटी का जुगाड़ नहीं तो बच्चों को क्या खिलाऊं. दया कर के आप इन दोनों बच्चों को अपने आश्रम में रख लो मम्मीजी, इतना रहम कर दो मुझ पर.’’

बच्चों को थामे ही गुड्डी, सुमनलता के पैर पकड़ने के लिए आगे बढ़ी थी तो यह कहते हुए सुमनलता ने उसे रोका, ‘‘अरे, क्या कर रही है, बच्चों को संभाल, गिर जाएंगे…’’

‘‘मम्मीजी, इन बच्चों का बाप तो चोरी के आरोप में जेल में है, घर में अब दानापानी का जुगाड़ नहीं, मैं अबला औरत…’’

उस की बात बीच में काटते हुए सुमनलता बोलीं, ‘‘कोई अबला नहीं हो तुम, काम कर सकती हो, मेहनत करो, बच्चोें को पालो…समझीं…’’ और सुमनलता बाहर जाने के लिए आगे बढ़ी थीं.

‘‘नहीं…नहीं, मम्मीजी, आप रहम कर देंगी तो कई जिंदगियां संवर जाएंगी, आप इन बच्चों को रख लो, एक ट्रक ड्राइवर मुझ से शादी करने को तैयार है, पर बच्चों को नहीं रखना चाहता.’’

‘‘कैसी मां है तू…अपने सुख की खातिर बच्चों को छोड़ रही है,’’ सुमनलता हैरान हो कर बोलीं.

‘‘नहीं, मम्मीजी, अपने सुख की खातिर नहीं, इन बच्चों के भविष्य की खातिर मैं इन्हें यहां छोड़ रही हूं. आप के पास पढ़लिख जाएंगे, नहीं तो अपने बाप की तरह चोरीचकारी करेंगे. मुझ अबला की अगर उस ड्राइवर से शादी हो गई तो मैं इज्जत के साथ किसी के घर में महफूज रहूंगी…मम्मीजी, आप तो खुद औरत हैं, औरत का दर्द जानती हैं…’’ इतना कह गुड्डी जोरजोर से रोने लगी थी.

‘‘क्यों नाटक किए जा रही है, जाने दे मम्मीजी को, देर हो रही है…’’ जमुना ने आगे बढ़ कर उसे फटकार लगाई.

‘‘ऐसा कर, बच्चों के साथ तू भी यहां रह ले. तुझे भी काम मिल जाएगा और बच्चे भी पल जाएंगे,’’ सुमनलता ने कहा.

‘‘मैं कहां आप लोगों पर बोझ बन कर रहूं, मम्मीजी. काम भी जानती नहीं और मुझ अकेली का क्या, कहीं भी दो रोटी का जुगाड़ हो जाएगा. अब आप तो इन बच्चों का भविष्य बना दो.’’

‘‘अच्छा, तो तू उस ट्रक ड्राइवर से शादी करने के लिए अपने बच्चों से पीछा छुड़ाना चाह रही है,’’ सुमनलता की आवाज तेज हो गई, ‘‘देख, या तो तू इन बच्चोें के साथ यहां पर रह, तुझे मैं नौकरी दे दूंगी या बच्चों को छोड़ जा पर शर्त यह है कि तू फिर कभी इन बच्चों से मिलने नहीं आएगी.’’

सुमनलता ने सोचा कि यह शर्त एक मां कभी नहीं मानेगी पर आशा के विपरीत गुड्डी बोली, ‘‘ठीक है, मम्मीजी, आप की शरण में हैं तो मुझे क्या फिक्र, आप ने तो मुझ पर एहसान कर दिया…’’

आंसू पोंछती हुई वह जमुना को दोनों बच्चे थमा कर तेजी से अंधेरे में विलीन हो गई थी.

‘‘अब मैं कैसे संभालूं इतने छोटे बच्चों को,’’ हैरान जमुना बोली.

गोदी का बच्चा तो अब जोरजोर से रोने लगा था और बच्ची कोने में सहमी खड़ी थी.

