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मां बनने की तैयारी कर रही थीं भारती सिंह, कोरोना वायरस की वजह से कैंसिल हुआ प्लान

कॉमेडियन भारती सिंह और हर्ष लिंबाचिया का नाम टीवी के मशहूर कपल में लिया जाता है. हर्ष और भारती इस साल अपने घर नन्हें मेहमान लाने की प्लानिंग कर रहे थें. उन्होंने इस बात का खुलासा एक रिपोर्ट में बातचीत के दौरान किया था.

हालांकि अभी भारती ने अपने प्लान को पोस्पोंड कर दिया है. लॉकडाउन और कोरोनावायरस को देखते हुए. इन दिनों वह अपने पति हर्ष के साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड कर रही है.

आगे भारती ने बताया मैं इस वक्त कोई रिस्क नहीं लेना चाहती हूं. माहौल को देखते हुए मैंने अभी अपना प्लान बदल दिया है. हम दोनों चाहते हैं कि हमारा बच्चा स्वस्थ्य माहौल में पैदा हो.

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इस समय संक्रमण का खतरा बना हुआ है. इस समय डॉक्टर के पास आना जाना भी खतरे से खाली नहीं है. अगर वह इस समय प्रेग्नेंट हो जाती है तो डॉक्टर के पास रूटुन चेकअप के लिए जाना पडेगा. जो खतरे से खाली नहीं होगा.

ऐसे में भारती अगले साल ही बच्चे की प्लानिंग करेंगी. इस समय वह खुद को सुरक्षित रखना चाहती हैं.

भारती और हर्ष के शादी को लगभग दो साल हो चुके हैं. दोनों एक –दूसरे से बेहद प्यार करते है. इन दिनों वह अपने घर में है. अपनी फैमली के साथ उन्हें कोरोना खत्म होने का इंतजार है. इस समय में अपने घर पर खूबसूरत समय बीता रही हैं.

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भारती के शुरुआती जीवन के बारे में बात करें तो उन्हें अपने शुरुआती दिनों में बहुत संघर्ष करना पड़ा था. हालांकि भारती ने कभी हार नहीं मानी थी. वो कहते है न मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती.

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भारती गरीब परिवार की लड़की थी लेकिन अपने मेहनत के बल पर आज अपना नाम बनाया है. उन्हें आज पूरा देश जानता है. यहीं नहीं भारती का नाम विदेशों में भी मशहूर है. वहां भी लोग उन्हें पसंद करते है. कई बार शो करने के लिए वह विदेश भी जाती रहती हैं.

नहीं रहे जोगी: और “किवंदती” बन गए अजीत प्रमोद कुमार जोगी

सच्चे अर्थों में कहा जाए तो यह गलत नहीं होगा कि छत्तीसगढ़ मैं अजीत प्रमोद कुमार जोगी एक किवंदती बन गए हैं. अपने बूते ऐसी ऐसी ऊंचाइयां स्पर्श की जो एक रिकार्ड बन चुकी है. अजीत जोगी नाम छत्तीसगढ़ अंचल के जन-जन में ऐसा घुल मिल चुका है जो एक जनप्रिय लोकप्रिय नेता को ही नसीब होता है. अजीत जोगी का देहावसान हो चुका है यह कल्पना भी लोगों को मथ रही है. लोगों ने उन्हें व्हील चेयर पर देखा और पूरे जीवटता और जिजीविषा के साथ जीवन का संघर्ष करते हुए भी मगर हास्य उनके चेहरे पर सदैव उनकी अमिट पहचान बन चुका है. अजीत जोगी के संदर्भ में कम से कम शब्दों में कहा जाए तो जहां वे एक तेजतर्रार कुटिल राजनीतिज्ञ थे वही साफ स्वच्छ मन के जननेता और गरीब दुखियों के सब कुछ थे.

 एक राजनीतिक दुर्ग का अवसान 

छत्तीसगढ़ में कभी छत्तीस किले अथवा कहे दुर्ग हुआ करते थे. जिसके कारण छत्तीसगढ़ का नाम पड़ा. अजीत जोगी नि:संदेह छत्तीसगढ़ की राजनीति के एक बड़े किले थे कहा जाए तो गलत नहीं होगा.

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एक ऐसा किला जो कभी अभेद्य था ,कभी जर्जर हुआ, कभी जीर्ण-शीर्ण  हुआ और एक दिन समाज और राजनीति को झकझोरता समय के विराट काल में तिरोहित हो गया.

जी हां! अजीत प्रमोद कुमार जोगी छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री के रूप में अपना नाम इतिहास में दर्ज कराने के अलावा और भी बहुत दूर तलक चमकने वाले ध्रुव नक्षत्र की तरह है. जिन्होंने छत्तीसगढ़ के घुर आदिवासी बिलासपुर जिले के पेंड्रा तहसील के गांव जोगी डोंगरी में जन्म लिया गरीबी,गुरबत में अंधेरे में रोशनी बन कर निकले और एक दिन इंजीनियर बन गए इसके बाद रुके नहीं आगे आईपीएस की परीक्षा दी और सफलता प्राप्त की फिर आईएएस बने और जिलाधीश के रूप में अपनी छाप छोड़ी. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अजीत जोगी के निधन पर शोक व्यक्त  करते हुए ठीक ही कहा है- अजीत जोगी रूकने वाले शख्स नहीं थे वे सदानीरा की भांति कल-कल बहते रहने वाले विलक्षण राजनेता थे.

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शायद यही कारण है की राज्यसभा, लोकसभा, विधानसभा और कांग्रेस पार्टी के प्रखर प्रवक्ता के रूप में अपनी भूमिका निभाते हुए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री पद तक पहुंचे.

 और मुख्यमंत्री बन गये

अजीत जोगी ने राजीव गांधी के पसंदीदा नौकरशाह बनने के बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. अर्जुन सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में अजीत जोगी सीधी के बाद रायपुर के जिलाधीश बने थे और मुख्यमंत्री की मंशा अनुरूप छत्तीसगढ़ के सबसे प्रभावशाली शुक्ल बंधुओं अर्थात विद्याचरण व श्यामाचरण पर नकेल कसने का काम बखूबी किया. केरवा बांध भ्रष्टाचार अजीत जोगी पर एक काला धब्बा था. मगर वह एक आईएएस के रूप में आगे बढ़ते चले गए और एक दिन कलेक्ट्री छोड़ दी और सीधे राज्यसभा सदस्य बनकर राजनीति की डोर से बंध गए. राजीव गांधी के पश्चात श्रीमती सोनिया गांधी के निकटस्थ हो गए और जब छत्तीसगढ़ का निर्माण अटल बिहारी बाजपाई के प्रधानमंत्तित्व काल में हुआ तो छत्तीसगढ़ के सबसे प्रभावी व कद्दावर शख्सियत विद्याचरण शुक्ल को पीछे छोड़कर सोनिया गांधी का आशीर्वाद प्राप्त कर सीधे मुख्यमंत्री बन गये. जबकि उस वक्त जोगी विधायक भी नहीं थे .

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अजीत जोगी एक समय अविभाजित मध्य प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस के शीर्ष पर थे अपनी निष्ठा और तेवर, कार्यप्रणाली के कारण हाईकमान के खासमखास बन गये थे.

मुख्यमंत्रित्व के वह तीन  साल

1 नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ राज्य अस्तित्व में आया और अजीत प्रमोद कुमार जोगी के रूप में प्रदेश को कथित रूप से पहली बार एक आदिवासी मुख्यमंत्री की सौगात मिली. अजीत जोगी ने अपने अल्प कार्यकाल में कई इतिहास रच डालें.जिनमें सबसे पहला था कांग्रेस पार्टी को मुख्यमंत्री का जेबी संगठन बना डालना, जो आगे चल उनके लिए नुकसान प्रद साबित हुआ.

अजीत जोगी ने प्रदेश में आदिवासी व अनुसूचित जाति, पिछड़े वर्ग की राजनीति को इस कदर हवा दी कि ब्राह्मण व वैश्य वर्ग के होश फाख्ता हो गए वे साफ कहा करते थे वैश्य दुकानदारी करें राजनीति छत्तीसगढ़ के मूल लोगों के लिए छोड़ दें. यही कारण है की शनै: शनै: विपक्ष कमजोर दिखाई पड़ने लगा भाजपा अध्यक्ष त्राहिमाम-त्राहिमाम करने लगे. चंहु और जय जोगी जय जोगी के नारे हवाओं में गुंजायमान हो उठे. मगर अजीत प्रमोद कुमार जोगी यहीं धोखा खा गये शांतिप्रिय छत्तीसगढ़ मे शांतिप्रिय जनता ने उन्हें 2003 के विधानसभा चुनाव में ऐसी पटखनी दी की फिर कांग्रेस को संभालने में 15 वर्षों का समय लग गया.

