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फिल्म रिव्यू: ‘सैटेलाइट शंकर’

रेटिंगः दो स्टार

निर्माताः मुराद खेतानी और अश्विन वर्दे

निर्देशकः इरफान कमल

कलाकारः सूरज पंचोली,मेघा आकाशउपेंद्र लिमये,अनिल के रेजी,पालोमी घोष,राज अर्जुन व अन्य.

अवधिः दो घंटे बीस मिनट

फिल्मकार इरफान कमल फिल्म‘‘सेटेलाइट’’शंकर में भारतीय सेना के एक जवान की जिंदगी की व उसकी प्रेम कथा लेकर आए हैं, जो कि एक बेहतरीन रोमांचक और रोमांटिक फिल्म बन सकती थी, मगर  फिल्मकार ने उसे देशभक्त और हर मुसीबत के समय लोगों की मदद के लिए कूद पड़ने वाले हीरो के रूप में पेश करने के चक्कर में फिल्म को चैपट कर डाला.

कहानीः

कहानी के केंद्र में केरला निवासी भारतीय सेना का जवान शंकर (सूरज पंचोली) है, जो कि कश्मीर सीमा पर कार्यरत है. उसकी बटालियन से जुड़े लोग उसे सैटेलाइट के नाम से जानते हैं, क्योकि उसके पास बचपन में उसके पिता द्वारा दिया गया एक उपकरण है, जिसकी मदद से वह किसी की भी मिमिक्री करके लोगों का मनोरंजन भी करता रहता है. वह केरला का रहने वाला है,मगर उसे हिंदी सहित कई दूसरे राज्यों की भाषाओं में भी महारत हासिल है. सैटेलाइट शंकर दूसरों की आवाजें निकालकर कई बार विषम परिस्थिति को भी अनुकूल बनाकर लोगों के बीच खुशियों की बहार ले आता है. सीमा पर गोलीबारी में घायल होने के बाद जब आर्मी अस्पताल के डाक्टर शंकर को आठ दिन अस्पताल में आराम करने की हिदायत देते हैं, तो वह अपने वरिष्ठ से बात कर आठ दिन अस्पताल में बिताने की बजाय अपने घर जाकर अपनी मां की आंख का आपरेशन कराकर वापस आने की आठ दिन की छुट्टी ले लेता है. उसके वरिष्ठ उसे सैनिक की शपथ दिलवाते हैं कि आठवें दिन वह अपने बेसकैंप सुबह मौजूद रहेगा.

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जब शंकर अपने शहर पोलाची के लिए रवाना होता है, तो उसकी बटालियन के साथी उसे अपने घरों के लिए संदेश और तोहफे उसके हाथ से भिजवाते हैं. घर जाते हुए ट्रेन में वह अपनी मां के कहने पर नर्स प्रमिला (मेघा आकाश) से बात कर उसे अपने दोस्त श्रीधर से बात करने के लिए कहता है. क्योंकि उसे प्रमिला की तस्वीर पसंद नहीं आयी थी. पर श्रीधर की बातें सुनकर शंकर को अपनी गलती का अहसास होता है. आगे चलकर रास्ते में वह पुनः प्रमिला से बात करते हैं.

कश्मीर से पोलाची जाते समय उसका एक सैनिक की तरह मददगार और निस्वार्थ स्वभाव उसके लिए मुसीबतें खड़ी कर देता है. एक बंगाली बुजुर्ग दंपति को उनकी सही ट्रेन में बैठाने के चक्कर में उसकी अपनी ट्रेन छूट जाती है. अब उसे पठानकोट टैक्सी  से जाकर उसी ट्रेन को पकड़ना है. टैक्सी वाला दो हजार रूपए मांगता है. पर उसकी मुलाकात एक विडियो ब्लौगर मीरा ( पालोमी घोष) से होती है, जिसके साथ मिलकर वह टैक्सी माफिया का पर्दाफाश करता है. वहां भी उसकी ट्रेन छूट जाती है. वह सड़क के रास्ते चलकर पंजाब में अपने साथी के घर उसका समान पहुंचाता है. वह अपने दोस्त की आवाज में बातें करके उसकी कोमा में जा चुकी मां को होश में लाता है,फिर वह आगरा फोर्ट पहुंचाता है, पर उसे एक बार फिर ट्रेन छोड़नी पड़ती है,क्योंकि वह दुर्घटनाग्रस्त बस में फंसे लोगों को मौत के मुंह से बचाने लग जाता है. फिर ग्वालियर के नजदीक के एक शहर में अपनी बटालियन के साथी अनवर के घर जाकर भाइयों के आपसी मनमुटाव को दूर करता है. फिर महाराष्ट् में वह टेंपो ड्राइवर को गुंडों से बचाता है. इस समाज सेवा के चक्कर में अब सैटेलाइट शंकर के पास अपने बेस कैंप में पहुंचने में सिर्फ दो दिन बचे हैं. इसलिए अब वह अपनी मां के पास जाने की बजाय वापस लौटना चाहता है. पर एक शहीद महाड़िक की पत्नी के कहने पर मां के पास जाने का मन बना लेता है. उसी वक्त प्रमिला से उसकी बात होती है. वह अपनी समस्या बताता है. तब मेघा, शंकर को न केवल उसकी मां से मिलने की तरकीब बताती है, बल्कि उसके वापस कश्मीर लौटने का रास्ता भी सुझाती है. मेघा व शंकर की मुलाकात हो जाती है. शंकर, मेघा को दिल दे बैठता है. शंकर अपनी मां से मिलकर, उनकी आंखों का आपरेशन करवाकर किस तरह आर्मी बेस में हाजिर होता है, वह अपने आप में रोचक है.

निर्देशनः

फिल्मकार इरफान कमल ने यदि थोड़ी सावधानी के साथ इस फिल्म का निर्माण किया होता,तो यह एक बेहतरीन फिल्म बन सकती थी. क्योंकि वर्तमान समय में हमारे देश को जिस तरह के नायक की जरुरत है, फिल्म में उसी तरह देश को अखंड करने वाले नायक की कहानी बयां की गयी है. मगर फिल्म की शुरूआत से ही फिल्मकार इशारा कर देते है कि वह विषयवस्तु के साथ गंभीर नहीं है. पहले दृश्य में गोलीबार के दृश्य को जिस तरह से मजाकिया अंदाज में पेश किया गया,उसे सही नही ठहराया जा सकता. फिल्मकार ने अतिशयोक्ति अलंकार का उपयोग करते हुए एक सैनिक को निजी जीवन में भी नायक बताने के चक्कर में फिल्म का गुड़गोबर कर डाला. फिल्म की पटकथा कई जगह मैलोड्रामैटिक हो गयी है. इंटरवल से पहले फिल्म बेवजह लंबी कर दी गयी है, इसे एडीटिंग टेबल पर कसने की जरुरत थी. एक ही फिल्म में आपसी भाईचारा, भ्रष्टाचार को दूर करने सहित तमाम सामाजिक मुद्दे रखकर फिल्म को चूंचूं का मुरब्बा बना दिया गया. इंटरवल के बाद फिल्म कुछ ठीक हो जाती है,जब सैटेलाइट शंकर के रोमांस व सोशल मीडिया द्वारा शंकर की मदद के दृश्य रोचक बने हैं. फिल्मकार ने यदि एक सैनिक की प्रेम कहानी को कुछ ज्यादा तवज्जो दी होती,तो भी फिल्म रोचक बन सकती थी. वीडियो ब्लागर के किरदार को भी अतशयोक्तिपूर्ण और कई जगह अति बचकाना बना दिया गया है. फिल्म में जितने भी मुद्दे उठाए गए हैं,वह अपना प्रभाव डालने में असफल रहे हैं.  फिल्म की लंबाई हर हाल में कम की जानी चाहिए थी.

