एक दिन मैं लाइब्रेरी में बैठी पढ़ रही थी कि अचानक सीमा मेरे पास आई, ‘अंजू, तुझे पता है कि मजनू की शादी हो गई?’
‘क्या?’ मैं चौंक गई. थोड़ी देर बाद खुद को संयत कर के बोली थी, ‘क्या कोई और मजाक नहीं कर सकती थी?’
‘अंजू, यह मजाक नहीं है. मुकुल अपने दोस्त की शादी में गया था. मेरा भाई भी उस शादी में गया हुआ था. वहां फेरों के पहले लड़के ने लड़की से शादी करने से इनकार कर दिया क्योंकि लड़की बेहद कुरूप थी.
‘मजनू ने दोनों में समझौता कराना चाहा तो लड़के ने क्रोध में कहा, मुझे जो लड़की दिखाई गई थी, वह यह नहीं है. इस कुरूप से कौन करेगा शादी. तू बहुत समझा रहा है तो तू ही इस से शादी कर ले.
‘दरअसल, कुछ दिन पहले लड़की का चेहरा खाना बनाते समय थोड़ा जल गया था,’ इतना कह कर वह थोड़ा रुकी.
इधर मेरी सांस रुकी जा रही थी. मैं सब कुछ जल्दी ही सुन लेना चाहती थी, ‘आगे बोल, क्या हुआ?’
‘कुछ नहीं अंजू, फिर वही हुआ जो नहीं होना चाहिए था. वहां पूरे पंडाल में उस लड़की से शादी करने के लिए कोई राजी न हुआ. मुकुल उस लड़के को समझा कर हार गया तो अंत में उस ने यह निर्णय ले लिया कि वह उस लड़की से शादी करेगा. पता नहीं क्यों, उसे ऐसा निर्णय लेते समय तेरा खयाल क्यों नहीं आया?’
इतना सुनना था कि मैं सीमा के कंधे पर सिर रख कर फफकफफक कर रोने लगी. मेरी सहेलियां और मुकुल के कुछ मित्र भी वहां आ पहुंचे थे. सब ने मुझे घेर लिया था. हमारे प्यार की दास्तान सब को पता थी, इसलिए सभी इस घटना से दुखी थे.
‘मजनू ने क्या उस कुरूप लड़की का उद्धार करने का ठेका ले रखा था,’ यह उत्तेजित स्वर अरुण का था.
‘अब जो हो गया सो हो गया. मजनू को कोसने से क्या होगा. अंजू को संभालो,’ सीमा बोली.
‘नहीं, मुझे तुम सब अकेला छोड़ दो,’ मैं ने रुंधे कंठ से कहा था. थोड़ी देर बाद ही मैं घर आ गई थी.
मैं बारबार यही सोच रही थी कि जो मुकुल मेरे बिना एक पल भी नहीं रह सकता था वही अब हमेशा के लिए मुझ से जुदा हो गया है. आखिर उस ने यह क्यों नहीं सोचा कि उस के बिना मेरा क्या होगा. मैं मुकुल के अतिरिक्त किसी और व्यक्ति का खयाल भी अपने मन में नहीं ला सकती. अब तो मुझे अपने जीवन की तनहाइयों को ही स्वीकार कर के चलना होगा. मुकुल की बेवफाई से मुझे बहुत सदमा पहुंचा और मैं ने अकेले ही अपना जीवन बिताने का निर्णय लिया. धोखे से भरी इस दुनिया में किसे अपना अवलंबन मानती, पता नहीं कौन किस मोड़ पर अपनी मंजिल बदल दे. इस घटना को लगभग 17-18 साल बीत गए थे. घाव भर चुका था पर निशान बाकी था और अब वह घाव फिर से ताजा हो गया था.
‘अच्छा हुआ, उस की पत्नी मर गई. अपने जुर्म का फल तो भुगतेगा,’ मैं बड़बड़ाई थी.
रात देर तक जागने के कारण सुबह सिर भारी था. सोचा कि कालेज से छुट्टी ले लूं, फिर नहीं ली. घर बैठ कर तो मानसिक सुकून और भी छिन जाता. कालेज में कम से कम व्यस्त तो रहूंगी. मेरे कल के व्यवहार से छात्राएं आज भी सहमी थीं मगर मैं शांत थी. तूफान आने के बाद की शांति छाई हुई थी, हालांकि मन का तूफान थमा नहीं था. शाम को किसी ने दरवाजा खटखटाया. मैं अनमने भाव से उठी और दरवाजा खोल दिया. सामने मुकुल को देख कर आश्चर्यचकित रह गई, ‘‘तुम…’’
‘‘अंदर आने के लिए नहीं कहोगी?’’ उस ने बाहर खड़ेखड़े पूछा.
‘‘मेरे घर आने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?’’
‘‘सच, हिम्मत तो बहुत जुटाई है मैं ने, तभी आ पाया हूं,’’ यह कहते हुए वह स्वत: अंदर चला आया और सोफे पर साधिकार बैठ गया.
‘‘अंजू, कई वर्षों से मैं बहुत परेशान था. अपराधबोध से ग्रस्त था. तुम्हारे साथ मैं न्याय नहीं कर पाया था. इसीलिए वक्त ने मेरे साथ भी न्याय नहीं किया. परिस्थितिवश अचानक मेरी शादी कहीं और हो गई और…’’ वह चुप हो गया.
‘‘मुकुल, इतने अंतराल के बाद आज सफाई देने क्यों आए हो? मैं जानना चाहती हूं कि किस अधिकार से तुम मेरे घर चले आए?’’ मेरा स्वर तीखा था.
‘‘मैं तुम्हारी कड़वाहट की वजह जानता हूं इसलिए मैं बुरा नहीं मानूंगा,’’ मुकुल ने सोफे पर बैठेबैठे ही सिगरेट सुलगा ली थी. थोड़ी देर तक वातावरण में चुप्पी छाई रही. फिर वह बोला, ‘‘अंजू, बीती बातें भूल जाओ. संयोग से हम दोबारा मिले हैं. क्या हम अच्छे पड़ोसी बन कर नहीं रह सकते?’’ वह एकटक मुझे देख रहा था.
‘‘मेहरबानी कर के यहां से चले जाओ,’’ मैं लगभग रो पड़ी थी.
‘‘अच्छा, मैं फिर कभी आऊंगा. परेशान होने की जरूरत नहीं है,’’ यह कह कर उस ने मेरे कंधे थपथपाए और चला गया.
कंधों पर उस का स्पर्श किसी जलती हुई सलाखों के सदृश लगा था. आखिर किस अधिकार से वह सोफे पर पसर गया था? कैसे बेशर्म होते हैं लोग, जो बड़ी सहजता से विश्वासघात कर लेते हैं, और अपने किए को सहजता से स्वीकार भी करते हैं, जैसे कुछ हुआ ही न हो. शायद उस के लिए कुछ नहीं हुआ था. बेसहारा, जीवन से संघर्ष करती हुई दर्द के मोड़ पर तो मैं खड़ी थी. वह तो आराम से अपना गृहस्थ जीवन जी रहा था. उसे तो इस बात का एहसास ही नहीं हुआ होगा कि अंजू नाम की कोई लड़की उस के कारण पूरे संसार में एकदम अकेली रह गई. मैं सोचने लगी कि अच्छा ही हुआ जो उस की पत्नी उसे छोड़ कर चल बसी. जीवन की कुछ कड़वाहटें उस के हिस्से में भी तो आई हैं. मेरा मन बहुत खिन्न हो उठा था. मैं ने 4 दिन की छुट्टियां ले ली थीं और इस बीच अपनेआप को संयत करने की असफल चेष्टा में लगी रही थी. लगभग 5-6 दिन बाद शाम को फिर मुकुल आ धमका. इस बार उस के साथ मोनू भी था.
‘‘मोनू, इन्हें नमस्ते करो,’’ मुकुल बोला था और साधिकार भीतर चला आया था.
‘‘कैसे आना हुआ?’’ मैं ने बेरुखी से पूछा.
‘‘आज तो साहबजादे के कारण आया हूं. तुम हो अंगरेजी की व्याख्याता और हमारा बेटा अंगरेजी में बहुत कमजोर है. तुम से अच्छा ट्यूटर मोनू को कोई दूसरा नहीं मिल सकता,’’ मुकुल अधिकार पर अधिकार जता रहा था और मुझे उस के इस व्यवहार से चिढ़ हो रही थी.
‘‘देखिए, मैं ट्यूशन नहीं करती,’’ मैं ने साफ इनकार कर दिया.
‘‘लेकिन मोनू को तो पढ़ाना ही होगा. इस का भविष्य तुम्हारे हाथ में है.’’
