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वाचाल औरत की फितरत

लेखक: जगदीश शर्मा ‘देशप्रेमी’  

पहली अगस्त, 2019 का दिन था. उस वक्त सुबह के लगभग 11 बज रहे थे. उत्तराखंड के जिला हरिद्वार की प्रसिद्ध दरगाह पीरान कलियर के थानाप्रभारी अजय सिंह उस वक्त थाने में ही थे. तभी उन के पास एक व्यक्ति आया.

उस व्यक्ति ने अपना नाम भरत सिंह, निवासी हबीबपुर नवादा बताते हुए कहा कि उस का छोटा भाई रोजी सिंह कल से लापता है. उसे सभी जगहों पर ढूंढ लिया है लेकिन कोई जानकारी नहीं मिल रही. उस का मोबाइल फोन भी कल से बंद आ रहा है.

‘‘उस की उम्र कितनी है और कैसे गायब हुआ?’’ थानाप्रभारी अजय सिंह ने पूछा.

‘‘सर, उस की उम्र यही कोई 20-22 साल है. वह हरिद्वार के सिडकुल क्षेत्र में स्थित एक फैक्ट्री में काम करता है. कल दोपहर बाद 3 बजे वह अपनी मोटरसाइकिल ले कर ड्यूटी पर जाने के लिए निकला था. उस ने जाते समय घर पर बताया था कि रात 11 बजे तक घर लौट आएगा. जब वह रात 12 बजे तक भी नहीं लौटा तो हम ने उसे फोन किया. लेकिन उस का फोन बंद मिला.’’

‘‘तुम्हारा भाई शादीशुदा था? उस की किसी से कोई रंजिश तो नहीं थी?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘नहीं सर, रोजी अविवाहित था. अभी कुछ दिन पहले ही इमलीखेड़ा की एक लड़की के साथ उस की मंगनी हुई थी और रही बात दुश्मनी की तो सर, उस की ही नहीं बल्कि हमारे परिवार में किसी की भी किसी से कोई दुश्मनी नहीं है.’’ भरत सिंह ने बताया.

‘‘आप अपने भाई का फोटो दे कर गुमशुदगी दर्ज करा दीजिए, हम अपने स्तर से उसे ढूंढने की कोशिश करेंगे.’’ थानाप्रभारी ने कहा.

भाई की गुमशुदगी दर्ज कराने के बाद भरत सिंह घर लौट आया.

चूंकि मामला जवान युवक की गुमशुदगी का था, इसलिए थानाप्रभारी ने इस की सूचना एसपी (देहात) नवनीत सिंह भुल्लर को दे दी. उन्होंने थानाप्रभारी को इस मामले की जांच के निर्देश दिए. लेकिन 2 दिन बाद भी थानाप्रभारी लापता रोजी सिंह के बारे में कोई जानकारी नहीं जुटा पाए तो एसपी (देहात) नवनीत सिंह भुल्लर ने सीओ चंदन सिंह बिष्ट के निर्देशन में एक टीम गठित कर दी.

टीम में थानाप्रभारी अजय सिंह, महिला थानेदार शिवानी नेगी व भवानीशंकर पंत, एएसआई अहसान अली सैफ आदि को शामिल किया गया.

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पुलिस टीम ने सब से पहले रोजी सिंह के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. जांच में पता चला कि उस के फोन की आखिरी लोकेशन उत्तर प्रदेश के जिला मुजफ्फरनगर के बरला कस्बे में थी. इस के अलावा उस के मोबाइल से जिस नंबर पर आखिरी बार बात हुई थी, वह मोबाइल नंबर शिक्षा नाम की युवती का था, जो गांव हबीबपुर नवादा की ही रहने वाली थी.

शिक्षा से पूछताछ करनी जरूरी थी, इसलिए थानाप्रभारी ने शिक्षा को थाने बुलवा लिया. उस से एसआई शिवानी नेगी ने पूछताछ की तो वह कहती रही कि रोजी के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं है और न ही उस का रोजी से कोई ताल्लुक है.

‘‘तुम झूठ बोल रही हो, रोजी से तुम्हारी कल भी बात हुई थी. इतना ही नहीं, तुम्हारी इस से पहले भी काफी देरदेर तक बातें होती थीं. अब तुम इतना और बता दो कि 30 जुलाई को रोजी के गायब होने के बाद तुम मुजफ्फरनगर जिले के बरला कस्बे में क्या करने गई थीं?’’

शिवानी नेगी के मुंह से बरला कस्बे का नाम सुनते ही शिक्षा सहम गई और अपना सिर नीचे कर के रोने लगी. एसआई शिवानी नेगी ने उसे सांत्वना दे कर चुप कराया. तभी शिक्षा सुबकते हुए बोली, ‘‘मैडम, रोजी इस दुनिया में नहीं है. उस की हत्या कर दी गई है. हत्या में उस के भाई रोहित, आदेश और उन का दोस्त रजत भी शामिल थे.’’

हत्या की बात सुन कर पुलिस अधिकारी चौंक गए. थानाप्रभारी ने उस से पूछा, ‘‘रोजी की लाश कहां है?’’

‘‘उस की हत्या बरला के गन्ने के एक खेत में ले जा कर की गई थी. लाश भी वहीं पड़ी होगी.’’ शिक्षा ने बताया.

पुलिस ने शिक्षा की निशानदेही पर उस के भाइयों आदेश, रोहित और इन के साथी रजत को गिरफ्तार कर लिया.

सीओ चंदन सिंह ने यह जानकारी एसपी (देहात) नवनीत सिंह को दी तो उन्होंने लाश बरामद करने के लिए एक पुलिस टीम घटनास्थल के लिए रवाना कर दी.

इस के बाद थानाप्रभारी के नेतृत्व में एक टीम चारों अभियुक्तों को ले कर बरला पहुंच गई. उन्होंने वहां की पुलिस से संपर्क किया, फिर थानाप्रभारी आरोपियों को साथ ले कर बरला पैट्रोल पंप के पीछे गन्ने के खेत में पहुंचे.

चारों आरोपियों ने पुलिस को वह जगह दिखा दी, जहां पर उन्होंने रोजी सिंह को घेर कर उस की हत्या की थी. इस के बाद पुलिस ने उन चारों की निशानदेही पर गन्ने के खेत से रोजी का शव बरामद कर लिया.

रोजी के सिर का कुछ हिस्सा किसी जानवर ने खा लिया था, दूसरे गरमी की वजह से उस का शव काफी गल गया था. प्राथमिक काररवाई में बरला पुलिस द्वारा रोजी के शव का पंचनामा भरा गया.

घटनास्थल की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने रोजी सिंह का शव पोस्टमार्टम के लिए राजकीय अस्पताल मुजफ्फरनगर भेज दिया.

अगले दिन हरिद्वार के एसएसपी सेंथिल अवूदई कृष्णराज एस. ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर चारों आरोपियों को मीडिया के सामने पेश किया और रोजी की हत्या का खुलासा कर दिया. अभियुक्तों से पूछताछ के बाद रोजी सिंह की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

शिक्षा रुड़की क्षेत्र के गांव नगला इमरती की रहने वाली थी. करीब 7 साल पहले उस की शादी हबीबपुर नवादा निवासी जोगेंद्र से हुई थी. 3 बच्चे होने के बाद भी उस का रूपयौवन बरकरार था. करीब 2 साल पहले पड़ोस के रहने वाले रोजी सिंह से उस का चक्कर चल गया था. रोजी सिंह अविवाहित था, जिस पर शिक्षा पूरी तरह से फिदा थी. दोनों अकसर खेतों में जा कर रंगरलियां मनाते थे.

जब उन दोनों के अवैध संबंधों की जानकारी शिक्षा के पति जोगेंद्र को हुई तो उस ने पत्नी को परिवार की इज्जत की दुहाई देते हुए बहुत समझाया, मगर वह नहीं मानी. उस के ऊपर तो रोजी सिंह के इश्क का जबरदस्त भूत सवार था. वह उस के साथ जीनेमरने की कसमें खा चुकी थी.

अंत में जोगेंद्र ने समाज में हो रही बदनामी के कारण शिक्षा को 25 मई, 2019 को घर से निकाल दिया. इस के बाद जोगेंद्र ने इस मामले की सूचना स्थानीय इमलीखेड़ा पुलिस चौकी को भी दे दी थी, मगर पुलिस ने मामले को पतिपत्नी विवाद बता कर जोगेंद्र को महिला हेल्पलाइन केंद्र रुड़की जाने की सलाह दी.

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पति द्वारा घर से निकाल देने के बाद शिक्षा अपने मायके में जा कर रहने लगी. लेकिन उस का अपने प्रेमी रोजी सिंह से संपर्क बराबर बना रहा. फोन पर दोनों बात करते रहते थे और समय निकाल कर मिल भी लेते थे.

रोजी के कारण शिक्षा को पति से तो अलग होना ही पड़ा, साथ ही मायके में भी उसे काफी अपमान झेलना पड़ रहा था. मगर रोजी के प्रेम के कारण वह सब सहन कर रही थी. कुछ दिनों पहले शिक्षा को पता चला कि रोजी की मंगनी तय हो गई है. इस बारे में शिक्षा ने रोजी से बात की तो उस ने बताया कि घर वालों के दबाव में उसे शादी करनी पड़ रही है.

प्रेमी का यह जवाब सुन कर वह तिलमिला गई. उस के मन में रोजी के प्रति नफरत पैदा हो गई. क्योंकि जिस रोजी के कारण वह ससुराल से निकाली गई थी, वही रोजी उसे छोड़ कर किसी और लड़की का होने जा रहा था.

रोजी से नफरत होने के कारण शिक्षा ने एक भयानक निर्णय ले लिया. वह निर्णय था रोजी की हत्या का. इस योजना में उस ने अपने 2 भाइयों रोहित व आदेश और उन के दोस्त रजत को भी शामिल कर लिया.

फिर शिक्षा ने एक योजना के तहत 30 जुलाई, 2019 को रोजी को शाम के समय रुड़की में दिल्ली रोड पर स्थित सैनिक अस्पताल तिराहे पर पहुंचने को कहा. शिक्षा ने कहा कि हमें बरला कस्बे में एक तांत्रिक के पास चलना है. रोजी निर्धारित समय पर मोटरसाइकिल से सैनिक अस्पताल तिराहे पर पहुंच गया. वहीं पर शिक्षा उस का इंतजार कर रही थी. वह रोजी के पीछे बाइक पर बैठ कर बरला की ओर चल दी.

योजना के अनुसार, उस के दोनों भाई रोहित व आदेश और उन का दोस्त रजत दूसरी बाइक से रोजी का पीछा करते हुए चलने लगे. शिक्षा प्रेमी के साथ बरला के पैट्रोल पंप के पास पहुंच गई.