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अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है,तो चार साल बाद सूरज पंचोली ने इस फिल्म से वापसी की है. 2015 में वह असफल फिल्म ‘हीरो’ में नजर आए थे. सूरज पंचोली ने एक्शन व नृत्य के दृश्यों में अच्छा काम किया है, मगर संवाद अदायगी सहित इमोशनल दृश्यों के लिए उन्हे अभी और मशक्कत करने की जरुरत है.  प्रमिला के किरदार में दक्षिण भारत की अदाकारा मेघा आकाश सुंदर व प्यारी लगी हैं.  उनकी संवाद अदायगी आपको अपना बना लेती है. सूरज पंचोली और मेघ आका की औन स्क्रीन केमिस्ट्री बहुत क्यूट है. वीडियो ब्लागर के किरदार में पालोमी घोष ने ठीक ठाक अभिनय किया है,मगर कई जगह उन्होने ओवर एक्टिंग की है.

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शादी के बाद पतिपत्नियों को यह जानने में जरा भी देर नहीं लगती कि उन का साथी पहले जैसा नहीं रहा. आखिर इस मनमुटाव का क्या कारण है? दरअसल, अधिकांश केसों में पतिपत्नी के बीच झगड़े का मुख्य कारण अतृप्त सैक्स संबंध हैं. सैक्स संबंधों की वैवाहिक जीवन में पतिपत्नी दोनों को आवश्यकता होती है.

महिलाओं में शुरू से ही लज्जा, शर्म और संकोच होता है. वैवाहिक जीवन के बाद भी वे सैक्स संबंधों के बारे में खुल कर बात नहीं कर पातीं. यही कारण है कि स्त्री सैक्स का चरमसुख प्राप्त करने के बारे में स्वयं कुछ नहीं कहती. लेकिन सैक्स एक ऐसी आग है, जो भड़कने के बाद आसानी से शांत नहीं होती.

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स्त्रियों की परपुरुष के प्रति आसक्ति

‘‘जब मैं ने पहली बार परपुरुष से संबंध बनाया तब मुझे पता चला कि शारीरिक सुख का असल मजा क्या है वरना पति के साथ तो बस खानापूर्ति ही थी. वे तो अपना काम कर के सो जाते थे. एक बार भी पूछने की जरूरत नहीं समझते थे कि मुझे संतुष्टि हुई या नहीं. जैसे मैं एक खिलौना हूं. जब तक मन हुआ खेला, फिर सो गए. अब तो मुझे परपुरुष से ही मजा आता है. वैसे भी इस में हरज ही क्या है,’’ यह कहना है मेरी एक फ्रैंड का.

जब मैं ने पूछा कि डर नहीं लगता तो वह बोली, ‘‘इस में डर कैसा?’’

कभीकभी कुछ महिलाएं ऐसी भी होती हैं जो अपनी सैक्स की भूख को शांत करने के लिए सुखसुविधा भरे जीवन को ठोकर मार ऐसे पुरुष के पास चली जाती हैं, जो उन की सैक्स इच्छा को पूरी कर सके.

सपना ने भी तो यही किया था. उस की शादी दानिश से हुई थी. दानिश के पास काफी पैसा था. जब दोनों की शादी हुई थी तब पहली रात को ही सैक्स संबंध के दौरान सपना को पता चल गया था कि दानिश शीघ्रपतन का रोगी है. लेकिन दानिश अपनी पत्नी की अतृप्त इच्छा से बेखबर सिर्फ अपने काम में उलझा रहता. इस के बारे में सोचने का समय ही नहीं था.

अपने पति से सैक्स संबंधों में संतुष्टि न मिलने से वह मानसिक रूप से परेशान रहने लगी. एक तो सपना घर में अकेली थी फिर घर में करने के लिए कोई काम भी नहीं था. ऐसे में वह अपने पड़ोस में रहने वाले एक कालेज के विद्यार्थी के प्रति आकर्षित हो गई. धीरेधीरे आकर्षण बढ़ने लगा. सपना जब भी उस के साथ होती उस के मन में दबी सैक्स की इच्छा बढ़ने लग जाती.

एक दिन सपना अपनेआप पर काबू नहीं रख पाई. उस से लिपट उसे बेतहाशा चूमने लगी. इस तरह सपना के लिपटने और चुंबन करने से वह लड़का भी अपनेआप को रोक नहीं पाया और दोनों में सैक्स संबंध बन गया. दोनों ने उस दिन सैक्स का भरपूर आनंद उठाया. सपना को उस दिन सैक्स से जो शारीरिक व मानसिक सुख मिला वह पहले कभी नहीं मिला था.

धीरेधीरे दोनों के बीच सैक्स इच्छा बढ़ने लगी. एक दिन सपना ने घर छोड़ कर जाने का फैसला किया और मौका पा कर अपने घर से जितना हो सका उतने पैसेजेवर ले कर उस के साथ भाग गई. उस लड़के के दिखाए सपने में शायद उसे अच्छेबुरे का ध्यान ही नहीं रहा.

एक दिन वह लड़का सारे जेवर ले कर भाग गया. अब सिवा पछतावे के उस के पास कुछ नहीं था. घर लौटना चाहा पर सपना को उस के पति ने अस्वीकार कर दिया.

इस तरह सैक्स का अधूरापन स्त्री को दूसरे पुरुष के पास जाने पर मजबूर कर सकता है.

सैक्स का ज्ञान

सैक्स के मामले में पुरुष की मानसिकता अजीब होती है. वह सैक्स करते समय स्वयं तो सैक्स का पूरा आनंद लेना चाहता है, जबकि वह कभी यह जानने की कोशिश नहीं करता कि क्या इस सैक्स संबंध से स्त्री को आनंद मिला? वह संतुष्ट हो पाई?

पुरुषों में सैक्सक्षमता प्रभावित होने के भी बहुत से कारण हैं जैसे लिंग में तनाव न आना या लिंग का जल्दी ढीला पड़ जाना अथवा शीघ्र स्खलन आदि. इन सभी सैक्स संबंधी समस्याओं से पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियां बहुत अधिक प्रभावित होती हैं. जब इस प्रकार की समस्याएं हर सैक्स संबंध के दौरान आती हैं, तब वे अपनेआप को बहकने से नहीं रोक पातीं. वे ऐसे पुरुष की ओर आकर्षित होने लगती हैं जो उन की सैक्स इच्छा को पूरी कर सके.

लेकिन जब पत्नी के इन अनैतिक संबंधों का पता उस के पति को चलता है तो उन का वैवाहिक जीवन तो नष्ट होता ही है, साथ ही परिवार में झगड़ा, विघटन व अन्य सामाजिक परेशानियां भी उत्पन्न हो जाती हैं.

पतिपत्नी के बीच झगड़ा

ऊंची महत्त्वाकांक्षा: अपने पति को छोड़ कर किसी दूसरे पुरुष से विवाह कर लेने या उस के साथ भाग जाने का कारण केवल सामाजिक रीतिरिवाज, पारिवारिक समस्या और यौन संबंधों में कमी ही नहीं है, बल्कि स्त्री के मन में उत्पन्न इच्छाएं और आकांक्षाएं भी हैं. अच्छी सुखसुविधा की इच्छा करना कोई गलत बात नहीं है, लेकिन उस इच्छा और कल्पना में अपनी वास्तविकता को भूल जाना मूर्खता है.

आजकल अधिकांश लड़कियां अपनी इन्हीं इच्छाओं के कारण अनेक प्रकार की समस्याओं में फंस जाती हैं और गलत रास्ते पर चल पड़ती हैं.

रीता ग्रैजुऐशन करतेकरते ऐसे पति की कल्पना करने लगी जो उसे शारीरिक संतुष्टि के साथसाथ उस की सभी इच्छाओं को भी पूरी कर सके. कुछ समय बाद रीता की शादी जिस लड़के से हुई वह एक कंपनी में अकाउंटैंट था. इस काम में उसे जितना पैसा मिलता था वह घर चलाने के लिए काफी होता था. लेकिन यह पैसा रीता की इच्छाओं को पूरी करने के लिए काफी नहीं था. इसलिए वह नौकरी की तलाश करने लगी. एक औफिस में उसे पर्सनल सैक्रेटरी की नौकरी मिल गई. उस की सुंदरता पर उस का बौस लट्टू हो गया. वह रीता को समयसमय पर पैसे देने लगा. इस के बाद वह उसे महंगे उपहार देने लगा. कभीकभी दोनों होटल में खाना खाने भी जाने लगे. ये नजदीकियां जल्द ही शारीरिक संबंधों में तबदील हो गईं.