कुछ देर सोच में पड़ी रहीं सुमनलता फिर बोलीं, ‘‘देखो, ऐसा है, अंदर थोड़ा दूध होगा. छोटे बच्चे को दूध पिला कर पालने में सुला देना. बच्ची को भी कुछ खिलापिला देना. बाकी सुबह आ कर देखूंगी.’’

‘‘ठीक है, मम्मीजी,’’ कह कर जमुना बच्चों को ले कर अंदर चली गई. सुमनलता बाहर खड़ी गाड़ी में बैठ गईं. उन के मन में एक अजीब अंतर्द्वंद्व शुरू हो गया कि क्या ऐसी भी मां होती है जो जानबूझ कर दूध पीते बच्चों को छोड़ गई.

‘‘अरे, इतनी देर कैसे लग गई, पता है तुम्हारा इंतजार करतेकरते पिंकू सो भी गया,’’ कहते हुए पति सुबोध ने दरवाजा खोला था.

‘‘हां, पता है पर क्या करूं, कभीकभी काम ही ऐसा आ जाता है कि मजबूर हो जाती हूं.’’

तब तक बहू दीप्ति भी अंदर से उठ कर आ गई.

‘‘मां, खाना लगा दूं.’’

‘‘नहीं, तुम भी आराम करो, मैं कुछ थोड़ाबहुत खुद ही निकाल कर खा लूंगी.’’

ड्राइंगरूम में गुब्बारे, खिलौने सब बिखरे पडे़ थे. उन्हें देख कर सुमनलता का मन भर आया कि पोते ने उन का कितना इंतजार किया होगा.

सुमनलता ने थोड़ाबहुत खाया पर मन का अंतर्द्वंद्व अभी भी खत्म नहीं हुआ था, इसलिए उन्हें देर रात तक नींद नहीं आई थी.

सुमनलता बारबार गुड्डी के ही व्यवहार के बारे में सोच रही थीं जिस ने मन को झकझोर दिया था.

मां की ममता…मां का त्याग आदि कितने ही नाम से जानी जाती है मां…पर क्या यह सब झूठ है? क्या एक स्वार्थ की खातिर मां कहलाना भी छोड़ देती है मां…शायद….

सुबोध को तो सुबह ही कहीं जाना था सो उठते ही जाने की तैयारी में लग गए.

पिंकू अभी भी अपनी दादी से नाराज था. सुमनलता ने अपने हाथ से उसे मिठाई खिला कर प्रसन्न किया, फिर मनपसंद खिलौना दिलाने का वादा भी किया. पिंकू अपने जन्मदिन की पार्टी की बातें करता रहा था.

दोपहर 12 बजे वह आश्रम गईं, तो आते ही सारे कमरों का मुआयना शुरू कर दिया.

शिशु गृह में छोटे बच्चे थे, उन के लिए 2 आया नियुक्त थीं. एक दिन में रहती थी तो दूसरी रात में. पर कल रात तो जमुना भी रुकी थी. उस ने दोनों बच्चों को नहलाधुला कर साफ कपडे़ पहना दिए थे. छोटा पालने में सो रहा था और जमुना बच्ची के बालों में कंघी कर रही थी.

‘‘मम्मीजी, मैं ने इन दोनों बच्चों के नाम भी रख दिए हैं. इस छोटे बच्चे का नाम रघु और बच्ची का नाम राधा…हैं न दोनों प्यारे नाम,’’ जमुना ने अब तक अपना अपनत्व भी उन बच्चों पर उडे़ल दिया था.

सुमनलता ने अब बच्चों को ध्यान से देखा. सचमुच दोनों बच्चे गोरे और सुंदर थे. बच्ची की आंखें नीली और बाल भूरे थे.

अब तक दूसरे छोटे बच्चे भी मम्मीजीमम्मीजी कहते हुए सुमनलता के इर्दगिर्द जमा हो गए थे.

सब बच्चों के लिए आज वह पिंकू के जन्मदिन की टाफियां लाई थीं, वही थमा दीं. फिर आगे जहां कुछ बडे़ बच्चे थे उन के कमरे में जा कर उन की पढ़ाईलिखाई व पुस्तकों की बाबत बात की.