तब तक अंधेरा घिर चुका था. वहां पहुंचने पर शिक्षा ने रोजी से कहा कि हमें जिस तांत्रिक के पास जाना है, वह पैट्रोल पंप के पीछे जंगल में मिलेगा. रोजी ने अपनी बाइक जंगल की तरफ मोड़ दी. तभी पीछा करते हुए रोहित, आदेश व रजत भी वहां पहुंच गए. उन्हें देख कर रोजी समझ गया कि मामला गड़बड़ है. वह घबरा कर वहां से भागने की कोशिश करने लगा. मगर रोहित व आदेश ने रोजी को दबोच लिया. उन्होंने उस पर डंडे से हमला कर दिया.

रोजी के सिर पर डंडा लगने से वह लहूलुहान हो गया. इस के बाद रोहित व आदेश ने तुरंत रोजी के गले में गमछा डाल कर खींच दिया, जिस से रोजी की मौके पर ही मौत हो गई.

रोजी की मौत के बाद शिक्षा के दोनों भाइयों ने रोजी के शव को खींच कर पास के गन्ने के खेत में डाल दिया. इस के बाद वे लोग रोजी की बाइक, मोबाइल व गमछे को दिल्ली रोड स्थित मंगलौर के निकट फेंक कर घर आ गए.

पुलिस ने शिक्षा, रोहित, आदेश व रजत से पूछताछ के बाद उन के खिलाफ भादंवि की धारा 365, 302, 201, 34 के तहत केस दर्ज कर लिया. आरोपियों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया गया, जहां से 3 अगस्त, 2019 को उन्हें जेल भेज दिया गया.

रोजी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी पुलिस को मिल गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में रोजी का शरीर ज्यादा गल जाने के कारण मौत का कारण स्पष्ट नहीं हो पाया. इस मामले में डाक्टरों ने उस का विसरा व डीएनए सुरक्षित रख लिया था.

कथा लिखे जाने तक आरोपी शिक्षा, रोहित, आदेश व रजत जेल में थे. केस की आगे की जांच थानाप्रभारी अजय सिंह कर रहे थे.

   —पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य:   मनोहर कहानियां  

जब कोई आपको बदनाम करे तो क्या करें ?

लंबा कद, मुसकराती आंखें और मन में कुछ करने की ललक पर जमाने की बेरुखी से परेशान 27 वर्षीय अनुभा बताती हैं, ‘‘मैं आगरा की रहने वाली हूं. ग्रैजुएशन के बाद दिल्ली आ कर फैशन डिजाइनिंग कोर्स जौइन किया. जब मैं यह कोर्स कर रही थी उस दौरान मेरे साथ ऐसी घटना घटी कि उस ने मेरी जिंदगी का रुख ही बदल दिया.

‘‘दरअसल अमित नामक लड़के से मेरी फ्रैंडशिप थी. हम दोनों एकदूसरे को पसंद करते थे. समय के साथ दोनों को लगा कि अब हमें शादी कर लेनी चाहिए. मगर हमारे घर वाले इस के लिए तैयार नहीं हुए. मैं ने अमित से कहा कि हमें शांति से अलग हो जाना चाहिए. वह इस के लिए तैयार नहीं था. मगर यह बात मुझे मंजूर नहीं थी. तब उस ने मुझे धमकी दी कि अगर तुम मेरी नहीं हुई तो मैं तुम्हें किसी और की भी नहीं होने दूंगा. उस ने एक साइको की तरह व्यवहार करना शुरू कर दिया. मेरी मम्मी का फोन ट्रैक कर लिया. मम्मी के नंबर से कईकई बार फोन आने लगा, जबकि कौल मम्मी नहीं बल्कि अमित करता था. उस ने मुझे धमकी दी कि बात न मानने पर फोटो एडिट कर सोशल मीडिया पर वायरल कर देगा ताकि मैं बदनाम हो जाऊं.

‘‘मैं डर गई थी पर फिर भी उस की बात नहीं मानी. एक दिन जब मैं लौट रही थी तो उस ने मुझे जबरदस्ती अपनी गाड़ी में बैठा लिया. फिर हमारी कौमन फ्रैंड के जरीए मेरे घर यह संदेश भिजवा दिया कि मुझे 3-4 लड़के पकड़ ले गए हैं. बदहवास से मेरे पेरैंट्स दिल्ली दौड़े आए. आसपास वालों को भी यह खबर मिल गई.

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‘‘इधर अमित मुझे गाड़ी में बैठा कर मुझे डरानेधमकाने लगा. उस ने मेरे बाल भी नोचे. वह इस बात पर क्रोधित था कि उस के बगैर मैं खुश कैसे रह सकती हूं. मैं ने उसे समझाना चाहा कि मेरा कैरियर अभी पीक पर चल रहा है और मैं अपना पूरा ध्यान पढ़ाई और कैरियर पर लगाना चाहती हूं. मगर वह मुझ से लड़ता रहा. तभी उस के पेरैंट्स का फोन आ गया तो उस ने मुझे छोड़ दिया.

‘‘मुझे बदनाम करने के लिए उस ने मेरे एक साड़ी वाले फोटो को फोटोशौप में एडिट कर मेरी मांग में सिंदूर भर दिया और मेरे पासपड़ोस के घरों में फोटो फिंकवा दिए. उस ने यह अफवाह फैला दी कि मैं ने किसी दलित लड़के के साथ भाग कर शादी कर ली है. मेरे घर वालों ने मुझे छुड़ाने के लिए उस के मांबाप को क्व50-60 हजार भी दिए हैं. उस ने मेरे मैसेजेस के साथ भी छेड़छाड़ कर उन्हें इस तरह रीराइट किया जैसे मैं उस के पीछे पड़ी हूं और मैं ने ही उसे मिलने को दिल्ली बुलाया था.

‘‘उस ने झूठी अफवाहों को इतनी हवा दी कि आज लोग मुझे सही होने पर भी गलत समझते हैं. जहां कहीं भी मेरी शादी की बात चलती है तो यह अफवाह अपना असर दिखाने लगती है. लड़के वाले कोई स्पष्ट कारण बताए बिना शादी करने से इनकार कर देते हैं. 2 साल पहले अमित की शादी हो गई है पर मैं आज तक उस की वजह से खुली हवा में सांस नहीं ले पा रही हूं. मेरी शादी भी नहीं हो पा रही है. मैं स्ट्रैस की वजह से अपने कैरियर पर भी ध्यान नहीं दे पा रही. मैं ने कोई गलती नहीं की पर उस ने मेरी जिंदगी में इतना तूफान ला दिया है कि स्ट्रैस से पापा बीमार रहने लगे हैं. ‘‘मेरा सवाल यह है कि सर्फ लड़कियों को ही जज क्यों किया जाता है? सचाई जाने बगैर बड़ी आसानी से मान लिया जाता है कि लड़की का ही चरित्र खराब होगा. अफवाहें फैला कर लड़कियों की जिंदगी खराब कर दी जाती है पर लड़के मजे से जीते हैं.’’

कौन फैलाते हैं अफवाहें

अफवाहें अकसर जलन और क्रोध का नतीजा होती हैं. किसी से बदला लेने या उसे नीचा दिखाने के मकसद से कुछ लोग ऐसी हरकतों को अंजाम देते हैं. मगर लोग अफवाहों को सच मान लेते हैं. असलियत पता लगाने का जरा भी प्रयास नहीं करते.

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जिस व्यक्ति के बारे में ऐसी अफवाहें उड़ाई जाती हैं उसे बिना गलती किए भी बहुत कुछ सहना पड़ता है. अफवाहें उस की जिंदगी में तूफान ला देती हैं. उस की मानसिक सेहत पर असर डालती हैं. उस का जौब करना दूभर हो सकता है. नएपुराने रिश्ते टूट सकते हैं. दूसरों की नजरों में उस की अहमियत घट जाती है. उस के करीबी उस से दूर हो जाते हैं. वह किसी भी काम में अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाता. इस की वजह से वह डिपै्रशन, स्ट्रैस आदि का शिकार हो सकता है. परेशान हो कर सुसाइड भी कर सकता है.

अफसोस की बात यह होती है कि दूसरे लोग जो इस तरह की बातें होते देखते हैं वे भी अकसर सही व्यक्ति का साथ नहीं देते. लोग उस व्यक्ति से कटने लगते हैं जिस के खिलाफ अफवाहें फैलाई जाती हैं. लोगों को डर होता है कि कहीं अगला शिकार वे ही न बन जाएं.

अफवाहें हमेशा शक के आधार पर फूलतीफलती हैं. ये ऐसी सूचनाओं के रूप में फैलती हैं जो लोगों के लिए नई और रोचक हों. इन की सत्यता पर हमेशा शक होता है. ये अनवैरीफाइड होती हैं. प्रत्यक्षअप्रत्यक्ष रूप से लोगों से जुड़ी होती हैं या किसी के व्यक्तिगत जीवन से वास्ता रखती हैं. मान लीजिए कोई लड़का कई दिनों से औफिस या स्कूल नहीं आ रहा तो ऐसे में बड़ी तेजी से उस के बीमार होने या जीवन में कोई बड़ा हादसा हो जाने की अफवाह फैला दी जाती है.

हिंसक रूप लेती हैं अफवाहें

देश में जनवरी, 2017 में भीड़ एक बच्चे के अपहरण के आरोप में 33 लोगों की हत्या कर चुकी है. ये सब व्हाट्सऐप पर एक फर्जी मैसेज की वजह से हुआ. इस मैसेज पर यकीन कर केवल शक के आधार पर भीड़ बेगुनाहों को मौत के घाट उतार सकती है तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि अफवाहें और क्याक्या गुल खिला सकती हैं.

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2006 में प्रकाशित प्रशांत बोडिया और राल्फ रोजनो की रिसर्च के मुताबिक ज्यादा चिंताग्रस्त और उत्सुक लोग अफवाहें ज्यादा फैलाते हैं. किसी के स्टेटस और लोकप्रियता से चिढ़ने वाले अकसर अफवाहों का सहारा लेते हैं. गलत तरीके से किसी का नाम बदनाम करना उन का मकसद होता है.

यह संभव नहीं कि हम हर किसी के अच्छे दोस्त बन पाएं या हमें हरकोई पसंद आए. मगर किसी को पसंद न करने का मतलब यह नहीं कि हमें उस के खिलाफ अफवाह फैलाने या भलाईबुराई करने का अधिकार मिल गया. अपना स्टेटस बढ़ाने या गु्रप में लोकप्रियता हासिल करने का यह गलत तरीका है. वास्तविक लोकप्रियता इंसान के आचरण पर निर्भर करती है. किसी से इस तरह की दुश्मनी निकाल कर या अपमान कर व्यक्ति अपना सम्मान तो खोता ही है, दूसरे लोगों का भी उस पर विश्वास खत्म हो जाता है.

