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दीवाली 2019: ऐसे बनाएं दही कबाब

दही कबाब खाने में बहुत ही टेस्टी होता हैं. इसमें दही, पनीर, प्याज, अदरक और कालीमिर्च के साथ बनाया जाता है. आप इसे हरी चटनी के साथ भी खा सकते हैं. तो चलिए जानते हैं इसकी रेसिपी.

सामग्री

दही (1/2 कप)

प्याज (2)

हरी मिर्च (4)

नमक (1/2 टी स्पून)

चीज (75 ग्राम)

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धनिए के बीज और काली मिर्च (2 टेबल स्पून)

अदरक (1 टेबल स्पून)

चिली फलेक्स (1/2 टेबल स्पून)

बेसन  (रोस्टेड 1/2 कप)

पनीर (100 ग्राम)

तेल (तलने के लिए)

कौर्न फलोर (2 टेबल स्पून)

बनाने की वि​धि

एक मलमल का कपड़ा लें इसमें दही को डाल दें और इसे बांधकर लटका दें ताकि इसका पानी निकल जाए.

फीलिंग तैयार करने के लिए:

चीज़ को कददूकस कर लें और धनिए के बीज और कालीमिर्च को ड्राई रोस्ट कर लें, इसे पीसकर पाउडर बना लें.

कददूकस की हुई चीज, इसमें धनिया-कालीमिर्च पाउडर, हरी मिर्च, प्याज, अदरक और नमक डालकर मिक्स कर लें.

एक बाउल में हंग कर्ड लें, इसमें चिली फलेक्स और धनिया और बाकी बचा हुआ धनिया-कालीमिर्च पाउडर डालें.

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इसमें बेसन, पनीर और कौर्नफलोर डालकर इसे बाइंड कर लें.

इसे कबाब की फीलिंग में भरें और मिश्रण को कबाब की शेप दें.

इन्हें डीप फ्राई करके गर्मागर्म सर्व करें.

पिए नींबू पानी और रहें स्वस्थ

नींबू कई रोग और शारीरिक परेशानियों में काफी लाभकारी होता है. अगर आप प्रतिदिन एक गिलास नींबू पानी का सेवन करते हैं तो छोटी-मोटी बीमारियों से हमेशा दूर रहेंगे. लोग अक्‍सर नींबू पानी को मोटापा घटाने के लिए रामबाण मानते हैं. चूंकि नींबू में विटामिन सी होता है जो शरीर को रोगमुक्‍त रखने में सहायक होता है. आइए जानते हैं किन किन रोगों से बचने के लिए आपको नींबू का सेवन करना चाहिए:

  • भूख बढ़ाने के लिए

नींबू पानी के सेवन से भूख अच्छी लगती है. जिन लोगों को भूख ना लगने की समस्या है उन्हें नींबू पानी का सेवन करना चाहिए, उनकी समस्‍या दूर हो जाएगी.benefits of drinking lemon and water

  • मुंहासे

जिन लोगों को मुंहासे की परेशानी है, उन्‍हें नींबू पानी का सेवन करना चाहिए. इससे उनके शरीर में मुंहासे के लिए जिम्मेदार बैक्‍टीरिया मर जाएंगे और त्‍वचा भी चमकदार हो जाएगी. साथ ही चेहरे से तेल भी निकल जाता है.

  • पेट सम्‍बंधी विकार

अगर किसी व्‍यक्ति को पेट सम्‍बंधी कोई भी विकार है तो उसे नींबू पानी का सेवन करना चाहिए. गैस, कब्‍ज, कुपाचन आदि समस्‍याएं चुटकी में हल हो जाएगी.

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  • इम्‍यून सिस्‍टम मजबूत बनाना  

जिन लोगों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होता है उन्‍हें प्रतिदिन नींबू पानी का सेवन करना चाहिए. इससे उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होगी.

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  • किडनी में पथरी

किडनी में पथरी का होना काफी परेशान करता है. अगर किसी को स्टोन की परेशानी हो तो नींबू पानी उसके लिए काफी फायदेमंद होगी. दरअसल, नींबू पानी में प्राकृतिक साइट्रेट होता है जो स्‍टोन को तोड़ देता है या उसे बनने से रोकता है.

  • मांसपेशियों में दर्द

जिन लोगों को हमेशा मांसपेशियों में दर्द की शिकायत रहती है उनके लिए नींबू पानी काफी लाभकारी होता है. नींबू पानी शरीर में लैक्टिक के गठन को कम कर देता है और शरीर की क्रियाविधि अच्‍छी हो जाती है.

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‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’: जल्द ही खत्म होगी कार्तिक और नायरा के बीच की दूरियां

स्टार प्लस का मशहूर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में लगातार दर्शकों को कई धमाकेदार टविट्स देखने को मिल रहे है. जिससे दर्शक काफी इंटरटेन कर रहे हैं. इस शो में कायरव की कस्टडी केस के कारण इन दोनों में दूरियां बढ़ने वाली थी पर इस शो की कहानी बिल्कुल अलग दिखाई जा रही है.  कस्टडी केस के कारण ही नायरा कार्तिक के बीच की दूरियां खत्म होती नजर आ रही है. जी हां आपको जल्द ही इन दोनो को बीच का प्यार देखने को मिलेगा. इनके फैंस के लिए इस शो का ये टर्न ट्रीट की तरह साबित होने वाला है.

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शो के अपकमिंग एपिसोड में दिखाया जाएगा कि नायरा और कार्तिक के बीच की गलतफहमियां हमेंशा के लिए खत्म हो जाएंगी. दोनो के बीच उमड़ते हुए प्यार को दिखाया जाएगा. नायरा और कार्तिक एक दूसरे से माफी मांगते नजर आएंगे. लेकिन इन सबके बीच कायरव, नायरा और कार्तिक को दूर से बातचीत करते हुए देखता है. जिसे देखकर उसे लगता है कि इन दोनो के बीच कुछ गड़बड़ है और आपस में झगड़ रहे हैं.

आपको बता दें कि शो में वेदिका के पति की एट्री होने वाली है. तो उधर जल्द ही कार्तिक और नायरा एक होते नजर आएंगे.

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हाल ही में आपने देखा थीा कि  नायरा, कार्तिक से केस खत्म करने को कहती है. लेकिन कार्तिक कोर्ट में चला जाता है. कार्तिक अपनी वकील दामिनी मिश्रा से कहता है कि वो आज कोर्ट में नायरा के साथ किसी तरह का गलत बर्ताव ना करें. लेकिन नायरा और उसके भाई नक्ष को लगता है कि कार्तिक अपनी वकील को नायरा के खिलाफ भड़का रहा है.

इस फिल्म में रणबीर कपूर और दीपिका पादूकोण की जोड़ी जल्द ही आएगी नजर

बौलीवुड एक्टर रणबीर कपूर और एक्ट्रेस दीपिका पादूकोण की जोड़ी को दर्शक बेहद पसंद करते हैं.  भले उनके रास्ते अलग हो गए हो, पर आज भी फैंस के दिलो में उनकी जोड़ी राज करती है. उन दोनों की सबसे खास बात है कि अपने टूटे हुए रिश्ते को काम के बी कभी नहीं आने देते. ब्रेकअप के बाद भी उन दोनों ने ‘तमाशा’ में काम किया था. इस फिल्म के बाद काफी लंबे समय से उन दोनों की साथ में कोई फिल्म नहीं आई.

एक रिपोर्ट के अनुसार, रणबीर कपूर और दीपिका पादूकोण की जोड़ी साथ में नजर आने वाली है. उनके फैंस के लिए बहुत बड़ी खुशखबरी है. जी हां सही सुना आपने, रणबीर कपूर और दीपिका पादूकोण लव रंजन की अपकमिंग फिल्म में नजर आने वाले हैं.

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खबरों के अनुसार, लव रंजन की इस फिल्म में रणबीर कपूर और दीपिका पादुकोण के अलावा अजय देवगन भी नजर आएंगे. लेकिन अब कई मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार  अजय देवगन इस फिल्म का हिस्सा नहीं होंगे.