‘मेरा भविष्य उजाड़ने वाले, आज अपने बेटे का भविष्य संवारने के लिए मेरे पास आए हो,’ मैं ने मन ही मन सोचा परंतु प्रत्यक्ष में कुछ न कहा.
‘‘बेटे मोनू, यह हमारी सहपाठी रह चुकी हैं. अब तुम रोज शाम को इन से पढ़ने आया करोगे.’’
‘‘लेकिन मैं…’’ मैं ने कुछ कहना चाहा.
‘‘इनकार मत करना,’’ मुकुल बीच में ही बोला. उस की आंखों में विनती थी और पता नहीं क्यों, फिर मैं एकदम शांत हो गई.
मोनू रोज पढ़ने के लिए आने लगा. कभी मैं उस को मुग्ध हो कर निहारती तो कभी उस पर अपनी खीज और झल्लाहट भी उतारती. जब मेरी डांट से उस की आंखें भर आतीं तो मुझे अजीब सा सुकून मिलता. कभीकभी मुझे लगता कि मैं मानसिक विकृति का शिकार हो रही हूं. सोचती, कालेज में छात्रों पर बरस पड़ना, घर में मोनू को डांटना, जबतब खीज से भर उठना, आखिर क्यों मैं अपना मानसिक संतुलन खोती जा रही हूं? मुकुल ने दोबारा मेरे जीवन में प्रवेश कर के मुझे बुरी तरह विचलित कर दिया था. लगभग 3-4 महीने यों ही बीत गए. एक दिन मुकुल ने फिर दरवाजा खटखटाया. जैसे ही मैं ने दरवाजा खोला, वह अंदर आते हुए बोला, ‘‘अंजू, आज तो चाय पी कर जाऊंगा.’’उस ने इस तरह अपनेपन से यह बात कही कि मैं पिघल गई. मैं चाय बना कर ले आई. उसे प्याला पकड़ाते समय मेरा ध्यान उस के हाथ की तरफ गया. उस का हाथ ब्लेड से कटा हुआ था, ऊपर खून की तह जमी थी.
‘ओह, तो जनाब फिर प्यार का इजहार करने आए हैं. फिर मजनू का भेष बना कर बैठे हैं,’ मैं ने मन ही मन सोचा और मुसकरा दी. मैं ने सोच लिया था कि मुकुल रोएगा, गिड़गिड़ाएगा औरहाथ की नस भी काट लेगा तो भी मैं ‘हां’ नहीं करूंगी. उस की यही सजा है.
‘‘अंजू, तुम ने शादी के बारे में क्या सोचा?’’ अचानक उस ने पूछा.
‘‘क्या मतलब?’’
‘‘क्या अपनी जिंदगी यों ही तनहा गुजार दोगी?’’
‘‘तुम्हें इस से क्या, मेरी जिंदगी है, मैं कैसे भी गुजारूं,’’ मैं चीख कर बोली थी.
‘‘यह हर बार तुम उत्तेजित क्यों हो जाती हो? तुम्हारे सामने अभी उम्र का लंबा सफर पड़ा है. आखिर कब तक अकेले ही अपने सुखदुख ढोती रहोगी?’’ वह चिंतित हो उठा.
‘‘मुकुल, मेरी चिंता तुम न करो. मुझे मेरे ही हाल पर छोड़ दो. मैं बहुत अच्छी तरह जी रही हूं.’’
‘‘अंजू, क्या यह तुम्हारा आखिरी फैसला है?’’ उस ने मेरी आंखों में झांकते हुए पूछा.
उस की आंखों के भावों को देख कर एक बार मेरा मन डगमगा उठा था लेकिन मैं ने स्वयं को मजबूत बनाते हुए कहा, ‘‘हां.’’
‘‘अंजू, मैं जानता हूं कि तुम ने मेरी खातिर तनहाइयां भोगी हैं. मैं यह भी जानता हूं कि तुम मेरे लिए तड़प रही हो, उसी तरह जिस तरह मैं आज तुम्हारी तनहाइयां समेटने के लिए तड़प रहा हूं… उसी तरह, जैसे मोनू तुम्हें मां के रूप में पाने के लिए तड़प रहा है…’’
‘‘मोनू,’’ मैं ने मुकुल की तरफ अपनी प्रश्नवाचक दृष्टि स्थिर कर दी.
‘‘हां अंजू, उस की डायरी से चिट्ठी मिली है,’’ मुकुल ने जेब से एक मुड़ातुड़ा कागज निकाल कर मेरी तरफ बढ़ा दिया. उस में लिखा था :
‘मौसी, मैं आप को बहुत चाहता हूं. क्या मैं आप को मां बोल सकता हूं?’
इस पंक्ति के बाद पूरे पृष्ठ पर ‘मां… मां…मां…’ लिखा हुआ था.
मैं ने मुकुल की तरफ देखा, उस की आंखें गीली थीं. वह भर्राए स्वर में बोला, ‘‘इस समय सिर्फ तुम ही नहीं, मैं और मोनू भी तनहाइयां झेल रहे हैं. लेकिन हम सब की तनहाइयां दूर हो सकती हैं… यदि तुम चाहो तो?’’
मुकुल का इतना कहना था कि मैं रोने लगी. अब मुझ में हिम्मत नहीं थी कि मैं अपनी तनहाइयों में और अधिक जी सकूं.
‘‘तो क्या सोचा है, अंजू?’’ वह बोला.
मैं ने आंसुओं से भरा चेहरा ऊपर उठाया. मुकुल को एकटक देखा और कहा, ‘‘मैं तुम से नहीं बोलना चाहती क्योंकि तुम ने मेरे बेटे को मुझ से दूर रखा…’’
‘‘अच्छा बाबा, मुझ से मत बोलना, पर अपने बेटे से तो बोलना. चलो, मेरे घर चलो. मोनू तुम्हें देख कर बहुत खुश होगा.’’
मैं मुकुल के पीछेपीछे चल दी. एक सिहरन मेरे मन में समाती जा रही थी और मोनू को सीने से लगाने के लिए मैं बुरी तरह छटपटा रही थी.
घर पहुंच कर मेरे रोष का शिकार बनी शकुंतला. उस ने सिर्फ इतना ही कहा था कि सिर में दर्द है क्या? कहो तो एक प्याला चाय बना दूं?
‘‘नहीं, मेरी चिंता करने की जरूरत नहीं है. मेरे सिर में दर्द भी नहीं है. हां, तुम मेरे सिर पर इसी तरह खड़ी रहोगी तो सिर फट सकता है.’’
शकुंतला कुछ न बोली. वह चुपचाप काम कर के चली गई. खाना खा कर रात को जब बिस्तर पर लेटी तो आंखों में नींद के स्थान पर वह चेहरा घूम रहा था…
उस चेहरे का नाम था मुकुल. कालेज के दिनों की बात है. मैं बीए अंतिम वर्ष में थी. मुकुल मेरा सहपाठी था. अकसर अंगरेजी के नोट्स लेने वह मेरे घर भी आ जाता था. कालेज की कैंटीन में भी वह मुझे मिल जाता था. कुछ दिनों से मैं उस के व्यवहार में काफी परिवर्तन देख रही थी. वह अकसर मुझे अजीब निगाहों से देखता था.
एक दिन मैं ने टोका था, ‘मुकुल, यह घूरने की आदत कब से पड़ गई?’
‘नहीं तो, ऐसा कुछ भी नहीं है,’ वह हड़बड़ा कर बोला. ‘है तो. अगर यही हाल रहा तो तुम्हारा नाम घूरेलाल रख दूंगी.’
‘अंजू, अब तुम जो भी नाम रख दो, मुझे मंजूर है.’
‘ए जनाब, हंसबोल लेने का गलत अर्थ मत लगाना. मैं ऐसीवैसी लड़की नहीं हूं,’ मैं कड़क कर बोली थी.
‘अंजू, यकीन करो, मैं भी ऐसावैसा नहीं हूं. पर तुम्हें देख कर मुझे पता नहीं क्या हो जाता है. जानती हो, हर चीज में मैं तुम्हें ही देखता हूं…किताब में, कौपी में, ब्लैकबोर्ड में, खाने में…’
‘बसबस मजनूजी, मैं किसी चक्कर में नहीं आने वाली,’ कहती हुई मैं तेजी से अपनी सहेलियों की टोली में चली गई थी.
सच बात तो यह थी कि मुकुल के प्रति मेरे हृदय में कोई भावना नहीं थी. उस के प्रति न तो आकर्षित थी और न ही प्रभावित. वह मेरा सहपाठी था. बस, उस से इतना ही नाता था. किंतु उस दिन के बाद मुकुल मेरे पीछे हाथ धो कर पड़ गया. एक दिन मैं लाइब्रेरी में बैठी अध्ययन कर रही थी कि मुकुल भी एक किताब ले कर वहीं मेरे पास बैठ गया और बोला, ‘अंजू, मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूं. अगर तुम मेरे प्यार को ठुकरा दोगी तो मैं अपना दायां हाथ ब्लेड से काट दूंगा.’