जब आप बन जाएं शिकार

यदि कभी आप के साथ इस तरह की घटना घट जाए तो डिप्रैशन में आ कर कोई गलत फैसला लेने से बेहतर होगा कि आप यह बात अपने पेरैंट्स, टीचर, काउंसलर या दोस्तों से शेयर करें. अपनी बेगुनाही का सुबूत तैयार करें और सिर ऊंचा कर हर सवाल का जवाब दें. अपनी जिंदगी के लिए कोई लक्ष्य तैयार करें. इन बातों से दिमाग हटा कर पूरी एकाग्रता से अपने मकसद को पूरा करने में ध्यान दें. अपने दोस्तों से मिलनाजुलना, उन के साथ मस्ती करना न छोड़ें.

यही नहीं जो शख्स आप के खिलाफ अफवाह उड़ा रहा है उस से मिलें. शांति से उस से अपनी बात कहें. आप के मन में जो भी सवाल उठ रहे हैं या आप उस से जो भी कहना चाहती हैं वह सब बोल कर अपनी भड़ास निकालें. उसे ताकीद करें कि आइंदा उलटासीधा बोलने का अंजाम बहुत बुरा होगा. अपनी बातें पूरे विश्वास, स्पष्टता और मैच्योरिटी से करें. इस के बाद उस के जवाब का इंतजार किए बगैर वहां से निकल जाएं ताकि वह आप की बातों पर गहराई से विचार करने को मजबूर हो जाए.

कुछ लोग दूसरों की निजी बातें या गलत सूचनाएं फैला कर मजे लेते हैं, भले ही वे सच हों या नहीं. ऐसा वे दूसरे को चोट पहुंचा कर अच्छा महसूस करने के लिए करते हैं. वे जिसे पसंद नहीं करते उस के खिलाफ झूठी बातें बोल कर भले ही अपना मकसद पूरा कर लें, मगर वे खुद को इस के लिए कभी माफ नहीं कर पाएंगे.

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बेहतर यह है कि आप अफवाहें फैलाने या गौसिप करने वाले से दूरी बढ़ा लें. यदि कोई आप से किसी की उस की पीठ पीछे बुराई कर रहा है तो सौरी कह कर वहां से चल दें. जाने से पहले स्पष्ट रूप से कहें कि जिस के बारे में यह बात कही जा रही है जब वह खुद को निर्दोष साबित करने के लिए मौजूद नहीं है तो फिर उस के बारे में बात करने में आप कंफर्टेबल नहीं हैं. ऐसा कर के आप न केवल उस गौसिप चेन को तोड़ेंगे, बल्कि दूसरे लोगों का भी विश्वास जीत सकेंगे. दूसरे लोग यह महसूस करेंगे कि आप फालतू की बातों में रुचि नहीं रखते. ऐसा कर के आप दूसरों के आगे एक उदाहरण पेश करेंगे.

सावधान! दवाओं से अबौर्शन कराना हो सकता है खतरनाक

बहुत ज्यादा खून बह जाने की वजह से 24 साला संगीता (बदला हुआ नाम) जब डाक्टर के पास आई तो डाक्टर भी चकरा गई. डाक्टर के बारबार पूछने पर संगीता ने सचाई बताई कि कुछ दिन पहले वह किसी दाई के कहने पर दुकान से पेट गिराने की दवा ले कर खा चुकी थी जिस से थोड़ा खून बहा था, पर पेट की पूरी सफाई नहीं हुई थी. अब जब उस ने दोबारा दवा ली है तो बहुत ज्यादा खून बह रहा है.

संगीता को तुरंत अस्पताल में भरती कर खून चढ़ाया गया, क्योंकि उस का हीमोग्लोबिन का लैवल 4 तक गिर चुका था. इस वजह से उस की मौत भी हो सकती थी.

मां बनना हर औरत की इच्छा होती है लेकिन कभीकभार न चाहते हुए भी कई औरतें पेट से हो जाती हैं. परिवार नियोजन की वजह से बहुत सी औरतें दूसरे बच्चे के लिए तैयार नहीं होती हैं. ऐसे में सब से आसान और अच्छा तरीका पेट गिराना है, पर ऐसा कराने का भी एक तय समय होता है.

अनचाहे पेट से छुटकारा पाने के 2 तरीके हैं, मैडिकल अबौर्शन और सर्जिकल तरीका. मैडिकल अबौर्शन केवल 7 हफ्ते तक ही कर सकते हैं. ज्यादा से ज्यादा 8 हफ्ते तक. लेकिन जितनी जल्दी मैडिकल अबौर्शन किया जाएगा, उतने ही उस के कामयाब होने के चांस रहते हैं.

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इस बारे में मुंबई की अपोलो क्लिनिक और फोर्टिस अस्पताल की स्त्री व प्रसूति रोग विशेषज्ञ डाक्टर बंदिता सिन्हा बताती हैं कि रिसर्च में भी यह साबित नहीं हो सका है कि अबौर्शन पिल्स सौ फीसदी कारगर होती हैं या नहीं. कई बार 7 या 8 हफ्ते के बाद ये गोलियां पूरी तरह से अबौर्शन नहीं कर पाती हैं. यह ‘अधूरा अबौर्शन’ होता है जिसे बाद में सर्जिकल तरीके से साफ किया जाता है. इन गोलियों को देने से पहले इन बातों पर ध्यान देना जरूरी है:

* सब से पहले औरत की काउंसलिंग से पता किया जाता है कि वह पेट गिराना क्यों चाहती है.

* सोनोग्राफी कर के बच्चे की पोजीशन का पता लगाया जाता है.

* औरत का ब्लड टैस्ट कर के पता किया जाता है कि उस की जिस्मानी हालत कैसी है. अबौर्शन पिल्स उस के लिए ठीक रहेंगी या नहीं, क्योंकि अगर हीमोग्लोबिन का लैवल 12 है तो ऐसे अबौर्शन के बाद हीमोग्लोबिन लैवल घट कर 8 हो जाता है और अगर 8 है तो

4 होने का डर बना रहता है. ऐसे में उसे अस्पताल भेजा जाता है.

* इस के अलावा कोई पारिवारिक समस्या या दूसरी समस्या रहने पर भी दवा नहीं दी जाती है.

* अगर मरीज दिल, दमा, डायबिटीज, एनीमिया या किसी दूसरी बीमारी की शिकार है तो भी अबौर्शन पिल्स को नहीं दिया जाना चाहिए.

* ज्यादा बीड़ीसिगरेट पीने वाली और एचआईवी पीडि़त मरीज को भी ऐसी दवा लेने से मना किया जाता है.

* या तो पहले सर्जरी सैक्शन हुआ हो या फिर 2 सिजेरियन बच्चा हुआ हो, ऐसे में मैडिकल पिल्स से यूट्रस में ‘कैंप’ आ सकता है. वह फट भी सकता है, जो काफी दर्दनाक होता है.

* 18 से 35 साल की उम्र तक ये पिल्स सही रहती हैं लेकिन

40 साल की उम्र के बाद ये गोलियां ज्यादा देते हुए ध्यान रखना चाहिए.

कुंआरी लड़कियों में ऐसी दवाएं काफी मशहूर हैं. ऐसी लड़कियां कई बार परिवार नियोजन का कोई साधन अपनाए बिना सैक्स करने के चलते पेट से हो जाती हैं. ऐसे में पेट गिराने की दवा के इस्तेमाल से उन्हें अस्पताल जाने की जरूरत नहीं होती. बाजार से प्रैगनैंसी ‘किट’ ला कर ‘यूरिन टैस्ट’ पौजिटिव आने पर वे खुद ही पेट गिराने की दवा ले लेती हैं, जो कई बार खतरनाक हो सकता है, इसलिए डाक्टर की सलाह के बिना दवा लेना ठीक नहीं.

कई बार प्रैगनैंसी यूट्रस में न हो कर ट्यूब में हो जाती?है. ऐसे में लड़की के लिए खतरा बढ़ता है. सोनोग्राफी से उस का पता लगाया जा सकता है. इस के अलावा ज्यादा खून बहने से यूट्रस का इंफैक्शन वगैरह कई दूसरी बड़ी दिक्कतों से बचा जा सकता है.

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वैसे, पेट गिराने की दवाएं बारबार लेना ठीक नहीं होता. इस से बाद में कई तरह की समस्याएं आ सकती हैं, जो इस तरह हैं:

* कोई जवान लड़की अगर 2-3 बार या इस से ज्यादा बार ऐसी दवाएं लेती है तो उस के हार्मोनों में बदलाव होने का डर बढ़ जाता है.

* बांझपन की भी दिक्कत हो सकती है.

* बाद में बच्चा पैदा करने में दिक्कतें आ सकती हैं.

पेट गिराने की दवा देने के बाद डाक्टर इन बातों पर नजर रखते हैं:

* दवा लेने के 48 से 72 घंटे में खून का बहना शुरू होना चाहिए.

* अगर अच्छी तरह से साफसफाई नहीं हुई है तो दोबारा दवा देते हैं.

* इस के 2 हफ्ते बाद सोनोग्राफी कर के यूट्रस साफ हुआ है या नहीं, देखा जाता है. अगर यूट्रस साफ नहीं हुआ है तो सर्जिकल तरीके से उसे साफ किया जाता है.

डाक्टर बंदिता सिन्हा कहती हैं कि पेट गिराने की नौबत न आए, उस पर ध्यान रखना चाहिए. किसी भी दाई या दवा की दुकान से पेट गिराने की दवा खरीद कर न खाएं. माहिर डाक्टर की सलाह से ही ये दवाएं कारगर साबित हो सकती हैं, नहीं तो जान का खतरा भी हो सकता है.

औरतों के कितने अनोखे सिंगार

सिंगार को दुनियाभर की औरतें अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानती हैं. सिंगार बिना औरत रह ही नहीं सकती. औरत शहर की हो, गांव की या जंगल की, वह किसी न किसी तरह खुद को सजा-संवार कर ही रखना चाहती है. सिंगार के बिना वह खुद को मुकम्मल नहीं देखती. सिंगार के लिए अगर उसे अपने शरीर को छिदवाना या गुदवाना भी पड़े तो वह उससे भी परहेज नहीं करती है, फिर चाहे कितना भी दर्द क्यों न हो. आप यह देखकर आश्चर्य में पड़ जाएंगे कि भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर में आदिवासी महिलाएं सिंगार को लेकर कितनी उतावली और उत्साहित हैं. उनके सिंगार तो आपको आश्चर्य में डाल देंगे –

  1. योनोमी जनजाति, ब्राजील

दक्षिण अमेरिका के वर्षावन में रहने वाली योनोमी जनजातियां बाहरी दुनिया के लोगों से बहुत कम संपर्क में रहती हैं. इस जनजाति को आज सबसे अधिक खतरे में माना जा रहा है क्योंकि बाहरी लोगों के संपर्क में आने से उनमें तरह-तरह के रोग पनप रहे हैं और ब्राजील सरकार उनकी घुसपैठियों और रोगों से रक्षा नहीं कर पा रही है. इस जनजाति की महिलाएं बहुत मेहनती होती हैं और जीवन में बहुत संघर्ष करती हैं. इनका सिंगार अनोखा होता है. ये शरीर में जगह-जगह छेद करके रंगीन स्टिक से अपना सिंगार करती हैं. कई नृविज्ञानियों का मानना है कि इनका स्टिक भेदी आचरण या तो एक सजावटी प्रकृति है या किशोरावस्था की निशानी है. अफसोस की बात है कि ये महिलाएं अपहरण और मारपीट की बहुत शिकार बनती हैं.