इस फिल्म की शूटिंग की डेट भी देनो एक्टर्स रणबीर कपूर और दीपिका पादुकोण ने पक्की भी कर ली है. इस फिल्म की शूटिंग के लिए फरवरी से शुरू की जाएगी.  हालांकि इससे पहले इन दोनों को एक टीवी एड में भी एक साथ स्क्रीन शेयर करते हुए देखा गया था. इस एड में इन की जबरदस्त केमिस्ट्री देखने को मिली थी.

रणबीर कपूर और दीपिका पादुकोण की तीनों फिल्म बचना ए हसीनों, ये जवानी है दीवानी और तमाशा में इन दोनों को खूब पसंद किया गया था. इन दोनो स्टार्स के काम की बात करे तो जल्द ही दीपिका की ‘छपाक’ और ‘83’ रिलीज होने वाली है. और वहीं रणबीर कपूर भी शमशेरा और ब्रह्मास्त्र की शूटिंग में व्यस्त चल रहे हैं.

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तो प्रणव मुखर्जी भारत रत्न का खिताब वापस क्यों नहीं कर देते ?

कट्टरवादी हिन्दू नेता रहे विनायक दामोदर सावरकर को भारत रत्न देने की भाजपाई मंशा की अब अधिकृत घोषणा होना ही बाकी है. जो कभी भी हो सकती है लेकिन उन्हें देश का यह सर्वोच्च खिताब देने पर जिन कांग्रेसियों के पेट में मरोड़ें उठ रही हैं. वे शायद ही इस सवाल का जबाव दे पाएं कि इसी साल जब यह खिताब उसके वरिष्ठ नेता और पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को दिया गया था. तब उन्हें ऐसा क्यों नहीं लगा था कि प्रणव मुखर्जी को एक कट्टरवादी और सांप्रदायिक सरकार के हाथों यह सम्मान नहीं लेना चाहिए. जिसकी विचारधारा एकदम कांग्रेस के प्रतिकूल है.

इसमें कोई शक नहीं कि मौजूदा सरकार सरकारी पुरस्कारों के मामले में भी मनमानी पर उतारू हो आई है और चुनचुन कर उन हस्तियों को खिताबों से जानबूझकर नवाज रही है. जो हिन्दुत्व के पालक पोषक और वर्ण व्यवस्था के पेरोकार रहे हैं. सावरकर इसके अपवाद नहीं हैं. कांग्रेसी एक और आधार पर भाजपाई मंशा का विरोध कर रहे हैं कि सावरकर गांधी की हत्या के आरोपियों में से एक थे. हालांकि उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत न होने के कारण अदालत ने उन्हें दोष मुक्त कर दिया था.

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लेकिन यह भारत रत्न देने या न देने का पैमाना नहीं माना जा सकता हालांकि सरकारी खिताबों के दिये जाने का कोई तयशुदा पैमाना है भी नहीं, अगर होता तो क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर और हिंदूवादी नानाजी देशमुख जैसे लोग तो कतई भारत रत्न के फ्रेम में फिट नहीं होते. इन्हें तो मोदी सरकार ने एक तरह से बख्शीश दी है और कांग्रेस भी ऐसा ही करती रही थी.

इसमें भी कोई शक नहीं कि गांधी और सावरकर की विचारधाराएं दो ऐसी समानान्तर रेखाएं हैं, जो कहीं जाकर नहीं मिलती. बहुत संक्षेप और सार रूप में देखें तो सावरकर अंग्रेजों से तो आजादी चाहते थे लेकिन उन्हें देश के दलित, पिछड़ों, आदिवासियों और मुसलमानों की दयनीय हालत से कोई सरोकार नहीं था.  उनकी नजर में ये तबके भी जन्मना आधार पर हिन्दू थे लेकिन उलट उसके गांधी जी को लग रहा था कि अगर इन वर्गों को सवर्णों के दबदबे से मुक्ति नहीं मिली तो अंग्रेजों से आजादी के कोई माने नहीं रह जाएंगे क्योंकि ये वर्ग तो उन सवर्णों की गुलामी ढोते रहेंगे. जो खुद के अलावा किसी और को हिन्दू मानते ही नहीं और मानते भी हैं तो बाकियों को निचले पायदान पर रखने की शर्त पर जिससे गांधी सहमत नहीं थे.

मुद्दे की बात यह है कि क्या सावरकर को भारत रत्न दिया जाना चाहिए तो इसका जबाब बड़े निराशाजनक तरीके से हां में भी निकलता है और न में भी. हां में इसलिए कि अब सत्ता उन हिंदुओं के हाथ में है, जो खुलेआम देश को हिन्दू राष्ट्र कहते किसी धर्म जाति संप्रदाय पंथ या विचारधारा की परवाह या लिहाज नहीं कर रहे हैं. इसलिए वे सावरकर को भारत रत्न देने पर उतारू हो आए हैं. पंजाब में तो सिक्ख समुदाय के लोग आरएसएस प्रमुख मोहन भगवत के उस बयान के खिलाफ सड़कों पर हैं. जिसमें उन्होंने सभी भारतीयों को हिन्दू कहा था.

योग्यता, योगदान या राष्ट्र निर्माण के लिहाज से देखें तो किसी तेंदुलकर देशमुख या मुखर्जी की तरह सावरकर ने उल्लेखनीय कुछ नहीं किया है. हां उनमें आजादी के लिए एक जुनून जरूर था. लेकिन चूंकि वह सिर्फ जुनून ही था इसलिए उसमें सामाजिक विवेक और समझ का सर्वथा अभाव था. कोई भी उदारवादी हिन्दू सावरकर को भारत रत्न देने की जिद से इत्तफाक नहीं रख सकता. दरअसल में सावरकर एक रोमांटिक से क्रांतिकारी थे और गांधी एक परिपक्व नेता थे. सावरकर की पहचान सबूत की मोहताज है लेकिन गांधी की नहीं. सावरकर ने सजा से बचने कोई छह बार अंग्रेजों से लिखित में माफी मांगी. लेकिन गांधी वह शख्सियत थे जिनके सत्याग्रहों और आंदोलनो से अंग्रेज़ थर्राते थे. अगर गांधी की व्यक्तिगत कमजोरियों को छोड़ दें तो वे एक सर्वमान्य नेता थे खास तौर से दलितों और मुसलमानों के भी.

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हिंदूवादियों के पास कभी कोई ऐसा चेहरा नहीं रहा जो सभी को स्वीकार्य हो इसलिए 2014 से सत्ता हासिल करने के बाद से वह दीनदायाल उपाध्याय, श्यामा प्रसाद मुखर्जी बगैरह के बाद बल्लभ भाई पटेल को यह रुतबा देने की पूरी कोशिश कर चुकी है. लेकिन देश का आम आदमी उनसे इत्तफाक नहीं रख रहा. और यह आम आदमी वे 80-85 करोड़ लोग होते हैं, जो दलित आदिवासी और मुसलमानों सहित दूसरे अल्पसंख्यक धर्मों के अनुयायी हैं. 10-15 करोड़ लोग आंख बंद कर सरकार के हर जायज नाजायज फैसले से इत्तफाक रखते हैं तो उन्हें मुख्यधारा या संविधान की प्रस्तावना में वर्णित हम भारतीय नहीं बल्कि हम हिन्दू माना जा सकता है जिनकी इन दिनों तूती बोल रही है.

ऐसे में सावरकर को भारत रत्न दे देना कोई हैरत की बात नहीं होगी लेकिन कांग्रेस की वैचारिक हार जरूर होगी. जिसमें प्रणव मुखर्जी का भारत रत्न ले लेना एक बड़ा फैक्टर है. अगर सचमुच कांग्रेस सावरकर को भारत रत्न देने की विरोधी कुछ सटीक तर्कों के साथ है तो उसे प्रणव मुखर्जी पर दबाव बनाना चाहिए कि वे भी पुरुस्कार वापसी गैंग में शामिल हो जाएं. यह जरूर भाजपा सरकार और हिंदूवादियों की करारी शिकस्त होगी लेकिन प्रणव मुखर्जी पानी से राजतिलक करवाने के बाद लंका छोड़ेंगे ऐसा लग नहीं रहा.