‘मजनूजी, इस नेक काम में देर कैसी. एक से एक अच्छी क्वालिटी के ब्लेड हमारे देश में मिलते हैं. तुम कहो तो एक पैकेट मैं ही ला दूं,’ मैं खीज कर बोली और उसी समय लाइब्रेरी से उठ कर बाहर चली गई.
दूसरे दिन जब मुकुल क्लास में आया तो उस के दाएं हाथ पर पट्टी बंधी थी. इस बात से मैं थोड़ा परेशान हो गई. जब मैं लौन में बैठी थी तब वह मेरी तरफ आया, ‘अंजू, क्या अब भी तुम्हारी तरफ से इनकार है?’
‘हाथ में पट्टी बांध कर तुम मुझे बेवकूफ नहीं बना सकते,’ मेरा इतना कहना था कि मुकुल आवेश में आ गया और बाएं हाथ से झटका दे कर अपनी पट्टी खोल कर दायां हाथ मेरे आगे कर दिया.
उस का खून से लथपथ हाथ देख कर मैं दंग रह गई.
‘मुकुल, यह क्या पागलपन है.’
‘कल हाथ की नस काट लूंगा, मर जाऊंगा. मैं जीना नहीं चाहता,’ वह बच्चों की तरह सिसकने लगा.
‘नहीं मुकुल, तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे. इधर मेरी तरफ देखो,’ मेरे कहने पर उस ने आंसुओं से भीगा चेहरा ऊपर उठाया. मैं ने उसे अपलक निहारते हुए कहा, ‘मुकुल, मैं भी तुम से बहुत प्यार करती हूं.’
इस के बाद मेरे दिलोदिमाग पर एक उन्माद, एक पागलपन छाने लगा. मुझे ऐसा लगने लगा कि मेरी हर सांस केवल मुकुल के लिए है, मेरी हर धड़कन बस मुकुल का नाम लेती है. सुबह की उजली किरणों में मुकुल दिखाई देता और रात को आकाश में चमकते चांदसितारों में भी वही नजर आता. मुकुल मेरी जिंदगी बन चुका था. उस के बिना मैं जी नहीं सकती थी. मेरी हालत मेरी सहेलियों को पता थी और मुकुल की मनोस्थिति उस के मित्र जानते थे. कुछ महीनों के बाद तो जैसे ही मुकुल कालेज के गेट में प्रवेश करता, मेरी सहेलियां मुझे छेड़तीं, ‘देख अंजू, तेरा मजनू आ गया.’
हमारे प्यार के चर्चे खुलेआम होने लगे थे. बीए करने के बाद मैं ने अंगरेजी विषय में एमए में दाखिला ले लिया और मुकुल ने इतिहास में. हम क्लास में नहीं मिल पाते थे लेकिन खाली पीरियड में लौन में, कैंटीन में तथा लाइब्रेरी में रोज मिलते. मुकुल बैंक की परीक्षा की तैयारी भी कर रहा था. फिर एक दिन वह सफल भी हो गया. बैंक में अधिकारी पद पर उस का चयन हो गया. मुकुल कानपुर नौकरी पर चला गया और मैं उस की प्रतीक्षा में पलकें बिछाए बैठी रही. लेकिन मेरी पलकों को मुकुल के स्नेह के फूल न मिल सके.
बिग बॉस फेम रश्मि देसाई इन दिनों घर पर अपने फैमली के साथ खूब एंजॉय कर रही हैं. यीनी वह इन दिनों जमकर मी टाइम बीता रही है. इस दौरान वह अपने फैंस के साथ भी सोशल मीडिया पर जुड़ी हुई हैं.
हाल ही में उन्होंने अपना नया शो द रश्मि देसाई लॉच किया है. जिसे खूब पसंद किया जा रहा है. फैंस के अच्छे रिसपॉन्स भी आ रहे हैं.
रश्मि ने अपना नया वीडियो लॉच किया है जिसका हर कोई दीवाना हो गया है. इस वीडियो में रश्मि लैजा-लैजा सॉन्ग पर झूमती हुई नजर आ रही हैं.
ये भी पढ़ें-मां बनने की तैयारी कर रही थीं भारती सिंह, कोरोना वायरस की वजह से कैंसिल हुआ प्लान
रश्मि इतनी खूबसूरती से डांस कर रही हैं की जो एक बार इस वीडियो को देखेगा वह बार-बार देखना चाहेगा. यह वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल भी हो रहा है.
View this post on Instagram
Rashmi?? Complete 1.6 followers thank u so much all?? @imrashamidesai #rashmidesai #imrashmidesai
रश्मि के कई दोस्तों ने इस वीडियो की जमकर तारीफ की है. वहीं एक्टर विशाल आदित्या ने कमेंट किया है जो चर्चा का विषय बन गया है. उन्होंने कमेंट में लिखा है कि ‘चलो फिर’
इस के बाद क्या था कि विशाल और रश्मि के फ्रेंडस ने कमेंट करते हुए दोनों को एक नया नाम दे दिया है. #virash
ये भी पढ़ें-अभिनेता विद्युत जामवाल की नई पहल ‘‘गुडविल फोर गुड
वहीं एक यूजर ने कमेंट करते हुए कहा है कि भाई तुम प्लीज रश्मि से शादी कर लो.
बता दें रश्मि देसी का अपने पहले पति से तलाक हो गया है. रश्मि तलाक के बाद अपने काम पर फोक्स कर रही है. बिग बॉस सीजन 13 में टॉप 5 तक पहुंची थीं. वहां पर उन्हें फैंस ने बहुत ज्यादा प्यार दिया था. नागिन 4 में रश्मि देसाई कर रही थी. जो जल्द ही बंद होने वाला है.
ये भी पढ़ें-Bhojpuri actor Manoj Tiwari ने ऐसे तोड़ा कोरोनावायरस लॉकडाउन का
वैसे तो रश्मि का नाम कई लोगो के साथ जोड़ा जाता है लेकिन फिलहाल रश्मि को देखते हुए अंदाजा लगाया जा सकता है कि रश्मि अभी शादी की मूड में नहीं है. वह अपने करियर में आगे बढ़ना चाहती हैं. रश्मि अपने घर में मां के साथ रहती हैं. वह कई बार मां के साथ भी वीडियो भेजती रहती हैं.
कॉमेडियन भारती सिंह और हर्ष लिंबाचिया का नाम टीवी के मशहूर कपल में लिया जाता है. हर्ष और भारती इस साल अपने घर नन्हें मेहमान लाने की प्लानिंग कर रहे थें. उन्होंने इस बात का खुलासा एक रिपोर्ट में बातचीत के दौरान किया था.
हालांकि अभी भारती ने अपने प्लान को पोस्पोंड कर दिया है. लॉकडाउन और कोरोनावायरस को देखते हुए. इन दिनों वह अपने पति हर्ष के साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड कर रही है.
आगे भारती ने बताया मैं इस वक्त कोई रिस्क नहीं लेना चाहती हूं. माहौल को देखते हुए मैंने अभी अपना प्लान बदल दिया है. हम दोनों चाहते हैं कि हमारा बच्चा स्वस्थ्य माहौल में पैदा हो.
ये भी पढ़ें-अभिनेता विद्युत जामवाल की नई पहल ‘‘गुडविल फोर गुड
इस समय संक्रमण का खतरा बना हुआ है. इस समय डॉक्टर के पास आना जाना भी खतरे से खाली नहीं है. अगर वह इस समय प्रेग्नेंट हो जाती है तो डॉक्टर के पास रूटुन चेकअप के लिए जाना पडेगा. जो खतरे से खाली नहीं होगा.
ऐसे में भारती अगले साल ही बच्चे की प्लानिंग करेंगी. इस समय वह खुद को सुरक्षित रखना चाहती हैं.
भारती और हर्ष के शादी को लगभग दो साल हो चुके हैं. दोनों एक –दूसरे से बेहद प्यार करते है. इन दिनों वह अपने घर में है. अपनी फैमली के साथ उन्हें कोरोना खत्म होने का इंतजार है. इस समय में अपने घर पर खूबसूरत समय बीता रही हैं.
ये भी पढ़ें-Bhojpuri actor Manoj Tiwari ने ऐसे तोड़ा कोरोनावायरस लॉकडाउन का
भारती के शुरुआती जीवन के बारे में बात करें तो उन्हें अपने शुरुआती दिनों में बहुत संघर्ष करना पड़ा था. हालांकि भारती ने कभी हार नहीं मानी थी. वो कहते है न मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती.