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2. दासनच जनजाति, इथियोपिया

अफ्रीका के पूर्वी छोर पर स्थित इथियोपिया न केवल शानदार प्राकृतिक नजारों से भरपूर है, बल्कि यह देश अनेक अनोखी जनजातियों का घर भी है, जिनकी समृद्ध परम्पराएं और अनुष्ठान भी कम हैरान करने वाले नहीं हैं. इथियोपिया में ओमो घाटी स्वदेशी लोगों के सबसे अधिक आबादी वाले क्षेत्रों में से एक है. वहां अनूठी संस्कृति के लोग रहते हैं जो कचरे को जमा करके उनसे अपने गहने निर्मित करते हैं. इन गहनों से यहां की महिलाएं अपना सुन्दर सिंगार करती हैं.

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3. अपतानी महिला, भारत

अपतानी जनजाति भारत के अरुणाचल प्रदेश में वास करती है. इनकी महिलाओं को बहुत सुंदर माना जाता है, इसलिए अन्य जनजातियों के पुुरुषों की नजरों से बचने के लिए वे अपनी नाक को विदू्रपता के स्तर तक बड़ा कर लेती हैं. वे नाक में ऐसा प्लग नुमा आभूषण पहनती हैं ताकि उनकी नाक बहुत भद्दी नजर आए. यह नाक प्लग कोई सौन्दर्य की चीज नहीं है, बल्कि बुरी नजर से बचाव का शस्त्र है.

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4. अफार जनजाति, इथियोपिया

इथियोपिया की एक और खूबसूरत जनजाति है अफार. इस जनजाति में सौन्दर्य के मानक बिल्कुल अलग हैं. इनकी महिलाएं एक विशेष तरीके से अपने बालों को रौंदती हैं और कई चोटियां बनाती हैं. बेहत तेज रंगों के इनके आभूषण इनकी सुन्दरता में चार चांद लगाते हैं. इसके अलावा ये सुन्दर रंगों से शरीर को पेंट भी करती हैं. इनके कपड़े भी चटख रंगों के होते हैं.

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5. मुर्सी जनजाति, इथियोपिया

मुर्सी जनजाति की महिलाओं को उनके लटके हुए होंठों से पहचाना जाता है. बचपन से ही लड़कियों के होंठों को खींच कर बड़ा किया जाता है. वहीं शरीर को रंगने और फलों को आभूषण बना कर धारण करने के आश्चर्यजनक आइडिया भी उनके पास हैं. मुर्सी औरतें अपने सिर को सींग और पुष्प मुकुट के साथ सजाने के लिए जानी जाती हैं और चेहरे सहित पूरे शरीर को पेंट करती हैं. अपना इतना डरावना रूप पहले वे अपहरण और गुलामी से बचने के लिए करती थीं, जो अब उनकी परंपरा बन गया है. इनकी महिलाओं का अंगभंग भी किया जाता है ताकि वे गुलाम बनाये जाने के अयोग्य हो जाएं.

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6. लाहुई जनजाति, वियतनाम

लाहुई जनजाति के लोग अपने दांत काले रंग से पेंट करते हैं और इसे खूबसूरत मानते हैं. लाहुई जनजाति की महिलाएं अपने दांतों को काले रंग से पेंट करके यह दर्शाती हैं कि वे अब शादी करने के लिए तैयार हैं. यह कस्टम एशिया के अन्य हिस्सों में भी लोकप्रिय है. यह जापान के समाज में एक उच्च स्तर का प्रतीक है.

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7. दायक महिला, इंडोनेशिया

इंडोनेशिया में दायक जनजाति में सुराखों का विस्तार हमेशा मुख्य रूप से सुंदरता का संकेत माना जाता था. उनकी महिलाओं के कान बहुत छोटी उम्र में छेद दिये जाते हैं और भारी वजन के झुमकों को पहना कर उन छेदों को लम्बा किया जाता हैे. यह एक दर्दनाक परंपरा है. हालांकि अब इस जनजाति के भीतर बहुत कम महिलाएं ऐसा करती हैं.

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8. बेबी फैट ओयेबोल , दक्षिण कोरिया

दक्षिण कोरिया के लोग खूबसूरत दिखना पसंद करते हैं. खुबसूरती की यह ललक उन पर इसकदर हावी है कि यहां की महिलाओं को बच्चों की तरह खुबसूरत स्किन दिखाने के लिए प्लास्टिक सर्जरी तक का सहारा लेना पड़ता है और वे अपने चेहरे पर गहरा मेकअप भी लगाती हैं जो उन्हें बिल्कुल बेबी स्किन जैसा ग्लो और लुक देता है.

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दीवाली 2019 : और्गेनिक प्रोडक्ट्स के साथ इस दीवाली को बनाएं टौक्सिन फ्री

दीवाली के नजदीक आने के साथ ही यह टौक्सिन-फ्री जिंदगी जीने की अहमियत पर ध्यान केंद्रित करने का समय है, जो पर्यावरण के साथ साथ हमारे लिए फायदेमंद है. यह हर जगह साफ-सफाई करने और रसायनों को हटाने का समय है. पटाखे फोड़ने से बचते हुए सही तरह की और्गेनिक स्किनकेयर का इस्तेमाल करने तक यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम एक ऐसी जिंदगी चुनें जो स्वच्छ और सुरक्षित हो. पेश है तीन और्गेनिक स्किनकेयर ब्रांड्स जो रसायनों के इस्तेमाल को पूरी तरह से नकारते हुए अच्छी और स्वच्छ जिंदगी को चुनते हैं.

मेकअपः रूबी और्गेनिक्स

रूबी और्गेनिक्स एक और ब्रांड है, जो पूरी तरह से हमारी भारतीय स्कीन टोन और टेक्सचर के अनुरूप तैयार किया गया है. इनके उत्पाद पूरी तरह से जैविक(और्गेनिक) और मेड इन इंडिया हैं. उनके पास परबीन फ्री, केमिकल प्रिजर्वेटिव फ्री, औल वेजिटेरियन और नौन-एनिमल टेस्टेड मेकअप की विस्तृत रेंज है. इन प्राकृतिक उत्पादों को ऐसी चीजों से तैयार किया जाता है, जिन्हें बेहद सावधानी से प्राप्त किया जाता है और उन्हें कम संरक्षण की आवश्यकता होती है. इन सौ प्रतिशत शाकाहारी,जैविक,केमिकल प्रिजर्वेटिव लिपस्टिक्स के चलते इनकी लोकप्रियता दिनो-दिन बढ़ती जा रही है. निश्चित रूप से दीवाली के समय इसका उपयोग किया जाना लाभप्रद होगा.

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ब्यूटी – लव और्गेनिकनली

बेहतरीन व खुशनुमा त्वचा के लिए दीपशिखा देशमुख यह प्राकृतिक ब्रांड लेकर आयी हैं. उनका दावा है कि उनका हर प्रोडक्ट ‘लव और्गेनिक’’ के तहत बेहद सावधानी, गहन शोध और आयुर्वेदिक विशेषज्ञों, प्राकृतिक चिकित्सकों और डौक्टरों के परामर्श से तैयार किया गया है. यह प्रोडक्ट हर प्रकार की त्वचा के लिए उपलब्ध उत्पादों और इस विश्वास के साथ कि छोटे से छोटे कारक भी त्वचा पर असर डालते हैं, ब्रांड मिट्टी की सेहत से लेकर पैकेजिंग प्रक्रिया तक सब कुछ सही तरीके से हो इसका बहुत ध्यान रखा गा है.उनके उत्पादों में फेस पैक, बौडी वाश, बौडी लोशन, साबुन, मालिश का तेल और बहुत कुछ शामिल हैं.

हेयर केयर:हर्बल इसेंसेस

हर्बल इसेंसेस प्रकृति की अच्छाई में यकीन करते हुए और्गैनिक पदार्थों से बना शैंपू बनाते हैं. इनके शैंपू आर्गन औयल, नारियल का दूध (कोकोनट औयल), सफेद अंगूर, ककड़ी, ग्रीन टी,विटामिन ई, नारियल का मक्खन (कोकोनट बटर) और बहुत से प्राकृतिक तत्वों से भरपूर हैं. पूरी तरह सल्फेट-फ्री शैंपू बालों को शानदार चमक देने का साथ ही उन्हें घना बनाता है.  उनके उत्पाद जड़ों से सिरों तक बालों का कायाकल्प करके उनमें नई जान डालते हैं.

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सावधानी हटी दुर्घटना घटी

लेखक: संतोष सांघी

परिवहन विभाग की ओर से देशभर में ‘सावधानी हटी, दुर्घटना घटी’ के पोस्टर, बैनर, होर्डिंग्स लगवाए गए हैं. ये सड़क पर चलने या कोई भी गाड़ी चलाने वालों को चौकन्ना करने के लिए लगवाए गए हैं, ताकि किसी भी तरह का ऐक्सिडैंट न हो. लेकिन, यह स्लोगन हर इंसान के लिए हर समय के लिए भी है. घटनादुर्घटना कभी भी किसी भी तरह की घट सकती है. यह जरूरी नहीं कि सड़क पर ही दुर्घटना घटती है. यहां कुछ ऐसे ही हुए हादसों का जिक्र किया जा रहा है.

कैंची की करामात

ट्रेन तेज गति से चली जा रही थी. हमारे डब्बे में एक महिला सामने की सीट पर अपनी ढाईतीन वर्षीया बच्ची को गोद में ले कर बैठी हुई थी. बच्ची बेहोशी में कभीकभी कराह उठती थी. महिला उसे थपकती हुई अपने आंसू पोंछती जा रही थी. कुछ देर के बाद जब मुझ से रहा नहीं गया तो मैं ने पूछ ही लिया, ‘बहनजी, बच्ची को क्या तकलीफ है? इस की आंख पर पट्टी क्यों बंधी हुई है? और आप रो क्यों रही हैं?’

मुझ से सहानुभूति पा कर उस का सब्र का बांध ही टूट पड़ा. रोते हुए उस ने जो घटना सुनाई उस का सार यह था- 4 दिनों पहले बच्ची दोपहर में दरी पर सो रही थी. मां ने सोचा, थोड़ी सिलाई कर लूं, उठने पर यह बहुत तंग करती है, कभी मशीन पकड़ लेती है तो कभी कपड़ा खींचती है. घंटेडेढ़घंटे का समय मिल जाएगा. सर्दी बहुत थी, सो वह मशीन उठा कर आंगन में धूप में ले जा रही थी. मशीन पर कैंची रखी हुई थी. जैसी कि महिलाओं की आदत होती है, कैंची मशीन पर ही रख देती हैं.