बाउंसर : भाग 2

इन लोगों को भी तो अपना हक बूझना होगा, उस को पाने के लिए हाथपांव चलाना होगा. मतलब, पहल तो इन लोगों को ही न करना है. एक बार तन कर देखें तो. सारे हक मिलते चले जाते हैं कि नहीं? सब से पहले तो रिरियाना छोड़ना होगा.’’

‘‘हां साहब, ठीक कह रहे हैं आप. माओवादी लड़ाई कुछकुछ हक के प्रति सचेत हो जाने का परिणाम ही तो है,’’ पांडे ने कहा और फिर झुमकी की ओर मुखाबित होते हुए बोले, ‘लेले रे, लेले. साहब और तेरे बीच कोई बिचौलिया नहीं है न. साहब के हाथ से सीधे तेरे हाथ में आ रहा है इ अनुदान.’’

ग्राहक आगे बढ़ा और आम को झुमकी की हथेली में ठूंसते हुए हिनहिनाया, ‘‘तकदीर, मुकद्दर और भाग्य, सब बेकार बातें हैं, रे. जरूरी है हक बचाने के लिए लड़ाई की पहल. देख, इस आम की मालकिन अब तू हुई. यह पूरी तरह तेरा है. अब इस पर तेरा हक है. तकदीर तेरी मुट्ठी में कैद हो गई कि नहीं?’’

आम थामे झुमकी की हथेली थरथरा रही थी. आम की साफ पुखराजी रंगत और खरगोश सा मुलायम स्पर्श रोमांचित कर रहा था. पर आंखों में अविश्वास और डर अभी भी दुबका हुआ था.

‘‘बाबू, इ आम हम नहीं ले सकते. हम को उहे आम दिला दें,’’ फिर से लिजलिजी गिड़गिड़ाहट.

‘‘भाग सुसरी,’’ ग्राहक इस बात से उखड़ गया, ‘‘भाग, नहीं तो दू थप्पड़ लगा देंगे.’’

झुमकी चुपचाप पांडेजी की गुमटी से उतर आई और धीरेधीरे घर को जाने वाली राह पर आगे बढ़ने लगी. उसे अभी भी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि हथेली में ताजा गोराचिट्टा लंगड़ा आम दुबका हुआ है. चलतेचलते अचानक रुकी और एक ओर खड़ी हो कर आम को भरपूर नजरों से निहारने लगी. उस निहार में एकसाथ आश्वस्ति, प्यार और तृप्ति के कईकई रंग घुले हुए थे. इतने करीब से इस तरह के साबुत आम को पहली बार देख रही है. आज तक जितने भी ग्राहक मिले, भीख में या तो एकाध सिक्का दिया या फिर परित्यक्त आमों में से एकाध दिला दिया. ताजा व पक्का आम पहली बार झोली में आया है. लग रहा था जैसे दलितों के लिए घोषित असंख्य सरकारी अनुदानों में से एक अनुदान एकदम मूर्त हो कर उस की झोंपड़ी के भीतर आ टपका हो. वह मन ही मन आम के रसीले स्वाद की कल्पना में खोने लगी. कदम तेजी से बस्ती की ओर बढ़ चले.

स्टेशन लांघ कर कदम कब लाइन पार आ गए और देखतेदेखते संन्यासी मोड़ भी कब आ पहुंचा, झुमकी को पता ही नहीं चला. तंद्रा टूटी तो सामने स्कूल का गेट दिखा. गेट बंद था. पीछे का ग्राउंड सूना. कक्षाएं समाप्त हो चुकी थीं न. झुमकी के पांव एक पल को गेट के पास थम गए. नजरें पखेरु सी उड़ती हुई पेड़ पर टंगे ‘सर्व शिक्षा अभियान’ के बोर्ड पर

जा बैठीं. बोर्ड में चित्रित निश्ंिचत मुसकराहटों को देख कर मन कचोट से भर गया.

वह आगे बढ़ने को उद्यत हुई ही थी कि सामने वाली पतली गली से निकल कर हवलदार निमाई बाबू प्रकट हो गए. खाकी वरदी, हाथ में रूल, आंखों में लोमड़ सी चमक. खाकी वरदी देख कर न जाने क्यों झुमकी की जान सूखने लगती है. मन में एक किस्म का डर रेंग जाता है. इस बार भी वही हुआ. भीतर ही भीतर कलेजा धकधक करने लगा. आसपास निपट सन्नाटा. दूरदूर तक कोई भी नहीं. एहतियात बरतते हुए आम वाली हथेली को पीछे ले जा कर फ्रौक के भीतर कर लिया.

‘का रे झुमकी?’ निमाई बाबू ने खींसें निपोर दिए, ‘धंधा से लौट रही?’

‘हां सर, एही वक्त तो लौटते हैं रोज,’ झुमकी मन ही मन फनफना उठी. हमरे काम को धंधा कहते हैं. खुद बाजार की दुकानों से और बस्ती वालों से वसूली करते हैं, वह धंधा नहीं है?

निमाई बाबू भी पोस्टमौर्टमी नजरें न जाने किस चीज की तलाश में उस के बदन का नखशिख मुआयना करने लगीं. निस्तेज चेहरा, सपाट छाती और किसी पुतले की सी पतलीपतली जांघें.

‘‘तोर काछे किच्छू नेई रे? (तेरे पास कुछ भी नहीं है रे?)’’ होंठों पर लिजलिजी हंसी उभर आई और आगे बढ़ कर रूल को उस की बांह पर 2-3 बार ठकठका दिया. रूल का स्पर्श होना था कि बांह थरथरा गई और हथेली से फिसल कर आम जमीन पर आ गिरा.

‘‘अयं…?’’ निमाई बाबू की आंखें विस्मय से फैल गईं, झुक कर आम को झट से उठा लिया, ‘‘इ आम कहां से मिला रे?’’

‘‘एगो साहब भीख में दिया, सर,’’ सफाई देती हुई झुमकी की जबान अनायास ही लड़खड़ा गई. निमाई बाबू की आंखों में अविश्वास सिमट आया. एक पल को झुमकी की आंखों के भीतर ताकते रहे, निर्निमेष, फिर हाहा कर के हंस पड़े, ‘‘एतना सुंदर आम भीख में? असंभव. सचसच बता, भीख में मिला या किसी दुकान से पार किया?’’

‘‘नहीं सर,’’ झुमकी की सांसें रुकनेरुकने को हो रही थीं, ‘‘पांडेजी की दुकान पर मिला. एक ग्राहक ने दिया. उन से पूछ लें.’’

हवलदार निमाई ने आम का एकदम करीब से अवलोकन किया. नाक के पास ले जा कर भरपूर सांस खींची तो नथुनों के भीतर महक अलौकिक सी महसूस हुई. ऐसा लगा जैसे इस महक में लंगड़ा आम की महक के अलावा भी एक अन्य सनसना देने वाली महक शामिल है. स्मृति में खलबली मच गई. ऊफ, याद क्यों नहीं आ रहा कि यह दूसरी महक कौन सी है? एकदम आत्मीय और जानीपहचानी. उत्तेजना के ये कुछेक पल बड़ी मुश्किल से ही कटे कि तभी आंखों में जुगनुओं की एकमुश्त चमक भर गई. अरे, यह महक शतप्रतिशत वही महक तो है जो दलितों के लिए घोषित मलाईदार सरकारी योजनाओं और अनुदानों से निकला करती है. खूब, ऐसी महक का स्वाद तो उन के जबान में गहराई से रचाबसा है. तभी तो…

‘‘ए,’’ निर्णय लेने में एक पल ही लगा, ‘‘ऐसा सुंदर और पका आम तुम लोग कैसे खा सकता है, रे? फिर सभ्य समाज का क्या होगा? यह आम तुझे नहीं मिल सकता.’’

‘‘हम को भीख में मिला, सर,’’ झुमकी किंकिया ही तो उठी.

‘‘हर चोर पकड़े जाने पर ऐसी ही सफाई देता. यह भीख का नहीं, चोरी का माल है,’’ निमाई बाबू के लहजे से हिकारत चू रही थी. ठीठ हिकारत.

‘‘हम सफाई नहीं दे रहे, सर. सच बोल रहे हैं. आप पांडेजी से पूछ लें.’’

‘‘पूछने की कोईर् जरूरत नहीं. यह चोरी का ही माल है. थाना में जमा होगा,’’ निमाई बाबू की आंखों में लोलुप चमक चिलक रही थी.