अब रीता का मन अपने पति के लिए बदलने लगा. काम के बहाने 2-4 दिनों के लिए घर से बाहर चली जाती और जगत के साथ खूब ऐश करती.

कुछ समय तक दोनों इसी तरह मौज करते रहे. इस के बाद धीरेधीरे रीता ने उस से शादी की बात करनी शुरू कर दी. वह अकसर सैक्स संबंध के दौरान बौस से शादी के लिए कहती. वह अकसर टाल देता कि पहले अपने पति से तलाक ले ले. रीता तलाक लेने के लिए तैयार हो गई और उस ने तलाक ले लिया. फिर दोनों एकसाथ एक ही घर में रहने लगे.

एक सुबह जब रीता उठी तो घर में वर्तमान पति को कहीं न पा कर परेशान हो गई. वह औफिस में गई तो पता चला कि वह लंदन चला गया है और उस के नाम का एक लैटर छोड़ गया है.

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लैटर में लिखा था, ‘‘प्यारी रीता, मैं आज सुबह की फ्लाइट से लंदन जा रहा हूं. मैं ने जितना समय तुम्हारे साथ बिताया है वह मुझे हमेशा याद रहेगा. मैं कंपनी के काम से यहां आया था और यहां मेरा काम खत्म हो जाने के बाद मैं वापस जा रहा हूं. मैं तुम से शादी नहीं कर सकता था, क्योंकि जो स्त्री अपने पति की न हो सकी वह मेरी क्या होगी? जो मेरे पैसे को देख कर अपने पति का घर छोड़ सकती है, वह कल मुझ से अधिक पैसे वाले के लिए मुझे भी छोड़ सकती है.’’

अब रीता के पास खुद को कोसने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था.

पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव: हमारे देश की संस्कृति, सभ्यता और संस्कारों से आज भी जहां पूरी दुनिया प्रभावित होती है, वहीं हम अपने संस्कारों और संस्कृति को छोड़ कर पश्चिमी देशों की संस्कृति को अपना रहे हैं. हाई सोसाइटी में इस तरह का व्यवहार आम होता जा रहा है.

कुछ साल पहले की बात है. मुरादाबाद से 3 नवविवाहित जोड़े हनीमून पर नैनीताल गए. तीनों ने दूसरी रात पत्नियों की अदलाबदली की. पर उन में से एक की पत्नी ऐसे संबंधों को तैयार नहीं हुई और उस ने शोर मचाने की धमकी दे डाली. कहने का अर्थ है कि दूसरे देशों के प्रभाव में आ कर हमें अपने देश की संस्कृति, सभ्यता और संस्कार को नहीं भूलना चाहिए वरन इन्हें बचाने के लिए पश्चिमी देशों के प्रभावों से बचना चाहिए.

निराशा, तालमेल की कमी, खटपट और बेरुखी तो सिर्फ चंद वजहें हैं, जिन की वजह से शादीशुदा जिंदगी में प्यार की कमी हो सकती है. बेशक इस की कई और भी वजहें हैं, मगर वजह चाहे जो भी हो, क्या उन पतिपत्नियों के लिए कोई आशा है जो शादी के ऐसे बंधन में बंधे हैं?

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एकदूसरे को एक मौका जरूर दें. साथ बिताए पलों को साथ बैठ याद करें. कोई भी गलत कदम उठाने से पहले उस के साइड इफैक्ट्स के बारे में जरूर सोचें.

रात्रि भोज : भाग 1

दद्दा साहब की शागिर्दी में राजनीतिक पैंतरे सीखने वाला राजा बाबू एक दिन उन के ही खिलाफ हएगा इस बात की उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी. विधानसभा चुनावों के दौरान राजा बाबू ने दद्दा साहब को ऐसा करारा झटका दिया कि वह राजनीति की बिसात पर एक पिटा मोहरा बन कर रह गए.

‘‘दद्दा साहब, एक बुरी खबर है,’’ भूषण ने हांफते हए जनतांत्रिक दल के प्रदेश अध्यक्ष राजनारायण उर्फ दद्दा साहब के कक्ष में प्रवेश किया.

‘‘क्या हुआ?’’ दद्दा साहब ने फाइल से सिर ऊपर उठाते हुए पूछा था.

‘‘कासिमाबाद में रामाधार बाबू की जमानत जब्त हो गई है और राजा बाबू भारी बहुमत से जीत गए हैं,’’ भूषण ने अपनी बात पूरी की थी.

‘‘तो क्या हो गया? चुनाव में हारजीत तो लगी ही रहती है. वैसे भी रामाधार को टिकट देना दल का दायित्व था तो उन का और उन के समर्थकों का दायित्व था चुनाव जीतना.’’

‘‘लेकिन दद्दा, कौशल बाबू अपने दामाद की हार का सारा दोष हम लोगों के सिर मढ़ देंगे. जबकि मैं आप को विश्वास दिलाता हूं कि जनतांत्रिक दल के कार्यकर्ताओं ने इस चुनाव के दौरान कासिमाबाद में अपनी पूरी शक्ति झोंक दी थी.’’

‘‘राजनीति में यह उठापटक तो चलती ही रहती है. यह सब भूल कर आगे की सोचो. इस बार विधानसभा में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत मिलने की संभावना न के बराबर है. शीघ्र ही सरकार बनाने की जोड़तोड़ शुरू हो जाएगी इसलिए उधर ध्यान दो,’’ दद्दा ने भूषण के उत्साह पर शीतल जल छिड़क दिया था.

भूषण तो चला गया पर दद्दा को आंदोलित कर गया. उन्हीं का चेला उन्हें ऐसी पटखनी देगा उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था. इसी के साथ कुछ दिन पहले की घटनाएं उन के दिमाग में किसी चलचित्र की तरह आकार ग्रहण करने लगी थीं :

भूषण और राजन के साथ टिकट बंटवारे को ले कर विचारविमर्श में दद्दा व्यस्त थे कि राजा बाबू के मुख से अपने नाम का संबोधन सुन कर वह चिहुंके थे और सिर को ऊपर उठा कर देखा था.

‘क्या है, राजा? देख नहीं सकते क्या कि मैं इस समय कितना व्यस्त हूं?’

‘दद्दा साहब, 8 घंटे हो गए, आप के कपाटों को अपलक निहारते हुए पर आप का सचिव नीनू मिलने ही नहीं दे रहा था,’ राजा बाबू ने अनुनय की थी.

‘राजा, नीनू बेचारा तो मेरे ही आदेश का पालन कर रहा है. चुनाव सिर पर हैं इसलिए व्यस्तता की चरम सीमा है. खानेपीने तक को समय नहीं मिलता. कुछ देर और प्रतीक्षा करो तुम्हारी बारी भी आएगी,’ फिर कुछ सोच कर बोले, ‘चलो जाने दो. भूषण और राजन तुम दोनों थोड़ी देर के लिए बाहर चले जाओ. पहले राजा को निबटा देता हूं. दूसरे विषयों पर

बाद में विचारविमर्श करेंगे. आ राजा. बैठ, बोल, क्या बात है?’

‘क्या बोलूं दद्दा, मेरे बोलने को बचा ही क्या है. पिछले 15 वर्षों से जनतांत्रिक दल में हूं पर खुद को इतना अपमानित कभी अनुभव नहीं किया.’

‘ऐसा क्या हो गया राजा?’ दद्दा ने अनजान बनने का नाटक किया था.