बच्ची के पास से मशीन ले जाते समय न मालूम कैसे कैंची फिसल कर ठीक बच्ची की आंख पर जा गिरी. फल की तरफ से गिरी थी, एक फल आंख में और दूसरा मस्तक में जा धंसा. बच्ची चीत्कार कर उठी, खून के फौआरे छूट गए. महिला की चीख सुन कर पासपड़ोस के लोग इकट्ठे हो गए. डाक्टर बुलाया गया.

काफी देखभाल के बाद नेत्र चिकित्सक ने यह कहा कि प्राथमिक चिकित्सा तो मैं कर देता हूं पर आंख जाने की पूरी संभावना है. आप दिल्ली में एम्स में दिखा लीजिए, शायद आंख बच जाए. सो, इसे दिल्ली ले जा रहे हैं.

सुन कर मेरा दिल दहल उठा. बच्ची सुंदर और भोलीसी दिखाई दे रही थी. 2-3 दिनों की असह्य पीड़ा से बिलकुल मुरझाया हुआ फूल सी प्रतीत हो रही थी. बेचारी मां की असावधानी का परिणाम भुगत रही थी.

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मौत का कुआं

कुछ वर्षों पहले जब हम जोधपुर में रहते थे, एक रविवार को हमारे यहां बाहर से कुछ मेहमान आए हुए थे. हम लोगों ने भंडोर कायलाना आदि देखने के बाद चिडि़याघर देखने का प्रोग्राम बनाया. हमारे मेहमान के छोटेछोटे बच्चे थे, हम ने सोचा बच्चे आनंदित होंगे. चिडि़याघर देखते हुए हम शेरों की खाई की तरफ आए. वह कुछ अलगथलग सी जगह में है. काफी गहरी खाई है, जिस प्रकार सर्कस में मौत का कुआं होता है.

खाई में एक खूंखार सा शेर दहाड़ता हुआ घूम रहा था. जंगल के राजा को कैद देख कर लोग मजे ले रहे थे. दर्शकों के मध्य एक दंपती अपने छोटे से शिशु को बड़ी दिलचस्पी से शेर दिखा रहे थे. शायद वे दंपती किसी छोटे से कसबे के रहने वाले थे और पत्नी पहली बार ही शहर आई थी. वह बड़ी प्रसन्न नजर आ रही थी. महिला ने शिशु को मुंडेर पर बैठाया हुआ था और कस कर पकड़ रखा था. पतिपत्नी दोनों बातों में मग्न थे.

अचानक 2 गिलहरियां लड़तेलड़ते महिला के पैर पर से गुजर गईं. महिला एकदम से उछली और उस के हाथ से शिशु छूट गया व सीधा जा कर खाई में गिरा. वातावरण में महिला और शिशु की चीखें गूंज रही थीं. सब लोग निरुपाय खड़े देख रहे थे. पलभर में वहां मेला सा लग गया. सब महिला और उस के पति को कह रहे थे कि बच्चे को मुंडेर पर बैठाया ही क्यों? हमारा मन इतना खराब हो चुका था कि पलभर भी वहां ठहरना मुश्किल लग रहा था. मेरी भतीजी ने अपने डेढ़ वर्षीय शिशु को कस कर सीने से चिपकाते हुए कहा, ‘मुझे चक्कर आ रहे हैं, जल्दी घर चलो.’

यह ठीक है कि ऐसी दुर्घटनाएं रोज नहीं होतीं, लेकिन मां अगर अपने बच्चे पर पूरी चौकसी रखती, तो दुर्घटना टाली जा सकती थी. क्या इस दुर्घटना के अपराध से मातापिता दोषमुक्त हो सकते हैं?

बेसन का हलवा

कभीकभी बच्चों से मजाक काफी महंगा पड़ जाता है. माला के 2 वर्षीय बेटे को हलवा काफी पसंद था. एक दिन उस ने कड़ाही में साबुन बनाया. साबुन घुटने के बाद एकदम बेसन के हलवे जैसा लग रहा था. पप्पू खेलता हुआ वहां आ गया. उस ने मां से पूछा, ‘यह क्या बनाया है?’ माला के पति वहीं खड़े थे. उन्होंने हंस कर कहा, ‘हमारे राजा बेटे के लिए ममा ने हलवा बनाया है.’ यह कह कर वे चल दिए. किसी कार्यवश माला को भी पड़ोस में जाना पड़ा.

पप्पू ने मैदान साफ देख कर हलवे पर हाथ साफ करना चाहा. उस ने कड़ाही में से मुट्ठीभर कर कथित हलवा निकाल कर मुंह में भर लिया और जल्दीजल्दी निगलने लगा.

पर यह क्या? मुंह बेहद कसैला हो गया, आंखों से आंसू निकलने लगे. पप्पू की तो हालत खराब. अचानक माला ने बच्चे को देख लिया. वह भागती आई. उंगली डाल कर बच्चे का मुंह साफ किया. मुंह से झाग ही झाग निकलता जा रहा था और जो साबुन फूड पाइप और श्वास नलिका में चला गया था उस ने बच्चे को बेहाल कर दिया. तुरंत डाक्टर को दिखाया गया. डाक्टर ने ग्लूकोज का पानी पिलाया, गले में दवाई लगाई.

एक सप्ताह तक बच्चे की हालत इतनी खराब रही कि वह ठोस खाना नहीं खा सकता था. पूरे मुंह में छाले ही छाले हो गए थे. माला के पति उस घड़ी को कोस रहे थे जब उन्होंने मजाक में साबुन को बेसन का हलवा बताया था.

आम का थाल

एक बार मेरी बड़ी बहन अपने 2 वर्षीय बच्चे के साथ हमारे यहां आई हुई थीं. गरमी के दिन थे, आमों की बहार थी. पिताजी बाजार से काफी आम लाए थे. टोकरी में भरने के बाद भी कुछ आम बच गए. मां ने उन्हें एक थाल में डाल कर ऊपर ताक पर रख दिया. वहीं रसोई में बैठी हुई मां आम का अचार डाल रही थीं कि जीजी का बेटा मचल गया कि मैं तो 2 आम लूंगा.

जीजी ने बच्चे को आम देने के लिए थाल की तरफ हाथ बढ़ाया. आम अधिक थे, गिरने लगे. उन्हें संभालने में थाल का संतुलन बिगड़ गया और थाल हाथ से छूटता हुआ नीचे बैठी हुई मां के सिर पर गिरा. थाल किनारे वाला था, किनारे से थाल करीब 3 इंच सिर में धंस गया. खून के फौआरे छूट गए. थाल बड़ी मुश्किल से निकाला गया. मां को तुरंत अस्पताल ले गए, उन्हें अतिरिक्त खून देना पड़ा. कई वर्षों तक मां के सिर की पीड़ा उस घटना की याद दिलाती रही.

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रजाईगद्दे जान के दुश्मन

नीता अपने 3 माह के शिशु को ले कर मामा के बेटे की शादी में आई हुई थी. उस की सास ने भेजने से इनकार कर दिया था कि बच्चा अभी छोटा है, सर्दी बहुत ज्यादा है, शादी की भीड़ में तुम बच्चे का ध्यान नहीं रख पाओगी. वैसे भी 2 शिशु खोने के बाद बड़ी मुश्किल से यह बच्चा हुआ था. किंतु नीता की जिद के सामने सास को हार माननी पड़ी.

सब से मिल कर नीता बहुत खुश थी. 2 दिन आराम से निकल गए. तीसरे दिन सुबह नीता ने बच्चे को दूध पिला कर जमीन पर बिछे गद्दे पर एक कोने में सुला दिया ताकि आतेजाते किसी की ठोकर न लग जाए. फिर वह मां के बुलाने पर रसोई में चायनाश्ते का प्रबंध करने चली गई. इधर, मामी ने नौकरानी को आदेश दिया कि दूसरे कमरे के सारे रजाईगद्दे उठा कर एक कोने में जमा दे. नौकरानी 3-4 गद्दे और कुछ रजाइयां सिर पर रख कर लाई. वजन बहुत था और उसे कुछ दिख नहीं रहा था. सो, धप्प से रजाईगद्दे कोने में डाल दिए.

अचानक नीता को बच्चे का ध्यान आया. देखा बच्चा कहां गया? मैं तो कोने में सुला कर गई थी. एकदम विचार कौंधा कि कहीं बच्चा दब तो नहीं गया. रजाईगद्दे उठा कर देखा, बच्चा अंतिम सांसें ले रहा था. नीता ने रोरो कर सारा घर सिर पर उठा लिया. वह तो गनीमत थी कि मेहमानों में 2 दामाद डाक्टर थे. तुरंत बच्चे को प्राथमिक उपचार के बाद अस्पताल ले जाया गया. बच्चे के थोड़ा ठीक होते ही नीता तुरंत ससुराल के लिए रवाना हो गई. नीता को सास की बात न मानने का बहुत अधिक दुख हो रहा था.

रंग में भंग

सुरेश बाबू के बेटे पिंकू की चौथी वर्षगांठ थी. उन्होंने उत्सव को खूब धूमधाम से मनाने का निश्चय किया था. करते भी क्यों न, 5 पीढि़यों के बाद जो घर में पुत्र दिखाई पड़ा था. पुत्रजन्म के बाद ही माया अपनेआप को रानी से कम नहीं समझती थी. उस ने ऐसा करिश्मा कर दिखाया था जो उस की 5-5 पूर्वज नहीं कर सकी थीं.

इस के पहले उन के घर में हमेशा गोद लिए हुए बेटे ही आते रहे हैं. उत्सव में शहर के गणमान्य व्यक्तियों को निमंत्रित किया गया था. समय से पहले ही पिंकू के नन्हे मित्र आने शुरू हो गए थे. पूरे हौल की शोभा दर्शनीय थी. निश्चित समय पर केक काटा गया. चारों तरफ हैप्पी बर्थडे टू यू की ध्वनि गूंज रही थी. बच्चे उछलउछल कर गुब्बारे लूटने लगे.

कुछ बच्चे एक ओर खड़े हुए टूटे हुए गुब्बारों कोे मुंह में डालडाल कर बिटकनियां बनाने लगे. अचानक बच्चों के मध्य बड़ी जोर का कोलाहल मच गया. पता चला कि पिंकू बेहोश हो गया है. उस की सांस की गति कम हो रही है, हाथपैर ढीले पड़ चुके हैं. हुआ यह कि गुब्बारे का टुकड़ा फट कर श्वास नलिका पर चिपक गया. काफी कोशिश करने पर भी वह टुकड़ा निकल न सका. देखते ही देखते बालक की आंखें पलट गईं. डाक्टर के आने तक तो वह समाप्त हो चुका था. एक हरीभरी बगिया उजड़े उद्यान में परिणत हो गई.