 जोगी : खुबिया और खामियां

अजीत जोगी में खुबियो की कमी नहीं थी वे सच्चे अर्थों मैं गरीबों, दलितों, पिछड़ों के मसीहा थे. सिर्फ कागजी और मुंह देखी नहीं छत्तीसगढ़ का शायद ही कोई इलाका होगा जहां चार आदमी ऐसे नहीं होंगे जिन्हें वे जानते थे और नाम लेकर बातें करते थे. वे जनता के बेहद नजदीक के राजनेता थे वे दूरियां पसंद नहीं करते थे सहज और सरल थे. उनकी खासियत थी वे पैसे वालों की अपेक्षा आम गरीब आदमी के साथ संबंध बनाते और उसे निभाते थे. दूसरी तरफ उनमें कुछ ऐसी खामियां थी जिनके कारण राजनीति में वे पिछड़ते चले गए.

अजीत जोगी अगर सहज सरल भाव से छत्तीसगढ़ का नेतृत्व करते तो छत्तीसगढ़ के बीजू पटनायक हो जाते, नीतीश कुमार अथवा लालू जैसे होकर वर्षों मुख्यमंत्री रहते. मगर प्रारब्ध को शायद कुछ और मंजूर था.

कभी भुलाया नहीं जा सकेगा

छत्तीसगढ़ की राजनीति और इतिहास में अजीत जोगी सदैव के लिए स्वर्ण अक्षरों में रेखांकित हो गए हैं. एक सामान्य किसान का बेटा ऐसी ऊंचाइयां छू सकता है यह अजीत जोगी ने सिद्ध कर दिखाया. विलक्षण बुद्धि के स्वामी अजीत जोगी जहां रहे अपनी अमिट छाप छोड़ी. उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में जो लाइन खींची उस पर 15  वर्षों तक मन बेमन से रमन सिंह चलते रहे.

छत्तीसगढ़ की आवाम के चहेते अजीत जोगी एक लेखक, राजनेता, बौद्धिक शख्स के साथ-साथ प्रखर वक्ता थे उन्हें सुनने भारी भीड़ जुटती थी आवाम की नब्ज उनके हाथों में थी वे एक ऐसे राजनेता थे जिन्हें सच्चे शब्दों में जन नेता कहा जा सकता है.

Crime Story: मजबूर औरत की यारी

राधा नाम की जिस औरत की वजह से प्रांशु का कत्ल किया गया, उस बेचारी को इस अपराध की भनक तक नहीं थी. इस की वजह शायद यह थी कि वह लल्लन और प्रांशु को जो देह सुख दे रही थी, वह उस गरीब की मजबूरी थी. उस ने सोचा भी न होगा कि दो दोस्तों… रायबरेली के डलमऊ थानाक्षेत्र में एक गांव है गुरदीन का पुरवा मजरा रसूलपुर. गंगाघाट के पास

खेल रहे कुछ बच्चों ने वहां एक युवक की लाश पड़ी देखी. बच्चों ने लाश देखी तो शोर मचा कर आसपास के लोगों को बुला लिया. कुछ ही देर में यह खबर दूरदूर तक फैल गई. खबर सुन कर रसूलपुर गांव के प्रधान भी वहां पहुंच गए. उन्होंने फोन कर के घटना की सूचना डलमऊ थाने को दे दी.

सूचना पा कर इंसपेक्टर श्रीराम पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. मृतक की उम्र लगभग 20-25 साल थी. उस के गले पर रस्सीनुमा किसी चीज से कसे जाने के निशान थे, शरीर पर भी चोट के निशान थे.

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घटनास्थल के आसपास का निरीक्षण किया गया तो वहां से लगभग 2 किलोमीटर दूर हीरो कंपनी की एक बाइक लावारिस खड़ी मिली. संभावना थी कि वह मृतक की ही रही होगी.

इसी बीच सीओ (डलमऊ) आर.पी. शाही भी मौके पर पहुंच गए. उन्होंने लाश व घटनास्थल का निरीक्षण किया, वहां मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त कराई, लेकिन कोई भी लाश को नहीं पहचान सका. पुलिस अभी अपना काम कर ही रही थी कि एक व्यक्ति कुछ लोगों के साथ वहां पहुंचा. उस ने लाश देख कर उस की शिनाख्त अपने 20 वर्षीय बेटे प्रांशु तिवारी के रूप में की. यह बात 25 फरवरी, 2020 की है.

शिनाख्त करने वाले मदनलाल तिवारी थे और वह डलमऊ कस्बे के शेरंदाजपुर मोहल्ले में रहते थे. मदनलाल तिवारी ने बताया कि प्रांशु एक दिन पहले 24 फरवरी की शाम 7 बजे घर से निकला था.

उसे उस के दोस्त पिंटू जोशी और पप्पू जोशी बुला कर ले गए थे. ये दोनों डलमऊ में टिकैतगंज में रहते हैं. संभवत: उन्होंने ही प्रांशु को मारा होगा. मदनलाल तिवारी से प्रारंभिक पूछताछ के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी.

थाने आ कर इंसपेक्टर श्रीराम ने मदनलाल की लिखित तहरीर पर पिंटू जोशी व पप्पू जोशी के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

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इंसपेक्टर श्रीराम ने केस की जांच शुरू की. सब से पहले उन्होंने गांव के लोगों से पूछताछ की. पता चला मृतक प्रांशु तिवारी के सुरजीपुर गांव की राधा नाम की महिला से नाजायज संबंध थे. जब इस बात की और गहराई से छानबीन की गई तो राधा के प्रांशु के अलावा प्रांशु के पड़ोसी अशोक निषाद उर्फ कल्लन से भी नाजायज संबंध होने की बात सामने आई.

इस बात को ले कर दोनों में विवाद भी हो चुका था. यह जानकारी मिलने के बाद इंसपेक्टर श्रीराम ने सोचा कि कहीं प्रांशु की हत्या इसी महिला से संबंधों के चलते तो नहीं हुई. पुलिस को यह भी पता चला कि पिंटू जोशी और पप्पू जोशी आपराधिक प्रवृत्ति के हैं.

इंसपेक्टर श्रीराम का शक तब और मजबूत हो गया, जब कल्लन अपने घर से फरार मिला. पिंटू और पप्पू भी फरार थे. इंसपेक्टर श्रीराम ने उन का पता लगाने के लिए अपने विश्वस्त मुखबिरों को लगा दिया.

घटना से 2 दिन बाद यानी 27 फरवरी को पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर आरोपी पिंटू जोशी, पप्पू जोशी और अशोक निषाद उर्फ कल्लन को सुरजीपुर शराब ठेके के पीछे मैदान से गिरफ्तार कर लिया.

कोतवाली में जब उन से सख्ती से पूछताछ की गई तो तीनों ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और अपने चौथे साथी डलमऊ के भीमगंज मोहल्ला निवासी राजकुमार का नाम भी बता दिया.

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राधा उत्तर प्रदेश के जिला रायबरेली के डलमऊ थानाक्षेत्र के गांव सुरजीपुर में रहती थी. 35 वर्षीय राधा 2 बच्चों की मां थी. उस के पति का नाम बबलू था जो कहीं बाहर रह कर नौकरी करता था. अपनी नौकरी से वह इतने पैसे नहीं जुटा पाता कि उस के बीवीबच्चों का खर्च चल सके. बड़ी मुश्किल से परिवार की दोजून की रोटी मिल पाती थी.

एक तो पति घर से दूर और उस पर आर्थिक अभाव. दोनों ही बातों ने राधा को परेशान कर रखा था. शरीर की आग तो बुझना दूर पेट की आग को शांत करने तक के लाले पड़े थे. ऐसे में राधा का तनमन बहकने लगा. बड़ी उम्मीद ले कर वह अपनी जरूरत के पुरुष को तलाशने लगी.

 

अशोक निषाद उर्फ कल्लन डलमऊ कस्बे के शेरंदाजपुर मोहल्ले में रहता था. कल्लन के पिता राजेंद्र शराब के एक ठेके पर सेल्समैन थे. कल्लन के 2 भाई और एक बहन थी. कल्लन सब से बड़ा था.

22 वर्षीय कल्लन भी सुरजीपुर के शराब ठेके पर सेल्समैन की नौकरी करता था. डलमऊ से सुरजीपुर की दूरी महज 2 किलोमीटर थी. काम पर वह अपनी बाइक से आताजाता था.

कल्लन ने राधा के हुस्न को देखा तो उसे पाने की चाहत पाल बैठा. उस के पति के काफी समय से दूर होने और आर्थिक अभाव के बारे में कल्लन जानता था. राधा से नजदीकी बढ़ाने के लिए वह उस से हमदर्दी दिखाने लगा.

राधा कल्लन के बारे में सब जानती थी. वह उस से 12 साल छोटा था. राधा को समझते देर नहीं लगी कि कल्लन उस से क्यों हमदर्दी दिखा रहा है. यह बात समझते ही उस के चेहरे पर मुसकान और आंखों में चमक आ गई. फिर उस का झुकाव भी कल्लन की ओर हो गया.

 

एक दिन कल्लन राधा के घर के सामने से जा रहा था तो राधा घर की चौखट पर बैठी थी. उस समय दूरदूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था. अच्छा मौका देख कर कल्लन बोला, ‘‘राधा, मुझे तुम्हारे बारे में सब पता है. तुम्हारी कहानी सुन कर ऐसा लगता है कि तुम्हारी जिंदगी में सिर्फ दुख ही दुख है.’’