‘‘हम चोरी नहीं किए,’’ झुमकी के हौसले पस्त होते जा रहे थे.

‘‘चोप्प, जबान लड़ा रही? जब हम कह रहे हैं कि चोरी का माल है तो, बस, है.’’

‘‘हमारा यकीन करें, सर.’’

‘‘बोला न, चोप्प. एक शब्द भी बोला तो लौकअप में ले जा कर बंद कर देगा, समझी? प्रमाण लाना होगा. प्रमाण ले कर आओ, तब मिलेगा.’’

झुमकी स्तब्ध खड़ी रही. प्रमाण? हंह, भीख का प्रमाण मांग रहे? बाजार की दुकानों से और बस्ती से दैनिक वसूली करते हैं, उस का प्रमाण मांगा जाए तो…? तो दे सकेंगे? ग्राहक बाबू से कितना बोली थी कि ऐसे सुंदर आम उस जैसों के लिए नहीं होते. उन्होंने नहीं माना. बहादुरी में सरकारी योजनाओं और अनुदानों के बड़ेबड़े हवाले दे डाले. अरे, कोई भी सरकारी योजना या अनुदान सहीसलामत उन तक पहुंचता भी है? हंह, सब फुस हो गया न. उस के चेहरे पर स्याह मायूसी पुत गई. उसे महसूस हुआ जैसे हमेशा की तरह आज भी, कोई अनुदान मुट्ठी में आ जाने के बाद भी रेत की तरह फिसल कर अदृश्य हो गया है.

तभी उस की आंखें धुआंने लगीं. क्या वाकई सबकुछ इतनी आसानी से फुस हो जाने दे? ग्राहक बाबू ने कहा था न कि हक को पाने और बचाने के लिए चौकन्ना रहने के साथसाथ हाथपांव चलाते हुए संघर्ष की पहल करनी भी जरूरी है. पहल..? इस मौजूदा स्थिति में पहले के क्या विकल्प हैं, भला? वह नन्हीं जान, लंबेतगड़े निमाई बाबू से हाथापाई कर के जीत सकती है? आम छीन कर दौड़ भी पड़े तो निमाई बाबू लपक कर पकड़ लेंगे. आम तो जाएगा ही, भरपूर पिटाई भी खूब होगी.

तब?

उस का छोटा सा दिमाग तेजी से कईकई विकल्पों का जायजा ले रहा था. कोईर् तो पहल करनी ही होगी हक बचाने के लिए. एकदम आसानी से सबकुछ फुस नहीं होने देगी वह.

अचानक भीतर एक कौंध हुई. आंखें चमत्कृत रह गईं. कलेजा धकधक करने लगा. निमाई बाबू आम पा जाने की खुशी में चूर होते तनिक असावधान तो थे ही, झुमकी ने चीते की तरह लपक कर उन के हाथों से आम को कब्जे में लिया और पूरी ताकत से उस आम पर दांत गड़ा दिए.

महिलाएं डर कर नहीं, खुल कर जियें : ललित अग्रवाल

वी-मार्ट रिटेल कम्पनी लिमिटेड के सीएमडी ललित अग्रवाल का परिवार यूं तो मूल रूप से राजस्थान का रहने वाला है, मगर उनके पिता कोलकाता में जा बसे थे. कोलकाता में ही ललित अग्रवाल का जन्म हुआ. आसपास बंगाली माहौल होने के कारण बचपन से ही उनकी बंग्ला भाषा पर अच्छी पकड़ बन गयी, मगर इसके साथ ही वे कई और भाषाएं भी बखूबी बोल लेते हैं. वे उड़िया और पंजाबी में धाराप्रवाह बात करते हैं. मराठी और गुजराती भाषाएं जानते हैं. हिन्दी, उर्दू और अंग्रेजी तो खैर परिवार में ही बोली जाती थी. आज वे बिजनेस के कार्यों से जिस शहर में जाते हैं, वहां के लोगों से उनकी भाषा में वार्तालाप करके उन्हें क्षण भर में अपना बना लेते हैं. उनकी यह खूबी उनके व्यापार को बढ़ाने में काफी अहम सिद्ध हुई है. यह जानकर आश्चर्य होता है कि टेलर पिता की छोटी सी दुकान में बैठने वाले ललित अग्रवाल ने महज सोलह बरसों में देश के 17 राज्यों में वी-मार्ट के 245 शोरूम्स खोल डाले. गारमेंट्स के क्षेत्र में वी-मार्ट आज नये कीर्तिमान स्थापित कर रहा है. मौल में शॉपिंग की बात जहां पहले उच्च वर्ग के लोगों के बस की बात मानी जाती थी, वी-मार्ट ने मध्यम और निम्न वर्ग के लोगों को भी यह मौका उपलब्ध कराया है कि वे भी शान और गुरूर से किसी मॉल में जाकर मनपसंद डिजाइनर कपड़ों की खरीदारी कर सकें. छोटे शहरों के निवासियों की जरूरतों और उनकी पौकेट को समझते हुए उन्हें बढ़िया क्वालिटी और डिजाइन के अत्याधुनिक ड्रेसेज उपलब्ध कराने में आज वी-मार्ट का जवाब नहीं है.

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बचपन का अनुभव काम आया

वी-मार्ट के मालिक ललित अग्रवाल के पिता सिलाई का काम करते थे. उनकी दुकान पर आने वाले ग्राहकों और उनकी डिमांड को ललित ने बचपन में काफी गौर से देखा-समझा. कौन सा ड्रेस मिटीरियल किस क्वालिटी का है, किस दाम का है, क्या डिजाइन मार्केट में ट्रेंड कर रहा है, ग्राहक क्या पसन्द कर रहा है, क्या सिलवाना और पहनना चाहता है, इन तमाम बातों पर बचपन से ही उनकी पैनी नजर रही है. गारमेंट इंडस्ट्री में कदम रखने के पीछे उनके इसी अनुभव ने महती भूमिका निभायी है. महज सोलह बरस के छोटे से समयान्तराल में एक टेलर की दुकान से उठ कर रिटेल सेक्टर में इतना बड़ा नाम बन जाना कोई मामूली बात नहीं है.

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ललित अग्रवाल कहते हैं, ‘मेरे खून में रिटेल दौड़ता था. मैं खुद छोटे शहर से निकल कर आया था, तो मुझे पता था कि छोटे शहर के लोगें की क्या दिक्कतें हैं, उनकी क्या चाहतें हैं, वो क्या खरीदते हैं और उन्हें क्या क्वालिटी मिलती है. मुझे निम्न और मध्यम वर्ग के लिए बाजार में बहुत बड़ा गैप नजर आ रहा था. मेरे लिए यह अच्छी औपेरच्यूनिटी थी, जहां मैं एक बहुत बड़े वर्ग के लिए कुछ बड़ा कर सकता था, तो सबसे पहले मैंने अपने चचेरे भाई के साथ 1999 में विशाल मेगामार्ट शुरू किया. हम जैसे-जैसे काम करते गये वैसे-वैसे रास्ता बनता गया. फिर 2003 में मैंने वी-मार्ट शुरू किया. आज देशभर में वी-मार्ट के 245 शोरूम्स हैं.’

जहां चाह वहां राह

भारत के बाजार और ग्राहकों को बहुत बेहतर तरीके से समझने वाले ललित अग्रवाल एक आशावादी व्यापारी हैं. आज जहां चारों तरफ आर्थिक मंदी का शोर मचा हुआ है, वहीं देश भर में अपने शोरूम्स का जायजा लेकर हाल ही में दिल्ली लौटे ललित अग्रवाल दीवाली के त्योहार को लेकर खासे उत्साहित दिखते हैं. उनका कहना है कि मंदी और खरीदारी को लेकर जो भ्रम मीडिया जगत में फैला हुआ है, बाजार की सच्चाई उससे कोसों दूर है. फेस्टिव सीजन में ग्राहक काफी उत्साहित है और व्यापारी भी. त्योहार की खरीदारी चरम पर है, देश भर के बाजारोंं में ऑफर्स की बहार है और दुकानों पर खूब भीड़ उमड़ रही है.