ये भी पढ़ें-कोरोना वायरस से बेहाल बौलीवुड
भारती गरीब परिवार की लड़की थी लेकिन अपने मेहनत के बल पर आज अपना नाम बनाया है. उन्हें आज पूरा देश जानता है. यहीं नहीं भारती का नाम विदेशों में भी मशहूर है. वहां भी लोग उन्हें पसंद करते है. कई बार शो करने के लिए वह विदेश भी जाती रहती हैं.
सच्चे अर्थों में कहा जाए तो यह गलत नहीं होगा कि छत्तीसगढ़ मैं अजीत प्रमोद कुमार जोगी एक किवंदती बन गए हैं. अपने बूते ऐसी ऐसी ऊंचाइयां स्पर्श की जो एक रिकार्ड बन चुकी है. अजीत जोगी नाम छत्तीसगढ़ अंचल के जन-जन में ऐसा घुल मिल चुका है जो एक जनप्रिय लोकप्रिय नेता को ही नसीब होता है. अजीत जोगी का देहावसान हो चुका है यह कल्पना भी लोगों को मथ रही है. लोगों ने उन्हें व्हील चेयर पर देखा और पूरे जीवटता और जिजीविषा के साथ जीवन का संघर्ष करते हुए भी मगर हास्य उनके चेहरे पर सदैव उनकी अमिट पहचान बन चुका है. अजीत जोगी के संदर्भ में कम से कम शब्दों में कहा जाए तो जहां वे एक तेजतर्रार कुटिल राजनीतिज्ञ थे वही साफ स्वच्छ मन के जननेता और गरीब दुखियों के सब कुछ थे.
एक राजनीतिक दुर्ग का अवसान
छत्तीसगढ़ में कभी छत्तीस किले अथवा कहे दुर्ग हुआ करते थे. जिसके कारण छत्तीसगढ़ का नाम पड़ा. अजीत जोगी नि:संदेह छत्तीसगढ़ की राजनीति के एक बड़े किले थे कहा जाए तो गलत नहीं होगा.
ये भी पढ़ें-श्रमिक स्पेशल ट्रेनें- मजदूरों की मुसीबतों का अंत नहीं
एक ऐसा किला जो कभी अभेद्य था ,कभी जर्जर हुआ, कभी जीर्ण-शीर्ण हुआ और एक दिन समाज और राजनीति को झकझोरता समय के विराट काल में तिरोहित हो गया.
जी हां! अजीत प्रमोद कुमार जोगी छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री के रूप में अपना नाम इतिहास में दर्ज कराने के अलावा और भी बहुत दूर तलक चमकने वाले ध्रुव नक्षत्र की तरह है. जिन्होंने छत्तीसगढ़ के घुर आदिवासी बिलासपुर जिले के पेंड्रा तहसील के गांव जोगी डोंगरी में जन्म लिया गरीबी,गुरबत में अंधेरे में रोशनी बन कर निकले और एक दिन इंजीनियर बन गए इसके बाद रुके नहीं आगे आईपीएस की परीक्षा दी और सफलता प्राप्त की फिर आईएएस बने और जिलाधीश के रूप में अपनी छाप छोड़ी. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अजीत जोगी के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए ठीक ही कहा है- अजीत जोगी रूकने वाले शख्स नहीं थे वे सदानीरा की भांति कल-कल बहते रहने वाले विलक्षण राजनेता थे.
ये भी पढ़ें-कहीं बुधिया जैसा हश्र न हो ज्योति का
शायद यही कारण है की राज्यसभा, लोकसभा, विधानसभा और कांग्रेस पार्टी के प्रखर प्रवक्ता के रूप में अपनी भूमिका निभाते हुए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री पद तक पहुंचे.
और मुख्यमंत्री बन गये
अजीत जोगी ने राजीव गांधी के पसंदीदा नौकरशाह बनने के बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. अर्जुन सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में अजीत जोगी सीधी के बाद रायपुर के जिलाधीश बने थे और मुख्यमंत्री की मंशा अनुरूप छत्तीसगढ़ के सबसे प्रभावशाली शुक्ल बंधुओं अर्थात विद्याचरण व श्यामाचरण पर नकेल कसने का काम बखूबी किया. केरवा बांध भ्रष्टाचार अजीत जोगी पर एक काला धब्बा था. मगर वह एक आईएएस के रूप में आगे बढ़ते चले गए और एक दिन कलेक्ट्री छोड़ दी और सीधे राज्यसभा सदस्य बनकर राजनीति की डोर से बंध गए. राजीव गांधी के पश्चात श्रीमती सोनिया गांधी के निकटस्थ हो गए और जब छत्तीसगढ़ का निर्माण अटल बिहारी बाजपाई के प्रधानमंत्तित्व काल में हुआ तो छत्तीसगढ़ के सबसे प्रभावी व कद्दावर शख्सियत विद्याचरण शुक्ल को पीछे छोड़कर सोनिया गांधी का आशीर्वाद प्राप्त कर सीधे मुख्यमंत्री बन गये. जबकि उस वक्त जोगी विधायक भी नहीं थे .
ये भी पढ़ें-पैसा कमाने- काढ़े के कारोबार की जुगाड़ में बाबा रामदेव
अजीत जोगी एक समय अविभाजित मध्य प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस के शीर्ष पर थे अपनी निष्ठा और तेवर, कार्यप्रणाली के कारण हाईकमान के खासमखास बन गये थे.
मुख्यमंत्रित्व के वह तीन साल
1 नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ राज्य अस्तित्व में आया और अजीत प्रमोद कुमार जोगी के रूप में प्रदेश को कथित रूप से पहली बार एक आदिवासी मुख्यमंत्री की सौगात मिली. अजीत जोगी ने अपने अल्प कार्यकाल में कई इतिहास रच डालें.जिनमें सबसे पहला था कांग्रेस पार्टी को मुख्यमंत्री का जेबी संगठन बना डालना, जो आगे चल उनके लिए नुकसान प्रद साबित हुआ.
अजीत जोगी ने प्रदेश में आदिवासी व अनुसूचित जाति, पिछड़े वर्ग की राजनीति को इस कदर हवा दी कि ब्राह्मण व वैश्य वर्ग के होश फाख्ता हो गए वे साफ कहा करते थे वैश्य दुकानदारी करें राजनीति छत्तीसगढ़ के मूल लोगों के लिए छोड़ दें. यही कारण है की शनै: शनै: विपक्ष कमजोर दिखाई पड़ने लगा भाजपा अध्यक्ष त्राहिमाम-त्राहिमाम करने लगे. चंहु और जय जोगी जय जोगी के नारे हवाओं में गुंजायमान हो उठे. मगर अजीत प्रमोद कुमार जोगी यहीं धोखा खा गये शांतिप्रिय छत्तीसगढ़ मे शांतिप्रिय जनता ने उन्हें 2003 के विधानसभा चुनाव में ऐसी पटखनी दी की फिर कांग्रेस को संभालने में 15 वर्षों का समय लग गया.
जोगी : खुबिया और खामियां
अजीत जोगी में खुबियो की कमी नहीं थी वे सच्चे अर्थों मैं गरीबों, दलितों, पिछड़ों के मसीहा थे. सिर्फ कागजी और मुंह देखी नहीं छत्तीसगढ़ का शायद ही कोई इलाका होगा जहां चार आदमी ऐसे नहीं होंगे जिन्हें वे जानते थे और नाम लेकर बातें करते थे. वे जनता के बेहद नजदीक के राजनेता थे वे दूरियां पसंद नहीं करते थे सहज और सरल थे. उनकी खासियत थी वे पैसे वालों की अपेक्षा आम गरीब आदमी के साथ संबंध बनाते और उसे निभाते थे. दूसरी तरफ उनमें कुछ ऐसी खामियां थी जिनके कारण राजनीति में वे पिछड़ते चले गए.
अजीत जोगी अगर सहज सरल भाव से छत्तीसगढ़ का नेतृत्व करते तो छत्तीसगढ़ के बीजू पटनायक हो जाते, नीतीश कुमार अथवा लालू जैसे होकर वर्षों मुख्यमंत्री रहते. मगर प्रारब्ध को शायद कुछ और मंजूर था.
कभी भुलाया नहीं जा सकेगा
छत्तीसगढ़ की राजनीति और इतिहास में अजीत जोगी सदैव के लिए स्वर्ण अक्षरों में रेखांकित हो गए हैं. एक सामान्य किसान का बेटा ऐसी ऊंचाइयां छू सकता है यह अजीत जोगी ने सिद्ध कर दिखाया. विलक्षण बुद्धि के स्वामी अजीत जोगी जहां रहे अपनी अमिट छाप छोड़ी. उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में जो लाइन खींची उस पर 15 वर्षों तक मन बेमन से रमन सिंह चलते रहे.