इस तरह आश्रम में आते ही बस, कामों का अंबार लगना शुरू हो जाता था. कार्यों के प्रति सुमनलता के उत्साह और लगन के कारण ही आश्रम के काम सुचारु रूप से चल रहे थे.

3 माह बाद एक दिन चौकीदार ने आ कर खबर दी, ‘‘मम्मीजी, वह औरत जो उस रात बच्चों को छोड़ गई थी, आई है और आप से मिलना चाहती है.’’

‘‘कौन, वह गुड्डी? अब क्या करने आई है? ठीक है, भेज दो.’’

मेज की फाइलें एक ओर सरका कर सुमनलता ने अखबार उठाया.

मौजमौज के खेल में हत्या

  लेखक:  रविंद्र शिवाजी दुपारगुडे    

मुंबई से सटे कल्याण तहसील के गांव राया के पुलिस चौकीदार किरण जाधव को किसी ने बताया कि गांव के बाहर नाले के किनारे बोरी में किसी की लाश पड़ी है. चूंकि किरण जाधव गांव में पुलिस की तरफ से चौकीदार था, इसलिए वह इस खबर को सुनते ही मौके पर पहुंच गया.

उसे जो सूचना दी गई थी, वह बिलकुल सही थी. इसलिए चौकीदार ने फोन कर के यह खबर टिटवाला थाने में दे दी. यह बात 23 जून, 2019 की है. थानाप्रभारी इंसपेक्टर बालाजी पांढरे को पता चला तो वह एसआई कमलाकर मुंडे और अन्य स्टाफ के साथ मौके पर पहुंच गए.

थानाप्रभारी जब मौके पर पहुंचे तो उन्हें वहां एक युवती की अधजली लाश मिली, जो एक बोरी में थी. बोरी और लाश दोनों ही अधजली हालत में थीं. मृतका की उम्र यही कोई 25-30 साल थी. लाश झुलसी हुई थी. उस की कमर पर काले धागे में पीले रंग का ताबीज बंधा था. जिस बोरी में वह लाश थी, उस में मुर्गियों के कुछ पंख चिपके मिले.

थानाप्रभारी ने यह खबर अपने अधिकारियों को दे दी. कुछ ही देर में फोरैंसिक टीम के साथ एसडीपीओ आर.आर. गायकवाड़ और क्राइम ब्रांच के सीनियर इंसपेक्टर व्यंकट आंधले भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

तब तक वहां तमाम लोग जमा हो चुके थे. पुलिस अधिकारियों ने उन सभी से लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश की लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान सका. फोरैंसिक टीम का जांच का काम निपट जाने के बाद थानाप्रभारी ने लाश मोर्चरी में सुरक्षित रखवा दी और अज्ञात के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कर लिया.

इस ब्लाइंड मर्डर केस को सुलझाने के लिए ठाणे (देहात) के एसपी डा. शिवाजी राठौड़ ने 2 पुलिस टीमें बनाईं. पहली टीम का गठन एसडीपीओ आर.आर. गायकवाड़ के नेतृत्व में किया. इस टीम में थानाप्रभारी बालाजी पांढरे, एसआई कमलाकर मुंडे, जितेंद्र अहिरराव, हवलदार अनिल सातपुते, दर्शन साल्वे, सचिन गायकवाड़ और तुषार पाटील आदि को शामिल किया गया.

दूसरी टीम क्राइम ब्रांच के सीनियर इंसपेक्टर व्यंकट आंधले के नेतृत्व में बनाई गई. इस टीम में एपीआई प्रमोद गढ़ाख, एसआई अभिजीत टेलर, बजरंग राजपूत, हेडकांस्टेबल अविनाश गर्जे, सचिन सावंत आदि थे. दोनों टीमों का निर्देशन एडिशनल एसपी संजय कुमार पाटील कर रहे थे.