‘‘कल्लन, मैं ने तुम्हारे बारे में जो सुन रखा था, तुम उस से भी कहीं ज्यादा अच्छे हो, जो दूसरों का दुख बांटने की हिम्मत रखते हो. वरना इस जालिम दुनिया में कोई किसी के बारे में कहां सोचता है.’’

‘‘राधा, दुनिया में इंसानियत अभी भी जिंदा है. खैर, तुम चिंता मत करो. आज से मैं तुम्हारा हर तरह से खयाल रखूंगा. चाहो तो बदले में तुम मेरा कुछ काम कर दिया करना.’’

‘‘ठीक है, तुम मेरे बारे में इतना सोच रहे हो तो मैं भी तुम्हारा काम कर दिया करूंगी.’’

यह सुन कर कल्लन ने राधा के कंधे पर सांत्वना भरा हाथ रखा तो राधा ने अपनी गरदन टेढ़ी कर के उस के हाथ पर अपना गाल रख कर आशा भरी नजरों से उस की तरफ देखा. कल्लन ने मौके का फायदा उठाने के लिए राधा के हाथों पर 5 सौ रुपए रखते हुए कहा, ‘‘ये रख लो, तुम्हें इन की जरूरत है.’’

राधा तो वैसे भी अभावों में जिंदगी गुजार रही थी, इसलिए उस ने कल्लन द्वारा दिए गए पैसे अपनी मट्ठी में दबा लिए. इस से कल्लन की हिम्मत और बढ़ गई. वह हर रोज राधा से मिलने उस के घर जाने लगा.

वह राधा के बच्चों के लिए खानेपीने की चीजें ले कर आता था. कभीकभी वह राधा को पैसे भी देता था. इस तरह वह राधा का खैरख्वाह बन गया.

 

राधा हालात के थपेड़ों में डोलती ऐसी नाव थी, जिस का मांझी उस के पास नहीं था. इसलिए वह कल्लन के अहसान अपने ऊपर लादती चली गई.

स्वार्थ की दीवार पर अहसानों की ईंट पर ईंट चढ़ती जा रही थी, जिस के चलते राधा भी कल्लन का पूरा ख्याल रखने लगी थी. वह उसे खाना खाए बिना नहीं जाने देती थी. लेकिन कल्लन के मन में तो राधा की देह की चाहत थी, जिसे वह हर हाल में पाना चाहता था.

एक दिन उस ने कहा, ‘‘राधा, तुम खुद को अकेली मत समझना. मैं हर तरह से तुम्हारा बना रहूंगा.’’

यह सुन कर राधा उस की तरफ चाहत भरी नजरों से देखने लगी. कल्लन समझ गया कि वह पूरी तरह शीशे में उतर चुकी है, इसलिए उस के करीब आ गया और उस के हाथ को अपनी दोनों हथेलियों के बीच दबा कर बोला, ‘‘सच कह रहा हूं राधा, तुम्हारी हर जरूरत पूरी करना अब मेरी जिम्मेदारी है.’’

हाथ थामने से राधा के शरीर में भी हलचल पैदा हो गई थी. कल्लन के हाथों की हरकत बढ़ने लगी थी. इस का नतीजा यह निकला कि दोनों बेकाबू हो गए और अपनी हसरत पूरी कर के ही माने.

कल्लन ने राधा की सोई हुई भावनाओं को जगाया तो उस ने देह सुख की खातिर सारी नैतिकताओं को ठेंगा दिखा दिया. कल्लन और राधा के अवैध संबंध बने तो फिर बारबार दोहराए जाने लगे.

राधा को कल्लन के पैसों का लालच तो था ही, अब वह उस से खुल कर पैसे मांगने लगी. कल्लन चूंकि उस के जिस्म का लुत्फ उठा चुका था, इसलिए पैसे देने में कोई गुरेज नहीं करता था. इस तरह एक तरफ राधा की दैहिक जरूरतें पूरी होने लगी थीं तो दूसरी तरफ कल्लन उस की आर्थिक जरूरतें पूरी करने लगा था. काफी अरसे बाद राधा की जिंदगी में फिर से रंग भरने लगे थे.

डलमऊ के शेरंदाजपुर मोहल्ले में कल्लन के पड़ोस में मदनलाल तिवारी का परिवार रहता था. मदनलाल पूर्व सैनिक थे. वह सन 2003 में सेना से रिटायर हुए थे. परिवार में उन की पत्नी अनीता के अलावा एक बेटी व 3 बेटे प्रांशु, अजीत और बऊआ थे.

20 वर्षीय प्रांशु बीए द्वितीय वर्ष की पढ़ाई कर रहा था. उस की और कल्लन की अच्छी दोस्ती थी. दोनों साथ खातेपीते थे.

 

एक दिन शराब के नशे में कल्लन ने प्रांशु को अपने और राधा के संबंधों के बारे में बता दिया. यह सुन कर प्रांशु चौंका. यह उस के लिए चिराग तले अंधेरा वाली बात थी.

कुंवारा प्रांशु किसी भी औरत के सान्निध्य के लिए तरस रहा था. राधा की हकीकत पता चली तो उसे अपनी मुराद पूरी होती दिखाई दी. राधा अपने शबाब का दरिया बहा रही थी और उसे खबर तक नहीं थी. वह भी राधा से बखूबी परिचित था.

प्रांशु के दिमाग में तरहतरह के विचार आने लगे. वह सोचने लगा कि जब कल्लन राधा के साथ रातें रंगीन कर सकता है तो वह क्यों नहीं.

अगले दिन प्रांशु कल्लन से मिला तो बोला, ‘‘तुम राधा से मेरे भी संबंध बनवाओ, नहीं तो मैं तुम्हारे संबंधों की बात पूरे गांव में फैला दूंगा.’’

कल्लन का राधा से कोई दिली लगाव तो था नहीं, वह तो उस की वासना की पूर्ति का साधन मात्र थी. उसे दोस्त के साथ बांटने में कोई परेशानी नहीं थी. वैसे भी प्रांशु का मुंह बंद करना जरूरी था.

इसलिए उस ने राधा को प्रांशु की शर्त बताते हुए समझाया, ‘‘देखो राधा, अगर हम ने उस की बात नहीं मानी तो वह हमारी पोल खोल देगा. पूरे गांव में हमारी बदनामी हो जाएगी. इसलिए तुम्हें उसे खुश करना ही पड़ेगा.’’

 

राधा के लिए जैसा कल्लन था, वैसा ही प्रांशु भी था. उस ने हां कर दी. इस बातचीत के बाद कल्लन ने यह बात प्रांशु को बता दी. फलस्वरूप वह उसी दिन शाम को राधा के घर पहुंच गया. दोनों पहले से ही बखूबी परिचित थे, दोनों में बातें भी होती थीं.

सारी बातें चूंकि पहले से तय थीं, इसलिए दोनों के बीच अब तक बनी संकोच की दीवार गिरते देर नहीं लगी. प्रांशु से शारीरिक संबंध बने तो राधा को एक अलग तरह की सुखद अनुभूति हुई. प्रांशु कल्लन से अधिक सुंदर, स्वस्थ था और बिस्तर पर खेले जाने वाले खेल का भी जबरदस्त खिलाड़ी था.

जोश में भी वह होश व संयम से खेल को देर तक खेलता था. जबकि कल्लन इस के ठीक विपरीत था.

राधा की ख्वाहिशों का उसे बिलकुल भी ख्याल नहीं रहता था. ऐसे में राधा प्रांशु के ज्यादा नजदीक आने लगी और कल्लन से दूरी बनाने लगी. प्रांशु के संपर्क में आने के बाद वह कल्लन को और उस के अहसानों को भूलने लगी.

कल्लन को भी समझते देर नहीं लगी कि राधा प्रांशु की वजह से उस से दूरी बना रही है. यह बात उसे अखरने लगी. राधा को फंसाने की सारी मेहनत उस ने की और प्रांशु बिना किसी मेहनत के फल खा रहा था. इस बात को ले कर प्रांशु और कल्लन में मनमुटाव रहने लगा.

इसी बीच कल्लन का रोड एक्सीडेंट हो गया और उस के एक पैर में फ्रैक्चर हो गया. जब उस का प्रांशु से विवाद हुआ तो प्रांशु ने कल्लन से कहा कि वह उस की दूसरी टांग भी तुड़वा देगा. कल्लन को उस की यह धमकी चुभ गई. इस के बाद उस ने कांटा बने प्रांशु को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया.

कल्लन की दोस्ती डलमऊ के ही मोहल्ला टिकैतगंज में रहने वाले शातिर अपराधी पिंटू जोशी और पप्पू उर्फ गिरीश जोशी से थी. ये दोनों प्रांशु के भी दोस्त थे.

कल्लन ने पिंटू जोशी से प्रांशु की हत्या करने को कहा. उस ने हत्या की एवज में 25 हजार रुपए देने की बात भी कही. पिंटू तो अपराधी था ही, इसलिए वह प्रांशु की हत्या करने को तैयार हो गया. उस की सहमति के बाद कल्लन ने सुपारी की रकम के आधे पैसे यानी साढ़े 12 हजार रुपए पिंटू को दे दिए.

