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राजवीर देखने में भले ही साधारण व्यक्ति था, लेकिन वह बातों का धनी था. अपनी लच्छेदार बातों से वह किसी का भी मन मोह लेता था. राजवीर मेवाराम की पत्नी उमा के खूबसूरत हुस्न का दीवाना था. उमा भी उस की जवांदिली पर लट्टू थी.

शाम का समय था. राजवीर घर आया तो उमा उस के लिए चाय बना लाई. चाय के साथ गरमागरम पकौड़े भी थे. पकौड़े राजवीर को बहुत पसंद हैं, यह बात उमा जानती थी. राजवीर चहक उठा, ‘‘भई वाह, ये हुई न बात.’’फिर एक पकौड़ा मुंह में रख कर स्वाद लेते हुए पूछ बैठा, ‘‘तुम मेरे दिल की बात कैसे जान गईं?’’
उमा मुसकराते हुए बोली, ‘‘जब हमारे दिल के साथसाथ शरीर भी एक हो चुके हैं तो दिल की बात एकदूसरे से कैसे छिपी रह सकती है.’’

‘‘वाकई तुम्हारी यह बात बिलकुल सही है. देखो, तुम्हारी चाय का रंग भी तुम्हारे रंग जैसा है. लगता है जैसे चाय में तुम ने अपने हुस्न का रंग मिला दिया हो. चाय का स्वाद भी तुम्हारे जैसा मीठा है. पकौड़े भी तुम्हारे जिस्म के अंगों की तरह गर्म और स्वादिष्ट है.’’अपने हुस्न की तारीफ का यह अंदाज उमा को अच्छा लगा. वह राजवीर से सट कर उस की आंखों में आंखें डाल कर बोली, ‘‘जो कुछ मेरे पास है, उस पर तुम्हारा ही तो अधिकार है.’’

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राजवीर ने उस की दुखती रग को छेड़ते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे खूबसूरत जिस्म पर तो तुम्हारे पति मेवाराम का सर्वाधिकार है. लोग भी उस के ही अधिकार को स्वीकृति देंगे.’’‘‘वह तो सिर्फ नाम का पति है. बीवी की जगह शराब की बोतल को सीने से लगाए घूमता है, मुझे बिस्तर पर तड़पने के लिए छोड़ देता है. वैसे भी शराब ने उस के शरीर को इतना खोखला कर दिया है कि उस में शबाब के उफनते गुप्त तटबंधों की गरमी शांत करने का माद्दा नहीं बचा.’’‘‘तुम्हारी हसीन चाहतों की कसौटी पर मैं खरा उतरा हूं कि नहीं?’’ कह कर राजवीर ने उमा के दिल की बात जाननी चाही.

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