‘आप तो सब जानते हैं. मैं अपने लिए कुछ नहीं मांग रहा पर कासिमाबाद में 90 प्रतिशत से अधिक मेरे समर्थक हैं. उन्हें जब से मुझे टिकट न देने के दल के फैसले के बारे में पता चला है, वे निराश और उद्वेलित हो गए हैं. न जाने कितने घरों में कल से चूल्हा नहीं जला है. मेरे समर्थक तो खुद आप के पास धरना देने आने वाले थे पर मैं ने उन्हें समझाबुझा कर शांत किया और कहा कि मैं स्वयं आप से बात करूंगा.’

‘देख राजा, अपने अनुयायियों पर नियंत्रण रखना तेरा काम है. कासिमाबाद का टिकट रामाधार बाबू को दे दिया गया है. उस में अब कोई फेरबदल नहीं हो सकता. उस क्षेत्र में दल की जीत का भार तेरे ही कंधों पर है…’

‘रामाधार, कौशल बाबू जैसे कद्दावर नेता के दामाद हैं. कौशल बाबू का दल के लिए त्याग और समर्पण कौन नहीं जानता.’

‘दद्दा, मुझे टिकट नहीं मिला तो कासिमाबाद में दल के लिए समस्या हो सकती है.’

‘दद्दा को धमकी देता है क्या रे? आयु क्या है रे तेरी?’

‘जी, 35 वर्ष.’

‘तू 35 का है और मैं 40 सालों से राजनीति कर रहा हूं. मैं ने कभी तेरी आयु में विधायक या सांसद बनने के स्वप्न नहीं देखे पर आजकल के छोकरे दल के सदस्य बनते ही मंत्री बनना चाहते हैं. अच्छे कार्यकर्ता के नाते तुरंत रामाधार के चुनाव अभियान की तैयारी शुरू कर,’ दद्दा साहब ने आदेश दे दिया था.

पर उत्तर में राजा बाबू अपने स्थान से हिले तक नहीं थे. उन की आंखों से टपाटप आंसू झरने लगे थे. देर तक उन के हिलते कंधों और थरथराती सिसकियों के स्वर से तो दद्दा साहब भी एक क्षण को सहम गए थे, ‘यह क्या बचपना है राजा, धीरज धर धीरज. मैं हूं ना तेरे हितों की रक्षा करने को. सब्र का फल सदा मीठा होता है. अपने समय की प्रतीक्षा कर…अरे, ओ रघु,’ उन्होंने सेवक को पुकारा था.

‘जी सरकार,’ रघु दौड़ा आया था.

‘पानी ले कर आ और फिर 2 प्याले गरम चाय ले आ.’

रघु आननफानन में पानी ले आया था. दद्दा ने बड़े प्यार से अपने हाथों से राजा को पानी पिलाया और देर तक उस की पीठ पर हाथ फेरते रहे थे.

अब तक रघु चाय रख गया था.

‘देख बेटा, राजनीति में बडे़बड़े समझौते करने पड़ते हैं. दल को जोड़े रखने के लिए कुछ अप्रिय फैसले भी लिए जाते हैं. पर दिल वाला वह है जो इन संकटों का हंसते हुए सामना करे,’  दद्दा साहब अपने उपदेशों का सिलसिला आगे बढ़ाते उस से पहले ही एक ही घूंट में चाय का कप खाली कर राजा बाबू बाहर निकल गए थे.

उधर राजा बाबू के समर्थक कुछ भी समझने को तैयार नहीं थे. उन्होंने दोटूक निर्णय सुना दिया था कि वे राजा बाबू के  अलावा किसी दूसरे को अपना प्रतिनिधि नहीं चुनेंगे.

कई दिनों तक धरनोंप्रदर्शनों का सिलसिला चलता रहा, पर उच्च कमान को न पसीजना था न पसीजी. नाराज दद्दा साहब ने राजा बाबू को बुलावा भेजा था. राजा बाबू जब दद्दा से मिलने पहुंचे तो वह क्रोध की प्रतिमूर्ति बने बैठे थे.

‘क्यों रे राजा, बहुत बड़ा नेता बन गया है क्या?’ वह छूटते ही बोले थे.

‘कैसी बातें कर रहे हैं दद्दा साहब, आप की बात को टालने का साहस मैं तो क्या, दल के बड़े दिग्गज भी नहीं कर सकते.’

‘तो इन धरनों प्रदर्शनों का क्या मतलब है?’

‘वह मेरी नहीं मेरे समर्थकों की गलती है. मैं ने उन्हें लाख समझाया पर वे लोग कुछ सोचनेसमझने को तैयार ही नहीं हैं.’

‘ठीक है, तो इस बार उन्हें अच्छी तरह से समझा देना कि मुझे ऐसी अनुशासनहीनता से निबटना भली प्रकार आता है,’ दद्दा ने धमकी दी थी.

‘दद्दा, आप भी मुझे ही दोषी ठहरा रहे हैं. आप ने ही मुझे टिकट दिलवाने का आश्वासन दिया था. अब टिकट न मिलने से समर्थकों में गहरी निराशा है दद्दा.’

‘बात को समझा कर राजा, कौशल बाबू को नाराज नहीं किया जा सकता. इस बार तू ने रामाधार बाबू को चुनाव जितवा दिया तो दल तुझे सदा याद रखेगा. तुझे तेरी सेवाओं के  बदले पुरस्कृत भी किया जाएगा. अब निर्णय तुझे ही लेना है.’

‘जी दद्दा,’ राजा बाबू बोले थे.

‘क्या जी जी लगा रखा है. बंद करो ये धरनेप्रदर्शन और कमर कस कर मैदान में कूद पड़ो,’ दद्दा साहब ने मानो निर्णय सुनाया था.

मन का खोट

पिता की मौत के बाद घर में नेहा और उस की मां सपना ही रह गई थीं. पिता ही कमाने वाले थे, उन के न होने पर घर की माली हालत काफी खराब थी. मांबेटी को समझ नहीं आ रहा था कि अपना जीवन आगे कैसे चलाएं.

सपना को खुद की चिंता कम और जवान बेटी की ज्यादा चिंता थी. वह सोच रही थी कि किसी तरह बेटी की शादी हो जाए तो वह इस बड़ी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाएगी. क्योंकि गरीब की जवान होती बेटी हर किसी की आंखों में चढ़ जाती है. नेहा के पिता मनोहरलाल लखनऊ के ठाकुरगंज इलाके में रहते थे. उन का छोटा सा कारोबार था. उन की मृत्यु के बाद कारोबार तो बंद हो ही गया, साथ ही घर में रखी जमापूंजी भी कुछ दिनों में खत्म हो गई.

मनोहरलाल के एक दोस्त थे सुरेंद्र जायसवाल. सुरेंद्र का पहले से ही मनोहरलाल के घर आनाजाना था. उन की मृत्यु के बाद सुरेंद्र जायसवाल का मदद के बहाने सपना के घर आनाजाना कुछ ज्यादा ही बढ़ गया. सुरेंद्र बिजनैसमैन थे और रकाबगंज में रहते थे. वह सपना के घर का पूरा खर्च उठाने लगे. एक दिन सुरेंद्र ने नेहा और उस की मां सपना के सामने प्रस्ताव रखा कि नेहा को कपड़े की दुकान खुलवा देते हैं. वह दुकान पर काम करेगी तो उस का मन भी लगा रहेगा, साथ ही चार पैसे की आमदनी भी होगी.

इस पूरी मदद के पीछे समाज और सपना को सुरेंद्र की इंसानियत दिखाई दे रही थी, पर असल में इस के पीछे सुरेंद्र का मकसद कुछ और ही था. वह किसी भी तरह नेहा के करीब जाना चाहता था. हालांकि नेहा सुरेंद्र की बेटी की उम्र की थी, इस के बावजूद उस की नीयत में खोट था.

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सुरेंद्र नेहा पर दोनों हाथों से पैसे खर्च कर रहा था, इसलिए धीरेधीरे नेहा का झुकाव भी उस की तरफ हो गया. दोनों में करीबी रिश्ते बन गए. समय के साथ नेहा को इस बात का आभास हो गया था कि सुरेंद्र शादीशुदा है और उस के साथ यह संबंध बहुत दिनों तक नहीं चल सकेंगे.