छत्तीसगढ़ की आवाम के चहेते अजीत जोगी एक लेखक, राजनेता, बौद्धिक शख्स के साथ-साथ प्रखर वक्ता थे उन्हें सुनने भारी भीड़ जुटती थी आवाम की नब्ज उनके हाथों में थी वे एक ऐसे राजनेता थे जिन्हें सच्चे शब्दों में जन नेता कहा जा सकता है.
राधा नाम की जिस औरत की वजह से प्रांशु का कत्ल किया गया, उस बेचारी को इस अपराध की भनक तक नहीं थी. इस की वजह शायद यह थी कि वह लल्लन और प्रांशु को जो देह सुख दे रही थी, वह उस गरीब की मजबूरी थी. उस ने सोचा भी न होगा कि दो दोस्तों… रायबरेली के डलमऊ थानाक्षेत्र में एक गांव है गुरदीन का पुरवा मजरा रसूलपुर. गंगाघाट के पास
खेल रहे कुछ बच्चों ने वहां एक युवक की लाश पड़ी देखी. बच्चों ने लाश देखी तो शोर मचा कर आसपास के लोगों को बुला लिया. कुछ ही देर में यह खबर दूरदूर तक फैल गई. खबर सुन कर रसूलपुर गांव के प्रधान भी वहां पहुंच गए. उन्होंने फोन कर के घटना की सूचना डलमऊ थाने को दे दी.
सूचना पा कर इंसपेक्टर श्रीराम पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. मृतक की उम्र लगभग 20-25 साल थी. उस के गले पर रस्सीनुमा किसी चीज से कसे जाने के निशान थे, शरीर पर भी चोट के निशान थे.
ये भी पढ़ें-Crime Story: मांगी मोहब्ब्त मिली मौत
घटनास्थल के आसपास का निरीक्षण किया गया तो वहां से लगभग 2 किलोमीटर दूर हीरो कंपनी की एक बाइक लावारिस खड़ी मिली. संभावना थी कि वह मृतक की ही रही होगी.
इसी बीच सीओ (डलमऊ) आर.पी. शाही भी मौके पर पहुंच गए. उन्होंने लाश व घटनास्थल का निरीक्षण किया, वहां मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त कराई, लेकिन कोई भी लाश को नहीं पहचान सका. पुलिस अभी अपना काम कर ही रही थी कि एक व्यक्ति कुछ लोगों के साथ वहां पहुंचा. उस ने लाश देख कर उस की शिनाख्त अपने 20 वर्षीय बेटे प्रांशु तिवारी के रूप में की. यह बात 25 फरवरी, 2020 की है.
शिनाख्त करने वाले मदनलाल तिवारी थे और वह डलमऊ कस्बे के शेरंदाजपुर मोहल्ले में रहते थे. मदनलाल तिवारी ने बताया कि प्रांशु एक दिन पहले 24 फरवरी की शाम 7 बजे घर से निकला था.
उसे उस के दोस्त पिंटू जोशी और पप्पू जोशी बुला कर ले गए थे. ये दोनों डलमऊ में टिकैतगंज में रहते हैं. संभवत: उन्होंने ही प्रांशु को मारा होगा. मदनलाल तिवारी से प्रारंभिक पूछताछ के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी.
थाने आ कर इंसपेक्टर श्रीराम ने मदनलाल की लिखित तहरीर पर पिंटू जोशी व पप्पू जोशी के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.
ये भी पढ़ें-Crime Story: एक सहेली ऐसी भी
इंसपेक्टर श्रीराम ने केस की जांच शुरू की. सब से पहले उन्होंने गांव के लोगों से पूछताछ की. पता चला मृतक प्रांशु तिवारी के सुरजीपुर गांव की राधा नाम की महिला से नाजायज संबंध थे. जब इस बात की और गहराई से छानबीन की गई तो राधा के प्रांशु के अलावा प्रांशु के पड़ोसी अशोक निषाद उर्फ कल्लन से भी नाजायज संबंध होने की बात सामने आई.
इस बात को ले कर दोनों में विवाद भी हो चुका था. यह जानकारी मिलने के बाद इंसपेक्टर श्रीराम ने सोचा कि कहीं प्रांशु की हत्या इसी महिला से संबंधों के चलते तो नहीं हुई. पुलिस को यह भी पता चला कि पिंटू जोशी और पप्पू जोशी आपराधिक प्रवृत्ति के हैं.
इंसपेक्टर श्रीराम का शक तब और मजबूत हो गया, जब कल्लन अपने घर से फरार मिला. पिंटू और पप्पू भी फरार थे. इंसपेक्टर श्रीराम ने उन का पता लगाने के लिए अपने विश्वस्त मुखबिरों को लगा दिया.
घटना से 2 दिन बाद यानी 27 फरवरी को पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर आरोपी पिंटू जोशी, पप्पू जोशी और अशोक निषाद उर्फ कल्लन को सुरजीपुर शराब ठेके के पीछे मैदान से गिरफ्तार कर लिया.
कोतवाली में जब उन से सख्ती से पूछताछ की गई तो तीनों ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और अपने चौथे साथी डलमऊ के भीमगंज मोहल्ला निवासी राजकुमार का नाम भी बता दिया.
ये भी पढ़ें-Crime Story: जानी जान का दुश्मन
राधा उत्तर प्रदेश के जिला रायबरेली के डलमऊ थानाक्षेत्र के गांव सुरजीपुर में रहती थी. 35 वर्षीय राधा 2 बच्चों की मां थी. उस के पति का नाम बबलू था जो कहीं बाहर रह कर नौकरी करता था. अपनी नौकरी से वह इतने पैसे नहीं जुटा पाता कि उस के बीवीबच्चों का खर्च चल सके. बड़ी मुश्किल से परिवार की दोजून की रोटी मिल पाती थी.
एक तो पति घर से दूर और उस पर आर्थिक अभाव. दोनों ही बातों ने राधा को परेशान कर रखा था. शरीर की आग तो बुझना दूर पेट की आग को शांत करने तक के लाले पड़े थे. ऐसे में राधा का तनमन बहकने लगा. बड़ी उम्मीद ले कर वह अपनी जरूरत के पुरुष को तलाशने लगी.
अशोक निषाद उर्फ कल्लन डलमऊ कस्बे के शेरंदाजपुर मोहल्ले में रहता था. कल्लन के पिता राजेंद्र शराब के एक ठेके पर सेल्समैन थे. कल्लन के 2 भाई और एक बहन थी. कल्लन सब से बड़ा था.
22 वर्षीय कल्लन भी सुरजीपुर के शराब ठेके पर सेल्समैन की नौकरी करता था. डलमऊ से सुरजीपुर की दूरी महज 2 किलोमीटर थी. काम पर वह अपनी बाइक से आताजाता था.
कल्लन ने राधा के हुस्न को देखा तो उसे पाने की चाहत पाल बैठा. उस के पति के काफी समय से दूर होने और आर्थिक अभाव के बारे में कल्लन जानता था. राधा से नजदीकी बढ़ाने के लिए वह उस से हमदर्दी दिखाने लगा.
राधा कल्लन के बारे में सब जानती थी. वह उस से 12 साल छोटा था. राधा को समझते देर नहीं लगी कि कल्लन उस से क्यों हमदर्दी दिखा रहा है. यह बात समझते ही उस के चेहरे पर मुसकान और आंखों में चमक आ गई. फिर उस का झुकाव भी कल्लन की ओर हो गया.
एक दिन कल्लन राधा के घर के सामने से जा रहा था तो राधा घर की चौखट पर बैठी थी. उस समय दूरदूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था. अच्छा मौका देख कर कल्लन बोला, ‘‘राधा, मुझे तुम्हारे बारे में सब पता है. तुम्हारी कहानी सुन कर ऐसा लगता है कि तुम्हारी जिंदगी में सिर्फ दुख ही दुख है.’’
‘‘कल्लन, मैं ने तुम्हारे बारे में जो सुन रखा था, तुम उस से भी कहीं ज्यादा अच्छे हो, जो दूसरों का दुख बांटने की हिम्मत रखते हो. वरना इस जालिम दुनिया में कोई किसी के बारे में कहां सोचता है.’’
‘‘राधा, दुनिया में इंसानियत अभी भी जिंदा है. खैर, तुम चिंता मत करो. आज से मैं तुम्हारा हर तरह से खयाल रखूंगा. चाहो तो बदले में तुम मेरा कुछ काम कर दिया करना.’’
‘‘ठीक है, तुम मेरे बारे में इतना सोच रहे हो तो मैं भी तुम्हारा काम कर दिया करूंगी.’’