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औफर्स से उत्साह

ललित अग्रवाल कहते हैं कि सोशल मीडिया और सेल्फी का जमाना है, हर व्यक्ति फेसबुक पर है, तो हर कोई अच्छा, सुन्दर और लखदख दिखना चाहता है. खासतौर पर महिलाएं. उनकी खरीदारी तो दुर्गापूजा और करवाचौथ से ही शुरू हो जाती है. दीवाली में भारतीय परिवारों के बीच गिफ्ट का आदान-प्रदान भी होता है, और उसके बाद फरवरी माह तक उत्सव का सा माहौल रहता है. क्रिस्मस, न्यू ईयर के साथ ही यह समय शादियों का होता है, ऐसे में खरीदारी तो जबरदस्त होगी ही. भारतीय महिलाओं की पसन्द और डिमांड को देखते हुए वी-मार्ट ने अपने शोरूम्स में काफी कुछ नया जोड़ा है. नये डिजाइन के कपड़ों के अलावा ज्वेलरी, घरेलू सामान, इलेक्ट्रानिक अप्लाएंस, नॉनस्टिक बर्तन, प्रेशर कुकर आदि की बड़ी रेंज उतारी है. इन तमाज चीजों के साथ आकर्षक औफर्स भी हैं. वी-मार्ट इस फेस्टिव सीजन में ‘मल्टीपल चेन औफर’ लेकर आया है. ललित अग्रवाल कहते हैं कि वी-मार्ट का लक्ष्य छोटे शहरों के लोगों को अच्छा सामान उचित दामों में उपलब्ध कराने का है. छोटे शहरों में आमतौर पर एक परिवार का त्योहारी बजट कोई पांच हजार रुपये तक होता है तो वी-मार्ट ने औफर दिया है कि जब वह 1500 रुपये की खरीदारी करेंगे तो उनको पांच सौ रुपये का गिफ्ट वाउचर मिलेगा, जिसको भुनाने के वक्त बारह सौ रुपये की खरीद पर उन्हें फिर पांच सौ रुपये का गिफ्ट वाउचर मिलेगा, ऐसे कुछ क्रमों के बाद यह ऑफर एक सोने के सिक्के पर खत्म होगा. इस औफर से छोटे शहर की महिलाओं में काफी उत्साह दिख रहा है, सोने का सिक्का पाने की हसरत में वे खूब खरीदारी कर रही हैं.

सोशल मीडिया से बढ़ी चाहतें

जमाना आज औफलाइन के साथ-साथ औनलाइन शौपिंग का भी है और महिलाएं घर बैठे अपने स्मार्ट फोन पर प्रोडक्ट्स की बहुत बड़ी रेंज से परिचित हो रही हैं, उनके ज्ञान और जानकारी में बढ़ोत्तरी हो रही है, ऐसे में वह बहुत सोच-समझ कर अपने बजट के अनुरूप अच्छे से अच्छे और ज्यादा से ज्यादा ड्रेसेज और ज्वेलरी खरीदना चाहती हैं. किस तरह के ड्रेस डिजाइन ट्रेंड कर रहे हैं, किस तरह की ज्वेलरी पहनी जा रही है, यह सब उन्हें सोशल मीडिया के जरिए पता चल जाता है. महानगरों में महिलाओं के पास पैसा ज्यादा है, तो वह बड़े-बड़े शोरूम्स में जाकर खूब खुलकर खर्च करती हैं, मगर छोटे शहर की महिलाओं का हाथ थोड़ा तंग रहता है. इस बात को वी-मार्ट ने बखूबी समझा है और यही वजह है कि त्योहार के वक्त उसने छोटे शहरों की महिलाओं को कतई मायूस नहीं होने दिया है. वी-मार्ट के शोरूम्स में उन्हें कम कीमत में अच्छी रेंज मिल रही है, जिसके चलते वे खासी उत्साहित हैं.

क्वालिटी से कोई समझौता नहीं

ललित अग्रवाल कहते हैं कि हमारा ग्राहक वर्ग छोटे शहरों का है. यह एक बहुत बड़ा वर्ग है, जो पांच-सात साल पहले तक शौपिंग मौल्स में खरीदारी का सपना भी नहीं देखता था, वह तो बस अपने गली-मोहल्लों में लगने वाले बाजार में ही खरीदारी करता था, मगर वी-मार्ट ने उनके अन्दर मॉल में जाकर शौपिंग करने का साहस पैदा किया है. जहां उन्हें अपनी जेब के अनुसार अच्छा सामान मिलता है. वे कहते हैं कि छोटे शहर का आदमी बड़ी मेहनत से पैसा कमाता है और मेहनत की कमाई को जब वह खर्च करता है तो बड़ा सोच-समझ कर खर्च करता है. इसलिए क्वालिटी को लेकर उसे बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता है. अगर हमें उनके साथ लम्बे समय तक चलने वाला व्यापार करना है तो हमें उनको अच्छी क्वालिटी ही देनी है. अगर आप कम दाम में अच्छी क्वालिटी देंगे तो कस्टमर बार-बार उसको यूज करेगा और लौट-लौट कर आपके पास ही आएगा. जो लोग साल में तीन या चार ड्रेसेज खरीदते हैं, और उन कपड़ों को बार-बार धोते और पहनते हैं, तो हम उन्हें खराब क्वालिटी तो दे ही नहीं सकते हैं. वरना दो बार की धुलाई के बाद ही उनके रंग उड़ जाएंगे. हम उन्हें उनकी जेब के अनुरूप अच्छी क्वालिटी का सामान उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध हैं, ताकि उनका हम पर विश्वास बना रहे और वे हमारे साथ हमेशा जुड़े रहें.

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एथनीक के साथ वेस्टर्न ड्रेसेज की चाह

ललित अग्रवाल कहते हैं कि त्योहार के वक्त जहां छोटे शहरों की महिलाएं पारम्परिक ड्रेसेज जैसे साड़ी, लंहगा-चुन्नी या शलवार-सूट पहनना पसंद करती हैं, वहीं अन्य दिनों में वे हल्के और आरामदायक कपड़े चाहती हैं. इसलिए दोनों ही तरह के कपड़ों की काफी खरीदारी हो रही है. देश में कई ऐसे शहर हैं जहां पहले जीन्स-टीशर्ट पहनने के बारे में युवतियां सोचती भी नहीं थीं, मगर जब वी-मार्ट ने कम दामों में अपने स्टोर्स पर उनके लिए जीन्स-टीशर्ट, छोटी कुर्तियां, स्कर्ट्स इत्यादि उतारीं तो उनके प्रति उनमें गजब का आकर्षण देखा गया. अब छोटे शहरों की लड़कियां भी आराम से पाश्चात्य कपड़े पहनती हैं. ये सुविधाजनक और आरामदायक तो होते ही हैं, उनको स्मार्ट और ग्लैमरस लुक भी देते हैं. त्योहारों के मौसम में भारतीय महिलाएं जहां एथनीक कपड़े पहनना पसंद कर रही हैं, वहीं कॉलेज जाने या घूमने-फिरने के दौरान जीन्स टीशर्ट, शौर्टस या स्कर्ट उनकी पसंद बनती जा रही है.

महिलाओं को बड़े और मजबूत कदम उठाने चाहिए

ललित अग्रवाल मानते हैं कि भारत में महिलाओं के सामने काम करने के अवसर बहुत ज्यादा हैं. वे घर बैठे भी कई तरह के उद्योग शुरू कर सकती हैं. उनके लिए बहुत ऑपेरच्यूनिटीज हैं. बात चाहे उत्पादन को बढ़ाने की हो या खपत की, दोनों ही जगह वे बेहतर सहयोग दे सकती हैं. वी-मार्ट ने फरीदाबाद और दिल्ली में ऐसे दो यूनिट्स शुरू किये हैं जहां सारा काम महिलाएं ही संभाल रही हैं. वी-मार्ट के स्टोर्स में पारंपरिक कलात्मकता से भरी पोषाकें बनाने और हमें सप्लाई करने वाली महिलाएं ही हैं.