मृतका के गले में जो ताबीज था, पुलिस ने उस की जांच की तो उस पर बांग्ला भाषा में कुछ लिखा नजर आया. उस से यह अंदाजा लगाया गया कि युवती शायद पश्चिम बंगाल की रही होगी. जिस बोरी में शव मिला था, उस बोरी में मुर्गियों के पंख थे, जिस का मतलब यह था कि बोरी किसी चिकन की दुकान से लाई गई होगी.

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पुलिस टीमों ने इन्हीं दोनों बिंदुओं पर जांच शुरू की. पुलिस ने टिटवाला में चिकन की दुकान चलाने वालों को अज्ञात युवती की लाश के फोटो दिखाए तो पुलिस को सफलता मिल गई. एक दुकानदार ने फोटो पहचानते हुए बताया कि वह टिटवाला के खड़वली इलाके में रहने वाली मोनी है, जो अकसर बनेली के चिकन विक्रेता आलम शेख उर्फ जाने आलम के यहां आतीजाती थी.

पुलिस टीम आलम शेख की चिकन की दुकान पर पहुंच गई. लेकिन आलम दुकान पर नहीं था. पुलिस ने उस के नौकर से पूछा तो उस ने बताया कि आलम शेख पश्चिम बंगाल स्थित अपने घर गया है. पुलिस ने आलम की दुकान की जांच की. इस के बाद पुलिस खड़वली इलाके में उस जगह पहुंची, जहां मोनी रहती थी. वहां के लोगों से बात कर के पुलिस को जानकारी मिली कि मोनी और आलम शेख के बीच नाजायज संबंध थे.

अवैध संबंधों और आलम शेख के दुकान से फरार होने से पुलिस समझ गई कि मोनी की हत्या में आलम शेख का ही हाथ होगा. पुलिस ने किसी तरह से आलम शेख का पश्चिम बंगाल का पता हासिल कर लिया. वह पश्चिम बंगाल के जिला वीरभूम के गांव सदईपुर का रहने वाला था.

एडिशनल एसपी संजय कुमार पाटील ने एक पुलिस टीम बंगाल के सदईपुर भेज दी. वहां जा कर टिटवाला पुलिस ने स्थानीय पुलिस की मदद से आलम शेख को हिरासत में ले लिया.

आलम शेख को स्थानीय न्यायालय में पेश कर पुलिस ने उस का ट्रांजिट रिमांड ले लिया और थाना टिटवाला लौट आई. पुलिस ने आलम शेख से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने मोनी के कत्ल की बात स्वीकार कर ली. उस से पूछताछ के बाद मोनी की हत्या की  कहानी इस प्रकार निकली—

मूलरूप से पश्चिम बंगाल के जिला वीरभूम के गांव सदईपुर का रहने वाला 33 वर्षीय आलम शेख उर्फ जाने आलम टिटवाला क्षेत्र में चिकन की दुकान चलाता था. करीब 4-5 महीने पहले उस की मुलाकात खड़वली क्षेत्र की रहने वाली मोनी से हुई.

मोनी आलम की दुकान पर चिकन लेने गई थी. पहली मुलाकात में ही आलम उस का दीवाना हो गया. उसी दिन बातचीत के दौरान आलम ने मोनी से उस का मोबाइल नंबर भी ले लिया.

इस के बाद मोनी अकसर उस की दुकान से चिकन लेने जाने लगी. नजदीकियां बढ़ाने के लिए आलम ने उस से चिकन के पैसे लेने भी बंद कर दिए. धीरेधीरे दोनों के संबंध गहराते गए और फिर जल्दी ही उन के बीच शारीरिक संबंध बन गए.

कुछ दिनों बाद आलम शेख ने मोनी को खड़वली क्षेत्र में ही किराए का एक मकान भी ले कर दे दिया, जिस में मोनी अकेली रहने लगी. उस के अकेली रहने की वजह से आलम की तो जैसे मौज ही आ गई. जब उस का मन होता, मोनी के पास चला जाता और मौजमस्ती कर दुकान पर लौट आता.