यह सुन कर कल्लन ने राधा के कंधे पर सांत्वना भरा हाथ रखा तो राधा ने अपनी गरदन टेढ़ी कर के उस के हाथ पर अपना गाल रख कर आशा भरी नजरों से उस की तरफ देखा. कल्लन ने मौके का फायदा उठाने के लिए राधा के हाथों पर 5 सौ रुपए रखते हुए कहा, ‘‘ये रख लो, तुम्हें इन की जरूरत है.’’
राधा तो वैसे भी अभावों में जिंदगी गुजार रही थी, इसलिए उस ने कल्लन द्वारा दिए गए पैसे अपनी मट्ठी में दबा लिए. इस से कल्लन की हिम्मत और बढ़ गई. वह हर रोज राधा से मिलने उस के घर जाने लगा.
वह राधा के बच्चों के लिए खानेपीने की चीजें ले कर आता था. कभीकभी वह राधा को पैसे भी देता था. इस तरह वह राधा का खैरख्वाह बन गया.
राधा हालात के थपेड़ों में डोलती ऐसी नाव थी, जिस का मांझी उस के पास नहीं था. इसलिए वह कल्लन के अहसान अपने ऊपर लादती चली गई.
स्वार्थ की दीवार पर अहसानों की ईंट पर ईंट चढ़ती जा रही थी, जिस के चलते राधा भी कल्लन का पूरा ख्याल रखने लगी थी. वह उसे खाना खाए बिना नहीं जाने देती थी. लेकिन कल्लन के मन में तो राधा की देह की चाहत थी, जिसे वह हर हाल में पाना चाहता था.
एक दिन उस ने कहा, ‘‘राधा, तुम खुद को अकेली मत समझना. मैं हर तरह से तुम्हारा बना रहूंगा.’’
यह सुन कर राधा उस की तरफ चाहत भरी नजरों से देखने लगी. कल्लन समझ गया कि वह पूरी तरह शीशे में उतर चुकी है, इसलिए उस के करीब आ गया और उस के हाथ को अपनी दोनों हथेलियों के बीच दबा कर बोला, ‘‘सच कह रहा हूं राधा, तुम्हारी हर जरूरत पूरी करना अब मेरी जिम्मेदारी है.’’
हाथ थामने से राधा के शरीर में भी हलचल पैदा हो गई थी. कल्लन के हाथों की हरकत बढ़ने लगी थी. इस का नतीजा यह निकला कि दोनों बेकाबू हो गए और अपनी हसरत पूरी कर के ही माने.
कल्लन ने राधा की सोई हुई भावनाओं को जगाया तो उस ने देह सुख की खातिर सारी नैतिकताओं को ठेंगा दिखा दिया. कल्लन और राधा के अवैध संबंध बने तो फिर बारबार दोहराए जाने लगे.
राधा को कल्लन के पैसों का लालच तो था ही, अब वह उस से खुल कर पैसे मांगने लगी. कल्लन चूंकि उस के जिस्म का लुत्फ उठा चुका था, इसलिए पैसे देने में कोई गुरेज नहीं करता था. इस तरह एक तरफ राधा की दैहिक जरूरतें पूरी होने लगी थीं तो दूसरी तरफ कल्लन उस की आर्थिक जरूरतें पूरी करने लगा था. काफी अरसे बाद राधा की जिंदगी में फिर से रंग भरने लगे थे.
डलमऊ के शेरंदाजपुर मोहल्ले में कल्लन के पड़ोस में मदनलाल तिवारी का परिवार रहता था. मदनलाल पूर्व सैनिक थे. वह सन 2003 में सेना से रिटायर हुए थे. परिवार में उन की पत्नी अनीता के अलावा एक बेटी व 3 बेटे प्रांशु, अजीत और बऊआ थे.
20 वर्षीय प्रांशु बीए द्वितीय वर्ष की पढ़ाई कर रहा था. उस की और कल्लन की अच्छी दोस्ती थी. दोनों साथ खातेपीते थे.
एक दिन शराब के नशे में कल्लन ने प्रांशु को अपने और राधा के संबंधों के बारे में बता दिया. यह सुन कर प्रांशु चौंका. यह उस के लिए चिराग तले अंधेरा वाली बात थी.
कुंवारा प्रांशु किसी भी औरत के सान्निध्य के लिए तरस रहा था. राधा की हकीकत पता चली तो उसे अपनी मुराद पूरी होती दिखाई दी. राधा अपने शबाब का दरिया बहा रही थी और उसे खबर तक नहीं थी. वह भी राधा से बखूबी परिचित था.
प्रांशु के दिमाग में तरहतरह के विचार आने लगे. वह सोचने लगा कि जब कल्लन राधा के साथ रातें रंगीन कर सकता है तो वह क्यों नहीं.
अगले दिन प्रांशु कल्लन से मिला तो बोला, ‘‘तुम राधा से मेरे भी संबंध बनवाओ, नहीं तो मैं तुम्हारे संबंधों की बात पूरे गांव में फैला दूंगा.’’
कल्लन का राधा से कोई दिली लगाव तो था नहीं, वह तो उस की वासना की पूर्ति का साधन मात्र थी. उसे दोस्त के साथ बांटने में कोई परेशानी नहीं थी. वैसे भी प्रांशु का मुंह बंद करना जरूरी था.
इसलिए उस ने राधा को प्रांशु की शर्त बताते हुए समझाया, ‘‘देखो राधा, अगर हम ने उस की बात नहीं मानी तो वह हमारी पोल खोल देगा. पूरे गांव में हमारी बदनामी हो जाएगी. इसलिए तुम्हें उसे खुश करना ही पड़ेगा.’’
राधा के लिए जैसा कल्लन था, वैसा ही प्रांशु भी था. उस ने हां कर दी. इस बातचीत के बाद कल्लन ने यह बात प्रांशु को बता दी. फलस्वरूप वह उसी दिन शाम को राधा के घर पहुंच गया. दोनों पहले से ही बखूबी परिचित थे, दोनों में बातें भी होती थीं.
सारी बातें चूंकि पहले से तय थीं, इसलिए दोनों के बीच अब तक बनी संकोच की दीवार गिरते देर नहीं लगी. प्रांशु से शारीरिक संबंध बने तो राधा को एक अलग तरह की सुखद अनुभूति हुई. प्रांशु कल्लन से अधिक सुंदर, स्वस्थ था और बिस्तर पर खेले जाने वाले खेल का भी जबरदस्त खिलाड़ी था.
जोश में भी वह होश व संयम से खेल को देर तक खेलता था. जबकि कल्लन इस के ठीक विपरीत था.
राधा की ख्वाहिशों का उसे बिलकुल भी ख्याल नहीं रहता था. ऐसे में राधा प्रांशु के ज्यादा नजदीक आने लगी और कल्लन से दूरी बनाने लगी. प्रांशु के संपर्क में आने के बाद वह कल्लन को और उस के अहसानों को भूलने लगी.
कल्लन को भी समझते देर नहीं लगी कि राधा प्रांशु की वजह से उस से दूरी बना रही है. यह बात उसे अखरने लगी. राधा को फंसाने की सारी मेहनत उस ने की और प्रांशु बिना किसी मेहनत के फल खा रहा था. इस बात को ले कर प्रांशु और कल्लन में मनमुटाव रहने लगा.
इसी बीच कल्लन का रोड एक्सीडेंट हो गया और उस के एक पैर में फ्रैक्चर हो गया. जब उस का प्रांशु से विवाद हुआ तो प्रांशु ने कल्लन से कहा कि वह उस की दूसरी टांग भी तुड़वा देगा. कल्लन को उस की यह धमकी चुभ गई. इस के बाद उस ने कांटा बने प्रांशु को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया.
कल्लन की दोस्ती डलमऊ के ही मोहल्ला टिकैतगंज में रहने वाले शातिर अपराधी पिंटू जोशी और पप्पू उर्फ गिरीश जोशी से थी. ये दोनों प्रांशु के भी दोस्त थे.
कल्लन ने पिंटू जोशी से प्रांशु की हत्या करने को कहा. उस ने हत्या की एवज में 25 हजार रुपए देने की बात भी कही. पिंटू तो अपराधी था ही, इसलिए वह प्रांशु की हत्या करने को तैयार हो गया. उस की सहमति के बाद कल्लन ने सुपारी की रकम के आधे पैसे यानी साढ़े 12 हजार रुपए पिंटू को दे दिए.
पिंटू ने पप्पू के साथसाथ इस योजना में भीमगंज मोहल्ला निवासी राजकुमार को भी शामिल कर लिया. चारों ने मिल कर प्रांशु की हत्या की योजना बनाई.