इस के बाद नेहा ऐसे साथी को तलाशने लगी जो उस का हमउम्र हो. इसी दौरान नेहा की दोस्ती प्रभात से हो गई. नेहा प्रभात को पसंद करती थी. फलस्वरूप दोनों की दोस्ती जल्दी ही प्यार में बदल गई. दोनों ने शादीशुदा जोड़े की तरह रहना शुरू कर दिया. नेहा और प्रभात ने अपने परिजनों से बात कर के शादी करने का फैसला कर लिया.

उधर सुरेंद्र को नेहा और प्रभात के संबंधों की जानकारी मिली तो उसे यह बात अच्छी नहीं लगी. वह उन दोनों को अलग कराना चाहता था, इसलिए उस ने उस की मां सपना के कान भरे और उसे प्रभात के प्रति भड़काया.

सपना ने इस बारे में नेहा से बात की तो उस ने कह दिया कि वह और प्रभात एकदूसरे को बहुत चाहते हैं और दोनों ने जीवन भर साथ रहने का फैसला कर लिया है. इस पर सपना ने कहा कि ऐसा हरगिज नहीं हो सकता क्योंकि प्रभात अच्छा लड़का नहीं है.

मां और सुरेंद्र के आगे नेहा की एक नहीं चली. सुरेंद्र ने दबाव बना कर न सिर्फ नेहा को प्रभात से अलग कराया बल्कि उस ने नेहा की तरफ से महिला थाने में प्रभात के खिलाफ उत्पीड़न की शिकायत भी दर्ज करा दी.

प्रभात का साथ छूट जाने के बाद नेहा फेसबुक पर ज्यादा समय बिताने लगी. फेसबुक के जरिए नेहा की दोस्ती शरद निगम से हुई. चैटिंग और बातचीत से दोनों के बीच घनिष्ठता बढ़ गई. बातचीत से पता चला कि शरद लखनऊ के ठाकुरगंज की बंशीविहार कालोनी में रहता है और एचसीएल में सौफ्टवेयर इंजीनियर है.

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उस के पिता सरकारी विभाग में एकाउंटेंट थे जो रिटायर हो चुके थे. शरद उन का एकलौता बेटा था. शरद के बारे में यह जानकारी मिलने के बाद नेहा के मन में लड्डू फूटने लगे. फलस्वरूप शरद में नेहा की दिलचस्पी बढ़ गई.

बात आगे बढ़ी तो नेहा और शरद की मुलाकातें होने लगीं. दोनों घर से बाहर भी मिलने लगे. कुछ समय के बाद नेहा शरद को अपने घर भी बुलाने लगी. जल्दी ही इस की जानकारी सुरेंद्र जायसवाल को हो गई.

सुरेंद्र ने नेहा को शरद से दूर रहने को कहा. साथ ही उस ने शरद को धमकी भी दी कि वह नेहा से दूर रहे. लेकिन उन दोनों में से कोई भी उस की बात को मानने को तैयार नहीं था. शरद ने सुरेंद्र की धमकी पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

इस पर अपराधी स्वभाव के सुरेंद्र को गुस्सा आ गया. उस ने शरद को रास्ते से हटाने की ठान ली. वह नेहा को तो ज्यादा कुछ नहीं कह सकता था पर शरद को अपने रास्ते से हटाने के लिए उस ने योजना बनानी शुरू कर दी. उस ने अपने दोस्त सूरज से रेकी करानी शुरू कर दी कि शरद नेहा से मिलने कब आता है.

22 जुलाई, 2019 को शरद नेहा से मिलने उस के घर आया. इस के बाद दोनों सहारागंज मौल घूमने गए. वहां दोनों ने रौयल कैफे में खाना खाया. सूरज नेहा और शरद पर नजर रख रहा था. उसी दिन सुरेंद्र और सूरज ने शरद को मारने का प्लान बना लिया.

सुरेंद्र और सूरज यही सोच कर उन का पीछा करने लगे कि सुनसान जगह मिलते ही शरद को गोली मार देंगे. उन्होंने अपनी बाइक शरद की बाइक के पीछे लगा दी. लेकिन हजरतगंज से ठाकुरगंज के बीच उन्हें शरद को टपकाने का मौका नहीं मिला.

22 जुलाई का मौका चूकने के बाद भी सुरेंद्र के मन की आग नहीं बुझी थी. उस ने सूरज से सही मौके की तलाश में लगे रहने को कहा.

23 जुलाई, 2019 को शरद शाम को करीब 6 बजे अपने औफिस से निकला. वह औफिस से अपने घर न जा कर सीधे नेहा के घर गया. करीब 3 घंटे वह नेहा के घर पर रहा. इस बात की सूचना जब सुरेंद्र को मिली तो उस का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया. तभी सुरेंद्र ने सूरज से कहा, ‘‘सूरज, आज फील्डिंग सही से करनी है. आज इसे आउट कर ही देंगे.’’

‘‘भैया, चिंता मत करो. आज तो यह आउट होने से नहीं बचेगा. शरद आज हाथ से नहीं निकल पाएगा.’’ सूरज बोला.

सुरेंद्र और सूरज दोनों शरद के वहां से निकलने की राह देखने लगे. दोनों उस के इंतजार में घात लगाए बैठे थे. शरद जब घर जाने के लिए वहां से निकला तो दोनों ने काफी दूर तक उस का पीछा किया. लेकिन रास्ते में उन्हें गोली चलाने का मौका नहीं मिला.

करीब साढ़े 10 बजे शरद अपने घर के पास पहुंचा. कैंपवेल रोड पर मरी माता के मंदिर के पास सुनसान जगह दिखी तो सूरज अपनी बाइक शरद की बाइक के बराबर में चलाने लगा. तभी सूरज के पीछे बैठे सुरेंद्र ने शरद के हेलमेट से रिवौल्वर सटा कर उसे गोली मार दी.

सिर में गोली लगने के बाद शरद वहीं गिर गया. इस के बाद सुरेंद्र और सूरज वहां से फरार हो गए. गोली की आवाज सुन कर लोग अपने घरों से बाहर निकल आए. लोगों ने खून से लथपथ पड़े शरद को पहचान लिया. इस के बाद उस के परिजनों को सूचना दे दी गई.

शरद को लखनऊ मैडिकल कालेज के ट्रामा सेंटर पहुंचाया गया. लेकिन डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. घटना की सूचना पाते ही आईजी एस.के. भगत और एसएसपी कलानिधि नैथानी सहित तमाम पुलिस अफसर घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस ने वहां के सीसीटीवी फुटेज देख कर इस मामले को हल करने का प्रयास शुरू कर दिया.

इस केस की रिपोर्ट ठाकुरगंज थाने में लिखी गई. इंसपेक्टर ठाकुरगंज नीरज ओझा ने सीओ दुर्गाप्रसाद तिवारी के मार्गदर्शन में जांच शुरू कर दी.

हत्या के तरीके से यह साफ हो गया था कि हत्या लूट के इरादे से नहीं की गई है. ऐसे में मामला प्रेम प्रसंग से जोड़ कर देखा जाने लगा. पुलिस ने सीसीटीवी और सोशल मीडिया की नेटवर्किंग साइट से मामले को खोलने का काम शुरू किया.

शरद के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स और सोशल साइट से पता चला कि शरद के प्रेम संबंध नेहा नाम की एक लड़की से थे. सोशल मीडिया की छानबीन में यह भी पता चल गया कि नेहा के साथ ठाकुरगंज के ही रहने वाले एक कारोबारी सुरेंद्र जायसवाल के भी संबंध थे.

पुलिस ने नेहा से पूछताछ की. नेहा से बातचीत में सुरेंद्र की भूमिका और भी खुल कर सामने आ गई. पुलिस ने सुरेंद्र को उस के घर पर तलाशा लेकिन वह नहीं मिला. मुखबिरों से पता चला कि वह नेपाल भाग गया है. इस से पुलिस का शक यकीन में बदल गया.