ललित अग्रवाल जल्दी ही एक औल विमेन स्टोर बनाने की प्लानिंग कर रहे हैं, जहां स्टोर मैनेजर से लेकर सेल्स डिपार्टमेंट तक का सारा काम महिलाएं ही करेंगी. वे एक ऐसा माहौल तैयार करना चाहते हैं, जिससे उनके आर्गेनाईजेशन और समाज में महिलाएं आगे रहें. बावजूद इसके वे मानते हैं कि भारतीय महिलाओं में कौन्फीडेंस की अभी कुछ कमी है. उनमें एक झिझक है. वे फैसले लेने के लिए परिवार वालों का मुंह देखती हैं. कोई चीज खरीदनी है तो वह दूसरे की इजाजत मिलने का इंतजार करती हैं, जबकि उनको खुद बाहर निकलना चाहिए. बड़े स्टेप्स लेने चाहिएं. बेझिझक खरीदारी करनी चाहिए. बेझिझक काम करना चाहिए. ललित अग्रवाल मानते हैं कि आज जब सरकार महिलाओं की सुरक्षा के प्रति इतनी संवेदनशील है, उन्हें काम करने के सुरक्षित अवसर उपलब्ध करा रही है, तो महिलाएं डर कर नहीं, खुल कर जियें. वे स्ट्रांग बनेंगी तभी देश स्ट्रांग बनेगा.

लिप्सा : भाग 2

घर की घंटी बजी, तो सुषमा दरवाजा खोलने के लिए आगे बढ़ीं.

‘‘जी, आप कौन?’’

‘‘नमस्ते माता जी, मु झे राकेश ने भेजा है. वो इस महीने का किराया नहीं मिला, तो आप से लेने के लिए कहा है.’’

‘‘अरे बेटा, आप गलत जगह आ गए हैं. यह हमारा घर है. हम किराएदार नहीं हैं.’’

‘‘माताजी, अमरकांतजी यहीं रहते हैं न?’’

‘‘हां, रहते तो हैं.’’

‘‘तो किराया क्यों नहीं देतीं? देखिए मेरे पास आप से बहस करने का वक्त नहीं है,’’ दरवाजे पर खड़े शख्स ने भिन्ना कर कहा.

आवाजें सुन कर अमरकांत नीचे आए, तो उन्हें पूरे मामले का पता चला. जब उन्हें इस बात का ज्ञान हुआ कि रीमा उन के साथ इतना बड़ा षड्यंत्र रच कर गई है तो उन के पैरोंतले जमीन खिसक गई. अपनी खुद की बेटी, जिस पर उन्हें खुद से भी ज्यादा भरोसा था, जिसे वह अपने बुढ़ापे की लाठी सम झते थे, ऐसा घिनौना खेल खेल कर जाएगी, इस की उन्होंने सपने में भी कभी कल्पना नहीं की थी. इस विश्वासघात ने उन्हें अंदर तक छलनी कर दिया था. अचानक दिल में दर्द उठा और सीने पर हाथ रखे तड़पने लगे. सुषमा और दरवाजे पर खड़े शख्स ने उन्हें सहारा दिया, अस्पताल ले कर गए.

पापा के हार्टअटैक की खबर सृष्टि को मिली तो वह दौड़ीदौड़ी अस्पताल आई. आईसीयू के बाहर मां को रोता देख उस की भी आंखों में आंसू आ गए. जब मां ने उसे पूरा हाल सुनाया तो उसे विश्वास नहीं हुआ कि जो उस ने सुना वह सच था या उस से सुनने में कोई गलती हुई है. जिसे वह आदर्शों का पुतला सम झती थी वह रीमा इतनी लालची निकलेगी, इस का उसे कभी खयाल तक नहीं आया था.

पापा को अस्पताल से छुट्टी मिली तो सृष्टि उन्हें घर ले आई. पुराना घर खाली किया तो बहुत सा सामान बेचना पड़ा. अमरकांत की हालत नाजुक थी. उन के अंतर्मन को लगी चोट बहुत गहरी थी. रीमा और उस के बच्चों का कुछ पता नहीं था. पुलिस में जा नहीं सकते थे क्योंकि बच्चों का जीवन खराब हो सकता था और चाहे जैसी भी थी, रीमा थी तो उन की ही बेटी. सो, उस पर कालिख पोतना उन के खुद के लिए ही अपमानजनक होता.

पर सृष्टि रीमा को यों ही छोड़ने वाली नहीं थी. उम्रभर उस ने मातापिता के ताने सुने, खरीखोटी सुनी, लेकिन अपने ही मांबाप को धोखा देने के बारे में उस ने कभी नहीं सोचा. सृष्टि के पति प्रकाश की एक डिटैक्टिव से अच्छी पहचान थी. उस ने प्रकाश से डिटैक्टिव नारायण का पता लिया और उस से मिलने चली गई.

‘‘मेरा नाम सृष्टि है. क्या आप मेरी मदद कर सकते हैं?’’ सृष्टि ने डिटैक्टिव नारायण की ओर देखते हुए कहा.

‘‘क्यों नहीं, बताइए, क्या मदद चाहिए आप को मेरी?’’ नारायण ने मुसकराते हुए पूछा.

‘‘मैं अपनी बहन रीमा को ढूंढ़ना चाहती हूं. उस के पास हमारा कुछ बहुत महत्त्वपूर्ण सामान है. वह 4 महीने पहले घर से अपने 2 बच्चों के साथ चंडीगढ़ के लिए निकली थी. बेटी और बेटा जुड़वां हैं. दोनों ही 21 साल के हैं. बेटी का नाम रिन्नी और बेटे का नाम दिनेश है. आखिरी बार डेढ़ महीने पहले रीमा ने फोन किया था. उस के बाद से उस की कोई खबर नहीं है. यह उस की और उस के बच्चों की तसवीर और कौंटैक्ट डिटैल्स हैं,’’ सृष्टि ने कागज आगे सरकाते हुए कहा.

40 दिनों बाद डिटैक्टिव नारायण का सृष्टि को फोन आया तो उस ने बताया कि रीमा मुंबई के अंधेरी में अपने दोनों बच्चों के साथ रह रही है. दोनों बच्चे मुंबई के एक बड़े विश्वविद्यालय में पढ़ाई पूरी कर रहे हैं. सृष्टि अगली फ्लाइट से नारायण के दिए पते पर पहुंच गई.

सृष्टि रीमा के घर पहुंच तो गई थी पर उस के कदम जैसे वहीं थम गए थे, न आगे बढ़ रहे थे और न ही पीछे. फ्लैट अंधेरी जैसे पौश इलाके में था तो उस की कीमत भी कुछ कम तो होगी नहीं. घर का खर्चा, बच्चों की पढ़ाई और 3-4 महीने का गुजारा, क्या इस के बाद भी रीमा के पास कुछ बचा होगा या नहीं, सृष्टि सोचने लगी.

कुछ देर यों ही सुन्न खड़ी सृष्टि ने होश संभाला और फ्लैट की घंटी बजा दी. दरवाजा खुला तो रीमा सृष्टि के समक्ष खड़ी थी. सृष्टि को देख कर रीमा के होश उड़ गए. आखिर सृष्टि यहां कैसे चली आई, यह सम झना रीमा के लिए बहुत मुश्किल था.

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‘‘सर….स्रिश…सृष्टि तुम?’’ रीमा आश्चर्यचकित हो कर बोली.

‘‘हां दीदी, मैं ही हूं. अंदर नहीं बुलाओगी?’’ सृष्टि ने स्थिर आवाज में कहा.

‘‘आओ..आओ न.’’

‘‘घर तो बेहद खूबसूरत है तुम्हारा, बड़ी मेहनत से बनाया होगा. अरे, मेहनत कहां, तुम ने तो  झूठ और मक्कारी से बसाया है घर,’’ सृष्टि व्यंग्यस्वरूप मुसकराते हुए बोली.

‘‘सृष्टि,’’ रीमा चिल्लाई.

‘‘चिल्लाओ मत, दीदी, यह कोई तुम्हारा टीवी सीरियल नहीं है जहां तुम नौटंकियां करोगी. पर तुम्हें भी क्या कहूं, तुम ने तो सच में हम सभी की जिंदगियों को टीवी पर दिखाए जाने वाले नाटक की तरह बना दिया है. दोहरी असलियत लिए घूमना, षड्यंत्र रचना, बेबसी का ढोंग करना और न जाने क्याक्या.’’