उन के संबंधों की खबर मोहल्ले के तमाम लोगों को हो चुकी थी. आलम मोनी को आर्थिक रूप से भी सहयोग करता था. धीरेधीरे मोनी की आलम से पैसे मांगने की आदत बढ़ती गई. वह उस से ढाई लाख रुपए ऐंठ चुकी थी.

इतने पैसे ऐंठने के बाद भी वह उसे ब्लैकमेल करने लगी. वह आलम को धमकी देने लगी कि अगर उस ने बात नहीं मानी तो वह उस के खिलाफ बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज करा देगी. मोनी की धमकी से आलम परेशान रहने लगा.

अंत में आलम शेख ने मोनी को रास्ते से हटाने की ठान ली. एक दिन आलम ने अपनी इस पीड़ा के बारे में अपने दोस्त मनोरुद्दीन शेख को बताया और साथ ही मोनी की हत्या करने में उस से मदद मांगी. मनोरुद्दीन ने आलम को हर तरह का सहयोग देने की हामी भर दी. इस के बाद दोनों ने मोनी का काम तमाम करने की योजना बनाई.

योजना के अनुसार 22 जून, 2019 की रात को आलम शेख गले में अंगौछा बांध कर दुकान पर पहुंचा और वहां से एक खाली बोरी ले कर मोनी के घर पहुंच गया. उस वक्त मोनी सोई हुई थी. आलम ने आवाज दे कर दरवाजा खुलवाया. इस के बाद दोनों बैठ कर इधरउधर की बातें करने लगे. उसे अपनी बातों में उलझा कर आलम मौका देख रहा था. फिर मौका मिलते ही उस ने अंगौछा मोनी के गले में डाल कर पूरी ताकत से खींचना शुरू कर दिया.

मोनी ज्यादा विरोध नहीं कर सकी. कुछ देर बाद जब उस की सांसें बंद हो गईं तब आलम ने मोनी के गले का अंगौछा ढीला किया. इस के बाद आलम ने अपने दोस्त मनोरुद्दीन शेख को भी वहां बुला लिया.

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दोनों ने साथ में लाई बोरी में शव डाला. फिर आलम शेख और मनोरुद्दीन उस बोरी को मोटरसाइकिल से ले कर निकल पड़े. रास्ते में उन्होंने एक पैट्रोलपंप से एक डिब्बे में पैट्रोल भी लिया. फिर उन्होंने शव को राया गांव के पास एक नाले के किनारे डाल दिया और पैट्रोल डाल कर जलाने की कोशिश की. पर शव झुलस कर रह गया. लाश ठिकाने लगाने के बाद दोनों वहां से चंपत हो गए.

आलम शेख उर्फ जानेआलम से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस के दोस्त मनोरुद्दीन शेख को भी गिरफ्तार कर लिया. दोनों को भादंवि की धारा 302, 201 के तहत गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया.

कथा लिखने तक दोनों आरोपियों की जमानत नहीं हो सकी थी. मामले की जांच इंसपेक्टर बालाजी पांढरे कर रहे थे.

कहीं आपको कैल्शियम की कमी तो नहीं

आमतौर पर तीस की उम्र के बाद महिलाओं के शरीर में कैल्शियम कम होने लगता है. जिसके चलते उन्हें अनेक बीमारियों का सामना करना पड़ता है. इसमें हड्डियों की कमजोरी, थकान और हड्डियों का भुरभुराना मुख्य है. हड्डियों के टूटने-भुरभुराने को औस्टियोपोरोसिस कहते हैं. औस्टिओपोरोसिस ऐसी बीमारी है, जिसमें हड्डियों का घनत्व (डेंसिटी) कम हो जाता है. हड्डियां इतनी कमजोर और भंगुर हो जाती हैं कि गिरने, झुकने या छींकने-खांसने पर भी हड्डियों में फ्रैक्चर होने का खतरा रहता है. कैल्शियम को आमतौर पर हड्डियों की हेल्थ से ही जोड़ा जाता है. लेकिन क्या कैल्शियम की जरूरत सिर्फ आपकी हड्डियों के लिए ही होती है?