मैं तो अच्छे किरदार के लिए इंतजार करता हूं : राज कुमार राव

राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता कलाकार राज कुमार राव निरंतर आगे बढ़ते जा रहे हैं. वह अपनी हर फिल्म के साथ साबित करते आ रहे हैं कि अभिनय में उनका कोई दूसरा सानी नही है. और उनके  अंदर हर तरह के किरदार निभाने की अपार क्षमता है. आप उन्हें किसी एक ईमेज में नहीं बांध सकते. फिलहाल वह मिखिल मुसाले निर्देशित व 25 अक्टूबर को प्रदर्शित हो रही फिल्म ‘‘मेड इन चाइना’’ को लेकर चर्चा में हैं, जिसमें वह एकदम नए अवतार में नजर आएंगे.

प्रस्तुत है उनसे हुई एसक्लूसिव बातचीत के अंश.

आपके करियर के टर्निंग प्वाइंट्स क्या रहे ?

सबसे पहले तो ‘लव सेक्स धोखा है, उसके बाद ‘शाहिद’ है. फिर ‘बरेली की बर्फी’ है, जिसने मुझे लोगों के सामने एक नए अवतार में पेश किया. फिर ‘स्त्री’ है, जिसने बौक्स औफिस पर बहुत बड़ी कमायी की.

आज आप मानते हैं कि ‘‘लव सेक्स धोखा’’ जैसी फिल्म करना सही कदम था?

यह अच्छी शुरूआत थी. लोग कहां कहां से बौलीवुड में अपना कैरियर बनाने आते हैं, पर संघर्ष करते रह जाते हैं. मगर मेरे मुंबई पहुंचने के दो वर्ष के अंदर ही मुझे दिवाकर बनर्जी और एकता कपूर के साथ ऐसी फिल्म करने का अवसर मिला, जिसे बौलीवुड के फिल्म मेकरों ने देखी और तारीफ की. इस फिल्म की वजह से कई फिल्म मेकरों की निगाह मेरी तरफ गया. इसी के चलते मुझे हंसल मेहता की फिल्म ‘शाहिद’ मिली. वहीं से मेरे करियर ने गति पकड़ ली. तो मेरे लिए खुशी की बात है कि छोटे बजट की फिल्म को जबरदस्त सफलता मिली.

जब आपने ‘बरेली की बर्फी’ से खुद को बदलते हुए नए अवतार में उतरे थे तो उम्मीद थी कि लोग आपको पसंद कर लेंगे?

जी नही. ऐसा बिलकुल नही लगा था. वैसे भी जब मैं किसी किरदार को निभा रहा होता हूं, उस वक्त नहीं सोचता कि वह कितना पसंद आएगा. पर मुझे उम्मीद नहीं थी कि लोग इतना पसंद करेंगे. लोगों का इतना प्यार मिलेगा. मैं खुद सिनेमाघर में फिल्म देखने गया था, तो लोग तालियां बजा रहे थे.

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आज आप एक अच्छे मुकाम पर हैं. धन और शोहरत के साथ साथ राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल गया. फिर भी आपको किस चीज की कमी महसूस होती है?

माता पिता के न होने की कमी महसूस होती है, जो जिंदगी भर रहेगी. खासकर मां की कमी बहुत महसूस होती है. क्योंकि उनकी इच्छा थी कि वह मुझे सिनेमा के परदे पर नृत्य करते हुए देखें. पर ‘न्यूटन’ की शूटिंग के दौरान वह गुजर गयी थी. जिंदगी भर इस बात का मलाल रहेगा कि वह होती, तो मुझे डांस करते हुए देखती और ‘स्त्री’ की सफलता को देखती.

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तब तो फिल्म ‘स्त्री’ में डांस करते हुए आपको अपनी मां की बहुत याद आयी होगी?

जी हां! क्योंकि वह हमेशा चाहती थीं कि वह मुझे कौमेडी करते हुए और डांस करते हुए देखें. इससे पहले वह मुझे ‘शाहिद’ व ‘अलीगढ़’ जैसी फिल्मों में ज्यादातर संजीदा किरदारों में ही देखा था. वास्तव में हम बचपन से नौटंकी व रामलीला आदि में यही सब देखते हुए बड़े हुए थे, तो वह चाहती थीं कि मैं फिल्मों में ऐसा कुछ करुं.

फिल्म ‘‘मेड इन चाइना’’ के अपने किरदार को लेकर क्या कहेंगें?

यह फिल्म गुजरात के एक एंटरप्रिनोर की कहानी है. मैंने इसमें अहमदाबाद, गुजरात में रहने वाले युवा व्यवसायी का किरदार निभाया है, जो अपने परिवार के लिए कुछ करना चाहता है, मगर उसे असफलता ही हाथ लग रही है. वह प्यारा इंसान है. अब तक वह तेरह चौदह व्यापार में हाथ आजमा चुका है. कभी रोटी मेकर, कभी नेपाल हैंडीक्राफ्ट, तो कभी कुछ और स्ट्रगल करते हुए वह चाइना पहुंच जाता है. वहां पर उसे सेक्स परफार्मेंस से जुड़ी एक आइडिया मिलती है और वह उस आइडिया के साथ भारत आकर भारत के जुगाड़ के साथ व्यवसाय शुरू करता है. फिर कई चीजें बदलती हैं. वह सफलता की उंचाइयां छूता है. इसमें वह सेक्सोलौजिस्ट डाक्टर वर्धी की भी मदद लेता है.?

इसी वजह से फिल्म में सेक्सोलौजिस्ट डौक्टर संग आपकी दोस्ती… ?

जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि रघु चाइना से सेक्स परफार्मेंस बढ़ाने की एक आइडिया लेकर आता है, तो उसे भारत में एक डाक्टर की जरुरत महसूस होती है. क्योंकि हमारे यहां लोग डाक्टर के कहने पर ही दवा लेते हैं. रघु डाक्टर वर्धी से मिलता है, जो कि बहुत ही आदर्शवादी डाक्टर हैं. वह उनके साथ भागीदारी करने के लिए कहता है. डा. वर्धी के संग उसके बहुत अच्छे इक्वेशन बन जाते हैं. पर फिर दोनो अलग भी हो जाते हैं.

तो क्या ‘‘मेड इन चाइना’’ सेक्स पर आधारित फिल्म है?

देखिए, यह फिल्म दिवाली के मौके पर सिनेमाघरों में आ रही है. फिल्म में सिच्युएशनेबल हास्य है. यह पूरी तरह से पारिवारिक फिल्म है. आप अक्सर अखबारों में पढ़ते होंगे कि लोगों में सेक्स को लेकर आज भी कई तरह की गलत भ्रांतियां हैं. हमारी फिल्म हास्य के साथ उन्ही भ्रांतियों को लेकर कुछ कहने का प्रयास करती है.

फिल्म में गुजरात का माहौल व गुजराती किरदार रखे जाने की कोई खास वजह रही?

क्योंकि इसकी मूल लेखक परिंदा गुजराती हैं. उन्होंने यह उपन्यास गुजराती भाषा में ही लिखा था. निर्देशक मिखिल स्वयं गुजरात से हैं और उन्होंने यह उपन्यास पढ़ा हुआ था. पटकथा लेखक करण व निरेन भी गुजरात से हैं. फिर जब भी बड़े बिजनेसमैन का नाम आता है, तो लोगों के दिमाग में सीधे गुजरात ही आता है. गुजरातियों में हर युवा कुछ अपना नया काम करना चाहता है. इसलिए इस फिल्म में गुजराती किरदार व गुजराती माहौल है.

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लोगों को फिल्म ‘‘मेड इन चाइना’’ क्या संदेश देगी?

हम लोगों को हंसाने के साथ ही यह भी कहने का प्रयास कर रहे हैं कि अगर आपको जिंदगी में कुछ बनना है, कुछ करना है, तो जिंदगी व करियर की शुरूआत में असफलता मिलने के बावजूद आपको लगे रहना होगा. हार नही माननी है. यह कहानी लोगों को ‘‘नेवर गिव अप’’ एटीट्यूड सिखाएगी.

आप सोशल मीडिया पर कितना सक्रिय /एक्टिव हैं?

जितना होना चाहिए. बहुत ज्यादा नही. मेरी सक्रियता फिल्म की रिलीज के वक्त ही होती है. उस वक्त फिल्म से संबंधित जानकारियां सोशल मीडिया पर पोस्ट करनी होती हैं. पर मैं सोशल मीडिया पर दुनिया भर की जानकारी हासिल करने के लिए पढ़ता रहता हूं.

कुछ कलाकारों ने सोशल मीडिया को कमाई का साधन बना रखा है. आप इसे कितना सही कदम मानते हैं?

गलत कुछ नही. यह तो एड फिल्म करने जैसा ही है. एड फिल्म के लिए कलाकार पैसा लेता है, उसी तरह सोशल मीडिया पर कुछ पोस्ट करने के लिए पैसा लेता है, तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है.

पर सोशल मीडिया के फालोवर्स फिल्म के बाक्स अफिस पर कितना असर डालते हैं?

बिलकुल नही पड़ता. बौक्स आफिस पर इस बात का असर पड़ता है कि फिल्म कैसी बनी है.

जब आपने बौलीवुड में कदम रखा, उन्ही दिनों सिनेमा बदलना शुरू हुआ था. क्या आपको लगता है कि आपको उसका फायदा मिला?

जी हां! मुझे सिनेमा में आ रहे बदलाव का फायदा मिला. मैं अकेला तो कुछ बदल नही सकता था. क्योंकि मैं किसी ताकत के साथ तो आया नहीं था. जब मैं 2010 में यहां आया, उस वक्त तक सिनेमा को बदलने वाले यह सभी लोग आ चुके थे. श्रीराम राघवन, विशाल भारद्वाज, दिवाकर बनर्जी, अनुराग कश्यप, विक्रम मोटवानी, हंसल मेहता यह सभी आ चुके थे. तो सिनेमा बदलना शुरू हो गया था, उसी दौर में मैं यहां आया. फिर सिनेमाहाल बदलते गए. पिछले तीन वर्ष में तो सिनेमा व दर्शकों में काफी बदला आया है. अब दर्शक फिल्म में कहानी देखना चाहता है. नए किरदार देखना चाहते है. उसी का नतीजा है कि मेरे जैसे कलाकार अच्छा काम कर रहे हैं.

बीच में आपने लगातार कुछ फिल्में हंसल मेहता के साथ की थी, अब आप अलग अलग निर्देशकों के साथ फिल्में कर रहे हैं?

हंसल मेहता के साथ भी फिल्में कर रहा हूं. हमने उनके साथ एक फिल्म ‘तुर्ररम खां’ की शूटिंग पूरी कर ली है, जिसका नाम शायद बदलेगा. वह भी बहुत अलग तरह की कहानी है. हंसल मेहता भी पहली बार खुद को ब्रेक कर रहे हैं और मैं भी इस फिल्म में अपने आपको ब्रेक कर रहा हूं. हम दोनो ने सोचा कि हमसे लोग जो आपेक्षा रखते हैं, उससे कुछ अलग किया जाए.