पिंटू ने पप्पू के साथसाथ इस योजना में भीमगंज मोहल्ला निवासी राजकुमार को भी शामिल कर लिया. चारों ने मिल कर प्रांशु की हत्या की योजना बनाई.

 

24 फरवरी की शाम 7 बजे पिंटू और पप्पू जोशी कल्लन की बाइक से प्रांशु के घर पहुंचे. पार्टी देने की बात कह कर वे प्रांशु को सुरजीपुर ले गए.

वहां ये लोग शराब के ठेके के पीछे खाली पड़े मैदान में पहुंचे तो वहां कल्लन और राजकुमार पहले से मौजूद थे. सब ने वहां बैठ कर शराब पी और खाना खाया गया. पिंटू कल्लन और प्रांशु के बीच सुलह कराने का नाटक करते हुए प्रांशु को मनाने लगा. इस बात पर प्रांशु और कल्लन के बीच देर रात तक बहस चलती रही. फिर प्रांशु के शराब के नशे में होने पर सब ने मिल कर क्लच वायर से गला कस कर उस की हत्या कर दी.

पिंटू और पप्पू कल्लन की बाइक पर प्रांशु की लाश रख कर उसे गुरदीप का पुरवा में गंगाघाट के किनारे ले गए. उन्होंने उस की लाश फेंक दी और फरार हो गए. घटना के बाद से सभी अपने घरों से फरार हो गए थे. लेकिन मुखबिर की सूचना पर गिरफ्तार कर लिए गए.

पुलिस ने अभियुक्तों से पूछताछ करने के बाद उन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त हीरो बाइक नंबर यूपी33क्यू 6990 भी बरामद कर ली. हत्या में प्रयुक्त क्लच वायर भी बरामद कर लिया गया. फिर आवश्यक कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर के तीनों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक अभियुक्त राजकुमार को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर पाई थी.       द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

थोड़े से दूर… नॉट ब्रेक-अप

लेखकडॉ॰ स्वतन्त्र रिछारिया

थोड़े से दूर, नॉट ब्रेकअप- भाग 3: वैदेही से क्यों दूर जाना चाह रहा था अर्जुन?   

लेखकडॉ॰ स्वतन्त्र रिछारिया

अर्जुन कुछ और कहता उसके बीच में ही वैदेही कहती है तो तुम्हारा मतलब है हमारे बीच अब अहसास नहीं बचा या प्यार नहीं है.

अर्जुन – नहीं नहीं मैंने ऐसा कब कहा कि हमारे बीच प्यार नहीं. बल्कि मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ कि जो हमारे बीच अहसास है, प्यार है वह बरकरार रहे. वैदेही अभी बहुत कुछ है हमारे बीच जो हमें एक दूसरे की ओर आकर्षित और रोमांचित करता है. मैं यही चाहता हूँ कि यही अहसास बने रहें.

वैदेही – तो अब तुम्ही बताओ कि हमें क्या करना चाहिए?

अर्जुन – हमें कुछ दिनों या महीनों के लिए दूर हो जाना चाहिए ताकि फिर से हम एक दूसरे से कुछ अजनबी हो सके, कुछ दिनों कि दूरी फिर से वह आकर्षण या कशिश पैदा करेगी, जहां शब्दों की फिर कम ही जरूरत होगी. और जितनी बात हम दोनों के फिर से मिलने पर होगी वह मेरी और तुम्हारी ही होगी, क्योंकि कुछ दिनों का अजनबीपन से बहुत कुछ हम दोनों के पास होगा जो हम एक-दूसरे से सुनना और बताना चाहेंगे.

वैदेही – ठीक है मान लिया तुम चाहते हो कि हँसते-हँसते कुछ समय के लिए हम दूर हो जाए, एक अच्छे रिलेशन को और मजबूर करने के लिए, पर ये होगा कैसे?

अर्जुन – अरे यार तुम आर्किटेक्ट में डिप्लोमा करने के लिए जो मूड बना रही हो, उसे अहमदाबाद में जॉइन करो, और हो जाओ अजनबी. और फिर मिलते हैं कुछ नए-नए से होकर, विथ न्यू एक्साइटमेंट के साथ.

वैदेही – थोड़े-थोड़े अजनबी बनने के चक्कर में कहीं इतनी दूर नहीं हो जाए कि फिर कभी मिल ही ना सकें.

अर्जुन – अगर कुछ दिनों कि दूरी हमें अलग कर देती है तो फिर तो हम दोनों को ही मान लेना होगा की हमारा रिश्ता उतना मजबूत था ही नहीं, और ये दूरी तोड़ने या दूर जाने के लिए नहीं बल्कि और नजदीक आने के लिए है.

वैदेही अर्जुन के इस प्रपोज़ल को दिल से स्वीकार कर पायी थी या नहीं, पर अर्जुन के इस दिमागी फितूर को मानते हुए अहमदाबाद में उसने अपना कोर्स जॉइन कर लिया. वैदेही नयी जगह, नए दोस्तों और पढ़ाई में कुछ व्यस्त से हो गयी थी, पर रात में अर्जुन की यादें हमेशा उसके साथ रहती थी.

अर्जुन और वैदेही को दूर हुए अभी दो महीने ही तो हुये थे पर अर्जुन का 6 महीने बाद मिलने का वादा जबाब देने लगा. छः महीने के पहले न फोन करने और न ही मिलने वाली अपनी ही बात को ना मानते हुए, अर्जुन ने आज वैदेही को मोबाइल पर मेसेज भेजा.

कुछ घंटे के इंतजार के बाद उसने फिर मेसेज भेजा, पर पहले मेसेज की तरह ही दूसरा मेसेज न तो रिसीव हुआ और न ही कोई जबाब आया.

मेसेज का जबाब न आने पर अर्जुन की बैचेनी बढ़ने लगी थी, बढ़ती बैचेनी ने अर्जुन के मेसेज की संख्या और लंबाई को भी बड़ा दिया. और अब मेसेज क्या वैदेही ने तो कॉल भी रिसीव नहीं किया था.

अब अर्जुन के मन में सौ सवाल उठ रहे थे, क्या वैदेही गुस्सा हो गयी? कहीं वैदेही को कुछ हो तो नहीं गया? या कहीं कोई और बात तो नहीं? अर्जुन के मेसेज और कॉल करने और वैदेही के जबाब न देने का सिलसिला लगभग 15-20 दिन चला. अंततः अर्जुन ने ठान लिया की वह अब खुद ही अहमदाबाद जाएगा.

माना जाता है कि स्त्री के व्यक्तिव की यह खूबी और पुरुष के व्यक्तिव की यह कमी होती है, जिसके कारण पुरुष अपनी ही सोची बात, विचार या निर्णय पर अक्सर कायम नहीं रह पाता, जबकि एक स्त्री किसी दूसरे की बात, विचार या निर्णय को उतनी ही सिद्दत से निभाने का सामर्थ्य रखती है, जैसे वह विचार या निर्णय उसने ही लिया हो.

जिस दिन अर्जुन को अहमदाबाद जाना था उसके एक दिन पहले अचानक रात में अर्जुन के मोबाइल पर वैदेही के आने वाले मेसेज की खास रिंगटोन बजती है, इतने लंबे इंतजार के बाद वैदेही के मेसेज आने से मोबाइल की स्क्रीन के साथ अर्जुन की आंखे भी चमक रही थी.

पर मेसेज में न जाने ऐसा क्या लिखा हुआ था, जैसे-जैसे अर्जुन मेसेज की लाइने पढ़ रहा था, पढ़ने के साथ उसके चेहरे की रंगत भी उड़ती जा रही थी.

मेसेज पढ़ने के बाद अर्जुन वैदेही से पहली बार मिलने से लेकर उस अंतिम मुलाक़ात को याद कर रहा था, बेड पर लेटकर एकटक ऊपर की ओर देखते हुये अर्जुन की आँखों से नमी झलकने लगी थी. कहा जाता है जब दर्द गहरा होता है तो आँसू बिना रोये, बिना आबाज के ही बहने लगते हैं. कुछ पल पहले जिस मेसेज के आने से अर्जुन की आंखे खुशी से चमकी थी, वही आंखे मेसेज पड़ने के बाद नम थी. वैदेही के मेसेज को कई बार पढ़ने के बाद भी अर्जुन को यकीन नहीं हो रहा था कि यह सब सही है…

…..डियर अर्जुन इतने दिनों से तुम मेसेज और कॉल कर रहे हो पर मैंने कोई जबाब नहीं दिया उसके लिए सॉरी… मैं तुमसे बिल्कुल भी गुस्सा नहीं हूँ, पर क्या करूँ तुमने जो कहा था  मैं वही तो कर रही हूँ. और तुम जानते हो तुम्हारी हर खवाहिस को मैं दिल से पूरा करने की कोशिश करती हूँ. सच अर्जुन अभी भी मुझे पता नहीं कि दूर होने के लिए तुमने यह मजाक में कहा था, या फिर किसी और वजह से, हो सकता है मेरे कैरियर बनाने के लिए तुमने ऐसा किया हो, पर अर्जुन यह सच है कि मैं तुमसे दूर होने की सोच भी नहीं सकती थी. अर्जुन पिछले दिनों एक बात मेरे मन में रोज ही आती है, अभी तो हम सिर्फ प्यार में थे और शादी जैसा कोई बंधन भी नहीं था, पर तुम्हारे रूटीन लाइफ से बोर हो जाने के कारण हम कुछ दिनों के लिए दूर हो गए. पर अर्जुन यदि शादी के बाद भी तुम रूटीन लाइफ से बोर होने लगे तब क्या होगा. अर्जुन हम जैसी लड़कियों का गुण कहें या मजबूरी हम तो दिल से जिस कन्धें और हाथ को एक बार थाम लेते हैं, उसे ही ज़िंदगी भर के लिए अपना साहिल समझ लेते हैं, लड़कियों की ज़िंदगी में खासकर इंडिया में रूटीन लाइफ से बोर होने का आपसन नहीं होता है.  इसलिए मेरे और तुम्हारे बीच की इस कुछ दिनों की दूरी को फिलहाल अपना ब्रेक-अप ही समझ रही हूँ. हाँ ज़िंदगी बहुत लंबी है इसलिए आगे का मुझे भी कुछ पता नहीं क्या होगा? दुआ करती हूँ हम दोनों की ज़िंदगी में अच्छा ही हो. अब मेसेज और कॉल नहीं करना क्योंकि तुम्हारे सवालों और बातों का मेरे पास इस मेसेज के अलावा कोई और जबाब नहीं है, लव यू…तुम्हारी वैदेही.