‘‘अगर तुम यहां मु झे वापस ले जाने आई हो तो मैं तुम्हारे साथ नहीं जाऊंगी,’’ रीमा ने अकड़ते हुए कहा.

‘‘क्या? इतना सब करने के बाद भी तुम्हें लगता है कि तुम्हारी उस घर में जगह होगी?’’ सृष्टि ने हैरान हो कर कहा. ‘‘अब ऐसा कोई नहीं है वहां, जिसे तुम और तुम्हारे ढोंग की आवश्यकता हो. मैं यहां अपने मम्मीपापा के खूनपसीने से बनाए उस घर के पैसे लेने आई हूं जिसे तुम ने अपने लालच में बेच दिया.’’

रीमा चुपचाप खड़ी हो कर सुनती रही. उस के मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे, उस की आंखों से अश्रुधारा बहने लगी.

‘‘आखिर, ऐसा भी क्या लालच, कैसी लिप्सा जो एक बेटी अपने बूढ़े मांबाप को बेसहारा कर आई,’’ सृष्टि ने रीमा पर चिल्लाते हुए कहा.

‘‘मेरे खुद के भी बच्चे हैं, सृष्टि. मु झे उन का भविष्य भी देखना है. मेरे बाद उन का है भी कौन. मैं चोरी कर के या यों छल कर के नहीं आना चाहती थी, पर मेरी मजबूरी तो सम झो,’’ रीमा ने सिसकते हुए कहा.

‘‘तुम्हारे बच्चे, तुम्हारा परिवार और उन मांपापा का क्या जिन्होंने तुम्हें पालपोस कर इतना बड़ा किया? तुम्हें आज अपना छल सही लग रहा है, कहीं तुम्हारे ही सिखाए छल से तुम्हारे बच्चे भी एक दिन तुम्हें इस घर से धक्के मार कर न निकाल दें. क्या यहां आ कर तुम ने एक भी बार यह सोचा कि तुम्हारे  झूठ का परदाफाश होगा तो क्या होगा? क्या तुम ने यह जानने की कोशिश की कि तुम्हारे जाने के बाद तुम्हारे मांबाप जिंदा भी हैं या नहीं?’’

‘‘सृष्टि,’’ रीमा ने चीखते हुए सृष्टि के मुंह पर थप्पड़ मार दिया.

‘‘यह थप्पड़ तुम ने मु झे नहीं मारा, दीदी, बल्कि खुद को मारा है. इस थप्पड़ की सही हकदार भी तुम्हीं हो. पापा को जब यह पता लगा तो उन्हें हार्टअटैक आ गया. मां ने रोरो कर तबीयत खराब कर ली. तुम्हारे पापों का फल आखिर वे क्यों भुगतें?’’ सृष्टि की आंखों से अंगार बरस रहे थे.

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‘‘अगर तुम पैसे ले जाओगी तो मैं क्या करूंगी, मेरे बच्चों का क्या होगा, सृष्टि?’’

‘‘घर 6 करोड़ रुपए का था. अगर हम हिस्सा भी देखें तो हमारे 3 करोड़ रुपए होंगे. मांपापा अभी जिंदा हैं तो घर के 3 हिस्से होने चाहिए. तो तुम अपने 2 करोड़ के साथ जो भी करो, लेकिन मु झे 4 करोड़ रुपए चाहिए, वरना मेरे पास दूसरे रास्ते भी हैं. तुम्हारे बच्चे बड़े हैं और शायद कुछ ज्यादा ही सम झदार भी हैं. इतने में उन की पढ़ाई भी हो जाएगी और तुम्हारा खर्चा भी निकल जाएगा. घर तो तुम्हारे पास है ही. कुछ सालों बाद वे नौकरी करेंगे तो अपनी जिंदगी बिताने लायक तो हो ही जाएंगे. हां, फिर उन के हिस्से के लिए मत आ जाना. अब तुम इसे अपनी सजा सम झो या और कुछ.’’

‘‘ठीक है, ले जाओ जो तुम्हारा है. मैं तुम्हारे सामने भीख नहीं मांगूंगी,’’ यह कहते हुए रीमा अंदर कमरे से चेकबुक ले आई और उस ने चेक पर दस्तखत कर दिए. उस की आंखों से आंसुओं की कुछ बूंदें चेक पर गिर गईं. ‘‘मु झे सम झ नहीं आ रहा कि मैं फिर कभी मांपापा को मुंह दिखा पाऊंगी या नहीं, लेकिन उन से कहना कि मैं आज भी उन की बड़ी बेटी रीमा ही हूं. मु झे माफ कर दें,’’ रीमा ने सृष्टि के आगे हाथ जोड़ते हुए कहा.

‘‘हूं, कह दूंगी,’’ सृष्टि यह कहते हुए दरवाजे की ओर मुड़ी और बीच में ही रुक गई, ‘‘रीमा दीदी, एक सलाह है आप के लिए, लिप्सा के समंदर में तैरोगी, तो कभी पार नहीं हो पाओगी.’’

आखिरी सेल्फी : भाग 2

आखिरी सेल्फी : भाग 1

आखिरी भाग

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भाग 2

दबंग शंकर के सामने टीकूराम की हिम्मत नहीं थी कि अंजू पर पाबंदी लगाए, क्योंकि अंजू भी शंकर के रंग में रंगी हुई थी. दूसरी ओर जाट समुदाय के लोग शंकर के पिता भंवराराम से बदनामी की बात कह कर शंकर के अंजू की ओर बढ़ते कदमों को रोकने को कहते थे. लेकिन भंवराराम में भी बेटे को कुछ कहने की हिम्मत नहीं थी.

फलस्वरूप अंजू और शंकर के प्रेम संबंधों और साथ घूमने पर कोई पाबंदी नहीं लग सकी. इस से हार कर टीकूराम ने अपने समाज के लोगों से कहा कि वह अंजू की शादी कर देगा तो अंजू और शंकर का मिलनाजुलना खुद ही बंद हो जाएगा. लोगों को उस की यह बात सही लगी.

आननफानन में थोड़ा परदा रख कर अंजू के लिए लड़का ढूंढा गया. चौहटन से दूर गौरीमुल्ला इलाके के गांव खारी में अंजू के लिए अरुण नाम का लड़का पसंद कर लिया गया. हाथोंहाथ शादी की बात पक्की कर दी गई, तारीख भी तय हो गई. हालांकि अंजू ने विरोध किया लेकिन घर वालों के सामने उस की एक नहीं चली. शंकर भी उस वक्त जालौर में था, अंजू की शादी की बात उसे बाद में पता चली.

मार्च के अंत में अरुण बारात ले कर आया और अंजू को ब्याह कर अपने घर ले गया. अंजू 2 महीने ससुराल में रही. इस बीच अंजू और शंकर फोन पर लगातार बातें करते रहे. शादी की बात को ले कर शंकर को कोई शिकवा नहीं था. हां, अंजू जरूर ग्लानि महसूस करती थी.

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जून के पहले हफ्ते में अंजू ससुराल से मायके आई. उस के मायके आने की बात शंकर को पता थी. वह भी जालौर से अपने घर लालसर आ गया. दोनों अंजू की शादी के लगभग 2 महीने बाद मिले थे. ऐसे में एकदूसरे से मिलने की बेताबी थी.

गांव में शंकर की दबंगई चलती थी, जिस की वजह से उन दोनों के मिलने को कोई नहीं रोक सका. मिलने पर अंजू ने शंकर से कहा, ‘‘मैं ने अरुण से मजबूरी में शादी की है. तुम होते तो तुम्हारे साथ भाग जाती. भले ही मैं 2 महीने तुम से दूर रही, लेकिन तुम दिलोदिमाग से जरा भी अलग नहीं हुए.’’

अपनी बात कह कर अंजू ने शंकर को अपनी हथेली दिखाई. उस की हथेली में मेहंदी से दिल का निशान बना था, जिस में तीर लगा था. बीच में ए.एस. (अंजू-शंकर) और उस के ऊपर दिलदार लिखा हुआ था. मेहंदी से बने चित्र और शब्दों को देखपढ़ कर शंकर हैरान रह गया.