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आपके दिमाग में कोई कहानी या किरदार है, जिसे आप करना चाहते हों?

जी नहीं.. मैं तो अच्छे काम के लिए इंतजार करता हूं. मैं ढेर सारी कहानियां को पढ़ता हूं और फिर उनमें से कुछ अच्छा चुनने का प्रयास करता हूं.

किसी भी फिल्म के किरदार को निभाने में ज्यादा से ज्यादा लोगों से बातचीत करना मददगार साबित होता है या सिर्फ पटकथा से चिपके रहना?

पटकथा तो महत्वपूर्ण होती है, पर उसके बाद कम से कम निर्देशक के संग बैठकर बातचीत करना बहुत मददगार साबित होता है. कलाकार के लिए यह समझना जरुरी है कि फिल्म और किरदार को लेकर निर्देशक का अपना विजन क्या है?  लेखक का प्वांइंट आफ व्यू समझना भी जरुरी होता है. उसके बाद हम अपनी कल्पना और अपनी चीजें पिरोकर उस किरदार को परदे पर साकार करते हैं.

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आप अभी खुद को आउट साइडर मानते हैं?

देखिए, मेरी सोच आज भी वही है जो गुड़गांव में रहते हुए थी. मैं आज भी सड़क पर शूटिंग होते देखकर रूक जाता हूं. मैं भूल जाता हूं कि मैं भी इसी का एक हिस्सा हूं. उस लिहाज से मैं भी आउट साइडर हूं.

दीवाली 2019: घर पर बनाएं हांडी पनीर

हांडी पनीर बहुत ही टेस्टी रेसिपी है. इस मसालेदार डिश को आप घर पर आसानी से बना सकते हैं. तो देर किस बात की, आईये जानते हैं इसकी रेसिपी.

 सामग्री

पनीर 200 ग्राम

हल्दी पाउडर 1/2 चम्मच

गरम मसाला 1/2 चम्मच

पानी 1/2 कप

पिसी हुई काली मिर्च 2 चुटकी

अदरक के टुकड़े 2 घिसे हुए

मिर्च पाउडर 1/2 चम्मच

टमाटर 1 बारीक कटा

कटी हुई धनिया की पत्ती मुट्ठीभर

रिफाइंड तेल 4 टेबलस्पून

प्याज 3 कटे

दही 1/2 कप

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बनाने की वि​धि

हांडी में तेल डालें, मध्यम आंच पर कटा हुआ प्याज फ्राई करें इसके बाद आंच धीमी कर लें, इसके बाद अदरक, हल्दी, मिर्च, गरम मसाला डालकर अच्छी तरह मिलाएं.

बारीक कटा हुआ टमाटर और हरी मिर्च डालें और धीमी आंच पर 10 मिनट तक पकाएं.

नमक डालने से पहले आधा कप दही डालर सूखने तक पकाएं। आधा कप पानी डालकर उबाल आने दें.

पनीर और कटी हुई धनिया मिलाएं और मसाले के सूखने तक इसे पकाएं.

काली मिर्च डालकर इसे आंच से हटा लें और धनिया से गार्निश करें.

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हिन्दूराज में हिन्दूवादी नेता का कत्ल:  कमलेश तिवारी हत्याकांड

उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार है. जो हिन्दूओं की रक्षा का दम भरती है. प्रदेश की राजधानी लखनऊ में सरकार की नाक के नीचे 18 अक्टूबर कर दोपहर हिन्दूवादी नेता कमलेश तिवारी की हत्या दिनदहाड़े घर में घुरकर हत्या कर दी गई. कमलेश तिवारी का घर लालकुआ के खुर्शिदबाग में भीडभाड वाली जगह पर था.

कमलेश तिवारी की हत्या के बाद हत्यारे आराम से फरार हो गये. लखनऊ पुलिस कमलेश हत्याकांड को आईएसआईएस के इस्लामिक जेहाद से जोड जांच कर रही है. घटना में उत्तर प्रदेश से लेकर गुजरात, पंजाब और नेपाल तक बिखरी कड़ियों को मिला रही है. 22 अक्टूबर हत्या के 5 दिन के बाद भी गुजरात एटीएस ने हत्यारों अशफाक और पठान मोइनीउउदीन को पकड़ने में सफलता पाई. कमलेश तिवारी की मां कुसुमा तिवारी हत्याकांड में सीतापुर के भाजपा नेता शिवकुमार गुप्ता का नाम ले रही थी. पुलिस ने मां के सीधे आरोप के बाद भी भाजपा नेता से पूछताछ तक नहीं की है.

कमलेश तिवारी की हत्या बहुत ही आराम से की गई. भगवा रंग के कुर्ते पहने दोनो युवक अशफाक और पठान मोइनीउउदीन उनके घर पंहुचें. मिठाई के डिब्बे में चाकू और पिस्तौल छिपाये हुये थे. दोपहर पौने 12 बजे दोनो वहां पहुचे. कमलेश से मुस्लिम लड़की की हिन्दू लडके से शादी कराने के मसले में दखल देने की बात कर रहे थे. इस बीच कमलेश से दोनो दही बड़ा खिलाया. कमलेश की पत्नी उनको चाय दे गई. चाय देने के बाद कमलेश ने पार्टी कार्यकर्ता सौराष्ट्र सिंह को सिगरेट और पान मसाला लेने नीचे दुकान तक भेजा. जब वह वापस आया तब तक दोनो युवक चाकू से गला रेत कर फरार हो चुके थे. चाकू से गला रेतने के बाद शरिर पर पीठ और पेट कर तरफ चाकू से वार के कई घाव थे. इसके बाद भी कमलेश जिंदा ना रह जाये इसलिये पिस्तौल से भी गोली मारी थी.

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नात्थू राम गोड्से थे आदर्श

कमलेश तिवारी खुद को हिन्दू नेता के रूप में स्थापित करने की कोशिश में थे. धर्म से राजनीति की तरफ जाना चाहते थे. अपनी कट्टरवादी छवि से वह पूरे देश में अपना प्रचार प्रसार करना चाहते थे. कमलेश तिवारी ने अपने करियर की शुरूआत हिन्दू महासभा से की. इसके वह प्रदेश अध्यक्ष भी बने. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की विधानसभा से मात्र 3 किलोमीटर गुरूगोबिंद सिंह मार्ग के पास खुर्शेदबाग में हिदू महासभा का प्रदेश कार्यालय था. खुर्शेदबाग का नाम हिन्दू महासभा के कागजों पर वीर सावरकर नगर लिखा जाता था. कमलेश तिवारी नात्थूराम गोड्स को अपना आदर्श मानता था. घर पर उनकी तस्वीर लगी थी. कमलेश तिवारी सीतापुर स्थित अपने गांव में नात्थूराम गोड्से के नाम पर मंदिर भी बनाने की बात कही थी.

कमलेश तिवारी मूलरूप से सीतापुर जिले के संदना थाना क्षेत्र के पारा गांव के रहने वाले थे. साल 2014 में वह अपने गांव में नात्थूराम गोडसे के मंदिर को बनवाने को लेकर चर्चा में आये थे. 18 साल पहले कमलेश पारा गांव छोड़कर परिवार के साथ रहने महमूदाबाद चले गये थे. उनके पिता देवी प्रसाद उर्फ रामशरण  महमूदाबाद कस्बे के रामजनकी मंदिर में पुजारी थे. कमलेश पारा गांव में गोडसे का मंदिर बनवाना चाहते थे. 30 जनवरी 2015 को उनको मंदिर की नींव रखनी थी. इसी बीच पैगंबर पर टिपप्णी को लेकर वह दूसरे मामलें में उलझ गये. महमूदाबाद में कमलेश के पिता रामशरण मां कुसुमा देवी, भाई सोनू और बड़ा बेटा सत्यम तिवारी रहते है.

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कमलेश तिवारी हिन्दू महासभा के प्रदेश कार्यालय से संगठन का काम देखते थे. कुछ समय के बाद वह अपने बेटे रिशी और पत्नी किरन तिवारी और पार्टी कार्यकर्ता सौराष्ट्र सिंह के साथ इसी कार्यालय के उपरी हिस्से में रहने लगे. साल 2015 में जब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी तब कमलेश तिवारी ने मुस्लिम पैगंबर पर आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी थी. जिसके बाद मुस्लिम वर्ग में आक्रोश भड़का और सहारनपुर में रहने वाले मौलाना ने तो कमलेश तिवारी का सर काटने वाले को इनाम देने की घोषणा कर दी थी. इसके बाद उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार ने कमलेश तिवारी को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून यानि रासूका के तहत जेल भेज दिया गया.

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कमलेश के जेल जाने के बाद हिन्दू महासभा ने उनकी पैरवी नहीं की. इस बात को लेकर कमलेश तिवारी काफी खफा थे. जेल से छूटने के बाद संगठन पर खुलकर अपना साथ ना देने का आरोप लगाया था. कमलेश तिवारी का कहना था कि हिन्दू महासभा में एक नहीं 8 राष्ट्रीय अध्यक्ष है. ऐसे में यह संगठन ठीक तरह से काम नहीं कर रहा. ऐसे में कमलेश तिवारी ने ‘हिंदू समाज पार्टी’  के नाम से अपना अलग संगठन बनाया. कमलेश तिवारी खुद इस सगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गये. कमलेश तिवारी का लक्ष्य धार्मिक संगठन से राजनीति पकड़ को मजबूत करने की थी. 2019 के लोकसभा चुनाव में वह अयोध्या से लोकसभा का चुनाव भी लड़े थे. कमलेश अब अपनी राजनीति को अयोध्या में केन्द्रित करना चाहते थे. कमलेश को लगता था कि 2022 के विधानसभा चुनाव में वह भाजपा का विकल्प बन सकते है. ऐसे में वह हिन्दू समाज पार्टी को विस्तार देने का काम करने लगे थे.

भाजपा के विरोध में थे कमलेश तिवारी

एक तरफ कमलेश तिवारी खुद को हिन्दूवादी नेता मानते थे. दूसरी तरफ भाजपा और उससे जुड़े लोग कमलेश को कांग्रेसी बता कर उनकी आलोचना करते थे. कमलेश कहते थे कि ’30 साल की उम्र में हम जेल गये. हिन्दूओं को जगा रहे है. लाठी खाई और आन्दोलन किया. इसके बाद भी भाजपा और उसके आईटी सेल के लोग मुझे कांग्रेसी बताते है. हिन्दूओं का विरोध करने वाली समाजवादी पार्टी की सरकार में मुझे 12-13 पुलिस सिपाहियों की सुरक्षा मिली थी. योगी सरकार ने सुरक्षा हटा दी और केवल एक सिपाही ही सुरक्षा में दिया. इससे साफ जाहिर होता है कि मुझे मारने की साजिष में वर्तमान सरकार भी हिस्सेदार बन रही है.’ कमलेश तिवारी ने यह बयान सोषल मीडिया पर पोस्ट किया था. सुरक्षा वापस लिये जाने के पहले भी कमलेष तिवारी भारतीय जनता पार्टी के विरोध में थे.