थोड़े से दूर, नॉट ब्रेकअप- भाग 2: वैदेही से क्यों दूर जाना चाह रहा था अर्जुन?   

लेखकडॉ॰ स्वतन्त्र रिछारिया  

वैदेही के बालों को सहलाते हुये अर्जुन अपने मन में उठे प्रश्नों को वैदेही के सामने रखता है. वैदेही याद करो प्यार की शुरुआत में फोन पर हम घंटों बाते करते थे, पर आज फोन पर हम कितनी बात करते हैं? पहले मिलने पर क्या हमारे पास इतनी बाते थी, जितनी आज हम करते हैं? और आजकल हमारी बाते मेरी तुम्हारी ना होकर किसी और टॉपिक पर ही क्यों होती हैं? और दूसरे की बातों में हम कभी-कभी वेवजह झगड़ भी लेते हैं.

अर्जुन की यह सारी बाते अभी भी वैदेही के समझ के बाहर थी, अब इसी कनफ्यूज से  मन और दिमाग की स्थिति के साथ कुछ मज़ाकिया अंदाज में वैदेही कहती है, लोग सच ही कहते हैं साइकोलोजी और फिलोसफी पढ़ने-पढ़ाने वाले लोग आधे खिसक जाते हैं. और तुमने तो दोनों ही पढ़े हैं, इसलिए लग रहा है, कि तुम तो पूरे….

अर्जुन – अब तुम्हें जो कहना है वह कहो या समझो पर कल जरूर मेरी इन बातों को सोचकर आना .

आज घर जाते हुए भले दोनों हाथों में हाथ लिए चल रहे थे, पर दोनों खोये हुये थे किसी और ही दुनिया में. वैदेही चलते-चलते सोचे जा रही थी कि अर्जुन की तो आदत ही है, इस टाइप के इंटेलेक्चुयल मज़ाक करने की, लेकिन दूसरे ही पल वह यह भी सोच रही थी कि छोड़ने या अलग होने की बात तो आजतक कभी अर्जुन ने नहीं की है. इसलिए वह ऐसा मजाक तो नहीं करेगा. मन की उधेड़बुन तो नहीं थमी, लेकिन चलते-चलते पार्किंग स्टैंड जरूर आ गया.

जहां से दोनों को अलग होना था. दोनों ने एक दूसरों को सिद्दत भरी निगाहों और प्यार के साथ अलविदा किया और अपनी-अपनी गाड़ी को स्टार्ट करते हुये, अपने-अपने रास्ते पर चल दिए.

भले अर्जुन की बातों से वैदेही ज्यादा उदास और सोचने को मजबूर थी, पर अर्जुन भी कम बैचेन नहीं था. इसलिए ही तो कहते हैं कि अगर हम किसी के मन में अपनी बातों या कामों से उथल-पुथल मचाते हैं तो उसका प्रभाव हम पर भी कुछ ना कुछ जरूर ही होता है. हम चाहे कितने प्रबल इच्छाशक्ति वाले क्यों ना हों.

बारह घंटे के बाद स्माइली इमोजी और गुड्मोर्निंग के साथ अर्जुन का मेसेज वैदेही के मोबाइल पर आता है. बताओ कहाँ मिलना है? और आई होप तुमने जरूर सोचा होगा. वैदेही भी कनफ्यूज इमोजी के साथ गुड्मोर्निंग भेजती है और लिखती है. कल कहानी तुमने ही चालू की थी, तो आज तुम ही बताओ कहा खत्म करोगे. रिप्लाई करते हुये अर्जुन कहता है आज संडे भी है तो यूनिवर्सिटी के उसी पार्क में मिलते हैं जहां पहली बार मिले थे.

पार्क में अर्जुन हमेशा की तरह टाइम से पहले बैठा मिलता है. वैदेही भी पार्क के गेट से ही अर्जुन को देख लेती है मानों पार्क में उसके अलावा कोई और हो ही ना.

अर्जुन कुछ बोलता उससे पहले ही वैदेही कहती है तुमने जो भी कहा था उस पर खूब सोचा और उससे आगे-पीछे भी बहुत कुछ सोचा. हाँ तुम सही कहते हो पहले हम फोन पर ज्यादा बाते करते थे और मिलने पर हमारे पास बाते कम और अहसास ज्यादा थे. एक-दूसरे से मिलने पर बातों की जरूरत ही महसूस नहीं होती थी. एक दूसरे की मौजूदगी ही सब कह देती थी. और यह भी सही है पिछले कुछ दिनों से हम लोग एक दूसरे की बात या विचार का उतना सम्मान नहीं करते जैसा पहले था. पहले मुझे तुम्हारी गलत बाते भी सही लगती थी और अब कभी-कभी सही बात पर भी हम वेवजह बहस करने लगते हैं.

वैदेही कुछ और कहती इसी बीच में अर्जुन कहता है, तो बताओ ऐसा क्यों है?

वैदेही- अरे अब मैंने फिलोसफी थोड़े पढ़ी है, मैंने तो आर्किटेक्ट पढ़ी है, और आर्किटेक्ट में पहेलियाँ नहीं सीधे-सीधे पढ़ाई होती है. इसलिए तुम ही बताओ ऐसा क्यों है?

अर्जुन कुछ बोलता इससे पहले ही वैदेही कहती है, जो तुमने कहा था वह तो सोचा ही साथ ही मैंने यह भी सोचा कि अपने रिलेशन के पिछले तीन सालों में वैसा व्यवहार एक दूसरे से बिल्कुल नहीं किया, जो किसी प्यार करने वालों में एक साल के अंदर ही होने लगता है, एक भी बार हम दोनों ने एक-दूसरे से इरीटेट होकर ना फोन काटा ना ही स्विच आफ किया. न तुम कभी मुझसे गुस्सा हुये और न ही मैं तुमसे, फिर ना जाने तुम क्यों ब्रेकअप ओह सॉरी-सॉरी दूर होने की बात कर रहे हो.

वैदेही की सारी बातों को हमेशा की तरह उसी तल्लीनता से सुनकर अर्जुन कहता है, वैदेही तुम जो कह रही हो मेरे मन भी यही सब बाते आई थी. तुमसे अलग होने की बात करने से पहले. मैं भी यही सोचता रहा कि अगर दो प्यार करने वाले मिलने पर ज्यादा बात करने लगे हैं, थोड़ा सा बहस करने लगे, थोड़ा सा लड़ ले, तो इसमें क्या गलत है.

पर वैदेही मुझे लगता है जब अहसास कुछ कम होने लगते हैं तब शब्दों की जरूरत ज्यादा पड़ती है, और हम दोनों क्या, अगर किसी भी संबंध में सिर्फ शब्द ही रह जाए तो मान लेना चाहिए संबंध या तो खत्म हो गया है या फिर अगर है भी तो बस औपचारिकता भर है, ऐसे संबंध में आत्मा या जीवंतता नहीं है.

आज हमारे रिलेशन में भले कोई बड़ी समस्या नहीं है पर मुझे लगता है ये छोटी-छोटी  नोकझोक ही आगे चलकर बड़ी प्रोबलम बन जाती हैं. अर्जुन अपनी बातों को और समझाने का प्रयास करते हुये कहता है, वैदेही मैंने कई लोगों के प्यार के सफर में देखा हैं, पहले छोटी मोटी नोकझोक, फिर बेमतलब की बहसे, फिर आरोप-प्रत्यारोप और फिर चुप्पी, और अंत की चुप्पी बहुत ही दर्द देती है.

थोड़े से दूर, नॉट ब्रेकअप- भाग 1: वैदेही से क्यों दूर जाना चाह रहा था अर्जुन?   