हमारे शरीर में करीब 90% कैल्शियम हड्डियों और दांतों में पाया जाता है. पर कैल्शियम हमारी एक-एक कोशिका के लिए जरूरी है, खासकर हमारे तंत्रिका तंत्र, खून, मसल्स और हार्ट के लिए ये बेहद जरूरी है. इसकी अहमियत का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि कैल्शियम हमारी हार्ट बीट को भी रेग्युलेट करता है.

हमारे शरीर में कैल्शियम का होना बहुत जरूरी है. अगर हमारे शरीर में कैल्शियम की कमी हो जाती है, तो इसका हमारे शरीर पर बहुत विपरीत प्रभाव पड़ता है. कैल्शियम की कमी किसी भी उम्र में व किसी भी इंसान को हो सकती है. अगर किसी व्यक्ति को कैल्शियम की कमी हो जाती है तो उसके शरीर में अनेकों बीमारियां जन्म ले लेती हैं. शरीर में कैल्शियम की कमी के कारण कुछ लक्षण दिखायी देने लगते हैं, जिनके चलते आसानी से पता चल सकता है कि आप कैल्शियम की कमी के शिकार हो रहे हैं.

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आइए जानते हैं उन लक्षणों के बारे में जिनसे आप आसानी से पता लगा सकते हैं कि आपके शरीर में कैल्शियम की कमी है और आपको तुरंत डॉक्टर की सलाह की जरूरत है.

– कई बार हमारे हाथ पैर कई बार सुन्न होने लगते हैं. जब भी हम थोड़ी देर के लिए एक जगह पर बैठ जाते हैं, तो हमारे पैरों और हाथों में सुन्नपन महसूस होता है. यह कैल्शियम की कमी के कारण होता है.
– कैल्शियम की कमी से हमारे दांत भी कमजोर होकर टूटने और हिलने लग जाते हैं. पहले जहां हम गन्ना चूसने या चने चबाने में कठिनाई अनुभव नहीं करते थे, वहीं कैल्शियम की कमी के कारण हमें परेशानी अनुभव होने लगती है.
– कैल्शियम की कमी से हमारे मसूड़ों में कमजोरी आ जाती है और वे सूज जाते हैं.
– कैल्शियम की कमी से हमारी हड्डियां कमजोर हो जाती हैं और चलने या बैठने के वक्त उन में आवाज आने लग जाती हैं.
– कैल्शियम की कमी से नाखून भी टूटने लग जाते हैं. अगर हमारे शरीर में कैल्शियम की कमी है तो हमारे नाखूनों पर सफेद-सफेद निशान भी दिखाई देने लगते हैं.
– कैल्शियम की कमी से हमारी त्वचा रूखी-सूखी दिखाई देने लगती है. इसकी कमी से हमारी त्वचा पर खुजली भी होती है.
– कैल्शियम की कमी से व्यक्ति का स्वभाव भी चिड़चिड़ा हो जाता है.
– कैल्शियम की कमी का हमारे बालों पर भी अत्यधिक प्रभाव पड़ता है. इसकी कमी से हमारे बाल रूखे हो जाते हैं और टूटने लगते हैं.
– कैल्शियम की कमी से हमें थकान महसूस होती है और हमारा पूरा शरीर दर्द करता रहता है.
– कैल्शियम की कमी से व्यक्ति हमेशा तनाव में रहता है.
– कैल्शियम की कमी से हम अच्छी नींद भी नहीं ले पाते हैं.
– अगर बच्चों में कैल्शियम की कमी होती है तो बच्चों को बार-बार खांसी, जुकाम, बुखार आदि की शिकायत रहती है.
– शरीर में अगर लंबे समय तक कैल्शियम की बनी रहे, तो मोतियाबिंद और औस्टिओपोरोसिस का खतरा बढ़ सकता है.
कैल्शियम की कमी से जुड़ी थकान ब्रेन फौग का कारण बन सकती है, जिसमें फोकस करने में परेशानी, भूलना और कन्फ्यूजन शामिल है.

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