नेपाल में पैसा खत्म होने पर सुरेंद्र पैसे के इंतजाम के लिए वापस लखनऊ आया. तभी मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

उस ने आसानी से शरद की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने पुलिस को बता दिया कि इस हत्या में उस का दोस्त सूरज भी शामिल था. सुरेंद्र की निशानदेही पर पुलिस ने सूरज को भी गिरफ्तार कर लिया.

दोनों से पूछताछ कर पुलिस ने उन्हें हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. कथा लिखने तक आरोपी सुरेंद्र जायसवाल और उस का दोस्त सूरज जेल में बंद थे.

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—मनोहरलाल, सपना और नेहा परिवर्तित नाम हैं

वंश बेल भाग : भाग 1

रामलीला मैदान में आज और दिनों की अपेक्षा कुछ अधिक भीड़ थी. महाराजजी का उपदेश सुनने दूरदूर से आए भक्तों की भीड़ को नियंत्रित करने के लिए आयोजकों के साथसाथ शहर की कई स्वयंसेवी संस्थाएं अपना योगदान दे रही थीं. कतार में भक्ति भाव से बैठे भक्तों के बीच महाराजजी की फोटो थाल में सजा कर कई व्यक्ति घूम रहे थे जिस में भक्त बडे़ श्रद्धाभाव से भेंट चढ़ा रहे थे.

महाराजजी के इस सातदिवसीय कार्यक्रम का आज अंतिम दिन है. पंडाल के बाहर महाराजजी की संस्था के कार्यकर्ता उन के प्रवचनों, गीतों के कैसेट्स, किताबें और पूजा से संबंधित सामग्री के स्टाल लगाए हुए थे. साथ ही प्रायोजक दुकानदारों की दुकानें भी सजी हुई थीं जिन मेें कई प्रकार के शर्बतों के अलावा आंवला, सेब व बेल की मिठाइयां एवं चूर्ण के साथ खानेपीने की अन्य वस्तुएं भी बिक रही थीं. आज उपदेश के बाद महाराजजी अपने भक्तों की व्यक्तिगत समस्याओं को सुनने के लिए कुछ समय देने वाले थे.

कार्यक्रम के अंतिम दिन महाराजजी का यह व्यक्तिगत परिचय भक्तों को एक अभूतपूर्व  संतुष्टि देता था. इस कारण भी महाराजजी खासतौर से चर्चित थे. किंतु भक्तों की लंबी कतार एवं समय की कमी के चलते महाराजजी केवल 50 व्यक्तियों को ही समय दे पाते थे. अपनी समस्याओं का समाधान एवं आशीर्वाद लेने के लिए लोग बाहर एक सेवक को अपना नामपता लिखवा रहे थे.

उपदेश एवं भजन समाप्त हुए. महाराजजी स्टेज के पीछे बने छोटे से कमरे में चले गए. वहां एक के बाद एक लोग आते और महाराजजी को विस्तार से अपनी समस्याएं बताते. महाराजजी उन को एक गुरुमंत्र धीमे से बताते और कुछ पुडि़याएं देते. उन के पास ही एक बड़ा सा चांदी का थाल रखा हुआ था जिस में एक लाल रंग के वस्त्र के ऊपर 100 और 500 रुपए के कुछ नोट रखे हुए थे. भक्तों के लिए इतना इशारा ही काफी था.

‘‘महाराजजी,’’ कहते हुए एक स्त्री आते ही उन के चरणों में गिर पड़ी और सुबकसुबक  कर रोने लगी.

‘‘उठो बेटी, क्या बात है,’’ कहते हुए महाराजजी ने उसे स्वयं सहारा दे कर उठाया और अपने पास बिठा लिया. महाराजजी का स्पर्श पाते ही वह बेहद भावुक हो उठी.

‘‘10 वर्ष हो गए हैं विवाह को, 2 बेटियां हैं, बेटे की चाहत लिए आप के पास आई हूं. आप तो जानते ही हैं कि बेटा न होने पर समाज में कैसेकैसे ताने सुनने पड़ते हैं और ससुराल में प्रताडि़त किया जाता है, जैसे सारा दोष मेरा ही हो…बड़ी उम्मीद ले कर आई हूं आप के पास,’’ इतना कहतेकहते वह फिर बिलखने लगी.

‘‘शांत हो जाओ, बेटी. बेटाबेटी होना इनसान के पूर्व जन्मों का फल है. हमारे परिवारों में घोर अज्ञानता है इसीलिए यह दोष बेटियों के सिर मढ़ दिया जाता है. तुम चिंता मत करो. मैं कोशिश करता हूं. तुम्हारे भी दिन फिरेंगे.’’

‘‘अब तो बस, आप का ही सहारा है,’’ वह साड़ी के आंचल से आंसू पोंछते हुए बोली.

‘‘मैं एक मंत्र और उस के जाप की विधि के साथ तुम्हें कुछ पुडि़या दे रहा हूं. सेवक से सब समझ लेना. लाभ अवश्य होगा. अगली बार पति की फोटो भी साथ में लाना. मैं सम्मोहन प्रक्रिया से उन का मत बदलने का प्रयत्न करूंगा.’’

स्त्री ने पुन: महाराजजी के चरणस्पर्श किए और 101 रुपए थाल में भेंट चढ़ा कर बड़ी आशा लिए वहां से चली गई.

ठीक 5 बजते ही महाराजजी एक बड़ी सी विदेशी कार में बैठ कर अपने आश्रम की तरफ चल दिए. उन के पीछेपीछे कारों का लंबा काफिला था जिन में शायद उन के अंतरंग सेवक, विशिष्ट व्यक्ति और विदेशी अनुयायी बैठे थे.

अपने निजी कक्ष में कुछ देर विश्राम करने के बाद महाराज आश्रम के हाल में आ गए. यहां केवल उन के बेहद खास सेवक ही मौजूद थे. उन के आते ही सब ने उठ कर उन का स्वागत किया और महाराजजी के आसन पर बैठते ही वे सब सामने की कुरसियों पर बैठ गए.

‘‘महाराजजी,’’ कहते हुए रमेश भाई बोले, ‘‘प्रीत नगर कैंसर सोसायटी आप का चारदिवसीय कार्यक्रम रखना चाहती है. इस के लिए सोसायटी के लोग 50 हजार रुपए का चेक भी दे गए हैं किंतु अंतिम स्वीकृति तो आप को ही देनी है. आप की आज्ञा हो तो…’’

‘‘सिर्फ 50 हजार रुपए रमेश भाई,’’ चौंक कर महाराजजी ने पूरे व्यावसायिक अंदाज में कहा, ‘‘प्रतिदिन 50 हजार से कम तो किसी प्रोग्राम के मत लो. आप को मालूम होना चाहिए कि लोग मेरे नाम का उपयोग कर के कितना धन कमाते हैं. पिछले महीने जयपुर में जो तीनदिवसीय कार्यक्रम का आयोजन हुआ था, उस में संस्था ने पूरे 6 लाख रुपए कमाए थे. लोगों की श्रद्धा और भावनाओं को कैसे भुनाया जाता है ये संस्थाएं अच्छी तरह जानती हैं…फिर हम लोग पीछे क्यों हटें.’’

‘‘जी महाराज, मैं सारी बातें फिर से तय कर के आप को बताता हूं,’’ कहते हुए रमेश भाई बैठ गए.

‘‘आज की व्यवस्था कैसी रही मोहनदासजी,’’ महाराजजी ने दूसरे की तरफ देख कर मुसकराते हुए पूछा.

‘‘और दिनों के मुकाबले आज काफी अच्छी थी. आप के थाल से 19 हजार, पुस्तकों की बिक्री से 7,800, कैसेट एवं सीडी से 18 हजार की राशि प्राप्त हुई है. महाराजजी, आजकल घरों में महात्माओं के बडे़बडे़ फोटो लगाने का प्रचलन बढ़ रहा है. कई भक्त इस बारे में मुझ से पूछ चुके हैं,’’ मोहनदास बोले.