लेखकडॉ॰ स्वतन्त्र रिछारिया  

बहुत दिनों से एक बात कहना चाह रहा था, अर्जुन ने फिल्मी अंदाज में वैदेही का हाथ अपने हाथ में लिए कहा. अर्जुन कुछ और आगे कह पाता इससे पहले ही वैदेही ने मज़ाकिया लहजे में कहा, अगर एक स्मार्ट लड़की को कुछ कहना हो, तो लड़के के लिए सबसे जरूरी बात आई लूव यू ही होती है. और वह तो तुम तीन साल पहले ही बड़े अच्छे से कह चुके हो. अर्जुन बालों में हाथ घुमाते और गाल एक हाथ से खीचते हुए वैदेही आगे कहती हैं, आई लव यू ही क्या तुम उससे भी ज्यादा कह चुके हो.

वैदेही के बातों को मानो अनसुना सा करते हुये अर्जुन अपने में ही कुछ खो सा जाता है, मानों वह अपने सवालों का खुद ही जबाब तलाश कर रहा हो. अर्जुन के फिल्मी हीरो वाले सीरियस पोज को देखते हुए वैदेही कहती है, ऐसा क्या हुआ तुम तो चुप्पी ही साध गए. चलो बताओ क्या कहना चाहते हो?

अब वैदेही को सीरियस होते देख अर्जुन ने तुरंत ही बात को बदलते हुये कहता है चलो रहने दो फिर बाद में बताउगा, इतनी भी सीरियस होने की बात नहीं है. अर्जुन कुछ और कहता इससे पहले ही वैदेही बोलती है, इट इज नोट गुड, तुम हमेशा ऐसे ही करते हो. जब कुछ बताना नहीं होता तो कोई बात चालू ही क्यों करते हो.

अब वैदेही के मूड को बदलते हुये देखकर अर्जुन कहता है बिना सुने तो तुम इतनी नाराज हो रही हो सुनकर न जाने क्या करोगी?

तुरंत जबाब देते हुये वैदेही कहती है, यदि अच्छी बात होगी तो प्यार भी मिल सकता है और कुछ बकबास हुयी तो एक चाटा भी. वैदेही के मूड को कुछ नॉर्मल देख अर्जुन कहता है, सच में कहूँ जो मैं कहना चाहता हूँ.

वैदेही – हाँ कहो ना, क्या बात है.

अर्जुन – लेकिन एक शर्त है, अगर मंजूर हो तो बात शुरू करूँ.

वैदेही – अगर फालतू की कोई शर्त है तो बिलकुल नहीं मंजूर.

अर्जुन – यार हद है, एकदम छोटी सी शर्त है.

वैदेही – चलो मंजूर, बोलो अब.

वैदेही की शर्त बाली बात को मानने के बाद अर्जुन मन ही मन अब यह सोच रहा था कि वैदेही को यह बात कैसे कहूँ, जिससे वह मेरे मन में जो है वह समझ सके. क्योंकि शब्दों की कुछ सीमाएं तो हमेशा ही होती हैं, शब्द हमेशा आपकी भावनाओं को पूर्णता में अभिव्यक्त नहीं कर पाते. व्यक्ति चाहे जितना सोच ले, पहले से तैयारी कर ले, लेकिन जो वह सोचता है उसको शब्दों के जरिए नहीं बता सकता.

अर्जुन की कुछ पल की चुप्पी को देख वैदेही के मन में भी सैकड़ों बातों आने-जाने लगी, जैसे कोई रीमोट से चैनल बदल रहा हो. इस बात को कहते हुये अर्जुन भी कुछ सहज महसूस नहीं कर रहा था, इतना नर्वस तो वह उस समय भी नहीं था जब उसने वैदेही को प्रपोज किया था. एक छोटी खामोशी को तोड़ते अर्जुन वैदेही के हाथ को पकड़ते हुये कहता है, शर्त के अनुसार तुम आज इस बात पर कोई रिएक्ट नहीं करोगी, आज रात के बाद कल हम इस पर बात करेंगे.

वैदेही – ओके, अब आगे भी तो कुछ बोलो.

हाथ में हाथ लिए आसमान को देखते हुये अर्जुन कहता है मैंने पिछले कुछ महीनों से महसूस किया है कि हम मिलने पर बहुत बाते करने लगे हैं, और कभी-कभी तो ये बाते हमारी तुम्हारी न होकर किसी और की ही होती हैं. मिलने पर इतनी बाते तो हम पहले कभी नहीं करते थे. और पहले जो बाते होती भी थी वह मेरी और तुम्हारी ही थी. मुझे तो लगता है वैदेही हमारे अंदर कुछ बदल सा गया है. अब तो कभी-कभी हमारा झगड़ा भी होने लगा है, भले अभी यह ज्यादा लंबा नहीं होता.

वैदेही के चेहरे के हावभाव कुछ बदलते हुये देखकर भी अर्जुन अपनी बात को आगे बढ़ाते हुये कहता है, अगर हम अपने इस प्यार को यूं ही आगे इसी सिद्दत से जारी रखना चाहते हैं.  तो हमें प्यार के इस मोड पर कुछ समय के लिए दूर हो जाना चाहिए. लड़ने झगड़ने के बाद तो सभी अलग होते हैं… ब्रेकअप करते हैं. हम दोनों कुछ एकदम नया करते हैं. तुम जानती हो रूटीन लाइफ से में कुछ बोर सा हो जाता हूँ, इसलिए हम कुछ एक्साइटिंग कुछ हटके करते हैं.

वैदेही – यू मीन ब्रेक-अप, मतलब तुम मुझसे अलग होने कि बात कह रहे हो, और वो भी ब्रेकअप विदाउट रीज़न.

अर्जुन – यार मैंने कहा था, कि आज रिएक्ट नहीं करोगी, प्लीज कल बात करेंगे ना.

वैदेही – लेकिन तुम्हें पता है तुम क्या कह रहे हो?

इतना कहते की वैदेही की पलके आंसुओं से भारी होने लगी, उसे समझ ही नहीं आ रहा था. वह क्या कहे, और ऐसा अचानक क्या हो गया जो अर्जुन ऐसा कह रहा है.

अर्जुन – हाँ बिलकुल मैं सोचकर यह बात तुमसे कह रहा हूँ, और वैदेही प्यार में प्रपोज, एक्सेप्ट, रोमांस, ब्रेक-अप के अलाबा भी बहुत कुछ होता है. हाँ एक बात और मैं तुमसे कह दूँ तुम ये जो ब्रेक-अप जैसी फालतू बात कर रही हो मेरा मतलब बो बिलकुल भी नहीं है.

अब समझ में आने की जगह अर्जुन कि बाते और अबूझ पहेली की तरह हो रही थी, वैदेही मन ही मन सोचे जा रही थी, अगर ब्रेक-अप नहीं तो क्यों यह दूर जाने की बात कह रहा है. वैदेही के कंधे पर हाथ रखते हुए अर्जुन कहता है, पता नहीं तुम अभी मेरी बात समझी या नहीं, पर अब जो मैं कह रहा हूँ, उस पर तुम कल ध्यान से खूब सोचकर विचार कर आना.

 फीका होता आम

आम पैदावार के मामले में भारत दुनियाभर में पहले नंबर पर है. और यहां पैदा होने वाला ज्यादातर आम यहीं पर खप जाता है लगभग 2 फीसदी ही आम देश से बाहर जाता है.

इस समय देश के अनेक हिस्सों से बाजार में आम आने लगते थे, लेकिन इस बार ऐसा नहीं है. दक्षिणी भारत के इलाकों से इस समय आम खासी मात्रा में देश के अनेक हिस्सों में पहुंचता था. भारत के उत्तरी भागों में आम का सीजन आने वाला है, लेकिन कोरोना के चलते किसान, व्यापारी सब नुकसान में हैं. इस बार मौसम के बिगड़ते मिजाज, बरसात, ओले, आंधी से भी आम की फसल को खासा नुकसान हुआ है.

देश का प्रसिद्ध आम अल्फांसो, जिस की पैदावार महाराष्ट्र में होती है और मई माह के अंत तक इस वैराइटी का सीजन खत्म हो जाता है, वह भी वहीं पड़ा है. मंडियां खुलने से आसपास की मंडियों से किसान औनेपौने दामों पर बिचौलियों को आम बेचने को मजबूर हैं.

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आम के व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए देश में जगहजगह मैंगो फैस्टिवल भी लगाए जाते रहे हैं. इस में विदेशी लोग भी हिस्सा लेते रहे हैं, लेकिन इस बार इस पर भी संकट का

दौर है.

कृषि वैज्ञानिक डा. राघवेंद्र विक्रम सिंह का कहना है कि जब तक आम की भरपूर फसल आएगी, तब तक लौकडाउन में और छूट मिल सकती है, जिस से आम बागबानों को ज्यादा नुकसान नहीं होगा.

 प्रोसैसिंग से फायदा 

अकसर देखने में आया है कि फलसब्जी उत्पादों की जब उपज किन्हीं कारणों से खप नहीं पा रही हो या बाजार से उचित दाम न मिल रहे हों तो उस की प्रोसैसिंग की जा सकती है. लेकिन इस काम के लिए पहले से ही तैयारी करनी होती है. लंबे समय तक किसी चीज को बचाए रखने के लिए तकनीक से ही उस को प्रोसैस करना होता है.