24 फरवरी की शाम 7 बजे पिंटू और पप्पू जोशी कल्लन की बाइक से प्रांशु के घर पहुंचे. पार्टी देने की बात कह कर वे प्रांशु को सुरजीपुर ले गए.
वहां ये लोग शराब के ठेके के पीछे खाली पड़े मैदान में पहुंचे तो वहां कल्लन और राजकुमार पहले से मौजूद थे. सब ने वहां बैठ कर शराब पी और खाना खाया गया. पिंटू कल्लन और प्रांशु के बीच सुलह कराने का नाटक करते हुए प्रांशु को मनाने लगा. इस बात पर प्रांशु और कल्लन के बीच देर रात तक बहस चलती रही. फिर प्रांशु के शराब के नशे में होने पर सब ने मिल कर क्लच वायर से गला कस कर उस की हत्या कर दी.
पिंटू और पप्पू कल्लन की बाइक पर प्रांशु की लाश रख कर उसे गुरदीप का पुरवा में गंगाघाट के किनारे ले गए. उन्होंने उस की लाश फेंक दी और फरार हो गए. घटना के बाद से सभी अपने घरों से फरार हो गए थे. लेकिन मुखबिर की सूचना पर गिरफ्तार कर लिए गए.
पुलिस ने अभियुक्तों से पूछताछ करने के बाद उन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त हीरो बाइक नंबर यूपी33क्यू 6990 भी बरामद कर ली. हत्या में प्रयुक्त क्लच वायर भी बरामद कर लिया गया. फिर आवश्यक कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर के तीनों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक अभियुक्त राजकुमार को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर पाई थी. द्य
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
लेखक–डॉ॰ स्वतन्त्र रिछारिया
लेखक–डॉ॰ स्वतन्त्र रिछारिया
अर्जुन कुछ और कहता उसके बीच में ही वैदेही कहती है तो तुम्हारा मतलब है हमारे बीच अब अहसास नहीं बचा या प्यार नहीं है.
अर्जुन – नहीं नहीं मैंने ऐसा कब कहा कि हमारे बीच प्यार नहीं. बल्कि मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ कि जो हमारे बीच अहसास है, प्यार है वह बरकरार रहे. वैदेही अभी बहुत कुछ है हमारे बीच जो हमें एक दूसरे की ओर आकर्षित और रोमांचित करता है. मैं यही चाहता हूँ कि यही अहसास बने रहें.
वैदेही – तो अब तुम्ही बताओ कि हमें क्या करना चाहिए?
अर्जुन – हमें कुछ दिनों या महीनों के लिए दूर हो जाना चाहिए ताकि फिर से हम एक दूसरे से कुछ अजनबी हो सके, कुछ दिनों कि दूरी फिर से वह आकर्षण या कशिश पैदा करेगी, जहां शब्दों की फिर कम ही जरूरत होगी. और जितनी बात हम दोनों के फिर से मिलने पर होगी वह मेरी और तुम्हारी ही होगी, क्योंकि कुछ दिनों का अजनबीपन से बहुत कुछ हम दोनों के पास होगा जो हम एक-दूसरे से सुनना और बताना चाहेंगे.
वैदेही – ठीक है मान लिया तुम चाहते हो कि हँसते-हँसते कुछ समय के लिए हम दूर हो जाए, एक अच्छे रिलेशन को और मजबूर करने के लिए, पर ये होगा कैसे?
अर्जुन – अरे यार तुम आर्किटेक्ट में डिप्लोमा करने के लिए जो मूड बना रही हो, उसे अहमदाबाद में जॉइन करो, और हो जाओ अजनबी. और फिर मिलते हैं कुछ नए-नए से होकर, विथ न्यू एक्साइटमेंट के साथ.
वैदेही – थोड़े-थोड़े अजनबी बनने के चक्कर में कहीं इतनी दूर नहीं हो जाए कि फिर कभी मिल ही ना सकें.
अर्जुन – अगर कुछ दिनों कि दूरी हमें अलग कर देती है तो फिर तो हम दोनों को ही मान लेना होगा की हमारा रिश्ता उतना मजबूत था ही नहीं, और ये दूरी तोड़ने या दूर जाने के लिए नहीं बल्कि और नजदीक आने के लिए है.
वैदेही अर्जुन के इस प्रपोज़ल को दिल से स्वीकार कर पायी थी या नहीं, पर अर्जुन के इस दिमागी फितूर को मानते हुए अहमदाबाद में उसने अपना कोर्स जॉइन कर लिया. वैदेही नयी जगह, नए दोस्तों और पढ़ाई में कुछ व्यस्त से हो गयी थी, पर रात में अर्जुन की यादें हमेशा उसके साथ रहती थी.
अर्जुन और वैदेही को दूर हुए अभी दो महीने ही तो हुये थे पर अर्जुन का 6 महीने बाद मिलने का वादा जबाब देने लगा. छः महीने के पहले न फोन करने और न ही मिलने वाली अपनी ही बात को ना मानते हुए, अर्जुन ने आज वैदेही को मोबाइल पर मेसेज भेजा.
कुछ घंटे के इंतजार के बाद उसने फिर मेसेज भेजा, पर पहले मेसेज की तरह ही दूसरा मेसेज न तो रिसीव हुआ और न ही कोई जबाब आया.
मेसेज का जबाब न आने पर अर्जुन की बैचेनी बढ़ने लगी थी, बढ़ती बैचेनी ने अर्जुन के मेसेज की संख्या और लंबाई को भी बड़ा दिया. और अब मेसेज क्या वैदेही ने तो कॉल भी रिसीव नहीं किया था.
अब अर्जुन के मन में सौ सवाल उठ रहे थे, क्या वैदेही गुस्सा हो गयी? कहीं वैदेही को कुछ हो तो नहीं गया? या कहीं कोई और बात तो नहीं? अर्जुन के मेसेज और कॉल करने और वैदेही के जबाब न देने का सिलसिला लगभग 15-20 दिन चला. अंततः अर्जुन ने ठान लिया की वह अब खुद ही अहमदाबाद जाएगा.
माना जाता है कि स्त्री के व्यक्तिव की यह खूबी और पुरुष के व्यक्तिव की यह कमी होती है, जिसके कारण पुरुष अपनी ही सोची बात, विचार या निर्णय पर अक्सर कायम नहीं रह पाता, जबकि एक स्त्री किसी दूसरे की बात, विचार या निर्णय को उतनी ही सिद्दत से निभाने का सामर्थ्य रखती है, जैसे वह विचार या निर्णय उसने ही लिया हो.
जिस दिन अर्जुन को अहमदाबाद जाना था उसके एक दिन पहले अचानक रात में अर्जुन के मोबाइल पर वैदेही के आने वाले मेसेज की खास रिंगटोन बजती है, इतने लंबे इंतजार के बाद वैदेही के मेसेज आने से मोबाइल की स्क्रीन के साथ अर्जुन की आंखे भी चमक रही थी.
पर मेसेज में न जाने ऐसा क्या लिखा हुआ था, जैसे-जैसे अर्जुन मेसेज की लाइने पढ़ रहा था, पढ़ने के साथ उसके चेहरे की रंगत भी उड़ती जा रही थी.
मेसेज पढ़ने के बाद अर्जुन वैदेही से पहली बार मिलने से लेकर उस अंतिम मुलाक़ात को याद कर रहा था, बेड पर लेटकर एकटक ऊपर की ओर देखते हुये अर्जुन की आँखों से नमी झलकने लगी थी. कहा जाता है जब दर्द गहरा होता है तो आँसू बिना रोये, बिना आबाज के ही बहने लगते हैं. कुछ पल पहले जिस मेसेज के आने से अर्जुन की आंखे खुशी से चमकी थी, वही आंखे मेसेज पड़ने के बाद नम थी. वैदेही के मेसेज को कई बार पढ़ने के बाद भी अर्जुन को यकीन नहीं हो रहा था कि यह सब सही है…
…..डियर अर्जुन इतने दिनों से तुम मेसेज और कॉल कर रहे हो पर मैंने कोई जबाब नहीं दिया उसके लिए सॉरी… मैं तुमसे बिल्कुल भी गुस्सा नहीं हूँ, पर क्या करूँ तुमने जो कहा था मैं वही तो कर रही हूँ. और तुम जानते हो तुम्हारी हर खवाहिस को मैं दिल से पूरा करने की कोशिश करती हूँ. सच अर्जुन अभी भी मुझे पता नहीं कि दूर होने के लिए तुमने यह मजाक में कहा था, या फिर किसी और वजह से, हो सकता है मेरे कैरियर बनाने के लिए तुमने ऐसा किया हो, पर अर्जुन यह सच है कि मैं तुमसे दूर होने की सोच भी नहीं सकती थी. अर्जुन पिछले दिनों एक बात मेरे मन में रोज ही आती है, अभी तो हम सिर्फ प्यार में थे और शादी जैसा कोई बंधन भी नहीं था, पर तुम्हारे रूटीन लाइफ से बोर हो जाने के कारण हम कुछ दिनों के लिए दूर हो गए. पर अर्जुन यदि शादी के बाद भी तुम रूटीन लाइफ से बोर होने लगे तब क्या होगा. अर्जुन हम जैसी लड़कियों का गुण कहें या मजबूरी हम तो दिल से जिस कन्धें और हाथ को एक बार थाम लेते हैं, उसे ही ज़िंदगी भर के लिए अपना साहिल समझ लेते हैं, लड़कियों की ज़िंदगी में खासकर इंडिया में रूटीन लाइफ से बोर होने का आपसन नहीं होता है. इसलिए मेरे और तुम्हारे बीच की इस कुछ दिनों की दूरी को फिलहाल अपना ब्रेक-अप ही समझ रही हूँ. हाँ ज़िंदगी बहुत लंबी है इसलिए आगे का मुझे भी कुछ पता नहीं क्या होगा? दुआ करती हूँ हम दोनों की ज़िंदगी में अच्छा ही हो. अब मेसेज और कॉल नहीं करना क्योंकि तुम्हारे सवालों और बातों का मेरे पास इस मेसेज के अलावा कोई और जबाब नहीं है, लव यू…तुम्हारी वैदेही.