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कमलेश तिवारी को लगता था कि भाजपा केवल हिन्दुत्व का सहारा लेकर सत्ता में आ गई है. अब वह हिन्दुओं के लिये कुछ नही कर रही. कमलेश के ऐसे विचारों का ही विरोध करते भाजपा से जुड़े लोग कमलेश को कांग्रेसी कहते थे. कमलेश तिवारी को लग रहा था कि देश में हिन्दुत्व का जो महौल बना है उसका लाभ उनकी हिन्दू समाज पार्टी को मिलेगा. 27 सितम्बर को हुई पार्टी की मीटिंग में ‘2022 में एचएसपी की सरकार‘ के नारे लगे थे. अपनी पार्टी को गति देने के लिये कमलेश तिवारी ने देश के आर्थिक हालात, पाकिस्तान में हिन्दुओं पर अत्याचार, बंगाल में हिन्दुओं की हत्या, नये मोटर कानून में बढ़े जुर्माना का विरोध, जीएसटी जैसे मुददो पर भाजपा की आलोचना की. इन मुददों को लेकर वह राजधानी लखनऊ में धरना प्रदर्शन भी कर चुके थे. ऐसे में भाजपा के खिलाफ विरोध को समझा जा सकता है.

सोशल मीडिया पर थे बडी शख्सियत

उत्तर प्रदेश की राजधानी में भले ही कमलेश तिवारी को बड़ा नेता नहीं माना जाता था. इसके बाद भी सोशल मीडिया में वह मजबूत हिन्दूवादी नेता के रूप में पहचाने जाते थे. कमलेश तिवारी हिन्दुत्व की अलख सोशल मीडिया के जरीये जला रहे थे. फेसबुक, वाट्सएप, और ट्विटर पर कमलेश हिन्दूत्व के पक्ष में अपने विचार देते रहते थे. आपत्तिजनक टिप्पणी के कारण फेसबुक उनकी प्रोफाइल बंद कर देता था. ऐसे में कमलेश तिवारी के नाम पर 270 से अधिक टिप्पणी बनी हुई थी. उत्तर प्रदेश में भले ही कांग्रेस नेताओं को कमलेश तिवारी की हत्या कानून व्यवस्था का मसला लगती हो पर मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कमलेश तिवारी की हत्या पर सवाल उठाते कहा कि ‘कमलेश तिवारी की हत्या सुनियोजित है या नहीं यह उत्तर प्रदेश सरकार बताये?  कमलेश की मां जिस शिव कुमार गुप्ता का नाम ले रही उसको पकड़ा क्यो नहीं गया? शिव कुमार गुप्ता भाजपा नेता है क्या इस लिये उनको पकड़ा नहीं जा रहा.? ‘ दिग्विजय सिंह ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी सवाल किये.

कमलेश तिवारी की हत्या का आरोप जिन लोगों पर है वह भी कमलेश को सोशल मीडिया से ही मिले थे. पुलिस कहती है कि कमलेश तिवारी की हत्या करने वाले अशफाक ने रोहित सोलंकी राजू के नाम से अपना फेसबुक बनाया था. उसने खुद को मेडिकल कंपनी में जौब करने वाला बताया. जो मुम्बई का रहने वाला था और सूरत में काम कर रहा था. उसने हिन्दू समाज पार्टी से जुड़ने के लिये गुजरात के प्रदेश अध्यक्ष जैमिन बापू से संपर्क किया. जैमिन बापू कमलेश तिवारी के लिये गुजरात में पार्टी का काम देखते थे. जैमिन बापू के सपर्क में आने के बाद ही रोहित ने दो फेसबुक प्रोफाइल बनाई. इसके बाद वह कमलेश से जुड़ गया. अब वह यहां पर हिन्दुओं से जुड़े देवी देवताओं की पोस्ट करने लगा.

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फेसबुक बना सहारा

अशफाक ने फेसबुक मैसेंजर पर कमलेश तिवारी से बात करनी शुरू की. वह एक लड़की की शादी के सिलसिले में उनसे मिलना चाहता था. कमलेश के करीबी गौरव से अशफाक ने जानपहचान बढ़ाई और उनके बारे में सब जानकारी लेता रहा. अशफाक बने रोहित सोलंकी के फेसबुक में हिन्दूवादी संगठनों के 421 लोग जुड़े थे. हत्या के एक दिन पहले उसने कमलेश तिवारी को फोन करके मिलने का समय बताया. कमलेश ने पत्नी किरन से कहा कि ‘बाहर से दो लोग आ रहे है कमरा साफ कर दो’. अशफाक और पठान मोइनउददीन कमलेश तिवारी के घर से कुछ दूरी पर बने होटल खालसा इन में एक रात पहले आकर रूक चुके थे. सुबह 11 बजे होटल से नाश्ता करके निकले और कमलेश के घर पंहुच कर बारदात को अंजाम देकर वापस होटल आये अपने कपड़े बदले और 15 मिनट के बाद होटल छोड़ कर चले गये. होटल वालों को किसी भी तरह का कोई संदेह नहीं हुआ.

पुलिस को घटना स्थल से 16 अक्टूबर की रात करीब 9 बजे सूरत से खरीदी गई मिठाई का डिब्बा और बैग मिला. यह मिठाई सूरत के उद्योगनगर उधना स्थित धरती फूड प्रोडक्स से खरीदी गई थी. डिब्बे में पिस्ता धारी मिठाई की रसीद मिली. इसके बाद लखनऊ पुलिस ने गुजरात पुलिस के बीच संपर्क किया तो साजिश की कडियां जुड़नी शुरू हुई. पुलिस ने अशफाक और पठान मोइनउददीन के सपर्क के कुछ लोगों को पकड़ा. जिस आधार पर यह कहा जा रहा है कि 1 दिसम्बर 2015 को जिस समय कमलेष तिवारी से पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी उसी समय से वह मुसलिम कटटरवादी ताकतों और आईएसआईएस के निशाने पर थे.

कमलेश तिवारी की पत्नी किरन तिवारी ने हत्या में सहारनपुर के दो मौलानाओं अनवारूल हक मुफ्रती नईम का नाम पुलिस को तहरीर में लिख कर दिया. इन दोनो ने कमलेश तिवारी का सिर काटने वाले को 1 करोड़ 11 लाख का इनाम और हीरो का हार देने की घोषणा की थी. पुलिस का कहना है कि जिस तरह से गला काट कर कमलेश तिवारी की हत्या की गई है वह आईएसआईएस का तरीका दिखता है. पुलिस ने हत्या की थ्यौरी में आईएसआईएस को सामने कर दिया है पर अभी तक मुख्य आरोपी पकड़ से दूर है. ऐसे में पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठ रहे है. पुलिस ने पहले पूरे मामले को निजी विवाद बताया था पर सूरत की मिठाई की दुकान की रसीद मिलने के बाद गुप्तचर सूचानाओं को आधार मानकर वह आईएसआईएस की तरफ चली गई है. कमलेश का परिवार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिला. उत्तर प्रदेश सरकार ने कमलेश के परिवार को मदद देने की बात कही. कमलेश की मां पुलिस के खुलासे से संतुष्ट नहीं है. जब तक मुख्य आरोपी पुलिस की पकड से दूर है कमलेश हत्याकांड का सच सामने आने से दूर दिख रहा है.

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‘कसौटी जिंदगी के 2’: कोमोलिका की वजह से होगा अनुराग का एक्सिडेंट

छोटे पर्दे का पौपुलर सीरियल ‘कसौटी जिंदगी के 2’ में दर्शकों को लगातार महाट्विस्ट देखने को मिल रहा है. इस शो के पिछले एपिसोड में आपने देखा कि जब प्रेरणा ने कुकी की जान बचाई तब से मिस्टर बजाज का बिहेव प्रेरणा के लिए बदलता जा रहा है. और ऐसे में मोकै मिलते ही उन्होंने प्रेरणा का तलाक भी दे दिया.

अब मिस्टर बजाज चाहते हैं कि प्रेरणा अनुराग के साथ अपनी खुशहाल जिंदगी जी पाए. ऐसे में इस शो के दर्शकों अनुराग और प्रेरणा की शादी का बेसब्री से इंतजार है. ‘कसौटी जिंदगी के 2’ के  अपकमिंग एपिसोड में ये दिखाया जाएगा कि प्रेरणा अनुराग को बताएगी कि वह उसके बच्चे की मां बनने वाली है. अनुराग काफी खुश होगा.

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At last she had to accept her because of Anu's love but I'm sure when Anu will loss her memory, Mohini will be the one to become a hurdle firstly like the previous time? This is temporary? Fc~ @ibfiltera ❤️ {Don't forget to watch Kasautii Zindagii Kay on TV at 8.pm Mon-Fri on Star plus. Let's rise kasautii back in TRP ratings. If our not giving the TRP made Bajaj out then our giving highest TRP can change the upcoming tracks too. Please don't post the whole epi on IG. Precap,Edits and updates are fine to keep the excitement intact}. . . . . @iam_ejf @the_parthsamthaan #ejf #erica #ericafernandes #ps #parth #parthsamthaan #theparthsamthaan #anuragbasu #prernasharma #anupre #parica #earth #kzk #kzk2 #kasautiizindagiikay #kasautiizindagiikay2 #bestjodi

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लेकिन इस शो के आने वाले एपिसोड में आप देखेंगे कि अनुराग और प्रेरणा की जिंदगी में एक हादसा होने वाला है. जी हां इस हादसा को अंजाम कोमोलिका देने वाली है.

अपकमिंग एपिसोड में ये दिखाया जाएगा अनुराग और प्रेरणा अपनी शादी की खुशी मनाएंगे तो वहीं दूसरी ओर कोमोलिका उसकी जिंदगी में फिर से वापसी करने की तैयारी करेगी. जल्द ही आप देखेंगे कि अनुराग का एक्सीडेंट हो जाएगा और इस एक्सीडेंट की प्लानिंग और प्लौटिंग कोमोलिका ही करने वाली है. इसी के साथ ही कोमोलिका धीरे-धीरे अनुराग को ये यकीन भी दिला देगी कि प्रेरणा के पेट में पल रहा बच्चा मिस्टर बजाज का है.

जब प्रेरणा को पता चलेगा कि अनुराग उस पर शक कर रहा है तो वह उससे दूर जाने का फैसला करने लगेगी. ऐसे में एक बार फिर से अनुराग और प्रेरणा की राहें हमेशा-हमेशा के लिए अलग हो जाएंगी.

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