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लेकिन हमारे यहां सरकार द्वारा ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है, जो किसान से सीधे फलसब्जी ले कर उस की प्रोसैसिंग का फायदा किसानों को दे. अगर सरकार किसानों से सीधे आम खरीदे और उस की बिक्री या प्रोसैसिंग की सही व्यवस्था करे तो किसान को इस नुकसान से बचाया जा सकता है.

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के पूसा, नई दिल्ली में कृषि वैज्ञानिक डा. संजय सिंह का कहना है कि अनाजों की खरीद के लिए बने फूड कारपोरेशन औफ इंडिया की तरह फलों की खरीद के लिए भी ऐसी ही कुछ व्यवस्था होनी चाहिए. फलों के भंडारण की खास व्यवस्था हमारे देश में नहीं है, इसलिए कभीकभी तो किसान को फलों के अच्छे दाम मिल जाते हैं. अगर बाजार में मांग नहीं है, तो किसान को औनेपौने दामों पर या ऐसे ही बेचने को मजबूर होना पड़ता है.

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कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के मुताबिक, किसानों के उत्पादों को विदेशी बाजार तक पहुंचने की राह बन रही है जिस की शुरुआत कर दी गई है लेकिन आम किसान को कितना फायदा होता है, यह देखने की बात है.

 

औनलाइन मीटिंग्स के जरूरी ऐटिकेट्स

लौकडाउन के चलते औनलाइन मीटिंग्स का चलन अब दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है. पिछले कई महीनों से जहां अधिकतर काम वीडियो कौन्फ्रैंसिंग के जरीए हो रहे हैं, वहीं   कंपनियों की मीटिंग्स से ले कर पेरैंट्सटीचर मीटिंग्स, किटी पार्टियां और तो और कवि गोष्ठियां तक औनलाइन हो रही हैं.

हर किसी के लिए यह एक नया और रोमांचक अनुभव है, जिसे जूम ऐप ने और सहूलत वाला बना दिया है.

सर्वे  के अनुसार जूम ऐप अब तक 10 करोड़ से भी ज्यादा बार डाउनलोड किया जा चुका है और यह आंकड़ा लगातार बढ़ता ही जा रहा है. कामकाजी युवतियों को तो आएदिन ऐसी मीटिंग्स में शामिल होना पड़ता है.

पिछले 4 अप्रैल से ले कर अब तक कोई दर्जनभर मीटिंग्स में शिरकत कर चुकीं साक्षी पुणे में एक मल्टीनैशनल कंपनी में कार्यरत हैं. लौकडाउन के बाद वे अपने घर भोपाल आ गई थीं और तब से लगातार घर से काम कर रही हैं, जिसे वर्क फ्रौम होम कहा जाता है.

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साक्षी कहती हैं कि उन्हें हर मीटिंग में एक नई अटपटी बात नजर आई .  उन की टीम के मैंबर देशभर में हैं जिन में से कई ने अपेक्षित शिष्टाचार का पालन नहीं किया, जिससे मजाक भी बना और स्थितियां भी असहज हो गईं.

तो फिर आइए, जानते हैं वे खास ऐटिकेट्स जो औनलाइन मीटिंग्स में हर किसी के लिए जरूरी हैं :

बैठने की जगह और सलीका

आमतौर पर मीटिंग की सूचना एक दिन या कुछ घंटे पहले दी जाती है, इसलिए आप के पास तैयारियों के लिए पर्याप्त समय होता है. इसलिए यह जरूरी है कि आप सब से पहले घर में बैठने की जगह का चुनाव करें.

अगर आप का अपना अलग कोई कमरा नहीं है तो थोड़ी दिक्कत आ सकती है. मीटिंग कई बार देर तक भी चल सकती है इसलिए घर में  एकांत जगह चुनें और घर वालों को मीटिंग के बारे में बता दें, जिस से कोई व्यवधान पैदा न हो.

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मीटिंग मोबाइल से अटैंट कर रही हों या लैपटाप के जरीए, बैठने के लिए प्राथमिकता टेबलकुरसी को दें, ठीक वैसे ही जैसे औफिस के कौन्फ्रैंस हौल में होती है.

अगर आप के घर में टेबलकुरसी न हों तो बिस्तर या सोफे का इस्तेमाल किया जा सकता है लेकिन इस के लिए कैमरा ऐसे सेट करें कि बिस्तर और कमरा कम से कम नजर आएं.

कैमरा सेट करने के बाद बैकग्राउंड चेक करें. अगर इस में लाफ्ट या गैरजरूरी सामान नजर आ रहे हों तो उसे हटा लें या फिर परदे से ढंक दें.

बैठें भी ठीक वैसे ही जैसे औफिस में बैठते हैं. जमीन में पालथी मार कर, लेट कर या फिर अधलेटी मुद्रा में मीटिंग अटैंड न करें. यह एक फूहड़ तरीका है.

 

 ड्रैसिंग सैंस

‘घर में हूं इसलिए कुछ भी पहन लूं चलेगा’ इस सोच को दिमाग से निकाल दें, क्योंकि औनलाइन मीटिंग में भी लोग यानी सहकर्मी, जूनियर्स, सीनियर्स और बौस वगैरह आप को गौर से देखते हैं और सलीके के पहनावे की भी स्वभाविक उम्मीद करते हैं.

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नाइटड्रैस, गाउन, तंग टीशर्ट या मैक्सी पहन कर मीटिंग में शामिल होंगी तो आप को कुछ और मिले न मिले फूहड़ और गंवार होने का सर्टिफिकेट जरूर मिल जाएगा.

साक्षी एक ऐसा ही वाकेआ बताती हुई कहती हैं कि उन की कंपनी की पहली मीटिंग में ऐसा हुआ था जब उस की टीमलीडर ही स्लीवलैस गाउन में बैठ गई थी. यह सभी के लिए काफी असहज स्थिति थी. बाद में किसी ने टीमलीडर को टोका होगा या खुद उन्हें समझ आया होगा. जो भी हो इसलिए वे अगली मीटिंग में सलीके से कपड़े पहन कर नजर आईं.

औनलाइन मीटिंग में ड्रैसिंग सैंस काफी माने रखता है इसलिए कैजुअल ड्रैस पहनें जिस का साफसुथरा और प्रैस होना भी जरूरी है. ऐसी मीटिंग्स के लिए सलवारसूट एक बेहतर विकल्प है जिस पर मैचिंग की चुनरी काफी फबेगी. ड्रैस का रंग पर्सनैलिटी के हिसाब से चुना जा सकता है हालांकि सफेद ड्रैस कैमरे में ज्यादा आकर्षक दिखती है.

 मेकअप

औनलाइन मीटिंग्स को मैरिज या किसी अन्य तरह की पार्टी न समझें कि खूब सा और डार्क मेकअप जरूरी हो. यहां हलका मेकअप ज्यादा प्रभावी साबित होता है. चेहरे को साफ कर लें और यकीन मानें हलके शैड का लिपस्टिक लगाने भर से आप आकर्षक दिखेंगी. डार्क लिपस्टिक ऐसे समय भद्दा लगता है.

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चूंकि लौकडाउन के चलते ब्यूटीशियन के यहां नहीं जाया सकता इसलिए जरूरत हो तो आईब्रोज खुद बनाएं या घर में किसी से बनवा लें. मीटिंग शुरू होने के पहले एक बार खुद को आईने में देख कर तसल्ली कर लें कि कहीं कुछ अटपटा तो नहीं लग रहा? अगर लगे तो उसे ठीक कर लें. ज्वैलरी पहनना बहुत जरूरी नहीं है.

हेयरस्टाइल भी समान्य ही रखें. खुले बाल बैठना या बालों में बैंड लगा कर बैठना भी उचित नहीं होगा.

 बौडी लैंग्वैज

औनलाइन मीटिंग में आत्मविश्वास का होना बेहद जरूरी होता है और यह अकसर आप की बौडी लैंग्वैज से भी प्रदर्शित होता है. खुद को सहज दिखाने की कोशिश में असहज हरकत न करें, जैसे बारबार कान खुजाना, बालों पर हाथ फेरना, नाक में उंगली डालना, आंखें मिचमिचाना, नजरें  इधरउधर घुमाना या फिर नजरें झुका कर मीटिंग अटैंड करना आदि. आंखें यथासंभव कैमरे पर ही टिकी होनी चाहिए.

 संभल कर बोलें

मीटिंग की शुरुआत में औपचारिक हायहैलो के बाद मुख्य वक्ता की बात गौर से सुनें जो अकसर आप का अधिकारी या बौस होता है. वह मीटिंग की भूमिका और ऐजैंडा दोनों बताता है. जैसेजैसे मीटिंग आगे बढ़ती है वैसेवैसे बोलने के या कुछ बताने के मौके भी आते हैं लेकिन मुख्य वक्ता को बीच में न टोकें. कुछ कहना हो तो हाथ उठा दें, वह अपनी बात खत्म कर आप को बोलने का मौका देगा.

औनलाइन मीटिंग में बोलना काफी अहम होता है. साक्षी बताती हैं कि कुछ भी बोल कर हाजिरी दर्ज करानी है सिर्फ इसलिए न बोलें. बोलना तभी प्रभावी होता है जब आप को बोलने के लिए कहा जाए या बात आप के कार्य से संबंधित हो रही हो.