‘‘यह भी उत्तम विचार है. 6 हजार से नीचे तो मेरी फोटो की कीमत होनी ही नहीं चाहिए और 10 हजार रुपए देने वाले को मैं खुद फोटो भेंट करूंगा.’’

इस तरह के नएनए तरीकों से अतिरिक्त धन जुटाने की सलाह समिति के सदस्य दे रहे थे.

कुछ देर बाद सभी सदस्य उठ कर चले गए. महाराजजी के साथ उन के 3 परम शिष्य वहीं बैठे रहे. आज खासतौर से इन शिष्यों ने कुछ अंतरंग विषयों पर चर्चा करने के लिए महाराजजी से अनुनयविनय की थी.

दुनिया का सबसे बुजुर्ग मगरमच्छ

विश्व का सबसे उम्रदराज मगरमच्छ बेलग्रेड चिड़ियाघर में लाया गया है. एक अमेरिकन मगमच्छ की प्रजाति का ये विशाल जीव है. इसका नाम मूजा बताया जा रहा है.

ऐसा माना जाता है कि किसी भी चिड़ियाघर में पाया जाने वाला, अपनी प्रजाति का ये अब तक का सबसे बुजुर्ग मगरमच्छ है. ये पूरी तरह स्वस्थ है. मूजा की देखरेख करने वाले चिड़ियाघर के कर्मचारियों ने बताया कि उसकी खुराक भी काफी अच्छी है.

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ये चुस्त दुरुस्त भी दिखता है और इसे देखने आने वाले पर्यटकों को बहुत मजा आता है जब वो चूहों के पीछे भागता है और डिब्बों पर चढ़ता उतरता है. सिर्फ यही एक मौका  होता है जब लगता है कि उसकी उम्र हो चुकी है.  वो अपना शिकार पकड़ने में चूक हो जाता है.

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छिपकली : भाग 1

कविता की यह पहली हवाई यात्रा थी. मुंबई से ले कर चेन्नई तक की दूरी कब खत्म हो गई उन्हें पता ही नहीं चला. हवाई जहाज की खिड़की से बाहर देखते हुए वह बादलों को आतेजाते ही देखती रहीं. ऊपर से धरती के दृश्य तो और भी रोमांचकारी लग रहे थे. जहाज के अंदर की गई घोषणा ‘अब विमान चेन्नई हवाई अड्डे पर उतरने वाला है और आप सब अपनीअपनी सीट बेल्ट बांध लें,’ ने कविता को वास्तविकता के धरातल पर ला कर खड़ा कर दिया.

हवाई अड्डे पर बेटा और बहू दोनों ही मातापिता का स्वागत करने के लिए खड़े थे. बेटा संजू बोला, ‘‘मां, कैसी रही आप की पहली हवाई यात्रा?’’

‘‘अरे, तेरी मां तो बादलों को देखने में इतनी मस्त थीं कि इन्हें यह भी याद नहीं रहा कि मैं भी इन के साथ हूं,’’ दीप बोले.

‘‘मांजी की एक इच्छा तो पूरी हो गई. अब दूसरी इच्छा पूरी होने वाली है,’’ बहू जूही बोली.

‘‘कौन सी इच्छा?’’ कविता बोलीं.

‘‘मां, आप अंदाजा लगाओ तो,’’ संजू बोला, ‘‘अच्छा पापा, आप बताओ, मां की वह कौन सी इच्छा थी जिस की वह हमेशा बात करती रही थीं.’’

‘‘नहीं, मैं अंदाजा नहीं लगा पा रहा हूं क्योंकि तेरी मां की तो अनेक इच्छाएं हैं.’’

इसी बातचीत के दौरान घर आ गया था. संजू ने एक बड़ी सी बिल्ंिडग के सामने कार रोक दी.

‘‘उतरो मां, घर आ गया. एक नया सरप्राइज मां को घर के अंदर जाने पर मिलने वाला है,’’ संजू ने हंसते हुए कहा.

लिफ्ट 10वीं मंजिल पर जा कर रुकी. दरवाजा खोल कर सब अंदर आ गए. घर देख कर कविता की खुशी का ठिकाना न रहा. एकदम नया फ्लैट था. फ्लैट के सभी खिड़कीदरवाजे चमकते हुए थे. बाथरूम की हलकी नीली टाइलें कविता की पसंद की थी. रसोई बिलकुल आधुनिक.

संजू बोला, ‘‘मां, तुम्हारी इच्छा थी कि अपना घर बनाऊं और उस घर में जा कर उसे सजाऊं. देखो, घर तो एकदम नया है, चाहे किराए का है. अब तुम इसे सजाओ अपनी मरजी से.’’

कविता पूरे घर को प्रशंसा की नजर से देखती रही फिर धीरे से बालकनी का दरवाजा खोला तो ठंडी हवा के झोंके ने उन का स्वागत किया. बालकनी से पेड़ ही पेड़ नजर आ रहे थे. सामने पीपल का विशालकाय वृक्ष था जिस के पत्ते हवा में झूमते हुए शोर मचा रहे थे. आसपास बिखरी हरियाली को देख कर कविता का मन खुशी से झूम उठा.

संजू और जूही दोनों कंप्यूटर इंजीनियर हैं और सुबह काम पर निकल जाते तो रात को ही वापस लौटते. सारा दिन कविता और दीप ही घर को चलाते. कविता को नया घर सजाने में बहुत मजा आ रहा था. इमारत भी बिलकुल नई थी इसलिए घर में एक भी कीड़ामकोड़ा और काकरोच नजर नहीं आता था, जबकि मुंबई वाले घर में काकरोचों की भरमार थी. पर यहां नए घर की सफाई से वह बहुत प्रभावित थी. गिलहरियां जरूर उन की रसोई तक आतीं और उन के द्वारा छिड़के चावल के दाने ले कर गायब हो जाती थीं. उन गिलहरियों के छोटेछोटे पंजों से चावल का एकएक दाना पकड़ना और उन्हें कुतरते देखना कविता को बहुत अच्छा लगता था.

उस नई इमारत में कुछ फ्लैट अभी भी खाली थे. एक दिन कविता को अपने ठीक सामने वाला फ्लैट खुला नजर आया. सुबह से ही शोरगुल मचा हुआ था और नए पड़ोसी का सामान आना शुरू हो चुका था. देखने में सारा सामान ही पुराना सा लग रहा था. कविता को लगा, आने वाले लोग भी जरूर बूढे़ होंगे. खैर, कविता ने यह सोच कर दरवाजा बंद कर लिया कि हमें क्या लेनादेना उन के सामान से. हां, पड़ोसी जरूर अच्छे होने चाहिए क्योंकि सुबहशाम दरवाजा खोलते ही पहला सामना पड़ोसी से ही होता है.

शाम होतेहोते सबकुछ शांत हो गया. उस फ्लैट का दरवाजा भी बंद हो गया. अब कविता को यह जानने की उत्सुकता थी कि वहां कौन आया है. रात को जब बेटाबहू आफिस से वापस लौटे तब भी सामने के फ्लैट का दरवाजा बंद था. बहू बोली, ‘‘मां, कैसे हैं अपने पड़ोसी?’’

‘‘पता नहीं, बेटा, मैं ने तो केवल सामान ही देखा है. रहने वाला अभी तक कोई नजर नहीं आया है. पर लगता है कोई गांव वाले हैं. पुरानापुराना सामान ही अंदर आता दिखाई दिया है.’’

‘‘चलो मां,   2-4 दिन में पता लग जाएगा कि कौन लोग हैं और कैसे हैं.’’

एक सप्ताह बीत गया. पड़ोसियों के दर्शन नहीं हुए पर एक दिन उन के घर से आता हुआ एक काकरोच कविता को नजर आ गया. वह जोर से चिल्लाईं, ‘‘दीप, दौड़ कर इधर आओ. मारो इसे, नहीं तो घर में घुस जाएगा. जल्दी आओ.’’

