आम पैदावार के मामले में भारत दुनियाभर में पहले नंबर पर है. और यहां पैदा होने वाला ज्यादातर आम यहीं पर खप जाता है लगभग 2 फीसदी ही आम देश से बाहर जाता है.

इस समय देश के अनेक हिस्सों से बाजार में आम आने लगते थे, लेकिन इस बार ऐसा नहीं है. दक्षिणी भारत के इलाकों से इस समय आम खासी मात्रा में देश के अनेक हिस्सों में पहुंचता था. भारत के उत्तरी भागों में आम का सीजन आने वाला है, लेकिन कोरोना के चलते किसान, व्यापारी सब नुकसान में हैं. इस बार मौसम के बिगड़ते मिजाज, बरसात, ओले, आंधी से भी आम की फसल को खासा नुकसान हुआ है.

देश का प्रसिद्ध आम अल्फांसो, जिस की पैदावार महाराष्ट्र में होती है और मई माह के अंत तक इस वैराइटी का सीजन खत्म हो जाता है, वह भी वहीं पड़ा है. मंडियां खुलने से आसपास की मंडियों से किसान औनेपौने दामों पर बिचौलियों को आम बेचने को मजबूर हैं.

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आम के व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए देश में जगहजगह मैंगो फैस्टिवल भी लगाए जाते रहे हैं. इस में विदेशी लोग भी हिस्सा लेते रहे हैं, लेकिन इस बार इस पर भी संकट का

दौर है.

कृषि वैज्ञानिक डा. राघवेंद्र विक्रम सिंह का कहना है कि जब तक आम की भरपूर फसल आएगी, तब तक लौकडाउन में और छूट मिल सकती है, जिस से आम बागबानों को ज्यादा नुकसान नहीं होगा.

 प्रोसैसिंग से फायदा 

अकसर देखने में आया है कि फलसब्जी उत्पादों की जब उपज किन्हीं कारणों से खप नहीं पा रही हो या बाजार से उचित दाम न मिल रहे हों तो उस की प्रोसैसिंग की जा सकती है. लेकिन इस काम के लिए पहले से ही तैयारी करनी होती है. लंबे समय तक किसी चीज को बचाए रखने के लिए तकनीक से ही उस को प्रोसैस करना होता है.

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लेकिन हमारे यहां सरकार द्वारा ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है, जो किसान से सीधे फलसब्जी ले कर उस की प्रोसैसिंग का फायदा किसानों को दे. अगर सरकार किसानों से सीधे आम खरीदे और उस की बिक्री या प्रोसैसिंग की सही व्यवस्था करे तो किसान को इस नुकसान से बचाया जा सकता है.

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के पूसा, नई दिल्ली में कृषि वैज्ञानिक डा. संजय सिंह का कहना है कि अनाजों की खरीद के लिए बने फूड कारपोरेशन औफ इंडिया की तरह फलों की खरीद के लिए भी ऐसी ही कुछ व्यवस्था होनी चाहिए. फलों के भंडारण की खास व्यवस्था हमारे देश में नहीं है, इसलिए कभीकभी तो किसान को फलों के अच्छे दाम मिल जाते हैं. अगर बाजार में मांग नहीं है, तो किसान को औनेपौने दामों पर या ऐसे ही बेचने को मजबूर होना पड़ता है.

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कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के मुताबिक, किसानों के उत्पादों को विदेशी बाजार तक पहुंचने की राह बन रही है जिस की शुरुआत कर दी गई है लेकिन आम किसान को कितना फायदा होता है, यह देखने की बात है.

 

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