दरअसल अंजू उसे दिलदार ही कहती थी. उस ने अंजू से पूछा तो उस ने बताया कि शादी के समय जब उसे मेहंदी लगाई गई, उस ने तभी खुद उस का नाम लिख कर, प्यार का निशान बनाया था. इस सब को वह 2 महीने तक पति और ससुराल वालों से छिपाए रही थी. यह सुन कर शंकर खुश हुआ.

वैसे यह भी संभव है कि प्यार का प्रतीक चिह्न और उस पर दिलदार शब्द लिख कर अंजू ने 2 निशाने साधे हों. मतलब जो बात उस ने शंकर से कही, वही अपने पति अरुण से भी कही हो. क्योंकि प्रेमी हो या पति, दिलदार दोनों को ही कहा जा सकता है.

12 जून बुधवार की शाम शंकर बाइक से बाछड़ाऊ गांव के ढाबे पर पहुंचा, जहां उस ने अपने 2 दोस्तों के साथ खाना खाया. उस समय रात के साढ़े 9 बजे थे. खाना खा कर दोस्त अपनी राह चले गए, जबकि शंकर अपने गांव लौट आया.

गांव में वह बाइक से सीधे अंजू के घर पहुंचा. तब तक 10 बज गए थे. शंकर ने अंजू के घर के सामने जा कर उसे फोन किया और मोटरसाइकिल पर बैठ कर इंतजार करनेलगा. थोड़ी देर में अंजू बाहर आई और बिना कुछ बोले बाइक पर पीछे बैठ गई. गांव से बाहर निकलने के बाद दोनों एक कमरे पर गए, जहां काफी देर तक रुके.

वहीं पर अंजू और शंकर ने एकदूसरे से शादी की. शंकर ने अंजू की मांग में सिंदूर भरा, बिंदी लगाई. उस के जिस हाथ पर मेहंदी से दिल का चित्र बना था और दिलदार लिखा था, उस का फोटो ले कर सोशल मीडिया पर डाला.

इसी बीच दोनों ने शराब पी. वहां से निकल कर अंजू और शंकर गांव के श्मशान के पास पहुंचे. वहां रेत के टीले पर बैठ कर दोनों ने बीयर पी.

तब तक दोनों साथसाथ आत्महत्या का फैसला कर चुके थे. अंजू और शंकर ने एकदूसरे को किस करते हुए और गलबहियां डाल कर मोबाइल के कैमरे से कुछ सेल्फी फोटो ले लिए थे.

शंकर ने 2 पिस्तौलों का इंतजाम पहले ही कर लिया था. कुछ औडियो और वीडियो भी उन्होंने बना लिए थे. एकदूसरे को गोली मारने से 10 मिनट पहले शंकर ने सेल्फी फोटो, औडियो और वीडियो अपने वाट्सऐप ग्रुप पर डाल दिए थे.

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यह सारा काम निपटाने के बाद दोनों ने एकदूसरे की कनपटी से पिस्तौल लगाई और मोबाइल का कैमरा औन कर के एकदूसरे को गोली मार दी. तब तक सुबह के सवा 4 बज गए थे.

शंकर और अंजू रात को जिस कमरे पर रुके थे, पुलिस ने वहां से एक चूड़ी और एक कंगन बरामद किया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि गोली शंकर की कनपटी के आरपार हो गई थी, जबकि अंजू के सिर में गोली फंसी रह गई थी.

इस मामले में पुलिस ने शंकर के साथी मूलाराम और उस के 2 अन्य साथियों को गिरफ्तार कर पूछताछ की. इन्हें अंजू के पिता टीकूराम द्वारा लिखाई गई रिपोर्ट के आधार पर गिरफ्तार किया गया था.

शंकर और अंजू द्वारा आत्महत्या करने के मामले की अभी विस्तृत जांच चल रही है.

दीवाली 2019: वातावरण को शुद्ध बनाएं व जीवन मे खुशियां लाएं  

त्योहारों का सीजन शुरू हो गया है. सभी के घरों मे त्योहारों की तैयारी जोरों पर है. लोग घरों की साफ सफाई में जुट गए हैं या शौपिंग करने मे बिजी है. त्यौहारों के सीजन में  हर कोई अपने दोस्तों, रिश्तेदारों से भी मिलने जाते हैं. ऐसे में लोगों के रिश्तों मे मिठास बढ़ती है. लेकिन इस त्यहारों के सीजन में एक और चीज बढ़ रही है जिसकी कोई परवहा नहीं कर रहा है और वो है हमारे आस पास बढ़ता हुआ प्रदूषण का स्तर. चाहे वो धुआं हो, प्लास्टिक कचरा या पटाखों से बढ़ता प्रदूषण. दिवाली से पहले ही आकाश में प्रदूषण के धुंध की चादर फैली हुई है. दिवाली के त्योहार पर बढ़ते प्रदूषण का स्तर आपकी सेहत के लिए खतरा ना बन जाए इस बात को ध्यान में रखते हुए हम कुछ जरूरी टिप्स बता रहे है जिससे आप अपने आस पास प्रदूषण को बढ़ने से बचा सकते हैं.

करो कुछ ऐसा जो प्रकृति को भाए

  • दिवाली पर सब साफ सफाई में जुट जाते हैं. सफाई करते समय ध्यान रखें की अगर आपके पास कोई प्लास्टिक का ऐसा कचरा है जिस को हम किसी न किसी तरह  दोबारा इस्तेमाल कर सकते है तो उसे फेकें नहीं. उससे आप अपने घर की सजावट का सामान बना सकते हैं या उसमे पौधे लगा सकते हैं. जिससे आप वातावरण को भी शुद्ध बना सकते हैं और प्लास्टिक का दोबारा अच्छे तरीके से इस्तेमाल भी कर सकते हैं. क्योंकि प्लास्टिक मिट्टी के उपजाऊपन को नुकसान पहुंचाता है और ये आसानी से नष्ट नहीं होता है.
  • दुकानदार और खरीदार अभी भी प्लास्टिक के बैग का इस्तेमाल कर रहे हैं. पर्यावरण संरक्षण में छोटा सा योगदान देते हुए खरीदार कपड़े के या जूट के बने बैग का इस्तेमाल कर सकते हैं. गिफ्ट रैप करने के लिए भी बड़े पैमाने पर प्लास्टिक रैपर का इस्तेमाल होता है. पेपर से बने या ग्रीन फैब्रिक से बने रैपर का इस्तेमाल करें या ब्राउन बैग का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.

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  • दिवाली पर हर कोई पटाखे जलता है. पटाखों का जहरीला धुंआ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है और आसमान में भी धुंध सा छा जाता है, और यह वायु प्रदूषण को इतना ज्यादा बढ़ा देता है कि लोगों को मास्क के बिना घर से निकल पाना मुश्किल होता है. इसलिए पटाखों से दूरी बनाये और आप दूसरों को भी पटाखें ना खरीदने को लेकर जागरूक करें.
  • दीवाली को रोशनी का त्योहार कहा जाता है. लोग इस दिन घरों, औफिस और धार्मिक जगहों पर लड़ियां व मोमबत्ती जलाते हैं. इस बार मोमबत्ती की जगह दीए जलाएं. दरअसल, मिट्टी के बने दिए बायोडिग्रेडेबल होते हैं, जिससे पर्यावरण को भी कोई नुकसान नहीं होता. और हो सके तो दिए रोड पर बैठे गरीब लोगों से खरीदें  न की दुकानदारों से आपकी खरीदारी उनके घर को रोशन कर सकती हैं.
  • दीवाली के दिन लोग अपने घर को  प्लास्टिक के फूलों से सजाते हैं. आप  प्लास्टिक की जगह फूलों की माला से डेकोरेशन कर सकते हैं. जो कि बहुत खूबसूरत दिखती है और साथ ही प्लास्टिक के इस्तेमाल से भी दूर रखती है.
  • यदि आपके घर मे मिठाई ज्यादा हैं तो किसी गरीब को दें. और हो सके तो कपड़े व खाना गरीबों में भेट करें जिससे वो भी अपना त्यौहार खुशी से मना सकें. ऐसा करने से आपको भी बेहद खुशी व सुकून मिलेगा.

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