लेखक–डॉ॰ स्वतन्त्र रिछारिया
वैदेही के बालों को सहलाते हुये अर्जुन अपने मन में उठे प्रश्नों को वैदेही के सामने रखता है. वैदेही याद करो प्यार की शुरुआत में फोन पर हम घंटों बाते करते थे, पर आज फोन पर हम कितनी बात करते हैं? पहले मिलने पर क्या हमारे पास इतनी बाते थी, जितनी आज हम करते हैं? और आजकल हमारी बाते मेरी तुम्हारी ना होकर किसी और टॉपिक पर ही क्यों होती हैं? और दूसरे की बातों में हम कभी-कभी वेवजह झगड़ भी लेते हैं.
अर्जुन की यह सारी बाते अभी भी वैदेही के समझ के बाहर थी, अब इसी कनफ्यूज से मन और दिमाग की स्थिति के साथ कुछ मज़ाकिया अंदाज में वैदेही कहती है, लोग सच ही कहते हैं साइकोलोजी और फिलोसफी पढ़ने-पढ़ाने वाले लोग आधे खिसक जाते हैं. और तुमने तो दोनों ही पढ़े हैं, इसलिए लग रहा है, कि तुम तो पूरे….
अर्जुन – अब तुम्हें जो कहना है वह कहो या समझो पर कल जरूर मेरी इन बातों को सोचकर आना .
आज घर जाते हुए भले दोनों हाथों में हाथ लिए चल रहे थे, पर दोनों खोये हुये थे किसी और ही दुनिया में. वैदेही चलते-चलते सोचे जा रही थी कि अर्जुन की तो आदत ही है, इस टाइप के इंटेलेक्चुयल मज़ाक करने की, लेकिन दूसरे ही पल वह यह भी सोच रही थी कि छोड़ने या अलग होने की बात तो आजतक कभी अर्जुन ने नहीं की है. इसलिए वह ऐसा मजाक तो नहीं करेगा. मन की उधेड़बुन तो नहीं थमी, लेकिन चलते-चलते पार्किंग स्टैंड जरूर आ गया.
जहां से दोनों को अलग होना था. दोनों ने एक दूसरों को सिद्दत भरी निगाहों और प्यार के साथ अलविदा किया और अपनी-अपनी गाड़ी को स्टार्ट करते हुये, अपने-अपने रास्ते पर चल दिए.
भले अर्जुन की बातों से वैदेही ज्यादा उदास और सोचने को मजबूर थी, पर अर्जुन भी कम बैचेन नहीं था. इसलिए ही तो कहते हैं कि अगर हम किसी के मन में अपनी बातों या कामों से उथल-पुथल मचाते हैं तो उसका प्रभाव हम पर भी कुछ ना कुछ जरूर ही होता है. हम चाहे कितने प्रबल इच्छाशक्ति वाले क्यों ना हों.
बारह घंटे के बाद स्माइली इमोजी और गुड्मोर्निंग के साथ अर्जुन का मेसेज वैदेही के मोबाइल पर आता है. बताओ कहाँ मिलना है? और आई होप तुमने जरूर सोचा होगा. वैदेही भी कनफ्यूज इमोजी के साथ गुड्मोर्निंग भेजती है और लिखती है. कल कहानी तुमने ही चालू की थी, तो आज तुम ही बताओ कहा खत्म करोगे. रिप्लाई करते हुये अर्जुन कहता है आज संडे भी है तो यूनिवर्सिटी के उसी पार्क में मिलते हैं जहां पहली बार मिले थे.
पार्क में अर्जुन हमेशा की तरह टाइम से पहले बैठा मिलता है. वैदेही भी पार्क के गेट से ही अर्जुन को देख लेती है मानों पार्क में उसके अलावा कोई और हो ही ना.
अर्जुन कुछ बोलता उससे पहले ही वैदेही कहती है तुमने जो भी कहा था उस पर खूब सोचा और उससे आगे-पीछे भी बहुत कुछ सोचा. हाँ तुम सही कहते हो पहले हम फोन पर ज्यादा बाते करते थे और मिलने पर हमारे पास बाते कम और अहसास ज्यादा थे. एक-दूसरे से मिलने पर बातों की जरूरत ही महसूस नहीं होती थी. एक दूसरे की मौजूदगी ही सब कह देती थी. और यह भी सही है पिछले कुछ दिनों से हम लोग एक दूसरे की बात या विचार का उतना सम्मान नहीं करते जैसा पहले था. पहले मुझे तुम्हारी गलत बाते भी सही लगती थी और अब कभी-कभी सही बात पर भी हम वेवजह बहस करने लगते हैं.
वैदेही कुछ और कहती इसी बीच में अर्जुन कहता है, तो बताओ ऐसा क्यों है?
वैदेही- अरे अब मैंने फिलोसफी थोड़े पढ़ी है, मैंने तो आर्किटेक्ट पढ़ी है, और आर्किटेक्ट में पहेलियाँ नहीं सीधे-सीधे पढ़ाई होती है. इसलिए तुम ही बताओ ऐसा क्यों है?
अर्जुन कुछ बोलता इससे पहले ही वैदेही कहती है, जो तुमने कहा था वह तो सोचा ही साथ ही मैंने यह भी सोचा कि अपने रिलेशन के पिछले तीन सालों में वैसा व्यवहार एक दूसरे से बिल्कुल नहीं किया, जो किसी प्यार करने वालों में एक साल के अंदर ही होने लगता है, एक भी बार हम दोनों ने एक-दूसरे से इरीटेट होकर ना फोन काटा ना ही स्विच आफ किया. न तुम कभी मुझसे गुस्सा हुये और न ही मैं तुमसे, फिर ना जाने तुम क्यों ब्रेकअप ओह सॉरी-सॉरी दूर होने की बात कर रहे हो.
वैदेही की सारी बातों को हमेशा की तरह उसी तल्लीनता से सुनकर अर्जुन कहता है, वैदेही तुम जो कह रही हो मेरे मन भी यही सब बाते आई थी. तुमसे अलग होने की बात करने से पहले. मैं भी यही सोचता रहा कि अगर दो प्यार करने वाले मिलने पर ज्यादा बात करने लगे हैं, थोड़ा सा बहस करने लगे, थोड़ा सा लड़ ले, तो इसमें क्या गलत है.
पर वैदेही मुझे लगता है जब अहसास कुछ कम होने लगते हैं तब शब्दों की जरूरत ज्यादा पड़ती है, और हम दोनों क्या, अगर किसी भी संबंध में सिर्फ शब्द ही रह जाए तो मान लेना चाहिए संबंध या तो खत्म हो गया है या फिर अगर है भी तो बस औपचारिकता भर है, ऐसे संबंध में आत्मा या जीवंतता नहीं है.
आज हमारे रिलेशन में भले कोई बड़ी समस्या नहीं है पर मुझे लगता है ये छोटी-छोटी नोकझोक ही आगे चलकर बड़ी प्रोबलम बन जाती हैं. अर्जुन अपनी बातों को और समझाने का प्रयास करते हुये कहता है, वैदेही मैंने कई लोगों के प्यार के सफर में देखा हैं, पहले छोटी मोटी नोकझोक, फिर बेमतलब की बहसे, फिर आरोप-प्रत्यारोप और फिर चुप्पी, और अंत की चुप्पी बहुत ही दर्द देती है.