जिस विषय पर भी मीटिंग या बातचीत हो रही हो उस का पूरा होमवर्क पहले ही तैयार कर लें. बौस या सीनियर आप के कार्य से संबंधित सवाल कभी भी पूछ सकते हैं या कोई जानकारी मांग सकते हैं. आप का सटीक और सही जबाब आप की स्मार्टनैस ही सिद्ध करेगा.

अगर किसी सवाल का जबाब नहीं मालूम है या आप के पास पूरी जानकारी नहीं है तो विनम्रतापूर्वक सौरी कह दें लेकिन अस्पष्ट, अधूरे और गलत जबाब आप की इमैज बिगाड़ सकती हैं. गोलमोल जबाब तो कतई न दें.

औन लाइन मीटिंग में भी कई बार बहुत से लोगों का एकसाथ बोलना स्वभाविक बात है. कई बार किसी बात को ले कर आपस में बहस भी छिड़ जाती है.

ऐसे में आप को संभल कर पेश आने की जरूरत है. मसलन :

  • जब कोई और बोल रहा हो तो बीच में टोकें नहीं.
  • अगर कोई आप की बात को काटे तो उत्तेजित न हों और आवेश में न आएं. अपनी बात शांति से कहें. तेज बोलना अकसर जरूरी नहीं होता. यह हमेशा याद रखें कि यह कोई टीवी डिबेट नहीं है.

 

  • किसी भी सहकर्मी से इशारों में बात न करें न ही इशारा करें क्योंकि औनलाइन मीटिंग में सभी लगातार एकदूसरे को ही देख रहे होते हैं.

 

  • किसी पर भी व्यक्तिगत आरोप न लगाएं और कोई अगर आप पर आरोप लगाए तो उसे नजरंदाज करें और यह याद रखें कि बौस नाम का जीव यों ही बौस नहीं होता. उस की चौकस नजरें सभी के क्रियाकलापों पर होती हैं.

कोई भी सुझाव अपने स्वार्थ, जिद या सहूलत के लिए न दें.

 

  • औनलाइन मीटिंग में सैलरी, भत्तों और छुट्टियों वगैरह की बात न करें, क्योंकि ये मीटिंग्स एक खास मकसद से बुलाई जाती हैं, इसलिए सिर्फ काम की ही बात करें.

 

  • किसी को अपमानित करने की कोशिश कभी भी न करें.

 

ये कुछ बातें औनलाइन मीटिंग में आप के लिए काफी मददगार साबित होंगी, जो दरअसल मीटिंग में खुद को पेश करने का सही सलीका है.

 

औनलाइन मीटिंग अभी शुरुआती दौर में है, इसलिए काफी कुछ इन में ऐसा हो जाता है जो नहीं होना चाहिए. मगर कोशिश यही करें कि आप से कोई गलती न हो.

कोरोना  महामारी: क्वारंटाइन का धंधा 

छतीसगढ प्रशासन की लालफीताशाही सोच का नतीजा़ है “पेड” क्वारंटाइन यह कहना है एक भुक्तभोगी  का.भुक्तभोगी बताता है-सरकारी आदेशानुसार अन्य स्थानों से आए व्यक्तियों को चाहे वो सामान्य यात्री , विद्यार्थी ,व्यापारी , आॅफिसियल वर्कर या मजदूर हों उनको चौदह दिनों तक क्वारंटाइन रहना ही पड़ेगा के मद्दे नज़र स्थानीय प्रशासन के द्वारा तीन अलग अलग तरह और स्तर के क्वारंटाइन विकल्प सुझाए जाते हैं.

पहला- संस्थागत या समूह क्वारेंटाईन .

 दूसरा- होम क्वरेंटाईन और तीसरा- पेड क्वारेंटाईन.

तीनों तरह के क्वारंटाइन सेंटर्स में मजदूरों को छोड़कर बाकी सभी को पेड क्वारंटाइन में रहने हेतु बहलाया फुसलाया जा रहा है . इसलिए इन दिनों छतीसगढ मे विभिन्न  जिला प्रशासन द्वारा बनाए गए पेड क्वारेंटाईन सेंटर्स चर्चा का सबब बने हुए हैं.

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दरअसल, एक खास वर्ग के लोगों को उपकृत करने के लिए शहर के कुछ नामीगिरामी होटलों को “पेड  क्वारंटाइन” में तब्दील कर होटल मालिकों को मोटी मोटी रकम दिला और अपना कमीशन ले अपना उल्लू सीधा किया जा रहा है .

शासन-  प्रशासन की शह

प्रशासन द्वारा एक बार क्वारंटाइन कर देने के बाद सात सात आठ आठ दिन तक न तो सरकारी स्वास्थ्य अमले द्वारा किसी प्रकार की जाँच की जा रही है या सैंपल लिया जा रहा है और न ही आपदा प्रबंधन के लोगों के द्वारा समय समय पर जाँच कर यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि पेड क्वारंटाइनसेंटर्स बनाए गए होटलों में सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन हो भी रहा है या नहीं .

हमारे संवाददाता की रिपोर्ट  से पता चलता  है कि पेड क्वारंटाइन की व्यवस्था करना जिला प्रशासन की से परिचित लालफीताशाही सोच का नतीजा है .अपने अपने आकाओं को खुश करने के लिए कुछ स्वार्थी और भ्रष्ट अफसरों द्वारा महामारी की विभीषिका को पैसा कमाने के अवसर में बदलने के लिए ये तरीका अपनाया गया है.

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एक ओर संस्थागत क्वारंटाइन सेन्टर्स हैं जहां लोगों को पीने का शुद्ध पानी और दो वक्त का खाना भी नसीब नहीं हो पा रहा है.वहीं ऐसी भी खबरें आ रहीं हैं कि पेड क्वारेंटाईन सेंटर्स में विशेष मीनू के अनुसार भोजन और अतिरिक्त शुल्क के साथ विशेष पदार्थों की व्यवस्था होटल मालिकों द्वारा की जा रही है. पेड क्वारेंटाईन सेंटर्स में क्वारेंटाईन हुए लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग को अँगूठा दिखाते हुए होटल के गेट के बाहर अपने इष्ट मित्रों से मिलते हुए भी देखा गया है. यह सब प्रशासन की नाक के नीचे अफसरों की शह पर होटल संचालकों द्वारा खुलेआम किया जा रहा है.

 लोग हलाकान परेशान

गाँधी के आदर्शों पर चलने वाली छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल  सरकार का समाज के अलग अलग तबकों के लोगों में भेदभाव करते हुए अलग अलग तरह के क्वारेंटाईन सेंटर्स बनाने की मंशा के पीछे उसकी भ्रष्ट व्यवस्था  को बढ़ावा देने वाली सोच को उजागर करता है.आभिजात्य एवं धनाढ्य वर्ग के लोग तो पेड क्वारेंटाईन का हाई फाई खर्चा उठा ले रहे हैं.लेकिन मध्यम वर्गीय लोग बडी़ ही मुश्किल से पैसे रुपये का जुगाड़ कर जैसे तैसे अपने पारिवारिक जनों को घर बुला ले रहे हैं.लेकिन बार बार होम क्वारेंटाईन की अनुमति देने का निवेदन करने के बाद भी जबरिया पेड क्वारेंटाईन सेंटर्स में जाने पर उन्हें मजबूर किया जा रहा है .यदि प्रशासन पेडक्वारंटाइन  सेंटर्स की इस हकी़क़त को जानकर कोई ठोस कदम नहीं उठाता है तो घोर लापरवाही के कारण कभी भी और कहीं भी कोरोना विस्फोट हो सकता है. और यदि ऐसा हुआ तो जिला प्रशासन को ही इसका जिम्मेंदार ठहराया जाएगा.

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गांव में तो ठाठ है 

सरकार द्वारा गांव-गांव में क्वारंटाइन सेंटर बनाए गए हैं. और मजे की बात यह है कि यहां  सरपंचों को  जिला प्रशासन की साफ शब्दों में हिदायत  दी गई है कि बाहर से आने वाले कोरेंटाइन प्रवासी मजदूरों को पूरी सुविधा और देखरेख करने की जिम्मेदारी उन्हीं की है. इस तरह निशुल्क सेवा गांव गांव में प्रशासन द्वारा दी जा रही है. और ग्रामीण प्रवासियों के ठाठ तो यह है कि सरपंचों को आंख दिखा कर कह रहे हैं कि हमें मीट खिलाओ!! हमारी यह  यह सुविधा तुम्हें देनी होगी.

प्रशासन से भयभीत सरपंच पंच और गांव के प्रमुख लोग प्रवासी मजदूरों को जी हुजूरी करते हुए पूरी सुविधा दे रहे हैं. गांव से आ रही खबरों के अनुसार अगर सरपंच इसमें कोताही करता है तो ग्रामीण प्रवासी  कवारेंटाइन  सेंटर में  हंगामा करने लगते हैं.इस तरह कहा जा सकता है कि गांव-गांव के कवारेंटाइन सेंटर में शासन प्रशासन की वजह से बेहतरीन सुविधाएं मिल रही हैं मगर शहर में लोग अधिकारियों की लालफीताशाही के कारण परेशान हैं.

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