‘‘क्या हुआ? कौन घुस आया? किसे मारूं? घबराई हुई क्यों हो?’’ एकसाथ दीप ने अनेक प्रश्न दाग दिए.

‘‘अरे, आओगे भी या वहीं से प्रश्न करते रहोगे. वह देखो, एक बड़ा सा काकरोच अलमारी के पीछे चला गया.’’

‘‘बस, काकरोच ही है न. तुम तो यों घबराई हुई हो जैसे घर में कोई अजगर घुस आया हो.’’

‘‘दीप, तुम जानते हो न कि काकरोच देख कर मुझे घृणा और डर दोनों लगते हैं. अब मुझे सोतेजागते, उठतेबैठते यह काकरोच ही नजर आएगा. प्लीज, तुम इसे निकाल कर मारो.’’

‘‘अरे, भई नजर तो आए तब तो उसे मारूं. अब इतनी भारी अलमारी इस उम्र में सरकाना मेरे बस का नहीं है.’’

‘‘किसी को मदद करने के लिए बुला लो, पर इसे मार दो. मुझे हर हालत में इस काकरोच को मरा हुआ देखना है.’’

‘‘तुम टेंशन मत लो. रात को काकरोचमारक दवा छिड़क देंगे…सुबह तक उस का काम तमाम हो जाएगा.’’

दीप ने बड़ी मुश्किल से कविता को शांत किया.

शाम को काकरोचमारक दवा आ गई और छिड़क दी गई. सुबह उठते ही कविता ने एक सधे हुए जासूस की भांति काकरोच की तलाश शुरू की पर मरा या जिंदा वह कहीं भी नजर नहीं आया. कविता की अनुभवी आंखें सारा दिन उसी को खोजती रहीं पर वह न मिला.

अब तो अपने फ्लैट का दरवाजा भी कविता चौकन्नी हो कर खोलती पर फिर कभी काकरोच नजर नहीं आया.

एक दिन खाना बनाते हुए रसोई की साफसुथरी दीवार पर एक नन्ही सी छिपकली सरकती हुई कविता को नजर आई. अब कविता फिर चिल्लाईं, ‘‘जूही, संजू…अरे, दौड़ कर आओ. देखो तो छिपकली का बच्चा कहां से आ गया.’’

मां की घबराई हुई आवाज सुन कर दौड़ते हुए बेटा और बहू दोनों रसोई में आए और बोले, ‘‘मां, क्या हुआ?’’

‘‘अरे, देखो न, वह छिपकली का बच्चा. कितना घिनौना लग रहा है. इसे भगाओ.’’

‘‘मां, भगाना क्या है…इसे मैं मार ही देता हूं,’’ संजू बोला.

‘‘मारो मत, छिपकली को लक्ष्मी का अवतार मानते हैं,’’ जूही बोली.

‘‘और सुन लो नई बात. अब छिपकली की भी पूजा करनी शुरू कर दो.’’

‘‘तुम इसे भगा दो. मारने की क्या जरूरत है,’’ कविता भी बोलीं.

झाड़ू उठा कर संजू ने उस नन्ही छिपकली को रसोई की खिड़की से बाहर निकाल दिया.

सर्दियों में इन 4 नेचुरल तरीकों से रखें घर को गर्म

विंटर सीजन में सर्द हवाओं से बचने और घर को नेचुरल तरीके से गर्म रखने के लिए ब्राइट कलर के पर्दे इस्तेमाल करें. इस सीजन में ऐसे पर्दे खूबसूरत लगते हैं. आज हम ऐसे फैब्रिक और कलर के बारे में बात करेंगे जो आपके घर को इस सीजन में भी खूबसूरत दिखाएगा. आइए बताते हैं.

  1. मेहरून रंग – मेहरून रंग के पर्दे वुडन फर्नीचर वाले कमरे में भी लगा सकते हैं. यह पर्दे सर्द हवा को रोक कर कमरे को गर्मी प्रदान करते है.

2. डीप ब्‍लू –  इस कलर के पर्दे को बच्चों के कमरे, लिविंग रूम, डाईनिंग या ड्राइंग रूम में लगा सकती हैं. इस रंग के पर्दे घर को स्टाइलिश लुक देते हैं.

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3. पीला रंग – पीले रंग के परदे लगाने से कमरा सुंदर लगता है. पीले रंग के पर्दे लगाने से कमरे में रौशनी भी आती है और कमरे को एक न्य लुक भी मिलता है.

4. लाल रंग – ब्राइट कलर इस मौसम के लिए बेस्ट है. इस रंग के पर्दे लगाने से घर सुंदर और परफेक्ट लगता है. आप वेलवेट फैब्रिक में भी इस रंग के पर्दे का चुनाव कर सकती हैं,  इससे बाहर की सर्द हवा अंदर नही आएगी.

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मेरे बेटे अलग अलग गानों पर नाचते हैं और वीडियो बनाते हैं उनकी इस आदत से परेशान हूं, मैं क्या करूं ?

सवाल

मैं राजस्थान के एक छोटे से गांव का निवासी हूं. मेरी उम्र 36 वर्ष है और मेरी पत्नी 32 वर्ष की है. हमारे 2 बेटे हैं. परेशानी यह है कि 13 साल के मेरे बेटों को सोशल मीडिया पर वीडियो बनाने का शौक चढ़ा है. जब देखो तब अलगअलग गानों पर नाचते हैं और वीडियो बनाते हैं. मैं उन की इस आदत से परेशान हूं. मैं क्या करूं कि वे दोनों थोड़ा सुधर जाएं.

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जवाब

आप के बच्चे अभी छोटे हैं और इस उम्र में बच्चों का नाचगाने में मन लगना आम बात है. हालांकि सोशल मीडिया का सही प्रकार से इस्तेमाल किया जाए तो उस में कोई बुराई नहीं है परंतु आप के बच्चे अभी छोटे हैं, और इस उम्र में सोशल मीडिया का चसका लगना ठीक नहीं है. आप उन्हें मनोरंजन के लिए किसी मंडली या ग्रु्रप का हिस्सा बना सकते हैं जहां नाचगाना सिखाया भी जाता है और बच्चों को राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में भी ले जाया जाता है. जब बच्चों का मन असली क्रिएटिव ऐक्टिविटी में लगेगा तो उन के पास सोशल मीडिया या मोबाइल के लिए समय नहीं बचेगा और उन्हें खुद सोशल मीडिया तुच्छ लगने लगेगा.

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फेस्टिवल स्पेशल 2019: ऐसे बनाएं आलू का रायता

फेस्टिवल सीजन के दौरान आप इस डिश को जरूर ट्राई करें. आलू का रायता बनाने में आसान है और टाईम भी कम लगता है. तो चलिए जानते हैं इसे बनाने की रेसिपी.

सामग्री

– आलू (04 नग)

– दही (02 कप फेंटा हुआ)

– हरी मिर्च  (01 नग कटी हुई)

– भुना जीरा पाउडर (01 चम्मच)

– चाट मसाला (01 चम्मच)

– काली मिर्च पाउडर (चुटकी भर)

– काला नमक (1/2 चम्मच)

– लाल मिर्च पाउडर (स्वादानुसार)

– धनिया पत्ती (आवश्यकतानुसार)

– नमक (स्वादानुसार)

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बनाने की विधि :

– सबसे पहले आलू धो कर उबाल लें.

– उबले आलुओं को ठंडा करके इन्हें छील लें और चाकू की मदद से छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लें.

– अब एक कटोरे में सभी सामग्री को अच्छे से मिला लें और ऊपर से भुने हुए जीरे का पाउडर, काली मिर्च   का पाउडर, काला नमक और नमक छिड़कें.

– अगर आप रायता को स्पाइसी बनाना चाहती हैं तो थोड़ा सा पिसा हुआ लाल मिर्च भी मिला सकती हैं.

– स्‍वादिष्‍ट आलू का रायता तैयार है, इसे हरी धनिया से गार्निश करें और खाने के साथ परोसें.

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